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गिरने से बचने को मैंने ताई की कमर में हाथ डाल लिया ताई की कड़क छतिया मेरे सीने से टकराई मेरे लबो ने ताई के सुर्ख गालो को हलके से छू लिया.
“देख कर चला कर, ” ताई ने चाची की तरफ देखते हुआ कहा तो मैं उस से अलग हो गया और घर से बाहर निकल गया . पल भर में ही आँखों के आगे वो लम्हा घूम गया जब ताई को मैंने ठेकेदार से चुदते हुए देखा था , दिल ने बड़ी जोर से कहा ही हिम्मत करके ताई को बता दे अपनी इस ख्वाहिश के बारे में , पर हमारे सोचने से क्या होता , देनी तो ताई को थी उसका भी तो मन होना चाहिए न .
सोचते सोचते मैं हलवाई की दूकान पर जाकर बैठ गया , एक गर्म समोसा लिया और खाने वाला ही था की सुनार मेरे सामने आकर बैठ गया .
“और बेटे कैसे हो ” सुनार ने मुझसे कहा
आज से पहले मेरी उससे कभी कोई बात नहीं हुई थी तो मुझे थोडा अचरज हुआ .
मैं- ठीक हूँ लालाजी , तुम बताओ .
लाला- बस कट रही है . वैसे तुझे मुझसे कोई काम हो तो बता देना , हिचकिचाना मत मैं तो तेरे लिए सदा ही हूँ
मैं- मुझे भला क्या काम होगा तुमसे
लाला ने आँखों से चश्मा उतार कर साफ़ किया और मेरे थोडा और नजदीक सरक कर बोला- तुझे कुछ भी , मेरा मतलब सोना-चांदी बेचना हो तो मैं हूँ न, सीधा मेरे पास आ जाना , बढ़िया दाम दूंगा तुझे.
मैं- पागल हुआ है क्या लाला, हालत देख मेरी, और भला किसने तुझसे कहा की मेरे पास कुबेर का खजाना है .
लाला- इतना भी भोला नहीं है तू, बैंक मेनेजर ने मुझे सब कुछ बता दिया है , देख पुरे गाँव को मालूम है तेरे चाचा ने सब कुछ डकार लिया है , तुझे नौकर से जायदा कुछ नहीं समझते वो. तू वो गहने मुझे बेच दे, दाम तेरे हाथ में आयेंगे तो मौज करेगा.
“तेरो बकवास ख़तम हो गयी हो तो , निकल यहाँ से ” मैंने समोसे का टुकड़ा तोड़ते हुए कहा .
लाला- ऐंठ देखो इस चिलगोजे की, तेरे बाप में भी ये ही अहंकार था
“भोसड़ी के , तेरी हिम्मत क्या हुई मेरे बाप का नाम अपनी जुबान पर लाने की ” गुस्से में मैंने लाला की गुद्दी पकड़ ली.
पल भर में ही चौपाल पर तमाशा हो गया .
“कल के लौंडे , तेरी ये औकात तूने मेरे गिरेबान पर हाथ डाला , इस गाँव में लोगो की ये औकात भी नहीं की वो मुझ से नजर मिला सके, मेरी जुती को दुनिया सलाम करती है तू देख ये सौदा कितना महंगा पड़ेगा तुझे ” लाला ने गुर्राते हुए कहा .
मैंने खींच कर एक थप्पड़ लाला के गाल पर रसीद किया और बोला-चूतिये, महंगे सस्ते की बात ही नहीं है , तू समझ तो गया होगा की तेरी औकात क्या है मेरे आगे.
लाला- इस थप्पड़ की गूँज बहुत दूर तक सुनाई देगी तुझे , तेरी जिन्दगी के दिन आज से उलटे हो गए है .
मैं- नो दो ग्यारह हो जा लाला, इस से पहले की मैं अपनी हद भूल जाऊ, और जा जो उखाड़ सकता है उखाड़ ले .
लाला ने घुर कर देखा मुझे और अपनी बेंत लिए तेजी से चला गया .
“तू क्या देख रहा है एक समोसा और दे ” मैंने हलवाई से कहा और वापिस बेंच पर बैठ गया .
समोसा खाते हुए मैं सोचने लगा की बैंक मेनेजर ने गहनों की बात सुनार को क्यों बताई , और उन गहनों का मुझसे भला क्या लेना देना था . मैंने बैंक जाने का सोचा और करीब 11 बजे मैं बैंक में पहुँच गया .
“सुन भाई, मुझे मेनेजर से मिलना है ” मैंने बाहर बैठे चपरासी से कहा .
“साहब , दो बजे से पहले किसी से नहीं मिलते ” उसने रुखा सा जवाब दिया.
मैं- मेनेजर को जाकर बोल की चौधरी अर्जुन सिंह का बेटा बाहर खड़ा है
कुछ ही देर में एक नाटा सा आदमी लगभग दौड़ते हुए बाहर आया और बोला- छोटे चौधरी, आप यहाँ आये, सुचना भिजवा देते मैं खुद आ जाता .
मैं- क्या फर्क पड़ता है साहब,
“आप आइये मेरे साथ ” उसने कहा और मुझे खुद के केबिन में ले आया.
मेनेजर की उम्र कोई पचास के लगभग की तो होगी ही , सर के थोड़े से बाल झड़े हुए. मैंने देखा उसके माथे पर पसीना कुछ जायदा ही बह रहा था.
मैं- मेरा यहाँ कभी नहीं आना होता, मैं बस आपसे एक बात पूछने आया हूँ और मुझे विश्वास है की आप मुझे मेरे सवाल का जवाब देंगे.
मेनेजर ने हाँ में सर हिलाया.
मैं- लाला ने आज मुझसे गहनों की बात की , उन गहनों का मुझसे क्या वास्ता है और लाला को कैसे मालूम हुआ.
मेनेजर- आप तो जानते है की मेरी वफ़ादारी हमेशा से आपके साथ रही है .
मैं- ये मेरे सवाल का जवाब नहीं है .
मेनेजर- बैंक का नियम है की हमें लाकर रखने पड़ते है , पिछले दिनों बैंक में मरम्मत का काम चल रहा था तो लाकर हमने किसी दूसरी जगह रखे कुछ दिनों के लिए , जिस दिन लाकर शिफ्ट हो रहे थे , उसी दिन लालाजी बैंक में आये थे , बदकिस्मती से दीमक खाए लाकर मजदूरो के हाथ से गिर गए और उनमे से एक लाकर जो कुछ ज्यादा ही खस्ताहाल था वो सबके सामने खुल गया.
मैं- फिर
मेनेजर- लालाजी की दिलचस्पी बिखरे हुए सामान में जाग उठी
मैं- और क्या था वो सामान
मेनेजर उठा और मुझे अपने साथ बैंक के एक नए बने हिस्से में ले आया. उसने जेब से एक जंग खायी चाबी निकाली और एक लाकर में लगा दी. और जब लाकर खुला तो मेरी आँखे फटी की फटी रह गयी . सोने - चांदी के अनगिनत गहने , नोटों की गड्डियां , न जाने क्या क्या .
पर मेरी दिलचस्पी उस कागज़ के टुकड़े में थी जो लाल रंग के धागे में लिपटा हुआ था, मैंने उसे उठाया, मामूली धागे को आपस में गूंध कर गले में पहनने का बनाया हुआ था जिसे एक हीरे में पिरोया हुआ था . धागा कुछ पुराना था पर हीरे में चमक बरक़रार थी . मेरी नजर कागज पर लिखी लाइन पर पड़ी
“इसका बोझ उठा सको तो ही थामना इसे ”
मैंने गौर किया ये लाइन किसी स्याही से नहीं बल्कि खून के कतरों से लिखी हुई थी. चाह कर भी मैं अपनी उत्तेजना , हैरानी को छुपा नहीं पाया.
“ये चाहिए मुझे ” मैंने मेनेजर से कहा
“सब कुछ आपका ही है , मैं तो सोलह साल से राह देख रहा था की कब आप अपनी अमानत लेने आये. ”मेनेजर ने जवाब दिया .
मैं- अभी सिर्फ ये ही चाहिए मुझे
मैंने वो धागा जेब में रख लिया और बैंक से वापिस आ गया. मुझे इकतारे वाली से मिलना था तो मैं रस्ते पर ये ही सोचता रहा की मेरा बाप मेरे लिए इतना सब छोड़ कर गया था और मुझे मालूम ही नहीं था.