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#10
ताई की बातो ने मुझे उत्सुक कर दिया था , दिल कर रहा था की अभी के अभी साइकिल उठाऊ और सीधा उधर पहुँच जाऊं , पर फिर सोचा शाम होने में भला देर ही कितनी बची है, ताई के घर से जब मैं बाहर निकल रहा था तो गली में उसी अजनबी से टकरा गया मैं.
मैं- देख कर चल भाई
वो- गुजरा हुआ कल देखा है , आने वाला कल भी देख रहा हूँ, और कितना देख कर चलू
मैं- क्या मतलब इस बात का .
वो- मतलब तो वो जाने जिसने हम सब के लेख लिखे है ,हम तो कठपुतली है उसकी जिसने ये तमाशा रचा है .
मैं- पागल है क्या तू
वो- काश, पागल होता , खैर अब तूने पूछ ही लिया है तो सुन, अगली पूर्णिमा को रुद्रपुर में निमन्त्रण है तेरा, सोलह साल बाद मेला लगेगा,
मैं- मेरा निमन्त्रण क्यों भला
वो- ये मुझसे क्यों पूछता है , ये तब सोचना था न जब कपाट खोल आया तू, अब जब धूना सिलगा ही दिया है तो सींचना भी तो पड़ेगा
उसकी बाते मेरे सर के ऊपर से गुजर रही थी,
मैं- चुतिया है क्या तू, क्या बकवास कर रहा है, किसके कपाट, कौन सा धुना, मैं अब क्या कर आया रुद्रपुर में .
उस अजनबी ने अपनी छोटी छोटी से आँखों से घुर मुझे और फिर सीधा मेरा कालर पकड़ लिया.
“इतना मासूम भी नहीं है तू ,जितना बनने का नाटक कर रहा है , तेरे सिवा और कौन होता जो बरसो से बंद पड़े मंदिर के दरवाजे खोल आता, अब ये मत पूछना कौन सा मंदिर ” उसने गुर्राते हुए कहा और मुझे धक्का देकर परे धकेल दिया.
“पूनम का इंतज़ार है सब को ” जाते जाते उसने मुड कर कहा
मैं अपना गला सँभालने लगा. घर गया तो देखा की चाचा आँगन में कुर्सी पर बैठा था , चाचा का चेहरा इतना पीला पड़ा हुआ था की देख कर लगे जाने कितने सालो से बीमार हो. मुझे देखते ही वो झटके से खड़ा हुआ और बोला- बेटे, तुम्हे घुमने जाना था न , अपनी तयारी कर लो.
चाचा ने जेब से नोटों की गड्डी निकाली और मेरे हाथ में रख दी.
“तुम घूम आओ , बाहर की दुनिया देखो वैसे भी इस बार मैं तुम्हारा दाखिला बड़े शहर में करवा रहा हूँ, बढ़िया पढाई बहुत जरुरी है भविष्य में काम आएगी, इधर गाँव में क्या रखा है . ” चाचा ने कहा.
मैं- क्या हुआ है चाचा, कोई बात है क्या
चाचा- क्या बात होगी , कुछ भी तो नहीं अपनी औलाद के बारे में हम नहीं सोचेंगे तो भला कौन सोचेगा. तू जा खेल कूद ऐश कर .
चाचा ने मेरे कंधे पर हाथ रखा और फिर अन्दर कमरे में चले गए. मेरा दिमाग पूरी तरह घूम गया था . ये क्या हो रहा था . मैंने नोटों की गड्डी को उधर कुर्सी पर ही रखा और घर से बाहर चल दिया. दोस्तों के साथ इधर उधर घुमा, बेर खाने गया पर मन बिचलित था, काबू में नहीं आ रहा था जैसे तैसे करके शाम हुई और मैं ताई के साथ जंगल पार वाली जमीन की तरफ चल दिया.
ये जंगल भी बड़ा अजीब था , दुनिया भर के पेड़, कुछ बिलकुल सूखे कुछ गहरे, कुछ फलो से लदे, चूँकि पास में नहर थी तो येहमेशा हरा भरा ही रहता था , कभी मिटटी का रस्ता सही मिलता तो कभी कांटो भरा, या लकडियो ने रास्ता रोका हुआ, मैं और ताई चले जा रहे थे की मेरी नजर आम के पेड़ पर पड़ी.मैंने साइकिल रोकी.
ताई- क्या हुआ
मैं -आम
ताई- रहने दे हाथ नहीं पहुंचेगा उधर
मैं- तू देख, अभी तोड़ता हूँ.
मैंने इधर उधर देखा पर पत्थर नहीं मिले मेरे को, न ही कोई ऐसी छड़ी जिसे हिला कर मैं आम तोड़ सकू,
ताई- छोड़ न ,
मैं- रुक जरा, अभी करता हु जुगाड़.
मैंने पेड़ पर चढने की कोशिश भी की पर बात बनी नहीं . उछल कर भी देखा फिर मैंने कुछ सोचा
मैं- ताई , मैं तुझे उठाता हूँ, ये इस तरफ वाली डाली पर तेरा हाथ पहुँच जायेगा.
ताई- न बाबा न, गिर वीर गयी तो कौन करेगा मेरा , हाथ पैर न टूट जाये.
मैं- क्यों घबराती है कुछ नहीं होगा.
मैंने ताई ओ पकड़ा और ऊपर की तरफ उठाना शुरू क्या मेरे हाथ ताई की चिकनी कमर से होते हुए ताई के कुल्हो पर रेंगने लगे थे, मैंने ताई के कुल्हे मजबूती से थामे और ताई को ऊपर उठा दिया.
जब मेरा ध्यान उस बात पर गया तो न जाने क्यों मुझे बड़ा अच्छा लगा. मैंने कुछ जोर से दबाया उन्हें.
ताई- हाथ नहीं पहुंचा थोड़ी कसर है .
मैं- रुक जरा
मैंने ताई को और ऊपर किया अब मेरे हाथ ताई की जांघो पर पहुँच गए थे, और ताई की चूत वाला हिस्सा मेरे मुह के सामने मेरे इतने पास की मेरे होंठ उस पर रगड़ खा जाते अगर ताई का लहंगा बीच में ना आ रहा होता तो . सर चकराने लगा मेरा. आँखों आगे अँधेरा सा आने लगा. ताई के बदन की खुसबू छाने लगी मुझ पर .
“क्या कर रहा है ठीक सा पकड़. गिराएगा क्या , बस तोड़ ही दिया मैंने ” ताई ने कहा और दो आम तोड़ लिए.
ताई- अब उतार भी दे.
मैंने हौले हौले ताई को निचे उतार दिया , जब उसकी चुचिया मेरे सीने पर रगड़ी तो मैंने अपने कच्छे में कुछ जोर मारती चीज़ को महसूस किया.
“क्या देख रहा है ऐसे ” ताई ने मुझे अपनी छाती ताड़ते हुए कहा
मैं- तुझे देख रहा हु,
मैंने बिलकुल भी झूठ नहीं बोला.
ताई- मेरे को तो रोज ही देखता है तू
मैं- आम दे मुझे.
हम वही बैठ कर आम खाने लगे. चीनी से भी मीठा आम . बिलकुल ताजा अभी अभी पेड़ से तोडा हुआ इस से बढ़िया भला क्या होता. मैंने देखा ताई का होंठ थोडा सा आम क रस से सना है
ताई- क्या देख रहा है.
मैं- रस लगा है
ताई किधर
मैं थोडा सा आगे हुआ और ताई के होंठो पर अपनी ऊँगली फेर दी.
उफ़ कितने मुलायम थे उसके होंठ, कितने नर्म होंगे जब मैं चुसुंगा इन्हें. सोचा मैंने
ताई- हो गया साफ
मैं- हा बस
मैंने एक बार और ऊँगली फेरी तो ताई ने हल्का सा मुह खोला और मेरी ऊँगली थोड़ी सी ताई के मुह में चली गयी, गर्म जीभ का स्पर्श मेरे तन बदन को हिला गया. न जाने क्यों मुझे लगा की ताई ने मेरी ऊँगली को चूमा हो . .........................
“चल अब, देर मत कर ” ताई ने कहा तो मेरी तन्द्रा टूटी
हम फिर चल पड़े. करीब आधे घंटे में हम लोग उस जगह पर पहुँच गए जहाँ जंगल खत्म होता था और हमारी जमीन शुरू होती थी . दूर कहीं सूरज लाल हुआ पड़ा था , ढलने को बेताब. मैंने दूर दूर तक नजर डाली एक तरफ घना जंगल था जिसे पार करके हम आये थे दूसरी तरफ सूखी जमीन दूर दूर तक
मैं- क्या है ये ताई.
ताई- ये ही है वो जमीन
ताई- झटका लगा न, इस बंजर को देख कर . यहाँ से रुद्रपुर तक तेरी ही जमीन है .
रुद्रपुर यहाँ सेकोई दो ढाई कोस दूर था . इस हिसाब से तो काफी क्या बहुत ज्यादा जमीन थी ये .
मैं- ये तो बहुत बड़ा इलाका हुआ
ताई- ये मत पूछ की ये कितना इलाका है ये देख की ये जमीन बंजर क्यों है .
ताई ने मेरा हाथ पकड़ा और अपने साथ ले चली.
देख- यहाँ से रुदपुर तक पुरे ११ कुवे है , और एक बावड़ी. ताई ने कहा
ताई मुझे एक कुवे पर ले आई और बोली निचे देख. मैंने झाँक कर देखा कुवा पानी से लबालब भर था पानी इतना था की बस बाल्टी डालो और पानी खींच लो.
मैं- जब पानी है तो फिर जमीन प्यासी क्यों.
ताई ने पास पड़ी एक पुराणी सी बाल्टी की तरफ इशारा करते हुए कहा तू खुद ही देख ले
मैंने बाल्टी कुवे में डाली और खींचा , बाल्टी मैंने जमीन पर खाली की .पर जमीन जरा भी गीली नहीं हुई. अब मैं हुआ हैरान
ताई- हैरानी हुई न, दुनिया कहती है की ये प्यासी जमीन है जिसकी प्यास न कोई कुवा बुझा सकता है न कोई बारिश, बारिस के मौसम में जब आस पास की सारी धरती नया जीवन प्राप्त करती है ये धरा ऐसी की ऐसी ही रहती है .
मैं- क्यों भला
ताई- आ मेरे साथ तुझे कुछ और दिखाती हु,
मैं ताई के पीछे पीछे हो लिया. ताई की मटकती गांड एक बार फिर मेरी परीक्षा लेने लगी.
ताई की बातो ने मुझे उत्सुक कर दिया था , दिल कर रहा था की अभी के अभी साइकिल उठाऊ और सीधा उधर पहुँच जाऊं , पर फिर सोचा शाम होने में भला देर ही कितनी बची है, ताई के घर से जब मैं बाहर निकल रहा था तो गली में उसी अजनबी से टकरा गया मैं.
मैं- देख कर चल भाई
वो- गुजरा हुआ कल देखा है , आने वाला कल भी देख रहा हूँ, और कितना देख कर चलू
मैं- क्या मतलब इस बात का .
वो- मतलब तो वो जाने जिसने हम सब के लेख लिखे है ,हम तो कठपुतली है उसकी जिसने ये तमाशा रचा है .
मैं- पागल है क्या तू
वो- काश, पागल होता , खैर अब तूने पूछ ही लिया है तो सुन, अगली पूर्णिमा को रुद्रपुर में निमन्त्रण है तेरा, सोलह साल बाद मेला लगेगा,
मैं- मेरा निमन्त्रण क्यों भला
वो- ये मुझसे क्यों पूछता है , ये तब सोचना था न जब कपाट खोल आया तू, अब जब धूना सिलगा ही दिया है तो सींचना भी तो पड़ेगा
उसकी बाते मेरे सर के ऊपर से गुजर रही थी,
मैं- चुतिया है क्या तू, क्या बकवास कर रहा है, किसके कपाट, कौन सा धुना, मैं अब क्या कर आया रुद्रपुर में .
उस अजनबी ने अपनी छोटी छोटी से आँखों से घुर मुझे और फिर सीधा मेरा कालर पकड़ लिया.
“इतना मासूम भी नहीं है तू ,जितना बनने का नाटक कर रहा है , तेरे सिवा और कौन होता जो बरसो से बंद पड़े मंदिर के दरवाजे खोल आता, अब ये मत पूछना कौन सा मंदिर ” उसने गुर्राते हुए कहा और मुझे धक्का देकर परे धकेल दिया.
“पूनम का इंतज़ार है सब को ” जाते जाते उसने मुड कर कहा
मैं अपना गला सँभालने लगा. घर गया तो देखा की चाचा आँगन में कुर्सी पर बैठा था , चाचा का चेहरा इतना पीला पड़ा हुआ था की देख कर लगे जाने कितने सालो से बीमार हो. मुझे देखते ही वो झटके से खड़ा हुआ और बोला- बेटे, तुम्हे घुमने जाना था न , अपनी तयारी कर लो.
चाचा ने जेब से नोटों की गड्डी निकाली और मेरे हाथ में रख दी.
“तुम घूम आओ , बाहर की दुनिया देखो वैसे भी इस बार मैं तुम्हारा दाखिला बड़े शहर में करवा रहा हूँ, बढ़िया पढाई बहुत जरुरी है भविष्य में काम आएगी, इधर गाँव में क्या रखा है . ” चाचा ने कहा.
मैं- क्या हुआ है चाचा, कोई बात है क्या
चाचा- क्या बात होगी , कुछ भी तो नहीं अपनी औलाद के बारे में हम नहीं सोचेंगे तो भला कौन सोचेगा. तू जा खेल कूद ऐश कर .
चाचा ने मेरे कंधे पर हाथ रखा और फिर अन्दर कमरे में चले गए. मेरा दिमाग पूरी तरह घूम गया था . ये क्या हो रहा था . मैंने नोटों की गड्डी को उधर कुर्सी पर ही रखा और घर से बाहर चल दिया. दोस्तों के साथ इधर उधर घुमा, बेर खाने गया पर मन बिचलित था, काबू में नहीं आ रहा था जैसे तैसे करके शाम हुई और मैं ताई के साथ जंगल पार वाली जमीन की तरफ चल दिया.
ये जंगल भी बड़ा अजीब था , दुनिया भर के पेड़, कुछ बिलकुल सूखे कुछ गहरे, कुछ फलो से लदे, चूँकि पास में नहर थी तो येहमेशा हरा भरा ही रहता था , कभी मिटटी का रस्ता सही मिलता तो कभी कांटो भरा, या लकडियो ने रास्ता रोका हुआ, मैं और ताई चले जा रहे थे की मेरी नजर आम के पेड़ पर पड़ी.मैंने साइकिल रोकी.
ताई- क्या हुआ
मैं -आम
ताई- रहने दे हाथ नहीं पहुंचेगा उधर
मैं- तू देख, अभी तोड़ता हूँ.
मैंने इधर उधर देखा पर पत्थर नहीं मिले मेरे को, न ही कोई ऐसी छड़ी जिसे हिला कर मैं आम तोड़ सकू,
ताई- छोड़ न ,
मैं- रुक जरा, अभी करता हु जुगाड़.
मैंने पेड़ पर चढने की कोशिश भी की पर बात बनी नहीं . उछल कर भी देखा फिर मैंने कुछ सोचा
मैं- ताई , मैं तुझे उठाता हूँ, ये इस तरफ वाली डाली पर तेरा हाथ पहुँच जायेगा.
ताई- न बाबा न, गिर वीर गयी तो कौन करेगा मेरा , हाथ पैर न टूट जाये.
मैं- क्यों घबराती है कुछ नहीं होगा.
मैंने ताई ओ पकड़ा और ऊपर की तरफ उठाना शुरू क्या मेरे हाथ ताई की चिकनी कमर से होते हुए ताई के कुल्हो पर रेंगने लगे थे, मैंने ताई के कुल्हे मजबूती से थामे और ताई को ऊपर उठा दिया.
जब मेरा ध्यान उस बात पर गया तो न जाने क्यों मुझे बड़ा अच्छा लगा. मैंने कुछ जोर से दबाया उन्हें.
ताई- हाथ नहीं पहुंचा थोड़ी कसर है .
मैं- रुक जरा
मैंने ताई को और ऊपर किया अब मेरे हाथ ताई की जांघो पर पहुँच गए थे, और ताई की चूत वाला हिस्सा मेरे मुह के सामने मेरे इतने पास की मेरे होंठ उस पर रगड़ खा जाते अगर ताई का लहंगा बीच में ना आ रहा होता तो . सर चकराने लगा मेरा. आँखों आगे अँधेरा सा आने लगा. ताई के बदन की खुसबू छाने लगी मुझ पर .
“क्या कर रहा है ठीक सा पकड़. गिराएगा क्या , बस तोड़ ही दिया मैंने ” ताई ने कहा और दो आम तोड़ लिए.
ताई- अब उतार भी दे.
मैंने हौले हौले ताई को निचे उतार दिया , जब उसकी चुचिया मेरे सीने पर रगड़ी तो मैंने अपने कच्छे में कुछ जोर मारती चीज़ को महसूस किया.
“क्या देख रहा है ऐसे ” ताई ने मुझे अपनी छाती ताड़ते हुए कहा
मैं- तुझे देख रहा हु,
मैंने बिलकुल भी झूठ नहीं बोला.
ताई- मेरे को तो रोज ही देखता है तू
मैं- आम दे मुझे.
हम वही बैठ कर आम खाने लगे. चीनी से भी मीठा आम . बिलकुल ताजा अभी अभी पेड़ से तोडा हुआ इस से बढ़िया भला क्या होता. मैंने देखा ताई का होंठ थोडा सा आम क रस से सना है
ताई- क्या देख रहा है.
मैं- रस लगा है
ताई किधर
मैं थोडा सा आगे हुआ और ताई के होंठो पर अपनी ऊँगली फेर दी.
उफ़ कितने मुलायम थे उसके होंठ, कितने नर्म होंगे जब मैं चुसुंगा इन्हें. सोचा मैंने
ताई- हो गया साफ
मैं- हा बस
मैंने एक बार और ऊँगली फेरी तो ताई ने हल्का सा मुह खोला और मेरी ऊँगली थोड़ी सी ताई के मुह में चली गयी, गर्म जीभ का स्पर्श मेरे तन बदन को हिला गया. न जाने क्यों मुझे लगा की ताई ने मेरी ऊँगली को चूमा हो . .........................
“चल अब, देर मत कर ” ताई ने कहा तो मेरी तन्द्रा टूटी
हम फिर चल पड़े. करीब आधे घंटे में हम लोग उस जगह पर पहुँच गए जहाँ जंगल खत्म होता था और हमारी जमीन शुरू होती थी . दूर कहीं सूरज लाल हुआ पड़ा था , ढलने को बेताब. मैंने दूर दूर तक नजर डाली एक तरफ घना जंगल था जिसे पार करके हम आये थे दूसरी तरफ सूखी जमीन दूर दूर तक
मैं- क्या है ये ताई.
ताई- ये ही है वो जमीन
ताई- झटका लगा न, इस बंजर को देख कर . यहाँ से रुद्रपुर तक तेरी ही जमीन है .
रुद्रपुर यहाँ सेकोई दो ढाई कोस दूर था . इस हिसाब से तो काफी क्या बहुत ज्यादा जमीन थी ये .
मैं- ये तो बहुत बड़ा इलाका हुआ
ताई- ये मत पूछ की ये कितना इलाका है ये देख की ये जमीन बंजर क्यों है .
ताई ने मेरा हाथ पकड़ा और अपने साथ ले चली.
देख- यहाँ से रुदपुर तक पुरे ११ कुवे है , और एक बावड़ी. ताई ने कहा
ताई मुझे एक कुवे पर ले आई और बोली निचे देख. मैंने झाँक कर देखा कुवा पानी से लबालब भर था पानी इतना था की बस बाल्टी डालो और पानी खींच लो.
मैं- जब पानी है तो फिर जमीन प्यासी क्यों.
ताई ने पास पड़ी एक पुराणी सी बाल्टी की तरफ इशारा करते हुए कहा तू खुद ही देख ले
मैंने बाल्टी कुवे में डाली और खींचा , बाल्टी मैंने जमीन पर खाली की .पर जमीन जरा भी गीली नहीं हुई. अब मैं हुआ हैरान
ताई- हैरानी हुई न, दुनिया कहती है की ये प्यासी जमीन है जिसकी प्यास न कोई कुवा बुझा सकता है न कोई बारिश, बारिस के मौसम में जब आस पास की सारी धरती नया जीवन प्राप्त करती है ये धरा ऐसी की ऐसी ही रहती है .
मैं- क्यों भला
ताई- आ मेरे साथ तुझे कुछ और दिखाती हु,
मैं ताई के पीछे पीछे हो लिया. ताई की मटकती गांड एक बार फिर मेरी परीक्षा लेने लगी.