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Adultery गुजारिश 2 (Completed)

Tiger 786

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#8

मैं नहीं जानता वो कैसी घडी थी जब ताई मेरे गले लगी, पर उस घडी ने आने वाले कल को बदलने की शुरुआत शायद कर दी थी, ताई की भरी हुई छातिया मेरे सीने में जैसे धंस ही जा रही थी . ताई की गर्म साँस मैंने अपने सीने में उतरते महसूस की. वो कमजोर लम्हा था भावुकता में मैंने भी ताई की पीठ को सहलाना शुरू कर दिया. ताई के पसीने की गंध में अजब कशिश थी . कुछ देर हम दोनों एक दुसरे से लिपटे रहे . मेरे हाथो ने हलके से ताई की कमर को छुआ और वो अलग हो गयी .



एक तो पैसे का इंतजाम नहीं हुआ दूसरा ताई को चुदते देख लिया जब वो मेरे गले लगी थी तो मेरे मन में हलचल मच गयी थी. रात को मुझे मालूम हुआ की गाँव में किसी के घर वीसीआर लाये थे. तो मैं भी अपने दोस्त के साथ वीसीआर पर फिल्म देखने चला गया. तबियत से मै फिल्म देख रहा था की तभी बिजली चली गयी . सब लोगो का मजा किरकिरा हो गया. कुछ लोगो ने इंतजार किया पर बिजली नहीं आई तो लोग उठ कर अपने अपने घर जाने लगे.

मेरा मन घर जाने का नहीं था तो मैं पैदल ही खेतो की तरफ चल पड़ा. चारो तरफ गहरा अँधेरा छाया हुआ था , कच्चा रास्ता शुरू होते ही अँधेरा और घना लगने लगा. गीत गुनगुनाते हुए मैं अपने रस्ते चला जा रहा था की मेरी नजर धू धू कर जलती लपटों पर पड़ी, हाँ मैंने ठीक कहा वो लपटे ही थी गर्मी के इस मौसम में आग लगना अपने आप में अनोखा सा था क्योंकि इस मौसम में खेत खाली पड़े थे.

बेशक मुझे अपने खेत में जाना था पर मैं उन लपटों की तरफ बढ़ गया. जल्दी ही मैं उस आग के पास था , कुल जमा चार लकडियो को जोड़ कर वो आग जलाई गयी थी , किसी छोटे अलाव के जैसे पर उसकी लपटे ऐसी जैसे की न जाने कितने ही पेड़ जल रहे हो, हैरत की बात थी . आंच की तपत इतनी तेज जैसे पल भर में मुझे पिघला ही दे, और जबकि मैं आंच से निश्चित दुरी पर खड़ा था .

लपटे हवा से थोड़ी इधर उधर हुई तो मेरी नजर अलाव के दूसरी तरफ पड़ी. और वो , हाँ वो ही इस दीन दुनिया से बेखबर , चेहरे पर जहाँ भर का सकून लिए आँखे मूंदे बैठी थी, आखिर कोई इतना शांत कैसे हो सकता था मैंने अपने आप से सवाल किया. कायदे से मेरा सवाल ये होना चाहिए था की ये लड़की जो मुझे बियाबानो में मिलती है ये कौन है , कहाँ की है और ऐसे भटकने का क्या मकसद है इसका.

पर उसे देखते ही , बस उसे देखते रहने को ही दिल करता था मेरा. बेशक ये दूसरी मुलाकात थी , मैं भी वहीँ रेत पर बैठ गया.

“यूँ इन स्याह रातो में भटकना नहीं चाहिए , ” उसने बिना आँखे खोले ही कहा मुझसे

“तुम भी तो भटक ही रही हो, ” मैंने कहा

उसने हौले से आँखे खोली और लगभग मुझे घूरते हुए बोली- मेरे पास मेरा प्रयोजन है और दूसरी बात ये की तहजीब ये कहती है हमें अपने काम से काम रखना चाहिए दुसरो , खासकर अजनबियों के मामले में नहीं पड़ना चाहिए, न उन्हें परेशां करना चाहिए .

मैं- ये हमारी दूसरी मुलाकात है , हम अजनबी कहाँ रहे

मेरी बात सुनकर उसके होंठो पर मुस्कान आई जिसे उसने छिपाने की जरा भी कोशिश नहीं की.

वो- हम एक दुसरे को जानते भी तो नहीं न ,

मैं- उसमे कौन सी बड़ी बात है , मेरा नाम मैंने बताया न तुम्हे, अब तुम बता दो अपना नाम , ऐसे ही जान पहचान हो जाएगी.

वो- नाम में क्या रखा है , नाम का क्या वजूद , वक्त की धार में न जाने किस किस को भुला दिया गया , हमारा नाम हो न हो क्या फर्क पड़े.

मैं- तो चलो तुम्हे गुमनाम ही समझ लेता हु. वैसे तुम्हारा क्या प्रयोजन है , क्या मैं तुम्हारी कोई मदद कर सकता हूँ , गाँव में सब जानते है मुझे .

वो- फर्क इस बात से नहीं पड़ता की तुम्हे कौन जानता है , महत्वपूर्ण ये है की तुम किसको जानते हो .

उसकी बात मुझे समझ नहीं आई , पर सुनकर अच्छा लगा.

“मैं खगोल शास्त्र की विद्यार्थी हूँ, ” उसने धीरे से कहा .

भंचो, ये कौन सा शाश्त्र था , मैंने तो सुना ही पहली बार था.

“ये क्या होता है ” मैंने पूछा

वो- मैं तारो की पढाई करती हूँ,हथेली की रेखाओ को तारो से मिला कर तक़दीर देखती हूँ

मैं- अरे बढ़िया, बताओ न मेरी तक़दीर में क्या लिखा है

मैंने हथेली उसकी तरफ बढाई. वो मेरे पास आई और मेरे हाथ को अपने हाथ में थामा, ऐसे लगा की जैसे बर्फ ने छू लिया हो मुझे, पास आंच जल रही थी पर मैं कंपकंपा गया. उसने एक पल मेरी हथेली थामी और फिर छोड़ दी.

“तेरे पास दौलत है बहुत, ” उसने कहा

मैं- तेरी पहली ही बात गलत साबित हो गयी . क्या तक़दीर देखेगी तू.

मैंने हँसते हुए कहा.

वो- मुझे जो दिखा मैंने बताया तू मान या ना मान तेरी मर्जी

मैं- और क्या देखा

वो- तमाम जहाँ का दुःख

उसने बस इतना कहा और उठ खड़ी हुई.

“जाने का समय हुआ मेरा ” उसने कहा

मैं- फिर कब मिलोगी

वो- मुसाफिरों के पते ठिकाने नहीं होते, तक़दीर में मुलाकात होगी तो मिल लेंगे वर्ना अपने अपने रस्ते तो हैं ही

इतना कह कर वो चल पड़ी मैं बस उसे देखता रहा . जो आंच जल रही थी वो न जाने कब बुझ गयी पता ही न चला.

सुबह जब मैं गाँव में गया तो चौपाल पर बहुत जायदा भीड़ इकठ्ठा हुई थी . अमूमन सुबह सुबह इतने लोग कम ही देखने को मिलते थे.

“क्या हुआ भाई, इतनी भीड़ क्यों है ” मैंने एक गाँव वाले से पूछा.






“वो कल, कल रात ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,” उसने अपनी बात अधूरी छोड़ दी.
Awesome behtreen update
 

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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#9

अधूरी बात छोड़ गाँव वाले ने पीछे नीम के पेड़ की तरफ इशारा किया और मेरी आँखों ने जो देखा,एक पल के लिए कलेजा जैसे शरीर से बाहर ही आ गया मेरा. पेड़ पर एक लाश , हाँ अब उसे लाश कहना ही ठीक होगा टंगी थी, आधी सही सलामत आधी जली हुई,

मैं- ये तो . ये तो.

“ये चरनसिंह है, लालाजी का मुनीम ” गाँव वाले ने मेरी बात पूरी की. पर मेरी दिलचश्पी उसकी बात में नहीं थी , मेरी उत्सुकता जिस बात ने बढाई थी वो थी चरण सिंह के शरीर का आधा जलना,

“कैसे मारा होगा कातिल ने इसे ” मैं बुदबुदाया.

आस पास सारा गाँव जमा था पर किसी की हिम्मत नहीं हो रही थी की लाश को पेड़ से उतार दे. वैसे भी इस देश की जनता तमाशबीन के सिवा और कुछ भी तो नहीं . ऐसी बाते मैंने उपन्यासों में ही पढ़ी थी , कभी देखा -सुना नहीं था असली जीवन में पर आज की बात कुछ और थी. पेड़ या उसके आस पास ऐसे कुछ भी नहीं था , मतलब की कातिल ने उसे कही और मारा था और यहाँ लाकर टांग दिया था.

मैंने देखा एक कोने में लाला बैठा था अकेला. , आज उसने अपना सुनहरा चश्मा नहीं पहना था, चेहरे पर शिकन थी . कुछ देर बाद पुलिस आई , लाश को उतार कर गाड़ी में रखा गया, लालाजी और कुछ गाँव वालो से पूछताछ की और चली गयी. मैं भी अपने घर को चल दिया. रस्ते में मुझे रीना मिली.

“कहाँ है तू आजकल,तुझे मालूम है क्या हुआ गाँव में ” उसने कहा.

मैं- गाँव की छोड़, अपनी बात कर

वो- अपनी क्या बात करू, दो दिन हो गए तू मिला ही नहीं .

मैं- कहीं तुझे आदत न हो जाये मेरी इसलिए नहीं मिला.

रीना- ये ख्याल आते आते कुछ देर नहीं हो गयी.

हम दोनों मुस्कुरा पड़े.

रीना-मैंने सोचा है मैं भी उदयपुर नहीं जा रही

मैं-क्यों भला

वो- तू , जो नहीं होगा साथ .

मैं- जिन्दगी में न जाने ऐसे कितने दिन आयेंगे जब मैं साथ नहीं रहूँगा ,

रीना- तब की तब देखूंगी.

मैं- तुझसे बातो में कोई नहीं जीत सकता , आज मेरा न जाना मेरी किस्मत है , आज मैं पैसे से परेशां हूँ, पैसे के पीछे भाग रहा हूँ पर रीना तू देखना एक दिन आएगा जब मैं झुका दूंगा इस जहाँ को

रीना- उसके लिए मेहनत जरुरी है , तभी तो कहती हूँ, पढाई पर हद से ज्यादा ध्यान दे, अगली बार कालेज शुरू हो जायेगा. कोई नौकरी मिल गई तो फिर सुख ही सुख होगा.

मैं- तूने मेरी बदनसीबी देखि है , मेरा वादा है , मेरी बदली किस्मत भी देखेगी तू.

रीना- तू भी न , मैं ये कह रही थी की तेरे लिए रेडियो मंगवा दिया है अभी अभी तेरे चोबारे में रख के ही आई हूँ.

मैं- सच में, झूठ तो नहीं बोल रही तू

वो- जाकर देख लेना . चल मिलती हूँ बाद में थोडा काम है मुझे.

मैं- आजकल कुछ ज्यादा ही काम रहने लगा है तुझे.

वो- ये सही है , मशरूफ तुम रहते हो. कितनी सुबह बीत जाती है आजकल मैं मंदिर पर तेरा इंतज़ार करती रह जाती हूँ, और सितम देखिये दोष भी हमारा.

मैं- दोष तो समय का है , चल आज दोपहर कुवे पर चलते है

वो- देखती हूँ , कोई काम न निकला तू चलेंगे पर अभी चलती हूँ .



रीना के जाने के बाद मैं भी अपने चोबारे में चढ़ गया और उसका लाया तोहफा देखा, फिलिप्स का रेडियो जिसमे एफएम भी था, काश मैं बता सकता की कितनी ख़ुशी हुई थी मुझे उसे देख कर. मैं लगभग दौड़ ही पड़ा था रेडियो के सेल लाने को पर तभी मेरे कदम रुक गए, मेरी नजर उस बक्से पर पड़ी,

“इसे किसने बाहर निकाला ” मैंने अपने आप से पूछा क्योंकि मैंने इसे छिपा कर रखा था पर अभी ये मेरी टेबल पर पड़ा था . कहीं चाची को तो इसके बारे में मालूम नहीं पड़ गया . मैंने फिर खुद से सवाल किया.

कांपते हाथो से मैंने बक्से को फिर खोला. हमेशा के जैसे उसमे कुछ नहीं था सिवाय उस धागे के जिसका रंग थोडा सा बदला बदला लग रहा था . मैंने एक बार फिर उसे हाथ में लिया और एक बार फिर उसने मेरी उंगलियों को झुलसना शुरू कर दिया.

“क्या बवाल है इस धागे का ” मैंने कहा.

मन में एक साथ बहुत से सवाल थे , जिसका जवाब या तो सुनार दे सकता था या फिर जब्बर क्योंकि बक्से की असलियत वो दोनों ही जानते थे, और दोनों ही मेरी पहुँच से दूर थे. मैं अपने ख्यालो में गुम था की मेरे कानो में कुछ आवाजे आने लगी , मैंने निचे आँगन में झाँक कर देखा तो चाचा किसी अजनबी के साथ बैठे थे. मैंने बक्से को छुपा कर रखा और फिर निचे चला गया .

सीढिया उतरते हुए उन दोनों की नजर मुझ पर पड़ी.

“मनीष, खेतो पर चले जाओ, नहर आई हुई है , पम्प लगा कर खेतो में पानी छोड़ देना. ” चाचा ने मुझसे कहा

मै ये सुनकर हैरान हो गया, गर्मी के इस मौसम में जब खेत खाली पड़े थे तो सिंचाई की भला क्या जरुरत भला.

“पर चाचा,” इस से पहले की मैं कुछ कह पाता चाचा ने मेरी बात काटी और बोले- मैंने कहा न अभी के अभी खेतो पर चले जाओ .

न जाने मुझे ये क्यों लगा की वो थोड़े झुंझलाए हुए थे. मैंने साइकिल उठाई और खेतो की तरफ चल दिया , वो अजनबी लगातार मुझे ही घूरे जा रहा था .

बेशक चाचा ने मुझे खेत पर जाने को कहा था पर इस गर्म दोपहर में खेतो पर जाना खुदखुशी करने जैसा था, बिनाकाम भला कौन तपेगा , इस धुप में तो मैं ताई के घर चला गया. दरवाजे को को खोला और मैं सीधा अन्दर चला गया. और जब मैं अन्दर ताई के कमरे में गया तो .....................................

मैंने देखा ताई पूरी नंगी अपने बदन को तौलिये से पोंछ रही थी , मेरे तो होश ही उड़ गए. ताई की पीठ, सुडोल नितम्ब , बदन को पोंछते हुए वो एक पल को थोडा सा आगे को झुकी और मेरी नजर कुलहो से थोड़ी निचे होते हुए उस जगह पर पहुँच गयी जिसे गहरे काले बालो ने ढक रखा था . मेरे कानो के पास गर्मी थोड़ी बढ़ सी गयी थी, बदन का सारा खून एक जगह इकठ्ठा हो गया हो ऐसा लगने लगा था मुझे.

इस से पहले मैं पकड़ा जाता मैं बाहर आ गया और आवाज लगाई- ताई, है क्या घर पर.

“हाँ, अभी आई दो मिनट रुक जरा.” उसने अन्दर से ही कहा.

कुछ देर बाद वो बाहर आई मेरी नजर ताई के ब्लाउज पर पड़ी जो उसकी छातियो से चिपका हुआ था , ताई ने ब्रा नहीं पहनी थी , गीले बदन ने ब्लाउज को अपने आप से चिपका लिया था, ताई ने भी समझ लिया था की मैं उसकी चुचियो को घुर रहा हु पर उसने कुछ नहीं कहा.



ताई- तुझे मालूम है आज गाँव में काण्ड हो गया .

मैं- हाँ देखा मैंने ,

ताई- देखने की नहीं सोचने की बात है , मेरा कलेजा तो अभी तक कांप रहा है .

मैं- पर चरण सिंह को भला कोई क्यों मारेगा

ताई - तुझे नहीं मालूम, चरण सिंह कोई भोला इन्सान नहीं था , सुनार का खास गुर्गा था वो .

मैं- हर कोई किसी न किसी के लिए काम तो करता ही है, और फिर सुनार तो सबकी मदद करता है .

ताई- मदद करता है , उसे मदद नहीं कहते

मैं- जानता हूँ, पैसे ब्याज पर देकर वो लोगो की जमीने हड़प लेता है .

ताई- नीच है वो एक नंबर का जितनी गाली तो उसे उतनी ही कम, काश कोई उसे भी मार दे .

मैं- उसकी आयेगी तो वो भी जायेगा. मैं तुझसे कुछ और बात करने आया हूँ

ताई- हाँ बता.

मैं- चाचा किसी को हमारी जंगल पार वाली जमीन बेचने की बात कर रहा था ,

ताई- क्या कहा तूने, जंगल पार वाली जमीन , उसे भला कोई क्यों खरीदेगा.

मैं- क्यों क्या हुआ.

ताई- तुझे नहीं मालूम क्या, कितने दिन हुए तुझे उधर गए हुए.

मैं- याद नहीं, बचपन में कभी गया होऊंगा उधर.

ताई- ठीक है शाम को चलेंगे उधर, मैं भी खाली ही हूँ, तेरा ताई तो दो दिन घर आने वाला नहीं, वैसे तूने पक्का जंगल पार वाली जमीन ही सुना था न .

मैं- हाँ , पर ऐसा क्या है उस जमीन में

ताई- तू खुद देख लेना शाम को . ...........
 

tanesh

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अधूरी बात छोड़ गाँव वाले ने पीछे नीम के पेड़ की तरफ इशारा किया और मेरी आँखों ने जो देखा,एक पल के लिए कलेजा जैसे शरीर से बाहर ही आ गया मेरा. पेड़ पर एक लाश , हाँ अब उसे लाश कहना ही ठीक होगा टंगी थी, आधी सही सलामत आधी जली हुई,

मैं- ये तो . ये तो.

“ये चरनसिंह है, लालाजी का मुनीम ” गाँव वाले ने मेरी बात पूरी की. पर मेरी दिलचश्पी उसकी बात में नहीं थी , मेरी उत्सुकता जिस बात ने बढाई थी वो थी चरण सिंह के शरीर का आधा जलना,

“कैसे मारा होगा कातिल ने इसे ” मैं बुदबुदाया.

आस पास सारा गाँव जमा था पर किसी की हिम्मत नहीं हो रही थी की लाश को पेड़ से उतार दे. वैसे भी इस देश की जनता तमाशबीन के सिवा और कुछ भी तो नहीं . ऐसी बाते मैंने उपन्यासों में ही पढ़ी थी , कभी देखा -सुना नहीं था असली जीवन में पर आज की बात कुछ और थी. पेड़ या उसके आस पास ऐसे कुछ भी नहीं था , मतलब की कातिल ने उसे कही और मारा था और यहाँ लाकर टांग दिया था.

मैंने देखा एक कोने में लाला बैठा था अकेला. , आज उसने अपना सुनहरा चश्मा नहीं पहना था, चेहरे पर शिकन थी . कुछ देर बाद पुलिस आई , लाश को उतार कर गाड़ी में रखा गया, लालाजी और कुछ गाँव वालो से पूछताछ की और चली गयी. मैं भी अपने घर को चल दिया. रस्ते में मुझे रीना मिली.

“कहाँ है तू आजकल,तुझे मालूम है क्या हुआ गाँव में ” उसने कहा.

मैं- गाँव की छोड़, अपनी बात कर

वो- अपनी क्या बात करू, दो दिन हो गए तू मिला ही नहीं .

मैं- कहीं तुझे आदत न हो जाये मेरी इसलिए नहीं मिला.

रीना- ये ख्याल आते आते कुछ देर नहीं हो गयी.

हम दोनों मुस्कुरा पड़े.

रीना-मैंने सोचा है मैं भी उदयपुर नहीं जा रही

मैं-क्यों भला

वो- तू , जो नहीं होगा साथ .

मैं- जिन्दगी में न जाने ऐसे कितने दिन आयेंगे जब मैं साथ नहीं रहूँगा ,

रीना- तब की तब देखूंगी.

मैं- तुझसे बातो में कोई नहीं जीत सकता , आज मेरा न जाना मेरी किस्मत है , आज मैं पैसे से परेशां हूँ, पैसे के पीछे भाग रहा हूँ पर रीना तू देखना एक दिन आएगा जब मैं झुका दूंगा इस जहाँ को

रीना- उसके लिए मेहनत जरुरी है , तभी तो कहती हूँ, पढाई पर हद से ज्यादा ध्यान दे, अगली बार कालेज शुरू हो जायेगा. कोई नौकरी मिल गई तो फिर सुख ही सुख होगा.

मैं- तूने मेरी बदनसीबी देखि है , मेरा वादा है , मेरी बदली किस्मत भी देखेगी तू.

रीना- तू भी न , मैं ये कह रही थी की तेरे लिए रेडियो मंगवा दिया है अभी अभी तेरे चोबारे में रख के ही आई हूँ.

मैं- सच में, झूठ तो नहीं बोल रही तू

वो- जाकर देख लेना . चल मिलती हूँ बाद में थोडा काम है मुझे.

मैं- आजकल कुछ ज्यादा ही काम रहने लगा है तुझे.

वो- ये सही है , मशरूफ तुम रहते हो. कितनी सुबह बीत जाती है आजकल मैं मंदिर पर तेरा इंतज़ार करती रह जाती हूँ, और सितम देखिये दोष भी हमारा.

मैं- दोष तो समय का है , चल आज दोपहर कुवे पर चलते है

वो- देखती हूँ , कोई काम न निकला तू चलेंगे पर अभी चलती हूँ .



रीना के जाने के बाद मैं भी अपने चोबारे में चढ़ गया और उसका लाया तोहफा देखा, फिलिप्स का रेडियो जिसमे एफएम भी था, काश मैं बता सकता की कितनी ख़ुशी हुई थी मुझे उसे देख कर. मैं लगभग दौड़ ही पड़ा था रेडियो के सेल लाने को पर तभी मेरे कदम रुक गए, मेरी नजर उस बक्से पर पड़ी,

“इसे किसने बाहर निकाला ” मैंने अपने आप से पूछा क्योंकि मैंने इसे छिपा कर रखा था पर अभी ये मेरी टेबल पर पड़ा था . कहीं चाची को तो इसके बारे में मालूम नहीं पड़ गया . मैंने फिर खुद से सवाल किया.

कांपते हाथो से मैंने बक्से को फिर खोला. हमेशा के जैसे उसमे कुछ नहीं था सिवाय उस धागे के जिसका रंग थोडा सा बदला बदला लग रहा था . मैंने एक बार फिर उसे हाथ में लिया और एक बार फिर उसने मेरी उंगलियों को झुलसना शुरू कर दिया.

“क्या बवाल है इस धागे का ” मैंने कहा.

मन में एक साथ बहुत से सवाल थे , जिसका जवाब या तो सुनार दे सकता था या फिर जब्बर क्योंकि बक्से की असलियत वो दोनों ही जानते थे, और दोनों ही मेरी पहुँच से दूर थे. मैं अपने ख्यालो में गुम था की मेरे कानो में कुछ आवाजे आने लगी , मैंने निचे आँगन में झाँक कर देखा तो चाचा किसी अजनबी के साथ बैठे थे. मैंने बक्से को छुपा कर रखा और फिर निचे चला गया .

सीढिया उतरते हुए उन दोनों की नजर मुझ पर पड़ी.

“मनीष, खेतो पर चले जाओ, नहर आई हुई है , पम्प लगा कर खेतो में पानी छोड़ देना. ” चाचा ने मुझसे कहा

मै ये सुनकर हैरान हो गया, गर्मी के इस मौसम में जब खेत खाली पड़े थे तो सिंचाई की भला क्या जरुरत भला.

“पर चाचा,” इस से पहले की मैं कुछ कह पाता चाचा ने मेरी बात काटी और बोले- मैंने कहा न अभी के अभी खेतो पर चले जाओ .

न जाने मुझे ये क्यों लगा की वो थोड़े झुंझलाए हुए थे. मैंने साइकिल उठाई और खेतो की तरफ चल दिया , वो अजनबी लगातार मुझे ही घूरे जा रहा था .

बेशक चाचा ने मुझे खेत पर जाने को कहा था पर इस गर्म दोपहर में खेतो पर जाना खुदखुशी करने जैसा था, बिनाकाम भला कौन तपेगा , इस धुप में तो मैं ताई के घर चला गया. दरवाजे को को खोला और मैं सीधा अन्दर चला गया. और जब मैं अन्दर ताई के कमरे में गया तो .....................................

मैंने देखा ताई पूरी नंगी अपने बदन को तौलिये से पोंछ रही थी , मेरे तो होश ही उड़ गए. ताई की पीठ, सुडोल नितम्ब , बदन को पोंछते हुए वो एक पल को थोडा सा आगे को झुकी और मेरी नजर कुलहो से थोड़ी निचे होते हुए उस जगह पर पहुँच गयी जिसे गहरे काले बालो ने ढक रखा था . मेरे कानो के पास गर्मी थोड़ी बढ़ सी गयी थी, बदन का सारा खून एक जगह इकठ्ठा हो गया हो ऐसा लगने लगा था मुझे.

इस से पहले मैं पकड़ा जाता मैं बाहर आ गया और आवाज लगाई- ताई, है क्या घर पर.

“हाँ, अभी आई दो मिनट रुक जरा.” उसने अन्दर से ही कहा.

कुछ देर बाद वो बाहर आई मेरी नजर ताई के ब्लाउज पर पड़ी जो उसकी छातियो से चिपका हुआ था , ताई ने ब्रा नहीं पहनी थी , गीले बदन ने ब्लाउज को अपने आप से चिपका लिया था, ताई ने भी समझ लिया था की मैं उसकी चुचियो को घुर रहा हु पर उसने कुछ नहीं कहा.



ताई- तुझे मालूम है आज गाँव में काण्ड हो गया .

मैं- हाँ देखा मैंने ,

ताई- देखने की नहीं सोचने की बात है , मेरा कलेजा तो अभी तक कांप रहा है .

मैं- पर चरण सिंह को भला कोई क्यों मारेगा

ताई - तुझे नहीं मालूम, चरण सिंह कोई भोला इन्सान नहीं था , सुनार का खास गुर्गा था वो .

मैं- हर कोई किसी न किसी के लिए काम तो करता ही है, और फिर सुनार तो सबकी मदद करता है .

ताई- मदद करता है , उसे मदद नहीं कहते

मैं- जानता हूँ, पैसे ब्याज पर देकर वो लोगो की जमीने हड़प लेता है .

ताई- नीच है वो एक नंबर का जितनी गाली तो उसे उतनी ही कम, काश कोई उसे भी मार दे .

मैं- उसकी आयेगी तो वो भी जायेगा. मैं तुझसे कुछ और बात करने आया हूँ

ताई- हाँ बता.

मैं- चाचा किसी को हमारी जंगल पार वाली जमीन बेचने की बात कर रहा था ,

ताई- क्या कहा तूने, जंगल पार वाली जमीन , उसे भला कोई क्यों खरीदेगा.

मैं- क्यों क्या हुआ.

ताई- तुझे नहीं मालूम क्या, कितने दिन हुए तुझे उधर गए हुए.

मैं- याद नहीं, बचपन में कभी गया होऊंगा उधर.

ताई- ठीक है शाम को चलेंगे उधर, मैं भी खाली ही हूँ, तेरा ताई तो दो दिन घर आने वाला नहीं, वैसे तूने पक्का जंगल पार वाली जमीन ही सुना था न .

मैं- हाँ , पर ऐसा क्या है उस जमीन में


ताई- तू खुद देख लेना शाम को . ...........
शानदार update bhai , suspense or thrill badte ja rhe h , waiting for next part
 
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