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Adultery गुजारिश 2 (Completed)

Tiger 786

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#7

और जब मैंने दरवाजे को धक्का दिया तो मेरी आँखे फटी की फटी रह गयी. कमरे में चारपाई पर ताई और ठेकेदार एक दुसरे पर चढ़े हुए थे, अचानक से उनका मजा टूट गया. ताई की नजर मुझ पर पड़ी तो जैसे वो सुन्न हो गयी.

“तू, तू यहाँ कैसे ” अपना लहंगा ठीक करते हुए ताई ने कहा.

मेरा दिमाग जैसे जाम हो गया था पर मैंने ताई से एक शब्द भी नहीं कहा. मैं चुपचाप कमरे से बाहर आया और सीधा जंगल की तरफ चल पड़ा. उसी जगह जहाँ पर मेरी तन्हाई और मैं होते थे.

ताई बहन की लौड़ी, ठेकेदार से चुदवा रही थी. मेरे कानो में ताऊ की कही एक एक बात आ रही थी , जो गालिया वो उसे दारू पीकर बकता था एक एक गाली सच लग रही थी . और न जाने ये सब कबसे चल रहा होगा. बेशक वो मेरी सगी ताई नहीं थी पर फिर भी मुझे बुरा लग रहा था और अगर वो सगी ताई होती तो भी मैं क्या ही कर लेता.



दिल में अजीब सी बेचैनी थी , इस से पहले की मैं और कुछ करता मेरे कानो में वो ही इकतारे की आवाज आई, ठीक ये आवाज ही उस रात मैंने सुनी थी . ऐसा लग रहा था की आवाज बिलकुल मेरे पास से ही आ रही थी पर कहाँ से ये मालूम नहीं हो रहा था . मई की गर्मी में चलती गर्म लू अचानक से ठंडी बयार सी बहने लगी थी .

“कौन चुतिया, भरी दोपहर में संगीतकार बना हुआ है ” मैंने अपने आप से कहा .

कुछ दूर मैं इधर उधर भटका, भेड़ चराने वालो से पूछा पर उन्होंने मना किया. इकतारे की आवाज ने जैसे मुझसे डोर बाँध दी थी मैं बस दौड़ जाना था उस तरफ. भटकते भटकते मैं जंगल में न जाने कितनी दूर पहुँच गया था . और फिर मेरे पैर थम गए. आँखों जो जैसे करार सा आ गया. दिल को अजीब सी ख़ुशी हुई

“तुम्हे देखे मेरी आँखे इसमें क्या मेरी खता है ” मेरे होंठ बस इतना ही कह पाए.

सामने पीपल के निचे बने चबूतरे पर बैठी वो लड़की आँखे मूंदे इकतारा बजा रही थी . केसरिया कपड़ो में सूरज सा दमकता वो सांवला चेहरा जिस पर नजर ठहरे तो फिर नजर कुछ और न देखे. उसकी कलाई पर सफ़ेद कलवा जैसा कुछ बंधा था . इस दुनिया से बेखबर अपनी धुन में मगन वो लड़की जिस शांति , जिस शिद्दत से उस इकतारे की धुन में खोयी थी . उसे देखना जैसे सर्दियों की धुप.

दबे पाँव मैं बस उसके सामने निचे धरती पर जाकर बैठ गया. अजीब सा सम्मोहन , मैं क्या ही कहूँ उन लम्हों के बारे में , उस तपती दुपहरी में जैसे ठंडा शरबत मिल जाना कुछ ऐसा हाल था मेरा. दस-पन्द्रह मिनट, आधा घंटा , न जाने कितना समय बीता वो इकतारा बजाती रही और मैं एकटक बस उसे ही देखता रहा . फिर उसने अपनी तान रोकी और आँखे खोली, पहली बार हमारी नजरे मिली, उसने मुझे, मैंने उसे देखा. वो बड़ी बड़ी कजरारी आँखे बस एक पल ही मिली . वो झटके से उठ खड़ी हुई. उसके चेहरे पर घबराहट सी आई.

मैं- माफ़, कीजिये आप को परेशां नहीं करना चाहता था पर इकतारे को सुनने से खुद को रोक नहीं पाया. मैं चलता हूँ,

“”नहीं कोई बात नहीं “ उसने हौले से कहा

मैं हलके से मुस्कुराया और शायद वो भी .हम दोनों एक दुसरे को बस देख रहे थे न वो कुछ कह पा रही थी ना मैं.

“मेरा नाम मनीष है ” मैंने कहा

“मुझे जाना होगा , ” उसने बस इतना कहा और मेरे पास से सरसराते हुए आगे को बढ़ गयी . पीछे मुड कर उसने एक बार भी नहीं देखा. मैं बस उसे जाते देखता रहा .

“सुनो, क्या हम फिर मिलेंगे.” पता नहीं क्यों मैं अचानक से चिल्ला पड़ा

पर शायद उसने नहीं सुना. मैं भी अब वहां क्या करता. पर मेरे पास जाने को जहाँ भी कहाँ था.

घर आया तो चाची मेरी ही राह देख रही थी .

“सुन ये चावल का कट्टा ताई को दे आ. और उस से कहना की पैसे नहीं पहुंचाए उसने , दे तो ले अइयो ” चाची ने कहा.

मैं- तुम खुद ही दे आओ न

मैं दरअसल ताई का सामना नहीं करना चाहता था.

चाची- देख रही हूँ, आजकल कुछ ज्यादा उड़ रहा है तू, काम चोर हो गया है , ऐसे नहीं चलेगा.

मैं- ऐसे चलाना भी नहीं चाहता मैं. मैं बस इंतजार कर रहा हूँ

चाची की त्योरिया चढ़ आई.

“किस चीज का इंतजार कर रहा है तू, मुझसे जबान तो लड़ाने लगा है अब क्या हाथ सामने करेगा मेरे ” चाची ने ताना मारा.

मैं- बस मेरी पढाई पूरी हो जाये, फिर मैं ये घर छोड़ दूंगा. हमेशा के लिए. हमेशा हमेशा के लिए.

जैसे ही मैने ये बात कही चाची के हाथ से परात छूट गयी . अविश्वास से उसका मुह खुला रह गया

“माना की इस घर में मेरी कोई जरुरत, कोई हसियत नहीं है , और न मैंने कभी कोई हसरत की सिवाय की तुम्हारी झोली से थोड़ी ममता मेरे भाग में भी आएगी. पर लगता है की मुझ बदनसीब का क्या भाग. पर एक दिन आयेगा जब मेरा भाग भी बदलेगा. मैं छोड़ जाऊंगा इस घर को ” मैंने कहा और कट्टा सर पर उठा लिया और ताई के घर की तरफ चल दिया.

दरवाजा खुला था , मैं सीधा अन्दर चले गया. ताई आँगन में ही बैठी थी. मुझे देख कर वो असहज हो गयी .

“चाची ने चावल भेजे है ” मैंने कहा और वापिस जाने को हुआ की ताई ने मुझे रोका.

“रुक जरा, मेरे पास आ. ”ताई ने कहा .

मैं उसके पास गया .

ताई-मुझे कुछ कहना है तुझसे.

मैं- कोई जरुरत नहीं , पर ये जो तू कर रही है न गलत है , जिस दिन ताऊ को मालूम होगा तुझे मार ही देगा वो और गाँव में तेरी क्या हसियत रहेगी.

ताई चुप रही .

मैं- मुझे नहीं पता तेरी मज़बूरी रही या फिर जो भी था, पर गलत था . मैं चाहता तो उसी समय ठेकेदार से उलझ सकता था पर हम दुनिया को क्या कहे जब अपने लोगो में ही कमी. मुझे देख ताई, तू लाख परेशां होगी पर मुझसे ज्यादा तो नहीं . मुझसे जायदा दुनिया देखि है तूने मैं इतना कहूँगा आज के बाद तू मजदूरी नहीं जाएगी. और उस ठेकेदार या तेरे ऐसे रिश्ते किसी और से भी है तो वो तोड़ देगी. तेरी जरुरत का हर सामान तू बनिए की दूकान से ले आ, पैसे मैं चुकाऊंगा चाहे कही से भी लाना पड़े मुझे. ये बात बस हम दोनों के बीच ही रहेगी .


ताई शायद कुछ कहना चाहती थी पर उसका गला रुंध गया था , वो मेरे पास आई और चुपचाप मेरे गले लग गयी.
Awesome update
 

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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#8

मैं नहीं जानता वो कैसी घडी थी जब ताई मेरे गले लगी, पर उस घडी ने आने वाले कल को बदलने की शुरुआत शायद कर दी थी, ताई की भरी हुई छातिया मेरे सीने में जैसे धंस ही जा रही थी . ताई की गर्म साँस मैंने अपने सीने में उतरते महसूस की. वो कमजोर लम्हा था भावुकता में मैंने भी ताई की पीठ को सहलाना शुरू कर दिया. ताई के पसीने की गंध में अजब कशिश थी . कुछ देर हम दोनों एक दुसरे से लिपटे रहे . मेरे हाथो ने हलके से ताई की कमर को छुआ और वो अलग हो गयी .



एक तो पैसे का इंतजाम नहीं हुआ दूसरा ताई को चुदते देख लिया जब वो मेरे गले लगी थी तो मेरे मन में हलचल मच गयी थी. रात को मुझे मालूम हुआ की गाँव में किसी के घर वीसीआर लाये थे. तो मैं भी अपने दोस्त के साथ वीसीआर पर फिल्म देखने चला गया. तबियत से मै फिल्म देख रहा था की तभी बिजली चली गयी . सब लोगो का मजा किरकिरा हो गया. कुछ लोगो ने इंतजार किया पर बिजली नहीं आई तो लोग उठ कर अपने अपने घर जाने लगे.

मेरा मन घर जाने का नहीं था तो मैं पैदल ही खेतो की तरफ चल पड़ा. चारो तरफ गहरा अँधेरा छाया हुआ था , कच्चा रास्ता शुरू होते ही अँधेरा और घना लगने लगा. गीत गुनगुनाते हुए मैं अपने रस्ते चला जा रहा था की मेरी नजर धू धू कर जलती लपटों पर पड़ी, हाँ मैंने ठीक कहा वो लपटे ही थी गर्मी के इस मौसम में आग लगना अपने आप में अनोखा सा था क्योंकि इस मौसम में खेत खाली पड़े थे.

बेशक मुझे अपने खेत में जाना था पर मैं उन लपटों की तरफ बढ़ गया. जल्दी ही मैं उस आग के पास था , कुल जमा चार लकडियो को जोड़ कर वो आग जलाई गयी थी , किसी छोटे अलाव के जैसे पर उसकी लपटे ऐसी जैसे की न जाने कितने ही पेड़ जल रहे हो, हैरत की बात थी . आंच की तपत इतनी तेज जैसे पल भर में मुझे पिघला ही दे, और जबकि मैं आंच से निश्चित दुरी पर खड़ा था .

लपटे हवा से थोड़ी इधर उधर हुई तो मेरी नजर अलाव के दूसरी तरफ पड़ी. और वो , हाँ वो ही इस दीन दुनिया से बेखबर , चेहरे पर जहाँ भर का सकून लिए आँखे मूंदे बैठी थी, आखिर कोई इतना शांत कैसे हो सकता था मैंने अपने आप से सवाल किया. कायदे से मेरा सवाल ये होना चाहिए था की ये लड़की जो मुझे बियाबानो में मिलती है ये कौन है , कहाँ की है और ऐसे भटकने का क्या मकसद है इसका.

पर उसे देखते ही , बस उसे देखते रहने को ही दिल करता था मेरा. बेशक ये दूसरी मुलाकात थी , मैं भी वहीँ रेत पर बैठ गया.

“यूँ इन स्याह रातो में भटकना नहीं चाहिए , ” उसने बिना आँखे खोले ही कहा मुझसे

“तुम भी तो भटक ही रही हो, ” मैंने कहा

उसने हौले से आँखे खोली और लगभग मुझे घूरते हुए बोली- मेरे पास मेरा प्रयोजन है और दूसरी बात ये की तहजीब ये कहती है हमें अपने काम से काम रखना चाहिए दुसरो , खासकर अजनबियों के मामले में नहीं पड़ना चाहिए, न उन्हें परेशां करना चाहिए .

मैं- ये हमारी दूसरी मुलाकात है , हम अजनबी कहाँ रहे

मेरी बात सुनकर उसके होंठो पर मुस्कान आई जिसे उसने छिपाने की जरा भी कोशिश नहीं की.

वो- हम एक दुसरे को जानते भी तो नहीं न ,

मैं- उसमे कौन सी बड़ी बात है , मेरा नाम मैंने बताया न तुम्हे, अब तुम बता दो अपना नाम , ऐसे ही जान पहचान हो जाएगी.

वो- नाम में क्या रखा है , नाम का क्या वजूद , वक्त की धार में न जाने किस किस को भुला दिया गया , हमारा नाम हो न हो क्या फर्क पड़े.

मैं- तो चलो तुम्हे गुमनाम ही समझ लेता हु. वैसे तुम्हारा क्या प्रयोजन है , क्या मैं तुम्हारी कोई मदद कर सकता हूँ , गाँव में सब जानते है मुझे .

वो- फर्क इस बात से नहीं पड़ता की तुम्हे कौन जानता है , महत्वपूर्ण ये है की तुम किसको जानते हो .

उसकी बात मुझे समझ नहीं आई , पर सुनकर अच्छा लगा.

“मैं खगोल शास्त्र की विद्यार्थी हूँ, ” उसने धीरे से कहा .

भंचो, ये कौन सा शाश्त्र था , मैंने तो सुना ही पहली बार था.

“ये क्या होता है ” मैंने पूछा

वो- मैं तारो की पढाई करती हूँ,हथेली की रेखाओ को तारो से मिला कर तक़दीर देखती हूँ

मैं- अरे बढ़िया, बताओ न मेरी तक़दीर में क्या लिखा है

मैंने हथेली उसकी तरफ बढाई. वो मेरे पास आई और मेरे हाथ को अपने हाथ में थामा, ऐसे लगा की जैसे बर्फ ने छू लिया हो मुझे, पास आंच जल रही थी पर मैं कंपकंपा गया. उसने एक पल मेरी हथेली थामी और फिर छोड़ दी.

“तेरे पास दौलत है बहुत, ” उसने कहा

मैं- तेरी पहली ही बात गलत साबित हो गयी . क्या तक़दीर देखेगी तू.

मैंने हँसते हुए कहा.

वो- मुझे जो दिखा मैंने बताया तू मान या ना मान तेरी मर्जी

मैं- और क्या देखा

वो- तमाम जहाँ का दुःख

उसने बस इतना कहा और उठ खड़ी हुई.

“जाने का समय हुआ मेरा ” उसने कहा

मैं- फिर कब मिलोगी

वो- मुसाफिरों के पते ठिकाने नहीं होते, तक़दीर में मुलाकात होगी तो मिल लेंगे वर्ना अपने अपने रस्ते तो हैं ही

इतना कह कर वो चल पड़ी मैं बस उसे देखता रहा . जो आंच जल रही थी वो न जाने कब बुझ गयी पता ही न चला.

सुबह जब मैं गाँव में गया तो चौपाल पर बहुत जायदा भीड़ इकठ्ठा हुई थी . अमूमन सुबह सुबह इतने लोग कम ही देखने को मिलते थे.

“क्या हुआ भाई, इतनी भीड़ क्यों है ” मैंने एक गाँव वाले से पूछा.





“वो कल, कल रात ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,” उसने अपनी बात अधूरी छोड़ दी.
 

Naik

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मैं नहीं जानता वो कैसी घडी थी जब ताई मेरे गले लगी, पर उस घडी ने आने वाले कल को बदलने की शुरुआत शायद कर दी थी, ताई की भरी हुई छातिया मेरे सीने में जैसे धंस ही जा रही थी . ताई की गर्म साँस मैंने अपने सीने में उतरते महसूस की. वो कमजोर लम्हा था भावुकता में मैंने भी ताई की पीठ को सहलाना शुरू कर दिया. ताई के पसीने की गंध में अजब कशिश थी . कुछ देर हम दोनों एक दुसरे से लिपटे रहे . मेरे हाथो ने हलके से ताई की कमर को छुआ और वो अलग हो गयी .



एक तो पैसे का इंतजाम नहीं हुआ दूसरा ताई को चुदते देख लिया जब वो मेरे गले लगी थी तो मेरे मन में हलचल मच गयी थी. रात को मुझे मालूम हुआ की गाँव में किसी के घर वीसीआर लाये थे. तो मैं भी अपने दोस्त के साथ वीसीआर पर फिल्म देखने चला गया. तबियत से मै फिल्म देख रहा था की तभी बिजली चली गयी . सब लोगो का मजा किरकिरा हो गया. कुछ लोगो ने इंतजार किया पर बिजली नहीं आई तो लोग उठ कर अपने अपने घर जाने लगे.

मेरा मन घर जाने का नहीं था तो मैं पैदल ही खेतो की तरफ चल पड़ा. चारो तरफ गहरा अँधेरा छाया हुआ था , कच्चा रास्ता शुरू होते ही अँधेरा और घना लगने लगा. गीत गुनगुनाते हुए मैं अपने रस्ते चला जा रहा था की मेरी नजर धू धू कर जलती लपटों पर पड़ी, हाँ मैंने ठीक कहा वो लपटे ही थी गर्मी के इस मौसम में आग लगना अपने आप में अनोखा सा था क्योंकि इस मौसम में खेत खाली पड़े थे.

बेशक मुझे अपने खेत में जाना था पर मैं उन लपटों की तरफ बढ़ गया. जल्दी ही मैं उस आग के पास था , कुल जमा चार लकडियो को जोड़ कर वो आग जलाई गयी थी , किसी छोटे अलाव के जैसे पर उसकी लपटे ऐसी जैसे की न जाने कितने ही पेड़ जल रहे हो, हैरत की बात थी . आंच की तपत इतनी तेज जैसे पल भर में मुझे पिघला ही दे, और जबकि मैं आंच से निश्चित दुरी पर खड़ा था .

लपटे हवा से थोड़ी इधर उधर हुई तो मेरी नजर अलाव के दूसरी तरफ पड़ी. और वो , हाँ वो ही इस दीन दुनिया से बेखबर , चेहरे पर जहाँ भर का सकून लिए आँखे मूंदे बैठी थी, आखिर कोई इतना शांत कैसे हो सकता था मैंने अपने आप से सवाल किया. कायदे से मेरा सवाल ये होना चाहिए था की ये लड़की जो मुझे बियाबानो में मिलती है ये कौन है , कहाँ की है और ऐसे भटकने का क्या मकसद है इसका.

पर उसे देखते ही , बस उसे देखते रहने को ही दिल करता था मेरा. बेशक ये दूसरी मुलाकात थी , मैं भी वहीँ रेत पर बैठ गया.

“यूँ इन स्याह रातो में भटकना नहीं चाहिए , ” उसने बिना आँखे खोले ही कहा मुझसे

“तुम भी तो भटक ही रही हो, ” मैंने कहा

उसने हौले से आँखे खोली और लगभग मुझे घूरते हुए बोली- मेरे पास मेरा प्रयोजन है और दूसरी बात ये की तहजीब ये कहती है हमें अपने काम से काम रखना चाहिए दुसरो , खासकर अजनबियों के मामले में नहीं पड़ना चाहिए, न उन्हें परेशां करना चाहिए .

मैं- ये हमारी दूसरी मुलाकात है , हम अजनबी कहाँ रहे

मेरी बात सुनकर उसके होंठो पर मुस्कान आई जिसे उसने छिपाने की जरा भी कोशिश नहीं की.

वो- हम एक दुसरे को जानते भी तो नहीं न ,

मैं- उसमे कौन सी बड़ी बात है , मेरा नाम मैंने बताया न तुम्हे, अब तुम बता दो अपना नाम , ऐसे ही जान पहचान हो जाएगी.

वो- नाम में क्या रखा है , नाम का क्या वजूद , वक्त की धार में न जाने किस किस को भुला दिया गया , हमारा नाम हो न हो क्या फर्क पड़े.

मैं- तो चलो तुम्हे गुमनाम ही समझ लेता हु. वैसे तुम्हारा क्या प्रयोजन है , क्या मैं तुम्हारी कोई मदद कर सकता हूँ , गाँव में सब जानते है मुझे .

वो- फर्क इस बात से नहीं पड़ता की तुम्हे कौन जानता है , महत्वपूर्ण ये है की तुम किसको जानते हो .

उसकी बात मुझे समझ नहीं आई , पर सुनकर अच्छा लगा.

“मैं खगोल शास्त्र की विद्यार्थी हूँ, ” उसने धीरे से कहा .

भंचो, ये कौन सा शाश्त्र था , मैंने तो सुना ही पहली बार था.

“ये क्या होता है ” मैंने पूछा

वो- मैं तारो की पढाई करती हूँ,हथेली की रेखाओ को तारो से मिला कर तक़दीर देखती हूँ

मैं- अरे बढ़िया, बताओ न मेरी तक़दीर में क्या लिखा है

मैंने हथेली उसकी तरफ बढाई. वो मेरे पास आई और मेरे हाथ को अपने हाथ में थामा, ऐसे लगा की जैसे बर्फ ने छू लिया हो मुझे, पास आंच जल रही थी पर मैं कंपकंपा गया. उसने एक पल मेरी हथेली थामी और फिर छोड़ दी.

“तेरे पास दौलत है बहुत, ” उसने कहा

मैं- तेरी पहली ही बात गलत साबित हो गयी . क्या तक़दीर देखेगी तू.

मैंने हँसते हुए कहा.

वो- मुझे जो दिखा मैंने बताया तू मान या ना मान तेरी मर्जी

मैं- और क्या देखा

वो- तमाम जहाँ का दुःख

उसने बस इतना कहा और उठ खड़ी हुई.

“जाने का समय हुआ मेरा ” उसने कहा

मैं- फिर कब मिलोगी

वो- मुसाफिरों के पते ठिकाने नहीं होते, तक़दीर में मुलाकात होगी तो मिल लेंगे वर्ना अपने अपने रस्ते तो हैं ही

इतना कह कर वो चल पड़ी मैं बस उसे देखता रहा . जो आंच जल रही थी वो न जाने कब बुझ गयी पता ही न चला.

सुबह जब मैं गाँव में गया तो चौपाल पर बहुत जायदा भीड़ इकठ्ठा हुई थी . अमूमन सुबह सुबह इतने लोग कम ही देखने को मिलते थे.

“क्या हुआ भाई, इतनी भीड़ क्यों है ” मैंने एक गाँव वाले से पूछा.






“वो कल, कल रात ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,” उसने अपनी बात अधूरी छोड़ दी.
Tow aaj uss ajnabi se fir mulaqat ho gayi lekin apna naam nahi bataya
Ab kia ho gaya raat m lagta h koyi gaya ooper dekhte h agle update m kia pata chalta h
Badhiya shaandaar update bhai
 
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