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#5
बहुत देर तक मैं ताई की राह देखता रहा पर वो आई ही नहीं, हार कर मैं खुद ही चल दिया.ताई आये न आये फर्क नहीं पड़ता था मेरी अपनी मजबूरियां थी , पैसे की जरुरत थी बेशक गलत काम था पर जिंदगी में कभी कभी वो भी करना पड़ता है जो गलत हो.
तक़रीबन ग्यारह बजे मैं उधर पहुंचा तो सब कुछ शांत था , घुप्प अँधेरा था मैंने साइकिल थोड़ी दूर खड़ी की और दबी आवाज में ट्रक के पास पहुँच गया . दिल की धड़कने बढ़ी हुई थी , माथे पर पसीना था. मैं ट्रक पर चढ़ा और कोयले को बोरी में भरने लगा. एक बोरी भरने के बाद मैंने उसे साइकिल पर लाद दिया. सब कुछ आसानी से हो गया. पर वो कहते है न की हर चीज की कीमत होती है,
इसी आसानी ने मेरे दिमाग में फितूर भर दिया. मैंने सोचा एक बोरी और मचका देता हूँ, मैं फिर से ट्रक पर चढ़ गया . बोरी आधी भरी ही थी की मेरी आँखे तेज रौशनी से चोंध गयी. चोकीदार की टोर्च मुझ पर तनी हुई थी .
“हरामखोर, तेरी ही तलाश में था, आज हाथ लगा है .साले तेरे बाप का माल है क्या जो चुरा रहा था, चुपचाप निचे आ जा. ”उसने अपना लट्ठ हिलाते हुए कहा.
मैं फंस चूका था , लालच भारी पड़ने वाला था.
“चल, निचे आ ” उसने कहा.
तभी मुझे न जाने क्या सुझा मैंने बोरी चोकीदार पर दे मारी. अचानक हमले से वो गिर गया और मैं उसके ऊपर कूद पड़ा. मैंने पास में पड़ा उसका लट्ठ उठाया और उसे मारने को ही था की वो बोला- नहीं नहीं मारना मत.
मैं- जाने दे मुझे,
वो- बोरी इधर ही छोड़ जा
मैं- बोरी तो लेके ही जाऊंगा, मज़बूरी समझ मेरी
चोकीदार- एक शर्त पर जाने दूंगा, आधा हिस्सा मेरा होगा.
मैं- ठीक है , कल दे जाऊंगा
चोकीदार- कल नहीं अभी
मैं- चूतिये, कोयला बिकेगा तभी तो हिस्सा मिलेगा
चोकीदार- मैं कैसे भरोसा करू तेरा.
मैं- मत कर. तेरा नुकसान , जैसा मैंने कहा मज़बूरी है और मज़बूरी आदमी क्या ही धोखा करेगा किसी से.
चोकीदार- ठीक है भरोसा किया .
मैं- कल दोपहर को मिलता तुझे,
वो- शाम ढले आना , आयेगा न
मैं- जुबान देता हु,
उस रात मुझे एक सीख मिली थी की आदमी ईमानदार तब तक ही होता है जब तक की उसे बेईमानी करने का मौका नहीं मिलता. खैर, कोयला तो मैंने पार कर लिया था पर अभी इसे रखु कहा और शहर कैसे ले जाऊ ये भी समस्या थी. मुझे ताई पर भी गुस्सा आ रहा था , मैंने दो चार गालिया दी उसे. दो बोरी कोयला लादे मैं अँधेरी रात में चुतियो के जैसा खड़ा था . बहुत सोच कर मैंने कोयले को अपने खेतो में बने कमरे की छत पर रख दिया और विचार करने करने लगा की कैसे इसे शहर ले जाऊ, उस रात मुझे एक पल भी नींद नहीं आई. खेत में बैठे बैठे ही सुबह हो गयी.
मैं सीधा ताई के घर गया , वो चाय बना रही थी .
“ले,चा ” उसने मुझे कप दिया.
मैं- चाय गयी तेल लेने ये बता तू कल आई क्यों नहीं .
ताई- बस नहीं आ पाई. आज करेंगे वो काम
मैं- काम तो मैंने कर दिया , ये बता बोरी को शहर कैसे ले जायेंगे.
ताई की आँखों में चमक सी आ गयी .
ताई- तू चिंता कर. ये बता माल कहाँ है
मैं- हिफाजत से है
मैंने ताई को बता दिया.
ताई- तू घर जा , बाकि मैं देख लूंगी .
मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था . मैं चाहता था की जल्दी से पैसा मेरे हाथ में आ जाये. दोपहर को एक कबाड़ी अपनी टूटी सी गाड़ी लेकर मेरे पास आया और बोला- भैया, आपके पास कबाड़ बताया.
मैं- कहीं और जा भाई, कोई कबाड़ नहीं है मेरे पास.
वो- मुझे तो यही सुचना मिली थी खैर तेरी मर्ज़ी
उसने इशारा किया तो मैं समझा और उसे साथ ले लिया.बोरी उसकी गाड़ी में लदवा दी. उसने तुरंत ही पैसे गिन दिए और बोला- कबाड़ और आये तो बताना. मेरे हाथ में सौ और पचास के कुछ नोट थे. जिन्हें गिन कर बड़ी ख़ुशी मिली पर बस एक पल की ताई और चोकीदार को उनका हिस्सा देने के बाद मेरे पास इतने पैसे बचते ही नहीं की मैं उदयपुर जाने के पैसे भर सकता.
खैर अब जो थे यहीं थे . ताई को उसके पैसे देने के बाद मैं चोकीदार के पास गया . उसको भी दिए.
चोकीदार- क्या बात है लड़के, खुश नहीं लगता तू
मैं- यार, जितने चाहिए थे उतने बन नहीं पाए.
चोकीदार- जो मिला उतने भी कहाँ थे तेरे पास. जितना है उसमे खुश रह .
मैं वहां से चल तो दिया पर जैसे मेरे कदमो को बेडियो ने जकड लिया था . कल का दिन ही बचा था पैसे जमा करने के लिए. कभी मैं आसमान की तरफ देखता तो कभी अपने पैर की तरफ. मुझे अपनी मजबूरियों पर गुस्सा आ रहा था. दिल पर जब काबू नहीं रहा तो मैं पुलिया पर बैठ गया और जोर जोर से रोने लगा. रोते ही रहा जब तक की मेरा दर्द आंसू बन कर बह नहीं गया.
घर पहुंचा तो देखा रीना बैठी थी .
मैं- तू कब आयी
वो-मैं तो कब से आई, तू न जाने कहाँ था . और ये कैसी शक्ल बनाई है कुछ हुआ है क्या.
मैं- कुछ, कुछ भी तो नहीं
रीना- मुझसे झूठ बोलता है
मैं- कहाँ न कुछ नहीं हुआ वो थोड़ी गर्मी ज्यादा है न तो पसीना पसीना हुआ पड़ा है
रीना-क मेरे साथ आ जरा.
मैं उसके साथ छत पर आया.
वो- पैसे का जुगाड़ नहीं हुआ न .
न जाने वो मेरे मन की बात कैसे जान लेती थी .
मैं- हो जायेगा, उसमे क्या है
रीना- मैं जानती हु, बात नहीं बनी.
मैं- क्या हुआ फिर, तू जब आएगी वहां से तो वहां क्या है कैसा है बता ही देगी फिर क्याफ फर्क पड़ा.
रीना- फर्क पड़ता है .
उसने जिस अंदाज से मेरी आँखों में देखा, मैं कुछ बोल ही नहीं पाया.
रीना- दाल चूरमा लायी थी तेरे लिए डिब्बा रखा है खा लेना गर्म ही .
मैं- हाँ,
एक कल रात नींद नहीं आई थी, एक आज की रात थी जो ख्यालो में कट रही थी .एक बार फिर मैं चाची के पास गया .
चाची- क्या है
मैं- वो पैसे चाहिए थे उदयपुर जाना है
चाची- एक बार समझ नहीं आता क्या तुझे ,कह दिया न नहीं जाना
मैं- मैं जाऊंगा
जिन्दगी में पहली बार था जब मैंने चाची को उल्टा जवाब दिया था. चाची को भी खली ये बात
“क्या कहा तूने फिर कहियो ” उसने कहा
मैं- मैंने कहा मैं उदयपुर जाऊँगा.
चाची ने पास पड़ी थापी उठा कर मेरी बाह पर मारी और बोली- जुबान लडाता है मुझसे,
जब तक उसका गुस्सा शांत नहीं हुआ, वो मुझे पीटती रही . मैं चाहता तो उसका हाथ पकड़ सकता था , रोक सकता था पर मैं चाची के मुह नहीं लगना चाहता था. दर्द भरे बदन को सहलाते हुए मैं घर से निकल गया . मुझे गुस्सा चाची पर नहीं था बल्कि उस ऊपर वाले पर था , जिसने मुझे मेरे माँ-बाप से दूर कर दिया था आज वो होते तो मेरा ये हाल नहीं होता. घूमते घूमते मैं जंगल की तरफ जा ही रहा था की एक बहुत तेज , जैसे कोई धमाका हुआ हो ऐसी आवाज मेरे कानो में आई, आवाज इतनी तेज थी आस पास सब हिल सा गया हो . मैं उस तरफ दौड़ चला. और जब मैं वहा पंहुचा तो मैंने देखा ........... मैंने देखा की.......................
बहुत देर तक मैं ताई की राह देखता रहा पर वो आई ही नहीं, हार कर मैं खुद ही चल दिया.ताई आये न आये फर्क नहीं पड़ता था मेरी अपनी मजबूरियां थी , पैसे की जरुरत थी बेशक गलत काम था पर जिंदगी में कभी कभी वो भी करना पड़ता है जो गलत हो.
तक़रीबन ग्यारह बजे मैं उधर पहुंचा तो सब कुछ शांत था , घुप्प अँधेरा था मैंने साइकिल थोड़ी दूर खड़ी की और दबी आवाज में ट्रक के पास पहुँच गया . दिल की धड़कने बढ़ी हुई थी , माथे पर पसीना था. मैं ट्रक पर चढ़ा और कोयले को बोरी में भरने लगा. एक बोरी भरने के बाद मैंने उसे साइकिल पर लाद दिया. सब कुछ आसानी से हो गया. पर वो कहते है न की हर चीज की कीमत होती है,
इसी आसानी ने मेरे दिमाग में फितूर भर दिया. मैंने सोचा एक बोरी और मचका देता हूँ, मैं फिर से ट्रक पर चढ़ गया . बोरी आधी भरी ही थी की मेरी आँखे तेज रौशनी से चोंध गयी. चोकीदार की टोर्च मुझ पर तनी हुई थी .
“हरामखोर, तेरी ही तलाश में था, आज हाथ लगा है .साले तेरे बाप का माल है क्या जो चुरा रहा था, चुपचाप निचे आ जा. ”उसने अपना लट्ठ हिलाते हुए कहा.
मैं फंस चूका था , लालच भारी पड़ने वाला था.
“चल, निचे आ ” उसने कहा.
तभी मुझे न जाने क्या सुझा मैंने बोरी चोकीदार पर दे मारी. अचानक हमले से वो गिर गया और मैं उसके ऊपर कूद पड़ा. मैंने पास में पड़ा उसका लट्ठ उठाया और उसे मारने को ही था की वो बोला- नहीं नहीं मारना मत.
मैं- जाने दे मुझे,
वो- बोरी इधर ही छोड़ जा
मैं- बोरी तो लेके ही जाऊंगा, मज़बूरी समझ मेरी
चोकीदार- एक शर्त पर जाने दूंगा, आधा हिस्सा मेरा होगा.
मैं- ठीक है , कल दे जाऊंगा
चोकीदार- कल नहीं अभी
मैं- चूतिये, कोयला बिकेगा तभी तो हिस्सा मिलेगा
चोकीदार- मैं कैसे भरोसा करू तेरा.
मैं- मत कर. तेरा नुकसान , जैसा मैंने कहा मज़बूरी है और मज़बूरी आदमी क्या ही धोखा करेगा किसी से.
चोकीदार- ठीक है भरोसा किया .
मैं- कल दोपहर को मिलता तुझे,
वो- शाम ढले आना , आयेगा न
मैं- जुबान देता हु,
उस रात मुझे एक सीख मिली थी की आदमी ईमानदार तब तक ही होता है जब तक की उसे बेईमानी करने का मौका नहीं मिलता. खैर, कोयला तो मैंने पार कर लिया था पर अभी इसे रखु कहा और शहर कैसे ले जाऊ ये भी समस्या थी. मुझे ताई पर भी गुस्सा आ रहा था , मैंने दो चार गालिया दी उसे. दो बोरी कोयला लादे मैं अँधेरी रात में चुतियो के जैसा खड़ा था . बहुत सोच कर मैंने कोयले को अपने खेतो में बने कमरे की छत पर रख दिया और विचार करने करने लगा की कैसे इसे शहर ले जाऊ, उस रात मुझे एक पल भी नींद नहीं आई. खेत में बैठे बैठे ही सुबह हो गयी.
मैं सीधा ताई के घर गया , वो चाय बना रही थी .
“ले,चा ” उसने मुझे कप दिया.
मैं- चाय गयी तेल लेने ये बता तू कल आई क्यों नहीं .
ताई- बस नहीं आ पाई. आज करेंगे वो काम
मैं- काम तो मैंने कर दिया , ये बता बोरी को शहर कैसे ले जायेंगे.
ताई की आँखों में चमक सी आ गयी .
ताई- तू चिंता कर. ये बता माल कहाँ है
मैं- हिफाजत से है
मैंने ताई को बता दिया.
ताई- तू घर जा , बाकि मैं देख लूंगी .
मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था . मैं चाहता था की जल्दी से पैसा मेरे हाथ में आ जाये. दोपहर को एक कबाड़ी अपनी टूटी सी गाड़ी लेकर मेरे पास आया और बोला- भैया, आपके पास कबाड़ बताया.
मैं- कहीं और जा भाई, कोई कबाड़ नहीं है मेरे पास.
वो- मुझे तो यही सुचना मिली थी खैर तेरी मर्ज़ी
उसने इशारा किया तो मैं समझा और उसे साथ ले लिया.बोरी उसकी गाड़ी में लदवा दी. उसने तुरंत ही पैसे गिन दिए और बोला- कबाड़ और आये तो बताना. मेरे हाथ में सौ और पचास के कुछ नोट थे. जिन्हें गिन कर बड़ी ख़ुशी मिली पर बस एक पल की ताई और चोकीदार को उनका हिस्सा देने के बाद मेरे पास इतने पैसे बचते ही नहीं की मैं उदयपुर जाने के पैसे भर सकता.
खैर अब जो थे यहीं थे . ताई को उसके पैसे देने के बाद मैं चोकीदार के पास गया . उसको भी दिए.
चोकीदार- क्या बात है लड़के, खुश नहीं लगता तू
मैं- यार, जितने चाहिए थे उतने बन नहीं पाए.
चोकीदार- जो मिला उतने भी कहाँ थे तेरे पास. जितना है उसमे खुश रह .
मैं वहां से चल तो दिया पर जैसे मेरे कदमो को बेडियो ने जकड लिया था . कल का दिन ही बचा था पैसे जमा करने के लिए. कभी मैं आसमान की तरफ देखता तो कभी अपने पैर की तरफ. मुझे अपनी मजबूरियों पर गुस्सा आ रहा था. दिल पर जब काबू नहीं रहा तो मैं पुलिया पर बैठ गया और जोर जोर से रोने लगा. रोते ही रहा जब तक की मेरा दर्द आंसू बन कर बह नहीं गया.
घर पहुंचा तो देखा रीना बैठी थी .
मैं- तू कब आयी
वो-मैं तो कब से आई, तू न जाने कहाँ था . और ये कैसी शक्ल बनाई है कुछ हुआ है क्या.
मैं- कुछ, कुछ भी तो नहीं
रीना- मुझसे झूठ बोलता है
मैं- कहाँ न कुछ नहीं हुआ वो थोड़ी गर्मी ज्यादा है न तो पसीना पसीना हुआ पड़ा है
रीना-क मेरे साथ आ जरा.
मैं उसके साथ छत पर आया.
वो- पैसे का जुगाड़ नहीं हुआ न .
न जाने वो मेरे मन की बात कैसे जान लेती थी .
मैं- हो जायेगा, उसमे क्या है
रीना- मैं जानती हु, बात नहीं बनी.
मैं- क्या हुआ फिर, तू जब आएगी वहां से तो वहां क्या है कैसा है बता ही देगी फिर क्याफ फर्क पड़ा.
रीना- फर्क पड़ता है .
उसने जिस अंदाज से मेरी आँखों में देखा, मैं कुछ बोल ही नहीं पाया.
रीना- दाल चूरमा लायी थी तेरे लिए डिब्बा रखा है खा लेना गर्म ही .
मैं- हाँ,
एक कल रात नींद नहीं आई थी, एक आज की रात थी जो ख्यालो में कट रही थी .एक बार फिर मैं चाची के पास गया .
चाची- क्या है
मैं- वो पैसे चाहिए थे उदयपुर जाना है
चाची- एक बार समझ नहीं आता क्या तुझे ,कह दिया न नहीं जाना
मैं- मैं जाऊंगा
जिन्दगी में पहली बार था जब मैंने चाची को उल्टा जवाब दिया था. चाची को भी खली ये बात
“क्या कहा तूने फिर कहियो ” उसने कहा
मैं- मैंने कहा मैं उदयपुर जाऊँगा.
चाची ने पास पड़ी थापी उठा कर मेरी बाह पर मारी और बोली- जुबान लडाता है मुझसे,
जब तक उसका गुस्सा शांत नहीं हुआ, वो मुझे पीटती रही . मैं चाहता तो उसका हाथ पकड़ सकता था , रोक सकता था पर मैं चाची के मुह नहीं लगना चाहता था. दर्द भरे बदन को सहलाते हुए मैं घर से निकल गया . मुझे गुस्सा चाची पर नहीं था बल्कि उस ऊपर वाले पर था , जिसने मुझे मेरे माँ-बाप से दूर कर दिया था आज वो होते तो मेरा ये हाल नहीं होता. घूमते घूमते मैं जंगल की तरफ जा ही रहा था की एक बहुत तेज , जैसे कोई धमाका हुआ हो ऐसी आवाज मेरे कानो में आई, आवाज इतनी तेज थी आस पास सब हिल सा गया हो . मैं उस तरफ दौड़ चला. और जब मैं वहा पंहुचा तो मैंने देखा ........... मैंने देखा की.......................