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thanksBahot badhiya shaandaar update bhai
thanksBahot badhiya shaandaar update bhai
अब झुुरमुट में ऐसा किया देख लिया भाई साहब ने ?#3
चाची के बदन पर लहंगा ही था , ऊपर से पूरी नंगी वो . सर के खुल्ले बाल जो बार बार उसके वक्ष स्थल पर आ रहे थे . चाची के चेहरे पर दुनिया भर की शिकायते थी. पर मेरी नजर उन उन्नत छातियो पर थी जिन्हें मैं इतना पास से देख रहा था . बेशक मैंने अभी पानी पीया था पर होंठो पर खुरदुरापन महसूस किया मैंने. वो चाचा से झगड़ रही थी .
“खुद तो दो मिनट में ही ठन्डे हो जाते हो , मैं हमेशा की तरह रह जाती हूँ ,” चाची ने कहा
चाचा- हो जाता है कभी कभी जल्दी . इस बात का क्या बतंगड़ बनाना.
चाची- हाँ, सारा दोष मेरा ही तो है .
“जो जा अब कल और जोर से रगड़ दूंगा तुझे. ” चाचा ने जवाब दिया और पीठ दिवार की दूसरी तरफ मोड़ ली. चाची ने भी ब्लाउज पहन लिया और चाची के पास आकर लेट गयी.
“सुनो , एक बात करनी थी ” चाची ने कहा
चाचा- हाँ बोल.
चाची- वो भतीजा उदयपुर घुमने जाना चाहता है .
चाचा- तूने क्या कहा
मैं- टाल दिया . पर अब वो बड़ा हो रहा है , उसकी आँखों में शिकायते देखती हूँ मैं.
चाचा- हम्म
“क्या हम्म, तुम तो सुबह निकल जाते हो .इस घर में मैं रहती हूँ, ये जो दुश्वारिया उसके साथ करती हूँ मैं, वो मुह से कभी नहीं बोलता पर उसकी आँखे जो सवाल करती है मैं नजरे मिला नहीं पाती उस से ” चाची ने कहा
चाचा- सो जा, कल हम इस बारे में तसल्ल्ली से बात करेंगे. जिंदगी में वैसे ही कुछ ठीक नहीं चल रहा है , वो जब्बर ने अपनी दो एकड़ जमीन दबा ली है . पंच-सरपंचो की भी नहीं मानता वो.
चाची- पुलिस की मदद क्यों नही लेते
चाचा- पुलिस के साथ बैठ के तो दारू पीता है वो . दौर था जब हमारी मर्जी के बिना गाँव में पत्ता तक नहीं हिलता था और आज देखो .
चाची- कमी तो तुम्हारी ही है , जो इस विरासत इस घर के रुतबे को थाम नहीं पाए.
चाचा- इतने साल हो गए तू आज तक समझ नहीं पायी . मेरी जगह कोई और होता तो न जाने...........खैर , रात बहुत हुई सो जा .
चाचा ने बात अधूरी छोड़ दी . वो दोनों तो सो गए थे पर मेरे दिल में एक हूक जगा गए , पहली बार ऐसा लगा की जिंदगी ऐसी भी नहीं थी जैसा मैं सोचता था . पर मेरी और इस घर की जिन्दगी ऐसी क्यों थी अब मुझे ये देखना था . जब्बर ने हमारी जमीन दबा ली थी ये बात भी मुझे मालूम हुई और मैंने सोच लिया की जमीन पर मैं वापिस कब्ज़ा कर लूँगा.
अलसाई भोर से पहले ही मैं उठ गया था . हाथ मुह धोकर मैं सीधा मंदिर की तरफ निकल गया . ऐसा नहीं था की पूजा-पाठ में मेरी बहुत दिलचस्पी थी पर मेरे दिल में हसरत रहती थी , रीना से मिलने की . हर सुबह - शाम वो मंदिर आती, दर्शन करती , तालाब से पानी भरती . और मैं बस उसे देखता. सुबह की लाली में उसे देखना किसी तीर्थ से कम नहीं था मेरे लिए.
थोड़ी देर हम सीढियों पर बैठते और फिर हमारा दिन शुरू हो जाता. पर मेरी जिन्दगी में वो दिन ही क्या जो बिना किसी परेशानी के बीत जाए. मुझे कुछ भी करके आठ सौ रूपये का जुगाड़ करना था . मैं सोच रहा था की कोई छोटा मोटा काम मिल जाये तो पैसे मिल जाये. पर इतने पैसे भला दे कौन.
नहर की पुलिया पर बैठे बैठे मैं इसी गहन सोच में डूबा था की मैंने सामने से ताई को आते देखा. मुझे देख कर वो मेरे पास आ गयी .
ताई- इधर क्यों बैठा है
मैं- वैसे ही तुम बताओ
ताई- क्या बताऊ, तुझे तो सब मालूम है ही, दिहाड़ी पीट कर आई हूँ. अब जाकर आदमी की गालिया सुनूंगी , न जाने कब सुख मिलेगा, मिलेगा भी या नहीं इस जन्म में
मैं- आखिर किस चीज की लड़ाई है तुम दोनों की
ताई- ग्रहस्थी में टोटे की लड़ाई है , तेरा ताऊ कमाता नहीं , कभी कुछ करता भी है तो उसकी दारू पी जाता है , अब उसके पीछे मरू मैं, खैर तू बता कुछ परेशान सा लगता है
मैं- मेरा हाल भी तेरे जैसा ही है ताई. कुछ पैसो की जरुरत आन पड़ी है . जुगाड़ हो नहीं रहा है
ताई- तेरी चाची से मांग, दुनिया को तो ब्याज में पैसे देती है
मैं- पर मुझे नहीं देती .
ताई- बुरा मत मानियो पर तू ही है जो उस से दबके रहता है पुरे गाँव को मालूम है की ये सब तेरा ही है.
मैं- वो भी मेरे ही है , उनके सिवा और कौन है मेरा तू ही बता
ताई- इतना सरल कैसे है तू
मैं- बस ऐसे ही .
ताई- सुन एक काम है जिस से हम दोनों की मुश्किलें थोड़ी आसान हो सकती है , पैसे का जुगाड़ हो सकता है , थोड़े तू रख लेना थोड़े मुझे दे दियो .
मैं- कैसे.
ताई- मैं जहाँ मजदूरी करती हूँ, वहां सड़क बनाने का काम है , तो तारकोल बनाने के लिए न ट्रको में कोयला आता है. अगर हम ट्रक से थोडा कोयला गायब कर ले तो उसे बेच कर पैसे आ सकते है .
मैं- तू पागल हुई है क्या. चोरी करना गलत है और फिर किसी ने पकड़ लिया तो वैसे ही परेशानी हो जाएगी.
ताई- इस दुनिया में आसानी से कुछ नहीं मिलता, मेरे मन में ये बिचार इसलिए आया है की मैंने कुछ मजदूरो की बाते सुनी थी वो कई बार कोयला बेच चुके है , सहर में एक सेठ है जो ये कोयला खरीदता है . देख ले अगर कर पाये तो .
मैं- मन नहीं मानता
ताई-तेरे मन की तू जाने, चल ठीक है मैं चलती हूँ देर से पहुंचूंगी तो दो गाली और बकेगा आदमी.
ताई चली गयी पर मेरे मन में हलचल मचा गयी .. मेरा मन दो हिस्सों में बंट गया एक तरफ मेरा जमीर कहता की गलत काम गलत ही होता है , तो दूसरा हिस्सा कहे की उदयपुर घुमने जाना ही है , जिन्दगी में ये मौका फिर मिले न मिले. कशमकश जब ज्यादा हुई तो मैं गाँव की तरफ चल निकला . कुछ दूर चला ही था की मेरी चप्पल में काँटा फंस गया . किस्मत को कोसते हुए मैं काँटा निकाल ही रहा था की पास के झुरमुट में मुझे हलचल सी महसूस हुई. लगा की कोई हैं वहां पर मैंने तुरंत चप्पल पहनी और झुरमुट में जाकर देखा. ...........................
तो वहां पर ...........................................
Behtreen lazwaab update#3
चाची के बदन पर लहंगा ही था , ऊपर से पूरी नंगी वो . सर के खुल्ले बाल जो बार बार उसके वक्ष स्थल पर आ रहे थे . चाची के चेहरे पर दुनिया भर की शिकायते थी. पर मेरी नजर उन उन्नत छातियो पर थी जिन्हें मैं इतना पास से देख रहा था . बेशक मैंने अभी पानी पीया था पर होंठो पर खुरदुरापन महसूस किया मैंने. वो चाचा से झगड़ रही थी .
“खुद तो दो मिनट में ही ठन्डे हो जाते हो , मैं हमेशा की तरह रह जाती हूँ ,” चाची ने कहा
चाचा- हो जाता है कभी कभी जल्दी . इस बात का क्या बतंगड़ बनाना.
चाची- हाँ, सारा दोष मेरा ही तो है .
“जो जा अब कल और जोर से रगड़ दूंगा तुझे. ” चाचा ने जवाब दिया और पीठ दिवार की दूसरी तरफ मोड़ ली. चाची ने भी ब्लाउज पहन लिया और चाची के पास आकर लेट गयी.
“सुनो , एक बात करनी थी ” चाची ने कहा
चाचा- हाँ बोल.
चाची- वो भतीजा उदयपुर घुमने जाना चाहता है .
चाचा- तूने क्या कहा
मैं- टाल दिया . पर अब वो बड़ा हो रहा है , उसकी आँखों में शिकायते देखती हूँ मैं.
चाचा- हम्म
“क्या हम्म, तुम तो सुबह निकल जाते हो .इस घर में मैं रहती हूँ, ये जो दुश्वारिया उसके साथ करती हूँ मैं, वो मुह से कभी नहीं बोलता पर उसकी आँखे जो सवाल करती है मैं नजरे मिला नहीं पाती उस से ” चाची ने कहा
चाचा- सो जा, कल हम इस बारे में तसल्ल्ली से बात करेंगे. जिंदगी में वैसे ही कुछ ठीक नहीं चल रहा है , वो जब्बर ने अपनी दो एकड़ जमीन दबा ली है . पंच-सरपंचो की भी नहीं मानता वो.
चाची- पुलिस की मदद क्यों नही लेते
चाचा- पुलिस के साथ बैठ के तो दारू पीता है वो . दौर था जब हमारी मर्जी के बिना गाँव में पत्ता तक नहीं हिलता था और आज देखो .
चाची- कमी तो तुम्हारी ही है , जो इस विरासत इस घर के रुतबे को थाम नहीं पाए.
चाचा- इतने साल हो गए तू आज तक समझ नहीं पायी . मेरी जगह कोई और होता तो न जाने...........खैर , रात बहुत हुई सो जा .
चाचा ने बात अधूरी छोड़ दी . वो दोनों तो सो गए थे पर मेरे दिल में एक हूक जगा गए , पहली बार ऐसा लगा की जिंदगी ऐसी भी नहीं थी जैसा मैं सोचता था . पर मेरी और इस घर की जिन्दगी ऐसी क्यों थी अब मुझे ये देखना था . जब्बर ने हमारी जमीन दबा ली थी ये बात भी मुझे मालूम हुई और मैंने सोच लिया की जमीन पर मैं वापिस कब्ज़ा कर लूँगा.
अलसाई भोर से पहले ही मैं उठ गया था . हाथ मुह धोकर मैं सीधा मंदिर की तरफ निकल गया . ऐसा नहीं था की पूजा-पाठ में मेरी बहुत दिलचस्पी थी पर मेरे दिल में हसरत रहती थी , रीना से मिलने की . हर सुबह - शाम वो मंदिर आती, दर्शन करती , तालाब से पानी भरती . और मैं बस उसे देखता. सुबह की लाली में उसे देखना किसी तीर्थ से कम नहीं था मेरे लिए.
थोड़ी देर हम सीढियों पर बैठते और फिर हमारा दिन शुरू हो जाता. पर मेरी जिन्दगी में वो दिन ही क्या जो बिना किसी परेशानी के बीत जाए. मुझे कुछ भी करके आठ सौ रूपये का जुगाड़ करना था . मैं सोच रहा था की कोई छोटा मोटा काम मिल जाये तो पैसे मिल जाये. पर इतने पैसे भला दे कौन.
नहर की पुलिया पर बैठे बैठे मैं इसी गहन सोच में डूबा था की मैंने सामने से ताई को आते देखा. मुझे देख कर वो मेरे पास आ गयी .
ताई- इधर क्यों बैठा है
मैं- वैसे ही तुम बताओ
ताई- क्या बताऊ, तुझे तो सब मालूम है ही, दिहाड़ी पीट कर आई हूँ. अब जाकर आदमी की गालिया सुनूंगी , न जाने कब सुख मिलेगा, मिलेगा भी या नहीं इस जन्म में
मैं- आखिर किस चीज की लड़ाई है तुम दोनों की
ताई- ग्रहस्थी में टोटे की लड़ाई है , तेरा ताऊ कमाता नहीं , कभी कुछ करता भी है तो उसकी दारू पी जाता है , अब उसके पीछे मरू मैं, खैर तू बता कुछ परेशान सा लगता है
मैं- मेरा हाल भी तेरे जैसा ही है ताई. कुछ पैसो की जरुरत आन पड़ी है . जुगाड़ हो नहीं रहा है
ताई- तेरी चाची से मांग, दुनिया को तो ब्याज में पैसे देती है
मैं- पर मुझे नहीं देती .
ताई- बुरा मत मानियो पर तू ही है जो उस से दबके रहता है पुरे गाँव को मालूम है की ये सब तेरा ही है.
मैं- वो भी मेरे ही है , उनके सिवा और कौन है मेरा तू ही बता
ताई- इतना सरल कैसे है तू
मैं- बस ऐसे ही .
ताई- सुन एक काम है जिस से हम दोनों की मुश्किलें थोड़ी आसान हो सकती है , पैसे का जुगाड़ हो सकता है , थोड़े तू रख लेना थोड़े मुझे दे दियो .
मैं- कैसे.
ताई- मैं जहाँ मजदूरी करती हूँ, वहां सड़क बनाने का काम है , तो तारकोल बनाने के लिए न ट्रको में कोयला आता है. अगर हम ट्रक से थोडा कोयला गायब कर ले तो उसे बेच कर पैसे आ सकते है .
मैं- तू पागल हुई है क्या. चोरी करना गलत है और फिर किसी ने पकड़ लिया तो वैसे ही परेशानी हो जाएगी.
ताई- इस दुनिया में आसानी से कुछ नहीं मिलता, मेरे मन में ये बिचार इसलिए आया है की मैंने कुछ मजदूरो की बाते सुनी थी वो कई बार कोयला बेच चुके है , सहर में एक सेठ है जो ये कोयला खरीदता है . देख ले अगर कर पाये तो .
मैं- मन नहीं मानता
ताई-तेरे मन की तू जाने, चल ठीक है मैं चलती हूँ देर से पहुंचूंगी तो दो गाली और बकेगा आदमी.
ताई चली गयी पर मेरे मन में हलचल मचा गयी .. मेरा मन दो हिस्सों में बंट गया एक तरफ मेरा जमीर कहता की गलत काम गलत ही होता है , तो दूसरा हिस्सा कहे की उदयपुर घुमने जाना ही है , जिन्दगी में ये मौका फिर मिले न मिले. कशमकश जब ज्यादा हुई तो मैं गाँव की तरफ चल निकला . कुछ दूर चला ही था की मेरी चप्पल में काँटा फंस गया . किस्मत को कोसते हुए मैं काँटा निकाल ही रहा था की पास के झुरमुट में मुझे हलचल सी महसूस हुई. लगा की कोई हैं वहां पर मैंने तुरंत चप्पल पहनी और झुरमुट में जाकर देखा. ...........................
तो वहां पर ...........................................
Kuch aisa jo kahani ko aage le jayegaअब झुुरमुट में ऐसा किया देख लिया भाई साहब ने ?
देखते हैं कि ताई की बात पर गौर करते हैं या नहीं
बढ़िया शानदार अपडेट भाई
Gajab ka update hai bhai#3
चाची के बदन पर लहंगा ही था , ऊपर से पूरी नंगी वो . सर के खुल्ले बाल जो बार बार उसके वक्ष स्थल पर आ रहे थे . चाची के चेहरे पर दुनिया भर की शिकायते थी. पर मेरी नजर उन उन्नत छातियो पर थी जिन्हें मैं इतना पास से देख रहा था . बेशक मैंने अभी पानी पीया था पर होंठो पर खुरदुरापन महसूस किया मैंने. वो चाचा से झगड़ रही थी .
“खुद तो दो मिनट में ही ठन्डे हो जाते हो , मैं हमेशा की तरह रह जाती हूँ ,” चाची ने कहा
चाचा- हो जाता है कभी कभी जल्दी . इस बात का क्या बतंगड़ बनाना.
चाची- हाँ, सारा दोष मेरा ही तो है .
“जो जा अब कल और जोर से रगड़ दूंगा तुझे. ” चाचा ने जवाब दिया और पीठ दिवार की दूसरी तरफ मोड़ ली. चाची ने भी ब्लाउज पहन लिया और चाची के पास आकर लेट गयी.
“सुनो , एक बात करनी थी ” चाची ने कहा
चाचा- हाँ बोल.
चाची- वो भतीजा उदयपुर घुमने जाना चाहता है .
चाचा- तूने क्या कहा
मैं- टाल दिया . पर अब वो बड़ा हो रहा है , उसकी आँखों में शिकायते देखती हूँ मैं.
चाचा- हम्म
“क्या हम्म, तुम तो सुबह निकल जाते हो .इस घर में मैं रहती हूँ, ये जो दुश्वारिया उसके साथ करती हूँ मैं, वो मुह से कभी नहीं बोलता पर उसकी आँखे जो सवाल करती है मैं नजरे मिला नहीं पाती उस से ” चाची ने कहा
चाचा- सो जा, कल हम इस बारे में तसल्ल्ली से बात करेंगे. जिंदगी में वैसे ही कुछ ठीक नहीं चल रहा है , वो जब्बर ने अपनी दो एकड़ जमीन दबा ली है . पंच-सरपंचो की भी नहीं मानता वो.
चाची- पुलिस की मदद क्यों नही लेते
चाचा- पुलिस के साथ बैठ के तो दारू पीता है वो . दौर था जब हमारी मर्जी के बिना गाँव में पत्ता तक नहीं हिलता था और आज देखो .
चाची- कमी तो तुम्हारी ही है , जो इस विरासत इस घर के रुतबे को थाम नहीं पाए.
चाचा- इतने साल हो गए तू आज तक समझ नहीं पायी . मेरी जगह कोई और होता तो न जाने...........खैर , रात बहुत हुई सो जा .
चाचा ने बात अधूरी छोड़ दी . वो दोनों तो सो गए थे पर मेरे दिल में एक हूक जगा गए , पहली बार ऐसा लगा की जिंदगी ऐसी भी नहीं थी जैसा मैं सोचता था . पर मेरी और इस घर की जिन्दगी ऐसी क्यों थी अब मुझे ये देखना था . जब्बर ने हमारी जमीन दबा ली थी ये बात भी मुझे मालूम हुई और मैंने सोच लिया की जमीन पर मैं वापिस कब्ज़ा कर लूँगा.
अलसाई भोर से पहले ही मैं उठ गया था . हाथ मुह धोकर मैं सीधा मंदिर की तरफ निकल गया . ऐसा नहीं था की पूजा-पाठ में मेरी बहुत दिलचस्पी थी पर मेरे दिल में हसरत रहती थी , रीना से मिलने की . हर सुबह - शाम वो मंदिर आती, दर्शन करती , तालाब से पानी भरती . और मैं बस उसे देखता. सुबह की लाली में उसे देखना किसी तीर्थ से कम नहीं था मेरे लिए.
थोड़ी देर हम सीढियों पर बैठते और फिर हमारा दिन शुरू हो जाता. पर मेरी जिन्दगी में वो दिन ही क्या जो बिना किसी परेशानी के बीत जाए. मुझे कुछ भी करके आठ सौ रूपये का जुगाड़ करना था . मैं सोच रहा था की कोई छोटा मोटा काम मिल जाये तो पैसे मिल जाये. पर इतने पैसे भला दे कौन.
नहर की पुलिया पर बैठे बैठे मैं इसी गहन सोच में डूबा था की मैंने सामने से ताई को आते देखा. मुझे देख कर वो मेरे पास आ गयी .
ताई- इधर क्यों बैठा है
मैं- वैसे ही तुम बताओ
ताई- क्या बताऊ, तुझे तो सब मालूम है ही, दिहाड़ी पीट कर आई हूँ. अब जाकर आदमी की गालिया सुनूंगी , न जाने कब सुख मिलेगा, मिलेगा भी या नहीं इस जन्म में
मैं- आखिर किस चीज की लड़ाई है तुम दोनों की
ताई- ग्रहस्थी में टोटे की लड़ाई है , तेरा ताऊ कमाता नहीं , कभी कुछ करता भी है तो उसकी दारू पी जाता है , अब उसके पीछे मरू मैं, खैर तू बता कुछ परेशान सा लगता है
मैं- मेरा हाल भी तेरे जैसा ही है ताई. कुछ पैसो की जरुरत आन पड़ी है . जुगाड़ हो नहीं रहा है
ताई- तेरी चाची से मांग, दुनिया को तो ब्याज में पैसे देती है
मैं- पर मुझे नहीं देती .
ताई- बुरा मत मानियो पर तू ही है जो उस से दबके रहता है पुरे गाँव को मालूम है की ये सब तेरा ही है.
मैं- वो भी मेरे ही है , उनके सिवा और कौन है मेरा तू ही बता
ताई- इतना सरल कैसे है तू
मैं- बस ऐसे ही .
ताई- सुन एक काम है जिस से हम दोनों की मुश्किलें थोड़ी आसान हो सकती है , पैसे का जुगाड़ हो सकता है , थोड़े तू रख लेना थोड़े मुझे दे दियो .
मैं- कैसे.
ताई- मैं जहाँ मजदूरी करती हूँ, वहां सड़क बनाने का काम है , तो तारकोल बनाने के लिए न ट्रको में कोयला आता है. अगर हम ट्रक से थोडा कोयला गायब कर ले तो उसे बेच कर पैसे आ सकते है .
मैं- तू पागल हुई है क्या. चोरी करना गलत है और फिर किसी ने पकड़ लिया तो वैसे ही परेशानी हो जाएगी.
ताई- इस दुनिया में आसानी से कुछ नहीं मिलता, मेरे मन में ये बिचार इसलिए आया है की मैंने कुछ मजदूरो की बाते सुनी थी वो कई बार कोयला बेच चुके है , सहर में एक सेठ है जो ये कोयला खरीदता है . देख ले अगर कर पाये तो .
मैं- मन नहीं मानता
ताई-तेरे मन की तू जाने, चल ठीक है मैं चलती हूँ देर से पहुंचूंगी तो दो गाली और बकेगा आदमी.
ताई चली गयी पर मेरे मन में हलचल मचा गयी .. मेरा मन दो हिस्सों में बंट गया एक तरफ मेरा जमीर कहता की गलत काम गलत ही होता है , तो दूसरा हिस्सा कहे की उदयपुर घुमने जाना ही है , जिन्दगी में ये मौका फिर मिले न मिले. कशमकश जब ज्यादा हुई तो मैं गाँव की तरफ चल निकला . कुछ दूर चला ही था की मेरी चप्पल में काँटा फंस गया . किस्मत को कोसते हुए मैं काँटा निकाल ही रहा था की पास के झुरमुट में मुझे हलचल सी महसूस हुई. लगा की कोई हैं वहां पर मैंने तुरंत चप्पल पहनी और झुरमुट में जाकर देखा. ...........................
तो वहां पर ...........................................
BHai ye itne chhote chhote update kab se dene lage aap....#3
चाची के बदन पर लहंगा ही था , ऊपर से पूरी नंगी वो . सर के खुल्ले बाल जो बार बार उसके वक्ष स्थल पर आ रहे थे . चाची के चेहरे पर दुनिया भर की शिकायते थी. पर मेरी नजर उन उन्नत छातियो पर थी जिन्हें मैं इतना पास से देख रहा था . बेशक मैंने अभी पानी पीया था पर होंठो पर खुरदुरापन महसूस किया मैंने. वो चाचा से झगड़ रही थी .
“खुद तो दो मिनट में ही ठन्डे हो जाते हो , मैं हमेशा की तरह रह जाती हूँ ,” चाची ने कहा
चाचा- हो जाता है कभी कभी जल्दी . इस बात का क्या बतंगड़ बनाना.
चाची- हाँ, सारा दोष मेरा ही तो है .
“जो जा अब कल और जोर से रगड़ दूंगा तुझे. ” चाचा ने जवाब दिया और पीठ दिवार की दूसरी तरफ मोड़ ली. चाची ने भी ब्लाउज पहन लिया और चाची के पास आकर लेट गयी.
“सुनो , एक बात करनी थी ” चाची ने कहा
चाचा- हाँ बोल.
चाची- वो भतीजा उदयपुर घुमने जाना चाहता है .
चाचा- तूने क्या कहा
मैं- टाल दिया . पर अब वो बड़ा हो रहा है , उसकी आँखों में शिकायते देखती हूँ मैं.
चाचा- हम्म
“क्या हम्म, तुम तो सुबह निकल जाते हो .इस घर में मैं रहती हूँ, ये जो दुश्वारिया उसके साथ करती हूँ मैं, वो मुह से कभी नहीं बोलता पर उसकी आँखे जो सवाल करती है मैं नजरे मिला नहीं पाती उस से ” चाची ने कहा
चाचा- सो जा, कल हम इस बारे में तसल्ल्ली से बात करेंगे. जिंदगी में वैसे ही कुछ ठीक नहीं चल रहा है , वो जब्बर ने अपनी दो एकड़ जमीन दबा ली है . पंच-सरपंचो की भी नहीं मानता वो.
चाची- पुलिस की मदद क्यों नही लेते
चाचा- पुलिस के साथ बैठ के तो दारू पीता है वो . दौर था जब हमारी मर्जी के बिना गाँव में पत्ता तक नहीं हिलता था और आज देखो .
चाची- कमी तो तुम्हारी ही है , जो इस विरासत इस घर के रुतबे को थाम नहीं पाए.
चाचा- इतने साल हो गए तू आज तक समझ नहीं पायी . मेरी जगह कोई और होता तो न जाने...........खैर , रात बहुत हुई सो जा .
चाचा ने बात अधूरी छोड़ दी . वो दोनों तो सो गए थे पर मेरे दिल में एक हूक जगा गए , पहली बार ऐसा लगा की जिंदगी ऐसी भी नहीं थी जैसा मैं सोचता था . पर मेरी और इस घर की जिन्दगी ऐसी क्यों थी अब मुझे ये देखना था . जब्बर ने हमारी जमीन दबा ली थी ये बात भी मुझे मालूम हुई और मैंने सोच लिया की जमीन पर मैं वापिस कब्ज़ा कर लूँगा.
अलसाई भोर से पहले ही मैं उठ गया था . हाथ मुह धोकर मैं सीधा मंदिर की तरफ निकल गया . ऐसा नहीं था की पूजा-पाठ में मेरी बहुत दिलचस्पी थी पर मेरे दिल में हसरत रहती थी , रीना से मिलने की . हर सुबह - शाम वो मंदिर आती, दर्शन करती , तालाब से पानी भरती . और मैं बस उसे देखता. सुबह की लाली में उसे देखना किसी तीर्थ से कम नहीं था मेरे लिए.
थोड़ी देर हम सीढियों पर बैठते और फिर हमारा दिन शुरू हो जाता. पर मेरी जिन्दगी में वो दिन ही क्या जो बिना किसी परेशानी के बीत जाए. मुझे कुछ भी करके आठ सौ रूपये का जुगाड़ करना था . मैं सोच रहा था की कोई छोटा मोटा काम मिल जाये तो पैसे मिल जाये. पर इतने पैसे भला दे कौन.
नहर की पुलिया पर बैठे बैठे मैं इसी गहन सोच में डूबा था की मैंने सामने से ताई को आते देखा. मुझे देख कर वो मेरे पास आ गयी .
ताई- इधर क्यों बैठा है
मैं- वैसे ही तुम बताओ
ताई- क्या बताऊ, तुझे तो सब मालूम है ही, दिहाड़ी पीट कर आई हूँ. अब जाकर आदमी की गालिया सुनूंगी , न जाने कब सुख मिलेगा, मिलेगा भी या नहीं इस जन्म में
मैं- आखिर किस चीज की लड़ाई है तुम दोनों की
ताई- ग्रहस्थी में टोटे की लड़ाई है , तेरा ताऊ कमाता नहीं , कभी कुछ करता भी है तो उसकी दारू पी जाता है , अब उसके पीछे मरू मैं, खैर तू बता कुछ परेशान सा लगता है
मैं- मेरा हाल भी तेरे जैसा ही है ताई. कुछ पैसो की जरुरत आन पड़ी है . जुगाड़ हो नहीं रहा है
ताई- तेरी चाची से मांग, दुनिया को तो ब्याज में पैसे देती है
मैं- पर मुझे नहीं देती .
ताई- बुरा मत मानियो पर तू ही है जो उस से दबके रहता है पुरे गाँव को मालूम है की ये सब तेरा ही है.
मैं- वो भी मेरे ही है , उनके सिवा और कौन है मेरा तू ही बता
ताई- इतना सरल कैसे है तू
मैं- बस ऐसे ही .
ताई- सुन एक काम है जिस से हम दोनों की मुश्किलें थोड़ी आसान हो सकती है , पैसे का जुगाड़ हो सकता है , थोड़े तू रख लेना थोड़े मुझे दे दियो .
मैं- कैसे.
ताई- मैं जहाँ मजदूरी करती हूँ, वहां सड़क बनाने का काम है , तो तारकोल बनाने के लिए न ट्रको में कोयला आता है. अगर हम ट्रक से थोडा कोयला गायब कर ले तो उसे बेच कर पैसे आ सकते है .
मैं- तू पागल हुई है क्या. चोरी करना गलत है और फिर किसी ने पकड़ लिया तो वैसे ही परेशानी हो जाएगी.
ताई- इस दुनिया में आसानी से कुछ नहीं मिलता, मेरे मन में ये बिचार इसलिए आया है की मैंने कुछ मजदूरो की बाते सुनी थी वो कई बार कोयला बेच चुके है , सहर में एक सेठ है जो ये कोयला खरीदता है . देख ले अगर कर पाये तो .
मैं- मन नहीं मानता
ताई-तेरे मन की तू जाने, चल ठीक है मैं चलती हूँ देर से पहुंचूंगी तो दो गाली और बकेगा आदमी.
ताई चली गयी पर मेरे मन में हलचल मचा गयी .. मेरा मन दो हिस्सों में बंट गया एक तरफ मेरा जमीर कहता की गलत काम गलत ही होता है , तो दूसरा हिस्सा कहे की उदयपुर घुमने जाना ही है , जिन्दगी में ये मौका फिर मिले न मिले. कशमकश जब ज्यादा हुई तो मैं गाँव की तरफ चल निकला . कुछ दूर चला ही था की मेरी चप्पल में काँटा फंस गया . किस्मत को कोसते हुए मैं काँटा निकाल ही रहा था की पास के झुरमुट में मुझे हलचल सी महसूस हुई. लगा की कोई हैं वहां पर मैंने तुरंत चप्पल पहनी और झुरमुट में जाकर देखा. ...........................
तो वहां पर ...........................................
Thanks bhaiBehtreen lazwaab update