Sanju@
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“इधर से गुजर रहा था, पानी की हौदी देखि तो सोचा प्यास बुझाता चलू, ठंडी पवन चल रही थी दो घडी बैठ गया सुस्ताने को ” उसने कहा
मैं- पहले कभी देखा नहीं इस तरफ
आदमी- व्यापारी आदमी हूँ,एक गाँव से दुसरे गाँव घूमता फिरता रहता हूँ.
मैं- किस चीज़ का व्यापर करते हो तुम
आदमी- किसानी का काम है मेरा जमीने जोतता हूँ .
मुझे ये था की कहीं ये जब्बर का आदमी तो नहीं , क्योंकि आजकल अंजानो पर भरोसा करना उचित नहीं था खासकर इन हालातो में. मैं उस से खोद खोद कर पूछ रहा था .
“मैं भी कोशिश कर रहा हूँ इस जमीन को उपजाऊ बनाने की पर बंजर जमीन जिद पर अड़ गयी है . रोज़ मेहनत करता हूँ पर फायदा नहीं होता ” मैंने कहा
आदमी- जमीन बुजुर्गो सी होती है, उन्हें मानना पड़ता है .
मैं- तुम्हे तो बड़ा अनुभव रहा होगा किसानी का तुम देखो जरा
मेरे इशारे पर वो आदमी खड़ा हुआ और उस जगह जाकर खड़ा हो गया जहाँ पर मैंने खुदाई चालू की थी. मिटटी के ढेलो को उसने अपने हाथो में लिया और देखने लगा . कुछ देर बाद वो मेरे पास आ गया.
आदमी- काफी पुराणी पकड़ है मिटटी की. आसान नहीं है इसे उपजाऊ करना
मैं- ये तो मैं भी जानता हूँ नया बताओ कुछ .
आदमी- खूब भीगने को इस धरा को , उम्मीद का अंकुर जरुर फूटेगा. अच्छा मैं चलता हूँ देर हुई तो अपनी मंजिल पर नहीं पहुँच पाउँगा आपका आभार , आपका पानी पिया है , इश्वर की कृपा बनी रहे आप पर.
उसने मेरे सामने हाथ जोड़े और अपने रस्ते बढ़ गया . मैंने अपने कपडे उतारे और हौदी में कूद गया. बहती पवन संग नहाना बड़ा सुख दे रहा था . थोड़ी देर में मीता भी आ पहुंची.
मीता-वाह क्या बात है
मैं- बड़ा मजा आ रहा है इस मौसम में ठन्डे पानी का,
मीता- कहीं तबियत ख़राब ना हो जाये तेरी.
तबियत से मेरा ध्यान जख्म पर गया और मैं तुरंत पानी से बाहर निकल कर तौलिये से कच्चे टांको को साफ़ करने लगा.
मीता- क्या हुआ ये
मैंने उसे पूरी बात बताई
मीता- तुझे जिन्दगी से जरा भी प्यार नहीं है . हैं न
मैं- मैं क्या बताऊ तुझे क्या है मेरे हालत
मीता- सब को अपना दुःख कम ही लगता है .
मैं- चल बाबा माफ़ कर दे अब .
मीता- आजा फिर, आज मुर्गा बना कर लायी हूँ तेरे लिए
मैं- अरे गजब,
मीता- परोस दू
मैं- बैठते है थोड़ी देर. कितने दिन हुए बाते नहीं की हमने
मीता- हुन्म्म, कल परसों तो मिले ही थे हम लोग.
मैं- मेरा बस चले तो तुझे जाने ही ना दू. यही पर रख लू
मीता- ये मुमकिन नहीं तू भी जानता है
मैं- तू जाने तेरे सितारे जाने.
मैंने मीता के काँधे पर सर टिकाया और उसके हाथ को पकड़ लिया.
मैं- ये चाँद देख रही है न, तेरी मुलाकातों का गवाह है ये
मीता- कभी सोचा नहीं था तू मेरी जिन्दगी में आएगा. और ऐसे आएगा.
मैं- पर मैं हमेशा से चाहता था की कोई आये, कोई ऐसा जो मुझे, मुझसे ज्यादा समझे, कोई ऐसा आये जिसके साथ मैं दो कदम चल सकू. जब तू चूल्हे पर रोटी सेंकती है तो आग की तपिश में तुझे देखना मेरे लिए किसी कबूल हुई दुआ से कम नहीं है . तुझे दूर से आते हुए देखना ऐसा है जिसे की आसमान से गिरी बूँद को ताकती है ये धरती .
मीता- मैं इस तारीफ लायक नहीं
मैं- सच कहना कोई गुनाह तो नहीं .
मीता- सच उस झूठ से भी बड़ा रोचक और खतरनाक होता जिसे बार बार कहा गया हो
मैं- क्या तुझे मुझ पर यकीन नहीं
मीता- मुझे मेरे नसीब पर यकीन नहीं है, अब बाते कम कर आ खाना परोसती हूँ
मैं - तू भी आ साथ ही खाते है .
मीता ने एक ही थाली में खाना लगा दिया. चांदनी रात में हम दोनों एक दुसरे के साथ बस वक्त बिता ही नहीं रहे थे हम दोनों उस वक्त को जी रहे थे .
मैं- मेरी इच्छा है की मैं तुझे चुडिया ला दू
मीता- तेरी इच्छा है तू जाने
मैं- जल्दी ही घर बनाना शुरू करूँगा इधर, तू बता तुझे कैसा घर चाहिए.
मीता- तेरा घर तू जाने मुझसे क्या पूछता है
मैं- तेरे होने से ही तो घर , घर होगा मेरा. ,
मीता- मत कर ये सब , इन सपनो का कोई मिल नहीं मेरे दोस्त, जब ये सपने टूटते है तो फिर दर्द बड़ा होता है
मैं- जब तक तूने मुझे थामा हुआ है मुझे परवाह नहीं
मीता खामोश रही .
मैं- एक बात पुछू
मीता- हाँ
मैं- तेरे गाँव के शिवाले में उस पानी वाली रेत का क्या रहस्य है तू तो जानती ही होगी न
मीता-किस्सा है या कहानी है , लोग कहते है की एक प्यासे आदमी का श्राप है बरसो पहले वो बावड़ी हर आने जाने वाले की प्यास बुझाती थी , पर फिर उसका पानी छलावा हो गया . तुम हथेली भर के पियो और वो रेत हो जाता .
मैं- ये कोई किस्सा , कहानी नहीं सच है . और सच है तो इसकी कोई वजह भी रही होगी.
मीता- तुझे क्या दिलचस्पी है इन सब में
मैं- तेरे आने से पहले एक आदमी मिला था उसने कहा मुझसे की उसने मेरा पानी पिया है .
मीता ने हाथ में लिया रोटी का टुकड़ा वापिस थाली में रखा और बोली- हौदी में न जाने कितने आदमी, पशु पानी पीते है ये इत्तेफाक भी हो सकता है .
मैं- मुझे जो लगा तुझे बताया. पर मीता तू चाहे मुझसे छुपा पर मैं जानता हूँ तू और मैं एक ही सिक्के के दो पहलु है . मैं अपनी पीढ़ी के अतीत को तलाश कर रहा हूँ तू भी कुछ तलाश रही है .
मीता- तू मुझसे क्या जानना चाहता है
मैं- यही की तेरी मेरी कहानी का अंजाम क्या होगा
मीता- ये सवाल तो आगाज़ से पहले पूछना था .
मैं- मेरे दिल पर एक बोझ है मैं जोरावर और उन बाकि लडको के परिवारों के लिए कुछ करना चाहता हूँ, मेरी वजह से उन्होंने अपने बेटे खोये है . अगर मैं उनके लिए कुछ कर पाया तो .......
मीता- फालतू का बोझ है ये. उनको अपने कर्मो का फल मिला
मैं- पर उनके माँ बाप का क्या दोष
मीता- सब समय का चक्र है , नसीब में दुःख है तो भोगना पड़े. सुख है तो भी भोगना पड़े.
मैं- मेरे नसीब में क्या है
मीता- तू जानता है
मै- जानता ही तो नहीं
मीता- आज की रात मैं तेरे पास ही रुकुंगी, फिर मैं रक्षा बंधन के बाद ही आउंगी तुझसे मिलने
मैं- और इस दुरी की क्या वजह भला
मीता- बस ऐसे ही .
वो बर्तन धोने चली गयी मैं इधर उधर टहलने चला गया . मेरे वापिस आने तक मीता अपना काम निबटा चुकी थी .
“बिस्तर लगा ले और दो चादर रखना , आज की रात ठंडी होगी. मैं तब तक नहा कर आती हूँ ” उसने कहा
मैं- ठीक है
मैं बिस्तर लगाने लगा, सोचा की वो नहाकर आये इतने लेट जाता हूँ पर कमर टिकाई ही थी चारपाई से की मीता की चीख ने मेरे कानो के परदे सुन्न कर दिए..................................
मनीष और मीता की बाते हमेशा दिलचस्प होती है ये मीता चीखी क्यों ????
वो तो नहाने गई थी ऐसा क्या हो गया है ??