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Adultery गुजारिश 2 (Completed)

Sanju@

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#4

वहां पर गाँव का सुनार था . उसके हाथ में एक छोटा बक्सा था जिसे वो बार बार खोल बंद कर रहा था .लालाजी का इस समय यहाँ पर इस जंगल में होना कुछ तो ठीक नहीं था . मैं थोडा सा छिप गया और देखने लगा की सुनार आखिर कर क्या रहा है . लाला के हाथ सख्ती से उस पुराने बक्से पर जमे हुए थे, और उसकी आँखे बार बार रस्ते की तरफ देख रही थी जैसे की उसे किसी का इंतज़ार हो . पर किसका हिलते झुरमुट की आड़ में शाम अब रात में बदलने लगी थी.



कुछ देर बाद दूसरी तरफ से कदमो की आहट हुई तो मैं थोडा सा और छिप गया . लाला ने आने वाले दोनों आदमियों को देख कर एक गहरी सांस ली और बोला- कितनी देर की आने में .

आदमी जिन्होंने अपना मुह तौलिये से ढका हुआ था वो बोला- ऐसे मामलो में देर तो हो ही जाती है लाला. सामान लाया .

लाला- हाँ, पर आज पुरे 16 साल बाद ऐसी क्या बात हुई जो इस दबी बात को उखाड़नी पड़ी .

आदमी- गुजरा हुआ वक्त , कभी कभी आज बन कर आँखों के सामने आ जाता है और जब ऐसा होता है तो उस आज का सामना करना मुश्किल हो जाता है ,

लाला- तो इस राज को भी दबे रहने देते जैसे की और कितने ही राज दबा दिए हमने.

आदमी-वो दौर अलग था लाला, ये दौर अलग है . खैर, छोड़ इन बातो को तुझे तेरा हिस्सा तो मिल ही जायेगा. ला बक्सा मुझे दे.

वो कहते है न सबकी जिन्दगी में एक ऐसा लम्हा आता है जो पूरी जिन्दगी को एक झटके में बदल देता है . उस छोटे से लम्हे में मुझे न जाने क्या सोचा, मैंने वो करने का सोच लिया जिस से मेरा दूर दूर तक कोई वास्ता नहीं था . मैंने झोली में रेत भरी और उन लोगो की आँखों में झोंक दी. इस से पहले की वो कुछ समझ पाते मैंने बक्सा लाला के हाथ से उड़ा लिया.



पीठ पीछे वो तीनो चीख रहे थे, और मैं दौड़ लगाये जा रहा था . कभी इधर कभी उधर, मेरे फेफड़े जैसे फट ही गए थे पर मैं रुका नहीं . मैं जंगल में और अन्दर भागे जा रहा था . अँधेरा घना और घना होते जा रहा था . इतना घना की जैसे रात ने सब कुछ अपने आगोश में ले लिया था. जब मुझे पूरी तस्सली हो गयी की मैं अकेला हूँ तो मैंने एक पेड़ का सहारा लिया और सांसो को दुरुस्त करने लगा.



मैं इतना तो जान गया था की इस बक्से में कुछ बेहद खास था . कोई दो-तीन किलो का वो बक्सा अपने अन्दर कुछ ऐसा समेटा हुआ था जो 16 साल पुराणी बात का गवाह था . दिल जोर से धडक रहा था ,



जानता था की लाला और उसके साथी पूरा जोर लगा देंगे इस बक्से को हासिल करने के लिए मुझे जंगल से निकल कर सुरक्षित स्थान पर जाना था . अगले कुछ घंटे मेरे लिए बड़े मुश्किल थे हर पेड़, हर लहराती शाख मुझे लाला ही लगी. जैसे तैसे करके मैं गाँव की दहलीज पर पहुंचा. और किस्मत देखिए एक तो रात का समय ऊपर से बिजली गुल.



उस पूरी रात मैं अपने कमरे में बैठा रहा , उस बक्से को घूरता रहा. चिमनी की रौशनी में बक्सा जैसे चमक रहा था . मेरे हाथ कांप रहे थे दिल चीख रहा था की खोल कर देख इसमें क्या है .पर हिम्मत नहीं हो रही थी . घबराहट इतनी की कहीं बुखार न हो जाये. जैसे तैसे सुबह हुई. मैंने बक्से को छुपा दिया. वैसे भी मेरे कमरे में कोई आता जाता तो नहीं था .



सुबह मैं पढने निकल गया . मन कर रहा था की बक्से वाली बात रीना को बता दू, पर फिर खुद को रोक लिया. उसे क्यों उलझाना बेवजह . दोपहर को मैंने साईकिल सुनार की दुकान की तरफ घुमाई मैं देखना चाहता था उसके हाव भाव पर वो बेखबर अपने काम में लगा था जैसे कल कुछ हुआ ही नहीं हो. तब मुझे समझ आया वो कितना घाघ था इतने सालो से बक्से को छुपाये हुआ था तो रात की बात की क्या ही औकात थी उसके सामने.



उदयपुर जाने के अब कुछ ही दिन बचे थे . दो दिन के भीतर पैसे जमा करवाने थे . और पैसे ही तो नहीं थे मेरे पास. मेरे दिमाग में ताई की कही बात बिजली की तरह कौंध रही थी . कुछ सोच कर मैं उस तरफ चल दिया जहाँ ताई काम करती थी .उस समय मुझे कहाँ मालूम था ये मेरी किस्मत थी तो मेरे करम लिख रही थी.

मुझे देखते ही ताई की आँखों में चमक आ गयी . वो मेरे पास आ गयी .

ताई- तो सोच लिया तूने.

मैं- हाँ सोच लिया.

“देख उस तरफ वो दो ट्रक खड़े है , आज ही आये है . दो कट्टे गायब हु तो भी कुछ मालूम नहीं होना किसी को .” ताई ने आँखों से इशारा करते हुए कहा.

मैं- आज रात ही करूँगा ये काम.

ताई- ठीक है , मैं तुझे सेठ की दूकान बताती हूँ, वहां बस कट्टे रख देना वो समझ जायेगा.

मैं- ठीक है . चलता हूँ फिर .

ताई- थोड़ी देर रुक , अब कहाँ पैदल जाउंगी, तेरे साथ ही चल दूंगी मैं भी.

मैं- हाँ,

आधे घंटे बाद मैं और ताई गाँव की तरफ आ रहे थे बाते करते हुए.

मैं-किसी को मालूम हो गया तो

ताई- नहीं होगा. सब ठीक रहेगा. वैसे अगर तू चाहे तो मैं आ जाती हूँ तेरे साथ रात को , मैं चोकिदारी कर लुंगी, तू कोयला उठा लेना.

मैं- ताऊ को क्या कहेगी.

ताई- कहना क्या है , दारू पी कर लुढक जायेगा.एक बार सोया तो फिर होश कहाँ रहता है उसे.

मैं- बड़ी दिलेर है तू

ताई- जरूरते सब कुछ करवा देती है .

मैं- सो तो है तो फिर ठीक रहा , रात को दस बजे तू मुझे फिरनी पर मिलना

ताई-पक्का.


, कल बक्से की वजह से धडकने बढ़ ह गयी थी आज कोयला चुराने का सोच कर. घर आया तो चाची आँगन में नलके पर हाथ मुह धो रही थी , झुक कर वो अपने चेहरे पर पानी के छींटे मार रही थी मेरी नजरे उसके ब्लाउज से झांकती चुचियो पर पड़ी. कल रात वाला सीन आँखों के सामने घूम गया. आधी दिखती गोरी चुचिया मेरे दिल में हलचल मचाने लगी. कनपटी के पास गर्मी महसूस की मैंने. तभी उसकी नजर मुझ पर पड़ी तो मैं आगे बढ़ गया. इंतज़ार था रात होने का.
बहुत ही सुन्दर और लाजवाब अपडेट है
आखिर क्या है उस बक्से में जो लाला और उस आदमी ने 16 साल से छिपाए हुए है उन्होंने और राज छुपा रखे हैं ताई मनीष को कोयला चोरी करने के लिए बोलती है जिसे मनीष हां बोल देता है देखते हैं आगे क्या होगा
 

Sanju@

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#5

बहुत देर तक मैं ताई की राह देखता रहा पर वो आई ही नहीं, हार कर मैं खुद ही चल दिया.ताई आये न आये फर्क नहीं पड़ता था मेरी अपनी मजबूरियां थी , पैसे की जरुरत थी बेशक गलत काम था पर जिंदगी में कभी कभी वो भी करना पड़ता है जो गलत हो.

तक़रीबन ग्यारह बजे मैं उधर पहुंचा तो सब कुछ शांत था , घुप्प अँधेरा था मैंने साइकिल थोड़ी दूर खड़ी की और दबी आवाज में ट्रक के पास पहुँच गया . दिल की धड़कने बढ़ी हुई थी , माथे पर पसीना था. मैं ट्रक पर चढ़ा और कोयले को बोरी में भरने लगा. एक बोरी भरने के बाद मैंने उसे साइकिल पर लाद दिया. सब कुछ आसानी से हो गया. पर वो कहते है न की हर चीज की कीमत होती है,

इसी आसानी ने मेरे दिमाग में फितूर भर दिया. मैंने सोचा एक बोरी और मचका देता हूँ, मैं फिर से ट्रक पर चढ़ गया . बोरी आधी भरी ही थी की मेरी आँखे तेज रौशनी से चोंध गयी. चोकीदार की टोर्च मुझ पर तनी हुई थी .

“हरामखोर, तेरी ही तलाश में था, आज हाथ लगा है .साले तेरे बाप का माल है क्या जो चुरा रहा था, चुपचाप निचे आ जा. ”उसने अपना लट्ठ हिलाते हुए कहा.

मैं फंस चूका था , लालच भारी पड़ने वाला था.

“चल, निचे आ ” उसने कहा.

तभी मुझे न जाने क्या सुझा मैंने बोरी चोकीदार पर दे मारी. अचानक हमले से वो गिर गया और मैं उसके ऊपर कूद पड़ा. मैंने पास में पड़ा उसका लट्ठ उठाया और उसे मारने को ही था की वो बोला- नहीं नहीं मारना मत.

मैं- जाने दे मुझे,

वो- बोरी इधर ही छोड़ जा

मैं- बोरी तो लेके ही जाऊंगा, मज़बूरी समझ मेरी

चोकीदार- एक शर्त पर जाने दूंगा, आधा हिस्सा मेरा होगा.

मैं- ठीक है , कल दे जाऊंगा

चोकीदार- कल नहीं अभी

मैं- चूतिये, कोयला बिकेगा तभी तो हिस्सा मिलेगा

चोकीदार- मैं कैसे भरोसा करू तेरा.

मैं- मत कर. तेरा नुकसान , जैसा मैंने कहा मज़बूरी है और मज़बूरी आदमी क्या ही धोखा करेगा किसी से.

चोकीदार- ठीक है भरोसा किया .

मैं- कल दोपहर को मिलता तुझे,

वो- शाम ढले आना , आयेगा न

मैं- जुबान देता हु,

उस रात मुझे एक सीख मिली थी की आदमी ईमानदार तब तक ही होता है जब तक की उसे बेईमानी करने का मौका नहीं मिलता. खैर, कोयला तो मैंने पार कर लिया था पर अभी इसे रखु कहा और शहर कैसे ले जाऊ ये भी समस्या थी. मुझे ताई पर भी गुस्सा आ रहा था , मैंने दो चार गालिया दी उसे. दो बोरी कोयला लादे मैं अँधेरी रात में चुतियो के जैसा खड़ा था . बहुत सोच कर मैंने कोयले को अपने खेतो में बने कमरे की छत पर रख दिया और विचार करने करने लगा की कैसे इसे शहर ले जाऊ, उस रात मुझे एक पल भी नींद नहीं आई. खेत में बैठे बैठे ही सुबह हो गयी.

मैं सीधा ताई के घर गया , वो चाय बना रही थी .

“ले,चा ” उसने मुझे कप दिया.

मैं- चाय गयी तेल लेने ये बता तू कल आई क्यों नहीं .

ताई- बस नहीं आ पाई. आज करेंगे वो काम

मैं- काम तो मैंने कर दिया , ये बता बोरी को शहर कैसे ले जायेंगे.

ताई की आँखों में चमक सी आ गयी .

ताई- तू चिंता कर. ये बता माल कहाँ है

मैं- हिफाजत से है

मैंने ताई को बता दिया.

ताई- तू घर जा , बाकि मैं देख लूंगी .

मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था . मैं चाहता था की जल्दी से पैसा मेरे हाथ में आ जाये. दोपहर को एक कबाड़ी अपनी टूटी सी गाड़ी लेकर मेरे पास आया और बोला- भैया, आपके पास कबाड़ बताया.

मैं- कहीं और जा भाई, कोई कबाड़ नहीं है मेरे पास.

वो- मुझे तो यही सुचना मिली थी खैर तेरी मर्ज़ी



उसने इशारा किया तो मैं समझा और उसे साथ ले लिया.बोरी उसकी गाड़ी में लदवा दी. उसने तुरंत ही पैसे गिन दिए और बोला- कबाड़ और आये तो बताना. मेरे हाथ में सौ और पचास के कुछ नोट थे. जिन्हें गिन कर बड़ी ख़ुशी मिली पर बस एक पल की ताई और चोकीदार को उनका हिस्सा देने के बाद मेरे पास इतने पैसे बचते ही नहीं की मैं उदयपुर जाने के पैसे भर सकता.



खैर अब जो थे यहीं थे . ताई को उसके पैसे देने के बाद मैं चोकीदार के पास गया . उसको भी दिए.

चोकीदार- क्या बात है लड़के, खुश नहीं लगता तू

मैं- यार, जितने चाहिए थे उतने बन नहीं पाए.

चोकीदार- जो मिला उतने भी कहाँ थे तेरे पास. जितना है उसमे खुश रह .

मैं वहां से चल तो दिया पर जैसे मेरे कदमो को बेडियो ने जकड लिया था . कल का दिन ही बचा था पैसे जमा करने के लिए. कभी मैं आसमान की तरफ देखता तो कभी अपने पैर की तरफ. मुझे अपनी मजबूरियों पर गुस्सा आ रहा था. दिल पर जब काबू नहीं रहा तो मैं पुलिया पर बैठ गया और जोर जोर से रोने लगा. रोते ही रहा जब तक की मेरा दर्द आंसू बन कर बह नहीं गया.

घर पहुंचा तो देखा रीना बैठी थी .

मैं- तू कब आयी

वो-मैं तो कब से आई, तू न जाने कहाँ था . और ये कैसी शक्ल बनाई है कुछ हुआ है क्या.

मैं- कुछ, कुछ भी तो नहीं

रीना- मुझसे झूठ बोलता है

मैं- कहाँ न कुछ नहीं हुआ वो थोड़ी गर्मी ज्यादा है न तो पसीना पसीना हुआ पड़ा है

रीना-क मेरे साथ आ जरा.

मैं उसके साथ छत पर आया.

वो- पैसे का जुगाड़ नहीं हुआ न .

न जाने वो मेरे मन की बात कैसे जान लेती थी .

मैं- हो जायेगा, उसमे क्या है

रीना- मैं जानती हु, बात नहीं बनी.

मैं- क्या हुआ फिर, तू जब आएगी वहां से तो वहां क्या है कैसा है बता ही देगी फिर क्याफ फर्क पड़ा.

रीना- फर्क पड़ता है .

उसने जिस अंदाज से मेरी आँखों में देखा, मैं कुछ बोल ही नहीं पाया.

रीना- दाल चूरमा लायी थी तेरे लिए डिब्बा रखा है खा लेना गर्म ही .

मैं- हाँ,

एक कल रात नींद नहीं आई थी, एक आज की रात थी जो ख्यालो में कट रही थी .एक बार फिर मैं चाची के पास गया .

चाची- क्या है

मैं- वो पैसे चाहिए थे उदयपुर जाना है

चाची- एक बार समझ नहीं आता क्या तुझे ,कह दिया न नहीं जाना

मैं- मैं जाऊंगा

जिन्दगी में पहली बार था जब मैंने चाची को उल्टा जवाब दिया था. चाची को भी खली ये बात

“क्या कहा तूने फिर कहियो ” उसने कहा

मैं- मैंने कहा मैं उदयपुर जाऊँगा.

चाची ने पास पड़ी थापी उठा कर मेरी बाह पर मारी और बोली- जुबान लडाता है मुझसे,


जब तक उसका गुस्सा शांत नहीं हुआ, वो मुझे पीटती रही . मैं चाहता तो उसका हाथ पकड़ सकता था , रोक सकता था पर मैं चाची के मुह नहीं लगना चाहता था. दर्द भरे बदन को सहलाते हुए मैं घर से निकल गया . मुझे गुस्सा चाची पर नहीं था बल्कि उस ऊपर वाले पर था , जिसने मुझे मेरे माँ-बाप से दूर कर दिया था आज वो होते तो मेरा ये हाल नहीं होता. घूमते घूमते मैं जंगल की तरफ जा ही रहा था की एक बहुत तेज , जैसे कोई धमाका हुआ हो ऐसी आवाज मेरे कानो में आई, आवाज इतनी तेज थी आस पास सब हिल सा गया हो . मैं उस तरफ दौड़ चला. और जब मैं वहा पंहुचा तो मैंने देखा ........... मैंने देखा की.......................
बहुत ही लाज़वाब और रमणीय अपडेट है
मजबूरी सब कुछ करवा देती है इंसान से वही हाल मनीष का है ताई नही आती तो अकेले ने कोयले की चोरी की पहली बार जिसमे भी पकड़ा गया चौकीदार को कुछ हिस्सा देकर पीछा छुड़ाया घर चाची से पैसे मांगने पर सुताई हुई जो अलग अगर चाची पैसे दे देती तो क्या जाता बेचारा घूम आता उदयपुर लेकिन अब किस्मत ही खराब ही तो क्या करे
 

Sanju@

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#6

मैंने देखा की नाहर की पुलिया से एक गाड़ी टकरा गयी थी. मैं दौड़ कर उसके पास गया . गाड़ी में एक औरत थी जिसका चेहरा खून से लथपथ था . मैंने दरवाजे के कांच को थपथपाया . झूलती आँखों से उसने मुझे देखा ,

“घबराओ नहीं मैं निकालता हूँ तुम्हे बाहर. ” मैंने कहा पर शीशे की वजह से उसे सुना नहीं होगा.

मैंने दरवाजा खोलने की कोशिश की पर वो जाम था . एक पत्थर से मैंने शीशा तोडा और फिर अन्दर हाथ डाल कर दरवाजा खोला और उस औरत को बाहर निकाला. वो खांसने लगी.

“पानी , पानी दो ” वो खांसते हुए बोली.

मेरी नजर गाड़ी में पड़ी बोतल पर पड़ी मैंने उसे दी. दो घूँट पिने के बाद उसने अपना मुह साफ क्या तो मुझे मालूम हुआ ये जब्बर की घरवाली थी . चूँकि जब्बर से हमारी कम बनती थी तो बोल-चाल कम ही थी पर इस हालत में मेरा इसकी मदद करना बनता था .

“ठीक हो काकी ” मैंने कहा

काकी- सर फुट गया है , उस लड़की को बचाने के चक्कर में गाड़ी ठुक गयी . जरा उधर देख तो सही वो लड़की तो ठीक है न

मैं- कौन लड़की काकी, इधर हम दोनों के आलावा कोई और नहीं है .

काकी- ठीक से देख बेटा, वो भी गाड़ी से टकरा ही गयी थी . हे राम कही नहर में तो नहीं गिर गयी .

मैं- नहर में पानी है ही कहा काकी, कितने दिनों से नहर आई तो नहीं है .

मेरी बात सुनकर काकी को जैसे झटका सा लगा. उसके होंठ जैसे सुन्न हो गए थे .

“वो लड़की , यही तो खड़ी थी ” काकी अपनी चोट भूलकर और कहीं ध्यान देने लगी थी .

मैं- काकी, सर से खून बह रहा है, तुम्हे गाँव चलना चाहिए मरहम पट्टी करवा लो पहले कोई होगी भी तो मालूम हो ही जायेगा. चलो मैं तुमको ले चलता हूँ .

मैंने काकी को वैध जी घर छोड़ा और अपनी राह पकड़ ली. मेरे दिमाग में भी अब उस लड़की वाली बात ही घूम रही थी , कौन होगी, उसे कितनी चोट लगी होगी. पर जब हमें कोई मिला ही नहीं तो कोई क्या करे.

रात भी घिर आई थी . घर जाने का मन नहीं था तो मैं ऐसे ही ताई के घर चला गया . ताई चूल्हे पर खाना बना रही थी .

“सही टाइम पर आया तू, जा अन्दर से थाली ले आ खाना परोस दू तुझे ” ताई ने कहा.

वैसे भूख तो लगी थी पर मैंने कहा- नहीं ताई, चाची को मालूम होगा तो कलेश करेगी.

ताई- उसके कलेश से तुझे कब से फर्क पड़ने लगा.

मैं-तुझे तो सब पता है ही . खैर, ताऊ नहीं दिख रहा .

ताई- बोल रहा था की शहर में नौकरी मिल गयी है सिनेमाहाल में चोकिदारी करने की , वही जाने कह बोल के गया. अब राम ही जाने , सच कहता है या झूठ,

मैं- तुझे तो खुश होना चाहिए , अब वो कमा के लायेगा.

ताई- ऐसा मेरा भाग कहा, तू बता क्या नयी ताजा

मैं- बस वही रोज के ड्रामे.

मैंने ताई को बताया की जब्बर की घरवाली का सर फुट गया

ताई- बढ़िया होता जो मर ही जाती, कमीने जब्बर ने गाँव के लोगो का जीना हराम किया हुआ है .

मैं- गलती तो गाँव वालो की ही हैं, उसे जवाब नहीं देते. सामना करे तो उसकी क्या औकात.

ताई- कौन करे उसका सामना, जाने कहा कहाँ तक उसकी पैठ है .

मैं - छोड़ अपने को क्या मतलब उस से .

ताई- सही कहाँ और बता तेरे वो पैसे पुरे हुए क्या

मैं- कहाँ, अभी भी कसर है

ताई- अब तो कोयले पर भी हाथ नहीं मार पाएंगे, कल से काम बंद , सब सामान वापिस जा रहा है

मैं -क्यों

ताई- आज कुछ अफसर आये थे,उन्होंने ही काम बंद कर वाया है .

मैं- ये तो बुरा हुआ

ताई- अब क्या करे, कल से कहीं और मजदूरी देखूंगी

मैं- ठीक है अब चलता हूँ

इस दुनिया में हर कोई अपनी अपनी परेशानियों से घिरा था , यही सोचते सोचते मेरी वो रात कटी . मेरी जिन्दगी न जाने किस दिशा में जाने वाली थी .बिस्तर पर करवट बदलते बदलते मेरी नजर उस बक्से पर पड़ी जो मैंने सुनार से चुराया था . मैंने उसे खोला और मैं हैरान हो गया उसके अन्दर कुछ भी ऐसा नहीं था जो उसे महत्वपूर्ण बनाता हो. बक्सा बाहर से जितना सुन्दर था ,अन्दर से उतना ही काला . उसके अन्दर सिर्फ एक धागा था, लाल रंग का नाल जिसे गूंध कर माला के जैसा बनाया हो.

पर जैसा हम कहते है किसी भी चीज को बस देख कर उसका अनुमान नहीं लगाना चाहिए. मैंने नाल को हल्का सा छुआ ही था की मेरी ऊँगली जल गयी , इतना गर्म था वो . एक पल में मैं समझ गया की कोई तो बात थी जो सुनार ने सोलह साल इसकी हिफाजत की थी . और अब मुझे वो बात मालूम करनी थी . सोचते सोचते कब मेरी आँख लग गई पता ही नहीं चला.

सुबह चाचा ने मुझे बुलाया और बोले- बेटे, अब तुम बड़े हो रहे हो तो तुम्हे अब कुछ बाते समझनी चाहिए

मैं- जी

चाचा- तुम तो जानते ही हो की हमारी जमीने अलग अलग जगह फैली हुई है , जितना हो सके मैंने संभालने की कोशिश की है पर अब लगता है की मैं अकेला काफी नहीं हूँ, तो मैंने सोचा है की तुम मेरा थोडा हाथ बंटाओ , समझो हम कैसे काम करते है , इस कुल की परम्परा रही हैइस धरती को माँ समान मानने की हमारे पुरखो ने , तुम्हारे पिता ने और फिर मैंने इसे बढाया ही है पर ना जाने किसकी नजर लग गयी हमारी जंगल पार वाली जमीन बंजर होते जा रही है एक तरफ नहर है , अपना कुवा है फिर भी जाने क्यों जमीन की हरियाली सूख रही है . खैर, मेरी कुछ चिंताए और है जो तुम जान जाओगे पर मैं चाहता हूँ की सुबह शाम तुम जमीनों का चक्कर लगाओ . खेत में काम करने वालो से जान- पहचान बढाओ .

मैं- जी .


हम बात कर ही रहे थे की चाची आ गयी तो चाचा ने बात बदल दी और मैं घर से निकल गया . क्योंकि मेरे पास मेरी खुद की चिंताए थी, आज हार हाल में मुझे ट्रिप के पैसे जमा करवाने थे पर जुगाड़ नहीं हो रहा था तो मैं गया नहीं . मैं ऐसे ही भटकते भटकते उधर पहुँच गया जहाँ नयी सड़क बन रही थी , मेरे दिल में था की थोडा कोयला मिल जाये तो उसे बेच दू, पर वहां कुछ नहीं था सिवाय रेत, रोड़ी के, सब जा चुके थे, हताशा में मैं भी वापिस मुड ही गया था की मैंने सोचा उस बंद कमरे में ही देख लू क्या मालूम कुछ मिल जाये. और जब मैंने कमरे के दरवाजे को धक्का दिया तो ........................................
Bahut hi behtreen update hai
वो लड़की कोन थी जिसके कारण जब्बर की घरवाली का एक्सीडेंट हुआ था अब तो रोड का काम भी बंद हो गया जिससे कोयला भी नही मिलेगा अब तो पैसों का इंतजाम नही हो पाएगा ये चाचा को अचानक क्या हुआ की वह हीरो को अपनी जमीन के बारे में बताता है और चाची के आते ही चुप हो जाता है ये क्या चक्कर है
 

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और जब मैंने दरवाजे को धक्का दिया तो मेरी आँखे फटी की फटी रह गयी. कमरे में चारपाई पर ताई और ठेकेदार एक दुसरे पर चढ़े हुए थे, अचानक से उनका मजा टूट गया. ताई की नजर मुझ पर पड़ी तो जैसे वो सुन्न हो गयी.

“तू, तू यहाँ कैसे ” अपना लहंगा ठीक करते हुए ताई ने कहा.

मेरा दिमाग जैसे जाम हो गया था पर मैंने ताई से एक शब्द भी नहीं कहा. मैं चुपचाप कमरे से बाहर आया और सीधा जंगल की तरफ चल पड़ा. उसी जगह जहाँ पर मेरी तन्हाई और मैं होते थे.

ताई बहन की लौड़ी, ठेकेदार से चुदवा रही थी. मेरे कानो में ताऊ की कही एक एक बात आ रही थी , जो गालिया वो उसे दारू पीकर बकता था एक एक गाली सच लग रही थी . और न जाने ये सब कबसे चल रहा होगा. बेशक वो मेरी सगी ताई नहीं थी पर फिर भी मुझे बुरा लग रहा था और अगर वो सगी ताई होती तो भी मैं क्या ही कर लेता.



दिल में अजीब सी बेचैनी थी , इस से पहले की मैं और कुछ करता मेरे कानो में वो ही इकतारे की आवाज आई, ठीक ये आवाज ही उस रात मैंने सुनी थी . ऐसा लग रहा था की आवाज बिलकुल मेरे पास से ही आ रही थी पर कहाँ से ये मालूम नहीं हो रहा था . मई की गर्मी में चलती गर्म लू अचानक से ठंडी बयार सी बहने लगी थी .

“कौन चुतिया, भरी दोपहर में संगीतकार बना हुआ है ” मैंने अपने आप से कहा .

कुछ दूर मैं इधर उधर भटका, भेड़ चराने वालो से पूछा पर उन्होंने मना किया. इकतारे की आवाज ने जैसे मुझसे डोर बाँध दी थी मैं बस दौड़ जाना था उस तरफ. भटकते भटकते मैं जंगल में न जाने कितनी दूर पहुँच गया था . और फिर मेरे पैर थम गए. आँखों जो जैसे करार सा आ गया. दिल को अजीब सी ख़ुशी हुई

“तुम्हे देखे मेरी आँखे इसमें क्या मेरी खता है ” मेरे होंठ बस इतना ही कह पाए.

सामने पीपल के निचे बने चबूतरे पर बैठी वो लड़की आँखे मूंदे इकतारा बजा रही थी . केसरिया कपड़ो में सूरज सा दमकता वो सांवला चेहरा जिस पर नजर ठहरे तो फिर नजर कुछ और न देखे. उसकी कलाई पर सफ़ेद कलवा जैसा कुछ बंधा था . इस दुनिया से बेखबर अपनी धुन में मगन वो लड़की जिस शांति , जिस शिद्दत से उस इकतारे की धुन में खोयी थी . उसे देखना जैसे सर्दियों की धुप.

दबे पाँव मैं बस उसके सामने निचे धरती पर जाकर बैठ गया. अजीब सा सम्मोहन , मैं क्या ही कहूँ उन लम्हों के बारे में , उस तपती दुपहरी में जैसे ठंडा शरबत मिल जाना कुछ ऐसा हाल था मेरा. दस-पन्द्रह मिनट, आधा घंटा , न जाने कितना समय बीता वो इकतारा बजाती रही और मैं एकटक बस उसे ही देखता रहा . फिर उसने अपनी तान रोकी और आँखे खोली, पहली बार हमारी नजरे मिली, उसने मुझे, मैंने उसे देखा. वो बड़ी बड़ी कजरारी आँखे बस एक पल ही मिली . वो झटके से उठ खड़ी हुई. उसके चेहरे पर घबराहट सी आई.

मैं- माफ़, कीजिये आप को परेशां नहीं करना चाहता था पर इकतारे को सुनने से खुद को रोक नहीं पाया. मैं चलता हूँ,

“”नहीं कोई बात नहीं “ उसने हौले से कहा

मैं हलके से मुस्कुराया और शायद वो भी .हम दोनों एक दुसरे को बस देख रहे थे न वो कुछ कह पा रही थी ना मैं.

“मेरा नाम मनीष है ” मैंने कहा

“मुझे जाना होगा , ” उसने बस इतना कहा और मेरे पास से सरसराते हुए आगे को बढ़ गयी . पीछे मुड कर उसने एक बार भी नहीं देखा. मैं बस उसे जाते देखता रहा .

“सुनो, क्या हम फिर मिलेंगे.” पता नहीं क्यों मैं अचानक से चिल्ला पड़ा

पर शायद उसने नहीं सुना. मैं भी अब वहां क्या करता. पर मेरे पास जाने को जहाँ भी कहाँ था.

घर आया तो चाची मेरी ही राह देख रही थी .

“सुन ये चावल का कट्टा ताई को दे आ. और उस से कहना की पैसे नहीं पहुंचाए उसने , दे तो ले अइयो ” चाची ने कहा.

मैं- तुम खुद ही दे आओ न

मैं दरअसल ताई का सामना नहीं करना चाहता था.

चाची- देख रही हूँ, आजकल कुछ ज्यादा उड़ रहा है तू, काम चोर हो गया है , ऐसे नहीं चलेगा.

मैं- ऐसे चलाना भी नहीं चाहता मैं. मैं बस इंतजार कर रहा हूँ

चाची की त्योरिया चढ़ आई.

“किस चीज का इंतजार कर रहा है तू, मुझसे जबान तो लड़ाने लगा है अब क्या हाथ सामने करेगा मेरे ” चाची ने ताना मारा.

मैं- बस मेरी पढाई पूरी हो जाये, फिर मैं ये घर छोड़ दूंगा. हमेशा के लिए. हमेशा हमेशा के लिए.

जैसे ही मैने ये बात कही चाची के हाथ से परात छूट गयी . अविश्वास से उसका मुह खुला रह गया

“माना की इस घर में मेरी कोई जरुरत, कोई हसियत नहीं है , और न मैंने कभी कोई हसरत की सिवाय की तुम्हारी झोली से थोड़ी ममता मेरे भाग में भी आएगी. पर लगता है की मुझ बदनसीब का क्या भाग. पर एक दिन आयेगा जब मेरा भाग भी बदलेगा. मैं छोड़ जाऊंगा इस घर को ” मैंने कहा और कट्टा सर पर उठा लिया और ताई के घर की तरफ चल दिया.

दरवाजा खुला था , मैं सीधा अन्दर चले गया. ताई आँगन में ही बैठी थी. मुझे देख कर वो असहज हो गयी .

“चाची ने चावल भेजे है ” मैंने कहा और वापिस जाने को हुआ की ताई ने मुझे रोका.

“रुक जरा, मेरे पास आ. ”ताई ने कहा .

मैं उसके पास गया .

ताई-मुझे कुछ कहना है तुझसे.

मैं- कोई जरुरत नहीं , पर ये जो तू कर रही है न गलत है , जिस दिन ताऊ को मालूम होगा तुझे मार ही देगा वो और गाँव में तेरी क्या हसियत रहेगी.

ताई चुप रही .

मैं- मुझे नहीं पता तेरी मज़बूरी रही या फिर जो भी था, पर गलत था . मैं चाहता तो उसी समय ठेकेदार से उलझ सकता था पर हम दुनिया को क्या कहे जब अपने लोगो में ही कमी. मुझे देख ताई, तू लाख परेशां होगी पर मुझसे ज्यादा तो नहीं . मुझसे जायदा दुनिया देखि है तूने मैं इतना कहूँगा आज के बाद तू मजदूरी नहीं जाएगी. और उस ठेकेदार या तेरे ऐसे रिश्ते किसी और से भी है तो वो तोड़ देगी. तेरी जरुरत का हर सामान तू बनिए की दूकान से ले आ, पैसे मैं चुकाऊंगा चाहे कही से भी लाना पड़े मुझे. ये बात बस हम दोनों के बीच ही रहेगी .


ताई शायद कुछ कहना चाहती थी पर उसका गला रुंध गया था , वो मेरे पास आई और चुपचाप मेरे गले लग गयी.
Amazing update
ताऊ सही बोल रहा था ताई के बारे मे आज मनीष ने खुद ही देख लिया ठेकेदार से चुदते हुए इकतारा बजाने वाली लड़की मिल ही गई जैसे देखकर अपने होश खो बैठा चाची को अपने घर छोड़ने की बात बता दी क्यू की उसकी चाची हमेशा बेरुखी से पेश आती है
 

Sanju@

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#8

मैं नहीं जानता वो कैसी घडी थी जब ताई मेरे गले लगी, पर उस घडी ने आने वाले कल को बदलने की शुरुआत शायद कर दी थी, ताई की भरी हुई छातिया मेरे सीने में जैसे धंस ही जा रही थी . ताई की गर्म साँस मैंने अपने सीने में उतरते महसूस की. वो कमजोर लम्हा था भावुकता में मैंने भी ताई की पीठ को सहलाना शुरू कर दिया. ताई के पसीने की गंध में अजब कशिश थी . कुछ देर हम दोनों एक दुसरे से लिपटे रहे . मेरे हाथो ने हलके से ताई की कमर को छुआ और वो अलग हो गयी .



एक तो पैसे का इंतजाम नहीं हुआ दूसरा ताई को चुदते देख लिया जब वो मेरे गले लगी थी तो मेरे मन में हलचल मच गयी थी. रात को मुझे मालूम हुआ की गाँव में किसी के घर वीसीआर लाये थे. तो मैं भी अपने दोस्त के साथ वीसीआर पर फिल्म देखने चला गया. तबियत से मै फिल्म देख रहा था की तभी बिजली चली गयी . सब लोगो का मजा किरकिरा हो गया. कुछ लोगो ने इंतजार किया पर बिजली नहीं आई तो लोग उठ कर अपने अपने घर जाने लगे.

मेरा मन घर जाने का नहीं था तो मैं पैदल ही खेतो की तरफ चल पड़ा. चारो तरफ गहरा अँधेरा छाया हुआ था , कच्चा रास्ता शुरू होते ही अँधेरा और घना लगने लगा. गीत गुनगुनाते हुए मैं अपने रस्ते चला जा रहा था की मेरी नजर धू धू कर जलती लपटों पर पड़ी, हाँ मैंने ठीक कहा वो लपटे ही थी गर्मी के इस मौसम में आग लगना अपने आप में अनोखा सा था क्योंकि इस मौसम में खेत खाली पड़े थे.

बेशक मुझे अपने खेत में जाना था पर मैं उन लपटों की तरफ बढ़ गया. जल्दी ही मैं उस आग के पास था , कुल जमा चार लकडियो को जोड़ कर वो आग जलाई गयी थी , किसी छोटे अलाव के जैसे पर उसकी लपटे ऐसी जैसे की न जाने कितने ही पेड़ जल रहे हो, हैरत की बात थी . आंच की तपत इतनी तेज जैसे पल भर में मुझे पिघला ही दे, और जबकि मैं आंच से निश्चित दुरी पर खड़ा था .

लपटे हवा से थोड़ी इधर उधर हुई तो मेरी नजर अलाव के दूसरी तरफ पड़ी. और वो , हाँ वो ही इस दीन दुनिया से बेखबर , चेहरे पर जहाँ भर का सकून लिए आँखे मूंदे बैठी थी, आखिर कोई इतना शांत कैसे हो सकता था मैंने अपने आप से सवाल किया. कायदे से मेरा सवाल ये होना चाहिए था की ये लड़की जो मुझे बियाबानो में मिलती है ये कौन है , कहाँ की है और ऐसे भटकने का क्या मकसद है इसका.

पर उसे देखते ही , बस उसे देखते रहने को ही दिल करता था मेरा. बेशक ये दूसरी मुलाकात थी , मैं भी वहीँ रेत पर बैठ गया.

“यूँ इन स्याह रातो में भटकना नहीं चाहिए , ” उसने बिना आँखे खोले ही कहा मुझसे

“तुम भी तो भटक ही रही हो, ” मैंने कहा

उसने हौले से आँखे खोली और लगभग मुझे घूरते हुए बोली- मेरे पास मेरा प्रयोजन है और दूसरी बात ये की तहजीब ये कहती है हमें अपने काम से काम रखना चाहिए दुसरो , खासकर अजनबियों के मामले में नहीं पड़ना चाहिए, न उन्हें परेशां करना चाहिए .

मैं- ये हमारी दूसरी मुलाकात है , हम अजनबी कहाँ रहे

मेरी बात सुनकर उसके होंठो पर मुस्कान आई जिसे उसने छिपाने की जरा भी कोशिश नहीं की.

वो- हम एक दुसरे को जानते भी तो नहीं न ,

मैं- उसमे कौन सी बड़ी बात है , मेरा नाम मैंने बताया न तुम्हे, अब तुम बता दो अपना नाम , ऐसे ही जान पहचान हो जाएगी.

वो- नाम में क्या रखा है , नाम का क्या वजूद , वक्त की धार में न जाने किस किस को भुला दिया गया , हमारा नाम हो न हो क्या फर्क पड़े.

मैं- तो चलो तुम्हे गुमनाम ही समझ लेता हु. वैसे तुम्हारा क्या प्रयोजन है , क्या मैं तुम्हारी कोई मदद कर सकता हूँ , गाँव में सब जानते है मुझे .

वो- फर्क इस बात से नहीं पड़ता की तुम्हे कौन जानता है , महत्वपूर्ण ये है की तुम किसको जानते हो .

उसकी बात मुझे समझ नहीं आई , पर सुनकर अच्छा लगा.

“मैं खगोल शास्त्र की विद्यार्थी हूँ, ” उसने धीरे से कहा .

भंचो, ये कौन सा शाश्त्र था , मैंने तो सुना ही पहली बार था.

“ये क्या होता है ” मैंने पूछा

वो- मैं तारो की पढाई करती हूँ,हथेली की रेखाओ को तारो से मिला कर तक़दीर देखती हूँ

मैं- अरे बढ़िया, बताओ न मेरी तक़दीर में क्या लिखा है

मैंने हथेली उसकी तरफ बढाई. वो मेरे पास आई और मेरे हाथ को अपने हाथ में थामा, ऐसे लगा की जैसे बर्फ ने छू लिया हो मुझे, पास आंच जल रही थी पर मैं कंपकंपा गया. उसने एक पल मेरी हथेली थामी और फिर छोड़ दी.

“तेरे पास दौलत है बहुत, ” उसने कहा

मैं- तेरी पहली ही बात गलत साबित हो गयी . क्या तक़दीर देखेगी तू.

मैंने हँसते हुए कहा.

वो- मुझे जो दिखा मैंने बताया तू मान या ना मान तेरी मर्जी

मैं- और क्या देखा

वो- तमाम जहाँ का दुःख

उसने बस इतना कहा और उठ खड़ी हुई.

“जाने का समय हुआ मेरा ” उसने कहा

मैं- फिर कब मिलोगी

वो- मुसाफिरों के पते ठिकाने नहीं होते, तक़दीर में मुलाकात होगी तो मिल लेंगे वर्ना अपने अपने रस्ते तो हैं ही

इतना कह कर वो चल पड़ी मैं बस उसे देखता रहा . जो आंच जल रही थी वो न जाने कब बुझ गयी पता ही न चला.

सुबह जब मैं गाँव में गया तो चौपाल पर बहुत जायदा भीड़ इकठ्ठा हुई थी . अमूमन सुबह सुबह इतने लोग कम ही देखने को मिलते थे.

“क्या हुआ भाई, इतनी भीड़ क्यों है ” मैंने एक गाँव वाले से पूछा.






“वो कल, कल रात ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,” उसने अपनी बात अधूरी छोड़ दी.
आज उस लड़की से फिर मुलाकात हो गई इन दो ही मुलाकाती में अपना सा लगा नाम तो अभी तक नही बताया उसके हाथो की लकीर देखकर बता दिया की दौलत तो बहुत है लेकिन दर्द भी बहुत है ये लड़की क्या कोई तांत्रिक है या कुछ और इसका क्या प्रोयोजन है घूमने का और गांव में आने पर क्या हो गया देखते हैं अगले अपडेट में
 

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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#68

हम दोनों उसी समय जब्बर से मिलने के लिए चले गए . पर अफ़सोस वो कहीं बाहर गया हुआ था . निरासा से भरे हुए कदमो से वापिस लौटना कठिन था .

मीता-क्या बता सकता है ये जब्बर हमें

मैं- कोई ऐसी बात जो हमारे काम में आये, उसे लगता है की बाबा ने उसकी बहन का इस्तेमाल किया , इस घटना से पहले इनकी मजबूत दोस्ती थी .

मीता- बाबा ऐसी ओछी हरकत कभी नहीं करेंगे.

मैं- जब्बर के पास क्या मालूम कुछ ठोस सबूत हो .

मीता- पर न जाने कहाँ गया है ये जब्बर

मैं- कोई न , आज नहीं तो कल मिल ही जायेगा.

ढलती शाम में मैंने मीता का हाथ पकड़ा और हम दोनों नहर की पुलिया पर बैठ गए.

मीता- ऐसे मत देखा कर मुझे तू

मैं- तू ही बता कैसे देखू तुझे.

मीता- ये नजरे सीधा दिल पर जाकर लगती है

मैं- तो इसमें मेरा क्या कसूर , तू दोष दिल को दे

मीता- दिल भी तेरा ही है न

मैं- दिल अपना प्रीत पराई

मीता- वो क्यों भला

मैं- सब कुछ तेरे सामने ही है . एक तरह तू है एक तरफ रीना है . मैं न उसे छोड़ सकता हूँ न तुझे.

मीता- पर किसी दिन तो ये निर्णय लेना ही होगा न

मैं- मैं उस दिन भी दोनों में से किसी को नहीं छोडूंगा.

मीता- क्या तू मुझसे भी मोहब्बत करता है

मैं- ये त्रिकोण एक दिन मेरी जान ले जायेगा.

मीता- वैसे तू चाहे तो मेरा साथ छोड़ सकता है

मैं- इतना खुदगर्ज़ नहीं मैं, पल पल मेरे साथ तू खड़ी है और तू कहती है की तेरा साथ छोड़ दूँ.

मीता- हाथ थाम भी तो नहीं पायेगा तू .

ढलती शाम ने उसका सांवला चेहरा दमक रहा था सुनहरे सोने सा. मैंने उसके चेहरे को अपने हाथो में लिया और बोला- श्याम से पहले सदा राधा का नाम आया है .

मीता- जो प्यार कर गए वो लोग और थे .

मैं- हम भी तो प्यार ही कर रहे है .

मीता- ये कैसा प्यार है , चल मैं मान भी गयी इस त्रिकोण के लिए तो भी रीना नहीं मानेगी, मैं लिख कर देती हूँ तुझे. उसके दिल में तेरे लिए जो प्यार है . वो हद से गुजर जाएगी पर तुझे किसी और का नहीं होने देगी.

मैं- तो तुम दोनों देख लेना, मैं बहुत थक गया हूँ, मैं सोना चाहता हूँ

मीता और मैं थोड़ी देर बाद कुवे पर आ गए. मैंने कपडे उतारे और पानी की हौदी में कूद गया . ठन्डे पानी ने मेरे वजूद को अपने अन्दर समेट लिया. मीता ने चारपाई बाहर लाकर पटक दी और चाय बनाने लगी. इस पानी की हौदी में मुझे बड़ा आराम मिलता था , इसके अन्दर ही मेरा दिमाग ठीक से काम करता था , कुछ बेहतरीन विचार मुझे यही पर आये थे . गर्दन तक पानी में डूबे मैं बस जब्बर के बारे में ही सोच रहा था . आखिर वो क्या बात थी , जब्बर की बहन के बारे में मुझे पड़ताल करनी थी . क्या अतीत था उसका. मैं बहुत ज्यादा थका था तो मैंने बिस्तर पकड़ लिया. पर नसीब के जब लौड़े लगे हो तो नींद भी साली बेवफा हो जाती है . बरसात की बूंदों ने मेरी नींद तोड़ दी. मैंने देखा की मीता चारपाई पर नहीं थी, मैंने उसे कमरे में देखा वो वहां पर भी नहीं थी.



मैंने दो चार बार उसे आवाज दी पर कोई जवाब नहीं आया. थोडा परेशां हो गया मैं ऐसे बिना बताये वो कहीं नहीं जाती थी . हाल के दिनों में जो घटनाये हुई थी थोडा घबराना तो मेरा लाजमी था. सबसे पहला ख्याल दिल में बस यही आया की कहीं वो शिवाले पर तो नहीं गयी. मैंने एक पतली सी चादर ओढ़ी और हाथ में एक लकड़ी लेकर बरसात में ही रुद्रपुर की तरफ चल दिया.

मैंने देखा की खंडित शिवाले का मलबा इधर-उधर बिखरा हुआ था . पर देहरी पर एक छोटा सा दीपक जल रहा था . न जाने क्यों मेरे होंठो पर मुस्कराहट सी आ गयी.कहने को तो ये जगह कुछ भी नहीं थी पर अपने अन्दर न जाने क्या समेटे हुई थी.न जाने क्या कहानी थी जिसे वक्त की रेत अपने अंदर दफ़न कर ही नहीं पा रही थी .

मैं आगे बढ़ कर देवता के स्थान पर पहुंचा तो अचम्भे से मैं हैरान रह गया , मेरी आँखों ने मुझे धोखा देना चाहा . देवता का प्रांगन दियो से रोशन था . पर जैसे ही मैंने पैर वापिस किया दहलीज से घुप्प अँधेरा छ गया , पैर आगे बढ़ाते ही शिवाला रोशन होने लगा. मैंने दो तीन बार करके देखा. ये धोखा नहीं था.

“तुम अन्दर आ सकते हो ” किसी औरत ने मुझे आवाज दी.

बेशक मैं घबराया हुआ था पर मैं सावधान था . मैं जरा भी नहीं हिला.

“तुम्हे डरने की जरुरत नहीं है .” अन्दर से फिर आवाज आई.

हिचकिचाते हुए मैं दहलीज को पार करके अन्दर चला गया .

“अपनी सारी परेशानियों को इनके पास छोड़ दो. शिव सबके है , तुम्हारे भी है तुम्हे भी देख रहे है वो ” उसने कहा और मुझे बैठने का इशारा किया.

मैं बस उस औरत को देखे जा रहा था , उसके चेहरे पर ऐसा तेज था की ये तमाम दिए न भी होते तो भी ये शिवाला रोशन हो जाता. उसके चांदी से बाल .ठोड़ी के निचे तीन टिल. हाथो में चांदी के कड़े. बड़ा प्रभावशाली व्यक्तित्व था उसका.

“कौन है आप ” मैंने हाथ जोड़ कर उसका परिचय पूछा.

औरत- मैं एक डोर हूँ जो बंधी हूँ इस शिवाले से

उसने एक थाली निकाली जो खाने से भरी थी . उसने रोटी का एक टुकड़ा तोडा और बोली- बेटे, खाना खाओ.

न जाने क्या बात थी उसमे, मैं ना कह नहीं पाया. उन कुछ निवालो से ही मेरा पेट भर गया. ऐसा अहसास मुझे पहले कभी नहीं हुआ था . न जाने क्यों मेरी आँखों से बहकर आंसू उसकी हथेली को भिगोने लगे.

“ये आंसू किसलिए भला ” उसने मुस्कुराते हुए कहा .

मैं- कभी माँ के हाथ से ऐसे खा नहीं पाया. बरसो से दबी इच्छा आंसू बन कर बह चली.

औरत -समझती हूँ . एक बेटे के लिए माँ का क्या महत्व होता है . ये सब नसीब का खेल है , मिलन है जुदाई है तकदीरो के लेख को भला कौन समझ पाया है .

मैं- इस शिवाले की कहानी क्या है क्या आप मुझे बतायेंगी. जब से मेरे कदम यहाँ पड़े है मेरी जिन्दगी बदल गयी है .

औरत- ये खुशकिस्मती है तुम्हारी . शिवाले की क्या कहानी भला. जिन्दगी के तमाम रंग है शिवाले में सुख है दुःख है .

इस से पहले वो कुछ और कहती वो तमाम दिए बुझने लगे. वो औरत मेरे पास आई मेरे माथे को चूमा और बोली- अतीत के पन्ने मत पलटना , जो है वो आज है और आने वाला कल है .

इस से पहले मैं कुछ कहता शिवाले में घुप्प अँधेरा छा गया . जब तक मेरी आँखे देखने लायक हुई वहां पर कुछ भी नहीं था .
 
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