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Adultery गुजारिश 2 (Completed)

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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किस्मत, हाँ ये निगोड़ी किस्मत ही तो थी जो मुझसे मजाक कर रही थी . जिस पल का मैंने बरसों इंतज़ार किया था की एक दिन आयेगा जब मेरा बाप मुझे अपने सीने से लगा लेगा. उस दिन मेरे सारे दुःख आंसू बन कर बह जायेंगे, किस्मत ने वो दिन तो मेरे सामने ला खड़ा दिया था पर सामने जो सक्श था वो मेरा बाप नहीं चौधरी अर्जुन सिंह खड़ा था , अपने उस गुरुर में तना हुआ जिसकी बाते मैंने गाँव वालो से सुनी थी .

“बेशक तू मेरा बेटा है , पर जो पाप तूने किया है उसकी सजा तुझे जरुर मिलेगी, एक बेटी को उसकी माँ से जुदा करके जो तूने अन्याय किया है उसकी सजा तुझे मेरे हाथो से ही मिलेगी ” बाबा ने मेरा गिरबान पकड़ लिया.

“मनीष को छोड़ दो बाबा, आपकी किसी भी सजा को न ये मानेगा और ना मैं इसे मानने दूंगी. न्याय की मूर्ति चौधरी साहब, आप इतना तो जानते ही है की आरोप को साबित करने के ठोस प्रमाण की आवशयकता होती है , और मनीष ने रीना की माँ को नहीं मारा इसका सबूत मैं हूँ ” मीता ने कहा

बाबा ने अपनी पकड़ मेरे कालर से ढीली कर दी और बोले- लड़की , सबूतों का होना कई बार जरुरी नहीं होता, जरुरी होता है उद्देश्य

मीता- चौधरी साहब मैंने बचपन से सुना है की न्याय का दूसरा नाम है चौधरी अर्जुन सिंह ,तो फिर ये अन्याय कैसे कर सकते है , मैं जल उठाने को तैयार हूँ मैं दावे से कहती हूँ की मनीष रीना की माँ का कातिल नहीं है कतल कल रात हुआ है , और कल रात मनीष इस गाँव में था ही नहीं ....

बाबा- तुम्हारे आलावा कोई और है जो ये गवाही दे सके

मीता- हैं ना हमारे पास गवाह , रुद्रपुर का टुटा शिवाला गवाह है मनीष की सच्चाई का, आपकी बंजर जमीन चीख चीख कर कहेगी आप से की कल रात मनीष और मैं रुद्रपुर के शिवाले में थे, उसके बाद आपकी बंजर जमीन पर थे.

“क्या कहा तूने बेटी ” बाबा की आवाज एकदम से कमजोर हो चली थी .

मीता- मैंने कहा की जब कल रात शिवाला टुटा तो मैं और मनीष वहीँ पर थे .

“शिवाला टूट गया ” बाबा बस इतना ही कह पाए और वहां से चलने लगे.

मैं- आप ऐसे नहीं जा सकते बाबा, थोड़ी देर पहले ही आपने कहा था की एक बेटी को माँ से जुदा करने की सजा आप मुझे जरुर देंगे, तो एक सवाल मेरा भी है मुझे आपसे जुदा करने के लिए आपकी क्या सजा होगी, सबको न्याय देने वाले चौधरी साहब से उनका बेटा अपना इंसाफ मांगता है , सोलह साल मैंने बिना बाप के जिए है , उन सोलह सालो का हिसाब चाहिए मुझे, आप ऐसे नहीं जा सकते, आपको मुझे न्याय देना ही होगा.

बाबा ने मुड कर मुझे देखा और बोले- काबिल औलादे सवाल नहीं करती, वो हाथ फैला कर नहीं मांगती, वो अपना हक़ छीन लेती है . इस पल मुझे कहीं जाना है पर मैं तुमसे मिलूँगा जरुर. जो तुम कर आये हो उसे समेटने में बड़ी मुश्किल आएगी.

बाबा मेरे पास आये , मेरे काँधे पर हाथ रखा और कुछ कदम हम साथ चलने लगे.

बाबा- एक बेटे ने बाप को उलाहना दिया है , देना भी चाहिए . ये सोलह साल सोलह जनम जैसे बीते है तुम्हारे लिए भी और मेरे लिए भी . हो सकता है तुम्हारा गुनेह्गर हूँ मैं, पर एक दिन तुम जान जाओगे , तुम समझ जाओगे.

बाबा ने मेरे सर पर हाथ रखा और बोले- किसी ज़माने में मैं भी ऐसा ही था. रुद्रपुर से दूर रहना .

एक तूफ़ान जिसे मीता ने टाल दिया था . पर कितनी देर के लिए . मैं रीना को समझाना चाहता था पर मीता मुझे वहां से ले आई. थोड़ी दूर पर ही संध्या चाची खड़ी थी अपने सीने पर हाथ रखे.

चाची- कुछ पलो के लिए मैं डर ही गयी थी की कहीं बाप बेटा आमने सामने न हो जाये.

मैं- क्या होता फिर. जब मैंने कुछ किया ही नहीं तो मुझे क्यों डरना किसी से , वैसे भी टुटा हुआ शिवाला गवाह है , कोई भी जाकर देख सकता है उसे

चाची- कैसे हुआ ये अनर्थ

मीता- आपकी क्या दिलचस्पी है इतनी शिवाले में

चाची ने घुर कर मीता को देखा और बोली- तुम चुप रहो लड़की . तुम्हे बीच में बोलने का हक़ नहीं है

मीता- मुझे किस बात का हक़ है , किसका नहीं ये आप निर्धारित करने वाली कौन होती है .

चाची- इसकी दोस्त है इसलिए तू मेरे घर में है , वर्ना तुझे गली से न गुजरने दू.

मीता- मनीष की दोस्त हूँ तो हक़ तो अपने आप ही हो गया मेरा. रही बात गली, मोहल्ले , गाँवो की तो मैं आज तुमसे एक बात कहती हूँ , वक्त का पासा पलट रहा है , वर्तमान सवाल बन कर अतीत की खाल उधेड़ने को बेताब है . वो दिन दूर नहीं है जब मैं सवाल बन कर तुम्हारे सामने खड़ी रहूंगी और तुम्हारे पास कुछ नहीं होगा. मेरा कहा याद रखना .तुम हक़ की बात करती हो , वो जगह, वो अतीत वो सब कुछ तुम्हारा होगा , मेरा सिर्फ सवाल होगा. उस दिन हक़ की बात होगी.

संध्या- मनीष इसे चुप कर ले. मेरा दिमाग ख़राब कर रही है ये, जेठ जी लौट आये है ये बड़ी बात है . रीना की माँ के कातिल को तलाशने में रात दिन एक कर देंगे वो

मैं- ऐसा क्या है की मुझसे ज्यादा उन्हें रीना की फ़िक्र है .

चाची- काश मैं जानती,

मैं- समस्या तो यही है की तुम कुछ जानती ही नहीं , कितनी भोली हो तुम.

गाँव से थोडा बाहर आकर मैं और मीता एक पानी की टंकी पर बनी खेली पर बैठ गए.

मैं- मीता मैं अपना वादा जरुर पूरा करूँगा. तू देखना पृथ्वी को लात मार कर हवेली से बाहर निकाल दूंगा, फिर तू रहना आराम से वहां पर.

मीता- मुझे हवेली की कोई चाहत नहीं

मैं- पर मैं तुझे तेरा हक़ जरुर लौटा दूंगा.

मीता- वक्त आएगा तो देखेंगे. फिलहाल मेरी चिंताए दूसरी है .

मैं- तू कहे तो अभी के अभी रुद्रपुर जाकर हवेली से घसीट कर बाहर कर दू पृथ्वी को

मीता- रुद्रपुर तो जाना ही है पर किसी और काम के लिए . और मुझे लगता है की यही ठीक समय है किसी से मिलने का

मैं- किस से . .

मीता- अतीत के एक घटिया पन्ने को पलटने का समय आ गया है.
 

brego4

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wow dear manish zabrdast exciting updates, mita saved manish today rather saved father son from clashing

Chachi ne aaj tak manish ko kuch nahi bataya aur aaj bhi waise hi hua, arjunsingh ne manish ko rudarpr se dur rehne ko bola hai kya wo aisa karega wo to mita ke saath wahin ja raha hai
 

Ladies man

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किस्मत, हाँ ये निगोड़ी किस्मत ही तो थी जो मुझसे मजाक कर रही थी . जिस पल का मैंने बरसों इंतज़ार किया था की एक दिन आयेगा जब मेरा बाप मुझे अपने सीने से लगा लेगा. उस दिन मेरे सारे दुःख आंसू बन कर बह जायेंगे, किस्मत ने वो दिन तो मेरे सामने ला खड़ा दिया था पर सामने जो सक्श था वो मेरा बाप नहीं चौधरी अर्जुन सिंह खड़ा था , अपने उस गुरुर में तना हुआ जिसकी बाते मैंने गाँव वालो से सुनी थी .

“बेशक तू मेरा बेटा है , पर जो पाप तूने किया है उसकी सजा तुझे जरुर मिलेगी, एक बेटी को उसकी माँ से जुदा करके जो तूने अन्याय किया है उसकी सजा तुझे मेरे हाथो से ही मिलेगी ” बाबा ने मेरा गिरबान पकड़ लिया.

“मनीष को छोड़ दो बाबा, आपकी किसी भी सजा को न ये मानेगा और ना मैं इसे मानने दूंगी. न्याय की मूर्ति चौधरी साहब, आप इतना तो जानते ही है की आरोप को साबित करने के ठोस प्रमाण की आवशयकता होती है , और मनीष ने रीना की माँ को नहीं मारा इसका सबूत मैं हूँ ” मीता ने कहा

बाबा ने अपनी पकड़ मेरे कालर से ढीली कर दी और बोले- लड़की , सबूतों का होना कई बार जरुरी नहीं होता, जरुरी होता है उद्देश्य

मीता- चौधरी साहब मैंने बचपन से सुना है की न्याय का दूसरा नाम है चौधरी अर्जुन सिंह ,तो फिर ये अन्याय कैसे कर सकते है , मैं जल उठाने को तैयार हूँ मैं दावे से कहती हूँ की मनीष रीना की माँ का कातिल नहीं है कतल कल रात हुआ है , और कल रात मनीष इस गाँव में था ही नहीं ....

बाबा- तुम्हारे आलावा कोई और है जो ये गवाही दे सके

मीता- हैं ना हमारे पास गवाह , रुद्रपुर का टुटा शिवाला गवाह है मनीष की सच्चाई का, आपकी बंजर जमीन चीख चीख कर कहेगी आप से की कल रात मनीष और मैं रुद्रपुर के शिवाले में थे, उसके बाद आपकी बंजर जमीन पर थे.

“क्या कहा तूने बेटी ” बाबा की आवाज एकदम से कमजोर हो चली थी .

मीता- मैंने कहा की जब कल रात शिवाला टुटा तो मैं और मनीष वहीँ पर थे .

“शिवाला टूट गया ” बाबा बस इतना ही कह पाए और वहां से चलने लगे.

मैं- आप ऐसे नहीं जा सकते बाबा, थोड़ी देर पहले ही आपने कहा था की एक बेटी को माँ से जुदा करने की सजा आप मुझे जरुर देंगे, तो एक सवाल मेरा भी है मुझे आपसे जुदा करने के लिए आपकी क्या सजा होगी, सबको न्याय देने वाले चौधरी साहब से उनका बेटा अपना इंसाफ मांगता है , सोलह साल मैंने बिना बाप के जिए है , उन सोलह सालो का हिसाब चाहिए मुझे, आप ऐसे नहीं जा सकते, आपको मुझे न्याय देना ही होगा.

बाबा ने मुड कर मुझे देखा और बोले- काबिल औलादे सवाल नहीं करती, वो हाथ फैला कर नहीं मांगती, वो अपना हक़ छीन लेती है . इस पल मुझे कहीं जाना है पर मैं तुमसे मिलूँगा जरुर. जो तुम कर आये हो उसे समेटने में बड़ी मुश्किल आएगी.

बाबा मेरे पास आये , मेरे काँधे पर हाथ रखा और कुछ कदम हम साथ चलने लगे.

बाबा- एक बेटे ने बाप को उलाहना दिया है , देना भी चाहिए . ये सोलह साल सोलह जनम जैसे बीते है तुम्हारे लिए भी और मेरे लिए भी . हो सकता है तुम्हारा गुनेह्गर हूँ मैं, पर एक दिन तुम जान जाओगे , तुम समझ जाओगे.

बाबा ने मेरे सर पर हाथ रखा और बोले- किसी ज़माने में मैं भी ऐसा ही था. रुद्रपुर से दूर रहना .

एक तूफ़ान जिसे मीता ने टाल दिया था . पर कितनी देर के लिए . मैं रीना को समझाना चाहता था पर मीता मुझे वहां से ले आई. थोड़ी दूर पर ही संध्या चाची खड़ी थी अपने सीने पर हाथ रखे.

चाची- कुछ पलो के लिए मैं डर ही गयी थी की कहीं बाप बेटा आमने सामने न हो जाये.

मैं- क्या होता फिर. जब मैंने कुछ किया ही नहीं तो मुझे क्यों डरना किसी से , वैसे भी टुटा हुआ शिवाला गवाह है , कोई भी जाकर देख सकता है उसे

चाची- कैसे हुआ ये अनर्थ

मीता- आपकी क्या दिलचस्पी है इतनी शिवाले में

चाची ने घुर कर मीता को देखा और बोली- तुम चुप रहो लड़की . तुम्हे बीच में बोलने का हक़ नहीं है

मीता- मुझे किस बात का हक़ है , किसका नहीं ये आप निर्धारित करने वाली कौन होती है .

चाची- इसकी दोस्त है इसलिए तू मेरे घर में है , वर्ना तुझे गली से न गुजरने दू.

मीता- मनीष की दोस्त हूँ तो हक़ तो अपने आप ही हो गया मेरा. रही बात गली, मोहल्ले , गाँवो की तो मैं आज तुमसे एक बात कहती हूँ , वक्त का पासा पलट रहा है , वर्तमान सवाल बन कर अतीत की खाल उधेड़ने को बेताब है . वो दिन दूर नहीं है जब मैं सवाल बन कर तुम्हारे सामने खड़ी रहूंगी और तुम्हारे पास कुछ नहीं होगा. मेरा कहा याद रखना .तुम हक़ की बात करती हो , वो जगह, वो अतीत वो सब कुछ तुम्हारा होगा , मेरा सिर्फ सवाल होगा. उस दिन हक़ की बात होगी.

संध्या- मनीष इसे चुप कर ले. मेरा दिमाग ख़राब कर रही है ये, जेठ जी लौट आये है ये बड़ी बात है . रीना की माँ के कातिल को तलाशने में रात दिन एक कर देंगे वो

मैं- ऐसा क्या है की मुझसे ज्यादा उन्हें रीना की फ़िक्र है .

चाची- काश मैं जानती,

मैं- समस्या तो यही है की तुम कुछ जानती ही नहीं , कितनी भोली हो तुम.

गाँव से थोडा बाहर आकर मैं और मीता एक पानी की टंकी पर बनी खेली पर बैठ गए.

मैं- मीता मैं अपना वादा जरुर पूरा करूँगा. तू देखना पृथ्वी को लात मार कर हवेली से बाहर निकाल दूंगा, फिर तू रहना आराम से वहां पर.

मीता- मुझे हवेली की कोई चाहत नहीं

मैं- पर मैं तुझे तेरा हक़ जरुर लौटा दूंगा.

मीता- वक्त आएगा तो देखेंगे. फिलहाल मेरी चिंताए दूसरी है .

मैं- तू कहे तो अभी के अभी रुद्रपुर जाकर हवेली से घसीट कर बाहर कर दू पृथ्वी को

मीता- रुद्रपुर तो जाना ही है पर किसी और काम के लिए . और मुझे लगता है की यही ठीक समय है किसी से मिलने का

मैं- किस से . .


मीता- अतीत के एक घटिया पन्ने को पलटने का समय आ गया है.
Wide Bowl dalte raho
 

Studxyz

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भला हो मीता का की उसकी गवाही ने एक तबाही वाले मंजर को रोक लिया लेकिन अर्जुन सिंह की क्या मज़बूरी रही की बेटे से ज़्यादा रीना को तवज्जो दी गयी ? वैसे मीता की गवाही से रीना की भी बोलती बंद हो गयी और वो झूटी साबित हुई

आखिरकार रीना की माँ का क़ातिल भी कोई होगा ज़रूर और जो कुछ शिवालय में हुआ वो भी कुछ काम तूफानी नहीं उम्मीद है की अर्जुन सिंह के आ जाने से बहुत से राज़ पर से पर्दा खुलेगा |

खून तो कई पहले भी बहुत बेरहमी से हुए हैं उनका भी कोई राज़ अब तक नहीं खुला ?
 

Yamraaj

Put your Attitude on my Dick......
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किस्मत, हाँ ये निगोड़ी किस्मत ही तो थी जो मुझसे मजाक कर रही थी . जिस पल का मैंने बरसों इंतज़ार किया था की एक दिन आयेगा जब मेरा बाप मुझे अपने सीने से लगा लेगा. उस दिन मेरे सारे दुःख आंसू बन कर बह जायेंगे, किस्मत ने वो दिन तो मेरे सामने ला खड़ा दिया था पर सामने जो सक्श था वो मेरा बाप नहीं चौधरी अर्जुन सिंह खड़ा था , अपने उस गुरुर में तना हुआ जिसकी बाते मैंने गाँव वालो से सुनी थी .

“बेशक तू मेरा बेटा है , पर जो पाप तूने किया है उसकी सजा तुझे जरुर मिलेगी, एक बेटी को उसकी माँ से जुदा करके जो तूने अन्याय किया है उसकी सजा तुझे मेरे हाथो से ही मिलेगी ” बाबा ने मेरा गिरबान पकड़ लिया.

“मनीष को छोड़ दो बाबा, आपकी किसी भी सजा को न ये मानेगा और ना मैं इसे मानने दूंगी. न्याय की मूर्ति चौधरी साहब, आप इतना तो जानते ही है की आरोप को साबित करने के ठोस प्रमाण की आवशयकता होती है , और मनीष ने रीना की माँ को नहीं मारा इसका सबूत मैं हूँ ” मीता ने कहा

बाबा ने अपनी पकड़ मेरे कालर से ढीली कर दी और बोले- लड़की , सबूतों का होना कई बार जरुरी नहीं होता, जरुरी होता है उद्देश्य

मीता- चौधरी साहब मैंने बचपन से सुना है की न्याय का दूसरा नाम है चौधरी अर्जुन सिंह ,तो फिर ये अन्याय कैसे कर सकते है , मैं जल उठाने को तैयार हूँ मैं दावे से कहती हूँ की मनीष रीना की माँ का कातिल नहीं है कतल कल रात हुआ है , और कल रात मनीष इस गाँव में था ही नहीं ....

बाबा- तुम्हारे आलावा कोई और है जो ये गवाही दे सके

मीता- हैं ना हमारे पास गवाह , रुद्रपुर का टुटा शिवाला गवाह है मनीष की सच्चाई का, आपकी बंजर जमीन चीख चीख कर कहेगी आप से की कल रात मनीष और मैं रुद्रपुर के शिवाले में थे, उसके बाद आपकी बंजर जमीन पर थे.

“क्या कहा तूने बेटी ” बाबा की आवाज एकदम से कमजोर हो चली थी .

मीता- मैंने कहा की जब कल रात शिवाला टुटा तो मैं और मनीष वहीँ पर थे .

“शिवाला टूट गया ” बाबा बस इतना ही कह पाए और वहां से चलने लगे.

मैं- आप ऐसे नहीं जा सकते बाबा, थोड़ी देर पहले ही आपने कहा था की एक बेटी को माँ से जुदा करने की सजा आप मुझे जरुर देंगे, तो एक सवाल मेरा भी है मुझे आपसे जुदा करने के लिए आपकी क्या सजा होगी, सबको न्याय देने वाले चौधरी साहब से उनका बेटा अपना इंसाफ मांगता है , सोलह साल मैंने बिना बाप के जिए है , उन सोलह सालो का हिसाब चाहिए मुझे, आप ऐसे नहीं जा सकते, आपको मुझे न्याय देना ही होगा.

बाबा ने मुड कर मुझे देखा और बोले- काबिल औलादे सवाल नहीं करती, वो हाथ फैला कर नहीं मांगती, वो अपना हक़ छीन लेती है . इस पल मुझे कहीं जाना है पर मैं तुमसे मिलूँगा जरुर. जो तुम कर आये हो उसे समेटने में बड़ी मुश्किल आएगी.

बाबा मेरे पास आये , मेरे काँधे पर हाथ रखा और कुछ कदम हम साथ चलने लगे.

बाबा- एक बेटे ने बाप को उलाहना दिया है , देना भी चाहिए . ये सोलह साल सोलह जनम जैसे बीते है तुम्हारे लिए भी और मेरे लिए भी . हो सकता है तुम्हारा गुनेह्गर हूँ मैं, पर एक दिन तुम जान जाओगे , तुम समझ जाओगे.

बाबा ने मेरे सर पर हाथ रखा और बोले- किसी ज़माने में मैं भी ऐसा ही था. रुद्रपुर से दूर रहना .

एक तूफ़ान जिसे मीता ने टाल दिया था . पर कितनी देर के लिए . मैं रीना को समझाना चाहता था पर मीता मुझे वहां से ले आई. थोड़ी दूर पर ही संध्या चाची खड़ी थी अपने सीने पर हाथ रखे.

चाची- कुछ पलो के लिए मैं डर ही गयी थी की कहीं बाप बेटा आमने सामने न हो जाये.

मैं- क्या होता फिर. जब मैंने कुछ किया ही नहीं तो मुझे क्यों डरना किसी से , वैसे भी टुटा हुआ शिवाला गवाह है , कोई भी जाकर देख सकता है उसे

चाची- कैसे हुआ ये अनर्थ

मीता- आपकी क्या दिलचस्पी है इतनी शिवाले में

चाची ने घुर कर मीता को देखा और बोली- तुम चुप रहो लड़की . तुम्हे बीच में बोलने का हक़ नहीं है

मीता- मुझे किस बात का हक़ है , किसका नहीं ये आप निर्धारित करने वाली कौन होती है .

चाची- इसकी दोस्त है इसलिए तू मेरे घर में है , वर्ना तुझे गली से न गुजरने दू.

मीता- मनीष की दोस्त हूँ तो हक़ तो अपने आप ही हो गया मेरा. रही बात गली, मोहल्ले , गाँवो की तो मैं आज तुमसे एक बात कहती हूँ , वक्त का पासा पलट रहा है , वर्तमान सवाल बन कर अतीत की खाल उधेड़ने को बेताब है . वो दिन दूर नहीं है जब मैं सवाल बन कर तुम्हारे सामने खड़ी रहूंगी और तुम्हारे पास कुछ नहीं होगा. मेरा कहा याद रखना .तुम हक़ की बात करती हो , वो जगह, वो अतीत वो सब कुछ तुम्हारा होगा , मेरा सिर्फ सवाल होगा. उस दिन हक़ की बात होगी.

संध्या- मनीष इसे चुप कर ले. मेरा दिमाग ख़राब कर रही है ये, जेठ जी लौट आये है ये बड़ी बात है . रीना की माँ के कातिल को तलाशने में रात दिन एक कर देंगे वो

मैं- ऐसा क्या है की मुझसे ज्यादा उन्हें रीना की फ़िक्र है .

चाची- काश मैं जानती,

मैं- समस्या तो यही है की तुम कुछ जानती ही नहीं , कितनी भोली हो तुम.

गाँव से थोडा बाहर आकर मैं और मीता एक पानी की टंकी पर बनी खेली पर बैठ गए.

मैं- मीता मैं अपना वादा जरुर पूरा करूँगा. तू देखना पृथ्वी को लात मार कर हवेली से बाहर निकाल दूंगा, फिर तू रहना आराम से वहां पर.

मीता- मुझे हवेली की कोई चाहत नहीं

मैं- पर मैं तुझे तेरा हक़ जरुर लौटा दूंगा.

मीता- वक्त आएगा तो देखेंगे. फिलहाल मेरी चिंताए दूसरी है .

मैं- तू कहे तो अभी के अभी रुद्रपुर जाकर हवेली से घसीट कर बाहर कर दू पृथ्वी को

मीता- रुद्रपुर तो जाना ही है पर किसी और काम के लिए . और मुझे लगता है की यही ठीक समय है किसी से मिलने का

मैं- किस से . .


मीता- अतीत के एक घटिया पन्ने को पलटने का समय आ गया है.
Kisi ne to sath diya manish ka ...
 

tanesh

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किस्मत, हाँ ये निगोड़ी किस्मत ही तो थी जो मुझसे मजाक कर रही थी . जिस पल का मैंने बरसों इंतज़ार किया था की एक दिन आयेगा जब मेरा बाप मुझे अपने सीने से लगा लेगा. उस दिन मेरे सारे दुःख आंसू बन कर बह जायेंगे, किस्मत ने वो दिन तो मेरे सामने ला खड़ा दिया था पर सामने जो सक्श था वो मेरा बाप नहीं चौधरी अर्जुन सिंह खड़ा था , अपने उस गुरुर में तना हुआ जिसकी बाते मैंने गाँव वालो से सुनी थी .

“बेशक तू मेरा बेटा है , पर जो पाप तूने किया है उसकी सजा तुझे जरुर मिलेगी, एक बेटी को उसकी माँ से जुदा करके जो तूने अन्याय किया है उसकी सजा तुझे मेरे हाथो से ही मिलेगी ” बाबा ने मेरा गिरबान पकड़ लिया.

“मनीष को छोड़ दो बाबा, आपकी किसी भी सजा को न ये मानेगा और ना मैं इसे मानने दूंगी. न्याय की मूर्ति चौधरी साहब, आप इतना तो जानते ही है की आरोप को साबित करने के ठोस प्रमाण की आवशयकता होती है , और मनीष ने रीना की माँ को नहीं मारा इसका सबूत मैं हूँ ” मीता ने कहा

बाबा ने अपनी पकड़ मेरे कालर से ढीली कर दी और बोले- लड़की , सबूतों का होना कई बार जरुरी नहीं होता, जरुरी होता है उद्देश्य

मीता- चौधरी साहब मैंने बचपन से सुना है की न्याय का दूसरा नाम है चौधरी अर्जुन सिंह ,तो फिर ये अन्याय कैसे कर सकते है , मैं जल उठाने को तैयार हूँ मैं दावे से कहती हूँ की मनीष रीना की माँ का कातिल नहीं है कतल कल रात हुआ है , और कल रात मनीष इस गाँव में था ही नहीं ....

बाबा- तुम्हारे आलावा कोई और है जो ये गवाही दे सके

मीता- हैं ना हमारे पास गवाह , रुद्रपुर का टुटा शिवाला गवाह है मनीष की सच्चाई का, आपकी बंजर जमीन चीख चीख कर कहेगी आप से की कल रात मनीष और मैं रुद्रपुर के शिवाले में थे, उसके बाद आपकी बंजर जमीन पर थे.

“क्या कहा तूने बेटी ” बाबा की आवाज एकदम से कमजोर हो चली थी .

मीता- मैंने कहा की जब कल रात शिवाला टुटा तो मैं और मनीष वहीँ पर थे .

“शिवाला टूट गया ” बाबा बस इतना ही कह पाए और वहां से चलने लगे.

मैं- आप ऐसे नहीं जा सकते बाबा, थोड़ी देर पहले ही आपने कहा था की एक बेटी को माँ से जुदा करने की सजा आप मुझे जरुर देंगे, तो एक सवाल मेरा भी है मुझे आपसे जुदा करने के लिए आपकी क्या सजा होगी, सबको न्याय देने वाले चौधरी साहब से उनका बेटा अपना इंसाफ मांगता है , सोलह साल मैंने बिना बाप के जिए है , उन सोलह सालो का हिसाब चाहिए मुझे, आप ऐसे नहीं जा सकते, आपको मुझे न्याय देना ही होगा.

बाबा ने मुड कर मुझे देखा और बोले- काबिल औलादे सवाल नहीं करती, वो हाथ फैला कर नहीं मांगती, वो अपना हक़ छीन लेती है . इस पल मुझे कहीं जाना है पर मैं तुमसे मिलूँगा जरुर. जो तुम कर आये हो उसे समेटने में बड़ी मुश्किल आएगी.

बाबा मेरे पास आये , मेरे काँधे पर हाथ रखा और कुछ कदम हम साथ चलने लगे.

बाबा- एक बेटे ने बाप को उलाहना दिया है , देना भी चाहिए . ये सोलह साल सोलह जनम जैसे बीते है तुम्हारे लिए भी और मेरे लिए भी . हो सकता है तुम्हारा गुनेह्गर हूँ मैं, पर एक दिन तुम जान जाओगे , तुम समझ जाओगे.

बाबा ने मेरे सर पर हाथ रखा और बोले- किसी ज़माने में मैं भी ऐसा ही था. रुद्रपुर से दूर रहना .

एक तूफ़ान जिसे मीता ने टाल दिया था . पर कितनी देर के लिए . मैं रीना को समझाना चाहता था पर मीता मुझे वहां से ले आई. थोड़ी दूर पर ही संध्या चाची खड़ी थी अपने सीने पर हाथ रखे.

चाची- कुछ पलो के लिए मैं डर ही गयी थी की कहीं बाप बेटा आमने सामने न हो जाये.

मैं- क्या होता फिर. जब मैंने कुछ किया ही नहीं तो मुझे क्यों डरना किसी से , वैसे भी टुटा हुआ शिवाला गवाह है , कोई भी जाकर देख सकता है उसे

चाची- कैसे हुआ ये अनर्थ

मीता- आपकी क्या दिलचस्पी है इतनी शिवाले में

चाची ने घुर कर मीता को देखा और बोली- तुम चुप रहो लड़की . तुम्हे बीच में बोलने का हक़ नहीं है

मीता- मुझे किस बात का हक़ है , किसका नहीं ये आप निर्धारित करने वाली कौन होती है .

चाची- इसकी दोस्त है इसलिए तू मेरे घर में है , वर्ना तुझे गली से न गुजरने दू.

मीता- मनीष की दोस्त हूँ तो हक़ तो अपने आप ही हो गया मेरा. रही बात गली, मोहल्ले , गाँवो की तो मैं आज तुमसे एक बात कहती हूँ , वक्त का पासा पलट रहा है , वर्तमान सवाल बन कर अतीत की खाल उधेड़ने को बेताब है . वो दिन दूर नहीं है जब मैं सवाल बन कर तुम्हारे सामने खड़ी रहूंगी और तुम्हारे पास कुछ नहीं होगा. मेरा कहा याद रखना .तुम हक़ की बात करती हो , वो जगह, वो अतीत वो सब कुछ तुम्हारा होगा , मेरा सिर्फ सवाल होगा. उस दिन हक़ की बात होगी.

संध्या- मनीष इसे चुप कर ले. मेरा दिमाग ख़राब कर रही है ये, जेठ जी लौट आये है ये बड़ी बात है . रीना की माँ के कातिल को तलाशने में रात दिन एक कर देंगे वो

मैं- ऐसा क्या है की मुझसे ज्यादा उन्हें रीना की फ़िक्र है .

चाची- काश मैं जानती,

मैं- समस्या तो यही है की तुम कुछ जानती ही नहीं , कितनी भोली हो तुम.

गाँव से थोडा बाहर आकर मैं और मीता एक पानी की टंकी पर बनी खेली पर बैठ गए.

मैं- मीता मैं अपना वादा जरुर पूरा करूँगा. तू देखना पृथ्वी को लात मार कर हवेली से बाहर निकाल दूंगा, फिर तू रहना आराम से वहां पर.

मीता- मुझे हवेली की कोई चाहत नहीं

मैं- पर मैं तुझे तेरा हक़ जरुर लौटा दूंगा.

मीता- वक्त आएगा तो देखेंगे. फिलहाल मेरी चिंताए दूसरी है .

मैं- तू कहे तो अभी के अभी रुद्रपुर जाकर हवेली से घसीट कर बाहर कर दू पृथ्वी को

मीता- रुद्रपुर तो जाना ही है पर किसी और काम के लिए . और मुझे लगता है की यही ठीक समय है किसी से मिलने का

मैं- किस से . .


मीता- अतीत के एक घटिया पन्ने को पलटने का समय आ गया है.
और राज ,और ज्यादा गहरा गये....
शानदार update bhai, अतीत के घटिया पन्ने पर कौन कौन छुपा है ये राज लगता है अब खुलने वाला है
 

A.A.G.

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किस्मत, हाँ ये निगोड़ी किस्मत ही तो थी जो मुझसे मजाक कर रही थी . जिस पल का मैंने बरसों इंतज़ार किया था की एक दिन आयेगा जब मेरा बाप मुझे अपने सीने से लगा लेगा. उस दिन मेरे सारे दुःख आंसू बन कर बह जायेंगे, किस्मत ने वो दिन तो मेरे सामने ला खड़ा दिया था पर सामने जो सक्श था वो मेरा बाप नहीं चौधरी अर्जुन सिंह खड़ा था , अपने उस गुरुर में तना हुआ जिसकी बाते मैंने गाँव वालो से सुनी थी .

“बेशक तू मेरा बेटा है , पर जो पाप तूने किया है उसकी सजा तुझे जरुर मिलेगी, एक बेटी को उसकी माँ से जुदा करके जो तूने अन्याय किया है उसकी सजा तुझे मेरे हाथो से ही मिलेगी ” बाबा ने मेरा गिरबान पकड़ लिया.

“मनीष को छोड़ दो बाबा, आपकी किसी भी सजा को न ये मानेगा और ना मैं इसे मानने दूंगी. न्याय की मूर्ति चौधरी साहब, आप इतना तो जानते ही है की आरोप को साबित करने के ठोस प्रमाण की आवशयकता होती है , और मनीष ने रीना की माँ को नहीं मारा इसका सबूत मैं हूँ ” मीता ने कहा

बाबा ने अपनी पकड़ मेरे कालर से ढीली कर दी और बोले- लड़की , सबूतों का होना कई बार जरुरी नहीं होता, जरुरी होता है उद्देश्य

मीता- चौधरी साहब मैंने बचपन से सुना है की न्याय का दूसरा नाम है चौधरी अर्जुन सिंह ,तो फिर ये अन्याय कैसे कर सकते है , मैं जल उठाने को तैयार हूँ मैं दावे से कहती हूँ की मनीष रीना की माँ का कातिल नहीं है कतल कल रात हुआ है , और कल रात मनीष इस गाँव में था ही नहीं ....

बाबा- तुम्हारे आलावा कोई और है जो ये गवाही दे सके

मीता- हैं ना हमारे पास गवाह , रुद्रपुर का टुटा शिवाला गवाह है मनीष की सच्चाई का, आपकी बंजर जमीन चीख चीख कर कहेगी आप से की कल रात मनीष और मैं रुद्रपुर के शिवाले में थे, उसके बाद आपकी बंजर जमीन पर थे.

“क्या कहा तूने बेटी ” बाबा की आवाज एकदम से कमजोर हो चली थी .

मीता- मैंने कहा की जब कल रात शिवाला टुटा तो मैं और मनीष वहीँ पर थे .

“शिवाला टूट गया ” बाबा बस इतना ही कह पाए और वहां से चलने लगे.

मैं- आप ऐसे नहीं जा सकते बाबा, थोड़ी देर पहले ही आपने कहा था की एक बेटी को माँ से जुदा करने की सजा आप मुझे जरुर देंगे, तो एक सवाल मेरा भी है मुझे आपसे जुदा करने के लिए आपकी क्या सजा होगी, सबको न्याय देने वाले चौधरी साहब से उनका बेटा अपना इंसाफ मांगता है , सोलह साल मैंने बिना बाप के जिए है , उन सोलह सालो का हिसाब चाहिए मुझे, आप ऐसे नहीं जा सकते, आपको मुझे न्याय देना ही होगा.

बाबा ने मुड कर मुझे देखा और बोले- काबिल औलादे सवाल नहीं करती, वो हाथ फैला कर नहीं मांगती, वो अपना हक़ छीन लेती है . इस पल मुझे कहीं जाना है पर मैं तुमसे मिलूँगा जरुर. जो तुम कर आये हो उसे समेटने में बड़ी मुश्किल आएगी.

बाबा मेरे पास आये , मेरे काँधे पर हाथ रखा और कुछ कदम हम साथ चलने लगे.

बाबा- एक बेटे ने बाप को उलाहना दिया है , देना भी चाहिए . ये सोलह साल सोलह जनम जैसे बीते है तुम्हारे लिए भी और मेरे लिए भी . हो सकता है तुम्हारा गुनेह्गर हूँ मैं, पर एक दिन तुम जान जाओगे , तुम समझ जाओगे.

बाबा ने मेरे सर पर हाथ रखा और बोले- किसी ज़माने में मैं भी ऐसा ही था. रुद्रपुर से दूर रहना .

एक तूफ़ान जिसे मीता ने टाल दिया था . पर कितनी देर के लिए . मैं रीना को समझाना चाहता था पर मीता मुझे वहां से ले आई. थोड़ी दूर पर ही संध्या चाची खड़ी थी अपने सीने पर हाथ रखे.

चाची- कुछ पलो के लिए मैं डर ही गयी थी की कहीं बाप बेटा आमने सामने न हो जाये.

मैं- क्या होता फिर. जब मैंने कुछ किया ही नहीं तो मुझे क्यों डरना किसी से , वैसे भी टुटा हुआ शिवाला गवाह है , कोई भी जाकर देख सकता है उसे

चाची- कैसे हुआ ये अनर्थ

मीता- आपकी क्या दिलचस्पी है इतनी शिवाले में

चाची ने घुर कर मीता को देखा और बोली- तुम चुप रहो लड़की . तुम्हे बीच में बोलने का हक़ नहीं है

मीता- मुझे किस बात का हक़ है , किसका नहीं ये आप निर्धारित करने वाली कौन होती है .

चाची- इसकी दोस्त है इसलिए तू मेरे घर में है , वर्ना तुझे गली से न गुजरने दू.

मीता- मनीष की दोस्त हूँ तो हक़ तो अपने आप ही हो गया मेरा. रही बात गली, मोहल्ले , गाँवो की तो मैं आज तुमसे एक बात कहती हूँ , वक्त का पासा पलट रहा है , वर्तमान सवाल बन कर अतीत की खाल उधेड़ने को बेताब है . वो दिन दूर नहीं है जब मैं सवाल बन कर तुम्हारे सामने खड़ी रहूंगी और तुम्हारे पास कुछ नहीं होगा. मेरा कहा याद रखना .तुम हक़ की बात करती हो , वो जगह, वो अतीत वो सब कुछ तुम्हारा होगा , मेरा सिर्फ सवाल होगा. उस दिन हक़ की बात होगी.

संध्या- मनीष इसे चुप कर ले. मेरा दिमाग ख़राब कर रही है ये, जेठ जी लौट आये है ये बड़ी बात है . रीना की माँ के कातिल को तलाशने में रात दिन एक कर देंगे वो

मैं- ऐसा क्या है की मुझसे ज्यादा उन्हें रीना की फ़िक्र है .

चाची- काश मैं जानती,

मैं- समस्या तो यही है की तुम कुछ जानती ही नहीं , कितनी भोली हो तुम.

गाँव से थोडा बाहर आकर मैं और मीता एक पानी की टंकी पर बनी खेली पर बैठ गए.

मैं- मीता मैं अपना वादा जरुर पूरा करूँगा. तू देखना पृथ्वी को लात मार कर हवेली से बाहर निकाल दूंगा, फिर तू रहना आराम से वहां पर.

मीता- मुझे हवेली की कोई चाहत नहीं

मैं- पर मैं तुझे तेरा हक़ जरुर लौटा दूंगा.

मीता- वक्त आएगा तो देखेंगे. फिलहाल मेरी चिंताए दूसरी है .

मैं- तू कहे तो अभी के अभी रुद्रपुर जाकर हवेली से घसीट कर बाहर कर दू पृथ्वी को

मीता- रुद्रपुर तो जाना ही है पर किसी और काम के लिए . और मुझे लगता है की यही ठीक समय है किसी से मिलने का

मैं- किस से . .


मीता- अतीत के एक घटिया पन्ने को पलटने का समय आ गया है.
nice update..!!
yeh toh reena khud janti hai ki manish ne reena ki maa ko nahi maara..lekin yeh arjun apne hi bete ka gireban pakad raha hai..meeta kisi chattan ki tarah khadi rahi manish ke sath aur arjun ko jawab bhi diya..yeh saale arjun ko shivale ki fikr hai, reena ki fikr hai lekin khud ke bete se sidhe muh baat tak nahi ki usne..!! yeh sandhya hamesha ek hi chiz bolti hai ki woh kuchh nahi janti..manish aur meeta ne usse achhese jawab bhi de diya..!! ab toh prithvi ka antim samay aagaya hai..woh jarur marega manish aur meeta ke haato..ab dekhte hai meeta manish ke sath kaun se atit ke ghatiya panne ko palatati hai..!!
 

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किस्मत, हाँ ये निगोड़ी किस्मत ही तो थी जो मुझसे मजाक कर रही थी . जिस पल का मैंने बरसों इंतज़ार किया था की एक दिन आयेगा जब मेरा बाप मुझे अपने सीने से लगा लेगा. उस दिन मेरे सारे दुःख आंसू बन कर बह जायेंगे, किस्मत ने वो दिन तो मेरे सामने ला खड़ा दिया था पर सामने जो सक्श था वो मेरा बाप नहीं चौधरी अर्जुन सिंह खड़ा था , अपने उस गुरुर में तना हुआ जिसकी बाते मैंने गाँव वालो से सुनी थी .

“बेशक तू मेरा बेटा है , पर जो पाप तूने किया है उसकी सजा तुझे जरुर मिलेगी, एक बेटी को उसकी माँ से जुदा करके जो तूने अन्याय किया है उसकी सजा तुझे मेरे हाथो से ही मिलेगी ” बाबा ने मेरा गिरबान पकड़ लिया.

“मनीष को छोड़ दो बाबा, आपकी किसी भी सजा को न ये मानेगा और ना मैं इसे मानने दूंगी. न्याय की मूर्ति चौधरी साहब, आप इतना तो जानते ही है की आरोप को साबित करने के ठोस प्रमाण की आवशयकता होती है , और मनीष ने रीना की माँ को नहीं मारा इसका सबूत मैं हूँ ” मीता ने कहा

बाबा ने अपनी पकड़ मेरे कालर से ढीली कर दी और बोले- लड़की , सबूतों का होना कई बार जरुरी नहीं होता, जरुरी होता है उद्देश्य

मीता- चौधरी साहब मैंने बचपन से सुना है की न्याय का दूसरा नाम है चौधरी अर्जुन सिंह ,तो फिर ये अन्याय कैसे कर सकते है , मैं जल उठाने को तैयार हूँ मैं दावे से कहती हूँ की मनीष रीना की माँ का कातिल नहीं है कतल कल रात हुआ है , और कल रात मनीष इस गाँव में था ही नहीं ....

बाबा- तुम्हारे आलावा कोई और है जो ये गवाही दे सके

मीता- हैं ना हमारे पास गवाह , रुद्रपुर का टुटा शिवाला गवाह है मनीष की सच्चाई का, आपकी बंजर जमीन चीख चीख कर कहेगी आप से की कल रात मनीष और मैं रुद्रपुर के शिवाले में थे, उसके बाद आपकी बंजर जमीन पर थे.

“क्या कहा तूने बेटी ” बाबा की आवाज एकदम से कमजोर हो चली थी .

मीता- मैंने कहा की जब कल रात शिवाला टुटा तो मैं और मनीष वहीँ पर थे .

“शिवाला टूट गया ” बाबा बस इतना ही कह पाए और वहां से चलने लगे.

मैं- आप ऐसे नहीं जा सकते बाबा, थोड़ी देर पहले ही आपने कहा था की एक बेटी को माँ से जुदा करने की सजा आप मुझे जरुर देंगे, तो एक सवाल मेरा भी है मुझे आपसे जुदा करने के लिए आपकी क्या सजा होगी, सबको न्याय देने वाले चौधरी साहब से उनका बेटा अपना इंसाफ मांगता है , सोलह साल मैंने बिना बाप के जिए है , उन सोलह सालो का हिसाब चाहिए मुझे, आप ऐसे नहीं जा सकते, आपको मुझे न्याय देना ही होगा.

बाबा ने मुड कर मुझे देखा और बोले- काबिल औलादे सवाल नहीं करती, वो हाथ फैला कर नहीं मांगती, वो अपना हक़ छीन लेती है . इस पल मुझे कहीं जाना है पर मैं तुमसे मिलूँगा जरुर. जो तुम कर आये हो उसे समेटने में बड़ी मुश्किल आएगी.

बाबा मेरे पास आये , मेरे काँधे पर हाथ रखा और कुछ कदम हम साथ चलने लगे.

बाबा- एक बेटे ने बाप को उलाहना दिया है , देना भी चाहिए . ये सोलह साल सोलह जनम जैसे बीते है तुम्हारे लिए भी और मेरे लिए भी . हो सकता है तुम्हारा गुनेह्गर हूँ मैं, पर एक दिन तुम जान जाओगे , तुम समझ जाओगे.

बाबा ने मेरे सर पर हाथ रखा और बोले- किसी ज़माने में मैं भी ऐसा ही था. रुद्रपुर से दूर रहना .

एक तूफ़ान जिसे मीता ने टाल दिया था . पर कितनी देर के लिए . मैं रीना को समझाना चाहता था पर मीता मुझे वहां से ले आई. थोड़ी दूर पर ही संध्या चाची खड़ी थी अपने सीने पर हाथ रखे.

चाची- कुछ पलो के लिए मैं डर ही गयी थी की कहीं बाप बेटा आमने सामने न हो जाये.

मैं- क्या होता फिर. जब मैंने कुछ किया ही नहीं तो मुझे क्यों डरना किसी से , वैसे भी टुटा हुआ शिवाला गवाह है , कोई भी जाकर देख सकता है उसे

चाची- कैसे हुआ ये अनर्थ

मीता- आपकी क्या दिलचस्पी है इतनी शिवाले में

चाची ने घुर कर मीता को देखा और बोली- तुम चुप रहो लड़की . तुम्हे बीच में बोलने का हक़ नहीं है

मीता- मुझे किस बात का हक़ है , किसका नहीं ये आप निर्धारित करने वाली कौन होती है .

चाची- इसकी दोस्त है इसलिए तू मेरे घर में है , वर्ना तुझे गली से न गुजरने दू.

मीता- मनीष की दोस्त हूँ तो हक़ तो अपने आप ही हो गया मेरा. रही बात गली, मोहल्ले , गाँवो की तो मैं आज तुमसे एक बात कहती हूँ , वक्त का पासा पलट रहा है , वर्तमान सवाल बन कर अतीत की खाल उधेड़ने को बेताब है . वो दिन दूर नहीं है जब मैं सवाल बन कर तुम्हारे सामने खड़ी रहूंगी और तुम्हारे पास कुछ नहीं होगा. मेरा कहा याद रखना .तुम हक़ की बात करती हो , वो जगह, वो अतीत वो सब कुछ तुम्हारा होगा , मेरा सिर्फ सवाल होगा. उस दिन हक़ की बात होगी.

संध्या- मनीष इसे चुप कर ले. मेरा दिमाग ख़राब कर रही है ये, जेठ जी लौट आये है ये बड़ी बात है . रीना की माँ के कातिल को तलाशने में रात दिन एक कर देंगे वो

मैं- ऐसा क्या है की मुझसे ज्यादा उन्हें रीना की फ़िक्र है .

चाची- काश मैं जानती,

मैं- समस्या तो यही है की तुम कुछ जानती ही नहीं , कितनी भोली हो तुम.

गाँव से थोडा बाहर आकर मैं और मीता एक पानी की टंकी पर बनी खेली पर बैठ गए.

मैं- मीता मैं अपना वादा जरुर पूरा करूँगा. तू देखना पृथ्वी को लात मार कर हवेली से बाहर निकाल दूंगा, फिर तू रहना आराम से वहां पर.

मीता- मुझे हवेली की कोई चाहत नहीं

मैं- पर मैं तुझे तेरा हक़ जरुर लौटा दूंगा.

मीता- वक्त आएगा तो देखेंगे. फिलहाल मेरी चिंताए दूसरी है .

मैं- तू कहे तो अभी के अभी रुद्रपुर जाकर हवेली से घसीट कर बाहर कर दू पृथ्वी को

मीता- रुद्रपुर तो जाना ही है पर किसी और काम के लिए . और मुझे लगता है की यही ठीक समय है किसी से मिलने का

मैं- किस से . .


मीता- अतीत के एक घटिया पन्ने को पलटने का समय आ गया है.
वक्त का पासा पलट रहा है , वर्तमान सवाल बन कर अतीत की खाल उधेड़ने को बेताब है .
:bow:
Sabdo ka aisa jaal bun-na sirf aap hi kar sakte ho , hats off to your writing sir ji :bow:
 
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