#64
मैं- अब मुझे परवाह नहीं है किसी की भी परिवार से मेरा मोह छूटा . जिसको भी मैंने अपना समझा उसी ने मेरी राह में कांटे बिछाए. उस घर में मेरे रहने की एक वजह तुम भी थी , मैंने तुमसे कहा था की ये सब कम बंद करो तुम पर तुमने नहीं मानी. अब मूझे न कुछ कहना है , न सुनना है मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो . इस जिंदगी को कैसे जीना है मैं अपने तरीके से देख लूँगा.
ताई- मैंने तुझसे पहले ही कहा था गड़े मुर्दे मत उखाड़, कुछ नहीं मिलना सड़ांध के सिवा.
मैं- जा सकती हो तुम और लौट कर कभी मत आना मेरे पास
मेरी बात सुनकर ताई आहत हुई और वापिस लौट गयी . ये ऐसे हालात थे जब मुझे सबसे ज्यादा परिवार की जरुरत थी पर इसी परिवार ने मुझे कदम कदम पर धोखा दिया था . ढलती शाम में मैं बावड़ी के पत्थर पर पड़ा था की मैंने मीता को आते देखा.
“कैसे हो ” उसने मेरे पास बैठते हुए कहा
मैं- बस जिन्दा हूँ
मीता- चलो बढ़िया है ,मैंने सुना गाँव में बवाल काटा हुआ है तूने,
मैं- जब तुझे मालूम ही है तो फिर क्यों पूछती है .
मीता- ये आशिकी भी न , ये मोहब्बत के किस्से, वो तमाम कहानिया जो मैंने पढ़ी थी, वो सब तेरे आगे झूठे से लगते है , मुझे मोहब्बत में कभी भी यकीन नहीं था जब तक की मैं तुझसे नहीं मिली थी तू जो मेरी जिन्दगी में आया , तुझे जो मैंने जाना , तेरे संग जो मैं जी रही हूँ . अक्सर मैं सोचती हूँ तू क्या चीज है , तूने मुझ पर ये कैसा रंग डाला है , तू कैसा रंगरेज है जो मुझे ही नहीं जो भी तुझसे मिले उसें रंग डालता है अपने रंग में .
मैं- बड़ी तारीफ हो रही है क्या है तेरे मन में
मीता- तू कहे तो आज मैं बता दू.
मैं- तुझे पूछने की जरुरत नहीं .
मीता- मैं ये मालूम करना चाहती हूँ की जब आजतक मैंने उस हवेली में कदम नहीं रखा तो वहां पर मेरी तस्वीर कैसे है , क्या दद्दा ठाकुर मेरी असलियत जानता है या उस घर में कोई और . ये सवाल मुझे पागल किये हुए है ,
मैं- इतनी सी बात के लिए परेशां है तू, तू कहे तो अभी के अभी चलते है हवेली में .
मीता- हाँ कितना आसान है न .
मैं- मैंने तुझसे वादा किया है तू हवेली की वारिस है जितना तेरा हक़ है वहां तुझे दिला कर रहूँगा मैं.
मीता- ठीक है ठीक है . वैसे तुझे रीना से मिलना चाहिए, वो परेशां होगी . तू बात करेगा तो अच्छा लगेगा उसे.
मैं- मन तो मेरा भी है पर उसकी माँ उसे अकेला छोड़ ही नहीं रही , उसके घर जाऊंगा तो फिर वही तमाशा होगा.
मीता- वो शिवाले में जरुर आएगी , वहां मिल लेना
मैं- अवश्य , फिलहाल अगर तू दो रोटी पका ले तो काम बन जाये सुबह से कुछ नहीं खाया मैंने आज.
मीता- अगर तू तारबंदी कर ले तो मैं कुछ सब्जिया बो दू, कुछ मुर्गियां पाल लू.
मैं- ख्याल तो ठीकहै वैसे भी अब मुझे यही पर रहना है .
मीता- अभी मेरी इच्छा नहीं है खाना बनाने की .
मैं- रहने दे फिर.
मीता- आज रात हम दोनों शिवाले पर चलेंगे. खोज करेंगे कोई तो बात मालूम हो की ये क्या किस्सा है क्या माजरा है . नाह्र्विर किसकी सुरक्षा करते है वहां पर.
मैं- तू पूछ सकती है उनसे
मीता- जिसने उनको साधा है वो ही बात आकर सकता है
मैं- कितना अच्छा होता जो हम इन सब चक्करों से दूर रहते .
मीता- नियति का खेल है सब , हम तो कठपुतलिया है जिस तरफ वो ले जाए ,उसके इशारे पर चल देते है .
मैं- आज जब हम शिवाले जायेंगे तो खाली हाथ नहीं आयेंगे चाहे कुछ भी हो जाये.
जब रात ने दुनिया को अपने आगोश में लिया. तो हम दोनों शिवाले की तरफ चल दिए. आज मौसम शांत सा था . हवा भी नहीं चल रही थी शिवाला गहरे अँधेरे में डूबा था .
“कहाँ से शुरू करे, इतने बड़े क्षेत्र में कहाँ क्या छिपा हो सकता है ” मैंने कहा
मीता- बात तो सही है तुम्हारी , कड़ीयो को जोड़ने की कोशिश करते है .
सबसे पहले हमने उस कमरे की छान बिन करनी शुरू की जिसमे देवता था , एक एक दिवार को देखा की कहीं से कुछ खाली तो नहीं , मैं ये भी जानता था की ये शिवाला मामूली नहीं है जिसे छिपाया गया है वो मेरे सामने भी हो तो भी आसान कहाँ होगा उसे तलाशना तंत्र, मन्त्र और न जाने क्या क्या किया गया था यहाँ पर.
बहुत मेहनत के बाद भी जब कुछ नहीं मिला तो थक हार कर मैं पत्थरों की सीढियों पर बैठ गया .
मीता- मैं पानी लेकर आती हूँ .
दोपल के लिए मैंने अपनी आँखे बंद की मुझे वो लम्हा याद आया जब रीना और मैं यही पर थे. उसने मेरे लबो को चूमा था . कैसे उसका वो चुम्बन मेरे दिल को चीर गया था . एक मिनट , एक मिनट दिल , इस पुरी जगह का दिल था ये स्थान जहाँ पर मैं था , दिल चीर गया था वो लम्हा, इसी समय मुझे ये ख्याल आना क्या किसी तरह का संकेत था मेरे लिए. क्या किस्मत मुझ पर मेहरबान हो सकती थी . क्या मेरा ये ख्याल उस राज़ को खोल सकता था जिसकी डोर सबसे बंधी थी .
मैंने देवता की मूर्ति को जोर लगाकर उखाड़ लिया . यदपि ये ऐसा कार्य था जो अनुचित था , पर मैंने ये कर दिया. इधर उधर ढूँढने पर मुझे लोहे की इक संभल मिल गयी जिस से मैंने वहां पर खोदना शुरू किया. गीली मिटटी इधर उधर फैलने लगी . तभी मीता वहां पर आ गयी .
मीता- ये क्या अनर्थ कर दिया तूने , इसका परिणाम
मैं- मुझे लगता है ये हमें नयी दिशा दिखायेगा.
मीता- मनीष, ये पाप है .
मैं- जानता हूँ
तभी मेरी संभल किसी चीज से टकराई . मिटटी साफ़ की तो देखा की ये एक हांडी थी जिस पर लाल कपडा बंधा हुआ था .
मीता- ये तो ठीक वैसी ही है जैसी हौदी में मिली थी .
मैं- शायद वो इशारा इसके लिए ही था .
मीता- मुझे कुछ ठीक नहीं लग रहा .
मैं- खोल कर देखे क्या
मीता- मैं नहीं जानती की इसके अन्दर क्या है पर अगर इसे देवता के चरणों में रखा गया तो इसका महत्त्व जरुर है .
मैं इस से पहले की मीता को कुछ जवाब दे पाता, हांडी भारी होने लगी . उसका वजह बढ़ने लगा. मैं उसे संभाल नहीं पा रहा था .
मैं- मीता, थाम जरा इसे .
पर इस से पहले की मीता मुझ तक पहुँच पाती एक जोर का धमाका हुआ , इतना जोर का धमाका की मैं अपनी सुध बुधलगभग खो ही बैठा. सब कुछ धुल धुल हो गया. अचानक से हुआ की मैंने खुद को हवा में उड़ते हुए देखा. जब धुल का अम्बार हटा तो मैंने देखा की मीता थोड़ी दुरी पर बेहोश पड़ी है. मेरे पैर पर शिवाले का खम्बा गिरा हुआ था . मैंने जैसे तैसे उसे हटाया और मीता को देखा. सच कहूँ तो मीता से जायदा मेरी दिलचस्पी अब शिवाले में थे.
सब कुछ तबाह हो गया था . शिवाले की सभी दीवारे गिर गयी थी . आस पास के पेड़ चबूतरे ,जहाँ तक भी शिवाले की हद थी सब तहस नहस हो गया था . कुछ भी नहीं था सिवाय मलबे के. ऐसा क्या था उस हांडी में . मैंने मीता के मुह पर पानी के छींटे मारे और उसे होश में लाया. मैंने देखा जहाँ पर संध्या चाची ने अपने मांस का भोग दिया था , जहाँ पर मेरा, रीना और मीता का रक्त बहा था वहां धरती दो हिस्सों में बंट गयी थी और एक गहरा गड्ढा हो गया था जिसके मुहाने पर सात पगड़ीधारी लाशें पड़ी थी .
“नाहर वीरो की लाशे ” मीता ने अपने मुह पर हाथ रखते हुए कहा .
मीता- हमें अभी के अभी निकलना चाहिए यहाँ से .
मीता ने मेरा हाथ थामा और अँधेरे में हम लौट पड़े. रस्ते में हमने देखा की वो ग्यारह पीपल एक के बाद एक धरती पर पड़े थे. जैसे किसी ने उखाड़ कर फेंक दिया हो.
मीता-अनर्थ , घोर अनर्थ.
बेकाबू धडकनों को लिए हम मेरी जमीन की दहलीज पर पहुंचे ही थे की एक और नजारा जैसे हमारा ही इंतज़ार कर रहा था . वो बावड़ी दो टुकडो में बंटी पड़ी थी . जैसे बीचोबीच किसी ने दो हिस्से कर दिए हो उसके. दूर दूर तक धरती गीली हो गयी थी पानी से , पर क्या वो सचमुच पानी था . .............................