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#58
सुनार की घरवाली तेज तेज चलते हुए हमारी तरफ ही आ रही थी , पर किसलिए ये देखना था .
काकी- पिछले कुछ दिनों से मैं तुमसे मिलना चाह रही थी .
मैं- कुछ काम था क्या
काकी ने एक नजर डाली मीता पर और बोली- अकेले में बात हो सकती है
मैं- सब अपने ही है खुल कर कहो जो कहना है
काकी- लालाजी के जाने के बाद मैं ऐसे कुछ पुराणी चीजे जो जरुरत की नहीं थी उन्हें देख रही थी की मुझे कुछ ऐसा मिला जिसे मैं समझ नहीं पायी.
मैं- तो इसमें मेरा क्या लेना देना है .
काकी-मुझे एक चिट्ठी मिली जिसमे लिखा है अर्जुन के वारिस को दे देना, वो समझ जायेगा
मैं- क्या समझ जायेगा
काकी- यही तो उलझन है मेरी, चिट्ठी में बस इतना ही लिखा है ये नहीं लिखा की क्या दे देना .
काकी ने चिट्ठी मेरे हाथ पर रख दी. चमड़े के ऊपर लाल स्याही से लिखे गए शब्द थे . मीता ने भी पढ़ा उसे. एक तो जीवन में कम स्यापे थे ऊपर से ये चुतिया सुनार भी मरते मरते एक पहेली छोड़ गया .
मैं- काकी, जब्बर लाला और मेरे पिता किसी ज़माने में बड़े गहरे दोस्त थे पर उनकी दुश्मनी का क्या कारण था .
काकी- इसका जवाब उन तीनो में से ही कोई दे सकता है .
मैं- लालाजी के सामान को मैं देखना चाहूँगा अगर आपको कोई ऐतराज़ न हो तो .
काकी- मुझे भला क्या दिक्कत होगी, बस तुम अपना जो कुछ भी है वो ले जाओ .
मैं- ठीक है रात को आता हूँ मैं
काकी के जाने के बाद मैं और मीता उस चिट्ठी को देखने लगे.
मीता- अजीब सा चमड़ा है . ऐसी खाल मैंने देखि नहीं कभी
मैं- छोड़ अपने को क्या लेना देना. अपन रात को लाला के घर चलेंगे. तू ही जाना मेरा मन नहीं है .
मैं- क्या हुआ तेरे मन को
मीता- तेरी बातो ने उलझन में डाल दिया है मुझे, तूने कहा की रीना को अश्व मानव याद नहीं उसके घाव याद नहीं पर उसे ये याद थी मैं.
मैं- तू रीना पर शक कर रही है
मीता- नहीं, मैं बस सम्भावना तलाश रही हूँ . मुझे भी परवाह है रीना की . मुझे लगता है की वो बार बार रुद्रपुर जाएगी. उसे तलाश है किसी चीज की , उसकी आँखों में अजीब शिद्दत दिखी थी मुझे. मैं नहीं चल पाऊँगी तेरे साथ .
मैं- ठीक है . मैं ही जाऊँगा.
मीता- कल दोपहर को मिलेंगे फिर हम
मैं- कुछ देर तो रुक साथ मेरे
मीता- मुझे आदत होने लगी है तेरी, और ये आदत ठीक नहीं
मैं- मीता और मनीष एक ही तो है
मीता- ये तू कहता है तेरा दिल नहीं , वो किसी और के लिए धडकता है
मैं-इन धडकनों से अब डरने लगा हूँ मैं
मीता- समझा के रख इनको,
मीता ने अपना झोला उठाया और जाने लगी. कुछ कदम उसके साथ चला और फिर बावड़ी पे जाके बैठ गया .ये शाम ये डूबता सूरज . ये तन्हाई और मैं , मीता का कहना बिलकुल सही था मैं दो नावो की सवारी कर रहा था मेरे लिए रीना सबकुछ थी और मीता जिन्दगी थी . मुझे दोनों से बेपनाह प्यार था . ये जानते हुए भी की वो लम्हा मेरी जान ही ले जायेगा जब ये दोनों आमने सामने आएँगी जब किसी एक का साथ पकड़ना होगा , किसी एक का साथ छोड़ना होगा. सीने पर हाथ रखे मैं पत्थर पर लेटे हुए इसी कशमकश में डूबा था की एक आवाज ने मुझे धरातल पर ला पटका .
“चौधरी ओ चौधरी , तेरी मर्जी हो तो थोडा पानी पी लू ”
मैंने देखा ये वो ही आदमी था जो उस दिन मुझे कुवे पर मिला था . मैं लगभग दौड़ते हुए उसके पास गया .
मैं- तुम यहाँ
आदमी- इधर से गुजर रहा था प्यास लग आई. और आज मैंने पूछा भी है तुमसे
मैंने आँखों से इशारा किया तो उसने अंजुल भरी हौदी से और पीने लगा. उसकी दाढ़ी, मूंछे भीगने लगी पानी से.
“जी भर गया चौधरी , खूब असीश तुमको ” उसने कहा
मैं- जल्दी में नहीं हो तो आओ बैठते है थोड़ी देर.
उसने एक नजर आस पास डाली और बोला- जो तुम्हारी इच्छा चौधरी.
मैं उस से सीधा सीधा नहीं पूछ सकता था मैंने भूमिका बनानी शुरू की .
मैं- तुम किसान हो , मुझे बताओ ये कुवा मीठे पानी का है , पास में नहर है . आसपास का हर खेत फसल उगाता है पर मेरी जमीन ही बंजर क्यों .
आदमी-धरती हमारी माँ होती है चौधरी,और माँ भी संतान को तब तक दूध नहीं पिलाती जब तक की संतान रो रो कर उसे बताती नहीं की भूक्ख लगी है , तुम्हारे पास सब कुछ है , धरती माँ को बताओ की तुम उस पर आश्रित हो अपने पसीने से सींच दो उसके कलेजे को , वो किरपा करेगी तुम पर .
मैं- तुम मेरी मदद करोगे यहाँ खेती करने में, मैं तुम्हे मनचाही रकम दूंगा.
उस आदमी ने मेरी तरफ देख कर मुस्कुराया और बोला- चौधरी, लालच दे रहे हो मुझे, मैंने तुम्हे बताया था की मैं खुद किसान हूँ व्यापारी हूँ मुझे भला किसका मोह, पेट भरने लायक अनाज ये धरती माँ दे देती है .
मैं- उस रात जब तुम यहाँ से गए. इस हौदी का पानी मिटटी हो गया . मेर्रे किसी अपने की जान पर बन आई.
आदमी- खेद की बात है पर मेरा ऐसा कुछ प्रयोजन नहीं था . मैं बस पानी पीने रुका था .
मैं- हैरानी की बात जिस रात ये घटना हुई उसी रात किसी ने मेरे गाँव में एक आदमी को मार कर उसका दिल निकाल लिया और उसे शिवाले में भोग दे आया .
मेरी बात का उस आदमी पर जरा भी फर्क नहीं पड़ा , जरा भी भाव नहीं बदले उसके .
आदमी- मैं देखना चाहता हूँ की तुम कैसे मेहनत करते हो इस जमीन पर हल चला कर दिखाओ जरा .
मैं- मेरे पास बैल कहाँ है .
आदमी- ये भुजाये किसी बल से कम है क्या . उठाओ हल दिखाओ मुझे तुम काबिल बी हो या नहीं.
मैंने हल काँधे पर लगाया और चलाने लगा. बेशक मिटटी ने खूब पानी पीया था पर फिर भी जल्दी ही मेरी हिम्मत जवाब दे गयी. उस आदमी के चेहरे पर मुस्कराहट थी .
उसने हल मेरे काँधे से लेकर खुद पर लगाया और मैं देखता रह गया. कितना शक्तिशाली था वो . धरती ने जैसे खुद रास्ता दे दिया था उसको .. मैंने आगे होकर हल की दूसरी तरफ अपना कन्धा लगा दिया. वो मुस्कुराया. और हल छोड़ दिया.
आदमी- मैंने कहा था न ये धरती हमारी माँ है इसे दिल से पुकारो . माँ संतान के लिए जरुर आती है .
उसने अपना गमछा सही किया और जाने लगा.
मैं- रुको जरा मुझे बहुत बाते करनी है तुमसे
पर वो नहीं रुका, उसने सुना ही नहीं मुझे बस चलता रहा .
“मैं जानता हूँ तुम कौन हो . रुक जाओ मत जाओ ” मैंने चिल्ला कर कहा पर उसके कदम नहीं रुके ........................ हलके अँधेरे में मैं उसके पीछे दौड़ा और जब तक मैं मुंडेर पर पहुंचा वहां पर कोई नहीं था कोई भी नहीं था .............
सुनार की घरवाली तेज तेज चलते हुए हमारी तरफ ही आ रही थी , पर किसलिए ये देखना था .
काकी- पिछले कुछ दिनों से मैं तुमसे मिलना चाह रही थी .
मैं- कुछ काम था क्या
काकी ने एक नजर डाली मीता पर और बोली- अकेले में बात हो सकती है
मैं- सब अपने ही है खुल कर कहो जो कहना है
काकी- लालाजी के जाने के बाद मैं ऐसे कुछ पुराणी चीजे जो जरुरत की नहीं थी उन्हें देख रही थी की मुझे कुछ ऐसा मिला जिसे मैं समझ नहीं पायी.
मैं- तो इसमें मेरा क्या लेना देना है .
काकी-मुझे एक चिट्ठी मिली जिसमे लिखा है अर्जुन के वारिस को दे देना, वो समझ जायेगा
मैं- क्या समझ जायेगा
काकी- यही तो उलझन है मेरी, चिट्ठी में बस इतना ही लिखा है ये नहीं लिखा की क्या दे देना .
काकी ने चिट्ठी मेरे हाथ पर रख दी. चमड़े के ऊपर लाल स्याही से लिखे गए शब्द थे . मीता ने भी पढ़ा उसे. एक तो जीवन में कम स्यापे थे ऊपर से ये चुतिया सुनार भी मरते मरते एक पहेली छोड़ गया .
मैं- काकी, जब्बर लाला और मेरे पिता किसी ज़माने में बड़े गहरे दोस्त थे पर उनकी दुश्मनी का क्या कारण था .
काकी- इसका जवाब उन तीनो में से ही कोई दे सकता है .
मैं- लालाजी के सामान को मैं देखना चाहूँगा अगर आपको कोई ऐतराज़ न हो तो .
काकी- मुझे भला क्या दिक्कत होगी, बस तुम अपना जो कुछ भी है वो ले जाओ .
मैं- ठीक है रात को आता हूँ मैं
काकी के जाने के बाद मैं और मीता उस चिट्ठी को देखने लगे.
मीता- अजीब सा चमड़ा है . ऐसी खाल मैंने देखि नहीं कभी
मैं- छोड़ अपने को क्या लेना देना. अपन रात को लाला के घर चलेंगे. तू ही जाना मेरा मन नहीं है .
मैं- क्या हुआ तेरे मन को
मीता- तेरी बातो ने उलझन में डाल दिया है मुझे, तूने कहा की रीना को अश्व मानव याद नहीं उसके घाव याद नहीं पर उसे ये याद थी मैं.
मैं- तू रीना पर शक कर रही है
मीता- नहीं, मैं बस सम्भावना तलाश रही हूँ . मुझे भी परवाह है रीना की . मुझे लगता है की वो बार बार रुद्रपुर जाएगी. उसे तलाश है किसी चीज की , उसकी आँखों में अजीब शिद्दत दिखी थी मुझे. मैं नहीं चल पाऊँगी तेरे साथ .
मैं- ठीक है . मैं ही जाऊँगा.
मीता- कल दोपहर को मिलेंगे फिर हम
मैं- कुछ देर तो रुक साथ मेरे
मीता- मुझे आदत होने लगी है तेरी, और ये आदत ठीक नहीं
मैं- मीता और मनीष एक ही तो है
मीता- ये तू कहता है तेरा दिल नहीं , वो किसी और के लिए धडकता है
मैं-इन धडकनों से अब डरने लगा हूँ मैं
मीता- समझा के रख इनको,
मीता ने अपना झोला उठाया और जाने लगी. कुछ कदम उसके साथ चला और फिर बावड़ी पे जाके बैठ गया .ये शाम ये डूबता सूरज . ये तन्हाई और मैं , मीता का कहना बिलकुल सही था मैं दो नावो की सवारी कर रहा था मेरे लिए रीना सबकुछ थी और मीता जिन्दगी थी . मुझे दोनों से बेपनाह प्यार था . ये जानते हुए भी की वो लम्हा मेरी जान ही ले जायेगा जब ये दोनों आमने सामने आएँगी जब किसी एक का साथ पकड़ना होगा , किसी एक का साथ छोड़ना होगा. सीने पर हाथ रखे मैं पत्थर पर लेटे हुए इसी कशमकश में डूबा था की एक आवाज ने मुझे धरातल पर ला पटका .
“चौधरी ओ चौधरी , तेरी मर्जी हो तो थोडा पानी पी लू ”
मैंने देखा ये वो ही आदमी था जो उस दिन मुझे कुवे पर मिला था . मैं लगभग दौड़ते हुए उसके पास गया .
मैं- तुम यहाँ
आदमी- इधर से गुजर रहा था प्यास लग आई. और आज मैंने पूछा भी है तुमसे
मैंने आँखों से इशारा किया तो उसने अंजुल भरी हौदी से और पीने लगा. उसकी दाढ़ी, मूंछे भीगने लगी पानी से.
“जी भर गया चौधरी , खूब असीश तुमको ” उसने कहा
मैं- जल्दी में नहीं हो तो आओ बैठते है थोड़ी देर.
उसने एक नजर आस पास डाली और बोला- जो तुम्हारी इच्छा चौधरी.
मैं उस से सीधा सीधा नहीं पूछ सकता था मैंने भूमिका बनानी शुरू की .
मैं- तुम किसान हो , मुझे बताओ ये कुवा मीठे पानी का है , पास में नहर है . आसपास का हर खेत फसल उगाता है पर मेरी जमीन ही बंजर क्यों .
आदमी-धरती हमारी माँ होती है चौधरी,और माँ भी संतान को तब तक दूध नहीं पिलाती जब तक की संतान रो रो कर उसे बताती नहीं की भूक्ख लगी है , तुम्हारे पास सब कुछ है , धरती माँ को बताओ की तुम उस पर आश्रित हो अपने पसीने से सींच दो उसके कलेजे को , वो किरपा करेगी तुम पर .
मैं- तुम मेरी मदद करोगे यहाँ खेती करने में, मैं तुम्हे मनचाही रकम दूंगा.
उस आदमी ने मेरी तरफ देख कर मुस्कुराया और बोला- चौधरी, लालच दे रहे हो मुझे, मैंने तुम्हे बताया था की मैं खुद किसान हूँ व्यापारी हूँ मुझे भला किसका मोह, पेट भरने लायक अनाज ये धरती माँ दे देती है .
मैं- उस रात जब तुम यहाँ से गए. इस हौदी का पानी मिटटी हो गया . मेर्रे किसी अपने की जान पर बन आई.
आदमी- खेद की बात है पर मेरा ऐसा कुछ प्रयोजन नहीं था . मैं बस पानी पीने रुका था .
मैं- हैरानी की बात जिस रात ये घटना हुई उसी रात किसी ने मेरे गाँव में एक आदमी को मार कर उसका दिल निकाल लिया और उसे शिवाले में भोग दे आया .
मेरी बात का उस आदमी पर जरा भी फर्क नहीं पड़ा , जरा भी भाव नहीं बदले उसके .
आदमी- मैं देखना चाहता हूँ की तुम कैसे मेहनत करते हो इस जमीन पर हल चला कर दिखाओ जरा .
मैं- मेरे पास बैल कहाँ है .
आदमी- ये भुजाये किसी बल से कम है क्या . उठाओ हल दिखाओ मुझे तुम काबिल बी हो या नहीं.
मैंने हल काँधे पर लगाया और चलाने लगा. बेशक मिटटी ने खूब पानी पीया था पर फिर भी जल्दी ही मेरी हिम्मत जवाब दे गयी. उस आदमी के चेहरे पर मुस्कराहट थी .
उसने हल मेरे काँधे से लेकर खुद पर लगाया और मैं देखता रह गया. कितना शक्तिशाली था वो . धरती ने जैसे खुद रास्ता दे दिया था उसको .. मैंने आगे होकर हल की दूसरी तरफ अपना कन्धा लगा दिया. वो मुस्कुराया. और हल छोड़ दिया.
आदमी- मैंने कहा था न ये धरती हमारी माँ है इसे दिल से पुकारो . माँ संतान के लिए जरुर आती है .
उसने अपना गमछा सही किया और जाने लगा.
मैं- रुको जरा मुझे बहुत बाते करनी है तुमसे
पर वो नहीं रुका, उसने सुना ही नहीं मुझे बस चलता रहा .
“मैं जानता हूँ तुम कौन हो . रुक जाओ मत जाओ ” मैंने चिल्ला कर कहा पर उसके कदम नहीं रुके ........................ हलके अँधेरे में मैं उसके पीछे दौड़ा और जब तक मैं मुंडेर पर पहुंचा वहां पर कोई नहीं था कोई भी नहीं था .............