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निश्चित दुरी बनाये हुए मैं ताई के पीछे पीछे शिवाले तक पहुँच गया . हर रास्ता मुझे शिवाले तक लाकर छोड़ देता था, ऐसा क्या था इस जगह में , किस तरह का मोह था ये . सोचते हुए मैं ताई की हरकतों को देख रहा था . पर ताई देवता के पास नहीं गयी न वो उस जगह गयी जहाँ पर संध्या चाची गयी थी . ताई शीशम के निचे बने चबूतरे पर बैठ गयी. जैसे उसे किसी का इंतज़ार था .
रात रोशन होने लगी थी , गहराती जा रही थी पर ताई के चेहरे पर कोई भाव नहीं था . चबूतरे पर बैठी वो बस आसमान को ताक रही थी . मैं उसे टोक सकता था पर मेरी दिलचस्पी इस बात में थी की इसका यहाँ आने का क्या प्रायोजन था .
“वो नहीं आएगा , नहीं आने वाला वो ” अचानक से आई इस आवाज ने ताई के साथ साथ मेरा भी ध्यान खींच लिया . मैंने देखा ये जब्बर था जो पैदल चलते हुए ताई के पास जा रहा था .
“ये हरामखोर यहाँ क्या कर रहा है ” मैंने मन ही मन कहा.
“सोलह बरस बीत गए , वक्त के साथ उसने भी हम सबको भुला दिया है ” जब्बर ने कहा .
ताई उठ खड़ी हुई . जब्बर का यहाँ होना मुझे ठीक नहीं लगा पर उसने ताई के पास जाते ही ताई के पैरो को छुआ और चबूतरे पर बैठ गया .
ताई- मेरा मन नहीं मानता, हर पल ऐसा लगता है की वो बस आस पास ही है .
जब्बर- जहाँ तक ढूंढ सकता था उसकी तलाश की फौज तक में गया पर वहां जाकर मालूम हुआ की यहाँ से तो वो गया था पर ड्यूटी पर पहुंचा ही नहीं .
जब्बर ने वो बात कह दी थी जिसे मैं छिपाए फिर रहा था . जब मैं फौज से आया था तो इसी सवाल का बोझ अपने कंधो पर लाया था .
ताई की आँखों से आंसू गिर पड़े.
“जब शिवाले के कपाट खुले थे तो मैंने सोचा की अर्जुन लौट आया है , ” ताई ने कहा .
जब्बर- मैंने भी ऐसा ही सोचा था . इस दुश्मनी का भार गला घोंटने लगा है मेरा .
ताई- कब तक सीने में रहेगी ये फांस
जब्बर- मरते दम तक भाभी, दिल कहता है की जब अर्जुन मिलेगा तो दौड़ कर गले लगा लूँगा उसको और फर्ज कहता है की जब वो मिलेगा तो गर्दन उतार दू उसकी .
ताई- कैसा फ़साना है ये , प्यार भी उस से और नफरत भी उसी से.
जब्बर- तू तो सब जानती हो भाभी . तुमसे क्या छिपा है .
ताई- तुम्हारा दर्द समझती हूँ,
जब्बर- तुम कम से कम उस पागल लड़के को तो समझा ही सकती हो न , जिस राह पर वो चल रहा है ठीक नहीं है
ताई- मुझे भी फ़िक्र है उसकी
जब्बर- वो बहुत दुःख दे रहा है मुझे , हर बार मैं रोक लेता हूँ खुद को
ताई- तुम्हारा स्नेह है उसके प्रति
जब्बर- नफरत है मुझे उस से
ताई- नफरत भी तो एक तरह का प्रेम ही है न .
जब्बर- तुम उस से कहो की वो मुझे उस लड़की का नाम पता बता दे .
ताई- वो प्रेम करता है उस से ,
जब्बर- तब तो और बेहतर होगा.
ताई- क्या तुम्हे लगता है की वक्त फिर से दोहरा रहा है खुद को
जब्बर- शायद हाँ , शायद न. कपाट खुले थे तो मुझे लगा था की वक्त की धारा मुड गयी है पर वो वहम ही निकला ,
ताई------- पर अर्जुन के सिवा कपाट कोई और नहीं खोल सकता .
जब्बर- तो फिर कौन , मनीष ने चाहे अनजाने में ही रक्तपात किया हो यहाँ पर वो रक्त को देवता तक ले गया. भोग तो लग ही गया .
ताई- सहमत हूँ पर ये ख़ामोशी कलेजे का पानी सुखाये हुए है .
जब्बर- कातिल लाला का कलेजा निकाल कर ले गया .
ताई- तब से मुझे भी कोतुहल है .
ताई ने जब्बर से बाते करते हुए चबूतरे पर एक दिया जलाया और बोली- ये दिया उसे बता देगा की मैं आई थी .
जब्बर- कभी कभी सोचता हूँ की गुजरा ज़माना कितना हसीं था
ताई- बीता हुआ दौर बस याद आता है , वैसे इस शिवाले के लिए तुम चाहते तो बहुत कुछ कर सकते थे , आखिर गुनाह में तुम भी तो शामिल थे . जितना लिया उसका थोडा भी लौटा दिया होता तो इस बियाबान में हलचल, रौनक रहती .
जब्बर- तुम भी कह लो भाभी, दुनिया तो कहती ही है तुम्हारे ताने भी सर माथे पर . खैर मैं चलता हूँ , तुम भी आओ छोड़ देता हूँ तुम्हे भी .
ताई ने एक नजर जलते दिए पर डाली और फिर जब्बर के साथ चली गयी. मैं रिश्तो के इस अजीब भंवर में उलझ गया था . क्या दोस्ती थी क्या दुश्मनी कौन थे ये लोग और कौन था मैं सोचते सोचते मेरा सर दुखने लगा. आज का दिन बहुत भारी हो गया था . मैं भी वहां से चल कर अपनी जमीन की तरफ आ गया .
दूर से जलती लौ को देख कर मैं समझ गया था की मीता होगी वहां पर. पर शायद ये पहली बार था जब मीता के जिक्र पर मुझे ख़ुशी नहीं हुई. ढीले कदमो से चलते हुए मैं पहुंचा तो देखा की अलाव जल रहा था , न जाने क्यों उसे ये आग पसंद थी . मैंने कपडे उतारे और हौदी में उतर गया.
ठंडा पानी मेरे तन को तो आराम दे सकता था पर मेरे मन को नहीं . गर्दन तक पानी में डूबे हुए मैं बस आज के बारे में सोच रहा था, आज के दिन क्यों ताई को लगता था की मेरे पिता आयेंगे, पृथ्वी ने मुझे चुनोती दी थी और सबसे बड़ा झटका तो मुझे उस तस्वीर ने दिया था जो मेरी आँखों में बसी थी .
“देर तक पानी में रहना ठीक नहीं है तुम्हारे लिए ” सर पर रखे लकडियो के गट्ठर को पटकते हुए मीता ने मुझसे कहा .
मैं- सच कहूँ तो कुछ भी ठीक नहीं है मेरे लिए.
मीता हौदी की मुंडेर पर बैठ गयी और बोली- ये उदासी की क्या वजह हुई भला
मैं- तुमसे बेहतर कौन जानता है भला.
मीता- सो तो है पर हुआ क्या बताओ तो सही, ये ठीक है की सभी बाते बताते नहीं है पर दोस्तों से कुछ भी छिपाते नहीं है .
“बहुत खूब, क्या बात कही ” मैंने कहा
मीता- आजा फिर, चाय चढ़ाती हूँ
मैं- तू चल मैं आता हूँ
मीता- आज से पहले तो कभी नहीं कहा ऐसा
मैं- आज से पहले ऐसा दस्तूर भी तो नहीं था ...... न ...............