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Adultery गुजारिश 2 (Completed)

Dude175

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#11



इन्सान का मन बड़ा विचित्र होता है , उसकी इच्छाए, उसकी लालसा , उसकी अनगिनत महत्वकांक्षी योजना, मन कब बावरा हो जाये, कब वो छल कर जाये कौन जानता है. कुछ ऐसा ही हाल मेरा उस समय था जब आगे चलती ताई की मटकती गांड को देख कर मैं महसूस कर रहा था . जबसे उसे ठेकेदार से चुदते देखता था मेरे मन में कहीं न कहीं ये था की मैं भी ताई की ले लू.



करीब आधा कोस चलने के बाद मेरे लिए एक अजूबा और इंतज़ार कर रहा था , ये एक बड़ी सी बावड़ी थी जिसकी पक्की सीढिया अन्दर को उतरती थी. चारो कोनो पर चार मीनार जैसी मध्यम आकार की छत्रिया , लाल पत्थर जिस पर समय ने अपनी कहानी लिख दी थी . सीढिया चढ़ कर ऊपर आकर मैंने देखा तो कुछ सीढिया छोड़कर बावड़ी लगभग भरी ही थी .



काफी समय से उपेक्षित होने के कारण अन्दर पानी में काई, शैवाल लगा था ,

“किसी ज़माने में बड़ा मीठा पानी होता था इसका. आसपास के लोग, चरवाहे, राहगीर न जाने कितने लोगो की प्यास बुझाती थी ये बावड़ी. ” ताई ने कहा.

“तुम्हारे पिता को बड़ी प्रिय थी ये जमीन, उसका ज्यादातर वक्त इधर ही गुजरता था . उसके हाथ में न जाने कैसा जादू था, जिस खेत में उसने मेहनत की वो ऐसे झूम के लहलहाता था की खड़ी फसल देखते ही बनती है , और देखो किस्मत की बात जब से वो गया , ये धरती भी रूठ गयी ” ताई ने कुछ उदासी से कहा.



“पर चाचा इस जमीन को क्यों बेचना चाहता है ” मैंने कहा

ताई- शायद इसका अब कोई मोल नहीं रहा इसलिए.

मैं- अगर मेरे पिता को इस से लगाव था तो ये अनमोल हुई मेरे लिए. इसे बिकने नहीं दूंगा. मैं बात करूँगा चाचा से .

ताई थोडा मेरी तरफ सरकी, मेरे हाथ को अपने हाथ में लिया और बोली- तेरा चाचा बुरा आदमी नहीं है, बहुत चाहता है तुझे पर तेरी चाची से थोडा दबता है , इसलिए खुल कर तुझसे प्यार नहीं जता पाता.

मैं- जानता हूँ , आज घर पर कोई आदमी आया था ,उसके आने के बाद चाचा बहुत परेशान था .

ताई- अब तू बड़ा हो रहा है, उसका साथ दे, तेरे दादा, तेरे पिता के जाने के बाद जैसे तैसे उसने परिवार को संभाला है , पर वो तेरे दादा, तेरे पिता जैसा वीर नहीं है ,

मैं- कैसे थे मेरे पिता.

ताई- वो अलग था दुनिया से, उडती पतंग जैसा. गाँव के हर घर का बेटा, ऐसा कोई नहीं था गाँव में जो उसे पसंद नहीं करता हो.

बातो बातो में कब रात घिरने लगी होश कहाँ था तो हम वहां से चलने लगे, पर मैंने सोच लिया था की अब तो इधर आता जाता ही रहूँगा. बाते करते हुए हम लोग नहर की पुलिया पार करके गाँव की तरफ जाने वाले मोड़ की तरफ मुड़ने को ही थे की मैंने सामने से उसे आते देखा, चार पांच बकरियों संग सर पर लकडियो का गट्ठर उठाये हुए रीना लम्बे लम्बे कदम उठाये चली आ रही थी . मैंने साइकिल रोकी.

ताई- क्या हुआ

मैं- ताई तू चल घर मैं रीना के साथ आता हूँ

तब तक रीना पास आ चुकी थी .

मैं-साइकिल पर रख दे लकडियो को वैसे ये क्या समय है लकडिया लाने का वो भी अकेले

रीना- अकेली कहाँ हूँ मैं, तू साया है तो सही मेरा.

मैं- इन बातो से मत बहला , थोडा देख भाल लिया कर घर से किसी को साथ ला सकती थी न .

रीना- अरे, मेरी सहेली आई थी साथ , फिर न जाने उसे क्या जल्दी हुई भाग खड़ी हुई वो .

मैं- चल कोई न.

रीना- वैसे मैंने देखा , मेरी बड़ी फ़िक्र करता है तू.

मैं- एक तू ही तो है मेरी.

वो मुस्कुरा पड़ी.

“वो इसी बात से तो डर लगता है मुझे, ” उसने कहा

मैं- किस बात से

वो- अब क्या बताऊ किस बात से .......

उसने एक ठंडी आह भरी.

मैं- तू साथ है , तूने मुझे तब थामा जब सबने ठुकराया . मेरी दुनिया में बस तू है

रीना- आ दो पल बैठते है .

मैंने साइकिल खड़ी की और हम सड़क किनारे कच्ची मिटटी पर ही बैठ गए.

मैं- चुप क्यों हो गयी .

रीना- समझ नहीं आ रहा क्या कहू, कहना भी है चुप रहना भी है .

आज से पहले उस चुलबुली को कभी इतना संजीदा नहीं देखा था .

मैं- क्या हुआ , क्यों परेशान हुई भला.

रीना- परेशां नहीं हूँ, बस सोच रही हूँ आने वाले कल के बारे में.

मैं- कल की क्या फ़िक्र करनी

रीना- फ़िक्र है , तू तो जानता है की बचपन से मामा के घर ही पली बढ़ी हूँ, पर एक न एक दिन तो यहाँ से जाना ही होगा

मैं- हां, तो कुछ दिन अपने गाँव रह कर फिर वापिस आ जाना उसमे क्या बात है .

रीना- कल मेरी माँ का संदेसा आया था, बारहवी होते ही मेरा रिश्ता कर देंगे.

मैं- पर तू तो बहुत पढना चाहती है ,पढ़ लिख कर नौकरी करना चाहती है .

रीना- बदनसीबो के सपने भला कहाँ पुरे हुआ करते है .

मैं-सो तो है.

रीना- माँ को ना भी तो नहीं कह सकती, अभी तक तो मामा ने पढ़ा दिया, खाना कपडे सब देते है पर उनके बच्चे भी बड़े हो रहे है , वो अपनी औलादों का भी सोचेंगे .

मैं- अभी एक साल बचा है न , तू तेरी माँ से फिर बात करके देखना, कोई न कोई हल निकल आएगा.

रीना- क्या हल निकलेगा. तू तो जानता है मेरा पिता शराबी है , माँ कहती है मुझे ब्याह के वो अपनी जिमेदारी निभा देगी आगे मेरे भाग.

मैं जानता था की आगे अगर कुछ और बोली तो वो रो पड़ेगी. मैंने बस उसे अपने सीने से लगा लिया.

“जब तक मैं हूँ,तुझे गमो की जरा भी हवा नहीं लगने दूंगा, मेरा वचन है तुझे. ” मैंने उसे कहा.

बाकी पुरे रस्ते हम दोनों चुपचाप आये. कहने को और कुछ था भी नहीं . आज तक मैं खुद की हालत देख कर रोता था पर आज मालूम हुआ की इस दुनिया में मैं अकेला ही मजबूर नहीं था .

अगली दोपहर मैं फिर से मेरी बंजर जमीन पर खड़ा था , तपती दुपहरी में जमीन जैसे जल रही थी . मैं और अच्छे से इस जमीन को देखना चाहता था . कभी इधर भटका, कभी उधर. घूमते घूमते मैं थोडा ज्यादा आगे ही निकल आया. इतना आगे की रुद्रपुर ही आ गया . आज से पहले मैं रुद्रपुर कभी नहीं आया था .

गाँव की शुरुआत में ही एक के बाद एक कतार में पुरे ग्यारह पीपल लगे हुए थे. पास में ही एक जोहड़ था, कुछ चरवाहे बकरियों-भेड़ो को पानी पिला रहे थे, कुछ बुजुर्ग पीपलो की छाया में ताश खेल रहे थे. थोडा आगे चलने पर दो रस्ते जाते थे एक आबादी की तरफ और दूसरा उस तरफ जहाँ मैं खड़ा था . वो एक बहुत बड़ी, पुराणी इमारत थी , बड़ी बड़ी छतरिया दूर से ही दिखती थी . मैं उसी तरफ चल दिया.

पहली नजर में समझ नहीं आया की ये क्या इमारत थी, स्लेटी पत्थरों की बनी ये इमारत जिसके चार कोनो ने दो बरगद, दो पीपल. पत्थरों को काट कर ही खिडकिया, चोखटे बनाई हुई. पास एक पानी की टंकी थी, एक खेली थी जो न जाने कब से सूखी थी. आस पास सन्नाटा तो नहीं था पर ख़ामोशी कह सकते है, कुछ कबूतर गुटर गुटर कर रहे थे . मैं अन्दर जाने को पैर उठाया ही था की मेरी नजर पास ही पड़ी , खडाऊ पर पड़ी तो मुझे भान हुआ ये कोई पवित्र जगह होगी.



मैंने चप्पल उतारी और सीढ़ी चढ़ा, पहली , दूसरी तीसरी सीढ़ी पर जैसे ही मैंने पैर रखा, ऐसा लगा की पैर जैसे जल ही गया हो मेरा. स्लेटी पत्थर धुप की वजह से पूरा गर्म हुआ पड़ा था. भाग कर मैं अन्दर गया. अन्दर कुछ भी नहीं था , जगह जगह जाले लगे थे, कई जगह पक्षियों की बीट थी. घोंसलों का कचरा था. उस बड़े से हाल को पार करके मैं आगे गया तो मैंने देखा की एक बड़ी सी बावड़ी थी जिसके तीन किनारों पर पत्थरों की नक्काशी किये हुए छज्जे लगे थे.

ठीक वैसी ही बावड़ी जैसी हमारे खेत में बनी थी . पानी हिलोरे मार रहा था इतना साफ़ नीला पानी मैंने कभी नहीं देखा था ,अंजुल में भर कर मैंने पानी पिया. अब क्या कहूँ ये मेरा वहम था या मेरी प्यास पानी मुझे शरबती लगा. जी भर कर पीने के बाद , मैंने कुछ छींटे चेहरे पर मारे. गजब का सुख मिला.

इधर उधर देखते हुए मैं आगे बढ़ा, अब कच्चा आँगन आ गया था . पास में एक कुवा था ,बहुत पुराना . एक तरफ कुछ सूखे पेड़ खड़े थे. थोडा आगे एक विशाल बरगद था जिसके ऊपर बहुत से धागे बंधे थे जिनका रंग उड़ चूका था. शायद बहुत पहले बाँधा गया होगा इन्हें. घूरते हुए मैं अब उस हिस्से की तरफ गया जहाँ पर कुछ ठंडक सी थी, गहरी छाँव थी . मेरी नाक में अब कुछ खुशबु सी आने लगी थी .

ईमारत के अन्दर ईमारत अपने आप में ही गजब सा था . वो काला दरवाजा कोयले से भी काला था, जिसमे कोई कुण्डी नहीं थी बस दो बड़े बड़े लोहे के गोले लटक रहे थे. मैंने पूरी ताकत से दरवाजे को खोलने की कोशिश की पर वो टस से मस नहीं हुआ.


पुराना दरवाजा जिसकी लकड़ी जगह जगह से उखड़ी हुई थी,तीसरी कोशिश में वो दरवाजा खुला और अन्दर कदम रखते ही मैंने देखा की.............................................
Nice update bhai......For few words i had to go on Google 😅 but brain freezing update
 

Dude175

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#12

मैंने देखा एक अद्भुद नजारा, कहने को कुछ भी नहीं और कहे तो बहुत कुछ हो जाए . मेरे सामने जलती राख थी जिसका धुआ भी अब धुआ धुआं हो चूका था . क्या मालूम कब यहाँ अलख जगी होगी पर अब कुछ नहीं था , या फिर कुछ नहीं होकर भी सब कुछ था . मैं समझ नहीं पा रहा था की ये जगह है क्या. क्या ये कोई मंदिर था, कोई मस्जिद थी , कोई आश्रम था , कोई शमशान था . मैं उस दिन नहीं जान पाया.

जब नजर उस धुएं के पार देखने लायक हुई तो मैंने देखा की एक मिटटी की मूर्ति ,जो करीब ढाई तीन फुट की रही होगी, उसके गले में दो धागे एक लाल एक काला और फिर चमकते हीरे, पन्ने . हाँ वो हीरे पन्ने ही थे . उस हलके अँधेरे में भी उनकी आभा चमक रही थी .

बड़ी बात ये नहीं थी की उस मूर्ति में जवाहरात जड़े थे , हैरत की बात थी की उस पर ऊपर से गिरती पानी की हलकी हलकी धारा ,जो लगातार गिरते हुए भी उस मिटटी को भिगो नहीं पा रही थी . पास में ही एक बेहद सुन्दर फूल था न जाने कैसा , किसका मैंने आज से पहले कभी ऐसा फूल नहीं देखा था . आकर्षण से वशीभूत मैंने उसकी तरफ उसे छूने के लिए हाथ बढाया ही था की

“उसे हाथ भी नहीं लगाना.” मेरे पीछे से एक उत्तेजित आवाज आई तो मेरी गर्दन एक दम से पीछे को घूमी .

मैंने देखा मेरे ठीक पीछे वो ही लड़की जिस से मैं दोपहरों में , अँधेरी रातो में मिला था खड़ी थी .

“डरा ही दिया था तुमने तो ” मैंने कलेजे पर हाथ रखते हुए कहा

वो- ये जहरीला है ,

मैं- ओह

वो बाहर को आई, मैं भी उसके पीछे उस कमरे से बाहर आया.

“तो हम एक बार फिर मिल गए ” मैंने कहा

वो- अजीब संयोग है न

मैं- तकदीरो का इशारा भी हो सकता है

वो किस किस्म का इशारा.

मैं- तुम जायदा जानो , देखो जरा क्या कहते है तुम्हारे सितारे.

वो मेरी बात पर मुस्कुरा पड़ी.

“ये क्या जगह है , मेरा मतलब ये ईमारत अपने आप में अनोखी है ” मैंने कहा

वो- जो तुम्हे दिख रहा है बस ये खंडहर ही है , गुजरे हुए वक्त की कोई खोयी कहानी.

मैं- कहानिया कभी अधूरी नहीं होती, किस्से बताने वाले कम हो जाते है .

वो- तो तलाश कर लो किसी ऐसे की जो तुम्हे बता सके.

मैं- तलाश क्या करना मेरे सामने ही तो है .

उसने घूर कर मेरी तरफ देखा और बोली- मेरे जाने का समय हो गया है .

मैं- फिर कब मिलोगी

वो- किसलिए भला.

मैं- मिलोगी नहीं तो हमारी कहानी कैसे शुरू होगी.

मेरी बात सुन कर वो हंसने लगी, इतना जोर से से की उसकी हंसी उस ईमारत में गूंजने लगी. मर्ग नयनी आँखे उसकी , हैरत से भरी मुझे देख रही थी .

“बरसो बाद किसी ने मजाक किया है मुझ से ” सीने पर हाथ रखे उसने कहा मुझसे.

“और यदि इसी पल मैं तुमसे कहूँ की मैं तुमसे दोस्ती करना चाहता हूँ तो क्या कहोगी तुम ” मैंने उस से सवाल किया.

वो- मेरा जवाब ना होगा, और भला कैसी दोस्ती मेरे तुम्हारे बीच , ये ख्याल भी क्यों आया तुम्हारे मन में

मैं- ये तो मन ही जाने मेरा. जो भी था तुम्हे बता दिया .

वो- आज दोस्ती , कल कहोगे मोहब्बत हो गयी है , परसों न जाने क्या फरमाइश होगी तुम्हारी.

मैं- देखो मैं बस आज की बात करता हूँ कल का क्या भरोसा कल हो न हो.

वो- और कल को तुम्हे मालूम हुआ मैं दोस्ती तोड़ गयी , निभा न पायी फिर

मैं- फिर क्या ,कुछ भी तो नहीं

वो- फिर बुरा नहीं लगेगा तेरे मन को

मैं- बुरा क्यों लगेगा. दोस्ती ही तो की है कौन सा तेरे संग प्रीत की डोर बाँधी है , तू नहीं थी जब भी तो जिन्दा था न मैं

वो- क्या तुझे इस ज़माने का भी डर नहीं

मैं- डर तो ज़माने को होना चाहिए और मैंने कौन सा आसमान माँगा है तुझसे

वो- काश तूने आसमान माँगा होता, माँगा भी तो क्या तूने

उसकी आवाज में एक फीकापन था.

“चलती हूँ , ” उसने कहा

मैं- जाती है तो जा बस इतना बता फिर कब मिलेगी.

वो- रब्ब जाने , मेरे जाने के थोड़ी देर बाद निकलना तू

मैंने हाँ में गर्दन हिलाई. ना जाने क्यों उसे जाते हुए देखना अच्छा नहीं लगता था . कुछ देर बाद मैं वहां से निकला . अपनी चप्पल पहन ही रहा था की कुछ ५-७ लडको का टोल उसी तरफ आ निकला. मुझे देख कर वो रुक गए.

“ओये तू क्या कर रहा है इधर, ” एक ने पूछा

मैं-कुछ नहीं बस ऐसे ही इस तरफ आया था तो ये ईमारत दिखी . प्यास लगी थी पानी पीकर आया हूँ

मैने कहा और अपने रस्ते चला ही था की उन्होंने मुझे रोक लिया.

“सोलह साल से इस गाँव ही क्या किसी के भी कदम यहाँ नहीं पड़े है और तू कहता है की पानी पीने आया था , बता क्या उद्देश्य था तेरा अन्दर जाने का ” उनमे से सबसे बड़े लड़के ने कहा .

मैं- तेरे गाँव में पानी पीना गुनाह है क्या, जाने दे मुझे

वो- जब तक तू बताता नहीं की तू अन्दर क्या करके आया है नहीं जाने दूंगा.

मेरा भी दिमाग पकने लगा था तो मैंने ऐसे ही कह दिया- धुना सुलगाने आया था सुलगा दिया अब बता जाऊ की न जाऊ, और नहीं जाने देगा तो अपने घर ले चल . दो रोटी तू दे देना .

अचानक ही उस लड़के का पूरा चेहरा पीला पड़ गया . जैसे की किसी ने उसका खून निचोड़ लिया हो .

“तुम लोग इसे पकड़ो , मैं अभी आता हूँ ” ऐसा कहकर उसने दौड़ लगा दी. अब वो लोग पांच- सात जने थे तो उनसे लड़ाई करना बेकार था और मैंने पहले कभी किसी से मारपीट की भी नहीं थी . मैं वही सीढियों के पास बैठ गया .

पांच- दस पंद्रह बीस तीस मिनट जाने कितना समय बीता फिर धुल उडाती तीन काली गाडिया एक के बाद एक आकर उतरी. कुछ मवाली टाइप लड़के थे गाडियों में और फिर उतरा वो जिसे देख कर उम्र का अंदाजा लगाना थोडा मुश्किल था मेरे लिए. एक दम सफ़ेद बाल. सफ़ेद दाढ़ी हाथो में अंगुठिया. लम्बी मूंछे . चेहरे से रौब झलके उस आदमी के , हाथो में बेंत लिए एक पैर से थोडा लंगड़ाते हुए वो मेरी तरफ आया. उसकी लाल आँखे घूर रही थी मुझे .

“दद्दा, यही है वो ” उसी लड़के ने मेरी तरफ ऊँगली करते हुए कहा.

“साहब , मुझे नहीं मालूम था की यहाँ आना मना है प्यास लगी थी तो मैंने बस पानी पिया और वापिस आया ही था की ये मुझसे उलझने लगे ” मैंने अपना पक्ष रखा .

दद्दा- मेरे साथ आओ .

उसने हाथ से बाकी लोगो को वही रुकने का इशारा किया और मैं उसके साथ वापिस ईमारत में दाखिल हो गया .

“कहाँ था पानी ” उसने गला खंखारते हुए कहा .


मैं दौड़ कर बावड़ी के पास गया और जब मैंने उसमे झांक कर देखा ,,,,,,,,, देखा तो .....................
Every update me suspence hai👏👏👏👏
 

Dude175

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#13

मैंने देखा बावड़ी में पानी उसी तरह लहरा रहा था .

“ये पानी नहीं तो क्या है ” मैंने निचे जाकर हथेली में पानी भरा और उसके पास लाया. मैंने हथेली उसके आगे की . उसने हिकारत से मुझे देखा और बोला- चला जा यहाँ से .दुबारा मत आना .

मैं- वो मेरा मामला है दुबारा आना या न आना तुम्हे इससे क्या लेना देना

“उम्र छोटी है और बाते आसमान जितनी, जिसे तू खेल समझ रहा है न वो .......” उसने बात अधूरी छोड़ दी .

मैं - वो क्या ..

उसने अपनी बेंत मेरी छाती पर लगाई और बोला- निकल जा यहाँ से

मैंने भी बात आगे नहीं बढाई और वहां से बाहर निकल आया. बाहर खड़े तमाम लोगो की नजरे मुझ पर थी पर किसी ने मुझे रोका नहीं . कुछ दूर चल कर मैंने माथे का पसीना पोंछा तो कुछ रुखा सा महसूस हुआ मैंने अपने हाथ देखे, हथेलिया राख में सनी हुई थी .

मैंने अपने मुह पर हाथ रख लिया , हाथो पर ये राख कैसे आई, हलकी सी तपिश महसूस की . मैंने शर्ट से ही हाथ साफ़ किये और रुद्रपुर से अपने गाँव वापिस आ गया. शाम ढलने लगी थी . दिल में मेरे न जाने कितने सवाल थे जिनके जवाब दे सके ऐसे इन्सान को तलाश करना ही मेरा मकसद था अब .

चोबारे की छत पर लेटे हुए मैं रीना के बारे में सोच रहा था , आज वो उदयपुर चली गयी थी . बचपन से ऐसा कोई लम्हा नहीं था जो हमने साथ नहीं बिताया हो. इस दुनिया में सबसे पहले मेरे लिए कोई था तो वो बस . जबसे उसने उसकी माँ से हुई बात बताई थी , दिल में हलचल सी मची हुई थी . बहुत सी बाते थी जो उससे कहनी थी , हर सुबह जब वो तालाब पर पानी भरने आती थी , तो ग्राम देवता के मंदिर में समाधी के साथ चक्कर लगाना, थोड़ी देर हम सीढियों पर बैठते . वो मुझे मैं उसे देखता .उसके गेहुवे रंग पर लाल चुन्नी बड़ी फब्ती . कानो में सोने की बालिया गले में ॐ का लाकेट जो मैंने मेले में खरीद कर दिया था उसे.

ये रात भी जाने क्यों बेवफाई पर उतर आई थी , आँखे मूंदु तो भी आँखों को रीना की सूरत ही दिखे . हालत जब काबू से बाहर हो गयी तो मैंने शर्ट पहनी और घर से बाहर आ गया. चारो दिशाए सन्नाटे में डूबी थी . पैदल चलते चलते मैं खेतो को पार करके पुलिया की तरफ आ पहुंचा था की मैंने देखा की इकतारा लिए वही लड़की पुलिया पर बैठी है . हमारी नजरे मिली, उसने इकतारा साइड में रख दिया.

“मेरा पीछा क्यों करता है ” उसने उलाहना दिया.

मैं- क्यों इन रातो पर बस तेरा हक़ है क्या.

वो- हक़ तो नहीं है , पर इन रातो से बढ़िया कोई साथी भी तो नहीं

मैं- तेरी बाते मेरे जैसी क्यों है

मैं उसके पास बैठ गया .

वो- बाते है बातो का क्या . तू बता कुछ परेशां सा लगता है .

मैं - चलो तुमने इसी बहाने मेरा हाल तो पूछा

वो- क्या परेशानी हुई तुझे

मैं- जब से तुझे देखा है , नजरे हट टी नहीं तेरे चेहरे से, दिन हो या रात हो तेरा ख्याल मेरे मन से जाता नहीं . जी करता है बस तुझे देखता रहूँ

वो- कुछ नया बोल , ये लाइन पुरानी हुई , आजकल की लडकिया इन फ़िल्मी बातो से नहीं बहलती .

मैं- तो तू ही बता तुझे कैसे मना पाउँगा

वो- भला किसलिए

मैं- तुझसे दोस्ती करनी है

वो- दोपहर को मैंने तुझे कहा था न की हम में दोस्ती नहीं हो सकती

मैं- तो क्या हो सकता है

वो- कुछ नहीं , कुछ भी नहीं आखिर हम एक दुसरे को जानते ही कितना है .

मैं- चार मुलाकातों से जानते है .

वो- मैं क्या दोस्ती करू तुझसे, , मैं कौन हूँ ये भी नहीं जानता . चल बता मैं तुझसे दोस्ती कर भी लू तो तू क्या कर सकता है मेरे लिए.

मैं- दोस्ती में शर्ते नहीं होती सरकार. तू क्या है मैं कौन हु ये नहीं देखा जाता दोस्ती में ओई उम्मीद नहीं होती, दोस्ती में उम्मीद हुई तो वो लालच हुआ, दोस्ती निस्वार्थ है, मैंने तुझसे मोहब्बत नहीं मांगी , वादे मोहब्बत में किये जाते है की चाँद तारे तोड़ लाऊंगा .

वो- मैं कैसे मानु की तू मेरा सच्चा दोस्त बनेगा. कल को तूने मेरा फायदा उठाया . मुझे बदनाम किया तो .

मैं- तो फिर रहने दे . तेरे बस की नहीं है . मैंने अपने मन की बात तुझे बताई,अब तेरी मर्जी है जब तेरा दिल करे तो मुझे बता देना बाकी तेरी किस्मत तू जाने तूने क्या खोया .

वो- हाँ मेरी किस्मत.

उसने एक ठंडी साँस छोड़ी और बोली- ये किस्मत भी बड़ी अजीब होती है न राजा के घर पैदा हुए तो किस्मत, गरीब के घर पैदा हुए तो किस्मत. सुख मिले तो किस्मत, दुःख मिले तो किस्मत.

मैं- तू मुझे मिली ये भी तो किस्मत ही है न .



“तुझसे दोस्ती नहीं कर सकती ये भी तो किस्मत ही है न , ” उसने कहा

मैं- इस दुनिया, इस समाज का डर है क्या तुझे .

वो- मुझे डर होता तो यहाँ इस समय तेरे साथ न बैठी होती .

मैं- तो क्या रोक रहा है तेरे मन को

वो- मेरा मन ही रोक रहा है मुझे .

मैं- चल कोई न , हम भी क्या बाते लेके बैठ गए ये बता आज ये सितारे क्या कहते है .

उसने आसमान में देखा और बोली- खून बहने वाला है .

मैं- किसका

वो- ये तो वो ही जाने .

उसने आसमान में सितारों को देखते हुए बोला .

मैं- तेरी बाते समझ में कम आती है मुझे .अपने बारे में बता कुछ

वो- क्या बताऊँ कहने को सब कुछ है कहने को कुछ भी नहीं . मैं भी तेरे जैसी ही हूँ .कल दोपहर तू मुझे ग्यारह पीपल के पास मिलना मैं तब तुझे बताउंगी मैं कौन हूँ .




उसकी आँख से गिरते आंसू के कतरे को अपनी कलाई पर गिरते महसूस किया मैंने
Dope men Dope:adore:
 

Dude175

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#14

मैंने हौले से उसके हाथ को अपने हाथ में थाम लिया.

“”जाने दे मुझे “ उसने ठहरी आवाज में कहा .

मैं-मेरे रोकने से रुक जाएगी क्या तू , रात बहुत हुई है मैं छोड़ आता हूँ तुझे

वो- ये राते मुझे भी उतना ही जानती है जितना तुझे , इन अंधेरो से डर नहीं है मुझे.

मैं- ठीक है जा फिर, कल दोपहर को मैं तेरा इंतज़ार करूँगा.

जिंदगी में पहली बार वो मुझे देख कर मुस्कुराई. उसके जाने के बाद भी मैं वही पुलिया से पीठ टिकाये बैठा रहा सितारों को निहारते, न जाने कब मुझे वही नींद आ गयी. सुबह मेरी आँख खुली तो बदन अकड़ा हुआ था . मैंने हाथ मुह धोया और घर की तरफ चल गया . अलसाई भोर में जोबन की अंगड़ाई लेती चाची ने मुझे देखा और कुछ ही देर में मेरे लिए चाय ले आई . मैंने कप पकड़ा और वहीँ रसोई के दरवाजे के पास ही बैठ गया .

“आजकल न जाने कहा गायब रहने लगे हो तुम , ” चाची ने मुझसे कहा .

आज से पहले इतनी फ़िक्र उसने मेरी कभी नहीं की थी तो मुझे थोडा अजीब ही लगा.

मैं- बस ऐसे ही , दोस्त के घर था तो वही सो गया

चाची- मुझसे झूठ बोलकर शायद अच्छा लगेगा तुम्हे पर मैं बता दूँ की तुम्हारे सारे दोस्तों का कल ये ही जवाब था की तुम उनके साथ नहीं थी , और मुझे फर्क भी नहीं पड़ता तुम कहाँ थे

मैं- तो फिर पूछा क्यों .

चाची- क्योंकि मुझे तुमसे बेहद जरुरी बात करनी थी .

मैं- क्या बात

चाची- समय आ गया है की मैं खुल कर तुम्हे वो बताऊ जिसे बताने का समय आ गया है .

मैं- बताओ फिर पहेलियाँ न बुझाओ.

चाची-जैसा की तुमने सुना होगा एक ज़माने में तुम्हारे दादा का इस गाँव में आस पास के तमाम गाँवो में नाम था, उनकी कही बात किसी हुक्म से कम नहीं होती थी जनता के लिए. फिर तुम्हारे पिता के दौर में , दोनों बाप बेटो ने अपनी मर्जी का किया, और फिर अचानक से एक दिन सब ख़तम हो गया . तुम्हारे दादा का किसी ने क़त्ल कर दिया. जेठ जी उसके बाद फौज में भरती हो गए. एक बार जो गए वो लौटे ही नहीं .



तुम्हारे चाचा अपने बाप भाई जैसे नहीं है , ये बस खानदान के नाम को ढो रहे है , तुम नहीं जानते आजतक कैसे इन्होने ने इस परिवार को संभाला है पर अब मुझे उनकी फ़िक्र है , तुम समझो मेरे बच्चे छोटे है .

मैं-मैं समझता हूँ, सब कुछ आपका और आपके बच्चो का ही है वैसे भी मैं आपको बता चूका हूँ की जल्दी ही मैं ये घर छोड़ कर चला जाऊंगा. बस मेरी पढाई पूरी हो जाये.

चाची- तुम हमेशा मुझे गलत क्यों समझते हो, ये घर उतना ही तुम्हारा है जितना मेरा, ये सब ये दौलत, ये जमीने सब तुम्हारी ही है . तुम मेरी बात समझो

मैं- समझाओ फिर.

चाची- मुझे बस तुम्हारे चाचा की फ़िक्र है . गुजरा हुआ वक्त फिर लौट आया है . जेठ जी या ससुर जी होते तो मुझे चिंता नहीं थी पर तुम्हारे चाचा को कुछ हो गया तो मैं तो बर्बाद ही हो जाउंगी.

मैं- आप फ़िक्र न करे. सब ठीक होगा.

चाची- किसी ने रुद्रपुर में धुना सुलगाया है , अगली पूनम को मेला लगेगा वहां

मैं- ये तो ख़ुशी की बात है न

चाची- काश ,,,,,,,,,,, काश ये ख़ुशी की बात होती. अंतिम बार धुने को जेठ जी ने सुलगाया था . और तब ग्यारह लोगो के सर कटे थे . जेठ जी ने ग्यारह सर देवता को बलि दी दिए थे . पर वो शायद आखिरी बार था जब इस खानदान में किसी ने हथियार उठाया हो . पुरे गाँव में जश्न था ,दावत थी . जेठ जी उस रात भरी महफ़िल छोड़ कर गए थे और जब वो लौटे तो उसके बाद वो कभी मुस्कुराये नहीं, उस रात के बाद उन्होंने कभी हथियार नहीं उठाया. महीने दो महीने बाद वो फौज में भरती हो गए , जेठानी के जाने के बाद वो भी इस घर को इस गाँव को छोड़ गए ऐसे गए की लौटे ही नहीं , ससुर जी की चिता को अग्नि देने भी नहीं आये.



मैं- क्या हुआ था ऐसा उस रात, और ये बलि की क्या कहानी है .

चाची- बलि की कहानी के बारे में किसी को ठीक ठीक नहीं पता. जो भी कुछ जो जानता है बस कही सुनी बाते है . एक ज़माने में हमारे परिवार और रुद्रपुर के बड़े ठाकुर के परिवार में बड़ा गहरा रिश्ता था , पर फिर न जाने क्या हुआ , न जाने कहाँ से वो मनहूस दिन आया जब दो गाँवो की जिन्दगी जैसे बिखर गयी . सोलह साल पहले ऐसे ही किसी पूनम को वो मनहूस मेला लगा था जिसके जख्म आज तक नहीं भरे है .

मैं- तो फिर क्यों ये मेला लगाया जा रहा है .

चाची- धुना सुलगा है देवता है रक्त की आहुति मांगी जा रही है . परिवार की तरफ से किसी को ये चुनोती उठानी पड़ेगी. और नहीं उठाई तो अपनी पगड़ी बड़े ठाकुर के चरणों में रखनी पड़ेगी.

मैं- अगर ये खुनी खेल ख़त्म होता है तो हम लोग झुक जाते है , उनको बड़ा होने देते है .

चाची- तुम्हारे चाचा ने मना कर दिया है , कहते है मौत तो एक न एक दिन आनी है ,सारी उम्र हो गयी कायरो के जैसे जीते हुए पर मरेंगे शेर की मौत

मैं- पागल हुआ है क्या चाचा. उन्हें कुछ भी करने की जरुरत नहीं , मैं देखूंगा इस मामले को . मैं आपको वचन देता हूँ की आपकी ग्रहस्थी पर कोई आंच नहीं आएगी, मैं जाऊंगा मेले में . जो भी होगा , जो भी करना होगा मैं करूँगा. ये बात हमारे बीच में ही रहेगी और उस दिन कैसे भी करके चाचा को आपको रोकना होगा.


मैंने चाय का कप निचे रखा और घर से बाहर की तरफ निकल ही रहा था की मैं सीधा ताई जी से टकरा गया, क्या मालूम वो दिवार से सटे हुए हमारी ही बाते सुन रही हो. ........
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गिरने से बचने को मैंने ताई की कमर में हाथ डाल लिया ताई की कड़क छतिया मेरे सीने से टकराई मेरे लबो ने ताई के सुर्ख गालो को हलके से छू लिया.

“देख कर चला कर, ” ताई ने चाची की तरफ देखते हुआ कहा तो मैं उस से अलग हो गया और घर से बाहर निकल गया . पल भर में ही आँखों के आगे वो लम्हा घूम गया जब ताई को मैंने ठेकेदार से चुदते हुए देखा था , दिल ने बड़ी जोर से कहा ही हिम्मत करके ताई को बता दे अपनी इस ख्वाहिश के बारे में , पर हमारे सोचने से क्या होता , देनी तो ताई को थी उसका भी तो मन होना चाहिए न .

सोचते सोचते मैं हलवाई की दूकान पर जाकर बैठ गया , एक गर्म समोसा लिया और खाने वाला ही था की सुनार मेरे सामने आकर बैठ गया .

“और बेटे कैसे हो ” सुनार ने मुझसे कहा

आज से पहले मेरी उससे कभी कोई बात नहीं हुई थी तो मुझे थोडा अचरज हुआ .

मैं- ठीक हूँ लालाजी , तुम बताओ .

लाला- बस कट रही है . वैसे तुझे मुझसे कोई काम हो तो बता देना , हिचकिचाना मत मैं तो तेरे लिए सदा ही हूँ

मैं- मुझे भला क्या काम होगा तुमसे

लाला ने आँखों से चश्मा उतार कर साफ़ किया और मेरे थोडा और नजदीक सरक कर बोला- तुझे कुछ भी , मेरा मतलब सोना-चांदी बेचना हो तो मैं हूँ न, सीधा मेरे पास आ जाना , बढ़िया दाम दूंगा तुझे.

मैं- पागल हुआ है क्या लाला, हालत देख मेरी, और भला किसने तुझसे कहा की मेरे पास कुबेर का खजाना है .

लाला- इतना भी भोला नहीं है तू, बैंक मेनेजर ने मुझे सब कुछ बता दिया है , देख पुरे गाँव को मालूम है तेरे चाचा ने सब कुछ डकार लिया है , तुझे नौकर से जायदा कुछ नहीं समझते वो. तू वो गहने मुझे बेच दे, दाम तेरे हाथ में आयेंगे तो मौज करेगा.

“तेरो बकवास ख़तम हो गयी हो तो , निकल यहाँ से ” मैंने समोसे का टुकड़ा तोड़ते हुए कहा .

लाला- ऐंठ देखो इस चिलगोजे की, तेरे बाप में भी ये ही अहंकार था

“भोसड़ी के , तेरी हिम्मत क्या हुई मेरे बाप का नाम अपनी जुबान पर लाने की ” गुस्से में मैंने लाला की गुद्दी पकड़ ली.

पल भर में ही चौपाल पर तमाशा हो गया .

“कल के लौंडे , तेरी ये औकात तूने मेरे गिरेबान पर हाथ डाला , इस गाँव में लोगो की ये औकात भी नहीं की वो मुझ से नजर मिला सके, मेरी जुती को दुनिया सलाम करती है तू देख ये सौदा कितना महंगा पड़ेगा तुझे ” लाला ने गुर्राते हुए कहा .

मैंने खींच कर एक थप्पड़ लाला के गाल पर रसीद किया और बोला-चूतिये, महंगे सस्ते की बात ही नहीं है , तू समझ तो गया होगा की तेरी औकात क्या है मेरे आगे.

लाला- इस थप्पड़ की गूँज बहुत दूर तक सुनाई देगी तुझे , तेरी जिन्दगी के दिन आज से उलटे हो गए है .

मैं- नो दो ग्यारह हो जा लाला, इस से पहले की मैं अपनी हद भूल जाऊ, और जा जो उखाड़ सकता है उखाड़ ले .

लाला ने घुर कर देखा मुझे और अपनी बेंत लिए तेजी से चला गया .

“तू क्या देख रहा है एक समोसा और दे ” मैंने हलवाई से कहा और वापिस बेंच पर बैठ गया .

समोसा खाते हुए मैं सोचने लगा की बैंक मेनेजर ने गहनों की बात सुनार को क्यों बताई , और उन गहनों का मुझसे भला क्या लेना देना था . मैंने बैंक जाने का सोचा और करीब 11 बजे मैं बैंक में पहुँच गया .

“सुन भाई, मुझे मेनेजर से मिलना है ” मैंने बाहर बैठे चपरासी से कहा .

“साहब , दो बजे से पहले किसी से नहीं मिलते ” उसने रुखा सा जवाब दिया.

मैं- मेनेजर को जाकर बोल की चौधरी अर्जुन सिंह का बेटा बाहर खड़ा है

कुछ ही देर में एक नाटा सा आदमी लगभग दौड़ते हुए बाहर आया और बोला- छोटे चौधरी, आप यहाँ आये, सुचना भिजवा देते मैं खुद आ जाता .

मैं- क्या फर्क पड़ता है साहब,

“आप आइये मेरे साथ ” उसने कहा और मुझे खुद के केबिन में ले आया.

मेनेजर की उम्र कोई पचास के लगभग की तो होगी ही , सर के थोड़े से बाल झड़े हुए. मैंने देखा उसके माथे पर पसीना कुछ जायदा ही बह रहा था.

मैं- मेरा यहाँ कभी नहीं आना होता, मैं बस आपसे एक बात पूछने आया हूँ और मुझे विश्वास है की आप मुझे मेरे सवाल का जवाब देंगे.

मेनेजर ने हाँ में सर हिलाया.

मैं- लाला ने आज मुझसे गहनों की बात की , उन गहनों का मुझसे क्या वास्ता है और लाला को कैसे मालूम हुआ.

मेनेजर- आप तो जानते है की मेरी वफ़ादारी हमेशा से आपके साथ रही है .

मैं- ये मेरे सवाल का जवाब नहीं है .

मेनेजर- बैंक का नियम है की हमें लाकर रखने पड़ते है , पिछले दिनों बैंक में मरम्मत का काम चल रहा था तो लाकर हमने किसी दूसरी जगह रखे कुछ दिनों के लिए , जिस दिन लाकर शिफ्ट हो रहे थे , उसी दिन लालाजी बैंक में आये थे , बदकिस्मती से दीमक खाए लाकर मजदूरो के हाथ से गिर गए और उनमे से एक लाकर जो कुछ ज्यादा ही खस्ताहाल था वो सबके सामने खुल गया.

मैं- फिर

मेनेजर- लालाजी की दिलचस्पी बिखरे हुए सामान में जाग उठी

मैं- और क्या था वो सामान

मेनेजर उठा और मुझे अपने साथ बैंक के एक नए बने हिस्से में ले आया. उसने जेब से एक जंग खायी चाबी निकाली और एक लाकर में लगा दी. और जब लाकर खुला तो मेरी आँखे फटी की फटी रह गयी . सोने - चांदी के अनगिनत गहने , नोटों की गड्डियां , न जाने क्या क्या .

पर मेरी दिलचस्पी उस कागज़ के टुकड़े में थी जो लाल रंग के धागे में लिपटा हुआ था, मैंने उसे उठाया, मामूली धागे को आपस में गूंध कर गले में पहनने का बनाया हुआ था जिसे एक हीरे में पिरोया हुआ था . धागा कुछ पुराना था पर हीरे में चमक बरक़रार थी . मेरी नजर कागज पर लिखी लाइन पर पड़ी

“इसका बोझ उठा सको तो ही थामना इसे ”

मैंने गौर किया ये लाइन किसी स्याही से नहीं बल्कि खून के कतरों से लिखी हुई थी. चाह कर भी मैं अपनी उत्तेजना , हैरानी को छुपा नहीं पाया.

“ये चाहिए मुझे ” मैंने मेनेजर से कहा

“सब कुछ आपका ही है , मैं तो सोलह साल से राह देख रहा था की कब आप अपनी अमानत लेने आये. ”मेनेजर ने जवाब दिया .

मैं- अभी सिर्फ ये ही चाहिए मुझे

मैंने वो धागा जेब में रख लिया और बैंक से वापिस आ गया. मुझे इकतारे वाली से मिलना था तो मैं रस्ते पर ये ही सोचता रहा की मेरा बाप मेरे लिए इतना सब छोड़ कर गया था और मुझे मालूम ही नहीं था.
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#16

दिल इतना बेताब कभी नहीं हुआ था , न जाने कैसी ये कसक थी . बैंक से निकल कर मैंने रुद्रपुर का रास्ता लिया ही थी की साइकिल धोखा दे गयी , इस कमबख्त को भी अभी पंक्चर होना था . मैंने साइकिल को दुकान पर खड़ी की और पैदल ही चल दिया. घंटे भर बाद मैं रुद्रपुर की सीम में दाखिल हो गए. मई के अंतिम दिनों की दुपहरी इतना गर्म थी की जैसे बदन से खाल को उतार कर ही मानेगी. एक चरवाहे से मांग कर मैंने थोडा पानी पिया और उन कतार में लगे पीपलो में से एक के निचे जाकर बैठ गया. छाँव मिली तो जी को थोडा करार मिला.

दूर दूर तक कोई दिख नहीं रहा था , सिवाय झुलसती धुप के , आज वो बुजुर्ग लोग भी ताश नहीं खेल रहे थे . कुछ देर मैंने उसका इंतज़ार किया और फिर पेड़ से कमर लगा कर तौलिया मुह पर डाल कर आँखे मूँद ली. हलकी सी नींद में ही गया था की किसी ने झिंझोड़ दिया मुझे . झट से मैंने आँखे खोली . मेरे सामने वो बैठी थी .

“हाँ, तू कब आई ” मैंने उबासी लेते हुए उस से कहा .

वो- बस अभी अभी .

“जब जब तुझे देखता हूँ , दिल करता है तू बस मेरे सामने बैठी ही रहे , ”मैंने कहा

वो- कल को तेरा दिल न जाने क्या कहेगा.

मैं- तू सुन लेना जो भी वो कहे.

वो- यही बकवास करनी है क्या तुझे .

मैं- तू ही बता फिर क्या बात करूँ मैं .

वो- तो कभी तो सिरियस हुआ कर

मैं- सारी जिन्दगी ही रहा हूँ , अब तलाश है कुछ लम्हों की जो मैं जी सकू.

वो- मैंने मालूम किया है तेरे बारे में .

मैं- जासूस है तू

वो- जो मेरे पीछे पड़ा है उसके बारे में जानकारी तो होनी चाहिए न

मैं- तो क्या मालूम हुआ तुझे

वो- यही की तू अमीर है , गाँव में नाम है तुम्हारे परिवार का .

मैं- ये तो तुझे दुनिया ने बताया, तेरे मन ने जो बताया वो बता

वो- मैं दुनिया से अलग हूँ क्या

मैं- उस रात तूने मेरा हाथ देखा था , तो मेरा हाल भी देख ही लिया होगा. तू सितारे पढ़ती है , तूने मेरा मन भी पढ़ा होगा.

वो- मैं एक मुसफ़िर हूँ, मेरी मंजिल का कोई पता नहीं

मैं- मैं बंजर टुकड़ा हूँ, मुझे बरसात की चाह नहीं

वो - मैं लहराता आँचल हूँ ,

मैं- मैं थाम लूँगा

वो- मैं बहती लहर हूँ मेरा साथ तुझे डगमगा देगा .

मैं- तेरा हाथ पकड लूँगा.

वो- मैं गिरी हुई आन हूँ

मैं- तुझे मान बना कर माथे पर लगा लूँगा.

वो- मैं बिखरी हुई राख हूँ

मैं- मै उसे तिलक बना लूँगा.

वो- मेरा साथ तुझे बर्बाद कर देगा.

मैं- मैं बर्बाद होना चाहता हूँ

उसने माथे पर घिरी पसीने से भीगी लटो को पीछे की ओर किया और बोली- चाय पिएगा.

मैं- रोटी खाऊंगा,

“आ फिर संग मेरे ” उसने अपना झोला उठाया और मैं उसके साथ साथ चल पड़ा. पता नहीं क्यों वो बार बार मुस्कुरा रही थी , और ये पहली बार था जब मैंने उसे मुस्कुराते हुए देखा था . चलते चलते हम लोग रुद्रपुर के बाजार में आ गए थे . मैं बस उसके कदमो को देख रहा था , गाँव के साइड से होते हुए हम लोग चल रहे थे तभी मेरी नजर उस सफ़ेद संगमरमर से बनी ईमारत पर पड़ी. मैंने देखा कुछ पलो के लिए मेरी दोस्त के कदम लडखडाये पर फिर उसने अपना मुह दूसरी तरफ फेर लिया. मैं कुछ देर उस तीन मंजिला चमचमाती ईमारत को निहारता रहा .

“आओ भी ” उसने कुछ झुंझला कर कहा . थोडा और चलने पर रस्ता ख़त्म होने लगा. इक्के दुक्के मकान पीछे छूटने लगे और फिर वो रुक गयी . हमारे सामने एक पुराना मकान था जो मरम्मत मांग रहा था . उसने जेब से चाबी निकाल कर उस पुराने ताले को खोला और हम अन्दर आ गए. उसने दरवाजा बंद किया.

आँगन में मिटटी का लेप लगा था, पास में ही एक हैंडपंप था , दो कमरे थे , .

मैंने पास रखे मटके से दो गिलास पानी पिया कुछ छींटे मुह पर मारे और फिर चारपाई पर बैठ गया . उसने झोला खूँटी पर टांका और बोली- बोल क्या खायेगा.

मैं- रोटी .

वो- रोटी किसी के साथ तो खायेगा न ,

मैं- जो है दे दे

वो- बैठ जरा

उसने चूल्हा जलाया और रोटी बनाने लगी.

“थोडा बुरा है पर यही है मेरा घर ” उसने कहा

मैं- घर का क्या बुरा . कमसेकम तेरे पास खुद का घर तो है .मुझे देख मेरे पास तो खुद की झोपडी भी नहीं .

“अन्दर से घी की डोली ले आ.” उसने कहा

मैं अन्दर गया , कमरे से हर चीज़ बड़े करीने से रखी हुई थी . सामने मुहे डोली दिखी तो मैं ले आया उसने थाली में रोटी रखी घी में डुबो कर , कटोरी ने दाल और गिलास में लस्सी.

“अभी तो ये ही है , मालूम होता तो कुछ और बनाती ” उसने कहा .

“मेरे लिए तो ये ही दावत है , न जाने कब आखिरी बार गरम रोटी खाई थी “मैंने निवाला मुह में रखते हुए उसे कहा.

वो मुस्कुरा पड़ी. भरपेट भोजन किया मैंने .

“तेरा बहुत आभार, ” मैंने उस से कहा .

“और कुछ , ” उसने कहा

मैं- हाँ एक गिलास पानी .

“अब ये तेरा घर भी है , दोस्त का जो कुछ है वो तेरा भी है और अपने घर में हुक्म नहीं चलाते जो चाहिए होता है ले लेते है ” उसने कहा

मैं- तूने कब कहा की तूने हा कहदी

वो- कुछ बाते कहीं नहीं जाती बस समझी जाती है . और तुझे भी कुछ बाते समझनी होंगी,

मैं -जैसे की

वो- जैसे की तुम कभी भी यहाँ नहीं आ सकते,

मैं- अभी तो कह रही थी की दोस्त का घर तेरा घर है

वो- मैं अपने चाचा के साथ रहती हूँ , आज वो काम से शहर गया है इसलिए तुजे ले आई , जब वो यहाँ होगा तब तू आ सकता है बाकि हम बाहर कहीं मिलेंगे.

मैं- जो तेरी मर्जी.

वो- ठीक है फिर

मैं- क्या ठीक है

वो- अब तू चल.

मैं- फिर कब मिलेगी.

वो- जब किस्मत में होगा.

मैं- और किस्मत में कब होगा.

वो- जब मैं चाहूंगी.

मैं- सुन , तेरे गाँव की सीम पर ही मेरी बंजर जमीन है , अगर तू चाहे तो हम उधर मिल सकते है .

वो- सोच कर बताउंगी.

मैं- ठीक है मैं चलता हूँ

जी भर कर उसे देखने के बाद मैं दरवाजे तक पहुंचा ही था की मुझे कुछ याद आया .

मैं- सुन जरा

वो- क्या

मैं- तूने नाम नहीं बताया.

वो- मीता, मीता नाम है मेरा.


“मीता,” मेरे होंठो ने कहा और मैं अपने रस्ते चल पड़ा. वापसी में मैंने उसी सफ़ेद ईमारत को देखा. बनाने वाले ने भी क्या खूब कारीगरी की थी , सफ़ेद संगमरमर पर क्या नक्काशी थी , ईमारत की चारदीवारी के बाहर सफ़ेद खम्बे थे जिनपर दो सांप आपस में लिपटे हुए थे. मैं ईमारत को निहारने में इतना मशगूल था की मुझे अचानक से रस्ते से हटना पड़ा, ईमारत से एक के बाद एक गाडिया निकलने लगी और उस खुली जीप में मैंने चश्मा लगाये दद्दा ठाकुर को देखा....... एक पल को हमारी नजरे मिली, कम से कम मुझे तो ऐसा ही लगा और फिर जीप आगे बढ़ गयी धुल उड़ाते हुए.
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#17

ख्यालो में मीता का अहसास लिए मैं रुद्रपुर के बाजार में थोड़ी देर रुक गया , एक दूकान पर मैं गन्ने का रस पी ही रहा था की मैंने अपनी ओर दो लडको को आते देखा, जिसमे से एक वो ही था जिसने मुझे उस दिन रोका था .

“तू फिर आ गया , ” उसने कहा

मैं- कोई मनाही है क्या, या तूने खरीद रखा है इस गाँव को जो हर कोई तेरी मर्ज़ी से आएगा जायेगा.

वो- मेरी मर्जी तो तुझे बता देता उसी दिन अगर दद्दा ठाकुर ने मुझे नहीं रोका होता.

मैं- आज तो नहीं है न दद्दा ठाकुर यहाँ पर ,

वो- साले, तू खुद को समझता क्या है तुझे होश भी नहीं है की पल भर में तेरे साथ क्या से क्या हो सकता है , आसपास देख जरा और समझ तू किसके इलाके में है .

मैं- किसी ने तुझे बताया नहीं की इलाके कुत्तो के होते है , इंसानों के नहीं वैसे तेरा नाम बता जरा

वो- जोरावर नाम है मेरा.

उसका नाम सुनते ही मुझे इतनी तेज हंसी आ गयी .

“क्या हुआ तुझे , ” उसने हिकारत से पूछा

मैं- तूने वो कहावत सुनी तो होगी ही नाम फतेहसिंह शक्ल चुतिया ,बस तेरा नाम जानकार याद आ गयी .

“हरामजादे तेरी ये हिम्मत तूने जोरावर की बेइज्जती की ” उसने मेरा गिरेबान पकड़ लिया.

मैंने अपना घुटना उसकी टांगो के बीच मारा और उसके सर को गन्ने की रेहड़ी पर दे मारा.पर अगले ही पल मेरी गलती का अहसास हुआ मुझे एक ये काम ही नहीं करना था मुझे . मैंने जोरावर को उठाया .

“सुन चूतिये, मैं नहीं जानता तू किसके ऊपर कूदता है , मुझे जानना भी नहीं है और घंटा फरक भी नहीं पड़ता , ये गाँव ये रास्ता किसी का भी हो, मेरा जब जी करेगा जब मैं आऊंगा. मैं नहीं जानता तेरी दिक्कत क्या है और न मैं तेरी दिक्कत का इलाज करना चाहता हूँ तू अपने काम से काम रख “मैंने उसके कपडे झाड़ते हुए कहा.

क्या मालूम उसे मेरी बात समझ आई या नहीं पर मैं ये इस टाइप के लफड़े बिलकुल नहीं चाहता था , क्योंकि मेरी जिन्दगी वैसे ही बहुत उलझी पड़ी थी, ये नया चुतियापा मैं नहीं चाहता था. खासकर जब मुझे अब मीता से मिलने आते जाते रहना ही था. अपने ख्यालो में गुम कब मैं गाँव आ गया मालूम ही नहीं हुआ.

मैं सीधा ताई के घर गया . वो झुक कर झाड़ू लगा रही थी आँगन में, मेरी नजर उसकी चुचियो की घाटी पर पड़ी और फुर्सत से मैंने ताई की चुचियो के दर्शन किये. दिल ने एक बार फिर कहा की एक बार जिक्र कर ये दे देगी. पर दिल की कौन माने . ताई ने मुझे बैठने को कहा और कुछ देर में मेरे पास आ गयी .

“”ये तेरे दिमाग में क्या चल रहा है तूने लाला को थप्पड़ मार दिया. जानता है न तू उसे ” ताई ने शंकित स्वर में कहा .

मैं- मुझे परवाह नहीं साला मेरे पिता के बारे में उल्टा सीधा बोल रहा था थप्पड़ नहीं मारता तो क्या करता

ताई- अभी तू इस लायक नहीं है की ऐसे पंगे ले सके. खासकर तब जब पहले जैसा कुछ नहीं रहा .

मैं- मुझे जरा भी परवाह नहीं है की पहले क्या था अब क्या है ,मैं अपनी ही परेशानियों में घिरा हुआ हूँ,

ताई- मैं समझती हूँ

मैं- तुम नहीं समझती, एक तो उस दद्दा ठाकुर के पिल्ले से पंगा हो गया आज मेरा , घर जाऊ तो चाची ने जीना हराम किया हुआ है . करू तो क्या करू .

ताई- दद्दा ठाकुर, तू कब मिला उस से , क्या कहा उसने तुझसे .

मैं- क्या कहेगा चुतिया . मैं रुद्रपुर गया था तो टकरा गया उस से .

ताई न अपने मुह पर हाथ रखा और बोली- तुझे नहीं जाना था वहां पर , नहीं जाना था .

मैं- पर क्यों , हर कोई ये ही कहता है की नहीं जाना , पर क्यों नहीं जाना ये कोई नहीं बताता.

ताई- क्योंकि दद्दा ठाकुर से दुश्मनी है हमारी, तेरे दादा को उसी ने मरवाया था .

मैं- ये बात मुझे पहले क्यों नहीं बताई तुमने

ताई- क्योंकि ये एक उडती सी खबर है , इसका कभी कोई सबूत नहीं मिला , सब का अंदाजा है ये क्योंकि तेरे दादा की लाश रुद्रपुर में मिली थी .

मैं- दद्दा ठाकुर से दुश्मनी क्यों हुई

ताई- ये एक राज़ है , ऐसा राज जो न जाने किसके सीने में दफ़न है .

मैं- अगली बार दद्दा ठाकुर मिलेगा तो उसी से पूछ लूँगा.

ताई- तू उस से दुबारा मिलने की गलती बिलकुल मत करना.

मैं- ताई तू मेरे पिता को कितना जानती थी .

ताई- जितना उसे कोई नहीं जानता

अचानक ताई के शब्द रुक गए , उसने तुरंत बदलते हुए कहा- मैं ही क्या सारा गाँव उसे जानता था , मानता था . अर्जुन गाँव के हर किसान का कन्धा था , हर माँ का बेटा जब तक की वो हवेली .....

मैं- हवेली क्या ..

ताई- कुछ नहीं , तू अब जा मुझे कुछ काम है तू फिर आना .

मैं- तू कुछ छिपा रही है मुझसे ताई .

ताई- मैंने कहा न तू जा अभी .

ताई ने लगभग मुझे घर से बाहर ही कर दिया और दरवाजा बंद कर लिया. कुछ तो ऐसा था जो ताई मुझसे छिपा रही थी . अतीत के आखिर ऐसे कौन से पन्ने थे जो पलटने से मुझे रोका जा रहा था, ऐसी कौन सी कहानी थी जिसका किरदार मुझे नहीं बनना देना चाहते थे ये लोग.

रात को बड़ी देर तक मैं अपने माता- पिता की तस्वीर देखता रहा . सफ़ेद पगड़ी पहने मेरे पिता मुझे गोद में लिए खड़े थे . मेरी माँ पास में ही बैठी थी .

मेरी नजर उस बक्से पर पड़ी जो मैंने सुनार से चुराया था . मैंने उसे खोला वो धागा वैसे ही पड़ा था जैसे मैंने उसे छोड़ा था . पर अचानक से मेरा ध्यान एक खास बात पर गया मैंने तुरंत अपनी जेब में हाथ दिया और वो हीरे वाला धागा निकाला दोनों धागों को एक ही तरीके से गूंथा गया था .मतलब साफ था इनको बनाने वाला कोई एक ही था पर कौन ये सवाल और मेरे लिए खड़ा हो गया था .

सुबह मैं ताई के साथ खेत पर जा रहा था की रस्ते में मुझे जब्बर के दो आदमियों ने रोक लिया. ताई घबरा गयी पर मैंने उसे शांत रहने को कहा .

“सुन छोरे , आज के आज जाकर सुनार के पैर पकड़ कर माफ़ी मांग ले. ” उनमे से एक ने कहा

मैं- और माफ़ी न मांगू तो

“तो तुझे दुबारा समझाने न आयेंगे ” उसने कहा .

दिल तो किया था की उसी पल उलझ जाऊ उनसे पर मेरे साथ ताई थी तो मैंने सब्र कर लिया और बोला- जाकर कह देना लाला से कल उसको मेरा संदेसा मिल जायेगा .

“संभल कर रहियो वर्ना अंजाम ऐसा होगा की तूने सोचा न होगा.” उसने धमकी दी.

मैं- नाम क्या है तेरा

वो- रंगा

मैं- रंगा, एक बार जरा साइड में आ

मैं उसे साइड में लेके गया और बोला- आज तो तूने मेरा रास्ता रोक लिया वो भी जब मेरे साथ मेरे घर के लोग है, दुबारा ये गलती मत करना वर्ना तू कभी अपने घर नहीं जा पायेगा, और इसे मेरी चेतावनी मत समझना , मैं अभी कोई तमाशा नहीं चाहता तू निकल और लाला को जाकर कह देना की अपनी गांड संभाल ले, ऐसी रेल बना दूंगा उसकी की फिर कोई स्टेशन नहीं मिलेगा.


मैंने ताई को साथ लिया और खेतो की तरफ चल पड़ा. गुस्से से लाल पीली हुई ताई मेरे आगे चल रही थी , मेरी नजरे एक बार फिर ताई की मटकती गांड पर जम गयी . दिल में बड़ी जोर से इच्छा हुई की अभी के अभी ताई के कुलहो को थाम कर मसल दू. उस पल मैंने सोचा की कैसे भी करके ताई की लेनी ही है .
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HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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मेरी नजर उस तस्वीर पर पड़ी जो किसी ज़माने में बड़ी जिंदादिल रही होगी. अर्जुन सिंह, सुनार और जब्बर एक दुसरे के कंधो पर हाथ रखे,हँसते -खिलखिलाते हुए . तस्वीर को देख कर मैं न जाने क्यों मुस्कुरा पड़ा. लोगो का कहना सच ही था की दोस्ती बड़ी गहरी थी इन तीनो की , और मेरे सवाल बड़े गहरे थे , क्योंकि मैं जानता था की जब इतनी गहरी दोस्ती नफरत में बदलती है तो उसकी वजह मामूली नहीं हो सकती .

जब मैं घर आया तो देखा की चाची आँगन में ही थी , मुझे देख कर वो मेरे पास आयी ,

चाची- कहाँ था तू

मैं- बस यही था .

चाची-एक बेहद गंभीर मुद्दे पर मुझे बात करनी है तुमसे

मैं- कहो जो कहना है

चाची- मुझे लगता है की तुझे अब रीना से मेल-जोल थोडा कम करना चाहिए

मैं ये सुनकर थोडा हैरान हो गया

चाची- अब तुम लोग बड़े हो रहे हो. मैं जानती हूँ तुम लोग बचपन से साथ रहे हो पर इसका मतलब ये नहीं की .

“क्या मतलब नहीं चाची ” मैंने चाची की बात काटते हुए कहा .

चाची- मतलब ये की मैं चाहती हूँ तुम रीना से दुरिया बनाओ

मैं- ये सोचा भी कैसे तुमने

चाची- मुझे हक़ है ये कहने का

मैं- किस हक़ से ये हक़ है तुमको

चाची- मेरी बात को समझने की कोशिश कर , मैं समझती हूँ की तेरी दोस्त है वो , पर कहीं ऐसा न हो की वो दोस्त से आगे बढ़ जाए.

मैं- साफ़ साफ क्यों नहीं कहती तुम

चाची- मुझे लगता है की तेरा और रीना का चक्कर चल रहा है , और मैं चाहती हूँ की तेरे मन में ऐसा कोई भी विचार है तो उसे मन से निकाल देना. रिश्तेदारों की अमानत है वो, हमने उसे बेटी का हक़ दिया है ,

मैं- मैं और रीना देख लेंगे

चाची- तुम नहीं देख पाओगे, तुम समझो इस बात को . मैं जानती हूँ तुम दोनों का रिश्ता दोस्ती से बहुत आगे बढ़ चूका है , मैं ही नहीं पुरे गाँव में चर्चा होने लगी है , रीना के लिए तुमने रुद्रपुर में जो किया . तब से गाँव वालो की जुबान थम ही नहीं रही है .

मैं- रीना की जगह कोई और होती तो भी मैं अड़ जाता उसकी आबरू के लिए और गाँव कुछ भी कहे मुझे फर्क नहीं पड़ता .

चाची- पर उस को पड़ेगा. एक लड़की के दामन पर दुनिया हज़ार इलाज्म लगा देती है

मैं- उसका मेरा साथ नहीं छूटेगा, इस रिश्ते को कैसे निभाना है हम दोनों ही सोचेंगे.

चाची- मैं जानती हूँ तुम दोनों प्रेम करने लगे हो. किसी से भी छिपी नहीं है ये बात, रीना की माँ उसे जल्दी ही साथ ले जाएगी, रुद्रपुर वाले काण्ड के बाद से उसका मन बुझा हुआ है

मैं- पहले मेरे हिस्से की हर एक ख़ुशी छीन ली गयी, मेरी हर हसरत को टूटते देखा है मैंने, जब जब मैं टूटता मुझे थामने वाली अगर कोई थी तो वो रीना, बचपन से आजतक जिसे देख कर मुझे हौंसला मिला वो थी रीना, और तुम कहती हो उस से दूर हो जाऊ, तुमने मोहब्बत की बात की है तो सुनो, जिस दिन उसने मुझसे कहा की मेरा हाथ थाम ले, अगर ये सारा जहाँ भी जोर लगा लेगा तो मैं रुकुंगा नहीं .

चाची- तो तू मेरी बात नहीं मानेगा.

मैं- मैं रीना का साथ नहीं छोडूंगा. मरते दम तक नहीं छोडूंगा.

चाची- ये प्रेम, मोहब्बते सब फ़िल्मी बाते है , ये गाँव समाज इनके कुछ नियम कायदे होते है जिनसे हम सब बंधे है .

मैं- हमने भी प्रीत की डोर बाँधी है , चाची

चाची- ठीक है फिर, तुझे तो जलना ही है , मेरी फ़िक्र उस मासूम के लिए है , तेरी ये जिद ही नाश करेगी

मैं- जिद होती तो छोड़ देता, मोहब्बत है थाम कर रखूँगा.

चाची- तू जाने और तेरा भाग्य जाने,

एक तो मेरा दिमाग सुनार की मौत की वजह से ख़राब था ऊपर से चाची ने रीना से दूर होने का कह कर उसे और ख़राब कर दिया था. इस बात पर मैंने बहुत विचार किया, जो बात मुझे परेशां कर रही थी वो ये की जब रीना को मीता के बारे में मालूम होता तो क्या होगा. बेशक मीता और मेरे रिश्ते को बस हम ही समझते थे, पर एक म्यान में दो तलवारे न पहले कभी रही थी ना आगे रहने वाली थी .

चाची ने ठीक ही कहा था इस आग में मेरे साथ रीना भी जलेगी. जीवन जैसा भी था जी रहे थे अगर उस दिन मैंने सुनार से वो सुनहरा बक्सा नहीं चुराया होता तो इस पहेली में मैं उलझा नहीं होता. दूसरा मेरी चिंता थी की रीना कहीं अकेले शिवाले में न चली जाए, कही कोई रुद्रपुर वाला उस से उलझ न जाये, उसे चोट न पहुंचा दे.

दिन ढलते ढलते हलकी हलकी बूंदा-बांदी हो गयी थी जिसने पवन को और सुहानी बना दिया था . उस रात मैंने निर्णय लिया की शिवाले चला जाए, क्योंकि इन सब घटनाओ की जड वही पर थी ये तो अब तय ही था .

हलकी सी ठंडी रात में , बूंदों संग लहराती हुई राहो पर चलते हुए मैं रुद्रपुर की तरफ चला जा रहा था , रस्ते में वो ग्यारह पीपल शान से खड़े थे . मैंने देखा उनके निचे एक एक करके पुरे ग्यारह दिए जा रहे थे, जो इन हवाओ में भी शांत थे. शिवाले की सीढ़ी पर मैंने सर को टिका कर नमन किया और अन्दर दाखिल हो गया. बरसाती रात में सब कुछ किसी आबनूस का स्याह था. चूँकि मैं यहाँ पर पहले आ चूका था इसलिए अंदाजे से मैं बस चले जा रहा था ,

मैंने बस यूँ ही उस बावड़ी में हाथ डाला और मेरे हाथ में रेत आई, आज वहां पर पानी नहीं था . मैं आगे बढ़ गया . मैं देवता के कक्ष की तरफ गया. तो देखा की वहां पर आग जल रही थी , कक्ष में इधर उधर राख बिखरी पड़ी थी . देवता की मूर्ति अब पानी के निचे नहीं थी बल्कि एक पुराने से पत्थर पर रखी थी .उस आग से ऐसी आवाज आ रही थी की जैसे कुछ भुना जा रहा हो . मैंने गौर से देखा तो ये , ये तो किसी का दिल था . जो आहिस्ता आहिस्ता से जल रहा था . मुझे एक मिनट में समझ आ गया की ये किसका दिल था , ये सुनार का दिल था क्योंकि उसकी लाश से इसी हिस्से को निकाला गया था .

डर क्या होता है मैंने उस दिन महसूस किया . ये तो शुक्र था की मैंने मूत नहीं दिया खौफ के मारे. मेरे सामने एक इन्सान का दिल जल रहा था पर सवाल वही था किसलिए. मैं उलटे पाँव वापिस मुड गया पर तभी इतना जोर का शोर हुआ की उस आवाज से मेरे कान के परदे जैसे फट ही गए थे , किसी ने बड़े जोर से घंटे को बजा दिया था . मेरे सिवा कोई और भी था वहां पर .

मैं उस आवाज की दिशा में दौड़ा और वहां जाकर देखा तो वहां पर जैसे दिन निकला हुआ था . क्या खूब नजारा था , हजारो दिए जैसे एक साथ जल रहे थे वहां पर , उस खाली मैदान में . पर मेरी दिलचस्पी उस शख्स में थी जो वहां पर खड़ी थी . और जब वो पलटी तो दियो की रौशनी में मैंने उसके चेहरे को देखा,,,,,,,,,,, और देखता ही रह गया.
 

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#18

वो मुझसे बस थोड़ी ही दूर थी, इतना की मैं बस हाथ आगे बढ़ा कर उन मादकता से भरे नितम्बो को सह्ला सकता था . मेरे होंठो पर थूक सूख गया, हाथ कांपने लगे. मैं बता नहीं सकता की उस लम्हे में मैं न जाने क्या कर जाता.

“इतना धीरे क्यों चल रहा है ” ताई ने फिर पीछे मुडके कहा .

मैं- कहाँ धीरे चल रहा हूँ

मैंने कहा और ताई के कदमो से कदम मिला लिए. थोड़ी देर में हम लोग खेत पर पहुँच गए, बिजली आ रही थी तो मैंने पानी की हौदी पूरी भर दी. कुवे से निकला ताजा पानी एकदम ठंडा था, मैंने कुछ छींटे मुह पर मारे और थोड़ी मस्ती करते हुए ताई की तरफ भी मग्गा भर के फेक दिया.

“क्या करता है , भिगो दी न मुझे ” ताई ने झल्लाते हुए कहा .

“भीगना तो था ही वैसे भी , कपडे धोने जो है ” मैंने कहा

ताई कुछ कहती उससे पहले ही मैंने कपडे उतारे और हौदी में कूद गया . ताई ने बाल्टी भरी, अपने लहंगे को थोडा सा ऊँचा उठाया, उसकी गोरी मांसल पिंडलिया देख कर एक बार फिर हसरतो का पंछी अरमानो के बादलो में उड़ने लगा. कपडे धोती ताई की बजती चूडिया बड़ी अच्छी लग रही थी, गीले ब्लाउज से दिखती ताई की काली ब्रा गजब ढा रही थी.

“क्या देख रहा है ऐसे ” अचानक से ताई ने मुझसे पूछा

मैं- कुछ नहीं

ताई- कुछ तो देख रहा है

मैं- तुम्हे क्या लगता है

ताई- नजरो को पढने का हुनर है मुझमे

ताई ने कहा और हौदी पर अपनी कोहनिया टिका कर खड़ी हो गयी, उस अवस्था में ब्लाउज से झांकती चुचिया मुझे जैसे कह रही थी कौन रोक रहा है तुझे आ थाम ले हमें और निचोड़ ले सारे रस को.

“तो क्या पढ़ा मेरी नजरो में तुमने ” मैंने ताई के मन को टटोला

ताई- कपडे सूख जाये तब तक मैं थोडा आराम कर लेती हूँ तू दो बालटी पानी पीछे की तरफ रख दे मैं बाद में नहा लुंगी,वैसे भी आधी तो भीग ही गयी हूँ उफ़ मेरी कमर .

मैं- पीछे क्यों यही नहा लो. हौदी भरी तो हैं

“यहाँ कैसे, मतलब तू भी तो है यहाँ पर ” ताई ने कहा

“ मैं चला जाता हूँ वैसे भी मेरा हो ही गया है “ मैंने कहा

और हौदी से निकल ही रहा था की ताई ने कहा- रहने दे , मैं यही नहा लेती हूँ, नहाना होगा तब तक दुसरे कपडे सूख जायेंगे वो पहन लुंगी फिर “

मैंने कंधे उचकाए और वापिस हौदी में घुस गया. बेशक ठंडा पानी मेरे बदन को राहत दे रहा था पर अंदर से काम वासना जला रही थी मुझे. ताई ने डिब्बे में पानी लिया और अपने बदन पर गिराने लगी. भीगा बदन किसी क़यामत से कम नहीं था, ताई का लहंगा उसकी जांघो से चिपक गया था जिस से उसकी गदराई जांघे और सुडौल लगने लगी थी .

ताई को निहारते हुए मैंने पास रखी साबुन उठाई और अपने बदन पर मलने लगा. तो ताई ने मुझे टोका- अरे बाहर आकर साबुन लगा, सारा पानी ख़राब हो जायेगा.

तो मैं हौदी से बाहर आया. मेरे बदन पर बस एक कच्छा था जिसमे मेरा अर्ध उत्तेजित लिंग फडफडा रहा था. ताई ने मेरे उस हिस्से पर भरपूर नजर डाली और बोली- थोडा साबुन मेरी पीठ पर भी लगा दे..

न जाने क्यों मुझे बहुत ख़ुशी हुई. मैं तुरंत ताई के पीछे आया इतना पीछे के मेरा अगला हिस्सा ताई के नितम्बो से टकराने लगा. पहली बार ताई की गांड को अपने बदन पर महसूस किया मैंने और मेरा लिंग तुरंत ही उत्तेजित होकर ताई के कुल्हो से रगड़ खाने लगा.

मैंने साबुन ली और ताई की गर्दन के पीछे लगाने लगा.

ताई- अच्छे से लगा

मैं- इतना ही लगेगा.ब्लाउज में ताई ने ब्लाउज के हुको को खोला और उसे एक झटके में उतार दिया. मेरी आँखे फटी की फटी रह गयी. ताई की पीठ पूरी तरह मेरी आँखों के सामने थी. मैंने ताई की ब्रा की पट्टी को छोड़ कर पूरी पीठ पर साबुन मला. फिर मैं ताई के पेट पर साबुन लगाने लगा. उफ्फ्फ क्या नर्म अहसास था वो मेरे लिए. पसलियों से जरा सा ऊपर जब मेरी उंगलियों ने ताई की चुचियो को छुआ तो कसम से क्या ही मजा आया.

मैंने बिना कुछ कहे ताई की ब्रा को खोल दिया .

“ये क्या कर रहा है तू ” ताई ने हौले से कहा

“साबुन लगा रहा हूँ ” मैंने ताई की चुचियो पर साबुन रगड़ते हुए कहा . साबुन तो बहाना था मैं अब खुल के ताई के उभारो को दबा रहा था . ताई की गांड बिलकुल मेरे लिंग पर सेट हो चुकी थी . लम्बे लम्बे सांस लेते हुए ताई अपनी चुचिया मसलवा रही थी . मैंने ताई के निप्पलस को कड़क होते महसूस किया. मेरा दिल किया की मैं ताई के गाल चूम लू . अब मैंने ताई को घुमा कर अपनी तरफ किया वो आँखे मूंदे खड़ी थी. बहुत गौर से, जी भर कर मैंने ताई की छातियो का नजारा देखा. मैंने ताई का हाथ ऊपर किया और बगलों में साबुन लगाई.

मेरी हिम्मत बढ़ी, मैंने ताई के लहंगे के नादे में उंगलिया घुमाई और उसे खींच दिया. ताई अब सिर्फ काले रंग की कच्छी में मेरी आँखों के सामने खड़ी थी . उसका हाहाकारी जिस्म मुझे पागल कर गया था. मैंने कांपते हाथ उसकी गोरी जांघो पर रखे और जांघो पर साबुन लगाने लगा. जांघो में थिरकन को साफ़ महसूस किया मैंने. गीली कच्छी जांघो पर बहुत टाइट थी तो चूत की वी शेप पूरी तरह से नुमाया हो रही थी , हलकी सी फूली हुई वो चीज जिसे पा लेना ही अब मेरी हसरत थी. जैसे ही मैंने अपने हाथ से चूत को छुआ, ताई ने मेरा हाथ पकड़ लिया और कांपते हुए बोली- बस लग गयी साबुन, फटाफट से पानी डाल लेते है कोई आ निकलेगा इस तरफ तो मुसीबत होगी.

वो मेरे सामने कच्छी में खड़ी थी , मैं उसे उसी समय चोदना चाहता था.

मैंने ताई को अपनी बाँहों में उठाया और पानी की हौदी में डाल दिया ,

“मत कर ” ताई ने कहा

“कुछ भी तो नहीं कर रहा मैं ” मैंने ताई के कान में कहा और उसके बदन से चिपक गया .

ताई- क्या करना चाहता है तू

मैं- कुछ नहीं ,

ताई- कोई हमें इस हालत में देखेगा तो क्या सोचेगा, बदनामी होगी.

मैं- किसी गैर के साथ तो नहीं तुम

वो- मेरा नाता कुछ और है

मैं-क्या मेरा हक़ नहीं तुम पर

ताई- मैं तुम्हारी ही तो हूँ

मैंने ताई के चेहरे को अपने हाथो में लिया और उसकी आँखों में देखने लगा.

“मैं नहीं जानता की ये सही है या गलत है पर अगर आज अभी इसी पल मैंने अपने मन की बात तुम्हे नहीं बताई तो सारी उम्र मुझे इसका मलाल रहेगा, मैं नहीं जानता की मेरी बात सुनकर तुम क्या कहोगी. पर मैं आज तुमसे कहता हूँ की मैं तुमसे प्यार करना चाहता हूँ, तुम्हे अपनी बनाना चाहता हूँ, ” मैंने कहा .

मेरी बात सुनकर ताई मुझसे अलग हो गयी और बोली- ये डोर जो तुम बांधना चाह रहे हो ये बड़ी कच्ची है, ये रिश्ता जो तुम मुझसे जोड़ना चाहते हो इसमें तुम्हे और मुझे कुछ नहीं मिलेगा सिवाय बदनामी के, जिल्लत के , जिस दिन ये बात खुलेगी परिवार का एक हिस्सा और टूट जायेगा.

मैं- फिर भी मुझे ये साथ चाहिए

ताई- मुझे सोचने दे,थोडा वक्त दे मुझे.


ताई हौदी से बाहर आई और बदन पर तौलिया लपेट कर दूसरी तरफ चली गयी. वापसी में हम दोनों के दरमियान एक खामोशी रही, न उसने कुछ कहा न मैंने कुछ . बाकी का दिन मेरा घर पर ही बीता. मैं चाची से कुछ बात करना चाहता था पर उसने मुझे मौका नहीं दिया. रात भी मेरी ऐसे ही कटी , अगली सुबह उठ कर मैं गली में दातुन कर ही रहा था की दनदनाती हुई ताई मेरे पास आई और बोली- ये तूने क्या कर दिया........... ये नहीं करना था तुझे, ...............
Nice update us ladke ko mara uska bakheda hoga
 
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