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Adultery गुजारिश 2 (Completed)

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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83,847
259
#50



जब मैं सुनार के घर पहुंचा तो मैंने देखा की वहां पर भीड़ जमा थी, जिसे चीरते हुए मैं आँगन पार करते हुए सुनार के कमरे में पहुंचा तो देखा की सुनार का शरीर पंखे वाले कड़े से लटका हुआ था .पूरा बदन अजीब तरह से काला पड़ गया था , जैसे की कोयला हो. मुझे उसकी मौत का दुःख नहीं था बल्कि हताशा इस बात की थी की इस कड़ी को भी तोड़ दिया गया था .



उसके बदन का एक हिस्सा खोल दिया गया था , और जब मैंने गौर से देखा तो पाया की हत्यारे ने उसके कलेजे को निकाल लिया था . मारने वाले की बड़ी दुश्मनी रही होगी सुनार से. माथा पीटते हुए मैं सुनार के घर से वापिस मुड गया . दिल में मलाल लिए की मैं उस धागे का राज़ उगलवा नहीं सका उस से.

घर जाकर देखा की ताई बड़ी गहरी सोच-विचार में डूबी थी . मैंउसके पास जाकर बैठ गया .

मैं- ताई, क्या सोच रही हो.

ताई- यही की कितनी बुरी तरह से लाला को मारा गया है

मैं- अच्छा ही हुआ साले ने गाँव का जीनाहराम किया हुआ था .

ताई- वो तो है पर गाँव में मौतों जा जैसे मौसम चल रहा है, हर दुसरे तीसरे दिन लाशे मिल रही है

मैं- पर वो लाशे गाँव वालो की नहीं है , लाला और जब्बर के आदमियों की लाशे है वो

ताई- यही बात तो मुझे खाए जा रही है .जब्बर पूरा जोर लगाये हुए है कातिल को पकड़ने के लिए , मुझे डर है कहीं खुनी खेल फिर से चालू न हो जाये

मैं- कैसा खुनी खेल

ताई- इस आग में न जाने कितने निर्दोष गाँव वाले पिस जायेंगे.

हम बात कर ही रहे थे की रीना आ गयी . ताई रसोई में चली गयी . रीना मेरे पास बैठ गयी .

मैं- कहाँ, गायब है तू आजकल ऐसा लगता है की तुझे देखे हुए ज़माने बीत गए.

रीना- अच्छा जी, तो आजकल कातिल कहने लगे की क़त्ल भी हो जाओ और उफ़ भी न करो. मुझसे पूछते हो तुम, जबकि जानना मैं चाहती हूँ की ये दिन ये राते कहाँ बीत रही है तुम्हारी.

मैं- तेरे बिना कैसे दिन कैसी राते.

रीना- और मैं ही नहीं हूँ उन दिन उन रातो में

मैं- तेरी नाराजगी जायज है , जो सजा देना चाहे मंजूर है

रीना- वो दिन कभी ना आये की मुझे तुझे सजा देनी पड़े.

हम बात कर ही रहे थे की तभी ताई आई और बोली- मैं बाहर जा रही हूँ, तुम जब जाओ तो दरवाजे को बंद करते जाना .

हमने हाँ में सर हिलाया. ताई के जाते ही मैंने रीना को अपनी बाँहों में भर लिया

रीना- गुस्ताखिया ज्यादा हो गयी है तुम्हारी आजकल.

मैं- ये हक़ है मेरा

रीना ने मेरे गाल को चूमा और बोली- इस हक़ को पाने में जमीन असमान एक करना पड़ेगा तुम्हे .

मैं- तू साथ है तो क्या ये जमीन क्या ये आसमान.

रीना ने मेरे गालो को चूमा

मैं- बड़ा प्यार आ रहा है आज

रीना- ये मौसम की अंगड़ाई, ये मेरी दिल्ग्गी, ये रुत है प्यार करने की , सावन आया है अपने संग मोहब्बत लाया है पर मैं कहू तो क्या कहूँ , तुम्हे फुर्सत ही नहीं है , इस बार झुला भी नहीं डाला तूने मेरे लिए.

मैं-ये तो मुझे याद ही नहीं रहा , पर मैं आज ही झूला डाल दूंगा.

रीना- झूला भूल गया कोई बात नहीं, बस मुझे मत भुला देना.

मैं- ये सोचा भी कैसे तूने

रीना- कभी कभी मेरा दिल कहता है की कोई डोर तुझे मुझसे दूर खींच रही है

मैं- तो कहदे अपने दिल से ऐसी कोई डोर बनी ही नहीं .

रीना ने अपनी आँखे घुमाई और बोली- मुझे कुछ करने का मन होता है

मैं- कर डाल जो तुझे करना है

रीना- पूछ तो सही क्या करना चाहता है मेरा दिल .

मैं- बता फिर क्या चाहता है तेरा दिल

रीना- एक अजीब सी तलब लगी है मुझे. मेरा दिल मुझसे कहता है की रुद्रपुर के शिवाले चल.

मैं- हाँ, तो क्या दिक्कत है हो आना वहां पर

रीना- एक बार गयी थी , गाँव जल उठा था .

मैं- जलने दे

रीना- कुछ तो हुआ है मेरे वहां से आने के बाद. रातो को जाग जाती हूँ, ख्यालो में डूब जाती हूँ . और मेरे सपने

मैं- कैसे है तेरे सपने .

रीना- मेरे सपनो में मैं तुझे मारते हुए दिखती हूँ .

मैं- ये तो बढ़िया हैं न तूने घायल तो किया ही हुआ है क़त्ल भी कर दे तो क्या बात हो .

रीना- तू समझता क्यों नहीं .मुझे कुछ हो रहा है

मैं- कभी कभी होता है ऐसा, खैर तू बीते दिनों में किसी ऐसे लोगो से तो नहीं मिली न जो संदिग्ध हो या उनसे अपना उठाना बैठना हो . समझ रही है न तू मेरी बात .

रीना- ऐसा तो कुछ खास नहीं हुआ पर जब तू हॉस्पिटल में था तो एक आदमी रोज़ तुझे देखने आता था , मुझसे बात करता था और चला जाता था .

मैं- कौन आदमी , क्या कहता था वो

रीना- बस यही पूछता था की अब कैसा है मनीष. और चला जाता था .

मैं- बस इतना ही

रीना- एक मिनट, उसने मुझसे एक अजीब सी बात और कही थी

मैं- क्या , क्या बात

रीना- जब वो मुझे अंतिम बार मिला था तो उसने कहा था की शिवाला फिर से जाग गया है . नाहरवीर आ गए है , तू भी आना .

मैं- कौन नाहरवीर

रीना- मुझे क्या पता .

मैं- और क्या कहा उस आदमी ने

रीना- कुछ नहीं , जिस दिन तुझे होश आया उसके बाद वो दिखा नहीं मुझे.

मैने रीना को अपनी गोद से उतारा और पानी लाने को कहा. गले को तर करने के बाद मैंने उसको बताया की कैसे मुझे ये धागे मिले थे, ये हीरा मिला था और इनके मिलने से ये लाकेट बना जो उसके गले में पड़ा था .मैंने रीना को हर एक बात बताई सिवाय मीता के जिक्र के .

रीना- तो तुझे लगता है की इस लाकेट में कोई जादू, कोई शक्ति है .

मैं- हाँ मेरी जान

रीना- तो फिर तूने ये मुझे क्यों दिया.

मैं- इसने चुना है तुझे, मैंने इसे अपने गले में पहनने की बहुत कोशिश की पर इसने मेरा गला घोंटा, ये अपना नहीं रहा था मुझे, और उस रात रुद्रपुर में इसने तुझे पहचाना, अपनाया तुझे. पर क्यों, क्या रिश्ता है तेरा इससे ये सवाल मुझे खाए जा रहा है .

रीना- क्या इसी लाकेट की वजह से मुझे ये सपने आ रहे है , मैं इसे अभी उतार कर फेंक देती हु.

रीना ने लाकेट को पकड़ा और गले से बाहर करने की कोशिश की पर वो नाकाम रही .

मैं- क्या हुआ

रीना- बहुत भारी है , उठा नहीं पा रही मैं इसे.

मैं- पहने रह, तेरा कवच है ये एक तरह से .

रीना- पर क्यों .

मैं- इसी सवाल का जवाब मैं तलाश रहा हूँ. और मेरी बात सुन किसी भी हालत में तू रुद्रपुर अकेले मत जाना, मुझे लेकर चलना तू. और किसी भी अजनबी पर विश्वास मत करना कोई तुझे कुछ भी दे लेना नहीं .

रीना- मैं कुछ दिनों के लिए मेरे गाँव जा रही हु

मैं- उसमे क्या है जा

कुछ देर और हमने बाते की फिर वो चली गयी , मुझे उलझा कर . दोपहर हो गयी थी मैं भी ताई के घर से बाहर आया. सुनार के अंतिम संस्कार की तयारी हो रही थी , मैंने जब्बर को भी देखा वहां पर. जैसे ही सुनार को फूंकने के लिए ले गए . मौका देख कर मैं उसके घर में घुस गया . ये जो थोडा सा समय मिला था मैं सुनार के कमरे को अच्छी तरह से जांचना चाहता था.



वहां पर मुझे ऐसा कुछ भी नहीं मिला जिससे मैं कोई कड़ी जोड़ सकू . हताश मन से मैं वहां से निकल ही रहा था की तभी.......................
 

sunoanuj

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#50



जब मैं सुनार के घर पहुंचा तो मैंने देखा की वहां पर भीड़ जमा थी, जिसे चीरते हुए मैं आँगन पार करते हुए सुनार के कमरे में पहुंचा तो देखा की सुनार का शरीर पंखे वाले कड़े से लटका हुआ था .पूरा बदन अजीब तरह से काला पड़ गया था , जैसे की कोयला हो. मुझे उसकी मौत का दुःख नहीं था बल्कि हताशा इस बात की थी की इस कड़ी को भी तोड़ दिया गया था .



उसके बदन का एक हिस्सा खोल दिया गया था , और जब मैंने गौर से देखा तो पाया की हत्यारे ने उसके कलेजे को निकाल लिया था . मारने वाले की बड़ी दुश्मनी रही होगी सुनार से. माथा पीटते हुए मैं सुनार के घर से वापिस मुड गया . दिल में मलाल लिए की मैं उस धागे का राज़ उगलवा नहीं सका उस से.

घर जाकर देखा की ताई बड़ी गहरी सोच-विचार में डूबी थी . मैंउसके पास जाकर बैठ गया .

मैं- ताई, क्या सोच रही हो.

ताई- यही की कितनी बुरी तरह से लाला को मारा गया है

मैं- अच्छा ही हुआ साले ने गाँव का जीनाहराम किया हुआ था .

ताई- वो तो है पर गाँव में मौतों जा जैसे मौसम चल रहा है, हर दुसरे तीसरे दिन लाशे मिल रही है

मैं- पर वो लाशे गाँव वालो की नहीं है , लाला और जब्बर के आदमियों की लाशे है वो

ताई- यही बात तो मुझे खाए जा रही है .जब्बर पूरा जोर लगाये हुए है कातिल को पकड़ने के लिए , मुझे डर है कहीं खुनी खेल फिर से चालू न हो जाये

मैं- कैसा खुनी खेल

ताई- इस आग में न जाने कितने निर्दोष गाँव वाले पिस जायेंगे.

हम बात कर ही रहे थे की रीना आ गयी . ताई रसोई में चली गयी . रीना मेरे पास बैठ गयी .

मैं- कहाँ, गायब है तू आजकल ऐसा लगता है की तुझे देखे हुए ज़माने बीत गए.

रीना- अच्छा जी, तो आजकल कातिल कहने लगे की क़त्ल भी हो जाओ और उफ़ भी न करो. मुझसे पूछते हो तुम, जबकि जानना मैं चाहती हूँ की ये दिन ये राते कहाँ बीत रही है तुम्हारी.

मैं- तेरे बिना कैसे दिन कैसी राते.

रीना- और मैं ही नहीं हूँ उन दिन उन रातो में

मैं- तेरी नाराजगी जायज है , जो सजा देना चाहे मंजूर है

रीना- वो दिन कभी ना आये की मुझे तुझे सजा देनी पड़े.

हम बात कर ही रहे थे की तभी ताई आई और बोली- मैं बाहर जा रही हूँ, तुम जब जाओ तो दरवाजे को बंद करते जाना .

हमने हाँ में सर हिलाया. ताई के जाते ही मैंने रीना को अपनी बाँहों में भर लिया

रीना- गुस्ताखिया ज्यादा हो गयी है तुम्हारी आजकल.

मैं- ये हक़ है मेरा

रीना ने मेरे गाल को चूमा और बोली- इस हक़ को पाने में जमीन असमान एक करना पड़ेगा तुम्हे .

मैं- तू साथ है तो क्या ये जमीन क्या ये आसमान.

रीना ने मेरे गालो को चूमा

मैं- बड़ा प्यार आ रहा है आज

रीना- ये मौसम की अंगड़ाई, ये मेरी दिल्ग्गी, ये रुत है प्यार करने की , सावन आया है अपने संग मोहब्बत लाया है पर मैं कहू तो क्या कहूँ , तुम्हे फुर्सत ही नहीं है , इस बार झुला भी नहीं डाला तूने मेरे लिए.

मैं-ये तो मुझे याद ही नहीं रहा , पर मैं आज ही झूला डाल दूंगा.

रीना- झूला भूल गया कोई बात नहीं, बस मुझे मत भुला देना.

मैं- ये सोचा भी कैसे तूने

रीना- कभी कभी मेरा दिल कहता है की कोई डोर तुझे मुझसे दूर खींच रही है

मैं- तो कहदे अपने दिल से ऐसी कोई डोर बनी ही नहीं .

रीना ने अपनी आँखे घुमाई और बोली- मुझे कुछ करने का मन होता है

मैं- कर डाल जो तुझे करना है

रीना- पूछ तो सही क्या करना चाहता है मेरा दिल .

मैं- बता फिर क्या चाहता है तेरा दिल

रीना- एक अजीब सी तलब लगी है मुझे. मेरा दिल मुझसे कहता है की रुद्रपुर के शिवाले चल.

मैं- हाँ, तो क्या दिक्कत है हो आना वहां पर

रीना- एक बार गयी थी , गाँव जल उठा था .

मैं- जलने दे

रीना- कुछ तो हुआ है मेरे वहां से आने के बाद. रातो को जाग जाती हूँ, ख्यालो में डूब जाती हूँ . और मेरे सपने

मैं- कैसे है तेरे सपने .

रीना- मेरे सपनो में मैं तुझे मारते हुए दिखती हूँ .

मैं- ये तो बढ़िया हैं न तूने घायल तो किया ही हुआ है क़त्ल भी कर दे तो क्या बात हो .

रीना- तू समझता क्यों नहीं .मुझे कुछ हो रहा है

मैं- कभी कभी होता है ऐसा, खैर तू बीते दिनों में किसी ऐसे लोगो से तो नहीं मिली न जो संदिग्ध हो या उनसे अपना उठाना बैठना हो . समझ रही है न तू मेरी बात .

रीना- ऐसा तो कुछ खास नहीं हुआ पर जब तू हॉस्पिटल में था तो एक आदमी रोज़ तुझे देखने आता था , मुझसे बात करता था और चला जाता था .

मैं- कौन आदमी , क्या कहता था वो

रीना- बस यही पूछता था की अब कैसा है मनीष. और चला जाता था .

मैं- बस इतना ही

रीना- एक मिनट, उसने मुझसे एक अजीब सी बात और कही थी

मैं- क्या , क्या बात

रीना- जब वो मुझे अंतिम बार मिला था तो उसने कहा था की शिवाला फिर से जाग गया है . नाहरवीर आ गए है , तू भी आना .

मैं- कौन नाहरवीर

रीना- मुझे क्या पता .

मैं- और क्या कहा उस आदमी ने

रीना- कुछ नहीं , जिस दिन तुझे होश आया उसके बाद वो दिखा नहीं मुझे.

मैने रीना को अपनी गोद से उतारा और पानी लाने को कहा. गले को तर करने के बाद मैंने उसको बताया की कैसे मुझे ये धागे मिले थे, ये हीरा मिला था और इनके मिलने से ये लाकेट बना जो उसके गले में पड़ा था .मैंने रीना को हर एक बात बताई सिवाय मीता के जिक्र के .

रीना- तो तुझे लगता है की इस लाकेट में कोई जादू, कोई शक्ति है .

मैं- हाँ मेरी जान

रीना- तो फिर तूने ये मुझे क्यों दिया.

मैं- इसने चुना है तुझे, मैंने इसे अपने गले में पहनने की बहुत कोशिश की पर इसने मेरा गला घोंटा, ये अपना नहीं रहा था मुझे, और उस रात रुद्रपुर में इसने तुझे पहचाना, अपनाया तुझे. पर क्यों, क्या रिश्ता है तेरा इससे ये सवाल मुझे खाए जा रहा है .

रीना- क्या इसी लाकेट की वजह से मुझे ये सपने आ रहे है , मैं इसे अभी उतार कर फेंक देती हु.

रीना ने लाकेट को पकड़ा और गले से बाहर करने की कोशिश की पर वो नाकाम रही .

मैं- क्या हुआ

रीना- बहुत भारी है , उठा नहीं पा रही मैं इसे.

मैं- पहने रह, तेरा कवच है ये एक तरह से .

रीना- पर क्यों .

मैं- इसी सवाल का जवाब मैं तलाश रहा हूँ. और मेरी बात सुन किसी भी हालत में तू रुद्रपुर अकेले मत जाना, मुझे लेकर चलना तू. और किसी भी अजनबी पर विश्वास मत करना कोई तुझे कुछ भी दे लेना नहीं .

रीना- मैं कुछ दिनों के लिए मेरे गाँव जा रही हु

मैं- उसमे क्या है जा

कुछ देर और हमने बाते की फिर वो चली गयी , मुझे उलझा कर . दोपहर हो गयी थी मैं भी ताई के घर से बाहर आया. सुनार के अंतिम संस्कार की तयारी हो रही थी , मैंने जब्बर को भी देखा वहां पर. जैसे ही सुनार को फूंकने के लिए ले गए . मौका देख कर मैं उसके घर में घुस गया . ये जो थोडा सा समय मिला था मैं सुनार के कमरे को अच्छी तरह से जांचना चाहता था.




वहां पर मुझे ऐसा कुछ भी नहीं मिला जिससे मैं कोई कड़ी जोड़ सकू . हताश मन से मैं वहां से निकल ही रहा था की तभी.......................
Fir jaanleva suspense par viram diya hai kahani ko… … superb update kuch or naye suspense khade kar diye is update ne bhi … 👏🏻👏🏻👏🏻
 

Raj_sharma

Well-Known Member
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#50



जब मैं सुनार के घर पहुंचा तो मैंने देखा की वहां पर भीड़ जमा थी, जिसे चीरते हुए मैं आँगन पार करते हुए सुनार के कमरे में पहुंचा तो देखा की सुनार का शरीर पंखे वाले कड़े से लटका हुआ था .पूरा बदन अजीब तरह से काला पड़ गया था , जैसे की कोयला हो. मुझे उसकी मौत का दुःख नहीं था बल्कि हताशा इस बात की थी की इस कड़ी को भी तोड़ दिया गया था .



उसके बदन का एक हिस्सा खोल दिया गया था , और जब मैंने गौर से देखा तो पाया की हत्यारे ने उसके कलेजे को निकाल लिया था . मारने वाले की बड़ी दुश्मनी रही होगी सुनार से. माथा पीटते हुए मैं सुनार के घर से वापिस मुड गया . दिल में मलाल लिए की मैं उस धागे का राज़ उगलवा नहीं सका उस से.

घर जाकर देखा की ताई बड़ी गहरी सोच-विचार में डूबी थी . मैंउसके पास जाकर बैठ गया .

मैं- ताई, क्या सोच रही हो.

ताई- यही की कितनी बुरी तरह से लाला को मारा गया है

मैं- अच्छा ही हुआ साले ने गाँव का जीनाहराम किया हुआ था .

ताई- वो तो है पर गाँव में मौतों जा जैसे मौसम चल रहा है, हर दुसरे तीसरे दिन लाशे मिल रही है

मैं- पर वो लाशे गाँव वालो की नहीं है , लाला और जब्बर के आदमियों की लाशे है वो

ताई- यही बात तो मुझे खाए जा रही है .जब्बर पूरा जोर लगाये हुए है कातिल को पकड़ने के लिए , मुझे डर है कहीं खुनी खेल फिर से चालू न हो जाये

मैं- कैसा खुनी खेल

ताई- इस आग में न जाने कितने निर्दोष गाँव वाले पिस जायेंगे.

हम बात कर ही रहे थे की रीना आ गयी . ताई रसोई में चली गयी . रीना मेरे पास बैठ गयी .

मैं- कहाँ, गायब है तू आजकल ऐसा लगता है की तुझे देखे हुए ज़माने बीत गए.

रीना- अच्छा जी, तो आजकल कातिल कहने लगे की क़त्ल भी हो जाओ और उफ़ भी न करो. मुझसे पूछते हो तुम, जबकि जानना मैं चाहती हूँ की ये दिन ये राते कहाँ बीत रही है तुम्हारी.

मैं- तेरे बिना कैसे दिन कैसी राते.

रीना- और मैं ही नहीं हूँ उन दिन उन रातो में

मैं- तेरी नाराजगी जायज है , जो सजा देना चाहे मंजूर है

रीना- वो दिन कभी ना आये की मुझे तुझे सजा देनी पड़े.

हम बात कर ही रहे थे की तभी ताई आई और बोली- मैं बाहर जा रही हूँ, तुम जब जाओ तो दरवाजे को बंद करते जाना .

हमने हाँ में सर हिलाया. ताई के जाते ही मैंने रीना को अपनी बाँहों में भर लिया

रीना- गुस्ताखिया ज्यादा हो गयी है तुम्हारी आजकल.

मैं- ये हक़ है मेरा

रीना ने मेरे गाल को चूमा और बोली- इस हक़ को पाने में जमीन असमान एक करना पड़ेगा तुम्हे .

मैं- तू साथ है तो क्या ये जमीन क्या ये आसमान.

रीना ने मेरे गालो को चूमा

मैं- बड़ा प्यार आ रहा है आज

रीना- ये मौसम की अंगड़ाई, ये मेरी दिल्ग्गी, ये रुत है प्यार करने की , सावन आया है अपने संग मोहब्बत लाया है पर मैं कहू तो क्या कहूँ , तुम्हे फुर्सत ही नहीं है , इस बार झुला भी नहीं डाला तूने मेरे लिए.

मैं-ये तो मुझे याद ही नहीं रहा , पर मैं आज ही झूला डाल दूंगा.

रीना- झूला भूल गया कोई बात नहीं, बस मुझे मत भुला देना.

मैं- ये सोचा भी कैसे तूने

रीना- कभी कभी मेरा दिल कहता है की कोई डोर तुझे मुझसे दूर खींच रही है

मैं- तो कहदे अपने दिल से ऐसी कोई डोर बनी ही नहीं .

रीना ने अपनी आँखे घुमाई और बोली- मुझे कुछ करने का मन होता है

मैं- कर डाल जो तुझे करना है

रीना- पूछ तो सही क्या करना चाहता है मेरा दिल .

मैं- बता फिर क्या चाहता है तेरा दिल

रीना- एक अजीब सी तलब लगी है मुझे. मेरा दिल मुझसे कहता है की रुद्रपुर के शिवाले चल.

मैं- हाँ, तो क्या दिक्कत है हो आना वहां पर

रीना- एक बार गयी थी , गाँव जल उठा था .

मैं- जलने दे

रीना- कुछ तो हुआ है मेरे वहां से आने के बाद. रातो को जाग जाती हूँ, ख्यालो में डूब जाती हूँ . और मेरे सपने

मैं- कैसे है तेरे सपने .

रीना- मेरे सपनो में मैं तुझे मारते हुए दिखती हूँ .

मैं- ये तो बढ़िया हैं न तूने घायल तो किया ही हुआ है क़त्ल भी कर दे तो क्या बात हो .

रीना- तू समझता क्यों नहीं .मुझे कुछ हो रहा है

मैं- कभी कभी होता है ऐसा, खैर तू बीते दिनों में किसी ऐसे लोगो से तो नहीं मिली न जो संदिग्ध हो या उनसे अपना उठाना बैठना हो . समझ रही है न तू मेरी बात .

रीना- ऐसा तो कुछ खास नहीं हुआ पर जब तू हॉस्पिटल में था तो एक आदमी रोज़ तुझे देखने आता था , मुझसे बात करता था और चला जाता था .

मैं- कौन आदमी , क्या कहता था वो

रीना- बस यही पूछता था की अब कैसा है मनीष. और चला जाता था .

मैं- बस इतना ही

रीना- एक मिनट, उसने मुझसे एक अजीब सी बात और कही थी

मैं- क्या , क्या बात

रीना- जब वो मुझे अंतिम बार मिला था तो उसने कहा था की शिवाला फिर से जाग गया है . नाहरवीर आ गए है , तू भी आना .

मैं- कौन नाहरवीर

रीना- मुझे क्या पता .

मैं- और क्या कहा उस आदमी ने

रीना- कुछ नहीं , जिस दिन तुझे होश आया उसके बाद वो दिखा नहीं मुझे.

मैने रीना को अपनी गोद से उतारा और पानी लाने को कहा. गले को तर करने के बाद मैंने उसको बताया की कैसे मुझे ये धागे मिले थे, ये हीरा मिला था और इनके मिलने से ये लाकेट बना जो उसके गले में पड़ा था .मैंने रीना को हर एक बात बताई सिवाय मीता के जिक्र के .

रीना- तो तुझे लगता है की इस लाकेट में कोई जादू, कोई शक्ति है .

मैं- हाँ मेरी जान

रीना- तो फिर तूने ये मुझे क्यों दिया.

मैं- इसने चुना है तुझे, मैंने इसे अपने गले में पहनने की बहुत कोशिश की पर इसने मेरा गला घोंटा, ये अपना नहीं रहा था मुझे, और उस रात रुद्रपुर में इसने तुझे पहचाना, अपनाया तुझे. पर क्यों, क्या रिश्ता है तेरा इससे ये सवाल मुझे खाए जा रहा है .

रीना- क्या इसी लाकेट की वजह से मुझे ये सपने आ रहे है , मैं इसे अभी उतार कर फेंक देती हु.

रीना ने लाकेट को पकड़ा और गले से बाहर करने की कोशिश की पर वो नाकाम रही .

मैं- क्या हुआ

रीना- बहुत भारी है , उठा नहीं पा रही मैं इसे.

मैं- पहने रह, तेरा कवच है ये एक तरह से .

रीना- पर क्यों .

मैं- इसी सवाल का जवाब मैं तलाश रहा हूँ. और मेरी बात सुन किसी भी हालत में तू रुद्रपुर अकेले मत जाना, मुझे लेकर चलना तू. और किसी भी अजनबी पर विश्वास मत करना कोई तुझे कुछ भी दे लेना नहीं .

रीना- मैं कुछ दिनों के लिए मेरे गाँव जा रही हु

मैं- उसमे क्या है जा

कुछ देर और हमने बाते की फिर वो चली गयी , मुझे उलझा कर . दोपहर हो गयी थी मैं भी ताई के घर से बाहर आया. सुनार के अंतिम संस्कार की तयारी हो रही थी , मैंने जब्बर को भी देखा वहां पर. जैसे ही सुनार को फूंकने के लिए ले गए . मौका देख कर मैं उसके घर में घुस गया . ये जो थोडा सा समय मिला था मैं सुनार के कमरे को अच्छी तरह से जांचना चाहता था.




वहां पर मुझे ऐसा कुछ भी नहीं मिला जिससे मैं कोई कड़ी जोड़ सकू . हताश मन से मैं वहां से निकल ही रहा था की तभी.......................
Ki Tabhi???????????????
Kitna tadpaoge bhai.
Bohot hi umda Update As usual .
Ekdam lajabaab
 

A.A.G.

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#50



जब मैं सुनार के घर पहुंचा तो मैंने देखा की वहां पर भीड़ जमा थी, जिसे चीरते हुए मैं आँगन पार करते हुए सुनार के कमरे में पहुंचा तो देखा की सुनार का शरीर पंखे वाले कड़े से लटका हुआ था .पूरा बदन अजीब तरह से काला पड़ गया था , जैसे की कोयला हो. मुझे उसकी मौत का दुःख नहीं था बल्कि हताशा इस बात की थी की इस कड़ी को भी तोड़ दिया गया था .



उसके बदन का एक हिस्सा खोल दिया गया था , और जब मैंने गौर से देखा तो पाया की हत्यारे ने उसके कलेजे को निकाल लिया था . मारने वाले की बड़ी दुश्मनी रही होगी सुनार से. माथा पीटते हुए मैं सुनार के घर से वापिस मुड गया . दिल में मलाल लिए की मैं उस धागे का राज़ उगलवा नहीं सका उस से.

घर जाकर देखा की ताई बड़ी गहरी सोच-विचार में डूबी थी . मैंउसके पास जाकर बैठ गया .

मैं- ताई, क्या सोच रही हो.

ताई- यही की कितनी बुरी तरह से लाला को मारा गया है

मैं- अच्छा ही हुआ साले ने गाँव का जीनाहराम किया हुआ था .

ताई- वो तो है पर गाँव में मौतों जा जैसे मौसम चल रहा है, हर दुसरे तीसरे दिन लाशे मिल रही है

मैं- पर वो लाशे गाँव वालो की नहीं है , लाला और जब्बर के आदमियों की लाशे है वो

ताई- यही बात तो मुझे खाए जा रही है .जब्बर पूरा जोर लगाये हुए है कातिल को पकड़ने के लिए , मुझे डर है कहीं खुनी खेल फिर से चालू न हो जाये

मैं- कैसा खुनी खेल

ताई- इस आग में न जाने कितने निर्दोष गाँव वाले पिस जायेंगे.

हम बात कर ही रहे थे की रीना आ गयी . ताई रसोई में चली गयी . रीना मेरे पास बैठ गयी .

मैं- कहाँ, गायब है तू आजकल ऐसा लगता है की तुझे देखे हुए ज़माने बीत गए.

रीना- अच्छा जी, तो आजकल कातिल कहने लगे की क़त्ल भी हो जाओ और उफ़ भी न करो. मुझसे पूछते हो तुम, जबकि जानना मैं चाहती हूँ की ये दिन ये राते कहाँ बीत रही है तुम्हारी.

मैं- तेरे बिना कैसे दिन कैसी राते.

रीना- और मैं ही नहीं हूँ उन दिन उन रातो में

मैं- तेरी नाराजगी जायज है , जो सजा देना चाहे मंजूर है

रीना- वो दिन कभी ना आये की मुझे तुझे सजा देनी पड़े.

हम बात कर ही रहे थे की तभी ताई आई और बोली- मैं बाहर जा रही हूँ, तुम जब जाओ तो दरवाजे को बंद करते जाना .

हमने हाँ में सर हिलाया. ताई के जाते ही मैंने रीना को अपनी बाँहों में भर लिया

रीना- गुस्ताखिया ज्यादा हो गयी है तुम्हारी आजकल.

मैं- ये हक़ है मेरा

रीना ने मेरे गाल को चूमा और बोली- इस हक़ को पाने में जमीन असमान एक करना पड़ेगा तुम्हे .

मैं- तू साथ है तो क्या ये जमीन क्या ये आसमान.

रीना ने मेरे गालो को चूमा

मैं- बड़ा प्यार आ रहा है आज

रीना- ये मौसम की अंगड़ाई, ये मेरी दिल्ग्गी, ये रुत है प्यार करने की , सावन आया है अपने संग मोहब्बत लाया है पर मैं कहू तो क्या कहूँ , तुम्हे फुर्सत ही नहीं है , इस बार झुला भी नहीं डाला तूने मेरे लिए.

मैं-ये तो मुझे याद ही नहीं रहा , पर मैं आज ही झूला डाल दूंगा.

रीना- झूला भूल गया कोई बात नहीं, बस मुझे मत भुला देना.

मैं- ये सोचा भी कैसे तूने

रीना- कभी कभी मेरा दिल कहता है की कोई डोर तुझे मुझसे दूर खींच रही है

मैं- तो कहदे अपने दिल से ऐसी कोई डोर बनी ही नहीं .

रीना ने अपनी आँखे घुमाई और बोली- मुझे कुछ करने का मन होता है

मैं- कर डाल जो तुझे करना है

रीना- पूछ तो सही क्या करना चाहता है मेरा दिल .

मैं- बता फिर क्या चाहता है तेरा दिल

रीना- एक अजीब सी तलब लगी है मुझे. मेरा दिल मुझसे कहता है की रुद्रपुर के शिवाले चल.

मैं- हाँ, तो क्या दिक्कत है हो आना वहां पर

रीना- एक बार गयी थी , गाँव जल उठा था .

मैं- जलने दे

रीना- कुछ तो हुआ है मेरे वहां से आने के बाद. रातो को जाग जाती हूँ, ख्यालो में डूब जाती हूँ . और मेरे सपने

मैं- कैसे है तेरे सपने .

रीना- मेरे सपनो में मैं तुझे मारते हुए दिखती हूँ .

मैं- ये तो बढ़िया हैं न तूने घायल तो किया ही हुआ है क़त्ल भी कर दे तो क्या बात हो .

रीना- तू समझता क्यों नहीं .मुझे कुछ हो रहा है

मैं- कभी कभी होता है ऐसा, खैर तू बीते दिनों में किसी ऐसे लोगो से तो नहीं मिली न जो संदिग्ध हो या उनसे अपना उठाना बैठना हो . समझ रही है न तू मेरी बात .

रीना- ऐसा तो कुछ खास नहीं हुआ पर जब तू हॉस्पिटल में था तो एक आदमी रोज़ तुझे देखने आता था , मुझसे बात करता था और चला जाता था .

मैं- कौन आदमी , क्या कहता था वो

रीना- बस यही पूछता था की अब कैसा है मनीष. और चला जाता था .

मैं- बस इतना ही

रीना- एक मिनट, उसने मुझसे एक अजीब सी बात और कही थी

मैं- क्या , क्या बात

रीना- जब वो मुझे अंतिम बार मिला था तो उसने कहा था की शिवाला फिर से जाग गया है . नाहरवीर आ गए है , तू भी आना .

मैं- कौन नाहरवीर

रीना- मुझे क्या पता .

मैं- और क्या कहा उस आदमी ने

रीना- कुछ नहीं , जिस दिन तुझे होश आया उसके बाद वो दिखा नहीं मुझे.

मैने रीना को अपनी गोद से उतारा और पानी लाने को कहा. गले को तर करने के बाद मैंने उसको बताया की कैसे मुझे ये धागे मिले थे, ये हीरा मिला था और इनके मिलने से ये लाकेट बना जो उसके गले में पड़ा था .मैंने रीना को हर एक बात बताई सिवाय मीता के जिक्र के .

रीना- तो तुझे लगता है की इस लाकेट में कोई जादू, कोई शक्ति है .

मैं- हाँ मेरी जान

रीना- तो फिर तूने ये मुझे क्यों दिया.

मैं- इसने चुना है तुझे, मैंने इसे अपने गले में पहनने की बहुत कोशिश की पर इसने मेरा गला घोंटा, ये अपना नहीं रहा था मुझे, और उस रात रुद्रपुर में इसने तुझे पहचाना, अपनाया तुझे. पर क्यों, क्या रिश्ता है तेरा इससे ये सवाल मुझे खाए जा रहा है .

रीना- क्या इसी लाकेट की वजह से मुझे ये सपने आ रहे है , मैं इसे अभी उतार कर फेंक देती हु.

रीना ने लाकेट को पकड़ा और गले से बाहर करने की कोशिश की पर वो नाकाम रही .

मैं- क्या हुआ

रीना- बहुत भारी है , उठा नहीं पा रही मैं इसे.

मैं- पहने रह, तेरा कवच है ये एक तरह से .

रीना- पर क्यों .

मैं- इसी सवाल का जवाब मैं तलाश रहा हूँ. और मेरी बात सुन किसी भी हालत में तू रुद्रपुर अकेले मत जाना, मुझे लेकर चलना तू. और किसी भी अजनबी पर विश्वास मत करना कोई तुझे कुछ भी दे लेना नहीं .

रीना- मैं कुछ दिनों के लिए मेरे गाँव जा रही हु

मैं- उसमे क्या है जा

कुछ देर और हमने बाते की फिर वो चली गयी , मुझे उलझा कर . दोपहर हो गयी थी मैं भी ताई के घर से बाहर आया. सुनार के अंतिम संस्कार की तयारी हो रही थी , मैंने जब्बर को भी देखा वहां पर. जैसे ही सुनार को फूंकने के लिए ले गए . मौका देख कर मैं उसके घर में घुस गया . ये जो थोडा सा समय मिला था मैं सुनार के कमरे को अच्छी तरह से जांचना चाहता था.




वहां पर मुझे ऐसा कुछ भी नहीं मिला जिससे मैं कोई कड़ी जोड़ सकू . हताश मन से मैं वहां से निकल ही रहा था की तभी.......................
nice update..!!
yeh lala toh gaya..ab kaun batayega manish ko dhage ka sach..!! reena ko bhi ajeeb sapne aarahe hai aur reena ke gale se woh locket nahi utara ja raha hai..kuchh toh gadbad hai aur uss locket ki wajah se hi reena ko shivale jane ki ichha ho rahi hai..manish ko ab reena ka khayal rakhna hoga..aur woh aadmi kaun tha jo manish ko dekhne aata tha aur reena se baat bhi karta tha..!! meeta janti hai reena ke bare me toh reena ko bhi haq hai meeta ke bare me janane ka..kyunki tino ka pyaar hi unki nayya paar kara sakta hai..!!
 
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