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Adultery गुजारिश 2 (Completed)

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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इमोशनल update था, वैसे ये हमारे हीरो की ही बस की बात है जो इतने राज जो इंसान उससे छुपाये बैठे हैं उनके बारे में भी दिल से सोचता है, ताई, चाची और चाचा तीनों ही गुरू घंटाल है ये बात अभी तक सही लग रहीं हैं, मीता और मनीष के संवाद का तो क्या ही कहना , मैं हमेशा से मनीष भाई के dialogues का प्रशंसक रहा हूँ सीधे दिल में उतर जाते हैं.
शानदार update bhai waiting for next part
Thanks bhai
 

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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Chutiyadr जी को जिस दिन मैंने बताया कि काजल " अग्रवाल " की शादी हो गई है , उसी दिन से उन्होंने लिखना ही बंद कर दिया ।
और अब तो वह एक लड़के की मां भी बन गई है । अब डाक्टर साहब सिर्फ दर्शन ही दे दें वही काफी है । :D
डॉ सहाब सदमे मे है शायद
 
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अभी तक जितने भी पात्र इस कहानी में नजर आए उन सभी ने अपने चेहरे पर एक नया चेहरा लगा रखा है । चाहे चाची श्री हों या चाहे तात श्री । चाहे मीता उर्फ मितलेश ठाकुर हों या चाहे मिस्ट्रीयस महिला ताई जी हों ।
इसके अलावा सोनार और उसकी पत्नी ने भी बहुत सी चीजें एक दूसरे से एवं समाज से छुपा कर रखा है । जब्बर पहलवान की तो बात ही अलग है । मुझे लगता है मनीष को सबसे पहले इस पहलवान के गिरेबान पर ही हाथ डालना चाहिए । सुनार तो सिर्फ एक मोहरा लगता है ।

अर्जुन सिंह का किरदार भी कम रहस्यमय नहीं है । वो कहां है , किस हालात में है , क्या कर रहा है , किसी को भी नहीं पता । पता नहीं मनीष को क्या जानकारी प्राप्त हुई थी कैम्प में , अपने पुजनीय पिता जी के विषय में !

मीता ....., न जाने क्यों मुझे यह लड़की मनीष की रिश्तेदार लग रही है । शायद किसी रिश्ते में बहन हो । शायद इसीलिए उसे मनीष के साथ अपनी डोर बंधती नहीं दिखती है ।

तात श्री को सलाम । दो औरतों की प्यास बुझा रहे हैं । इसका मतलब पुण्य का काम कर रहे हैं । और हमारा हीरो भी तो यही चाहता है कि वो भी सभी प्यासी महिलाओं को जी भर भर कर पानी पिलाए । पर अफसोस , अभी तक सिर्फ एक की ही प्यास बुझा पाया ।

मनीष का दर्द का हमें भरपूर एहसास है । मां की मौत उसके बचपन काल में ही हो गई थी और पिता का संग नाम के कुछ दिनों के लिए ही रहा । ना तो उसे मां की ममता मिली और न ही बाप का प्यार नसीब हुआ । ऐसे लड़के या तो बहुत ज्यादा शरीफ हो जाते हैं या वो बहुत ज्यादा बिगड़ जाते हैं । और यहां तो मनीष को अपने बाकी के सगे संबंधियों से भी प्यार हासिल न हो पाया । मनीष ने बहुत अच्छी तरह से अपने को संभाला है ।

बचपन से जवानी की ओर अग्रसर होते बच्चों में बहुत कुछ जानने की प्रवृत्ति होती है । खासतौर पर वो जो उनसे छुपाया गया है । मनीष वही कर रहा है जो उसे करना चाहिए था । खुद को पहचानना.... अपने माता पिता की जानकारी प्राप्त करना... अपने रिश्तेदारों को समझना ।

जब बच्चों को अपने घर से प्रेम और ममता नहीं प्राप्त होती तो वो घर से बाहर इन्हें ढूंढने की कोशिश करता है । जैसे कि मनीष ने किया । पहले रीना , फिर ताई और उसके बाद मीता । मुझे मनीष का यह कदम कहीं से भी अप्रत्याशित नहीं लगा ।


अपडेट की बात करें तो सभी अपडेट्स जगमग जगमग । आउटस्टैंडिंग । अमेजिंग । ब्रिलिएंट ।
 
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HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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#46

दोपहर बाद खेत में जमीन को खोदते हुए मेरे दिमाग में बस ये ही चल रहा था की पृथ्वी का अचानक संध्या चाची से मिलने आना, केवल बुआ-भतीजे का स्नेह नहीं हो सकता. बरसों से टूटी हुई रिश्तेदारी को अचानक से दुबारा जोड़ने की कोशिश में स्वार्थ न हो ऐसा तो हो ही नहीं सकता. हो सकता था की ये बस मेरी कल्पना हो पर दिल गवाही नहीं दे रहा था.

कुदाल छोड़ कर मैंने जमीन का एक चक्कर लगाया और बावड़ी की तरफ जा निकला. मैंने बावड़ी की रहबरी पर पीठ लगाई और लेट गया. पसलियों में दर्द सा हो रहा था , सारे जख्म भर गए थे पर ये दर्द जा ही नहीं रहा था . मैंने एक नजर आसमान पर डाली, जिसमे काली घटाए लहरा रही थी . अच्छा ही था जो बारिश हो जाती. मुझे नहाने का भी मन था . मैंने शर्ट उतारी और बावड़ी में कूदने ही जा रहा था की ,



मैंने एक गाडी मेरी तरफ आते देखि तो मैं रुक गया. गाड़ी मेरे से थोड़ी दुरी पर रुक गयी और गाड़ी से उतरा जब्बर .

“ये साला इधर क्यों आया ” मैंने सोचा .

जब्बर मेरे पास आया .

मैं- मेरे दर पर कैसे

जब्बर- तुझे एक आखिरी बार समझाने आया हूँ की बुझे हुए तंदूर के शोलो को मत सुलगा वर्ना उसी तंदूर में भुना जायेगा तू.

मैं- ये फ़िल्मी डायलोग तेरे. मेरे कान पक गए है

जब्बर- मैं जानता हूँ दिलेर को तूने मारा है

मैं- तो फिर ये भी जानता होगा की क्यों मारा उसे

जब्बर- जानता हूँ, इसीलिए थाने के मामले को दबा दिया मैंने ताकि तुझे भी जला सकू. चाहू तो तुझे एक मिनट में मसल दू, पर नहीं तुझे तडपाना है , इतना की तू खुद भीख मांगे मौत की . उस रात चौपाल पर मैंने सब्र का घूँट इसलिए पी लिया की बरसो बाद एक काबिल दुश्मन मिला है , और दुश्मनी का मजा झटके में नहीं हलाल में है . तुझे झटके में मारने में वो मजा कहाँ , मैं तलाश कर रहा हूँ उसको जो थाने में तेरे साथ थी,



मैं- मैंने तुझसे कहा था दुश्मनी तेरे मेरे बीच है , पर अगर तेरी यही इच्छा है तो ये भी कर के देख ले तू. पर इतना याद रखना परिवार तो तेरा भी है , मेरे किसी भी चाहने वाले के एक खरोंच भी आई तो तेरे परिवार का ख्याल कर लेना तू पर मैं तुझे माफ़ कर सकता हूँ अगर तू मुझे ये बता दे की उस सुनहरे बक्से का क्या झोल है

जब्बर - तू बस इतना समझ ले वो किसी की अमानत है और वो अपने आप तलाश लेगी उसे.

मैं- उस धागे में ऐसा क्या खास है .

जब्बर- अगर तू पैर पकड़ कर गिदगिड़ाये , तो मैं शायद तुझे बता भी दू.

मैं- पैर तो तू मेरे पकड़ेगा, जिस दिन मैं अपनी जमीन छुड़ाने आऊंगा .

जब्बर- तेरी ये बेबाकी, ये गुस्ताखियाँ तेरी मौत बनेगी जब तू मरेगा तो तुझे आभास होगा की जिन्दगी का मोल क्या होता है .

मैं- मौत तो आनी जानी है ,

जब्बर- बस देखना है तेरी कब आएगी.

मैं- बता भी दे, कुछ तो बात है वर्ना सोलह साल तक तूने और सुनार ने चुतड लाल नहीं करवाए उस बक्से के पीछे . . चल एक सौदा करते है तू मुझे बता ये राज और मैं तुझे सोना दूंगा.

जब्बर- गांड में डाल ले अपने सोने को . अगर तू उस लड़की को मुझे सौंप दे तो मैं कुछ कहूँ इस बारे में

जब्बर की बात सुन कर मुझे गुस्सा आ गया - जुबान संभाल कर बोल जब्बर, खींच दी जायेगी ये जुबान.

जब्बर- सौदे की शर्त यही रहेगी, मुझे वो लड़की ला दे, मैं तुझे सब कुछ बता दूंगा.

मैं- वो लड़की मेरी सरपरस्ती में है जब्बर. तू भूलना मत इस बात को . इस वक्त तू मेरी जमीन पर खड़ा है और मैं इसे गन्दी नहीं करना चता वर्ना इस गुस्ताखी के लिए तेरा सर काट देता मैं.

जब्बर- मेरा वादा है तेरी इसी जमीन पर दिलेर की मौत का बदला लिया जायेगा.

मैं- इंतजार रहेगा उस दिन का

जब्बर ने सर हिलाया और अपनी जीप की तरफ चल पड़ा. मेरे आसपास एक बिसात बिछाई जा रही थी , एक साजिश रची जा रही थी कौन अपना था कौन पराया ये कहना मुश्किल था . पर जब्बर की धमकी से मैं थोडा विचलित हो गया था , रीना के साथ हुई घटना ने मुझे झकझोर दिया था. मीता की सुरक्षा के लिए मुझे कुछ न कुछ करना ही था . सोचते सोचते मैं घर आया तब तक बारिश शुरू हो गयी थी.

हल्का सा भीगते हुए मैं चोबारे में गया तो देखा की चाची खिड़की के पास कुर्सी डाले बैठी थी और उसके हाथ में वो सुनहरा बक्सा था . जिस पर वो उंगलिया फेर रही थी .

“ये मेरा है ” मैंने चाची से कहा

चाची- झूठ , ये तुम्हारा नहीं है ,

मैं- तुम इस पर अपना अधिकार नहीं जाता सकती , मुझे वापिस दो ये

चाची- मैंने कब कहा ये मेरा है , मैंने कहा की ये तुम्हारा नहीं है

मैं- तो बताओ किसका है ये

चाची-ये तो तुम्हे बताना चाहिए मुझे, इतना महंगा सोने का बक्सा तुम्हारे पास कहाँ से आया, क्या तुमने चोरी की है .

मैं थोडा विचलित हो गया , एक पल को मुझे लगा की वो जानती है उसके बारे में

मैं- ये मुझे जंगल में पड़ा मिला था . मैं इसे यहाँ ले आया. तुम इसे वापिस वही रख दो जहाँ से इसे लिया था .

चाची कुछ कहती इस से पहले ही मेरे सीने के निचे मरोड़ शुरू हो गई . मैं दर्द से दोहरा हो गया . और बिस्तर पर गिर पड़ा.

चाची- क्या हुआ मनीष

मैं- दर्द, मेरी पसलिया फट रही है.

मैंने पसलियों पर हाथ रख लिया और दर्द को सहने की कोशिश करने लगा पर वो अचानक से इतना बढ़ गया था , की आँखों में आंसू निकलने लगे .

चाची-- मुझे देखने दे

चाची ने मेरी शर्ट के बटन खोले और मेरे जख्म को देखा जिसमे से खून रिसने लगा था .

चाची- टांका फट गया है, क्या किया था तुमने

मैं- कुछ नहीं किया आह्ह्ह्ह मैं मरा

चाची ने टेबल से रुई उठाई और जख्म पर रखते हुए बोली- दबा के रख इसे मैं वैध को बुला कर लाती हूँ .

चाची दौड़ पड़ी निचे को और मैं तड़पने लगा. ये जख्म अचानक से कैसे खुल गया था . इसी बीच मैं बिस्तर से निचे गिर पड़ा. मैं टेबल का सहारा लेकर उठ ही रहा था की खून से सने मेरे हाथ उस बक्से पर पड़े और वो जलने लगा. मुझे हैरत हुई पर मेरी हालत उस हैरत पर भारी पड़ रही थी .

“मनीष क्या हुआ तुझे ” मैंने देखा चीखते हुए रीना मेरे पास दौड़ते हुए आई और मुझे आगोश में भर लिया. मैं रीना की बाँहों में था और मेरे हाथ में वो जलता हुआ बक्सा जैसे ही मेरा हाथ रीना के बदन से टकराया धप्प की आवाज हुई और हम दोनों के बदन रेत से नहा गए.
 

ASR

I don't just read books, wanna to climb & live in
Supreme
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अभी तक जितने भी पात्र इस कहानी में नजर आए उन सभी ने अपने चेहरे पर एक नया चेहरा लगा रखा है । चाहे चाची श्री हों या चाहे तात श्री । चाहे मीता उर्फ मितलेश ठाकुर हों या चाहे मिस्ट्रीयस महिला ताई जी हों ।
इसके अलावा सोनार और उसकी पत्नी ने भी बहुत सी चीजें एक दूसरे से एवं समाज से छुपा कर रखा है । जब्बर पहलवान की तो बात ही अलग है । मुझे लगता है मनीष को सबसे पहले इस पहलवान के गिरेबान पर ही हाथ डालना चाहिए । सुनार तो सिर्फ एक मोहरा लगता है ।

अर्जुन सिंह का किरदार भी कम रहस्यमय नहीं है । वो कहां है , किस हालात में है , क्या कर रहा है , किसी को भी नहीं पता । पता नहीं मनीष को क्या जानकारी प्राप्त हुई थी कैम्प में , अपने पुजनीय पिता जी के विषय में !

मीता ....., न जाने क्यों मुझे यह लड़की मनीष की रिश्तेदार लग रही है । शायद किसी रिश्ते में बहन हो । शायद इसीलिए उसे मनीष के साथ अपनी डोर बंधती नहीं दिखती है ।

तात श्री को सलाम । दो औरतों की प्यास बुझा रहे हैं । इसका मतलब पुण्य का काम कर रहे हैं । और हमारा हीरो भी तो यही चाहता है कि वो भी सभी प्यासी महिलाओं को जी भर भर कर पानी पिलाए । पर अफसोस , अभी तक सिर्फ एक की ही प्यास बुझा पाया ।

मनीष का दर्द का हमें भरपूर एहसास है । मां की मौत उसके बचपन काल में ही हो गई थी और पिता का संग नाम के कुछ दिनों के लिए ही रहा । ना तो उसे मां की ममता मिली और न ही बाप का प्यार नसीब हुआ । ऐसे लड़के या तो बहुत ज्यादा शरीफ हो जाते हैं या वो बहुत ज्यादा बिगड़ जाते हैं । और यहां तो मनीष को अपने बाकी के सगे संबंधियों से भी प्यार हासिल न हो पाया । मनीष ने बहुत अच्छी तरह से अपने को संभाला है ।

बचपन से जवानी की ओर अग्रसर होते बच्चों में बहुत कुछ जानने की प्रवृत्ति होती है । खासतौर पर वो जो उनसे छुपाया गया है । मनीष वही कर रहा है जो उसे करना चाहिए था । खुद को पहचानना.... अपने माता पिता की जानकारी प्राप्त करना... अपने रिश्तेदारों को समझना ।

जब बच्चों को अपने घर से प्रेम और ममता नहीं प्राप्त होती तो वो घर से बाहर इन्हें ढूंढने की कोशिश करता है । जैसे कि मनीष ने किया । पहले रीना , फिर ताई और उसके बाद मीता । मुझे मनीष का यह कदम कहीं से भी अप्रत्याशित नहीं लगा ।


अपडेट की बात करें तो सभी अपडेट्स जगमग जगमग । आउटस्टैंडिंग । अमेजिंग । ब्रिलिएंट ।
संपूर्ण रिव्यू पूरे विस्तृत विवरण के साथ, अब तो हम सिर्फ एक ही बात जोड़ सकते हैं कि
मुसाफिर बाबु कहानी की लेंथ बढ़ाए, मन मे घूमढ घुमढ होता रहता है
 

snidgha12

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बहुत सुंदर, आंग्ल भाषा का शब्द थ्रिलर सस्पेंस से लबरेज। रोमांच और उत्तेजना भरपूर मात्रा में।

कथा एवं कथाकार का बहुमान
 

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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अभी तक जितने भी पात्र इस कहानी में नजर आए उन सभी ने अपने चेहरे पर एक नया चेहरा लगा रखा है । चाहे चाची श्री हों या चाहे तात श्री । चाहे मीता उर्फ मितलेश ठाकुर हों या चाहे मिस्ट्रीयस महिला ताई जी हों ।
इसके अलावा सोनार और उसकी पत्नी ने भी बहुत सी चीजें एक दूसरे से एवं समाज से छुपा कर रखा है । जब्बर पहलवान की तो बात ही अलग है । मुझे लगता है मनीष को सबसे पहले इस पहलवान के गिरेबान पर ही हाथ डालना चाहिए । सुनार तो सिर्फ एक मोहरा लगता है ।

अर्जुन सिंह का किरदार भी कम रहस्यमय नहीं है । वो कहां है , किस हालात में है , क्या कर रहा है , किसी को भी नहीं पता । पता नहीं मनीष को क्या जानकारी प्राप्त हुई थी कैम्प में , अपने पुजनीय पिता जी के विषय में !

मीता ....., न जाने क्यों मुझे यह लड़की मनीष की रिश्तेदार लग रही है । शायद किसी रिश्ते में बहन हो । शायद इसीलिए उसे मनीष के साथ अपनी डोर बंधती नहीं दिखती है ।

तात श्री को सलाम । दो औरतों की प्यास बुझा रहे हैं । इसका मतलब पुण्य का काम कर रहे हैं । और हमारा हीरो भी तो यही चाहता है कि वो भी सभी प्यासी महिलाओं को जी भर भर कर पानी पिलाए । पर अफसोस , अभी तक सिर्फ एक की ही प्यास बुझा पाया ।

मनीष का दर्द का हमें भरपूर एहसास है । मां की मौत उसके बचपन काल में ही हो गई थी और पिता का संग नाम के कुछ दिनों के लिए ही रहा । ना तो उसे मां की ममता मिली और न ही बाप का प्यार नसीब हुआ । ऐसे लड़के या तो बहुत ज्यादा शरीफ हो जाते हैं या वो बहुत ज्यादा बिगड़ जाते हैं । और यहां तो मनीष को अपने बाकी के सगे संबंधियों से भी प्यार हासिल न हो पाया । मनीष ने बहुत अच्छी तरह से अपने को संभाला है ।

बचपन से जवानी की ओर अग्रसर होते बच्चों में बहुत कुछ जानने की प्रवृत्ति होती है । खासतौर पर वो जो उनसे छुपाया गया है । मनीष वही कर रहा है जो उसे करना चाहिए था । खुद को पहचानना.... अपने माता पिता की जानकारी प्राप्त करना... अपने रिश्तेदारों को समझना ।

जब बच्चों को अपने घर से प्रेम और ममता नहीं प्राप्त होती तो वो घर से बाहर इन्हें ढूंढने की कोशिश करता है । जैसे कि मनीष ने किया । पहले रीना , फिर ताई और उसके बाद मीता । मुझे मनीष का यह कदम कहीं से भी अप्रत्याशित नहीं लगा ।


अपडेट की बात करें तो सभी अपडेट्स जगमग जगमग । आउटस्टैंडिंग । अमेजिंग । ब्रिलिएंट ।
आपकी कुछ बातों से सहमत हूँ मैं, मेरे लिए ये कहानी लिखना आसान नहीं था क्योंकि मैं समझता हूं एक लेखक के रूप मे मैं खत्म हो चुका हूं, फिर मैंने सोचा कि ये मेरा अंतिम प्रयास है तो पूरी कोशिश की जाए, किरदारों के नाम मैंने मनीष, मीता और रीना इसलिए रखे ताकि गुजरे हुए कल को एक बार फिर याद कर सकू. दिल अपना प्रीत पराई के बाद पाठकों की अपेक्षा भी बढ़ गयी. गांव की पृष्ठभूमि इसलिए रखी ताकि मैं कहानी के बहाने से गांव को महसूस कर सकू, हम जैसे लोग जो देश विदेश भटकते है पर आपने गाँव को छोड़ आए ये हमारी बदकिस्मती है.

अब इस कहानी की बात, ये कहानी बस ईन किरदारों की ही नहीं है ये हर उस पाठक की है जो इसे पढ़ता है, जिसने मोहब्बत की है, ये रहस्मय जो तमाम किरदारों ने ओढ़ा है वो अपनी अपनी व्यथा छुपा रहे है.
और उसी व्यथा की गुजारिश है ये
 
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