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Adultery गुजारिश 2 (Completed)

Raj_sharma

Well-Known Member
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Foji bhai update Ka intzaar hai :reading1:
:reading1:
:writing:
 

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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#44

“चाचा ऐसा कैसे कर सकता है ” मैंने ताई से पूछा

ताई- मैं भला तुझसे झूठ क्यों बोलूंगी.

मैं- ये बात और किस किस को मालूम है

ताई- औरो का तो मुझे मालूम नहीं पर मुझे और तुझे तो मालूम है ही

मैं- रीना को पता चलेगा तो उसे कैसा लगेगा .

ताई - नहीं पता चलना चाहिए

मैं- ये जिन्दगी साली मुझे ऐसे जकड़ रही है जैसे सांप अपने शिकार को , रीना तो टूट ही जाएगी जब उसे मालूम होगा की उसकी मम्मी और चाचा के बीच नाजायज रिश्ता है .

ताई- और ये रिश्ता कोई नया नहीं है जिस तरह से उनकी बाते, हाव भाव थी मुझे लगता है इश्क पुराना है .

मैं- उनकी जिन्दगी है वो जैसे मर्जी जिए उनको अधिकार है बस रीना की जिन्दगी पर असर नहीं पड़ना चाहिए.

रोज़ एक नयी हकीकत से मेरा सामना होता था, पर मैं इतना जरुर जान गया था की इन्सान के लिए किसी रिश्ते की सबसे ज्यादा अहमियत अगर है तो वो है जिस्मो के रिश्ते की .

ताई- कहाँ खो गया तू

मैं- कही नहीं , बस थोड़ी देर सोना चाहता हूँ

घर आने के बाद मैं सो गया , जागा तो बदन में बुखार सा था और रात हो गयी थी . मैंने उठ कर एक दो गोली ली और घर से बाहर आया . रात भीगी हुई थी और मैं जल रहा था . मेरे दिमाग में बस एक ही बात घूम रही थी और उसका जवाब पाने के लिए मैंने वो करने का सोचा जो बहुत खतरनाक था .पर कभी कभी बड़ी कामयाबी के लिए बड़ा रिस्क लेना पड़ता है .



और वो बड़ा रिस्क था सुनार का अपहरण, क्योंकि वो उस धागे के रहस्य को जानता था . वो ही था जो मेरी उलझन सुलझा सकता था . लठ के जोर पर उसे उठाना न मुमकिन था . और चूँकि उसका इलाज चल रहा था इसलिए वो घर से बाहर निकलता नहीं था . कैसे किया जाये ये काम सोचते सोचते मैं चबूतरे पर लेट गया . मुझे दो बाते परेशां कर रही थी एक तो संध्या चाची की पीठ के वो निशान दूसरा उस धागे का मामूली नहीं होना.

जब्बर अभी तक शांत बैठा था , मुझसे हुए पंगे के बाद वो सुनार से नहीं मिला था और ना ही सुनार अपने घर से बाहर निकल रहा था .दो तीन दिन मैंने गुज़ार दिए योजना बनाने के लिए की कैसे सुनार को उठाया जाये पर बात बन नहीं रही थी . मुझे अब खुद पर गुस्सा आने लगा था .

उस दिन मैं मंदिर की सीढियों पर बैठा इसी उधेड़बुन में उलझा था की मैंने सुनार की बीवी को मंदिर में आते देखा. वो मुझे देख कर मुस्कुराई. मैं भी मुस्कुरा दिया.

“और कैसे हो ” उसने पूछा मुझसे.

मैं- सच कहूँ तो हालात ठीक नहीं है , ऊपर से तुम्हारे पति ने जीना मुश्किल किया हुआ है

काकी- उसमे नया क्या है, सारे गाँव की यही शिकायत है , एक तुम्हारी और सही

मैं- तुम समझाती क्यों नहीं उसे

काकी- जो खुद से बेगाने हो जाते है फिर वो ऐसे ही हो जाते है .तुम बताओ तुम्हारा क्या झगडा है उनसे

मैं- मेरे चाचा ने तुमको नहीं बताया क्या

काकी- भला वो क्यों बताने लगा मुझे

मैं- तो इतनी रात को शमशान के पार तुम क्या करने गयी थी उसके साथ

काकी के चेहरे के भाव बदल गए एकदम से

काकी- बड़े तेज हो तुम ,

मैं- क्या करे. सबके चेहरे पर नकाब है हम ही नंगे है बस , तो कब से चल रहा है ये चक्कर तुम्हारा

काकी- कोई चक्कर नहीं है बस एक डोर है जो हम दोनों को जोडती है

मैं- कितना आसान है न इन बातो को छिपाना

काकी- तेरी मर्जी है जो समझ,

मैं- लाला के सीने में ऐसा कौन सा राज दफ़न है ये बताओ मुझे

काकी- तुम्हे क्या लगता है

मैं- मुझे लगता है की लाला मुझसे कोई सौदा करना चाहता है

काकी- उसे खजाने की तलाश है ,

मैं- किस खजाने की तलाश है उसे

काकी- तुम इतने नादाँ भी नहीं

मैं- नादाँ तो तुम भी नहीं जो चाचा के साथ सेट हुई पड़ी हो .

काकी- तेरे चाचा से ही पूछ लेना तसल्ली से बता देगा वो

मैं- क्या वो तुमसे प्यार करता है

काकी- इस दुनिया में कोई किसी से प्यार नहीं करता, सब के अपने अपने मतलब होते है .

मैं- तुम्हारा और चाचा का क्या मतलब है फिर

काकी- उसका अहसान है मुझ पर

मैं- कैसा अहसान

काकी- बता दिया तो अहसान, अहसान कहाँ रहेगा फिर . पर मैं तुझसे इतना कहूँगी की तू इन सब से दूर रहना मेरे पति की जिन्दगी गुजर गयी उस चीज के पीछे भागते भागते जो कभी मिल नहीं सकती . तू भी मत भागना उसके पीछे

मैं- किसके पीछे

काकी- अंधेरो के

इतना कह कर वो ऊपर मंदिर में चली गयी. मैं सीढियों पर ही रह गया . मुझे कोई ऐसा चाहिए था जो चाचा की जासूसी कर सके. मेरे लिए चाचा की असलियत तलाश करना अब जरुरी था. सुनार की बीवी और रीना की माँ दोनों को फ़साये हुए था वो. जितना भोला वो दीखता था उतना था नहीं .



अँधेरा घिरने लगा था घर जाने की बजाय मैं खेतो की तरफ चला गया . चारपाई बिछाई और ठंडी हवा को महसूस करते हुए मैं लेट गया . मध्दम चलती पवन लहराते हुए पेड़ , क्या खूब नजारा था .



“आराम करने के बजाय तुझे अब मेहनत करने के बारे में सोचना चाहिए ” ये मीता थी जो अपना झोला खूँटी पर लटका रही थी .

मैं- कल से पक्का

मीता- ये सावन बड़ी जोर से बरस रहा है इस बार , किस्मत मेहरबान है तुझ पर , आगे तेरी मर्जी . मेहनत के पसीने से सींच दे इस धरा को , इसकी प्यास तेरा पसीना ही बुझाएगा.

मैं- जो हुकुम सरकार.

मीता- संध्या आजकल रुद्रपुर के बहुत चक्कर लगा रही है

मैं- किस से मिलती है वो

मीता- किसी से भी नहीं

मैं- किसी से भी नहीं

मीता- हाँ किसी से भी नहीं, घंटो बैठी रहती है , न जाने किसे ताकती है वो

मैं- पर वो तो कह रही थी की सोलह साल से वो रुद्रपुर नहीं गयी .

मीता- सच है ये भी पर आजकल वो बस शिवाले में बैठी रहती है

मैं- ये शिवाला न हुआ जी का जंजाल हो गया .

मीता- खाना खायेगा

मैं- भूख नहीं है

मीता- तेरी मर्जी , चल थोडा परे सरक .पैर दुःख रहे है मेरे जरा कमर सीढ़ी कर लू

मैं थोडा सा सरका . वो मेरे पास लेट गयी. आज से पहले वो मेरे इतना पास कभी नहीं आई थी . उसके बदन की खुसबू मेरे जिस्म में समाने लगी.

मैं- बता कुछ अपने बारे में

मीता- क्या बताऊ, तुझसे क्या छिपा है

मैं- मैं मीता के बारे में नहीं मितलेस ठकुराईन के बारे में जानना चाहता हूँ

मीता-मितलेस वो दास्ताँ है जिसे भुला दिया गया.
 

Tiger 786

Well-Known Member
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#44

“चाचा ऐसा कैसे कर सकता है ” मैंने ताई से पूछा

ताई- मैं भला तुझसे झूठ क्यों बोलूंगी.

मैं- ये बात और किस किस को मालूम है

ताई- औरो का तो मुझे मालूम नहीं पर मुझे और तुझे तो मालूम है ही

मैं- रीना को पता चलेगा तो उसे कैसा लगेगा .

ताई - नहीं पता चलना चाहिए

मैं- ये जिन्दगी साली मुझे ऐसे जकड़ रही है जैसे सांप अपने शिकार को , रीना तो टूट ही जाएगी जब उसे मालूम होगा की उसकी मम्मी और चाचा के बीच नाजायज रिश्ता है .

ताई- और ये रिश्ता कोई नया नहीं है जिस तरह से उनकी बाते, हाव भाव थी मुझे लगता है इश्क पुराना है .

मैं- उनकी जिन्दगी है वो जैसे मर्जी जिए उनको अधिकार है बस रीना की जिन्दगी पर असर नहीं पड़ना चाहिए.

रोज़ एक नयी हकीकत से मेरा सामना होता था, पर मैं इतना जरुर जान गया था की इन्सान के लिए किसी रिश्ते की सबसे ज्यादा अहमियत अगर है तो वो है जिस्मो के रिश्ते की .

ताई- कहाँ खो गया तू

मैं- कही नहीं , बस थोड़ी देर सोना चाहता हूँ

घर आने के बाद मैं सो गया , जागा तो बदन में बुखार सा था और रात हो गयी थी . मैंने उठ कर एक दो गोली ली और घर से बाहर आया . रात भीगी हुई थी और मैं जल रहा था . मेरे दिमाग में बस एक ही बात घूम रही थी और उसका जवाब पाने के लिए मैंने वो करने का सोचा जो बहुत खतरनाक था .पर कभी कभी बड़ी कामयाबी के लिए बड़ा रिस्क लेना पड़ता है .



और वो बड़ा रिस्क था सुनार का अपहरण, क्योंकि वो उस धागे के रहस्य को जानता था . वो ही था जो मेरी उलझन सुलझा सकता था . लठ के जोर पर उसे उठाना न मुमकिन था . और चूँकि उसका इलाज चल रहा था इसलिए वो घर से बाहर निकलता नहीं था . कैसे किया जाये ये काम सोचते सोचते मैं चबूतरे पर लेट गया . मुझे दो बाते परेशां कर रही थी एक तो संध्या चाची की पीठ के वो निशान दूसरा उस धागे का मामूली नहीं होना.

जब्बर अभी तक शांत बैठा था , मुझसे हुए पंगे के बाद वो सुनार से नहीं मिला था और ना ही सुनार अपने घर से बाहर निकल रहा था .दो तीन दिन मैंने गुज़ार दिए योजना बनाने के लिए की कैसे सुनार को उठाया जाये पर बात बन नहीं रही थी . मुझे अब खुद पर गुस्सा आने लगा था .

उस दिन मैं मंदिर की सीढियों पर बैठा इसी उधेड़बुन में उलझा था की मैंने सुनार की बीवी को मंदिर में आते देखा. वो मुझे देख कर मुस्कुराई. मैं भी मुस्कुरा दिया.

“और कैसे हो ” उसने पूछा मुझसे.

मैं- सच कहूँ तो हालात ठीक नहीं है , ऊपर से तुम्हारे पति ने जीना मुश्किल किया हुआ है

काकी- उसमे नया क्या है, सारे गाँव की यही शिकायत है , एक तुम्हारी और सही

मैं- तुम समझाती क्यों नहीं उसे

काकी- जो खुद से बेगाने हो जाते है फिर वो ऐसे ही हो जाते है .तुम बताओ तुम्हारा क्या झगडा है उनसे

मैं- मेरे चाचा ने तुमको नहीं बताया क्या

काकी- भला वो क्यों बताने लगा मुझे

मैं- तो इतनी रात को शमशान के पार तुम क्या करने गयी थी उसके साथ

काकी के चेहरे के भाव बदल गए एकदम से

काकी- बड़े तेज हो तुम ,

मैं- क्या करे. सबके चेहरे पर नकाब है हम ही नंगे है बस , तो कब से चल रहा है ये चक्कर तुम्हारा

काकी- कोई चक्कर नहीं है बस एक डोर है जो हम दोनों को जोडती है

मैं- कितना आसान है न इन बातो को छिपाना

काकी- तेरी मर्जी है जो समझ,

मैं- लाला के सीने में ऐसा कौन सा राज दफ़न है ये बताओ मुझे

काकी- तुम्हे क्या लगता है

मैं- मुझे लगता है की लाला मुझसे कोई सौदा करना चाहता है

काकी- उसे खजाने की तलाश है ,

मैं- किस खजाने की तलाश है उसे

काकी- तुम इतने नादाँ भी नहीं

मैं- नादाँ तो तुम भी नहीं जो चाचा के साथ सेट हुई पड़ी हो .

काकी- तेरे चाचा से ही पूछ लेना तसल्ली से बता देगा वो

मैं- क्या वो तुमसे प्यार करता है

काकी- इस दुनिया में कोई किसी से प्यार नहीं करता, सब के अपने अपने मतलब होते है .

मैं- तुम्हारा और चाचा का क्या मतलब है फिर

काकी- उसका अहसान है मुझ पर

मैं- कैसा अहसान

काकी- बता दिया तो अहसान, अहसान कहाँ रहेगा फिर . पर मैं तुझसे इतना कहूँगी की तू इन सब से दूर रहना मेरे पति की जिन्दगी गुजर गयी उस चीज के पीछे भागते भागते जो कभी मिल नहीं सकती . तू भी मत भागना उसके पीछे

मैं- किसके पीछे

काकी- अंधेरो के

इतना कह कर वो ऊपर मंदिर में चली गयी. मैं सीढियों पर ही रह गया . मुझे कोई ऐसा चाहिए था जो चाचा की जासूसी कर सके. मेरे लिए चाचा की असलियत तलाश करना अब जरुरी था. सुनार की बीवी और रीना की माँ दोनों को फ़साये हुए था वो. जितना भोला वो दीखता था उतना था नहीं .



अँधेरा घिरने लगा था घर जाने की बजाय मैं खेतो की तरफ चला गया . चारपाई बिछाई और ठंडी हवा को महसूस करते हुए मैं लेट गया . मध्दम चलती पवन लहराते हुए पेड़ , क्या खूब नजारा था .



“आराम करने के बजाय तुझे अब मेहनत करने के बारे में सोचना चाहिए ” ये मीता थी जो अपना झोला खूँटी पर लटका रही थी .

मैं- कल से पक्का

मीता- ये सावन बड़ी जोर से बरस रहा है इस बार , किस्मत मेहरबान है तुझ पर , आगे तेरी मर्जी . मेहनत के पसीने से सींच दे इस धरा को , इसकी प्यास तेरा पसीना ही बुझाएगा.

मैं- जो हुकुम सरकार.

मीता- संध्या आजकल रुद्रपुर के बहुत चक्कर लगा रही है

मैं- किस से मिलती है वो

मीता- किसी से भी नहीं

मैं- किसी से भी नहीं

मीता- हाँ किसी से भी नहीं, घंटो बैठी रहती है , न जाने किसे ताकती है वो

मैं- पर वो तो कह रही थी की सोलह साल से वो रुद्रपुर नहीं गयी .

मीता- सच है ये भी पर आजकल वो बस शिवाले में बैठी रहती है

मैं- ये शिवाला न हुआ जी का जंजाल हो गया .

मीता- खाना खायेगा

मैं- भूख नहीं है

मीता- तेरी मर्जी , चल थोडा परे सरक .पैर दुःख रहे है मेरे जरा कमर सीढ़ी कर लू

मैं थोडा सा सरका . वो मेरे पास लेट गयी. आज से पहले वो मेरे इतना पास कभी नहीं आई थी . उसके बदन की खुसबू मेरे जिस्म में समाने लगी.

मैं- बता कुछ अपने बारे में

मीता- क्या बताऊ, तुझसे क्या छिपा है

मैं- मैं मीता के बारे में नहीं मितलेस ठकुराईन के बारे में जानना चाहता हूँ


मीता-मितलेस वो दास्ताँ है जिसे भुला दिया गया.
Awesome update
 

A.A.G.

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#44

“चाचा ऐसा कैसे कर सकता है ” मैंने ताई से पूछा

ताई- मैं भला तुझसे झूठ क्यों बोलूंगी.

मैं- ये बात और किस किस को मालूम है

ताई- औरो का तो मुझे मालूम नहीं पर मुझे और तुझे तो मालूम है ही

मैं- रीना को पता चलेगा तो उसे कैसा लगेगा .

ताई - नहीं पता चलना चाहिए

मैं- ये जिन्दगी साली मुझे ऐसे जकड़ रही है जैसे सांप अपने शिकार को , रीना तो टूट ही जाएगी जब उसे मालूम होगा की उसकी मम्मी और चाचा के बीच नाजायज रिश्ता है .

ताई- और ये रिश्ता कोई नया नहीं है जिस तरह से उनकी बाते, हाव भाव थी मुझे लगता है इश्क पुराना है .

मैं- उनकी जिन्दगी है वो जैसे मर्जी जिए उनको अधिकार है बस रीना की जिन्दगी पर असर नहीं पड़ना चाहिए.

रोज़ एक नयी हकीकत से मेरा सामना होता था, पर मैं इतना जरुर जान गया था की इन्सान के लिए किसी रिश्ते की सबसे ज्यादा अहमियत अगर है तो वो है जिस्मो के रिश्ते की .

ताई- कहाँ खो गया तू

मैं- कही नहीं , बस थोड़ी देर सोना चाहता हूँ

घर आने के बाद मैं सो गया , जागा तो बदन में बुखार सा था और रात हो गयी थी . मैंने उठ कर एक दो गोली ली और घर से बाहर आया . रात भीगी हुई थी और मैं जल रहा था . मेरे दिमाग में बस एक ही बात घूम रही थी और उसका जवाब पाने के लिए मैंने वो करने का सोचा जो बहुत खतरनाक था .पर कभी कभी बड़ी कामयाबी के लिए बड़ा रिस्क लेना पड़ता है .



और वो बड़ा रिस्क था सुनार का अपहरण, क्योंकि वो उस धागे के रहस्य को जानता था . वो ही था जो मेरी उलझन सुलझा सकता था . लठ के जोर पर उसे उठाना न मुमकिन था . और चूँकि उसका इलाज चल रहा था इसलिए वो घर से बाहर निकलता नहीं था . कैसे किया जाये ये काम सोचते सोचते मैं चबूतरे पर लेट गया . मुझे दो बाते परेशां कर रही थी एक तो संध्या चाची की पीठ के वो निशान दूसरा उस धागे का मामूली नहीं होना.

जब्बर अभी तक शांत बैठा था , मुझसे हुए पंगे के बाद वो सुनार से नहीं मिला था और ना ही सुनार अपने घर से बाहर निकल रहा था .दो तीन दिन मैंने गुज़ार दिए योजना बनाने के लिए की कैसे सुनार को उठाया जाये पर बात बन नहीं रही थी . मुझे अब खुद पर गुस्सा आने लगा था .

उस दिन मैं मंदिर की सीढियों पर बैठा इसी उधेड़बुन में उलझा था की मैंने सुनार की बीवी को मंदिर में आते देखा. वो मुझे देख कर मुस्कुराई. मैं भी मुस्कुरा दिया.

“और कैसे हो ” उसने पूछा मुझसे.

मैं- सच कहूँ तो हालात ठीक नहीं है , ऊपर से तुम्हारे पति ने जीना मुश्किल किया हुआ है

काकी- उसमे नया क्या है, सारे गाँव की यही शिकायत है , एक तुम्हारी और सही

मैं- तुम समझाती क्यों नहीं उसे

काकी- जो खुद से बेगाने हो जाते है फिर वो ऐसे ही हो जाते है .तुम बताओ तुम्हारा क्या झगडा है उनसे

मैं- मेरे चाचा ने तुमको नहीं बताया क्या

काकी- भला वो क्यों बताने लगा मुझे

मैं- तो इतनी रात को शमशान के पार तुम क्या करने गयी थी उसके साथ

काकी के चेहरे के भाव बदल गए एकदम से

काकी- बड़े तेज हो तुम ,

मैं- क्या करे. सबके चेहरे पर नकाब है हम ही नंगे है बस , तो कब से चल रहा है ये चक्कर तुम्हारा

काकी- कोई चक्कर नहीं है बस एक डोर है जो हम दोनों को जोडती है

मैं- कितना आसान है न इन बातो को छिपाना

काकी- तेरी मर्जी है जो समझ,

मैं- लाला के सीने में ऐसा कौन सा राज दफ़न है ये बताओ मुझे

काकी- तुम्हे क्या लगता है

मैं- मुझे लगता है की लाला मुझसे कोई सौदा करना चाहता है

काकी- उसे खजाने की तलाश है ,

मैं- किस खजाने की तलाश है उसे

काकी- तुम इतने नादाँ भी नहीं

मैं- नादाँ तो तुम भी नहीं जो चाचा के साथ सेट हुई पड़ी हो .

काकी- तेरे चाचा से ही पूछ लेना तसल्ली से बता देगा वो

मैं- क्या वो तुमसे प्यार करता है

काकी- इस दुनिया में कोई किसी से प्यार नहीं करता, सब के अपने अपने मतलब होते है .

मैं- तुम्हारा और चाचा का क्या मतलब है फिर

काकी- उसका अहसान है मुझ पर

मैं- कैसा अहसान

काकी- बता दिया तो अहसान, अहसान कहाँ रहेगा फिर . पर मैं तुझसे इतना कहूँगी की तू इन सब से दूर रहना मेरे पति की जिन्दगी गुजर गयी उस चीज के पीछे भागते भागते जो कभी मिल नहीं सकती . तू भी मत भागना उसके पीछे

मैं- किसके पीछे

काकी- अंधेरो के

इतना कह कर वो ऊपर मंदिर में चली गयी. मैं सीढियों पर ही रह गया . मुझे कोई ऐसा चाहिए था जो चाचा की जासूसी कर सके. मेरे लिए चाचा की असलियत तलाश करना अब जरुरी था. सुनार की बीवी और रीना की माँ दोनों को फ़साये हुए था वो. जितना भोला वो दीखता था उतना था नहीं .



अँधेरा घिरने लगा था घर जाने की बजाय मैं खेतो की तरफ चला गया . चारपाई बिछाई और ठंडी हवा को महसूस करते हुए मैं लेट गया . मध्दम चलती पवन लहराते हुए पेड़ , क्या खूब नजारा था .



“आराम करने के बजाय तुझे अब मेहनत करने के बारे में सोचना चाहिए ” ये मीता थी जो अपना झोला खूँटी पर लटका रही थी .

मैं- कल से पक्का

मीता- ये सावन बड़ी जोर से बरस रहा है इस बार , किस्मत मेहरबान है तुझ पर , आगे तेरी मर्जी . मेहनत के पसीने से सींच दे इस धरा को , इसकी प्यास तेरा पसीना ही बुझाएगा.

मैं- जो हुकुम सरकार.

मीता- संध्या आजकल रुद्रपुर के बहुत चक्कर लगा रही है

मैं- किस से मिलती है वो

मीता- किसी से भी नहीं

मैं- किसी से भी नहीं

मीता- हाँ किसी से भी नहीं, घंटो बैठी रहती है , न जाने किसे ताकती है वो

मैं- पर वो तो कह रही थी की सोलह साल से वो रुद्रपुर नहीं गयी .

मीता- सच है ये भी पर आजकल वो बस शिवाले में बैठी रहती है

मैं- ये शिवाला न हुआ जी का जंजाल हो गया .

मीता- खाना खायेगा

मैं- भूख नहीं है

मीता- तेरी मर्जी , चल थोडा परे सरक .पैर दुःख रहे है मेरे जरा कमर सीढ़ी कर लू

मैं थोडा सा सरका . वो मेरे पास लेट गयी. आज से पहले वो मेरे इतना पास कभी नहीं आई थी . उसके बदन की खुसबू मेरे जिस्म में समाने लगी.

मैं- बता कुछ अपने बारे में

मीता- क्या बताऊ, तुझसे क्या छिपा है

मैं- मैं मीता के बारे में नहीं मितलेस ठकुराईन के बारे में जानना चाहता हूँ


मीता-मितलेस वो दास्ताँ है जिसे भुला दिया गया.
nice update..!!
yeh chacha reena ki maa aur sonar ki biwi ko kab set karke rakha hai..manish ke samne alag alag panne khul rahe hai..yeh sandhya chachi bhi rudrapur ja rahi hai..aur ab meeta ka sach bhi toh janana hai manish ko..!!
 

ASR

I don't just read books, wanna to climb & live in
Supreme
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मुसाफिर - अपडेट जल्दी ही समाप्त हो गया, बहुत से जवाब ढूँढ़ रहे हैं मन को शांत करे 🙏
 
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