#28
“क्योंकि ये दुनिया वैसी नहीं है जैसी तू सोचता है, ये नफरत ये दुश्मनी कहाँ से शुरू हुई , किसने शुरू की इसको कोई नहीं जानता है सिवाय सुनार, जब्बर और अर्जुन के.ऐसी क्या बात थी जिसके कारण ये लोग एकदूसरे के खून के प्यासे हो गए . ” ताई ने कहा .
मैं- मेरे पिता क्या सच में वैसे ही थे जैसा मुझे बताया गया है या उनके भी कोई राज़ थे, मेरा मतलब वो भी तो गलत हो सकते थे.
ताई -सही और गलत कुछ नहीं होता, वो बस समय का खेल है , जो किसी एक के लिए सही है दुसरे के लिए गलत है .पर मैं इतना जानती हूँ की कुछ ऐसा जरुर हुआ था जिस से ये तीनो जुड़े थे क्योंकि उस खुनी दौर के बाद अर्जुन एक दम शांत हो गया था , न किसी से बोलता था , न उसे खाने पीने की सुध थी , घर परिवार उसके लिए बेमानी हो गए थे , और फिर अचानक से उसने फ़ौज में नौकरी कर ली. हम सब हैरान थे , पर ये भी सच था की उसका इस गाँव से दूर रहना ही ठीक था . और फिर वो ऐसा गया की लौट कर ही नहीं आया.
मैं- और रुद्रपुर की दुश्मनी का क्या , उसके बारे में तो तुम जानती हो न वो तो बता ही सकती हो मुझे.
ताई- बरसों से परम्परा चली आ रही थी की रूप चोदस को मेला लगता था रुद्रपुर में, देवता की अलख जगाई जाती थी , नाच गान होता था , उस दिन किसी को किसी से कोई शिकवा हो तो आपस में जोर आजमाइश करके अपने अहंकार को चूर कर लेते थे लोग. सब सही था , लोग अपनी अपनी जिन्दगी जी रहे थे पर फिर सोलह साल पहले ऐसा मेला आया जिसमे रंगों की जगह रक्त ने सब को भिगो दिया .
मैं- क्या हुआ था उस मेले में .
ताई- तेरे बाप ने ललकार लगाईं थी , आन की उसने प्रण उठाया की वो देवता को सर अर्पित करेगा. तू जानता है ये जो मर्द जात है न इनका अहंकार बहुत होता है , न जाने किस बात का गर्व होता है इनको, अर्जुन ने जो किया लोग उसे गलत मानते है , कुछ सही मानते है . उस मेले में अर्जुन ने ग्यारह घरो के दीपक बुझा दिए.
उसने दुश्मनी की ऐसी दिवार खड़ी कर दी जिसे गिराना मुमकिन नहीं हुआ . खून से लथपथ जब वो घर आया तो किसी ने उसका स्वागत नहीं किया, बल्कि तिरस्कार किया गया पर उसने एक शब्द भी नहीं कहा. तेरे दादा ने हाथ उठाया उस पर क्योंकि उसने गलत किया था पर उसने चु तक नहीं की. उस मनहूस मेले ने बर्बाद कर दिया सब कुछ .
दुश्मनी की लहर में लाशे गिरने लगी, उन लाशो में एक लाश तेरे दादा की भी थी , किसने मारा क्यों मारा कोई नहीं जानता .
ताई ने गहरी सांस ली और बैठ गयी . मैं बस उसे देखता रहा .
“वो मुझे प्यार करते थे ” मैंने कहा
ताई- हद्द से जायदा ,
मैं- मैं उनके बारे में जायदा से जय्स्दा जानना चाहता हूँ कोई तो ऐसा होगा जो उन्हें गहराई से जानता होगा , मतलब उनका कोई दोस्त .
ताई- रात बहुत हुई है , थोड़ी देर सोना चाहिए, कल काम बहुत है खेतो पर .
मैं- सो जाना , कम से कम उस हीरे के बारे में तो बता दो. मैं जानता हूँ तुम्हे मालूम है वो राज
ताई- तूने पुछा था न की तेरे पिता को गाँव वाले उतना सम्मान नहीं देते , गाँव वालो को लगता है की तेरे पिता चोर थे, उसने शिवाले में चोरी की थी .
मैं- असंभव वो भला ऐसा क्यों करेंगे.
ताई- क्यों करेंगे ये तो कोई नहीं जानता पर ये हीरा उसी श्रृंगार का हिस्सा है जिसे चोरी कर लिया गया था . अर्जुन ने शिवाले के कपाट बंद कर दिए थे , और चेतावनी दी थी की किसी ने भी कपाट खोले तो वो न जाने क्या कर देगा. और देखो सोलह साल बाद कपाट खोले गए है , कपाट खुलने का मतलब मेला फिर लगना
मैं- पर किसने खोले कपाट
ताई- सब सोचते है की तूने किया है ये काम , वो आदमी रुद्रपुर का इसीलिए आया था तेरे चाचा से बात करने इस मामले में
मैं- पर मैंने ये नहीं किया .
ताई- मैं विश्वास कर लू पर दुनिया नहीं मानेगी
मैं- क्यों नहीं मानेगी
ताई- क्योंकि अर्जुन ने कपाट बंद करते हुए कहा था की कभी ये कपाट खुले तो सिर्फ उसके रक्त से , और उसका रक्त तुम हो .
ये बात मेरे लिए बिजलिया गिराने वाली थी .
“मैं चाहती थी की तुम एक शांत जिन्दगी जियो पर तुम्हारे नसीब में जो लिखा है वो होकर रहेगा, मैंने बहुत कोशिश की पर छिपा नहीं पायी. पर मैं इतना जरुर कहूँगी की दुश्मनी की आग को बुझाने की कोशिश करना क्योंकि इस आग में दर्द के सिवाय कुछ नहीं है ” ताई ने कहा और आँखे बंद कर ली.
मैंने जेब से वो हीरा निकाला और उसे देखने लगा. क्या इसे चुराया गया था , और यदि चोरी हुई थी तो उसमे एक नहीं तीन लोगो का हाथ था क्योंकि लाला और जब्बर ने भी उस दिन कहा था की पुरे सोलह साल बाद इसे निकाला है , पर इतने सालो तक छुपाने का क्या मतलब. क्या इन तीनो में लूट के माल के बंटवारे को लेकर झगडा हुआ था जिसके कारण ये लोग आपस में दुश्मन हो गए.
सवाल इतने थे की कहीं मेरे दिमाग की नस न फट जाए. कडिया आपस में जुड़ने तो लगी थी पर उस तरह से नहीं जैसे मैंने सोचा था . मेरे कानो में उस कागज़ पर लिखे शब्द गूँज रहे थे ,”इसका बोझ उठा सको तो ही लेना इसे. ”
आखिर किस बोझ की बात थी वो . सुबह उठ कर मैं हाथ मुह धो ही रहा था की तभी रीना किसी बम कि तरफ आकर मुझ पर फट गयी .
“कुत्ते,कमीने तुझे क्या जरुरत थी जब्बर से पंगा लेने की , तू नहीं जानता वो मरवा देगा तुझे, हाथ पैर तुडवा देगा तेरे , तुझे कुछ होश भी है ” चिल्लाते हुए बोली वो.
मैं- इस खूबसूरत चेहरे पर गुस्सा बड़ा प्यारा लगता है .
रीना- मैं मार दूंगी तुझे
मैं- मैं तो न जाने कब का मर मिटा हूँ तुझ पर
उसने पास पड़ी ईंट उठा ली और सच में मेरी तरफ फेंकी.
“अरे क्या कर रही है लग जाएगी ” मैंने कहा
रीना- जानता है जब मुझे ये मालूम हुआ न तो मेरी जान ही निकल गयी तुझे क्या जरुरत थी ये सब करने की .
मैं- बताता हु, पहले तू शांत हो जा
रीना- क्या ख़ाक शांत हो जा.
मैंने उसका हाथ पकड़ा ही था की चाची आ गयी
“बहुत बढ़िया ” उसने हम दोनों को देख कर कहा.