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Incest खेल है या बवाल

TharkiPo

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दोनों बेचारी अपने अपने विचरों में खोई हुइ अपने अपने कामों में लगी हुई थीं,

कि तभी एक आवाज पर दोनों का ध्यान जाता है,

हांफता हुआ मुन्ना दोनों के पास आकर रुकता है।

मुन्ना: अह्ह्ह् वो चाची मेला में, मेला में धीनू और रतनू भैया,

सुमन: का भओ मुन्ना मेला में का? और हाँफ काय रहो है इत्तो।

मुन्ना: वो चाची मेला में कछु लोग रतनू और धीनू भैया को मार रहे हैं।

अपडेट 5

दोनों की जेसे ये सुनकर जान ही निकल जाती है, दोनों सब कुछ छोड़ वैसे ही भाग पड़ती हैं मेले की ओर, हर कदम के साथ दोनों के दिल की धड़कन इतनी तेज़ होती जा रही थी जैसे कोई हथौड़ा छैनी पर गिरता है, दोनों मांओं का दिल बैठा जा रहा था, और मेला था कि आही नही रहा था, सांस फूलने लगी थी पर रुकना तो अभी किसी को मंजूर नहीं था, दोनों आखिर दौड़ते दौड़ते मेले में पहुंच गईं, देखा तो एक जगह भीड़ इकठ्ठा थी भीड़ को चीरते हुए अंदर गई तो देखा उनके कलेजे के टुकड़े नीचे पड़े हुए हैं और उनके ऊपर कुछ दो चार लोग खड़े हुए हैं,
दोनों वहां पहुंचते ही अपने अपने बेटों से लिपट गई।
जमुना: का है गाओ काहे मार रहे हो हमाए लला को?

एक आदमी बोला: पूछ अपने लौंडा से, चोरी करत है ये, पीटेंगे नहीं तो और आरती उतारेंगे।
सुमन: नाय नाय कछु गलती भई है मालिक हमाय बच्चा चोरी नहीं कर सकत।
आदमी: खुद देखो है हमने इन्हें गन्ना चुराए हैं हमाये खेत से।
जमुना: नाय झूंठ कह रहे हो तुम। नाय चुराए कोई गन्ना हमाय बच्चन ने।
जमुना रोते हुए अपने सीने से धीनू को लिपटाए हुए बोली।
आदमी: देखो तो हिम्मत बेटा चोरी करत है और मां हमको झूठा बताए रही है। ऐसे चोरों को तो मार मार के अच्छे से सबक सिखाना चाहिए।
और लोग दोबारा मारने के लिए आगे बढ़ने लगे, जमुना और सुमन उनके सामने गिड़गिड़ाने लगी, उनके बेटों को छोड़ने के लिय दया की भीख मांगने लगी।

जैसे ही एक आदमी आगे आया और धीनु पर लात से बार करने ही वाला था कि एक आवाज़ आइज: ए रूको,
सभी नजरें उस आवाज की ओर मुड़ी तो देखा सामने लाला खड़ा था,
जमुना सुमन, धीन रतनू सबकी नजरें लाला पर टिक गई।
लाला: ससुर तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई हमाएं गांव में आकर बच्चन को पीटन की?
आदमी: लाला जी प्रणाम, और क्या करें लालाजी इन दोनों ने हमारे खेत से गन्ने चुराए हैं।
लाला: का सबूत है तुमाय पास?
आदमी: हमने खुद देखो है इन दोनों को भगत हुए।
लाला: कितने को नुकसान हुआ है?
आदमी: पूरे दस रूपए को लालाजी।
लाला अपनी जेब से नोटो की गद्दी निकलता है और एक १० का नोट निकाल कर उस आदमी के हाथ में रख देता है और बोलता है,: जे पकड़ अपने रुपिया और सुन आइंदा से इन बच्चन को हाथ भी लगाओ ना तो हम तेरी हालत खराब कर देंगे।
लाला के इस कदम से सब चौंक जाते हैं धीनु और रतनू खुश होते हैं जबकि सुमन और जमुना और सोच में पड़ जाती हैं।
आदमी पैसे लेकर बड़बड़ाता हुआ चला जाता है,
लाला आगे बढ़ता है और धीनू और रतनू को उठाने लगता है
लाला: देखो बेटा हमें नाय पता तुमने गन्ना चुराए या ना चुराए, पर जो भी हुआ गलत हुआ, हम यही चाहेंगे की आगे से तुम एसो कोई काम न करो जिससे तुम्हें कोई तकलीफ हो,
आस पास खड़े लोग लाला की बात से सहमति जताने लगे धीनूं और रतनू ने भी सिर हिलाकर सहमति जताई और फिर दोनो उसके पैरों में गिर कर उसका धन्यवाद करने लगे।
धीनू: बहुत कृपा की आज तुमने मालिक, जो बचाए लिया।
रतनू: हां मालिक न जाने और कितनी मार पड़ती।
जमुना और सुमन को तो समझ ही नहीं आ रहा था कि क्या करें क्या बोलें वो तो बस खड़े होकर सब देखे जा रही थी,
लाला: अरे अरे ये क्या कर रहे हो तुम? तुम हमाय गांव के हो और हमाए अपने हो, तो हम तुम्हाये लिए नाय खड़े होंगे तो किसके लिए होंगे।
लाला ने दोनो के सिर पर हाथ फेरकर साथ ही एक नजर जमुना और सुमन पर डालते हुए कहा,
लाला: देखो अगर तुम्हें पैसन की जरूरत है तो हमारे यहां काम करने लग जाओ, हमारे पास बहुत से काम हैं तुम दोनो को मिल जायेगा और पैसे भी मिल जायेंगे।

धीनु: सच में मालिक तुम रखोगे हमें?
लाला: बिल्कुल क्यों नाय रखेंगे, एक काम करो दो तीन दिन आराम करो चोट लगी है ठीक हो जाओ फिर आ जाओ काम पर।

रतनू: हम बिल्कुल आएंगे मालिक दो दिन में ही आन लगेंगे।
तभी पीछे से एक और आवाज आती है,: नहीं तुम दोनो कोई काम नहीं करोगे।
इस बार लाला और बाकी सब हैरानी के साथ उस आवाज की और देखते हैं तो एक औरत खड़ी थी: लाला जी ये लोग अभी पढ़ेंगें काम नहीं करेगें।
ये कहकर वो औरत आगे आती है और लाला के हाथ में १० रुपए पकड़ा देती है।

लाला: अरे मेम साहब आपने देख तो लिया ही, की अगर पेट ही खाली होगा तो बच्चा पढ़त नहीं है चोरी करत है, तो अभी इनके लिए काम जरूरी है की पढ़ाई।
औरत: चोरी करके इन्होंने गलती की है, और उसकी सजा भी इन दोनो को मिल चुकी है, बाकी इसके आगे इनकी जिम्मेदारी मैं लेती हूं।
लाला: जेसी तुमाई इच्छा मेम साब , हम तो बस सब की भलाई चाहत हैं।
वो औरत धीनु , रतनू, जमुना और सुमन को वहां से लेकर निकल जाती है और लाला मन ही मन उसे गालियां देता रहता है।

ये औरत और कोई नहीं बल्कि गांव के स्कूल की अध्यापिका थी नाम था मधु उमर यही कोई 38 की, छह महीने पहले ही आई थी इस गांव में अकेली रहती थी, न बच्चे थे न परिवार और न ही किसी को कुछ पता था, बच्चे मैडम जी कहकर पुकारते थे और बड़े मेम साब।
और यही वो मास्टरनी थी जिनकी शाम की दैनिक क्रिया को छुप छुप कर देखकर धीनू और रतनू अपने हथियार साफ किया करते थे।
वैसे धीनू और रतनू का कोई दोष भी नहीं था हमारी अध्यापिका साहिबा थी हीं कुछ ऐसी की जो देखले बस देखता रह जाए।
भरा हुआ बदन, गोरा रंग, साड़ी के अंदर सीने पर जो उन्नत चूचियां जो सबका ध्यान अपनी ओर ही आकर्षित करती थी, नीचे भरा हुआ पर मोटा बिल्कुल नहीं ऐसा मांसल पेट उसके बीच में गहरी नाभी, पीछे दो पतीले जैसे चूतड़ जिन्हे साड़ी में कसे हुए देखकर ही लोगो के ईमान डोल जाते थे, लाला ने तो कई बार डोर डाले थे पर में साब थी थोड़ी तेज तर्रार तो एक न चली लाला की।
थोड़ी देर बाद सब लोग मेम साब के घर पर इकठ्ठा थे
जमुना: सही सही बता लल्ला तुम दोनो ने चोरी करी है कि नाय?
जमुना की बात का जवाब न धीनू ने दिया न रतनू ने।
सुमन: जे चुप्पी का मतलब यही है कि चोरी करी है तुम दोनो ने।

जमुना उठी और गुस्से से दो तीन थप्पड़ धीनू के जड़ दिए और रोते हुए बोलने लगी: ये ही दिन दिखावे को बढ़ा किया था तोए, अपनों पेट काट काट कर इसलिए खिलाओ के तु चोरी करे,

मधु ने उसे रोका और वापिस बिठा दिया,
मधु: शांत हो जाओ जमुना बस, इन दोनो के किए की सजा इन्हे पहले ही मिल चुकी है।
सुमन: पर हमाई का गलती है, हमने का पाप कर दिया जो हमें जे सब झेलनो पड़ रहो है।
सुमन ने भी आंसू बहाते हुए कहा, धीनू और रतनू दोनो ही बहुत दुखी थे, अपने किए हुए पर साथ ही इस बात से कि उनकी वजह से उनकी मांओं को दुख हो रहा था।

मधु: धीनू और रतनू, तुम दोनो घर जाओ, मम्मी अभी आयेंगी।
धीनू और रतनू दोनों अपने चोट खाए बदन को संभाले घर चले गए।

उनके जाने के बाद मधु ने अपना ध्यान जमुना और सुमन की ओर किया।
मधु: देखो मैं जानती हूं कि उन दोनो ने जो किया गलत किया है, पर मैं जानती हूं, की उन्होंने ऐसा क्यों किया होग।
सुमन: हैं जीजी काय करो हैगो?
मधु: देखो एक तो उनकी उमर ऐसी है, और खुद ही सोचो कि गांव में मेला है सब बच्चे घूम रहे होंगे खा रहे होंगे उनका मन भी हुआ होगा पर उन्हें घर के हालत भी पता है इसलिए तुम लोगो से भी नही मांग सकते जो उन्हें सही लगा वो किया, और वो भी क्या करें?
हैं तो बच्चे ही न,
सुमन: तो जीजी हम भी का करें, मजबूरी है ताहि से नहीं कर पाते उनके मन की इच्छा पूरी, नही तो हमारे बस में हो तो सब कछु दे दें उन्हें।
मधु: मैं समझती हूं कि मजबूरी है और सब कुछ तुम नहीं दे सकती पर हालातों से हार मानकर कुछ नही होगा, जो भी जितना भी तुम्हारे पास है उसे प्रयोग करके उनसे लड़ो।
जमुना: कछु समझे नाय जीजी।
मधु: देखो पैसे की कमी से या अन्य कारणों से दूसरे बच्चे उनके साथ नहीं खेलते उनके पास दूसरों की तरह खिलौने नहीं हैं और न ही दोस्त हैं, तो अगर तुम कुछ नहीं दे सकती तो एक चीज है जो जितनी सब के पास है उतनी ही तुम्हारे पास वो दे सकती हो।
जमुना: हाय दैय्या जीजी एसो का है हमारे पास।

मधु: समय,
सुमन: समय?
मधु: हां, एक दिन में २४ घंटे सबको मिलते हैं तुम्हें भी तो अगर बच्चों को कुछ और नहीं दे सकती तो अपना समय दो, उनसे बात करो उनके मन की जानो, उनकी दोस्त बनो, जिससे उनके मन में जो हो वो पहले तुम्हे बताएं।
सुमन: इससे बात बनेगी?
मधु: बिल्कुल बनेगी।
जमुना: हमें भी जीजी की बात ठीक लग रही है री बन्नो।
सुमन: सही कह रही हो जीजी,
और कछु न दे सकत तो समय तो दे सकत हैं।
मधु: बिलकुल सही, अब तुम लोग घर जाओ उनको डांटना मत और उनकी दोस्त बनने की कोशिश करना।

जमुना: ठीक जीजी हम ऐसा ही करेंगी।

इसके बाद दोनों मधु को प्रणाम और आज के लिए धन्यवाद करके अपने अपने घर चली जाती हैं।

आगे देखना हैं दोनो अपने बेटों की दोस्त बनने के लिए क्या क्या करती हैं और क्या क्या लिखा है किस्मत में।




 

TharkiPo

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Nhi chalegi Nhi Chalegi , Po ki Gardi nhi chalegi
Po bhai hain dhokebaaz , Khol nhi rhe kahani ke raaz.
raaz kholna to duur ki baat , Update hi dene se karte Inkaaar.
Nhi chalegi Nhi Chalegi , Po ki Gardi nhi chalegi
Bahot ho gaya ye intzaar , jaldi se do Update mazedaar.


SAasur ka ek mahina hoi gava updatwa na aya
sala kanha atak gava

अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा

Shewta Tiwari bhi mast hogi

Waiting for next part

she started her career as an Anchor in chitrahaar on Doordarshan , gazab maal hai....


Kaha gayb ho gaye ho

Abhitak nahi nikle ho....sarkar



Afsos Lagta hai fir ek achi desi kahani adhuri rehjaegi :pepehands::pepehands:


अपडेट की प्रतिक्षा है भाई जल्दी से दिजिएगा

Hinglish please
अपडेट पोस्ट कर दी है कृप्या पढ़कर अपना फीडबैक ज़रूर दें।
 

Jiashishji

दिल का अच्छा
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अपडेट पोस्ट कर दी है कृप्या पढ़कर अपना फीडबैक ज़रूर दें।
Kya feedback de bhai kahani hi dimag se utar gai . Fir se padhana pade ga . Agar ab aap apdate ko continue rakhane ka wada karo to padhe nahi to pata chale next apdate do mahine baad aaye to padhne ka kya matlab .
 

TharkiPo

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Kya feedback de bhai kahani hi dimag se utar gai . Fir se padhana pade ga . Agar ab aap apdate ko continue rakhane ka wada karo to padhe nahi to pata chale next apdate do mahine baad aaye to padhne ka kya matlab .
Aayenge dost update doosri kahani jitne regular to nahi par hafte mein ek ya do to aayenge.
 

TharkiPo

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Welcome back Bhai, Lala apni hawas puri karne ke liye in dono ko ohra banana chahta tha, lekin Madhu Madam ne uska sara khel bigad diya, dekhte he ab aage kya hoga......

Waiting for the next update
Thank you bhai ab dekhte hain madhu madam bacha payegi ya nahi..
 

DesiLaunda

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दोनों के ही पति साथ में मजदूरी करते थे, और महीने दो महीने में आते जाते रहते थे पर इस बार दो महीने में कोई खबर नहीं थी, दोनों ही कुछ नहीं जानती थीं किससे पता करें कैसे करें तो मन मसोस कर इंतजार करने के अलावा दोनों के पास ही कुछ और चारा नहीं था।



अपडेट 2



अपनी परेशानियों का भार दोनो उठाए हुए दोनों ही औरतें अपना अपना रोज़ का चूल्हा चौका संभाल रही थी, सुमन ने चटनी बना ली थी तभी दोनों के सहारे और आंखों के तारे आंगन में घुसे।

सुमन : क्यों रे कहा मरी गओ हतो, कछु दिखत है कि नाय। झां ( यहां) हम तबसे राह देख रहे हैंगे।

आते ही सुमन रतनू पर बरस पड़ी और अपने अंदर का सारा क्रोध रतनू पर बहा दिया। उधर धीनू ने जब सुमन चाची को भड़कते देखा तो तुरंत अपनी कोठरी की तरफ खिसक लिया।

रतनू: हम ने का करो मां हम्पे ( हम पर) काय (क्यों) चिल्ला रही है। तोसे बता के तो गए हम कि खेलन जाय रहे हैं कोई काम हो तो बताई दे। खुदी तो तूने कही हती जा खेल आ।

सुमन को रतनू की बात सुनकर एहसास हुआ कि उसने अपने मन का गुस्सा बेचारे पर बिना गलती के ही उतार दिया है। पर फिर भी अपने बचाव में बोली: तो कही हती तो जाको मतबल जे थोड़ी ना है कि अंधेरे के बाद आयेगो।

बात को शांत करने के लिए आखिरी में जमुना को ही बीच में आना पड़ा, और चूल्हे के सामने बैठ कर फूंकनी मुंह से हटा कर बोली: अब रहन दे सुमन का है गयो जो थोड़ी देर है गई तौ। बताई के तो गाओ हतो।

जमुना की बात का सुमन पर कोई जवाब नहीं था और वैसे भी उसे पता था वो बिन बात ही रतनू पर भड़क रही है तो उसने हार मानते हुए रतनू से कहा: जा हाथ धोए आ, रोटी बनाए रहे हैं बैठ जा।

रतनू को थोड़ा डर और बुरा तो लगा था अपनी मां की बात सुनकर पर उसे आदत थी और अपनी मां की हालत वो भी समझता था कि वो कैसे झूझती है हालातों से, और उसी बीच कभी कभी उसका दुख गुस्सा बन कर बाहर निकल जाता है, और कभी कभी सामने वो पड़ जाता है, पर वो जानता था की उसकी मां उसपर जान छिड़कती है पर उसके परिवार पर मुसीबतें भी कुछ कम नहीं थी,

खैर रतनू ने अपनी मां की बात को माना और तुरंत चल दिया दोनो घरों के एक ही नलके की और जो आंगन के एक तरफ था और दोनों ही परिवार उसी का उपयोग करते थे,

जमुना: क्यों लल्ला भीज कैसे गओ, फिर से तलबिया में कूद रहो था न?

जमुना ने हाथों से आटे को पीटते हुए गोल रोटी बनाते हुए कहा,

धीनू: नाय माई वो हमई गेंद गिर गई हती तलबिया में ताई (इसीलिए) से हमें कूदन पड़ो,

जमुना: तुम लडिकन से किट्टी बेर कई है कि तलबिया ते थोरी दूर खेलो करौ, काई (किसी) दिन कछु है गाओ तो लेने के देवे पड़ी जागें।

धीनु: मोए का होयगो माई मोए तैरनो आत है।

धीनू ने अपनी गीली बनियान उतार कर रस्सी पर डालते हुए कहा।

जमुना: हां हां पता है हमें की तोय तैरनो आत है, अब जल्दी से उतार दे भीजे लत्ता (कपड़ा) और अंगोछा ते अच्छे से पोंछ लें नाय तो नाक बहने लगैगी।

धीनू: हां माई उतार तो रहे।

जमुना: और जू का डिब्बा सो है लकडिया को?

धीनू: का जू? अरे जू तो हमें तलबिया में मिलो, हमाई चप्पल फंस गई हती जाके नीचे।

जमुना: का है जा में?

धीनू: पता नाय अभी तक खोल के नाय देखो।

अब तक धीनू ने सारे कपड़े उतार लिए थे और अंत में कोठरी में जाकर एक सूखी बनियान और नीचे एक पुरानी लुंगी को लपेट कर बैठ गया।

जमुना ने भी एक प्लेट में थोड़ी चटनी और एक रोटी रखकर बढ़ा दी धीनू की ओर।

धीनू: घी बिलकुल नाय हतो का माइ?

जमुना: ना बिलकुल नाय तेरे पापा जब आय हते तबही आओ हतो और कित्तो चलेगो?

धीनू: सूखी रोटी खान में मजा न आत है।

जमुना: अभै खाय ले तेरे पापा अंगे तो और मंगाई लिंगे।

धीनू: पता नाय कब आंगे, इत्ते दिन है गए न कोई खोज ना खबर।

धीनू ने रोटी का टुकड़ा मुंह में डालते हुए मुंह बनाते हुए कहा।

जमुना: आँगे जल्दी ही कल हम जाएंगे मुन्नी चाची से पूछन कि हरिया की कोई खबर आई की नाय.

धीनू: हरिया तो पिछले महीने ही आओ हतो, हर महीने घूम जात है और पापा हैं कि कछु याद ही न रहत उन्हें।

जमुना: अरे अब चुप हो जा, और रोटी खान पर ध्यान दे?

धीनू थोड़ी देर शांति से खाता रहा और फिर कुछ सोच कर बोला: माई वो हम कह रहे हते..

जमुना: का कह रहो है?

धीनू: कल मेला लगो है गांव में हमहुं जाएं?

जमुना: अच्छा कल लगो है मेला?

धीनू: तो बाई (उसी) की लें कछु रुपिया मिलंगे?

जमुना: रुपिया??

जमुना को पता था मेला जायेगा तो रुपए तो चाहिए ही पर चौंक इसलिए गई की रुपए के नाम पर उसके पास कुछ नहीं था।

धीनू: हां मेला की खातिर रुपया तौ होने चाहिए ना?

जमुना: देख धीनू तोए भी हालत पता तो है हमाई फिर भी ऐसे बोल रहो है हम पे कछु नाय है।

धीनू: तौ मेला कैसे जागें ऐसे ही बस।

जमुना: लला तू सब जानत तो है तोस्से कछु छुपो तौ है न जब हम पे हैं ही नाय तो कांसे दिंगे।

धीनू का ये सुनकर मुंह बन जाता है,

जमुना: अरे लल्ला ऐसे मुंह न फुलाओ देखौ तुमाय पापा आंगें तो तब ले लियो रुपया और अपनी मरजी से खरच कर लियो।

धीनू: अच्छा मेला कल लगो है और पापा पता नाय कब आंगे, तब हमाय ले मेला लगो थोड़ी ही रहेगो।

धीनू ने खाली प्लेट को सरकाते हुए कहा।

जमुना : अच्छा तौ तू ही बता का करें हम। जब हमाए पास एक चवन्नी तक नाय है तो कांसे दें तोए?

धीनू: काऊ से लै लेत हैं न माई कछु दिन के लै जब पापा आ जागें तो लौटा दिंगे।

जमुना: तेरी बुद्धि बिलकुल ही सड़ गई है का? मेला में जान के लै कर्जा लेगो। थोड़ी सी भी अकल है खोपड़ी के अंदर के नाय।

धीनू अपनी मां की डांट सुनकर मुंह बनाकर चुपचाप उठ गया और कोठरी के अंदर चला गया,

और जैसा हमेशा हर मां के साथ होता है धीनू के अंदर जाने के बाद जमुना की आंखे नम हो गई, वो धीनु पर चिल्लाना नहीं चाहती थी पर वो भी क्या करे, वो जानती थी धीनू कभी किसी चीज़ के लिए ज़्यादा जिद नहीं करता था पर है तो बच्चा ही गांव में मेला लगेगा तो उसका मन तो बाकी बच्चों की तरह ही करेगा ही।

खैर इन आंखों की नमी से सूखी जिंदगी में खुशियों का गीलापन तो आयेगा नहीं तो अपने पल्लू से आंखों की पोंछकर जमुना भी लग गई काम बाकी की रोटियां बनाने में, रह रह कर उसे अपने बचपन के दिन याद आ रहे थे जब उसके गांव में मेला लगता था और वो भी अपने बाप और भाई के साथ बाप के कंधे पर बैठकर मेला घूमती थी हालांकि उसके बाप के पास ज्यादा पैसे तो नहीं होते थे पर जितने भी होते थे उनसे उन्हें खूब मजा करवाता था, जमुना को ऐसे लगता था कि संसार की हर लजीज़ चीज उसके गांव के मेले में मिलती थी, चाट पकौड़ी, गोलगप्पे, रसगुल्ला, पापड़ी, जलेबी, समोसा और खिलौने इतने के देखते ही लेने का मन करे हालांकि सब खरीद तो नहीं पाती थी पर उसे खूब मजा आता था, जमुना सोचने लगती है कि जो मजा उसने अपने बचपन में लिया उसे लेने का हक धीनूका भी है पर गरीबी उसके बेटे का हक़ छीन रही थी पर वो बेचारी कर भी क्या सकती थी सिवाय अपनी हालत पर रोने के।



सामने की कोठरी में मामला थोड़ा शांत था हालांकि रतनू भी अपनी मां से मेले के लिए बात करना चाहता था, पर अपनी मां का रवय्या देख उसने अभी इस बात को न करना ही बेहतर समझा उसने सोचा सुबह इस बारे में मां से पूछूंगा और चुपचाप रोटी और चटनी खाने लगा, सुमन भी कांखियो से अपने लाल को खाते हुए देख रही थी साथ ही उसके मन में ग्लानि के भाव उतार रहे थे की बिन बात ही उसने रतनू को झाड़ दिया, जिस हालत में वो हैं उसमे उस बेचारे का क्या दोष है तो वो भी बच्चा ही सारे बच्चों के जैसे उसके भी शौक़ हैं अरमान हैं उसका भी मन करता होगा, पर वो अपने घर की हालत समझता था और कोई भी अनचाही मांग नहीं करता था।



रतनू के खाने के बाद सुमन ने भी चूल्हा बुझाया और अपने लिए भी एक प्लेट में लेकर बैठ गई, उधर रतनू बाहर जाकर भैंस को छप्पर के नीचे बांध दिया, और आकर कोठरी में अपना बिस्तर लगाने लगा, सुमन भी खा पी कर और चूल्हा चौका निपटा कर कोठरी का दरवाज़ा लगा कर लेट गई और पास रखे मिट्टी के तेल के दिए को बंद कर दिया।

रतनू जो दिन के खेलने के कारण थक गया था तुरंत सो गया, वहीं सुमन की आंखों के सामने अपनी परेशानियां घूमने लगीं। वो रतनू के होते हुए भी काफी अकेला महसूस कर रही थी, दिन तो घर के काम काज में और परेशानियों से जूझने में निकल जाता था पर रात को जब सारा गांव सो रहा होता था तो सुमन को अपने पति की याद आती थी उसे साथी की जरूरत महसूस होती थी वो चाहती थी कि उसका पति उसके साथ हो उसके साथ सारी मुसीबतों को झेले जब सुमन बिन बात रतनू को डांटे तो वो उसे बचाए, सुमन के मन को साथी चाहिए था जिसके सामने वो अपनी हर परेशानी कह सके, रो सके, चिल्ला सके बता सके कि वो क्या महसूस करती है हर पल,हर रोज़, कैसे काटती है वो एक एक दिन।

और सिर्फ सुमन के मन को ही नहीं उसके तन को भी साथी की जरूरत थी और हो भी क्यों न उसकी उम्र ही क्या थी 34 वर्ष उसका बदन अब भी जवान था और सुख मांगता था, वो चाहती थी कि उसका पति आकर उसके बदन से खेले उसे रगड़े, उसकी सारी अकड़न को निकल दे, उसे खूब प्यार से सहलाए तो कभी बेदर्दी से मसले, सुमन के बदन का एक एक उभार कामाग्नि और वियोग की ज्वाला में जल रहा था, वो अपने पति के साथ बिताई हुए पिछली रातें याद करने लगती है जब उसका पति कैसे उसके पल्लू को उसके सीने से हटाकर उसके उभारों को ब्लाऊज के ऊपर से ही मसलता था और सुमन की सांसे अटक जाती थी, वो अपने हाथों से ब्लाउज का एक एक हुक खोलता था, और जब सारे हुक खुल जाते थे तो ब्लाऊज के दोनों पाटों को अलग करके उसके दोनों उभरो को अपने खुरदरे हाथों में भरकर जब हौले हौले से मसलता था तो सुमन की तो जैसे धड़कने किसी रेलगाड़ी के इंजन जैसे चलने लगती थी, उन्हीं पलों को याद करते हुए सुमन का एक हाथ अपने आप ही उसके उभारों पर चला गया और उसे खबर भी न हुई कि वो पति के साथ कामलीला के सपनों में इस कदर को गई थी कि उसकी उंगलियां ब्लाउज के ऊपर से ही उसके आटे के गोले जैसे मुलायम उभारों को गूंथने लगी थीं।

तभी अचानक से सोते हुए रतनू ने करवट बदली तो सुमन को जैसे होश आया और उसे एहसास हुआ कि वो क्या कर रही है तो जैसे उसे खुद के सामने ही लज्जा आ गई झट से उसने अपना हाथ अपने उन्नत वक्षस्थल से हटा लिया और फिर अपने बेटे की ओर करवट लेकर आंखें बंद करके सोने की कोशिश करने लगी।



उधर जमुना जब तक चूल्हा चौका करके कोठरी के अंदर आई तो देखा धीनू सो चुका था एक पल को जमुना ठहर गई और अपने लाल के मासूम चेहरे को देखने लगी जो उसे सोते हुए और प्यारा लग रहा था, इस चेहरे के लिए वो अपनी जान भी न्योछावर कर सकती थी पर आज वो ही उससे नाराज होकर सोया था, उसने कुछ सोचा फिर वो भी बिस्तर पर आकर लेट गई और दिया बंद करके सोने लगी।

अकलेपन के मामले में जमुना भी सुमन जैसी ही थी मन और तन दोनों से ही अकेली, पर सुमन जहां खुद के बदन के साथ खेलने में शर्माती थी वहीं जमुना इसे अपनी किस्मत मान कर कभी कभी खुद को शांत कर लेती थी, कभी धीनू के सो जाने पर जमुना अपनी साड़ी को ऊपर खिसका कर अपनी उंगलियों का भरपूर इस्तेमाल करके खुद को ठंडा करने की कोशिश करती रहती थी।

पर उसके तन की आग ऐसी निकम्मी थी की जितना शांत होती अगली बार उतना ही और भड़क जाती थी, हालांकि शुरू में उसे भी सुमन की तरह शर्म आती थी पर फिर धीरे धीरे वो खुद के बदन के साथ सहज होती गई और अब तो आलम ये था कि एक दो बार तो उसने उंगलियों की जगह मूली गाजर का सहारा भी लिया था।

खैर आज वो दिन नहीं था और जमुना भी जल्दी ही नींद की आगोश में चली गई।

गांव में अक्सर लोग जल्दी ही उठ जाते थे तो सुमन और जमुना भी जल्दी उठकर लोटा गैंग के साथ अंधेरे में ही खेतों में हल्की हो आई थीं और अब अपने और पालतू जानवरों के खाने का इंतजाम करने लगी थी तब जाकर दोनों के ही साहबजादों की नींद खुली, अपनी माओ की तरह ही दोनों मित्र भी साथ में लोटा लिए खेत की ओर निकल पड़े।

खैर सुबह के सारे काम निपटा कर जमुना ने कोठरी की सांकड़ लगाई और सुमन को आवाज दी, ओ री सुमन।

सुमन : हां जीजी का भओ?

सुमन ने नल के नीचे कपड़े रगड़ते हुए पूछा

जमुना: अच्छा तो तू लत्ता धोए रही है, अरे सुन हम जाय रहे हरिया के घरे देख आएं कोई खबर होय मुन्नी चाची को हरिया की तो हमें भी पता चल जाएगो।

जमुना की बात सुनकर सुमन की आंखों में भी एक हल्की सी उम्मीद जागी और उसने भी तुरंत बोला: हां जीजी देख आओ हम हूं जे ही सोच रहे हते।

जमुना: ठीक जाय रहे तू बकरियां देख लियो एक बेर पानी दिखा दियों।

सुमन: अरे जीजी तुम हम देख लिंगे.



जमुना सुमन से बताकर निकल गई मुन्नी चाची के घर, मुन्नी चाची एक पचास वर्ष की विधवा औरत थीं जिनका एक ही लड़का था हरिया और वो भी राजेश और उमेश की तरह ही शहर में काम करता था, तो इसीलिए जमुना सुमन मुन्नी चाची के पास आती रहती थी जिससे उन्हें अपने अपने पतियों के बारे में खबर मिल जाती थी।

जमुना जब मुन्नी चाची के यहां पहुंची तो वो लकड़ियों को तोड़कर जलाने लायक बना रही थीं,

जमुना: राम राम चाची।

जमुना ने आदर से झुककर मुन्नी के दोनों पैरों को पकड़ते हुए कहा,

मुन्नी ने जमुना को देखा और बड़े प्रेम से उसकी पीठ पर हाथ फेरते हुए भर भर के आशीष जमुना पर उड़ेल दिए, अब गरीब के पास देने को बस एक ही चीज होती है आशीर्वाद और दुआ तो चाची ने भी जो था उसे खूब दिया।

मुन्नी: अरे आ आ बहु बैठ, सही करो तू आय गई।

जमुना: का भाओ चाची सब बढ़िया तुमाई तबियत ठीक है?

मुन्नी: अरे सब ठीक है बिटिया अब तू जानति है कि हम तो अपने घोंटू (घुटने) की पीर से परेशान हैं न चल पाएं सही से न कछु ऊपर ते जू सुनो घर काटन को दौड़तहै बहु। तेई कसम खाए के कह रहे कभाऊ कभऊ तो सोचत हैं जा से अच्छे तो ऊपर ही चले जाएं।

जमुना: कैसी बात कर रही हो चाची सुभ सूभ बोलो करौ।

मुन्नी: गरीब के जीवन में का सुभ होत है बिटिया, और हमसे तो परमात्मा को न जाने कैसो बैर पहलहै, पति को छीन लओ और अब एक पूत है वाय गरीबी दूर करे बैठी है।

जमुना: हारो ना चाची, दुख तो सभपरै kkaभी) की ही झोली में ही हैं पर हारन से हु कछु न होने वारो है। हम तो तुमसे पहले से ही कह रहे हैं, हरिया को घोड़ी चढ़ाए देउ।

मुन्नी: अरे हमऊ जे ही चाहत हैं जमुना, पर हरिया है कि सुनत ही नाय हैं, कहत है कि पक्को घर बन जाएगो तौ ही ब्याह करंगे। जिद्दी भी तौ भौत (बहुत) है।

जमुना: वाको भी समझन चहिए चाची कि खुद तौ चलो जात है और झाँ तुम अकेली सुनो घर में।

मुन्नी: अरे हमाई छोड़ जमुना तू बता अपनी।

जमुना: अब हम का बताएं चाची, तुम्हें तौ सब पता ही है, तुमाय पास चले आत हैं सोचिके कि कछु खोज खबर होए तो थोरो चैन परै करेजा में।

मुन्नी: हम सब जानत हैं बहू।

जमुना शून्य में निहारते हुए बोली: खर्चा तक निकारनो मुश्किल है गओ है चाची, रोज़ लाला को तकादो, खेत में कछु पैदा न होत, जवान लड़की छाती पर बैठी है, का करें चाची एक मुस्किल होय तब ना।

मुन्नी: करेज़ा पकड़े रह बहु थोड़े दिन की बात है, उपरवारो परीक्षा ले रहो है, जल्दी ही सब अच्छो है जायगो।

जमुना: तुमाइ कसम चाची हमें तो लगत है उपरवारो हमाई पूरी जिदंगी परीक्षा ही लेतो रहो है और न जाने कब तक लेतो रहेगो। आधी परेशानी तौ हम काऊ से कैह भी न पात चाची।

मुन्नी: हमें मालूम है बिटिया, हमाई तुमाई और सुमनिया की हाथ की रेखा एक ही स्याही की हैं, हमाओ पति भाग(भाग्य) ने दूर कर दओ, तुम दोनन को गरीबी ने।

मुन्नी चाची ने एक गहरी सांस ली और बोली: हम जानत हैं बिन पति के रहनो कैसो है, जू दुनिया को भलो समाज और जा के भले लोग, अकेली दुखियारी औरत के सामने कैसी भलाई दिखात हैं हम सब देख चुके हैं।

जमुना मुन्नी चाची के सिलवटों पड़े चेहरे को देख रही थी और चाची शून्य में देखते हुए अपनी आप बीती सुना रही थी,

मुन्नी चाची: भलेमानुस के भेस में जो भेड़िया छुपे बैठे हैं भूखे जो औरत को बदन नजर आत ही जीभ निकार के वाके पीछे पड़ जात हैं, जब तेरे चाचा हमें छोड़ कै चले गए तो हमाए पीछे भी जा गांव के भले भेड़िया पीछे पड़ गए, बहुत बचाओ हमने खुद को बहू, पर एक दुख होय तो झेले कोई,

गरीबी झेंलते या खुद को बचाते, अगर बात सिरफ हमाई होती ना बिटिया तो हम भूखे भी मर जाते कोई चिंता नाय हती पर गोद में भूखे बच्चा की किलकारी हमसे सुनी नाय गई और हमें अपनो पल्लू ढीलो करनो पड़ो।

ये कहती ही चाची की आंखों से आशुओं की धारा बहने लगी, बेचारी अपने दुखों के बहाव को रोक नहीं पाई।

मुन्नी: हम गरीबन की एक ही दौलत हौत है इज़्जत और हम वाय भी न बचा सके। जब तलक जे बदन मसलने लायक थो खूब मसलो, नोचो और जब मन भरि गाओ तो छोड़ कै आगे बड़ गए।

जमुना को भी मुन्नी चाची की आपबीती अपनी सी लग रही थी, उसके साथ भी वैसा नहीं पर कुछ कुछ तो हो ही रहा था जमुना ने चाची को चुप कराने की कोशिश की और उनके कंधे को सांत्वना में दबाते हुए बोली: हमें पता है चाची तुमने बड़े बुरे दिन देखे हैं पर अब देखियो हरिया भौत ही जल्दी तुम्हें हर खुशी देगो देख लियो।

मुन्नी: हमें अब अपनी खुशी की चिंता नाय है बिटिया हमाई तो कटि गई जैसे कटनी हती, अब बस बालक अच्छे से रहे खुश रहें ब्याह करले बस बाके बाद हमें कछु न चाहिए।

जमुना: भोत जल्दी एसो होएगो चाची देख लियो तुम हम कह रहे हैं बस अब तुम्हाए दुख के दिन पूरे हैं गए समझों।

मुन्नी: अरे हमहू ना तू हमसे मिलन आई और हम तेरे सामने अपनों रोनो रोने लगे। खैर कछु बनाए का? चाय पानी।

जमुना: नाय चाची अभि खाय के ही आ रहे हैं, बस हुमाई तौ एकई इच्छा होत है। कछु खबर है का हरिया की,

मुन्नी: नाय बहु कछु नाय, डाकिया आओ हतो वासे भी पूछी पर कोई चिट्ठी कोई संदेश नाय हतो तुमाओ और सुमनिया भी पूछो पर नासपीटे के मुंह से हां नाय निकरी।

जवाब सुनकर जमुना का मुंह उतर गया जिसे मुन्नी में भी महसूस किया,

मुन्नी : कित्ते दिन है गए उमेश को गए?

जमुना: दूए महीना से जादा है गए चाची, और जबसे गए हैं कोई चिट्ठी पत्तर कछु ना आओ है, ना उनको और न ही राजेश को, अब ऐसे में का करें चाची हम तो हार गए हैं।

मुन्नी: हौंसला रख बिटिया, आभेई से हार मत और चिट्ठी को का है आज नाय कल वे खुद आ जागें, देख हरिया को भी तो डेढ़ महीना है गओ है। आय जागें बस तू अपनो और धीनूआ को संभाल तब तलक।

जमुना ने मुन्नी की बात सुनकर थोड़ी तसल्ली की पर धीनू का नाम सुनकर उसे रात को धीनू का रूठना याद आ गया और उसने ध्यान दिया की धीनू ने आज सुबह से भी उससे कोई बात नहीं की थी।

जमुना: अच्छा चाची अब हम निकल रहे हैं खेत से लकड़ियां उठानी है चूल्हे कै लै।

मुन्नी: हां हम औरतन को काम की कहां कमी एक निपटाओ तौ दूसरो माथे पे बैठ जात है।

जमुना: भए तौ चाची, अब करनो तौ हमें और धीनू कौ ही है ।

मुन्नी: हां कह तौ सही रही है। जा आराम से कोई खबर आएगी तो हम खुद आय जागें तेरे पास।

जमुना: राम राम चाची

जमुना ने एक बार फिर से चाची के पैर पकड़े तो चाची ने एक बार पीठ पर हाथ फेरते हुए आशीर्वाद दिया और फिर कुछ सोच कर बोली: जमुना बिटिया संभल के रहियो, बहुत से भेड़िए बैठे हैंगे घात लगाए कि तू कमज़ोर पड़े और तेरी जवानी को नोच खाएं। जुग जुग जियो।

जमुना को मुन्नी का आशीर्वाद सुनकर घबराहट हुई पर वो भी जानती थी कि चाची जो कह रही हैं सही है, जमुना बिना कुछ बोले सिर हिलाकर वहां से चल दी, रास्ते में आते हुए उसके दिमाग में बस धीनु का ही खयाल चल रहा था कि वो उससे रूठा हुआ है, अरे कैसी मां है री तू जो अपने लाल की एक इच्छा पूरी नहीं कर पा रही वैसे भी कहां वो कुछ मांगता ही है और जब बेचारे ने आज कुछ मांगा तो मैं वो भी नहीं दे पा रही, इस गरीबी के चलते मैंने अपने न जाने कितने अरमानों को गला घोंट के मार दिया है और अब अपने लाल के अरमानों का भी गला घोंट रही हूं। जमुना के मन में यही उथल पुथल मची हुई थी, उसके मन में एक खयाल आया पर उसे सोच कर ही वो डर गई, उसे समझ नहीं आ रहा था क्या करे, बेटे की खुशी के लिए करे या नहीं।

इसी कशमकश में वो चले जा रही थी और एक मोड़ पर आकर उसने फैसला कर लिया, मन की शंका के आगे उसका उसके लाल के प्रति प्रेम जीत गया और उसी लाल की खुशी के लिए जमुना के कदम एक रास्ते की ओर मुड़ गए।





एक अधेड़ उम्र का पर तंदरुस्त बदन वाला आदमी एक आदम कद शीशे के सामने खड़े होकर अपनी मूछों को ताव दे रहा था, बदन पर बस एक लुंगी, बालों से भरा हुआ चौड़ा सीना खुला हुआ, सिर पर आगे के बाल गायब थे तभी उसे दरवाज़े पर किसी के खटखटाने की आवाज आती है,

अब को आय गाओ सारो मरने कै लें। मूछन पै ताव भी न दे पाए हम। ऐ रज्जो देखो को है, रज्जो??? अरे हम भूल ही गए रज्जो तौ मंदिर गई हती हमें ही खोलन पड़ेगो।

इतना कह वो जाकर सीधा दरवाजा खोलता है और सामने एक औरत को खड़ा देख बोलता है: अरे अरे जमुना आज हमाय गरीब खाने में खुद आई हैं वैसे तो हमेही जानो पड़त है तुमाए दर्शन करन।

जमुना: लालाजी हमें तुमसे कछु बात करनी हती।

जी ये है लालाजी उमर ये ही करीब 40 के आस पास की होगी, थोड़ा सा पेट निकला हुआ पर चौड़े सीने के कारण ज्यादा मोटा नहीं लगता, ब्याज पर कर्ज देना इसका खानदानी पेशा है, और फिर कर्जे के बोझ के तले गरीबों की जमीन पर कब्जा करना, कर्जा लेने वाले न जाने गांव के कितने ही लोगों की बहु बेटियों को ये अपने नीचे ला चुका है, जिसने इससे एक बार कर्जा ले लिया वो इसके जाल में फंसता चला जाता है पहले जमीन जाती है और फिर घर की बहु बेटी लाला के बिस्तर की शोभा बढ़ाती है, गांव में अपनी धाक जमाने के लिय लाला ने कुछ चमचे भी पाल रखे हैं जो लाला के कहने पर किसी गरीब को हाथ पैर तोड़ने से लेकर उसकी बहु बेटियों को जबरदस्ती उठा लाने तक का काम करते हैं, लाला पहले किसी की घर की इज्जत को खुद लूटता है और फिर अपने चमचों के आगे फेंक देता है। जिस पर चमचे भूखे गिद्दों की तरह झपट पड़ते हैं पर समाज के सामने ये बहुत शरीफ बन कर रहता है सारे उल्टे काम छुपकर करता है।

लाला: हां हां जमुना रानी हम तो आपही लोगन की सुनन के लै तौ बैठे हते। आओ आओ अंदर आओ।

जमुना ने डरते हुए कदम अंदर बढ़ाए और लाला ने जमुना के पीछे तुरंत दरवाज़ा बंद कर दिया। लाला जमुना को ऊपर से नीचे घूरता हुआ सामने पड़े एक दीवान पर जाकर बैठ गया।

लाला: हां जमुना रानी कहो का बात करनी हती तुम्हें।

जमुना: वो लालाजी हमें थोड़े रुपिया की जरूरत हती, कछु मिलजाते तौ मुस्किल हल है जाती,

लाला जमुना को तीखी निगाह से देखते बोला: देख जमुना तोय जरूरत है हम समझ सकत हैं पर तुझे भी पता है तेरे आदमी पर पहले से ही हमाय kitte रूपया उधार हते, और पिछले तीन महीना सै मूल तौ छोड़ो ब्याज भी न आओ हतो। तौ अब तुम ही बताई दियो कि और रुपिया कैसे दें दें तुम्हें।



जमुना: हम जानत हैं लालाजी वो का है कि धीनू के पापा आन बारे ही हैं जल्दी ही और उनके आत ही हम तुमाए पिछले दोनों महीने को ब्याज भी चुकाए देंगे और जो अभेई लिंगे जे भी पूरे दे दिंगे।

लाला: देख जमुना हम काऊ के साथ गलत नाय कर सकत अगर तोय छूट देके और उधर दिंगे तौ जे बाकी सब के संग अन्याय होएगो। और जे हम ना कर सकत। जे परम्परा हमाए पुरखन तै चली आय रही है जो नियम कानून वे लोग बनाए गए वे हमें मानने पड़तें।

जमुना: हम अलग से कर्जा नाय मांग रहे लालाजी जे बस थोड़े से चाहिएं और पूरे लौटाए दिंगे कछु दिनन में ही।

लाला: देख जमुना हमें पता है तोय जरूरत है तासे ही तू हमाए दरवज्जे पर आई हती पर हमाई भी मजबूरी है, हम तोय सांत्वना दे सकत हैं रुपिया नाय।

लाला का जवाब सुनकर जमुना बेचारी निराश हो गई और भारी कदमों से बापिस मुड़ कर जाने लगी कुछ ही कदम बढ़ाए होंगे कि उसे लाला ने आवाज दी

लाला: रुक जमुना।

जमुना लाला की आवाज सुनकर तुरंत पलट गई,

लाला: देख जमुना हम वैसे तौ कछु नाय कर सकत हमाए हाथ नियम कानून से बंधे भए हैं पर एक काम होए सकत है।

जमुना: वो का लालाजी

जमुना को एक हल्की सी उम्मीद बंधी।

लाला दीवान से खड़ा हुआ और धीरे धीरे जमुना की ओर बढ़ता हुआ बोलने लगा।

लाला: देख जमुना तू तौ जान्त है कि हम एक वोपारी(व्यापारी) हैं और बोपार को एक ही नियम होत है, एक हाथ लेओ एक हाथ दियो, सही कह रहे ना?

जमुना ने थोड़ा असमंजस से में सिर हिला दिया

लाला: जैसे तू दुकान पै जात हैगी तो रुपया देत हैंगी और समान लेत हैगी।

जमुना: हां लालाजी

लाला: तौ बस तोय भी वैसो ही करने पड़ेगो। अगर रूप्या चहियें तौ बदले में कछू ना कछू तौ देनो पड़ेगो।

जमुना बेचरी असमंजस में फंस गई और सोचने लगी की अब मेरे पास क्या होगा लाला को देने के लिए।

जमुना : लालाजी हम गरीब के पास रूपया के बदले में देन को का होयेगो अगर कछू होतो तौ हमैं मांगन की जरूरतहे नाय पड़ती।

लाला अब तक चलते हुए जमुना के करीब आ चुका था,

लाला: अरे जमुना रानी ऊपर वारो इत्तो निरदयी नाय हतो, वाको तराजू बहुत सही है, काऊ को कछू देत है तौ काऊ को कछू। हमैं रुप्या दओ है तौ तुम्हें हू कछू ना कछू तो जरूर दऔ हैग्गो।



जमुना: हमैं तौ समझ नाय आय रहो लालाजी कि हमाय पास ऐसो का है जो हम तुम्हें रूपया के बदले दे सकें।

लाला अब जमुना के चारों ओर चक्कर लगा लगा कर बात कर रहा था जैसे कि भेड़िया किसी मासूम हिरन का शिकर करने से पहले उसे घेरता है।

लाला ने जमुना के बगल में रुक कर उसकी साडी और ब्लौज के बीच से झांकती नंगी चीकनी मासल कमर को घूरते हुए कहा: अरे जमुना रानी तेरे पास तो भौत कछू है कि अगर तू काय को दे दे तो वो मलामाल है जाए।

जमुना को जब लाला की थोड़ी बात समझ आई साथ ही उसने जब लाला की नजर का पीछा किया तो उसे खुद की कमर को घूरता हुआ पाया बस जमुना तो जैसे वहाँ खडे खडे बुत सी बन गई, उसे यहाँ आने से पहले जो डर सता रहा था वो सच होता जा रहा था। उसे समझ नहीं आ रहा था क्या करे क्या बोले, वो चाह रही थी कि धरती फट जाए ओर वो धरती के सीने में समा जाए।

जमुना: ज्ज ज्जी जी लालाजी हम कछू समझे नाय।

लाला: हम समझाय देत हैं जमुना रानी।

और ये बोलकर लाला ने जो किया उससे तो जमुना के होश ही उड गए वो शर्म से मरने को हो गई। लाला ने अपना हाथ बढ़ाकर जमुना की नँगी कमर पर रख दिया और उसे मसलने लगा।।





इसके आगे क्या हुआ अगली अपडेट में तब तक आप लोग कृपा करके कॉमेंट ज़रूर करें और बताएं कैसी लगी आपको कहानी। बहुत बहुत धन्यवाद।
Nyc update
 

SKYESH

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दोनों बेचारी अपने अपने विचरों में खोई हुइ अपने अपने कामों में लगी हुई थीं,

कि तभी एक आवाज पर दोनों का ध्यान जाता है,

हांफता हुआ मुन्ना दोनों के पास आकर रुकता है।

मुन्ना: अह्ह्ह् वो चाची मेला में, मेला में धीनू और रतनू भैया,

सुमन: का भओ मुन्ना मेला में का? और हाँफ काय रहो है इत्तो।

मुन्ना: वो चाची मेला में कछु लोग रतनू और धीनू भैया को मार रहे हैं।


अपडेट 5

दोनों की जेसे ये सुनकर जान ही निकल जाती है, दोनों सब कुछ छोड़ वैसे ही भाग पड़ती हैं मेले की ओर, हर कदम के साथ दोनों के दिल की धड़कन इतनी तेज़ होती जा रही थी जैसे कोई हथौड़ा छैनी पर गिरता है, दोनों मांओं का दिल बैठा जा रहा था, और मेला था कि आही नही रहा था, सांस फूलने लगी थी पर रुकना तो अभी किसी को मंजूर नहीं था, दोनों आखिर दौड़ते दौड़ते मेले में पहुंच गईं, देखा तो एक जगह भीड़ इकठ्ठा थी भीड़ को चीरते हुए अंदर गई तो देखा उनके कलेजे के टुकड़े नीचे पड़े हुए हैं और उनके ऊपर कुछ दो चार लोग खड़े हुए हैं,
दोनों वहां पहुंचते ही अपने अपने बेटों से लिपट गई।
जमुना: का है गाओ काहे मार रहे हो हमाए लला को?


एक आदमी बोला: पूछ अपने लौंडा से, चोरी करत है ये, पीटेंगे नहीं तो और आरती उतारेंगे।
सुमन: नाय नाय कछु गलती भई है मालिक हमाय बच्चा चोरी नहीं कर सकत।
आदमी: खुद देखो है हमने इन्हें गन्ना चुराए हैं हमाये खेत से।

जमुना: नाय झूंठ कह रहे हो तुम। नाय चुराए कोई गन्ना हमाय बच्चन ने।
जमुना रोते हुए अपने सीने से धीनू को लिपटाए हुए बोली।
आदमी: देखो तो हिम्मत बेटा चोरी करत है और मां हमको झूठा बताए रही है। ऐसे चोरों को तो मार मार के अच्छे से सबक सिखाना चाहिए।
और लोग दोबारा मारने के लिए आगे बढ़ने लगे, जमुना और सुमन उनके सामने गिड़गिड़ाने लगी, उनके बेटों को छोड़ने के लिय दया की भीख मांगने लगी।

जैसे ही एक आदमी आगे आया और धीनु पर लात से बार करने ही वाला था कि एक आवाज़ आइज: ए रूको,
सभी नजरें उस आवाज की ओर मुड़ी तो देखा सामने लाला खड़ा था,
जमुना सुमन, धीन रतनू सबकी नजरें लाला पर टिक गई।
लाला: ससुर तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई हमाएं गांव में आकर बच्चन को पीटन की?
आदमी: लाला जी प्रणाम, और क्या करें लालाजी इन दोनों ने हमारे खेत से गन्ने चुराए हैं।
लाला: का सबूत है तुमाय पास?
आदमी: हमने खुद देखो है इन दोनों को भगत हुए।

लाला: कितने को नुकसान हुआ है?
आदमी: पूरे दस रूपए को लालाजी।
लाला अपनी जेब से नोटो की गद्दी निकलता है और एक १० का नोट निकाल कर उस आदमी के हाथ में रख देता है और बोलता है,: जे पकड़ अपने रुपिया और सुन आइंदा से इन बच्चन को हाथ भी लगाओ ना तो हम तेरी हालत खराब कर देंगे।
लाला के इस कदम से सब चौंक जाते हैं धीनु और रतनू खुश होते हैं जबकि सुमन और जमुना और सोच में पड़ जाती हैं।
आदमी पैसे लेकर बड़बड़ाता हुआ चला जाता है,
लाला आगे बढ़ता है और धीनू और रतनू को उठाने लगता है
लाला: देखो बेटा हमें नाय पता तुमने गन्ना चुराए या ना चुराए, पर जो भी हुआ गलत हुआ, हम यही चाहेंगे की आगे से तुम एसो कोई काम न करो जिससे तुम्हें कोई तकलीफ हो,
आस पास खड़े लोग लाला की बात से सहमति जताने लगे धीनूं और रतनू ने भी सिर हिलाकर सहमति जताई और फिर दोनो उसके पैरों में गिर कर उसका धन्यवाद करने लगे।
धीनू: बहुत कृपा की आज तुमने मालिक, जो बचाए लिया।
रतनू: हां मालिक न जाने और कितनी मार पड़ती।
जमुना और सुमन को तो समझ ही नहीं आ रहा था कि क्या करें क्या बोलें वो तो बस खड़े होकर सब देखे जा रही थी,
लाला: अरे अरे ये क्या कर रहे हो तुम? तुम हमाय गांव के हो और हमाए अपने हो, तो हम तुम्हाये लिए नाय खड़े होंगे तो किसके लिए होंगे।
लाला ने दोनो के सिर पर हाथ फेरकर साथ ही एक नजर जमुना और सुमन पर डालते हुए कहा,
लाला: देखो अगर तुम्हें पैसन की जरूरत है तो हमारे यहां काम करने लग जाओ, हमारे पास बहुत से काम हैं तुम दोनो को मिल जायेगा और पैसे भी मिल जायेंगे।

धीनु: सच में मालिक तुम रखोगे हमें?
लाला: बिल्कुल क्यों नाय रखेंगे, एक काम करो दो तीन दिन आराम करो चोट लगी है ठीक हो जाओ फिर आ जाओ काम पर।

रतनू: हम बिल्कुल आएंगे मालिक दो दिन में ही आन लगेंगे।
तभी पीछे से एक और आवाज आती है,: नहीं तुम दोनो कोई काम नहीं करोगे।
इस बार लाला और बाकी सब हैरानी के साथ उस आवाज की और देखते हैं तो एक औरत खड़ी थी: लाला जी ये लोग अभी पढ़ेंगें काम नहीं करेगें।
ये कहकर वो औरत आगे आती है और लाला के हाथ में १० रुपए पकड़ा देती है।

लाला: अरे मेम साहब आपने देख तो लिया ही, की अगर पेट ही खाली होगा तो बच्चा पढ़त नहीं है चोरी करत है, तो अभी इनके लिए काम जरूरी है की पढ़ाई।
औरत: चोरी करके इन्होंने गलती की है, और उसकी सजा भी इन दोनो को मिल चुकी है, बाकी इसके आगे इनकी जिम्मेदारी मैं लेती हूं।
लाला: जेसी तुमाई इच्छा मेम साब , हम तो बस सब की भलाई चाहत हैं।
वो औरत धीनु , रतनू, जमुना और सुमन को वहां से लेकर निकल जाती है और लाला मन ही मन उसे गालियां देता रहता है।

ये औरत और कोई नहीं बल्कि गांव के स्कूल की अध्यापिका थी नाम था मधु उमर यही कोई 38 की, छह महीने पहले ही आई थी इस गांव में अकेली रहती थी, न बच्चे थे न परिवार और न ही किसी को कुछ पता था, बच्चे मैडम जी कहकर पुकारते थे और बड़े मेम साब।
और यही वो मास्टरनी थी जिनकी शाम की दैनिक क्रिया को छुप छुप कर देखकर धीनू और रतनू अपने हथियार साफ किया करते थे।
वैसे धीनू और रतनू का कोई दोष भी नहीं था हमारी अध्यापिका साहिबा थी हीं कुछ ऐसी की जो देखले बस देखता रह जाए।
भरा हुआ बदन, गोरा रंग, साड़ी के अंदर सीने पर जो उन्नत चूचियां जो सबका ध्यान अपनी ओर ही आकर्षित करती थी, नीचे भरा हुआ पर मोटा बिल्कुल नहीं ऐसा मांसल पेट उसके बीच में गहरी नाभी, पीछे दो पतीले जैसे चूतड़ जिन्हे साड़ी में कसे हुए देखकर ही लोगो के ईमान डोल जाते थे, लाला ने तो कई बार डोर डाले थे पर में साब थी थोड़ी तेज तर्रार तो एक न चली लाला की।
थोड़ी देर बाद सब लोग मेम साब के घर पर इकठ्ठा थे
जमुना: सही सही बता लल्ला तुम दोनो ने चोरी करी है कि नाय?
जमुना की बात का जवाब न धीनू ने दिया न रतनू ने।
सुमन: जे चुप्पी का मतलब यही है कि चोरी करी है तुम दोनो ने।

जमुना उठी और गुस्से से दो तीन थप्पड़ धीनू के जड़ दिए और रोते हुए बोलने लगी: ये ही दिन दिखावे को बढ़ा किया था तोए, अपनों पेट काट काट कर इसलिए खिलाओ के तु चोरी करे,

मधु ने उसे रोका और वापिस बिठा दिया,
मधु: शांत हो जाओ जमुना बस, इन दोनो के किए की सजा इन्हे पहले ही मिल चुकी है।
सुमन: पर हमाई का गलती है, हमने का पाप कर दिया जो हमें जे सब झेलनो पड़ रहो है।
सुमन ने भी आंसू बहाते हुए कहा, धीनू और रतनू दोनो ही बहुत दुखी थे, अपने किए हुए पर साथ ही इस बात से कि उनकी वजह से उनकी मांओं को दुख हो रहा था।

मधु: धीनू और रतनू, तुम दोनो घर जाओ, मम्मी अभी आयेंगी।
धीनू और रतनू दोनों अपने चोट खाए बदन को संभाले घर चले गए।

उनके जाने के बाद मधु ने अपना ध्यान जमुना और सुमन की ओर किया।
मधु: देखो मैं जानती हूं कि उन दोनो ने जो किया गलत किया है, पर मैं जानती हूं, की उन्होंने ऐसा क्यों किया होग।
सुमन: हैं जीजी काय करो हैगो?
मधु: देखो एक तो उनकी उमर ऐसी है, और खुद ही सोचो कि गांव में मेला है सब बच्चे घूम रहे होंगे खा रहे होंगे उनका मन भी हुआ होगा पर उन्हें घर के हालत भी पता है इसलिए तुम लोगो से भी नही मांग सकते जो उन्हें सही लगा वो किया, और वो भी क्या करें?
हैं तो बच्चे ही न,
सुमन: तो जीजी हम भी का करें, मजबूरी है ताहि से नहीं कर पाते उनके मन की इच्छा पूरी, नही तो हमारे बस में हो तो सब कछु दे दें उन्हें।
मधु: मैं समझती हूं कि मजबूरी है और सब कुछ तुम नहीं दे सकती पर हालातों से हार मानकर कुछ नही होगा, जो भी जितना भी तुम्हारे पास है उसे प्रयोग करके उनसे लड़ो।
जमुना: कछु समझे नाय जीजी।
मधु: देखो पैसे की कमी से या अन्य कारणों से दूसरे बच्चे उनके साथ नहीं खेलते उनके पास दूसरों की तरह खिलौने नहीं हैं और न ही दोस्त हैं, तो अगर तुम कुछ नहीं दे सकती तो एक चीज है जो जितनी सब के पास है उतनी ही तुम्हारे पास वो दे सकती हो।
जमुना: हाय दैय्या जीजी एसो का है हमारे पास।

मधु: समय,
सुमन: समय?
मधु: हां, एक दिन में २४ घंटे सबको मिलते हैं तुम्हें भी तो अगर बच्चों को कुछ और नहीं दे सकती तो अपना समय दो, उनसे बात करो उनके मन की जानो, उनकी दोस्त बनो, जिससे उनके मन में जो हो वो पहले तुम्हे बताएं।
सुमन: इससे बात बनेगी?
मधु: बिल्कुल बनेगी।
जमुना: हमें भी जीजी की बात ठीक लग रही है री बन्नो।
सुमन: सही कह रही हो जीजी,
और कछु न दे सकत तो समय तो दे सकत हैं।
मधु: बिलकुल सही, अब तुम लोग घर जाओ उनको डांटना मत और उनकी दोस्त बनने की कोशिश करना।

जमुना: ठीक जीजी हम ऐसा ही करेंगी।

इसके बाद दोनों मधु को प्रणाम और आज के लिए धन्यवाद करके अपने अपने घर चली जाती हैं।

आगे देखना हैं दोनो अपने बेटों की दोस्त बनने के लिए क्या क्या करती हैं और क्या क्या लिखा है किस्मत में।
welcomeback लेखक महोदय :wink2: :rose:

ab aaye ho to THE END kar ke jana .........................dubara LAPATA hone se pehle :winkiss:
 
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