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दोनों बेचारी अपने अपने विचरों में खोई हुइ अपने अपने कामों में लगी हुई थीं,
कि तभी एक आवाज पर दोनों का ध्यान जाता है,
हांफता हुआ मुन्ना दोनों के पास आकर रुकता है।
मुन्ना: अह्ह्ह् वो चाची मेला में, मेला में धीनू और रतनू भैया,
सुमन: का भओ मुन्ना मेला में का? और हाँफ काय रहो है इत्तो।
मुन्ना: वो चाची मेला में कछु लोग रतनू और धीनू भैया को मार रहे हैं।
दोनों की जेसे ये सुनकर जान ही निकल जाती है, दोनों सब कुछ छोड़ वैसे ही भाग पड़ती हैं मेले की ओर, हर कदम के साथ दोनों के दिल की धड़कन इतनी तेज़ होती जा रही थी जैसे कोई हथौड़ा छैनी पर गिरता है, दोनों मांओं का दिल बैठा जा रहा था, और मेला था कि आही नही रहा था, सांस फूलने लगी थी पर रुकना तो अभी किसी को मंजूर नहीं था, दोनों आखिर दौड़ते दौड़ते मेले में पहुंच गईं, देखा तो एक जगह भीड़ इकठ्ठा थी भीड़ को चीरते हुए अंदर गई तो देखा उनके कलेजे के टुकड़े नीचे पड़े हुए हैं और उनके ऊपर कुछ दो चार लोग खड़े हुए हैं,
दोनों वहां पहुंचते ही अपने अपने बेटों से लिपट गई।
जमुना: का है गाओ काहे मार रहे हो हमाए लला को?
एक आदमी बोला: पूछ अपने लौंडा से, चोरी करत है ये, पीटेंगे नहीं तो और आरती उतारेंगे।
सुमन: नाय नाय कछु गलती भई है मालिक हमाय बच्चा चोरी नहीं कर सकत।
आदमी: खुद देखो है हमने इन्हें गन्ना चुराए हैं हमाये खेत से।
जमुना: नाय झूंठ कह रहे हो तुम। नाय चुराए कोई गन्ना हमाय बच्चन ने।
जमुना रोते हुए अपने सीने से धीनू को लिपटाए हुए बोली।
आदमी: देखो तो हिम्मत बेटा चोरी करत है और मां हमको झूठा बताए रही है। ऐसे चोरों को तो मार मार के अच्छे से सबक सिखाना चाहिए।
और लोग दोबारा मारने के लिए आगे बढ़ने लगे, जमुना और सुमन उनके सामने गिड़गिड़ाने लगी, उनके बेटों को छोड़ने के लिय दया की भीख मांगने लगी।
जैसे ही एक आदमी आगे आया और धीनु पर लात से बार करने ही वाला था कि एक आवाज़ आइज: ए रूको,
सभी नजरें उस आवाज की ओर मुड़ी तो देखा सामने लाला खड़ा था,
जमुना सुमन, धीन रतनू सबकी नजरें लाला पर टिक गई।
लाला: ससुर तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई हमाएं गांव में आकर बच्चन को पीटन की?
आदमी: लाला जी प्रणाम, और क्या करें लालाजी इन दोनों ने हमारे खेत से गन्ने चुराए हैं।
लाला: का सबूत है तुमाय पास?
आदमी: हमने खुद देखो है इन दोनों को भगत हुए।
लाला: कितने को नुकसान हुआ है?
आदमी: पूरे दस रूपए को लालाजी।
लाला अपनी जेब से नोटो की गद्दी निकलता है और एक १० का नोट निकाल कर उस आदमी के हाथ में रख देता है और बोलता है,: जे पकड़ अपने रुपिया और सुन आइंदा से इन बच्चन को हाथ भी लगाओ ना तो हम तेरी हालत खराब कर देंगे।
लाला के इस कदम से सब चौंक जाते हैं धीनु और रतनू खुश होते हैं जबकि सुमन और जमुना और सोच में पड़ जाती हैं।
आदमी पैसे लेकर बड़बड़ाता हुआ चला जाता है,
लाला आगे बढ़ता है और धीनू और रतनू को उठाने लगता है
लाला: देखो बेटा हमें नाय पता तुमने गन्ना चुराए या ना चुराए, पर जो भी हुआ गलत हुआ, हम यही चाहेंगे की आगे से तुम एसो कोई काम न करो जिससे तुम्हें कोई तकलीफ हो,
आस पास खड़े लोग लाला की बात से सहमति जताने लगे धीनूं और रतनू ने भी सिर हिलाकर सहमति जताई और फिर दोनो उसके पैरों में गिर कर उसका धन्यवाद करने लगे।
धीनू: बहुत कृपा की आज तुमने मालिक, जो बचाए लिया।
रतनू: हां मालिक न जाने और कितनी मार पड़ती।
जमुना और सुमन को तो समझ ही नहीं आ रहा था कि क्या करें क्या बोलें वो तो बस खड़े होकर सब देखे जा रही थी,
लाला: अरे अरे ये क्या कर रहे हो तुम? तुम हमाय गांव के हो और हमाए अपने हो, तो हम तुम्हाये लिए नाय खड़े होंगे तो किसके लिए होंगे।
लाला ने दोनो के सिर पर हाथ फेरकर साथ ही एक नजर जमुना और सुमन पर डालते हुए कहा,
लाला: देखो अगर तुम्हें पैसन की जरूरत है तो हमारे यहां काम करने लग जाओ, हमारे पास बहुत से काम हैं तुम दोनो को मिल जायेगा और पैसे भी मिल जायेंगे।
धीनु: सच में मालिक तुम रखोगे हमें?
लाला: बिल्कुल क्यों नाय रखेंगे, एक काम करो दो तीन दिन आराम करो चोट लगी है ठीक हो जाओ फिर आ जाओ काम पर।
रतनू: हम बिल्कुल आएंगे मालिक दो दिन में ही आन लगेंगे।
तभी पीछे से एक और आवाज आती है,: नहीं तुम दोनो कोई काम नहीं करोगे।
इस बार लाला और बाकी सब हैरानी के साथ उस आवाज की और देखते हैं तो एक औरत खड़ी थी: लाला जी ये लोग अभी पढ़ेंगें काम नहीं करेगें।
ये कहकर वो औरत आगे आती है और लाला के हाथ में १० रुपए पकड़ा देती है।
लाला: अरे मेम साहब आपने देख तो लिया ही, की अगर पेट ही खाली होगा तो बच्चा पढ़त नहीं है चोरी करत है, तो अभी इनके लिए काम जरूरी है की पढ़ाई।
औरत: चोरी करके इन्होंने गलती की है, और उसकी सजा भी इन दोनो को मिल चुकी है, बाकी इसके आगे इनकी जिम्मेदारी मैं लेती हूं।
लाला: जेसी तुमाई इच्छा मेम साब , हम तो बस सब की भलाई चाहत हैं।
वो औरत धीनु , रतनू, जमुना और सुमन को वहां से लेकर निकल जाती है और लाला मन ही मन उसे गालियां देता रहता है।
ये औरत और कोई नहीं बल्कि गांव के स्कूल की अध्यापिका थी नाम था मधु उमर यही कोई 38 की, छह महीने पहले ही आई थी इस गांव में अकेली रहती थी, न बच्चे थे न परिवार और न ही किसी को कुछ पता था, बच्चे मैडम जी कहकर पुकारते थे और बड़े मेम साब।
और यही वो मास्टरनी थी जिनकी शाम की दैनिक क्रिया को छुप छुप कर देखकर धीनू और रतनू अपने हथियार साफ किया करते थे।
वैसे धीनू और रतनू का कोई दोष भी नहीं था हमारी अध्यापिका साहिबा थी हीं कुछ ऐसी की जो देखले बस देखता रह जाए।
भरा हुआ बदन, गोरा रंग, साड़ी के अंदर सीने पर जो उन्नत चूचियां जो सबका ध्यान अपनी ओर ही आकर्षित करती थी, नीचे भरा हुआ पर मोटा बिल्कुल नहीं ऐसा मांसल पेट उसके बीच में गहरी नाभी, पीछे दो पतीले जैसे चूतड़ जिन्हे साड़ी में कसे हुए देखकर ही लोगो के ईमान डोल जाते थे, लाला ने तो कई बार डोर डाले थे पर में साब थी थोड़ी तेज तर्रार तो एक न चली लाला की।
थोड़ी देर बाद सब लोग मेम साब के घर पर इकठ्ठा थे
जमुना: सही सही बता लल्ला तुम दोनो ने चोरी करी है कि नाय?
जमुना की बात का जवाब न धीनू ने दिया न रतनू ने।
सुमन: जे चुप्पी का मतलब यही है कि चोरी करी है तुम दोनो ने।
जमुना उठी और गुस्से से दो तीन थप्पड़ धीनू के जड़ दिए और रोते हुए बोलने लगी: ये ही दिन दिखावे को बढ़ा किया था तोए, अपनों पेट काट काट कर इसलिए खिलाओ के तु चोरी करे,
मधु ने उसे रोका और वापिस बिठा दिया,
मधु: शांत हो जाओ जमुना बस, इन दोनो के किए की सजा इन्हे पहले ही मिल चुकी है।
सुमन: पर हमाई का गलती है, हमने का पाप कर दिया जो हमें जे सब झेलनो पड़ रहो है।
सुमन ने भी आंसू बहाते हुए कहा, धीनू और रतनू दोनो ही बहुत दुखी थे, अपने किए हुए पर साथ ही इस बात से कि उनकी वजह से उनकी मांओं को दुख हो रहा था।
मधु: धीनू और रतनू, तुम दोनो घर जाओ, मम्मी अभी आयेंगी।
धीनू और रतनू दोनों अपने चोट खाए बदन को संभाले घर चले गए।
उनके जाने के बाद मधु ने अपना ध्यान जमुना और सुमन की ओर किया।
मधु: देखो मैं जानती हूं कि उन दोनो ने जो किया गलत किया है, पर मैं जानती हूं, की उन्होंने ऐसा क्यों किया होग।
सुमन: हैं जीजी काय करो हैगो?
मधु: देखो एक तो उनकी उमर ऐसी है, और खुद ही सोचो कि गांव में मेला है सब बच्चे घूम रहे होंगे खा रहे होंगे उनका मन भी हुआ होगा पर उन्हें घर के हालत भी पता है इसलिए तुम लोगो से भी नही मांग सकते जो उन्हें सही लगा वो किया, और वो भी क्या करें?
हैं तो बच्चे ही न,
सुमन: तो जीजी हम भी का करें, मजबूरी है ताहि से नहीं कर पाते उनके मन की इच्छा पूरी, नही तो हमारे बस में हो तो सब कछु दे दें उन्हें।
मधु: मैं समझती हूं कि मजबूरी है और सब कुछ तुम नहीं दे सकती पर हालातों से हार मानकर कुछ नही होगा, जो भी जितना भी तुम्हारे पास है उसे प्रयोग करके उनसे लड़ो।
जमुना: कछु समझे नाय जीजी।
मधु: देखो पैसे की कमी से या अन्य कारणों से दूसरे बच्चे उनके साथ नहीं खेलते उनके पास दूसरों की तरह खिलौने नहीं हैं और न ही दोस्त हैं, तो अगर तुम कुछ नहीं दे सकती तो एक चीज है जो जितनी सब के पास है उतनी ही तुम्हारे पास वो दे सकती हो।
जमुना: हाय दैय्या जीजी एसो का है हमारे पास।
मधु: समय,
सुमन: समय?
मधु: हां, एक दिन में २४ घंटे सबको मिलते हैं तुम्हें भी तो अगर बच्चों को कुछ और नहीं दे सकती तो अपना समय दो, उनसे बात करो उनके मन की जानो, उनकी दोस्त बनो, जिससे उनके मन में जो हो वो पहले तुम्हे बताएं।
सुमन: इससे बात बनेगी?
मधु: बिल्कुल बनेगी।
जमुना: हमें भी जीजी की बात ठीक लग रही है री बन्नो।
सुमन: सही कह रही हो जीजी,
और कछु न दे सकत तो समय तो दे सकत हैं।
मधु: बिलकुल सही, अब तुम लोग घर जाओ उनको डांटना मत और उनकी दोस्त बनने की कोशिश करना।
जमुना: ठीक जीजी हम ऐसा ही करेंगी।
इसके बाद दोनों मधु को प्रणाम और आज के लिए धन्यवाद करके अपने अपने घर चली जाती हैं।
आगे देखना हैं दोनो अपने बेटों की दोस्त बनने के लिए क्या क्या करती हैं और क्या क्या लिखा है किस्मत में।
कि तभी एक आवाज पर दोनों का ध्यान जाता है,
हांफता हुआ मुन्ना दोनों के पास आकर रुकता है।
मुन्ना: अह्ह्ह् वो चाची मेला में, मेला में धीनू और रतनू भैया,
सुमन: का भओ मुन्ना मेला में का? और हाँफ काय रहो है इत्तो।
मुन्ना: वो चाची मेला में कछु लोग रतनू और धीनू भैया को मार रहे हैं।
अपडेट 5
दोनों की जेसे ये सुनकर जान ही निकल जाती है, दोनों सब कुछ छोड़ वैसे ही भाग पड़ती हैं मेले की ओर, हर कदम के साथ दोनों के दिल की धड़कन इतनी तेज़ होती जा रही थी जैसे कोई हथौड़ा छैनी पर गिरता है, दोनों मांओं का दिल बैठा जा रहा था, और मेला था कि आही नही रहा था, सांस फूलने लगी थी पर रुकना तो अभी किसी को मंजूर नहीं था, दोनों आखिर दौड़ते दौड़ते मेले में पहुंच गईं, देखा तो एक जगह भीड़ इकठ्ठा थी भीड़ को चीरते हुए अंदर गई तो देखा उनके कलेजे के टुकड़े नीचे पड़े हुए हैं और उनके ऊपर कुछ दो चार लोग खड़े हुए हैं,
दोनों वहां पहुंचते ही अपने अपने बेटों से लिपट गई।
जमुना: का है गाओ काहे मार रहे हो हमाए लला को?
एक आदमी बोला: पूछ अपने लौंडा से, चोरी करत है ये, पीटेंगे नहीं तो और आरती उतारेंगे।
सुमन: नाय नाय कछु गलती भई है मालिक हमाय बच्चा चोरी नहीं कर सकत।
आदमी: खुद देखो है हमने इन्हें गन्ना चुराए हैं हमाये खेत से।
जमुना: नाय झूंठ कह रहे हो तुम। नाय चुराए कोई गन्ना हमाय बच्चन ने।
जमुना रोते हुए अपने सीने से धीनू को लिपटाए हुए बोली।
आदमी: देखो तो हिम्मत बेटा चोरी करत है और मां हमको झूठा बताए रही है। ऐसे चोरों को तो मार मार के अच्छे से सबक सिखाना चाहिए।
और लोग दोबारा मारने के लिए आगे बढ़ने लगे, जमुना और सुमन उनके सामने गिड़गिड़ाने लगी, उनके बेटों को छोड़ने के लिय दया की भीख मांगने लगी।
जैसे ही एक आदमी आगे आया और धीनु पर लात से बार करने ही वाला था कि एक आवाज़ आइज: ए रूको,
सभी नजरें उस आवाज की ओर मुड़ी तो देखा सामने लाला खड़ा था,
जमुना सुमन, धीन रतनू सबकी नजरें लाला पर टिक गई।
लाला: ससुर तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई हमाएं गांव में आकर बच्चन को पीटन की?
आदमी: लाला जी प्रणाम, और क्या करें लालाजी इन दोनों ने हमारे खेत से गन्ने चुराए हैं।
लाला: का सबूत है तुमाय पास?
आदमी: हमने खुद देखो है इन दोनों को भगत हुए।
लाला: कितने को नुकसान हुआ है?
आदमी: पूरे दस रूपए को लालाजी।
लाला अपनी जेब से नोटो की गद्दी निकलता है और एक १० का नोट निकाल कर उस आदमी के हाथ में रख देता है और बोलता है,: जे पकड़ अपने रुपिया और सुन आइंदा से इन बच्चन को हाथ भी लगाओ ना तो हम तेरी हालत खराब कर देंगे।
लाला के इस कदम से सब चौंक जाते हैं धीनु और रतनू खुश होते हैं जबकि सुमन और जमुना और सोच में पड़ जाती हैं।
आदमी पैसे लेकर बड़बड़ाता हुआ चला जाता है,
लाला आगे बढ़ता है और धीनू और रतनू को उठाने लगता है
लाला: देखो बेटा हमें नाय पता तुमने गन्ना चुराए या ना चुराए, पर जो भी हुआ गलत हुआ, हम यही चाहेंगे की आगे से तुम एसो कोई काम न करो जिससे तुम्हें कोई तकलीफ हो,
आस पास खड़े लोग लाला की बात से सहमति जताने लगे धीनूं और रतनू ने भी सिर हिलाकर सहमति जताई और फिर दोनो उसके पैरों में गिर कर उसका धन्यवाद करने लगे।
धीनू: बहुत कृपा की आज तुमने मालिक, जो बचाए लिया।
रतनू: हां मालिक न जाने और कितनी मार पड़ती।
जमुना और सुमन को तो समझ ही नहीं आ रहा था कि क्या करें क्या बोलें वो तो बस खड़े होकर सब देखे जा रही थी,
लाला: अरे अरे ये क्या कर रहे हो तुम? तुम हमाय गांव के हो और हमाए अपने हो, तो हम तुम्हाये लिए नाय खड़े होंगे तो किसके लिए होंगे।
लाला ने दोनो के सिर पर हाथ फेरकर साथ ही एक नजर जमुना और सुमन पर डालते हुए कहा,
लाला: देखो अगर तुम्हें पैसन की जरूरत है तो हमारे यहां काम करने लग जाओ, हमारे पास बहुत से काम हैं तुम दोनो को मिल जायेगा और पैसे भी मिल जायेंगे।
धीनु: सच में मालिक तुम रखोगे हमें?
लाला: बिल्कुल क्यों नाय रखेंगे, एक काम करो दो तीन दिन आराम करो चोट लगी है ठीक हो जाओ फिर आ जाओ काम पर।
रतनू: हम बिल्कुल आएंगे मालिक दो दिन में ही आन लगेंगे।
तभी पीछे से एक और आवाज आती है,: नहीं तुम दोनो कोई काम नहीं करोगे।
इस बार लाला और बाकी सब हैरानी के साथ उस आवाज की और देखते हैं तो एक औरत खड़ी थी: लाला जी ये लोग अभी पढ़ेंगें काम नहीं करेगें।
ये कहकर वो औरत आगे आती है और लाला के हाथ में १० रुपए पकड़ा देती है।
लाला: अरे मेम साहब आपने देख तो लिया ही, की अगर पेट ही खाली होगा तो बच्चा पढ़त नहीं है चोरी करत है, तो अभी इनके लिए काम जरूरी है की पढ़ाई।
औरत: चोरी करके इन्होंने गलती की है, और उसकी सजा भी इन दोनो को मिल चुकी है, बाकी इसके आगे इनकी जिम्मेदारी मैं लेती हूं।
लाला: जेसी तुमाई इच्छा मेम साब , हम तो बस सब की भलाई चाहत हैं।
वो औरत धीनु , रतनू, जमुना और सुमन को वहां से लेकर निकल जाती है और लाला मन ही मन उसे गालियां देता रहता है।
ये औरत और कोई नहीं बल्कि गांव के स्कूल की अध्यापिका थी नाम था मधु उमर यही कोई 38 की, छह महीने पहले ही आई थी इस गांव में अकेली रहती थी, न बच्चे थे न परिवार और न ही किसी को कुछ पता था, बच्चे मैडम जी कहकर पुकारते थे और बड़े मेम साब।
और यही वो मास्टरनी थी जिनकी शाम की दैनिक क्रिया को छुप छुप कर देखकर धीनू और रतनू अपने हथियार साफ किया करते थे।
वैसे धीनू और रतनू का कोई दोष भी नहीं था हमारी अध्यापिका साहिबा थी हीं कुछ ऐसी की जो देखले बस देखता रह जाए।
भरा हुआ बदन, गोरा रंग, साड़ी के अंदर सीने पर जो उन्नत चूचियां जो सबका ध्यान अपनी ओर ही आकर्षित करती थी, नीचे भरा हुआ पर मोटा बिल्कुल नहीं ऐसा मांसल पेट उसके बीच में गहरी नाभी, पीछे दो पतीले जैसे चूतड़ जिन्हे साड़ी में कसे हुए देखकर ही लोगो के ईमान डोल जाते थे, लाला ने तो कई बार डोर डाले थे पर में साब थी थोड़ी तेज तर्रार तो एक न चली लाला की।
थोड़ी देर बाद सब लोग मेम साब के घर पर इकठ्ठा थे
जमुना: सही सही बता लल्ला तुम दोनो ने चोरी करी है कि नाय?
जमुना की बात का जवाब न धीनू ने दिया न रतनू ने।
सुमन: जे चुप्पी का मतलब यही है कि चोरी करी है तुम दोनो ने।
जमुना उठी और गुस्से से दो तीन थप्पड़ धीनू के जड़ दिए और रोते हुए बोलने लगी: ये ही दिन दिखावे को बढ़ा किया था तोए, अपनों पेट काट काट कर इसलिए खिलाओ के तु चोरी करे,
मधु ने उसे रोका और वापिस बिठा दिया,
मधु: शांत हो जाओ जमुना बस, इन दोनो के किए की सजा इन्हे पहले ही मिल चुकी है।
सुमन: पर हमाई का गलती है, हमने का पाप कर दिया जो हमें जे सब झेलनो पड़ रहो है।
सुमन ने भी आंसू बहाते हुए कहा, धीनू और रतनू दोनो ही बहुत दुखी थे, अपने किए हुए पर साथ ही इस बात से कि उनकी वजह से उनकी मांओं को दुख हो रहा था।
मधु: धीनू और रतनू, तुम दोनो घर जाओ, मम्मी अभी आयेंगी।
धीनू और रतनू दोनों अपने चोट खाए बदन को संभाले घर चले गए।
उनके जाने के बाद मधु ने अपना ध्यान जमुना और सुमन की ओर किया।
मधु: देखो मैं जानती हूं कि उन दोनो ने जो किया गलत किया है, पर मैं जानती हूं, की उन्होंने ऐसा क्यों किया होग।
सुमन: हैं जीजी काय करो हैगो?
मधु: देखो एक तो उनकी उमर ऐसी है, और खुद ही सोचो कि गांव में मेला है सब बच्चे घूम रहे होंगे खा रहे होंगे उनका मन भी हुआ होगा पर उन्हें घर के हालत भी पता है इसलिए तुम लोगो से भी नही मांग सकते जो उन्हें सही लगा वो किया, और वो भी क्या करें?
हैं तो बच्चे ही न,
सुमन: तो जीजी हम भी का करें, मजबूरी है ताहि से नहीं कर पाते उनके मन की इच्छा पूरी, नही तो हमारे बस में हो तो सब कछु दे दें उन्हें।
मधु: मैं समझती हूं कि मजबूरी है और सब कुछ तुम नहीं दे सकती पर हालातों से हार मानकर कुछ नही होगा, जो भी जितना भी तुम्हारे पास है उसे प्रयोग करके उनसे लड़ो।
जमुना: कछु समझे नाय जीजी।
मधु: देखो पैसे की कमी से या अन्य कारणों से दूसरे बच्चे उनके साथ नहीं खेलते उनके पास दूसरों की तरह खिलौने नहीं हैं और न ही दोस्त हैं, तो अगर तुम कुछ नहीं दे सकती तो एक चीज है जो जितनी सब के पास है उतनी ही तुम्हारे पास वो दे सकती हो।
जमुना: हाय दैय्या जीजी एसो का है हमारे पास।
मधु: समय,
सुमन: समय?
मधु: हां, एक दिन में २४ घंटे सबको मिलते हैं तुम्हें भी तो अगर बच्चों को कुछ और नहीं दे सकती तो अपना समय दो, उनसे बात करो उनके मन की जानो, उनकी दोस्त बनो, जिससे उनके मन में जो हो वो पहले तुम्हे बताएं।
सुमन: इससे बात बनेगी?
मधु: बिल्कुल बनेगी।
जमुना: हमें भी जीजी की बात ठीक लग रही है री बन्नो।
सुमन: सही कह रही हो जीजी,
और कछु न दे सकत तो समय तो दे सकत हैं।
मधु: बिलकुल सही, अब तुम लोग घर जाओ उनको डांटना मत और उनकी दोस्त बनने की कोशिश करना।
जमुना: ठीक जीजी हम ऐसा ही करेंगी।
इसके बाद दोनों मधु को प्रणाम और आज के लिए धन्यवाद करके अपने अपने घर चली जाती हैं।
आगे देखना हैं दोनो अपने बेटों की दोस्त बनने के लिए क्या क्या करती हैं और क्या क्या लिखा है किस्मत में।