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मैं किसके सर पर इल्ज़ाम रखता,
शहर में कोई मेरा क़ातिल न था।।
_______शुभम कुमार
शहर में कोई मेरा क़ातिल न था।।
_______शुभम कुमार
Ye Apne likhe hai kyaइन अॅधेरों में कोई चिराग़ न जलाओ यारो,
देख कर अपने साए को डर न जाऊॅ मैं।।
__________शुभम कुमार
मैं किसके सर पर इल्ज़ाम रखता,
शहर में कोई मेरा क़ातिल न था।।
_______शुभम कुमार
हाले-दिल मेरा कोई समझता कैसे,
किसी के सीने में वैसा दिल न था।।
_______शुभम कुमार
किसी आईने के बेसतर टुकड़ों की तरह,
बिखर जाएगी एक दिन ज़िंदगी कहना।।
_________शुभम कुमार
इन अॅधेरों में कोई चिराग़ न जलाओ यारो,
देख कर अपने साए को डर न जाऊॅ मैं।।
__________शुभम कुमार
अब और मेरे हौंसलों का इम्तिहां न लो,
आईना हूॅ टूट कर बिखर न जाऊॅ मैं।।
__________शुभम कुमार
मिल जाए मुझे समंदर से दरिया की तरह,
इतनी भी न करे मुझसे दिल्लगी कहना।।
_________शुभम कुमार
Kadak...क्यों समंदर में रह भी तिश्नगी न गई,
कोई पूछे अगर तो बस बेबसी कहना।।
_______शुभम कुमार
हाॅ भाई, ये शेर मेरी ग़ज़ल के हैं।Ye Apne likhe hai kya