• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Serious ख़याल-ए-यार

क्या आपको शेर-ओ-शायरी पसंद है????

  • हाॅ, बेहद पसंद है।

    Votes: 12 92.3%
  • थोड़ा बहुत,,,

    Votes: 1 7.7%

  • Total voters
    13

TheBlackBlood

αlѵíժα
Supreme
78,222
113,742
354
हैलो दोस्तो, आप सभी का ख़याल-ए-यार में तहे-दिल से स्वागत है। इस थ्रीड पर आप सब भी अपने ख़याल शेर-ओ-शायरी के माध्यम से बयां कर सकते हैं।

इस थ्रीड पर मैं दुनियाॅ के मशहूर शायरों के तसव्वुर से निकले शेर, नज़्म, शायरी, एवं ग़ज़लें पोस्ट करूॅगा। आशा करता हूॅ कि आप सभी को बेहद पसंद आएॅगा।

तो दोस्तो, आपकी नज़र में पेशे-ख़िदमत है ये शेर। ज़रा ग़ौर फ़रमाइये,,,

उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो,
न जाने किस गली में ज़िंदगी की शाम हो जाए।।

______डाॅ. बशीर बद्र
 

TheBlackBlood

αlѵíժα
Supreme
78,222
113,742
354
कुछ इश्क़ किया कुछ काम किया
वो लोग बहुत ख़ुश-क़िस्मत थे
जो इश्क़ को काम समझते थे
या काम से आशिक़ी करते थे
हम जीते-जी मसरूफ़ रहे
कुछ इश्क़ किया कुछ काम किया
काम इश्क़ के आड़े आता रहा
और इश्क़ से काम उलझता रहा
फिर आख़िर तंग आ कर हम ने
दोनों को अधूरा छोड़ दिया।

________फ़ैज़ अहमद 'फ़ैज़'
 

TheBlackBlood

αlѵíժα
Supreme
78,222
113,742
354
जिस की आवाज़ कानों में सुब्ह सुब्ह चिड़ियों की तरह चहकती थी
जिस की मौजूदगी से फ़ज़ाओं में ख़ुशबू सी महकती थी
वो मेरी पहली मोहब्बत थी
जिस की आँखें देख मुतअस्सिर हो जाते थे हिरन
नक़ाब से जिस का चेहरा ऐसे झलकता था जैसे सूरज की पहली किरन
जिस का मुस्कुराना था कि जैसे वादियों में सहर का आना
किसी फूल की तरह जिस पे तितलियाँ मंडराया करती थीं
वो चाँद से आई थी शायद रात में सितारों से बातें किया करती थी
जो दिन का पहला पैग़ाम भी थी और रात का आख़िरी सलाम भी
सुब्ह-बा-ख़ैर से ले कर शब-ब-ख़ैर तक जो मेरा तकिया-कलाम थी
वो मेरी पहली मोहब्बत थी
ख़ामोशी में छुपाए जज़्बात जो समझ लेती थी
बिन ज़ाहिर किए तमाम एहसासात जो परख लेती थी
मेरे लिए जो हर कहानी हर एक क़िस्से में थी
हर एक शाइ'री हर एक ग़ज़ल के हिस्से में थी
जो हर नज़्म में थी और हर मौसीक़ी में भी
दिलदार भी थी जो और दुनिया-दार भी
शान-ओ-शौकत की इस दुनिया में मुझ ग़रीब की चाहत की तलबगार थी
वो मेरी पहली मोहब्बत थी
जो माज़ी थी मगर मेरा मुस्तक़बिल न बन पाई
मेरे साथ हर हाल में राज़ी थी मगर ज़िंदगी में शामिल न हो पाई
प्यार की राह में जो मेरी हम-सफ़र थी
जिस के जाने के बाद मेरी ज़िंदगी सिफ़र थी
कुछ रिश्ते ख़ून के होते हैं और कुछ दिल के
मगर रूह का रिश्ता सिर्फ़ जिस शख़्स से था
वो मेरी पहली मोहब्बत थी
मेरे तख़य्युल में जो इक तस्वीर बन के रह गई
जो दिल में मेरे बस के तक़दीर में किसी और की हो गई
जो हमराज़ भी थी और मेरी ज़िंदगी का सब से बड़ा राज़ भी
जिस के जाने के मुद्दतों बाद भी उस के वापस आने की एक आस थी
वो मेरी पहली मोहब्बत थी
वो मेरी पहली मोहब्बत थी।।

________आमिर रियाज़
 

TheBlackBlood

αlѵíժα
Supreme
78,222
113,742
354
कोई हम-नफ़स नहीं है, कोई रज़दाँ नहीं है।
फ़क़त एक दिल था अपना सो वो मेहरबाँ नहीं है।।

मेरी रूह की हक़ीक़त मेरे आँसुओं से पूछो,
मेरा मजलिसी तबस्सुम मेरा तर्जुमाँ नहीं है।।

किसी आँख को सदा दो किसी ज़ुल्फ़ को पुकारो,
बड़ी धूप पड़ रही है कोई सायबाँ नहीं है।।

इन्हीं पत्थरों पे चल कर अगर आ सको तो आओ,
मेरे घर के रास्ते में कोई कहकशाँ नहीं है।।

_________मुस्तफ़ा ज़ैदी
गायक:- गुलाम अली
 
Top