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Incest क्या ये गलत है ? (completed)

Incestlala

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रात के करीब 2 बज रहे थे। जय के मामा जा चुके थे। तभी प्यास की वजह से जय की नींद खुली। थोड़ी देर तो वो अलसा कर लेटा रहा पर जब बर्दाश्त नही हुआ तो उसे झक मारके उठना पड़ा। उसने कदमो को नींद में ही किसी तरह खींचते हुए किचन में घुसा । उसने फिर बिना बत्ती जलाये ही टटोलते हुए फ्रिज का दरवाजा खोला और पानी की बोतल निकालकर पीने लगा। वो अंधेरे में ही खड़ा था। तभी उसे लगा कि किचन में कोई आया है। अचानक आहट सुनने से उसकी नींद काफूर हो गयी। उसने महसूस किया कि आने वाले को उसकी कोई भनक नही है। पहले तो उसे लगा कि कोई चोर है पर जो आया था वो और कोई नहीं उसकी दीदी कविता थी। उसने फ्रिज से खीरा निकाला और बर्फ के टुकड़े और तेजी से बिना देखे अपने कमरे की ओर भागी। जय को लगा कि कुछ तो बात है। जय ने फौरन दरवाज़े पर जाकर देखा कविता सिर्फ ब्लैक पैंटी और हॉफ टॉप पिंक जो कि उसकी नाभि के ऊपर तक ही आ रही थी। कविता अपने कमरे तक पहुँच कर दाएं बाये देखा और कमरे में घुस गई। उसने सोचा कि उसे किसी ने नहीं देखा। जय ने सोचा कि आखिर इस हालत में कविता खीरा और बर्फ लेने क्यों आयी थी। ये जानने के लिए उसके पास एक ही रास्ता था। कविता का कमरा और जय का कमरा साथ मे ही थे और उन दोनों की खिड़की भी एक तरफ ही गली में खुलती थी। जय अपने कमरे की ओर भागा और अपनी खिड़की से कूदकर छज्जी पर खड़ा हुआ और सतर्क होकर कविता के कमरे की खिड़की तक पहुंच गया। खिड़की बंद नहीं थी क्योंकि गर्मी का मौसम था और उधर ही कूलर भी लगा था। जय ने अंदर झांक के देख तो नाईट बल्ब जल रही थी। कुछ समझ में नही आ रहा था। पर कुछ पल बाद उसकी आंखें अभयस्त हो गयी तो सब दिखाई देने लगा।अंदर कविता बिस्तर पर नंगी ही पड़ी हुई थी। और अपने मोबाइल पर ब्लू फिल्म देख रही थी। और वो खीरा जो वो लेके आयी थी उसे अपनी बुर में घुसा कर मूठ मार रही थी। उसने पहले 2 बर्फ के टुकड़े अपनी बुर में घुसा लिया और फिर खीरा घुसाया था। कविता ब्लू फिल्म देखते हुए मूठ मार रही थी। उसकी मुंह से आनंद की किलकारी फुट रही थी। और कुछ कुछ बड़बड़ा भी रही थी। उफ्फ्फ...... आआहह......... हहहम्ममम्म....... ईश श श श...... ये बुर हमको बहुत परेशान करती है..... पर मज़ा भी यही देती है ऊफ़्फ़फ़फ़। हाय ......
कविता अपने होंठों को दांतों में दबाके बुर के ऊपरी हिस्से को मसल भी रही थी। कविता ने मुंह से थूक निकाला और अपने बुर पर मल दी। और ब्लू फिल्म देखने लगी। ब्लू फिल्म में शायद हीरोइन अपनी गाँड़ मरवा रही थी। कविता ने ये देख तो उसने बर्फ का एक टुकड़ा अपनी सिकुड़ी हुई गाँड़ के छेद में घुसानी चाही। उसने थूक हाथ पर निकाला और गाँड़ के छेद पर मल ली। और बर्फ के टुकड़े को गाँड़ में घुसाने लगी। उसकी गाँड़ की छेद थूक की वजह से काफी गीली हो चुकी थी । लेकिन फिर भी बर्फ का टुकड़ा गाँड़ में घुसाने में उसे काफी मशक्कत करनी पड़ी। लेकिन घुसाके ही मानी। फिर बड़बड़ाई की पता नही ये हीरोइन कैसे गाँड़ में इतना बड़ा ले लेती हैं। लेकिन मज़ा बहुत आ रहा है और वो लेने में और भी मज़ा आएगा.... आआहह,,... ऊईई....
उधर बाहर से सारा नज़ारा जय देखकर पागल हो रहा था। अपनी सगी बहन को नंगा बिस्तर पर देख उसका लौड़ा फड़क कर खड़ा हो गया। वो वहीं खड़ा होकर कविता के निजी पलों को देखकर लौड़ा घिस रहा था। उसने मन में सोचा वाह मेरी दीदी तो मेरी ही जैसी कामुक निकली। क्या माल है कविता, बिल्कुल मस्त जवानी है। मेरी बहन हुई तो क्या है तो एक जवान लड़की, आखिर किसी ना किसी को तो जवानी की सौगात देगी ही, क्यों ना वो मैं ही बनू? तभी उसकी नज़र कविता पर पड़ी जो अचानक से मुड़ी तो उसकी नज़र भी जय पर पड़ी।
Superb update
 

Blackserpant

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खामोशी में भी एक धुन होती है। वो धुन बिना कोई शोर के बहुत कुछ कह जाती है। अब कुछ लोग सोचेंगे कि खामोशी में कौन सी धुन होती है और वो क्या कह जाती है?? इस सवाल का जवाब बस वो दे सकता है जिसने उस खामोशी के पल को जिया है।सवेरे का अस्तित्व सिर्फ रात से है। अगर रात ही ना हो तो सवेरे की अहमियत खत्म हो जाती है। अगर हम विज्ञान को हटा दे तो ये पूछना की सवेरा क्यों होता है या रात ही क्यों नही रहती, ये सवाल बेकार हैं या इसके उलट। ठीक वैसे ही जीवन में कुछ पल ऐसे आते हैं जिसे बस जी लेना जरूरी होता है उनका मतलब बस होने से है, उसमे गलत या सही की कोई गुंजाइश नहीं होती।
शायद वही पल अभी कविता और जय के जीवन मे आया था। 21 वर्षीय जय इस वक़्त अपनी 26 वर्षीय दीदी के साथ पूरा नंगा खड़ा था। कविता शायद पहली बार किसी मर्द के सामने नंगी बैठी थी। जय ने कविता के हुश्न को अब तक कपड़ों में ढके हुए देखा था पर इस वक़्त कविता बिल्कुल अपने जन्म के समय के आवरण में थी अर्थात निर्वस्त्र। जय ने कविता को बालों से कसकर पकड़ रखा था। उसने कविता के चेहरे को देखा कविता की आंखे बंद थी। उसकी पलकें घनी थी और आंखों में काजल लगा हुआ था। उसके भौएँ बनी हुई थी, गाल भरे हुए थे एक दम गोरे। होंठ गुलाबी थी जो बिना लिपस्टिक के भी मदमस्त लग रहे थे। उसके होंठ कांप रहे थे। और बड़ी ही धीरे से वो अपने मुंह मे इकट्ठा हुए थूक को निगल रही थी। उसकी सुराहीदार गर्दन की चाल थूक गटकने की वजह से मस्त लग रही थी। उसका भाई जय अपनी बहन के इस रूप को देखकर पागल हो रहा था। वो भी बड़ी आराम से गले से थूक घोंट रहा था ताकि आवाज़ ना हो जाये।
जय ने झुककर कविता के होंठों के करीब अपने होंठ लाये और उसके होंठो से अपने होंठ चिपका दिए। जैसे चिंगारियाँ फूटी दोनों के होंठ मिलने से । जय ने कविता के होंठों को पूरा अपने मुंह में लिया हुआ था। कविता के होंठ हल्के मोटे थे , जिसे जय चूस रहा था। उसके होंठों का सारा रस लगातार पी रहा था। फिर कविता के मुंह में उसने अपने जीभ को घुसा दिया। कविता ने कोई प्रतिरोध नही किया, अपितु उसके जीभ को चूसने लगी। दोनों भाई बहन बिल्कुल किसी प्रेमी युगल की तरह काम मे लिप्त होने लगे थे।
Super duper hit
 

Incestlala

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खामोशी में भी एक धुन होती है। वो धुन बिना कोई शोर के बहुत कुछ कह जाती है। अब कुछ लोग सोचेंगे कि खामोशी में कौन सी धुन होती है और वो क्या कह जाती है?? इस सवाल का जवाब बस वो दे सकता है जिसने उस खामोशी के पल को जिया है।सवेरे का अस्तित्व सिर्फ रात से है। अगर रात ही ना हो तो सवेरे की अहमियत खत्म हो जाती है। अगर हम विज्ञान को हटा दे तो ये पूछना की सवेरा क्यों होता है या रात ही क्यों नही रहती, ये सवाल बेकार हैं या इसके उलट। ठीक वैसे ही जीवन में कुछ पल ऐसे आते हैं जिसे बस जी लेना जरूरी होता है उनका मतलब बस होने से है, उसमे गलत या सही की कोई गुंजाइश नहीं होती।
शायद वही पल अभी कविता और जय के जीवन मे आया था। 21 वर्षीय जय इस वक़्त अपनी 26 वर्षीय दीदी के साथ पूरा नंगा खड़ा था। कविता शायद पहली बार किसी मर्द के सामने नंगी बैठी थी। जय ने कविता के हुश्न को अब तक कपड़ों में ढके हुए देखा था पर इस वक़्त कविता बिल्कुल अपने जन्म के समय के आवरण में थी अर्थात निर्वस्त्र। जय ने कविता को बालों से कसकर पकड़ रखा था। उसने कविता के चेहरे को देखा कविता की आंखे बंद थी। उसकी पलकें घनी थी और आंखों में काजल लगा हुआ था। उसके भौएँ बनी हुई थी, गाल भरे हुए थे एक दम गोरे। होंठ गुलाबी थी जो बिना लिपस्टिक के भी मदमस्त लग रहे थे। उसके होंठ कांप रहे थे। और बड़ी ही धीरे से वो अपने मुंह मे इकट्ठा हुए थूक को निगल रही थी। उसकी सुराहीदार गर्दन की चाल थूक गटकने की वजह से मस्त लग रही थी। उसका भाई जय अपनी बहन के इस रूप को देखकर पागल हो रहा था। वो भी बड़ी आराम से गले से थूक घोंट रहा था ताकि आवाज़ ना हो जाये।
जय ने झुककर कविता के होंठों के करीब अपने होंठ लाये और उसके होंठो से अपने होंठ चिपका दिए। जैसे चिंगारियाँ फूटी दोनों के होंठ मिलने से । जय ने कविता के होंठों को पूरा अपने मुंह में लिया हुआ था। कविता के होंठ हल्के मोटे थे , जिसे जय चूस रहा था। उसके होंठों का सारा रस लगातार पी रहा था। फिर कविता के मुंह में उसने अपने जीभ को घुसा दिया। कविता ने कोई प्रतिरोध नही किया, अपितु उसके जीभ को चूसने लगी। दोनों भाई बहन बिल्कुल किसी प्रेमी युगल की तरह काम मे लिप्त होने लगे थे।
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Incestlala

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रात के करीब तीन बज रहे थे। ट्रेन दिल्ली से 1 कि मी दूर खड़ी थी, क्योंकि आगे सिग्नल नहीं मिल रही थी और गाड़ी समय से आधे घंटे पहले पहुंच गई थी। अभी ट्रेन में काफी कम लोग थे। दो सिपाही कंपार्टमेंट से गुजरते हुए निकल गए। ममता और जय दोनों का लोअर बर्थ था। ममता की आंखों से नींद गायब थी। खिड़की से छनकर दूर कहीं से आती रोशनी में जय को देख रही थी। उस कम्पार्टमेंट में इस वक़्त और कोई नहीं था। ममता को ना जाने क्या सूझा वो उठी और जय के करीब जाकर उसको चूम ली। उसके माथे को सहलाई। और वापिस अपने सीट पर जाने को मुड़ी, तभी जय ने उसके हाथ को पकड़ लिया। उसने ममता को खींच कर अपने पास लेटने का इशारा किया। ममता उसके साथ लेट गयी। जय ममता के चेहरे को गौर से देखा, उसे ममता की आंखों में एक दर्द महसूस किया। उसने इशारे से ही सर हिलाया, जैसे पूछ रहा हो," क्या हुआ? ममता ने उसके चेहरे को सहलाते हुए कहा," जय, अब हमलोग एक दूसरे से दूर कैसे रह पाएंगे। तुम्हारे साथ अब हमको एक बीवी बनके रहना है। अपनी मांग में सिंदूर लगाना है, तुम्हारे नाम का। पर कविता के होते हुए ये कैसे होगा? इधर हम तड़पेंगे और उधर तुम।
जय- हहम्मम ये तो सच बात है। पर तुम फिकर मत करो, कोई ना कोई जुगाड़ लग जायेगा।
ममता- कैसे होगा? एक सुहागन होकर हम विधवा बनके कैसे रहेंगे?
जय- हमको कुछ दिन तो ऐसे गुजारने होंगे ना माँ? कविता दीदी को समझाने में थोड़ा समय तो लगेगा ही।
ममता उसकी हथेली पर अपने होंठ रगड़ते हुए बोली," यही सोचकर तो हमारी जान निकल रही है। तुम कब हमको पूरी तरह अपनाओगे।
जय- तुमको अपना तो चुके ही हैं जान। लेकिन ये दुनिया अभी हमारे प्यार को समझेगी नहीं, इसलिए थोड़ा इंतज़ार करना होगा। हम बहुत जल्दी एक नया घर भी लेंगे। जहां, हमलोग अच्छे से रहेंगे, और वहां सब तुमको हमारी माँ नहीं, बल्कि पत्नी ही समझेंगे।
ममता- कब वो शुभ दिन आएगा, जान।
जय उसके गले को चूमते हुए," बहुत जल्द हमारी रानी। उस वक़्त और मज़ा आएगा।
ममता जय के सर को अपने चुच्चियों पर चिपकाए हुए थी। तभी गाड़ी धीरे से चलने लगी। ममता ने बोला," उठ जाओ जय। अब स्टेशन आ जायेगा।
पर जय ने ममता को और कसके पकड़ लिया। ममता मुस्कुरा उठी।
तभी गाड़ी फिर रुक गयी। दोनों ने खिड़की से बाहर झाँका फिर एक दूसरे को देखा, और एक दूसरे के होंठ चूमने लगे। कुछ देर चुम्बन करने के बाद, जय ने ममता को खड़े होने को कहा। ममता उठ खड़ी हुई, जय ने उसे बाथरूम चलने को कहा। उनका कंपार्टमेंट टॉयलेट के पास ही था। ममता बाथरूम चली गयी, पर दरवाज़ा बंद नहीं किया। जय पीछे से आया और बाथरूम में घुस गया। जय ममता को और अंदर जाने का इशारा किया और कुंडी लगा दी। यहां कुछ ज़्यादा सोचने समझने की बात नहीं थी। ममता ने अपनी साड़ी उठा ली और जय ने उसकी पैंटी घुटनो तक उताड़ दी। जय ने लण्ड निकालकर सीधा ममता की गीली बुर में लण्ड घुसा दिया। दोनों बिना शोर किये आहिस्ते आहिस्ते चुदाई कर रहे थे। ममता बड़ी मुश्किल से अपनी आवाज़ रोके हुए थी। ममता के दोनों हाथ दीवार पर थे, और उसके सामने कोई भद्दी अश्लील सी चित्र बनी थी। दोनों ने बिना शोर किये जाने 10 मिनट में काम किया। और फिर दोनों बारी बारी अपनी जगह वापिस आ गए। जय ने ममता से कहा," चोरी चोरी चुदाई का अपना ही मज़ा है, जान।" ममता को भी ये बड़ा अच्छा लगा।
फिर सुबह हो गयी और दोनों पवित्र मा बेटे के बंधन में वापिस बांध गए। सुबह करीब 5 बजे वो अपने घर पहुँचे। करीब 15 मिनट घंटी बजाई तो कविता ने आंख मलते हुए दरवाजा खोला। सामने अपने भाई और माँ को देखकर वो मुस्कुराई। और ममता के पैर छुए।
Superb
 

Incestlala

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गोवा में जय ममता और कविता हनीमून का असली मज़ा देता है।दोनों को होटल के कमरे में तो पेलता ही है साथ मे समुंदर की लहरों में भी एकांत में ले जाकर दोनों की जबरदस्त चुदाई करता है।दिन के समय खुले आकाश के नीचे अपनी सगी माँ और बहन को अपनी बीबी बनाकर शायद ही किसी ने चोदा होगा।

इधर माया सत्य से होटल में अपनी गाँड़ मरवा रही है।वह कुतिया बनी हुई है और सत्य उसकी गाँड़ मार रहा है।कुछ देर बाद माया झड़ जाती है और सत्य भी उसके गाँड़ में झड़ जाता है।

तभी फोन बजता है और कंचन की घबराई हुई आवाज़ आती है। माँ डैड का एक्सीडेंट हो गया है आप जितना जल्दी हो सके हॉस्पिटल आ जाओ। सत्य माया को लेकर गोवा से माया के घर चल देते है लेकिन भगवान को कुछ और ही मंजूर था।हॉस्पिटल में शशिकान्त की मौत हो जाती है। माया और सत्य जब पहुँचते है तो कंचन का रो रोकर बुरा हाल था।सभी दुखी मन से शशिकांत का अंतिम संस्कार करते है।

कुछ दिन बाद सबकुछ नार्मल हो जाता है और माया और सत्य कमरे में सेक्स कर रहे है ।कंचन अपनी सहेली के घर गई हुई है लेकिन सहेली के नही होने पर वह लौट आती है और अपने माँ और मामा को सेक्स करते देखने लगती है और उनकी बातें सुनने लगती है।

माया-अब तो मुझे कंचन की बड़ी चिंता है उसकी शादी की और तेरी शादी की भी.............

तभी माया को कुछ याद आता है और बोलती है कि सत्य क्या तू मेरी एक बात मानेगा।
सत्य-बोलो दीदी। मैं तुम्हारे लिए अपनी जान भी दे सकता हूँ।
माया-तू कंचन से शादी कर ले। फिर हमलोग यहाँ से सबकुछ बेच कर जय ममता और कविता की तरह एक साथ रहेंगे।
सत्य-(कुछ सोचकर) मैं तैयार हुँ दीदी लेकिन एक शर्त पर की आपको भी मुझसे शादी करनी होगी और कंचन को तैयार करने की जिम्मेदारी भी आपकी होगी।

माया-ठीक है।मैं ममता से बात करती हुँ।ममता कविता और जय मिलकर ये काम कर सकते है क्योंकि कविता और कंचन काफी क्लोज है और जब कंचन को कविता जय और ममता के बारे में पता चलेगा तो वह जरूर राज़ी हो जाएगी।

कंचन सभी राज़ जान जाती है कि कैसे जय अपनी माँ और बहन से शादी करके मज़े कर रहा है।उसकी भी चूत गरम हो जाती है।अपने मामा का लंड उसे भी पसंद आ जाता है।

माया ममता से बात करती है और फिर तीनों ममता के घर दिल्ली के लिए रवाना हो जाते है।

सबके समझाने पर कंचन अपने मामा सत्य के साथ शादी करने को राजी हो जाती है।

फिर सत्य कंचन और माया से शादी कर लेता है और जय कविता और ममता के घर के पास एक घर लेकर रहने लगते है।

ममता का पेट धीरे धीरे फूलने लगता है।उसके पेट मे जय का बच्चा पल रहा है।कुछ दिन बाद जय सिर्फ अपनी एक बीबी कविता को ही रंडियों की तरह पेलता है ममता सिर्फ कभी कभार उसका लण्ड चूसती है।

नौ महीने बाद जय को अपनी माँ ममता से एक लड़का होता है जिसे सभी बहुत प्यार करते है।इधर कंचन भी माँ बननेवाली है।सत्य भी कंचन और माया को एक ही विस्तर पर मज़े से चोदता है।



The end
Superb story mast
 

v1nay

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जय ने कविता को गोद में उठाये ही टी वी से लैपटॉप व हार्ड ड्राइव को डिसकनेक्ट कर दिया और कविता ने एक हाथ से लैपटॉप उठा लिया और फिर दोनों कविता के रूम की ओर जाने लगे। इस दौरान जय का तना हुआ लण्ड कविता की बुर को छू रहा था। कविता को जब भी अपनी बुर पर जय का लण्ड छूता हुआ महसूस होता वो अपने हाथ के नाखून उसके पीठ में गड़ा देती और अपनी चुच्चियों को उसके सीने में। कविता तब तक जय को गीली चुम्मियां भी लगातार देती रही। जय सब बर्दाश्त करते हुए किसी तरह कविता के कमरे में पहुंचा। कविता को उसने उसके बिस्तर पर पटक दिया। कविता की आंखों और चेहरे पर चुदाई की प्यास हर पल गहरी हो रही थी। पर जय उसे अभी और तड़पाना चाहता था। वो चाहता था कि कविता पूरी चुदासी हो जाये। उसने कविता के सामने लैपटॉप में ब्लू फिल्म चला दी। कविता फिरसे जय के गोद में बैठ गयी, पर इस बार वो जय की तरफ पीठ की हुई थी। कविता थोड़ा हिल डुलकर लण्ड को अपनी गाँड़ की दरार में बैठा ली।



फ़िल्म में हीरोइन अपनी गाँड़ में डिल्डो घुसा रही होती है। वो सिसयाते हुए उसको अंदर बाहर कर रही थी। थोड़ी देर बाद उसने डिल्डो निकाला, तो कविता ने देखा कि उसकी गाँड़ बहुत खुल गयी थी। गाँड़ की छेद की चौड़ाई भी बढ़ गयी थी। उस लड़की ने फिर अपनी हथेली की चार उंगलिया उसमे घुसा रही थी। उसने उस डिल्डो को चाट लिया, जिसमे उसके गाँड़ की रस लगी पड़ी थी। फिर उंगलिया भी बाहर निकालके चूसी। 3 से 4 काले अफ्रीकी मूल के लोग आए। वो गोरी लड़की उनके बड़े बड़े लण्ड को चुसाने लगी, बारी बारी से। उन सबने उस लड़की को अलग अलग तरह से चोदा।वो एक साथ 3 लण्ड ले रही थी एक बुर में, एक गाँड़ में, एक मुंह मे और एक का लण्ड चुसाने को उसके मुंह पर लहराता रहता था।

कविता अत्यधिक कामुक हो उठी थी ऐसी चुदाई देखकर। उसकी सांस तेज़ चल रही थी सीने में सांस तेज़ होने से कड़क चुच्चियाँ हिल रही थी। अपनी गाँड़ से जय के लंड को रगड़ रही थी। उसकी कमर लगातार हिल रही थी। उसने अपने भाई के कंधे पर सर रखके कहा- भाई, अब बर्दाश्त नहीं हो रहा। डालो ना लण्ड को। जय ने कहा- इतनी आसानी से नहीं देंगे। चल नीचे बैठ जाओ, घुटनो पे। कविता एक आज्ञाकारी विद्यार्थी जैसे उसकी टांगों के बीच फर्श पर घुटनो के बल बैठ गयी। जय ने बोला," खुदको जितना निर्लज बना सकती हो, बनाओ। हमको रिझाओ अपनी बुर चोदने के लिए।"
कविता ने अपनी चुच्चियाँ पकड़के उसमे थूक दिया। और अपनी चुच्चियों पर मलने लगी। जय की आंखों में देखते हुए, एक हाथ से अपनी बुर में उंगली घुसाई, उसकी उंगलियां उसके बुर के रस से भीग चुकी थी। कविता ने वो उंगलियां जय को सुंघाई, और खुद अपनी जीभ निकालके कामुकता से चाटने लगी। एक एक करके उसने उन तीनों उंगलियों को चूसा जो उसके बुर के रस से भीग चुकी थी। उसने जय के लण्ड को अपनी चुच्चियों के बीच फंसा लिया और हाथों से दबाते हुए, चुच्चियाँ ऊपर नीचे करने लगी। जय को कविता अपनी बड़ी बड़ी आंखों से निहारे जा रही थी। जय ने फिर कविता की गर्दन पकड़के उसे करीब लाया। उसने कविता के चुच्चियों के बीच लण्ड फंसा था, उसपर थूक दिया, कविता और ज़ोर से रगड़ने लगी। जय को ये अजीब सी मस्ती लग रही थी। लण्ड रागड़वाने में, उसने कविता को उठने को कहा, और उसको बिस्तर पर कुतिया बनने को कहा। कविता उछलके कुतिया बन गयी।
उसकी बुर से बहुत रस चू रहा था। जय ने उसकी बुर को अपनी चार उंगलियों से दबाके सहलाया। ऐसे करते हुए कविता की गाँड़ के छेद को अंगूठे से छेड़ रहा था। कविता इस दोहरे स्पर्श से अभिभूत हो गयी। जय ने देखा कविता मस्त हो चली थी, वो अपने अंगूठे को उसकी गाँड़ में घुसाने लगा। कविता इस हमले के लिए तैयार नही थी। उसने उसके हाथ को रोकते हुए कहा, आआहहहहहहह..... दर्द हो रहा है। जय ने उसकी एक नया सुनी और उसके हाथ को धकेल दिया, " चुप कर, बर्फ के टुकड़े ले सकती है तो उंगली क्यों नही। क्या शानदार छेद है ये गाँड़ की। जय ने उसके चूतड़ों पर कसके चार पांच तमाचे धर दिए। कविता की गाँड़ लाल हो गयी। उसकी गाँड़ बहुत टाइट थी, अंगूठा घुसाते वक़्त जय को ये एहसास हुआ। जय उसकी गाँड़ मारने को आतुर था पर उसकी गाँड़ इसके लिए अभी तैयार नहीं थी। जय ने उसकी गाँड़ में अंगूठा घुसाए ही उसकी बुर में लण्ड रगड़ने लगा।
Ye story aage badhegi ya nhi.. Sex hi khatam nhi ho rha.. That's just too much kink and next to zero emotions.
 
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