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Shukriya bhaiSuperb update
Shukriya bhaiSuperb update
Shukriya bhaiZABARDAST UPDATE MIND-BLOWING
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bas thodi der mainWaiting Next
super duper hit update writer jiभाग १९
नरेश(मुस्कुरा कर)- मैं तो तुम्हारे पिताजी को भी जानता हु रमण...मैं तुमदोनो को शुरू से सारी बात बताता हु तब शायद तुम्हे पूरी बात समझ मैं आये और ये भी समझ मैं आये की इस वक़्त ये दुनिया कितने बड़े खतरे मैं जिसे हमें रोकना है......
नरेश- राघव, रमण तुम्हारे दादाजी महंत शिवदासजी मेरे और मेरे भाई के गुरु थे, हमारे माता पिता मेरे छोटे भाई के जन्म के के बाद एक दुर्घटना मैं मारे गए थे हम दोनों भाई काफी छोटे थे हमारे रिश्तेदारों का हमारे प्रति व्यवहार अच्छा नहीं था इसीलिए मैं एक दिन हिम्मत करके अपने रिश्तेदारों के पास से भाग तो निकला लेकिन अब आगे क्या करू मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था ऐसे मैं एक दिन भटकते हुए हमें गुरूजी ने देखा, तुम्हारे दादाजी एक नेक दिल इंसान थे और काफी विद्वान थे, राजनगर और बाकि आसपास के शहरों मैं उनका नाम चलता था, उन्होंने हम दोनों भाइयो को आसरा दिया, वो उस समय पुराने शिवमंदिर मैं रहते थे और हम दोनों भाई भी उन्ही के साथ रहते थे, मेरे छोटे भाई महेश की पढने मैं काफी रूचि थी और इसीके चलते गुरूजी ने अपनी पहचान से हम दोनों भाइयो का दाखिला स्कूल मैं करवाया था, हम अपनी पढाई के साथ साथ गुरूजी के अनुष्ठानो मैं हाथ भी बताया करते थे, गुरूजी के पास इंसान का दिमाग पढ़ सकने की अदभुत शक्ति थी और ये बात हम दोनों भाई जानते थे, धीरे धीरे समय बीता मैंने बस जरुरत जितनी पढाई की लेकिन मेरा छोटा भाई महेश उसके सपने काफी बड़े थे उसे अध्यात्म मैं विज्ञान और विज्ञान मैं अध्यात्म की झलक मिलती थी उसका कहना था की अगर विज्ञान को अध्यात्म का साथ मिल जाये तो इस दुनिया मैं ऐसे चमत्कार होंगे जो किसी ने सोचे नहीं होंगे, गुरूजी उसके मन की बात जानते थे उन्होंने उसे आगे बढ़ने से कभी नहीं रोका और महेश ने अपनी बुद्धि के बल पर काफी बडी जगह नौकरी पायी और विदेश चला गया उसके कुछ सालो बाद हमें तुम मिले राघव तुम्हे मिलने के बाद गुरूजी ने मुझसे कहा था की तुम ही वो लड़के बनोगे जो आने वाले समय मैं इस दुनिया के लिए कोई महान काम करोगे बस जरुरत होगी तो तुम्हे तुम्हारी शक्तियों से अवगत करने की, गुरूजी अपना पूरा ध्यान तुम पर लगाना चाहते थे राघव और इसीलिए उन्होंने मुझे अपने से दूर किया और मैं अपने भाई के पास आ गया और अपना छोटा सा काम शुरू करके शादी कर ली, जिंदगी हसी ख़ुशी कट रही थी,
मेरा भाई महेश बायो इंजीनियरिंग मैं एक महारत वाला वैज्ञानिक था जो उस समय किसी गुप्त आर्गेनाइजेशन के लिए काम करता था, वो आर्गेनाइजेशन पता नहीं कैसे महेश को इतने पैसे और संसाधन मुहैया कहा देती थी की जिससे उसके जीवन मैं रिसर्च मैं किसी प्रकार की बाधा न आये
राघव-किस प्रकार की रिसर्च?
नरेश-Artificial Metahumans यानि की कृत्रिम महामानवो पर रिसर्च, बात तब की है हम हम दोनों भाई अमेरिका मैं रहते थे मतलब मैं महेश और मेरी बीवी, महेश एक ऐसा शारीर या कहो मानव बनाना चाहता था जिसका शारीर हमारी तरह हो लेकिन हड्डियों मैं तरह तरह के मिश्रित धातुये यानि alloys का संगम को जौसे अभेद्द बना सके
रमण-यानि एक रोबोट जैसा?
नरेश-नहीं रोबोट नहीं वो तो केवल एक निर्जीव यन्त्र है, महेश कुछ ऐसा बनाना चाहता तह किसका शारीर हमारी तरह हो सरे अवयव हमारी तरह हो. जो इंसानों की तरह रोजमर्रा के काम करे लेकिन बहरी त्वचा इतनी सख्त हो की जिसपर बन्दुक की गोली भी असर न करे और आखिर मैं उसने एक ऐसा शारीर बनाने मैं कामयाबी भी हासिल कर ली थी जिसमे, दिल गुर्दे फेफड़े बाकि बस अंदरूनी अंग हमारी तरह थे लेकिन कंकाल का ढाचा बेहद मजबूत था, उसने त्वचा का composition भी वैसा ही रखा था ताकि उपरी शारीर अभेद्द और कठोर हो, एक कृत्रिम मस्तिष्क का निर्माण भी किया गया जो आम मानव मस्तिष्क जैसा हो लेकिन अब समस्या ये थी की बेजान शारीर मैं जान कैसे डाले, मेरे भाई ने कई प्रयोग किया उस शारीर मैं जान डालने के लेकिन सब विफल रहे क्युकी उसके पास वो उर्जा नहीं थी जो हर मनव शारीर को संचालित करती है......आत्मा, ऐसे समय मैं हमें हमारे गुरूजी का ध्यान आया, हम दोनों भाइयो ने गुरूजी को बचपन से देखा था जिससे हमें उनकी शक्ति का अंदाजा था, महेश ने गुरु जो पत्र लिखकर साडी समस्या बताई और गुरूजी ने भी मदद का आश्वासन दिया, तुम दोनों को याद होगा वो गुरूजी उनकी मृत्यु के १ साल पहले कुछ समय के लिए कही बाहर गए थे, उस समय वो हमारे पास आये थे, गुरूजी ने अपनी सिद्धियों की मदद से एक आत्मा को इस लुक मैं खिंच लिया, फिर वो आत्मा उस शारीर मैं चली तो गयी लेकिन कोइ भी आत्मा तब तक किसी शारीर मैं स्थिर नहीं होती जबतक वो उसका अपना शारीर न हो, उस उर्जा के तत्त्व को stabilize करने के लिए एक निश्चित मात्र मैं बिजली का प्रयोग किया गया, वो शारीर बिलकुल शांत था किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था की ये प्रोयोग सफल हुआ या नहीं लेकिन गुरूजी निश्चिन्त थे और वो भारत लौट आये थे उसके कुछ दिनों बाद मेरा भाई लैब मैं उस कृत्रिम शारीर पर कुछ टेस्ट कर रहा था तभी न जाने कैसे कालसैनिको को इस प्रयोग का पता चला और उनके मन मैं उस कृत्रिम मानव को पाने की लालसा जाग उठी और उन्होंने लैब पर हमला कर दिया उस हमले मैं बाकि वैज्ञानिक तो बचकर भाग गए लकिन मेरा भाई पकड़ा गया और उसे उनलोगों ने लोहे की जंजीर से बांधकर जिन्दा जला दिया लेकिन तब तब उस कृत्रिम मानव को होश आ चूका था वो वो अपने निर्माता को पहचानने लगा था और जो उसे पहला अहसास हुआ वो क्रोध था उसने इतना भीषण हत्याकांड अपने आँखों से देखा था, कालसेना तो उस कृत्रिम मानव को मानवता के खिलाब हथियार बनाना चाहती थी लेकिन तब तक वो कृत्रिम मनव जाग गया और उसने उन कालसैनिको को वो भयानक मौत दी जिसके वो हक़दार थे, महेश की गुप्त आर्गेनाइजेशन के लोग बाद मैं मुझसे मिले और मुझे अपने भाई की अमानत सँभालने को कहा और मैंने उसे घर ले आया, मेरी बीवी ने उसका नाम रूद्र रखा, हमने रूद्र को अपना बच्चा मन क्युकी हमारी कोई संतान नहीं थी, मैं अपने भाई की मौत को भुला नहीं था मैंने अपने स्तर पर खोज की लेकिन शायद कालसेना को इसकी भनक लग चुकी थी और जब मैं और रूद्र दोनों बाहार थे तब उन्होंने मेरी बीवी की कुर्बानी दी, हम जब घर पहुचे तब मेरी बीवी की लाश पर एक नोट लिखा था की ‘हमें ढूंढने की कोशिश मैं इसी तरह मारे जाओगे’ पर अब मेरे पास खोने को कुछ नहीं था, अब मैंने कालसेना का खत्म करने की ठानी थी और मेरे साथ रूद्र भी था इसी सब के बीच मुझे गुरूजी की मौत की खबर मिली और साथ ही गुरुजी का एक ख़त जो उन्होंने मेरे नाम छोड़ा था जिसे तुम्हारे पिता ने मुझे बादमे भेजा जिसमे राघव की खूबियों और शक्तियों का जिक्र था, मैंने रूद्र के साथ राजनगर लौट आया और ऐसे लोगो को खोजा वो कालसेना से पीड़ित हो ऐसे मैं हमें संजय मिला जो एक राज परिवार से है और अब हमारे हथियारों के खर्च को देखा है और अरुण जिससे तुम कुछ ही समय मैं मिलोगे वो एक एक्स कमांडो है जिसे हथियारों की काफी समझ है,..हमने जब राघव पर नजर रखी तो पाया की राघव को अभी अपनी शक्तियों का अंजादा नहीं है और अब यही सही समय है उसे सब बताने का मैं और रूद्र तुम लोगो से मिलने वाले थे लेकिन आज तुमसे अचानक मिलना होगा सोचा नहीं था,
रमण- आपकी कहानी और आपके भाई के मौत का काफी दुःख हुआ और साथ ही मैं आपके लड़ने के जज्बे को सलाम करता हु, अब समझ आ रहा है की रूद्र पर काला जादू असर क्यों नहीं करता क्युकी उसने हमारी तरह जन्म नहीं लिया बल्कि उसे लैब मैं बनाया गया है...लेकिन आप बार बार किसी गुप्त संस्था का जिक्र कर रहे थे जिसमे आपका भाई काम करता था, क्या आप नहीं जानते उस संस्था के बारे मैं
नरेश-उस संस्था के कुछ लोग हमसे जुड़े हुए है वो लोग भी कल आने वाले है तब ये सवाल तुम उन्ही से पूछना
ये लोग बात कर ह रहे थे की दरवाजे से अरुण उन्हें अंदर आता दिखाई दिया.......
To Be Continue.........
fantastic update bhai maza aa gya ab dekhte hai ki aage kya hota haiभाग १९
नरेश(मुस्कुरा कर)- मैं तो तुम्हारे पिताजी को भी जानता हु रमण...मैं तुमदोनो को शुरू से सारी बात बताता हु तब शायद तुम्हे पूरी बात समझ मैं आये और ये भी समझ मैं आये की इस वक़्त ये दुनिया कितने बड़े खतरे मैं जिसे हमें रोकना है......
नरेश- राघव, रमण तुम्हारे दादाजी महंत शिवदासजी मेरे और मेरे भाई के गुरु थे, हमारे माता पिता मेरे छोटे भाई के जन्म के के बाद एक दुर्घटना मैं मारे गए थे हम दोनों भाई काफी छोटे थे हमारे रिश्तेदारों का हमारे प्रति व्यवहार अच्छा नहीं था इसीलिए मैं एक दिन हिम्मत करके अपने रिश्तेदारों के पास से भाग तो निकला लेकिन अब आगे क्या करू मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था ऐसे मैं एक दिन भटकते हुए हमें गुरूजी ने देखा, तुम्हारे दादाजी एक नेक दिल इंसान थे और काफी विद्वान थे, राजनगर और बाकि आसपास के शहरों मैं उनका नाम चलता था, उन्होंने हम दोनों भाइयो को आसरा दिया, वो उस समय पुराने शिवमंदिर मैं रहते थे और हम दोनों भाई भी उन्ही के साथ रहते थे, मेरे छोटे भाई महेश की पढने मैं काफी रूचि थी और इसीके चलते गुरूजी ने अपनी पहचान से हम दोनों भाइयो का दाखिला स्कूल मैं करवाया था, हम अपनी पढाई के साथ साथ गुरूजी के अनुष्ठानो मैं हाथ भी बताया करते थे, गुरूजी के पास इंसान का दिमाग पढ़ सकने की अदभुत शक्ति थी और ये बात हम दोनों भाई जानते थे, धीरे धीरे समय बीता मैंने बस जरुरत जितनी पढाई की लेकिन मेरा छोटा भाई महेश उसके सपने काफी बड़े थे उसे अध्यात्म मैं विज्ञान और विज्ञान मैं अध्यात्म की झलक मिलती थी उसका कहना था की अगर विज्ञान को अध्यात्म का साथ मिल जाये तो इस दुनिया मैं ऐसे चमत्कार होंगे जो किसी ने सोचे नहीं होंगे, गुरूजी उसके मन की बात जानते थे उन्होंने उसे आगे बढ़ने से कभी नहीं रोका और महेश ने अपनी बुद्धि के बल पर काफी बडी जगह नौकरी पायी और विदेश चला गया उसके कुछ सालो बाद हमें तुम मिले राघव तुम्हे मिलने के बाद गुरूजी ने मुझसे कहा था की तुम ही वो लड़के बनोगे जो आने वाले समय मैं इस दुनिया के लिए कोई महान काम करोगे बस जरुरत होगी तो तुम्हे तुम्हारी शक्तियों से अवगत करने की, गुरूजी अपना पूरा ध्यान तुम पर लगाना चाहते थे राघव और इसीलिए उन्होंने मुझे अपने से दूर किया और मैं अपने भाई के पास आ गया और अपना छोटा सा काम शुरू करके शादी कर ली, जिंदगी हसी ख़ुशी कट रही थी,
मेरा भाई महेश बायो इंजीनियरिंग मैं एक महारत वाला वैज्ञानिक था जो उस समय किसी गुप्त आर्गेनाइजेशन के लिए काम करता था, वो आर्गेनाइजेशन पता नहीं कैसे महेश को इतने पैसे और संसाधन मुहैया कहा देती थी की जिससे उसके जीवन मैं रिसर्च मैं किसी प्रकार की बाधा न आये
राघव-किस प्रकार की रिसर्च?
नरेश-Artificial Metahumans यानि की कृत्रिम महामानवो पर रिसर्च, बात तब की है हम हम दोनों भाई अमेरिका मैं रहते थे मतलब मैं महेश और मेरी बीवी, महेश एक ऐसा शारीर या कहो मानव बनाना चाहता था जिसका शारीर हमारी तरह हो लेकिन हड्डियों मैं तरह तरह के मिश्रित धातुये यानि alloys का संगम को जौसे अभेद्द बना सके
रमण-यानि एक रोबोट जैसा?
नरेश-नहीं रोबोट नहीं वो तो केवल एक निर्जीव यन्त्र है, महेश कुछ ऐसा बनाना चाहता तह किसका शारीर हमारी तरह हो सरे अवयव हमारी तरह हो. जो इंसानों की तरह रोजमर्रा के काम करे लेकिन बहरी त्वचा इतनी सख्त हो की जिसपर बन्दुक की गोली भी असर न करे और आखिर मैं उसने एक ऐसा शारीर बनाने मैं कामयाबी भी हासिल कर ली थी जिसमे, दिल गुर्दे फेफड़े बाकि बस अंदरूनी अंग हमारी तरह थे लेकिन कंकाल का ढाचा बेहद मजबूत था, उसने त्वचा का composition भी वैसा ही रखा था ताकि उपरी शारीर अभेद्द और कठोर हो, एक कृत्रिम मस्तिष्क का निर्माण भी किया गया जो आम मानव मस्तिष्क जैसा हो लेकिन अब समस्या ये थी की बेजान शारीर मैं जान कैसे डाले, मेरे भाई ने कई प्रयोग किया उस शारीर मैं जान डालने के लेकिन सब विफल रहे क्युकी उसके पास वो उर्जा नहीं थी जो हर मनव शारीर को संचालित करती है......आत्मा, ऐसे समय मैं हमें हमारे गुरूजी का ध्यान आया, हम दोनों भाइयो ने गुरूजी को बचपन से देखा था जिससे हमें उनकी शक्ति का अंदाजा था, महेश ने गुरु जो पत्र लिखकर साडी समस्या बताई और गुरूजी ने भी मदद का आश्वासन दिया, तुम दोनों को याद होगा वो गुरूजी उनकी मृत्यु के १ साल पहले कुछ समय के लिए कही बाहर गए थे, उस समय वो हमारे पास आये थे, गुरूजी ने अपनी सिद्धियों की मदद से एक आत्मा को इस लुक मैं खिंच लिया, फिर वो आत्मा उस शारीर मैं चली तो गयी लेकिन कोइ भी आत्मा तब तक किसी शारीर मैं स्थिर नहीं होती जबतक वो उसका अपना शारीर न हो, उस उर्जा के तत्त्व को stabilize करने के लिए एक निश्चित मात्र मैं बिजली का प्रयोग किया गया, वो शारीर बिलकुल शांत था किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था की ये प्रोयोग सफल हुआ या नहीं लेकिन गुरूजी निश्चिन्त थे और वो भारत लौट आये थे उसके कुछ दिनों बाद मेरा भाई लैब मैं उस कृत्रिम शारीर पर कुछ टेस्ट कर रहा था तभी न जाने कैसे कालसैनिको को इस प्रयोग का पता चला और उनके मन मैं उस कृत्रिम मानव को पाने की लालसा जाग उठी और उन्होंने लैब पर हमला कर दिया उस हमले मैं बाकि वैज्ञानिक तो बचकर भाग गए लकिन मेरा भाई पकड़ा गया और उसे उनलोगों ने लोहे की जंजीर से बांधकर जिन्दा जला दिया लेकिन तब तब उस कृत्रिम मानव को होश आ चूका था वो वो अपने निर्माता को पहचानने लगा था और जो उसे पहला अहसास हुआ वो क्रोध था उसने इतना भीषण हत्याकांड अपने आँखों से देखा था, कालसेना तो उस कृत्रिम मानव को मानवता के खिलाब हथियार बनाना चाहती थी लेकिन तब तक वो कृत्रिम मनव जाग गया और उसने उन कालसैनिको को वो भयानक मौत दी जिसके वो हक़दार थे, महेश की गुप्त आर्गेनाइजेशन के लोग बाद मैं मुझसे मिले और मुझे अपने भाई की अमानत सँभालने को कहा और मैंने उसे घर ले आया, मेरी बीवी ने उसका नाम रूद्र रखा, हमने रूद्र को अपना बच्चा मन क्युकी हमारी कोई संतान नहीं थी, मैं अपने भाई की मौत को भुला नहीं था मैंने अपने स्तर पर खोज की लेकिन शायद कालसेना को इसकी भनक लग चुकी थी और जब मैं और रूद्र दोनों बाहार थे तब उन्होंने मेरी बीवी की कुर्बानी दी, हम जब घर पहुचे तब मेरी बीवी की लाश पर एक नोट लिखा था की ‘हमें ढूंढने की कोशिश मैं इसी तरह मारे जाओगे’ पर अब मेरे पास खोने को कुछ नहीं था, अब मैंने कालसेना का खत्म करने की ठानी थी और मेरे साथ रूद्र भी था इसी सब के बीच मुझे गुरूजी की मौत की खबर मिली और साथ ही गुरुजी का एक ख़त जो उन्होंने मेरे नाम छोड़ा था जिसे तुम्हारे पिता ने मुझे बादमे भेजा जिसमे राघव की खूबियों और शक्तियों का जिक्र था, मैंने रूद्र के साथ राजनगर लौट आया और ऐसे लोगो को खोजा वो कालसेना से पीड़ित हो ऐसे मैं हमें संजय मिला जो एक राज परिवार से है और अब हमारे हथियारों के खर्च को देखा है और अरुण जिससे तुम कुछ ही समय मैं मिलोगे वो एक एक्स कमांडो है जिसे हथियारों की काफी समझ है,..हमने जब राघव पर नजर रखी तो पाया की राघव को अभी अपनी शक्तियों का अंजादा नहीं है और अब यही सही समय है उसे सब बताने का मैं और रूद्र तुम लोगो से मिलने वाले थे लेकिन आज तुमसे अचानक मिलना होगा सोचा नहीं था,
रमण- आपकी कहानी और आपके भाई के मौत का काफी दुःख हुआ और साथ ही मैं आपके लड़ने के जज्बे को सलाम करता हु, अब समझ आ रहा है की रूद्र पर काला जादू असर क्यों नहीं करता क्युकी उसने हमारी तरह जन्म नहीं लिया बल्कि उसे लैब मैं बनाया गया है...लेकिन आप बार बार किसी गुप्त संस्था का जिक्र कर रहे थे जिसमे आपका भाई काम करता था, क्या आप नहीं जानते उस संस्था के बारे मैं
नरेश-उस संस्था के कुछ लोग हमसे जुड़े हुए है वो लोग भी कल आने वाले है तब ये सवाल तुम उन्ही से पूछना
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