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Fantasy कालदूत(पूर्ण)

Adirshi

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I think yeh raman ke family se hi is story ka hero belong karta hai..
Woh Kale kapde pahne wala kaldut aur virju ke gang ka hi koi chamcha hoga..
Khair let's see what happens next
Brilliant update with awesome writing skills :applause: :applause:
thank you very much
 

Adirshi

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भाग ५

घर के सारे काम ख़त्म करने के बाद श्रुति ने फिर से सुमित्रा देवी से अपना सवाल दोहराया और अब सुमित्रा देवी ने उसे सब बताने की ठानी



श्रुति- अब बताइए माजी राघव भैया के बारे मैं

सुमित्रादेवी- सबसे पहले तो ये बात तुम राघव से नहीं करोगी क्युकी उसे इस बात के बारे मैं पता नहीं है और मैं नहीं चाहती के उसे कभी भी पता चले पहले तुम मुझसे वडा करो ये बात तुम राघव से नहीं करोगी

श्रुति- जैसा आप चाहे माजी मैं इस बात के बारे मैं राघव भैया को पता नहीं चलने दूंगी

सुमित्रादेवी- राघव हमारा बेटा नहीं है रमण बहुत छोटा था जब राघव को उसके दादाजी यानि मेरे ससुरजी इस घर मैं लेकर आये थे जिसके बाद उनके कहने पर हमने राघव को विधिवत गोद लिया था, हमारे शहर के बहार जो प्राचीन शिव मंदिर है न वही मेरे ससुरजी रहते थे वो उस मंदिर मैं पुजारी थे और एक विद्वान् साधू

मेरी शादी को ३ साल हो गए थे और रमण भी २ साल का हो गया था पर इन ३ सालो मैं मैंने अपने ससुरजी को बहुत कम बार देखा था असल मैं वो बहुत कम घर आते थे और रमण के बाबूजी को भी उनसे खास लगाव नहीं था पर फिर भी इन्होने बाबूजी की कोई बात कभी नहीं ताली दरअसल जब हमने राघव को विधिवत गोद लिया तभी से ही उन्होंने घर मैं रहना सुरु किया,

उस समय हमारा राजनगर इतना बड़ा शहर नहीं था फिर भी महंत शिवदास के पास लोग दूर दूर से आते थे, बाबूजी मंदिर के पुजारी के साथ साथ एक सिद्ध साधू थे और उन्होंने मंदिर मैं रहते हुए कई सिद्धिय हासिल की थी, अपनी समस्याओ के समाधान के लिए दूर दूर से लोग उनके पास आते थे, बाबूजी के पास दिमाग पढने की अदभुत सिद्धि थी वो अगर किसी की आँखों मैं कुछ सेकंड्स के लिए देख लेते थे तो बता देते की उसके दिमाग मैं क्या चल रहा है और इसके साथ ही उन्हें तंत्र विद्या का भी थोडा ज्ञान था

जीवन एकदम सलार चल रहा था एक दिन रात को ३ बजे दरवाजा खटखटाने की आवाज से हमारी नींद खुली और जब दरवाजा खोला तो हमने देखा के बहार बाबूजी है और उनकी गोद मैं राघव, उन्होंने बताया के राघव उन्हें राघव उन्हें शिवमंदिर मैं शिवलिंग के पास मिला वो मंदिर के पीछे की तरफ कोई अनुष्ठान कर रहे थे की उन्हें राघव के रोने की आवाज आई जिसके बाद उन्होंने जब मंदिर मैं जेक देखा तो शिवलिंग के पास उन्हें राघव दिखाई दिया, इसके बाद उन्होंने वाला आसपास काफी देखा लेकिन उन्हें ऐसा कोई नहीं दिखा जिसने राघव को वह छोड़ा हो इसके बाद बाबूजी राघव को शिव का प्रसाद मान कर घर ले आये, उनका कहना था के भगवान् शिव की इचा से ही राघव उन्हें मिला है और अवश्य की उसके जन्म के पीछे कोई बहुत गहरा उद्देश्य है और शिव चाहते है ये राघव का पालन हमारे परिवार मैं हो इसीलिए वो राघव को घर ले आये और हमसे मांग की के हम राघव को गोद लेले और उनकी इसी बात का आदर करते हुए हमने राघव को गोद ले लिया



अब चुकी राघव पिताजी के लिए शिव का प्रसाद था इसीलिए वो भी राघव के साथ घर मैं ही आ गए वो हमेशा कहते थे के राघव कोई बहुत बड़ा काम करेगा अपने जीवन मैं और उस काम के लिए मुझे उसे तयार करना है, वो अपना सारा ज्ञान राघव पर उड़ेल देना चाहते थे,

राघव जब ३ साल का हुआ तबसे की उन्होंने राघव की शिक्षा दीक्षा आरम्भ कर दी थी और उससे मंत्रोच्चार करवाते थे, उन्होंने रमण को भी ये सब सीखने कहा पर रमण ने कभी इस और रूचि नहीं दिखाई और बाबूजी ने भी उसे कभी जबरदस्ती राघव के साथ मंत्रपाठ नहीं करवाया, राघव बचपन से मस्तीखोर और हसमुख बच्चा था और घर मैं सिर्फ बाबूजी और रमण ही थे जिनकी वो बात सुनता था, जितना प्रेम बाबूजी को राघव से था उतना किसी और से नहीं था और राघव भी अपने दादाजी से उतना ही प्रेम करता था, जब राघव १६ वर्ष का हुआ तब तक बाबूजी ने उसे कई शास्त्रों मैं निपुण बना दिया था, पर इसका असर उसकी पढाई पर हो रहा था जिससे रमण के पापा बहुत नाराज थे पर बाबूजी कहते थे जब राघव की असली परीक्षा की घडी आएगी तब उसका साथ केवल ये शास्त्र देंगे जो उन्होंने उसे पढाये थे और अब उन्होंने राघव को विविध सिद्धियों का अभ्यास सिखाना सुरु किया पर अब बाबूजी की उम्र उनका साथ नहीं दे रही थी उनकी तबियत बिगड़ने लगी और इतनी ख़राब हो गयी के उन्हें हॉस्पिटल मैं भारती करवाना पड़ा, उन्होंने हॉस्पिटल जाते हुए ही कह दिया था के वो अब वापिस नहीं आयेंगे और राघव के कहा था के वो अपनी सिद्धियों का अभ्यास जरी रखेगा, बाबूजी हॉस्पिटल मैं ३ दिन रहे और इन ३ दिनों तक राघव ने बगैर अन्न जल के महामृतुन्जय का जप किया अपने दादाजी के लिए पर जो होनी होती है वो होकर ही रहती है

बाबूजी के निर्वाण के बाद से ही राघव के स्वाभाव मैं बदलाब आ गया वो गुमसुम सा चिडचिडा हो गया किसी से ढंग से बात नहीं करता था उसके मन मैं भगवन के लिए गुस्सा भर गया था को उसके दादाजी को ठीक नहीं कर पाए, वो कहने लगा के ऐसे भगवन की पूजा करने का क्या उपयोग को अपने भक्त की प्राणरक्षा न कर पाए

हमने उसे बहुत समझाया के इस बात के लिए इश्वर को दोष देना ठीक नहीं है और तुम्हे अपने दादाजी की कही बात पूरी करनी है उनके बताये अनुष्ठान पुरे करने है पर राघव ने एक बात नहीं सुनी और तभी से इश्वर के मुद्दे पर ये दोनों बाप बेटो मैं नोकझोक होती रहती है

हमारे घर के पीछे की तरफ एक कमरा बना हुआ है जो हमेशा बंद रहता है वो बाबूजी का कमरा है उसमे उनके सरे ग्रन्थ सारी किताबे उन्हें अपनी विविध अनुष्ठानो के अनुभव सब राखी हुयी है और मुझे यकीन है के बाबूजी ने राघव को आगे क्या करने है इसके बारे मैं भी कुछ लिख रखा होगा बाबूजी की कही कोई भी बात कभी गलत साबित नहीं हुयी है पर अब लगता है राघव ही नहीं चाहता के उसके दादाजी की उसके प्रति भविष्यवाणी सही हो, उनके मरने के बाद राघव कभी उस कमरे मैं गया ही नहीं के देख सके उसके दादाजी ने उसके लिए विरासत मैं क्या छोड़ा है, बाबूजी ने कहा था के राघव के हाथो कोई महँ काम होने निश्चित है पर राघव का बर्ताव देख कर अब मुझे उनकी बातो पर संदेह होता है



बोलते बोलते सुमित्रादेवी का गला भर आया श्रुति अब तक चुप चाप सुमित्रादेवी की बात बड़े धयन से सुन रही थी, श्रीति ने तो कभी सोचा भी नहीं था के राघव को उसके सास ससुर ने गोद लिया होगा,

सुमित्रादेवी ने इशारे से श्रुति से पानी माँगा जो लेन के लिए वो किचन की तरफ जा ही रही थी के उसकी नजर दरवाजे पर पड़ी जहा राघव खड़ा था और नजाने कब से उनकी बाते सुन रहा था.......
 
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