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Incest कहानी एक मासूम की

Lutgaya

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कहानी का मूल लेखक मैं नही हूँ।
 
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Lutgaya

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भाग-4
रात के ग्यारह बज गए थे, जीजाजी को नींद आ गई थी, मैं भी सोने की कोशिश करने लगी और मुझे भी नींद आ गई !

रात के दो ढाई बजे होंगे कि अचानक मेरी नींद खुली, मुझे लगा कि मेरे जीजा जी मेरी चूत पर अंगुली फेर रहे हैं। मेरी मैक्सी और पेटीकोट ऊपर जांघों पर था, मैंने कच्छी पहनी हुई थी।

मेरा तो दिमाग भन्ना गया, मैं सोच नहीं पा रही थी कि मैं क्या करूँ !

मेरे मन में भय, गुस्सा, शर्म आदि सारे विचार आ रहे थे। मैंने अपनी चूत पर से उनका हाथ झटक दिया और थोड़ी दूर हो गई…पर आगे दीवार आ गई, वो भी मेरे पीछे सरक गए और मुझे बांहों में पकड़ लिया।

वो धीमे धीमे कह रहे थे- मुझे नींद नहीं आ रही है प्लीज !

और मेरे चेहरे पर चुम्बनों की बौछार कर दी। मैं धीमी धीमी आवाज में रो रही थी, उन्हें छोड़ने का कह रही थी, पर वो नहीं मान रहे थे।

मैंने पलटी मार कर उधर मुँह कर लिया, उनकी बांहे मेरे शरीर पर ढीली थी पर उन्होंने छोड़ा नहीं था मुझे। उन्होंने अपनी एक टांग मेरे टांगों पर रख दी, मेरे कांख के नीचे से हाथ निकाल कर मेरे स्तन दबाने लगे, कभी नीचे वाला और कभी ऊपर वाला।

जीजाजी मेरी गर्दन पर भी चुम्बन कर रहे थे और फुसफुसा रहे थे- मुझे कुछ नहीं करना है, सिर्फ तुम्हें आनन्द देना है !

मैं मना कर रही थी- मुझे छोड़ दो !

पर वो कुछ भी नहीं सुन रहे थे, जोर से मैं बोल नहीं सकती थी कि कहीं मकान मालिक सुन ना लें, मेरी बदनामी हो जाती कि पहले तो जयपुर बुलाया, कमरे में सुलाया तो अब क्या हुआ?

मैं कसमसा रही थी ! आज मुझे पता चला कि जीजाजी में कितनी ताकत है, मुझे छुड़ाने ही नहीं दिया। ऐसे दस मिनट बीत गए, मैं थक सी गई थी, मेरा विरोध कमजोर पड़ने लगा, उन्होंने जैसे अजगर मुर्गे को दबोचता, वैसे मुझे अपनी कुंडली में कस रहे थे धीरे धीरे !

उन्हें कोई जल्दी नहीं थी ! वो बराबर मुझे समझा रहे थे- चुपचाप रहो, मजा लो ! तुम्हारे पति को गए साल भर हो गया है, क्यों तड़फ रही हो? मैं सिर्फ तुम्हें आनन्द दूँगा, मुझे कोई जरुरी नहीं है ! और आज अब मैं तुम्हें छोड़ने वाला नहीं हूँ !

मैं कुछ नहीं सुन रही थी, में तो कसमसा रही थी और छोड़ने के लिए कह रही थी। वो थोड़ा मौका दे देते तो मैं कमरे के बाहर भाग जाती पर उन्होंने मुझे जकड़ रखा था।

फिर उन्होंने मेरे स्तन दबाने बंद किए और अपना हाथ नीचे लाये, मेरी कच्छी नीचे करने लगे।

मैं तड़फ कर उनके सामने हो गई, मेरी आधी कच्छी नीचे हो गई पर मैंने उनका हाथ पकड़ लिया और ऊपर कर दिया।

वो मेरे पेट को सहलाने लगे फिर दूसरे हाथ से मेरे हाथ को पकड़ लिया और पहले वाले हाथ से फिर कच्छी नीचे करने लगे, साथ साथ मुझे सहयोग करने का भी कह रहे थे।

मैंने नहीं माना और मैंने उनके सामने लेटे लेटे अपनी टांगें दूर दूर करने के लिए एक टांग पीछे की पर एक टांग मुझे उनकी टांगों के उपर रखनी पड़ी !

वे अपना हाथ मेरी गाण्ड की तरफ लाये जहाँ कच्छी आधी खुली थी और खिंच रही थी। उनकी अंगुलियों को गाण्ड के पीछे से चड्डी में घुसने की जगह मिल गई। उन्होंने पीछे से चड्डी में हाथ डाला और मेरी चूत सहलाने लगे जिसे अब वो सीधे छू रहे थे, वे मेरी चूत के उभरे हुए चने को रगड़ रहे थे। मैं फिर कसमसा रही थी पर उन्होंने मुझ पर पूरी तरह काबू पा लिया था, एकदम जकड़ा हुआ था, अब तो मैं हिल भी नहीं पा रही थी। उन्होंने 5 मिनट तक मेरी चूत के दाने को पीछे से रगड़ा, मेरी छोटी सी चूत में पीछे से अंगुली डालने की असफल कोशिश भी कर रहे थे !

मैं कुछ भी करने की स्थिति में नहीं थी, मेरी सारी मिन्नतें बेकार जा रही थी, इतनी मेहनत से हम दोनों को पसीने आ रहे थे, पर पता नहीं आज जीजाजी का क्या मूड था, मैं उन्हें यहाँ आने का कह कर और होटल में नहीं जाने का कह कर पछता रही थी। अगर मेरे बस में काल के चक्र को पीछे करने की शक्ति होती तो मैं पीछे कर उन्हें यहाँ नहीं सुलाती !

खैर अब क्या होना था, मैंने जो इज्जत तीस साल में संभाल कर रखी थी, आज जा रही थी और मैं कुछ भी नहीं कर पा रही थी मैंने अपने सारे देवताओ को याद कर लिया कि जीजाजी का दिमाग बदल जाये और वो अब ही मुझे छोड़ दें, पर लगता है देवता भी उनके साथ थे।

फिर अचानक वो थोड़े ऊँचे हुए एक हाथ से मुझे दबा कर रखा और दूसरे हाथ से मेरी चड्डी पिंडलियों तक उतार दी और एक झटके में मेरी एक टांग से बाहर निकाल दी। अब चड्डी मेरे एक पांव में थी और मेरी चूत पर कोई पर्दा नहीं था।

उन्होंने मेरी दोनों टांगों को सीधा कर अपने भारी पांव से दबा लिया, फिर वे एक झटके से उठे और नीचे हुए, उनका लम्बा हाथ मुझे उठने नहीं रहा था, मेरी टांगें चौड़ी की, एक इस तरफ और दूसरी उस तरफ।

मैं छटपटा रही थी कि अचानक उन्होंने अपना मुंह मेरी चूत पर लगा दिया। बस मुंह लगाने की देर थी कि में जम सी गई, मेरा हिलना डुलना बंद !

आज तक किसी ने मेरी चूत नहीं चाटी थी, पिछले एक साल से मैं चुदी नहीं थी, पिछले आधे घंटे से मैं मसली जा रही थी ! मेरी चूत पर जीजा का मुँह लगते ही मैं धराशाई हो गई, सब सही-गलत भूल गई, मेरे शरीर में आनद का सोता उमड़ पड़ा, मुझे बहुत आनन्द आने लगा।

जीजाजी जोर-जोर से मेरी चूत चूस रहे थे, चाट रहे थे, हल्के-हल्के कट रहे थे, मेरे चने को दांतों और जीभ से चिभाल रहे थे, मेरी चूत की फ़ांकों को पूरा का पूरा अपने मुँह में भर रहे थे, अपनी जीभ लम्बी और नोकीली बना कर जहाँ तक जाये, वहाँ तक मेरी चूत में डाल रहे थे।

मेरे चुचूक कड़े हो गए थे, मेरे मुँह से सेक्सी आहें निकल रही थी, मैं उनके सर पर हाथ फेर रही थी, उनके आधे उड़े हुए बालों को बिखेर रही थी !

उन्हें मेरी आहों और उनके बालो में हाथ फेरने से पता चल गया कि अब मुझे भी मजा आ रहा है, उन्होंने मेरे कमर के पास अपने दोनों हाथ लम्बे करके मेरे दोनों स्तन पकड़ लिए और मसलने लगे।

मुझे और ज्यादा मजा आने लगा, मैंने उनके मुंह को इतनी जोर से आपनी जांघों में भींचा कि उनकी साँस रुकने लगी और उन्होंने मेरे स्तन जोर से भींचे और मेरी चूत में काटा कि मैंने जांघें ढीली कर दी। वो इतनी बुरी तरह से मेरी चूत को चूस रहे थे कि उनकी लार बह कर नीचे बिस्तर तक पहुँच रही थी।

मैंने जितनी टांगें ऊपर उठा सकती थी, उठा ली और जोर जोर से सिसकारने लगी, मैं उन्हें जोर से चाटने का कह रही थी।

इस सब को करीब 15 मिनट हुए होंगे कि मेरा पानी उबल पड़ा, उन्होंने मुँह नहीं उठाया और चाट कर मेरा पूरा पानी निकाल दिया, मैं ठंडी पड़ गई, मुझे जिन्दगी का पहला आनन्द, परम आनन्द मिल गया।

वो अब भी चाट रहे थे, मुझे उन पर दया आ गई, मैंने उन्हें अपने ऊपर खींचना चाहा पर वो बोले- मुझे सिर्फ तुम्हें आनन्द दिलाना था, मेरी कोई जरुरत नहीं थी।

पर मैंने कहा- नहीं, आप आओ मेरे ऊपर ! आपने मुझे इतना आनन्द दिया, अब मैं भी आपको आनन्द देना चाहती हूँ !

अब मैं मुस्कुरा रही थी, हंस रही थी !

जो जीजा थोड़ी देर पहले मेरी नफरत का केंद्र था, अब मुझे सारी दुनिया से प्यारा लग रहा था !

तब जीजाजी ने कहा- पहले बाथरूम जाकर आओ !

मैंने कहा मुझे जाने की जरुरत नहीं है आप मुझे कर लो !

उन्होंने कहा- मैं जाकर आता हूँ, फिर तुम जा आना !

मैंने कहा- ठीक है !

वो गए, फिर मैं गई।

जिसने कभी किसी पर-पुरुष को देखा नहीं, उसने 2010 जब 30 साल की थी तब जीजाजी जो 46 साल के थे उनको कैसे समर्पित हो गई ! सब वक़्त की बात है।

कहानी चलती रहेगी।
 

Lutgaya

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रात के दो ढाई बजे होंगे कि अचानक मेरी नींद खुली, मुझे लगा कि मेरे जीजा जी मेरी चूत पर अंगुली फेर रहे हैं। मेरी मैक्सी और पेटीकोट ऊपर जांघों पर था, मैंने कच्छी पहनी हुई थी।

मेरा तो दिमाग भन्ना गया, मैं सोच नहीं पा रही थी कि मैं क्या करूँ !

मेरे मन में भय, गुस्सा, शर्म आदि सारे विचार आ रहे थे। मैंने अपनी चूत पर से उनका हाथ झटक दिया और थोड़ी दूर हो गई…पर आगे दीवार आ गई, वो भी मेरे पीछे सरक गए और मुझे बांहों में पकड़ लिया।

वो धीमे धीमे कह रहे थे- मुझे नींद नहीं आ रही है प्लीज !

और मेरे चेहरे पर चुम्बनों की बौछार कर दी। मैं धीमी धीमी आवाज में रो रही थी, उन्हें छोड़ने का कह रही थी, पर वो नहीं मान रहे थे।

मैंने पलटी मार कर उधर मुँह कर लिया, उनकी बांहे मेरे शरीर पर ढीली थी पर उन्होंने छोड़ा नहीं था मुझे। उन्होंने अपनी एक टांग मेरे टांगों पर रख दी, मेरे कांख के नीचे से हाथ निकाल कर मेरे स्तन दबाने लगे, कभी नीचे वाला और कभी ऊपर वाला।

जीजाजी मेरी गर्दन पर भी चुम्बन कर रहे थे और फुसफुसा रहे थे- मुझे कुछ नहीं करना है, सिर्फ तुम्हें आनन्द देना है !

मैं मना कर रही थी- मुझे छोड़ दो !

पर वो कुछ भी नहीं सुन रहे थे, जोर से मैं बोल नहीं सकती थी कि कहीं मकान मालिक सुन ना लें, मेरी बदनामी हो जाती कि पहले तो जयपुर बुलाया, कमरे में सुलाया तो अब क्या हुआ?

मैं कसमसा रही थी ! आज मुझे पता चला कि जीजाजी में कितनी ताकत है, मुझे छुड़ाने ही नहीं दिया। ऐसे दस मिनट बीत गए, मैं थक सी गई थी, मेरा विरोध कमजोर पड़ने लगा, उन्होंने जैसे अजगर मुर्गे को दबोचता, वैसे मुझे अपनी कुंडली में कस रहे थे धीरे धीरे !

उन्हें कोई जल्दी नहीं थी ! वो बराबर मुझे समझा रहे थे- चुपचाप रहो, मजा लो ! तुम्हारे पति को गए साल भर हो गया है, क्यों तड़फ रही हो? मैं सिर्फ तुम्हें आनन्द दूँगा, मुझे कोई जरुरी नहीं है ! और आज अब मैं तुम्हें छोड़ने वाला नहीं हूँ !

मैं कुछ नहीं सुन रही थी, में तो कसमसा रही थी और छोड़ने के लिए कह रही थी। वो थोड़ा मौका दे देते तो मैं कमरे के बाहर भाग जाती पर उन्होंने मुझे जकड़ रखा था।

फिर उन्होंने मेरे स्तन दबाने बंद किए और अपना हाथ नीचे लाये, मेरी कच्छी नीचे करने लगे।

मैं तड़फ कर उनके सामने हो गई, मेरी आधी कच्छी नीचे हो गई पर मैंने उनका हाथ पकड़ लिया और ऊपर कर दिया।

वो मेरे पेट को सहलाने लगे फिर दूसरे हाथ से मेरे हाथ को पकड़ लिया और पहले वाले हाथ से फिर कच्छी नीचे करने लगे, साथ साथ मुझे सहयोग करने का भी कह रहे थे।

मैंने नहीं माना और मैंने उनके सामने लेटे लेटे अपनी टांगें दूर दूर करने के लिए एक टांग पीछे की पर एक टांग मुझे उनकी टांगों के उपर रखनी पड़ी !

वे अपना हाथ मेरी गाण्ड की तरफ लाये जहाँ कच्छी आधी खुली थी और खिंच रही थी। उनकी अंगुलियों को गाण्ड के पीछे से चड्डी में घुसने की जगह मिल गई। उन्होंने पीछे से चड्डी में हाथ डाला और मेरी चूत सहलाने लगे जिसे अब वो सीधे छू रहे थे, वे मेरी चूत के उभरे हुए चने को रगड़ रहे थे। मैं फिर कसमसा रही थी पर उन्होंने मुझ पर पूरी तरह काबू पा लिया था, एकदम जकड़ा हुआ था, अब तो मैं हिल भी नहीं पा रही थी। उन्होंने 5 मिनट तक मेरी चूत के दाने को पीछे से रगड़ा, मेरी छोटी सी चूत में पीछे से अंगुली डालने की असफल कोशिश भी कर रहे थे !

मैं कुछ भी करने की स्थिति में नहीं थी, मेरी सारी मिन्नतें बेकार जा रही थी, इतनी मेहनत से हम दोनों को पसीने आ रहे थे, पर पता नहीं आज जीजाजी का क्या मूड था, मैं उन्हें यहाँ आने का कह कर और होटल में नहीं जाने का कह कर पछता रही थी। अगर मेरे बस में काल के चक्र को पीछे करने की शक्ति होती तो मैं पीछे कर उन्हें यहाँ नहीं सुलाती !

खैर अब क्या होना था, मैंने जो इज्जत तीस साल में संभाल कर रखी थी, आज जा रही थी और मैं कुछ भी नहीं कर पा रही थी मैंने अपने सारे देवताओ को याद कर लिया कि जीजाजी का दिमाग बदल जाये और वो अब ही मुझे छोड़ दें, पर लगता है देवता भी उनके साथ थे।

फिर अचानक वो थोड़े ऊँचे हुए एक हाथ से मुझे दबा कर रखा और दूसरे हाथ से मेरी चड्डी पिंडलियों तक उतार दी और एक झटके में मेरी एक टांग से बाहर निकाल दी। अब चड्डी मेरे एक पांव में थी और मेरी चूत पर कोई पर्दा नहीं था।

उन्होंने मेरी दोनों टांगों को सीधा कर अपने भारी पांव से दबा लिया, फिर वे एक झटके से उठे और नीचे हुए, उनका लम्बा हाथ मुझे उठने नहीं रहा था, मेरी टांगें चौड़ी की, एक इस तरफ और दूसरी उस तरफ।

मैं छटपटा रही थी कि अचानक उन्होंने अपना मुंह मेरी चूत पर लगा दिया। बस मुंह लगाने की देर थी कि में जम सी गई, मेरा हिलना डुलना बंद !

आज तक किसी ने मेरी चूत नहीं चाटी थी, पिछले एक साल से मैं चुदी नहीं थी, पिछले आधे घंटे से मैं मसली जा रही थी ! मेरी चूत पर जीजा का मुँह लगते ही मैं धराशाई हो गई, सब सही-गलत भूल गई, मेरे शरीर में आनद का सोता उमड़ पड़ा, मुझे बहुत आनन्द आने लगा।

जीजाजी जोर-जोर से मेरी चूत चूस रहे थे, चाट रहे थे, हल्के-हल्के कट रहे थे, मेरे चने को दांतों और जीभ से चिभाल रहे थे, मेरी चूत की फ़ांकों को पूरा का पूरा अपने मुँह में भर रहे थे, अपनी जीभ लम्बी और नोकीली बना कर जहाँ तक जाये, वहाँ तक मेरी चूत में डाल रहे थे।

मेरे चुचूक कड़े हो गए थे, मेरे मुँह से सेक्सी आहें निकल रही थी, मैं उनके सर पर हाथ फेर रही थी, उनके आधे उड़े हुए बालों को बिखेर रही थी !

उन्हें मेरी आहों और उनके बालो में हाथ फेरने से पता चल गया कि अब मुझे भी मजा आ रहा है, उन्होंने मेरे कमर के पास अपने दोनों हाथ लम्बे करके मेरे दोनों स्तन पकड़ लिए और मसलने लगे।

मुझे और ज्यादा मजा आने लगा, मैंने उनके मुंह को इतनी जोर से आपनी जांघों में भींचा कि उनकी साँस रुकने लगी और उन्होंने मेरे स्तन जोर से भींचे और मेरी चूत में काटा कि मैंने जांघें ढीली कर दी। वो इतनी बुरी तरह से मेरी चूत को चूस रहे थे कि उनकी लार बह कर नीचे बिस्तर तक पहुँच रही थी।

मैंने जितनी टांगें ऊपर उठा सकती थी, उठा ली और जोर जोर से सिसकारने लगी, मैं उन्हें जोर से चाटने का कह रही थी।

इस सब को करीब 15 मिनट हुए होंगे कि मेरा पानी उबल पड़ा, उन्होंने मुँह नहीं उठाया और चाट कर मेरा पूरा पानी निकाल दिया, मैं ठंडी पड़ गई, मुझे जिन्दगी का पहला आनन्द, परम आनन्द मिल गया।

वो अब भी चाट रहे थे, मुझे उन पर दया आ गई, मैंने उन्हें अपने ऊपर खींचना चाहा पर वो बोले- मुझे सिर्फ तुम्हें आनन्द दिलाना था, मेरी कोई जरुरत नहीं थी।

पर मैंने कहा- नहीं, आप आओ मेरे ऊपर ! आपने मुझे इतना आनन्द दिया, अब मैं भी आपको आनन्द देना चाहती हूँ !

अब मैं मुस्कुरा रही थी, हंस रही थी !

जो जीजा थोड़ी देर पहले मेरी नफरत का केंद्र था, अब मुझे सारी दुनिया से प्यारा लग रहा था !

तब जीजाजी ने कहा- पहले बाथरूम जाकर आओ !

मैंने कहा मुझे जाने की जरुरत नहीं है आप मुझे कर लो !

उन्होंने कहा- मैं जाकर आता हूँ, फिर तुम जा आना !

मैंने कहा- ठीक है !

वो गए, फिर मैं गई।

जिसने कभी किसी पर-पुरुष को देखा नहीं, उसने 2010 जब 30 साल की थी तब जीजाजी जो 46 साल के थे उनको कैसे समर्पित हो गई ! सब वक़्त की बात है।

कहानी चलती रहेगी।
Nice
 

Lutgaya

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भाग-5
जिसने कभी किसी पर-पुरुष को देखा नहीं, उसने 2010 जब 30 साल की थी तब जीजाजी जो 46 साल के थे उनको कैसे समर्पित हो गई। सब वक़्त की बात है।

अब तक मेरे कमरे का दरवाजा खुला ही था। पहले जीजाजी बाथरूम जाकर आये, फिर मैं बाथरूम गई, मैंने देखा मेरे मकान मालिक के और उनके बेटों के कमरों में कूलर चल रहे थे और उनके कमरे में नाईट बल्ब की रोशनी में देखा कि सब घोड़े बेच कर सो रहे थे।

मैं निश्चिंत होकर अपने कमरे में वापिस आई। कमरे में आने के बाद अब मैंने दरवाजा ढुका दिया। जीजाजी एक तरफ लेटे थे, मैं जाकर सीधा उनके सीने पर लेट गई। फिर उन्होंने मुझे अपनी बांहों में पकड़ लिया और मुझे चूने लगे, साथ ही साथ उनका हाथ मेरे पीठ पर भी फिर रहा था।

उन्होंने धीरे से मुझे नीचे लिटा दिया, मैंने उनको अपने ऊपर जोर से पकड़ लिया। वो नीचे होना चाहते थे और मुझे शर्म आ रही थी इसलिए मैं उन्हें अपने मुँह के पास पकड़े हुए थी। वो मेरे गालों पर चुम्बन देते, थोड़ा थोड़ा मेरे होंटों को भी चूस रहे थे। मुझे होंट चुसवाना कभी अच्छा नहीं लगता था क्योंकि मेरी साँस नहीं आती थी, लेकिन जीजाजी थोड़ा सा चूसकर बार बार छोड़ देते थे इससे मुझे साँस लेने का अवसर भी मिल जाता था।

इस बीच वो नीचे सरक गए और मेरी मैक्सी पेटीकोट समेत ऊपर करने लगे, मैं भी अपनी गाण्ड उठा कर उनकी सहायता कर रही थी।

वो फिर मेरी धोई हुई चूत को सूंघ रहे थे और मैं फिर से उत्तेजित हो रही थी उनके चूत चाटने के ख्याल से।

पहले उन्होंने धीरे से अपनी जीभ मेरी पूरी चूत पर फेरना शुरू किया मैंने शर्म से अपनी मैक्सी को अपने मुँह पर ओढ़ लिया। अब मैक्सी और पेटीकोट कमर से लेकर मेरे मुँह पर ढका हुआ था और मेरी जमा-पूंजी खुली पड़ी थी, जिसे आज लुटना था और मेरा लुटाने का इरादा था।

अब वो अपनी जीभ मेरे चने पर फिरा रहे थे, कभी हल्का सा दांतों से काट रहे थे, कभी जीभ को जितना अन्दर ले जा सकते, ले जा रहे थे। मैंने अपनी तीस साल की जिन्दगी में जो आनन्द नहीं पाया, वो आज पा रही थी।

करीब दस मिनट तक वो चाटते रहे, मैं उनके स्वयम्-नियन्त्रण पर हैरान थी कि उन्हें यह पूर्व-क्रीड़ा करते करीब एक घंटा हो गया पर वो चुदाई की कोशिश नहीं कर रहे थे। मैंने आनन्द में अपनी टांगें पूरी ऊँची कर अपनी चूत को उभार दिया था, वो हाथों से कपड़ो के ऊपर से ही मेरे स्तन दबा रहे थे।

जीजाजी की लुंगी तो पहले ही हट चुकी थी, अब कपड़ों की सरसराहट सुन कर मैं समझ गई कि वो अपना अंडरवियर उतार रहे हैं। आने वाले वक़्त की कल्पना से ही मेरे कलेजा धड़क रहा था, मेरी जिन्दगी का एक महत्वपूर्ण मोड़ आ रहा था, आज पहली बार मेरे पति के अलावा कोई दूसरा मेरी सवारी करने की तैयारी में था।

मैं दम साधे आने वाले पलों का इन्तजार कर रही थी। मेरी दोनों टांगें पूरी तरह से ऊपर थी जो मेरे सर से भी पीछे जा रही थी, दुबला पतला होने का यही तो फायदा है।

अब वे घुटनों के बल बैठ गए थे और अपने मुँह से ढेर सारा थूक अपने लण्ड पर लगा रहे थे, थोड़ा मेरी पहले से गीली चूत पर भी लगाया और अपने लण्ड को मेरी छोटी सी चूत के छेद पर अड़ा दिया।

मुझे अपनी चूत पर उनके सुपारे का कड़ापन महसूस हो रहा था।

मैं सिहर गई।

उन्होंने हल्के से अपने लण्ड को मेरी चूत में ठेला, मेरी चूत ने उनके सुपारे पर कस कर उनका स्वागत किया। अब उन्हें पता चल गया कि यह किला इतनी आसानी से फ़तेह होने वाला नहीं है। मेरी चूत में संकुचन हो रहा था, आनन्द की अधिकता से मैं अपनी चूत को और ऊँचा कर रही थी पर अब तक सिर्फ उनका सुपारा ही अन्दर गया था। साँस भर कर फिर उन्होंने धक्का दिया, थोड़ा और अन्दर घुसा, आनन्द के मारे मेरी हल्की सी किलकारी मुँह से निकली तो उन्हें जोश आया और थोड़ा पीछे खींच कर फिर दांत भींच कर जोर से धक्का मारा। अब उनका आधे से ज्यादा लण्ड मेरी चूत में घुस चुका था, वो अपने माथे का पसीना पौंछ रहे थे और मेरे कान में बोले- तेरी चूत इतनी कसी कैसे है? लगता ही नहीं कि तुम दस साल के बेटे की माँ हो।

मैंने जबाब उनका कान काट कर दिया। मेरे कान काटने से उन्हें फिर जोश आया और धचाक से अपना पूरा लण्ड मेरी चूत में घुसा दिया। अब उनकी गोलियाँ मेरी गाण्ड से टकरा रही थी।

अब उन्होंने अपने हाथ मेरी गाण्ड के नीचे डाल कर मेरे चूतड़ कस कर पकड़ लिए और धक्के लगाने लगे। मेरी चूत की फांके बुरी तरह से उनके लण्ड से कसी हुई थी इसलिए वो जब ऊपर होते तो मेरी चूत भी उठ जाती इसलिए वो ज्यादा ऊँचा होकर धक्के नहीं लगा पा रहे थे। फिर थोड़ी देर में मेरी चूत गीली होने लगी और इतनी देर में उनका लण्ड भी चूत में सेट हो गया था। मेरी चूत में करीब दस महीने के बाद लण्ड घुस रहा था, दोस्तो, मैं सच कहती हूँ कि मैंने कभी अपनी चूत में अंगुली भी नहीं की थी इन दस महीनों में। अब उनका लण्ड आसानी से मेरी चूत में आ-जा रहा था पर जब मैं मजे में अपनी चूत भींच देती तो उनकी रफ़्तार धीरे हो जाती, फिर धक्के देने में जोर आता पर वो हचक हचक कर चोद रहे थे, उनके मुँह से लगातार मेरी तारीफ निकल रही थी- इतनी शानदार चूत मैंने आज तक नहीं देखी, आज जितना मजा कभी नहीं आया, आज मेरे जिन्दगी का मकसद पूरा हो गया, तुम मेरी सेक्स की देवी हो, तुम जो चाहे मुझसे ले लो !
आदि आदि।

और मैं उन बातों से मस्त होकर चुदवा रही थी। करीब दस मिनट ऐसे चोदने के बाद उन्होंने मेरी टांगें सीधी कर दी और मुझे रगड़ने लगे। 3-4 मिनट के बाद उन्होंने फिर से टांगें ऊँची कर दी। इस बार मैंने अपनी टांगें उनकी कमर में कस दी पर 4-5 धक्कों से ही वो थकने लगे तो मैंने फिर से ऊँची कर ली।

अब उनका लण्ड सीधा मेरी बच्चेदानी से टकरा रहा था और मुझे दर्द के साथ आनन्द भी आ रहा था। मैं झड़ने लगी, मेरे मुँह से गूँ गूँ की आवाजें आ रही थी और करीब एक मिनट तक मेरा शरीर ऐंठता रहा।

उन्हें पता चल गया था इसलिए वो जोर जोर से चोद रहे थे। फिर मैं अचानक ढीली पड़ गई और उन्होंने लण्ड बाहर निकाल लिया,

मैंने कहा- आपका आ गया क्या?

उन्होंने कहा- नहीं, अभी कहाँ आएगा !

मुझे बड़ा अचरज हुआ।

उन्होंने कहा- पहले तुम्हें दोबारा गर्म करता हूँ।

उन्होंने थोड़े चुम्बन दिए, स्तन दबाये। उन्होंने मेरी चोली खोलने की कोशिश क़ी तो मैंने मना कर दिया और कहा- ऊपर से दबा लो, यहाँ पराये घर में हैं।

फिर उन्होंने कुछ नहीं कहा और ऊपर से ही मेरी चूचियाँ दबाने लगे। एक हाथ से मेरे चूत के चने को हल्के हल्के छेड़ रहे थे, उसे गोल गोल घुमा रहे थे।

मुझे आज पता चला कि कोई आदमी इतनी काम कला में निपुण भी हो सकता है !

आज तक मेरे पति ने ऐसा मुझे तैयार नहीं किया था।

मुझे मेरे जीजाजी बहुत प्यारे लग रहे थे कि उन्हें मेरे आनन्द की कितनी चिंता है और उनमें रुकने का कितना स्टेमिना है।

उनके थोड़ी देर के प्रयास से मैं फिर से गर्म हो गई थी, मैं तब तक तीन बार झड़ चुकी थी जो मेरी जिन्दगी में पहला मौका था एक रात में। मेरे पति के साथ तो कभी कभी ही चरम सुख मिलता था।

अब मैं जीजाजी को अपने ऊपर खींचने की कोशिश करने लगी, वे समझ गए, उन्होंने मेरी सूखी चूत को थूक से गीला किया और अपना लण्ड मेरी चूत में सरका दिया एक ही झटके में !

मैं थोड़ा उछली फिर शांत हो गई। मेरी टांगें मेरे सिर के ऊपर थी। मेरे जीजाजी मेरी टांगों नीचे से हाथ डाल कर मुझे दोहरी कर अपने हाथ मेरे वक्ष तक ले आये और वे धक्के के साथ स्तन भी दबा रहे थे, मेरे आनन्द की कोई सीमा नहीं थी।

करीब दस मिनट की चुदाई के बाद मैं फिर झड़ने के करीब थी। अब लगातार चुदाई से मेरी चूत में जलन भी होने लगी थी, चूत कुछ सूज भी गई थी।

मैंने जीजाजी को कहा- आपको कोई बीमारी है क्या? आधे घंटे से चोद रहे हो और आपके एक बार भी पानी नहीं निकला?

यह सुनकर हँसे और कहा- मेरा अपने दिमाग पर काबू है, चाहूँ तो 5-7 मिनट में पानी निकाल सकता हूँ और चाहूँ तो 30-40 मिनट तक भी चोद सकता हूँ।

मुझे बड़ा अचम्भा हुआ !

फिर मैंने कहा- मैं थक गई हूँ, ऐसा लगता है कि मुझे 3-4 जनों ने मिलकर चोदा है, अब आप अपना पानी निकाल लो !

उन्होंने कहा- ठीक है, तुम दो मिनट तक पड़ी रहो।

फिर उन्होंने तूफानी रफ़्तार से धक्के मारने शुरू किये। मैं दांत भींच कर सहन कर रही थी राम राम करते।

फिर उनका पानी छूटा तो उन्होंने मुझे इतनी जोर से भींचा कि मेरी हड्डियाँ बोल उठी।

आज मुझे पता चला कि मेरे जीजाजी में रीछ जैसी ताकत थी, मन ही मन में उनके प्रति प्रंशसा का भाव जगा।

कुछ देर मेरे बदन पर लेटे रहने के बाद वो उठ कर बाथरूम में चले गए, मैं उठी तो मुझे लगा मेरी चूत सुन्न हो गई है, टटोल कर देखा तो पता चला कि है तो सही।

फिर उनके आने के बाद मैं बाथरूम गई और वहा बैठ कर जब मैंने मूतना शुरु किया तो मेरी चूत जल उठी, मुझे पता चल गया कि आज मेरी चूत का बजा बज गया है।

पर अभी तो साढ़े तीन ही बजे थे, अभी रात बाकी थी और मेरी चूत का तो बाजा और बजना था।

मैं जब बाथरूम से वापिस आई तो जीजाजी लेटे हुए थे, लुंगी तो नहीं लगी हुई थी पर अंडरवियर पहना हुआ था।

मैं भी जाकर पास में लेट गई और अपनी एक टांग उनकी कमर पर रख दी।

उन्हें शायद नींद आ रही थे, वे कसमसाए और मुझे बांहों में भर कर बोले- अब सो जाओ।

कहानी चलती रहेगी।
 

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