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Serious कविता-ग़ज़ल

Niks96

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नानी जी

दूर गाँव में रहती अपनी नानी जी,
कौन सुनाए मोहक कथा कहानी जी!

राजा-रानी, सूरज-चंदा
जगमग तारावलियों की,
इंद्रधनुष से पंख उगाए
झिलमिल आती पयिों की,

हैं किस्सों की भरी पिटारी नानी जी
याद जिन्हें हैं ढेरों कथा-कहानी जी!

नंदन बन, अद्भुत पशु-पक्षी
मोहक फूल-तितलियों की,
बादल, धूप, परी, सिमसिम की
सागर नदी मछलियों की।

कब आएँगी हमें सुनाने बातें सारी नानी जी!


रमेशचंद्र पंत

 
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Niks96

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मुखम्मस

हम भी आराम उठा सकते थे घर पर रह कर,
हमको भी पाला था माँ-बाप ने दुःख सह-सह कर ,

वक्ते-रुख्सत उन्हें इतना भी न आये कह कर,
गोद में अश्क जो टपकें कभी रुख से बह कर ,
तिफ्ल उनको ही समझ लेना जी बहलाने को !


अपनी किस्मत में अजल ही से सितम रक्खा था,
रंज रक्खा था मेहन रक्खी थी गम रक्खा था ,
किसको परवाह थी और किसमें ये दम रक्खा था,
हमने जब वादी-ए-ग़ुरबत में क़दम रक्खा था ,
दूर तक याद-ए-वतन आई थी समझाने को !

अपना कुछ गम नहीं लेकिन ए ख़याल आता है,
मादरे-हिन्द पे कब तक ये जवाल आता है ,
कौमी-आज़ादी का कब हिन्द पे साल आता है,
कौम अपनी पे तो रह-रह के मलाल आता है ,
मुन्तजिर रहते हैं हम खाक में मिल जाने को !

नौजवानों! जो तबीयत में तुम्हारी खटके,
याद कर लेना कभी हमको भी भूले भटके ,
आपके अज्वे-वदन होवें जुदा कट-कट के,
और सद-चाक हो माता का कलेजा फटके ,
पर न माथे पे शिकन आये कसम खाने को !

एक परवाने का बहता है लहू नस-नस में,
अब तो खा बैठे हैं चित्तौड़ के गढ़ की कसमें ,
सरफ़रोशी की अदा होती हैं यूँ ही रस्में,
भाई खंजर से गले मिलते हैं सब आपस में ,
बहने तैयार चिताओं से लिपट जाने को !

सर फ़िदा करते हैं कुरबान जिगर करते हैं,
पास जो कुछ है वो माता की नजर करते हैं ,
खाना वीरान कहाँ देखिये घर करते हैं!
खुश रहो अहले-वतन! हम तो सफ़र करते हैं ,
जा के आबाद करेंगे किसी वीराने को !

नौजवानो ! यही मौका है उठो खुल खेलो,
खिदमते-कौम में जो आये वला सब झेलो ,
देश के वास्ते सब अपनी जबानी दे दो ,
फिर मिलेंगी न ये माता की दुआएँ ले लो ,
देखें कौन आता है ये फ़र्ज़ बजा लाने को ?

राम प्रसाद बिस्मिल

 
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सर फ़रोशी की तमन्ना

सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
देखना है ज़ोर कितना बाज़ु-ए-कातिल में है

करता नहीं क्यूँ दूसरा कुछ बातचीत,
देखता हूँ मैं जिसे वो चुप तेरी महफ़िल में है

ए शहीद-ए-मुल्क-ओ-मिल्लत मैं तेरे ऊपर निसार,
अब तेरी हिम्मत का चरचा गैर की महफ़िल में है

सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
वक्त आने दे बता देंगे तुझे ऐ आसमान,

हम अभी से क्या बतायें क्या हमारे दिल में है
खैंच कर लायी है सब को कत्ल होने की उम्मीद,

आशिकों का आज जमघट कूच-ए-कातिल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है

है लिये हथियार दुशमन ताक में बैठा उधर,
और हम तैय्यार हैं सीना लिये अपना इधर

खून से खेलेंगे होली गर वतन मुश्किल में है,
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है

हाथ जिन में हो जुनूँ कटते नही तलवार से,
सर जो उठ जाते हैं वो झुकते नहीं ललकार से

और भड़केगा जो शोला-सा हमारे दिल में है,
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है

हम तो घर से निकले ही थे बाँधकर सर पे कफ़न,
जान हथेली पर लिये लो बढ चले हैं ये कदम

जिन्दगी तो अपनी मेहमान मौत की महफ़िल में है,
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है

यूँ खड़ा मक़तल में क़ातिल कह रहा है बार-बार,
क्या तमन्ना-ए-शहादत भी किसी के दिल में है

दिल में तूफ़ानों की टोली और नसों में इन्कलाब,
होश दुश्मन के उड़ा देंगे हमें रोको ना आज

दूर रह पाये जो हमसे दम कहाँ मंज़िल में है,
वो जिस्म भी क्या जिस्म है जिसमें ना हो खून-ए-जुनून

तूफ़ानों से क्या लड़े जो कश्ती-ए-साहिल में है,
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है


राम प्रसाद बिस्मिल

 
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हे मातृभूमि

हे मातृभूमि ! तेरे चरणों में शिर नवाऊँ ।
मैं भक्ति भेंट अपनी, तेरी शरण में लाऊँ ।।


माथे पे तू हो चंदन, छाती पे तू हो माला ;
जिह्वा पे गीत तू हो मेरा, तेरा ही नाम गाऊँ ।।


जिससे सपूत उपजें, श्री राम-कृष्ण जैसे;
उस धूल को मैं तेरी निज शीश पे चढ़ाऊँ ।।


माई समुद्र जिसकी पद रज को नित्य धोकर;
करता प्रणाम तुझको, मैं वे चरण दबाऊँ ।।


सेवा में तेरी माता ! मैं भेदभाव तजकर;
वह पुण्य नाम तेरा, प्रतिदिन सुनूँ सुनाऊँ ।।


तेरे ही काम आऊँ, तेरा ही मंत्र गाऊँ।
मन और देह तुझ पर बलिदान मैं जाऊँ ।।


राम प्रसाद बिस्मिल
 
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देश हित पैदा हुये हैं देश पर मर जायेंगे

देश हित पैदा हुये हैं देश पर मर जायेंगे
मरते मरते देश को जिन्दा मगर कर जायेंगे

हमको पीसेगा फलक चक्की में अपनी कब तलक
खाक बनकर आंख में उसकी बसर हो जायेंगे

कर वही बर्गें खिगा को बादे सर सर दूर क्यों
पेशबाए फस्ले गुल है खुद समर कर जायेंगे

खाक में हम को मिलाने का तमाशा देखना
तुख्मरेजी से नये पैदा शजर कर जायेंगे

नौ नौ आंसू जो रूलाते है हमें उनके लिये
अश्क के सैलाब से बरपा हश्र कर जायेंगे

गर्दिशे गरदाब में डूबे तो परवा नहीं
बहरे हस्ती में नई पैदा लहर कर जायेंगे

क्या कुचलते है समझ कर वह हमें बर्गे हिना
अपने खूं से हाथ उनके तर बतर कर जायेंगे

नकशे पर है क्या मिटाता तू हमें पीरे फलक
रहबरी का काम देंगे जो गुजर कर जायेंगे


राम प्रसाद बिस्मिल

 
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जिन्दगी का राज

चर्चा अपने क़त्ल का अब दुश्मनों के दिल में है,
देखना है ये तमाशा कौन सी मंजिल में है ?

कौम पर कुर्बान होना सीख लो ऐ हिन्दियो !
ज़िन्दगी का राज़े-मुज्मिर खंजरे-क़ातिल में है !

साहिले-मक़सूद पर ले चल खुदारा नाखुदा !
आज हिन्दुस्तान की कश्ती बड़ी मुश्किल में है !

दूर हो अब हिन्द से तारीकि-ए-बुग्जो-हसद,
अब यही हसरत यही अरमाँ हमारे दिल में है !

बामे-रफअत पर चढ़ा दो देश पर होकर फना,
'बिस्मिल' अब इतनी हविश बाकी हमारे दिल में है

राम प्रसाद बिस्मिल



 
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Niks96

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मिट गया जब मिटने वाला

मिट गया जब मिटने वाला फिर सलाम आया तो क्या !
दिल की बर्वादी के बाद उनका पयाम आया तो क्या !

मिट गईं जब सब उम्मीदें मिट गए जब सब ख़याल,
उस घड़ी गर नामावर लेकर पयाम आया तो क्या !

ऐ दिले-नादान मिट जा तू भी कू-ए-यार में,
फिर मेरी नाकामियों के बाद काम आया तो क्या !

काश! अपनी जिंदगी में हम वो मंजर देखते,
यूँ सरे-तुर्बत कोई महशर-खिराम आया तो क्या !

आख़िरी शब दीद के काबिल थी 'बिस्मिल' की तड़प,
सुब्ह-दम कोई अगर बाला-ए-बाम आया तो क्या !

राम प्रसाद बिस्मिल

 
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Niks96

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फूल

फूल ! तू व्यर्थ रह्यो क्यों फूल ?
फूल ! तू व्यर्थ रह्यो क्यों फूल ?

हो मदान्ध निज निर्माता को गयो हृदय से भूल
रूप-रंग लखि करें चाह सब, को‍उ लखे नहिं शूल
अन्त-समय पद-दलित होयगी निश्चय तेरी धूल
चलत समीर सुहावन जब लौं समय रहे अनुकूल ।

फूल ! तू व्यर्थ रह्यो क्यों फूल ?
फूल ! तू व्यर्थ रह्यो क्यों फूल ?

यौवन मद-मत्सर में काट्यो, पर-हित कियो न भूल
अम्ब कहाँ से मिल सकता है यदि बो दिए बबूल
नश्वर देह मिले माटी में होकर नष्ट समूल
प्यारे ! घटत आयुक्षण पल-पल जय हरि मंगल मूल

फूल ! तू व्यर्थ रह्यो क्यों फूल ?
फूल ! तू व्यर्थ रह्यो क्यों फूल ?

राम प्रसाद बिस्मिल



 
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Supremo

“And...here...we...go...”
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फूल

फूल ! तू व्यर्थ रह्यो क्यों फूल ?
फूल ! तू व्यर्थ रह्यो क्यों फूल ?

हो मदान्ध निज निर्माता को गयो हृदय से भूल
रूप-रंग लखि करें चाह सब, को‍उ लखे नहिं शूल
अन्त-समय पद-दलित होयगी निश्चय तेरी धूल
चलत समीर सुहावन जब लौं समय रहे अनुकूल ।

फूल ! तू व्यर्थ रह्यो क्यों फूल ?
फूल ! तू व्यर्थ रह्यो क्यों फूल ?

यौवन मद-मत्सर में काट्यो, पर-हित कियो न भूल
अम्ब कहाँ से मिल सकता है यदि बो दिए बबूल
नश्वर देह मिले माटी में होकर नष्ट समूल
प्यारे ! घटत आयुक्षण पल-पल जय हरि मंगल मूल

फूल ! तू व्यर्थ रह्यो क्यों फूल ?
फूल ! तू व्यर्थ रह्यो क्यों फूल ?

राम प्रसाद बिस्मिल



:celebconf::congrats:
 
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