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Fantasy कमीना चाहे नगीना

Ajju Landwalia

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ये एक व्यस्क हास्य रचना है। मै आशा करता हूँ कि आप सब मित्रो को ये महागाथा अवश्य पसन्द आएगी आप सबसे आपके प्यार और उत्साहवर्धन की अपेक्षा हैं ।
ये दो ऐसे धूर्त मित्रो की कहानी है जो एक कमसिन कन्या को छल और कपट से पाना चाहते हैं लेकिन क्या वो उसके हासिल कर पाएंगे ?


आइये देखते हैं हमलोग
 

Ajju Landwalia

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बहुत समय पहले एक विपु नाम का एक मज़दूर फैक्ट्री में पत्थर तोड़ने का कार्य करता था। फैक्ट्री के सेठ अज्जुनाथ लंडवालिया थे। बड़े ही दयालु गरीब औरतों की हमेशा मदद करने वाले।

उनके फूलो के बाग में एक भरपूर बदन की कमसिन युवती जिसका नाम केश रानी, काम करती थी। वो कजरारे नयनों, उन्नत
स्तन, पतली कमर, उन्नत नितम्ब कि मल्लिका थी, आवाज ऐसी जैसे कोयल कूक रही हो। होंठ शहद से भरपूर ,
गुलाब के फूल कि तरह कोमल जिस्म, बलखाती कमर, लहराते लंबे बाल जो उसके उन्नत नितम्बो से छेड़छाड़ करते रहते।

एक दिन वो बगिया में सेठ अज्जुनाथ जी कि पूजा के लिए फूल लेने गई तो वहां वो कपटी मज़दूर विपु क्यारियों कि खुदाई और चिनाई में व्यस्त था और उस मुर्ख ने कई फूलो और पौधों नष्ट कर दिया था यह देखकर केशु क्रोधित हो गई और उसने मेस्सी के तरह एक लात घुमाकर विपु के घनघोर काले नितम्बो पर जड़ दी

लज्जा और अपमान से विपु शर्मिंदा हो गया और मन ही मन अपमान कि ज्वाला में उसकी काली गांड भी जलकर धुंआ देने लगी, उसने एक नजर केशु के थिरकते हुए नितम्बो पर डाली और माफी मांगता हुआ चला गया।

उसी शाम गाँव के बहार वाले शमशान घाट के दायी तरफ वाली सड़क पे बने देसी दारू के अड्डे पर अपने अखण्ड चूतिया दोस्त बंसी लंगुरा के साथ मुर्गे के कपुरो कि भुर्जी और देसी दारू के साथ गांजे के सुट्टे लगा रहा था, दोनों कपटी उस दिलकश हसीना केशु से बदला लेने कि योजना पर अपना चूतिया दिमाग घिस रहे थे
देसी दारू, गांजे के सुट्टे और मुर्गे के कपूरे चबाने के बाद भी दोने मुढमति मूर्खो तरह आपस में बतिया रहे थे और कैसे उस अपूर्व सुंदरी केशु के शहद रूपी कामरस को चखा जाये अपनी चूतिया योजनाओ में लगे हुए थे


क्रमश:
 

sunoanuj

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Gajab bhaiya ji ! Bhahut hee behtarin shuruat hai …

agle bhag ki pratiksha me ….

🌷🌷🌷👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻
 

sunoanuj

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Update please mitr …. 👏🏻👏🏻👏🏻🌷🌷🌷
 
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Ajju Landwalia

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वक्त की मार ..

तभी उधर से गुजरते हुए काका लँडेत की नजर उन दोनों पे पड़ी। और वो दबे पांव उनकी योजना सुनने लगा। और जैसे ही इन दोनो अखण्ड चूतियों की योजना की भनक पता लगी उसकी आँखे क्रोध की ज्वाला में जलने लगी। बाजू फड़कने लगी।

उसका विशाल अजगरी मूसल लण्ड मारे क्रोध के फुफ्कारे मारने लगा।

और तभी उसने देखा की दोनों कपटी विपु और बंसी लंगुरा गांजे के अत्यधिक नशे में एक दूसरे की गांड सहलाने लगे थे और केशु मेरी है का गाना गा रहे थे, बीच बीच में एक दूजे की गांड में ऊँगली भी कर देते थे। यह देख काका लँडेट को इन दोनों से घृणा हो गयी और वो सीधा अजयनाथ जी की हवेली की और निकल पड़ा।

अजयनाथ जी की हवेली पहुँच कर दरबान से पता लगा की सेठजी तो गुडगाँव गए है बंसी लंगुरा के खेत जब्त करने । तभी दरबान ने काका लँडेट को बोला आप आंगन में जा के विश्रांम करो। सेठ अजयनाथ जी थोड़ी देर में आते होंगे।

आंगन में पहुंचने पर काका को अत्यंत सुरीली मादक ध्वनि में कोई गीत गुनगुनाता हुआ सुनाई दिया।

गीत के बोल ....टिप टिप बरसा पानी….पानी ने आग लगाई।

थोड़ा आगे बढ़ने पर काका लँडेट कांप उठा और सामने देखा कि ..........

सामने आंगन में कुएं के समीप वही शहद की बोतल भरपूर जवानी से लदी हुई केशु अपने उन्नत उरोजों पर एक पतला झीना सा कपड़ा लपेटे नहा रही थी। पतली कमर उभरे हुए विशाल नितम्ब गीत के बोल पर धीमे धीमे थिरक रहे थे। काका लँडेट को जैसे काठ मार गया और वही जमीन पे उकड़ू हो के बैठ गया। उसकी जबान को ताला लग गया था और वो फ़टी आँखों से ये अद्धभुत नजारा निहारने लगा था।

भूल गया कि वो किसलये यहाँ आया था।

कुएं के ठंडे पानी से गीले वो उन्नत उरोज आपस में ही उभर और सिमट रहे थे। कंदिली जाँघे आपस में रगड़ खा रही थी।

ये सब देख काका जी लँडेट का जिस्म वासना की अग्नि में धु धु करके जलने लगा। उसकी सांसे भारी हो गयी और समय थम सा गया इतना अलौकिक दृश्य देख के।

तभी आंगन के दरवाजे पे ......


क्रमशः
 

Ajju Landwalia

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तभी आंगन के दरवाजे पे बैठी कोयल के कूकने की आवाज़ से सारा वातावरण संगीतमय हो गया, केशु नामक सुंदरी का उन्मुक्त यौवन, छलकते हुए यौवन कलश,नागिन की तरह लहराते लम्बे काले बाल, उन बादामी भरपूर नितम्बो को ढंक पाने में असमर्थ थे, इन रेशमी सुखद पलो के एहसास में काका लंडैत मंत्रमुग्ध होकर बूत सा बन गया था, केशु की यौवन से भरी जवानी से उठ रही संदल सी खुशबु पुरे वातावरण में फैल गई थी।

केशु कब अपने बाल बांधकर रसोई में चली गई इसका काका को पता ही नहीं चला, वो तो बस एकटक उस कुँए, बाल्टी और लोटे को देखे जा रहा था, तभी एक तेज़ हवा के झोंके से रस्सी पर सुख रही केशु के अंगिया (ब्रा का एक प्रकार) उड़कर काका के मुंह पर आ गिरी और काका होश में आया।

अंगिया से उठती भीनी-भीनी सुगंध काका की सांसो में समाती चली गयी और काका के अंतर्मन में उतरती चली गई

तभी हवेली के दरवाजे पर अजयनाथ जी की जीप आकर रुकी। जैसे ही अजयनाथ जी की गाड़ी हवेली के पोर्च में आकर रुकी, दरबान भागता हुआ आया और सेठ जी की गाड़ी का दरवाजा खोला, सेठ अजयनाथ जी 35 वर्षीय एक गठीले बदन के स्वामी थे, रोबदार मछें , हाथ में सोने की मुठ वाली छड़ी, दोनों हाथों में सोने की अँगूठिया और शेर जैसी चाल चलते हुए वो हवेली के भीतर दाखिल हुए ।

दरबान - सेठजी वो काका लंडैत आपकी प्रतीक्षा कर रहा है।

सेठ अजयनाथ- ह्म्म्म्म… बुलाओ काका को और बैठक में सम्मानपूर्वक बैठाओ ।

दरबान- “जो हुकुम मालिक …” और वो दौड़ता हुआ आँगन में काका को ढूंढने चला गया और चिल्लाया - “अरे काका कित मर
गया रे, चल सेठजी बुला रहे हैं…”

उधर काका अभी तक केशु की सन्दली खुशबु के आनदं में मस्त था, जो की उसकी अंगिया में से आ रही थी,
दरबान की आवाज सुन कर काका हड़बड़ा उठा और जल्दी से केशु की अंगिया अपने गमझे में लपेटकर कमर में बांध ली , और दरबान के साथ बैठक की ओर चल पड़ा।

बैठक में-
सेठ अजयनाथ- ह्म्म्म्म… कहो कैसे आना हुआ काका, सब खैरियत तो है न ?
काका- राम राम मालिक । आपकी अनकुंपा से सब ठीक है, बस आपको कुछ बताना था हुज़ूर, मगर डरते हैं कही आप
क्रोधित हो जायेंगे।

सेठ अजयनाथ- बिना डरे बोलो काका, तुम हमरे पुराने मित्र हो ।

काका- मालिक हमरे दिल्ली सूबे के आबो-हवा कुछ पापी खराब करने पर तुले हैं, और हवेली की इज्जत पे
अपने गन्दी नजर रखे हैं।

इतना सनु ते ही सेठ अजयनाथ जी की आँखों में खून उतर आया और पूरी हवेली में उनकी शेर जैसी दहाड़ गूंज उठी-
“क्या बोला रहा है काका?

किसकी इतनी ज़ुर्रत जो हवेली की तरफ देखे भी ? किस दुष्ट पापी का धरती पर समय पूरा हो गया हैं ??? और उनकी दोनाली से दो शोले निकले धाय धाय

काका का डर के मारे बुरा हाल हो गया वो थरथर काँप रहा था। जो काका अभी तक केशु की सन्दली खुशबू के
आनंद में मस्त था, अब वो ही डर के मारे काँप रहा था। उसके ह्रदय में केशु की जगह मौत के डर ने ले ली।


“धाय धाय ......…”
जो जहां था वहीं रुक गया, समय जैसा थम सा गया, रसोई में सब्जी काटती हुई हुश्न की मलिका केशु रानी की डर
के मारे चाकु से ऊँगली कट गई और खून की चंद बुँदे संगेमरमर की दूधिया फर्श पर टपक पड़ी और उसके कंठ से एक महीन मगर दर्दभरी आवाज़ निकली उफ्फफ़फ़................


क्रमश :
 
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