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Adultery एक चौथाई इश्क एक तिहाई बदला

कहानी का पहला भाग खत्म हों गया तो पुराने पाठक अब ये बताइए , कहानी का कौन सा भाग शुरू करूं ?


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Naik

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वो तीनो मंदिर में आ गए थे । बाहर मूसलाधार बारिश हो रही थी ,मानो आज बहुत कुछ घटित हो जाएगा । सुबह के १० बज रहे थे पर मौसम ऐसा था कि हल्के धुंधलके और हल्की रोशनी वाली शाम हो रही है ।अंदर आ कर बाबा ने मंदिर के द्वार बंद कर दिए और अजिंक्य से बोले

" बेटा इधर बैठो , मां आप भी आओ "

अजिंक्य और आशी जा कर बाबा के सामने बैठ गए । दोनो के बीच एक बड़ी सी यज्ञबेदी थी । जिसमे आग अभी भी जल रही थी ।
" मै तुम्हे कुछ शक्तियां देना चाहता हू जिनसे तुम अपना बदला ले सकोगे । लेकिन मैं तुमसे पूछना चाहता हू कि तुम्हे आसुरी शक्ति चाहिए या देवीय ?"

बाबा ने अजिंक्य के आंखो में देख कर पूछा । बाबा की नजर मानो अजिंक्य के मन को टटोल रही थी। अजिंक्य पूछा

" दोनो में अंतर क्या है बाबा "

अब बाबा बहुत गंभीर मुद्रा में यज्ञवेदी की अग्नि को देखते हुए बोले

"आसुरी शक्ति प्राप्त होने से तुम शक्तिशाली तो बहुत हो जाओगे पर उन शक्तियों की ताकत बनाए रखने के लिए तुम्हे पाप कर्म करने होंगे । और देवीय शक्तियां को बनाए रखने के लिए तुम्हे पुण्य कर्म करने होंगे निष्पाप ,कमजोर ,बेजुबान के लिए सहृदय होना पड़ेगा । सुनने में सरल है लेकिन पुण्य कमाना पाप अर्जित करने से कहीं ज्यादा दुष्कर कार्य है । आसुरी शक्तियां तो मैं तुम्हे दे दूंगा पर देवीय शक्ति केलिए तुम्हे खुद का त्याग करना होगा । अपनी कुंडलिनी जाग्रत करनी होगी । अपने देह के पंच महाभूतों को जाग्रत करना होगा । और ये कार्य आसान नहीं है । बताओ क्या करोगे तुम ? और आखिरी में मां रतिप्रिया की शक्तियों पे अधिकार पाने के लिए तुम्हे एक आखिरी संसर्ग करना होगा और विवाह करना होगा यक्ष रीति से । बताओ तैयार हो तुम इतना सब कुछ करने के लिए ? "


अजिंक्य ध्यान से सुन रहा था सब् और समझने की कोशिश कर रहा था । कुछ देर यूं ही मौन रह कर अग्नि को देखता रहा फिर अचानक बोल पड़ा

" बाबा मैने कभी चाह कर कोई भी पाप नही किया ,कभी किसी को सताया नही । तो मैं अपने बदले के लिए और पाप नही कर सकता । मुझे कुंडलिनी ही जाग्रत करनी है । और आशी से तो मैं बिना शक्ति के भी विवाह करने को तैयार हू "

आशी ये देख कर मुस्कुरा उठी और उठ खड़ी हो कर वही एक खिड़की की ओर चल दी । खिड़की से बाहर देखने लगी
बारिश बहुत तेज हो रही थी । तूफान का आगाज था ये कुसुमपुर में । खिड़की में जल्दी लोहे को सरियों से पानी की हल्की बौछार अंदर आ रही थी तो आशी उन्हें अपनी हथेली में समेटते हुए गुनगुनाने लगी

" बदरिया सी बरसु ,घटा बन कर छाऊं
जिया तो ये चाहे , तोहे अंग लगाऊं
लाज निगोड़ी मोरी , रोके है पैयां "

अजिंक्य और बाबा एकटक आशी की तरफ देख रहे थे ,एक के आंखो में प्रेम था तो दूसरे की आंखो में वात्सल्य एक पुत्र होने का और भक्त होने का ।

" देख रहे हो अजिंक्य बेटा तुम , कई सैकड़ों जन्म में कोई ऐसा विरला ही होता है जिसे यक्षिणियो का प्रेम और सामिप्य मिलता है । तुम बहुत भाग्यशाली हो "

बाबा अजिंक्य की तरफ देखते हुए बोले

" भाग्यशाली और यक्षणियो का नही पता ,पर बाबा सौगंध है महादेव की ,कभी इस लड़की को न खुद से अलग होने दूंगा और न इसपर कोई आंच आने दूंगा ।"

अजिंक्य लगातार आशी को ही देख रहा था। बाबा बोले

" चलो फिर अनुष्ठान प्रारंभ करते है कुंडलिनी जागरण के लिए । ,लेकिन याद रखना ये प्रक्रिया बहुत पीड़ादायक होती है । तुम्हे पीड़ा सहनी पड़ेगी । एक आम मनुष्य की कुंडलिनी कई वर्षो के कठिन तपस्या के बाद जाग्रत होती है । लेकिन मैं अपनी अर्जित की हुई शक्ति से तुम्हारी कुंडलिनी जाग्रत करूंगा । और आखिरी प्रक्रिया से तुम्हे खुद गुजरना होगा । तैयार हो तुम तो अपने सारे वस्त्र उतार कर बाहर नदी से स्नान करके ये धोती पहन कर जल्दी आओ "

अजिंक्य उठा और बाहर नदी में नहाने चला गया । और आशी अभी भी खिड़की से बाहर देख रही थी ।


to be continued
Kuch paane ke liye peeda tow sehni padti h ager bagair peeda k sab kuch asani se mil jaye tow kia hi kehne saare log shaktia leker hi na ghoome
Baherhal dekhte h Ajinkya ko kitne peeda uthani padti h
Badhiya behtareen shaandaar update bhai
 

Innocent_devil

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अजिंक्य नहा कर धोती पहने बाबा के सामने यज्ञवेदी के उस पार बैठा हुआ था । और बाबा आंखे बंद करके कोई मंत्र पढ़ रहे थे। कुछ देर में बाबा ने आंखे खोली। और बोलना शुरू किया


" कुंडलिनी एक दिव्य शक्ति है जो सर्प की तरह साढ़े तीन फेरे लेकर शरीर के सबसे नीचे के चक्र मूलाधार में स्थित है। जब तक यह इस प्रकार नीचे रहती है तब तक व्यक्ति सांसारिक विषयों की ओर भागता रहता है। परन्तु जब यह जाग्रत होती है तो ऐसा प्रतीत होने लगता है कि कोई सर्पिलाकार तरंग है जो घूमती हुई ऊपर उठ रही है
हमारे शरीर में सात चक्र होते हैं। कुंडलिनी का एक छोर मूलाधार चक्र पर है और दूसरा छोर रीढ़ की हड्डी के चारों तरफ लिपटा हुआ जब ऊपर की ओर गति करता है तो उसका उद्देश्य सातवें चक्र सहस्रार तक पहुंचना होता है,
ये पूरी प्रक्रिया कई बरसों की होती है । लेकिन एक सिद्ध गुरु इसे ६ घंटे में पूरी करवा सकता है । लेकिन इस विधि में असहनीय पीड़ा होती हैं । क्या तुम तैयार हो ? "

" जी बाबा मैं तैयार हू "

अजिंक्य बोल कर अपनी आंखे मूंद लिया । बाबा अजिंक्य के पीछे आ कर बैठ गए और उन्होंने अपनी हथेली अजिंक्य के रीढ़ की हड्डी अंतिम छोर के ऊपर रख दी और बोले " तैयार हो जाओ अजिंक्य मै शुरू कर रहा हूं "

ये बोलते ही बाबा आंखे मूंद कर कोई मंत्र जाप करने लगे और अपने दाएं हाथ का अंगूठा अजिंक्य के रीढ़ की हड्डी के छोर के ऊपर रख कर दबा दिया । यहां इस जगह पर पहला चकरा मूलाधार चक्र होता है । और जब इसको जबरदस्ती से जाग्रत करने की कोशिश करते है तो बहुत पीड़ा होती है । और वही पीड़ा अजिंक्य को शुरू हो गई थी । बाहर मौसम भी और खराब होने लगा था और अजिंक्य का सर का दर्द बढ़ने लगा था । कुछ देर तक तो वो सहता रहा लेकिन कुछ ही देर में उसकी चीखे आनी शुरू हो गई थी । ऐसा लग रहा था जैसे कोई किसी की गर्दन धीमे धीमे रेत रहा हो । बाबा ने इशारे से पूछा कि बंद करें पर अजिंक्य ने मना कर दिया । बाबा वापस मंत्र जाप करने लगे ,जैसे जैसे मंत्र प्रक्रिया अपने चरम पर आ रही थी वैसे वैसे अजिंक्य की तकलीफ बढ़ गई थी । और एकसमय ऐसा आया जब अजिंक्य के आंख कान मुंह नाक से खून बहना शुरू हो गया । बाबा का मंत्र जाप खत्म हो गया था और जैसे ही खत्म हुआ वैसे ही अजिंक्य बेहोश हो कर गिर पड़ा । आशी दौड़ कर अजिंक्य के पास आई । उसके सर को अपने गोद में रख उसके खून को अपने दुपट्टे से पोंछने हुए बाबा को देखी । बाबा अजिंक्य के मुंह पर पानी छिड़क कर उसे होश में लाते हुए बोले

" मां ये तो शुरुआत है । अभी तो और तकलीफ होगी । आप सब तो जानती है "

आशी कुछ न बोली बस अजिंक्य को आंखे खोलते हुए देखती रही । अजिंक्य आंख खोल और आशी को अपने ऊपर झुके हुए देख कर मुस्कुरा कर बोला

" चिंता मत करो बाबू , मै एकदम ठीक हू। , बाबा आप आगे की प्रक्रिया शुरू कीजिए । "

ये कह कर अजिंक्य वापस बैठ गया । और बाबा ने पीछे से अजिंक्य के अंडाशय पर हाथ रखे और स्वाधिष्ठान चक्र को जाग्रत करने की प्रक्रिया करने लगे । इस चक्र को जाग्रत करते समय पसलियों और रीढ़ की हड्डी पेडू में भयंकर दर्द होता है वही दर्द अब अजिंक्य झेल रहा था । ऐसा लग रहा था। जैसे उसकी पसलियां टूट गई है और उसके पेट में कोई तलवार डाल कर काट रहा है । कुछ देर बाद उसका धीमे धीमे ठीक होने लगा था ,उसकी चीखे थमने लगी थी की अचानक उसके नाभी के आसपास भयंकर दर्द उठा । ऐसा लग रहा है कुछ फाड़ कर बाहर निकलने वाला है , ये मणिपुर चक्र की प्रक्रिया चल रही थी । अजिंक्य के मुंह से खून निकल रहा था ।। वो पानी मांग रहा था , लेकिन बाबा ने इशारे से मना कर दिया। आशी को। ,बस वो बेबसी से देख रही थी अजिंक्य की हालत । कुछ देर में अजिंक्य चीखे थम गई और दर्द भी एकदम से चला गया था । ऐसे ही प्रक्रिया चलती गई और छह चक्र को जाग्रत कर दिया गया था। अब बाबा सामने बैठे थे और। अजिंक्य से बोले

" अजिंक्य अब आखिरी चक्र की बारी है और तुम्हारे त्याग की बारी है । त्याग होगा तभी सातों चक्र जाग्रत होंगे । और इन्हे जाग्रत बनाए रखने के लिए तुम्हे योग प्राणायाम और ध्यान लगाना होगा रोजाना । तैयार हो जाओ । "

To be continued


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parkas

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अजिंक्य नहा कर धोती पहने बाबा के सामने यज्ञवेदी के उस पार बैठा हुआ था । और बाबा आंखे बंद करके कोई मंत्र पढ़ रहे थे। कुछ देर में बाबा ने आंखे खोली। और बोलना शुरू किया


" कुंडलिनी एक दिव्य शक्ति है जो सर्प की तरह साढ़े तीन फेरे लेकर शरीर के सबसे नीचे के चक्र मूलाधार में स्थित है। जब तक यह इस प्रकार नीचे रहती है तब तक व्यक्ति सांसारिक विषयों की ओर भागता रहता है। परन्तु जब यह जाग्रत होती है तो ऐसा प्रतीत होने लगता है कि कोई सर्पिलाकार तरंग है जो घूमती हुई ऊपर उठ रही है
हमारे शरीर में सात चक्र होते हैं। कुंडलिनी का एक छोर मूलाधार चक्र पर है और दूसरा छोर रीढ़ की हड्डी के चारों तरफ लिपटा हुआ जब ऊपर की ओर गति करता है तो उसका उद्देश्य सातवें चक्र सहस्रार तक पहुंचना होता है,
ये पूरी प्रक्रिया कई बरसों की होती है । लेकिन एक सिद्ध गुरु इसे ६ घंटे में पूरी करवा सकता है । लेकिन इस विधि में असहनीय पीड़ा होती हैं । क्या तुम तैयार हो ? "

" जी बाबा मैं तैयार हू "

अजिंक्य बोल कर अपनी आंखे मूंद लिया । बाबा अजिंक्य के पीछे आ कर बैठ गए और उन्होंने अपनी हथेली अजिंक्य के रीढ़ की हड्डी अंतिम छोर के ऊपर रख दी और बोले " तैयार हो जाओ अजिंक्य मै शुरू कर रहा हूं "

ये बोलते ही बाबा आंखे मूंद कर कोई मंत्र जाप करने लगे और अपने दाएं हाथ का अंगूठा अजिंक्य के रीढ़ की हड्डी के छोर के ऊपर रख कर दबा दिया । यहां इस जगह पर पहला चकरा मूलाधार चक्र होता है । और जब इसको जबरदस्ती से जाग्रत करने की कोशिश करते है तो बहुत पीड़ा होती है । और वही पीड़ा अजिंक्य को शुरू हो गई थी । बाहर मौसम भी और खराब होने लगा था और अजिंक्य का सर का दर्द बढ़ने लगा था । कुछ देर तक तो वो सहता रहा लेकिन कुछ ही देर में उसकी चीखे आनी शुरू हो गई थी । ऐसा लग रहा था जैसे कोई किसी की गर्दन धीमे धीमे रेत रहा हो । बाबा ने इशारे से पूछा कि बंद करें पर अजिंक्य ने मना कर दिया । बाबा वापस मंत्र जाप करने लगे ,जैसे जैसे मंत्र प्रक्रिया अपने चरम पर आ रही थी वैसे वैसे अजिंक्य की तकलीफ बढ़ गई थी । और एकसमय ऐसा आया जब अजिंक्य के आंख कान मुंह नाक से खून बहना शुरू हो गया । बाबा का मंत्र जाप खत्म हो गया था और जैसे ही खत्म हुआ वैसे ही अजिंक्य बेहोश हो कर गिर पड़ा । आशी दौड़ कर अजिंक्य के पास आई । उसके सर को अपने गोद में रख उसके खून को अपने दुपट्टे से पोंछने हुए बाबा को देखी । बाबा अजिंक्य के मुंह पर पानी छिड़क कर उसे होश में लाते हुए बोले

" मां ये तो शुरुआत है । अभी तो और तकलीफ होगी । आप सब तो जानती है "

आशी कुछ न बोली बस अजिंक्य को आंखे खोलते हुए देखती रही । अजिंक्य आंख खोल और आशी को अपने ऊपर झुके हुए देख कर मुस्कुरा कर बोला

" चिंता मत करो बाबू , मै एकदम ठीक हू। , बाबा आप आगे की प्रक्रिया शुरू कीजिए । "

ये कह कर अजिंक्य वापस बैठ गया । और बाबा ने पीछे से अजिंक्य के अंडाशय पर हाथ रखे और स्वाधिष्ठान चक्र को जाग्रत करने की प्रक्रिया करने लगे । इस चक्र को जाग्रत करते समय पसलियों और रीढ़ की हड्डी पेडू में भयंकर दर्द होता है वही दर्द अब अजिंक्य झेल रहा था । ऐसा लग रहा था। जैसे उसकी पसलियां टूट गई है और उसके पेट में कोई तलवार डाल कर काट रहा है । कुछ देर बाद उसका धीमे धीमे ठीक होने लगा था ,उसकी चीखे थमने लगी थी की अचानक उसके नाभी के आसपास भयंकर दर्द उठा । ऐसा लग रहा है कुछ फाड़ कर बाहर निकलने वाला है , ये मणिपुर चक्र की प्रक्रिया चल रही थी । अजिंक्य के मुंह से खून निकल रहा था ।। वो पानी मांग रहा था , लेकिन बाबा ने इशारे से मना कर दिया। आशी को। ,बस वो बेबसी से देख रही थी अजिंक्य की हालत । कुछ देर में अजिंक्य चीखे थम गई और दर्द भी एकदम से चला गया था । ऐसे ही प्रक्रिया चलती गई और छह चक्र को जाग्रत कर दिया गया था। अब बाबा सामने बैठे थे और। अजिंक्य से बोले

" अजिंक्य अब आखिरी चक्र की बारी है और तुम्हारे त्याग की बारी है । त्याग होगा तभी सातों चक्र जाग्रत होंगे । और इन्हे जाग्रत बनाए रखने के लिए तुम्हे योग प्राणायाम और ध्यान लगाना होगा रोजाना । तैयार हो जाओ । "

To be continued


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Nice and lovely update....
 

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अब बारी सहस्त्रार चक्र की थी । बाबा अजिंक्य के सामने बैठ कर उसके सर के ऊपर हाथ रखे और आंखे बंद कर मंत्रों का जाप करने लगे तेज तेज आवाज में । बाहर बिजली कड़कने की आवाज अंदर बाबा के मंत्रों और दर्द से चीखते अजिंक्य की आवाज । माहौल भयावह हो चला था । बहुत देर तक अजिंक्य दर्द सहता रहा और उसके आंख कान नाक मुंह से रक्त स्राव होता रहा और एक समय ऐसा आया जब वो अपना हृदय के ऊपर हाथ रख कर तड़पने लगा । और कुछ देर में जब मंत्र प्रक्रिया खत्म हुई तो अजिंक्य भी बेहोश हो कर जमीन पर गिर पड़ा । आशी दौड़ कर अजिंक्य के पास पहुंची अरबुस्का सर अपने गोद पर रख कर उसके सीने पर हाथ रखी तो पता चला अजिंक्य की धड़कने बंद हो चुकी थी । अजिंक्य की मृत्यु हो चुकी थी । ये पता चलते ही आशी जोर से चीखी तो बाबा ने अपनी आंखे खोली।

" शिवकेश ये तो मर चुके है है शिवकेश "
आशी रोते हुए बोल रही थी । बाबा ने अजिंक्य की नब्ज देखी तो तो बहुत धीमे ,बहुत ही धीमे हो गई थी । बाबा आशी की तरफ मुस्कुराते हुए बोले

" मां आप अपनी दिव्य शक्ति से देखो , अजिंक्य मरा नहीं है , बस अपनी आत्मा को अपने शरीर से बाहर निकाल कर बाहर विचरण कर रहा है । यही तो अंतिम क्रिया थी ,यही तो त्याग था । "

आशी ये सुनते ही अपने यक्षिणी भी रूप में आ गई और उसकी आंखो से एक आभा निकलने लगी ,उसे अजिंक्य का सूक्ष्म शरीर (आत्मा ) दिखने लगी थी । अजिंक्य अपने सूक्ष्म शरीर के साथ महा देव की मूर्ति के सामने हाथ जोड़े खड़ा था । जैसे ही आशी देखी तो वो खुश हो गई और बोल पड़ी
" बाबू तुम जिंदा हो। ,तुम जिंदा हो बाबू "

अजिंक्य का सूक्ष्म शरीर आशी के तरफ मुड़ा ,अपने शरीर का पास आया और बोला
" पता नही मै जिंदा हू या मर गया हू पर मुझे एक असीम शांति का आभास हो रहा है । "

अब बाबा बोल पड़े " अजिंक्य ध्यान केंद्रित करो और अपने शरीर में आने की चेष्टा करो "

अजिंक्य बाबा की आवाज सुनते ही अपने शरीर के ऊपर बैठ कर आंखे मूंद कर ध्यान केंद्रित किया और ॐ का जाप करने लगा । धीरे धीरे उसका सूक्ष्म शरीर से एक तीव्र प्रकाश निकलने लगा और अजिंक्य के मूल शरीर में समाने लगा । इस प्रकाश से अजिंक्य का शरीर हष्ट पुष्ट होने लगा , एक और बॉडी बिल्डर जैसा हो गया । उसके चेहरे पर एक अलग ही आभा आ गई थी ,जो कोई भी देखे तो बिना आकर्षित रहे बिना नहीं हो सकता था । ये तो ऊपर ऊपर का बदलाव था। जो दिख रहा था । कुछ देर में अजिंक्य का सूक्ष्म शरीर अपने मूल शरीर में समा गया और अजिंक्य को होश आ गया । अजिंक्य को होश देख आशी खुश हो गई और उसे जोर से अपने सीने से चिपका ली। और उसको चूमने लगी ।

बाबा ने आगे बोला
" तुम्हारी कुंडलिनी जाग्रत हो चुकी है अजिंक्य और समय के साथ तुम्हे अपनी शक्तियों का भी भान हो जायेगा । पर ज्ञात रहे कभी तुम्हे किसी निर्बल ,निष्पाप को सताना नही और गृहस्थ आश्रम में होते हुए भी योगी बने रहना होगा । "

अजिंक्य सब सुनते हुए सर हिला कर अपना समर्थन दिया

" अब तुम्हे आशी और मां रतिप्रिया से विवाह करना होगा । तुम जा कर वापस नदी में नहा कर आओ ,मै विवाह की प्रक्रिया आरंभ करता हू "

अजिंक्य सुनते ही उठा और नदी की तरफ चल दिया
बाबा आशी की तरफ देखते हुए बोला
" मां आप विवाह तो करना चाहती है ना ? "
आशी महादेव को देखते हुए बोली
" शिवकेष मै तो न जाने कब से इस क्षण का इंतजार कर रही थी , मै तब से इस क्षण का इंतजार कर रही थी जब से आशी बेटी और इन्हे उस बरगद की शाखा पर कपड़ा बांधते देखा था । "

" तो मां आप भी अब अपने असली रूप में आ जाइए अब "
शिवकेश बाबा ने आशी को देख कर कहा।

इधर अजिंक्य नदी में नहा कर सिर्फ धोती में मंदिर के आया तो बाबा और आशी उसे देखते ही रह गए । ऐसा लग रहा था कोई देव चला आ रहा है । लंबा चौड़ा ,शरीर और चेहरे में अलग ही आभा थी । लग रहा था साक्षात कामदेव आ गए है । इधर अजिंक्य ने देखा आशी वापस से स्वर्ण आभूषण और स्वर्ण रंग के वस्त्रों में आ गई थी । साक्षात स्वर्ग की अप्सरा सी लग रही थी ।

दोनो ही यज्ञवेदी के सामने बैठ गए और बाबा ने यक्ष रीति से विवाह प्रारंभ किया । कुछ देर। में पूरी प्रक्रिया हुई और बाबा बोले

" अजिंक्य और आशी आज से तुम दोनो पति पत्नी हुए । तुम दोनो का बंधन ७४ योनि ७४ जन्म तक रहेगा जब तक तुम लोग निर्वाण को प्राप्त नहीं करोगे । आज से दोनो को एक दूसरे की शक्ति का अंश प्राप्त होगा । दोनो की जीवन की डोर एक दूसरे से बंध चुकी है । और इसी के साथ। मेरा कार्य और जन्म का उद्देश्य सफल हुआ । जाओ तुम दोनो "

आशी अजिंक्य दोनो उठ खड़े हुए । आशी झुक कर अजिंक्य के पैर छूने लगी तो अजिंक्य ने उसे अपने सीने से लगा लिया ।

" यार मैं तो मंगलसूत्र लाया ही नही । कोई बात नही वापस शहर चलते है वही से खरीद कर दे दूंगा । अरे तुम्हारे घर भी तो चलना है "

अजिंक्य आशी के माथे पर चूमता हुआ बोला । और आशी बस शर्मा कर हम्म्म कह कर रह जाती है । दोनो शिवकेश बाबा से विदा ले कर वापस शहर की ओर निकल जाते है । जो अब उनका कर्मक्षेत्र बनने वाला था ।


to be continued

Ab yaha se kahani kuch dino ke liye rok raha hun ,readers ke feed back jaanne ke liye ।

 
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अजिंक्य नहा कर धोती पहने बाबा के सामने यज्ञवेदी के उस पार बैठा हुआ था । और बाबा आंखे बंद करके कोई मंत्र पढ़ रहे थे। कुछ देर में बाबा ने आंखे खोली। और बोलना शुरू किया


" कुंडलिनी एक दिव्य शक्ति है जो सर्प की तरह साढ़े तीन फेरे लेकर शरीर के सबसे नीचे के चक्र मूलाधार में स्थित है। जब तक यह इस प्रकार नीचे रहती है तब तक व्यक्ति सांसारिक विषयों की ओर भागता रहता है। परन्तु जब यह जाग्रत होती है तो ऐसा प्रतीत होने लगता है कि कोई सर्पिलाकार तरंग है जो घूमती हुई ऊपर उठ रही है
हमारे शरीर में सात चक्र होते हैं। कुंडलिनी का एक छोर मूलाधार चक्र पर है और दूसरा छोर रीढ़ की हड्डी के चारों तरफ लिपटा हुआ जब ऊपर की ओर गति करता है तो उसका उद्देश्य सातवें चक्र सहस्रार तक पहुंचना होता है,
ये पूरी प्रक्रिया कई बरसों की होती है । लेकिन एक सिद्ध गुरु इसे ६ घंटे में पूरी करवा सकता है । लेकिन इस विधि में असहनीय पीड़ा होती हैं । क्या तुम तैयार हो ? "

" जी बाबा मैं तैयार हू "

अजिंक्य बोल कर अपनी आंखे मूंद लिया । बाबा अजिंक्य के पीछे आ कर बैठ गए और उन्होंने अपनी हथेली अजिंक्य के रीढ़ की हड्डी अंतिम छोर के ऊपर रख दी और बोले " तैयार हो जाओ अजिंक्य मै शुरू कर रहा हूं "

ये बोलते ही बाबा आंखे मूंद कर कोई मंत्र जाप करने लगे और अपने दाएं हाथ का अंगूठा अजिंक्य के रीढ़ की हड्डी के छोर के ऊपर रख कर दबा दिया । यहां इस जगह पर पहला चकरा मूलाधार चक्र होता है । और जब इसको जबरदस्ती से जाग्रत करने की कोशिश करते है तो बहुत पीड़ा होती है । और वही पीड़ा अजिंक्य को शुरू हो गई थी । बाहर मौसम भी और खराब होने लगा था और अजिंक्य का सर का दर्द बढ़ने लगा था । कुछ देर तक तो वो सहता रहा लेकिन कुछ ही देर में उसकी चीखे आनी शुरू हो गई थी । ऐसा लग रहा था जैसे कोई किसी की गर्दन धीमे धीमे रेत रहा हो । बाबा ने इशारे से पूछा कि बंद करें पर अजिंक्य ने मना कर दिया । बाबा वापस मंत्र जाप करने लगे ,जैसे जैसे मंत्र प्रक्रिया अपने चरम पर आ रही थी वैसे वैसे अजिंक्य की तकलीफ बढ़ गई थी । और एकसमय ऐसा आया जब अजिंक्य के आंख कान मुंह नाक से खून बहना शुरू हो गया । बाबा का मंत्र जाप खत्म हो गया था और जैसे ही खत्म हुआ वैसे ही अजिंक्य बेहोश हो कर गिर पड़ा । आशी दौड़ कर अजिंक्य के पास आई । उसके सर को अपने गोद में रख उसके खून को अपने दुपट्टे से पोंछने हुए बाबा को देखी । बाबा अजिंक्य के मुंह पर पानी छिड़क कर उसे होश में लाते हुए बोले

" मां ये तो शुरुआत है । अभी तो और तकलीफ होगी । आप सब तो जानती है "

आशी कुछ न बोली बस अजिंक्य को आंखे खोलते हुए देखती रही । अजिंक्य आंख खोल और आशी को अपने ऊपर झुके हुए देख कर मुस्कुरा कर बोला

" चिंता मत करो बाबू , मै एकदम ठीक हू। , बाबा आप आगे की प्रक्रिया शुरू कीजिए । "

ये कह कर अजिंक्य वापस बैठ गया । और बाबा ने पीछे से अजिंक्य के अंडाशय पर हाथ रखे और स्वाधिष्ठान चक्र को जाग्रत करने की प्रक्रिया करने लगे । इस चक्र को जाग्रत करते समय पसलियों और रीढ़ की हड्डी पेडू में भयंकर दर्द होता है वही दर्द अब अजिंक्य झेल रहा था । ऐसा लग रहा था। जैसे उसकी पसलियां टूट गई है और उसके पेट में कोई तलवार डाल कर काट रहा है । कुछ देर बाद उसका धीमे धीमे ठीक होने लगा था ,उसकी चीखे थमने लगी थी की अचानक उसके नाभी के आसपास भयंकर दर्द उठा । ऐसा लग रहा है कुछ फाड़ कर बाहर निकलने वाला है , ये मणिपुर चक्र की प्रक्रिया चल रही थी । अजिंक्य के मुंह से खून निकल रहा था ।। वो पानी मांग रहा था , लेकिन बाबा ने इशारे से मना कर दिया। आशी को। ,बस वो बेबसी से देख रही थी अजिंक्य की हालत । कुछ देर में अजिंक्य चीखे थम गई और दर्द भी एकदम से चला गया था । ऐसे ही प्रक्रिया चलती गई और छह चक्र को जाग्रत कर दिया गया था। अब बाबा सामने बैठे थे और। अजिंक्य से बोले

" अजिंक्य अब आखिरी चक्र की बारी है और तुम्हारे त्याग की बारी है । त्याग होगा तभी सातों चक्र जाग्रत होंगे । और इन्हे जाग्रत बनाए रखने के लिए तुम्हे योग प्राणायाम और ध्यान लगाना होगा रोजाना । तैयार हो जाओ । "

To be continued


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Sunder tarike se har shabd ko likha hai har prakriya ko samjhaya dard peeda ashayniya hoti hai jo usko bhi ho rahi thi shaktiyan jo paani thi use sahi hai good update
 
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अब बारी सहस्त्रार चक्र की थी । बाबा अजिंक्य के सामने बैठ कर उसके सर के ऊपर हाथ रखे और आंखे बंद कर मंत्रों का जाप करने लगे तेज तेज आवाज में । बाहर बिजली कड़कने की आवाज अंदर बाबा के मंत्रों और दर्द से चीखते अजिंक्य की आवाज । माहौल भयावह हो चला था । बहुत देर तक अजिंक्य दर्द सहता रहा और उसके आंख कान नाक मुंह से रक्त स्राव होता रहा और एक समय ऐसा आया जब वो अपना हृदय के ऊपर हाथ रख कर तड़पने लगा । और कुछ देर में जब मंत्र प्रक्रिया खत्म हुई तो अजिंक्य भी बेहोश हो कर जमीन पर गिर पड़ा । आशी दौड़ कर अजिंक्य के पास पहुंची अरबुस्का सर अपने गोद पर रख कर उसके सीने पर हाथ रखी तो पता चला अजिंक्य की धड़कने बंद हो चुकी थी । अजिंक्य की मृत्यु हो चुकी थी । ये पता चलते ही आशी जोर से चीखी तो बाबा ने अपनी आंखे खोली।

" शिवकेश ये तो मर चुके है है शिवकेश "
आशी रोते हुए बोल रही थी । बाबा ने अजिंक्य की नब्ज देखी तो तो बहुत धीमे ,बहुत ही धीमे हो गई थी । बाबा आशी की तरफ मुस्कुराते हुए बोले

" मां आप अपनी दिव्य शक्ति से देखो , अजिंक्य मरा नहीं है , बस अपनी आत्मा को अपने शरीर से बाहर निकाल कर बाहर विचरण कर रहा है । यही तो अंतिम क्रिया थी ,यही तो त्याग था । "

आशी ये सुनते ही अपने यक्षिणी भी रूप में आ गई और उसकी आंखो से एक आभा निकलने लगी ,उसे अजिंक्य का सूक्ष्म शरीर (आत्मा ) दिखने लगी थी । अजिंक्य अपने सूक्ष्म शरीर के साथ महा देव की मूर्ति के सामने हाथ जोड़े खड़ा था । जैसे ही आशी देखी तो वो खुश हो गई और बोल पड़ी

" बाबू तुम जिंदा हो। ,तुम जिंदा हो बाबू "

अजिंक्य का सूक्ष्म शरीर आशी के तरफ मुड़ा ,अपने शरीर का पास आया और बोला

" पता नही मै जिंदा हू या मर गया हू पर मुझे एक असीम शांति का आभास हो रहा है । "

अब बाबा बोल पड़े " अजिंक्य ध्यान केंद्रित करो और अपने शरीर में आने की चेष्टा करो "

अजिंक्य बाबा की आवाज सुनते ही अपने शरीर के ऊपर बैठ कर आंखे मूंद कर ध्यान केंद्रित किया और ॐ का जाप करने लगा । धीरे धीरे उसका सूक्ष्म शरीर से एक तीव्र प्रकाश निकलने लगा और अजिंक्य के मूल शरीर में समाने लगा । इस प्रकाश से अजिंक्य का शरीर हष्ट पुष्ट होने लगा , एक और बॉडी बिल्डर जैसा हो गया । उसके चेहरे पर एक अलग ही आभा आ गई थी ,जो कोई भी देखे तो बिना आकर्षित रहे बिना नहीं हो सकता था । ये तो ऊपर ऊपर का बदलाव था। जो दिख रहा था । कुछ देर में अजिंक्य का सूक्ष्म शरीर अपने मूल शरीर में समा गया और अजिंक्य को होश आ गया । अजिंक्य को होश देख आशी खुश हो गई और उसे जोर से अपने सीने से चिपका ली। और उसको चूमने लगी ।

बाबा ने आगे बोला

" तुम्हारी कुंडलिनी जाग्रत हो चुकी है अजिंक्य और समय के साथ तुम्हे अपनी शक्तियों का भी भान हो जायेगा । पर ज्ञात रहे कभी तुम्हे किसी निर्बल ,निष्पाप को सताना नही और गृहस्थ आश्रम में होते हुए भी योगी बने रहना होगा । "

अजिंक्य सब सुनते हुए सर हिला कर अपना समर्थन दिया

" अब तुम्हे आशी और मां रतिप्रिया से विवाह करना होगा । तुम जा कर वापस नदी में नहा कर आओ ,मै विवाह की प्रक्रिया आरंभ करता हू "

अजिंक्य सुनते ही उठा और नदी की तरफ चल दिया
बाबा आशी की तरफ देखते हुए बोला
" मां आप विवाह तो करना चाहती है ना ? "

आशी महादेव को देखते हुए बोली
" शिवकेष मै तो न जाने कब से इस क्षण का इंतजार कर रही थी , मै तब से इस क्षण का इंतजार कर रही थी जब से आशी बेटी और इन्हे उस बरगद की शाखा पर कपड़ा बांधते देखा था । "

" तो मां आप भी अब अपने असली रूप में आ जाइए अब "

शिवकेश बाबा ने आशी को देख कर कहा।

इधर अजिंक्य नदी में नहा कर सिर्फ धोती में मंदिर के आया तो बाबा और आशी उसे देखते ही रह गए । ऐसा लग रहा था कोई देव चला आ रहा है । लंबा चौड़ा ,शरीर और चेहरे में अलग ही आभा थी । लग रहा था साक्षात कामदेव आ गए है । इधर अजिंक्य ने देखा आशी वापस से स्वर्ण आभूषण और स्वर्ण रंग के वस्त्रों में आ गई थी । साक्षात स्वर्ग की अप्सरा सी लग रही थी ।

दोनो ही यज्ञवेदी के सामने बैठ गए और बाबा ने यक्ष रीति से विवाह प्रारंभ किया । कुछ देर। में पूरी प्रक्रिया हुई और बाबा बोले

" अजिंक्य और आशी आज से तुम दोनो पति पत्नी हुए । तुम दोनो का बंधन ७४ योनि ७४ जन्म तक रहेगा जब तक तुम लोग निर्वाण को प्राप्त नहीं करोगे । आज से दोनो को एक दूसरे की शक्ति का अंश प्राप्त होगा । दोनो की जीवन की डोर एक दूसरे से बंध चुकी है । और इसी के साथ। मेरा कार्य और जन्म का उद्देश्य सफल हुआ । जाओ तुम दोनो "

आशी अजिंक्य दोनो उठ खड़े हुए । आशी झुक कर अजिंक्य के पैर छूने लगी तो अजिंक्य ने उसे अपने सीने से लगा लिया ।

" यार मैं तो मंगलसूत्र लाया ही नही । कोई बात नही वापस शहर चलते है वही से खरीद कर दे दूंगा । अरे तुम्हारे घर भी तो चलना है "

अजिंक्य आशी के माथे पर चूमता हुआ बोला । और आशी बस शर्मा कर हम्म्म कह कर रह जाती है । दोनो शिवकेश बाबा से विदा ले कर वापस शहर की ओर निकल जाते है । जो अब उनका कर्मक्षेत्र बनने वाला था ।


to be continued

Ab yaha se kahani kuch dino ke liye rok raha hun ,readers ke feed back jaanne ke liye ।
Ab inki kundali puri tarah se jagrit ho gayi hai to inhe apna badla lena hai to vo theek hai lekin inhe dusre logon ki bhi help karni chahiye shaktiyan kya hongi vo to aage pata padega par ye mangalsutra kyu nahi laya jab use pata tha shadi honi hi hai ab aashi ke ghar jana hai vaha dekhte hai kya hota hai body ban gayi badiya hai takat se hi sab kuch hota hai aashi ka pyaar hi iski takat tha ab body ban gayi shaktiya aagayi hai ab ye nahi chodega kisi ko bhi aur to aur ye apna sharir chod ke apni aatma se kahi bhi aa ja sakta hai ye bhi badiya hai mere hisaab se ye jab yog karega tab ye shayad bhraman karke aayega apne suchm sharir se baaki aage aap jano
 

Innocent_devil

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Ab inki kundali puri tarah se jagrit ho gayi hai to inhe apna badla lena hai to vo theek hai lekin inhe dusre logon ki bhi help karni chahiye shaktiyan kya hongi vo to aage pata padega par ye mangalsutra kyu nahi laya jab use pata tha shadi honi hi hai ab aashi ke ghar jana hai vaha dekhte hai kya hota hai body ban gayi badiya hai takat se hi sab kuch hota hai aashi ka pyaar hi iski takat tha ab body ban gayi shaktiya aagayi hai ab ye nahi chodega kisi ko bhi aur to aur ye apna sharir chod ke apni aatma se kahi bhi aa ja sakta hai ye bhi badiya hai mere hisaab se ye jab yog karega tab ye shayad bhraman karke aayega apne suchm sharir se baaki aage aap jano
कुंडलिनी शक्ति असीमित और अनंत शक्ति देती है । हम जो देव और asuro में शक्तियां देखते है सब कुंडलिनी शक्ति है । तपस्या ,योग ध्यान से कोई भी कुंडलini ko jagrat kar sakta hai । Par bina guru ke ye sab ghatak hota hai । Ab aage dekhte hai k ajinkya k paas takat kya kya hai ।
 

Naik

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अजिंक्य नहा कर धोती पहने बाबा के सामने यज्ञवेदी के उस पार बैठा हुआ था । और बाबा आंखे बंद करके कोई मंत्र पढ़ रहे थे। कुछ देर में बाबा ने आंखे खोली। और बोलना शुरू किया


" कुंडलिनी एक दिव्य शक्ति है जो सर्प की तरह साढ़े तीन फेरे लेकर शरीर के सबसे नीचे के चक्र मूलाधार में स्थित है। जब तक यह इस प्रकार नीचे रहती है तब तक व्यक्ति सांसारिक विषयों की ओर भागता रहता है। परन्तु जब यह जाग्रत होती है तो ऐसा प्रतीत होने लगता है कि कोई सर्पिलाकार तरंग है जो घूमती हुई ऊपर उठ रही है
हमारे शरीर में सात चक्र होते हैं। कुंडलिनी का एक छोर मूलाधार चक्र पर है और दूसरा छोर रीढ़ की हड्डी के चारों तरफ लिपटा हुआ जब ऊपर की ओर गति करता है तो उसका उद्देश्य सातवें चक्र सहस्रार तक पहुंचना होता है,
ये पूरी प्रक्रिया कई बरसों की होती है । लेकिन एक सिद्ध गुरु इसे ६ घंटे में पूरी करवा सकता है । लेकिन इस विधि में असहनीय पीड़ा होती हैं । क्या तुम तैयार हो ? "

" जी बाबा मैं तैयार हू "

अजिंक्य बोल कर अपनी आंखे मूंद लिया । बाबा अजिंक्य के पीछे आ कर बैठ गए और उन्होंने अपनी हथेली अजिंक्य के रीढ़ की हड्डी अंतिम छोर के ऊपर रख दी और बोले " तैयार हो जाओ अजिंक्य मै शुरू कर रहा हूं "

ये बोलते ही बाबा आंखे मूंद कर कोई मंत्र जाप करने लगे और अपने दाएं हाथ का अंगूठा अजिंक्य के रीढ़ की हड्डी के छोर के ऊपर रख कर दबा दिया । यहां इस जगह पर पहला चकरा मूलाधार चक्र होता है । और जब इसको जबरदस्ती से जाग्रत करने की कोशिश करते है तो बहुत पीड़ा होती है । और वही पीड़ा अजिंक्य को शुरू हो गई थी । बाहर मौसम भी और खराब होने लगा था और अजिंक्य का सर का दर्द बढ़ने लगा था । कुछ देर तक तो वो सहता रहा लेकिन कुछ ही देर में उसकी चीखे आनी शुरू हो गई थी । ऐसा लग रहा था जैसे कोई किसी की गर्दन धीमे धीमे रेत रहा हो । बाबा ने इशारे से पूछा कि बंद करें पर अजिंक्य ने मना कर दिया । बाबा वापस मंत्र जाप करने लगे ,जैसे जैसे मंत्र प्रक्रिया अपने चरम पर आ रही थी वैसे वैसे अजिंक्य की तकलीफ बढ़ गई थी । और एकसमय ऐसा आया जब अजिंक्य के आंख कान मुंह नाक से खून बहना शुरू हो गया । बाबा का मंत्र जाप खत्म हो गया था और जैसे ही खत्म हुआ वैसे ही अजिंक्य बेहोश हो कर गिर पड़ा । आशी दौड़ कर अजिंक्य के पास आई । उसके सर को अपने गोद में रख उसके खून को अपने दुपट्टे से पोंछने हुए बाबा को देखी । बाबा अजिंक्य के मुंह पर पानी छिड़क कर उसे होश में लाते हुए बोले

" मां ये तो शुरुआत है । अभी तो और तकलीफ होगी । आप सब तो जानती है "

आशी कुछ न बोली बस अजिंक्य को आंखे खोलते हुए देखती रही । अजिंक्य आंख खोल और आशी को अपने ऊपर झुके हुए देख कर मुस्कुरा कर बोला

" चिंता मत करो बाबू , मै एकदम ठीक हू। , बाबा आप आगे की प्रक्रिया शुरू कीजिए । "

ये कह कर अजिंक्य वापस बैठ गया । और बाबा ने पीछे से अजिंक्य के अंडाशय पर हाथ रखे और स्वाधिष्ठान चक्र को जाग्रत करने की प्रक्रिया करने लगे । इस चक्र को जाग्रत करते समय पसलियों और रीढ़ की हड्डी पेडू में भयंकर दर्द होता है वही दर्द अब अजिंक्य झेल रहा था । ऐसा लग रहा था। जैसे उसकी पसलियां टूट गई है और उसके पेट में कोई तलवार डाल कर काट रहा है । कुछ देर बाद उसका धीमे धीमे ठीक होने लगा था ,उसकी चीखे थमने लगी थी की अचानक उसके नाभी के आसपास भयंकर दर्द उठा । ऐसा लग रहा है कुछ फाड़ कर बाहर निकलने वाला है , ये मणिपुर चक्र की प्रक्रिया चल रही थी । अजिंक्य के मुंह से खून निकल रहा था ।। वो पानी मांग रहा था , लेकिन बाबा ने इशारे से मना कर दिया। आशी को। ,बस वो बेबसी से देख रही थी अजिंक्य की हालत । कुछ देर में अजिंक्य चीखे थम गई और दर्द भी एकदम से चला गया था । ऐसे ही प्रक्रिया चलती गई और छह चक्र को जाग्रत कर दिया गया था। अब बाबा सामने बैठे थे और। अजिंक्य से बोले

" अजिंक्य अब आखिरी चक्र की बारी है और तुम्हारे त्याग की बारी है । त्याग होगा तभी सातों चक्र जाग्रत होंगे । और इन्हे जाग्रत बनाए रखने के लिए तुम्हे योग प्राणायाम और ध्यान लगाना होगा रोजाना । तैयार हो जाओ । "

To be continued


ye shakti milne wale chapter ke baad kahani rok dunga kuch din ke liye logo ke feed back jaanne ke liye
6 kundali jagrit kerne m itni takleef huwi h tow aakhri kundali jagrit kerne m kia halat hoti h Ajinkya ki
Dekhat kia hota h
 
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Naik

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अब बारी सहस्त्रार चक्र की थी । बाबा अजिंक्य के सामने बैठ कर उसके सर के ऊपर हाथ रखे और आंखे बंद कर मंत्रों का जाप करने लगे तेज तेज आवाज में । बाहर बिजली कड़कने की आवाज अंदर बाबा के मंत्रों और दर्द से चीखते अजिंक्य की आवाज । माहौल भयावह हो चला था । बहुत देर तक अजिंक्य दर्द सहता रहा और उसके आंख कान नाक मुंह से रक्त स्राव होता रहा और एक समय ऐसा आया जब वो अपना हृदय के ऊपर हाथ रख कर तड़पने लगा । और कुछ देर में जब मंत्र प्रक्रिया खत्म हुई तो अजिंक्य भी बेहोश हो कर जमीन पर गिर पड़ा । आशी दौड़ कर अजिंक्य के पास पहुंची अरबुस्का सर अपने गोद पर रख कर उसके सीने पर हाथ रखी तो पता चला अजिंक्य की धड़कने बंद हो चुकी थी । अजिंक्य की मृत्यु हो चुकी थी । ये पता चलते ही आशी जोर से चीखी तो बाबा ने अपनी आंखे खोली।

" शिवकेश ये तो मर चुके है है शिवकेश "
आशी रोते हुए बोल रही थी । बाबा ने अजिंक्य की नब्ज देखी तो तो बहुत धीमे ,बहुत ही धीमे हो गई थी । बाबा आशी की तरफ मुस्कुराते हुए बोले

" मां आप अपनी दिव्य शक्ति से देखो , अजिंक्य मरा नहीं है , बस अपनी आत्मा को अपने शरीर से बाहर निकाल कर बाहर विचरण कर रहा है । यही तो अंतिम क्रिया थी ,यही तो त्याग था । "

आशी ये सुनते ही अपने यक्षिणी भी रूप में आ गई और उसकी आंखो से एक आभा निकलने लगी ,उसे अजिंक्य का सूक्ष्म शरीर (आत्मा ) दिखने लगी थी । अजिंक्य अपने सूक्ष्म शरीर के साथ महा देव की मूर्ति के सामने हाथ जोड़े खड़ा था । जैसे ही आशी देखी तो वो खुश हो गई और बोल पड़ी

" बाबू तुम जिंदा हो। ,तुम जिंदा हो बाबू "

अजिंक्य का सूक्ष्म शरीर आशी के तरफ मुड़ा ,अपने शरीर का पास आया और बोला

" पता नही मै जिंदा हू या मर गया हू पर मुझे एक असीम शांति का आभास हो रहा है । "

अब बाबा बोल पड़े " अजिंक्य ध्यान केंद्रित करो और अपने शरीर में आने की चेष्टा करो "

अजिंक्य बाबा की आवाज सुनते ही अपने शरीर के ऊपर बैठ कर आंखे मूंद कर ध्यान केंद्रित किया और ॐ का जाप करने लगा । धीरे धीरे उसका सूक्ष्म शरीर से एक तीव्र प्रकाश निकलने लगा और अजिंक्य के मूल शरीर में समाने लगा । इस प्रकाश से अजिंक्य का शरीर हष्ट पुष्ट होने लगा , एक और बॉडी बिल्डर जैसा हो गया । उसके चेहरे पर एक अलग ही आभा आ गई थी ,जो कोई भी देखे तो बिना आकर्षित रहे बिना नहीं हो सकता था । ये तो ऊपर ऊपर का बदलाव था। जो दिख रहा था । कुछ देर में अजिंक्य का सूक्ष्म शरीर अपने मूल शरीर में समा गया और अजिंक्य को होश आ गया । अजिंक्य को होश देख आशी खुश हो गई और उसे जोर से अपने सीने से चिपका ली। और उसको चूमने लगी ।

बाबा ने आगे बोला

" तुम्हारी कुंडलिनी जाग्रत हो चुकी है अजिंक्य और समय के साथ तुम्हे अपनी शक्तियों का भी भान हो जायेगा । पर ज्ञात रहे कभी तुम्हे किसी निर्बल ,निष्पाप को सताना नही और गृहस्थ आश्रम में होते हुए भी योगी बने रहना होगा । "

अजिंक्य सब सुनते हुए सर हिला कर अपना समर्थन दिया

" अब तुम्हे आशी और मां रतिप्रिया से विवाह करना होगा । तुम जा कर वापस नदी में नहा कर आओ ,मै विवाह की प्रक्रिया आरंभ करता हू "

अजिंक्य सुनते ही उठा और नदी की तरफ चल दिया
बाबा आशी की तरफ देखते हुए बोला
" मां आप विवाह तो करना चाहती है ना ? "

आशी महादेव को देखते हुए बोली
" शिवकेष मै तो न जाने कब से इस क्षण का इंतजार कर रही थी , मै तब से इस क्षण का इंतजार कर रही थी जब से आशी बेटी और इन्हे उस बरगद की शाखा पर कपड़ा बांधते देखा था । "

" तो मां आप भी अब अपने असली रूप में आ जाइए अब "

शिवकेश बाबा ने आशी को देख कर कहा।

इधर अजिंक्य नदी में नहा कर सिर्फ धोती में मंदिर के आया तो बाबा और आशी उसे देखते ही रह गए । ऐसा लग रहा था कोई देव चला आ रहा है । लंबा चौड़ा ,शरीर और चेहरे में अलग ही आभा थी । लग रहा था साक्षात कामदेव आ गए है । इधर अजिंक्य ने देखा आशी वापस से स्वर्ण आभूषण और स्वर्ण रंग के वस्त्रों में आ गई थी । साक्षात स्वर्ग की अप्सरा सी लग रही थी ।

दोनो ही यज्ञवेदी के सामने बैठ गए और बाबा ने यक्ष रीति से विवाह प्रारंभ किया । कुछ देर। में पूरी प्रक्रिया हुई और बाबा बोले

" अजिंक्य और आशी आज से तुम दोनो पति पत्नी हुए । तुम दोनो का बंधन ७४ योनि ७४ जन्म तक रहेगा जब तक तुम लोग निर्वाण को प्राप्त नहीं करोगे । आज से दोनो को एक दूसरे की शक्ति का अंश प्राप्त होगा । दोनो की जीवन की डोर एक दूसरे से बंध चुकी है । और इसी के साथ। मेरा कार्य और जन्म का उद्देश्य सफल हुआ । जाओ तुम दोनो "

आशी अजिंक्य दोनो उठ खड़े हुए । आशी झुक कर अजिंक्य के पैर छूने लगी तो अजिंक्य ने उसे अपने सीने से लगा लिया ।

" यार मैं तो मंगलसूत्र लाया ही नही । कोई बात नही वापस शहर चलते है वही से खरीद कर दे दूंगा । अरे तुम्हारे घर भी तो चलना है "

अजिंक्य आशी के माथे पर चूमता हुआ बोला । और आशी बस शर्मा कर हम्म्म कह कर रह जाती है । दोनो शिवकेश बाबा से विदा ले कर वापस शहर की ओर निकल जाते है । जो अब उनका कर्मक्षेत्र बनने वाला था ।


to be continued

Ab yaha se kahani kuch dino ke liye rok raha hun ,readers ke feed back jaanne ke liye ।
7wi kundali jagrit kerne k time maut ko chu ker tak se wapas aaya h
Aasi or yakshini ki shaadi ho gayi bahot badhiya
Ab dekhte h aage kia hota h
Shaandaar lajawab update bhai
 
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