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Incest एक अनोखा बंधन - पुन: प्रारंभ (Completed)

Sangeeta Maurya

Well-Known Member
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Sangeeta Maurya ji... Tabiyat mein halka sudhar hai... Waise kut Dena chahiye... Itni thand hai yha toh pitai krne se thand toh Bhaag jayegi... Or defend toh mujhe krna hi tha... Ye itni badi baat bhi nhi thi... Bss over possessiveness ho gyi thi... Verna ye normal hai or aapka saath isliye diya kyunki... :love3::love3::love3::love3::love3:
बेटा मैं मारूंगी तो सर्दी दूर नहीं होगी..........................हड्डियां टूट जाएँगी................. :bat1: ......................................मेरा साथ देने के लिए शुक्रिया :alright3:
इसीलिए तो अपडेट नहीं आया क्योंकि पिज्जा खा के पसर गए होंगे बिस्तर पर और आपने क्या कहा था पिछली बार की लेखक जी सिर्फ दाल रोटी खाते है या कभी कभी मैगी तो ये पिज्जा कैसे बन गया। मुझे तो इसमें आपकी मिली भगत और साजिश की बू आ रही है । आप दोनो के पिज्जा पुराण के चक्कर में हम पाठको का अपडेट लेट हो रहा है जिसकी किसी को कोई चिंता ही नहीं है। लगता है डॉक्टर को बोल कर लेखक बाबू की मूंग की दाल की खिचड़ी शुरू करवानी पड़ेगी तभी हमारा अपडेट आएगा।
मैं किसी घोटाले में शामिल नहीं हूँ........................आपके इस मज़ाक के चक्क्र में मुझे भी धमकी मिल गई है....................इसलिए अब कोई भी खाने पीने को ले कर इन्हें कुछ नहीं कहेगा........................ लेना न देना खामखा इनके हतः का बना खाने से भी जाऊं मैं.............................
Sangeeta Maurya Bhauji,

Akela Keshav hi nahi hai...

Ek poora jhundh hai un deevanon ka, jinka yaha se bahishkar hua, lekin fir bhi sab abhi tak saath me hi hain !

Thanks !!
एकता में ताक़त है

नई update थोड़ी देर में आएगी और आपके सवालों के जवाब लाएगी|






देवी जी,

सबसे पहले तो आप जो मेरे बचाव में बोलीं उसके लिए आपका धन्यवाद| आपका यूँ मेरा बचाव करना आपका मेरे ऊपर पूर्णविश्वास दिखाता है| जो लोग मुझे पूरी तरह से नहीं जानते वो मुझे judge करते हैं, यदि वो मुझे judge करने से पहले एक बार बात करते तो मैं उन्हीं अपनी मजबूरी समझा देता| खैर, इस दुनिया में हमें सभी को सफाई देने की जर्रूरत नहीं है क्योंकि हर एक व्यक्ति आपके बारे में एक perception रखता है|

ये जो तुमने इतनी सारी खाने-पीने की चीजों का नाम लिया है इससे मेरे मुँह में भी पानी आ गया था इसीलिए मैंने घर पर पिज़्ज़ा बना कर खाया था, मुझे ललचाने के चक्कर में तुम ही तड़प रही हो! :hehe:




दिल्ली में बस दो ही छोले-भठूरे वाले सबसे ज्यादा मशहूर हैं; बाबा नागपाल लाजपत नगर 4 और सीताराम दीवान चंद पहाड़गंज|
बाकी हल्दीराम और अन्य छोटे-मोटे छोले-भठूरे विक्रेता स्वाद में कहीं न कहीं पीछे रह जाते हैं|



मैं किसी से गुस्सा नहीं हूँ, बस समय निकाल कर update लिखने में व्यस्त था|

और ये मेरी चुगली करना बंद करो वरना कभी कुछ बना कर नहीं खिलाऊँगा!

Update थोड़ी देर में आ रही है|


"इतनी बड़ी बात नहीं थी"?





आप सब ने मेरे खाने पीने पर इतनी नज़र लगाई की मेरा पेट खराब हो गया! :sigh:

बाथरूम की commode पर बैठ कर update लिखा मैंने!
अब मैं किसी को भी खाने पीने को ले कर आपके साथ मज़ाक करने को नहीं कहूँगी..........................अब अपने हाथ का बना खाना खिलाना बंद न करना 🙏 ........................... इतना छोले भठूरे के बारे में लिख दिया की अब सच्ची छोले भठूरे खाने का मन कर रहा है :girlcry:
इकत्तीसवाँ अध्याय: घर संसार
भाग - 12


अब तक अपने पढ़ा:


कमरे से बाहर आ कर मैंने अपन बनियानी और पजामा पहना तथा माँ के कमरे में प्रवेश किया| स्तुति के रोने से माँ भी जाग गईं थी और वो अपनी कोशिश करते हुए स्तुति को चुप कराने की कोशिश कर रहीं थीं| मुझे देख माँ बोलीं; " शुगी (स्तुति) ने सुसु कर दिया था, लगता है बहु शुगी को डायपर (diaper) पहनाना भूल गई थी|" मैंने माँ की बात का कोई जवाब नहीं दिया और स्तुति को गोदी में ले कर अपने कमरे में आ गया| स्तुति के कपड़े बदल उसे लाड कर मैंने चुप कराया तथा अपने सीने से लगा कर सारी रात जागते हुए कटी|


अब आगे:


गुस्सा
इंसान का सबसे बड़ा दुश्मन होता है, जब ये इंसान के दिमाग पर हावी होता है तो इंसान वो भी कह जाता है जो उसे नहीं कहना चाहिए था इसलिए जब गुस्सा आये तो इंसान को चुप रहना चाहिए और सोच-समझ कर बोलना चाहिए|

जीवन की ये सीख बड़ी ही सरल है मगर इस सीख को समझने वाले ही नासमझी करते हैं| यही हाल संगीता का भी है, आजतक उसने अपने जीवन की दो कमियाँ:

1. एकदम से गुस्सा करना और

2. अपने किये वादे पर अटल न रहना नहीं सुधारीं|



अगली सुबह 6 बजे मैंने दोनों बच्चों के सर पर हाथ फेर कर उन्हें जगाया| सबसे पहले नेहा जागी और मुझे स्तुति को गोदी में लिए हुए दिवार का सहारा ले कर बैठे देख नेहा को चिंता होने लगी| अपनी बेटी को चिंता मुक्त करने के लिए मैंने अपने होठों पर मुस्कान चिपकाई और नेहा को अपने गले लगने को बुलाया| नेहा मेरे गले लगी और बोली; "पापा जी, आप रात भर सोये नहीं न? जर्रूर इस शैतान (स्तुति) ने नहीं सोने दिया होगा!" मैंने नेहा की बात का जवाब बस सर हाँ में हिला कर दिया और उसे स्कूल के लिए तैयार होने को कहा| नेहा तैयार होने गई तो मैंने आयुष के सर पर हाथ फेरते हुए उसे पुकारा| थोड़ा कुनमुना कर आखिर आयुष उठ ही गया और मुझे सुबह की गुड मॉर्निंग वाली पप्पी दे कर बाथरूम चला गया|

आयुष को स्कूल के लिए अक्सर मैं ही तैयार करा था, परन्तु आज मेरा मन उदास था और स्तुति को अपने से जुदा करने का नहीं था| "बेटा जी, आज आप खुद तैयार हो जाओगे?" मैंने आयुष से प्यार से कहा तो आयुष ख़ुशी-ख़ुशी अपना सर हाँ में हिलाने लगा| आयुष खुद तैयार होने लगा था और इधर मैं स्तुति के माथे को चूम खुसफुसाते हुए बोला; "बेटा, आप मेरा खून हो...मेरे बच्चे हो...कोई अगर आपके बारे में कुछ गंदा कहेगा न तो मैं उसे छोड़ूँगा नहीं!" मेरे भीतर मौजूद एक पिता का दिल संगीता के मुँह से निकली उस एक गाली के कारण झुँझला उठा था| दिमाग में एक अजीब सा गुस्सा भर चूका था जो आज किसी न किसी पर तो निकलना था|



उधर संगीता का डर के मारे बुरा हाल था, कल रात के मेरे रौद्र रूप को देख उसकी हिम्मत नहीं पड़ रही थी की वो मेरे सामने आये इसलिए संगीता सुबह से ले कर अभी तक मेरे कमरे में नहीं आई थी, उसे जब भी कुछ चाहिए होते वो आयुष या नेहा को कमरे में भेज देती| लेकिन अब तो बच्चों के भी स्कूल जाने का समय हो गया था और ऐसे में अब संगीता को बच्चों का भी सहारा नहीं बचा था| माँ बच्चों को स्कूल छोड़ने गईं तो संगीता को मजबूरन मेरे लिए चाय ले कर कमरे में आना पड़ा| सर झुकाये हुए, चाय का कप थामे हुए संगीता ने कमरे में प्रवेश किया| इधर जैसे ही मैंने संगीता को कमरे में आते हुए देखा मैंने फौरन अपना मुँह दूसरी तरफ मोड़ लिया क्योंकि संगीता को देखते ही मुझे उसके द्वारा रात में मेरी बिटिया को दी हुई गाली याद आ रही थी जिससे मेरा गुस्सा फटने की कगार पर आ चूका था| मैं गुस्से में आ कर कहीं संगीता पर कोई बर्बरता न दिखा दूँ इसी के लिए मैंने अपना मुँह मोड़ लिया था|

वहीं संगीता ने जब तिरछी निगाहों से देखा की मैंने उससे यूँ मुँह मोड़ रखा है तो पहले तो उसका दिल टूट कर चकना चूर हो गया और फिर डर की शीत लहर उसके पूरे जिस्म में दौड़ गई! जो थोड़ी बहुत हिम्मत कर संगीता मेरे लिए चाय ले कर आई थी वो हिम्मत भी मेरा गुस्सा देख कर जवाब दे गई थी| कुछ देर बाद जब माँ बच्चों को उनकी स्कूल वैन में बिठाकर आईं तो उन्हें संगीता की नम आँखें दिखीं| माँ ने उससे बहुत पुछा मगर संगीता से डर के मारे कुछ कहा नहीं गया| आखिरकर माँ मेरे पास आईं और मुझसे संगीता की नम आँखों का कारण पुछा| "क्या एक माँ अपने ही खून को गाली दे सकती है? और वो भी कोई ऐसी-वैसी गाली नहीं...'हरामज़ादी' जैसी गाली!" मैं दाँत पीसते हुए माँ से बोला| मेरा सवाल सुन और मेरी अंत में कही बात सुन माँ को मेरे गुस्सा होने का कारण समझ आया| " कल रात स्तुति के अचानक रोने से संगीता के मुँह से ये गाली निकली थी! आप जानते हो न इस गाली का मतलब? क्या एक माँ को अपनी ही बेटी को ऐसी गाली देना उचित है?!... स्तुति छोटी सी बच्ची है, उसे क्या पता की उसके यूँ रोने से सबकी नींद टूटती है?! और गलती तो स्तुति की भी नहीं थी, संगीता उसे डायपर पहनाना भूल गई थी...अब अगर स्तुति ने सुसु कर बिस्तर गीला कर दिया तो ये बेचारी बच्ची क्या करे?!" मेरी आवाज़ गुस्से के कारण तेज़ हो चली थी| माँ जानती थीं की मैं कभी भी बिना किसी सही वजह के गुस्सा नहीं होता इसलिए माँ मुझे शांत करवाते हुए बोलीं; "बस बेटा! तेरा गुस्सा होना जायज है लेकिन ज़रा बहु की तरफ से तो सोच कर देख| वो बेचारी गाँव में पली-बढ़ी है, जहाँ माँ-बाप अक्सर बच्चों को गालियाँ दे कर डाँटते रहते हैं| माँ-बाप द्वारा दी गई ये गालियाँ दिल से या नफरत के कारण नहीं दी जातीं, ये तो केवल गुस्सा होने पर दी जातीं हैं इसीलिए गाँव के बच्चे इन गालियों को दिल से नहीं लगाते|

तुझे ये गाली इस लिए चुभ रही है क्योंकि जिस माहौल में तू पला-बढ़ा हुआ है उस माहौल में मैंने या तेरे पिताजी ने तुझे कभी गालियाँ नहीं दी इसलिए तू ये बर्दाश्त नहीं कर पा रहा की तेरी लाड़ली बिटिया को कोई गाली दे| मैं ये नहीं कहती की बहु का शुगी (स्तुति) को गाली देना सही था, ये बिलकुल गलत था और मैं इसके लिए संगीता को समझाऊँगी लेकिन फिलहाल के लिए तू उसे माफ़ कर दे! वो बेचारी सुबह से तेरे गुस्से के कारण डरी-सहमी बैठी है और मुझसे उसकी ये हालत नहीं देखि जाती|" माँ की कही बात मुझे ऐसी लग रही थी मानो वो संगीता का बचाव कर रहीं हों इसलिए मैं गुस्से में उठ खड़ा हुआ और बोला; "ये गाँव-देहात नहीं है, ये हमारा घर है! और संगीता को मैंने बहुत पहले ही समझा दिया था की उसका यूँ बच्चों पर बेवजह गुस्सा करना, उन्हें गाली देना या मारने के लिए हाथ उठाना मुझे पसंद नहीं! ये सब जानते-बूझते भी मेरी बात न मानना मुझे पसंद नहीं!" इतना कह मैं कमरे से बाहर निकला तो मैंने देखा की संगीता बाहर छुपी हुई मेरी और माँ की सारी बात सुन रही है| संगीता को देख कर मैंने मुँह मोड़ा और स्तुति को ले कर छत पर आ गया|



कुछ देर बाद माँ ने मुझे भीतर बुलाया और नाश्ते करने के लिए अपने साथ बिठाया| तबतक स्तुति भी जाग गई थी और उसे दूध पीना था, माँ ने मुझे स्तुति को संगीता को सौंपने को कहा ताकि संगीता उसे दूध पिला दे| नाश्ता करने के बाद मैं साइट पर फ़ोन कर के काम का जायजा ले रहा था, जब माँ ने मुझे अपने पास बुलाया; "बेटा, तुम दोनों जा कर बाहर हवा-बयार खा कर आओ तब तक मैं स्तुति को सँभालती हूँ|" ये कहते हुए माँ ने अपने हाथ स्तुति को गोदी लेने के लिए बढाए| दरअसल ये माँ की कोशिश थी की मैं और संगीता आपस में बात कर के ये मामला सुलझा लें, परन्तु मैं इसके लिए कतई राज़ी नहीं था इसलिए मैं मन ही मन संगीता के साथ कहीं न जाने का बहाना ढूँढने लगा| तभी मैंने गौर किया तो पाया की माँ स्तुति को अपनी गोदी में लेने के लिए बाहें फैलाएं हैं, माँ के यूँ स्तुति को गोदी लेने की इच्छा को देख मुझे अपना बहाना मिल गया था| मुझे लगा की मेरी बिटिया मेरी गोदी से उतरेगी ही नहीं और मुझे संगीता के साथ कहीं न जाने का बहाना मिल जायेगा, लेकिन मेरी बिटिया भी अपनी दादी जी की ही तरह चाहती थी की मैं उसकी मम्मी के साथ बाहर जाऊँ तभी तो स्तुति बड़े आराम से बिना कोई नख़रा किये अपनी दादी जी की गोदी में चली गई! अब ये दृश्य देख कर मैं तो हैरान रह गया और आँखें फाड़े स्तुति को देखने लगा की वो कैसे अपनी दादी जी की गोदी में इतनी आसानी से चली गई?!

उधर माँ ने स्तुति को अपनी गोदी में ले कर लाड करना शुरू कर दिया था; “मेरी शुगी...मेरी लाडो!" माँ को अपनी बेटी को लाड करते देख मेरा मन प्रसन्न हो गया और दिमाग में भरा गुस्सा कम होने लगा|

"अब यहाँ मेरे सर पर क्यों खड़ा है, जा कर तैयार हो और संगीता को बाहर घुमा कर ला!" माँ ने मुझे प्यार से डाँट लगाते हुए कहा| माँ की ये प्यारभरी डाँट सुन कर मुझे बुरा नहीं लगा, गुस्सा आया जब उन्होंने संगीता का नाम लिया| अब माँ ने आदेश दिया था तो उनकी बात माननी थी वरना घर में मेरे कारण क्लेश हो जाता| चेहरे पर नकली मुस्कराहट लिए मैं अपने कमरे में घुसा और तैयार हो गया| मेरे तैयार होने के बाद संगीता तैयार हुई और सर झुकाये मेरे सामने खड़ी हो गई| हम दोनों मियाँ-बीवी घर से निकले और गाडी में बैठ गए, घर से गाडी तक के पुरे रास्ते संगीता सर झुका कर चल रही थी, न उसने और न ही मैंने बात शुरू करने की कोई कोशिश की|



संगीता के साथ होने से मेरा गुस्सा कम नहीं हो रहा था और ऐसे में मेरा मन कहीं घूमने जाने का नहीं था| जब मन नहीं था तो दिमाग ने कहा की क्यों पैसे बर्बाद किये जाएँ, इससे अच्छा है की घर से निकला कर कुछ काम किया जाए| दिमाग की बात मानते हुए मैंने गाडी साइट की ओर मोड़ दी| साइट पहुँच कर जब मैं गाडी पर करने लगा तो संगीता जान गईं की मेरा मन घूमने का नहीं था इसीलिए मैं उसे यहाँ साइट पर लाया हूँ लेकिन फिर भी उसने मुझसे इसके लिए कोई शिकायत नहीं की|

उधर मुझे और संगीता को देख संतोष मेरे पास आया और हम दोनों के यूँ अचानक आने का कारण पूछने लगा; "कुछ नहीं यहीं से गुज़र रहे थे, सोचा साइट भी देखते चलें|" मैंने नकली मुस्कान लिए हुए कहा| मैं और संतोष सीढ़ी चढ़ ऊपर लेंटर पड़ने के लिए जो सेटरिंग बाँधी गई थी वो देखने चल पड़े| वहीं संगीता भी चेहरे पर नकली मुस्कान लिए मेरे पीछे चलने लगी, मैं और संतोष बातों में लग गए थे इसलिए हमारा ध्यान संगीता पर गया ही नहीं|



"बड़े दिन बाद आये साहब?" हमारी साइट पर काम करने वाली एक दीदी बोलीं| इन दीदी का एक बेटा है जो पढ़ने में अच्छा था इसलिए मैंने उसका दाखिला सरकारी स्कूल में करवा दिया था, इनका पति सोझी शराब पीता था और हमारी ही साइट पर काम करता था| शराब और नशे की लत ने सोझी का शरीर खत्म कर दिया था| जब शराब के पैसे खत्म होते तो साइट पर आ कर हाजरी लगा कर काम करता और पैसे मिलते ही गोल हो जाता| दीदी के शिकायत करने पर मैं सोझी को कई बार डाँट चूका था मगर वो साला कुत्ते की दुम सुधरने का नाम ही नहीं लेता था| मैंने उसे जब काम से निकालने की धमकी दी तो वो कुछ दिन के लिए सुधरा क्योंकि उस जैसे नशेड़ी को कोई दूसरा काम नहीं देता, पर फिर कुछ दिन बाद वही कमीनापन जारी हो गया| मेरी दीदी की इसी प्रकार मदद करने के कारण जब भी मैं साइट पर आता तो दीदी मुझसे बात करने आ जाती थीं|

खैर, दीदी की आवाज़ सुन मैं पीछे मुड़ा और उन्हें भी वही बात कही जो मैंने संतोष से कही थी| "ये लो मिलो संगीता से..." मैंने बस इतना ही कहा था की दीदी ने हाथ जोड़कर संगीता से नमस्ते की; "राम-राम बहु रानी" जवाब में संगीता ने हाथ जोड़कर अच्छे से राम-राम की|

"सोझी अब तो तंग नहीं करता न आपको?" मैंने दीदी से उनके पति सोझी के बारे में पुछा तो दीदी मायूस होते हुए बोलीं; "पहले तो शराब पीने के लिए पैसे माँगते समय गाली-गलौज करता था, अब तो हाथ भी उठाता है! आप उसे समझाओ की मुझे तंग न किया करे|" दीदी की बात सुन मुझे अपना गुस्सा निकालने के लिए सही निशाना मिल गया; "देखो दीदी, समझाया तो मैंने उसे बहुत बार है इसलिए अब मुझमें उसे बोल कर समझाने का सबर नहीं है| ये आदमी अब बस लात की भाषा समझेगा, आप कहोगी तो अभी समझा दूँगा!" जब मैंने लात की भाषा का जिक्र किया तो संगीता समझ गई की मैं क्या करने वाला हूँ, वो मुझे रोकने की कोशिश करने के लिए मेरी तरफ देखने लगी| जैसे ही हमारी नजरें मिलीं उसने कुछ कहने के लिए अपने लब खोले मगर मेरी आँखों में उसे गुस्से की ज्वाला नज़र आई और संगीता की हिमत जवाब दे गई! इधर दीदी मेरी बात सुन कर बोली; "आपको उसे जैसे समझाना है, समझाओ पर मेरी जान छुड़वाओ!" दीदी हाथ जोड़ते हुए बोलीं| मैंने अपना पर्स निकाला और उन्हें 1,000/- रुपये दिए| दीदी बहुत स्वाभिमानी थीं और उन्होंने आजतक मुझसे रुपये-पैसे की मदद नहीं माँगी थी इसलिए मेरे यूँ पैसे देने पर वो हैरान हुईं; "ये पैसे उसकी दवाई कराने के लिए दे रहा हूँ!" इतना कह मैंने अपने दोनों हाथों की उँगलियाँ चटकाईं|



मैंने दीदी के बेटे राकेश को बुलाया और उससे बोला; "बेटा, जा कर अपने पापा को बुलाओ और ये कहना की ठेकेदार ने बुलाया है| मेरा नाम मत लेना!" मेरी बता सुन राकेश तुरंत दौड़ गया| मैंने राकेश से ठेकेदार यानी संतोष का नाम इसलिए लेने को कहा था की मैं देखना चाहता था की संतोष ने किस कदर लेबरों की लगाम खींच कर रखी है| करीब 10 मिनट के बाद सोझी ऊपर आया, जितना समय उसने आने में लिया था उससे मेरा गुस्सा बढ़ा ही था कम नहीं हुआ था|

मुझे देख सोझी एकदम से सकपका गया और बोला; "अरे साहब आप ने बुलाया था?! लड़का बोला की ठेकेदार बुला रहा है!" सोझी अपनी सफाई देने लगा| "राकेश को मैंने ही कहा था की वो तुझे मेरा नाम न बताये, वरना क्या पता तू भाग जाता?!" मैंने शैतानी मुस्कान लिए हुए कहा और फिर इशारे से सोझी को अपने साथ सीमेंट के बोरों वाले कमरे में चलने को कहा| सोझी को लगा की मैं उससे बोर उठवाऊँगा इसलिए वो बेफिक्र मेरे पीछे चल पड़ा| संतोष जानता था की कमरे में क्या होने वाला है इसलिए वो मेरे पीछे नहीं आया, संगीता मेरे पीछे आ रही थी मगर संतोष ने उसे भी इशारे से रोक दिया| संगीता जानती थी की उसके कारण मुझे आया गुस्सा आज सोझी पर निकलेगा इसलिए संगीता को मेरी थोड़ी चिंता हो रही थी| अब देखा जाए तो मेरा ये गुस्सा बिलकुल सही जगह निकल रहा था, एक स्त्री को यदि उसका पति परेशान करता है तो उस पति को सबक तो सीखाना बनता है|



मैं दीदी और सोझी सीमेंट के बोरोन वाले कमरे में आ गए थे;

मैं: हाँ भई सोझी एक बात तो बता, मैंने तुझे कितनी बार समझाया की दीदी को तंग न किया कर?

मैंने बड़े आराम से बात शुरू करते हुए पुछा|

सोझी: मैं तो इसे कुछ कहता ही नहीं!

सोझी बेक़सूर होने का ड्रामा करते हुए बड़ी नरमी से बोला| झूठ से मुझे सख्त नफरत रही है इसलिए मैंने सोझी के कान पर एक जोरदार झापड़ रसीद किया और अपना सवाल पुनः दोहराया;

मैं: झूठ नहीं! जितना पुछा है उतना बता! कितनी बार मैंने तुझे प्यार से समझाया?

मेरे एक झापड़ से सोझी हिल गया था इसलिए वो डर के मारे काँपते हुए बोला;

सोझी: त...तीन बार साहब!

सोझी के जवाब देते ही मैंने उसके गाल पर एक और थप्पड़ रसीद करते हुए कहा;

मैं: पहलीबार तुझे प्यार से समझाया था न की शराब पीने के पैसे दीदी से मत माँगा कर?

मैंने सवाल पुछा तो सोझी ने सर झुका लिया| मुझे जवाब नहीं मिला तो मैंने उसके गाल पर एक और थप्पड़ धर दिया और तब जा कर सोझी के मुँह से निकला;

सोझी: ह...हाँ साहब!

मैं: दूसरी बार तुझे थोड़ा डाँट के समझाया था न की दीदी को तंग मत किया कर?

मेरा सवाल सुनते ही सोझी ने हाँ में सर हिलाया क्योंकि वो जानता था की अगर उसने जवाब नहीं दिया तो फिर मेरे से मार खायेगा| लेकिन मार तो उसे फिर भी पड़ी;

मैं: मुँह से बोल भोस्डिके!

मैंने गाली देते हुए गरज के पुछा तो सोझी डर से हकलाते हुए बोला;

सोझी: ह...हाँ साहब!

मैं: तीसरी बार तुझे मैंने फिर डाँटा था की दीदी और राकेश को शराब के लिए तंग मत किया कर?

इस बार मेरे पूछे सवाल पर सोझी एकदम से बोला;

सोझी: हाँ साहब!

सोझी को लगा था की उसके जवाब देने पर मैं नहीं मारूँगा मगर उसे एक जोरदार थप्पड़ फिर भी पड़ा जिससे वो जमीन पर जा गिरा;

मैं: बहनचोद जब तीन बार तुझे समझाया, तो तेरी खोपड़ी में बात नहीं घुसी की अपनी बीवी को तंग नहीं करना है?

मैं गुस्से से चिल्लाया|

सोझी: म...माफ़ कर दो साहब! अब नहीं...

सोझी माफ़ी माँगते हुए बोला, पर उसकी बात पूरी हो पाती उसे पहले ही मैंने उसके पेट में लात मारी;

मैं: तुझे माफ़ कर दूँ कुत्ते? दीदी पर हाथ उठाने लगा है और मुझे कहता है माफ़ कर दूँ तुझे?

ये कहते हुए मैंने सोझी की कमीज पकड़ उसे उठाया और दिवार से दे मारा|

मैं: भोस्डिके अब तुझे समझाऊँगा नहीं, अब तो तुझे पहले कुटुँगा और फिर पुलिस थाने ले जा कर घरेलू उत्पीड़न की धरा 2005 के तहत जेल में बंद करवाऊँगा! जब पुलिस वाला रोज़ तेरी गांड में तेल लगा कर डंडा डालेगा न, तब तेरी अक्ल ठिकाने आएगी!

मेरे पुलिस की धमकी देने से सोझी की फ़ट के चार हो गई और उसने मेरे पाँव पकड़ लिए;

सोझी: म...माफ़ कर दो साहब! अब..अब नहीं करूँगा...मैं..अब के ऐसी गलती की तो आपका जूता मेरा सर!

सोझी रोते हुए गिड़गिड़ा कर बोला|

उधर दीदी दरवाजे पर खड़ीं अपने पति को मुझसे पिटता हुआ चुप-चाप देख रहीं थीं| मैंने उनकी तरफ देखते हुए कहा;

मैं: अब से ये आदमी आपको तंग करे न तो एक जलती हुई लकड़ लेना और अपनी कलाई पर दाग़ देना| फिर उसी हालत में पुलिस थाने दौड़ जाना और थानेदार से कहना की आपके पति ने आपको जला कर मारने की कोशिश की है! बस इतना ही आपको करना है, बाकी का सारा काम पुलिस कर लेगी!

मैंने दीदी को अपने पति को ब्लैकमेल करने का एक हथियार दे दिया था| इधर मेरी ये बात सुन सोझी की गांड फ़ट गई थी! वो फिर से मेरे पाँव पकड़ गिगिडाने लगा;

सोझी: नहीं साहब...अब से मैं ऐसा कुछ नहीं करुँगा!

मैंने झटके से अपना पैर सोझी की पकड़ से छुड़ाया और दीदी से बोला;

मैं: ज्यादा नहीं मारा मैंने इसे बस हल्दी वाला दूध पिला देना|

इतना कह मैं कमरे से बाहर आने को हुआ की मैंने देखा की दीदी के पीछे खड़ी संगीता ने ये सारा घटनाक्रम देख लिया है| जहाँ एक तरफ सोझी को पीटने से मेरा गुस्सा शांत हो गया था वहीं संगीता का ये मार-पीट देख डर के मारे बुरा हाल था!



संतोष से हिसाब ले कर मैं घर के लिए चल पड़ा| रास्ते में दिषु का फ़ोन आया, उसने बताया की उसके खड़ूस बॉस से उसे ऑडिट पर दिल्ली से बाहर भेज दिया है, ये सुन कर मैं मन ही मन खुश हुआ की कम से कम मुझे अपनी बेटी को छोड़ कर दिषु के साथ पार्टी तो नहीं जाना पड़ेगा! "साले वापस आ कर पार्टी चाहिए मुझे!" दिषु मुझे फ़ोन पर धमकाते हुए बोला| "हाँ-हाँ भाई वापस आ कर ले लियो पार्टी!" मैंने नकली मुस्कान से कहा| ये बात मैंने जानबूझ कर संगीता को सुनाने के लिए कही थी ताकि कहीं संगीता इस फ़ोन के बहाने से मुझसे बात न करने लग पड़े|

घर पहुँच कर माँ ने जब पुछा की हम कहाँ गए थे तो मैंने उन्हें सच बता दिया; "हिसाब-किताब लेने के लिए साइट पर गए थे|" मेरी बात सुन मुझे डाँटते हुए बोलीं; "तुझे मैंने बहु को घुमाने को कहा था, साइट पर जाने को नहीं!" मैंने माँ की कही बात का कोई जवाब नहीं दिया और कमरे में हाथ-मुँह धोने चला गया| मेरे जाने के बाद माँ ने संगीता से बात की और संगीता ने उन्हें साइट पर जो हुआ वो सब बता दिया| जब मैं बाहर आया तो माँ ने मुझे घूर कर देखा वो मुझे डाँटना चाहतीं थीं मगर उन्हें चिंता इस बात की थी की कहीं उनके डाँटने से मैं फिर से गुस्से से न भर जाऊँ!

वहीं मैं भी माँ के मुझ घूरने से जान गया था की संगीता ने जर्रूर मेरी चुगली कर दी है, परन्तु मुझे माँ के घूरने से कोई फर्क नहीं पड़ा क्योंकि मेरा ध्यान तो मेरी बिटिया रानी पर था| मैंने बिना कुछ कहे स्तुति को अपनी गोदी में लिया और उसे लाड कर जगाने लगा; "मेला बच्चा...सोनू-मोनू बच्चा...उठा जाओ...अभी हम नहाई-नहाई करेंगे!" मेरे लाड कर जगाने से स्तुति उठी और जम्हाई लेने लगी| अपनी बिटिया को यूँ जम्हाई लेते देख मुझे उस पर और भी अधिक प्यार आने लगा; "awwwwww!!" मैं स्तुति को ले कर कमरे में आया और मस्त अंग्रेजी गाना चलाया तथा गाना सुनते हुए स्तुति को नहलाया| गाना सुनते हुए स्तुति को भी नहाने में मज़ा आ रहा था इसलिए मेरी बिटिया के मुँह से दो बार ख़ुशी की किलकारी भी निकली|



कुछ देर बाद दोनों बच्चे स्कूल से लौटे और आ कर सीधा मुझसे लिपट गए| बच्चों के घर पर आने से घर का माहौल पुनः शांत हो गया था| मैं, माँ और संगीता बच्चों की मौजूदगी में बिलकुल वैसे ही बर्ताव कर रहे थे जैसे आमतौर पर करते थे| हाँ इतना अवश्य था की मैं संगीता से बात नहीं कर रहा था| आयुष छोटा था इसलिए वो ये बात समझ नहीं पाया मगर नेहा को शक होने लगा था| दोपहर का खाना खा कर माँ ने मुझे दोनों बच्चों को सुला कर आने को कहा| नेहा ने अपनी दादी जी की बात सुन ली थी और उसका शक्की दिमाग दौड़ने लगा था| स्तुति पहले ही सो चुकी थी इसलिए मैंने दोनों बच्चों को लाड कर सुलाया और माँ के पास आया| अब मुझे नहीं पता था की मेरी बिटिया सोने का नाटक कर रही है तथा मेरे कमरे से बाहर आते ही वो भी मेरे पीछे-पीछे दबे पाँव बाहर आ रही है|



माँ और संगीता बैठक में बैठे थे और कुछ बात कर रहे थे, परन्तु मुझे देखते ही संगीता नजरें झुका कर चुप हो गई|

माँ: बेटा, इतना गुस्सा नहीं करते!

माँ ने बड़े प्यार से मुझे समझाते हुए बात शुरू की|

माँ: बेटा, इंसान जिस परिवेश में पला-बढ़ा होता है उसका थोड़ा-बहुत असर इंसान में आ ही जाता है| तेरी परवरिश अच्छे परिवेश में हुई, तुझे मैंने और तेरे पिताजी ने अच्छी-अच्छी बातें सिखाई, लोगों का आदर करना सिखाया, गाली नहीं देना सिखाया, तुझ में अच्छे संस्कार डाले ताकि तू एक अच्छा इंसान बन सके| लेकिन संगीता गाँव-देहात के परिवेश में रही है, वहाँ माँ-बाप कहाँ इतना ध्यान देते है की बच्चे के सामने गाली नहीं देते?!

फिर ऐसा नहीं है की संगीता को अपने कहे इस गंदे शब्द पर कोई ग्लानि नहीं है?! देख बेचारी को, सुबह से तेरे डर के मारे ये कुछ खा-पे भी नहीं रही थी, वो तो मैंने इसे समझाया तब जा कर इसने खाना खाया| इस बार इसे माफ़ कर दे, अगलीबार इसने ऐसी गलती की न तो मैं इसकी टाँगें तोड़ दूँगी!

माँ ने मुझे समझाते हुए कहा तथा मुझे हँसाने के लिए बात के अंत में संगीता को प्यारभरी धमकी भी दे डाली, परन्तु संगीता को देख मुझे गुस्सा आ रहा था इसलिए माँ के मज़ाक करने पर भी मैं नहीं हँसा|

मैं: माँ आपका ये तर्क मैं समझता हूँ मगर संगीता को मैं उसके गाली देने के लिए गाँव में प्यार से समझा चूका था, लेकिन उसके बाद भी ये गलती फिर दोहराई गई! क्या गारंटी है की आगे ये गलती फिर नहीं दुहराई जाएगी?! जब मेरे प्यार से समझाने से संगीता को अक्ल नहीं आई तो आपके समझाने से क्या ख़ाक अक्ल आएगी?!

इतना कह मैं उठ कर बच्चों के लिए चॉकलेट लेने के लिए घर से बाहर चल दिया| कुछ देर और घर में रहता तो माँ फिर से मुझे समझाने लग जातीं इसलिए मैं जानबूझ कर घर से निकला था| माँ ने भी कुछ नहीं कहा क्योंकि वो जानती थीं की मेरा गुस्सा शांत होने में थोड़ा समय लगता है|



दो दिन बीत गए और इन दो दिनों में मैं और संगीता पूरी तरह से कटे-कटे रहे| संगीता ने सारा दिन रसोई में या फिर माँ के साथ बिताना शुरू कर दिया, और तो और रात में भी वो माँ के पास सोती थी तथा बच्चे मेरे पास सोते थे| मैं और संगीता बस हमारी बेटी स्तुति के कारण ही आमने-सामने आते थे, वो भी तब जब स्तुति को दूध पीना होता था वरना तो मैं स्तुति के साथ अपने कमरे या छत पर रहता था|



अपनी बेटी को गोदी में लिए हुए मैं अक्सर यही सोचता था की मैं संगीता को माफ़ करूँ या फिर इसी तरह उससे उखड़ा रहूँ| जब मन में ये सवाल दौड़ता तो मेरा दिल बेचैन हो जाता और दिल की धड़कनों की गति असामान्य हो जाती जिसे मेरे छाती से लिपटी हुई स्तुति महसूस कर लेती| मेरे दिल में मची उथल-पुथल को महसूस कर स्तुति के मुँह से एक किलकारी निकलती जिसे मेरा छोटा सा दिल समझ नहीं पाता था| दो दिन लगे मुझे इस किलकारी को समझने में और मैंने इस किलकारी का ये मतलब निकाला; 'पापा जी, मम्मी को माफ़ कर दो!' अपनी बेटी की किलकारी का मतलब समझ मेरे चेहरे पर एक पल के लिए मुस्कान आ गई और मैं स्तुति के सर को चूमते हुए बोला; "आप ठीक कहते हो बेटा| मैं आपकी मम्मी से इतना प्यार करता हूँ की उनसे बात किये बिना मुझे करार ही नहीं मिलता, ऐसे में मैं सारी उम्र आपकी मम्मी से बिना बात किये तो रह नहीं सकता न?! ठीक है मेरी बिटिया, मैं आपकी मम्मी को माफ़ कर दूँगा|" मेरी बात सुन मेरी बिटिया के चेहरे पर मुस्कान आ गई, मानो वो कह रही हो; 'थैंक यू पापा जी!'



उधर मुझसे ज्यादा बुरा हाल संगीता का था| मुझे अपनी आँखों के सामने देखते हुए, मेरे मुँह से अपने लिए दो प्यारभरे बोल सुनने को वो मरी जा रही थी| बड़े-बुजुर्ग कहते हैं की पति के दिल का रास्ता उसके पेट से हो कर गुज़रता है मगर मेरे दिल का रास्ता केवल मेरे बच्चों से हो कर गुज़रता था इसलिए संगीता ने सबसे पहले आयुष से मदद माँगी| उसने आयुष को बड़े अच्छे से सीखा-पढ़ा कर सब बातें रटा कर मेरे पास अपनी पैरवी करने के लिए भेजा|



"पापा जीईईईईईईईईई!" आयुष ने जब ई की मात्रा पर जोर दे कर खींचा तो मैं समझ गया की मेरा बेटा मुझे मक्खन लगाने आया है| "हाँ जी, बेटा जी बोलो!" ये कहते हुए मैंने आयुष को गोदी में उठा लिया| आयुष मेरा मोह देख कर थोड़ा गंभीर होते हुए बोला; "पापा जी, आप मम्मी से गुच्छा हो?" आयुष गुस्सा शब्द को जानबूझ कर तुतला कर बोला ताकि मैं उस पर और मोहित हो जाऊँ और हुआ भी वही, आयुष के यूँ तुतलाने से मेरे मन में प्यार का सागर उमड़ने लगा| मैं जानता था की संगीता ने ही उसे सीखा-पढ़ा कर भेजा है इसलिए मैं भी उसी अनुसार जवाब देने लगा; "नहीं तो?" मैंने एकदम से अनजान बनते हुए कहा, मानो मुझे कुछ पता ही न हो! मेरे दिए जवाब से आयुष को समझ नहीं आया की वो आगे क्या कहे? क्योंकि वो तो मेरे मुँह से 'हाँ जी' शब्द सुन आगे क्या कहना है उसकी तैयारी कर के आया था| परन्तु जब जवाब ही आउट ऑफ़ सिलेबस (out of syllabus) निकला तो आयुष बेचारा असमंजस में पड़ गया की वो आगे कहे क्या? अब मुझे लेने थे आयुष के मज़े इसलिए मैंने उससे पुछा; "आपको किसने कहा बेटा की मैं आपकी मम्मी से नाराज़ हूँ?" मैंने बिलकुल अनजान बनते हुए पूछे सवाल पर आयुष चुप हो गया और जवाब सोचने लगा| उसकी मम्मी द्वारा उसे ये पढ़ाया गया था की मैं संगीता से नाराज़ हूँ मगर यहाँ तो मैंने अपनी बातों और अभिनय से गँगा ही उल्टा बहा दी थी!

उधर संगीता ने आयुष को समझाया था की उसे किसी भी हालत में संगीता का नाम नहीं बताना है इसलिए आयुष मेरे पूछे सवाल का जवाब यानी अपनी मम्मी का नाम लेने से क़तरा रहा था| "वो...म..." इतना बोलते हुए आयुष चुप हो गया और सोचने लगा की वो क्या जवाब दे! मुझे अपने बच्चे को और अधिक परेशान नहीं करना था इसलिए मैंने आयुष का ध्यान भटका दिया; "छोडो इस बात को, आप ये बताओ की आज आपका दिन कैसा था?" मेरे पूछे इस सवाल से आयुष का ध्यान भटक गया और वो मुझे अपने आज के दिन के किस्से सुनाने लगा| वहीं दरवाजे पर कान लगा कर सब बातें सुन रही संगीता ने जब सुना की मैंने आयुष को अपनी बातों से बहला कर मुद्दे से भटका दिया है तो उसने बाहर खड़े-खड़े ही अपना सर पीट लिया!

हम बाप-बेटे की मस्ती भरी बातें संगीता कमरे के बाहर से सुन रही थी, वो जानती थी की मुझे मनाने का उसका एक मोहरा पिट चूका है इसलिए संगीता ने अपना दूसरा मोहरा यानी के नेहा को चुना| आयुष के मुक़ाबले नेहा बहुत समझदार थी, जहाँ आयुष को जो बात सिखाई-पढ़ाई जाती थी वो उसी बात पर अटल रहता था वहीं मेरी बेटी नेहा बहुत होशियार थी| अगर उससे बात घुमा कर भी की जाती तब भी नेहा अपने मुद्दे पर रहती और अपने सवाल का जवाब जानकार ही दम लेती| हाँ संगीता के लिए एक समस्या जर्रूर खड़ी हो गई थी, आयुष को तो उसने एग्जाम के जवाबों की तरह सारी बात रटवा दी थी मगर नेहा बिना तथ्य जाने...बिना पूरी जानकारी लिए कोई बात शुरू नहीं करती थी, अतः संगीता ने नेहा को सारा सच बताना था| अब नेहा ने छुप कर पहले ही सारी बात सुन ली थी और वो लगभग सारी बात समझ भी चुकी थी, जो बात उसे नहीं भी पता थी उसने वो बात अपनी मम्मी से पूछकर अपनी जानकारी पूर्ण कर ली थी, ताकि वो मुझसे प्यार से तर्क कर सके|



बहरहाल, सारी बात जानकार मेरी बेटी नेहा अपने मम्मी-पापा के बीच सारी बात सुलटाने के लिए उतरी| आयुष अपनी पढ़ाई कर रहा था जब नेहा मुझसे बात करने आई, एक कुर्सी खींच कर नेहा मेरे सामने बैठी और बड़ी ही गंभीरता से अपनी बात शुरू की;

नेहा: पापा जी, आप मम्मी से बहुत प्यार करते हो न?

नेहा के ये सवाल सुन मैं जान गया की उसे भी आयुष की तरह संगीता ने ही भेजा है| संगीता की इस होशियारी पर मुझे हँसी आ गई| उधर अपने पूछे सवाल के जवाब में जब नेहा ने मुझे हँसते हुए देखा तो वो चकित हो कर मुझे देखने लगी!

मैं: हाँ जी!

मैंने अपनी हँसी दबाते हुए कहा| इधर मेरे दिए जवाब से नेहा संतुष्ट नहीं थी और अपनी नाक पर गुस्सा लिए मुझे देख रही थी| मेरे यूँ हँसने से मेरी बेटी नाराज़ हो रही थी, उसे लग रहा था की मैं उसका मज़ाक उड़ा रहा हूँ|

मैं: बेटा, इस शान्ति वार्ता के लिए आपके मम्मी द्वारा भेजे हुए आप दूसरे प्रतिनिधि हो, बस यही सोच कर मुझे हँसी आ रही थी!

मैंने नेहा को अपनी सफाई दी ताकि कहीं मेरी बेटी मुझसे नाराज़ न हो जाए| मेरी बात सुन नेहा के चेहरे पर भी मुस्कान आ गई और वो खुद पर गर्व करते हुए बोली;

नेहा: मैं उस बुद्धू लड़के (आयुष) जैसी नहीं हूँ, जिसे आपने अपनी बातों से फुसला लिया था और मुद्दे से भटका दिया था!

नेहा की बात सुन मैंने जोर का ठहाका लगाया तथा नेहा भी मुस्कुराये बिना रह न पाई|

नेहा: अच्छा पापा जी प्लीज मेरी बात सुन लो|

नेहा ने विनती करते हुए कहा तो मैंने अपनी हँसी रोकी और पूरी एकाग्रता से उसकी बात सुनने लगा| मुझे भी ये जानना था की मेरी बेटी अपने पापा जी के सामने कैसे अपनी मम्मी का बचाव करती है?!



"आपके और मम्मी के रिश्ते की शुरुआत दोस्ती से हुई थी न?!" नेहा ने अपनी बात शुरू करते हुए मुझसे सवाल पुछा, जिसके उत्तर में मैंने अपना सर हाँ में हिला दिया| "फिर आपकी दोस्ती प्यार में बदल गई और आपको एक दूसरे से प्यार हो गया न?!" नेहा ने पुनः अपना सवाल पुछा जिसके जवाब में मैंने अपना सर हाँ में हिलाया| "वो बात अलग है की आप मम्मी से ज्यादा मुझे प्यार करते हो!" ये कहते हुए नेहा के चेहरे पर गर्वपूर्ण मुस्कान आ गई और मैं भी अपनी बेटी की इस मुस्कान को देख मुस्कुराने लगा| हम मुद्दे से भटक न जाएँ इसलिए नेहा ने अपनी बात जारी रखी; "आप जानते हो न मम्मी आपसे कितना प्यार करती हैं?!" नेहा ने फिर से अपना प्यारा सा सवाल पुछा जिसके जवाब में मैंने अपना सर हाँ में हिलाया| "तो पापा जी, अगर आपके सबसे प्यारा दोस्त, जिससे आप बहुत प्यार करते हो उससे अगर कोई गलती हो जाए तो क्या आप उससे आजीवन बातचीत बंद कर दोगे?!" नेहा के पूछे इस सवाल पर मैंने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी क्योंकि मैं इस वक़्त अपनी बेटी की बातों से जैसे मंत्र-मुग्ध हो गया था|

मेरे द्वारा कोई जवाब न देने पर नेहा पुनः मुझे समझाते हुए बोली; "मैं जानती हूँ की मम्मी के मुँह से स्तुति के लिए गाली निकल गई थी मगर आप जानते हो न की मम्मी को कितना गुस्सा आता है?!" इस बार नेहा के पूछे सवाल के जवाब में मैंने अपनी गर्दन हाँ में हिलाई| मेरे इस तरह जवाब देने से नेहा को अपनी बात आगे बढ़ाने का मौका मिल गया; "भले ही मम्मी के मुँह से गुस्से में गाली निकल जाती है मगर उन्होंने कभी मुझे या आयुष को गाली देने नहीं दिया| मम्मी मुझे हमशा कहतीं थीं की बेटा अपने पापा जैसा बनना, लोगों से अच्छे गुण सीखना और उनकी बुराइयाँ कभी न अपनाना|” मुझे ये जानकार बहुत ख़ुशी हुई थी की संगीता ने दोनों बच्चों को मेरी अनुपस्थिति में सदा सँभाल कर रखा था, उन्हें संगीता ने किसी गलत रास्ते भटकने नहीं दिया था|

इधर नेहा की बता पूरी नहीं हुई थी, वो अपनी बात जारी रखते हुए बोली; "…इस बार जो हुआ उसके लिए आप मम्मी जी को माफ़ कर दो, आगे से अगर उन्होंने कभी गाली दी न तो आप, मैं, आयुष और स्तुति मिलकर उनसे बात करना बंद कर देंगे|" मेरी बेटी नेहा आज सयानों जैसे बात कर रही थी और उसकी ये बातें सुन कर मैं बहुत प्रभावित हुआ था|



खैर, नेहा ने जब मुझे अपनी मम्मी को माफ़ करने को कहा तो मैंने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी थी, क्योंकि मैं अपनी बेटी को यूँ सयानों जैसे बात सुन कर खो गया था| मेरी ओर से कोई जवाब न पा कर नेहा ने एक अंतिम कोशिश की; "प्लीज पापा जी, मेरे लिए मम्मी को माफ़ कर दो!" नेहा जानती थी की उसके लिए मैं कुछ भी कर सकता हूँ इसीलिए नेहा ने ये माँग की थी|

मैंने अपनी दोनों बाहें खोलीं और नेहा को अपने गले लगा कर उसका सर चूमते हुए बोला; "मेरा बच्चा इतनी जल्दी इतना बड़ा हो गया की अपने मम्मी-पापा के बीच सलाह करवा रहा है?! आई ऍम सो प्राउड ऑफ़ यू बेटा! (I’m so proud of you)” ये कहते हुए मैंने नेहा के मस्तक को चूमा| मेरी बात सुन नेहा को खुद पर गर्व हो रहा था और शर्म भी आ रही थी, मेरी बेटी को अधिक शर्माना न पड़े इसलिए मैंने नेहा का ध्यान भटकाने के लिए उसके सामने ही संगीता को आवाज़ लगाई; "संगीता?" हैरानी की बात ये थी की संगीता कमरे के बाहर दिवार से कान लगाए सारी बात सुन रही थी और जैसे ही मैंने उसे आवाज दी वो एकदम से कमरे में घुसी| दो दिन बाद मेरे मुख से अपना नाम सुन और मेरे चेहरे पर मुस्कान देख संगीता की जान में जान आई| संगीता ने आव देखा न ताव उसने सीधा मेरे पैर पकड़ लिए और गिड़गिड़ाते हुए बोली; "मुझे माफ़ कर दो जानू! मैंने हमारे प्यार की निशानी को इतनी गन्दी गाली दी! मैं वादा करती हूँ की आगे से फिर कभी मैं गाली नहीं दूँगी!" संगीता की आवाज़ में पछतावा और ग्लानि झलक रही थी|

मैंने संगीता के दोनों कँधे पकड़ उसे उठाया और बोला; "जान, मुझे तुम्हारा गुस्सा करना बुरा नहीं लगा, बुरा लगा तो बस तुम्हारे मुँह से मेरे बेटी के लिए गाली सुनना| गुस्सा आना एक स्वाभाविक प्रक्रिया है मगर गुस्सा किस पर और कैसे निकालना है ये मालूम होना चाहिए| तुमने देखा न की मैंने कैसे तुम पर आये गुस्से को सोझी पर निकाला, जिससे मेरा गुस्सा भी शांत हो गया और सोझी सुधर भी गया| उसी तरह अगर तुम रात को स्तुति के रोने से गुस्सा हो कर अपना गुस्सा मुझ पर निकालते हुए मुझसे बात नहीं करती तो मुझे बुरा नहीं लगता|” मैंने संगीता की आँखों में देखते हुए उसे समझाया और उसे उसकी गलती का एहसास दिलाया| संगीता ने बड़े ध्यान से मेरी बात सुनी थी और अपने कान पकड़ते हुए बच्चों की तरह तुतलाते हुए बोली; "सोली (sorry) जी!" संगीता का बचपना देख मैं हँस पड़ा और उसे अपने गले लगा लिया|

कुछ देर बाद माँ घर पहुँची और हम मियाँ-बीवी को पहले की तरह बातें करते देख जान गईं की घर में सब कुछ अब पहले जैसा है| "चलो, तुम दोनों की सुलाह तो हो गई!" माँ हम दोनों से बोलीं जिसके जवाब में मैंने अपनी बेटी की तारीफ करनी शुरू कर दी; "इसका सारा श्रेय जाता है आपकी पोती नेहा को!" फिर मैंने माँ को बताया की नेहा ने कैसे एक वयस्क की तरह बात कर मेरा दिल पिघलाया और अपनी मम्मी को माफ़ी दिलवाई| अपनी पोती के सयानेपन को देख माँ बहुत खुश हुईं और उन्होंने नेहा को अपने गले लगा कर बहुत लाड किया|




नेहा को लाड कर माँ ने मुझे भी प्यार से समझाते हुए कहा; "बेटा, तू भी गुस्सा कम किया कर| साइट पर जो तूने उस लेबर को सबक सिखा कर अपना गुस्सा निकाला था वो सही बात नहीं थी| दूसरों के पचड़ों में अधिक पड़ने से हमारे घर पर भी कोई मुसीबत आ सकती है| खैर, जो हो गया सो हो गया, आगे से मेरी बात का ध्यान रखिओ|" माँ को मुझसे इस मामले में कोई सफाई नहीं चाहिए थी, उन्हें बस मुझे एक सीख देनी थी जो मुझे मिल चुकी थी इसलिए मैंने बस अपना सर हाँ में हिला कर माँ की कही बात का मान रखा|

जारी रहेगा भाग - 13 में...
आपकी लेखनी की सबसे बढ़िया बात है की आप जैसे का तैसा लिख देते हो.........................नेहा की सूझ बूझ के बारे में लिख आपने बहुत अच्छा किया............................बढ़िया......................मज़ेदार अपडेट :kissie:
अपडेट लिख के फ्लश तो नही कर दिया था । 🤪😜😛😂

पहली बात तो ये की मैं अपने आप को खुद शाबाशी दी रहा हूं क्योंकि मां ने भी भौजी के गाली देने का वही तर्क दिया जो मैने पिछले अपडेट के कॉमेंट में दिया था। शाबाश अमित, जीओ मेरे लाल, दिखा दिया तू ने अपने करमचंद वाले दिमाग का कमाल, बहुत अच्छे।

अब बात करते है अपडेट पर, पति पत्नी के रिश्ते में प्यार, तकरार और गुस्सा सभी जरूरी होता है बस इन चीजों का अनुपात सही होना चाहिए। जहां Sangeeta Maurya को गुस्सा करने और गुस्से को व्यक्त करने के तरीके पर थोड़ा काम करना पड़ेगा वहीं Rockstar_Rocky को प्रतिक्रिया में गुस्सा देखने में थोड़ा कंट्रोल करना पड़ेगा। वैसे हमे क्या ये तो मिया बीबी के बीच की बात है हम क्यों पड़े बीच में, ये जाने और इनका काम जाने हमे तो बस समय से अपडेट चाहिए वो भी बड़े वाले।

मानू का आयुष को अपनी बातो में घुमाना और नेहा का एक व्यस्क की तरह मानू को मानना वाकई मजेदार था।

अब कुछ पंक्तियां भौजी की तरफ से भैया के लिए

मुझसे नाराज़ हो तो हो जाओ
ख़ुद से लेकिन खफ़ा-खफ़ा न रहो
मुझसे तुम दूर जाओ तो जाओ
आप अपने से तुम जुदा न रहो
मुझसे नाराज़ हो...

मुझपे चाहे यकीं करो ना करो
तुमको खुद पर मगर यकीन रहे
सर पे हो आसमान या के ना हो
पैर के नीचे ये ज़मीन रहे
मुझको तुम बेवफा कहो तो कहो
तुम मगर ख़ुद से बेवफा ना रहो
मुझसे नाराज़ हो...

आओ इक बात मैं कहूँ तुमसे
जाने फिर कोई ये कहे ना कहे
तुमको अपनी तलाश करनी है
हमसफ़र कोई भी रहे ना रहे
तुमको अपने सहारे जीना है
ढूँढती कोई आसरा ना रहो

मुझसे नाराज़ हो...
आप कह रहे हैं की मुझे गुस्से पे कण्ट्रोल रखना होगा.........................तो मैं आपको पहले बता दूँ मेरी और से आपने पंक्तियाँ बड़ी सटीक लिखीं :laugh:
मेरे सभी प्यारे पाठकों को गणतंत्र दिवस की शुभकामनायें|
:grouphug:
आपको भी बहुत बहुत मुबारक
You are incredible
अरे हमारे लेखक जी जितने कमाल का लिखते हैं उतना कोई नहीं लिखता.....................ऐसा लगता है की सब कुछ आँखों के सामने हो रहा हो...........................और ये लिखने में तो नए नए कीर्तिमान स्थापित करते रहते हैं.....................आप तो बस देखते जाइये ........................पढ़ते जाइये
 

Sanskari Larka

Sᴀk†Lᴀน𝖓da
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बेटा मैं मारूंगी तो सर्दी दूर नहीं होगी..........................हड्डियां टूट जाएँगी................. :bat1: ......................................मेरा साथ देने के लिए शुक्रिया :alright3:

मैं किसी घोटाले में शामिल नहीं हूँ........................आपके इस मज़ाक के चक्क्र में मुझे भी धमकी मिल गई है....................इसलिए अब कोई भी खाने पीने को ले कर इन्हें कुछ नहीं कहेगा........................ लेना न देना खामखा इनके हतः का बना खाने से भी जाऊं मैं.............................

एकता में ताक़त है

अब मैं किसी को भी खाने पीने को ले कर आपके साथ मज़ाक करने को नहीं कहूँगी..........................अब अपने हाथ का बना खाना खिलाना बंद न करना 🙏 ........................... इतना छोले भठूरे के बारे में लिख दिया की अब सच्ची छोले भठूरे खाने का मन कर रहा है :girlcry:

आपकी लेखनी की सबसे बढ़िया बात है की आप जैसे का तैसा लिख देते हो.........................नेहा की सूझ बूझ के बारे में लिख आपने बहुत अच्छा किया............................बढ़िया......................मज़ेदार अपडेट :kissie:



आप कह रहे हैं की मुझे गुस्से पे कण्ट्रोल रखना होगा.........................तो मैं आपको पहले बता दूँ मेरी और से आपने पंक्तियाँ बड़ी सटीक लिखीं :laugh:

आपको भी बहुत बहुत मुबारक

अरे हमारे लेखक जी जितने कमाल का लिखते हैं उतना कोई नहीं लिखता.....................ऐसा लगता है की सब कुछ आँखों के सामने हो रहा हो...........................और ये लिखने में तो नए नए कीर्तिमान स्थापित करते रहते हैं.....................आप तो बस देखते जाइये ........................पढ़ते जाइये
Writer mahoday se sawal hai ye kahani incest k category me kyu hai?
 

Akki ❸❸❸

ᴾʀᴏᴜᴅ ᵀᴏ ᴮᴇ ᴴᴀʀʏᴀɴᴠɪ
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30,992
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Waise September m mera bhi janam din hota h Manu bhai
Waise September m mera bhi janam din hota h naik bhai
 

Akki ❸❸❸

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इकत्तीसवाँ अध्याय: घर संसार
भाग - 12


अब तक अपने पढ़ा:


कमरे से बाहर आ कर मैंने अपन बनियानी और पजामा पहना तथा माँ के कमरे में प्रवेश किया| स्तुति के रोने से माँ भी जाग गईं थी और वो अपनी कोशिश करते हुए स्तुति को चुप कराने की कोशिश कर रहीं थीं| मुझे देख माँ बोलीं; " शुगी (स्तुति) ने सुसु कर दिया था, लगता है बहु शुगी को डायपर (diaper) पहनाना भूल गई थी|" मैंने माँ की बात का कोई जवाब नहीं दिया और स्तुति को गोदी में ले कर अपने कमरे में आ गया| स्तुति के कपड़े बदल उसे लाड कर मैंने चुप कराया तथा अपने सीने से लगा कर सारी रात जागते हुए कटी|


अब आगे:


गुस्सा
इंसान का सबसे बड़ा दुश्मन होता है, जब ये इंसान के दिमाग पर हावी होता है तो इंसान वो भी कह जाता है जो उसे नहीं कहना चाहिए था इसलिए जब गुस्सा आये तो इंसान को चुप रहना चाहिए और सोच-समझ कर बोलना चाहिए|

जीवन की ये सीख बड़ी ही सरल है मगर इस सीख को समझने वाले ही नासमझी करते हैं| यही हाल संगीता का भी है, आजतक उसने अपने जीवन की दो कमियाँ:

1. एकदम से गुस्सा करना और

2. अपने किये वादे पर अटल न रहना नहीं सुधारीं|



अगली सुबह 6 बजे मैंने दोनों बच्चों के सर पर हाथ फेर कर उन्हें जगाया| सबसे पहले नेहा जागी और मुझे स्तुति को गोदी में लिए हुए दिवार का सहारा ले कर बैठे देख नेहा को चिंता होने लगी| अपनी बेटी को चिंता मुक्त करने के लिए मैंने अपने होठों पर मुस्कान चिपकाई और नेहा को अपने गले लगने को बुलाया| नेहा मेरे गले लगी और बोली; "पापा जी, आप रात भर सोये नहीं न? जर्रूर इस शैतान (स्तुति) ने नहीं सोने दिया होगा!" मैंने नेहा की बात का जवाब बस सर हाँ में हिला कर दिया और उसे स्कूल के लिए तैयार होने को कहा| नेहा तैयार होने गई तो मैंने आयुष के सर पर हाथ फेरते हुए उसे पुकारा| थोड़ा कुनमुना कर आखिर आयुष उठ ही गया और मुझे सुबह की गुड मॉर्निंग वाली पप्पी दे कर बाथरूम चला गया|

आयुष को स्कूल के लिए अक्सर मैं ही तैयार करा था, परन्तु आज मेरा मन उदास था और स्तुति को अपने से जुदा करने का नहीं था| "बेटा जी, आज आप खुद तैयार हो जाओगे?" मैंने आयुष से प्यार से कहा तो आयुष ख़ुशी-ख़ुशी अपना सर हाँ में हिलाने लगा| आयुष खुद तैयार होने लगा था और इधर मैं स्तुति के माथे को चूम खुसफुसाते हुए बोला; "बेटा, आप मेरा खून हो...मेरे बच्चे हो...कोई अगर आपके बारे में कुछ गंदा कहेगा न तो मैं उसे छोड़ूँगा नहीं!" मेरे भीतर मौजूद एक पिता का दिल संगीता के मुँह से निकली उस एक गाली के कारण झुँझला उठा था| दिमाग में एक अजीब सा गुस्सा भर चूका था जो आज किसी न किसी पर तो निकलना था|



उधर संगीता का डर के मारे बुरा हाल था, कल रात के मेरे रौद्र रूप को देख उसकी हिम्मत नहीं पड़ रही थी की वो मेरे सामने आये इसलिए संगीता सुबह से ले कर अभी तक मेरे कमरे में नहीं आई थी, उसे जब भी कुछ चाहिए होते वो आयुष या नेहा को कमरे में भेज देती| लेकिन अब तो बच्चों के भी स्कूल जाने का समय हो गया था और ऐसे में अब संगीता को बच्चों का भी सहारा नहीं बचा था| माँ बच्चों को स्कूल छोड़ने गईं तो संगीता को मजबूरन मेरे लिए चाय ले कर कमरे में आना पड़ा| सर झुकाये हुए, चाय का कप थामे हुए संगीता ने कमरे में प्रवेश किया| इधर जैसे ही मैंने संगीता को कमरे में आते हुए देखा मैंने फौरन अपना मुँह दूसरी तरफ मोड़ लिया क्योंकि संगीता को देखते ही मुझे उसके द्वारा रात में मेरी बिटिया को दी हुई गाली याद आ रही थी जिससे मेरा गुस्सा फटने की कगार पर आ चूका था| मैं गुस्से में आ कर कहीं संगीता पर कोई बर्बरता न दिखा दूँ इसी के लिए मैंने अपना मुँह मोड़ लिया था|

वहीं संगीता ने जब तिरछी निगाहों से देखा की मैंने उससे यूँ मुँह मोड़ रखा है तो पहले तो उसका दिल टूट कर चकना चूर हो गया और फिर डर की शीत लहर उसके पूरे जिस्म में दौड़ गई! जो थोड़ी बहुत हिम्मत कर संगीता मेरे लिए चाय ले कर आई थी वो हिम्मत भी मेरा गुस्सा देख कर जवाब दे गई थी| कुछ देर बाद जब माँ बच्चों को उनकी स्कूल वैन में बिठाकर आईं तो उन्हें संगीता की नम आँखें दिखीं| माँ ने उससे बहुत पुछा मगर संगीता से डर के मारे कुछ कहा नहीं गया| आखिरकर माँ मेरे पास आईं और मुझसे संगीता की नम आँखों का कारण पुछा| "क्या एक माँ अपने ही खून को गाली दे सकती है? और वो भी कोई ऐसी-वैसी गाली नहीं...'हरामज़ादी' जैसी गाली!" मैं दाँत पीसते हुए माँ से बोला| मेरा सवाल सुन और मेरी अंत में कही बात सुन माँ को मेरे गुस्सा होने का कारण समझ आया| " कल रात स्तुति के अचानक रोने से संगीता के मुँह से ये गाली निकली थी! आप जानते हो न इस गाली का मतलब? क्या एक माँ को अपनी ही बेटी को ऐसी गाली देना उचित है?!... स्तुति छोटी सी बच्ची है, उसे क्या पता की उसके यूँ रोने से सबकी नींद टूटती है?! और गलती तो स्तुति की भी नहीं थी, संगीता उसे डायपर पहनाना भूल गई थी...अब अगर स्तुति ने सुसु कर बिस्तर गीला कर दिया तो ये बेचारी बच्ची क्या करे?!" मेरी आवाज़ गुस्से के कारण तेज़ हो चली थी| माँ जानती थीं की मैं कभी भी बिना किसी सही वजह के गुस्सा नहीं होता इसलिए माँ मुझे शांत करवाते हुए बोलीं; "बस बेटा! तेरा गुस्सा होना जायज है लेकिन ज़रा बहु की तरफ से तो सोच कर देख| वो बेचारी गाँव में पली-बढ़ी है, जहाँ माँ-बाप अक्सर बच्चों को गालियाँ दे कर डाँटते रहते हैं| माँ-बाप द्वारा दी गई ये गालियाँ दिल से या नफरत के कारण नहीं दी जातीं, ये तो केवल गुस्सा होने पर दी जातीं हैं इसीलिए गाँव के बच्चे इन गालियों को दिल से नहीं लगाते|

तुझे ये गाली इस लिए चुभ रही है क्योंकि जिस माहौल में तू पला-बढ़ा हुआ है उस माहौल में मैंने या तेरे पिताजी ने तुझे कभी गालियाँ नहीं दी इसलिए तू ये बर्दाश्त नहीं कर पा रहा की तेरी लाड़ली बिटिया को कोई गाली दे| मैं ये नहीं कहती की बहु का शुगी (स्तुति) को गाली देना सही था, ये बिलकुल गलत था और मैं इसके लिए संगीता को समझाऊँगी लेकिन फिलहाल के लिए तू उसे माफ़ कर दे! वो बेचारी सुबह से तेरे गुस्से के कारण डरी-सहमी बैठी है और मुझसे उसकी ये हालत नहीं देखि जाती|" माँ की कही बात मुझे ऐसी लग रही थी मानो वो संगीता का बचाव कर रहीं हों इसलिए मैं गुस्से में उठ खड़ा हुआ और बोला; "ये गाँव-देहात नहीं है, ये हमारा घर है! और संगीता को मैंने बहुत पहले ही समझा दिया था की उसका यूँ बच्चों पर बेवजह गुस्सा करना, उन्हें गाली देना या मारने के लिए हाथ उठाना मुझे पसंद नहीं! ये सब जानते-बूझते भी मेरी बात न मानना मुझे पसंद नहीं!" इतना कह मैं कमरे से बाहर निकला तो मैंने देखा की संगीता बाहर छुपी हुई मेरी और माँ की सारी बात सुन रही है| संगीता को देख कर मैंने मुँह मोड़ा और स्तुति को ले कर छत पर आ गया|



कुछ देर बाद माँ ने मुझे भीतर बुलाया और नाश्ते करने के लिए अपने साथ बिठाया| तबतक स्तुति भी जाग गई थी और उसे दूध पीना था, माँ ने मुझे स्तुति को संगीता को सौंपने को कहा ताकि संगीता उसे दूध पिला दे| नाश्ता करने के बाद मैं साइट पर फ़ोन कर के काम का जायजा ले रहा था, जब माँ ने मुझे अपने पास बुलाया; "बेटा, तुम दोनों जा कर बाहर हवा-बयार खा कर आओ तब तक मैं स्तुति को सँभालती हूँ|" ये कहते हुए माँ ने अपने हाथ स्तुति को गोदी लेने के लिए बढाए| दरअसल ये माँ की कोशिश थी की मैं और संगीता आपस में बात कर के ये मामला सुलझा लें, परन्तु मैं इसके लिए कतई राज़ी नहीं था इसलिए मैं मन ही मन संगीता के साथ कहीं न जाने का बहाना ढूँढने लगा| तभी मैंने गौर किया तो पाया की माँ स्तुति को अपनी गोदी में लेने के लिए बाहें फैलाएं हैं, माँ के यूँ स्तुति को गोदी लेने की इच्छा को देख मुझे अपना बहाना मिल गया था| मुझे लगा की मेरी बिटिया मेरी गोदी से उतरेगी ही नहीं और मुझे संगीता के साथ कहीं न जाने का बहाना मिल जायेगा, लेकिन मेरी बिटिया भी अपनी दादी जी की ही तरह चाहती थी की मैं उसकी मम्मी के साथ बाहर जाऊँ तभी तो स्तुति बड़े आराम से बिना कोई नख़रा किये अपनी दादी जी की गोदी में चली गई! अब ये दृश्य देख कर मैं तो हैरान रह गया और आँखें फाड़े स्तुति को देखने लगा की वो कैसे अपनी दादी जी की गोदी में इतनी आसानी से चली गई?!

उधर माँ ने स्तुति को अपनी गोदी में ले कर लाड करना शुरू कर दिया था; “मेरी शुगी...मेरी लाडो!" माँ को अपनी बेटी को लाड करते देख मेरा मन प्रसन्न हो गया और दिमाग में भरा गुस्सा कम होने लगा|

"अब यहाँ मेरे सर पर क्यों खड़ा है, जा कर तैयार हो और संगीता को बाहर घुमा कर ला!" माँ ने मुझे प्यार से डाँट लगाते हुए कहा| माँ की ये प्यारभरी डाँट सुन कर मुझे बुरा नहीं लगा, गुस्सा आया जब उन्होंने संगीता का नाम लिया| अब माँ ने आदेश दिया था तो उनकी बात माननी थी वरना घर में मेरे कारण क्लेश हो जाता| चेहरे पर नकली मुस्कराहट लिए मैं अपने कमरे में घुसा और तैयार हो गया| मेरे तैयार होने के बाद संगीता तैयार हुई और सर झुकाये मेरे सामने खड़ी हो गई| हम दोनों मियाँ-बीवी घर से निकले और गाडी में बैठ गए, घर से गाडी तक के पुरे रास्ते संगीता सर झुका कर चल रही थी, न उसने और न ही मैंने बात शुरू करने की कोई कोशिश की|



संगीता के साथ होने से मेरा गुस्सा कम नहीं हो रहा था और ऐसे में मेरा मन कहीं घूमने जाने का नहीं था| जब मन नहीं था तो दिमाग ने कहा की क्यों पैसे बर्बाद किये जाएँ, इससे अच्छा है की घर से निकला कर कुछ काम किया जाए| दिमाग की बात मानते हुए मैंने गाडी साइट की ओर मोड़ दी| साइट पहुँच कर जब मैं गाडी पर करने लगा तो संगीता जान गईं की मेरा मन घूमने का नहीं था इसीलिए मैं उसे यहाँ साइट पर लाया हूँ लेकिन फिर भी उसने मुझसे इसके लिए कोई शिकायत नहीं की|

उधर मुझे और संगीता को देख संतोष मेरे पास आया और हम दोनों के यूँ अचानक आने का कारण पूछने लगा; "कुछ नहीं यहीं से गुज़र रहे थे, सोचा साइट भी देखते चलें|" मैंने नकली मुस्कान लिए हुए कहा| मैं और संतोष सीढ़ी चढ़ ऊपर लेंटर पड़ने के लिए जो सेटरिंग बाँधी गई थी वो देखने चल पड़े| वहीं संगीता भी चेहरे पर नकली मुस्कान लिए मेरे पीछे चलने लगी, मैं और संतोष बातों में लग गए थे इसलिए हमारा ध्यान संगीता पर गया ही नहीं|



"बड़े दिन बाद आये साहब?" हमारी साइट पर काम करने वाली एक दीदी बोलीं| इन दीदी का एक बेटा है जो पढ़ने में अच्छा था इसलिए मैंने उसका दाखिला सरकारी स्कूल में करवा दिया था, इनका पति सोझी शराब पीता था और हमारी ही साइट पर काम करता था| शराब और नशे की लत ने सोझी का शरीर खत्म कर दिया था| जब शराब के पैसे खत्म होते तो साइट पर आ कर हाजरी लगा कर काम करता और पैसे मिलते ही गोल हो जाता| दीदी के शिकायत करने पर मैं सोझी को कई बार डाँट चूका था मगर वो साला कुत्ते की दुम सुधरने का नाम ही नहीं लेता था| मैंने उसे जब काम से निकालने की धमकी दी तो वो कुछ दिन के लिए सुधरा क्योंकि उस जैसे नशेड़ी को कोई दूसरा काम नहीं देता, पर फिर कुछ दिन बाद वही कमीनापन जारी हो गया| मेरी दीदी की इसी प्रकार मदद करने के कारण जब भी मैं साइट पर आता तो दीदी मुझसे बात करने आ जाती थीं|

खैर, दीदी की आवाज़ सुन मैं पीछे मुड़ा और उन्हें भी वही बात कही जो मैंने संतोष से कही थी| "ये लो मिलो संगीता से..." मैंने बस इतना ही कहा था की दीदी ने हाथ जोड़कर संगीता से नमस्ते की; "राम-राम बहु रानी" जवाब में संगीता ने हाथ जोड़कर अच्छे से राम-राम की|

"सोझी अब तो तंग नहीं करता न आपको?" मैंने दीदी से उनके पति सोझी के बारे में पुछा तो दीदी मायूस होते हुए बोलीं; "पहले तो शराब पीने के लिए पैसे माँगते समय गाली-गलौज करता था, अब तो हाथ भी उठाता है! आप उसे समझाओ की मुझे तंग न किया करे|" दीदी की बात सुन मुझे अपना गुस्सा निकालने के लिए सही निशाना मिल गया; "देखो दीदी, समझाया तो मैंने उसे बहुत बार है इसलिए अब मुझमें उसे बोल कर समझाने का सबर नहीं है| ये आदमी अब बस लात की भाषा समझेगा, आप कहोगी तो अभी समझा दूँगा!" जब मैंने लात की भाषा का जिक्र किया तो संगीता समझ गई की मैं क्या करने वाला हूँ, वो मुझे रोकने की कोशिश करने के लिए मेरी तरफ देखने लगी| जैसे ही हमारी नजरें मिलीं उसने कुछ कहने के लिए अपने लब खोले मगर मेरी आँखों में उसे गुस्से की ज्वाला नज़र आई और संगीता की हिमत जवाब दे गई! इधर दीदी मेरी बात सुन कर बोली; "आपको उसे जैसे समझाना है, समझाओ पर मेरी जान छुड़वाओ!" दीदी हाथ जोड़ते हुए बोलीं| मैंने अपना पर्स निकाला और उन्हें 1,000/- रुपये दिए| दीदी बहुत स्वाभिमानी थीं और उन्होंने आजतक मुझसे रुपये-पैसे की मदद नहीं माँगी थी इसलिए मेरे यूँ पैसे देने पर वो हैरान हुईं; "ये पैसे उसकी दवाई कराने के लिए दे रहा हूँ!" इतना कह मैंने अपने दोनों हाथों की उँगलियाँ चटकाईं|



मैंने दीदी के बेटे राकेश को बुलाया और उससे बोला; "बेटा, जा कर अपने पापा को बुलाओ और ये कहना की ठेकेदार ने बुलाया है| मेरा नाम मत लेना!" मेरी बता सुन राकेश तुरंत दौड़ गया| मैंने राकेश से ठेकेदार यानी संतोष का नाम इसलिए लेने को कहा था की मैं देखना चाहता था की संतोष ने किस कदर लेबरों की लगाम खींच कर रखी है| करीब 10 मिनट के बाद सोझी ऊपर आया, जितना समय उसने आने में लिया था उससे मेरा गुस्सा बढ़ा ही था कम नहीं हुआ था|

मुझे देख सोझी एकदम से सकपका गया और बोला; "अरे साहब आप ने बुलाया था?! लड़का बोला की ठेकेदार बुला रहा है!" सोझी अपनी सफाई देने लगा| "राकेश को मैंने ही कहा था की वो तुझे मेरा नाम न बताये, वरना क्या पता तू भाग जाता?!" मैंने शैतानी मुस्कान लिए हुए कहा और फिर इशारे से सोझी को अपने साथ सीमेंट के बोरों वाले कमरे में चलने को कहा| सोझी को लगा की मैं उससे बोर उठवाऊँगा इसलिए वो बेफिक्र मेरे पीछे चल पड़ा| संतोष जानता था की कमरे में क्या होने वाला है इसलिए वो मेरे पीछे नहीं आया, संगीता मेरे पीछे आ रही थी मगर संतोष ने उसे भी इशारे से रोक दिया| संगीता जानती थी की उसके कारण मुझे आया गुस्सा आज सोझी पर निकलेगा इसलिए संगीता को मेरी थोड़ी चिंता हो रही थी| अब देखा जाए तो मेरा ये गुस्सा बिलकुल सही जगह निकल रहा था, एक स्त्री को यदि उसका पति परेशान करता है तो उस पति को सबक तो सीखाना बनता है|



मैं दीदी और सोझी सीमेंट के बोरोन वाले कमरे में आ गए थे;

मैं: हाँ भई सोझी एक बात तो बता, मैंने तुझे कितनी बार समझाया की दीदी को तंग न किया कर?

मैंने बड़े आराम से बात शुरू करते हुए पुछा|

सोझी: मैं तो इसे कुछ कहता ही नहीं!

सोझी बेक़सूर होने का ड्रामा करते हुए बड़ी नरमी से बोला| झूठ से मुझे सख्त नफरत रही है इसलिए मैंने सोझी के कान पर एक जोरदार झापड़ रसीद किया और अपना सवाल पुनः दोहराया;

मैं: झूठ नहीं! जितना पुछा है उतना बता! कितनी बार मैंने तुझे प्यार से समझाया?

मेरे एक झापड़ से सोझी हिल गया था इसलिए वो डर के मारे काँपते हुए बोला;

सोझी: त...तीन बार साहब!

सोझी के जवाब देते ही मैंने उसके गाल पर एक और थप्पड़ रसीद करते हुए कहा;

मैं: पहलीबार तुझे प्यार से समझाया था न की शराब पीने के पैसे दीदी से मत माँगा कर?

मैंने सवाल पुछा तो सोझी ने सर झुका लिया| मुझे जवाब नहीं मिला तो मैंने उसके गाल पर एक और थप्पड़ धर दिया और तब जा कर सोझी के मुँह से निकला;

सोझी: ह...हाँ साहब!

मैं: दूसरी बार तुझे थोड़ा डाँट के समझाया था न की दीदी को तंग मत किया कर?

मेरा सवाल सुनते ही सोझी ने हाँ में सर हिलाया क्योंकि वो जानता था की अगर उसने जवाब नहीं दिया तो फिर मेरे से मार खायेगा| लेकिन मार तो उसे फिर भी पड़ी;

मैं: मुँह से बोल भोस्डिके!

मैंने गाली देते हुए गरज के पुछा तो सोझी डर से हकलाते हुए बोला;

सोझी: ह...हाँ साहब!

मैं: तीसरी बार तुझे मैंने फिर डाँटा था की दीदी और राकेश को शराब के लिए तंग मत किया कर?

इस बार मेरे पूछे सवाल पर सोझी एकदम से बोला;

सोझी: हाँ साहब!

सोझी को लगा था की उसके जवाब देने पर मैं नहीं मारूँगा मगर उसे एक जोरदार थप्पड़ फिर भी पड़ा जिससे वो जमीन पर जा गिरा;

मैं: बहनचोद जब तीन बार तुझे समझाया, तो तेरी खोपड़ी में बात नहीं घुसी की अपनी बीवी को तंग नहीं करना है?

मैं गुस्से से चिल्लाया|

सोझी: म...माफ़ कर दो साहब! अब नहीं...

सोझी माफ़ी माँगते हुए बोला, पर उसकी बात पूरी हो पाती उसे पहले ही मैंने उसके पेट में लात मारी;

मैं: तुझे माफ़ कर दूँ कुत्ते? दीदी पर हाथ उठाने लगा है और मुझे कहता है माफ़ कर दूँ तुझे?

ये कहते हुए मैंने सोझी की कमीज पकड़ उसे उठाया और दिवार से दे मारा|

मैं: भोस्डिके अब तुझे समझाऊँगा नहीं, अब तो तुझे पहले कुटुँगा और फिर पुलिस थाने ले जा कर घरेलू उत्पीड़न की धरा 2005 के तहत जेल में बंद करवाऊँगा! जब पुलिस वाला रोज़ तेरी गांड में तेल लगा कर डंडा डालेगा न, तब तेरी अक्ल ठिकाने आएगी!

मेरे पुलिस की धमकी देने से सोझी की फ़ट के चार हो गई और उसने मेरे पाँव पकड़ लिए;

सोझी: म...माफ़ कर दो साहब! अब..अब नहीं करूँगा...मैं..अब के ऐसी गलती की तो आपका जूता मेरा सर!

सोझी रोते हुए गिड़गिड़ा कर बोला|

उधर दीदी दरवाजे पर खड़ीं अपने पति को मुझसे पिटता हुआ चुप-चाप देख रहीं थीं| मैंने उनकी तरफ देखते हुए कहा;

मैं: अब से ये आदमी आपको तंग करे न तो एक जलती हुई लकड़ लेना और अपनी कलाई पर दाग़ देना| फिर उसी हालत में पुलिस थाने दौड़ जाना और थानेदार से कहना की आपके पति ने आपको जला कर मारने की कोशिश की है! बस इतना ही आपको करना है, बाकी का सारा काम पुलिस कर लेगी!

मैंने दीदी को अपने पति को ब्लैकमेल करने का एक हथियार दे दिया था| इधर मेरी ये बात सुन सोझी की गांड फ़ट गई थी! वो फिर से मेरे पाँव पकड़ गिगिडाने लगा;

सोझी: नहीं साहब...अब से मैं ऐसा कुछ नहीं करुँगा!

मैंने झटके से अपना पैर सोझी की पकड़ से छुड़ाया और दीदी से बोला;

मैं: ज्यादा नहीं मारा मैंने इसे बस हल्दी वाला दूध पिला देना|

इतना कह मैं कमरे से बाहर आने को हुआ की मैंने देखा की दीदी के पीछे खड़ी संगीता ने ये सारा घटनाक्रम देख लिया है| जहाँ एक तरफ सोझी को पीटने से मेरा गुस्सा शांत हो गया था वहीं संगीता का ये मार-पीट देख डर के मारे बुरा हाल था!



संतोष से हिसाब ले कर मैं घर के लिए चल पड़ा| रास्ते में दिषु का फ़ोन आया, उसने बताया की उसके खड़ूस बॉस से उसे ऑडिट पर दिल्ली से बाहर भेज दिया है, ये सुन कर मैं मन ही मन खुश हुआ की कम से कम मुझे अपनी बेटी को छोड़ कर दिषु के साथ पार्टी तो नहीं जाना पड़ेगा! "साले वापस आ कर पार्टी चाहिए मुझे!" दिषु मुझे फ़ोन पर धमकाते हुए बोला| "हाँ-हाँ भाई वापस आ कर ले लियो पार्टी!" मैंने नकली मुस्कान से कहा| ये बात मैंने जानबूझ कर संगीता को सुनाने के लिए कही थी ताकि कहीं संगीता इस फ़ोन के बहाने से मुझसे बात न करने लग पड़े|

घर पहुँच कर माँ ने जब पुछा की हम कहाँ गए थे तो मैंने उन्हें सच बता दिया; "हिसाब-किताब लेने के लिए साइट पर गए थे|" मेरी बात सुन मुझे डाँटते हुए बोलीं; "तुझे मैंने बहु को घुमाने को कहा था, साइट पर जाने को नहीं!" मैंने माँ की कही बात का कोई जवाब नहीं दिया और कमरे में हाथ-मुँह धोने चला गया| मेरे जाने के बाद माँ ने संगीता से बात की और संगीता ने उन्हें साइट पर जो हुआ वो सब बता दिया| जब मैं बाहर आया तो माँ ने मुझे घूर कर देखा वो मुझे डाँटना चाहतीं थीं मगर उन्हें चिंता इस बात की थी की कहीं उनके डाँटने से मैं फिर से गुस्से से न भर जाऊँ!

वहीं मैं भी माँ के मुझ घूरने से जान गया था की संगीता ने जर्रूर मेरी चुगली कर दी है, परन्तु मुझे माँ के घूरने से कोई फर्क नहीं पड़ा क्योंकि मेरा ध्यान तो मेरी बिटिया रानी पर था| मैंने बिना कुछ कहे स्तुति को अपनी गोदी में लिया और उसे लाड कर जगाने लगा; "मेला बच्चा...सोनू-मोनू बच्चा...उठा जाओ...अभी हम नहाई-नहाई करेंगे!" मेरे लाड कर जगाने से स्तुति उठी और जम्हाई लेने लगी| अपनी बिटिया को यूँ जम्हाई लेते देख मुझे उस पर और भी अधिक प्यार आने लगा; "awwwwww!!" मैं स्तुति को ले कर कमरे में आया और मस्त अंग्रेजी गाना चलाया तथा गाना सुनते हुए स्तुति को नहलाया| गाना सुनते हुए स्तुति को भी नहाने में मज़ा आ रहा था इसलिए मेरी बिटिया के मुँह से दो बार ख़ुशी की किलकारी भी निकली|



कुछ देर बाद दोनों बच्चे स्कूल से लौटे और आ कर सीधा मुझसे लिपट गए| बच्चों के घर पर आने से घर का माहौल पुनः शांत हो गया था| मैं, माँ और संगीता बच्चों की मौजूदगी में बिलकुल वैसे ही बर्ताव कर रहे थे जैसे आमतौर पर करते थे| हाँ इतना अवश्य था की मैं संगीता से बात नहीं कर रहा था| आयुष छोटा था इसलिए वो ये बात समझ नहीं पाया मगर नेहा को शक होने लगा था| दोपहर का खाना खा कर माँ ने मुझे दोनों बच्चों को सुला कर आने को कहा| नेहा ने अपनी दादी जी की बात सुन ली थी और उसका शक्की दिमाग दौड़ने लगा था| स्तुति पहले ही सो चुकी थी इसलिए मैंने दोनों बच्चों को लाड कर सुलाया और माँ के पास आया| अब मुझे नहीं पता था की मेरी बिटिया सोने का नाटक कर रही है तथा मेरे कमरे से बाहर आते ही वो भी मेरे पीछे-पीछे दबे पाँव बाहर आ रही है|



माँ और संगीता बैठक में बैठे थे और कुछ बात कर रहे थे, परन्तु मुझे देखते ही संगीता नजरें झुका कर चुप हो गई|

माँ: बेटा, इतना गुस्सा नहीं करते!

माँ ने बड़े प्यार से मुझे समझाते हुए बात शुरू की|

माँ: बेटा, इंसान जिस परिवेश में पला-बढ़ा होता है उसका थोड़ा-बहुत असर इंसान में आ ही जाता है| तेरी परवरिश अच्छे परिवेश में हुई, तुझे मैंने और तेरे पिताजी ने अच्छी-अच्छी बातें सिखाई, लोगों का आदर करना सिखाया, गाली नहीं देना सिखाया, तुझ में अच्छे संस्कार डाले ताकि तू एक अच्छा इंसान बन सके| लेकिन संगीता गाँव-देहात के परिवेश में रही है, वहाँ माँ-बाप कहाँ इतना ध्यान देते है की बच्चे के सामने गाली नहीं देते?!

फिर ऐसा नहीं है की संगीता को अपने कहे इस गंदे शब्द पर कोई ग्लानि नहीं है?! देख बेचारी को, सुबह से तेरे डर के मारे ये कुछ खा-पे भी नहीं रही थी, वो तो मैंने इसे समझाया तब जा कर इसने खाना खाया| इस बार इसे माफ़ कर दे, अगलीबार इसने ऐसी गलती की न तो मैं इसकी टाँगें तोड़ दूँगी!

माँ ने मुझे समझाते हुए कहा तथा मुझे हँसाने के लिए बात के अंत में संगीता को प्यारभरी धमकी भी दे डाली, परन्तु संगीता को देख मुझे गुस्सा आ रहा था इसलिए माँ के मज़ाक करने पर भी मैं नहीं हँसा|

मैं: माँ आपका ये तर्क मैं समझता हूँ मगर संगीता को मैं उसके गाली देने के लिए गाँव में प्यार से समझा चूका था, लेकिन उसके बाद भी ये गलती फिर दोहराई गई! क्या गारंटी है की आगे ये गलती फिर नहीं दुहराई जाएगी?! जब मेरे प्यार से समझाने से संगीता को अक्ल नहीं आई तो आपके समझाने से क्या ख़ाक अक्ल आएगी?!

इतना कह मैं उठ कर बच्चों के लिए चॉकलेट लेने के लिए घर से बाहर चल दिया| कुछ देर और घर में रहता तो माँ फिर से मुझे समझाने लग जातीं इसलिए मैं जानबूझ कर घर से निकला था| माँ ने भी कुछ नहीं कहा क्योंकि वो जानती थीं की मेरा गुस्सा शांत होने में थोड़ा समय लगता है|



दो दिन बीत गए और इन दो दिनों में मैं और संगीता पूरी तरह से कटे-कटे रहे| संगीता ने सारा दिन रसोई में या फिर माँ के साथ बिताना शुरू कर दिया, और तो और रात में भी वो माँ के पास सोती थी तथा बच्चे मेरे पास सोते थे| मैं और संगीता बस हमारी बेटी स्तुति के कारण ही आमने-सामने आते थे, वो भी तब जब स्तुति को दूध पीना होता था वरना तो मैं स्तुति के साथ अपने कमरे या छत पर रहता था|



अपनी बेटी को गोदी में लिए हुए मैं अक्सर यही सोचता था की मैं संगीता को माफ़ करूँ या फिर इसी तरह उससे उखड़ा रहूँ| जब मन में ये सवाल दौड़ता तो मेरा दिल बेचैन हो जाता और दिल की धड़कनों की गति असामान्य हो जाती जिसे मेरे छाती से लिपटी हुई स्तुति महसूस कर लेती| मेरे दिल में मची उथल-पुथल को महसूस कर स्तुति के मुँह से एक किलकारी निकलती जिसे मेरा छोटा सा दिल समझ नहीं पाता था| दो दिन लगे मुझे इस किलकारी को समझने में और मैंने इस किलकारी का ये मतलब निकाला; 'पापा जी, मम्मी को माफ़ कर दो!' अपनी बेटी की किलकारी का मतलब समझ मेरे चेहरे पर एक पल के लिए मुस्कान आ गई और मैं स्तुति के सर को चूमते हुए बोला; "आप ठीक कहते हो बेटा| मैं आपकी मम्मी से इतना प्यार करता हूँ की उनसे बात किये बिना मुझे करार ही नहीं मिलता, ऐसे में मैं सारी उम्र आपकी मम्मी से बिना बात किये तो रह नहीं सकता न?! ठीक है मेरी बिटिया, मैं आपकी मम्मी को माफ़ कर दूँगा|" मेरी बात सुन मेरी बिटिया के चेहरे पर मुस्कान आ गई, मानो वो कह रही हो; 'थैंक यू पापा जी!'



उधर मुझसे ज्यादा बुरा हाल संगीता का था| मुझे अपनी आँखों के सामने देखते हुए, मेरे मुँह से अपने लिए दो प्यारभरे बोल सुनने को वो मरी जा रही थी| बड़े-बुजुर्ग कहते हैं की पति के दिल का रास्ता उसके पेट से हो कर गुज़रता है मगर मेरे दिल का रास्ता केवल मेरे बच्चों से हो कर गुज़रता था इसलिए संगीता ने सबसे पहले आयुष से मदद माँगी| उसने आयुष को बड़े अच्छे से सीखा-पढ़ा कर सब बातें रटा कर मेरे पास अपनी पैरवी करने के लिए भेजा|



"पापा जीईईईईईईईईई!" आयुष ने जब ई की मात्रा पर जोर दे कर खींचा तो मैं समझ गया की मेरा बेटा मुझे मक्खन लगाने आया है| "हाँ जी, बेटा जी बोलो!" ये कहते हुए मैंने आयुष को गोदी में उठा लिया| आयुष मेरा मोह देख कर थोड़ा गंभीर होते हुए बोला; "पापा जी, आप मम्मी से गुच्छा हो?" आयुष गुस्सा शब्द को जानबूझ कर तुतला कर बोला ताकि मैं उस पर और मोहित हो जाऊँ और हुआ भी वही, आयुष के यूँ तुतलाने से मेरे मन में प्यार का सागर उमड़ने लगा| मैं जानता था की संगीता ने ही उसे सीखा-पढ़ा कर भेजा है इसलिए मैं भी उसी अनुसार जवाब देने लगा; "नहीं तो?" मैंने एकदम से अनजान बनते हुए कहा, मानो मुझे कुछ पता ही न हो! मेरे दिए जवाब से आयुष को समझ नहीं आया की वो आगे क्या कहे? क्योंकि वो तो मेरे मुँह से 'हाँ जी' शब्द सुन आगे क्या कहना है उसकी तैयारी कर के आया था| परन्तु जब जवाब ही आउट ऑफ़ सिलेबस (out of syllabus) निकला तो आयुष बेचारा असमंजस में पड़ गया की वो आगे कहे क्या? अब मुझे लेने थे आयुष के मज़े इसलिए मैंने उससे पुछा; "आपको किसने कहा बेटा की मैं आपकी मम्मी से नाराज़ हूँ?" मैंने बिलकुल अनजान बनते हुए पूछे सवाल पर आयुष चुप हो गया और जवाब सोचने लगा| उसकी मम्मी द्वारा उसे ये पढ़ाया गया था की मैं संगीता से नाराज़ हूँ मगर यहाँ तो मैंने अपनी बातों और अभिनय से गँगा ही उल्टा बहा दी थी!

उधर संगीता ने आयुष को समझाया था की उसे किसी भी हालत में संगीता का नाम नहीं बताना है इसलिए आयुष मेरे पूछे सवाल का जवाब यानी अपनी मम्मी का नाम लेने से क़तरा रहा था| "वो...म..." इतना बोलते हुए आयुष चुप हो गया और सोचने लगा की वो क्या जवाब दे! मुझे अपने बच्चे को और अधिक परेशान नहीं करना था इसलिए मैंने आयुष का ध्यान भटका दिया; "छोडो इस बात को, आप ये बताओ की आज आपका दिन कैसा था?" मेरे पूछे इस सवाल से आयुष का ध्यान भटक गया और वो मुझे अपने आज के दिन के किस्से सुनाने लगा| वहीं दरवाजे पर कान लगा कर सब बातें सुन रही संगीता ने जब सुना की मैंने आयुष को अपनी बातों से बहला कर मुद्दे से भटका दिया है तो उसने बाहर खड़े-खड़े ही अपना सर पीट लिया!

हम बाप-बेटे की मस्ती भरी बातें संगीता कमरे के बाहर से सुन रही थी, वो जानती थी की मुझे मनाने का उसका एक मोहरा पिट चूका है इसलिए संगीता ने अपना दूसरा मोहरा यानी के नेहा को चुना| आयुष के मुक़ाबले नेहा बहुत समझदार थी, जहाँ आयुष को जो बात सिखाई-पढ़ाई जाती थी वो उसी बात पर अटल रहता था वहीं मेरी बेटी नेहा बहुत होशियार थी| अगर उससे बात घुमा कर भी की जाती तब भी नेहा अपने मुद्दे पर रहती और अपने सवाल का जवाब जानकार ही दम लेती| हाँ संगीता के लिए एक समस्या जर्रूर खड़ी हो गई थी, आयुष को तो उसने एग्जाम के जवाबों की तरह सारी बात रटवा दी थी मगर नेहा बिना तथ्य जाने...बिना पूरी जानकारी लिए कोई बात शुरू नहीं करती थी, अतः संगीता ने नेहा को सारा सच बताना था| अब नेहा ने छुप कर पहले ही सारी बात सुन ली थी और वो लगभग सारी बात समझ भी चुकी थी, जो बात उसे नहीं भी पता थी उसने वो बात अपनी मम्मी से पूछकर अपनी जानकारी पूर्ण कर ली थी, ताकि वो मुझसे प्यार से तर्क कर सके|



बहरहाल, सारी बात जानकार मेरी बेटी नेहा अपने मम्मी-पापा के बीच सारी बात सुलटाने के लिए उतरी| आयुष अपनी पढ़ाई कर रहा था जब नेहा मुझसे बात करने आई, एक कुर्सी खींच कर नेहा मेरे सामने बैठी और बड़ी ही गंभीरता से अपनी बात शुरू की;

नेहा: पापा जी, आप मम्मी से बहुत प्यार करते हो न?

नेहा के ये सवाल सुन मैं जान गया की उसे भी आयुष की तरह संगीता ने ही भेजा है| संगीता की इस होशियारी पर मुझे हँसी आ गई| उधर अपने पूछे सवाल के जवाब में जब नेहा ने मुझे हँसते हुए देखा तो वो चकित हो कर मुझे देखने लगी!

मैं: हाँ जी!

मैंने अपनी हँसी दबाते हुए कहा| इधर मेरे दिए जवाब से नेहा संतुष्ट नहीं थी और अपनी नाक पर गुस्सा लिए मुझे देख रही थी| मेरे यूँ हँसने से मेरी बेटी नाराज़ हो रही थी, उसे लग रहा था की मैं उसका मज़ाक उड़ा रहा हूँ|

मैं: बेटा, इस शान्ति वार्ता के लिए आपके मम्मी द्वारा भेजे हुए आप दूसरे प्रतिनिधि हो, बस यही सोच कर मुझे हँसी आ रही थी!

मैंने नेहा को अपनी सफाई दी ताकि कहीं मेरी बेटी मुझसे नाराज़ न हो जाए| मेरी बात सुन नेहा के चेहरे पर भी मुस्कान आ गई और वो खुद पर गर्व करते हुए बोली;

नेहा: मैं उस बुद्धू लड़के (आयुष) जैसी नहीं हूँ, जिसे आपने अपनी बातों से फुसला लिया था और मुद्दे से भटका दिया था!

नेहा की बात सुन मैंने जोर का ठहाका लगाया तथा नेहा भी मुस्कुराये बिना रह न पाई|

नेहा: अच्छा पापा जी प्लीज मेरी बात सुन लो|

नेहा ने विनती करते हुए कहा तो मैंने अपनी हँसी रोकी और पूरी एकाग्रता से उसकी बात सुनने लगा| मुझे भी ये जानना था की मेरी बेटी अपने पापा जी के सामने कैसे अपनी मम्मी का बचाव करती है?!



"आपके और मम्मी के रिश्ते की शुरुआत दोस्ती से हुई थी न?!" नेहा ने अपनी बात शुरू करते हुए मुझसे सवाल पुछा, जिसके उत्तर में मैंने अपना सर हाँ में हिला दिया| "फिर आपकी दोस्ती प्यार में बदल गई और आपको एक दूसरे से प्यार हो गया न?!" नेहा ने पुनः अपना सवाल पुछा जिसके जवाब में मैंने अपना सर हाँ में हिलाया| "वो बात अलग है की आप मम्मी से ज्यादा मुझे प्यार करते हो!" ये कहते हुए नेहा के चेहरे पर गर्वपूर्ण मुस्कान आ गई और मैं भी अपनी बेटी की इस मुस्कान को देख मुस्कुराने लगा| हम मुद्दे से भटक न जाएँ इसलिए नेहा ने अपनी बात जारी रखी; "आप जानते हो न मम्मी आपसे कितना प्यार करती हैं?!" नेहा ने फिर से अपना प्यारा सा सवाल पुछा जिसके जवाब में मैंने अपना सर हाँ में हिलाया| "तो पापा जी, अगर आपके सबसे प्यारा दोस्त, जिससे आप बहुत प्यार करते हो उससे अगर कोई गलती हो जाए तो क्या आप उससे आजीवन बातचीत बंद कर दोगे?!" नेहा के पूछे इस सवाल पर मैंने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी क्योंकि मैं इस वक़्त अपनी बेटी की बातों से जैसे मंत्र-मुग्ध हो गया था|

मेरे द्वारा कोई जवाब न देने पर नेहा पुनः मुझे समझाते हुए बोली; "मैं जानती हूँ की मम्मी के मुँह से स्तुति के लिए गाली निकल गई थी मगर आप जानते हो न की मम्मी को कितना गुस्सा आता है?!" इस बार नेहा के पूछे सवाल के जवाब में मैंने अपनी गर्दन हाँ में हिलाई| मेरे इस तरह जवाब देने से नेहा को अपनी बात आगे बढ़ाने का मौका मिल गया; "भले ही मम्मी के मुँह से गुस्से में गाली निकल जाती है मगर उन्होंने कभी मुझे या आयुष को गाली देने नहीं दिया| मम्मी मुझे हमशा कहतीं थीं की बेटा अपने पापा जैसा बनना, लोगों से अच्छे गुण सीखना और उनकी बुराइयाँ कभी न अपनाना|” मुझे ये जानकार बहुत ख़ुशी हुई थी की संगीता ने दोनों बच्चों को मेरी अनुपस्थिति में सदा सँभाल कर रखा था, उन्हें संगीता ने किसी गलत रास्ते भटकने नहीं दिया था|

इधर नेहा की बता पूरी नहीं हुई थी, वो अपनी बात जारी रखते हुए बोली; "…इस बार जो हुआ उसके लिए आप मम्मी जी को माफ़ कर दो, आगे से अगर उन्होंने कभी गाली दी न तो आप, मैं, आयुष और स्तुति मिलकर उनसे बात करना बंद कर देंगे|" मेरी बेटी नेहा आज सयानों जैसे बात कर रही थी और उसकी ये बातें सुन कर मैं बहुत प्रभावित हुआ था|



खैर, नेहा ने जब मुझे अपनी मम्मी को माफ़ करने को कहा तो मैंने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी थी, क्योंकि मैं अपनी बेटी को यूँ सयानों जैसे बात सुन कर खो गया था| मेरी ओर से कोई जवाब न पा कर नेहा ने एक अंतिम कोशिश की; "प्लीज पापा जी, मेरे लिए मम्मी को माफ़ कर दो!" नेहा जानती थी की उसके लिए मैं कुछ भी कर सकता हूँ इसीलिए नेहा ने ये माँग की थी|

मैंने अपनी दोनों बाहें खोलीं और नेहा को अपने गले लगा कर उसका सर चूमते हुए बोला; "मेरा बच्चा इतनी जल्दी इतना बड़ा हो गया की अपने मम्मी-पापा के बीच सलाह करवा रहा है?! आई ऍम सो प्राउड ऑफ़ यू बेटा! (I’m so proud of you)” ये कहते हुए मैंने नेहा के मस्तक को चूमा| मेरी बात सुन नेहा को खुद पर गर्व हो रहा था और शर्म भी आ रही थी, मेरी बेटी को अधिक शर्माना न पड़े इसलिए मैंने नेहा का ध्यान भटकाने के लिए उसके सामने ही संगीता को आवाज़ लगाई; "संगीता?" हैरानी की बात ये थी की संगीता कमरे के बाहर दिवार से कान लगाए सारी बात सुन रही थी और जैसे ही मैंने उसे आवाज दी वो एकदम से कमरे में घुसी| दो दिन बाद मेरे मुख से अपना नाम सुन और मेरे चेहरे पर मुस्कान देख संगीता की जान में जान आई| संगीता ने आव देखा न ताव उसने सीधा मेरे पैर पकड़ लिए और गिड़गिड़ाते हुए बोली; "मुझे माफ़ कर दो जानू! मैंने हमारे प्यार की निशानी को इतनी गन्दी गाली दी! मैं वादा करती हूँ की आगे से फिर कभी मैं गाली नहीं दूँगी!" संगीता की आवाज़ में पछतावा और ग्लानि झलक रही थी|

मैंने संगीता के दोनों कँधे पकड़ उसे उठाया और बोला; "जान, मुझे तुम्हारा गुस्सा करना बुरा नहीं लगा, बुरा लगा तो बस तुम्हारे मुँह से मेरे बेटी के लिए गाली सुनना| गुस्सा आना एक स्वाभाविक प्रक्रिया है मगर गुस्सा किस पर और कैसे निकालना है ये मालूम होना चाहिए| तुमने देखा न की मैंने कैसे तुम पर आये गुस्से को सोझी पर निकाला, जिससे मेरा गुस्सा भी शांत हो गया और सोझी सुधर भी गया| उसी तरह अगर तुम रात को स्तुति के रोने से गुस्सा हो कर अपना गुस्सा मुझ पर निकालते हुए मुझसे बात नहीं करती तो मुझे बुरा नहीं लगता|” मैंने संगीता की आँखों में देखते हुए उसे समझाया और उसे उसकी गलती का एहसास दिलाया| संगीता ने बड़े ध्यान से मेरी बात सुनी थी और अपने कान पकड़ते हुए बच्चों की तरह तुतलाते हुए बोली; "सोली (sorry) जी!" संगीता का बचपना देख मैं हँस पड़ा और उसे अपने गले लगा लिया|

कुछ देर बाद माँ घर पहुँची और हम मियाँ-बीवी को पहले की तरह बातें करते देख जान गईं की घर में सब कुछ अब पहले जैसा है| "चलो, तुम दोनों की सुलाह तो हो गई!" माँ हम दोनों से बोलीं जिसके जवाब में मैंने अपनी बेटी की तारीफ करनी शुरू कर दी; "इसका सारा श्रेय जाता है आपकी पोती नेहा को!" फिर मैंने माँ को बताया की नेहा ने कैसे एक वयस्क की तरह बात कर मेरा दिल पिघलाया और अपनी मम्मी को माफ़ी दिलवाई| अपनी पोती के सयानेपन को देख माँ बहुत खुश हुईं और उन्होंने नेहा को अपने गले लगा कर बहुत लाड किया|




नेहा को लाड कर माँ ने मुझे भी प्यार से समझाते हुए कहा; "बेटा, तू भी गुस्सा कम किया कर| साइट पर जो तूने उस लेबर को सबक सिखा कर अपना गुस्सा निकाला था वो सही बात नहीं थी| दूसरों के पचड़ों में अधिक पड़ने से हमारे घर पर भी कोई मुसीबत आ सकती है| खैर, जो हो गया सो हो गया, आगे से मेरी बात का ध्यान रखिओ|" माँ को मुझसे इस मामले में कोई सफाई नहीं चाहिए थी, उन्हें बस मुझे एक सीख देनी थी जो मुझे मिल चुकी थी इसलिए मैंने बस अपना सर हाँ में हिला कर माँ की कही बात का मान रखा|

जारी रहेगा भाग - 13 में...
:reading:
 

Akki ❸❸❸

ᴾʀᴏᴜᴅ ᵀᴏ ᴮᴇ ᴴᴀʀʏᴀɴᴠɪ
26,727
30,992
304
इकत्तीसवाँ अध्याय: घर संसार
भाग - 12


अब तक अपने पढ़ा:


कमरे से बाहर आ कर मैंने अपन बनियानी और पजामा पहना तथा माँ के कमरे में प्रवेश किया| स्तुति के रोने से माँ भी जाग गईं थी और वो अपनी कोशिश करते हुए स्तुति को चुप कराने की कोशिश कर रहीं थीं| मुझे देख माँ बोलीं; " शुगी (स्तुति) ने सुसु कर दिया था, लगता है बहु शुगी को डायपर (diaper) पहनाना भूल गई थी|" मैंने माँ की बात का कोई जवाब नहीं दिया और स्तुति को गोदी में ले कर अपने कमरे में आ गया| स्तुति के कपड़े बदल उसे लाड कर मैंने चुप कराया तथा अपने सीने से लगा कर सारी रात जागते हुए कटी|


अब आगे:


गुस्सा
इंसान का सबसे बड़ा दुश्मन होता है, जब ये इंसान के दिमाग पर हावी होता है तो इंसान वो भी कह जाता है जो उसे नहीं कहना चाहिए था इसलिए जब गुस्सा आये तो इंसान को चुप रहना चाहिए और सोच-समझ कर बोलना चाहिए|

जीवन की ये सीख बड़ी ही सरल है मगर इस सीख को समझने वाले ही नासमझी करते हैं| यही हाल संगीता का भी है, आजतक उसने अपने जीवन की दो कमियाँ:

1. एकदम से गुस्सा करना और

2. अपने किये वादे पर अटल न रहना नहीं सुधारीं|



अगली सुबह 6 बजे मैंने दोनों बच्चों के सर पर हाथ फेर कर उन्हें जगाया| सबसे पहले नेहा जागी और मुझे स्तुति को गोदी में लिए हुए दिवार का सहारा ले कर बैठे देख नेहा को चिंता होने लगी| अपनी बेटी को चिंता मुक्त करने के लिए मैंने अपने होठों पर मुस्कान चिपकाई और नेहा को अपने गले लगने को बुलाया| नेहा मेरे गले लगी और बोली; "पापा जी, आप रात भर सोये नहीं न? जर्रूर इस शैतान (स्तुति) ने नहीं सोने दिया होगा!" मैंने नेहा की बात का जवाब बस सर हाँ में हिला कर दिया और उसे स्कूल के लिए तैयार होने को कहा| नेहा तैयार होने गई तो मैंने आयुष के सर पर हाथ फेरते हुए उसे पुकारा| थोड़ा कुनमुना कर आखिर आयुष उठ ही गया और मुझे सुबह की गुड मॉर्निंग वाली पप्पी दे कर बाथरूम चला गया|

आयुष को स्कूल के लिए अक्सर मैं ही तैयार करा था, परन्तु आज मेरा मन उदास था और स्तुति को अपने से जुदा करने का नहीं था| "बेटा जी, आज आप खुद तैयार हो जाओगे?" मैंने आयुष से प्यार से कहा तो आयुष ख़ुशी-ख़ुशी अपना सर हाँ में हिलाने लगा| आयुष खुद तैयार होने लगा था और इधर मैं स्तुति के माथे को चूम खुसफुसाते हुए बोला; "बेटा, आप मेरा खून हो...मेरे बच्चे हो...कोई अगर आपके बारे में कुछ गंदा कहेगा न तो मैं उसे छोड़ूँगा नहीं!" मेरे भीतर मौजूद एक पिता का दिल संगीता के मुँह से निकली उस एक गाली के कारण झुँझला उठा था| दिमाग में एक अजीब सा गुस्सा भर चूका था जो आज किसी न किसी पर तो निकलना था|



उधर संगीता का डर के मारे बुरा हाल था, कल रात के मेरे रौद्र रूप को देख उसकी हिम्मत नहीं पड़ रही थी की वो मेरे सामने आये इसलिए संगीता सुबह से ले कर अभी तक मेरे कमरे में नहीं आई थी, उसे जब भी कुछ चाहिए होते वो आयुष या नेहा को कमरे में भेज देती| लेकिन अब तो बच्चों के भी स्कूल जाने का समय हो गया था और ऐसे में अब संगीता को बच्चों का भी सहारा नहीं बचा था| माँ बच्चों को स्कूल छोड़ने गईं तो संगीता को मजबूरन मेरे लिए चाय ले कर कमरे में आना पड़ा| सर झुकाये हुए, चाय का कप थामे हुए संगीता ने कमरे में प्रवेश किया| इधर जैसे ही मैंने संगीता को कमरे में आते हुए देखा मैंने फौरन अपना मुँह दूसरी तरफ मोड़ लिया क्योंकि संगीता को देखते ही मुझे उसके द्वारा रात में मेरी बिटिया को दी हुई गाली याद आ रही थी जिससे मेरा गुस्सा फटने की कगार पर आ चूका था| मैं गुस्से में आ कर कहीं संगीता पर कोई बर्बरता न दिखा दूँ इसी के लिए मैंने अपना मुँह मोड़ लिया था|

वहीं संगीता ने जब तिरछी निगाहों से देखा की मैंने उससे यूँ मुँह मोड़ रखा है तो पहले तो उसका दिल टूट कर चकना चूर हो गया और फिर डर की शीत लहर उसके पूरे जिस्म में दौड़ गई! जो थोड़ी बहुत हिम्मत कर संगीता मेरे लिए चाय ले कर आई थी वो हिम्मत भी मेरा गुस्सा देख कर जवाब दे गई थी| कुछ देर बाद जब माँ बच्चों को उनकी स्कूल वैन में बिठाकर आईं तो उन्हें संगीता की नम आँखें दिखीं| माँ ने उससे बहुत पुछा मगर संगीता से डर के मारे कुछ कहा नहीं गया| आखिरकर माँ मेरे पास आईं और मुझसे संगीता की नम आँखों का कारण पुछा| "क्या एक माँ अपने ही खून को गाली दे सकती है? और वो भी कोई ऐसी-वैसी गाली नहीं...'हरामज़ादी' जैसी गाली!" मैं दाँत पीसते हुए माँ से बोला| मेरा सवाल सुन और मेरी अंत में कही बात सुन माँ को मेरे गुस्सा होने का कारण समझ आया| " कल रात स्तुति के अचानक रोने से संगीता के मुँह से ये गाली निकली थी! आप जानते हो न इस गाली का मतलब? क्या एक माँ को अपनी ही बेटी को ऐसी गाली देना उचित है?!... स्तुति छोटी सी बच्ची है, उसे क्या पता की उसके यूँ रोने से सबकी नींद टूटती है?! और गलती तो स्तुति की भी नहीं थी, संगीता उसे डायपर पहनाना भूल गई थी...अब अगर स्तुति ने सुसु कर बिस्तर गीला कर दिया तो ये बेचारी बच्ची क्या करे?!" मेरी आवाज़ गुस्से के कारण तेज़ हो चली थी| माँ जानती थीं की मैं कभी भी बिना किसी सही वजह के गुस्सा नहीं होता इसलिए माँ मुझे शांत करवाते हुए बोलीं; "बस बेटा! तेरा गुस्सा होना जायज है लेकिन ज़रा बहु की तरफ से तो सोच कर देख| वो बेचारी गाँव में पली-बढ़ी है, जहाँ माँ-बाप अक्सर बच्चों को गालियाँ दे कर डाँटते रहते हैं| माँ-बाप द्वारा दी गई ये गालियाँ दिल से या नफरत के कारण नहीं दी जातीं, ये तो केवल गुस्सा होने पर दी जातीं हैं इसीलिए गाँव के बच्चे इन गालियों को दिल से नहीं लगाते|

तुझे ये गाली इस लिए चुभ रही है क्योंकि जिस माहौल में तू पला-बढ़ा हुआ है उस माहौल में मैंने या तेरे पिताजी ने तुझे कभी गालियाँ नहीं दी इसलिए तू ये बर्दाश्त नहीं कर पा रहा की तेरी लाड़ली बिटिया को कोई गाली दे| मैं ये नहीं कहती की बहु का शुगी (स्तुति) को गाली देना सही था, ये बिलकुल गलत था और मैं इसके लिए संगीता को समझाऊँगी लेकिन फिलहाल के लिए तू उसे माफ़ कर दे! वो बेचारी सुबह से तेरे गुस्से के कारण डरी-सहमी बैठी है और मुझसे उसकी ये हालत नहीं देखि जाती|" माँ की कही बात मुझे ऐसी लग रही थी मानो वो संगीता का बचाव कर रहीं हों इसलिए मैं गुस्से में उठ खड़ा हुआ और बोला; "ये गाँव-देहात नहीं है, ये हमारा घर है! और संगीता को मैंने बहुत पहले ही समझा दिया था की उसका यूँ बच्चों पर बेवजह गुस्सा करना, उन्हें गाली देना या मारने के लिए हाथ उठाना मुझे पसंद नहीं! ये सब जानते-बूझते भी मेरी बात न मानना मुझे पसंद नहीं!" इतना कह मैं कमरे से बाहर निकला तो मैंने देखा की संगीता बाहर छुपी हुई मेरी और माँ की सारी बात सुन रही है| संगीता को देख कर मैंने मुँह मोड़ा और स्तुति को ले कर छत पर आ गया|



कुछ देर बाद माँ ने मुझे भीतर बुलाया और नाश्ते करने के लिए अपने साथ बिठाया| तबतक स्तुति भी जाग गई थी और उसे दूध पीना था, माँ ने मुझे स्तुति को संगीता को सौंपने को कहा ताकि संगीता उसे दूध पिला दे| नाश्ता करने के बाद मैं साइट पर फ़ोन कर के काम का जायजा ले रहा था, जब माँ ने मुझे अपने पास बुलाया; "बेटा, तुम दोनों जा कर बाहर हवा-बयार खा कर आओ तब तक मैं स्तुति को सँभालती हूँ|" ये कहते हुए माँ ने अपने हाथ स्तुति को गोदी लेने के लिए बढाए| दरअसल ये माँ की कोशिश थी की मैं और संगीता आपस में बात कर के ये मामला सुलझा लें, परन्तु मैं इसके लिए कतई राज़ी नहीं था इसलिए मैं मन ही मन संगीता के साथ कहीं न जाने का बहाना ढूँढने लगा| तभी मैंने गौर किया तो पाया की माँ स्तुति को अपनी गोदी में लेने के लिए बाहें फैलाएं हैं, माँ के यूँ स्तुति को गोदी लेने की इच्छा को देख मुझे अपना बहाना मिल गया था| मुझे लगा की मेरी बिटिया मेरी गोदी से उतरेगी ही नहीं और मुझे संगीता के साथ कहीं न जाने का बहाना मिल जायेगा, लेकिन मेरी बिटिया भी अपनी दादी जी की ही तरह चाहती थी की मैं उसकी मम्मी के साथ बाहर जाऊँ तभी तो स्तुति बड़े आराम से बिना कोई नख़रा किये अपनी दादी जी की गोदी में चली गई! अब ये दृश्य देख कर मैं तो हैरान रह गया और आँखें फाड़े स्तुति को देखने लगा की वो कैसे अपनी दादी जी की गोदी में इतनी आसानी से चली गई?!

उधर माँ ने स्तुति को अपनी गोदी में ले कर लाड करना शुरू कर दिया था; “मेरी शुगी...मेरी लाडो!" माँ को अपनी बेटी को लाड करते देख मेरा मन प्रसन्न हो गया और दिमाग में भरा गुस्सा कम होने लगा|

"अब यहाँ मेरे सर पर क्यों खड़ा है, जा कर तैयार हो और संगीता को बाहर घुमा कर ला!" माँ ने मुझे प्यार से डाँट लगाते हुए कहा| माँ की ये प्यारभरी डाँट सुन कर मुझे बुरा नहीं लगा, गुस्सा आया जब उन्होंने संगीता का नाम लिया| अब माँ ने आदेश दिया था तो उनकी बात माननी थी वरना घर में मेरे कारण क्लेश हो जाता| चेहरे पर नकली मुस्कराहट लिए मैं अपने कमरे में घुसा और तैयार हो गया| मेरे तैयार होने के बाद संगीता तैयार हुई और सर झुकाये मेरे सामने खड़ी हो गई| हम दोनों मियाँ-बीवी घर से निकले और गाडी में बैठ गए, घर से गाडी तक के पुरे रास्ते संगीता सर झुका कर चल रही थी, न उसने और न ही मैंने बात शुरू करने की कोई कोशिश की|



संगीता के साथ होने से मेरा गुस्सा कम नहीं हो रहा था और ऐसे में मेरा मन कहीं घूमने जाने का नहीं था| जब मन नहीं था तो दिमाग ने कहा की क्यों पैसे बर्बाद किये जाएँ, इससे अच्छा है की घर से निकला कर कुछ काम किया जाए| दिमाग की बात मानते हुए मैंने गाडी साइट की ओर मोड़ दी| साइट पहुँच कर जब मैं गाडी पर करने लगा तो संगीता जान गईं की मेरा मन घूमने का नहीं था इसीलिए मैं उसे यहाँ साइट पर लाया हूँ लेकिन फिर भी उसने मुझसे इसके लिए कोई शिकायत नहीं की|

उधर मुझे और संगीता को देख संतोष मेरे पास आया और हम दोनों के यूँ अचानक आने का कारण पूछने लगा; "कुछ नहीं यहीं से गुज़र रहे थे, सोचा साइट भी देखते चलें|" मैंने नकली मुस्कान लिए हुए कहा| मैं और संतोष सीढ़ी चढ़ ऊपर लेंटर पड़ने के लिए जो सेटरिंग बाँधी गई थी वो देखने चल पड़े| वहीं संगीता भी चेहरे पर नकली मुस्कान लिए मेरे पीछे चलने लगी, मैं और संतोष बातों में लग गए थे इसलिए हमारा ध्यान संगीता पर गया ही नहीं|



"बड़े दिन बाद आये साहब?" हमारी साइट पर काम करने वाली एक दीदी बोलीं| इन दीदी का एक बेटा है जो पढ़ने में अच्छा था इसलिए मैंने उसका दाखिला सरकारी स्कूल में करवा दिया था, इनका पति सोझी शराब पीता था और हमारी ही साइट पर काम करता था| शराब और नशे की लत ने सोझी का शरीर खत्म कर दिया था| जब शराब के पैसे खत्म होते तो साइट पर आ कर हाजरी लगा कर काम करता और पैसे मिलते ही गोल हो जाता| दीदी के शिकायत करने पर मैं सोझी को कई बार डाँट चूका था मगर वो साला कुत्ते की दुम सुधरने का नाम ही नहीं लेता था| मैंने उसे जब काम से निकालने की धमकी दी तो वो कुछ दिन के लिए सुधरा क्योंकि उस जैसे नशेड़ी को कोई दूसरा काम नहीं देता, पर फिर कुछ दिन बाद वही कमीनापन जारी हो गया| मेरी दीदी की इसी प्रकार मदद करने के कारण जब भी मैं साइट पर आता तो दीदी मुझसे बात करने आ जाती थीं|

खैर, दीदी की आवाज़ सुन मैं पीछे मुड़ा और उन्हें भी वही बात कही जो मैंने संतोष से कही थी| "ये लो मिलो संगीता से..." मैंने बस इतना ही कहा था की दीदी ने हाथ जोड़कर संगीता से नमस्ते की; "राम-राम बहु रानी" जवाब में संगीता ने हाथ जोड़कर अच्छे से राम-राम की|

"सोझी अब तो तंग नहीं करता न आपको?" मैंने दीदी से उनके पति सोझी के बारे में पुछा तो दीदी मायूस होते हुए बोलीं; "पहले तो शराब पीने के लिए पैसे माँगते समय गाली-गलौज करता था, अब तो हाथ भी उठाता है! आप उसे समझाओ की मुझे तंग न किया करे|" दीदी की बात सुन मुझे अपना गुस्सा निकालने के लिए सही निशाना मिल गया; "देखो दीदी, समझाया तो मैंने उसे बहुत बार है इसलिए अब मुझमें उसे बोल कर समझाने का सबर नहीं है| ये आदमी अब बस लात की भाषा समझेगा, आप कहोगी तो अभी समझा दूँगा!" जब मैंने लात की भाषा का जिक्र किया तो संगीता समझ गई की मैं क्या करने वाला हूँ, वो मुझे रोकने की कोशिश करने के लिए मेरी तरफ देखने लगी| जैसे ही हमारी नजरें मिलीं उसने कुछ कहने के लिए अपने लब खोले मगर मेरी आँखों में उसे गुस्से की ज्वाला नज़र आई और संगीता की हिमत जवाब दे गई! इधर दीदी मेरी बात सुन कर बोली; "आपको उसे जैसे समझाना है, समझाओ पर मेरी जान छुड़वाओ!" दीदी हाथ जोड़ते हुए बोलीं| मैंने अपना पर्स निकाला और उन्हें 1,000/- रुपये दिए| दीदी बहुत स्वाभिमानी थीं और उन्होंने आजतक मुझसे रुपये-पैसे की मदद नहीं माँगी थी इसलिए मेरे यूँ पैसे देने पर वो हैरान हुईं; "ये पैसे उसकी दवाई कराने के लिए दे रहा हूँ!" इतना कह मैंने अपने दोनों हाथों की उँगलियाँ चटकाईं|



मैंने दीदी के बेटे राकेश को बुलाया और उससे बोला; "बेटा, जा कर अपने पापा को बुलाओ और ये कहना की ठेकेदार ने बुलाया है| मेरा नाम मत लेना!" मेरी बता सुन राकेश तुरंत दौड़ गया| मैंने राकेश से ठेकेदार यानी संतोष का नाम इसलिए लेने को कहा था की मैं देखना चाहता था की संतोष ने किस कदर लेबरों की लगाम खींच कर रखी है| करीब 10 मिनट के बाद सोझी ऊपर आया, जितना समय उसने आने में लिया था उससे मेरा गुस्सा बढ़ा ही था कम नहीं हुआ था|

मुझे देख सोझी एकदम से सकपका गया और बोला; "अरे साहब आप ने बुलाया था?! लड़का बोला की ठेकेदार बुला रहा है!" सोझी अपनी सफाई देने लगा| "राकेश को मैंने ही कहा था की वो तुझे मेरा नाम न बताये, वरना क्या पता तू भाग जाता?!" मैंने शैतानी मुस्कान लिए हुए कहा और फिर इशारे से सोझी को अपने साथ सीमेंट के बोरों वाले कमरे में चलने को कहा| सोझी को लगा की मैं उससे बोर उठवाऊँगा इसलिए वो बेफिक्र मेरे पीछे चल पड़ा| संतोष जानता था की कमरे में क्या होने वाला है इसलिए वो मेरे पीछे नहीं आया, संगीता मेरे पीछे आ रही थी मगर संतोष ने उसे भी इशारे से रोक दिया| संगीता जानती थी की उसके कारण मुझे आया गुस्सा आज सोझी पर निकलेगा इसलिए संगीता को मेरी थोड़ी चिंता हो रही थी| अब देखा जाए तो मेरा ये गुस्सा बिलकुल सही जगह निकल रहा था, एक स्त्री को यदि उसका पति परेशान करता है तो उस पति को सबक तो सीखाना बनता है|



मैं दीदी और सोझी सीमेंट के बोरोन वाले कमरे में आ गए थे;

मैं: हाँ भई सोझी एक बात तो बता, मैंने तुझे कितनी बार समझाया की दीदी को तंग न किया कर?

मैंने बड़े आराम से बात शुरू करते हुए पुछा|

सोझी: मैं तो इसे कुछ कहता ही नहीं!

सोझी बेक़सूर होने का ड्रामा करते हुए बड़ी नरमी से बोला| झूठ से मुझे सख्त नफरत रही है इसलिए मैंने सोझी के कान पर एक जोरदार झापड़ रसीद किया और अपना सवाल पुनः दोहराया;

मैं: झूठ नहीं! जितना पुछा है उतना बता! कितनी बार मैंने तुझे प्यार से समझाया?

मेरे एक झापड़ से सोझी हिल गया था इसलिए वो डर के मारे काँपते हुए बोला;

सोझी: त...तीन बार साहब!

सोझी के जवाब देते ही मैंने उसके गाल पर एक और थप्पड़ रसीद करते हुए कहा;

मैं: पहलीबार तुझे प्यार से समझाया था न की शराब पीने के पैसे दीदी से मत माँगा कर?

मैंने सवाल पुछा तो सोझी ने सर झुका लिया| मुझे जवाब नहीं मिला तो मैंने उसके गाल पर एक और थप्पड़ धर दिया और तब जा कर सोझी के मुँह से निकला;

सोझी: ह...हाँ साहब!

मैं: दूसरी बार तुझे थोड़ा डाँट के समझाया था न की दीदी को तंग मत किया कर?

मेरा सवाल सुनते ही सोझी ने हाँ में सर हिलाया क्योंकि वो जानता था की अगर उसने जवाब नहीं दिया तो फिर मेरे से मार खायेगा| लेकिन मार तो उसे फिर भी पड़ी;

मैं: मुँह से बोल भोस्डिके!

मैंने गाली देते हुए गरज के पुछा तो सोझी डर से हकलाते हुए बोला;

सोझी: ह...हाँ साहब!

मैं: तीसरी बार तुझे मैंने फिर डाँटा था की दीदी और राकेश को शराब के लिए तंग मत किया कर?

इस बार मेरे पूछे सवाल पर सोझी एकदम से बोला;

सोझी: हाँ साहब!

सोझी को लगा था की उसके जवाब देने पर मैं नहीं मारूँगा मगर उसे एक जोरदार थप्पड़ फिर भी पड़ा जिससे वो जमीन पर जा गिरा;

मैं: बहनचोद जब तीन बार तुझे समझाया, तो तेरी खोपड़ी में बात नहीं घुसी की अपनी बीवी को तंग नहीं करना है?

मैं गुस्से से चिल्लाया|

सोझी: म...माफ़ कर दो साहब! अब नहीं...

सोझी माफ़ी माँगते हुए बोला, पर उसकी बात पूरी हो पाती उसे पहले ही मैंने उसके पेट में लात मारी;

मैं: तुझे माफ़ कर दूँ कुत्ते? दीदी पर हाथ उठाने लगा है और मुझे कहता है माफ़ कर दूँ तुझे?

ये कहते हुए मैंने सोझी की कमीज पकड़ उसे उठाया और दिवार से दे मारा|

मैं: भोस्डिके अब तुझे समझाऊँगा नहीं, अब तो तुझे पहले कुटुँगा और फिर पुलिस थाने ले जा कर घरेलू उत्पीड़न की धरा 2005 के तहत जेल में बंद करवाऊँगा! जब पुलिस वाला रोज़ तेरी गांड में तेल लगा कर डंडा डालेगा न, तब तेरी अक्ल ठिकाने आएगी!

मेरे पुलिस की धमकी देने से सोझी की फ़ट के चार हो गई और उसने मेरे पाँव पकड़ लिए;

सोझी: म...माफ़ कर दो साहब! अब..अब नहीं करूँगा...मैं..अब के ऐसी गलती की तो आपका जूता मेरा सर!

सोझी रोते हुए गिड़गिड़ा कर बोला|

उधर दीदी दरवाजे पर खड़ीं अपने पति को मुझसे पिटता हुआ चुप-चाप देख रहीं थीं| मैंने उनकी तरफ देखते हुए कहा;

मैं: अब से ये आदमी आपको तंग करे न तो एक जलती हुई लकड़ लेना और अपनी कलाई पर दाग़ देना| फिर उसी हालत में पुलिस थाने दौड़ जाना और थानेदार से कहना की आपके पति ने आपको जला कर मारने की कोशिश की है! बस इतना ही आपको करना है, बाकी का सारा काम पुलिस कर लेगी!

मैंने दीदी को अपने पति को ब्लैकमेल करने का एक हथियार दे दिया था| इधर मेरी ये बात सुन सोझी की गांड फ़ट गई थी! वो फिर से मेरे पाँव पकड़ गिगिडाने लगा;

सोझी: नहीं साहब...अब से मैं ऐसा कुछ नहीं करुँगा!

मैंने झटके से अपना पैर सोझी की पकड़ से छुड़ाया और दीदी से बोला;

मैं: ज्यादा नहीं मारा मैंने इसे बस हल्दी वाला दूध पिला देना|

इतना कह मैं कमरे से बाहर आने को हुआ की मैंने देखा की दीदी के पीछे खड़ी संगीता ने ये सारा घटनाक्रम देख लिया है| जहाँ एक तरफ सोझी को पीटने से मेरा गुस्सा शांत हो गया था वहीं संगीता का ये मार-पीट देख डर के मारे बुरा हाल था!



संतोष से हिसाब ले कर मैं घर के लिए चल पड़ा| रास्ते में दिषु का फ़ोन आया, उसने बताया की उसके खड़ूस बॉस से उसे ऑडिट पर दिल्ली से बाहर भेज दिया है, ये सुन कर मैं मन ही मन खुश हुआ की कम से कम मुझे अपनी बेटी को छोड़ कर दिषु के साथ पार्टी तो नहीं जाना पड़ेगा! "साले वापस आ कर पार्टी चाहिए मुझे!" दिषु मुझे फ़ोन पर धमकाते हुए बोला| "हाँ-हाँ भाई वापस आ कर ले लियो पार्टी!" मैंने नकली मुस्कान से कहा| ये बात मैंने जानबूझ कर संगीता को सुनाने के लिए कही थी ताकि कहीं संगीता इस फ़ोन के बहाने से मुझसे बात न करने लग पड़े|

घर पहुँच कर माँ ने जब पुछा की हम कहाँ गए थे तो मैंने उन्हें सच बता दिया; "हिसाब-किताब लेने के लिए साइट पर गए थे|" मेरी बात सुन मुझे डाँटते हुए बोलीं; "तुझे मैंने बहु को घुमाने को कहा था, साइट पर जाने को नहीं!" मैंने माँ की कही बात का कोई जवाब नहीं दिया और कमरे में हाथ-मुँह धोने चला गया| मेरे जाने के बाद माँ ने संगीता से बात की और संगीता ने उन्हें साइट पर जो हुआ वो सब बता दिया| जब मैं बाहर आया तो माँ ने मुझे घूर कर देखा वो मुझे डाँटना चाहतीं थीं मगर उन्हें चिंता इस बात की थी की कहीं उनके डाँटने से मैं फिर से गुस्से से न भर जाऊँ!

वहीं मैं भी माँ के मुझ घूरने से जान गया था की संगीता ने जर्रूर मेरी चुगली कर दी है, परन्तु मुझे माँ के घूरने से कोई फर्क नहीं पड़ा क्योंकि मेरा ध्यान तो मेरी बिटिया रानी पर था| मैंने बिना कुछ कहे स्तुति को अपनी गोदी में लिया और उसे लाड कर जगाने लगा; "मेला बच्चा...सोनू-मोनू बच्चा...उठा जाओ...अभी हम नहाई-नहाई करेंगे!" मेरे लाड कर जगाने से स्तुति उठी और जम्हाई लेने लगी| अपनी बिटिया को यूँ जम्हाई लेते देख मुझे उस पर और भी अधिक प्यार आने लगा; "awwwwww!!" मैं स्तुति को ले कर कमरे में आया और मस्त अंग्रेजी गाना चलाया तथा गाना सुनते हुए स्तुति को नहलाया| गाना सुनते हुए स्तुति को भी नहाने में मज़ा आ रहा था इसलिए मेरी बिटिया के मुँह से दो बार ख़ुशी की किलकारी भी निकली|



कुछ देर बाद दोनों बच्चे स्कूल से लौटे और आ कर सीधा मुझसे लिपट गए| बच्चों के घर पर आने से घर का माहौल पुनः शांत हो गया था| मैं, माँ और संगीता बच्चों की मौजूदगी में बिलकुल वैसे ही बर्ताव कर रहे थे जैसे आमतौर पर करते थे| हाँ इतना अवश्य था की मैं संगीता से बात नहीं कर रहा था| आयुष छोटा था इसलिए वो ये बात समझ नहीं पाया मगर नेहा को शक होने लगा था| दोपहर का खाना खा कर माँ ने मुझे दोनों बच्चों को सुला कर आने को कहा| नेहा ने अपनी दादी जी की बात सुन ली थी और उसका शक्की दिमाग दौड़ने लगा था| स्तुति पहले ही सो चुकी थी इसलिए मैंने दोनों बच्चों को लाड कर सुलाया और माँ के पास आया| अब मुझे नहीं पता था की मेरी बिटिया सोने का नाटक कर रही है तथा मेरे कमरे से बाहर आते ही वो भी मेरे पीछे-पीछे दबे पाँव बाहर आ रही है|



माँ और संगीता बैठक में बैठे थे और कुछ बात कर रहे थे, परन्तु मुझे देखते ही संगीता नजरें झुका कर चुप हो गई|

माँ: बेटा, इतना गुस्सा नहीं करते!

माँ ने बड़े प्यार से मुझे समझाते हुए बात शुरू की|

माँ: बेटा, इंसान जिस परिवेश में पला-बढ़ा होता है उसका थोड़ा-बहुत असर इंसान में आ ही जाता है| तेरी परवरिश अच्छे परिवेश में हुई, तुझे मैंने और तेरे पिताजी ने अच्छी-अच्छी बातें सिखाई, लोगों का आदर करना सिखाया, गाली नहीं देना सिखाया, तुझ में अच्छे संस्कार डाले ताकि तू एक अच्छा इंसान बन सके| लेकिन संगीता गाँव-देहात के परिवेश में रही है, वहाँ माँ-बाप कहाँ इतना ध्यान देते है की बच्चे के सामने गाली नहीं देते?!

फिर ऐसा नहीं है की संगीता को अपने कहे इस गंदे शब्द पर कोई ग्लानि नहीं है?! देख बेचारी को, सुबह से तेरे डर के मारे ये कुछ खा-पे भी नहीं रही थी, वो तो मैंने इसे समझाया तब जा कर इसने खाना खाया| इस बार इसे माफ़ कर दे, अगलीबार इसने ऐसी गलती की न तो मैं इसकी टाँगें तोड़ दूँगी!

माँ ने मुझे समझाते हुए कहा तथा मुझे हँसाने के लिए बात के अंत में संगीता को प्यारभरी धमकी भी दे डाली, परन्तु संगीता को देख मुझे गुस्सा आ रहा था इसलिए माँ के मज़ाक करने पर भी मैं नहीं हँसा|

मैं: माँ आपका ये तर्क मैं समझता हूँ मगर संगीता को मैं उसके गाली देने के लिए गाँव में प्यार से समझा चूका था, लेकिन उसके बाद भी ये गलती फिर दोहराई गई! क्या गारंटी है की आगे ये गलती फिर नहीं दुहराई जाएगी?! जब मेरे प्यार से समझाने से संगीता को अक्ल नहीं आई तो आपके समझाने से क्या ख़ाक अक्ल आएगी?!

इतना कह मैं उठ कर बच्चों के लिए चॉकलेट लेने के लिए घर से बाहर चल दिया| कुछ देर और घर में रहता तो माँ फिर से मुझे समझाने लग जातीं इसलिए मैं जानबूझ कर घर से निकला था| माँ ने भी कुछ नहीं कहा क्योंकि वो जानती थीं की मेरा गुस्सा शांत होने में थोड़ा समय लगता है|



दो दिन बीत गए और इन दो दिनों में मैं और संगीता पूरी तरह से कटे-कटे रहे| संगीता ने सारा दिन रसोई में या फिर माँ के साथ बिताना शुरू कर दिया, और तो और रात में भी वो माँ के पास सोती थी तथा बच्चे मेरे पास सोते थे| मैं और संगीता बस हमारी बेटी स्तुति के कारण ही आमने-सामने आते थे, वो भी तब जब स्तुति को दूध पीना होता था वरना तो मैं स्तुति के साथ अपने कमरे या छत पर रहता था|



अपनी बेटी को गोदी में लिए हुए मैं अक्सर यही सोचता था की मैं संगीता को माफ़ करूँ या फिर इसी तरह उससे उखड़ा रहूँ| जब मन में ये सवाल दौड़ता तो मेरा दिल बेचैन हो जाता और दिल की धड़कनों की गति असामान्य हो जाती जिसे मेरे छाती से लिपटी हुई स्तुति महसूस कर लेती| मेरे दिल में मची उथल-पुथल को महसूस कर स्तुति के मुँह से एक किलकारी निकलती जिसे मेरा छोटा सा दिल समझ नहीं पाता था| दो दिन लगे मुझे इस किलकारी को समझने में और मैंने इस किलकारी का ये मतलब निकाला; 'पापा जी, मम्मी को माफ़ कर दो!' अपनी बेटी की किलकारी का मतलब समझ मेरे चेहरे पर एक पल के लिए मुस्कान आ गई और मैं स्तुति के सर को चूमते हुए बोला; "आप ठीक कहते हो बेटा| मैं आपकी मम्मी से इतना प्यार करता हूँ की उनसे बात किये बिना मुझे करार ही नहीं मिलता, ऐसे में मैं सारी उम्र आपकी मम्मी से बिना बात किये तो रह नहीं सकता न?! ठीक है मेरी बिटिया, मैं आपकी मम्मी को माफ़ कर दूँगा|" मेरी बात सुन मेरी बिटिया के चेहरे पर मुस्कान आ गई, मानो वो कह रही हो; 'थैंक यू पापा जी!'



उधर मुझसे ज्यादा बुरा हाल संगीता का था| मुझे अपनी आँखों के सामने देखते हुए, मेरे मुँह से अपने लिए दो प्यारभरे बोल सुनने को वो मरी जा रही थी| बड़े-बुजुर्ग कहते हैं की पति के दिल का रास्ता उसके पेट से हो कर गुज़रता है मगर मेरे दिल का रास्ता केवल मेरे बच्चों से हो कर गुज़रता था इसलिए संगीता ने सबसे पहले आयुष से मदद माँगी| उसने आयुष को बड़े अच्छे से सीखा-पढ़ा कर सब बातें रटा कर मेरे पास अपनी पैरवी करने के लिए भेजा|



"पापा जीईईईईईईईईई!" आयुष ने जब ई की मात्रा पर जोर दे कर खींचा तो मैं समझ गया की मेरा बेटा मुझे मक्खन लगाने आया है| "हाँ जी, बेटा जी बोलो!" ये कहते हुए मैंने आयुष को गोदी में उठा लिया| आयुष मेरा मोह देख कर थोड़ा गंभीर होते हुए बोला; "पापा जी, आप मम्मी से गुच्छा हो?" आयुष गुस्सा शब्द को जानबूझ कर तुतला कर बोला ताकि मैं उस पर और मोहित हो जाऊँ और हुआ भी वही, आयुष के यूँ तुतलाने से मेरे मन में प्यार का सागर उमड़ने लगा| मैं जानता था की संगीता ने ही उसे सीखा-पढ़ा कर भेजा है इसलिए मैं भी उसी अनुसार जवाब देने लगा; "नहीं तो?" मैंने एकदम से अनजान बनते हुए कहा, मानो मुझे कुछ पता ही न हो! मेरे दिए जवाब से आयुष को समझ नहीं आया की वो आगे क्या कहे? क्योंकि वो तो मेरे मुँह से 'हाँ जी' शब्द सुन आगे क्या कहना है उसकी तैयारी कर के आया था| परन्तु जब जवाब ही आउट ऑफ़ सिलेबस (out of syllabus) निकला तो आयुष बेचारा असमंजस में पड़ गया की वो आगे कहे क्या? अब मुझे लेने थे आयुष के मज़े इसलिए मैंने उससे पुछा; "आपको किसने कहा बेटा की मैं आपकी मम्मी से नाराज़ हूँ?" मैंने बिलकुल अनजान बनते हुए पूछे सवाल पर आयुष चुप हो गया और जवाब सोचने लगा| उसकी मम्मी द्वारा उसे ये पढ़ाया गया था की मैं संगीता से नाराज़ हूँ मगर यहाँ तो मैंने अपनी बातों और अभिनय से गँगा ही उल्टा बहा दी थी!

उधर संगीता ने आयुष को समझाया था की उसे किसी भी हालत में संगीता का नाम नहीं बताना है इसलिए आयुष मेरे पूछे सवाल का जवाब यानी अपनी मम्मी का नाम लेने से क़तरा रहा था| "वो...म..." इतना बोलते हुए आयुष चुप हो गया और सोचने लगा की वो क्या जवाब दे! मुझे अपने बच्चे को और अधिक परेशान नहीं करना था इसलिए मैंने आयुष का ध्यान भटका दिया; "छोडो इस बात को, आप ये बताओ की आज आपका दिन कैसा था?" मेरे पूछे इस सवाल से आयुष का ध्यान भटक गया और वो मुझे अपने आज के दिन के किस्से सुनाने लगा| वहीं दरवाजे पर कान लगा कर सब बातें सुन रही संगीता ने जब सुना की मैंने आयुष को अपनी बातों से बहला कर मुद्दे से भटका दिया है तो उसने बाहर खड़े-खड़े ही अपना सर पीट लिया!

हम बाप-बेटे की मस्ती भरी बातें संगीता कमरे के बाहर से सुन रही थी, वो जानती थी की मुझे मनाने का उसका एक मोहरा पिट चूका है इसलिए संगीता ने अपना दूसरा मोहरा यानी के नेहा को चुना| आयुष के मुक़ाबले नेहा बहुत समझदार थी, जहाँ आयुष को जो बात सिखाई-पढ़ाई जाती थी वो उसी बात पर अटल रहता था वहीं मेरी बेटी नेहा बहुत होशियार थी| अगर उससे बात घुमा कर भी की जाती तब भी नेहा अपने मुद्दे पर रहती और अपने सवाल का जवाब जानकार ही दम लेती| हाँ संगीता के लिए एक समस्या जर्रूर खड़ी हो गई थी, आयुष को तो उसने एग्जाम के जवाबों की तरह सारी बात रटवा दी थी मगर नेहा बिना तथ्य जाने...बिना पूरी जानकारी लिए कोई बात शुरू नहीं करती थी, अतः संगीता ने नेहा को सारा सच बताना था| अब नेहा ने छुप कर पहले ही सारी बात सुन ली थी और वो लगभग सारी बात समझ भी चुकी थी, जो बात उसे नहीं भी पता थी उसने वो बात अपनी मम्मी से पूछकर अपनी जानकारी पूर्ण कर ली थी, ताकि वो मुझसे प्यार से तर्क कर सके|



बहरहाल, सारी बात जानकार मेरी बेटी नेहा अपने मम्मी-पापा के बीच सारी बात सुलटाने के लिए उतरी| आयुष अपनी पढ़ाई कर रहा था जब नेहा मुझसे बात करने आई, एक कुर्सी खींच कर नेहा मेरे सामने बैठी और बड़ी ही गंभीरता से अपनी बात शुरू की;

नेहा: पापा जी, आप मम्मी से बहुत प्यार करते हो न?

नेहा के ये सवाल सुन मैं जान गया की उसे भी आयुष की तरह संगीता ने ही भेजा है| संगीता की इस होशियारी पर मुझे हँसी आ गई| उधर अपने पूछे सवाल के जवाब में जब नेहा ने मुझे हँसते हुए देखा तो वो चकित हो कर मुझे देखने लगी!

मैं: हाँ जी!

मैंने अपनी हँसी दबाते हुए कहा| इधर मेरे दिए जवाब से नेहा संतुष्ट नहीं थी और अपनी नाक पर गुस्सा लिए मुझे देख रही थी| मेरे यूँ हँसने से मेरी बेटी नाराज़ हो रही थी, उसे लग रहा था की मैं उसका मज़ाक उड़ा रहा हूँ|

मैं: बेटा, इस शान्ति वार्ता के लिए आपके मम्मी द्वारा भेजे हुए आप दूसरे प्रतिनिधि हो, बस यही सोच कर मुझे हँसी आ रही थी!

मैंने नेहा को अपनी सफाई दी ताकि कहीं मेरी बेटी मुझसे नाराज़ न हो जाए| मेरी बात सुन नेहा के चेहरे पर भी मुस्कान आ गई और वो खुद पर गर्व करते हुए बोली;

नेहा: मैं उस बुद्धू लड़के (आयुष) जैसी नहीं हूँ, जिसे आपने अपनी बातों से फुसला लिया था और मुद्दे से भटका दिया था!

नेहा की बात सुन मैंने जोर का ठहाका लगाया तथा नेहा भी मुस्कुराये बिना रह न पाई|

नेहा: अच्छा पापा जी प्लीज मेरी बात सुन लो|

नेहा ने विनती करते हुए कहा तो मैंने अपनी हँसी रोकी और पूरी एकाग्रता से उसकी बात सुनने लगा| मुझे भी ये जानना था की मेरी बेटी अपने पापा जी के सामने कैसे अपनी मम्मी का बचाव करती है?!



"आपके और मम्मी के रिश्ते की शुरुआत दोस्ती से हुई थी न?!" नेहा ने अपनी बात शुरू करते हुए मुझसे सवाल पुछा, जिसके उत्तर में मैंने अपना सर हाँ में हिला दिया| "फिर आपकी दोस्ती प्यार में बदल गई और आपको एक दूसरे से प्यार हो गया न?!" नेहा ने पुनः अपना सवाल पुछा जिसके जवाब में मैंने अपना सर हाँ में हिलाया| "वो बात अलग है की आप मम्मी से ज्यादा मुझे प्यार करते हो!" ये कहते हुए नेहा के चेहरे पर गर्वपूर्ण मुस्कान आ गई और मैं भी अपनी बेटी की इस मुस्कान को देख मुस्कुराने लगा| हम मुद्दे से भटक न जाएँ इसलिए नेहा ने अपनी बात जारी रखी; "आप जानते हो न मम्मी आपसे कितना प्यार करती हैं?!" नेहा ने फिर से अपना प्यारा सा सवाल पुछा जिसके जवाब में मैंने अपना सर हाँ में हिलाया| "तो पापा जी, अगर आपके सबसे प्यारा दोस्त, जिससे आप बहुत प्यार करते हो उससे अगर कोई गलती हो जाए तो क्या आप उससे आजीवन बातचीत बंद कर दोगे?!" नेहा के पूछे इस सवाल पर मैंने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी क्योंकि मैं इस वक़्त अपनी बेटी की बातों से जैसे मंत्र-मुग्ध हो गया था|

मेरे द्वारा कोई जवाब न देने पर नेहा पुनः मुझे समझाते हुए बोली; "मैं जानती हूँ की मम्मी के मुँह से स्तुति के लिए गाली निकल गई थी मगर आप जानते हो न की मम्मी को कितना गुस्सा आता है?!" इस बार नेहा के पूछे सवाल के जवाब में मैंने अपनी गर्दन हाँ में हिलाई| मेरे इस तरह जवाब देने से नेहा को अपनी बात आगे बढ़ाने का मौका मिल गया; "भले ही मम्मी के मुँह से गुस्से में गाली निकल जाती है मगर उन्होंने कभी मुझे या आयुष को गाली देने नहीं दिया| मम्मी मुझे हमशा कहतीं थीं की बेटा अपने पापा जैसा बनना, लोगों से अच्छे गुण सीखना और उनकी बुराइयाँ कभी न अपनाना|” मुझे ये जानकार बहुत ख़ुशी हुई थी की संगीता ने दोनों बच्चों को मेरी अनुपस्थिति में सदा सँभाल कर रखा था, उन्हें संगीता ने किसी गलत रास्ते भटकने नहीं दिया था|

इधर नेहा की बता पूरी नहीं हुई थी, वो अपनी बात जारी रखते हुए बोली; "…इस बार जो हुआ उसके लिए आप मम्मी जी को माफ़ कर दो, आगे से अगर उन्होंने कभी गाली दी न तो आप, मैं, आयुष और स्तुति मिलकर उनसे बात करना बंद कर देंगे|" मेरी बेटी नेहा आज सयानों जैसे बात कर रही थी और उसकी ये बातें सुन कर मैं बहुत प्रभावित हुआ था|



खैर, नेहा ने जब मुझे अपनी मम्मी को माफ़ करने को कहा तो मैंने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी थी, क्योंकि मैं अपनी बेटी को यूँ सयानों जैसे बात सुन कर खो गया था| मेरी ओर से कोई जवाब न पा कर नेहा ने एक अंतिम कोशिश की; "प्लीज पापा जी, मेरे लिए मम्मी को माफ़ कर दो!" नेहा जानती थी की उसके लिए मैं कुछ भी कर सकता हूँ इसीलिए नेहा ने ये माँग की थी|

मैंने अपनी दोनों बाहें खोलीं और नेहा को अपने गले लगा कर उसका सर चूमते हुए बोला; "मेरा बच्चा इतनी जल्दी इतना बड़ा हो गया की अपने मम्मी-पापा के बीच सलाह करवा रहा है?! आई ऍम सो प्राउड ऑफ़ यू बेटा! (I’m so proud of you)” ये कहते हुए मैंने नेहा के मस्तक को चूमा| मेरी बात सुन नेहा को खुद पर गर्व हो रहा था और शर्म भी आ रही थी, मेरी बेटी को अधिक शर्माना न पड़े इसलिए मैंने नेहा का ध्यान भटकाने के लिए उसके सामने ही संगीता को आवाज़ लगाई; "संगीता?" हैरानी की बात ये थी की संगीता कमरे के बाहर दिवार से कान लगाए सारी बात सुन रही थी और जैसे ही मैंने उसे आवाज दी वो एकदम से कमरे में घुसी| दो दिन बाद मेरे मुख से अपना नाम सुन और मेरे चेहरे पर मुस्कान देख संगीता की जान में जान आई| संगीता ने आव देखा न ताव उसने सीधा मेरे पैर पकड़ लिए और गिड़गिड़ाते हुए बोली; "मुझे माफ़ कर दो जानू! मैंने हमारे प्यार की निशानी को इतनी गन्दी गाली दी! मैं वादा करती हूँ की आगे से फिर कभी मैं गाली नहीं दूँगी!" संगीता की आवाज़ में पछतावा और ग्लानि झलक रही थी|

मैंने संगीता के दोनों कँधे पकड़ उसे उठाया और बोला; "जान, मुझे तुम्हारा गुस्सा करना बुरा नहीं लगा, बुरा लगा तो बस तुम्हारे मुँह से मेरे बेटी के लिए गाली सुनना| गुस्सा आना एक स्वाभाविक प्रक्रिया है मगर गुस्सा किस पर और कैसे निकालना है ये मालूम होना चाहिए| तुमने देखा न की मैंने कैसे तुम पर आये गुस्से को सोझी पर निकाला, जिससे मेरा गुस्सा भी शांत हो गया और सोझी सुधर भी गया| उसी तरह अगर तुम रात को स्तुति के रोने से गुस्सा हो कर अपना गुस्सा मुझ पर निकालते हुए मुझसे बात नहीं करती तो मुझे बुरा नहीं लगता|” मैंने संगीता की आँखों में देखते हुए उसे समझाया और उसे उसकी गलती का एहसास दिलाया| संगीता ने बड़े ध्यान से मेरी बात सुनी थी और अपने कान पकड़ते हुए बच्चों की तरह तुतलाते हुए बोली; "सोली (sorry) जी!" संगीता का बचपना देख मैं हँस पड़ा और उसे अपने गले लगा लिया|

कुछ देर बाद माँ घर पहुँची और हम मियाँ-बीवी को पहले की तरह बातें करते देख जान गईं की घर में सब कुछ अब पहले जैसा है| "चलो, तुम दोनों की सुलाह तो हो गई!" माँ हम दोनों से बोलीं जिसके जवाब में मैंने अपनी बेटी की तारीफ करनी शुरू कर दी; "इसका सारा श्रेय जाता है आपकी पोती नेहा को!" फिर मैंने माँ को बताया की नेहा ने कैसे एक वयस्क की तरह बात कर मेरा दिल पिघलाया और अपनी मम्मी को माफ़ी दिलवाई| अपनी पोती के सयानेपन को देख माँ बहुत खुश हुईं और उन्होंने नेहा को अपने गले लगा कर बहुत लाड किया|




नेहा को लाड कर माँ ने मुझे भी प्यार से समझाते हुए कहा; "बेटा, तू भी गुस्सा कम किया कर| साइट पर जो तूने उस लेबर को सबक सिखा कर अपना गुस्सा निकाला था वो सही बात नहीं थी| दूसरों के पचड़ों में अधिक पड़ने से हमारे घर पर भी कोई मुसीबत आ सकती है| खैर, जो हो गया सो हो गया, आगे से मेरी बात का ध्यान रखिओ|" माँ को मुझसे इस मामले में कोई सफाई नहीं चाहिए थी, उन्हें बस मुझे एक सीख देनी थी जो मुझे मिल चुकी थी इसलिए मैंने बस अपना सर हाँ में हिला कर माँ की कही बात का मान रखा|

जारी रहेगा भाग - 13 में...
Bdiya update gurujii :love:
माँ-बाप द्वारा दी गई ये गालियाँ दिल से या नफरत के कारण नहीं दी जातीं, ये तो केवल गुस्सा होने पर दी जातीं हैं इसीलिए गाँव के बच्चे इन गालियों को दिल से नहीं लगाते|
दिल को बहलाने को गालिब ये ख्याल अच्छा है.
मुझे लगा की मेरी बिटिया मेरी गोदी से उतरेगी ही नहीं और मुझे संगीता के साथ कहीं न जाने का बहाना मिल जायेगा, लेकिन मेरी बिटिया भी अपनी दादी जी की ही तरह चाहती थी की मैं उसकी मम्मी के साथ बाहर जाऊँ तभी तो स्तुति बड़े आराम से बिना कोई नख़रा किये अपनी दादी जी की गोदी में चली गई
Le Manu bhoi to stuti :-
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Aaj to stuti ne ungli bhi nhi pakdi :cry2:
 
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Ajay

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इकत्तीसवाँ अध्याय: घर संसार
भाग - 12


अब तक अपने पढ़ा:


कमरे से बाहर आ कर मैंने अपन बनियानी और पजामा पहना तथा माँ के कमरे में प्रवेश किया| स्तुति के रोने से माँ भी जाग गईं थी और वो अपनी कोशिश करते हुए स्तुति को चुप कराने की कोशिश कर रहीं थीं| मुझे देख माँ बोलीं; " शुगी (स्तुति) ने सुसु कर दिया था, लगता है बहु शुगी को डायपर (diaper) पहनाना भूल गई थी|" मैंने माँ की बात का कोई जवाब नहीं दिया और स्तुति को गोदी में ले कर अपने कमरे में आ गया| स्तुति के कपड़े बदल उसे लाड कर मैंने चुप कराया तथा अपने सीने से लगा कर सारी रात जागते हुए कटी|


अब आगे:


गुस्सा
इंसान का सबसे बड़ा दुश्मन होता है, जब ये इंसान के दिमाग पर हावी होता है तो इंसान वो भी कह जाता है जो उसे नहीं कहना चाहिए था इसलिए जब गुस्सा आये तो इंसान को चुप रहना चाहिए और सोच-समझ कर बोलना चाहिए|

जीवन की ये सीख बड़ी ही सरल है मगर इस सीख को समझने वाले ही नासमझी करते हैं| यही हाल संगीता का भी है, आजतक उसने अपने जीवन की दो कमियाँ:

1. एकदम से गुस्सा करना और

2. अपने किये वादे पर अटल न रहना नहीं सुधारीं|



अगली सुबह 6 बजे मैंने दोनों बच्चों के सर पर हाथ फेर कर उन्हें जगाया| सबसे पहले नेहा जागी और मुझे स्तुति को गोदी में लिए हुए दिवार का सहारा ले कर बैठे देख नेहा को चिंता होने लगी| अपनी बेटी को चिंता मुक्त करने के लिए मैंने अपने होठों पर मुस्कान चिपकाई और नेहा को अपने गले लगने को बुलाया| नेहा मेरे गले लगी और बोली; "पापा जी, आप रात भर सोये नहीं न? जर्रूर इस शैतान (स्तुति) ने नहीं सोने दिया होगा!" मैंने नेहा की बात का जवाब बस सर हाँ में हिला कर दिया और उसे स्कूल के लिए तैयार होने को कहा| नेहा तैयार होने गई तो मैंने आयुष के सर पर हाथ फेरते हुए उसे पुकारा| थोड़ा कुनमुना कर आखिर आयुष उठ ही गया और मुझे सुबह की गुड मॉर्निंग वाली पप्पी दे कर बाथरूम चला गया|

आयुष को स्कूल के लिए अक्सर मैं ही तैयार करा था, परन्तु आज मेरा मन उदास था और स्तुति को अपने से जुदा करने का नहीं था| "बेटा जी, आज आप खुद तैयार हो जाओगे?" मैंने आयुष से प्यार से कहा तो आयुष ख़ुशी-ख़ुशी अपना सर हाँ में हिलाने लगा| आयुष खुद तैयार होने लगा था और इधर मैं स्तुति के माथे को चूम खुसफुसाते हुए बोला; "बेटा, आप मेरा खून हो...मेरे बच्चे हो...कोई अगर आपके बारे में कुछ गंदा कहेगा न तो मैं उसे छोड़ूँगा नहीं!" मेरे भीतर मौजूद एक पिता का दिल संगीता के मुँह से निकली उस एक गाली के कारण झुँझला उठा था| दिमाग में एक अजीब सा गुस्सा भर चूका था जो आज किसी न किसी पर तो निकलना था|



उधर संगीता का डर के मारे बुरा हाल था, कल रात के मेरे रौद्र रूप को देख उसकी हिम्मत नहीं पड़ रही थी की वो मेरे सामने आये इसलिए संगीता सुबह से ले कर अभी तक मेरे कमरे में नहीं आई थी, उसे जब भी कुछ चाहिए होते वो आयुष या नेहा को कमरे में भेज देती| लेकिन अब तो बच्चों के भी स्कूल जाने का समय हो गया था और ऐसे में अब संगीता को बच्चों का भी सहारा नहीं बचा था| माँ बच्चों को स्कूल छोड़ने गईं तो संगीता को मजबूरन मेरे लिए चाय ले कर कमरे में आना पड़ा| सर झुकाये हुए, चाय का कप थामे हुए संगीता ने कमरे में प्रवेश किया| इधर जैसे ही मैंने संगीता को कमरे में आते हुए देखा मैंने फौरन अपना मुँह दूसरी तरफ मोड़ लिया क्योंकि संगीता को देखते ही मुझे उसके द्वारा रात में मेरी बिटिया को दी हुई गाली याद आ रही थी जिससे मेरा गुस्सा फटने की कगार पर आ चूका था| मैं गुस्से में आ कर कहीं संगीता पर कोई बर्बरता न दिखा दूँ इसी के लिए मैंने अपना मुँह मोड़ लिया था|

वहीं संगीता ने जब तिरछी निगाहों से देखा की मैंने उससे यूँ मुँह मोड़ रखा है तो पहले तो उसका दिल टूट कर चकना चूर हो गया और फिर डर की शीत लहर उसके पूरे जिस्म में दौड़ गई! जो थोड़ी बहुत हिम्मत कर संगीता मेरे लिए चाय ले कर आई थी वो हिम्मत भी मेरा गुस्सा देख कर जवाब दे गई थी| कुछ देर बाद जब माँ बच्चों को उनकी स्कूल वैन में बिठाकर आईं तो उन्हें संगीता की नम आँखें दिखीं| माँ ने उससे बहुत पुछा मगर संगीता से डर के मारे कुछ कहा नहीं गया| आखिरकर माँ मेरे पास आईं और मुझसे संगीता की नम आँखों का कारण पुछा| "क्या एक माँ अपने ही खून को गाली दे सकती है? और वो भी कोई ऐसी-वैसी गाली नहीं...'हरामज़ादी' जैसी गाली!" मैं दाँत पीसते हुए माँ से बोला| मेरा सवाल सुन और मेरी अंत में कही बात सुन माँ को मेरे गुस्सा होने का कारण समझ आया| " कल रात स्तुति के अचानक रोने से संगीता के मुँह से ये गाली निकली थी! आप जानते हो न इस गाली का मतलब? क्या एक माँ को अपनी ही बेटी को ऐसी गाली देना उचित है?!... स्तुति छोटी सी बच्ची है, उसे क्या पता की उसके यूँ रोने से सबकी नींद टूटती है?! और गलती तो स्तुति की भी नहीं थी, संगीता उसे डायपर पहनाना भूल गई थी...अब अगर स्तुति ने सुसु कर बिस्तर गीला कर दिया तो ये बेचारी बच्ची क्या करे?!" मेरी आवाज़ गुस्से के कारण तेज़ हो चली थी| माँ जानती थीं की मैं कभी भी बिना किसी सही वजह के गुस्सा नहीं होता इसलिए माँ मुझे शांत करवाते हुए बोलीं; "बस बेटा! तेरा गुस्सा होना जायज है लेकिन ज़रा बहु की तरफ से तो सोच कर देख| वो बेचारी गाँव में पली-बढ़ी है, जहाँ माँ-बाप अक्सर बच्चों को गालियाँ दे कर डाँटते रहते हैं| माँ-बाप द्वारा दी गई ये गालियाँ दिल से या नफरत के कारण नहीं दी जातीं, ये तो केवल गुस्सा होने पर दी जातीं हैं इसीलिए गाँव के बच्चे इन गालियों को दिल से नहीं लगाते|

तुझे ये गाली इस लिए चुभ रही है क्योंकि जिस माहौल में तू पला-बढ़ा हुआ है उस माहौल में मैंने या तेरे पिताजी ने तुझे कभी गालियाँ नहीं दी इसलिए तू ये बर्दाश्त नहीं कर पा रहा की तेरी लाड़ली बिटिया को कोई गाली दे| मैं ये नहीं कहती की बहु का शुगी (स्तुति) को गाली देना सही था, ये बिलकुल गलत था और मैं इसके लिए संगीता को समझाऊँगी लेकिन फिलहाल के लिए तू उसे माफ़ कर दे! वो बेचारी सुबह से तेरे गुस्से के कारण डरी-सहमी बैठी है और मुझसे उसकी ये हालत नहीं देखि जाती|" माँ की कही बात मुझे ऐसी लग रही थी मानो वो संगीता का बचाव कर रहीं हों इसलिए मैं गुस्से में उठ खड़ा हुआ और बोला; "ये गाँव-देहात नहीं है, ये हमारा घर है! और संगीता को मैंने बहुत पहले ही समझा दिया था की उसका यूँ बच्चों पर बेवजह गुस्सा करना, उन्हें गाली देना या मारने के लिए हाथ उठाना मुझे पसंद नहीं! ये सब जानते-बूझते भी मेरी बात न मानना मुझे पसंद नहीं!" इतना कह मैं कमरे से बाहर निकला तो मैंने देखा की संगीता बाहर छुपी हुई मेरी और माँ की सारी बात सुन रही है| संगीता को देख कर मैंने मुँह मोड़ा और स्तुति को ले कर छत पर आ गया|



कुछ देर बाद माँ ने मुझे भीतर बुलाया और नाश्ते करने के लिए अपने साथ बिठाया| तबतक स्तुति भी जाग गई थी और उसे दूध पीना था, माँ ने मुझे स्तुति को संगीता को सौंपने को कहा ताकि संगीता उसे दूध पिला दे| नाश्ता करने के बाद मैं साइट पर फ़ोन कर के काम का जायजा ले रहा था, जब माँ ने मुझे अपने पास बुलाया; "बेटा, तुम दोनों जा कर बाहर हवा-बयार खा कर आओ तब तक मैं स्तुति को सँभालती हूँ|" ये कहते हुए माँ ने अपने हाथ स्तुति को गोदी लेने के लिए बढाए| दरअसल ये माँ की कोशिश थी की मैं और संगीता आपस में बात कर के ये मामला सुलझा लें, परन्तु मैं इसके लिए कतई राज़ी नहीं था इसलिए मैं मन ही मन संगीता के साथ कहीं न जाने का बहाना ढूँढने लगा| तभी मैंने गौर किया तो पाया की माँ स्तुति को अपनी गोदी में लेने के लिए बाहें फैलाएं हैं, माँ के यूँ स्तुति को गोदी लेने की इच्छा को देख मुझे अपना बहाना मिल गया था| मुझे लगा की मेरी बिटिया मेरी गोदी से उतरेगी ही नहीं और मुझे संगीता के साथ कहीं न जाने का बहाना मिल जायेगा, लेकिन मेरी बिटिया भी अपनी दादी जी की ही तरह चाहती थी की मैं उसकी मम्मी के साथ बाहर जाऊँ तभी तो स्तुति बड़े आराम से बिना कोई नख़रा किये अपनी दादी जी की गोदी में चली गई! अब ये दृश्य देख कर मैं तो हैरान रह गया और आँखें फाड़े स्तुति को देखने लगा की वो कैसे अपनी दादी जी की गोदी में इतनी आसानी से चली गई?!

उधर माँ ने स्तुति को अपनी गोदी में ले कर लाड करना शुरू कर दिया था; “मेरी शुगी...मेरी लाडो!" माँ को अपनी बेटी को लाड करते देख मेरा मन प्रसन्न हो गया और दिमाग में भरा गुस्सा कम होने लगा|

"अब यहाँ मेरे सर पर क्यों खड़ा है, जा कर तैयार हो और संगीता को बाहर घुमा कर ला!" माँ ने मुझे प्यार से डाँट लगाते हुए कहा| माँ की ये प्यारभरी डाँट सुन कर मुझे बुरा नहीं लगा, गुस्सा आया जब उन्होंने संगीता का नाम लिया| अब माँ ने आदेश दिया था तो उनकी बात माननी थी वरना घर में मेरे कारण क्लेश हो जाता| चेहरे पर नकली मुस्कराहट लिए मैं अपने कमरे में घुसा और तैयार हो गया| मेरे तैयार होने के बाद संगीता तैयार हुई और सर झुकाये मेरे सामने खड़ी हो गई| हम दोनों मियाँ-बीवी घर से निकले और गाडी में बैठ गए, घर से गाडी तक के पुरे रास्ते संगीता सर झुका कर चल रही थी, न उसने और न ही मैंने बात शुरू करने की कोई कोशिश की|



संगीता के साथ होने से मेरा गुस्सा कम नहीं हो रहा था और ऐसे में मेरा मन कहीं घूमने जाने का नहीं था| जब मन नहीं था तो दिमाग ने कहा की क्यों पैसे बर्बाद किये जाएँ, इससे अच्छा है की घर से निकला कर कुछ काम किया जाए| दिमाग की बात मानते हुए मैंने गाडी साइट की ओर मोड़ दी| साइट पहुँच कर जब मैं गाडी पर करने लगा तो संगीता जान गईं की मेरा मन घूमने का नहीं था इसीलिए मैं उसे यहाँ साइट पर लाया हूँ लेकिन फिर भी उसने मुझसे इसके लिए कोई शिकायत नहीं की|

उधर मुझे और संगीता को देख संतोष मेरे पास आया और हम दोनों के यूँ अचानक आने का कारण पूछने लगा; "कुछ नहीं यहीं से गुज़र रहे थे, सोचा साइट भी देखते चलें|" मैंने नकली मुस्कान लिए हुए कहा| मैं और संतोष सीढ़ी चढ़ ऊपर लेंटर पड़ने के लिए जो सेटरिंग बाँधी गई थी वो देखने चल पड़े| वहीं संगीता भी चेहरे पर नकली मुस्कान लिए मेरे पीछे चलने लगी, मैं और संतोष बातों में लग गए थे इसलिए हमारा ध्यान संगीता पर गया ही नहीं|



"बड़े दिन बाद आये साहब?" हमारी साइट पर काम करने वाली एक दीदी बोलीं| इन दीदी का एक बेटा है जो पढ़ने में अच्छा था इसलिए मैंने उसका दाखिला सरकारी स्कूल में करवा दिया था, इनका पति सोझी शराब पीता था और हमारी ही साइट पर काम करता था| शराब और नशे की लत ने सोझी का शरीर खत्म कर दिया था| जब शराब के पैसे खत्म होते तो साइट पर आ कर हाजरी लगा कर काम करता और पैसे मिलते ही गोल हो जाता| दीदी के शिकायत करने पर मैं सोझी को कई बार डाँट चूका था मगर वो साला कुत्ते की दुम सुधरने का नाम ही नहीं लेता था| मैंने उसे जब काम से निकालने की धमकी दी तो वो कुछ दिन के लिए सुधरा क्योंकि उस जैसे नशेड़ी को कोई दूसरा काम नहीं देता, पर फिर कुछ दिन बाद वही कमीनापन जारी हो गया| मेरी दीदी की इसी प्रकार मदद करने के कारण जब भी मैं साइट पर आता तो दीदी मुझसे बात करने आ जाती थीं|

खैर, दीदी की आवाज़ सुन मैं पीछे मुड़ा और उन्हें भी वही बात कही जो मैंने संतोष से कही थी| "ये लो मिलो संगीता से..." मैंने बस इतना ही कहा था की दीदी ने हाथ जोड़कर संगीता से नमस्ते की; "राम-राम बहु रानी" जवाब में संगीता ने हाथ जोड़कर अच्छे से राम-राम की|

"सोझी अब तो तंग नहीं करता न आपको?" मैंने दीदी से उनके पति सोझी के बारे में पुछा तो दीदी मायूस होते हुए बोलीं; "पहले तो शराब पीने के लिए पैसे माँगते समय गाली-गलौज करता था, अब तो हाथ भी उठाता है! आप उसे समझाओ की मुझे तंग न किया करे|" दीदी की बात सुन मुझे अपना गुस्सा निकालने के लिए सही निशाना मिल गया; "देखो दीदी, समझाया तो मैंने उसे बहुत बार है इसलिए अब मुझमें उसे बोल कर समझाने का सबर नहीं है| ये आदमी अब बस लात की भाषा समझेगा, आप कहोगी तो अभी समझा दूँगा!" जब मैंने लात की भाषा का जिक्र किया तो संगीता समझ गई की मैं क्या करने वाला हूँ, वो मुझे रोकने की कोशिश करने के लिए मेरी तरफ देखने लगी| जैसे ही हमारी नजरें मिलीं उसने कुछ कहने के लिए अपने लब खोले मगर मेरी आँखों में उसे गुस्से की ज्वाला नज़र आई और संगीता की हिमत जवाब दे गई! इधर दीदी मेरी बात सुन कर बोली; "आपको उसे जैसे समझाना है, समझाओ पर मेरी जान छुड़वाओ!" दीदी हाथ जोड़ते हुए बोलीं| मैंने अपना पर्स निकाला और उन्हें 1,000/- रुपये दिए| दीदी बहुत स्वाभिमानी थीं और उन्होंने आजतक मुझसे रुपये-पैसे की मदद नहीं माँगी थी इसलिए मेरे यूँ पैसे देने पर वो हैरान हुईं; "ये पैसे उसकी दवाई कराने के लिए दे रहा हूँ!" इतना कह मैंने अपने दोनों हाथों की उँगलियाँ चटकाईं|



मैंने दीदी के बेटे राकेश को बुलाया और उससे बोला; "बेटा, जा कर अपने पापा को बुलाओ और ये कहना की ठेकेदार ने बुलाया है| मेरा नाम मत लेना!" मेरी बता सुन राकेश तुरंत दौड़ गया| मैंने राकेश से ठेकेदार यानी संतोष का नाम इसलिए लेने को कहा था की मैं देखना चाहता था की संतोष ने किस कदर लेबरों की लगाम खींच कर रखी है| करीब 10 मिनट के बाद सोझी ऊपर आया, जितना समय उसने आने में लिया था उससे मेरा गुस्सा बढ़ा ही था कम नहीं हुआ था|

मुझे देख सोझी एकदम से सकपका गया और बोला; "अरे साहब आप ने बुलाया था?! लड़का बोला की ठेकेदार बुला रहा है!" सोझी अपनी सफाई देने लगा| "राकेश को मैंने ही कहा था की वो तुझे मेरा नाम न बताये, वरना क्या पता तू भाग जाता?!" मैंने शैतानी मुस्कान लिए हुए कहा और फिर इशारे से सोझी को अपने साथ सीमेंट के बोरों वाले कमरे में चलने को कहा| सोझी को लगा की मैं उससे बोर उठवाऊँगा इसलिए वो बेफिक्र मेरे पीछे चल पड़ा| संतोष जानता था की कमरे में क्या होने वाला है इसलिए वो मेरे पीछे नहीं आया, संगीता मेरे पीछे आ रही थी मगर संतोष ने उसे भी इशारे से रोक दिया| संगीता जानती थी की उसके कारण मुझे आया गुस्सा आज सोझी पर निकलेगा इसलिए संगीता को मेरी थोड़ी चिंता हो रही थी| अब देखा जाए तो मेरा ये गुस्सा बिलकुल सही जगह निकल रहा था, एक स्त्री को यदि उसका पति परेशान करता है तो उस पति को सबक तो सीखाना बनता है|



मैं दीदी और सोझी सीमेंट के बोरोन वाले कमरे में आ गए थे;

मैं: हाँ भई सोझी एक बात तो बता, मैंने तुझे कितनी बार समझाया की दीदी को तंग न किया कर?

मैंने बड़े आराम से बात शुरू करते हुए पुछा|

सोझी: मैं तो इसे कुछ कहता ही नहीं!

सोझी बेक़सूर होने का ड्रामा करते हुए बड़ी नरमी से बोला| झूठ से मुझे सख्त नफरत रही है इसलिए मैंने सोझी के कान पर एक जोरदार झापड़ रसीद किया और अपना सवाल पुनः दोहराया;

मैं: झूठ नहीं! जितना पुछा है उतना बता! कितनी बार मैंने तुझे प्यार से समझाया?

मेरे एक झापड़ से सोझी हिल गया था इसलिए वो डर के मारे काँपते हुए बोला;

सोझी: त...तीन बार साहब!

सोझी के जवाब देते ही मैंने उसके गाल पर एक और थप्पड़ रसीद करते हुए कहा;

मैं: पहलीबार तुझे प्यार से समझाया था न की शराब पीने के पैसे दीदी से मत माँगा कर?

मैंने सवाल पुछा तो सोझी ने सर झुका लिया| मुझे जवाब नहीं मिला तो मैंने उसके गाल पर एक और थप्पड़ धर दिया और तब जा कर सोझी के मुँह से निकला;

सोझी: ह...हाँ साहब!

मैं: दूसरी बार तुझे थोड़ा डाँट के समझाया था न की दीदी को तंग मत किया कर?

मेरा सवाल सुनते ही सोझी ने हाँ में सर हिलाया क्योंकि वो जानता था की अगर उसने जवाब नहीं दिया तो फिर मेरे से मार खायेगा| लेकिन मार तो उसे फिर भी पड़ी;

मैं: मुँह से बोल भोस्डिके!

मैंने गाली देते हुए गरज के पुछा तो सोझी डर से हकलाते हुए बोला;

सोझी: ह...हाँ साहब!

मैं: तीसरी बार तुझे मैंने फिर डाँटा था की दीदी और राकेश को शराब के लिए तंग मत किया कर?

इस बार मेरे पूछे सवाल पर सोझी एकदम से बोला;

सोझी: हाँ साहब!

सोझी को लगा था की उसके जवाब देने पर मैं नहीं मारूँगा मगर उसे एक जोरदार थप्पड़ फिर भी पड़ा जिससे वो जमीन पर जा गिरा;

मैं: बहनचोद जब तीन बार तुझे समझाया, तो तेरी खोपड़ी में बात नहीं घुसी की अपनी बीवी को तंग नहीं करना है?

मैं गुस्से से चिल्लाया|

सोझी: म...माफ़ कर दो साहब! अब नहीं...

सोझी माफ़ी माँगते हुए बोला, पर उसकी बात पूरी हो पाती उसे पहले ही मैंने उसके पेट में लात मारी;

मैं: तुझे माफ़ कर दूँ कुत्ते? दीदी पर हाथ उठाने लगा है और मुझे कहता है माफ़ कर दूँ तुझे?

ये कहते हुए मैंने सोझी की कमीज पकड़ उसे उठाया और दिवार से दे मारा|

मैं: भोस्डिके अब तुझे समझाऊँगा नहीं, अब तो तुझे पहले कुटुँगा और फिर पुलिस थाने ले जा कर घरेलू उत्पीड़न की धरा 2005 के तहत जेल में बंद करवाऊँगा! जब पुलिस वाला रोज़ तेरी गांड में तेल लगा कर डंडा डालेगा न, तब तेरी अक्ल ठिकाने आएगी!

मेरे पुलिस की धमकी देने से सोझी की फ़ट के चार हो गई और उसने मेरे पाँव पकड़ लिए;

सोझी: म...माफ़ कर दो साहब! अब..अब नहीं करूँगा...मैं..अब के ऐसी गलती की तो आपका जूता मेरा सर!

सोझी रोते हुए गिड़गिड़ा कर बोला|

उधर दीदी दरवाजे पर खड़ीं अपने पति को मुझसे पिटता हुआ चुप-चाप देख रहीं थीं| मैंने उनकी तरफ देखते हुए कहा;

मैं: अब से ये आदमी आपको तंग करे न तो एक जलती हुई लकड़ लेना और अपनी कलाई पर दाग़ देना| फिर उसी हालत में पुलिस थाने दौड़ जाना और थानेदार से कहना की आपके पति ने आपको जला कर मारने की कोशिश की है! बस इतना ही आपको करना है, बाकी का सारा काम पुलिस कर लेगी!

मैंने दीदी को अपने पति को ब्लैकमेल करने का एक हथियार दे दिया था| इधर मेरी ये बात सुन सोझी की गांड फ़ट गई थी! वो फिर से मेरे पाँव पकड़ गिगिडाने लगा;

सोझी: नहीं साहब...अब से मैं ऐसा कुछ नहीं करुँगा!

मैंने झटके से अपना पैर सोझी की पकड़ से छुड़ाया और दीदी से बोला;

मैं: ज्यादा नहीं मारा मैंने इसे बस हल्दी वाला दूध पिला देना|

इतना कह मैं कमरे से बाहर आने को हुआ की मैंने देखा की दीदी के पीछे खड़ी संगीता ने ये सारा घटनाक्रम देख लिया है| जहाँ एक तरफ सोझी को पीटने से मेरा गुस्सा शांत हो गया था वहीं संगीता का ये मार-पीट देख डर के मारे बुरा हाल था!



संतोष से हिसाब ले कर मैं घर के लिए चल पड़ा| रास्ते में दिषु का फ़ोन आया, उसने बताया की उसके खड़ूस बॉस से उसे ऑडिट पर दिल्ली से बाहर भेज दिया है, ये सुन कर मैं मन ही मन खुश हुआ की कम से कम मुझे अपनी बेटी को छोड़ कर दिषु के साथ पार्टी तो नहीं जाना पड़ेगा! "साले वापस आ कर पार्टी चाहिए मुझे!" दिषु मुझे फ़ोन पर धमकाते हुए बोला| "हाँ-हाँ भाई वापस आ कर ले लियो पार्टी!" मैंने नकली मुस्कान से कहा| ये बात मैंने जानबूझ कर संगीता को सुनाने के लिए कही थी ताकि कहीं संगीता इस फ़ोन के बहाने से मुझसे बात न करने लग पड़े|

घर पहुँच कर माँ ने जब पुछा की हम कहाँ गए थे तो मैंने उन्हें सच बता दिया; "हिसाब-किताब लेने के लिए साइट पर गए थे|" मेरी बात सुन मुझे डाँटते हुए बोलीं; "तुझे मैंने बहु को घुमाने को कहा था, साइट पर जाने को नहीं!" मैंने माँ की कही बात का कोई जवाब नहीं दिया और कमरे में हाथ-मुँह धोने चला गया| मेरे जाने के बाद माँ ने संगीता से बात की और संगीता ने उन्हें साइट पर जो हुआ वो सब बता दिया| जब मैं बाहर आया तो माँ ने मुझे घूर कर देखा वो मुझे डाँटना चाहतीं थीं मगर उन्हें चिंता इस बात की थी की कहीं उनके डाँटने से मैं फिर से गुस्से से न भर जाऊँ!

वहीं मैं भी माँ के मुझ घूरने से जान गया था की संगीता ने जर्रूर मेरी चुगली कर दी है, परन्तु मुझे माँ के घूरने से कोई फर्क नहीं पड़ा क्योंकि मेरा ध्यान तो मेरी बिटिया रानी पर था| मैंने बिना कुछ कहे स्तुति को अपनी गोदी में लिया और उसे लाड कर जगाने लगा; "मेला बच्चा...सोनू-मोनू बच्चा...उठा जाओ...अभी हम नहाई-नहाई करेंगे!" मेरे लाड कर जगाने से स्तुति उठी और जम्हाई लेने लगी| अपनी बिटिया को यूँ जम्हाई लेते देख मुझे उस पर और भी अधिक प्यार आने लगा; "awwwwww!!" मैं स्तुति को ले कर कमरे में आया और मस्त अंग्रेजी गाना चलाया तथा गाना सुनते हुए स्तुति को नहलाया| गाना सुनते हुए स्तुति को भी नहाने में मज़ा आ रहा था इसलिए मेरी बिटिया के मुँह से दो बार ख़ुशी की किलकारी भी निकली|



कुछ देर बाद दोनों बच्चे स्कूल से लौटे और आ कर सीधा मुझसे लिपट गए| बच्चों के घर पर आने से घर का माहौल पुनः शांत हो गया था| मैं, माँ और संगीता बच्चों की मौजूदगी में बिलकुल वैसे ही बर्ताव कर रहे थे जैसे आमतौर पर करते थे| हाँ इतना अवश्य था की मैं संगीता से बात नहीं कर रहा था| आयुष छोटा था इसलिए वो ये बात समझ नहीं पाया मगर नेहा को शक होने लगा था| दोपहर का खाना खा कर माँ ने मुझे दोनों बच्चों को सुला कर आने को कहा| नेहा ने अपनी दादी जी की बात सुन ली थी और उसका शक्की दिमाग दौड़ने लगा था| स्तुति पहले ही सो चुकी थी इसलिए मैंने दोनों बच्चों को लाड कर सुलाया और माँ के पास आया| अब मुझे नहीं पता था की मेरी बिटिया सोने का नाटक कर रही है तथा मेरे कमरे से बाहर आते ही वो भी मेरे पीछे-पीछे दबे पाँव बाहर आ रही है|



माँ और संगीता बैठक में बैठे थे और कुछ बात कर रहे थे, परन्तु मुझे देखते ही संगीता नजरें झुका कर चुप हो गई|

माँ: बेटा, इतना गुस्सा नहीं करते!

माँ ने बड़े प्यार से मुझे समझाते हुए बात शुरू की|

माँ: बेटा, इंसान जिस परिवेश में पला-बढ़ा होता है उसका थोड़ा-बहुत असर इंसान में आ ही जाता है| तेरी परवरिश अच्छे परिवेश में हुई, तुझे मैंने और तेरे पिताजी ने अच्छी-अच्छी बातें सिखाई, लोगों का आदर करना सिखाया, गाली नहीं देना सिखाया, तुझ में अच्छे संस्कार डाले ताकि तू एक अच्छा इंसान बन सके| लेकिन संगीता गाँव-देहात के परिवेश में रही है, वहाँ माँ-बाप कहाँ इतना ध्यान देते है की बच्चे के सामने गाली नहीं देते?!

फिर ऐसा नहीं है की संगीता को अपने कहे इस गंदे शब्द पर कोई ग्लानि नहीं है?! देख बेचारी को, सुबह से तेरे डर के मारे ये कुछ खा-पे भी नहीं रही थी, वो तो मैंने इसे समझाया तब जा कर इसने खाना खाया| इस बार इसे माफ़ कर दे, अगलीबार इसने ऐसी गलती की न तो मैं इसकी टाँगें तोड़ दूँगी!

माँ ने मुझे समझाते हुए कहा तथा मुझे हँसाने के लिए बात के अंत में संगीता को प्यारभरी धमकी भी दे डाली, परन्तु संगीता को देख मुझे गुस्सा आ रहा था इसलिए माँ के मज़ाक करने पर भी मैं नहीं हँसा|

मैं: माँ आपका ये तर्क मैं समझता हूँ मगर संगीता को मैं उसके गाली देने के लिए गाँव में प्यार से समझा चूका था, लेकिन उसके बाद भी ये गलती फिर दोहराई गई! क्या गारंटी है की आगे ये गलती फिर नहीं दुहराई जाएगी?! जब मेरे प्यार से समझाने से संगीता को अक्ल नहीं आई तो आपके समझाने से क्या ख़ाक अक्ल आएगी?!

इतना कह मैं उठ कर बच्चों के लिए चॉकलेट लेने के लिए घर से बाहर चल दिया| कुछ देर और घर में रहता तो माँ फिर से मुझे समझाने लग जातीं इसलिए मैं जानबूझ कर घर से निकला था| माँ ने भी कुछ नहीं कहा क्योंकि वो जानती थीं की मेरा गुस्सा शांत होने में थोड़ा समय लगता है|



दो दिन बीत गए और इन दो दिनों में मैं और संगीता पूरी तरह से कटे-कटे रहे| संगीता ने सारा दिन रसोई में या फिर माँ के साथ बिताना शुरू कर दिया, और तो और रात में भी वो माँ के पास सोती थी तथा बच्चे मेरे पास सोते थे| मैं और संगीता बस हमारी बेटी स्तुति के कारण ही आमने-सामने आते थे, वो भी तब जब स्तुति को दूध पीना होता था वरना तो मैं स्तुति के साथ अपने कमरे या छत पर रहता था|



अपनी बेटी को गोदी में लिए हुए मैं अक्सर यही सोचता था की मैं संगीता को माफ़ करूँ या फिर इसी तरह उससे उखड़ा रहूँ| जब मन में ये सवाल दौड़ता तो मेरा दिल बेचैन हो जाता और दिल की धड़कनों की गति असामान्य हो जाती जिसे मेरे छाती से लिपटी हुई स्तुति महसूस कर लेती| मेरे दिल में मची उथल-पुथल को महसूस कर स्तुति के मुँह से एक किलकारी निकलती जिसे मेरा छोटा सा दिल समझ नहीं पाता था| दो दिन लगे मुझे इस किलकारी को समझने में और मैंने इस किलकारी का ये मतलब निकाला; 'पापा जी, मम्मी को माफ़ कर दो!' अपनी बेटी की किलकारी का मतलब समझ मेरे चेहरे पर एक पल के लिए मुस्कान आ गई और मैं स्तुति के सर को चूमते हुए बोला; "आप ठीक कहते हो बेटा| मैं आपकी मम्मी से इतना प्यार करता हूँ की उनसे बात किये बिना मुझे करार ही नहीं मिलता, ऐसे में मैं सारी उम्र आपकी मम्मी से बिना बात किये तो रह नहीं सकता न?! ठीक है मेरी बिटिया, मैं आपकी मम्मी को माफ़ कर दूँगा|" मेरी बात सुन मेरी बिटिया के चेहरे पर मुस्कान आ गई, मानो वो कह रही हो; 'थैंक यू पापा जी!'



उधर मुझसे ज्यादा बुरा हाल संगीता का था| मुझे अपनी आँखों के सामने देखते हुए, मेरे मुँह से अपने लिए दो प्यारभरे बोल सुनने को वो मरी जा रही थी| बड़े-बुजुर्ग कहते हैं की पति के दिल का रास्ता उसके पेट से हो कर गुज़रता है मगर मेरे दिल का रास्ता केवल मेरे बच्चों से हो कर गुज़रता था इसलिए संगीता ने सबसे पहले आयुष से मदद माँगी| उसने आयुष को बड़े अच्छे से सीखा-पढ़ा कर सब बातें रटा कर मेरे पास अपनी पैरवी करने के लिए भेजा|



"पापा जीईईईईईईईईई!" आयुष ने जब ई की मात्रा पर जोर दे कर खींचा तो मैं समझ गया की मेरा बेटा मुझे मक्खन लगाने आया है| "हाँ जी, बेटा जी बोलो!" ये कहते हुए मैंने आयुष को गोदी में उठा लिया| आयुष मेरा मोह देख कर थोड़ा गंभीर होते हुए बोला; "पापा जी, आप मम्मी से गुच्छा हो?" आयुष गुस्सा शब्द को जानबूझ कर तुतला कर बोला ताकि मैं उस पर और मोहित हो जाऊँ और हुआ भी वही, आयुष के यूँ तुतलाने से मेरे मन में प्यार का सागर उमड़ने लगा| मैं जानता था की संगीता ने ही उसे सीखा-पढ़ा कर भेजा है इसलिए मैं भी उसी अनुसार जवाब देने लगा; "नहीं तो?" मैंने एकदम से अनजान बनते हुए कहा, मानो मुझे कुछ पता ही न हो! मेरे दिए जवाब से आयुष को समझ नहीं आया की वो आगे क्या कहे? क्योंकि वो तो मेरे मुँह से 'हाँ जी' शब्द सुन आगे क्या कहना है उसकी तैयारी कर के आया था| परन्तु जब जवाब ही आउट ऑफ़ सिलेबस (out of syllabus) निकला तो आयुष बेचारा असमंजस में पड़ गया की वो आगे कहे क्या? अब मुझे लेने थे आयुष के मज़े इसलिए मैंने उससे पुछा; "आपको किसने कहा बेटा की मैं आपकी मम्मी से नाराज़ हूँ?" मैंने बिलकुल अनजान बनते हुए पूछे सवाल पर आयुष चुप हो गया और जवाब सोचने लगा| उसकी मम्मी द्वारा उसे ये पढ़ाया गया था की मैं संगीता से नाराज़ हूँ मगर यहाँ तो मैंने अपनी बातों और अभिनय से गँगा ही उल्टा बहा दी थी!

उधर संगीता ने आयुष को समझाया था की उसे किसी भी हालत में संगीता का नाम नहीं बताना है इसलिए आयुष मेरे पूछे सवाल का जवाब यानी अपनी मम्मी का नाम लेने से क़तरा रहा था| "वो...म..." इतना बोलते हुए आयुष चुप हो गया और सोचने लगा की वो क्या जवाब दे! मुझे अपने बच्चे को और अधिक परेशान नहीं करना था इसलिए मैंने आयुष का ध्यान भटका दिया; "छोडो इस बात को, आप ये बताओ की आज आपका दिन कैसा था?" मेरे पूछे इस सवाल से आयुष का ध्यान भटक गया और वो मुझे अपने आज के दिन के किस्से सुनाने लगा| वहीं दरवाजे पर कान लगा कर सब बातें सुन रही संगीता ने जब सुना की मैंने आयुष को अपनी बातों से बहला कर मुद्दे से भटका दिया है तो उसने बाहर खड़े-खड़े ही अपना सर पीट लिया!

हम बाप-बेटे की मस्ती भरी बातें संगीता कमरे के बाहर से सुन रही थी, वो जानती थी की मुझे मनाने का उसका एक मोहरा पिट चूका है इसलिए संगीता ने अपना दूसरा मोहरा यानी के नेहा को चुना| आयुष के मुक़ाबले नेहा बहुत समझदार थी, जहाँ आयुष को जो बात सिखाई-पढ़ाई जाती थी वो उसी बात पर अटल रहता था वहीं मेरी बेटी नेहा बहुत होशियार थी| अगर उससे बात घुमा कर भी की जाती तब भी नेहा अपने मुद्दे पर रहती और अपने सवाल का जवाब जानकार ही दम लेती| हाँ संगीता के लिए एक समस्या जर्रूर खड़ी हो गई थी, आयुष को तो उसने एग्जाम के जवाबों की तरह सारी बात रटवा दी थी मगर नेहा बिना तथ्य जाने...बिना पूरी जानकारी लिए कोई बात शुरू नहीं करती थी, अतः संगीता ने नेहा को सारा सच बताना था| अब नेहा ने छुप कर पहले ही सारी बात सुन ली थी और वो लगभग सारी बात समझ भी चुकी थी, जो बात उसे नहीं भी पता थी उसने वो बात अपनी मम्मी से पूछकर अपनी जानकारी पूर्ण कर ली थी, ताकि वो मुझसे प्यार से तर्क कर सके|



बहरहाल, सारी बात जानकार मेरी बेटी नेहा अपने मम्मी-पापा के बीच सारी बात सुलटाने के लिए उतरी| आयुष अपनी पढ़ाई कर रहा था जब नेहा मुझसे बात करने आई, एक कुर्सी खींच कर नेहा मेरे सामने बैठी और बड़ी ही गंभीरता से अपनी बात शुरू की;

नेहा: पापा जी, आप मम्मी से बहुत प्यार करते हो न?

नेहा के ये सवाल सुन मैं जान गया की उसे भी आयुष की तरह संगीता ने ही भेजा है| संगीता की इस होशियारी पर मुझे हँसी आ गई| उधर अपने पूछे सवाल के जवाब में जब नेहा ने मुझे हँसते हुए देखा तो वो चकित हो कर मुझे देखने लगी!

मैं: हाँ जी!

मैंने अपनी हँसी दबाते हुए कहा| इधर मेरे दिए जवाब से नेहा संतुष्ट नहीं थी और अपनी नाक पर गुस्सा लिए मुझे देख रही थी| मेरे यूँ हँसने से मेरी बेटी नाराज़ हो रही थी, उसे लग रहा था की मैं उसका मज़ाक उड़ा रहा हूँ|

मैं: बेटा, इस शान्ति वार्ता के लिए आपके मम्मी द्वारा भेजे हुए आप दूसरे प्रतिनिधि हो, बस यही सोच कर मुझे हँसी आ रही थी!

मैंने नेहा को अपनी सफाई दी ताकि कहीं मेरी बेटी मुझसे नाराज़ न हो जाए| मेरी बात सुन नेहा के चेहरे पर भी मुस्कान आ गई और वो खुद पर गर्व करते हुए बोली;

नेहा: मैं उस बुद्धू लड़के (आयुष) जैसी नहीं हूँ, जिसे आपने अपनी बातों से फुसला लिया था और मुद्दे से भटका दिया था!

नेहा की बात सुन मैंने जोर का ठहाका लगाया तथा नेहा भी मुस्कुराये बिना रह न पाई|

नेहा: अच्छा पापा जी प्लीज मेरी बात सुन लो|

नेहा ने विनती करते हुए कहा तो मैंने अपनी हँसी रोकी और पूरी एकाग्रता से उसकी बात सुनने लगा| मुझे भी ये जानना था की मेरी बेटी अपने पापा जी के सामने कैसे अपनी मम्मी का बचाव करती है?!



"आपके और मम्मी के रिश्ते की शुरुआत दोस्ती से हुई थी न?!" नेहा ने अपनी बात शुरू करते हुए मुझसे सवाल पुछा, जिसके उत्तर में मैंने अपना सर हाँ में हिला दिया| "फिर आपकी दोस्ती प्यार में बदल गई और आपको एक दूसरे से प्यार हो गया न?!" नेहा ने पुनः अपना सवाल पुछा जिसके जवाब में मैंने अपना सर हाँ में हिलाया| "वो बात अलग है की आप मम्मी से ज्यादा मुझे प्यार करते हो!" ये कहते हुए नेहा के चेहरे पर गर्वपूर्ण मुस्कान आ गई और मैं भी अपनी बेटी की इस मुस्कान को देख मुस्कुराने लगा| हम मुद्दे से भटक न जाएँ इसलिए नेहा ने अपनी बात जारी रखी; "आप जानते हो न मम्मी आपसे कितना प्यार करती हैं?!" नेहा ने फिर से अपना प्यारा सा सवाल पुछा जिसके जवाब में मैंने अपना सर हाँ में हिलाया| "तो पापा जी, अगर आपके सबसे प्यारा दोस्त, जिससे आप बहुत प्यार करते हो उससे अगर कोई गलती हो जाए तो क्या आप उससे आजीवन बातचीत बंद कर दोगे?!" नेहा के पूछे इस सवाल पर मैंने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी क्योंकि मैं इस वक़्त अपनी बेटी की बातों से जैसे मंत्र-मुग्ध हो गया था|

मेरे द्वारा कोई जवाब न देने पर नेहा पुनः मुझे समझाते हुए बोली; "मैं जानती हूँ की मम्मी के मुँह से स्तुति के लिए गाली निकल गई थी मगर आप जानते हो न की मम्मी को कितना गुस्सा आता है?!" इस बार नेहा के पूछे सवाल के जवाब में मैंने अपनी गर्दन हाँ में हिलाई| मेरे इस तरह जवाब देने से नेहा को अपनी बात आगे बढ़ाने का मौका मिल गया; "भले ही मम्मी के मुँह से गुस्से में गाली निकल जाती है मगर उन्होंने कभी मुझे या आयुष को गाली देने नहीं दिया| मम्मी मुझे हमशा कहतीं थीं की बेटा अपने पापा जैसा बनना, लोगों से अच्छे गुण सीखना और उनकी बुराइयाँ कभी न अपनाना|” मुझे ये जानकार बहुत ख़ुशी हुई थी की संगीता ने दोनों बच्चों को मेरी अनुपस्थिति में सदा सँभाल कर रखा था, उन्हें संगीता ने किसी गलत रास्ते भटकने नहीं दिया था|

इधर नेहा की बता पूरी नहीं हुई थी, वो अपनी बात जारी रखते हुए बोली; "…इस बार जो हुआ उसके लिए आप मम्मी जी को माफ़ कर दो, आगे से अगर उन्होंने कभी गाली दी न तो आप, मैं, आयुष और स्तुति मिलकर उनसे बात करना बंद कर देंगे|" मेरी बेटी नेहा आज सयानों जैसे बात कर रही थी और उसकी ये बातें सुन कर मैं बहुत प्रभावित हुआ था|



खैर, नेहा ने जब मुझे अपनी मम्मी को माफ़ करने को कहा तो मैंने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी थी, क्योंकि मैं अपनी बेटी को यूँ सयानों जैसे बात सुन कर खो गया था| मेरी ओर से कोई जवाब न पा कर नेहा ने एक अंतिम कोशिश की; "प्लीज पापा जी, मेरे लिए मम्मी को माफ़ कर दो!" नेहा जानती थी की उसके लिए मैं कुछ भी कर सकता हूँ इसीलिए नेहा ने ये माँग की थी|

मैंने अपनी दोनों बाहें खोलीं और नेहा को अपने गले लगा कर उसका सर चूमते हुए बोला; "मेरा बच्चा इतनी जल्दी इतना बड़ा हो गया की अपने मम्मी-पापा के बीच सलाह करवा रहा है?! आई ऍम सो प्राउड ऑफ़ यू बेटा! (I’m so proud of you)” ये कहते हुए मैंने नेहा के मस्तक को चूमा| मेरी बात सुन नेहा को खुद पर गर्व हो रहा था और शर्म भी आ रही थी, मेरी बेटी को अधिक शर्माना न पड़े इसलिए मैंने नेहा का ध्यान भटकाने के लिए उसके सामने ही संगीता को आवाज़ लगाई; "संगीता?" हैरानी की बात ये थी की संगीता कमरे के बाहर दिवार से कान लगाए सारी बात सुन रही थी और जैसे ही मैंने उसे आवाज दी वो एकदम से कमरे में घुसी| दो दिन बाद मेरे मुख से अपना नाम सुन और मेरे चेहरे पर मुस्कान देख संगीता की जान में जान आई| संगीता ने आव देखा न ताव उसने सीधा मेरे पैर पकड़ लिए और गिड़गिड़ाते हुए बोली; "मुझे माफ़ कर दो जानू! मैंने हमारे प्यार की निशानी को इतनी गन्दी गाली दी! मैं वादा करती हूँ की आगे से फिर कभी मैं गाली नहीं दूँगी!" संगीता की आवाज़ में पछतावा और ग्लानि झलक रही थी|

मैंने संगीता के दोनों कँधे पकड़ उसे उठाया और बोला; "जान, मुझे तुम्हारा गुस्सा करना बुरा नहीं लगा, बुरा लगा तो बस तुम्हारे मुँह से मेरे बेटी के लिए गाली सुनना| गुस्सा आना एक स्वाभाविक प्रक्रिया है मगर गुस्सा किस पर और कैसे निकालना है ये मालूम होना चाहिए| तुमने देखा न की मैंने कैसे तुम पर आये गुस्से को सोझी पर निकाला, जिससे मेरा गुस्सा भी शांत हो गया और सोझी सुधर भी गया| उसी तरह अगर तुम रात को स्तुति के रोने से गुस्सा हो कर अपना गुस्सा मुझ पर निकालते हुए मुझसे बात नहीं करती तो मुझे बुरा नहीं लगता|” मैंने संगीता की आँखों में देखते हुए उसे समझाया और उसे उसकी गलती का एहसास दिलाया| संगीता ने बड़े ध्यान से मेरी बात सुनी थी और अपने कान पकड़ते हुए बच्चों की तरह तुतलाते हुए बोली; "सोली (sorry) जी!" संगीता का बचपना देख मैं हँस पड़ा और उसे अपने गले लगा लिया|

कुछ देर बाद माँ घर पहुँची और हम मियाँ-बीवी को पहले की तरह बातें करते देख जान गईं की घर में सब कुछ अब पहले जैसा है| "चलो, तुम दोनों की सुलाह तो हो गई!" माँ हम दोनों से बोलीं जिसके जवाब में मैंने अपनी बेटी की तारीफ करनी शुरू कर दी; "इसका सारा श्रेय जाता है आपकी पोती नेहा को!" फिर मैंने माँ को बताया की नेहा ने कैसे एक वयस्क की तरह बात कर मेरा दिल पिघलाया और अपनी मम्मी को माफ़ी दिलवाई| अपनी पोती के सयानेपन को देख माँ बहुत खुश हुईं और उन्होंने नेहा को अपने गले लगा कर बहुत लाड किया|




नेहा को लाड कर माँ ने मुझे भी प्यार से समझाते हुए कहा; "बेटा, तू भी गुस्सा कम किया कर| साइट पर जो तूने उस लेबर को सबक सिखा कर अपना गुस्सा निकाला था वो सही बात नहीं थी| दूसरों के पचड़ों में अधिक पड़ने से हमारे घर पर भी कोई मुसीबत आ सकती है| खैर, जो हो गया सो हो गया, आगे से मेरी बात का ध्यान रखिओ|" माँ को मुझसे इस मामले में कोई सफाई नहीं चाहिए थी, उन्हें बस मुझे एक सीख देनी थी जो मुझे मिल चुकी थी इसलिए मैंने बस अपना सर हाँ में हिला कर माँ की कही बात का मान रखा|

जारी रहेगा भाग - 13 में...
Superb update bhai
 
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