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Incest एक अधूरी प्यास.... 2 (Completed)

Rakesh1999

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बेहद खूबसूरत और मस्त अपडेट।
 
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Flenchoo

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Aaj aya Hai ounth Pahar ke Neeche
निर्मला शीतल के गले लग कर रोए जा रही थी और शीतल उसे शांत कराने की कोशिश कर रही थी लेकिन निर्मला के आंसू थे कि रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे,,,,

अब बस भी करो निर्मला रोती ही रहोगी या चुप भी होगी,,,,

मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई शीतल,,,, मैं भावनाओं में बहक गई,,,( निर्मला शीतल के गले लगे हुए ही रोते-रोते बोली,,,)

मैं समझ सकती हूं निर्मला पहले अपने आप को शांत करो,,,( ऐसा कहते हुए वह निर्मला को अपने गले से दूर करते हुए उसे वापस कुर्सी पर बैठाने लगी और निर्मला लड़खड़ाते हुए कुर्सी पर ऐसे बैठी जैसे कि उसे चक्कर आ रहा हो,,) रुको मैं तुम्हारे लिए पानी लाती हूं,,,,( इतना कहकर शीतल रसोई घर की तरफ जाने लगी निर्मला को तो समझ में नहीं आ रहा था कि अब क्या कहें यह सब कैसे हो गया वह क्या बहाना बनाए वह इसी उधेड़बुन में लगी हुई थी कि तब तक शीतल ठंडे पानी का गिलास लेकर उसके पास आ गई,,,)

यह लो निर्मला पहले तुम ठंडा पानी पियो अपने मन को शांत करो फिर हम बात करते हैं,,,,
( इतना कहकर शीतल ठंडे पानी के ग्लास को निर्मला के हाथ में थमाने लगी और निर्मला भी नजरें नीचे झुकाए हुए ही हाथ आगे बढ़ाकर पानी के गिलास को थाम ली और पीने लगी निर्मला दो-तीन घूंट पानी पीकर वापस उसे टेबल पर रख दी,,, अब वह शांत नजर आ रही थी। लेकिन शीतल से नजरें मिलाने में उसे शर्म महसूस हो रही थी कुछ देर तक यूं ही दोनों के बीच खामोशी छाई रही तो शीतल ही बात को आगे बढ़ाते हुए बोली।)

यह सब क्या था निर्मला तुम पर मैं इतना भरोसा करती थी कोई भी औरत बहक सकती थी यह तो मैं समझ सकती हूं लेकिन तुम्हारी जैसी औरत जो इतनी मर्यादा में रहने वाली संस्कारों से भरपूर इतनी अच्छी औरत होने के साथ-साथ तुम एक मां भी हो जो कि एक अच्छी मां लेकिन फिर भी तुम इस कदर ,,,,वो भी अपने ही बेटे के साथ,,,,,, छी छी मुझे तो सोचकर ही शर्म आती है लेकिन क्या करूं मेरी तो नसीब फुटी थी कि मैंने अपनी आंखों से एक मां बेटे के पवित्र रिश्ते को कलंकित होता हुआ देख ली,,,,( इतना कहकर शीतल खामोश हो गई,,, वह जानबूझकर निर्मला के सामने बुरा सा मुंह बना रही थी वह ऐसा दर्शना चाह रही थी कि उन दोनों की चुदाई देख कर उसे बहुत बुरा लगा है और निर्मला शीतल की इस तरह की बातें सुनकर फिर से फूट-फूट कर रोने लगी एकदम से घबरा गई क्योंकि शीतल की बातों से उसे लगने लगा कि वास्तव में वह बहुत ही गंभीर गुनाह कर दी थी जिसके पछतावे के रूप में वह शीतल के सामने दोनों हाथ जोड़ ली और हाथ जोड़ते हुए बोली। )

मुझे माफ कर दो शीतल मुझे माफ कर दो मुझसे अब यह गलती दोबारा नहीं होगी ,,,( इतना कहते ही निर्मला कुर्सी पर से उठ खड़ी हुई और सीधा जाकर शीतल के पैर पकड़कर,,,) मुझे माफ कर दो शीतल मैं जानती हूं मैं बहुत बड़ी गलती कर चुकी हूं मैं तुम्हारे हाथ जोड़ती हूं जो कुछ भी तुमने अपनी आंखों से देखी हो वह किसी को मत बताना वरना मैं मर जाऊंगी मैं कसम से आत्महत्या कर लूंगी तुम यह बात किसी से मत बताना,,,,( निर्मला फूट-फूटकर रोए जा रही थी और यह बात शीतल से बोले जा रही थी निर्मला को इस तरह से अपने पैरों में गिरा देखकर शीतल को अच्छा तो नहीं लग रहा था लेकिन उसे अपने आप पर गर्व महसूस हो रहा था कि अपनी बेइज्जती का बदला व निर्मला से इस तरह से ले रही है लेकिन इस बात का एहसास वह निर्मला को नहीं होने देना चाहती थी कि वह बहुत खुश है इसलिए वह तुरंत शीतल की दोनों बाह पकड़ कर उसे उठाते हुए वह बोली।)

निर्मला,,,,, यह क्या कर रही हो तुम,,,, पागल हो गई हो मेरे पैर पकड़ रही हो,,, तुम मेरी सबसे अच्छी सहेली हो जिसके साथ में अब तक अपनी जिंदगी के बहुत सारे किस्से शेयर करते आई हूं तुम मेरे लिए आदर्श हो एक टीचर होने के नाते और एक अच्छी औरत के साथ-साथ एक मां होने के नाते मैं जानती हूं कि तुम से गलती तो हुई है और वह भी बहुत बड़ी गलती हुई है किसी और के साथ अगर तुम शारीरिक संबंध बनाती तो शायद एक बार में इस बात को नजरअंदाज कर जाती लेकिन तुम खुद अपने ही बेटे के साथ शारीरिक संबंध और वह भी इस तरह से एकदम गंदे तरीके से मुझे समझ में नहीं आ रहा है कि मैं कैसे कहूं,,,,


शीतल तुम मुझे बस माफ कर दो,,,,,,( एक बार फिर से निर्मला झुक कर उसके पैर पकड़ ली और शीतल तुरंत उसका हाथ पकड़कर उसे ऊपर उठाने लगी और बोली,,,)

तुम फिर पागल जैसी हरकत कर रही हो मुझे यह सब अच्छा नहीं लग रहा है कि तुम मेरे पैर पकड़ रही हो,,,, तुम्हारी हरकत की वजह से मुझे शर्मिंदगी महसूस हो रही है,,,

मैं जानती हूं मेरी गलती ही ऐसी है कि किसी को भी शर्मिंदगी महसूस होने लगेगी,,,, लेकिन मैं तुम्हारे हाथ जोड़ती हूं शीतल इस बारे में तुम किसी को कुछ नहीं कहोगी अगर किसी को इस बात की भनक भी लगी तो तुम मेरा मरा मुंह देखोगी,,, मैं मर जाऊंगी आत्महत्या कर लूंगी लेकिन बदनामी का दाग अपने दामन पर लेकर जी नहीं पाऊंगी,,,

निर्मला तुम यह बात अगर पहले सोची होती तो आज यह दिन ना देखना पड़ता इतनी अच्छी खासी औरत होने के साथ-साथ एक टीचर होने के बावजूद भी तुम अपनी मर्यादा से बाहर निकल कर अपनी तन की वासना मिटाने के लिए अपने ही बेटे के साथ शारीरिक संबंध बना ली,,

क्या करूं शीतल में बहक गई थी,,,,,( इतना कहते हुए वह दूसरी तरफ मुंह कर ली,,,)

लेकिन मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि तुम इतना ज्यादा बहक गई कि कोई और नहीं मिला अपने ही बेटे के साथ,,,,,

क्या करूं शीतल मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था,,,,।

क्यों समझ में नहीं आ रहा था तुम्हारी आंखों पर किस तरह की पट्टी पड़ गई थी कि तुम्हें दूसरे मर्द और अपने बेटे में कोई फर्क नहीं लगा अपने ही बेटे को जवान मर्द समझ कर उसके साथ शारीरिक संबंध बना ली अरे इतना तो लिहाज की होती कि वह तुम्हारा बेटा है तुम्हारा सगा बेटा कोई सोतेला भी नहीं सोतेला होता तो कहने को तो की छोडो जवान लड़का देखकर एक सौतेली मा बहक गई और उसके साथ चुदवा ली,,,,,
( शीतल जानबूझ के निर्मला से इस तरह की बातें कर रही थी कि निर्मला को इस बात का एहसास हो कि वह बहुत बड़ी गलती कर चुकी है और उसकी एक मात्र एक गवाह शीतल ही है जो कि सारी बाजी अब उसके हाथ में थी इसलिए तो शीतल की बात सुनकर निर्मला के चेहरे पर शिकन की लकीरें नजर आने लगी वाह घबराने लगी,,,।)

मैं क्या करूं शीतल उस समय मुझे कुछ समझ में नहीं आया,,,,

क्या हुआ तुम्हारे साथ जबरदस्ती कर रहा था जो तुम्हें समझ में नहीं आया,,, जहां तक मैं जानती हूं कि शुभम इस तरह का लड़का बिल्कुल भी नहीं है कि अपनी मां के साथ जबरदस्ती करेगा अरे अपनी मां तो क्या वह किसी लड़की के साथ जबरजस्ती कर ही नहीं सकता,,, तुम सब कुछ रोक सकती थी लेकिन निर्मला कहीं ना कहीं मुझे इन सब में तुम्हारी गलती सबसे ज्यादा लगती है,,,।
( शीतल कि ईस तरह की कड़वी बातें सुनकर निर्मला खामोश रही बोलने के लिए उसके पास शब्द ही नहीं थे वह जानती थी कि शीतल जो कुछ भी कह रही थी सच था,,, वह चाहती तो सब कुछ रुक सकता था बल्कि पवित्र रिश्ते को तार-तार करने में उसका ही पूरा हाथ था उसका बेटा तो मात्र उसकी इच्छा के मुताबिक सहयोग दे रहा था,, निर्मला को इस तरह से खामोश देखकर शीतल अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए और एक तरह से धमकाते हुए बोली,,,।)

तुम जानती हो निर्मला अगर कमरे के अंदर की बात घर के बाहर चली गई तो क्या होगा,,( इतना सुनकर निर्मला के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगी उसके चेहरे का रंग बदलने लगा वह घबराने लगी और फिर से सुबक -सुबक कर रोना शुरू कर दी,,,, शीतल निर्मला को इस तरह से रोता हुआ देखकर उसे ढांढस बंधाते हुए बोली,,,।)
लेकिन तुम इत्मीनान रखो निर्मला यह राज,,,, राज ही रहेगा,,, मैं कभी नहीं चाहूंगी कि तुम्हारी किसी भी तरह से बदनामी हो,,,, ( शीतल की बात सुनकर निर्मला के चेहरे पर राहत का एहसास साफ झलकने लगा,,,,) लेकिन मैं इतना जरूर जानना चाहूंगी कि ऐसा क्या हो गया कि इतनी अच्छी औरत होने के बावजूद अपने ही बेटे के साथ तुम्हें शारीरिक संबंध बनाना पड़ा,,,,( इतना कहते हुए शीतल कुर्सी पर बैठ गई क्योंकि अब उसकी दिलचस्पी निर्मला की बातों में बढ़ती जा रही थी वह जानती थी कि वह सब कुछ बताएगी और वह यही जानना चाहती थी यह सब कैसे हो गया,,, शीतल अंदर ही अंदर बहुत खुश थी शीतल की बात मानने के सिवा निर्मला के पास और कोई रास्ता नहीं था इसलिए वह भी फिर से कुर्सी पर बैठकर अपनी बात शुरू करते हुए बोली,,,।)

यह सब कैसे शुरू हो गया शीतल यह तो मैं नहीं जानती लेकिन आज मैं तुम्हें अपना एक राज बताना चाहती हूं जोकि आज तक इस राज को सिर्फ मेरा बेटा ही जानता है और अब तुम जानो गी,,,,

कैसा राज,,,,

यही कि मैं अपने पति से बिल्कुल भी संतुष्ट नहीं हूं या यह कह लो कि मेरा पति मुझे संतुष्ट नहीं कर पाते मुझे वह खुशी नहीं दे पाते जो एक मर्द औरत को देता है,,,

लेकिन निर्मला तुम्हें देखने के बाद तो कभी ऐसा लगता ही नहीं कि तुम अपने पति से नाखुश हो तुम तो हमेशा खुश रहती थी बल्कि मैं तो तुमसे सब कुछ पूछती भी थी लेकिन कभी तुम ने इस बात का जिक्र तक नहीं की,,,,

यही तो बात है शीतल हंसते हुए चेहरे के पीछे का दर्द यह दुनिया नहीं देख पाती यह तो मैं ही जानती थी कि मैं कैसे अपनी जिंदगी जी रही थी या यूं कह लो मेरी आत्मा कब से मर चुकी थी मेरा शरीर जिंदा लाश की तरह था जिंदगी का सुख क्या होता है यह मैं सब कुछ भूल चुकी थी स्कूल से घर घर से स्कूल बस यही मेरी जिंदगी रह गई थी,,,,( शीतल को निर्मला की बातें सुनने में मजा आ रहा था वह भले ही अपने चेहरे पर निर्मला की बातें सुनकर उसका दर्द के भाव उपसा रही थी लेकिन अंदर ही अंदर खुश हो रही थी,,,)
हां मैं अच्छी औरत थी संस्कारों से भरी हुई है मर्यादा संपन्न मेरे मां बाप ने मुझे इसी तरह के संस्कार दिए थे,,, और मैं उस पर कायम भी थी लेकिन ना जाने फिर कैसा तूफान मेरी जिंदगी में आया कि सब कुछ बदल कर रख दिया,,,

कैसा तूफान,,,?

बहुत ही भयंकर तूफान शीतल,,, मैं पहले अपने बेटे में अपना बेटा ही देखती थी लेकिन तुम्हारी बातें सुनकर मेरा नजरिया बदलने लगा,,,

मेरी बातें मैं कुछ समझी नहीं ,,,, (शीतल आश्चर्य से बोली)

तुम्हारी चटपटी मजाकिया बातें,,,( निर्मला अपने चेहरे पर भाव हीन एहसास लाते हुए बोली।)

मेरी मजाकिया बातें मैं कुछ समझी नहीं,,,

शीतल तुम शायद भूल चुकी हो लेकिन मुझे याद है कि तुम मजाक मजाक में मेरे बेटे को लेकर मजाक किया करती थी कि तुम्हारे पास जवान बेटा है सोचो उसका लंड कैसा होगा मैं अगर उसकी मां होती तो अब तक उस से चुदवा ली होती,,, ( निर्मला की यह बात सुनकर शीतल को याद आ गया कि वह इस तरह की बातें निर्मला से किया करती थी लेकिन वो बोली कुछ नहीं बस सुनती रही) तुम्हारी इस तरह की बातें मुझे खराब लगती थी लेकिन यह तुम्हारी बातों का ही असर था कि ना जाने क्यों अपने बेटे को देखकर मुझे अब उसमें एक मर्द नजर आने लगा था,,, और मेरा बेटा कब जवान मर्द बन गया मुझे इस बात का अहसास तक नहीं हुआ,,,, मैं उसे बच्चा समझती थी लेकिन तुम्हारी बातों ने मुझे उस बच्चे में एक जवान मर्द दिखाने लगा जोकि अनजाने में ही मैंने एक बार उसके लंड को अपनी आंखों से देख ली तब से उसे देखने का नजरिया मेरा पूरी तरह से बदल गया,,,, इस बात को तो तुम भी अच्छी तरह से जानती हो कि मेरे बेटे का लंड कैसा है,,,( निर्मला की यह बात सुनते ही शीतल के चेहरे के भाव बदल गए वह असमंजस में पड़ गई।)
मेरा मन बहकने लगा मेरा तन बदन पूरी तरह से मचलने लगा,,, मैं अपने पति से पूरी तरह से प्यासी थी अपने पति से कभी भी शारीरिक सुख नहीं महसूस कर पाई थी इसलिए बार-बार मेरी इच्छा होती थी कि मैं अपनी बेटे के लंड को देखूं,,,,

फिर क्या हुआ,,,?


फिर क्या रोज-रोज मेरे बेटे को लेकर तुम्हारा मजाक करना आग में घी का काम कर रहा था,,, फिर क्या था तुम्हारी शादी की सालगिरह आ गई और हम लोग तुम्हारी सालगिरह मनाने के लिए कार लेकर निकल पड़े लेकिन क्या जानते थे कि भगवान को कुछ और मंजूर था तूफानी बारिश में हम लोग तुम्हारे घर पहुंच नहीं पाए और घने पेड़ के नीचे आसरा ले लिए,,, तूफानी बारिश और ऐसे में मैं और शुभम दोनों अकेले थे मेरा नजरिया पहले से ही शुभम को देखने का बदल चुका था सुभम में मुझे अपना बेटा नहीं बल्कि एक जवान मर्द नजर आने लगा था मैं उसे पूरी तरह से रिझाने की कोशिश करने लगी थी,,, लेकिन मेरे बेटे ने कभी भी पहले आगे बढ़कर इस तरह की हरकत नहीं किया कि वह मेरी तरफ से पूरी तरह से आकर्षित है मुझे ही कदम आगे बढ़ाना पड़ा मैं अच्छी तरह से जानती थी कि जिस तरह से मैं उसके मर्दाना अंगों को देखकर पूरी तरह से बहक चुकी हूं वह भी अगर मेरे खूबसूरत अंग को देखेगा तो वो भी पूरी तरह से बहक जाएगा उस में जिस तरह से मुझे एक बेटा नहीं बल्कि मर्द नजर आने लगा था उसे भी मुझ में मां नहीं बल्कि एक औरत नजर आने लगेगी और यही सोचकर में उसके सामने जोर से पेशाब आने का बहाना की,,,

( निर्मला कि ईस तरह की बातें सुनकर शीतल की दिलचस्पी उसकी बातों को सुनने में बढ़ने लगी उसके तन बदन में उत्तेजना की लहर दौड़ने लगी थी क्योंकि निर्मला बात ही कुछ इस तरह की कर रही थी कि उसकी भी हालत खराब होती जा रही थी वह मादक स्वर में बोली।)

फिर क्या हुआ निर्मला,,,,

फिर क्या वही हुआ जो नहीं होना चाहिए था मैं उसकी आंखों के सामने ही अपनी साड़ी उठाकर कार की खिड़की से पेशाब करने लगी और जानबूझ कर उसे अपनी बुर दिखाने लगी,,, जैसा मैं सोच रही थी वैसा ही हुआ मेरा बेटा मेरी बुर देखकर पूरी तरह से उत्तेजित हो गया उसका मन मचलने लगा उसे छूने के लिए उसे पकड़ने के लिए,,,
( निर्मला अपनी कामोत्तेजना से भरपूर बातों से कमरे का माहौल पूरी तरह से गर्म कर दी,,) मेरे ईसारे भर की देरी थी और शुभम पूरी तरह से तैयार हो जाता मुझे चोदने के लिए लेकिन मैं अभी अच्छी तरह से जानती थी कि यह काम उसने पहले कभी नहीं किया था इसलिए धीरे-धीरे बढ़ना ही उचित था मैं जानती हूं कि इसमें सारी गलती मेरी ही थी लेकिन एक औरत होने के नाते मेरी भी कुछ जरूरते थी,, जिसके आगे में घुटने टेक चुकी थी,,, सुभम मुझे एक टक पागलों की तरह देख रहा था मेरी उठी हुई साड़ी के अंदर ऐसा लग रहा था कि जैसे उसने दुनिया की सबसे खूबसूरत चीज देख ली हो,,, उसकी सांसे बहुत ही गहरी चल रही थी वह मेरी बुर को तब तक देखता रहा जब तक मैं उसे नजर भर कर दिखाती रही वह पागल हो जा रहा था क्योंकि मैं उसकी आंखों के सामने उसे अपनी नंगी बुर दिखाते हुए मुत रही थी यह नजारा शायद उसके लिए बेहद काम उत्तेजना से भरपूर था वह इस नजारे का भरपूर फायदा अपनी नजरों से उठा रहा था,,,, जैसे ही मैं अपनी साड़ी नीचे गिराई ऐसा लग रहा था कि जैसे उसके अरमानों पर पर्दा गिर गया है उसके चेहरे पर उदासी के बादल नजर आने लगे,,,,

मैं जिंदगी में पहली बार इस तरह की हरकत और वह भी अपने ही बेटे के सामने कर रही थी जिससे मैं पूरी तरह से चुदवासी हो गई थी,,, मैं देखना चाहती थी कि मुझे उस हालत में देखकर क्या उसका बेटा भी पूरी तरह से उत्तेजित हो चुका है इसलिए मैं भी उसे पेशाब करने के लिए उकसाने लगी,,, बरसात का तूफानी माहौल पूरी तरह से वातावरण को बदल दे रहा था मेरी मादकता भरी जवानी देख कर मेरा बेटा भी पिघलने लगा था,,,, आखिरकार वह भी शर्माते शर्माते पेशाब करने के लिए तैयार हो गया वह भी कार की खिड़की से अपने लंड को बाहर निकालकर पेशाब करना शुरू कर दिया,,, मैं अपने बेटे के खड़े मोटे तगड़े लंड को देखकर अपनी लालच को रोक नहीं पाई और हाथ आगे बढ़ा कर अपने बेटे का लंड को पकड़ कर उसे पेशाब कराने में मदद करने लगी,,,, मेरी नाजुक नाजुक उंगलियों का स्पर्श अपने लंड पर महसूस करके मेरा बेटा पूरी तरह से पागल हो गया उसके चेहरे का भाव बदलता हुआ महसूस हो रहा था वह शर्म के मारे एकदम गनगनाने लगा,,,, मुझसे भी बर्दाश्त नहीं हो रहा था मैं भी प्यासी औरत थी अपने हाथ में इतने मोटे तगड़े लंड को देखकर मैं अपनी लालच को रोक नहीं पाई और उसके लंड को हिलाने लगी वह पेशाब करता जा रहा था और मेरी नाजुक नाजुक उंगलियों का मजा भी लेता जा रहा था,,,,
मैं पूरी तरह से मचल रही थी मैं अपने भावनाओं पर काबू कर पाने में असमर्थ थी लेकिन,,, लेकिन उस दिन मुझे क्या हुआ कि मैं अपनी भावनाओं पर काबू नहीं कर पा रही थी सब कुछ बेअसर होता जा रहा था,,, मेरे बेटे का लंड इतना मोटा तगड़ा और लंबा था कि मेरे पति का लंड उससे आधा भी नहीं था,,,,
मेरी शारीरिक जरूरतें और मेरे बदन का प्यासा पन और साथ ही तूफानी बारिश पूरी तरह से मुझे घुटने टेकने पर मजबूर कर रही थी मैं चाहती तो सबकुछ रोक सकती थी लेकिन मैं अपने भावनाओं पर काबू नहीं कर पा रही थी शीतल तुम एक औरत हो और एक औरत होने के नाते तुम अच्छी तरह से जानती हो कि बरसात के तूफानी माहौल में एक औरत हमेशा पुरुष का संग चाहती है और वही मेरे साथ हो रहा था,,, मुझे अपने बेटे में एक जवान मर्द नजर आ रहा था जिसका मोटा तगड़ा लंड मेरे हाथ में था,,, और ऐसा लंड जीससे में बरसों से अपनी अतृप्त भावनाओं को तृप्त कर सकती थी,,,( निर्मला की गरमा गरम बातें सुनकर शीतल पूरी तरह से गीली होती जा रही थी।)
मुझसे रहा नहीं गया और मैं अपने बेटे के सामने कार की सीट पर अपनी दोनों टांगे फैलाकर अपनी रसीली बुर को उसकी आंखों के सामने उसके लिए परोस दी,,,, मुझे इस तरह से टांग फैलाए हुए देखकर मेरा बेटा हक्का-बक्का रह गया ऐसे समझ में नहीं आ रहा कि मैं क्या करें वह तो मेरी बुर को टकटकी बांधे देखे जा रहा था,,,, ऐसा लग रहा था कि जैसे उसकी आंखों के सामने दुनिया की सबसे खूबसूरत चीज रख दी गई हो,,,, मैं यह बात अच्छी तरह से जानती थी कि इससे पहले मेरे बेटे ने कभी भी किसी भी लड़की या औरत के साथ चुदाई का खेल नहीं खेला था तो इसलिए उसे इस बात का अंदाजा भी नहीं था कि औरत की चुदाई कैसे की जाती है,,,,
मैं स्कूल में टीचर थी और वहां बच्चों को किताब के मुताबिक हर चीज सिखाती थी लेकिन यहां पर मैं आज अपने बेटे को एक नई और जिंदगी की बेहद जरूरी शिक्षा देने जा रही थी इसलिए खुद ही उसके लंड को पकड़ कर अपनी बुर से सटा दी और उससे वही करने को बोली जो एक मर्द औरत के साथ करता है जैसा जैसा मैं बोलती गई वैसा वैसा मेरा बेटा करता गया,, देखते ही देखते मेरे बेटे का लंबा मोटा तगड़ा मुसल जैसा लंड मेरी बुर की गहराई में खो गया,,,, मेरा बेटा पागल हुए जा रहा था आज वह जिंदगी में पहली बार औरत का अनुभव ले रहा था वह हैरान था इस चुदाई के खेल को खेल कर उसे समझ में नहीं आ रहा था कि पूरा लंड बुर में डालने के बाद क्या किया जाता है मैं ही उसे बताया कि अपनी कमर को आगे पीछे कर के अपने नंबर को उसकी बुर में जोर-जोर से अंदर बाहर करे,,, और उसने ठीक वैसा ही किया मुझे लग रहा था कि पहली बार मैं मेरा बेटा बहुत ही जल्दी निपट जाएगा लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ मैं उसे धीरे धीरे से अपनी कमला रानी को बोलती थी तो वह जोश में आकर बड़ी रफ्तार से अपनी कमर को आगे पीछे करके अपने लंड को मेरी बुर में पेल रहा था,,, शीतल मैं सच बता रही हूं मेरा बेटा पहली बार मुस्कुरा कर किसी औरत की चुदाई कर सकता है यह मुझे यकीन नहीं हो रहा था,,, करीब 45 मिनट तक धक्के पर धक्का लगाता रहा मैं तो पागल हुए जा रही थी वह एक भी बार नहीं झढ़ा था लेकिन मैं दो बार निपट चुकी थी,,, सच कहूं तो शीतल जिंदगी में पहली बार मुझे औरत होने पर गर्व हो रहा था जिंदगी में पहली बार में चुदाई का असली मजा लूट रही थी और उस तूफानी रात में सुबह तक हम दोनों ना जाने कितनी बार चुदाई का खेल खेलते रहे,,, उस दिन से जो सिलसिला शुरू हुआ तो आज तक रुकने का नाम नहीं लिया बस यही मेरी कहानी है,,,,

बाप रे बाप ,,,(शीतल लंबी सांस लेते हुए बोली) जिस तरह से तुम बता रहे हो निर्मला अगर तुम्हारी जगह दुनिया की कोई भी मां होती तो शायद वही करती जो तुमने की थी,,, तुम्हारी बातें सुनकर तो मैं पूरी तरह से गीली हो गई,,
( शीतल की बातें सुनकर निर्मला खामोश रही कुछ बोल नहीं रही थी बस नजरे झुकाए नीचे फर्श को देखे जा रही थी,,,)
Bakri Halal hone ko Tayyaar hai.
 
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Gokb

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Wah ab sheetal aur nirmala phir se saheli aur age vi jayegi.ab Shubham ko to 4-4 biwi milgayi
 

rohnny4545

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निर्मला के मुंह से अपनी मदमस्त बर्बादी की मगर बेहद रंगीन कहानी सुनकर शीतल पूरी तरह से उत्तेजना से भर गई थी,,, जिस तरह से निर्मला ने खुद अपनी आपबीती अपने मुंह से सुनी थी उसे सुनकर शीतल को ऐसा लग रहा था कि जैसे वो कोई मूवी देख रही हो,,, और बार-बार उस मूवी में गरमा-गरम दृश्य आ रहे हो,,, शीतल इस कदर उत्तेजना से भर गई थी कि उसका बच्चन का तो इसी समय निर्मला की आंखों के सामने ही उसके बेटे से उसे अपना मोटा तगड़ा लंड उसकी बुर में डालने को बोलती और उससे चुदाई का भरपूर आनंद लूटती,,,
निर्मला अपनी आपबीती शीतल को सुनाकर नजरें झुकाए कुर्सी पर बैठी हुई थी ,,, शीतल उसके ठीक सामने कुर्सी पर बैठी हुई निर्मला के चेहरे को पढ़ने की कोशिश कर रही थी,,, शीतल बेहद उत्सुक कि अपने मन की बात निर्मला को बताने के लिए वह क्या चाहती है वह सब कुछ निर्मला से कह देना चाहती थी अब तो उसके पास मौका भी था लेकिन ना जाने क्यों उसके मन में झीझक हो रही थी कि वह कैसे उससे यह कह दे कि वह उसके बेटे के साथ में वही करना चाह रही है जैसा कि वह खुद अपने बेटे के साथ करती आ रही है,,,। अपने मन की बात शीतल से कहने के लिए वह उतावली थी,, उसका दिल जोरों से धड़क रहा था क्योंकि आज की घटना के बाद से उसे लगने लगा था कि उसकी मंशा बहुत ही जल्द पूरी होने वाली है,, ,,, पूरे कमरे में खामोशी छाई हुई थी दीवार में टंगी घड़ी में 7:00 बजने का अलार्म बजने लगा था,,,। शुभम के वापस आने का समय हो गया था वह नहीं चाहती थी कि शीतल की मौजूदगी में शुभम घर पर आएं इसलिए वह कुर्सी पर से ऊठते हुए बोली,,

शीतल शुभम के आने का समय हो गया है अब मुझे खाना बनाना होगा लेकिन मैं तुम से गुजारिश करती हूं एक बार फिर से हाथ जोड़कर कि आज की बात तुम कभी भी किसी को नहीं कहोगी,,,

तुम बिल्कुल भी चिंता मत करो आज जो कुछ भी मै अपनी आंखों से देखी हूं वह मेरे सीने में एक राज की तरह दफन रहेगा,,( इतना कहते हुए वह भी कुर्सी से उठ खड़ी हुई शीतल की बात सुनकर निर्मला के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई,, उसे विश्वास हो गया कि शीतल यह बात किसी से नहीं कहेगी। वह किचन की तरफ जाने ही वाली थी कि उसे रोकते हुए शीतल बोली,,।)

रुको तो सही निर्मला मेरी पूरी बात तो सुनो,,,( शीतल की बात सुनते हीनिर्मला के पेड़ वही चमके और वह उसी जगह से घूम कर शीतल की तरफ देखते हुए बोली,,,,)

क्या हुआ,,,?


निर्मला मैं तुम्हारा इतना बड़ा राज जानती हूं जो कि अगर यह राज इस घर की चारदीवारी से बाहर निकल गया तो तुम अच्छी तरह से जानती हो कि क्या होगा,,,,, सब कुछ बर्बाद हो जाएगा लेकिन मैं ऐसा नहीं चाहती,,, (शीतल अपनी बड़ी बड़ी आंखों को गोल गोल नचाते हुए बोली,,,)

मुझे तुमसे यही उम्मीद थी शीतल,,,, एक पक्की सहेली होने के नाते मैं अच्छी तरह से जानती हूं कि तुम मेरी बर्बादी कभी नहीं होने दोगी,,,(निर्मला मुस्कुराते हुए शीतल से बोली)

हां यह तो है निर्मला,,,(अपनी दोनों हथेलियों को आपस मेरा रगडते हुए शीतल आगे बढ़ने लगी और वह अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए बोली,,,) मैं कभी नहीं चाहूंगी कि तुम बदनाम हो तुम्हारी बर्बादी हो या तुम्हारे संस्कारों पर तुम्हारी चरित्र पर किसी भी प्रकार की उंगली उठे जिससे तुम्हें तुम्हारे परिवार को पूरे समाज में बदनामी का दाग लेकर जीना पड़े,,, लेकिन निर्मला,,,(इतना कहते हुए शीतल अपनी दोनों हथेली को वापस में रखते हुए निर्मला के चक्कर काटने लगी उसे ऊपर से नीचे तक देखी जा रही थी और निर्मला समझ नहीं पा रही थी कि आखिरकार शीतल कहना क्या चाहती है उसका इरादा क्या है वह आश्चर्य में थी क्योंकि जिस तरह से वह चहलकदमी कर रही थी,, वह बड़ा ही अजीब था,,,, निर्मला को शीतल की मुस्कुराहट के पीछे कुछ गलत करने की आशंका नजर आ रही थी निर्मला का मन अंदर से कह रहा था कि शीतल जरूर कुछ गड़बड़ करेगी इसलिए वह फिर से अंदर ही अंदर घबराने लगी,,, और शीतल अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए बोली,,,)
तुम्हारा इतना बड़ा राज मेरे सीने में दफन रहेगा लेकिन उसके बदले में तुम्हें कुछ कीमत चुकानी पड़ेगी,,,
( शीतल के मुंह से यह बात सुनकर निर्मला आश्चर्य से शीतल की तरफ देखने लगी उसे समझ में नहीं आ रहा था कि शीतल क्या कह रही है,,,)

कीमत कैसी कीमत शीतल तुम्हारे मन में लालच आ गया है तुम राज को राज रखने के लिए मुझसे पैसे मांग रही हो,,,


नहीं नहीं निर्मला तुम बहुत भोली हो पैसा लेकर मैं क्या करूंगी मैं तो कुछ और ही चाह रही हूं,,,(इस बार शीतल अपनी मादकता भरा रूप दिखाते हुए अपनी जीभ को अपने लाल-लाल होठों पर फिराते हुए बोली,,)

पैसा नहीं चाहती हो तो क्या चाहती हो,,,,(निर्मला आश्चर्य से बोली)

देखो निर्मला एक औरत होने के नाते मैं तुमसे यह बात कह रही हूं,,,जिस तरह से तुम अपने पति से संतुष्ट नहीं हो उसी तरह से मैं भी अपने पति से बिल्कुल भी संतुष्ट नहीं हूं या यूं कह लो कि तुम्हारे ही शब्दों में मेरा पति मुझे शारीरिक सुख नहीं दे पाता,,, (शीतल की यह बात सुनते ही निर्मला को उसकी बात सुनकर झटका तो लगा लेकिन वह मन में सोचने लगी कि उसकी भी हालत ठीक उसी की तरह ही है,,, वह भी ऊसी कश्ती मैं सहार थी जिसमें वह पहले से ही मुसाफिर बन कर बैठी हुई थी,,,)

तुम्हारी हालत भी बिल्कुल मेरी तरह ही है तुम्हें भी हंसता खिलखिलाता ,,,,मजाक करता हुआ देखकर कोई यह नहीं कह पाएगा कि तुम अपने पति से संतुष्ट नहीं हो या शारीरिक सुख से अभी तक वंचित हो,,,, मुझे तुम्हारी यह बात सुनकर बहुत दुख हो रहा है शीतल,,

लेकिन तुम मेरे दुख को दुर भी कर सकती हो निर्मला,,,,

मैं कुछ समझी नहीं तुम क्या कहना चाह रही हो।

बहुत ही आसान है निर्मला जिस तरह से तुमने अपना दुख दूर की हो उसी तरह से तुम चाहो तो मेरा भी दुख दूर कर सकती हो,,,,
( शीतल की बात सुनते ही निर्मला को इस बात का एहसास होने लगा कि वह क्या कहना चाह रही है पल भर में उसके चेहरे पर गुस्से के भाव पैदा होने लगे लेकिन शीतल बिल्कुल शांत थी वह मुस्कुराते हुए निर्मला को देखे जा रही थी,,।)

मैं,,,,, मैं तुम्हारा दुख कैसे दूर कर सकती हूं,,?

तुम दूर कर सकती हो निर्मला,,, क्योंकि तुम्हारे पास शुभम है और मैं यही चाहती हूं कि जिस तरह से तुम अपने बेटे का उपयोग करके अपनी शारीरिक जरूरतों को पूरी करती आ रही हो ठीक उसी तरह से तुम्हें राज को राज रखने के एवज में अपने बेटे को मेरे पास भेजना होगा,,,

(शीतल की यह बात सुनते ही निर्मला गुस्से से तिलमिला उठी और जोर से चिल्लाते हुए बोली,,)


शीतल,,, तुम्हें यह कहते हुए शर्म भी नहीं आ रही है,,, तुम सोच भी कैसे सकती हो कि जो तुम कह रही हो मैं वह करूंगी,,,,

तुम वही करोगी जो मैं कहूंगी यह मुझे पूरा विश्वास है,,,

तुम भूल कर रही हो शीतल ऐसा कुछ भी नहीं करूंगी क्योंकि तुम्हारी नियत गंदी है तुम्हारे मन में लालच आ गया है और लालच भी ऐसा जो कि एक औरत को शर्म आनी चाहिए,,,,

(निर्मला की यह बात सुनते ही सीतल जोर-जोर से हंसने लगी ठहाके लगा लगा कर हंसने लगी,,, और हंसते हुए बोली।)

अरे वाह सौ चूहे खा कर बिल्ली हज को चली यह कहावत तुमने सच कर दी हो निर्मला,,,,, मुझसे शर्म और लिहाज की बात कर रही हो और तुम क्या की हो बहुत जल्दी भूल गई,, अपने ही बेटे से चुदवाती आ रही हो,, तुम करो तो मान मर्यादा वाली बात और हम करें तो बेशर्मी,,,
(शीतल की यह बात सुनकर निर्मला एकदम खामोश हो गई ऐसा लग रहा था कि जैसे उसने उसे आईना दिखा दिया हो,,)

लेकिन शीतल जो कुछ भी तुम कह रही हो मैं कभी होने नहीं दुंगी,,,

तो मैं यह राज इस चारदीवारी के बाहर तक ले जाऊंगी,,,

नहीं नहीं तुम ऐसा नहीं कर सकती शीतल,,,

मैं कर सकती हूं,,, और शुभम के साथ वह सब करूंगी जो तुम उसके साथ करती आ रही हो,,,

लेकिन तुम जो कह रही हो क्या दुनिया वाले तुम्हारी बात पर विश्वास कर पाएंगे,,,,नहीं करेंगे वह तुम्हें ही झूठा साबित कर देंगे तुम बदनाम हो जाओगी,,

उसकी चिंता तुम बिल्कुल मत करो निर्मल मेरे पास तुम मां बेटे दोनों की संभोग लीला की पूरी वीडियो है और वीडियो पर तो सब लोग विश्वास करेंगे ही,,,
(शीतल की यह बात सुनकर निर्मला को ऐसा लगने लगा कि जैसे उसके सर पर पूरा आसमान गिर गया हो और पूरी तरह से सदमे में आ गई उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या कहें फिर भी अपना बचाव करते हुए वह बोली।)

नहीं शीतल तुम ऐसा बिल्कुल भी नहीं करोगी तुम्हें याद है मैं क्लास में तुम्हें अपने बेटे के साथ गंदी अवस्था में पकड़ ली थी फिर भी मैं यह बात किसी को नहीं बताई,,,


तुम बता सकती थी तुम्हारे पास मौका था ,,,

नहीं मैं ऐसा नहीं करना चाहती थी क्योंकि मुझे भी तुम्हारी इज्जत प्यारी थी मैं नहीं चाहती थी कि तुम बदनाम हो जाओ,,,

मैं भी तो यही चाहती हूं निर्मला कि तुम बदनाम ना हो इसलिए जो कहते हु वही करो,,,
(शीतल की बात सुनकर निर्मला का दिमाग काम नहीं कर रहा था उसकी इज्जत शीतल के हाथों में थी,,, अगर उसके पास वीडियो ना होता तो निर्मला इस मुसीबत से निकल सकती थी क्योंकि वह जानती थी कि उसका इज्जत और रुतबा समाज में बहुत था वह किसी भी तरह से शीतल की बात को झुठला सकती थी,,, वह उसी तरह से खड़ी रही,,,
अब उसके पास कहने के लिए कुछ भी नहीं था वह उसी तरह से खामोश खड़ी थी शीतल को अब एहसास होने लगा कि उसका काम बन गया है अब समय भी हो रहा था उसका बेटा शुभम किसी भी वक्त घर पर आ सकता था इसलिए वह निर्मला से जाते-जाते बोली।

देखो निर्मला मैं तो बिल्कुल भी नहीं चाहती कि तुम्हारी किसी भी प्रकार से बदनामी हो अगर तुम चाहती हो कि तुम्हारी बदनामी हो तो जैसा मैं कह रही हूं वैसा मत करो लेकिन अगर अपनी इज्जत बचाना चाहती हो तो जैसा मैं कह रही हूं ठीक वैसा ही करो,, कल रात 9:00 बजे तुम अपने बेटे को मेरे घर भेज देना कोई भी बहाना करके कैसे भेजना है यह तुम अच्छी तरह से जानती हो मैं इंतजार करूंगी और अगर कल 9:00 बजे तुम अपने बेटे को मेरे घर नहीं भेजी तो इसकी जिम्मेदार तुम खुद होगी,,,
(इतना कहकर शीतल निर्मला के घर से बाहर चली गई और निर्मला उसे घर से बाहर जाते हुए देखती रही.)
 

Desi Man

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बहुत मस्त अपडेट हैं दोस्त
 
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