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Incest उलझन - आदत या ज़रूरत, प्यार या हवस।

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Kya is story me Interfaith aur adultery hai ???
कहानी मुख्यतः incest बेस पर ही रहेगी जैसा कि मेने tag लगा रखा है, पर कही कही adultry भी दिखने मिलेगा।
 
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pprsprs0

Well-Known Member
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दोस्तों, सभी को एक बार पुनः से मेरा नमस्कार,
बहोत अच्छा लग रहा है एक बार दोबारा आपके सामने नयी कहानी पेश करने का मौका मिल रहा है, आशा करती हु कि इस कहानी को आप मेरी पिछली कहानी से भी ज्यादा पसंद करेंगे और प्यार करेंगे। तो कहानी शुरू करते है -----



तन पर कपड़ो के नाम पर सिर्फ एक फटी उधड़ी हुई कच्छी,जो एक टांग मैं घुटनो के पास लटक रही थी और एक फटी हुई ब्रा, जो मानो पतली सी डोर के सहारे कंधे से लटक कह रही हो इतना भी क्यों रहने दिया इसे भी चिर दिया होता चुंकि इसके अब इस तन पर होने ना होने से कुछ भी फरक नहीं पड़ना था,

इस वक्त अपनी बेरेहेम मार से लाल पड़ी हुई, जिनके उभार पर नीले रंग कि नसे साफ दिखती हुई दोनों चूचियाँ लिए,जो इस वक्त पूर्ण रूप से नंगी निचे जमीन कि तरफ लटकी हुई मानो जमीन अपने गुरुतवाकर्शन बल से अपनी तरफ खिंच रही हो, को लिए दोनों हाथ पीछे कि तरफ से एक मोटी सी रस्सी से बंधे हुए दोनों टांगे चिपकाये हुए आगे अपने नंगे लाल और सुन्न पड़े हुए चुत्तड़ लिए टेबल के सहारे आगे कि तरफ झुकी हुई "मैं", जिसके मुँह मैं फटी उधड़ी हुई ब्रा और कच्छी के टुकड़े ठुसे हुए, आँखों मैं आंसू लिए पसीने से भीगी खड़ी ही थी कि,

तभी मेरे उन कसे हुए लाल मोटे चुत्तडो पर शट शट शट शट शट कर ना जाने ही कितनी बार लगातार बेल्ट कि मार पडती है जिसका एहसास होते ही मैं और मेरी रूह अंतरंग तक काँप उठती है और दोनों टांगे झटके से कांपने लगती है और दर्द से जोरदार चीख निकालने कि नाकाम कोशिश के साथ ही आँखों से आंसू छलक पड़ते है और इसी दर्द के मारे मानो जैसे मेरी टांगो मैं जान ही ना रही हो, जिस कारण टांगे मुड़ने लगती है और मैं निचे कि तरफ होने लगती हु, अभी कुछ इंच निचे हुई ही होती हु कि उस बेल्ट कि बेरेहेम मार का एक दौर और चल पड़ता है जिसकी दर्द और कराह से दोनों टांगे तुरंत ही वापस कड़क सीधी हो जाती है, मानो जैसे ये मार मुझे याद दिलाने के लिए थी कि इस वक्त मुझे बिना टांगे मोड बिलकुल सीधी टांगे लिए एक पालतू कुतिया के जैसे खड़े रहना है....

और जैसे ही बेल्ट का आखरी वार मेरे चुत्तडो पर होता है और उस दर्द के कम्पन से एक झटके मे मैं बिस्तर पर एक चीख के साथ नींद के आगोश से बाहर आती हु, अहहहहहहहहहह.......
Welcome back and congrats for new story !!!
 
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malikarman

Well-Known Member
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अध्याय ३


नहाने के बाद मैं जीन्स और टी शर्ट डाल कर कॉलेज के लिए तैयार हो जाती हु और मम्मी जो कि इस साड़ी पहनी हुई थी उनके साथ बैठ कर नास्ता करने लग जाती हु और नास्ता करने के बाद मैं अपनी कॉलेज के लिए और मम्मी अपनी कॉलेज के लिए रवाना हो जाती हैँ।

यहाँ आपको बता दू कि मम्मी अलग कॉलेज मैं पढ़ाती थी और मेरी सब्जेक्ट और स्ट्रीम अलग होने कि वजह से मुझे दूसरी कॉलेज मैं दाखिला लेना पड़ा था।

पुरे रास्ते मेरे ज़हन मैं वही रात के दृश्य घूम रहे थे और इन्ही दृश्ययो के साथ मैं कब कॉलेज पहुंच गयी मुझे भी पता नहीं लगा। और कॉलेज पहुंच कर मैं सीधा अपनी क्लास अटेंड करने चली गयी। क्लास मैं जैसे ही अपनी जगह पर बैठी हु कि तभी एक आवाज कान मैं पडती है, " गुड मॉर्निंग काम्या "।

और इस आवाज के साथ ही मैं अपने ख्यालो से बाहर आती हु और एक मुस्कान के साथ, "गुड मॉर्निंग आकाश " बोल कर जवाब देती हु। उसी के साथ उसके पास बैठी मेरी सहेली और आकाश कि गर्लफ्रेंड "मानसी" को भी गुड मॉर्निंग विश करती हु और उनके साथ ही बैठ जाती हु। अभी हमारी रोजमर्रा कि थोड़ी गप शाप हुई ही होती है कि क्लास मैं "बलवान सर" कि एंट्री हो जाती है जिन्हे देख सब एक दम चिप हो जाते है।

बलवान सर एक ऐसी शख्शियत थे जिनसे पूरा कॉलेज डरा करता था, डिसिप्लिन के पक्के और हर चीज ने समय के पक्के, उतने ही गुस्से वाले भी। उनकी क्लास मैं कोई चु तक कि आवाज करने कि भी हिम्मत नहीं करता था और जो अगर किसी ने कुछ हरकत कर दी तो उसकी खैर नहीं।

अभी सर ने क्लास मैं कदम ही रखा था कि मेरी नजर उनके हाथ पर पड़ी, और जैसे ही मेरी नजर उन हाथो पर गिरती है, शरीर मैं एक ऐसा कम्पन पैदा हो जाता है कि मेरे रोंगटे खड़े हो जाते है।
मेरे ऐसा हाल होने का कारण था उनके हाथ मैं पकड़ी हुई एक "छड़ी "। जी हाँ, बलवान सर हमेशा अपने साथ एक बांस कि छड़ी भी रखा करते थे, ताजुब है कि कॉलेज मैं कोई प्रोफेसर इस तरह छड़ी ले कर घूमे लेकिन इनके होते हर चीज मुमकिन है।

फिलहाल मेरे लिए ये छड़ी ताजुब और रोंगटे खड़े होने का कारण इसलिए बनी थी चुंकि उसे देख तुरंत ही मेरी आँखों मैं रात को सपने मैं देखा गया दृश्य वापस जाग्रत हो चूका था और बस एक ही चीज नजर आ रही थी कि कही ये छड़ी मेरे चूतड्डो पर ना मार दे। पूरी क्लास के दौरान इसी ख्याल और दृश्य के चलते मैं एक दम सहमी सी बैठी रही और जैसे ही क्लास ख़तम होने के बाद मैं सर बाहर गए तब ना जाने क्यों लेकिन मेने एक चैन कि सास ली।

ऐसा नहीं था कि सर के हाथो मैं मेने आज पहली बार वो छड़ी देखि थी लेकिन मेरा ये अलग सा बर्ताव मुझे भी सोचने पर मजबूर कर रहा था और करें भी क्यों नहीं, पिछले कुछ दिनों से रात मैं जिस तरह के सपने मुझे दिखाई दे रहे है, ना चाहते हुए भी ऐसी चीजे होने लगती है। खैर इसके बाद कुछ देर मैं मानसी और आकाश के साथ कैंटीन मैं वक्त बिताई और बाकि कि क्लास अटेंड करने चली गयी।

एक नजर मम्मी यानि सीमा कि कॉलेज मैं -

यहाँ सीमा (मेरी मम्मी ) भी कॉलेज पहुंच चुकी थी और जैसा कि मैंने बताया था उनको देख कर आज भी कोई नहीं कह सकता था कि उनकी इतनी बाटी बेटी होंगी, बस इसी कारण जैसे ही सीमा कॉलेज मैं स्टाफ रूम मैं पहुँचती है तो कॉलेज के सभी मेल स्टाफ कि नजर उस पर ही टिकी रह जाती है, और टिके भी क्यों नहीं, इतनी खूबसूरत हसीन जिस्म कि मालकिन सामने थी , जिसका बदन बहोत अच्छे से उस कसी हुई साड़ी मैं बंधा हुआ था कि हर एक अंग का रूप और ढंग कोई देख कर ही कल्पना कर लेवे, खास कर वो भरी कसे चुत्तड़ जो साड़ी मैं बहोत अच्छे से उभार रहे थे ओर वो दो खूबसूरत चट्टान से उभरे हुए लेकिन आम से मुलायम चुचे जो ब्लाउज और ब्लाउज के उप्पर हलके से क्लीवेज मैं बहोत अच्छे से नजर आ रहे हो।

सीमा, एक बार सबकी नजरों को पढ़ते हुए और उनके भाव समझ चेहरे पर मुस्कान लेट हुए - गुड मॉर्निंग एवरीवन।

पूजा (सीमा के साथ कि प्रोफेसर, उम्र मैं उससे 5-6 साल छोटी होंगी लेकिन खूबसूरती और शरीर कि बनावट मैं ये भी कम नहीं, इसकी और सीमा कि एक दूसरे से बहोत अच्छे से बनती है और एक दूसरे से हर बात बिना झिझक शर्म के ब देती है, कह सकते है कि दोनों स्टाफ के सदस्य होने के साथ साथ बहोत अच्छी दोस्त भी है।), मुस्कान से जवाब देते हुए - गुड मॉर्निंग सीमा मैम।

वही मौजूद बाकि सभी सदस्यो ने भी गुड मॉर्निंग विश किया और फिर अपने अपने कामों मैं लग गए। और इसी बिच एक नजर जो एक टक सीमा को निहारे जा रही थी,या यु कहो कि निहारना कम और सीमा के जिस्म के एक एक अंग को उस साड़ी मैं होते हुए भी नंगा देख रही थी, जैसे मानो अभी इसी वक्त साड़ी का पल्लू हटा ब्लाउज मैं कैसे उन उरोजो को हाथ मैं पकड़ कस के निचोड़ ले और साथ ही उन चूतड़ों को मुट्ठी मैं भर ऐंठ डाले, फिर खुद की भावनाओं और माहौल का ध्यान रखते हुए - गुड मॉर्निंग सीमा मैम।

सीमा, जैसे इंतज़ार ही कर रही थी तुरंत :- गुड मॉर्निंग युसूफ सर।

और जैसे ही सीमा के मुँह से अपना नाम युसूफ के कानो मैं पड़ता है तो उसकी नजर भी चमक उठती है और एक नाटकीय शराफत भरी नजर से वो सीमा को उप्पर से निचे टक देख इशारो इशारो मैं ही तारीफ कर देते है और सीमा उस इशारे को बहोत अच्छे से समझते हुए नजरें नीची कर लेती है।

ये सब तिरछी नजरों से देख रही पूजा तुरंत युसूफ के करीब से निकलते हुए - क्या बात है युसूफ सर आपको क्लास लेने नहीं जाना है क्या आज।

युसूफ, इस साली पूजा ने सारा मजा ख़राब कर दिया कुतिया कही कि - अरे पूजा मैम बस वही तो जा रहा हु,लो आपने ही रोक दिया अब। चलिए मैं चलता हु बाद मैं मिलते है और ये बोल सीमा कि तरफ एक बार ओर देख वो स्टाफ रूम से बाहर निकल जाता है।

पूजा, सीमा के करीब आ कर :- हाय राम! आज मैं ना होती तो ये तो खा ही जाता आपको सीमा मैम।

सीमा, पूजा कि बात सुन हस्ते हुए :- हाहाहा क्या पूजा तुम भी, क्या क्या कहती हो।

पूजा :- इसमें क्या गलत कहा भला मेने, देखा नहीं आपने कैसे घूरे जा रहा था वो आपको, आप ही हो जो इसकी इन नजरों को संभालती हो मैं तो पता ही नहीं क्या कर बैठु।

सीमा :- हेहे अरे पूजा अब किसी कि नज़र पर तो मेरा बस है नहीं ना।

पूजा :- हाँ वैसे ये बात तो है और सच कहु तो आप आज लग भी क़यामत रही हो, युसूफ सर के जैसे ना जाने कितनी ही नजरें पूरा दिन आज आपके इस सुन्दर बदन कि एक झलक पाने के लिए लालायित होंगी हेहे।

सीमा :- वाह देखो तो, अभी तो युसूफ कि शिकायत कर रही थी अब उसी बात को अलग रूप दे दिया, एक निश्चय तो कर लो तुम,।

पूजा :- हाहा यही तो उलझन है ना मैम, जिस नज़र से उन्होंने आपको देखा मेने उसपर अपनों प्रतिक्रिया दी कि मुझे क्या लगा, बाकि वैसे हकीकत तो यही है ना कि मेरी दोस्त सीमा इस वक्त बहोत हसीन लग रही है और उसके आगे यहाँ कोई दूसरी को तो देखेगा भी नहीं।

सीमा, चिढ़ाते हुए :- एक मिनट, तो तुम्हारी व्यथा क्या है, "ये कि ये सभी मर्द मुझे अलग अलग नजरों से देखते है या ये कि कोई तुम्हे उस नज़र से नहीं देखता है?"

पूजा :- क्या मैम आप भी ना, मुझे कोई शोक नहीं और ना ही अच्छा लगेगा कि कोई मुझे ऐसे घूरता रहे, ये तो आप ही हो जो इस सब चीजों को संभालती हो।

सीमा :- हाहा वैसे एक बात कहु, इन चीजों के मजे लिया करो पूजा, ये नहीं कह रही कि सब पूर्ण रूप से सही है पर कही ना कही हमारा अंतर्मन भी इस चीज से खुश होता है जब एक मर्द कि नज़र हम औरतों पर पडती है, हाँ बस हर नज़र का नज़रिया अलग होता है, हमें उस नज़र का मतलब समझ आना चाहिए।

पूजा, उलझती हुई :- उफ्फ्फ मैम कभी कभी तो आप क्या बातें करती हो पल्ले ही नहीं पडती, वैसे इतना मुझे भी पता है कि औरत होने के नाते कौन किस नज़र से देखता है पर मुझे ये बिलकुल अच्छा नहीं लगता है, मेरे पास मेरे पति है और ये हक़ सिर्फ उनका है और हर औरत को ये हक़ सिर्फ अपने पति को देना चाहिए, ऐसे हर मर्द किसी को उस नज़र से देखे और वो उसमे मजा ढूंढे तो कही ना कही उसकी नियत मैं भी खोट जरूर है।

पूजा बोलते तो बोल गयी लेकिन जब उसने सीमा के चेहरे के बदले भाव देखे तो समझ पडती है कि उसने सीमा कि किस दुखती रग पर हाथ डाल दिया है और बात सँभालते हुए

माफ़ करना सीमा मैम मेरा वो मतलब नहीं था, सच मैं मुझे नहीं पता मैं ऐसा क्यों बोल गयी पर प्लीज इस बात को बोल कर मैं आपके जख्म हरे नहीं कर रही थी।

सीमा, मुस्कुराते हुए :- अरे पूजा कोई बात नहीं मुझे बुरा नहीं लगा है तुम्हारी बात का, हो सकता है तुम अपनी जगह एक दम सही हो, ओर जैसा मेने कहा हर किसी का हर चीज को ले अपना नज़रिया होता है। खैर छोड़ो इन बातो को चलो अब जिस काम के लिए कॉलेज आये वो कर ले..?

पूजा :- कौनसा काम मैम?

सीमा :- वही काम, पूरी कॉलेज के मर्दो कि नज़रे चेक करने का, कि कौन हमारा कौनसा अंग कैसे देख रहा... हाहाहाहा

पूजा :- नहीं मुझे नहीं करना ये काम अभी तो, वैसे भी आपके होते मुझे कौन देखेगा हाहाहा।

सीमा :- चुप जर, मज़ाक कर रही, मैं क्लास लेने के काम कि बात कर रही हु चल अब।

और ये बोल दोनों सीमा और पूजा अपनी अपनी क्लास कि तरफ चल पड़ते है।



आगे कि कहानी अगले अध्याय मैं ~ आपकी काम्या..










Good story
 
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अध्याय ४



मेरा रोज का घर से कॉलेज और कॉलेज से घर सिटी बस से हि होता था और आज भी कॉलेज से निकल कर मैं बस से घर के लिए रवाना हो गयी। बस अपनी रफ़्तार से चल रही थी और मैं अपने कानो मैं इयरफोन लगा कर गाने सुनने मैं मस्त थी, तभी किसी सिग्नल पर बस रूकती है और वहां पर ट्रैफिक भी बहुत ज्यादा था जिससे साफ पता लग गया था मुझे कि ये सिग्नल से निकलते निकलते बस को दस मिनट तो आराम से लगने ही वाले है। तभी मेरी नजर बस से बाहर थोड़ी दुरी पर एक नजरा दिखाई देता है, जिसमे एक कुत्ता कुतिया के पीछे से उप्पर चढ़ा हुआ था और दनादन धक्के लगा कर कुतिया कि चुदाई कर रहा था, और मेरी नजरें इस नज़ारे पर मानो चिपक सी गयी थी।

मैं एक टक बस वही देखे जा रही थी कि कैसे कुत्ता पीछे का पूरा जोर लगा कर अपने लुंड को कुतिया कि चुत मैं पेल रहा था और बहोत तेजी से उसे चोद रहा था, हायययय इतनी दीजिये गति के धक्के, मैं तो बस देख के स्तब्ध रह गयी थी और कही ना कही इस चुदाई का खेल देख मन ही मन मुझे आनंद भी रहा था, ये खेल कुछ देर ओर चलता है और तभी बस आगे कि तरफ चलने लगती है,ना जाने क्यों पर मन ही मन मुझे ओर इच्छा थी कि मैं ये चुदाई पूरी देख कर जाऊ पर ऐसा ना हो सका।

अभी बस थोड़ी आगे चली ही होंगी कि मेरे कान मैं एक आवाज पडती है, "बहोत मजा आ रहा था ना देखने का, बस भी गलत समय पर चल दी क्यों "...

ये आवाज दरअसल मेरे पास वाली सीट पर बैठे एक शख्स कि थी, और वो भी शायद मेरी तरह वही सब नज़ारे देख रहा था, बस फरक ये था कि उस चुदाई के खेल के साथ साथ उसने ये भी देखा कि मेरी नजर भी वही पर टिकी हुई है और मैं तो जैसे भूल गयी थी कि इस वक्त मैं बस मैं बैठी हु।

उसकी बात सुन कर मेने एक बार तो जैसे कुछ सुना ही नहीं हो ऐसे रही और उसे नज़रअंदाज कर दिया...
लेकिन कुछ ही पल मैं उसने वापस से..

मै तुझसे ही बात कर रहा हु, "सही कहा ना मैंने बहोत मजेदार नजारा था ना, साला इस बस वाले को भी अभी आगे चलना था क्या।"

इस बार उसकी बात सुन कर और उसके बात करने के तरीके से जो मुझे बिलकुल अच्छा नहीं लगा - क्या मतलब आपका, क्या कहना चाह रहे हो, कौनसा नजारा।

" अब बस भी कर समझी, बहोत अच्छे से देखा मैंने कैसे आँखे बड़ी बड़ी करके तू उस कुतिया को लंड लेते देख रही थी। "

छी कितना कमीना है ये, बोलने कि तमीज टक नहीं है इसको तो, मेने दोबारा उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया ओर उसे बस आँखे बड़ी करके देखने लगी।

"ऐसे क्या देख रही है, जो देखा वही पूछ रहा हु ना।"

मैं - देखो मुझे तुमसे कोई बात नहीं करनी ओर ये कौनसा तरीका है लड़की से बात करने का।

"हाँ तो मत कर बात मेने कब तुझसे जबरदस्ती कि है, मेने तो बस तुझे इतने अच्छे से सब देखते देखा तो बस पूछ लिया।"

मैं - मेरी आँखे है मेरी मर्जी वो देखु समझें। और मै अपना चेहरा दूसरी तरह घुमा खिड़की से बाहर देखने लगी।

कुछ देर चुप रहने के बस वो दोबारा बड़बड़ाने लगा, " साला कितने मजे है इन कुत्तो के बहनचोद, जहा मन करें वहां चुदाई का मजा ले लेते है, ना किसी जगह कि जरुरत, ना लोगो कि शर्म ना किसी का डर और ना ही चार दीवारी के अंदर रहने कि मंशा। जब जहा चुत दिखी कुतिया और चढ़ गए लंड खड़ा करके। "

"और यहाँ हमें साला एक लड़की के लिए कितनी माशाक्कत करनी पडती है तब जा कर हाथ लगती है उसके बाद भी उनके हज़ारो नखरे झेलो, तब जा के भी ये साली कमीनी चुत देने मैं भाव खाती है।"

उसकी ये सब बातें सुन कर मुझे उस लड़के कि बातें सुन गुस्सा भी बहोत आया कि ये क्या बकवास करें जा रहा है और कैसी भाषा का प्रायःपीजी कर रहा है, पास मैं लड़की बैठी है इस बात का भी लिहाज नहीं है, आवारा कही का, और यही सोच के एक बार मेने गुस्से मैं उसकी तरफ मूड कर देखा।

मुझे ऐसे देखते हुए देख, " अब क्या हुआ, मैं तुझसे कोई बात नहीं कर रहा ऐसे क्यों देख रही फिर तू मुझे। "

मैंने फिज़ूल मैं अब इसके मुँह लगना उचित नहीं समझा और वापस मुँह फेर कर बैठ गई और ये देख वो एक शैतानी मुस्कान लिए मुस्कुराने लगा, और मैं कुछ देर मैं अपने स्टॉप पर उतर गयी।

निचे उतर कर मेरे दिमाग़ मैं बस यही चल रहा था कि कैसे कैसे घटिया लोग है दुनिया मैं, कहा कौन किसके सामने बैठे है कुछ नहीं देखते, कितनी बकवास और वाहियात बातें बोल रहा था बेशर्म कही का।

सीमा अभी अपनी कॉलेज मैं क्लास मैं लेक्चर दे रही होती है और तभी युसूफ वहां कॉरिडोर से इधर उधर देखते हुए गुज़रता है और तभी उसकी नज़र क्लास ले रही सीमा पर पडती है जिसे देख उसके कदम वही पर रुक जाते है और फिर एक बार पुनः कॉरिडोर मे अपनी नज़रे दौड़ाता है ये देखने के लिए कि कही कोई कॉरिडोर मैं है तो नहीं, और पाता है कि पूरा कॉरिडोर खाली पड़ा है और ये देखते ही वो वही क्लास के गेट से थोड़ा पीछे हट जिससे क्लास मैं पढ़ रहे बच्चो कि नज़र उस पर ना पड़े और सीमा कि नज़र पड़ सके वैसे दिवार के सहारे खड़ा हो जाता है।

इस वक्त सीमा को उसकी मौजूदगी का बिलकुल भी पता नहीं होता है और वो क्लास मैं घूमते हुए पढ़ा रही होती है और युसीफ वहां खड़े खड़े सीमा के जिस्म को देख अपनी आँखे सेक रहा होता है। ये सोचते हुए कि, " हाय क्या मस्त ग़दराई घोड़ी है ये सीमा, साली कि गंद कितनी भारी भरकम है, साली के मटकते भरी चुत्तड़, कसम से कुतिया बना कर गांड मारु साली कि, ऐसा माल यहाँ कॉलेज मैं होने कि जगह मेरे बिस्तर मैं मेरे निचे होना चाहिए, जिसका जिस्म एक रांड के जैसे ही रगड़ रगड़ के नोच डालू।

और तभी सीमा एक बार वापस घूमती है जिससे कि उसकी नज़र बाहर खड़े युसूफ सर पर पडती है, जो कि अब भी सीमा के जिस्म का अवलोकन करने मैं व्यस्त था, जिसे देख सीमा के चेहरे पर कुछ अलग से भाव छा जाते है लेकिन मन ही मन मुस्कान भी छाई रहती है और वो अब वही खड़ी रह कर पढ़ने लगती है।

युसूफ जो मन ही मन अब अपनी आँखों से सीमा को चोद रहा था उसका हाथ अपने आप ही उसके पेंट के उप्पर से लंड सहलाने को पहुंच जाता है जिसे देख सीमा मन ही मन हस पडती है ये सोच, " उफ्फ्फ इस मर्द जात का कुछ नहीं हो सकता, बस मौका चाहिए इन्हे, औरत देखि नहीं कि बस कर दिया नंगा और लगे मन ही मन उसे चोदने," और फिर इसी सोच से वो पूरी तरह से मूड जाती है और अपनी नज़रे सीधे युसूफ के चेहरे पर गड़ा देती है जिसकी नज़रे इस वक्त सीमा के ब्लाउज के बाहर निकलने को तत्पर उन उभरी हुई चूचिओ पर थी, और सीमा के इस तरह से अचानक से मुड़ने से वो एक दम से झेप जाता है और खुद को संभालने लगता है।

ये देख सीमा के भी चेहरे से हसीं छूट जाती है और इशारो ही इशारो मैं वो युसूफ से सवाल करती है, " क्या हुआ सर, सब ठीक तो है ना? " और इस पर युसूफ कुछ ना कहते हुए चुप चाप वहां से चला जाता है।

उसके जाने के बाद सीमा, " क्या हो जाता है इन मर्दो को, रोज मिलते है फिर भी ऐसे घूरते है जैसे कि आज पहली बार औरत देखि हो", वैसे जो भी हो पता नहीं कभी कभी मुझे भी क्यों इस तरह इन मर्दो को चिढ़ाने मैं मजा मिलता है, और खुद पर विचार करते हुए, "क्या सच मैं आज भी मुझमे वो बात है, आज भी जब मेरी बेटी इस उम्र कि हो चुकी है, जहा उसकी उम्र कि लड़की को चाहने वालो कि कमी नहीं होनी चाहिए वहां ये युसूफ सर जैसे लोग मुझ जैसी उम्रदराज औरत के जिस्म से आकर्षित हो रहे है, क्या ही हो रहा है दुनिया मैं।"और फिर अपना दिमाग़ वापस क्लास मैं लाते हुए बच्चो को पढ़ाने लगती है।

बाकि का पूरा दिन यु ही निकल जाता है और शाम को मै और मम्मी थोड़ा पैदल घूमने के इरादे से बाहर निकलने का सोच रहे थे । वही मोहल्ले के आखिर मैं एक चौराहा था, और हम दोनों का जब भी मन होता उस दिन उस चौराहे टक टहल कर वापस घर आ जाया करते थे, उस चौराहे कर एक किराना कि दुकान है और हर शाम वहां मोहल्ले के लड़के गप्पे लड़ाने के लिए इकठ्ठा हुआ करते थे।

मम्मी ने अभी भी वही साड़ी पहनी थी जो कॉलेज मैं पहन कर गयी थी, और मैंने इस वक्त एक कुरता लेगिंग डाला हुआ था, हम दोनों ही शाम को घर से निकलते है और उस चौराहे टक पहुंचते है, जहा जैसा कि मेने बताया वहां मर्दो कि मंडली जमीं हुई थी, खैर हमें इससे कोई मतलब नहीं था और हम दोनों वहां से वापस घर कि तरफ चल दिए।अभी हम आधे रास्ते ही लौटे थे कि मम्मी मुझे याद दिलाती है कि घर मैं राशन का कुछ सामान ख़तम हो गया है वो खरीदना था, तो इस बात पर मैं मम्मी को घर जाने का कह कर वापस उस किराना कि दुकान से सामान लेने के लिए चली आती हु।

अभी मैं वहां पहुँचती ही हु कि मेरे कानो मैं एक आवाज गिरती है, " यार एक दम सही कहा तूने, क्या गज़ब का माल है ये सीमा तो, कही से नहीं लगता कि इसकी काम्या जितनी बड़ी बेटी होंगी, साली का जिस्म देखा है कितना भरा और ग़दराया हुआ है, एक बार रागड़ने मिल जाये तो सच मजा ही आ जाये "

मम्मी के बारे मैं ये बात सुन मेरे पाव वही रुक से गए और ना चाहते हुए भी मे वहां छिप कर खड़ी हो गयी ताकि मैं उनकी बातें और अच्छे से सुन सकूँ कि तभी वहां मौजूद दूसरे शख्स ने कहा

" भाई कसम से बात तो तूने सही कही एक दम,पुरे मोहल्ले मैं इससे कड़क माल कोई नहीं है, मन करता है कि पूरा लंड एक ही बार मैं सीमा कि छूट मैं डाल कर अपने बच्चे कि माँ बना दू " और सब इस बात पर हसने लगते है।

फिर उस मण्डली मैं से कोई बोलता है, " क्या लगता है भाईओ सबको, इतने सालो से अकेली है सीमा, बिना मर्द के, प्यासी तो बहोत होंगी, अगर कोशिश करें तो शायद लंड उसकी चुत मैं डालने का मौका मिल भी जाये हाहाहा "

वापस से पहली आवाज, " यार ऐसा मौका मिले तो मैं तो उसकी चुत से पहले वो ग़दराई गंद मारना चाहूंगा, साली क्या मस्त गंद कि मालकिन है, कुतिया बना कर गांड मरने मैं बहोत मजा आएगा सीमा कि हाय "।

दूसरी आवाज, " वैसे उसका जिस्म देख कर मुझे लगता नहीं कि वो इतने सालो से बिना मर्द के रह रही होंगी "

एक ओर आवाज, " क्या क्या मतलब है तेरा, कहना क्या चाहता है तू भाई "

दूसरी आवाज, " अरे जिस्म देखा तूने उसका, दिनों दिन बस भरता ही गया है और गद्दाराता गया है इतने सालो से देखते आ रहे है हम ना, मना कि तलाक शुदा है यहाँ घर मैं उसका मर्द नहीं पर क्या पता साली बाहर किसी का बिस्तर गरमाती हो, वैसे भी औरत बिना लंड लिए ज्यादा दिन कहा रह पति है।

पहली आवाज, " यार तू बात तो सही कह रहा है एक दम, वैसे भी इसको पूछने वाला भी कौन है भला, साली रोज नया लंड ले कर मजे करें तो भी हाहाहा "

" पर कसम से यार, जिस किसी को भी सीमा जैसी औरत का जिसने रागड़ने का मौका मिल रहा होगा ना, साला किस्मत वाला होगा वो, वैसे भी कॉलेज मैं जाती है वहां क्या पता कही स्टाफ के किसी मर्द या किसी स्टूडेंट ने ही इसको रांड बना रखा हो अपनी, जब जहा मन किया साली कि टांगे फैला चुत मर ली हो या कुतिया बना कर गांड।

" हाहाहा यार उनकी तो किस्मत खुल गयी पर हमारी ऐसी किस्मत कहा, वरना मैं तो अब तक कबका इस सीमा को अपने लंड कि रखेल बना चूका होता "

तभी पहली आवाज, " वैसे उसकी बेटी काम्या भी कम नहीं है यार, साली कि मस्त जवानी निखार के आयी है, अपनी माँ के नक़्शे कदम पर चल रही ऐसा लग रहा अभी से, पूरा कैसा बदन और मस्त गोल मटोल चूचियाँ ले कर घूमती है रंडि कही कि "

अपने आप के लिए रंडि शब्द सुन कर मेरे जिस्म मैं करंट फ़ैल गया, जैसे मानो इतना गुस्सा आ गया हो कि अभी उसका मुँह तोड़ दू लेकिन फिर भी मुझे और सुनने कि उत्सुकता होने कि वजह से चुप चाप वहां खड़ा रह जाती हु..

दूसरी आवाज, " सही कह रहा है भाई तू, काम्या भी कम नहीं है, वैसे भी जैसी माँ वैसी बेटी, निकली तो उसी कि चुत से है ना,,, ओर उसको देख कर लगता भी है कि खूब रगड़ाती होंगी अपना जिस्म वो भी साली कुतिया "

"कुतिया " सुनते ही मेरे पैर कांप उठे एक बार वापस से और मेरे से अब वहां नहीं रुका जा रहा था तो गुस्से मैं बिना सामान लिए ही " कौन इन कुत्तो के मुँह लगे " सोच वहां से निकल आयी, लेकिन पुरे रास्ते बस एक ही बता ज़हन मैं चली कि आखिर कैसे कैसे सोच वाले लोग है दुनिया मैं...

किसी औरत या लड़की के बारे मैं कोई ऐसा कैसे बोल सकता है भला, छी, क्या वो सिर्फ रांड या कुतिया बनने के लिए ही जन्म लेती है, उफ्फ्फ आज सुबह बस मैं वो घटिया आदमी, फिर अब यहाँ ये सब, ये तो इसी मोहल्ले के, जो सामने से इतने अच्छे और भोले बनते है पीठ पीछे वही सब ऐसी बातें कर रहे, कितनी घटिया सोच है इन सब कि.......। और इन्ही सब बातो को सोचते हुए मैं घर आ गई।




 
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