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Erotica उम्र पचपन की में दिल हुआ बेईमान

aamirhydkhan

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एक पचपन वर्ष के आदमी के साथ इक्कीस वर्ष की युवती की योन क्रीड़ा।

Hello friends...

ये कहानी किसी और फोरम से कॉपी पेस्ट है।

गंगाराम और स्नेहा

गंगाराम-
एक 55 साल का हट्टा कट्टा आदमी है। उसका कद कोई 5'7" लम्बाई होगी। दिखने में आकर्षक दिखता है और अच्छे सलीके से रहता है।

स्नेहा - लड़की की उम्र कोई 20 -22 की होगी। लड़की दुबली पतली और, सावंली है। नयन नक्श अच्छे है।

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Last edited:

kamdev99008

FoX - Federation of Xossipians
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बहुत बढ़िया चल रही है चुदाई........... और कहानी भी :D

नए-नए माल की उम्मीद है
सरोज तो बेकरार है ही
अभी राव की भी बेटी का नंबर लगाना है
 

aamirhydkhan

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UPDATE 16

दावत

"ऐसी कोई बात नहीं है...वह खुद कह चुके हैं की में किसी को भी बुला लूँ.. यार स्नेहा चलना..." स्नेहा रिक्वेस्ट करि।

"दावत किस लिए...?" पूछी सरोज।

"अंकल का जन्मदिन है" (birthday)

"ओह कब...?"

"वैसे जन्म दिन तो फ्राइडे (Friday) को है... लेकिन हमें छुट्टी नहीं मिलती ईसी लिये संडे बारह बजे ... अगर तुम चाहो तो तुम्हारे पति को भी ले चलो..."

"कौन.. मेरा पति... न.. न.. यह पहले से ही शक्की मिजाज का है... नहीं उन्हें नहीं.... वैसे भी वह हर संडे की तरह अपने दोस्तों से मिलने जाता है..."

ठीक है.. फिर.. संडे को 10 बजे मिलते है..." बोली स्नेहा।

"वह तो ठीक है.. पहले तुम अपनी गांड मराने की किस्सा तो बता दे... तुमने तो मुझमे उत्सुकता जगादि।"

"क्या अभी...?"

हाँ.. अभी.. अभि तो दो ही बजे है.. तुम चार बजे जयेगी न.. बहुत समय है.. जरा डिटेल से बताना ..." कही और कपड़ों के ऊपर से ही स्नेहा की गांड पर एक थपकी दी।

"स्स्स्सस्ठ्ठाआ..." इतनी जोरसे क्यों मार रही है.. सुन बताती हूँ..." और स्नेहा अपनी गांड मराने की किस्सा सुनाते सुनाते उस दिन की घटना के बारे में सोच ने लगी।

-x-x-x-x-x-

उस दिन सवेरे कोई गयारह बजे स्नेहा को गंगाराम के यहाँ से फ़ोन आया।

"हेलो अंकल.." स्नेहा चाहकते बोली...

"स्नेहा.. मुझे पहले इस जगह पे मिलो..." बस इतना कह जगह नाम बताया और फ़ोन काट दिया।

वह झट स्नान करके तैयार होने लगी। जब से गंगाराम ने उसके अकाउंट में 60,000 रूपये जमा कराया है स्नेह गंगाराम पे फ़िदा होने लगी। वह एक पिंडलियों तक आनेवाली स्कर्ट और गोल गले का टाइट टॉप पहन कर निकली। टॉप टाइट होने की वजह से उसके छोटे छोटे चूची भी बहुत लुभावनि दिखरहे थे। निर्धारित समय और निर्धारित जगह पर गंगाराम ने उसे पिक किया और गाड़ी आगे चलने लगी।

स्नेहा सामने पैसेंजर सीट पर बैठते ही आगे झुक कर गंगाराम की गाल को किस करि और सीट पर जम गयी। गंगाराम गाड़ी चला रहा था।

"हम कहाँ जा रहे है अंकल..." वह गंगाराम से पूछी।

"just wait डार्लिंग मालूम पड़ जाएगा.." कहते उसने स्नहा के गाल को पिंच किया। उसके बाद उन दोनों में कोई वार्तालाप नहीं हुई। स्नेहा ख़ामोशी से खिड़की से बाहर का नजारा कर रही थी। कोई 40 km चलने के बाद गाड़ी एक रिसोर्ट में घूमी। स्नेहा पूरा नाम नहीं पढी लेकिन एक रिसोर्ट है यह समझ गयी। रिसोर्ट के अंदर maingate गेट से कोई 2km दूरी पर main building दिखी।

गंगाराम और स्नेहा गाड़ीसे उतरे और अंदर चले। एक manager ने आकर उसे स्वगत किया और गंगाराम उससे कुछ पूछे। फिर दोनों गाड़ी में बैठे। उनके के साथ एक रिसोर्ट के कर्मचारी भी था जो उन्हें रास्ता दिखाने लगा। रिसोर्ट के main building के पीछे कोई 3 मिनिट चलने का बाद वह एक कॉटेज के सामने रुके और कर्मचारी ने कॉटेज का ताला खोल कर उन्हें अंदर तक ले गया और गंगाराम का दिया टिप लेकर चला गया।

गंगाराम और स्नेहा अंदर बेडरूम में पहुंचे... वह बड़रूम इतना बड़ा होगा स्नेहा ने अनुमान नहीं लगाया। बहुत बड़ा था और बहुत बड़ी पलंग और उस पर मखमली गद्दी...

गंगाराम ने स्नेहा को गद्दी पर धकेला और उस पर टूट पड़ा... स्नेहा खिल खिलाकर हँसते बेड पर रोल होते अंकल को अपने ऊपर गिराने से बची।

कुछ देर बाद दोनों हँसते बेड पर बैठे और गंगाराम उसे अपने गोद में खींचा... वह हँसते हुए उसके गोद में बैठी और अपने हाथों का हार गंगाराम की गले में पहनाई।

"ओह.... अंकल कितना अच्छा है यह जगह... कहते उसे चूमने लगी। गभराओ नहीं डार्लिंग तुम मेरे साथ रहो मैं तुम्हे एक से एक स्वर्ग जैसी जगह दिखावुंगा और तुम्हे स्वर्गकी सैर करावुंगा....बोलो.. दोगी साथ...?" बोलते उसने उसे चूमते उसके मादक छोटे बूब्स पर हाथ फेरने लगा।

"अंकल मैं तो हमेशा आपके साथ हूँ..." मादक अंदाज से बोली और "अंकल I am वेटिंग..." कहती उसने गंगाराम की जांघों में हाथ डाली।

"नहीं स्नेहा...अभी नहीं..." वह उसे रोका...

स्नेहा उसे अस्चर्य से देखने लगी।

"चलो फ्रेश होजाओ.. बाहर जाकर खुले में बैठते हैं..."

स्नेहा बातरूम में घुसी और बातरूम की सजावट देख कर दंग रह गयी। इतना उम्दा बातरूम था वह। एक ओर बात टब, दूसरी ओर एक आदमकद शीशे के साथ ड्रेससिंग टेबल... स्नेहा सपने में भी कभी नहीं सोची की ऐसे रिसोर्ट में वह कुछ समय बितायेगी। उसके फ्रेश होक बाहर आते ही गंगाराम भी फ्रेश होकर आया और दोनों कॉटेज के सामने लॉन (lawn) में बिछे एक टू सीटर सोफे पर जम गए। सामने के एक छोटे टेबल पर कुछ डिशेस पहले से ही रखे हैं। लगता है गंगाराम ने पहले से ही आर्डर दे रखा है। साथ में एक व्हिस्की बोतल और दो गिलास भी थे।

गंगाराम ने दोनों ग्लासों में व्हिस्की डाला और पानी मिलाकर स्नेहा को एक थमाते चियर्स बोला। दोनों आराम से व्हिस्की चूसक रहे थे। अब स्नेहा बेहिचक व्हिस्की लेने लगी। स्नेहा गंगाराम को देखकर हँस रही थी। गंगाराम ने एक आंख दबायी। स्नेहा हँसते हुए अपने जगह से उठी और गंगाराम की गोद में अपने छोटे नितम्ब जमाकर बैठ गयी।

"थैंक यू डियर...:" गंगाराम ने उसे किस करा।

गंगाराम उसे गोद में बिठाकर बहुतसे बाते करने लगा। वह अपने बिज़नेस के बारे में भी उसे बता रहा था। उसने किधर किधर कितना रुपए इन्वेस्ट किया... जैसी बहतु से बातें।

उसने अपने दोनों बेटों के बारे में भी बताया.. और न जाने क्या क्या....

स्नेहा खामोशी से सुन रहीथी।

स्नेहा एक पेग तक ही सिमित राहि, जब की गंगाराम दूसरा पेग ले रहा था। फिर दोनों ने वहां परोसे खाना खाया.. कुछ देर बाद एक कर्मचारी आकर टेबल साफ करके चला गया।

दोनों वही बैठे व्हिस्की सिप करते गप्पे मार रहे थे। गंगाराम स्नेहा के घर के बारे में, उनके घर के सदस्य के बारे में पूछ रहा था। और उसके सहेलियों के बारे में.. और भी बहुत से बातें।

"स्नेहा कभी अपने घर के दूसरे सदस्यों से हमारा परिचय करादो; वैसे ही तुम्हरे कोई दोस्त भी हो तो... देखो मैं अकेला रहता हूँ... मुझे लोग बहुत पसंद है..."

"उसमे क्या है अंकल जरूर परिचय करा दूँगी... मेरे घर के मेंबर्स के साथ मेरी एक अच्छी सहेली है सरोज .. मैं अपको उस से मिलवा दूंगी" बोली।

"तुम्हारा कोई मेल (male) फ्रेंड्स नहीं है क्या...?" गंगाराम पुछा।

"नहीं अंकल..."

"कोई बॉय फ्रेंड...?"

"आप मेरे बॉय फ्रेंड ही है न..."

"मेरे अलावा..."

"बॉय फ्रेंड.. और मेरा....." वह हंसी और बोली... I am not so lucky अंकल... मुझे फुरसत कहाँ मिलती.. किसी को बॉय फ्रेंड बनाने का..."

"हूँ... खैर छोड़ो..."

"वैसे स्नेहा..एक बात; आने वाले संडे को मैं एक पार्टी देरहा हूँ.. तुम अपने फॅमिली को और भी कोई अपने दोस्तों को फॅमिली के साथ invite कर सकती हो" कहते उसने उसके स्कर्ट के निचे हाथ घुसा दिया।

हाय अंकल यह क्या कररहे हो.. इतने उजालेमे वो भी बाहर लॉन में..." कहते उसने गंगाराम के हाथ को बहार खींचने की कोशिश करने लगी।

"अरे डियर.. जबतक हम न कहे यहाँ कोई नहीं आएगा.. मेरी गारंटी... कहते उसके पैंटी के ऊपर से उसकी बुर को दबोचा...

"सससससस....हहह" स्नेहा एक मीठी सिसकारी ली; और बोली ठहरो अंकल... और उसने गंगारम के हाथ बाहर निकालते ही अपना पैंटी ही उतार फेंकी।

"वाह यह हुई न बात..." उसने फिरसे हाथ स्कर्ट के निचे डाल दिया। स्नेहा अपने टांगे पैलादी।

गंगारम की मिडिल फिंगर स्नेहा के बुरमें जड़तक घुस चुकी थी। उससे अपने बुर को कुरेदवाते, स्नेहा ने गंगाराम की पजामा के सामने का ज़िप निचे झीँच कर उसके डंडे को बाहर खेंचि। उसके 9 1/2 इंच लम्बा और 4 इंच मोटा डंडा बाहर खुले आसमान को ताक रहा था। स्नेहा झुककर उसे एकबार चूमि... और बोली... "अंकल यह आपका जादू का डंडा सचमे ही मुझपर जादू कररही है..." कहि और उसके मोठे सुपाडे को मुहंमें ली। गंगाराम उसके स्कर्ट के निचेसे हाथ निकाल कर पिछेसे उसे जकड़ा। अब दोनों को सहूलियत थी। वह पीछे से उसे ऊँगली से चोद रहा था और स्नेहा उसके पहलवान को चुभला रही थी।

कोई पांच छह मिनिट यह चुभलाना और ऊँगली से चुदवाने का सिल सिला चला। अब दोनों को ही अपने आप को संभालना मुश्किल लग रहा था।

"स्नेहा डार्लिन अब रहा नहीं जाता... जल्दी से मुझे स्वर्ग में आने दो..." वह स्नेह कि छोटी चूची को टीपता बोला।

"रोक कौन रहा है अंकल.... आईये न... ठहरो मैं हि इसे अंदर लेलेती हूँ..." कही और गंगारम की गोद में बैठी। बैठने से पहले उसने अपने स्कर्ट को कमर तक उठायी और उसके डंडे को अपने बुर में लेली।

"आअह्ह्ह्ह... कितना गर्म हो.. तुम्हारी .. सससस.. सच मजा आगया.. ऐसे खुले आसमान के निचे दिन के उजाले में... तुम्हे कैसा लग रहा है.... स्नेहा डियर...?" वह निचेसे उसके बुर में दक्का देते पुछा।

"पुछा पूछो मत अंकल.. में तो स्वर्ग में हूँ... और तुम कहते हो की स्वर्ग मेरे जांघों में है... लेकिन में कहती हूँ स्वर्ग तो आपके जांघों के बीच है...." वह उसके ऊपर उछलती बोली।

कहानी जारी रहेगी
 
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aamirhydkhan

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UPDATE 17

गांड की पहली चुदाई


स्नेहा गंगराम के गोद में बैठ कर ऊपर नीचे हो रही थी तो वह निचे से ठोकर देने लगा।

वह लोग अपने काम में डूबे थे की गंगाराम की मोबाइल बजी। चिढ चिढ़ाते उसने फ़ोन उठाया और 'हेलो' बोला। स्नेहा उधर से आने वाले बातों को सुन नहीं पायी लेकिन गंगराम की बातें उसके कानों में पड रहे थे।

"नहीं, नहीं समीर खान जी यह नहीं होसत्ता..." गंगाराम कहरहा था।

"......... "

"अरे बाबा.. सुनते नहीं हो...; नहीं हो सकता..."

"..........."

""आप समझते क्यों नहीं समीर साहब..."

".............."

"ठीक है मैं रख रहा हूँ.. हाँ.. बाबा.. सोचूंगा..." और गंगारम ने फ़ोन काट दिया, फिर अपने गोद में बैठे स्नेहा की ओर ध्यान दिया..

अंकल..." स्नेहा उसके उपर उछलती बुलाई

"hooon"

"कौन था...अंकल...." उसके लंड पर अपनी बुर दबाती पूछी।

"था कोई औरतों का रसिया.. स्साला..." गंगाराम घुसे हे कहा।

फिर दोनों के बीच धमसान चुदाई हुई और गंगाराम अपना मॉल अंदर छोड़ चूकाथा तो; स्नेहा ने दोबार झड़चुकी और थककर गंगारम के ऊपर गिरी। दोनों अंदर आये और बेड पर गिरे। गिरते ही स्नेहा की आंखे मूंदने लगी।


जब उसे होश आया तो उसने महसूस किया की उसके नितम्बों के बीच कोई ऊँगली कर रहा है... "ममममम..." कहती उसने आंख खोली तो "उठ गयी डार्लिंग..." गंगारम पुछा।

"क्या कर रहे हो अंकल...?" तबतक उसे गांडके दरार में ऊँगली का मजा आने लगा तो टांगे पैलाती पूछी।

"तुम्हारी गांड बहुत मस्ती भरी है.. उसे चोदने की तैयारी कर रहा हूँ,,,"

"ओह... नो.. अंकल... मेरी गांड फट जाएगी..." वह बोली लेकिन गंगाराम को रोकने की कोशिश नहीं करि।

गंगाराम अपने साथ लाये पॉन्ड्स पोमेड को स्नेह कि गांड के इर्द गिर्द और उसके गोल छेद पर मलते दबाव देरहा था। "अरे पगली.... चूत और लैंड का मजा तो ली है.. अब गांड मराने का मजा भी तो ले..." और अपना काम जरी रखते इसके ऊपर झुका और उसके गालों को काटने लगा।

स्नेहा को मजा आरहा था तो वह खामोश पड़ी अपने गांड को चिकना करवा रही थी। उसके गांड पर पोमेड लगाते लगाते, गंगाराम ने अपनी तर्जनी ऊँगली को थोड़ा दबाव दियातो वह दो टकनों तक गांड के अंदर चली गयी। गांड में ऊँगली घुसने का स्नेह महसूस करि लेकिन उसे कुछ दर्द नहीं हुआ तो वह चकित रह गयी। जब वह कुछ नहीं बोलीतो गंगाराम ने पुछा.. "स्नेहा..कुछ दर्द हो रहा है...?"

"नहीं अंकल.. आपका ऊँगली अंदर गयी क्या...?"

"हाँ... दो टकनों तकतो अंदर गयी..."

"Wwaaaaaaaavvvv...." वह बोलती गांड को ऊपर उछाली।

"जनू ... अब लंड डाल रहा हूँ..." अपने सुपाड़ा उसकी चिकनहट पर रख पुछा..."

"अंकल.. संभल के..." वह कहही रहीथी की गंगाराम ने अपने लंडपर दबव दिया..पोमेड के चिकनाहट की वजहसे "पछ...." की हलकी सी आवाज के साथ सूपड़ा अंदर चलीगयी।

"डार्लिंग सूपड़ा अंदर.. कुछ दर्द तो नहीं...? वह पुछा।

"नहीं अंकल...."

गंगाराम ने एक और दक्का दिया और आधेसे ज्यादा लंड गांड में चली गयी..."

"आह....आह.. " अबकी बार उसे हल्कासा दर्द महसूस हुआ।

"दर्द हुआ...?"

"हाँ लेकिन थोडासा ..."

गंगाराम उसके कमर पकड़ कर एक और शॉट जमकर दियातो उसका औजार पूरा अंदर चला गया..."

"सससस...हहहआ..." स्नेहा चट पटायी। गंगाराम ने अपनी चुदाई शुरू करदी।

तीन चार मिनिट बाद स्नेहाको भी मजा आने लगा तो..वह अपने गांड को पीछे धकेलती बोली... "आअह्ह्ह अंकल.. अब मजा आरहा है.."

गंगाराम उसके छोटे कुल्हों पर तपकी देता जमकर उसकी गांड मारने लगा...

"सससस.. अंकल डालो अंदर.. अब मजाही मजा आरही है.. मारो मेरी कुंवारी गांड को.. मजा दे रही है क्या...?"

"हाँ.. स्वीटी मुझे भी मजा ही मजा है..." कहते दना दन गांड मारने लगा।

"अंकल मेरी चूत में भी खुजली हो रही है..." अपने गांड को पीछे धकेलती बोली।

गंगाराम अपना एक हाथ उसकी जांघों में डालकर उसकी रिसरही चूतको कुरेदने लगा। "आआअह्ह्ह्ह...." ख़ुशी से वह जोर से चिल्लायी..

"क्या हुआ....?"

"कुछ नहीं अंकल...आप करते रहीये... अब मैं झड़ने वाली हूँ... ऊँगली मेरी बुरमें और अंदर डालिये...आआह्ह्ह्ह..." वह कही और झड़ गई। गंगाराम की ऊँगली उसके चूत रस से चिपडा था। उस ऊँगली को उसने स्नेहा के मुहं के पस रखा... स्नेह अपना मुहं खोलकर उस ऊँगली को ली और चूसने लगी।

गंगाराम पूरे आठ दस मिनिट उसकी गांड मारते रहा और उसके गांड में अपना गरम लस लसा से भरने लगा। दोनों थके हारे बेड पर गिरे।

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अंकल वह कौन था जो आप इतना गुस्से में थे...?" गाड़ी से वापिस आते समय स्नेहा पूछी..

"छोड़ो.. उस नालायक की किस्सा..." गंगाराम चिढ़ते बोला।

"बोलिये ना अंकल.. प्लीज...." कहती वह उसकी ओर झुकी और उसकी गाल को चूमि।

"कुछ नहीं स्नेहा..." गंगाराम उस की कंधे पर दबाव देता बोला "वह एक सरकारी अधिकारी है। नाम है समीर खान। जबतक उस अधिकारी की सर्टिफिकेट न आये मुन्सिपल वाले बिल्डिंग प्लान अप्रूव (approve) नहीं करते। उसके पास मेरा एक फाइल है... वह उसमे दस्तखत करता तो मेरा एक प्लाट पर एक पांच माला बिल्डिंग बन सकती है.. हर माले में तीन तीन फ्लैट होंगे... 50:50 हिसाब से बिल्डिंग बनाने को एक बिल्डर तैयार है.. लेकिन यह सस्ला.. फाइल sign नहीं कर रहा है..."

"उसे कुछ देदेना था..."

वह सब होगया.. वह मान नहीं रहा है ...वह औरत खोर है.. उसे औरत या लड़की चाहिये.. वह भी घरेलू... किसी रंडीको तो मैं ब्रोकर से बुक करा सकता हूँ... लेकिन उसे वह पसंद नहीं है.. उसे सिर्फ और सिर्फ फॅमिली औरत चाहिए.... इसे मैं कहाँ से लावूं ..."

"oooooooohhhhh" बोली स्नेहा।

कहानी जारी रहेगी
 

aamirhydkhan

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UPDATE 18

फाइल लेने गयी स्नेहा


स्नेहा समीर खान के यहाँ से गंगाराम की फाइल ले आती है। कैसे जानिए...

दोपहर के एक बज रहे थे। स्नेहा इधर उधर देखते उस कार्यालय में पहुंची। उस समय वह घुटनों के ऊपर आने वाली स्कर्ट और गोल गले वाली टॉप पहनी है। उसके टाइट टॉप से उसके छोटे छोटे मुम्मे समाने वाले के आँखों में चुभने जैसे है। अपने बालों को वह दो ponytail में बांध, उस ponytail में लाल रंग की hair band लगाई है। स्कर्ट ऊपर को होने की वजह से उसके पतले जाँघे नुमाया हो रहे थे। उसके जांघें और पिंडलियाँ बहुत स्मूथ दिखकर देखने वालों की मुहं में पानी ला रहे हैं। एक बात में बोला जाये तो 21 वर्ष की यह लड़की एक पंद्रह सोलह वर्ष की लड़कीजैसे दिख रही है।

ऑफिस के अंदर कॉरिडोर में दोनों तरफ क़तार से चार कमरे थे और हर कमरे के सामने दीवार पर उस अधिकारी का नाम प्लेट है। दीवार के साथ लगकर ही कमरे के सामने तीन कुर्सियां बिछे है ताकि आने वाले वहां बैठे। दरवाजे के पास एक स्टूल था लेकिन उस पर कोई नहीं था। दो कमरों के आगे एक स्टूल पर एक चपरासी बैठा है। लगता है उधर के चार अधिकारीयों का एक ही चपरासी है।

'समीर खान' नाम पढ़कर स्नेहा वहां रुकी और इधर उधर देखने लगी। वहां से दो कमरे के आगे जो चपरासी बैठा था, स्नेहा के पास आया और काम पुछा।

"साहब से मिलना है..." स्नेहा नाम प्लेट कीओर इशारा करते बोली।

"आपके पास अपॉइंटमेंट है...?" उस चपरासी ने पुछा।

"नहीं... लेकिन मिलना जरूरी है... साहेब से मिलवादो प्लीज..." कही और उस चपरासी के हाथ में एक सौ का नोट थमादि।

सौ का नोट देखते ही उसके बांचे खिल गयी। क्यों की सौ का नोट देने वाले कोई आता ही नहीं। 20 से ज्यादे से ज्यादा उसे 50 की नोट थमाने वाले ही आते है। वह भी कभी कभी।

"आप बैठिये" उसे अदब से कुर्सी दिखाते बोला दरवाजे ठेल कर अंदर गया और 2 मिनिट में बाहर आया और स्नेहा से कहा... "साहब कुछ फाइल्स देख रहे है... आधे घंटे तक किसी को न भेजने को कहे है... आप इंतजार करिये.. या नहीं तो नजदीक के कैंटीन में चाय पीकर आईये..."

"नहीं मैं यहाँ बैठती हूँ..." कहते स्नेहा ने एक कुर्सी पर जम गयी।

पूरे चालीस मिनिट बाद घंटी बजने पर चपरासी फिर अंदर गया और अधिकारी जिसका नाम है समीर खान से बोला "साहेब आपसे मिलने कोई लड़की आयी है..."

"लड़की...?" उसने आश्चर्य से पुछा....

"हाँ साहब..."

"लड़की या औरत..."

"लड़की है साहेब... सांवली है लेकिन एक दम कड़क..." चपरासी जिसे समीर खान के आदत मालूम है... दांतें दिखाते बोला।

"पागल कहीं के... उसे अंदर क्यों नहीं भेजा...?"

"साहेब आपही तो कहेथे की किसी भी विजिटर को कम से कम आधा घण्टा बिठाने को..." चपरसी ढरते, झिझकते बोला।

"ब्लडी फूल...." समीर खान रुका और फिर बोला "खैर.... उसे अंदर बेजो..."

चपरासी बहार आया और स्नेहा को अंदर भिजवाया...

"सर नमस्ते..." स्नेहा ने सर झुकाकर नमस्ते कही और उसे देखने लगी।

समीर खान ने सर नवाकर कहा "प्लीज कम; टेक युवर सीट..." उसके सामने पड़े कुर्सियों की तरफ इशारा करते बोला।

स्नेहा बैठ गयी और अपने हाथ मलने लगी।

'वाह, साली क्या मॉल है...' यह सोचते समीर ने उसे परखा जब वह अंदर आ रहीथी तो ही उसके खुले जांघें देख कर ही उसकी पैंट में खलबलि मची।

चमकती आंखे, सतुवा नाक्, पतले गुलाबी होंठ, छोटीसी ठोढ़ी (chin), गर्दन लम्बी.. और उसकी छोटी छोटी चूचियां... देख कर 'मस्त मॉल है' सोचते पुछा..."यस...."

"सर... मेरा नाम दीपा है... आपके पास एक फाइल है... उसे लेन के लिए मेरे मामा ने मुझे बेझे हैं.."

समीर स्नेहा की चमकती आँखों को देखते पुछा..."क्या नाम है तुम्हरा मामा का...?"

"गंगाराम जी है.. वह रियल्टार हैं..."

समीर अपने सीट से उठा और फाइलिंग कैबिनेट के अंदर से एक फाइल निकला और अपने आप् में बुद बुदाया... 'यस हियर इट ईस' वह फाइल लेकर वापिस अपने सीट पर बैठा और फाइल खोल कर देखने लगा ।

कोई दस मिनिट तक फाइल देखने का बहाना कर वह स्नेहा कीओर देखता बोला ... "इसमें कुछ खामियां है... उसे पूरा करने के लिए कहा था उनसे..."

"यस सर.. उसे पूरा करने के लिए ही मैं यहाँ हूँ..."

"अच्छा.. तुम्हे मालूम है.. क्या करना है...?"

"नो सर... मामाजी कह रहे थे की आप मुझे समझायेंगे..."

समीर एक बार फिर स्नेहा को परखा और अपने आप में सोचा... 'क्या यह लड़की मुझे झेल पायेगी...?' वह अपने हलब्बी लंड के बारे में सोचते स्नेहा से बोला "बाहर कार पार्किंग के पास ठहरना... मैं अता हूँ..."

"सर वह फाइल..." स्नेहा रुक गयी।

"मैं ले आता हूँ..."

"थैंक्यू सर..." कह कर स्नेहा बहार आगयी और कार पार्किंग की ओर बढ़ी।

-x-x-x-x-x-

दस मिनिट बाद समीर खान अपने हाथ में एक फाइल लेकर पार्किंग पर आया, और स्नेहा को देख क्र कहा "चलो..." और वह अपनी कारकी ओर चला। स्नेहा उसके पीछे पिछे चलने लगी। समीर एक एस्टीम कार कि डोर (door) खोल कर अंदर बैठते स्नेहा से कहा "बैठो..." कहते सामने का पैसेंजर सीटकि ओर दरवाजा खोला। स्नेहा झिझकते अंदर बैठी। समीर खान ख़ामोशी से कार चलाने लगा। दोनों खामोश बैठे थे। कुछ देर बाद....

"सर हम कहाँ जा रहे है...?" स्नेहा पूछी।

"हमारे घर..."

"क्यों...?"

तुम्हारे मामा के फाइल के खामियां दूर करने..." उसके बाद स्नेहा खामोश बैठी रही।

दो तीन मिनिट बाद समीर पुछा..."क्या नाम है तुम्हारा...?"

"दीपा...." स्नेहा जवाब दी। दीपा वह नाम है जब राव (गंगाराम और स्नेहा 2) के सामने गंगाराम ने स्नेहा का पिरचय कराया था। स्नेहा वही नाम का उपयोग कर रही है।

"क्या कर रही हो...?"

"इंटर हो गया.. अब डिग्री में एडमिशन लेनी है..."

"इंटर...." वह चकित होते उस से बोला "क्या उम्र है तुम्हारी...?"

"उन्नीस... वर्ष... 19 years"

"तुम तो उन्नीस वर्ष की और इंटर कर चुकी लड़की दिखती ही नहीं हो... तुम्हे देख कर कोई भी यही कहेगा की कोई नवीं या दसवीं की लड़की होगी और उम्र तो १६ से ज्यादा दिखती नहीं हो तुम" कहते उसने उसके नंगे घुटने पर हाथ लगाया।

कहानी जारी रहेगी
 

aamirhydkhan

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UPDATE 19

गंगाराम की फाइल

स्नेहा सकुचाते "मेरा बॉडी ही वैसा है सर..." बोली और फिर पूछी... हम आपके घर क्यों जारहे हैं...?"

"मालूम पड जायेगा... जल्दी क्याहै...?' कहते उसने अपना हाथ ऊपर करते जांघ पर घुमाया। स्नेहा के शरीर में एक सुर सूरी हुई। वह समीर के हाथ को रोकने का प्रयास करती बोली।

"सर नहीं...." समीर अपना हाथ निकाल नहीं वहीँ रख के रखा। स्नेहा ने दुबारा प्रतिरोध नहीं किया।

पंद्रह मिनिट बाद वह लोग समीर के घर पहुंचे। समीर दरवाजे का ताला खोलने लगताहै तो स्नेहा पूछी... "घर में कोई नहीं है क्या...?"

"नहीं...फिलहाल मैं अकेला हूँ.. मेरी पत्नी डेलिवरी के लिए मइके गयी है... एक बेटा है 5 साल का.. वह भी उसीके साथ..."

दरवाजा खोल कर दोनों अंदर आते है और समीर स्नेहा को सोफे पर बिठाता बोला "दस मिनिट; मैं फ्रेश होकर आता हुं.." कहा और अंदर चला गया। कोई 15 मिनिट बाद यह लुंगी और कुर्ता पह्ने हॉल में आया और साइड सोफे पर बैठ गया। दो तीन मिनिट बाद वह फिर किचेन की ओर चला। स्नेहा खमोशी से बैठ के घर को देख रही थी। घर बड़ा है.. और सलीक़े से सजी है। हॉल में कुछ तस्वीरें और कुछ पेंटिंग्स भी लगे है । उन तस्वीरों में, एक तस्वीर में एक 30, 32. वर्ष की सुन्दर युवती और उसे साथ एक छोटा बच्चे का भी है। 'शायब इनकी पत्नी और बेटा होंगे' स्नेहा सोची।

"दीपा यह लो चाय..." समीर उसे एक कप थमाते बोला।

"इसकी क्या जरूरत थी सर..." वह सकुचाते बोली और कप लेली। फिर दोनों के बीच कोई वार्तालाप नहीं हुई। ख़ामोशी से चाय सिप कर रहे थे।

दोनों ने चाय ख़तम किये और कप साइड टेबल पर रखे।

"तुम्हारे मामा ने वास्तव में नहीं कहे काम के बारे में...?"

"नो सर..."

"hooooon" समीर बोला और उसे अपने यहाँ बुलाया "दीपा यहाँ आना..."

स्नेहा झकते अपने यहाँ से उठी और समीर खान के पास आयी।

समीरने स्नेहाको एकबार ऊपरसे निछे तक देखा और उसका कलाई पकड़ कर अपने साइड में बिठाया... और उसके कंधे के गिर्द अपना हाथ लपेटकर उसके गाल को चूमा।

"सर, यह क्या क्र रहे है आप...?" स्नेहा बोली।

"वही.. जो काम अधूरा रह गया था...जिस से फाइल की खामियां दूर हो..."

"लेकिन...: स्नेह कुछ बोल रही थी की समीरने उसे झट अपने ऊपर खींचा, जिस से स्नेहा के छोटे नितम्ब उसके गोद में जम गए।

"सर.. छोड़िये.. यह सब गलत है..." स्नेहा बोली, लेकिन अपने आप को छुड़ाने की कोशिश नहीं की।

"अच्छा..दीपा एक बात बताओ.." वह अपने हाथ स्नेहा कन्धों पर रख कर पूसा।

स्नेहा सिर उठाकर उसे देखि।

"तुम्हारे मामा ने तुमसे क्या कहे...?"

"यहीकी आप एक फाइल देंगे.. उसे लेआना.. और उस फाइलकी जो खामियां है उसे ठीक करने में मुझे आपकी सहायता करनी है। मैं जब पूछीकि कैसे तो उन्होंने कहा आपको मालूम है और मुझे आप जैसा बोले वैसे करना है..."

"यही कहे है या और कुछ"

"जी नहीं...और कुछ नहीं कहे..."

"तो तुम तुम्हारे मामा जैसे बोले वैसे करोगी..."

"हाँ...."

"तो जब मैं कुछ कर रहा हूँ तो तुम मुझे क्यों रोक रही हो...?

"लेकिन सर यह गलत है..."

"देखो यही एक तारीखा है तुम्हारे मामा के फाइल को दुरुस्त करने का... अब तुम सोचलो फाइल दुरुस्त करना या नहीं..."

"सर लेकिन..."

"देखो दीपा; इसमें जोर जबरदस्ती नहीं है... तुम चाहो तो फाइल तुम्हे अभी देदेता हूँ... without signature तुम फाइल लेजा सकती हो" समीर स्नेहा के आँखों में देखता बोला।

"सर मैं ऐसा कभी नहीं की है..."

"हर काम का एक पहल होती है.. समझो ये तुम्हारा पहल है..."

स्नेहा खामोश रही। समीर खान समझ गया की लड़की मानेगी। हुआ भी यही... स्नेहा सिर झुका कर धीमें स्वर में बोली..."ठीक है..."

"क्या ठीक है...?"

"में आप जैसा बोले वैसा करूंगी..."

"शाबाश यह हुई न बात.. चलो जरा हंसकर दिखाओ..."

स्नेहा समीर की ओर देखकर एक चित्ताकर्षक ढंगसे मुस्कुरायी। समीर अपने हाथ पैलाया.. और स्नेहा शर्मसे लाल होती उसके बाँहोमें आगयी। वह उसे गोदमें बिठाकर उसे चूमने और चाटने लगा... स्नेहा शर्माने का नाटक करते उसके चुम्बनों का आनंद ले रहीथी। समीर उसके गर्दनपर किस करते, एक हाथ से अपने गोद में बैठे स्नेहा कि स्कर्ट ऊपर उठा रहा था तो दूसरे हाथ को उसके छोटे छोटे गुटली पर फेर रहा था। इतनी जवान लड़की के साथ यह सब करते समीर अपने आप में नहीं था।

"दीपा.. वूं..." कहते समीर अपने होंठों को आगे बढाया... तो स्नेहा ने उसे अपने होंठों में लेकर चूमने लगी। फिर कुछ देर बाद समीर अपना जीभ उसकी होंठों पर फेरा... स्नेहा के होंठ समीर के जीभ के स्वागत के लिए खुल गए हैं। समीर का जीभ स्नेहा की मुहं के अंदर explore करने लगी। उसे इस खेल में मजा आरहा था। उत्तेजना में वह समीर को जोरसे लिपटने लगी।

"उसका लिपटना देख ते ही समीर समझ गया की लड़की अब जो बोले वह करेगी।

"दीपा कैसी है...?" उसके नन्हे चूची को हाथ निचे दबाता पुछा।

स्नेहा ने कोई जवाब नहीं दी सिर्फ उस से जोरसे लिपटने लगी।

"यह क्या है...?" उसकी चूची को दबाता पुछा... वह इस लड़की से जी भर कर खेलने को सोचा।

स्नेहा शर्म से लाल होती अपना सर झुकाली।

"अरे भाई कुछ तो बोलो.. यह क्या है...?" उसने चूची को जोरसे दबाते पुछा।

"च.... चू ....च...ची...." धीरे से बोली।

"अच्छा..तो यह क्या है...?" सनीर ने स्नेह कि स्कर्ट के निचे हाथ डालकर उसकी उभार को जकड़ते पुछा...

"छी... सर... आप गंदे है..." वह उसके हाथ को निकालने की कोशिश करते बोली।

समीर और जोर से उसके बुर को जकड़ा और उसके कान में फूस फुसाया ... "बोलो..यह क्या है...?"

"छी... मुझे नहीं मालूम..." वह सर दुसरी ओर करके कही।

"जब तक तुम बोलोगी नहीं मैं यह नहीं छोडूंगा..." उसकी बुर को पकड़कर गाल को चूमता बोला। स्नेहा कुछ देर नखरे करती रही और फिर मन्द्र स्वर में बोली..."चू...त.... बुर..." स्नेहा को भी इस खेलमे मजा आने लगी। गंगाराम के साथ मौजमस्ती करने पर भी वह ऐसा खेल कभी नहीं खेला।

"गुड...अंग्रेजी में क्या कहते हैं मालूम...?"

स्नेहा अपनी नितम्ब उसके अकड़ रहे डंडे पर दबाती बोली "पूसी, कंट, वजिना...."

समीर को भी लड़की से ऐसे खेल खेलने में मजा आने लगा...वह स्नेहा का सारा मुहं को चाटने लगा। दोनों हाथों से उसके चूची दबाता पुछा... "लंड क्या होती है मालुम.. कभी देखि हो....?"

स्नेहा ने शर्माने का नाटक करते सर झुकाली।

"अच्छा तो देखि हो... किसकी देखि...?"

"मेरे बड़े भैया को..." वह झूट बोलदी।

"कैसे....?" अब समीर का हाथ फिर से स्नेहा के स्कर्ट के निचे घुसी और पैंटी के साइड से उसकी नंगे दरार पर ऊँगली चलाता पुछा...

स्नेहा ने उसकी ऊँगली के लिए अपने जाँघे खोल ते बोली "एक रात भैय्या भाभी को...." वह रुक गयी।

"भाभी को करते देखि हो...?" उसने 'हाँ...' में सर हिलायी।

"क्या कर रहे थे...?" ऊँगली को अंदर डालने की कोशिश करते पुछा।

"स्स्स्सह्ह्ह्हआआ... द... र्द...सससस..." वह दर्द से तिल मिलायी।

समीर को आश्चर्य हुआ की उसकी बुर इतनी तंग होगी की ऊँगली से भी उसे दर्द होने लगा। "दीपा ... तुम.. तुम... कुँअरि हो...?" पुछा।

दर्द से तिल मिलाते उसने 'हाँ' में सर हिलायी समीर को आश्चर्य हुआ की उसकी बुर इतनी तंग होगी की ऊँगलीसे भी उसे दर्द होने लगा। "दीपा ... तुम.. तम... कुँअरि हो...?" पुछा। उसे मालूम है की आज कल लड़कियां जवान होते ही, चौदह, पंद्रह की होते होते ही स्कूल में हि अपने क्लास मेट्स से अपना सील तुडवते है...

स्नेहने धीरे से 'हाँ'' में अपना सर हिलायी। "My God I got a virgin cunt" वह बोला! स्नेहा खामोश रही, कुछ बोली नहीं...

"तो बोलो क्या कर रहे थे तुम्हारे भइया और भाभी?" अपना ऊँगली चलना जारी रखते कहा।

"सर, मैं 19 की हूँ और मैं वैसे काम करि नहिं लेकिन...लेकिन सेक्स के बारे में थोड़ा बहुत जानती हूँ" वह नाज नखरे करते बोली।

"तो बोलना... क्या कर रहे थे...?"

"भैया भाभी के टांगे पसारकर अपना डंडा भाभी की चूतमें घुसा रहेथे..." वहभी अब समीर को ख़ुश करने के लिए बोली।

"अब तक कितने लंड दीखि हो...?" वह बात को घुमाकर पुछा।

"कितने क्या.. एक ही, मेरे भैय्या का... मेरा छोटे भाई का भी देखि हूँ.. लेकिन उसका बहुत छोटा है.. और नरम भी थी... भैय्या की तरह उसका कड़क नहीं थी।

"मेरा देखोगी..." उसे अपने गोद से उठाकर अपने सामने खड़े करते पुछा।

स्नेहा की आँखों में एक चमक आयी लकिन जल्दी ही लुप्त होगयी। उसने शर्म से ना में सर हिलायी।

"क्यों....?"

"मुझे शर्म अति है..."

"अरे... इस शर्म को दूर करने के लिए तो देखना है..." कहते उसने झट अपना लुंगी खींच डाला।

सहज ही (Automatically) स्नेहा के नजरें उसके जाँघों के बीच गयी। समीर का फन फनाते लंड को देखते ही उसकी सांसे एक क्षण के लिए रुक गए। उतना लम्बा था उसका.... 'यह तो लग भाग गंगाराम अंकल के जैसे ही है...' वह दिल में सोच रही थी।

समीर ने उसे अपने लंड को देखते पाया और पुछा "पसंद आया...?"

"यह तो बहुत बड़ा है..." वह सीने पर अपना हाथ रखती बोली।

"तुम्हे कैसा मालूम की यह बड़ा है.. किसी का देखि हो...?" अपने औजार को मुट्ठी में दबाते पुछा।

"अभीतो कहीं हूँ.. मैं मेरे भैया का देखि हूँ..."

"इसे चूसोगी...?"

"मुझे नहीं मालूम, मैंने ऐसे कभी नहीं किया..."

"मैं सिखादूँगा..." स्नेहा ऎसे नखरे करि की वह असमंजस में है.. सर हिलादी।

"आओ... मेरे घुटनों के बीच बैठो..."उसने अपने घुटने चौड़ा करते बोला।

स्नेहा अपने घुटनों पर बैठने जा रहिथी तो बोला "ठहरो..." नेहा रुककर उसे दखने लगी। समीर ने उसे समीप खींचा और एक झटके में उसका स्कर्ट और टॉप निकल फेंका।स्नेहा अब उस चुड़क्कड़ के सामने सिर्फ पैंटी और ब्रा में रह गयी। समीर ने लालसा भरे नजरों से स्नेहा की पतले जांघो को देखता उसे घुटनों पर बिठाया और अपना उसके मुट्ठी में थमा दिया।

स्नेहा महसूस करि की समीर का उसके मुट्ठी में फुल है और गर्म भी है। "इसे मुहंमें लेलो और चूमो, चाटो"

स्नेहा ने पहले उसके सुपाडे को चूमि और फिर झिझकने का नाटक कर उसे जीभसे टच करि।

"uuzzzzsssss...." समीर के मुहंसे एक मीठी सिसकारी निकली। "शाबाश.. वैसे हि करो.. जो तुम्हारे दिल में आया वो करो..." कहा और उसके ब्रा के हुक खोल् कर उस नन्ही, नंगी चूची पर हाथ फेरा।

"ममममममअअअअ..." स्नेहा बोली।

"क्या हुआ....?"

"अच्छा लग रहा है..."कही और अबकी बार जीभ को समीर के सारे लम्बाई पर चलाने लगी।

फिर उसने समीर के डंडे को मुहं में ली और चूसने लगी। समीर निचे से उसके मुहं में दकके देने लगा। हर दकके के साथ उसका मुस्सल थोड़ा थोड़ा स्नेह की मुहं में जा रही है। चूसते, चूसते स्नेहा ने उसके अंडकोषों को भी सहलाने लगी।

कहानी जारी रहेगी
 

aamirhydkhan

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UPDATE 20

स्नेहा समीर खान के यहाँ गंगाराम की फाइल ।


"शाबाश.. बहुत अच्छे जल्दी ही सिख गयी... करो.. वैसे ही करो.. और अंदर लेलो.. मैं क्या कर रहा हूँ मलूम...?" समीर उसके मुहं में अपना मुस्सल पेलते पुछा...

"क्या कर रहे है...?" मासूमियत से पूछी। उसकी मासूमियत पर समीर फ़िदा होगया और बोला "मैं मुहं को चोद रला हूँ..."

"छी... मुहं भी कहीं चोदने के लिए है क्या...?" वह आंखे मिचकाते पूछी।

"तुम कितनी भोली हो दीपा.... चूत के साथ साथ मुहं को और गांड को भी चोदाजाता है..."

"हाय राम.. यह क्या....? गांड तो हगने की जगह है.. क्या उसे भी..."

"हाँ उसे भी... तुम गांड मरवावोगी...?" ऐसे बातों में दोनों ही बहुत उत्तेजित होने लजे। अब दोनों ही चरम सीमा पर पहुंचे। "चूसो...और चूसो... वेरु गुड... तुम तो बहुत अच्छी चूसती हो...हहहहहहह.. मेरा हो गया.. बस होगया..." कहते उसने स्नेहा की मुहं में उंडेलने लगा...

एक दम से हुई इस आक्रमण से स्नेहा confuse हो गयी... गरम गरम गाढ़ा वीर्य से उसका मुहं भरने लगा... उसका मॉल इतना जयदा था की स्नेहा पूरा निगल न सकी.. ज्यादा सा भाग मुहं से बाहर उसके लबों पर वहां से उसकी बदन पर बहने लगी।

"यह क्या सर अपने मेरे मुहं में ही....." बोलते बोलते उसने अपने शरीर परसे उस वीर्य को ऊँगली से पोंछने लगी।

"कैसा है...? टेस्टी है ना?"

"नमकीन है और थोडासा कसैला पैन भी..." जीभ से होंठों को चाटते बोली।

चलो बहुत देर हो गयी है.. अब मुझे चोदने दो..."

"ओह नो.. सर..."

"क्यों क्या हुआ...?" जब चोदुँगा तो और अच्छा लगेगा..." इसके निप्पल को उँगलियों में लेकर मसलता बोला।

"नहीं...." वह गभराने का नाटक करते बोली। लेकिन एक ओर उसके बुर में खुजली हो रहीथी और वह चुदाने को बेसब्री से इंतजार कर यही थी।

"क्यों....?"

"आपका बहुत लम्बा और मोटा है.. मेरी फट जाएगी.."

"धत पगली... ऐसा कुछ नहीं होता..."

"नहीं... मुझे ढर लग रहा है..."

"इधर आओ कमरे में चलते हैं..." समीर कहा और उसे गुड़िया कि तरह उठाकर कमरे में चला। उसे पलंग पर चित लिटाकर उसका पांटी भी निकाल दिया। उसकी चिकनी चूत फूली फूली थी। स्नेहा अब उसके सामने मादरजात नंगी पड़ी थी। इतनी देर से उस से खेलने की वजह से अब समीर भी अपने आपको रोक नहीं पा रहा है।

वह अपना लवड़ा मुट्ठीमें पकड़कर उसे नेहाकी बुरकी फांकों पर रगड़ा। स्नेह कि सारी शरीर में चींटी रेंगे जैसे अनुभव हो रहे थे। "mmmaaaammma' उसका बदन में एक हल्का से कम्पन हुआ। "सर... मुझे ढर लग रहा है... आपका बहुत बड़ा है... मैंने ऐसे कभी नहीं किया..." वह अपनी खूब चुदी चूत को हथली के निचे छुपाते बोली।

"अच्छा एक काम करते है.. इसे चुदने की काबिल बनाते है..."

"कैसे....?"

समीर ने उसके जांघों में अपना सर दिया और उसके फांकों को अपने होंठों में लेकर चूसने लगा..."

"ससससस.....ह्ह्हआआ...सर...." स्नेहा तिल मिलायी और उसके सिर को अपने बुर पर दबायी।

"अच्छा लग रहा है...?" चाटते पुछा...

स्नेहा ने कोई जवाब नहीं दिया लेकिन अपने कमर उछाली। समीर अपना काम जारी रखा... अपना खुरदरी जीभको उसने स्नेहा की फांकों के बिच चलाते अंदर तक अपना जीभ घुसेड़ा...जब तक स्नेहा कि बुर पानि छोड़ने लगी।

"हाँ..सर..हाँ.. ऐसे ही... ओफ्फो यह क्या कर रहे है.. मुझे कुछ हो रहा है.. और अंदर डालिये अपना जीभ को..ववाह.. कितना अच्छा है.. चूसो.. सर..चूसो... अम्म्मा" वह उसके चूसन से, बिना पानीके मछलीकी तरह तड़पने लगी।

उसे चूसते चूसते ही समीर ने उसके नितम्बों के बिच उंगलि करने लगा...

"ओह सर यह क्या कर रहे है....आप..." वह अपने गांड की मांसपेशियों को टाइट करती पूछी।

"क्यों अच्छ नहीं लगा...?"

"बहुत अच्छ अहइ ee..ee..eeeee....."

"जस्ट रिलैक्स..और मस्ती करो.." कहते वह उसके बुरको चाटने लगा। पूरा दस मिनिट तक वह उसे चूमता चाटता और चूसता रहा.. कभी कभी उसके भगनासे (clit) को भी दांतों से काटने लगा...

स्नेहा तो अब स्वर्गमें थी..सर..सर... अहःअहः... कहती वह झड़ चुकी थी। उसके अंदरसे बहने वाली उस नमकीन रस को छाव के साथ चख रहाथा समीर...

स्नेहा उसके मुहं के ऊपर अपने बुर उछालते बोली... सर.. सर.. प्लीज.. कुछ करिये... यह क्या खूजली है.. सर बहुत खुजली हो रही अंदर..." यह बोली।

"दीपा उस खुजलीको मिठाने का एक ही तरीखा है...?"

"क्या है.. जल्दी करिये..." वह अपनी कूल्हे उछालती बोली।

"तुम्हे चोदना ही उस खुजली की दवा है..."

"तो चोदिये न...."

"तुम तो ढर रही हो...."

"नहीं...चाहे कुछ होजये...मेरी फटती है तो फटने दो...पहले चोदो; यह खुजली मेरे से बर्दास्त नहिं होती..." कही और समीरके सर को पकड़ कर अपने उपर खींची।

समीर अपना मुश्तण्ड लेके स्नेहा की जांघों में आया.. और अपना डंडे का सूपाड़ा... स्नेहा की उभरे फांकों पर रगड़ा..."

"आअह्हह्हह्ह..... सससस.. मामममम.. चोदो चोदो कहते कमर उछालने लगी। समीरने मौका देख कर अपने लंड को अंदर धकेला..."

"faaaaakkkkkk..." के अवाज के साथ उसका लाल टोपा उसके फांकों के बिच फंस गयी।

"सस्ससम्मम्मा" स्नेहा तिल मिलाने का नखरे करि। सचमें भी उसका बुर कुछ तंग होगयी है.. वह यहाँ आनेसे एक दिन पहले एक आयुर्वेदिक लेडी डॉक्टरके पास गयी और बोली... "डॉक्टर...मेरा मंगेतर (fiance); मेरा लूज है कहकर मझसे शादी करनेसे इंकार कर रहा है...प्लीज...मेरी शादी बचाइए कोई अच्छा मेडिसिन दीजिये की वह थोडासा टाइट होजाये,," कही... डॉक्टर ने उसे एक ऑइंटमेंट की tube दी और बोली... सम्भोग से एक घंटा पहले इसे अंदर बाहर लेपन करना...

अब स्नेहा उसि लेपनको लेप कर आयी है..और उसका चूत कुंवारी चूत की तरह तंग हो चुकी है।

जब स्नेहा की मोटे फांकों के बीच अपना सुपाड़ा फंसी तो समीर को भी जन्नत दिखने लगी। 'वाह क्या टाइट चूत है इतना टाइट चूत तो मैं पहले कभी नहीं चोदा' सोचते उसने अपना कमर ऊपर खींचा और एक जोर का शॉट दिया। 8 इंच लम्बा लवड़ा आधे से ज्यादा स्नेहा कि तंग बुर में चली गयी।

"आमममममायआ.... mareeeee...re... हाय ,,, हाय। . meree phateeee आहा निकालो.. नहीं... नहीं .. मुझे नहीं चुदाना....जालिम कहिं के.. छोड़ो.. मुझे..." स्नेहा दर्द से तड पडाती बोल ही रही थी की समीर ने एक और जोर का शॉट दिया।

उस शॉट से समीर का पूरा का पूरा स्नेहा के चूत में जड़ तक चली गयी।

"aaaaaaaahhhhhh ..... बास्टर्ड... छोड़ो मुझे.. मार डालोगे क्या... आअह्हह ..."दर्द के मारे चिल्लाती समीर को अपने ऊपर से धकेलने की कोशिश करने लगी। लेकिन समीर के बलिष्ट शरीर के सामने उसका एक भी नहीं चली।

समीर ने अब अपना मूवमेंट रोका एक हाथ स्नेहा की मुहं पर रखा.. और एक चूची को पूरा अपने मुहं में लेकर चूसते दूसरे की निप्पल को मसल रहा था। स्नेहा उसके निचे छटपटाते उधर इधर हिल रही थी। उसकी ऐसे हिलने से उसका लंड और अंदर समागयी।

दोनों शांत पड़े राहे। कोई तीन चार मिनिट बाद जब दोनों की सांसे कुछ थमी तो समीर ने सर उठाकर उसे देखा। तभी स्नेहा ने भी उसे देखि। उसके आंखे आंसू से भरे थे। समीर उस आँसू भरे आँखों को चूमते आंसू चाट गया। फिर उसेके पतले होंठ अपने में लेकर चूसने लगा... उसका छाती मसलना जारी रहा। स्नेहा शांत पड़ी रही।

पांच छह मिनिट के ऐसे हरकतों के बाद स्नेहा में थोडा सा चलन आया। उसे महसूस हुआ की उसके चूत के अंदर चिकना पानी छूट रहा है.. और वह पानी एक दवा की तरह काम करते उसे राहत देने लगी। यह अहसास समीर को भी हुआ।

कहानी जारी रहेगी
 
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aamirhydkhan

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UPDATE 21


स्नेहा समीर खान के यहाँ से गंगाराम की फाइल ले आती है।

"सर आप ने तो जान से ही मार डाला मुझे..." वह समीर से बोली...

"मैंने तो तुम चोदो चाहे कुछ होजाये कहने का बाद ही अंदर डाला है..." समीर उसके गाल को चूमते बोला।

स्नेह कुछ बोली नहीं.. उसे मालूम है वह बहुत उत्तेजित हुई थी.. अब वह फिर बुरमें खुजलि महसूस करने लगी। अनजाने में ही उसके कमर ऊपर उठी।

समीर को पता है वह कमर उठा रहि है.. लेकिन.. उसने कोई मूवमेंट नहीं दिया ऊपर से वह स्नेहा के गर्दन को, कंधे से थोड़ा ऊपर चूमते हल्का सा दांतों से काट भी रहा था।

"स्स्सस्स्स्स....." स्नेहा एक सिसकारी ली।

समीर का एक्शन जारी रहा... अबकी बार उसके हाथ नितम्बों के निचे चलेगये और नितम्बों को सहलाने लगे। अब स्नेह मे खुजली और बढ़ी। पर्टिक्यूलरली जब वह उसके गर्दन चूमते दांतों से हल्का हल्का काट रहाथा तो उसे लगा की उसकी खुजली बढ़ी। उसने फिर कमर उछाली। और बोली "सर करिये न..."

"क्या करूँ?" उसके गलो को पिंच करते पूछा।

उसकी इस बात से स्नेहा एक नयी नवेली दुल्हन की तरह शरमाई...उसके गाल लाल होगये।

"प्लीज। ..सर... चोदिये ..." अपनी कमर उछलते बोली।

"तुम तो रो रही थी...ना...ना कह रहीथी..." समीर हँसते उसे देख कर कहा। वह उसे चेढ़ रहा था।

"दर्द भी तो ऐसा था... बापरे..कितना पेन (pain) हुआ है... सॉरी सर उस दर्द में मैं आपको क्या क्या बोली..."

"डोंट वोर्री... इस खेल में यह सब आम बात है... तो शुरू करूँ?"

"हाँ सर करिये..." और उसने अपने कुलहे उठायी।

समीर जब अपना पिछे खींच रहा था तो "सससससस..." कही।

"दर्द हो रहा है...?" वह रुका और पोछा।

"थोड़सा...."

"बर्दास्त करो..." कहते उसने अपना डंडा कुछ बहार खींच अंदर धकेल। फिर कुछ देर में ही दोनों जोश में आगये। समीर दाना दन चोदने लगा और स्नेहा भी जोश में कमर उछलने लगी।

"वह..दीपा.. क्या तंग चूत है तुम्हारी... बहुत दिनों बाद ऐसा मजा मिला... सच.."

"चोदिये सर... आआह.. सच मुझे भी आनंद आ रहा है.. डालिये... और अंदर... आआह्ह्ह्ह.... माय गॉड.... क्या ठोकर मार रहे है आप...फ्फु.." अपनी छोटीसी गाँड उठाते बड बडाने लगी।

उसके बाद कम से कम 15 मिनिट तक दोनों के बीच में एक महा युद्ध जैसा चुदाई चली। फिर दोनों झड़े! समीर अपना गरम लावा छोड़ने वाला था तो स्नेहा बोली..."सर अंदर नहीं... आपको मालूम है.. मैं कुंवारी हूँ... प्लीज..."

ठीक है..यह लो.. तुम्हरे पेट पर मेरा गिरा रहा हूँ..." कहा और अपना लंड खींच कर स्नेह के पेट पर गिरादीय।

कोई दस मिनिट बाद दोनों उठे और फ्रेश हुए।

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स्नेहा यह लो तुम्हरा मामाका फाइल कहते उसने स्नेह के सामने ही फाइल दस्तखत करके उसे लौटाया।

"थैंक्यू सर..." स्नेहा बोली।

"थैंक्यू तो मुझे बोलना चाहिए... इतना उम्दा चुदाई के लिए... थैंक यू; फिर मिलोगी...?"

"जरूर सर.. आप अपना मोबाइल नंबर दीजिये..."

मोबाइल नंबर दिया और स्नेहा का पुछा। वह भी अपन नंबर दी लेकिन दो नंबर बदल कर बोली।

"सर एक बात बोलूं..."

"हाँ कहो..."

"आपकी पत्नी बहुत सुन्दर है सर.. हल में फोटो देखि थी... बच्चा भी सुन्दर है..."

थैंक्यू..." वह कहा और स्नेह के गलों को चूमा।

स्नेहा फाइल लेकर अपने होंठों पर एक मुस्कान लेकर अपने गंगाराम अंकल को खुश करने चली।

दोस्तों यह था कैसे स्नेहा ने गंगाराम की काम को अंजाम दिलाई

कहानी जारी रहेगी
 

karan77

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UPDATE 01

एक पचपन वर्ष के आदमी के साथ इक्कीस वर्ष की युवती की योन क्रीड़ा।

गंगाराम एक 55 साल का हट्टा कट्टा आदमी है। उसका कद कोई 5'7" लम्बाई होगी। दिखने में आकर्षक दिखता है और अच्छे सलीके से रहता है। उसके दांत में दो दिन से दर्द हो रहा था और आज वह डेंटिस्ट से मिलने आया है। उसने अंदर कदम रखा और एक 20 - 21 साल की उम्र की एक लड़की को एक छोटीसी टेबल पीछे बैठा पाया। लड़की उसे देख कर उठी और उससे काम पूछी, गंगाराम अपनी दर्द के बारे में बताया।

"डॉक्टर साब तो अभी आए नहीं 15 मिनिट में आजाएंगे आप बैठिये" उसने वहां पड़े कुछ कुर्सियों की ओर दिखाती बोली। गंगाराम उसके सामने की एक कुर्सी पर बैठ गया।

लड़की ने उसे परखा की वह वह एक सिल्क की जुब्बा पहने था और जीन्स में था। उसके दायां हाथ में एक सोने की ब्रेसलेट और बाया कलाई के दो उँगलियों में सोने की वजनी अंगूठियां है। उसके खुले गले से गले में का सोने की चैन भी दिख रहीथी। बहुत अमीर होगा लड़की सोची और उसके नाम और उम्र पूछ रजिस्टर में लिखी। और उसके लिये एक मेडिकल कार्ड बनायीं।

गंगाराम भी उस लड़की को परखा, उसकी उम्र कोई 20 -22 की होगा गंगाराम सोचा। लड़की दुबली पतली और, सावंली है। नयन नक्श अच्छे है। वह सलवार और कमीज पहनी थी और उसके उपर सलेटी रंग की कोट पहनी। शायद डाक्टर ने दिया हो। लड़की अपना काम करती इधर उधर घूम फिर रही थी तो गंगाराम ने देखा की उसके नितम्ब छोटे छोटे है लेकिन मांसल है। उसके नितम्ब लुभावनी अंदाज़ मे आगे पीछे हो रहे थे। उसके चूचियां भी छोटे छोटे है। बस एक हाथ में पूरे आ जाएंगे।

बैठे बैठे बोर होता गंगारम ने पुछा "नाम क्या है बेटी तुम्हारा?" रजिस्टर में कुछ लिखते लड़की ने सर उठाया और उसे देख कर बोली "जी... स्नेहा"। कुछ देर खामोशी रही और फिर पुछा "क्षमा करना बेटी बोर हो रहा हूँ इसीलिए पूछ रहा हूँ.. यहाँ कब से काम कर रही हो?"

"परवाह नहीं अंकल; तीन साल से कर रही हूँ" लड़की हँसते बोली। उसकी हसी बहुत मोहक है' सोचा गंगाराम। और गंगाराम के पैंट के अंदर सुर सूरी होने लगी।

"क्या सालरी मिलती है?" गंगाराम ने फिर पुछा।

वह एक क्षण हीच किचाई और बोली "जी, बारह हज़ार रूपये"।

"कितने बजे तक काम करती हो?" गंगाराम अपना बोरियत दूर करने की नियत से पूछा।

"सुबह ग्यारह बजे से दोपहर दो तक और शाम छह से दस तक..." लड़की ने उत्तर दिया।

"कहाँ तक पड़ी हो..?"

"इंटर पास हूँ..." लड़की को भी टाइम पास होता रहा था तो जवाब देने लगी।

यहाँ थोडा सा गंगाराम के बारे में जानते है। जैसे की ऊपर दिया गया है वह 55 का आदमी है। और एक रियल एस्टेट बिज़नेस करता है। वह पहले एक सरकारी कारखाने में काम करता था। और साइड में एक रियल एस्टेट बिज़नेस के सामान्य सा एजेंट बन गया। वह एजेंसी ऐसी थी की उस समय वह plots सेल करती थी वह भी किश्तियों (instalments) में। Plot का सेल फाइनल होते ही वह एजेंट को कमीशन देतीथी, साथ ही साथ हर बीस प्लाट बेचने पर एक प्लाट फ्री में देती थी।

गंगाराम क्यों की फैक्ट्री में काम करता था और plot किश्तियों में मिल रहा है ज्यादा तर वहां काम करने वाले खरीद लेते थे। गंगाराम को अच्छा कमाई होती थी और plots मुफ्त में मिल जाते थे। उसका कमाई इतनी थी की वह नौकरी छोड़ कर इसे ही अपना धंधा बना लिया। इस धंधे में उसने अच्छी कमाई की और अपने दोनों बेटों को अच्छा पढ़ाया और अब वह दोनो; एक अमरीका में है तो दूसरा ऑस्ट्रेलियामें है। दोनों की शादी हो गयी और घर भी बस गए। गंगाराम स्वयं विदुर है। उसकी पत्नी पांच साल पहले गुजर चुकी है।

हाथ में ढेर सारा पैसा जिस से वह मनमौजी बन गया। बढ़िया खाना बढ़िया पीने के साथ साथ उसे बढ़िया औरतों का भी शौक लग गयी। सुन्दर और जवान औरतों को देख कर उसके लार टपकते थे।

अब डेंटिस्ट के पास इस लड़की स्नेहा को देख कर भी उसके यही हाल हुआ। वह कुछ और बात बढ़ाने की सोचा इतने में डॉक्टर आगया तो लड़की सजग हो गयी। फिर गंगाराम को अंदर भेजी। डॉक्टर ने उसका मुआइना किया और उसे कहा की उसके दांत में सुराख़ पड़गई और अंदर कीड़े भी हो सकते है। डॉक्टर ने उसे कुछ दवई लिखी और चार दिन तक हर रोज आने को कहा। और उस सुराख़ को भरने की बात कही।

दुसरे दिन गंगाराम 10 बजे चला गया। स्नेहा उसे देखकर विश करि और बैठने को बोली। "आप जल्दी आगये अंकल डॉक्टर तो 11 या 11.15 बजे आते है।" स्नेहा बोली।

"हाँ मालूम है, आखिर घर में भी बैठना ही है, सोचा यही बैठ लेते है" फिर दोनों के बीच चुप्पी रही। "आप क्या काम करते है अंकल?" स्नेहा ने उसके उँगलियों में अंगूठियां देखती पूछी।

"कुछ नहीं, बस मौज मस्ती करता हूँ..."

"मतलब।...?"

"रियल एस्टेट में बहुत कमाया, सारा पैसा FD में लगाया है, हर तीन महीने में उसका ब्याज आती है और एक अपर्टमेंट है जिस से किराया आ जाता है, बस इसी से काम चलता है" वह बोला।

लड़की में उत्सुकता जागी पूछी "वैसे महीने में कितना income है अंकल?"

"हर महीना एक लाख किराया आता है, और हर तीन महीने में एक बार उतना ही पैसा ब्याज आता है।"

स्नेहा आश्चर्य चकित रह जाती है, फिर अपने आप को संभालती है और पूछती है "आपके पत्नी, बच्चे..."

"दो लड़के है, एक अमेरिका में है तो दूसरा ऑस्ट्रेलिया में है। दोनों की शादी हो गयी है और पत्नी पांच साल पहले कैंसर से भगवान को प्यारी होगयी है" उदास स्वर में बोला। सब मुझे ही पूछोगी, अपना भी तो कुछ बताओ" वह लड़की देखते पुछा।

"हमारा क्या है अंकल, एक निम्न मध्य वर्गीय (lower middle class) फॅमिली है। घर में मैं सबसे बड़ी हूँ और मेरे बाद एक बहेन है 18 साल इंटर में है और एक भाई 14 साल आठवीं में पढ़ रहा है। माँ और पिताजी।"

"तुम्हारे पीताजी कया करते है?" पुछा।

लड़की ने जवाब नहीं दिया, खामोश रह गयी। गंगाराम ने जवाब के लिए जोर नहीं दिया।

इतने में डॉक्टर साहिबा आगयी और बात वही रुक गयी। डॉक्टर ने उसके इलाज किया और दवा लिख कर चार दिन और आने को कही। इन चार दिनों में गंगारामने स्नेहा और घनिस्टता बढगई। लड़की स्नेहा ने भी उसमे रूचि लेने लगी। इस बीच गंगाराम ने मालूम किया की लड़की का बाप बेवड़ा है, नौकरि चले गयी, अब कुछ करता नहीं है। घर का खर्च तो लडकी की कमाई और घर में माँ कुछ सिलाई करके कमाती है, उसी से चलता है।

कहानी जारी रहेगी
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aamirhydkhan

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UPDATE 22

गंगाराम की बर्थडे पर चुदती स्नेहा को उसकी माँ और सहेली सरोज.

गंगाराम अपने सामने बौठे तीन तीन जवान लड़कियों को और एक 40 वर्ष की औरत को देखकर अपने आप मे फूले नहीं समा रहा था। उसके सामने स्नेहा जिसकी उम्र 21 वर्ष है बैठी थी। उसके दायें ओर उसकी बहन पूजा, जिसकी उम्र 18 वर्ष है बैठी थी तो स्नेहा के बायें ओर उसकी सहेली सरोज जिसकी उम्र कोई 22 वर्ष की है और शादी शुदा है बैठी है। आखिर में स्नेहा की माँ गौरी जिसकी उम्र 41 वर्ष बैठी है।

इधर की ओर, गंगाराम कि एक ओर सरोज का पति अशोक बैठा है तो दूसरी ओर स्नेहा का छोटा भाई गोपी जो 15 वर्ष का है बैठा। आखिर में स्नेहा का पिता लिंगम बैठा है। वह सब उस समय एक रिसोर्ट की रेस्टॉरेंट में बैठे है और आर्डर आने का वेट कर रहे है। उस दिन गंगाराम का जन्म दिन था और वह उन सबको आमंत्रित कर रिसोर्ट ले आया।

पहले तो स्नेहा की माँ ने कही थी की स्नेहा अपने पिता को वहां न लेआए, क्यों कि उस पीवट; गंगाराम का मुलाकात का दुरुपयोग न करें। गौरी की अनुमान है कि उसका पति बार बार गंगारम से पैसे ऐंठने न जाये । वैसे हि सरोज भी अपने पति को साथ लेने में कतरा रहि थी कि वह शककी मिजाज का है।

यही बात जब स्नेहा ने गंगाराम से कहि तो वह उसे समझाया की वह सबको संभाल लेगा तो सरोज का पति और स्नेहा के पिता भी उस समय वहां है।

खाना परोसा गया और सब खाने लगे। गंगाराम खाना खा रहा था लेकिन उसके नजरें बार बार उस गधरायी हुई औरत; स्नेहा की माँ की ओर जा रहे थे। 'वाह क्या मस्त फिगर है... साली को देखकर ही लंड तन रही है देखो तो उसके उभरे स्तन को... कितना घाटीली है.. वह इतने आराम से दबने वाली नहीं है। इन चूचियों को तो आटे की तरह गूंदना होगा... कैसी रहेगी वह उसके निचे...' गंगाराम सोच रहा था। वैसे वह स्नेहा कि सहेली सरोज और स्नेहा कि बहन पूजा को भी अपने आगोश में imagine करते उभर रहे अपने मस्ताने को शांत कर रहा था।

कुछ देर बाद वह सब अपने कॉटेज में थे। कॉटेज के कुछ दूरी पर स्विंमिंग पूल थी।

पानी देखते ही स्नेहा का भाई स्विमिंग की इच्छा व्यक्त किया।

"चुप कर गोपी तुझे स्विम्मिंग ही नहीं आती पानीमे क्या उतरेगा..." स्नेहा अपने भाई को डाँटि।

"अरे उसे क्यों डांट रहे हो; बच्चा है स्विमिंग करने दो न उसे..." गंगाराम समझाया।

"लेकिन अंकल उसे तैरना नहीं आता,,,"

कोई बात नहीं.. वहां लाइफ जैकेट रहती है फिर मैं हूँ न.. मैं सिखादूँगा...बोलो और कौन कौन स्विमिंग करना चाहते है...?"

"में भी स्विमिंग करना चाहती हूँ... लेकिन मुझे भी स्विम करना नहीं आता" स्नेहा की बहन पूजा बोली।

"अगर तुम्हे आपत्ति नहीं तो मैं सिखा दूंगा..." गंगाराम पूजा की जवानी को ताड़ता बोला ..."

पूजा अपनी मम्मी की ओर देखि। उसने आंखोंसे इशारा करी जाने के लिए।

"आप स्विम नहीं करेंगी...? गंगाराम स्नेहा की माँ गौरी की ओर देखता पुछा..."

"नहीं..." वैसे उसके मन कर रहा है तैरने के लिए।

"क्यों... आप को तो तैरना अति है ना...?"

"आति है लेकिन..." वह रुक गयी। इतने में सब बच्चे 'चलोना मम्मी..प्लीज' करने लगे। स्नेहा कि सहेली सरोज भी चलोना आंटी कही तो गौरी भी तैयार होगयी। सब खिल खिलाते स्विमिंग पूल की ओर चले।

मर्दों के के लिए कोई प्रॉब्लम नहि था लेकिन औरतों के लिए स्विम सूट जरूरत थी। जो उनमें किसिके पास भी नहीं थी। सब निराश हो गये। स्विमिंग पूल के पास रहने वाल एक बच्चा बोला "साब यहाँ स्विम सूट किराये पे मिलते है..."

सब ख़ुशी ख़ुशी वहां जाते हैऔर अपने साइज के स्विंम सूट लेलेते हैं।

स्नेहा, पूजा, और सरोज के लिए उनके साइज के स्विम सूट मिलगये लेकिन गौरी के लिए नहीं मिलि तो वह एक नंबर चोटि साइज की लेली। सब अपने अपने स्विम सूट पहने सबका ठीक था लेकिन गौरी का ही कुछ तंग होगया। जिस के कारण उसका भरा हुआ शरीर का हर अंग, हर कटाव दिख रहे थे। सब खिल खिलाते पानी में खुद पड़े। स्नेहा का भाई गोपी, उसके बहन पूजा ही बाहर रह गए।

"गोपी, तुम इधर मेरे पास आवो" गंगाराम बुलाया।

गोपी आते ही उसे पानी में उतारा और अपनी हथेलियों पर औंधा सुलाकर हाथ पैर चलाने को बोला। गोपी वैसे ही करने लग और अगले पंद्रह मिनिटों मे वह स्वयं ही हाथ पैर चलाने लगा। उसकी शरीर पर लाइफ जैकेट भी थी तो उसे कोई प्रॉब्लम नहीं हुआ। बाकी के दूसरे लोग भी खिल खिलाते, हँसते, एक दूसरे के ऊपर पानी छिड़कते मस्ति से तैरने लगे। गौरी पहले कुछ मिनिट तो पानी से बाहर निकलने को जिझकने लगी, लेकिन जल्दी ही उस माहौल में घुल मिल गयी। जब भी वह पानी से अती थि तो अपने जांघों के बीच अपना हथेली रख लेती थी। लेकिन जल्द ही वह ऐसा करना बंद करदी।

उसके स्विम सूट तंग होने का कारण उसकी जांघों के बीच उभार और दो उभरी फांके स्विम सूट के ऊपर से भी साफ दिखने लगे। उन फांकों को और गौरी की मटकते मोटी गांड को देख गंगाराम को अपने आप को संभलना मुश्किल हो रहा है, उसके बॉक्सर के अंदर उसका मर्दानगी फूल चुकी और उसक उभार दिखने लगा। गंगाराम के साथ ही सरोज का पति अशोक भी गौरी को भूखी नाजरों से देख कर अपने लंड को तन्नाए रखा। गौरी, बच्चो की तरह हँसते बच्चो के साथ खेल रही थी।

पूजा जो बहार ही थी उसे गंगाराम ने बुलाया। वह पानी में उतरने के लिए भी ढर रही थी।

"ढ़रो नहीं, इधर आओ, लाइफ जैकेट पहनो कह गंगाराम ने उसे लाइफ जैकेट पहनाया... पहनाते समय उसने पूजा के बदन को छूकर आनंद उठा रहा था। पूजा को पानी में उतारकर उसे भी अपने हथेलियों पर सुलाकर उसे तैरना सीखा रहा था। कुछ देर उसे दोनों हाथों पर औंधा लिटाकर सिखाने के बाद वह एक हाथ निकाल दिया और उस हाथ को पूजा को सँभालने के बहाने उसके नितम्बों को सहलाने लगा।

अपने नितम्बों पर अंकल के हाथ के टच से पूजा को कुछ गुद गुदी सा हुआ। यह पहली बार है कि किसी और का हाथ उसके नितंबों पर। एक हि बिस्तर पर सोने के बाद भी; आज तक उसकी बहन के हाथ भी उसके पुट्ठों पर नहीं पड़े। अब तो सीधा एक मर्द ही उसे टच कर रहा है... तो उसे गुद गुदी होना स्वभाविक ही था। पूजा को कुछ अनोखा आनंद भी आ अहा है। इतने में गंगाराम ने अपना हाथ पर पूजा को संभालते; दूसरे हाथ से उसके पीठ पर चला रहा था। पूजाके नाजुक बदन की स्पर्श से गंगाराम का लावड़ा अपने पूरे ताव में आगया।

लाइफ जैकेट पहने पूजा को अपने भाई के साथ प्रैक्टिस करने को कहकर वह स्नेहा के पास पहुंचा, जिधर, सरोज, स्नेहा, गौरी और सरोज पति एक दूसरे को पकड़ने का खेल खेकराहे है। गंगाराम भी उन लोगों में शामिल होगया। खेल खेलमें गंगाराम ने स्नेहा को अपना तन्नाया औजार पकड़ा दिया। स्नेहा भी मस्ती में थी तो उसने झट उस चढ़ को पकड कर सहलाने लगी। यह सब पानीके अंदर हो रहा था। किसी को अनुमान नहीं था। दुसरी ओर अशोक भी अपने पत्नी के पास पहंचा और गौरी से बात करते हुए सरोज को इधर उधर टच काने लगा। ऐसे ही मस्ती करते वह लोग शाम चार बजे तक पूलमे रहे। पूजा और गोपी कुछ हद तक तैरना सीख भी लिए। शाम साडे चार बजे सब रिसोर्ट से निकले और गंगाराम के घर पहुंचे। जब तक वह सब गंगाराम के घर पहुंचे साढ़े पांच बज गए।

और जन्म दिन के पार्टी के तैयारियां शुरू हुए।
 
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