हेल्लो दोस्तों ये कहानी मैंने प्रतिलिपी पर पढ़ा था जो की शशि कुशवाहा जी ने लिखा है । मैं इसको सिर्फ यहाँ शेयर कर रहा हूं। यह कहानी 2 सीरीज में है एक अदिति के प्रेम कथा जो की एक वैम्पायर है और दूसरा उसके बेटे की कहानी है आज मैं पहले पार्ट देता हूं।
Part 1 Update 1- Aditi - ek anokhi prem kahani
ललित तेज तेज कदमो से लगभग दौड़ता हुआ सा चला जा रहा था । आज घर लौटने में रात के 11 बज गये थे।ललित एक प्राइवेट कंपनी में काम करता था । वो रोज 9 बजे तक घर वापस आ ही जाता था लेकिन आज उसे ऑफिस में काम ज्यादा होने के कारण ओवरटाइम करना पड़ा और काम करते करते उसे समय का पता ही नही चला । ललित एक 20 साल का मध्यमवर्गीय परिवार का नवजवान , खूबसूरत , मेहनती और ईमानदार लड़का हैं।परिवार के दायित्वों का निर्वाह करने के लिए उसे पढ़ाई छोड़ प्राइवेट नौकरी करनी पड़ी । उसके घर में एक बूढ़ी माँ , एक छोटी बहन हैं , जो कि गांव में रहते है । वो शहर में रहकर जॉब भी करता है और अपने परिवार का भरण पोषण करता है। वो इतना सुशील और समझदार है कि उस जैसा बेटा पाकर हर माँ को खुद पर गर्व का अनुभव होता है।
ललित का घर ऑफिस से थोड़ी ही दूरी पर है और वह रास्ता वो पैदल ही तय करता है । आज उसे बहुत देर हो गयी थी इसलिए वो तेज तेज कदमो से घर की तरफ बढ़ रहा था । ठंडी के दिन थे , आधी रात होने को है ,दूर दूर तक इंसान तो क्या कोई जानवर तक नही दिखाई दे रहा था और चारो तरफ घनघोर अँधेरा छाया हुआ है।कही कही पर रोड के किनारे लगी लाइट हलकी रौशनी का एहसास दिला रही थी । वैसे तो ललित किसी से भी नही डरता लेकिन आज पता नही क्यों उसे डर सा महसूस हो रहा है । पत्तो की सरसराहट भी अजीब सा भय उत्पन कर रही थी। तभी उसे किसी लड़की के रोने की आवाज सुनते ही उसके पैर जैसे वही ठहर गये हो । वो इधर उधर देखने लगा लेकिन इतने अँधेरे में उसे कुछ भी दिखाई नही दे रहा था । रोने की आवाज कभी तेज हो जाती तो कभी धीमी । किसी को भी परेशानी में छोड़ देना उसके स्वभाव में नही था । उसने अपने फ़ोन का टॉर्च ऑन किया और रोने की आवाज की दिशा में बढ़ने लगा । थोड़ी दूर ही सड़क के किनारे एक पेड़ के नीचे एक लड़की दिखाई दी । उसी के रोने की आवाज सन्नाटे में साफ साफ सुनाई दे रही थी। ललित उसके पास गया और अपने फ़ोन की लाइट से उसे ऊपर से नीचे तक देखा । पुरा शरीर पर चोटों के निशान से भरा हुआ था । शरीर लहूलुहान और कपडे फटे हुए थे। शरीर पर अनगिनत चोटों के घाव के कारण वो दर्द से कराह रही थी और वो उठने की कोशिश कर रही थी लेकिन बार बार गिर जा रही थी उस लड़की की ऐसी हालत ललित से देखी नही जा रही थी ।
"अरे आप कौन है , यहाँ इतनी रात में क्या कर रही।
किसने आपकी ऐसी हालत की है ।" उसे थामते हुए एक ही सांस में कई प्रश्न कर डाले। वो लड़की कुछ भी जवाब नही दे रही थी । " कुछ बोलिये तो , आपको इतनी चोट कैसे लगी। आपका घर कहाँ है । मै आपको घर छोड़ दू ।" फिर भी कोई आवाज नही ।
"कुछ कहिये थी , अच्छा नंबर ही दे दीजिए । मै आपके घर से किसी को बुलवा देता है ।" फिर भी वो शांत रही कोई जवाब नही ।
"कुछ तो बोलिये, ना आप कुछ बता रही है , ना अपने घर का नंबर दे रही है । मै कैसे आपकी सहायता करूँ। " थोड़ा परेशान होते हुए ललित ने कहा।
"मेरा कोई घर नही है ।" थोड़ा कराहते हुए वो उठने की कोशिश करते हुए बोली।
"अरे कही तो रहती होंगी आप। इतनी खराब हालत में आप कहाँ जाएँगी।"
"मेरा इस दुनिया में कोई नही है। "
"अरे ऐसा क्यों कहा रही है आप "
"मैने कहा ना मेरा कोई नही है । आपको परेशान होने की जरुरत नही है ।" थोड़ा नाराजगी जताते हुए वो बोली।
" आप तो गुस्सा होंने लगी । इतना गुस्सा अच्छा नही होता । वैसे भी इतनी रात हो गयी है । आप कितनी घायल अवस्था में है और ऐसे सुनसान रास्ते पर इतनी रात में एक अकेली लड़की का रहना ठीक नही है। इतनी रात में कोई अस्पताल भी नही खुला होगा जहाँ मैं आपको ले जाऊँ ।मेरा घर यहाँ पास में ही है , ऐसा कीजिये आप मेरे घर चलिये । "
"मैं ठीक हूँ , मैनेज कर लूँगी । आपको परेशान होने की जरुरत नही है । " उठकर चलने को हुई लेकिन लड़खड़ा गयी । तुरंत ही हाथों का सहारा ले ललित ने उसे संभल लिया ।
"आप बहुत जिद्दी है ठीक से उठ तो पा नही रही और मैनेज करने की बात कर रही है । चलिये अब चुप चाप मेरे साथ । " सुबह ठीक होते ही चली जायेगा । ललित के अपनेपन से किये बात को टाल नही पायी । वो प्यार भरी नजरों से उसे देखती रही और बिना कुछ बोले उसके बाहों का सहारा लेते हुए वो ललित के घर पहुँच गयी।
Part 1 Update 1- Aditi - ek anokhi prem kahani
ललित तेज तेज कदमो से लगभग दौड़ता हुआ सा चला जा रहा था । आज घर लौटने में रात के 11 बज गये थे।ललित एक प्राइवेट कंपनी में काम करता था । वो रोज 9 बजे तक घर वापस आ ही जाता था लेकिन आज उसे ऑफिस में काम ज्यादा होने के कारण ओवरटाइम करना पड़ा और काम करते करते उसे समय का पता ही नही चला । ललित एक 20 साल का मध्यमवर्गीय परिवार का नवजवान , खूबसूरत , मेहनती और ईमानदार लड़का हैं।परिवार के दायित्वों का निर्वाह करने के लिए उसे पढ़ाई छोड़ प्राइवेट नौकरी करनी पड़ी । उसके घर में एक बूढ़ी माँ , एक छोटी बहन हैं , जो कि गांव में रहते है । वो शहर में रहकर जॉब भी करता है और अपने परिवार का भरण पोषण करता है। वो इतना सुशील और समझदार है कि उस जैसा बेटा पाकर हर माँ को खुद पर गर्व का अनुभव होता है।
ललित का घर ऑफिस से थोड़ी ही दूरी पर है और वह रास्ता वो पैदल ही तय करता है । आज उसे बहुत देर हो गयी थी इसलिए वो तेज तेज कदमो से घर की तरफ बढ़ रहा था । ठंडी के दिन थे , आधी रात होने को है ,दूर दूर तक इंसान तो क्या कोई जानवर तक नही दिखाई दे रहा था और चारो तरफ घनघोर अँधेरा छाया हुआ है।कही कही पर रोड के किनारे लगी लाइट हलकी रौशनी का एहसास दिला रही थी । वैसे तो ललित किसी से भी नही डरता लेकिन आज पता नही क्यों उसे डर सा महसूस हो रहा है । पत्तो की सरसराहट भी अजीब सा भय उत्पन कर रही थी। तभी उसे किसी लड़की के रोने की आवाज सुनते ही उसके पैर जैसे वही ठहर गये हो । वो इधर उधर देखने लगा लेकिन इतने अँधेरे में उसे कुछ भी दिखाई नही दे रहा था । रोने की आवाज कभी तेज हो जाती तो कभी धीमी । किसी को भी परेशानी में छोड़ देना उसके स्वभाव में नही था । उसने अपने फ़ोन का टॉर्च ऑन किया और रोने की आवाज की दिशा में बढ़ने लगा । थोड़ी दूर ही सड़क के किनारे एक पेड़ के नीचे एक लड़की दिखाई दी । उसी के रोने की आवाज सन्नाटे में साफ साफ सुनाई दे रही थी। ललित उसके पास गया और अपने फ़ोन की लाइट से उसे ऊपर से नीचे तक देखा । पुरा शरीर पर चोटों के निशान से भरा हुआ था । शरीर लहूलुहान और कपडे फटे हुए थे। शरीर पर अनगिनत चोटों के घाव के कारण वो दर्द से कराह रही थी और वो उठने की कोशिश कर रही थी लेकिन बार बार गिर जा रही थी उस लड़की की ऐसी हालत ललित से देखी नही जा रही थी ।
"अरे आप कौन है , यहाँ इतनी रात में क्या कर रही।
किसने आपकी ऐसी हालत की है ।" उसे थामते हुए एक ही सांस में कई प्रश्न कर डाले। वो लड़की कुछ भी जवाब नही दे रही थी । " कुछ बोलिये तो , आपको इतनी चोट कैसे लगी। आपका घर कहाँ है । मै आपको घर छोड़ दू ।" फिर भी कोई आवाज नही ।
"कुछ कहिये थी , अच्छा नंबर ही दे दीजिए । मै आपके घर से किसी को बुलवा देता है ।" फिर भी वो शांत रही कोई जवाब नही ।
"कुछ तो बोलिये, ना आप कुछ बता रही है , ना अपने घर का नंबर दे रही है । मै कैसे आपकी सहायता करूँ। " थोड़ा परेशान होते हुए ललित ने कहा।
"मेरा कोई घर नही है ।" थोड़ा कराहते हुए वो उठने की कोशिश करते हुए बोली।
"अरे कही तो रहती होंगी आप। इतनी खराब हालत में आप कहाँ जाएँगी।"
"मेरा इस दुनिया में कोई नही है। "
"अरे ऐसा क्यों कहा रही है आप "
"मैने कहा ना मेरा कोई नही है । आपको परेशान होने की जरुरत नही है ।" थोड़ा नाराजगी जताते हुए वो बोली।
" आप तो गुस्सा होंने लगी । इतना गुस्सा अच्छा नही होता । वैसे भी इतनी रात हो गयी है । आप कितनी घायल अवस्था में है और ऐसे सुनसान रास्ते पर इतनी रात में एक अकेली लड़की का रहना ठीक नही है। इतनी रात में कोई अस्पताल भी नही खुला होगा जहाँ मैं आपको ले जाऊँ ।मेरा घर यहाँ पास में ही है , ऐसा कीजिये आप मेरे घर चलिये । "
"मैं ठीक हूँ , मैनेज कर लूँगी । आपको परेशान होने की जरुरत नही है । " उठकर चलने को हुई लेकिन लड़खड़ा गयी । तुरंत ही हाथों का सहारा ले ललित ने उसे संभल लिया ।
"आप बहुत जिद्दी है ठीक से उठ तो पा नही रही और मैनेज करने की बात कर रही है । चलिये अब चुप चाप मेरे साथ । " सुबह ठीक होते ही चली जायेगा । ललित के अपनेपन से किये बात को टाल नही पायी । वो प्यार भरी नजरों से उसे देखती रही और बिना कुछ बोले उसके बाहों का सहारा लेते हुए वो ललित के घर पहुँच गयी।
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