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Romance ajanabi hamasafar -rishton ka gathabandhan

Mahi Maurya

Dil Se Dil Tak
Prime
23,231
49,460
259
अजनबी हमसफ़र-रिश्तों का गठबंधन

Update - 7


सुरभि…… ओ तो यह बात हैं मुझे तो ऐसा लग रहा है अब तक जो कुछ भी हुआ हैं इसका करण कहीं न कहीं यह गुप्त संपत्ति ही हैं।


राजेंद्र…… मतलब ये की कोई हमारे गुप्त संपत्ति को पाने के लिए साजिश कर रहा हैं। लेकिन गुप्त संपत्ति के वसीयत के बारे में मैं और हमारा वकील दलाल और अब तुम जानती हों इसके अलावा किसी को पता नहीं हैं।


सुरभि….. मेरी शक की सुई घूम फिर कर इन दोनों पर आकर रूक रहीं हैं। मुझे लग रहीं हैं अब तक जो कुछ भी हुआ हैं इसमें कहीं न कहीं रावण और दलाल में से किसी का हाथ हैं या फिर दोनों भी हों सकते हैं।


राजेंद्र….. सुरभि तुम बबली हों गई हों तुम रावण पर शक कर रहीं हों , रावण मेरा सगा भाई हैं वो ऐसा कुछ नहीं करेगा, कुछ करना भी चाहेगा तो भी नहीं कर पायेगा क्योंकि उसे वसीयत के बारे में कुछ पाता नहीं हैं और दलाल वो हमारे परिवार का विश्वास पात्र बांदा हैं । उसके पूर्वज भी हमारे परिवार के लिए काम करता रहा हैं।


सुरभि….. आप भी न आंख होते हुऐ भी अंधा बन रहे हों……..


राजेंद्र….. तुम कहना किया चाहती हों ।


सुरभि….. आप जो आंख मूंद कर सब पर भरोसा करते हों, आपके इसी आदत के कारण आज ये मुसीबत आन पड़ी है।


राजेंद्र…. तो क्या अब मैं किसी पर भरोसा भी न करूं।


सुरभि….. भरोसा करों लेकिन आंख मूंद कर नहीं और इस वक्त तो बिलकुल नहीं इस वक्त आप सब को शक की दृष्टि से देखो नहीं तो बहुत बड़ा अनर्थ हों जाएगा।


राजेंद्र…. तो क्या मैं अपने परिवार पर ही शक करूं। ये मैं नहीं कर सकता।


सुरभि…… आप समझ नहीं रहें हों इस वक्त जो परिस्थिती बना हुआ हैं यह बहुत विकट परिस्थिती हैं। इस वक्त हम नहीं समले तो बाद में हमे सम्हालने का मौका नहीं मिलेगी।


राजेंद्र……. तो किया मैं अब घर परिवार के लोगों पर ही शक करूं।


सुरभि……. आप हमेशा से ही ऐसा करते आ रहे हों। आप को कितनी बार कहा हैं आप ऐसे किसी पर अंधा विश्वास न करें लेकिन आप सुनते ही नहीं हों। अपका यह अंधा विश्वास करना ही अपके सामने विकट परिस्थिती उत्पन्न कर देता हैं।


राजेंद्र…… सुरभि कहना आसान लेकिन करना बहुत मुस्किल किसी पर उंगली उठाने से पहले उसके खिलाफ पुख्ता प्रमाण होना चाहिए। बिना प्रमाण के किसी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता।


सुरभि…… मैं कौन सा आपसे कह रहा हूं आप जाकर उनकी गिरेबान पकड़े और कहे तुमने हमारे खिलाफ साजिश क्यों किया। मैं बस इतना का रहा हूं आप उन्हे शक के केंद्र में लेकर अपने काम को आगे बढ़ाए।


राजेंद्र….. ठीक हैं! तुम जैसा कह रही हों मैं वैसा ही करुंगा अब खुश ।


सुरभि……. हां मैं खुश हूं और कुछ रह गया हों तो बोलों वह भी पूरा कर देती हूं।


राजेंद्र……. अभी प्यार का खेल खेलना बाकी रह गया हैं उसको शुरू करे।


सुरभि…… मुझे नहीं पता आप कौन से प्यार की खेल की बात कर रहें हों और न ही मुझे कोई प्यार का खेल आप के साथ खेलना हैं।


राजेंद्र….. सुरभि तुम तो बड़ा जालिम हों ख़ुद मेनका बनकर मुझे रिझाती हों और जब मैं रीझ गया तो साफ साफ मुकर रहीं हों। इतना जुल्म न करों मुझ पर मैं सह नहीं पाऊंगा।


सुरभि उठकर राजेंद्र से दूर जाते हुए पल्लू को सही करते हुए बोली…….


सुरभि….. आपको जिस काम के लिए रिझाया था वह तो हों गया। अभी हम दोनों के खेल खेलने का सही वक्त नहीं है। यह खेल रात में खेलना सही रहता हैं इसलिए आप रात्रि तक की प्रतिक्षा कर लिजिए।


राजेंद्र उठ कर सुरभि के पास जानें लगा सुरभि राजेंद्र को पास आते देखकर ठेंगा दिखाते हुए पीछे को हटने लगी। सुरभि को पीछे जाते हुए देख कर राजेंद्र सुरभि के पास जल्दी पहुंचने के लिए लंबे लंबे डग भरने लगे। राजेंद्र को लंबा डग भरते हुए देखकर सुरभि मुस्कुराते हुए पीछे होने लगी। सुरभि पीछे होते होते जाकर दीवाल से चिपक गईं। राजेंद्र सुरभि को दीवाल से चिपकते देखकर मुस्कुराते हुए सुरभि के पास पहुंचा और सुरभि को कमर से पकड़ कर खुद से चिपकते हुए बोला…..


राजेंद्र….. सुरभि अब कहा भागोगी अब तो तुम्हारा चिर हरण होकर रहेगा। रोक सको तो रोक लो।


सुरभि राजेंद्र के पकड़ से छुटने की प्रयत्न करते हुए बोली…..


सुरभि….. बड़े आए मेरा चिर हरण करने वाले छोड़ो मुझे अपको इसके अलावा ओर कुछ नहीं सूझता।


राजेंद्र…… गजब करती हों मैं क्यों छोडूं तुम्हें मैं नहीं छोड़ने वाला मैं तो अपने पत्नी को ढेर सारा प्यार करुंगा।


राजेंद्र सुरभि को चूमने के लिए मुंह आगे बड़ा रहा था सुरभि राजेंद्र को रोकते हुए बोली……


सुरभि…... हटो जी अपका ये ढेर सारा प्यार मुझ पर बहुत भारी पड़ता हैं। मुझे नहीं चाहिएं अपका ढेर सारा प्यार।


राजेंद्र…. अच्छा जी तुम्हें ढेर सारा प्यार न करू तो और किसे करू राजा महाराजा के खानदान से हूं। पिछले राजा महाराजा कईं सारे रानियां रखते थे। तुम मेरी एकलौती रानी हों तो तुम्हें ही तो ढेर सारा प्यार करुंगा।


सुरभि…… ओ तो अब अंपका मन मुझसे भरने लगा हैं अपको ओर पत्नियां चाहिएं हटो जी मुझे आपसे कोई बात नहीं करनी हैं।


राजेंद्र कुछ बोलता तभी कोई राजा जी, राजा जी करके आवाज देते हुए कमरे के बाहर खडा हों गया और फिर से आवाज देने लगा। राजेंद्र सुरभि को खुद से चिपकाए रखा और बोला……


राजेंद्र…..कौन हों बाहर मैं अभी विशेष काम करने में व्यस्त हूं।


शक्श….. राजा जी माफ करना मैं धीरा हूं। मुंशी जी आए हैं कह रहें हैं अपको उनके साथ कहीं जाना हैं।


धीरा के कहते ही राजेंद्र को याद आया। उसने मुंशी जी को किस काम के लिए बुलाया था और उनके साथ कहा जाना था। इसलिए सुरभि को छोड़ते हुए बोला….


राजेंद्र……. धीरा तुम जाओ और मुंशी जी की जलपान की व्यवस्था करों मैं अभी आता हूं।


धीरा…... जी राजा जी।


धीरा कह कर चला गया और राजेंद्र कपडे बदलने जानें लगा। राजेंद्र को जाते हुए देखकर सुरभि मुस्कुराते हुए बोली…..


सुरभि….. क्या हुआ आप ने मुझे छोड़ क्यों दिया। अपको तो ढेर सारा प्यार करना था। करिए न ढेर सारा प्यार देखिए मैं तैयार हूं।


राजेंद्र…… जख्मों पर नमक छिड़काना तुम से बेहतर कोई नहीं जानता छिड़क लो जितना नमक छिड़कना हैं। अभी तो मैं जा रहा हूं लेकिन रात को तुम्हें बताउंगा।


सुरभि राजेंद्र को ठेंगा दिखाते हुए कमरे से बाहर चाली जाती हैं। कुछ वक्त बाद राजेंद्र तैयार हों कर नीचे जाता हैं जहां मुंशी जी बैठे थे। मुंशी जी राजेंद्र को देखकर खडा हों जाते हैं और नमस्कार करते हैं। राजेंद्र मुंशी जी की और देखकर मुस्करा देते हैं और बोलते हैं…….


राजेंद्र…. मुंशी तुझे कितनी बार कहा हैं तू मेरे लिए खड़ा न होया कर न ही मुझे नमस्कार किया कर तू आकर सीधा मुझसे गले मिला कर लेकिन तेरे कान में जूं नहीं रेगता ।


राजेंद्र जाकर मुंशी के गाले मिलता हैं फिर अलग होकर मुंशी बोलता हैं।


मुंशी…… राना जी यह तो अपका बड़प्पन हैं। मैं इस महल का एक नौकर हूं और आप मालिक और अपका सम्मान करना मेरा धर्म हैं। मैं तो अपना धर्म निभा रहा हूं।


राजेंद्र……. मुंशी तू अपना धर्म ग्रन्थ अपने पास रख। तूने दुबारा नौकर और मालिक शब्द अपने मुंह से बोला तो तुझे तेरे पद से हमेशा हमेशा के लिए मुक्त कर दुंगा।


मुंशी…… राना जी आप ऐसा बिल्कुल न करना नहीं तो मेरे बीबी बच्चे भूख से बिलख बिलख कर मर जायेंगे।


राजेंद्र…. भाभी और रमन को भूखा नहीं मरने दूंगा लेकिन तुझे भूखा मर दुंगा अगर तूने दुबारा मेरे कहें बातो का उलघन किया। अब चल बहुत देर हों गया हैं। तू भी एक नंबर का अलसी हैं अपना काम ढंग से नहीं कर रहा हैं।


दोनों हंसते मुस्कुराते हुए घर से निकल जाते हैं। लेकिन कोई हैं जिसको इनका याराना पसंद नहीं आया और वह हैं सुकन्या जो धीरा के राजेंद्र को बुलाते सुनाकर खुद भी कमरे से बाहर आ गई और राजेंद्र और मुंशी जी के दोस्ताने व्यवहार को देखकर तिलमिलाते हुए खुद से बोली…….


सुकन्या…….. इन दोनों ने महल को गरीब खान बना रखा हैं एक नौकर से दोस्ती रखता हैं तो दूसरा महल के नौकरों को सर चढ़ा रखा हैं। एक बार महल का कब्जा मेरे हाथ आने दो सब को उनकी औकाद अच्छे से याद करवा दूंगी।


सुकन्या को अकेले में बदबड़ते हुए सुरभि देख लेती और पूछती……


सुरभी….. छोटी क्या हों गया अकेले में क्यों बडबडा रहीं।


सुकन्या…….. कुछ नहीं दीदी बस ऐसे ही।


सुरभि….. तो क्या भूत से बाते कर रहीं हैं।


सुकन्या आकर सुरभि को सोफे पर बिठा दिया और खुद भी बैठ गईं। सुकन्या के इस व्यवहार से सुरभि सुकन्या को एक टक देखने लगीं सुरभि ही नहीं रतन और धीरा भी ऐसे देख रहे थे जैसे आज कोई अजूबा हों गया हों। हालाकि यह अजूबा इससे पहले सुकन्या कर चुका था और सभी को सोचने पर मजबूर कर दिया था। सुकन्या जैसी नागिन जिसके मुंह में ज़हर की पोटली हमेशा खुला हुआ रहती हो और अपना ज़हर उगलने को तैयार रहती हो। ऐसे में आदर्श व्यवहार करने पर सब का अचंभित होकर देखना लाज़मी था। सुकन्या रतन और धीरा को अपनी और एक टक देखते हुए देखकर बोली…….


सुकन्या…... क्या देख रहें हों तुम्हें कोई काम नहीं हैं जब देखो काम चोरी करते रहते हों जाओ अपना काम करों।


सुकन्या कहकर मुस्कुरा देती हैं। रतन और धीरा सुकन्या के कहने पर अपने काम करने चल देता हैं और सुरभि सुकन्या से बोलती हैं……


सुरभि….. छोटी तेरा न कुछ पाता ही नहीं चलती तू कभी किसी रूप में होती तो कभी किसी ओर रूप में समझ नहीं आती तेरे मन में किया चल रही हैं।


सुकन्या….. दीदी आप सीधा सीधा बोलिए न मैं गिरगिट हूं और गिरगिट की तरह पल पल रंग बदलती हूं।


सुरभि…… मैं भला तुझे गिरगिट क्यों कहूंगी तू तो एक खुबसूरत इंसान हैं जो अपनी व्यवहार से सब को सोचने पर मजबूर कर देती हैं।


सुकन्या…. दीदी आप मुझे ताने मार रहीं हों मार लो ताने मैं काम ही ऐसा करती हूं।


सुरभि … मैं तूझे क्यो ताने मारूंगी तू छोड़ इन बातों को यह बता तू आज मेरे कमरे मे कैसे आ गई इससे पहले तो कभी नहीं आई।


सुकन्या….. अब तक नहीं आई यह मेरी भूल थीं अब तो मैं अपके कमरे में आकर आपसे ढेर सारी बातें करूंगी।


सुरभि…. तुझे रोका किसने हैं तू तो कभी भी मेरे कमरे में आ सकती हैं और जितनी बाते करनी हैं कर सकती हैं।


ऐसे ही दोनों बाते करते रहते हैं। जब दो महिलाएं एक जगा बैठी हों तो उनकी बातों का सिलसिला कभी खत्म ही नहीं होता। इनको बाते करते हुए देखकर रसोई घर में धीरा बोलता हैं…..


धीरा….. काका आज इस नागिन को किया हों गया जो रानी मां के साथ अच्छा व्यवहार कर रहीं हैं।


रतन…... धीरे बोल नागिन ने सुन लिया तो अपना सारा ज़हर हम पर ही उगल देगी और उसके ज़हर का कोई काट नहीं हैं।


धीरा……. सही कहा काका पता नही कब महल में एक ऐसी ओझा ( सपेरा) आयेगा जो इस नागिन के फन को कुचलकर इसके ज़हर वाली दांत को तोड़ देगा।


दोनों बाते करने मैं इतने मगन थे की इन्हें पाता ही नहीं चला कोई इन्हें आवाज दे रहा था जब इनका ध्यान गया तो उसे देखकर दोनों सकपका गाए और डारने भी लगें रतन अपने डर को काबू करते हुए बोला……


रतन…... छोटी मालकिन आप कुछ चाहिए था तो आवाज दे देती यह आने की जरूरत ही क्या थीं?


सुकन्या……. आवाज दे तो रहीं थीं लेकीन तुम्हें सुनाई दे तब न इस धीरा को कितनी आवाज दिया धीरा एक गिलास पानी लेकर आ लेकीन इसको तो कोई सुद ही नहीं था रहता भी तो कैसे दोनों कामचोर बातों में जो मज़े हुए थे और ये किस नागिन की फन कुचलने की बात कर रहे थे कौन ओझा किस नागिन की ज़हर के दांत तोड़ने वाली हैं।


सुकन्या के बोलते ही दोनों एक दूसरे के मुंह देखने लगे और सोचने लगे की अब किया जवाब दे एक दूसरे को ताकते हुए देखकर सुकन्या बोली…..


सुकन्या…… तुम दोनों क्या एक दूसरे को ऐसे ही ताकते रोहोगे कुछ बोलते क्यों नहीं मुंह में जुबान नहीं हैं। (सुरभि की और देखकर) दीदी ने तुम सब को सर चढ़ा रखा हैं काम के न काज के दुश्मन अनाज के अब जल्दी बोलों किस बारे में बात कर रहें थे।


रतन समझ जाता हैं सुकन्या पूरी बात नहीं सुन पाया इसलिए जानना चाहती हैं। रतन एक मन घड़ंत कहानी बना कर सुनने लगाता हैं…..


रतन….. वो छोटी मालकिन धीरा बता रहा था उसने किसी से सुना हैं यह से दुर किसी के घर में एक नागिन निकला हैं जिसकी जहर वाली दांत निकलने के लिए कोई ओझा पकड़ कर ले गया तो हम उस नागिन की बात कर रहें थे की पाता नहीं अब कैसे ओझा उस नागिन की ज़हर वाली दांत निकलेगा।


रतन कि बात सुनाकर धीरा समझ जाता हैं रतन सुकन्या को झूठी कहानी सुनाकर झांसा दे रहा हैं। इसलिए धीरा भी रतन के हां में हां मिलाते हुए बोला…..


धीरा…... हां हां छोटी मालकिन मैं काका को उस नागिन और उसकी ज़हर की बात बता रहा था। आप को किया लगाता हैं हम महल की बात कर रहे थे । जब महल में कोई नागिन निकली ही नहीं तो हम महल में मौजुद नागिन की ज़हर निकलने की बात क्यो करेंगे।


सुकन्या…... अच्छा अच्छा ठीक हैं अब ज्यादा बाते न बनाओ और जल्दी से दो गिलास पानी लेकर आओ काम चोर कहीं के।


सुकन्या कहकर चाली जाती हैं। धीरा और रतन छीने पर हाथ रखा धकधक हों रहीं धड़कन को काबू करने की कोशिश करता हैं फिर रतन धीरा से बोलता हैं……


रतन….. धीरा जल्दी जा इस नागिन को पानी पिला कर आ नहीं तो नागिन फिर से ज़हर उगले आ जायेगी।


धीरा दो गिलास लेकर एक प्लेट पर रखा और पानी भरते हुए बोला……


धीरा…... काका आज बाल बाल बच गए। छोटी मालकिन हमारी पूरी बाते सुन लेती तो अपने जहर वाली दांत हमे चुबो चूबो कर तड़पा तड़पा कर मार डालती।


रतन……. बच तो गए हैं लेकीन आगे हमे ध्यान रखना हैं तू जल्दी जा और पानी पिलाकर आ लगाता हैं छोटी मालकिन बहुत प्यासा हैं।


धीरा जाकर दोनों को पानी देता हैं और आकर अपने काम में लग जाता हैं। ऐसे ही दिन बीत जाता हैं। रात का खाना सुरभि, सुकन्या रघु और अपस्यु साथ में ही खाते हैं। राजेन्द्र और रावण दोनों भाई अभी तक घर नहीं लौटे थे। सब खाना खाकर अपने अपने कमरे में चले गए थे। लेकीन सुकन्या कमरे में दो पल स्थिर से नहीं रूक रहीं थी उसके मन में हाल चल मची हुए थी और इस हल चल का करण दिन में सुनी सुरभि और राजेन्द्र की बाते थी। कहते है स्त्री के पेट में कोई बात नहीं पचती जब तक वो बातो को उगल न दे तब तक उनका खाया खान भी नहीं पचता और सुकन्या ने तो दो वक्त का खाना बड़े चाव से खाया था। जिसे पचाने के लिए दिन में सुनी बातों को उगलना जरूरी हो गया था। सुकन्या रावण के लेट आने के करण गुस्से में बडबडाए जा रहीं थी…..


सुकन्या….. जिस दिन इनसे जरूरी बात करनी होती हैं उस दिन ही ये लेट आते हैं। पाता नहीं कब आयेंगे। ये बाते और कितनी देर तक मेरे पेट में हल चल मचाती रहेंगी कब तक इन बातों के बोझ को मैं ढोती रहूंगी।


सुकन्या ऐसे ही टहलते रहते, खाने और बातो को पचने की कोशिश करते रहते। रावण और राजेंद्र दोनों एक के बाद एक महल लौटते और अपने अपने कमरे में चले जाते रावण को देखकर सुकन्या बोलती हैं…..


सुकन्या….. आप आज इतने लेट क्यों आए आप से कितनी जरूरी बात करनी थी कब से ये बाते मेरी पेट में हलचल मचाई हुई हैं।


रावण….. अजीव बीबी हो पति से खाने को पुछा नहीं और बाते बताने को उतावली होई जा रही हों। अच्छा चलो खान बाना बाद में पहले तुम अपनी दुखड़ा ही सुना दो।


सुकन्या….. आप जाइए पहले खान खाकर आइए फिर बात करते हैं।


रावण हाथ मुंह धोने गुसलखाने जाता हैं । ईधर राजेंद्र कमरे में पहुंचता हैं। सुरभि बेड पर पिट टिकाए एक किताब पढ़ रहीं थीं। राजेन्द्र को देखकर किताब बंद कर राजेन्द्र से कहती हैं……


सुरभि….. आप आ गए इतनी देर कैसे हो गईं।


राजेन्द्र….. कुछ जरूरी काम था इसलिए देर हो गया। तुम ये कौन सी किताब पढ़ रहीं थीं।


सुरभि राजेंद्र की और देखकर कुछ सोचकर मुस्कुराते हुए बोली…..


सुरभि…. कामशास्त्र पढ़ रहीं थीं।


राजेन्द्र …. ओ ये बात हैं तो चलो फिर पहले अधूरा छोड़ा काम पूरा कर लेता हूं फिर खान पीना कर लूंगा।


सुरभि….. अधूरा काम बाद में पूरा कर लेना अभी आप जाकर अपना ताकत बड़ा कर आइए आज अपको बहुत ताकत की जरूरत पड़ने वाली हैं।


राजेन्द्र….. लगाता हैं आज रानी साहिबा मूढ़ में हैं।


सुरभि…. अपकी रानी साहिबा तो सुबह से ही मुड़ में हैं और आप का तो कोई खोज खबर ही नहीं हैं।


राजेंद्र…. अब आ गया हू अच्छे से खोज खबर लूंगा लेकिन पहले भोजन करके ताकत बड़ा लू।


राजेन्द्र हाथ मुंह धोकर कपडे बदलकर निचे जाता हैं जहां रावण पहले से ही मौजूद था दोनों भाई दिन भर की कामों के बारे में बात करते हुए भोजन करने लगते हैं। भोजन करने के बाद दोनों भाई अपने अपने कमरे में जाते। सुकन्या रावण की प्रतिक्षा में सुख रही थी। रावण के आते ही शुरू हों जाती हैं……


सुकन्या….. भौजन करने में इतना समय लगाता हैं।


रावण…. दादाभाई के साथ दिन भर के कामों के बारे में बात करते हुए भोजन करने में थोडा अधिक समय लग गया। अब तुम बाताओ कौन सी बातों ने तुम्हारे पेट में हलचल मचा रखी हैं।


सुकन्या…… मुझे लगाता हैं सुरभि और भाई साहाब को हमारे साजिश के बारे में पता चाल गया हैं।


ये सुनकर रावण के पैरों तले जमीन खिसक गईं। उसे अपनी साजिश का पर्दा फाश होने का डर सताने लगा जिसे छुपाने के लिए रावण ने पाता नहीं कितने कांड किए फिर भी वह ही हूआ जिसका उसे डर था लेकीन इतनी जल्दी होगा उसे भी समझा नहीं आ रहा था। रावण का मन कर रहा था अभी जाकर अपने भाई भाभी और रघु को मौत के घाट उतर दे लेकिन फिर खुद को नियंत्रण कर बोला…….


रावण…... तुम्हें कैसे पता चला हमारे बनाए साजिश का पर्दा फाश हों चुका हैं। ऐसा हुए होता तो दादा भाई अब तक मुझे मार देते या फ़िर जेल में डाल देते।


सुकन्या…. इतनी सी बात के लिए वो तुम्हें क्यो मार देंगे।


रावण….. इतनी सी बात नहीं बहुत बडी बात हैं अब तुम ये बताओ तुम्हें कैसे पाता चल।


सुकन्या …. आप के जानें के बाद मैं निचे गई कुछ काम से जब ऊपर आ रही थीं तभी मुझे सुरभि के कमरे से उसके तेज तेज बोलने की आवाज़ सुनाई दिया तब मैं उनके कमरे के पास गई तो मुझे दरवजा बंद दिखा तो मैं वापस मुड़ ही रहीं थीं की मुझे उनकी बाते फिर सुनाई दिया जिसे सुनकर मेरे कदम रुख गए और मैं उनकी बाते सुने लगा … सुरभि कह रही थीं आप उनके बातों पर ध्यान मत देना मुझे लगाता हैं कोई मेरे बेटे के खिलाफ साजिश कर रही हैं। फिर भाई साहब ने जो बोला उसे सुनकर मेरे कान खडे हों गए फिर सारी बातें सुकन्या ने बता दिया जो उसने सुना था जिसे सुनकर रावण ने कहा……..


रावण….. यह तो बहुत ही विकट परिस्थिति बन गया हैं और मुझे लगाता हैं दादा भाई को पूरी बाते पता नहीं चला हैं नहीं तो मैं आज महल में नहीं जेल में बंद होता या फिर दादा भाई मेरा खून कर देते।


सुकन्या…….. आप क्या कह रहे हो? वो अपका खून क्यों करते? हम दोनों तो सिर्फ़ महल और सारी संपत्ति अपने नाम करवाना चाहते हैं। इसमें खून करने की बात कहा से आ गई वो अपको जेल भी तो भिजवा सकते हैं।


रावण…... सुकन्या तुम नहीं जानती मैंने जो भी कर्म कांड किया हैं उसे जानने के बाद दादा भाई मुझे जेल में नही डालते बल्कि मेरा कत्ल कर देते।


सुकन्या…... मुझ कुछ समझ नहीं आ रहा है आप कहना किया चाहतें हो लेकिन मैं इतना तो समझ गया हूं आपने मुझसे बहुत कुछ छुपा रखा हैं।


रावण……. हां बहुत कुछ हैं जो मैं तुम्हे नहीं बताया लेकिन आज बताता हूं। तुम्हें किया लगता हैं आधी सम्पत्ति पाने के लिए दादाभाई के साथ विश्वास घात करूंगा, नहीं सुकन्या मैं कुछ और पाने के लिए दादा भाई के साथ विश्वास घात कर रहा हूं…….


सुकन्या….. मुझे जहां तक पाता हैं हमारे पास इस संपत्ति के अलावा ओर कुछ नहीं हैं जो आधा आधा आप दोनों भाइयों में बांटा हुआ हैं तो फ़िर और किया हैं जिसे आप पाना चाहते हों।


रावण…... सुकन्या हमारे पास गुप्त संपत्ति हैं उसे अपने नाम कर लिया तो मैं बैठे बैठे ही दुनियां का सबसे अमीर आदमी बन जाऊंगा।


गुप्त संपत्ति और दुनियां की सबसे अमीर होने की बात सुनकर सुकन्या जैसी लालची औरत के लालच की सीमाएं टूट चुका था। सुकन्या के हावभाव बदलने लगा था। सुकन्या के बदलते हावभाव को देखकर रावण बोला……..


रावण…… सुकन्या खुद पर काबू रखो तुम जानकार अनियंत्रित हों जाओगी इसलिए मैं तुम्हें नहीं बता रहा था।


सुकन्या…. कैसे खुद पर नियंत्रण रखूं पाता नहीं कैसे आप खुद पर नियंत्रण रखें हुए हैं। मैं कहती हूं क्यो न अभी जाकर सुरभि, राजेंद्र और रघु को मारकर गुप्त संपत्ति आपने नाम करवा लेते हैं।


राजेंद्र…… हमने ऐसा किया तो गुप्त संपत्ति हमेशा हमेशा के लिए हमारे पहुंच से बहार हों जाएंगा। जिसको पाने के लिए न जानें मैंने क्या क्या किया हैं?


सुकन्या……. कैसे गुप्त संपत्ति हमारे हाथ से निकाल जायेगी ।


रावण…… गुप्त संपत्ति का पता दादा भाई के अलावा कोई नहीं जानता। मैंने उन्हें मार दिया तो यह राज उनके साथ ही दफन हों जाएगा।


सुकन्या……. गुप्त संपत्ति का राज सिर्फ आपके दादाभाई जानते हैं तो फिर आप को कैसे पता चला।


राजेंद्र……. गुप्त संपत्ति का राज दादाभाई ही जानते हैं लेकिन उस संपत्ति का एक वसियत बनाया गया था जिसके बारे में दादा भाई और हमारा वकील दलाल जानता हैं। जो मेरा बहुत अच्छा दोस्त हैं। एक दिन बातों बातों में दलाल ने मुझे गुप्त संपत्ति के वसियत के बारे में बता दिया। उसे गुप्त संपत्ति कहा रखा हैं बताने को कहा तो उसने मना कर दिया की उसे सिर्फ वसियत के बारे में पता हैं संपत्ति कहा रखा हैं वो नहीं जानता फिर हम दोनों ने मिलकर गुप्त संपत्ति का पता ठिकाना जाने के लिए साजिश रचना शुरू किया।


रावण….. हमारे साजिश का पहला निशाना बना रघु , वसियत के अनुसार रघु की पहली संतान गुप्त संपत्ति का मूल उत्तराधिकारी हैं। इसलिए मैं रघु की शादी रोकने के लिए जहां भी दादाभाई लड़की देखते उनको अपने आदमियों को भेज कर डरा धमका कर शादी के लिए माना करवा देता जो नहीं मानते उनको झूठी खबर देता की रघु में बहुत सारे बुरी आदतें हैं। यह जानकार लड़की वाले खुद ही रिश्ता करने से मना कर देते।


रावण……. इसलिए मैं दादाभाई पर नज़र रखवाया। जिससे मुझे पाता चलता की दादाभाई कब किस लड़की वालों से मिलने गया। ऐसे ही नज़र रखवाते रखवाते मुझे दादाभाई के रखे गुप्तचर के बारे में पाता चला फिर मैं दादाभाई के गुप्त चर को ढूंढूं ढूंढूं कर सब को मार दिया। उन्हीं गुप्त चारों में से किसी ने दादाभाई को साजिश के बारे में बताएं होगा और सबूत भी देने की बात कहीं हाेगी।


रावण की बाते सुनकर सुकन्या अचंभित रह गया उसे समझ ही नही आ रहा था क्या बोले सुकन्या सिर्फ रावण का मुंह ताक रहा था। रावण सुकन्या को तकते हुए देखकर बोला…..


रावण…… सुकन्या क्या हुआ सदमे में चल बसी हों या जिंदा हों।


सुकन्या…… जिन्दा हूॅं लेकिन आपसे नाराज़ हूं आपने इतना बड़ा राज मुझसे छुपाया और इतना कुछ अकेले अकेले किया मुझे बताया भी नहीं।


रावण… गुप्त संपत्ति प्राप्त कर मैं तुम्हें उपहार में देना चाहता था लेकिन समय का चल ऐसा चला की गुप्त संपत्ति प्राप्त करने से पहले ही तुम्हें राज बताना पड़ गया मैं अकेला नहीं हूं मेरे साथ मेरा दोस्त और वकील दलाल भी सहयोग कर रहा हैं।


सुकन्या…… अब मैं आपके साथ हूं आप जैसा कहेंगे मैं करूंगी लेकिन अब हमे आगे किया करना हैं जब साजिश की बात खुल गई हैं तो देर सवेर आपके भाई को पता चल ही जाएगा।


रावण……. दादाभाई को साजिश का भनक लग गया हैं तो दादाभाई चुप नहीं बैठने वाले इसलिए हमें अपने साजिश यह पर ही रोकना होगा और आगे चलकर नए सिरे से शुरू करना होगा।


सुकन्या…… ऐसे तो रघु की शादी हों जायेगी फिर गुप्त संपत्ति का मूल उत्तर अधिकारी भी आ जाएगा फिर तो सब हमारे हाथ से निकल जायेगी।


रावण….. अभी तो यह ही करना होगा नहीं तो हमारा भांडा जल्दी ही फुट जायेगा लेकिन मैं गुप्त संपत्ति को इतनी जल्दी अपने हाथ से जाने नहीं दुंगा।


सुकन्या……. मुझे तो साफ साफ दिख रहा हैं गुप्त सम्पत्ति पाने के सारे रास्ते बंद हों गए हैं।


रावण….. अभी कोई भी रास्ता नहीं दिख रहा हैं लेकिन कोई न कोई रास्ता जरूर होगा जिसे मैं ढूंढ़ लूंगा।


सुकन्या…... ठीक हैं। बहुत रात हों गया हैं अब चलकर सोते हैं।



दोनों सो जाते हैं। महल में इस वक्त सब सो रहें थे लेकिन सुरभि और राजेंद्र काम शास्त्र की कलाओं को साधने में लागे हुए थे। दोनों काम कलां में मगन थे और महल के दूसरे कमरे में बहुत से राज उजागर हुआ और दफन भी हों गया। जिसकी भानक भी किसी को नहीं हुआ। आगे क्या क्या होने वाला हैं इसके बरे में आगे आने वाले अपडेट में जानेंगे आज के लिए इतना ही।
बहुत ही बेहतरीन कहानी महोदय।

सुरभि सही कह रही जी। कोई भी काम करो और किए पर भी भरोशा करो तो वो बैंड आंखों से नहीं बल्कि अपनी नजर चौकन्नी रखना जरूरी है। वो भी तब जब इतनी गहरी साजिश रची जा रही है। रघु के लिए आया हर रिश्ता किसी न किसी वजह से टूट का रहा है तो शक सभी पर कर आ चाहिए और उसकी तह तक पहुचना चाहिए।।

राजेन्द्र का वकील दलाल भी रावण का दोस्त निकला तो वो उसी का साथ देगा। स्त्री की यही कमी होती है कि उसके पेट में कोई बात पचती ही नहीं है सुकन्या के पेट मे गुड़गुड़ मची हुई है कि कब वो सारी बातें रावण से करें। रावण के मुंह से इतना बड़ा राज खुलने के बाद सुकन्या का लालच और भी ज्यादा बढ़ गया है। वो उसे किस मुकाम पर ले जाता है।।
 

Mahi Maurya

Dil Se Dil Tak
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23,231
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259
अजनबी हमसफ़र-रिश्तों का गठबंधन

Update - 6


राजेंद्र….. अरे हां मैं तो भूल ही गया था कि मेरे जीवन में एक नारी शक्ति ऐसी हैं जो मेरे सभी परेशानियों से निकलने में हमेशा सहायक सिद्ध हुआ हैं।

सुरभि…… आप अपनी हाथ को विराम दिजिए और बताना शुरू कीजिए।

राजेंद्र…. सुरभि मेरे परेशानी का करण कई हैं जो पिछले कुछ दिनों से मेरे चिन्ता का विषय बना हुआ हैं। जो मैं सब के नजरों से छुपा लिया लेकिन तुम्हारे नजरों से नहीं छुपा पाया। सुरभि तुम मेरे अर्ध अंग होने का कार्य भार बखूबी निभा रहीं हों। जैसे एक अंग को पीढ़ा हों तो बाकी अंग स्वतः ही पीढ़ा को भाप लेता हैं वैसे ही तुम मेरे परेशानी ओर चिंता को स्वतः ही भाव लिया। सुरभि तुम एक अजनबी की तरह मेरे जीवन में आई और मेरा हमसफर बनकर मेरे कदम से कदम मिलाकर साथ चलती रहीं हों।

सुरभि मुस्कुराकर राजेंद्र की आंखो में देखकर बोलो……

सुरभि….. भले ही मैं अपके जीवन में एक अजनबी की तरह आई लेकिन मैं अब अजनबी नहीं रहीं मैं आपको भली भांति पहचान गई हूं। मैं अपकी अर्धांगिनी हूं तो फिर अपने आधे अंग में हों रहीं पीढ़ा को मैं कैसे न समझ पाती।……... आप मेरी कुछ ज्यादा ही तारीफ करते हों लेकिन यह अच्छा हैं पत्नी की तारीफ नहीं करोगे तो ओर किसकी करोगी। अब आप मुद्दे की बात बताइए जो मैं जानना चहती हूं।

राजेंद्र …….. मैं परेशान कई कारणों से हूं। उनमे से एक हैं हमारा बेटा रघु।

सुरभि…… रघु ने ऐसा किए कर दिया जो आपके परेशानी का करण बाना हुए हैं। किसी ने अपको रघु के बारे में गलत बताकर भड़का दिया होगा। सुनो जी अपको जिसने भी भड़काया हैं आप उनका कहना न मानना मेरा लाडला ऐसा नहीं हैं जो कोई भी गलत काम करे।

राजेंद्र…… सुरभि तुम इतना परेशान क्यों हों रहीं हों? सुरभि हमारे बेटे ने कुछ गलत नहीं किया हैं। रघु हमारे परवरिश पर बदनुमा धब्बा कभी नहीं लगाएगा।

सुरभि….. सुनो जी आप ऐसे घुमा फिरा कर न बोलों एक तो आप खुद कहते हों रघु आपके परेशानी का करण बना हुआ हैं और फिर कहते हों रघु ने कुछ गलत नहीं क्या हैं। तो रघु आपके परेशानी का करण कैसे हुआ?

राजेंद्र……. सुरभि रघु की शादी मेरे परेशानी का करण बना हुआ हैं।


सुरभि….. हम ढूंढ़ तो रहे हैं रघु के लिए लड़की फिर रघु की शादी आपके परेशानी का कारण कैसे बन सकता हैं। देर सवेर हों जायेगी रघु की शादी आप इसके लिए परेशान न हों।

राजेंद्र……. मैंने रघु के लिए कई लड़कियां देखा हैं और यह सभी लड़कियां वैसी हैं जैसी हमे रघु के लिए चाहिए। लेकिन एक बात मेरे अब तक समझ में नहीं आया। ऐसा क्या उन्हें पाता चल जाता हैं जो वो हां कहने के बाद न कह देते हैं।

सुरभि …… न कहा रहें है तो ठीक हैं हम रघु के लिए कोई ओर लड़की ढूंढ लेंगे।

राजेंद्र……. बात लड़की ढूंढने की नहीं हैं मैं रघु के लिए ओर भी लड़की ढूंढ़ लूंगा लेकिन बात यह हैं की बिना लड़के को देखे बिना परखे कोई कैसे मना कर सकता हैं।

सुरभि…. आप थोडा ठीक से बताएंगे आप कहना किया चहते हों।

राजेन्द्र….. सुरभि आज तक जितनी भी लड़कियां देखा हैं। सब लड़कियों को और उनके घर वालों को रघु की तस्वीर देखकर पसंद आ गया और वो रघु को देखने आने के लिए भी तैयार हों जाते हैं लेकिन अचानक उन्हें किया हों जाता हैं वो आने से मना कर देते हैं।

सुरभि……. ये आप किया कह रहे हों ऐसा कैसे हों सकती हैं। हमारा रघु तो सबसे अच्छा व्यवहार करता हैं उसमे कोई बुरी आदत नहीं हैं। फिर कोई कैसे रघु को अपनी लड़की देने से मना कर सकता हैं।

राजेंद्र….. यह ही तो मेरे समझ में नहीं आ रहा हैं। सुरभि ऐसा एक या दो बार होता तो कोई बात नहीं था। अब तक जितनी भी लड़की देखा हैं सभी ने पहले हां कहा फिर मना कर दिया।

सुरभि…… उन लोगों ने मना करने के पिछे कुछ तो कारण बताया होगा।

राजेंद्र…. उन्होंने कारण बताकर मना किया हैं उसे सुनाकर मेरा खून खोल उठा तुम सुनोगी तो तुम भी अपना आप खो देगी।

सुरभि…... उन्होंने ऐसा क्या बताया जिसे सुनाकर अपको इतना गुस्सा आय।

राजेंद्र…… उन्होंने कहा हमारे बेटे में बहुत सारे बुरी आदत है उसका बहुत सारे लड़कियों के साथ संबंध हैं। हम अपने लडकी की शादी आपके बेटे से करेंगे तो हमारी बेटी की जीवन बर्बाद हों जायेगा।

राजेंद्र की बाते सुनाकर सुरभि गुस्से में आज बबूला हों गई और तेज आवाज में बोली……..

सुरभि……उनकी इतनी जुर्रत जो मेरे बेटे पर ऐसा बदनुमा धब्बा लगाए। मेरा बेटा सोने जैसा खरा हैं। जैसे सोने में कोई अवगुण नहीं हैं वैसे ही मेरे लाडले में कोई अवगुण नहीं हैं।

जब सुरभि तेज आवाज में बोल रही थीं इसी वक्त सूकन्या सीढ़ी से ऊपर आ रहीं था। सुरभि के तेज आवाज को सुनाकर सुकन्या कमरे के पास आई और उनकी बाते सुनने लागी। सुरभि के आवेश के वशीभूत होकर बोलने से राजेंद्र सुरभि को समझाते हुए बोला……

राजेंद्र….. इतने उत्तेजित होने की जरूरत नहीं हैं। मैं भली भाती जनता हूं हमारे बेटे में कोई अवगुण नहीं हैं। लेकिन मैं ये नहीं जान पा रहा हूं ऐसा कर कौन रहा हैं हमारे बेटे को झूठा बदनाम करके किसी को क्या मिल जायेगा।

सुरभि…… सुनो जी मुझे साजिश की बूं आ रही हैं कोई हमारे बेटे के खिलाफ साजिश कर रहा हैं। आप उस साजिश कर्ता को जल्दी ढूंढो मैं आपने हाथों से उसे सूली चढ़ाऊंगी।

राजेंद्र …. उसे तो मैं ढूंढुगा ही और अपने हाथों से सजा दूंगा। सुरभि तुमने साजिश का याद दिलाकर अच्छा किए मेरे एक और परेशानी का विषय यह साजिश शब्द भी हैं।

सुकन्या जो छुपकर इनकी बाते सुन रहा था। साजिश की बात सुनाकर सुकन्या के कान खडे हों गए और मन में बोलो.."कहीं भाई साहाब को हमारे साजिश के बारे में पाता तो नहीं चल गया ऐसा हुआ तो हम न घर के रहेगें न घाट के उनको सब बताना होगा। लेकिन पहले इनकी पूरी बाते तो सुन लू ये किस साजिश की बात कर रहें हैं।"

सुरभि……. आप कहना क्या चाहते हैं खुल कर बोलो……

राजेंद्र…… पिछले कुछ दिनों से मेरे विश्वास पात्र लोग एक एक करके गायब हों रहे हैं। जो मेरे लिए खबरी का काम कर रहे थे।

सुरभि…. अपने गुप्तचर रख रखे हैं और अपके गुप्तचर गायब हों रहे। लेकिन अपको गुप्तचर रखने की जरूरत क्यो आन पड़ी।

राजेंद्र…… सुरभि तुम भी न कैसी कैसी बाते करते हों, राज परिवार से हैं, इतनी जमीन जायदाद हैं, इतनी सारी कम्पनियां हैं और विष्टि गुप्त संपत्ति भी हैं जिसे पाने के लिए लोग तरह तरह के छल चतुरी करेंगे। इसका पाता लगाने के लिए मैंने गुप्तचर रखा था लेकिन एक एक करके सब पाता नहीं कहा गायब हों गए उनमें से एक कुछ दिन पहले मेरे कार्यालय में फोन कर कुछ बाते बताया था और बाकी बाते मिल कर करने वाला था लेकिन आया ही नहीं मुझे लगता हैं वह भी बाकी गुप्त चर की तरह गायब हों गया।

सुकन्या जो छुप कर सुन रहीं थीं उसे कुछ कुछ सुनाई दे रही थीं लेकिन गुप्तचर की बात सुनाकर सुकन्या मन में ही बोला " ओ हों तो भाई साहब ने गुप्तचर रख रखे हैं लेकिन इनको गायब कौन कर रहा हैं। मुझे इनकी पूरी बाते सुननी चाहिए।" अचानक सुरभि की नज़र दरवाजे की ओर गईं। उसे दरवाजे की ओर से कुछ आवाज सुनाई दिया तब सुरभि ने अपने पति को मुंह पर उंगली रख कर चुप रहने को कहा और आ रही आवाज़ को ध्यान से सुने लगीं। सुरभि को हल्के हल्के चुड़िओ के खनकने की आवाज सुनाई दिया जिससे सुरभि को शक होने लगा कोई दरवाजे पर खडा हैं। इसलिए सुरभि शक को पुख्ता करने के लिए बोली……

सुरभि……. दरवाजे पर कौन हैं कोई काम हैं तो बाद में आना हम अभी जरूरी कम कर रहे हैं।

अचानक सुरभि की आवाज़ सुनाकर सुकन्या सकपका गई और हिलने डुलने लगी जिससे चूड़ियों की आवाज़ ओर ज्यादा आने लगा। इसलिए सुरभि का शक यकीन में बदल गई और सुरभि आवाज देते हुए दरवाजे की और आने लगी। सुरभि की आवाज़ सुनाकर सुकन्या मन में बोली"इस सुरभि को कैसे पाता चला कोई छुपकर इनकी बाते सुन रहीं हैं। अब क्या करू भाग भी नहीं सकती और सुरभि ने पुछा तो उसे क्या जबाव दूंगी। सुरभि जो भी पूछे मुझे समहाल कर जवाब देना होगा नहीं तो सुरभि के सामने मेरा भांडा फूट जाएगी" सुरभि आकर दरवाज़ा खोलती हैं। सुकन्या को देखकर बोलती हैं…….

सुरभि…. छोटी तू कब आई कुछ काम था?

सुकन्या…. दीदी मैं तो अभी अभी आपसे मिलने आई हूं लेकिन आप को कैसे पता चला की दरवाजे पर कोई आया हैं?

सुरभि….. मुझे कैसे पाता चला यह जानने का विषय नहीं हैं। जानने का विषय तो यह हैं तू कभी भी मेरे कमरे में नहीं आई फिर आज कैसे आ गईं।

सुरभि की बाते सुनाकर सुकन्या सकपका गई उसे समझ ही नहीं आ रहीं थी सुरभि को क्या ज़बाब दे सुकन्या को सकपते देखकर सुरभि मुस्कुराते हुए बोली……

सुरभि….. आज आई हैं लेकिन गलत वक्त पर आई हैं अभी तू जा मैं तेरे जेठ जी के साथ व्यस्त हूं। तुझे कुछ बात करनी हैं तो बाद में कर लेना।

सुकन्या फीकी मुस्कान देकर न चाहते हुए भी अपने कमरे की ओर चल दिया। जब तक सुकन्या अपनी कमरे तक नहीं गई तब तक सुरभि खड़ी खड़ी सुकन्या को देखती रहीं। सुकन्या अपने कमरे के पास पहुंचकर सुरभि की और देखी और कमरे में घूस गई फिर सुरभि ने दरवजा बंद किया और मुस्कुराते हुए जाकर राजेंद्र के पास बैठ गई और बोली……

सरभि….. छोटी छुप कर हमारी बाते सुन रहीं थीं इसलिए जो भी बोलना थोडा धीमे आवाज में बोलना ताकि बाहर खडे किसी को सुनाए न दे।

राजेंद्र….. क्क्क्यायाया सुकन्या लेकिन सुकन्या तो कभी हमारे कमरे अंदर तो छोड़ो कमरे के पास भी नहीं आती फिर आज कैसे आ गई।

सुरभि…… आप छोड़िए छोटी की बातों को उसके मन में क्या चलता हैं यह आप भी जानते हो। आप ये बताइए अपके गुप्त चर ने आपको फोन पर किया बताए और धीमे आवाज में बोलना हम दोनों के अलावा तीसरा न सुन पाए।

राजेंद्र….. उसने बोला महल में से ही कोई मेरे और रघु के खिलाफ साजिश कर रहा हैं। मैं और रघु सतर्क रहूं।

सुरभि….. महल से ही कोई हैं आपने उस धूर्त का नाम नहीं पुछा।

राजेंद्र….. पुछा था लेकिन वह कह रहा था नाम के अलावा ओर भी बहुत कुछ बताना हैं और सबूत भी दिखाना हैं इसलिए फोन पर न बताकर मिलकर बताएगा।

सुरभि…… अब तो वह लापता हों गया हैं अब नाम कैसे पता चलेगा।

राजेंद्र….. वह ही तो मैं सोच रहा हूं और मेरे सबसे बडी चिंता का विषय यह हैं महल से कौन हों सकता हैं महल में तो हम दोनों भाई, तूम, सुकन्या और हमारे बच्चे और कुछ नौंकर हैं। इनमें से कौन हों सकता हैं।

राजेंद्र से महल की बात सुनाकर सुरभि गहन सोच विचार करने लग गई। उसके हावभाव सोचते हुए पाल प्रति पाल बदल रहीं थी। राजेंद्र सुरभि को देखकर समझने की कोशिश कर रहा था कि सुरभि इतना गहन विचार किस मुद्दे को लेकर कर रहीं हैं। सुरभि को इतनी गहराई से विचाराधीन देखकर राजेंद्र ने सुरभि को हिलाते हुए पुछा……

राजेंद्र…… सुरभि कहा खोई हुई हों।

सुरभि……. मैं अपके कहीं बातों पर विचार कर रहीं हूं और ढूंढ रहीं हु आप के कहीं बातों का संबंध महल के किस शख्स से हैं।

राजेंद्र…. मैं भी इसी बात को लेकर परेशान हूं लेकिन किसी नतीजे पर पहुंच नहीं पाया।

सुरभि……. जब आप लड़की देखने जाते थे आप अकेले जाते थे या आप के साथ कोई होता था।

राजेंद्र…… जाता तो मैं अकेले था कभी कभी मुंशी जी को भी ले जाता था। लेकिन बाद में तुम्हे और रावण को बता देता था।

सुरभि….. ऐसा कोई करण हैं जिसका संबंध रघु के शादी से हो।

राजेंद्र….. बाबूजी का बनाया हुआ वसीयत का संबंध रघु के शादी से हैं।

सुरभि….. वसीयत का संबंध रघु के शादी से कैसे हों सकता हैं। सारी संपत्ति तो बाबूजी ने आप दोनों भाइयों में बराबर बांट दिया था। फिर रघु के शादी का वसीयत से क्या लेना देना?

राजेंद्र….. वसीयत का रघु के शादी से लेना देना हैं। जो हमारे पूर्वजों का गुप्त संपत्ति हैं। उसका उत्तराधिकारी रघु की प्रथम संतान हैं और जो प्रत्यक्ष संपति हैं उसका उत्तराधिकारी हम दोनों भाई हैं।

सुरभि…… ओ तो यह बात हैं मुझे तो ऐसा लग रहा है अब तक जो कुछ भी हुआ हैं इसका करण कहीं न कहीं यह गुप्त संपत्ति ही हैं।

राजेंद्र…… मतलब ये की कोई हमारे गुप्त संपत्ति को पाने के लिए साजिश कर रहा हैं। लेकिन गुप्त संपत्ति के वसीयत के बारे में मैं और हमारा वकील दलाल और अब तुम जानती हों इसके अलावा किसी को पता नहीं हैं।


आज के लिए बस उतना ही आज के कहानी अगले अपडेट से जानेंगे। यह तक साथ बाने रहने के लिए सभी पाठकों को बहुत बहुत धन्यवाद।
बहुत ही बेहतरीन महोदय।

राजेन्द्र जी की परेशानी का कारण स्वाभाविक है क्योंकि उनका बेटा रघु बहुत ही सीधा है कोई भी उसे आसानी से बरगला सकता है और अभी फिलहाल उसकी शादी के लिए जिस लड़की को भी देखते हैं उसका रिश्ता किसी न किसी वजह से टूट रहा है।।
 

Bull Wit

सुनो ना, हमारी ख्वाइश पूरी करो ना
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Update - 12


राजेंद्र और सुरभि पुष्पा के कॉलेज से चल दिए थे जाते वक्त रास्ते में सुरभि बोली...अपने उन दोनों पर कुछ ज्यादा ही गर्म तेवर दिखा दिया। अपने देखा न पुष्पा की रोने जैसी सूरत हों गई थीं।

राजेन्द्र…सुरभि मुझे अपना तेवर गर्म करना पडा मैं ऐसा नहीं करता तो उस लड़के को कैसे परख पाता जो हमारे बेटी से प्यार करता हैं।

सुरभि…लड़के को परखना ही था तो आज ही परखना जरूरी था आप बाद में भी परख सकते थें। आज प्यार से बात करके दोनों की राय जान लेते तो अच्छा होता।

राजेंद्र…बाद में परखते तो शायद लड़का दिखावा करता लेकिन आज अचानक ऐसा करने से लड़के को दिखावा करने का मौका नहीं मिला आज उसने वही किया जो उसके दिल ने कहा। उसके अंदर छुपे प्यार जो वो हमारे बेटी से करता हैं, करने को कहा।

सुरभि…आप क्या कोई अंतरयामी हों? जो बिना कहे ही उसके मन की बातों को जान लिया।

राजेंद्र…इसमें अंतरयामी होने की जरूरत ही नहीं था। जो कुछ भी हुआ आंखों के सामने दिख रहा था। तुमने गौर नहीं किया लेकिन मैं दोनों के हाव भव को गौर से देख रहा था।

सुरभि...कितना गौर से देखा ओर क्या देखा? मैं जान सकता हूं।

राजेंद्र...जब हम अचानक दोनों के सामने गए। तब लड़के के प्यार में कोई खोट होता तो हमे देखकर भाग जाता लेकिन भागा नहीं खड़ा रहा सिर्फ खड़ा ही नहीं रहा पुष्पा का हाथ पकड़े रहा जो यह दर्शाता हैं। परिस्थिती कैसी भी हो वो पुष्पा का हाथ कभी नहीं छोड़ेगा।

सुरभि…मैं तो इन सब पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया अब आगे किया करना हैं।

राजेंद्र…करना क्या हैं? ये पुष्पा ही बता सकती है। पुष्पा जो चाहेगी मैं वहीं करुंगा।

सुरभि...इसका तो सीधा मतलब यहीं निकलता हैं आप हमारे बेटी के प्रेम को मंजूरी दे रहें हैं।

राजेंद्र…हमारी बेटी ने कोई जूर्म नहीं, प्रेम किया हैं मैं प्रेम का दुश्मन नहीं हूं जो मेरी बेटी और उसके प्रेम के बीच दीवार बनकर खड़ा रहूं। फिर ड्राइवर से बोला…कल हम जिस कॉलेज में गए थे उस कॉलेज में लेकर चलो।

ड्रावर…जी साहब।

सुरभि…हम कल वाली कॉलेज क्यों जा रहें हैं?

राजेंद्र…कॉलेज से कमला के घर का पता लेकर उसके घर जायेंगे और उसके मां बाप से रिश्ते की बात करेंगे।

सुरभि…अपको क्या लगाता हैं? वो लोग रिश्ते के लिए राजी हो जाएंगे।

राजेंद्र…हमे लड़की पसंद हैं ये सूचना उन तक पहुंचना हमारा काम हैं। राजी होना न होना ये तो उनका फैसला होगा।

बातो बातों में कॉलेज आ गया। दोनों उतरकर प्रिंसिपल के ऑफिस कि ओर चल दिया। बाहर खड़ा पिओन दोनों को देखकर तुरंत दरवजा खोलकर बोला…सर कल के मुख्य अथिति आए हैं आप कहें तो उन्हें अंदर भेजूं।

ये सुन प्रिंसिपल बाहर आय। दरवाज़े पर किसी को न देख पिओन से पूछता तभी उससे सामने से राजेंद्र और सुरभि आते हुए दिखाई दिया। प्रिंसिपल जल्दी से दोनों के पास गए फ़िर हाथ जोड़कर दोनों को प्रणाम किया। राजेंद्र और सुरभि भी प्रिंसिपल को प्रणाम किया फिर प्रिंसिपल के साथ चल दिया, अंदर आने से पहले प्रिंसिपल पिओन को चाय लाने को बोल दिया ओर अंदर आ गए। प्रिंसिपल सुरभि और राजेंद्र को बैठने को कहा, दोनों के बैठते ही प्रिंसिपल बोला...राजा जी आपके आने का करण जान सकता हूं।

राजेंद्र…हम कुछ जरुरी काम से आए हैं। जिसमे आप ही हमारी मदद कर सकते हैं।

प्रिंसिपल…आप बताइए मेरे बस में हुआ तो मैं बेशक आप'की मदद करूंगा।

राजेंद्र…कल जिस लडक़ी ने आर्ट में प्रथम पुरस्कार विजेता बनी थीं। मुझे उस लडक़ी कमला के घर का पाता चाहिए उसके मां बाप से मिलना हैं।

प्रिंसिपल…ओ तो आप'को कमला के घर का पाता चाहिएं मैं अभी कमला को बुलाता हूं। वो खुद ही आप'को अपने घर लेकर जाएगी। फिर पिओन को बुलाकर बोला…कमला को बुलाकर लाओ।

पिओन कमला को बुलाकर लाया कमला बाहर से ही पूछा…सर मैं अंदर आ सकती हूं।

प्रिंसिपल के कहने पर कमला अंदर आ गई। राजेंद्र और सुरभि को देखकर दोनों को प्रणाम किया फिर प्रिंसिपल से पूछा…सर अपने मुझे बुलवा भेजा था कुछ जरुरी काम था।

प्रिंसिपल राजेंद्र की ओर इशारा करते हुए बोला…कमला इन्हे तो तुम जानती ही हों। इन्हें तुम्हारे घर जाना हैं इसलिए तुम इन्हें अपने घर ले'कर जाओ।

कमला…सर ये तो कल के मुख्य अथिति हैं। मैं इन्हें मेरे घर लेकर जा सकता हूं लेकिन मेरा क्लास चल रहा हैं।

प्रिंसिपल…कमला ज्यादा समय नहीं लगेगा तुम इन्हें अपने घर पहुंचाकर आ जाना फिर क्लास कर लेना।

कमला…जी सर फिर राजेंद्र से बोला…चलिए सर और मैडम।

राजेंद्र प्रिंसिपल से फिर मिलने को बोलकर कमला के साथ चल दिया। कार के पास आ'कर राजेंद्र आगे बैठ गया और सुरभि के साथ कमला पीछे बैठ गई। ड्राइवर कमला के बताए दिशा में कार चला दिया। सुरभि कमला से उसके बारे में बहुत सी जानकारी लेती रहीं। कमला किस क्षेत्र की पढ़ाई कर रहीं हैं उसके घर में कौन-कौन हैं। ऐसे ही बाते करते हुए कमला का घर आ गया। कमला के कहने पर ड्राइवर कार को अंदर ले गया। कार से उतरकर कमला दरवाज़े पर लटक रहीं घंटी को बजाया। कुछ देर में कमला की मां ने दरवजा खोला ओर कमला को देखकर बोली…कमला तू इस वक्त, यह क्या कर रहीं हैं। तेरी स्वस्थ खराब हों गई जो तू इस वक्त घर आ गईं।

कमला…मां मैं ठीक हूं। सुरभि और राजेंद्र को दिखते हुए बोली….इन्हें हमारे घर आना था इसलिए इन्हें लेकर आई हूं।

राजेंद्र और सुरभि को देखकर मनोरमा दोनों को प्रणाम किया फिर सभी अंदर गए, अंदर आ'कर राजेंद्र और सुरभि बैठ गए ओर कमला किचन में गई पानी ला'कर दोनों को दिया फिर बोली…मां आप लोग बात करों मैं कॉलेज जा रहीं हूं।

मनोरमा...ठीक हैं संभाल कर जाना।

सुरभि…बेटी रुको।

सुरभि कमला को ले'कर बाहर गई ओर ड्राइवर को बोली…जग्गू तुम इनको कॉलेज छोड़ कर आओ।

कमला…मैं चली जाऊंगी। इनको परेशान होने की जरुरत नहीं हैं।

सुरभि...बेटी चली तो जाओगी लेकिन जाने में आप'को देर हों जायेगी। इसलिए आप उसके साथ जाओ जल्दी कॉलेज पहुंच जाओगी।

कमला सिर हिलाकर हां बोल कार में बैठ कर कॉलेज को चल दिया। सुरभि अंदर गई फिर बोली...बहुत प्यारी बच्ची हैं।

मनोरमा…जी हां। आप दोनों कल मुख्य अथिति बनकर आए थे न।

सुरभि...जी हां।

मनोरमा…आप मुझे कुछ वक्त दीजिए मैं आप के लिए चाय नाश्ते की व्यवस्था करके लाती हूं फ़िर बात करेंगे।

सुरभि…रहने दीजिए हम अभी चाय नाश्ता करके आए हैं।

मनोरमा…जी नहीं आप दोनों पहली बार हमारे घर आए हैं मैं आप'की एक भी नहीं सुनने वाली आप दोनों बैठिए मैं अभी आई।

मनोरमा ये कहकर किचन की ओर चल दिया। सुरभि रोकना चाहा पर मनोरमा नहीं रूकी तब सुरभि भी उठाकर किचन की ओर चल दिया। सुरभि को किचन में आया देख मनोरमा बोली…आप क्यो आ गई? आप जा'कर बैठिए मैं अभी चाय बनाकर लाती हूं।

सुरभि…जब अपने मेरी नहीं सुनी तो मैं आप'की क्यों सुनूं । दोनों मिलकर काम करेंगे तो चाय जल्दी बन जायेगा।

मनोरमा…जी बिलकुल नहीं आप मेरे मेहमान हैं और मेहमानों से कम नहीं करवाया जाता।

सुरभि आगे कुछ नहीं बोली बस मुस्कुरा दिया फिर मनोरमा चाय बनाने लग गई। चाय बनते ही तीन काफ में चाय डाला और कुछ नमकीन एक प्लेट में डालकर चाय का काफ एक प्लेट में रखकर उठा लिया, सुरभि नमकीन की प्लेट उठा लिया फिर दोनों आ'कर चाय और नमकीन रखकर बैठ गए। मनोरमा एक काफ उठा कर राजेंद्र को, एक काफ सुरभि को और एक काफ ख़ुद लिया फ़िर चाय पीते हुए सुरभि बोली….बहन जी आप'के पति कहा हैं।

मनोरमा…जी वो तो ऑफिस गए हैं।

सुरभि…बहनजी हम आप'से कुछ मांगने आए हैं क्या आप हमारी मांगे पुरी कर सकते हों।

मनोरमा...मैं आप'को क्या दे सकती हूं। आप तो राज परिवार से ताल्लुक रखते हों। आप'को किस चीज की कमी है जो आप मुझ'से मांग रहीं हों।

सुरभि…हम राज परिवार से हैं तो किया हुआ। राज परिवार हों या सामान्य परिवार से हों उनको कभी न कभी दूसरो के सामने हाथ फैलाकर मांगना ही पड़ता हैं। क्योंकि उनके परिवार में जिस शख्स की कमी होती हैं उसे दूसरे परिवार से मांगकर ही भरा जा सकता हैं।

मनोरमा…आप'के परिवार की कमी को पूर्ति करने के लिए आप मुझ'से मांग कर रही हो। बोलिए आप किया मांगना चहते हैं। मेरी क्षमता में हुआ तो मैं जरूर आप'की मांग पूरा करूंगा। ये तो मेरा सौभाग्य होगा। राज परिवार से मेरे पास कुछ मांगने आया और मैं उनका मांग पूरा कर पाया।

सुरभि…जी हम आप'के सुपुत्री का हाथ हमारे सुपुत्र रघु प्रताप राना के लिए मांगने आए हैं। क्या आप हमारी इस मांग को पूरा कर सकती हो?

मनोरमा चाय पीते पीते रूक गई और अचंभित हो'कर देखने लग गईं मनोरमा को यकीन ही नहीं हों रहा था राज परिवार जिनके सामने वो निम्न है फिर भी कितने विनम्र भाव से उनके बेटी का हाथ मांग रहे हैं। मनोरमा को ऐसे देखते देखकर राजेंद्र बोला…आप हमे ऐसे क्यों देख रहे हों सुरभि ने कुछ गलत बोल दिया हैं तो आप हमे माफ कर दीजिएगा।

मनरोमा…नहीं नहीं इन्होंने कुछ गलत नहीं बोला। मेरे घर एक बेटी ने जन्म लिया हैं तो कभी न कभी उसका हाथ मांगने कोई न कोई आएगा। हम आप'के राजशाही ठाठ बांट के आगे सामान्य परिवार है फिर भी आप मेरी बेटी का हाथ मांगने आए इसलिए मैं अचंभित हों गया।

राजेंद्र…राजशाही ठाठ बांट हैं तो क्या हुआ हमे आप'की बेटी पसंद आया इसलिए हम आप'की बेटी का हाथ मांगने आ गए। आप साधारण परिवार से हैं या असाधारण हमे उससे कोई लेना देना नहीं हैं।

मनोरमा…आप का कहना सही हैं लेकिन मैं अकेले फैसला नहीं ले सकती मेरा पति होता तो ही कुछ कह पाता।

सुरभि…हम आप'से सिर्फ अपनी बात कहने आए थे अगर आप कहें तो हम कल फिर आ जायेंगे।

मनोरमा…मैं कल कमला के पापा को रुकने को कह दूंगी आप कल फिर आ जाना तब बात आगे बढ़ाएंगे।

राजेंद्र…ये ठीक रहेगा। मैं भी रघु को यह बुला लेता हु आप भी रघु को देख लेना। रघु और कमला भी एक दूसरे को देख लेंगे, अगर दोनों की हा हुआ और आप'को रघु पसंद आया तो ही हम बात आगे बढ़ाएंगे।

मनोरमा…हां ये ठीक रहेगा। हमारी पसंद, नापसंद मायने नहीं रखता जिन्हें ज़िंदगी भर साथ रहना हैं उनकी पसंद न पसंद मायने रखता हैं।

राजेंद्र…तो ये तय रहा कल हम हमारे बेटे के साथ आयेगे।

इसके बाद दोनों मनोरमा से विदा ले'कर चल दिया। घर आ'कर राजेंद्र ऑफिस में फोन लगा रघु को आज ही कलकत्ता आने को कहा तो रघु आने का कारण जानना चाहा तो राजेंद्र सच न बताकर जरूरी काम का बहाना बना दिया और अभी के अभी चल देने को कहा। रघु फोन रखकर मुंशी के पास गया ओर बोला...काका मैं कलक्तता जा रहा हू कुछ जरुरी काम से पापा बुला रहे हैं।

इतना कह रघु घर पंहुचा फिर तैयार हो'कर नीचे आया। रघु को देख सुकन्या बोली... बेटा अभी तो ऑफिस से आए हों फ़िर कहा चल दिया।

रघु...छोटी मां पापा का फ़ोन आया था। जरूरी काम से कलकत्ता बुला रहे हैं। इसलिए कलकत्ता जा रहा हूं।

सुकन्या...अकेले मत जाना साथ में ड्राइवर को लेकर जाना ओर हां वह पहुंचकर फोन कर देना।

रघु... छोटी मां मैं बच्चा नहीं हूं जो अकेले नहीं जा सकता।

सुकन्या... जितना कहा उतना कर नहीं तो मैं कलक्तता फ़ोन कर कह दूंगी रघु को नहीं भेज रहीं हूं।

रघु...ठीक हैं छोटी मां अपने जैसा कहा वैसा ही करूंगा अब तो आप खुश हों ना!

सुकन्या... हां खुश हूं ओर सुन ड्राइवर को कहना कार ज्यादा तेज न चलाए आराम आराम से जाना।

रघु...ठीक हैं छोटी मां अब मैं जाऊ।

इतना कह रघु चल दिया। इधर पुष्पा किसी तरह कॉलेज में अपना समय काट रहीं थी। सुबह की घटना से दिल दिमाग में खलबली मची हुई थी। कॉलेज की छुट्टी होने पर आशीष... पुष्पा चलो तुम्हें घर छोड़ देता हूं

पुष्पा...रहने दो अशीष मैं चली जाऊंगी।

अशीष...ज्यादा बाते न बनाओ चुप चाप कार में बैठो।

पुष्पा के बैठते ही दोनों चल दिया। पुष्पा गुमसुम बैठी थीं ये बात अशीष को खल रहा था तो अशीष बोला...पुष्पा क्या हुआ? आज इतने खामोश क्यों बैठी हों? कॉलेज में भी गुमसुम रही ओर अब भी, सुबह की घटना को लेकर इतना परेशान क्यों हों रही हों? जो हुआ अच्छा ही हुए।

पुष्पा...तुम्हारे लिए अच्छा हुआ लेकिन मेरे लिए तो बुरा हुआ न, पापा कभी मुझसे इतनी बेरूखी से बात नहीं करते लेकिन आज किया सिर्फ बात ही नहीं किया बल्की गुस्सा भी हों गए। अशीष मुझे डर लग रहा हैं घर जानें पर न जानें कितनी बाते सुनना पड़ेगा।

आशीष…उनका बेरूखी से बात करना स्वाभाविक हैं। सभी मां बाप अपने बेटी को ले'कर चिंतित रहते हैं। क्योंकि दुनिया में सब से पहले उंगली लडक़ी पर उठाया जाता हैं चाहें गलत कोई भी हों ओर हम'ने प्यार किया है हम पर तो उंगली उठेगा ही।

पुष्पा…मुझे इसी बात का ही डर हैं। दुनिया मुझ पर उंगली उठाए मैं सह लूंगी। लेकिन मेरे मां बाप मुझे गलत समझे मैं सह नहीं पाऊंगी। हम दोनों के बारे में उन्हें पहले ही बता देना चाहिए था। बता दिया होता तो आज ऐसा न होता। आशीष मुझे घर नहीं जाना तुम मुझे कही ओर ले चलो मैं उनका सामना नहीं कर पाऊंगी।

आशीष...बबली हो गई हो जो कुछ भी बोले जा रही हो घर नहीं तो ओर कहा जाओगी। तुम घर जाओ, तुम कहो तो मैं भी चलता हूं मैं खुद उनसे बात करूंगा।

पुष्पा…खुद मेरे मां बाप से बात करने से डरते हों ओर कह रहे हों मैं बात करूंगा।

आशीष…पहले डर लगता था अब नही, सुबह ससुरा को जो बोला उसके बाद तो मेरा छीना चौड़ा हों गया हैं। तुम घर जाओ बात ज्यादा बढ़े तो मुझे बता देना मैं मम्मी पापा को कल ही तुम्हारे मां बाप से बात करने भेज दूंगा।

पुष्पा...आशीष फिर भी मुझे डर लग रहा हैं। चलो मुझे घर छोड़ दो जो होगा देखा जाएगा।

आशीष कार चलते हुए बोला…जो भी बात हों मुझे बता देना।

घर से थोड़ी दूर पुष्पा ने कार रुकवा दिया कार रुकते ही पुष्पा उतर गई फिर बोली...अशीष अब तुम जाओ मैं यहां से पैदल घर चली जाऊंगी।

अशीष... ठीक हैं जाओ ओर जो भी बात हो मुझे याद से बता देना।

पुष्पा... ओके बाय कल मिलते है।

अशीष...बाय muhaaa!

पुष्पा धीरे धीर चलते हुए जा रहीं थीं। जैसे जैसे घर नजदीक आता जा रहा था वैसे वैसे पुष्पा बेचैन होती जा रही थीं और मन ही मन दुआं कर रही थीं मां बाप का सामना न करना पड़े। दुआं करते हुए पुष्पा घर पहुंच गई फिर डरते डरते दरवाजे पर टंगी घंटी बजा दिया ओर आंखें बंद कर खड़ी हों गईं। चंपा आ'कर दरवजा खोला फिर बोला…मेम साहब आप आ गई अंदर आइए ऐसे आंखे बंद किए क्यों खड़ी हों।

चंपा की आवाज सुनकर पुष्पा आंखे खोल दिया और बनावटी मुस्कान लवों पर सजा अंदर आ गई फ़िर बोली…मां पापा कहा हैं।

चंपा…जी वो तो विश्राम कर रहे हैं आप कहो तो उन्हे जगा दूं।

पुष्पा…नहीं उन्हें जगाने की जरूरत नहीं हैं।

चंपा…ठीक हैं। आप हाथ मुंह धो लो मैं खाना लगा देती हूं।

पुष्पा…मुझे अभी भूख नहीं हैं तुम जा'कर रेस्ट करों जब भूख लगेगी बता दूंगी।

पुष्पा कमरे में जा'कर लेट गई। बेड पर करवटे बदल बदल कर, आगे क्या होगा सोच सोचकर घबरा रही थी। ज्यादा सोचने से मानसिक थकान के कारण पुष्पा कुछ देर में सो गई।

शाम को सुरभि और राजेंद्र उठाकर हाथ मुंह धोया फिर रूम से बाहर आ बैठक में बैठ गई।

सुरभि...चंपा चाय ले'कर आना।

"अभी लाई" बोल कुछ देर में चंपा चाय ला'कर दोनों को दिया। चाय ले'कर सुरभि बोली...पुष्पा आ गई है।

चंपा…रानी मां पुष्पा मेम साहब आ गई हैं लेकिन उन्होंने अभी तक खाना नहीं खाया।

सुरभि... कब की आई हुई है ओर अभी तक खाना नहीं खाई, तुम पहले नहीं बता सकती थी। जाओ कुछ खाने को लाओ मैं जा'कर देखती हू।

राजेंद्र…सुरभि मुझे लग रहा हैं पुष्पा सुबह की बातों से परेशान हों गई होगी जल्दी चलो मुझे डर लग रहा हैं। कहीं कुछ कर न बैठी हों।

सुरभि...आप'को कहा था आप कुछ ज्यादा बोल दिए हों लेकिन आप सुने नहीं, मेरी लाडली को कुछ हुआ तो देख लेना अच्छा नहीं होगा।

दोनों जल्दी से पुष्पा के कमरे में गए, दरवजा बंद देखकर सुरभि दरवजा पीटने लग गई और आवाज देने लग गई पर दरवजा नहीं खुला तो सुरभि रोते हुए बोली…देखो न दरवजा नहीं खोल रहीं है आप जल्दी से कुछ कीजिए न कहीं पुष्पा ने कुछ कर न लिया हों।

सुरभि को हटाकर राजेंद्र जोर जोर से दरवजा पीटने लग गया साथ ही आवाजे देने लग गया। शोरशराबे के करण पुष्पा की नींद टूट गया, आंखे मलते हुए पुष्पा उठकर बैठ गई तभी उसे फिर से आवाज सुनाई दिया आवाज सुनकर पुष्पा मन ही मन बोली…न जानें अब किया होगा हे भगवान बचा लेना मां पापा का सामना कैसे करूंगी? उन्हें क्या जवाब दूंगी?

सुरभि रोते हुए बोली…कितनी देर ओर दरवाजा पीटेंगे दरवाजा तोड़ दीजिए न!

दरवजा तोड़ने और सुरभि के रोने की आवाज़ सुनकर पुष्पा मन ही मन बोली...मां रो क्यों रहीं हैं? पापा को दरवजा तोड़ने को क्यो कह रहीं?

इतना बोल पुष्पा जा'कर दरवाज़ा खोल दिया। दरवजा खोलते ही सुरभि अंदर आ'कर पुष्पा को गाले से लगकर बोली…तू ठीक तो हैं न, ओ जी आप जल्दी से डॉक्टर को फोन करों।

पुष्पा…मां मैं ठीक हू डॉक्टर को फोन करने की जरूरत नहीं हैं।

पुष्पा को घुमा फिराकर देखा फिर मूंह के पास नाक ले जा'कर सूंघा ओर सुरभि बोली…तूने कुछ पिया बिया तो नहीं न, देख मुझे सच सच बता दे।

पुष्पा…न मैंने कुछ खाया हैं न कुछ पिया हैं आप ये क्यों पुछ रहें हों?

राजेंद्र पुष्पा को ले जा'कर बेड पर बिठा दिया फिर खुद भी बैठ गया। साथ के साथ सुरभि भी जा'कर पुष्पा के दूसरे तरफ बैठ गई फ़िर पुष्पा के सिर पर हाथ फिराने लग गई ओर राजेंद्र बोला…भूल कर भी ऐसा वैसा कुछ करने के बारे में न सोचना तुम्हें कुछ हुआ तो मेरा और तुम्हारी मां का क्या होगा सोचो जरा, तुमने दरवजा खोलने में देर लगाई उतने वक्त में न जानें मैने और तुम्हारे मां ने किया से किया सोच लिया देखो अपनी मां को कुछ ही वक्त में अपना हल रो रो कर कैसा बना लिया।

पुष्पा ने सुरभि की और गैर से देखा सुरभि की आंखो से नीर बह रहीं थीं। सुरभि के बहते अंशु को पोछकर पुष्पा बोली….मां पापा मुझे माफ कर देना अपने मुझे यह पढ़ने के लिए भेजा ओर मैं यह पढ़ने के साथ साथ कुछ ओर कर बैठी।

सुरभि पुष्पा को छीने से चिपका लिया ओर बोली…तुम दोनों के बीच ये सब कब से चल रहा हैं और लड़के का नाम किया हैं।

पुष्पा अलग होकर सुरभि की आंखो में देखकर समझने की कोशिश करने लग गई, सुरभि डाट रहीं हैं या पुछ रहीं हैं। फिर नजरे झुकाकर बैठ गई और पैर की उंगली से फर्श को कुरेदने लग गई। पुष्पा शर्मा भी रहीं थीं और बताने से डर भी रहीं थीं। ये देख राजेंद्र बोला...बेटी डरने की जरूरत नहीं हैं हम तुम'से नाराज नहीं हैं अब बताओ कब से चल रहा हैं।

पुष्पा कुछ नहीं बोली बस चुप चाप बैठे बैठे हाथ की उंगलियों को मढोरने लग गईं। ये देखकर राजेंद्र मुस्कुरा दिया फ़िर बोला…पुष्पा हम तो सोच रहें थे तुम'से लड़के का आता पता ले'कर उसके घर वालो से मिलकर तुम्हारे शादी की बात करूंगा लेकिन तुम नहीं चहती हों तो हम कोई दूसरा लड़का ढूंढ लेंगे।

"मैं आशीष से बहुत प्यार करती हूं। शादी करूंगी तो आशीष से, नहीं तो किसी से नहीं!" बोलने को तो बोल दिया। जब ख्याल आया क्या बोला दिया तो शर्मा कर हाथो से चेहरा छुपा लिया। बेटी को शर्माते देख राजेंद्र और सुरभि मुस्कुरा दिया फिर राजेंद्र बोला...Oooo Hooo इतना प्यार, तो आगे की भी बता दो कब से चल रहा हैं।

पापा की बाते सून पुष्पा इतना शर्मा गई कि उठकर जानें लगीं तब सुरभि हाथ पकड़ लिया तो पुष्पा शर्मा कर मां से लिपट गई फिर सुरभि बोली...अब शर्माने से कोई फायदा नहीं, हम जो पुछ रहे हैं बता दो नहीं तो हम सच में दूसरा लड़का ढूंढ लेंगे।

पुष्पा नजरे उठाकर सुरभि को देखा फ़िर नज़रे झुका कर बोली…मां आप दोनों मुझ'से नाराज़ तो नहीं हों। आप सच कह रहे हों मेरी शादी आशीष से करवा देंगे।

सुरभि…हां! तुम उससे प्यार करती हों तो हम तुम्हारी शादी उससे ही करवा देंगे हमे हमारी बेटी की खुशियां प्यारी हैं। लड़के का नाम तो बता दिया अब ये भी बता दो कब से तुम दोनों का प्रेम प्रसंग चल रहा हैं। लड़के के घर में कौन-कौन हैं और उसके घर वाले क्या करते हैं?

पुष्पा…आशीष और मेरा प्रेम प्रसंग पिछले चार साल से चल चल रहा हैं। हम दोनों एक दूसरे से बहुत प्यार करते हैं। आशीष मेरे साथ ही mba कर रहा हैं। उसके घर में मां बाप एक बहन बडा भाई और भाभी हैं। उनका अपना कारोबार हैं। जिसे आशीष के बड़े भाई और उसके पापा संभालते हैं। लेकिन आशीष का अपने कारोबार में कोई रुचि नहीं हैं वो ips ऑफिसर बना चाहता हैं। तैयारी भी पूरा हो चुका हैं दो महीने बाद पेपर हैं।

राजेंद्र…आशीष ips ऑफिसर बनकर देश सेवा करना चाहता हैं। ये तो अच्छी बात हैं। तुम आशीष को फोन कर बता दो हम उससे और उसके मां बाप से मिलना चाहते हैं। आशीष मां बाप को साथ लेकर कल शाम को हमारे घर आ जाए।

पुष्पा…ठीक हैं पापा मैं बोल दूंगी।

सुरभि…अब जल्दी से हाथ मुंह धोकर निचे आओ और कुछ खा पी लो।

सुरभि और राजेंद्र के जाने के बाद पुष्पा हाथ मुंह धोकर कमरे में रखे टेलीफोन से फोन लगा दिया फ़ोन उठते ही पुष्पा बोली...आशीष मां पापा मुझ'से नाराज नहीं हैं।

अशीष...Oooo thank god मेरा तो सोच सोच कर भूख ही मर गया था।

पुष्पा...भूखा ही रहना कल शाम के खाने पर तुम्हें और मम्मी पापा को बुलाया हैं।

अशीष...Oooo nooo एक बार फिर से तुम्हारे हाथ का जला हुआ खाना ही ही ही..।

पुष्पा…क्या बोला मैं जला हुआ खाना बनाती हूं। आओ इस बार पक्का तुम्हें जला हुआ खाना दूंगी।

अशीष...आरे नाराज़ क्यों होती हों जानेमान मैं तो मजाक कर रहा था।

पुष्पा...मैं भी मजाक कर रही थीं मैं रखती हूं कल टाइम से आ जाना।

दोनों एक दूसरे को बाय बोल कॉल डिस्कनेक्ट कर दिया फिर पुष्पा नीचे आ'कर मां बाप के साथ चाय नाश्ता किया फ़िर बातों में लग गई।

ऐसे ही बातों बातों में रात हों गया। रघु अभी तक नहीं पहुंचा था इसलिए दोनों चिंतित हो रहे थें। घर के बहार एक कार आ'कर रुका, सुरभि और राजेंद्र राजेंद्र तुरंत उठे ओर बहार को चल दिया। मां बाप को देख रघु दोनों के पैर छुआ फ़िर हल चाल पूछा ओर साथ में अन्दर को चल दिया। अंदर आ'कर पुष्पा को न देखकर बोला…मां पुष्पा कहा हैं?

सुरभि... पुष्पा अभी अभी रुम में गई हैं….।

इतना सुन रघु उठा ओर बहन के रुम की ओर भाग गया। रघु भागते देखकर सुरभि और राजेंद्र मुस्करा दिया। रघु दरवाजे पर पहुंचकर दरवाजा खटखटाया पुष्पा दरवजा खोलकर रघु को देख चीख पड़ी फ़िर बोली…भईया आप कब आए और कैसे हों।

रघु…मैं ठीक हू। अभी अभी आया हु और सीधा तेरे पास आ गया। तू कैसी हैं।

पुष्पा…मैं ठीक हू घर पर सब कैसे हैं।

रघु…सब ठीक हैं तुझे बहुत याद करते हैं।

पुष्पा…मुझे कोई याद नहीं करते, याद करते होते तो मुझ'से मिलने आ जाते आप भी नहीं करते न ही अपने इकलौती बहन से प्यार करते हों।

रघु…किसने कहा मैं तूझ'से प्यार नहीं करता। तुझ'से प्यार नहीं करता तो आते ही तुझ'से मिलने क्यों आता।

पुष्पा…अच्छा अच्छा मानती हूॅं आप मुझ'से बहुत प्यार करते हों अब आप हाथ मुंह धो'कर आओ फिर बहुत सारी बाते करेंगे।

रघु एक कमरे में जा'कर हाथ मुंह धोकर आया फिर सभी के साथ बैठ गया और पुष्पा के साथ नोक झोंक शुरू कर दिया। पुष्पा शिकायतो की झड़ी लगा दिया फिर रूठकर बैठ गई बहन को रूठा देख रघु तरह तरह के लालच देकर माना लिया। ऐसे ही दोनों भाई बहन में रूठने मनाने का दौर चलता रहा ओर मां बाप दोनों भाई बहन के प्यार भरी नोक झोंक देख मंद मंद मुस्कुरा रहे थें। बहन से कुछ वक्त तक बात करने के बाद रघु राजेंद्र से पूछा…पापा इतना क्या जरूर काम था जो अपने मुझे आज ही और जल्दी जल्दी बुला लिया कितना काम पड़ा हैं।

सुरभि…ऑफिस जाना शूरू किए जुम्मा जुम्मा दो दिन नहीं हुआ और काम काम राग अलापने लग गया।

ये सुनकर सभी हंस दिए फिर राजेंद्र बोला…जरूरी काम हैं इसलिए बुलाया, कल हमे कहीं जाना हैं। पुष्पा तुम भी कल कॉलेज मत जाना तुम भी हमारे साथ चलोगी।

रघु और पुष्पा एक साथ बोले…कह जाना हैं।

सुरभि…कल तक वेट करों फिर जान जाओगे।

पुष्पा...मां आप मेरी अच्छी मां हों न, बोलों हों न!

सुरभि...तू कितना भी मस्का लगा ले मैं नहीं बताने वाली।

पुष्पा...आप'से पुछ कौन रहा हैं? Papaaa...।

राजेंद्र... न न महारानी जी मैं भी नहीं बताने वाल।

पुष्पा... भईया सभी रास्ते बंद हों गए अब क्या करूं।

रघु...रात भार की बात हैं। किसी तरह रात कांट लेते हैं सुबह पाता चल जायेगा।

पुष्पा...हां सही कह रहो हों इसके आलावा कोई ओर रस्ता नहीं हैं।


आज के लिए इतना ही आगे की कहानी अगले अपडेट से जानेंगे, यहां तक साथ बाने रहने के लिए सभी पाठकों को बहुत बहुत धन्यवाद।

🙏🙏🙏🙏🙏
 
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Bull Wit

सुनो ना, हमारी ख्वाइश पूरी करो ना
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Ek pal ke liye lage ki wo painting nahin Koi kahani ki kirdaar ho, jo kadi dhup mein khet mein kaam kar rahi thi...
well ye to kahanikaar ka jaadu hai jo itne badhiya tarike se is mudde ko shabdon mein rupantarit kiye hain...

Wo painting aisi jaise jivant ho usme akrit mahila aur uska bacha..jise dekh rajendra aur surbhi bhi manmugdh ho gaye... btw todu fadu girl kamla to multi talented nikli.... waha sabhi uski dwaara banayi gayi painting ko tarif kar rahe the even first prize bhi usine jeeti....

so kamla ka mridu saral vyavhaar dekh as a bahu pasand kar liya rajendra aur surbhi ne...
udhar pushpa zidd par Kuch din Uske paas rehne wala hai rajendra aur surbhi.. ishi bich kamla ke ghar bhi jaane wale hai rishta leke...

dusri taraf dalaal Aur ravan ke sadyantra jaari hai.... planning ke mutabik dono milke dalaal ki beti ko raghu ke gale mein baandhe ne firak mein hain taaki Khud safe rah sake agar in future fanshe bhi to.. upar se beti ke jariye puri property hathiya lenge so alag... Kitne kamine log hai....
BTW wo haram ka jana harami Aapshyu is update mein gayab raha... :D

Khair......
Shaandaar update, shaandaar lekhni, shaandaar shabdon ka chayan... sath hi dilkash kirdaaro ki bhumika bhi..

Let's see what happens next
Brilliant update with awesome writing skills :applause: :applause:

Superb updatee


Chalo koi toh aaya Raavan ke khilaf awaaz uthane. Par kahi yeh awaaz bhi humesh ke liye dabb naa jayee.

Udher Pushpa bhi college ke rang mein rangi hui hai. Ashish naam ke ladke se pyaar karti hai. Par kismat se pyaar 2 tarfa hi hai. Par kahi Ashish koi kamina insaan toh nhi jo sirf paiso ke liye pyaar karta ho.

Dekhte hai aage kyaa hota hai

Awesome update.but story k heroine abhi tak nehni mili.

Nice and superb update...

Fantastic update

Bahot behtareen zaberdast
Shaandaar update bhai

बहुत ही बेहतरीन महोदय।

राजेन्द्र जी की परेशानी का कारण स्वाभाविक है क्योंकि उनका बेटा रघु बहुत ही सीधा है कोई भी उसे आसानी से बरगला सकता है और अभी फिलहाल उसकी शादी के लिए जिस लड़की को भी देखते हैं उसका रिश्ता किसी न किसी वजह से टूट रहा है।।
अगला अपडेट पोस्ट कर दिया हैं।
 

Bull Wit

सुनो ना, हमारी ख्वाइश पूरी करो ना
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बहुत ही बेहतरीन कहानी महोदय।

सुरभि सही कह रही जी। कोई भी काम करो और किए पर भी भरोशा करो तो वो बैंड आंखों से नहीं बल्कि अपनी नजर चौकन्नी रखना जरूरी है। वो भी तब जब इतनी गहरी साजिश रची जा रही है। रघु के लिए आया हर रिश्ता किसी न किसी वजह से टूट का रहा है तो शक सभी पर कर आ चाहिए और उसकी तह तक पहुचना चाहिए।।

राजेन्द्र का वकील दलाल भी रावण का दोस्त निकला तो वो उसी का साथ देगा। स्त्री की यही कमी होती है कि उसके पेट में कोई बात पचती ही नहीं है सुकन्या के पेट मे गुड़गुड़ मची हुई है कि कब वो सारी बातें रावण से करें। रावण के मुंह से इतना बड़ा राज खुलने के बाद सुकन्या का लालच और भी ज्यादा बढ़ गया है। वो उसे किस मुकाम पर ले जाता है।।
शुक्रिया माही जी

स्त्री की बातों को न पचा पाने वाली आदत कभी कभी फायदे का सौदा साबित होता हैं। रावण के साथ भी ऐसा ही हुआ रावण पहले से ही साजिश रचने में सावधानी बरत रहा था अब तो और भी सतर्क होकर साजिश रचेगा।
 

Bull Wit

सुनो ना, हमारी ख्वाइश पूरी करो ना
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बहुत ही बेहतरीन महोदय।

राजेन्द्र जी की परेशानी का कारण स्वाभाविक है क्योंकि उनका बेटा रघु बहुत ही सीधा है कोई भी उसे आसानी से बरगला सकता है और अभी फिलहाल उसकी शादी के लिए जिस लड़की को भी देखते हैं उसका रिश्ता किसी न किसी वजह से टूट रहा है।।
शुक्रिया माही जी

यह तो सभी मां बाप की परेशानी हैं। जिनका बेटा गुणवान हो सीधा और सच्चा हों फिर भी लोग उनके पीछे उनकी लेने में लगे रहते हैं।
 

Sauravb

Victory 💯
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Update - 12


जाते हुए सुरभि राजेन्द्र से बोलती हैं….. आपने उन दोनों पर कुछ ज्यादा ही कड़ा तेवर दिखा दिया। अपने देखा न पुष्पा की रोने जैसी सूरत हों गई थीं।

राजेन्द्र….. सुरभि मुझे अपना तेवर कड़ा करना पडा मैं ऐसा नहीं करता तो उस लड़के को कैसे परखता जो हमारे बेटी से प्यार करता हैं।

सुरभि….. लड़के को परखना ही था तो आज ही करना जरूरी थोड़ी था आप बाद में भी तो परख सकते थें। आज प्यार से दोनों के राय जान लेते।

राजेंद्र….. बाद में परखते तो शायद लड़का दिखावा करता लेकिन आज अचानक ऐसा करने से लड़के को मौका ही नहीं मिला और उसने वही किया जो उसके दिल ने कहा। उसके अंदर छुपे प्यार जो वो हमारे बेटी से करता हैं, करने पर मजबूर किया।

सुरभि…. आप तो अंतर यामी हों जो बिना कहे ही उसके मन की बातों को जान लिए।

राजेंद्र….. इसमें अंतरयामी होने की जरूरत ही नहीं वह जो कुछ भी हुआ प्रत्यक्ष दिख रहा था। तुमने गौर नहीं किया लेकिन मैं दोनों के हाव भव को गौर से देख रहा था।

सुरभि…… क्या देखा अपने जरा मुझे भी तो बताईए।

राजेंद्र….. सबसे पहले तो जब हम अचानक उनके सामने गए। तब लड़के के प्यार में कोई खोट होता तो हमे देखकर भाग जाता लेकिन भागा नहीं खड़ा रहा सर्फ खड़ा ही नहीं रहा पुष्पा का हाथ पकड़े रहा जो यह दर्शाता हैं। परिस्थिती कैसी भी हो वो पुष्पा का हाथ कभी नहीं छोड़ेगा।

सुरभि….. मैं तो इन सब पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया अब आगे किया करना हैं।

राजेंद्र…... करना किया हैं यह तो पुष्पा ही बताएगी। पुष्पा जो चाहेगी मैं वह ही करुंगा।

सुरभि…. इसका तो सीधा मतलब यहीं निकलता हैं आप हमारे बेटी के प्रेम को मंजूरी दे रहें हैं।

राजेंद्र…… हमारी बेटी ने प्रेम किया हैं कोई जूर्म नहीं, मैं प्रेम का दुश्मन नहीं हूं जो मेरी बेटी और उसके प्रेम के बीच दीवार बनकर खड़ा रहूं। फिर ड्राइवर से बोलता हैं… कल हम जिस कॉलेज में गए थे उस कॉलेज में लेकर चलो।

ड्रावर…… जी साहब।

सुरभि….. हम कल वाली कॉलेज क्यों जा रहें हैं।

राजेंद्र….. कॉलेज से उस लडक़ी कमला के घर का पता लेकर उसके घर जायेंगे और उसके मां बाप से रिश्ते की बात करेंगे।

सुरभि…… अपको क्या लगाता हैं वो लोग रिश्ते के लिए राजी होंगे।

राजेंद्र…….. हमे लड़की पसंद हैं यह खबर उन तक पहुंचना हमारा काम हैं। राजी होना न होना यह तो उनका फैसला हैं।

बातो बातों में कॉलेज आ जाता हैं। दोनों उतरकर कॉलेज के अंदर जाते हैं। वह से सीधा प्रिंसिपल के ऑफिस जाते हैं। बाहर खड़ा पिओन उन्हें देखकर तुरंत दरवजा खोलकर बोलता हैं…. सर कल के मुख्य अथिति आए हैं आप कहें तो उन्हें अंदर भेजूं।

सुनाकर प्रिंसिपल बाहर आता हैं। दरवाज़े पर किसी को न देखकर पिओन से पूछता तभी उससे सामने से राजेंद्र और सुरभि आते हुए दिखाई देता हैं। प्रिंसिपल सिघ्रता से उनके पास जाता हैं और हाथ जोड़कर दोनों को प्रणाम करता हैं। राजेंद्र और सुरभि भी उन्हें प्रणाम करते हैं। फिर इनके साथ चल देते हैं। अंदर आने से पहले प्रिंसिपल पिओन को चाय लाने को कहता हैं। पिओन चाय लेने चल देता हैं। अंदर आकर प्रिंसिपल, सुरभि और राजेंद्र को बैठने को कहता हैं। उनके बैठने के बाद खुद भी बैठ जाता हैं और कहता हैं……. राजा जी आपके आने का करण जान सकता हूं।

राजेंद्र….. हम कुछ विशेष काम से आए हैं। जिसमे आप ही हमारी मदद कर सकते हैं।

प्रिंसिपल…… आप बताइए मेरे बस में होगा तो मैं बेशक आपकी मदद करूंगा।

राजेंद्र….. कल जिस लडक़ी ने आर्ट में प्रथम पुरस्कार विजेता बनी थीं। मुझे उस लडक़ी कमला के घर का पाता चाहिए, उसके मां बाप से मिलना हैं।

प्रिंसिपल……. ओ तो अपको कमला के घर का पाता चाहिएं मैं अभी कमला को बुलाता हूं। वह खुद ही आपको अपने घर लेकर जाएगी। फिर पिओन को बुलाकर कहता हैं… कमला को बुलाकर लाना।

पिओन कमला को बुलाकर लाता हैं। कमला बाहर से ही पुछती हैं…... सर मैं अंदर आ सकती हूं।

प्रिंसिपल उसे अंदर आने को कहता हैं। कमला अंदर आकर राजेंद्र और सुरभि को देखकर उन्हें प्रणाम करता हैं फिर प्रिंसिपल से पूछता हैं…..सर अपने मुझे बुलवा भेजा था कुछ विशेष काम था।

प्रिंसिपल राजेंद्र की ओर इशारा करते हुए बोला….. कमला इन्हे तो तुम जानती ही हों। इन्हें तुम्हारे घर जाना हैं इसलिए तुम इन्हें अपने घर लेकर जाओ।

कमला …… सर ये तो कल के मुख्य अथिति हैं। मैं इन्हें मेरे घर लेकर जा सकता हूं लेकिन मेरा क्लास चल रहा हैं।

प्रिंसिपल….. कमला ज्यादा समय नहीं लगेगा तुम इन्हें अपने घर पहुंचाकर आ जाना फिर कर लेना क्लास।

कमला…... जी सर फिर राजेंद्र से बोला …. चलिए सर और मैडम।

राजेंद्र प्रिंसिपल से फिर मिलने को बोलकर कमला के साथ चल देता हैं। कार के पास आकर राजेंद्र आगे बैठ जाता हैं और कमला सुरभि के साथ पीछे बैठ जाता हैं। ड्राइवर कमला के बताए दिशा में कार चला देता हैं। सुरभि कमला से उसके बारे में बहुत सी जानकारी लेती हैं। कमला किस क्षेत्र की पढ़ाई कर रहीं हैं उसके घर में कौन-कौन हैं। ऐसे ही बाते करते हुए कमला का घर आ जाता हैं। कमला के कहने पर ड्राइवर कार को अंदर लाता हैं। कार से उतरकर कमला दरवाज़े पर लटक रहीं घंटी को बजता हैं। दरवजा कमला की मां खोलती हैं। कमला को देखकर बोलती हैं……. कमला तू इस वक्त, यह क्या कर रहीं हैं। तेरी स्वस्थ खराब हों गई जो तू इस वक्त घर आ गईं।

कमला……. मां मैं ठीक हूं। सुरभि और राजेंद्र की ओर दिखते हुए बोली…. इन्हें हमारे घर आना था इसलिए इन्हें लेकर आई हूं।

मनोरमा राजेंद्र और सुरभि को देखकर उन्हें प्रणाम करती हैं और उन्हें अंदर आने को कहती हैं। अंदर आकर राजेंद्र और सुरभि को बैठने के लिए कहती हैं। उनके बैठते ही कमला किचन में जाती हैं और पानी लाकर उन्हें देती हैं फिर कमला बोलती हैं….. मां आप लोग बात करों मैं कॉलेज जा रहीं हूं।

मनोरमा …… ठीक हैं संभाल कर जाना।

तभी सुरभि बोलती हैं….. बेटी रुको।

सुरभि कमला को लेकर बाहर आती हैं और ड्राइवर को बोलती हैं….. जग्गू तुम इनको कॉलेज छोड़ आओ।

कमला….. मैं चली जाऊंगी आप इन्हें क्यो परेशान कर रहीं हों।

सुरभि मुस्कुराकर बोलती हैं…… बेटी चाली तो जाओगी लेकिन जाने में आपको देर हों जायेगी। इसलिए आप इनके साथ जाओ जल्दी कॉलेज पहुंच जाओगी।

कमला सर हिलाकर हां बोलती हैं और कार में बैठ कर चल देती हैं। सुरभि अंदर आती हैं। सुरभि के आने के बाद बोलती हैं…… बहुत प्यारी बच्ची हैं।

मनोरमा…. जी हां। आप दोनों कल मुख्य अथिति बनकर आए थे न।

सुरभि…… जी हां।

मनोरमा…. आप मुझे कुछ वक्त दीजिए मैं आप के लिए चाय नाश्ते की व्यवस्था करके लाती हूं फ़िर बात करेंगे।

सुरभि….. रहने दीजिए हम अभी चाय नाश्ता करके आए हैं।

मनोरमा….. जी नहीं आप दोनों पहली बार हमारे घर आए हैं मैं आपकी एक भी नहीं सुनने वाली आप दोनों बैठिए मैं अभी आई।

मनोरमा ये कहकर किचन की ओर चल देती हैं सुरभि रूकने के लिए कहती लेकिन मनोरमा नहीं रुकती तब सुरभि भी उठाकर किचन की ओर चल देती हैं। सुरभि को किचन में आया देखकर मनोरमा बोलती हैं…… आप यह क्यो आई हों आप जाकर बैठिए मैं अभी चाय बनाकर लाती हूं।

सुरभि….. जब अपने मेरी नहीं सुनी तो मैं आपकी क्यों सुनूं । दोनों मिलकर काम करेंगे तो जल्दी बन जाएगी।

मनोरमा…… जी बिलकुल नहीं आप मेरे मेहमान हैं और मेहमानों से कम नहीं करवाते हैं।

सुरभि मुस्कुरा देती हैं और मनोरमा सिघरता से चाय बनाती हैं। चाय बनाने के बाद तीन काफ में चाय डालती हैं और कुछ नमकीन एक प्लेट में डालकर चाय का काफ एक प्लेट में रखकर उठा लेती हैं। सुरभि नमकीन की प्लेट उठा लेती हैं फिर दोनों आकर चाय और नमकीन रखकर बैठ जाती हैं। मनोरमा एक काफ उठा कर राजेंद्र को देती हैं। एक काफ सुरभि को और एक काफ ख़ुद उठा लेती हैं। चाय पीते हुए सुरभि बोलती हैं…… बहन जी आपके पति कहा हैं।

मनोरमा…… जी वो तो ऑफिस गए हैं।

सुरभि….. बहनजी हम आपसे कुछ मांगने आए हैं क्या आप हमारी मांगे पुरी करेंगी।

मनोरमा…… मैं आपको क्या दे सकती हूं। आप तो राज परिवार से ताल्लुक रखते हों। आपको किस चीज की कमी है जो आप मुझसे मांग रहीं हों।

सुरभि….. हम राज परिवार से हैं तो किया हुआ। राज परिवार हों या सामान्य परिवार से हों उनको कभी न कभी दूसरो के सामने हाथ फैलाकर मांगना ही पड़ता हैं। क्योंकि उनके परिवार में जिस शख्स की कमी होती हैं उसे दूसरे परिवार से मांगकर ही भरा जा सकता हैं।

मनोरमा…... अपके परिवार की कमी को पूर्ति करने के लिए आप मुझसे मांग कर रही हो। बोलिए आप किया मांगना चहते हैं। मेरी क्षमता में होगी तो मैं जरूर अपकी मांग पुरी करूंगा। यह तो मेरा सौभाग्य होगी मैं राज परिवार के कुछ काम आऊ।

सुरभि….. जी हम आपके सुपुत्री का हाथ हमारे सुपुत्र रघु प्रताप राना के लिए मांगने आए हैं। क्या आप हमारी इस मांग को पुरी कर सकती हों।

मनोरमा चाय पीते पीते रूक जाती है और उनकी और अचंभित होकर देखती हैं। मनोरमा को ऐसे देखते देखकर राजेंद्र बोलता हैं……. आप हमे ऐसे क्यों देख रहे हों सुरभि ने कुछ गलत बोल दिया हैं तो आप हमे माफ कर देना।

मनरोमा….. नहीं नहीं इन्होंने कुछ गलत नहीं बोला। मेरे घर एक बेटी ने जन्म लिया हैं तो कभी न कभी उसकी हाथ मांगने कोई न कोई आयेगी ही। मैं तो इसलिए अचंभित हु। हम आपके राजशी ठाठ बांट के आगे सामान्य परिवार है फिर भी आप मेरी बेटी का हाथ मांगने आए हैं।

राजेंद्र….. राजशी ठाठ बांट हैं तो क्या हुआ हमे अपकी बेटी पसंद आया हैं इसलिए हम आपकी बेटी का हाथ मांगने आए हैं। आप साधारण परिवार से हैं या असाधारण हमे उनसे कोई लेना देना नहीं हैं।

मनोरमा….. आप का कहना सही हैं लेकिन यह फैसला मैं अकेले नहीं ले सकती मेरा पति होता तो हम कुछ कह पाते।

सुरभि…… हम आपसे सिर्फ अपनी बात कहने आए थे अगर आप कहें तो हम कल फिर आ जायेंगे।

मनोरमा….. मैं कल कमला के पापा को रुकने के लिए कहूंगी आप कल फिर आना तब ही बात आगे बढ़ाएंगे।

राजेंद्र…. ये ठीक रहेगा। मैं भी रघु को यह बुला लेता हु आप भी रघु को देख लेना। रघु और कमला भी एक दूसरे को देख लेंगे, अगर इनकी हा होती हैं और अपको रघु पसंद आता हैं तो ही हम बात आगे बढ़ाएंगे।

मनोरमा….. हां ये ठीक रहेगी। हमारी पसंद, नापसंद मायने नहीं रखती जिन्हें ज़िंदगी भर साथ रहनी हैं उनकी पसंद न पसंद मायने रखती हैं।

राजेंद्र….. तो यह तय रहा कल हम हमारे बेटे के साथ आयेगे।

इसके बाद दोनों मनोरमा से विदा लेकर चल देते हैं। घर आकर राजेंद्र रघु को ऑफिस में फोन लगाता हैं और उसे आज ही कलकत्ता आने को कहता हैं। रघु आने का कारण पूछता हैं तो राजेंद्र सच न बताकर जरूरी काम का बहाना बना देता हैं और उसे अभी के अभी चल देने को कहता हैं। रघु फोन काटकर मुंशी के पास जाता हैं। उसे जरूरी काम से कलकत्ता जा रहा हूं कहता है तो मुंशी रघु से कारण पूछता हैं तब रघु कहता हैं पापा ने जरूरी काम से मुझे अभी कलकत्ता बुला रहें हैं कहकर चल देता हैं घर आकर तैयार होकर सुकन्या को बताकर कलकत्ता को चल देता हैं।

..........................


पुष्पा किसी तरह कॉलेज में अपना समय कट रहीं थी। सुबह की घटना से उसकी दिल दिमाग में खलबली मची हुई थी। कॉलेज की छुट्टी होने पर आशीष उसे घर छोड़ने आने को कहता हैं लेकिन पुष्पा मना कर देती। लेकिन आशीष उसकी एक भी न सुनाकर उसे अपने साथ चलने को राजी कर लेता हैं। रस्ते में पुष्पा चुप थी। आशीष कई बार कहता तुम्हारा चुप रहना मुझे खाल रहा हैं।कुछ तो कहो।

लेकिन पुष्पा फिर भी चुप रहती हैं। आशीष कार को रोककर पुष्पा का हाथ पकड़कर बोलता हैं….. पुष्पा क्या हुआ आज इतने खामोश बैठी हों कुछ तो बोलों। कॉलेज में भी ऐसी ही रही। सुबह की घटना को लेकर इतना परेशान क्यों हों जो हुआ अच्छा ही हुए।

पुष्पा…... तुम्हारे लिए अच्छा हुआ लेकिन मेरे लिए तो बुरा हुआ न, पापा कभी मुझसे इतनी बेरूखी से बात नहीं करते लेकिन आज किया था। मुझे डर लग रहीं हैं घर जानें पर न जानें क्या क्या सुननी पड़ेगी।

आशीष……. उनका बेरूखी से बात करना स्वाभाविक हैं।सभी मां बाप अपने बेटी को लेकर चिंतित रहते ही हैं। क्योंकि दुनिया सब से पहले उंगली लडक़ी पर ही उठता हैं चाहें गलत कोई भी हों और हम ने प्यार किया है हम पर तो उंगली उठेगा ही।

पुष्पा….. मुझे इसी बात का ही डर हैं। दुनिया मुझ पर उंगली उठाए मैं सह लूंगी।लेकिन मेरी मां बाप मुझे गलत समझे मैं सह नहीं पाऊंगी। मुझे उन्हें पहले ही हमारे प्यार के बारे में बता देनी चाहिए थी।बता देती तो मुझे आज यह दिन नहीं देखनी पड़ती। आशीष मुझे घर नहीं जाना तुम मुझे कही ओर ले चलो मैं उनका सामना नहीं कर पाऊंगी।

आशीष…… बबली हो गई हो जो कुछ भी बोले जा रही हो घर नहीं तो ओर कहा जाओगी। तुम घर जाओ तुम कहो तो मैं भी चलता हूं मैं खुद उनसे बात करूंगा।

पुष्पा…….. तुम बात करोगी तुम खुद उनसे इतना डरते हों और कह रहे हों बात करोगे।

आशीष….. पहले लगाता था लेकिन सुबह मेरे ससुरा को जो बोला उसके बाद तो मेरा छीना चौड़ा हों गया हैं। पुष्पा तुम घर जाओ बात ज्यादा बड़े तो मुझे बता देना मैं मां पापा को कल ही बात करने को भेज दूंगा।

पुष्पा ……… आशीष फिर भी मुझे डर लग रही हैं। चलो मुझे घर छोड़ दो जो होगा देखा जाएगा।

आशीष कार चलते हुए बोला…… जो भी बात हों मुझे बता देना।

पुष्पा हा में गर्दन हिला देती हैं। घर से थोड़ी दूर पुष्पा कार रोकने को कहकर उतर जाती हैं और आशीष को जानें के लिए कहती हैं। आशीष कल मिलने को बोलकर चला जाता हैं। वह से पुष्पा पैदल चल देती हैं। आशीष के इतना समझने के बाद भी पुष्पा को घर जाने में डर लग रहा था और मन में दुआं कर रही थीं उसे अभी मां बाप का सामना न करना पड़े। दुआं करते हुए पुष्पा घर पहुंच जाती हैं। डरते डरते पुष्पा बेल बजती हैं। दरवजा खुलता हैं तब पुष्पा आंखें बंद कर लेती हैं। दरवजा चंपा खोलती हैं और बोलती हैं…... मेम साहिबा आप आ गई अंदर आइए ऐसे आंखे बंद किए क्यों खड़ी हों।

चंपा की आवाज सुनकर पुष्पा आंख खोल कर देखती हैं और मुस्करा कर अंदर आते हुए बोलती हैं……. मां पापा कहा हैं।

चंपा….. जी वो विश्राम कर रहे हैं आप कहो तो उन्हे जगा दूं।

पुष्पा….. नहीं उन्हें जगाने की जरूरत नहीं हैं।

चंपा…. ठीक हैं। आप हाथ मुंह धो लिजिए मैं खाना लगा देती हूं।

पुष्पा….. मुझे अभी भूख नहीं हैं तुम जाकर विश्राम करों जब भूख लगेगी बता दूंगी।

पुष्पा कमरे में जाकर लेट गई। वो विस्तार पर करवटें बदल रहीं थीं आगे क्या होगा इसको सोचकर ही घबरा रही थी। ज्यादा सोचने से मानसिक थकान के कारण पुष्पा सो जाती हैं। शाम को सुरभि और राजेंद्र उठाकर हाथ मुंह धोकर कमरे से बाहर आते हैं। सुरभि चंपा को आवाज लगती हैं। चंपा के आने पर चाय बनने को कहती हैं और पुष्पा को पूछती हैं। तब चंपा बोलती हैं….. रानी मां पुष्पा मालकिन आ गई हैं लेकिन उन्होंने अभी तक खाना नहीं खाया।

सुरभि…… इतना समय हो गई हैं और पुष्पा खाना नहीं खाई तुम अब बता रहीं हों। तुम जाओ कुछ खाने को लाओ मैं देखती हूं।

राजेंद्र कुछ सोचकर चिंतित होकर बोलता हैं…… सुरभि मुझे लगाता हैं सुबह की बात को लेकर पुष्पा परेशान हैं। जल्दी चलो कही कुछ कर न बैठी हों।

सुरभि भी चिंतिन होकर रुवशा होकर बोली….. आपको कहा था आप कुछ ज्यादा बोल दिए हों लेकिन आप सुने नहीं मेरी लाडली को कुछ हुआ तो देख लेना।

दोनों जल्दी से पुष्पा के कमरे में गए, दरवजा बंद देखकर सुरभि दरवजा पीटने लगीं और आवाज देने लगीं दरवजा नहीं खुला तो सुरभि रोते हुए बोली….. देखो न दरवजा नहीं खोल रहीं है आप जल्दी से कुछ कीजिए न कहीं पुष्पा ने कुछ कर न लिया हों।

राजेंद्र सुरभि को हटाकर जोर जोर से दरवजा पिटती हैं और आवाज देती हैं। शोरसराबे के करण पुष्पा की नींद टूट जाती हैं। आंखे मलते हुए पुष्पा बैठ जाती है। तभी उसे फिर से आवाज सुनाई देती आवाज सुनकर पुष्पा मन में बोलती हैं….. ये भगवान बचा लेना पाता नहीं अब किया होगा कैसे सामना करूंगी मां पापा का क्या जवाब दूंगी उन्हें।

तभी सुरभि रोते हुए बोलती हैं…. आप किया कर रहें हों दरवजा तोड़ क्यों नहीं देती।

दरवजा तोड़ने और सुरभि के रोने की आवाज़ सुनाकर पुष्पा मन में सोचते हुए…… मां क्यों रो रहीं हैं और पापा को दरवजा तोड़ने को क्यो कह रहीं। जाकर दरवाज़ा खोलती हैं। दरवजा खोलते ही सुरभि अंदर आकर पुष्पा को गाले से लगकर बोलती हैं…… तू ठीक तो हैं न, ओ जी आप जल्दी से डॉक्टर को फोन करों।

पुष्पा…… मां मैं ठीक हू डॉक्टर को फोन करने की जरूरत नहीं हैं।

सुरभि पुष्पा को घुमा फिराकर देखती हैं और उसके मूंह के पास नाक लाकर सूंघती हुई बोलती हैं…….. तू ने कुछ पिया बिया तो नहीं हैं देख मुझे सच सच बता दे।

पुष्पा ….. न मैंने कुछ खाया हैं न कुछ पिया हैं मैं बिलकुल ठीक हूं।

राजेंद्र पुष्पा को ले जाकर बेड पर बिठा देता है और खुद भी बैठ जाता हैं। सुरभि भी जाकर पुष्पा के दूसरे तरफ बैठ जाती हैं और पुष्पा के सर पर हाथ फिराने लगती हैं और राजेंद्र बोलता हैं…… भूल कर भी ऐसा कुछ करने के बारे में न सोचना तुम्हें कुछ हुआ तो मेरा और तुम्हारी मां का क्या होगा सोचो जरा तुमने दरवजा खोलने में देर लगाई उतने वक्त में पाता नहीं मैने और तुम्हारे मां ने किया किया सोच लिया देखो अपनी मां को कुछ ही वक्त में अपना हल किया बना लिया।

पुष्पा ने सुरभि की और गैर से देखा सुरभि की आंखो से नीर बह रहीं थीं। पुष्पा सुरभि के बहते अंशु को पोछते हुए बोली….. मां पापा मुझे माफ कर देना आपने मुझे यह पड़ने के लिए भेजा और मैं यह पढ़ने के साथ कुछ ओर ही कर बैठी।

सुरभि पुष्पा को छीने से चिपका लिया और बोली……. कब से चल रहीं हैं और लड़के का नाम किया हैं।

पुष्पा अलग होकर सुरभि के आंखो में देखकर समझने की कोशिश कर रहीं थीं सुरभि उसे डाट रहीं हैं या पुछ रहीं हैं फिर नजरे झुकाकर बैठ गई और पैर की उंगली से फर्श को कुरेदने लगी। पुष्पा शर्मा भी रहीं थीं और डर भी रहीं थीं फिर राजेंद्र बोला…… बेटी डरने की जरूरत नहीं हैं हम तुमसे नाराज नहीं हैं अब बताओ कब से चल रहा हैं।

पुष्पा कुछ नहीं बताती चुप रहती हैं और उंगलियों को मढोरने लगती राजेंद्र देखकर मुस्कुराते हुए बोलता हैं…... पुष्पा हम तो सोच रहें थे तुमसे लड़के की जानकारी लेकर उसके घर वालो से मिलकर तुम्हरे शादी की बात करूंगा लेकिन तुम नहीं चहती तो हम कोई दूसरा लड़का ढूंढ लेंगे।

पुष्पा दूसरे लड़के की बात सुनाकर बेखायली में बोलती हैं…… मैं आशीष से बहुत प्यार करती हूं मैं शादी करूंगी तो आशीष से नहीं तो किसी से नहीं।

बोलने के बाद पुष्पा को समझ आती बेखयाली में क्या बोल गई इसलिए शर्मा जाती हैं। राजेंद्र और सुरभि मुस्करा देती हैं फिर राजेंद्र मुस्कुराते हुऐ बोलता हैं….. ओ इतना प्यार तो आगे की भी बता दो कब से चल रहा हैं।

पुष्पा शर्मा कर सुरभि से लिपट जाती हैं फिर सुरभि बोलती हैं……. अब शर्मा कर किया होगी। हम जो पुछ रहे हैं बता दो नहीं तो हम सच में दूसरा लड़का ढूंढ लेंगे।

पुष्पा नजरे उठाकर सुरभि को देखती हैं और शरमाते हुए बोलती हैं……मां आप दोनों मुझसे नाराज़ नहीं हों और मेरी शादी आशीष से करवा देंगे।

सुरभि…… हां क्यो नहीं तुम उससे प्यार करती हों तो हम तुम्हारी शादी उससे ही करवा देंगे हमे हमारी बेटी की खुशियां प्यारी हैं। लड़के का नाम तो तुमने बता दिया अब यह भी बता दो कब से तुम दोनों का प्रेम प्रसंग चल रहीं हैं। लड़के के घर में कौन-कौन हैं और उनके घर वाले करते किया हैं।

पुष्पा…… आशीष और मेरा प्रेम प्रसंग पिछले चार साल से चल रही हैं। आशीष और मैं एक दूसरे से बहुत प्यार करते हैं। आशीष मेरे साथ ही mba कर रहा हैं। आशीष के घर में उसके मां बाप एक बहन और आशीष से बड़ा एक भाई हैं। उनका अपना कारोबार हैं। जिसे आशीष के बड़े भाई और उसके पापा सभलते हैं। लेकिन आशीष का अपने कारोबार में कोई रुचि नहीं हैं वो ips ऑफिसर बना चाहता हैं। उसकी तैयारी भी पूरी हो चुकी हैं अगले महीने उसका पेपर हैं।

राजेंद्र……. ये तो अच्छी बात हैं आशीष ips बनकर देश सेवा करना चाहता हैं। पुष्पा तुम आशीष को फोन कर बता देना हम उससे और उसके मां बाप से मिलना चाहते हैं। आशीष आपने मां बाप को लेकर कल शाम के खाने पर हमारे घर आए।

पुष्पा खुश होकर बोलती हैं…… ठीक हैं पापा मैं बोल दूंगी।

सुरभि…… अब जल्दी से हाथ मुंह धोकर निचे आओ और कुछ खा पी लो।

सुरभि और राजेंद्र के जाने के बाद पुष्पा हाथ मुंह धोकर अपने कमरे में रखे टेलीफोन से फोन कर आशीष को सब बता देती हैं। उसे और उसके मां बाप काल शाम को खाने पर आने को बोलती हैं। आशीष हां बोलकर फोन काट देता हैं और पुष्पा नीचे आकर चाय नाश्ता करने लगाती हैं।

ऐसे ही बातों बातों में रात हों जाती हैं। रघु अभी तक नहीं पहुंचा था इसलिए दोनों चिंतित थे। तभी बाहर कार रुकने की आवाज़ आता हैं। सुरभि और राजेंद्र जाकर दरवाज़ा खोलते हैं और बहार जाते हैं । रघु कार से निकलकर इनकी ओर ही आ रहा था। सुरभि ओर राजेंद्र को देखकर रूक जाता हैं उनके पास आने पर उनके पैर छूता हैं फिर एक दूसरे का हल चाल लेकर अंदर आते हैं। अंदर आकर पुष्पा को न देखकर "पुष्पा कहा हैं पूछता हैं" सुरभि पुष्पा की कमरे में होने की बात कहती हैं तब रघु तुरंत पुष्पा की कमरे की और भागता हैं उसे भागते देखकर सुरभि और राजेंद्र मुस्करा देती हैं। रघु दरवाजे पर पहुंचकर दरवाजा खटखटाता हैं। पुष्पा दरवजा खोलकर रघु को देखकर चीख पड़ती हैं और बोलती हैं…….. भईया आप कब आए और कैसे हों।

रघु……. मैं ठीक हू। अभी अभी आया हु और सीधा तेरे पास आ गया। तू कैसी हैं।

पुष्पा…… मैं ठीक हू घर पर सब कैसे हैं।

रघु….. सब ठीक हैं तुझे बहुत याद करते हैं।

पुष्पा…… कोई मुझे याद नहीं करते याद करते होते तो मुझसे मिलने आते आप भी नहीं करते न ही अपनी इकलौती बहन से प्यार करते हों।

रघु….. किसने कहा मैं तूझसे प्यार नहीं करता। तुझे प्यार नहीं करता तो आते ही तुझसे मिलने क्यों आता।

पुष्पा….. अच्छा अच्छा मानती हूॅं आप मुझसे बहुत प्यार करते हों अब आप हाथ मुंह धोकर अइए फिर बहुत सारी बाते करेंगे।

रघु एक कमरे में जाकर हाथ मुंह धोता हैं फिर आकर सब के साथ बैठ जाता हैं और पुष्पा के साथ नोक झोंक शुरू कर देता हैं। पुष्पा शिकायतो की झड़ी लगा देती हैं तो रघु भी कम नहीं था। इन दोनों की नोक झोंक सुनाकर राजेंद्र और सुरभि मुस्कुराते रहते हैं। अपने बहन के गीले शिकवे दूर करने के बाद रघु राजेंद्र से पूछता हैं…… पाप इतना किया जरूर काम था जो आपने मुझे आज ही और जल्दी जल्दी बुला लिया कितना काम पड़ा हैं।

सुरभि….. चुप कर जुम्मा जुम्मा दो दिन हुए ऑफिस जाना शुरू किया और जाते ही काम काम राग अलापने लग गया।

ये सुनाकर सब हंस देते है फिर राजेंद्र कहता हैं……. वहा का काम तो होता ही रहेगा। यह बहुत जरूर काम हैं इसलिए बुलाया हैं। कल हमे कहीं जाना हैं। पुष्पा तुम भी कल कॉलेज मत जाना तुम भी हमारे साथ चलोगी।

रघु और पुष्पा एक साथ बोलते हैं….. कह जाना हैं।

सुरभि….. कल तक प्रतिक्षा करों फिर पाता चाल ही जायेगा ।


दोनों ज्यादा बहस नहीं करते और हां में सर हिलाकर चुप हों जाते। आज के लिए इतना ही आगे की कहानी अगले अपडेट से, साथ बाने रहने के लिए सभी पाठकों को बहुत बहुत धन्यवाद।


मेरे कुछ और रचनाएं

संस्कार या मजबूरी

Survi ne kamala ko chuna he raghu k liye.uske ghar bhi proposal leke gaye rajendra aur survi.finally heroine mil gayi. puspa ne kabool kar liya wo ashish se pyar karti he ...
Amazing writing skills😚😍
 

parkas

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Update - 12


जाते हुए सुरभि राजेन्द्र से बोलती हैं….. आपने उन दोनों पर कुछ ज्यादा ही कड़ा तेवर दिखा दिया। अपने देखा न पुष्पा की रोने जैसी सूरत हों गई थीं।

राजेन्द्र….. सुरभि मुझे अपना तेवर कड़ा करना पडा मैं ऐसा नहीं करता तो उस लड़के को कैसे परखता जो हमारे बेटी से प्यार करता हैं।

सुरभि….. लड़के को परखना ही था तो आज ही करना जरूरी थोड़ी था आप बाद में भी तो परख सकते थें। आज प्यार से दोनों के राय जान लेते।

राजेंद्र….. बाद में परखते तो शायद लड़का दिखावा करता लेकिन आज अचानक ऐसा करने से लड़के को मौका ही नहीं मिला और उसने वही किया जो उसके दिल ने कहा। उसके अंदर छुपे प्यार जो वो हमारे बेटी से करता हैं, करने पर मजबूर किया।

सुरभि…. आप तो अंतर यामी हों जो बिना कहे ही उसके मन की बातों को जान लिए।

राजेंद्र….. इसमें अंतरयामी होने की जरूरत ही नहीं वह जो कुछ भी हुआ प्रत्यक्ष दिख रहा था। तुमने गौर नहीं किया लेकिन मैं दोनों के हाव भव को गौर से देख रहा था।

सुरभि…… क्या देखा अपने जरा मुझे भी तो बताईए।

राजेंद्र….. सबसे पहले तो जब हम अचानक उनके सामने गए। तब लड़के के प्यार में कोई खोट होता तो हमे देखकर भाग जाता लेकिन भागा नहीं खड़ा रहा सर्फ खड़ा ही नहीं रहा पुष्पा का हाथ पकड़े रहा जो यह दर्शाता हैं। परिस्थिती कैसी भी हो वो पुष्पा का हाथ कभी नहीं छोड़ेगा।

सुरभि….. मैं तो इन सब पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया अब आगे किया करना हैं।

राजेंद्र…... करना किया हैं यह तो पुष्पा ही बताएगी। पुष्पा जो चाहेगी मैं वह ही करुंगा।

सुरभि…. इसका तो सीधा मतलब यहीं निकलता हैं आप हमारे बेटी के प्रेम को मंजूरी दे रहें हैं।

राजेंद्र…… हमारी बेटी ने प्रेम किया हैं कोई जूर्म नहीं, मैं प्रेम का दुश्मन नहीं हूं जो मेरी बेटी और उसके प्रेम के बीच दीवार बनकर खड़ा रहूं। फिर ड्राइवर से बोलता हैं… कल हम जिस कॉलेज में गए थे उस कॉलेज में लेकर चलो।

ड्रावर…… जी साहब।

सुरभि….. हम कल वाली कॉलेज क्यों जा रहें हैं।

राजेंद्र….. कॉलेज से उस लडक़ी कमला के घर का पता लेकर उसके घर जायेंगे और उसके मां बाप से रिश्ते की बात करेंगे।

सुरभि…… अपको क्या लगाता हैं वो लोग रिश्ते के लिए राजी होंगे।

राजेंद्र…….. हमे लड़की पसंद हैं यह खबर उन तक पहुंचना हमारा काम हैं। राजी होना न होना यह तो उनका फैसला हैं।

बातो बातों में कॉलेज आ जाता हैं। दोनों उतरकर कॉलेज के अंदर जाते हैं। वह से सीधा प्रिंसिपल के ऑफिस जाते हैं। बाहर खड़ा पिओन उन्हें देखकर तुरंत दरवजा खोलकर बोलता हैं…. सर कल के मुख्य अथिति आए हैं आप कहें तो उन्हें अंदर भेजूं।

सुनाकर प्रिंसिपल बाहर आता हैं। दरवाज़े पर किसी को न देखकर पिओन से पूछता तभी उससे सामने से राजेंद्र और सुरभि आते हुए दिखाई देता हैं। प्रिंसिपल सिघ्रता से उनके पास जाता हैं और हाथ जोड़कर दोनों को प्रणाम करता हैं। राजेंद्र और सुरभि भी उन्हें प्रणाम करते हैं। फिर इनके साथ चल देते हैं। अंदर आने से पहले प्रिंसिपल पिओन को चाय लाने को कहता हैं। पिओन चाय लेने चल देता हैं। अंदर आकर प्रिंसिपल, सुरभि और राजेंद्र को बैठने को कहता हैं। उनके बैठने के बाद खुद भी बैठ जाता हैं और कहता हैं……. राजा जी आपके आने का करण जान सकता हूं।

राजेंद्र….. हम कुछ विशेष काम से आए हैं। जिसमे आप ही हमारी मदद कर सकते हैं।

प्रिंसिपल…… आप बताइए मेरे बस में होगा तो मैं बेशक आपकी मदद करूंगा।

राजेंद्र….. कल जिस लडक़ी ने आर्ट में प्रथम पुरस्कार विजेता बनी थीं। मुझे उस लडक़ी कमला के घर का पाता चाहिए, उसके मां बाप से मिलना हैं।

प्रिंसिपल……. ओ तो अपको कमला के घर का पाता चाहिएं मैं अभी कमला को बुलाता हूं। वह खुद ही आपको अपने घर लेकर जाएगी। फिर पिओन को बुलाकर कहता हैं… कमला को बुलाकर लाना।

पिओन कमला को बुलाकर लाता हैं। कमला बाहर से ही पुछती हैं…... सर मैं अंदर आ सकती हूं।

प्रिंसिपल उसे अंदर आने को कहता हैं। कमला अंदर आकर राजेंद्र और सुरभि को देखकर उन्हें प्रणाम करता हैं फिर प्रिंसिपल से पूछता हैं…..सर अपने मुझे बुलवा भेजा था कुछ विशेष काम था।

प्रिंसिपल राजेंद्र की ओर इशारा करते हुए बोला….. कमला इन्हे तो तुम जानती ही हों। इन्हें तुम्हारे घर जाना हैं इसलिए तुम इन्हें अपने घर लेकर जाओ।

कमला …… सर ये तो कल के मुख्य अथिति हैं। मैं इन्हें मेरे घर लेकर जा सकता हूं लेकिन मेरा क्लास चल रहा हैं।

प्रिंसिपल….. कमला ज्यादा समय नहीं लगेगा तुम इन्हें अपने घर पहुंचाकर आ जाना फिर कर लेना क्लास।

कमला…... जी सर फिर राजेंद्र से बोला …. चलिए सर और मैडम।

राजेंद्र प्रिंसिपल से फिर मिलने को बोलकर कमला के साथ चल देता हैं। कार के पास आकर राजेंद्र आगे बैठ जाता हैं और कमला सुरभि के साथ पीछे बैठ जाता हैं। ड्राइवर कमला के बताए दिशा में कार चला देता हैं। सुरभि कमला से उसके बारे में बहुत सी जानकारी लेती हैं। कमला किस क्षेत्र की पढ़ाई कर रहीं हैं उसके घर में कौन-कौन हैं। ऐसे ही बाते करते हुए कमला का घर आ जाता हैं। कमला के कहने पर ड्राइवर कार को अंदर लाता हैं। कार से उतरकर कमला दरवाज़े पर लटक रहीं घंटी को बजता हैं। दरवजा कमला की मां खोलती हैं। कमला को देखकर बोलती हैं……. कमला तू इस वक्त, यह क्या कर रहीं हैं। तेरी स्वस्थ खराब हों गई जो तू इस वक्त घर आ गईं।

कमला……. मां मैं ठीक हूं। सुरभि और राजेंद्र की ओर दिखते हुए बोली…. इन्हें हमारे घर आना था इसलिए इन्हें लेकर आई हूं।

मनोरमा राजेंद्र और सुरभि को देखकर उन्हें प्रणाम करती हैं और उन्हें अंदर आने को कहती हैं। अंदर आकर राजेंद्र और सुरभि को बैठने के लिए कहती हैं। उनके बैठते ही कमला किचन में जाती हैं और पानी लाकर उन्हें देती हैं फिर कमला बोलती हैं….. मां आप लोग बात करों मैं कॉलेज जा रहीं हूं।

मनोरमा …… ठीक हैं संभाल कर जाना।

तभी सुरभि बोलती हैं….. बेटी रुको।

सुरभि कमला को लेकर बाहर आती हैं और ड्राइवर को बोलती हैं….. जग्गू तुम इनको कॉलेज छोड़ आओ।

कमला….. मैं चली जाऊंगी आप इन्हें क्यो परेशान कर रहीं हों।

सुरभि मुस्कुराकर बोलती हैं…… बेटी चाली तो जाओगी लेकिन जाने में आपको देर हों जायेगी। इसलिए आप इनके साथ जाओ जल्दी कॉलेज पहुंच जाओगी।

कमला सर हिलाकर हां बोलती हैं और कार में बैठ कर चल देती हैं। सुरभि अंदर आती हैं। सुरभि के आने के बाद बोलती हैं…… बहुत प्यारी बच्ची हैं।

मनोरमा…. जी हां। आप दोनों कल मुख्य अथिति बनकर आए थे न।

सुरभि…… जी हां।

मनोरमा…. आप मुझे कुछ वक्त दीजिए मैं आप के लिए चाय नाश्ते की व्यवस्था करके लाती हूं फ़िर बात करेंगे।

सुरभि….. रहने दीजिए हम अभी चाय नाश्ता करके आए हैं।

मनोरमा….. जी नहीं आप दोनों पहली बार हमारे घर आए हैं मैं आपकी एक भी नहीं सुनने वाली आप दोनों बैठिए मैं अभी आई।

मनोरमा ये कहकर किचन की ओर चल देती हैं सुरभि रूकने के लिए कहती लेकिन मनोरमा नहीं रुकती तब सुरभि भी उठाकर किचन की ओर चल देती हैं। सुरभि को किचन में आया देखकर मनोरमा बोलती हैं…… आप यह क्यो आई हों आप जाकर बैठिए मैं अभी चाय बनाकर लाती हूं।

सुरभि….. जब अपने मेरी नहीं सुनी तो मैं आपकी क्यों सुनूं । दोनों मिलकर काम करेंगे तो जल्दी बन जाएगी।

मनोरमा…… जी बिलकुल नहीं आप मेरे मेहमान हैं और मेहमानों से कम नहीं करवाते हैं।

सुरभि मुस्कुरा देती हैं और मनोरमा सिघरता से चाय बनाती हैं। चाय बनाने के बाद तीन काफ में चाय डालती हैं और कुछ नमकीन एक प्लेट में डालकर चाय का काफ एक प्लेट में रखकर उठा लेती हैं। सुरभि नमकीन की प्लेट उठा लेती हैं फिर दोनों आकर चाय और नमकीन रखकर बैठ जाती हैं। मनोरमा एक काफ उठा कर राजेंद्र को देती हैं। एक काफ सुरभि को और एक काफ ख़ुद उठा लेती हैं। चाय पीते हुए सुरभि बोलती हैं…… बहन जी आपके पति कहा हैं।

मनोरमा…… जी वो तो ऑफिस गए हैं।

सुरभि….. बहनजी हम आपसे कुछ मांगने आए हैं क्या आप हमारी मांगे पुरी करेंगी।

मनोरमा…… मैं आपको क्या दे सकती हूं। आप तो राज परिवार से ताल्लुक रखते हों। आपको किस चीज की कमी है जो आप मुझसे मांग रहीं हों।

सुरभि….. हम राज परिवार से हैं तो किया हुआ। राज परिवार हों या सामान्य परिवार से हों उनको कभी न कभी दूसरो के सामने हाथ फैलाकर मांगना ही पड़ता हैं। क्योंकि उनके परिवार में जिस शख्स की कमी होती हैं उसे दूसरे परिवार से मांगकर ही भरा जा सकता हैं।

मनोरमा…... अपके परिवार की कमी को पूर्ति करने के लिए आप मुझसे मांग कर रही हो। बोलिए आप किया मांगना चहते हैं। मेरी क्षमता में होगी तो मैं जरूर अपकी मांग पुरी करूंगा। यह तो मेरा सौभाग्य होगी मैं राज परिवार के कुछ काम आऊ।

सुरभि….. जी हम आपके सुपुत्री का हाथ हमारे सुपुत्र रघु प्रताप राना के लिए मांगने आए हैं। क्या आप हमारी इस मांग को पुरी कर सकती हों।

मनोरमा चाय पीते पीते रूक जाती है और उनकी और अचंभित होकर देखती हैं। मनोरमा को ऐसे देखते देखकर राजेंद्र बोलता हैं……. आप हमे ऐसे क्यों देख रहे हों सुरभि ने कुछ गलत बोल दिया हैं तो आप हमे माफ कर देना।

मनरोमा….. नहीं नहीं इन्होंने कुछ गलत नहीं बोला। मेरे घर एक बेटी ने जन्म लिया हैं तो कभी न कभी उसकी हाथ मांगने कोई न कोई आयेगी ही। मैं तो इसलिए अचंभित हु। हम आपके राजशी ठाठ बांट के आगे सामान्य परिवार है फिर भी आप मेरी बेटी का हाथ मांगने आए हैं।

राजेंद्र….. राजशी ठाठ बांट हैं तो क्या हुआ हमे अपकी बेटी पसंद आया हैं इसलिए हम आपकी बेटी का हाथ मांगने आए हैं। आप साधारण परिवार से हैं या असाधारण हमे उनसे कोई लेना देना नहीं हैं।

मनोरमा….. आप का कहना सही हैं लेकिन यह फैसला मैं अकेले नहीं ले सकती मेरा पति होता तो हम कुछ कह पाते।

सुरभि…… हम आपसे सिर्फ अपनी बात कहने आए थे अगर आप कहें तो हम कल फिर आ जायेंगे।

मनोरमा….. मैं कल कमला के पापा को रुकने के लिए कहूंगी आप कल फिर आना तब ही बात आगे बढ़ाएंगे।

राजेंद्र…. ये ठीक रहेगा। मैं भी रघु को यह बुला लेता हु आप भी रघु को देख लेना। रघु और कमला भी एक दूसरे को देख लेंगे, अगर इनकी हा होती हैं और अपको रघु पसंद आता हैं तो ही हम बात आगे बढ़ाएंगे।

मनोरमा….. हां ये ठीक रहेगी। हमारी पसंद, नापसंद मायने नहीं रखती जिन्हें ज़िंदगी भर साथ रहनी हैं उनकी पसंद न पसंद मायने रखती हैं।

राजेंद्र….. तो यह तय रहा कल हम हमारे बेटे के साथ आयेगे।

इसके बाद दोनों मनोरमा से विदा लेकर चल देते हैं। घर आकर राजेंद्र रघु को ऑफिस में फोन लगाता हैं और उसे आज ही कलकत्ता आने को कहता हैं। रघु आने का कारण पूछता हैं तो राजेंद्र सच न बताकर जरूरी काम का बहाना बना देता हैं और उसे अभी के अभी चल देने को कहता हैं। रघु फोन काटकर मुंशी के पास जाता हैं। उसे जरूरी काम से कलकत्ता जा रहा हूं कहता है तो मुंशी रघु से कारण पूछता हैं तब रघु कहता हैं पापा ने जरूरी काम से मुझे अभी कलकत्ता बुला रहें हैं कहकर चल देता हैं घर आकर तैयार होकर सुकन्या को बताकर कलकत्ता को चल देता हैं।

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पुष्पा किसी तरह कॉलेज में अपना समय कट रहीं थी। सुबह की घटना से उसकी दिल दिमाग में खलबली मची हुई थी। कॉलेज की छुट्टी होने पर आशीष उसे घर छोड़ने आने को कहता हैं लेकिन पुष्पा मना कर देती। लेकिन आशीष उसकी एक भी न सुनाकर उसे अपने साथ चलने को राजी कर लेता हैं। रस्ते में पुष्पा चुप थी। आशीष कई बार कहता तुम्हारा चुप रहना मुझे खाल रहा हैं।कुछ तो कहो।

लेकिन पुष्पा फिर भी चुप रहती हैं। आशीष कार को रोककर पुष्पा का हाथ पकड़कर बोलता हैं….. पुष्पा क्या हुआ आज इतने खामोश बैठी हों कुछ तो बोलों। कॉलेज में भी ऐसी ही रही। सुबह की घटना को लेकर इतना परेशान क्यों हों जो हुआ अच्छा ही हुए।

पुष्पा…... तुम्हारे लिए अच्छा हुआ लेकिन मेरे लिए तो बुरा हुआ न, पापा कभी मुझसे इतनी बेरूखी से बात नहीं करते लेकिन आज किया था। मुझे डर लग रहीं हैं घर जानें पर न जानें क्या क्या सुननी पड़ेगी।

आशीष……. उनका बेरूखी से बात करना स्वाभाविक हैं।सभी मां बाप अपने बेटी को लेकर चिंतित रहते ही हैं। क्योंकि दुनिया सब से पहले उंगली लडक़ी पर ही उठता हैं चाहें गलत कोई भी हों और हम ने प्यार किया है हम पर तो उंगली उठेगा ही।

पुष्पा….. मुझे इसी बात का ही डर हैं। दुनिया मुझ पर उंगली उठाए मैं सह लूंगी।लेकिन मेरी मां बाप मुझे गलत समझे मैं सह नहीं पाऊंगी। मुझे उन्हें पहले ही हमारे प्यार के बारे में बता देनी चाहिए थी।बता देती तो मुझे आज यह दिन नहीं देखनी पड़ती। आशीष मुझे घर नहीं जाना तुम मुझे कही ओर ले चलो मैं उनका सामना नहीं कर पाऊंगी।

आशीष…… बबली हो गई हो जो कुछ भी बोले जा रही हो घर नहीं तो ओर कहा जाओगी। तुम घर जाओ तुम कहो तो मैं भी चलता हूं मैं खुद उनसे बात करूंगा।

पुष्पा…….. तुम बात करोगी तुम खुद उनसे इतना डरते हों और कह रहे हों बात करोगे।

आशीष….. पहले लगाता था लेकिन सुबह मेरे ससुरा को जो बोला उसके बाद तो मेरा छीना चौड़ा हों गया हैं। पुष्पा तुम घर जाओ बात ज्यादा बड़े तो मुझे बता देना मैं मां पापा को कल ही बात करने को भेज दूंगा।

पुष्पा ……… आशीष फिर भी मुझे डर लग रही हैं। चलो मुझे घर छोड़ दो जो होगा देखा जाएगा।

आशीष कार चलते हुए बोला…… जो भी बात हों मुझे बता देना।

पुष्पा हा में गर्दन हिला देती हैं। घर से थोड़ी दूर पुष्पा कार रोकने को कहकर उतर जाती हैं और आशीष को जानें के लिए कहती हैं। आशीष कल मिलने को बोलकर चला जाता हैं। वह से पुष्पा पैदल चल देती हैं। आशीष के इतना समझने के बाद भी पुष्पा को घर जाने में डर लग रहा था और मन में दुआं कर रही थीं उसे अभी मां बाप का सामना न करना पड़े। दुआं करते हुए पुष्पा घर पहुंच जाती हैं। डरते डरते पुष्पा बेल बजती हैं। दरवजा खुलता हैं तब पुष्पा आंखें बंद कर लेती हैं। दरवजा चंपा खोलती हैं और बोलती हैं…... मेम साहिबा आप आ गई अंदर आइए ऐसे आंखे बंद किए क्यों खड़ी हों।

चंपा की आवाज सुनकर पुष्पा आंख खोल कर देखती हैं और मुस्करा कर अंदर आते हुए बोलती हैं……. मां पापा कहा हैं।

चंपा….. जी वो विश्राम कर रहे हैं आप कहो तो उन्हे जगा दूं।

पुष्पा….. नहीं उन्हें जगाने की जरूरत नहीं हैं।

चंपा…. ठीक हैं। आप हाथ मुंह धो लिजिए मैं खाना लगा देती हूं।

पुष्पा….. मुझे अभी भूख नहीं हैं तुम जाकर विश्राम करों जब भूख लगेगी बता दूंगी।

पुष्पा कमरे में जाकर लेट गई। वो विस्तार पर करवटें बदल रहीं थीं आगे क्या होगा इसको सोचकर ही घबरा रही थी। ज्यादा सोचने से मानसिक थकान के कारण पुष्पा सो जाती हैं। शाम को सुरभि और राजेंद्र उठाकर हाथ मुंह धोकर कमरे से बाहर आते हैं। सुरभि चंपा को आवाज लगती हैं। चंपा के आने पर चाय बनने को कहती हैं और पुष्पा को पूछती हैं। तब चंपा बोलती हैं….. रानी मां पुष्पा मालकिन आ गई हैं लेकिन उन्होंने अभी तक खाना नहीं खाया।

सुरभि…… इतना समय हो गई हैं और पुष्पा खाना नहीं खाई तुम अब बता रहीं हों। तुम जाओ कुछ खाने को लाओ मैं देखती हूं।

राजेंद्र कुछ सोचकर चिंतित होकर बोलता हैं…… सुरभि मुझे लगाता हैं सुबह की बात को लेकर पुष्पा परेशान हैं। जल्दी चलो कही कुछ कर न बैठी हों।

सुरभि भी चिंतिन होकर रुवशा होकर बोली….. आपको कहा था आप कुछ ज्यादा बोल दिए हों लेकिन आप सुने नहीं मेरी लाडली को कुछ हुआ तो देख लेना।

दोनों जल्दी से पुष्पा के कमरे में गए, दरवजा बंद देखकर सुरभि दरवजा पीटने लगीं और आवाज देने लगीं दरवजा नहीं खुला तो सुरभि रोते हुए बोली….. देखो न दरवजा नहीं खोल रहीं है आप जल्दी से कुछ कीजिए न कहीं पुष्पा ने कुछ कर न लिया हों।

राजेंद्र सुरभि को हटाकर जोर जोर से दरवजा पिटती हैं और आवाज देती हैं। शोरसराबे के करण पुष्पा की नींद टूट जाती हैं। आंखे मलते हुए पुष्पा बैठ जाती है। तभी उसे फिर से आवाज सुनाई देती आवाज सुनकर पुष्पा मन में बोलती हैं….. ये भगवान बचा लेना पाता नहीं अब किया होगा कैसे सामना करूंगी मां पापा का क्या जवाब दूंगी उन्हें।

तभी सुरभि रोते हुए बोलती हैं…. आप किया कर रहें हों दरवजा तोड़ क्यों नहीं देती।

दरवजा तोड़ने और सुरभि के रोने की आवाज़ सुनाकर पुष्पा मन में सोचते हुए…… मां क्यों रो रहीं हैं और पापा को दरवजा तोड़ने को क्यो कह रहीं। जाकर दरवाज़ा खोलती हैं। दरवजा खोलते ही सुरभि अंदर आकर पुष्पा को गाले से लगकर बोलती हैं…… तू ठीक तो हैं न, ओ जी आप जल्दी से डॉक्टर को फोन करों।

पुष्पा…… मां मैं ठीक हू डॉक्टर को फोन करने की जरूरत नहीं हैं।

सुरभि पुष्पा को घुमा फिराकर देखती हैं और उसके मूंह के पास नाक लाकर सूंघती हुई बोलती हैं…….. तू ने कुछ पिया बिया तो नहीं हैं देख मुझे सच सच बता दे।

पुष्पा ….. न मैंने कुछ खाया हैं न कुछ पिया हैं मैं बिलकुल ठीक हूं।

राजेंद्र पुष्पा को ले जाकर बेड पर बिठा देता है और खुद भी बैठ जाता हैं। सुरभि भी जाकर पुष्पा के दूसरे तरफ बैठ जाती हैं और पुष्पा के सर पर हाथ फिराने लगती हैं और राजेंद्र बोलता हैं…… भूल कर भी ऐसा कुछ करने के बारे में न सोचना तुम्हें कुछ हुआ तो मेरा और तुम्हारी मां का क्या होगा सोचो जरा तुमने दरवजा खोलने में देर लगाई उतने वक्त में पाता नहीं मैने और तुम्हारे मां ने किया किया सोच लिया देखो अपनी मां को कुछ ही वक्त में अपना हल किया बना लिया।

पुष्पा ने सुरभि की और गैर से देखा सुरभि की आंखो से नीर बह रहीं थीं। पुष्पा सुरभि के बहते अंशु को पोछते हुए बोली….. मां पापा मुझे माफ कर देना आपने मुझे यह पड़ने के लिए भेजा और मैं यह पढ़ने के साथ कुछ ओर ही कर बैठी।

सुरभि पुष्पा को छीने से चिपका लिया और बोली……. कब से चल रहीं हैं और लड़के का नाम किया हैं।

पुष्पा अलग होकर सुरभि के आंखो में देखकर समझने की कोशिश कर रहीं थीं सुरभि उसे डाट रहीं हैं या पुछ रहीं हैं फिर नजरे झुकाकर बैठ गई और पैर की उंगली से फर्श को कुरेदने लगी। पुष्पा शर्मा भी रहीं थीं और डर भी रहीं थीं फिर राजेंद्र बोला…… बेटी डरने की जरूरत नहीं हैं हम तुमसे नाराज नहीं हैं अब बताओ कब से चल रहा हैं।

पुष्पा कुछ नहीं बताती चुप रहती हैं और उंगलियों को मढोरने लगती राजेंद्र देखकर मुस्कुराते हुए बोलता हैं…... पुष्पा हम तो सोच रहें थे तुमसे लड़के की जानकारी लेकर उसके घर वालो से मिलकर तुम्हरे शादी की बात करूंगा लेकिन तुम नहीं चहती तो हम कोई दूसरा लड़का ढूंढ लेंगे।

पुष्पा दूसरे लड़के की बात सुनाकर बेखायली में बोलती हैं…… मैं आशीष से बहुत प्यार करती हूं मैं शादी करूंगी तो आशीष से नहीं तो किसी से नहीं।

बोलने के बाद पुष्पा को समझ आती बेखयाली में क्या बोल गई इसलिए शर्मा जाती हैं। राजेंद्र और सुरभि मुस्करा देती हैं फिर राजेंद्र मुस्कुराते हुऐ बोलता हैं….. ओ इतना प्यार तो आगे की भी बता दो कब से चल रहा हैं।

पुष्पा शर्मा कर सुरभि से लिपट जाती हैं फिर सुरभि बोलती हैं……. अब शर्मा कर किया होगी। हम जो पुछ रहे हैं बता दो नहीं तो हम सच में दूसरा लड़का ढूंढ लेंगे।

पुष्पा नजरे उठाकर सुरभि को देखती हैं और शरमाते हुए बोलती हैं……मां आप दोनों मुझसे नाराज़ नहीं हों और मेरी शादी आशीष से करवा देंगे।

सुरभि…… हां क्यो नहीं तुम उससे प्यार करती हों तो हम तुम्हारी शादी उससे ही करवा देंगे हमे हमारी बेटी की खुशियां प्यारी हैं। लड़के का नाम तो तुमने बता दिया अब यह भी बता दो कब से तुम दोनों का प्रेम प्रसंग चल रहीं हैं। लड़के के घर में कौन-कौन हैं और उनके घर वाले करते किया हैं।

पुष्पा…… आशीष और मेरा प्रेम प्रसंग पिछले चार साल से चल रही हैं। आशीष और मैं एक दूसरे से बहुत प्यार करते हैं। आशीष मेरे साथ ही mba कर रहा हैं। आशीष के घर में उसके मां बाप एक बहन और आशीष से बड़ा एक भाई हैं। उनका अपना कारोबार हैं। जिसे आशीष के बड़े भाई और उसके पापा सभलते हैं। लेकिन आशीष का अपने कारोबार में कोई रुचि नहीं हैं वो ips ऑफिसर बना चाहता हैं। उसकी तैयारी भी पूरी हो चुकी हैं अगले महीने उसका पेपर हैं।

राजेंद्र……. ये तो अच्छी बात हैं आशीष ips बनकर देश सेवा करना चाहता हैं। पुष्पा तुम आशीष को फोन कर बता देना हम उससे और उसके मां बाप से मिलना चाहते हैं। आशीष आपने मां बाप को लेकर कल शाम के खाने पर हमारे घर आए।

पुष्पा खुश होकर बोलती हैं…… ठीक हैं पापा मैं बोल दूंगी।

सुरभि…… अब जल्दी से हाथ मुंह धोकर निचे आओ और कुछ खा पी लो।

सुरभि और राजेंद्र के जाने के बाद पुष्पा हाथ मुंह धोकर अपने कमरे में रखे टेलीफोन से फोन कर आशीष को सब बता देती हैं। उसे और उसके मां बाप काल शाम को खाने पर आने को बोलती हैं। आशीष हां बोलकर फोन काट देता हैं और पुष्पा नीचे आकर चाय नाश्ता करने लगाती हैं।

ऐसे ही बातों बातों में रात हों जाती हैं। रघु अभी तक नहीं पहुंचा था इसलिए दोनों चिंतित थे। तभी बाहर कार रुकने की आवाज़ आता हैं। सुरभि और राजेंद्र जाकर दरवाज़ा खोलते हैं और बहार जाते हैं । रघु कार से निकलकर इनकी ओर ही आ रहा था। सुरभि ओर राजेंद्र को देखकर रूक जाता हैं उनके पास आने पर उनके पैर छूता हैं फिर एक दूसरे का हल चाल लेकर अंदर आते हैं। अंदर आकर पुष्पा को न देखकर "पुष्पा कहा हैं पूछता हैं" सुरभि पुष्पा की कमरे में होने की बात कहती हैं तब रघु तुरंत पुष्पा की कमरे की और भागता हैं उसे भागते देखकर सुरभि और राजेंद्र मुस्करा देती हैं। रघु दरवाजे पर पहुंचकर दरवाजा खटखटाता हैं। पुष्पा दरवजा खोलकर रघु को देखकर चीख पड़ती हैं और बोलती हैं…….. भईया आप कब आए और कैसे हों।

रघु……. मैं ठीक हू। अभी अभी आया हु और सीधा तेरे पास आ गया। तू कैसी हैं।

पुष्पा…… मैं ठीक हू घर पर सब कैसे हैं।

रघु….. सब ठीक हैं तुझे बहुत याद करते हैं।

पुष्पा…… कोई मुझे याद नहीं करते याद करते होते तो मुझसे मिलने आते आप भी नहीं करते न ही अपनी इकलौती बहन से प्यार करते हों।

रघु….. किसने कहा मैं तूझसे प्यार नहीं करता। तुझे प्यार नहीं करता तो आते ही तुझसे मिलने क्यों आता।

पुष्पा….. अच्छा अच्छा मानती हूॅं आप मुझसे बहुत प्यार करते हों अब आप हाथ मुंह धोकर अइए फिर बहुत सारी बाते करेंगे।

रघु एक कमरे में जाकर हाथ मुंह धोता हैं फिर आकर सब के साथ बैठ जाता हैं और पुष्पा के साथ नोक झोंक शुरू कर देता हैं। पुष्पा शिकायतो की झड़ी लगा देती हैं तो रघु भी कम नहीं था। इन दोनों की नोक झोंक सुनाकर राजेंद्र और सुरभि मुस्कुराते रहते हैं। अपने बहन के गीले शिकवे दूर करने के बाद रघु राजेंद्र से पूछता हैं…… पाप इतना किया जरूर काम था जो आपने मुझे आज ही और जल्दी जल्दी बुला लिया कितना काम पड़ा हैं।

सुरभि….. चुप कर जुम्मा जुम्मा दो दिन हुए ऑफिस जाना शुरू किया और जाते ही काम काम राग अलापने लग गया।

ये सुनाकर सब हंस देते है फिर राजेंद्र कहता हैं……. वहा का काम तो होता ही रहेगा। यह बहुत जरूर काम हैं इसलिए बुलाया हैं। कल हमे कहीं जाना हैं। पुष्पा तुम भी कल कॉलेज मत जाना तुम भी हमारे साथ चलोगी।

रघु और पुष्पा एक साथ बोलते हैं….. कह जाना हैं।

सुरभि….. कल तक प्रतिक्षा करों फिर पाता चाल ही जायेगा ।


दोनों ज्यादा बहस नहीं करते और हां में सर हिलाकर चुप हों जाते। आज के लिए इतना ही आगे की कहानी अगले अपडेट से, साथ बाने रहने के लिए सभी पाठकों को बहुत बहुत धन्यवाद।


मेरे कुछ और रचनाएं

संस्कार या मजबूरी

Nice and superb update...
 

Luffy

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Update - 12


जाते हुए सुरभि राजेन्द्र से बोलती हैं….. आपने उन दोनों पर कुछ ज्यादा ही कड़ा तेवर दिखा दिया। अपने देखा न पुष्पा की रोने जैसी सूरत हों गई थीं।

राजेन्द्र….. सुरभि मुझे अपना तेवर कड़ा करना पडा मैं ऐसा नहीं करता तो उस लड़के को कैसे परखता जो हमारे बेटी से प्यार करता हैं।

सुरभि….. लड़के को परखना ही था तो आज ही करना जरूरी थोड़ी था आप बाद में भी तो परख सकते थें। आज प्यार से दोनों के राय जान लेते।

राजेंद्र….. बाद में परखते तो शायद लड़का दिखावा करता लेकिन आज अचानक ऐसा करने से लड़के को मौका ही नहीं मिला और उसने वही किया जो उसके दिल ने कहा। उसके अंदर छुपे प्यार जो वो हमारे बेटी से करता हैं, करने पर मजबूर किया।

सुरभि…. आप तो अंतर यामी हों जो बिना कहे ही उसके मन की बातों को जान लिए।

राजेंद्र….. इसमें अंतरयामी होने की जरूरत ही नहीं वह जो कुछ भी हुआ प्रत्यक्ष दिख रहा था। तुमने गौर नहीं किया लेकिन मैं दोनों के हाव भव को गौर से देख रहा था।

सुरभि…… क्या देखा अपने जरा मुझे भी तो बताईए।

राजेंद्र….. सबसे पहले तो जब हम अचानक उनके सामने गए। तब लड़के के प्यार में कोई खोट होता तो हमे देखकर भाग जाता लेकिन भागा नहीं खड़ा रहा सर्फ खड़ा ही नहीं रहा पुष्पा का हाथ पकड़े रहा जो यह दर्शाता हैं। परिस्थिती कैसी भी हो वो पुष्पा का हाथ कभी नहीं छोड़ेगा।

सुरभि….. मैं तो इन सब पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया अब आगे किया करना हैं।

राजेंद्र…... करना किया हैं यह तो पुष्पा ही बताएगी। पुष्पा जो चाहेगी मैं वह ही करुंगा।

सुरभि…. इसका तो सीधा मतलब यहीं निकलता हैं आप हमारे बेटी के प्रेम को मंजूरी दे रहें हैं।

राजेंद्र…… हमारी बेटी ने प्रेम किया हैं कोई जूर्म नहीं, मैं प्रेम का दुश्मन नहीं हूं जो मेरी बेटी और उसके प्रेम के बीच दीवार बनकर खड़ा रहूं। फिर ड्राइवर से बोलता हैं… कल हम जिस कॉलेज में गए थे उस कॉलेज में लेकर चलो।

ड्रावर…… जी साहब।

सुरभि….. हम कल वाली कॉलेज क्यों जा रहें हैं।

राजेंद्र….. कॉलेज से उस लडक़ी कमला के घर का पता लेकर उसके घर जायेंगे और उसके मां बाप से रिश्ते की बात करेंगे।

सुरभि…… अपको क्या लगाता हैं वो लोग रिश्ते के लिए राजी होंगे।

राजेंद्र…….. हमे लड़की पसंद हैं यह खबर उन तक पहुंचना हमारा काम हैं। राजी होना न होना यह तो उनका फैसला हैं।

बातो बातों में कॉलेज आ जाता हैं। दोनों उतरकर कॉलेज के अंदर जाते हैं। वह से सीधा प्रिंसिपल के ऑफिस जाते हैं। बाहर खड़ा पिओन उन्हें देखकर तुरंत दरवजा खोलकर बोलता हैं…. सर कल के मुख्य अथिति आए हैं आप कहें तो उन्हें अंदर भेजूं।

सुनाकर प्रिंसिपल बाहर आता हैं। दरवाज़े पर किसी को न देखकर पिओन से पूछता तभी उससे सामने से राजेंद्र और सुरभि आते हुए दिखाई देता हैं। प्रिंसिपल सिघ्रता से उनके पास जाता हैं और हाथ जोड़कर दोनों को प्रणाम करता हैं। राजेंद्र और सुरभि भी उन्हें प्रणाम करते हैं। फिर इनके साथ चल देते हैं। अंदर आने से पहले प्रिंसिपल पिओन को चाय लाने को कहता हैं। पिओन चाय लेने चल देता हैं। अंदर आकर प्रिंसिपल, सुरभि और राजेंद्र को बैठने को कहता हैं। उनके बैठने के बाद खुद भी बैठ जाता हैं और कहता हैं……. राजा जी आपके आने का करण जान सकता हूं।

राजेंद्र….. हम कुछ विशेष काम से आए हैं। जिसमे आप ही हमारी मदद कर सकते हैं।

प्रिंसिपल…… आप बताइए मेरे बस में होगा तो मैं बेशक आपकी मदद करूंगा।

राजेंद्र….. कल जिस लडक़ी ने आर्ट में प्रथम पुरस्कार विजेता बनी थीं। मुझे उस लडक़ी कमला के घर का पाता चाहिए, उसके मां बाप से मिलना हैं।

प्रिंसिपल……. ओ तो अपको कमला के घर का पाता चाहिएं मैं अभी कमला को बुलाता हूं। वह खुद ही आपको अपने घर लेकर जाएगी। फिर पिओन को बुलाकर कहता हैं… कमला को बुलाकर लाना।

पिओन कमला को बुलाकर लाता हैं। कमला बाहर से ही पुछती हैं…... सर मैं अंदर आ सकती हूं।

प्रिंसिपल उसे अंदर आने को कहता हैं। कमला अंदर आकर राजेंद्र और सुरभि को देखकर उन्हें प्रणाम करता हैं फिर प्रिंसिपल से पूछता हैं…..सर अपने मुझे बुलवा भेजा था कुछ विशेष काम था।

प्रिंसिपल राजेंद्र की ओर इशारा करते हुए बोला….. कमला इन्हे तो तुम जानती ही हों। इन्हें तुम्हारे घर जाना हैं इसलिए तुम इन्हें अपने घर लेकर जाओ।

कमला …… सर ये तो कल के मुख्य अथिति हैं। मैं इन्हें मेरे घर लेकर जा सकता हूं लेकिन मेरा क्लास चल रहा हैं।

प्रिंसिपल….. कमला ज्यादा समय नहीं लगेगा तुम इन्हें अपने घर पहुंचाकर आ जाना फिर कर लेना क्लास।

कमला…... जी सर फिर राजेंद्र से बोला …. चलिए सर और मैडम।

राजेंद्र प्रिंसिपल से फिर मिलने को बोलकर कमला के साथ चल देता हैं। कार के पास आकर राजेंद्र आगे बैठ जाता हैं और कमला सुरभि के साथ पीछे बैठ जाता हैं। ड्राइवर कमला के बताए दिशा में कार चला देता हैं। सुरभि कमला से उसके बारे में बहुत सी जानकारी लेती हैं। कमला किस क्षेत्र की पढ़ाई कर रहीं हैं उसके घर में कौन-कौन हैं। ऐसे ही बाते करते हुए कमला का घर आ जाता हैं। कमला के कहने पर ड्राइवर कार को अंदर लाता हैं। कार से उतरकर कमला दरवाज़े पर लटक रहीं घंटी को बजता हैं। दरवजा कमला की मां खोलती हैं। कमला को देखकर बोलती हैं……. कमला तू इस वक्त, यह क्या कर रहीं हैं। तेरी स्वस्थ खराब हों गई जो तू इस वक्त घर आ गईं।

कमला……. मां मैं ठीक हूं। सुरभि और राजेंद्र की ओर दिखते हुए बोली…. इन्हें हमारे घर आना था इसलिए इन्हें लेकर आई हूं।

मनोरमा राजेंद्र और सुरभि को देखकर उन्हें प्रणाम करती हैं और उन्हें अंदर आने को कहती हैं। अंदर आकर राजेंद्र और सुरभि को बैठने के लिए कहती हैं। उनके बैठते ही कमला किचन में जाती हैं और पानी लाकर उन्हें देती हैं फिर कमला बोलती हैं….. मां आप लोग बात करों मैं कॉलेज जा रहीं हूं।

मनोरमा …… ठीक हैं संभाल कर जाना।

तभी सुरभि बोलती हैं….. बेटी रुको।

सुरभि कमला को लेकर बाहर आती हैं और ड्राइवर को बोलती हैं….. जग्गू तुम इनको कॉलेज छोड़ आओ।

कमला….. मैं चली जाऊंगी आप इन्हें क्यो परेशान कर रहीं हों।

सुरभि मुस्कुराकर बोलती हैं…… बेटी चाली तो जाओगी लेकिन जाने में आपको देर हों जायेगी। इसलिए आप इनके साथ जाओ जल्दी कॉलेज पहुंच जाओगी।

कमला सर हिलाकर हां बोलती हैं और कार में बैठ कर चल देती हैं। सुरभि अंदर आती हैं। सुरभि के आने के बाद बोलती हैं…… बहुत प्यारी बच्ची हैं।

मनोरमा…. जी हां। आप दोनों कल मुख्य अथिति बनकर आए थे न।

सुरभि…… जी हां।

मनोरमा…. आप मुझे कुछ वक्त दीजिए मैं आप के लिए चाय नाश्ते की व्यवस्था करके लाती हूं फ़िर बात करेंगे।

सुरभि….. रहने दीजिए हम अभी चाय नाश्ता करके आए हैं।

मनोरमा….. जी नहीं आप दोनों पहली बार हमारे घर आए हैं मैं आपकी एक भी नहीं सुनने वाली आप दोनों बैठिए मैं अभी आई।

मनोरमा ये कहकर किचन की ओर चल देती हैं सुरभि रूकने के लिए कहती लेकिन मनोरमा नहीं रुकती तब सुरभि भी उठाकर किचन की ओर चल देती हैं। सुरभि को किचन में आया देखकर मनोरमा बोलती हैं…… आप यह क्यो आई हों आप जाकर बैठिए मैं अभी चाय बनाकर लाती हूं।

सुरभि….. जब अपने मेरी नहीं सुनी तो मैं आपकी क्यों सुनूं । दोनों मिलकर काम करेंगे तो जल्दी बन जाएगी।

मनोरमा…… जी बिलकुल नहीं आप मेरे मेहमान हैं और मेहमानों से कम नहीं करवाते हैं।

सुरभि मुस्कुरा देती हैं और मनोरमा सिघरता से चाय बनाती हैं। चाय बनाने के बाद तीन काफ में चाय डालती हैं और कुछ नमकीन एक प्लेट में डालकर चाय का काफ एक प्लेट में रखकर उठा लेती हैं। सुरभि नमकीन की प्लेट उठा लेती हैं फिर दोनों आकर चाय और नमकीन रखकर बैठ जाती हैं। मनोरमा एक काफ उठा कर राजेंद्र को देती हैं। एक काफ सुरभि को और एक काफ ख़ुद उठा लेती हैं। चाय पीते हुए सुरभि बोलती हैं…… बहन जी आपके पति कहा हैं।

मनोरमा…… जी वो तो ऑफिस गए हैं।

सुरभि….. बहनजी हम आपसे कुछ मांगने आए हैं क्या आप हमारी मांगे पुरी करेंगी।

मनोरमा…… मैं आपको क्या दे सकती हूं। आप तो राज परिवार से ताल्लुक रखते हों। आपको किस चीज की कमी है जो आप मुझसे मांग रहीं हों।

सुरभि….. हम राज परिवार से हैं तो किया हुआ। राज परिवार हों या सामान्य परिवार से हों उनको कभी न कभी दूसरो के सामने हाथ फैलाकर मांगना ही पड़ता हैं। क्योंकि उनके परिवार में जिस शख्स की कमी होती हैं उसे दूसरे परिवार से मांगकर ही भरा जा सकता हैं।

मनोरमा…... अपके परिवार की कमी को पूर्ति करने के लिए आप मुझसे मांग कर रही हो। बोलिए आप किया मांगना चहते हैं। मेरी क्षमता में होगी तो मैं जरूर अपकी मांग पुरी करूंगा। यह तो मेरा सौभाग्य होगी मैं राज परिवार के कुछ काम आऊ।

सुरभि….. जी हम आपके सुपुत्री का हाथ हमारे सुपुत्र रघु प्रताप राना के लिए मांगने आए हैं। क्या आप हमारी इस मांग को पुरी कर सकती हों।

मनोरमा चाय पीते पीते रूक जाती है और उनकी और अचंभित होकर देखती हैं। मनोरमा को ऐसे देखते देखकर राजेंद्र बोलता हैं……. आप हमे ऐसे क्यों देख रहे हों सुरभि ने कुछ गलत बोल दिया हैं तो आप हमे माफ कर देना।

मनरोमा….. नहीं नहीं इन्होंने कुछ गलत नहीं बोला। मेरे घर एक बेटी ने जन्म लिया हैं तो कभी न कभी उसकी हाथ मांगने कोई न कोई आयेगी ही। मैं तो इसलिए अचंभित हु। हम आपके राजशी ठाठ बांट के आगे सामान्य परिवार है फिर भी आप मेरी बेटी का हाथ मांगने आए हैं।

राजेंद्र….. राजशी ठाठ बांट हैं तो क्या हुआ हमे अपकी बेटी पसंद आया हैं इसलिए हम आपकी बेटी का हाथ मांगने आए हैं। आप साधारण परिवार से हैं या असाधारण हमे उनसे कोई लेना देना नहीं हैं।

मनोरमा….. आप का कहना सही हैं लेकिन यह फैसला मैं अकेले नहीं ले सकती मेरा पति होता तो हम कुछ कह पाते।

सुरभि…… हम आपसे सिर्फ अपनी बात कहने आए थे अगर आप कहें तो हम कल फिर आ जायेंगे।

मनोरमा….. मैं कल कमला के पापा को रुकने के लिए कहूंगी आप कल फिर आना तब ही बात आगे बढ़ाएंगे।

राजेंद्र…. ये ठीक रहेगा। मैं भी रघु को यह बुला लेता हु आप भी रघु को देख लेना। रघु और कमला भी एक दूसरे को देख लेंगे, अगर इनकी हा होती हैं और अपको रघु पसंद आता हैं तो ही हम बात आगे बढ़ाएंगे।

मनोरमा….. हां ये ठीक रहेगी। हमारी पसंद, नापसंद मायने नहीं रखती जिन्हें ज़िंदगी भर साथ रहनी हैं उनकी पसंद न पसंद मायने रखती हैं।

राजेंद्र….. तो यह तय रहा कल हम हमारे बेटे के साथ आयेगे।

इसके बाद दोनों मनोरमा से विदा लेकर चल देते हैं। घर आकर राजेंद्र रघु को ऑफिस में फोन लगाता हैं और उसे आज ही कलकत्ता आने को कहता हैं। रघु आने का कारण पूछता हैं तो राजेंद्र सच न बताकर जरूरी काम का बहाना बना देता हैं और उसे अभी के अभी चल देने को कहता हैं। रघु फोन काटकर मुंशी के पास जाता हैं। उसे जरूरी काम से कलकत्ता जा रहा हूं कहता है तो मुंशी रघु से कारण पूछता हैं तब रघु कहता हैं पापा ने जरूरी काम से मुझे अभी कलकत्ता बुला रहें हैं कहकर चल देता हैं घर आकर तैयार होकर सुकन्या को बताकर कलकत्ता को चल देता हैं।

..........................


पुष्पा किसी तरह कॉलेज में अपना समय कट रहीं थी। सुबह की घटना से उसकी दिल दिमाग में खलबली मची हुई थी। कॉलेज की छुट्टी होने पर आशीष उसे घर छोड़ने आने को कहता हैं लेकिन पुष्पा मना कर देती। लेकिन आशीष उसकी एक भी न सुनाकर उसे अपने साथ चलने को राजी कर लेता हैं। रस्ते में पुष्पा चुप थी। आशीष कई बार कहता तुम्हारा चुप रहना मुझे खाल रहा हैं।कुछ तो कहो।

लेकिन पुष्पा फिर भी चुप रहती हैं। आशीष कार को रोककर पुष्पा का हाथ पकड़कर बोलता हैं….. पुष्पा क्या हुआ आज इतने खामोश बैठी हों कुछ तो बोलों। कॉलेज में भी ऐसी ही रही। सुबह की घटना को लेकर इतना परेशान क्यों हों जो हुआ अच्छा ही हुए।

पुष्पा…... तुम्हारे लिए अच्छा हुआ लेकिन मेरे लिए तो बुरा हुआ न, पापा कभी मुझसे इतनी बेरूखी से बात नहीं करते लेकिन आज किया था। मुझे डर लग रहीं हैं घर जानें पर न जानें क्या क्या सुननी पड़ेगी।

आशीष……. उनका बेरूखी से बात करना स्वाभाविक हैं।सभी मां बाप अपने बेटी को लेकर चिंतित रहते ही हैं। क्योंकि दुनिया सब से पहले उंगली लडक़ी पर ही उठता हैं चाहें गलत कोई भी हों और हम ने प्यार किया है हम पर तो उंगली उठेगा ही।

पुष्पा….. मुझे इसी बात का ही डर हैं। दुनिया मुझ पर उंगली उठाए मैं सह लूंगी।लेकिन मेरी मां बाप मुझे गलत समझे मैं सह नहीं पाऊंगी। मुझे उन्हें पहले ही हमारे प्यार के बारे में बता देनी चाहिए थी।बता देती तो मुझे आज यह दिन नहीं देखनी पड़ती। आशीष मुझे घर नहीं जाना तुम मुझे कही ओर ले चलो मैं उनका सामना नहीं कर पाऊंगी।

आशीष…… बबली हो गई हो जो कुछ भी बोले जा रही हो घर नहीं तो ओर कहा जाओगी। तुम घर जाओ तुम कहो तो मैं भी चलता हूं मैं खुद उनसे बात करूंगा।

पुष्पा…….. तुम बात करोगी तुम खुद उनसे इतना डरते हों और कह रहे हों बात करोगे।

आशीष….. पहले लगाता था लेकिन सुबह मेरे ससुरा को जो बोला उसके बाद तो मेरा छीना चौड़ा हों गया हैं। पुष्पा तुम घर जाओ बात ज्यादा बड़े तो मुझे बता देना मैं मां पापा को कल ही बात करने को भेज दूंगा।

पुष्पा ……… आशीष फिर भी मुझे डर लग रही हैं। चलो मुझे घर छोड़ दो जो होगा देखा जाएगा।

आशीष कार चलते हुए बोला…… जो भी बात हों मुझे बता देना।

पुष्पा हा में गर्दन हिला देती हैं। घर से थोड़ी दूर पुष्पा कार रोकने को कहकर उतर जाती हैं और आशीष को जानें के लिए कहती हैं। आशीष कल मिलने को बोलकर चला जाता हैं। वह से पुष्पा पैदल चल देती हैं। आशीष के इतना समझने के बाद भी पुष्पा को घर जाने में डर लग रहा था और मन में दुआं कर रही थीं उसे अभी मां बाप का सामना न करना पड़े। दुआं करते हुए पुष्पा घर पहुंच जाती हैं। डरते डरते पुष्पा बेल बजती हैं। दरवजा खुलता हैं तब पुष्पा आंखें बंद कर लेती हैं। दरवजा चंपा खोलती हैं और बोलती हैं…... मेम साहिबा आप आ गई अंदर आइए ऐसे आंखे बंद किए क्यों खड़ी हों।

चंपा की आवाज सुनकर पुष्पा आंख खोल कर देखती हैं और मुस्करा कर अंदर आते हुए बोलती हैं……. मां पापा कहा हैं।

चंपा….. जी वो विश्राम कर रहे हैं आप कहो तो उन्हे जगा दूं।

पुष्पा….. नहीं उन्हें जगाने की जरूरत नहीं हैं।

चंपा…. ठीक हैं। आप हाथ मुंह धो लिजिए मैं खाना लगा देती हूं।

पुष्पा….. मुझे अभी भूख नहीं हैं तुम जाकर विश्राम करों जब भूख लगेगी बता दूंगी।

पुष्पा कमरे में जाकर लेट गई। वो विस्तार पर करवटें बदल रहीं थीं आगे क्या होगा इसको सोचकर ही घबरा रही थी। ज्यादा सोचने से मानसिक थकान के कारण पुष्पा सो जाती हैं। शाम को सुरभि और राजेंद्र उठाकर हाथ मुंह धोकर कमरे से बाहर आते हैं। सुरभि चंपा को आवाज लगती हैं। चंपा के आने पर चाय बनने को कहती हैं और पुष्पा को पूछती हैं। तब चंपा बोलती हैं….. रानी मां पुष्पा मालकिन आ गई हैं लेकिन उन्होंने अभी तक खाना नहीं खाया।

सुरभि…… इतना समय हो गई हैं और पुष्पा खाना नहीं खाई तुम अब बता रहीं हों। तुम जाओ कुछ खाने को लाओ मैं देखती हूं।

राजेंद्र कुछ सोचकर चिंतित होकर बोलता हैं…… सुरभि मुझे लगाता हैं सुबह की बात को लेकर पुष्पा परेशान हैं। जल्दी चलो कही कुछ कर न बैठी हों।

सुरभि भी चिंतिन होकर रुवशा होकर बोली….. आपको कहा था आप कुछ ज्यादा बोल दिए हों लेकिन आप सुने नहीं मेरी लाडली को कुछ हुआ तो देख लेना।

दोनों जल्दी से पुष्पा के कमरे में गए, दरवजा बंद देखकर सुरभि दरवजा पीटने लगीं और आवाज देने लगीं दरवजा नहीं खुला तो सुरभि रोते हुए बोली….. देखो न दरवजा नहीं खोल रहीं है आप जल्दी से कुछ कीजिए न कहीं पुष्पा ने कुछ कर न लिया हों।

राजेंद्र सुरभि को हटाकर जोर जोर से दरवजा पिटती हैं और आवाज देती हैं। शोरसराबे के करण पुष्पा की नींद टूट जाती हैं। आंखे मलते हुए पुष्पा बैठ जाती है। तभी उसे फिर से आवाज सुनाई देती आवाज सुनकर पुष्पा मन में बोलती हैं….. ये भगवान बचा लेना पाता नहीं अब किया होगा कैसे सामना करूंगी मां पापा का क्या जवाब दूंगी उन्हें।

तभी सुरभि रोते हुए बोलती हैं…. आप किया कर रहें हों दरवजा तोड़ क्यों नहीं देती।

दरवजा तोड़ने और सुरभि के रोने की आवाज़ सुनाकर पुष्पा मन में सोचते हुए…… मां क्यों रो रहीं हैं और पापा को दरवजा तोड़ने को क्यो कह रहीं। जाकर दरवाज़ा खोलती हैं। दरवजा खोलते ही सुरभि अंदर आकर पुष्पा को गाले से लगकर बोलती हैं…… तू ठीक तो हैं न, ओ जी आप जल्दी से डॉक्टर को फोन करों।

पुष्पा…… मां मैं ठीक हू डॉक्टर को फोन करने की जरूरत नहीं हैं।

सुरभि पुष्पा को घुमा फिराकर देखती हैं और उसके मूंह के पास नाक लाकर सूंघती हुई बोलती हैं…….. तू ने कुछ पिया बिया तो नहीं हैं देख मुझे सच सच बता दे।

पुष्पा ….. न मैंने कुछ खाया हैं न कुछ पिया हैं मैं बिलकुल ठीक हूं।

राजेंद्र पुष्पा को ले जाकर बेड पर बिठा देता है और खुद भी बैठ जाता हैं। सुरभि भी जाकर पुष्पा के दूसरे तरफ बैठ जाती हैं और पुष्पा के सर पर हाथ फिराने लगती हैं और राजेंद्र बोलता हैं…… भूल कर भी ऐसा कुछ करने के बारे में न सोचना तुम्हें कुछ हुआ तो मेरा और तुम्हारी मां का क्या होगा सोचो जरा तुमने दरवजा खोलने में देर लगाई उतने वक्त में पाता नहीं मैने और तुम्हारे मां ने किया किया सोच लिया देखो अपनी मां को कुछ ही वक्त में अपना हल किया बना लिया।

पुष्पा ने सुरभि की और गैर से देखा सुरभि की आंखो से नीर बह रहीं थीं। पुष्पा सुरभि के बहते अंशु को पोछते हुए बोली….. मां पापा मुझे माफ कर देना आपने मुझे यह पड़ने के लिए भेजा और मैं यह पढ़ने के साथ कुछ ओर ही कर बैठी।

सुरभि पुष्पा को छीने से चिपका लिया और बोली……. कब से चल रहीं हैं और लड़के का नाम किया हैं।

पुष्पा अलग होकर सुरभि के आंखो में देखकर समझने की कोशिश कर रहीं थीं सुरभि उसे डाट रहीं हैं या पुछ रहीं हैं फिर नजरे झुकाकर बैठ गई और पैर की उंगली से फर्श को कुरेदने लगी। पुष्पा शर्मा भी रहीं थीं और डर भी रहीं थीं फिर राजेंद्र बोला…… बेटी डरने की जरूरत नहीं हैं हम तुमसे नाराज नहीं हैं अब बताओ कब से चल रहा हैं।

पुष्पा कुछ नहीं बताती चुप रहती हैं और उंगलियों को मढोरने लगती राजेंद्र देखकर मुस्कुराते हुए बोलता हैं…... पुष्पा हम तो सोच रहें थे तुमसे लड़के की जानकारी लेकर उसके घर वालो से मिलकर तुम्हरे शादी की बात करूंगा लेकिन तुम नहीं चहती तो हम कोई दूसरा लड़का ढूंढ लेंगे।

पुष्पा दूसरे लड़के की बात सुनाकर बेखायली में बोलती हैं…… मैं आशीष से बहुत प्यार करती हूं मैं शादी करूंगी तो आशीष से नहीं तो किसी से नहीं।

बोलने के बाद पुष्पा को समझ आती बेखयाली में क्या बोल गई इसलिए शर्मा जाती हैं। राजेंद्र और सुरभि मुस्करा देती हैं फिर राजेंद्र मुस्कुराते हुऐ बोलता हैं….. ओ इतना प्यार तो आगे की भी बता दो कब से चल रहा हैं।

पुष्पा शर्मा कर सुरभि से लिपट जाती हैं फिर सुरभि बोलती हैं……. अब शर्मा कर किया होगी। हम जो पुछ रहे हैं बता दो नहीं तो हम सच में दूसरा लड़का ढूंढ लेंगे।

पुष्पा नजरे उठाकर सुरभि को देखती हैं और शरमाते हुए बोलती हैं……मां आप दोनों मुझसे नाराज़ नहीं हों और मेरी शादी आशीष से करवा देंगे।

सुरभि…… हां क्यो नहीं तुम उससे प्यार करती हों तो हम तुम्हारी शादी उससे ही करवा देंगे हमे हमारी बेटी की खुशियां प्यारी हैं। लड़के का नाम तो तुमने बता दिया अब यह भी बता दो कब से तुम दोनों का प्रेम प्रसंग चल रहीं हैं। लड़के के घर में कौन-कौन हैं और उनके घर वाले करते किया हैं।

पुष्पा…… आशीष और मेरा प्रेम प्रसंग पिछले चार साल से चल रही हैं। आशीष और मैं एक दूसरे से बहुत प्यार करते हैं। आशीष मेरे साथ ही mba कर रहा हैं। आशीष के घर में उसके मां बाप एक बहन और आशीष से बड़ा एक भाई हैं। उनका अपना कारोबार हैं। जिसे आशीष के बड़े भाई और उसके पापा सभलते हैं। लेकिन आशीष का अपने कारोबार में कोई रुचि नहीं हैं वो ips ऑफिसर बना चाहता हैं। उसकी तैयारी भी पूरी हो चुकी हैं अगले महीने उसका पेपर हैं।

राजेंद्र……. ये तो अच्छी बात हैं आशीष ips बनकर देश सेवा करना चाहता हैं। पुष्पा तुम आशीष को फोन कर बता देना हम उससे और उसके मां बाप से मिलना चाहते हैं। आशीष आपने मां बाप को लेकर कल शाम के खाने पर हमारे घर आए।

पुष्पा खुश होकर बोलती हैं…… ठीक हैं पापा मैं बोल दूंगी।

सुरभि…… अब जल्दी से हाथ मुंह धोकर निचे आओ और कुछ खा पी लो।

सुरभि और राजेंद्र के जाने के बाद पुष्पा हाथ मुंह धोकर अपने कमरे में रखे टेलीफोन से फोन कर आशीष को सब बता देती हैं। उसे और उसके मां बाप काल शाम को खाने पर आने को बोलती हैं। आशीष हां बोलकर फोन काट देता हैं और पुष्पा नीचे आकर चाय नाश्ता करने लगाती हैं।

ऐसे ही बातों बातों में रात हों जाती हैं। रघु अभी तक नहीं पहुंचा था इसलिए दोनों चिंतित थे। तभी बाहर कार रुकने की आवाज़ आता हैं। सुरभि और राजेंद्र जाकर दरवाज़ा खोलते हैं और बहार जाते हैं । रघु कार से निकलकर इनकी ओर ही आ रहा था। सुरभि ओर राजेंद्र को देखकर रूक जाता हैं उनके पास आने पर उनके पैर छूता हैं फिर एक दूसरे का हल चाल लेकर अंदर आते हैं। अंदर आकर पुष्पा को न देखकर "पुष्पा कहा हैं पूछता हैं" सुरभि पुष्पा की कमरे में होने की बात कहती हैं तब रघु तुरंत पुष्पा की कमरे की और भागता हैं उसे भागते देखकर सुरभि और राजेंद्र मुस्करा देती हैं। रघु दरवाजे पर पहुंचकर दरवाजा खटखटाता हैं। पुष्पा दरवजा खोलकर रघु को देखकर चीख पड़ती हैं और बोलती हैं…….. भईया आप कब आए और कैसे हों।

रघु……. मैं ठीक हू। अभी अभी आया हु और सीधा तेरे पास आ गया। तू कैसी हैं।

पुष्पा…… मैं ठीक हू घर पर सब कैसे हैं।

रघु….. सब ठीक हैं तुझे बहुत याद करते हैं।

पुष्पा…… कोई मुझे याद नहीं करते याद करते होते तो मुझसे मिलने आते आप भी नहीं करते न ही अपनी इकलौती बहन से प्यार करते हों।

रघु….. किसने कहा मैं तूझसे प्यार नहीं करता। तुझे प्यार नहीं करता तो आते ही तुझसे मिलने क्यों आता।

पुष्पा….. अच्छा अच्छा मानती हूॅं आप मुझसे बहुत प्यार करते हों अब आप हाथ मुंह धोकर अइए फिर बहुत सारी बाते करेंगे।

रघु एक कमरे में जाकर हाथ मुंह धोता हैं फिर आकर सब के साथ बैठ जाता हैं और पुष्पा के साथ नोक झोंक शुरू कर देता हैं। पुष्पा शिकायतो की झड़ी लगा देती हैं तो रघु भी कम नहीं था। इन दोनों की नोक झोंक सुनाकर राजेंद्र और सुरभि मुस्कुराते रहते हैं। अपने बहन के गीले शिकवे दूर करने के बाद रघु राजेंद्र से पूछता हैं…… पाप इतना किया जरूर काम था जो आपने मुझे आज ही और जल्दी जल्दी बुला लिया कितना काम पड़ा हैं।

सुरभि….. चुप कर जुम्मा जुम्मा दो दिन हुए ऑफिस जाना शुरू किया और जाते ही काम काम राग अलापने लग गया।

ये सुनाकर सब हंस देते है फिर राजेंद्र कहता हैं……. वहा का काम तो होता ही रहेगा। यह बहुत जरूर काम हैं इसलिए बुलाया हैं। कल हमे कहीं जाना हैं। पुष्पा तुम भी कल कॉलेज मत जाना तुम भी हमारे साथ चलोगी।

रघु और पुष्पा एक साथ बोलते हैं….. कह जाना हैं।

सुरभि….. कल तक प्रतिक्षा करों फिर पाता चाल ही जायेगा ।

दोनों ज्यादा बहस नहीं करते और हां में सर हिलाकर चुप हों जाते। आज के लिए इतना ही आगे की कहानी अगले अपडेट से, साथ बाने रहने के लिए सभी पाठकों को बहुत बहुत धन्यवाद।
Superb update
 
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