अजनबी हमसफ़र-रिश्तों का गठबंधन
Update - 7
सुरभि…… ओ तो यह बात हैं मुझे तो ऐसा लग रहा है अब तक जो कुछ भी हुआ हैं इसका करण कहीं न कहीं यह गुप्त संपत्ति ही हैं।
राजेंद्र…… मतलब ये की कोई हमारे गुप्त संपत्ति को पाने के लिए साजिश कर रहा हैं। लेकिन गुप्त संपत्ति के वसीयत के बारे में मैं और हमारा वकील दलाल और अब तुम जानती हों इसके अलावा किसी को पता नहीं हैं।
सुरभि….. मेरी शक की सुई घूम फिर कर इन दोनों पर आकर रूक रहीं हैं। मुझे लग रहीं हैं अब तक जो कुछ भी हुआ हैं इसमें कहीं न कहीं रावण और दलाल में से किसी का हाथ हैं या फिर दोनों भी हों सकते हैं।
राजेंद्र….. सुरभि तुम बबली हों गई हों तुम रावण पर शक कर रहीं हों , रावण मेरा सगा भाई हैं वो ऐसा कुछ नहीं करेगा, कुछ करना भी चाहेगा तो भी नहीं कर पायेगा क्योंकि उसे वसीयत के बारे में कुछ पाता नहीं हैं और दलाल वो हमारे परिवार का विश्वास पात्र बांदा हैं । उसके पूर्वज भी हमारे परिवार के लिए काम करता रहा हैं।
सुरभि….. आप भी न आंख होते हुऐ भी अंधा बन रहे हों……..
राजेंद्र….. तुम कहना किया चाहती हों ।
सुरभि….. आप जो आंख मूंद कर सब पर भरोसा करते हों, आपके इसी आदत के कारण आज ये मुसीबत आन पड़ी है।
राजेंद्र…. तो क्या अब मैं किसी पर भरोसा भी न करूं।
सुरभि….. भरोसा करों लेकिन आंख मूंद कर नहीं और इस वक्त तो बिलकुल नहीं इस वक्त आप सब को शक की दृष्टि से देखो नहीं तो बहुत बड़ा अनर्थ हों जाएगा।
राजेंद्र…. तो क्या मैं अपने परिवार पर ही शक करूं। ये मैं नहीं कर सकता।
सुरभि…… आप समझ नहीं रहें हों इस वक्त जो परिस्थिती बना हुआ हैं यह बहुत विकट परिस्थिती हैं। इस वक्त हम नहीं समले तो बाद में हमे सम्हालने का मौका नहीं मिलेगी।
राजेंद्र……. तो किया मैं अब घर परिवार के लोगों पर ही शक करूं।
सुरभि……. आप हमेशा से ही ऐसा करते आ रहे हों। आप को कितनी बार कहा हैं आप ऐसे किसी पर अंधा विश्वास न करें लेकिन आप सुनते ही नहीं हों। अपका यह अंधा विश्वास करना ही अपके सामने विकट परिस्थिती उत्पन्न कर देता हैं।
राजेंद्र…… सुरभि कहना आसान लेकिन करना बहुत मुस्किल किसी पर उंगली उठाने से पहले उसके खिलाफ पुख्ता प्रमाण होना चाहिए। बिना प्रमाण के किसी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता।
सुरभि…… मैं कौन सा आपसे कह रहा हूं आप जाकर उनकी गिरेबान पकड़े और कहे तुमने हमारे खिलाफ साजिश क्यों किया। मैं बस इतना का रहा हूं आप उन्हे शक के केंद्र में लेकर अपने काम को आगे बढ़ाए।
राजेंद्र….. ठीक हैं! तुम जैसा कह रही हों मैं वैसा ही करुंगा अब खुश ।
सुरभि……. हां मैं खुश हूं और कुछ रह गया हों तो बोलों वह भी पूरा कर देती हूं।
राजेंद्र……. अभी प्यार का खेल खेलना बाकी रह गया हैं उसको शुरू करे।
सुरभि…… मुझे नहीं पता आप कौन से प्यार की खेल की बात कर रहें हों और न ही मुझे कोई प्यार का खेल आप के साथ खेलना हैं।
राजेंद्र….. सुरभि तुम तो बड़ा जालिम हों ख़ुद मेनका बनकर मुझे रिझाती हों और जब मैं रीझ गया तो साफ साफ मुकर रहीं हों। इतना जुल्म न करों मुझ पर मैं सह नहीं पाऊंगा।
सुरभि उठकर राजेंद्र से दूर जाते हुए पल्लू को सही करते हुए बोली…….
सुरभि….. आपको जिस काम के लिए रिझाया था वह तो हों गया। अभी हम दोनों के खेल खेलने का सही वक्त नहीं है। यह खेल रात में खेलना सही रहता हैं इसलिए आप रात्रि तक की प्रतिक्षा कर लिजिए।
राजेंद्र उठ कर सुरभि के पास जानें लगा सुरभि राजेंद्र को पास आते देखकर ठेंगा दिखाते हुए पीछे को हटने लगी। सुरभि को पीछे जाते हुए देख कर राजेंद्र सुरभि के पास जल्दी पहुंचने के लिए लंबे लंबे डग भरने लगे। राजेंद्र को लंबा डग भरते हुए देखकर सुरभि मुस्कुराते हुए पीछे होने लगी। सुरभि पीछे होते होते जाकर दीवाल से चिपक गईं। राजेंद्र सुरभि को दीवाल से चिपकते देखकर मुस्कुराते हुए सुरभि के पास पहुंचा और सुरभि को कमर से पकड़ कर खुद से चिपकते हुए बोला…..
राजेंद्र….. सुरभि अब कहा भागोगी अब तो तुम्हारा चिर हरण होकर रहेगा। रोक सको तो रोक लो।
सुरभि राजेंद्र के पकड़ से छुटने की प्रयत्न करते हुए बोली…..
सुरभि….. बड़े आए मेरा चिर हरण करने वाले छोड़ो मुझे अपको इसके अलावा ओर कुछ नहीं सूझता।
राजेंद्र…… गजब करती हों मैं क्यों छोडूं तुम्हें मैं नहीं छोड़ने वाला मैं तो अपने पत्नी को ढेर सारा प्यार करुंगा।
राजेंद्र सुरभि को चूमने के लिए मुंह आगे बड़ा रहा था सुरभि राजेंद्र को रोकते हुए बोली……
सुरभि…... हटो जी अपका ये ढेर सारा प्यार मुझ पर बहुत भारी पड़ता हैं। मुझे नहीं चाहिएं अपका ढेर सारा प्यार।
राजेंद्र…. अच्छा जी तुम्हें ढेर सारा प्यार न करू तो और किसे करू राजा महाराजा के खानदान से हूं। पिछले राजा महाराजा कईं सारे रानियां रखते थे। तुम मेरी एकलौती रानी हों तो तुम्हें ही तो ढेर सारा प्यार करुंगा।
सुरभि…… ओ तो अब अंपका मन मुझसे भरने लगा हैं अपको ओर पत्नियां चाहिएं हटो जी मुझे आपसे कोई बात नहीं करनी हैं।
राजेंद्र कुछ बोलता तभी कोई राजा जी, राजा जी करके आवाज देते हुए कमरे के बाहर खडा हों गया और फिर से आवाज देने लगा। राजेंद्र सुरभि को खुद से चिपकाए रखा और बोला……
राजेंद्र…..कौन हों बाहर मैं अभी विशेष काम करने में व्यस्त हूं।
शक्श….. राजा जी माफ करना मैं धीरा हूं। मुंशी जी आए हैं कह रहें हैं अपको उनके साथ कहीं जाना हैं।
धीरा के कहते ही राजेंद्र को याद आया। उसने मुंशी जी को किस काम के लिए बुलाया था और उनके साथ कहा जाना था। इसलिए सुरभि को छोड़ते हुए बोला….
राजेंद्र……. धीरा तुम जाओ और मुंशी जी की जलपान की व्यवस्था करों मैं अभी आता हूं।
धीरा…... जी राजा जी।
धीरा कह कर चला गया और राजेंद्र कपडे बदलने जानें लगा। राजेंद्र को जाते हुए देखकर सुरभि मुस्कुराते हुए बोली…..
सुरभि….. क्या हुआ आप ने मुझे छोड़ क्यों दिया। अपको तो ढेर सारा प्यार करना था। करिए न ढेर सारा प्यार देखिए मैं तैयार हूं।
राजेंद्र…… जख्मों पर नमक छिड़काना तुम से बेहतर कोई नहीं जानता छिड़क लो जितना नमक छिड़कना हैं। अभी तो मैं जा रहा हूं लेकिन रात को तुम्हें बताउंगा।
सुरभि राजेंद्र को ठेंगा दिखाते हुए कमरे से बाहर चाली जाती हैं। कुछ वक्त बाद राजेंद्र तैयार हों कर नीचे जाता हैं जहां मुंशी जी बैठे थे। मुंशी जी राजेंद्र को देखकर खडा हों जाते हैं और नमस्कार करते हैं। राजेंद्र मुंशी जी की और देखकर मुस्करा देते हैं और बोलते हैं…….
राजेंद्र…. मुंशी तुझे कितनी बार कहा हैं तू मेरे लिए खड़ा न होया कर न ही मुझे नमस्कार किया कर तू आकर सीधा मुझसे गले मिला कर लेकिन तेरे कान में जूं नहीं रेगता ।
राजेंद्र जाकर मुंशी के गाले मिलता हैं फिर अलग होकर मुंशी बोलता हैं।
मुंशी…… राना जी यह तो अपका बड़प्पन हैं। मैं इस महल का एक नौकर हूं और आप मालिक और अपका सम्मान करना मेरा धर्म हैं। मैं तो अपना धर्म निभा रहा हूं।
राजेंद्र……. मुंशी तू अपना धर्म ग्रन्थ अपने पास रख। तूने दुबारा नौकर और मालिक शब्द अपने मुंह से बोला तो तुझे तेरे पद से हमेशा हमेशा के लिए मुक्त कर दुंगा।
मुंशी…… राना जी आप ऐसा बिल्कुल न करना नहीं तो मेरे बीबी बच्चे भूख से बिलख बिलख कर मर जायेंगे।
राजेंद्र…. भाभी और रमन को भूखा नहीं मरने दूंगा लेकिन तुझे भूखा मर दुंगा अगर तूने दुबारा मेरे कहें बातो का उलघन किया। अब चल बहुत देर हों गया हैं। तू भी एक नंबर का अलसी हैं अपना काम ढंग से नहीं कर रहा हैं।
दोनों हंसते मुस्कुराते हुए घर से निकल जाते हैं। लेकिन कोई हैं जिसको इनका याराना पसंद नहीं आया और वह हैं सुकन्या जो धीरा के राजेंद्र को बुलाते सुनाकर खुद भी कमरे से बाहर आ गई और राजेंद्र और मुंशी जी के दोस्ताने व्यवहार को देखकर तिलमिलाते हुए खुद से बोली…….
सुकन्या…….. इन दोनों ने महल को गरीब खान बना रखा हैं एक नौकर से दोस्ती रखता हैं तो दूसरा महल के नौकरों को सर चढ़ा रखा हैं। एक बार महल का कब्जा मेरे हाथ आने दो सब को उनकी औकाद अच्छे से याद करवा दूंगी।
सुकन्या को अकेले में बदबड़ते हुए सुरभि देख लेती और पूछती……
सुरभी….. छोटी क्या हों गया अकेले में क्यों बडबडा रहीं।
सुकन्या…….. कुछ नहीं दीदी बस ऐसे ही।
सुरभि….. तो क्या भूत से बाते कर रहीं हैं।
सुकन्या आकर सुरभि को सोफे पर बिठा दिया और खुद भी बैठ गईं। सुकन्या के इस व्यवहार से सुरभि सुकन्या को एक टक देखने लगीं सुरभि ही नहीं रतन और धीरा भी ऐसे देख रहे थे जैसे आज कोई अजूबा हों गया हों। हालाकि यह अजूबा इससे पहले सुकन्या कर चुका था और सभी को सोचने पर मजबूर कर दिया था। सुकन्या जैसी नागिन जिसके मुंह में ज़हर की पोटली हमेशा खुला हुआ रहती हो और अपना ज़हर उगलने को तैयार रहती हो। ऐसे में आदर्श व्यवहार करने पर सब का अचंभित होकर देखना लाज़मी था। सुकन्या रतन और धीरा को अपनी और एक टक देखते हुए देखकर बोली…….
सुकन्या…... क्या देख रहें हों तुम्हें कोई काम नहीं हैं जब देखो काम चोरी करते रहते हों जाओ अपना काम करों।
सुकन्या कहकर मुस्कुरा देती हैं। रतन और धीरा सुकन्या के कहने पर अपने काम करने चल देता हैं और सुरभि सुकन्या से बोलती हैं……
सुरभि….. छोटी तेरा न कुछ पाता ही नहीं चलती तू कभी किसी रूप में होती तो कभी किसी ओर रूप में समझ नहीं आती तेरे मन में किया चल रही हैं।
सुकन्या….. दीदी आप सीधा सीधा बोलिए न मैं गिरगिट हूं और गिरगिट की तरह पल पल रंग बदलती हूं।
सुरभि…… मैं भला तुझे गिरगिट क्यों कहूंगी तू तो एक खुबसूरत इंसान हैं जो अपनी व्यवहार से सब को सोचने पर मजबूर कर देती हैं।
सुकन्या…. दीदी आप मुझे ताने मार रहीं हों मार लो ताने मैं काम ही ऐसा करती हूं।
सुरभि … मैं तूझे क्यो ताने मारूंगी तू छोड़ इन बातों को यह बता तू आज मेरे कमरे मे कैसे आ गई इससे पहले तो कभी नहीं आई।
सुकन्या….. अब तक नहीं आई यह मेरी भूल थीं अब तो मैं अपके कमरे में आकर आपसे ढेर सारी बातें करूंगी।
सुरभि…. तुझे रोका किसने हैं तू तो कभी भी मेरे कमरे में आ सकती हैं और जितनी बाते करनी हैं कर सकती हैं।
ऐसे ही दोनों बाते करते रहते हैं। जब दो महिलाएं एक जगा बैठी हों तो उनकी बातों का सिलसिला कभी खत्म ही नहीं होता। इनको बाते करते हुए देखकर रसोई घर में धीरा बोलता हैं…..
धीरा….. काका आज इस नागिन को किया हों गया जो रानी मां के साथ अच्छा व्यवहार कर रहीं हैं।
रतन…... धीरे बोल नागिन ने सुन लिया तो अपना सारा ज़हर हम पर ही उगल देगी और उसके ज़हर का कोई काट नहीं हैं।
धीरा……. सही कहा काका पता नही कब महल में एक ऐसी ओझा ( सपेरा) आयेगा जो इस नागिन के फन को कुचलकर इसके ज़हर वाली दांत को तोड़ देगा।
दोनों बाते करने मैं इतने मगन थे की इन्हें पाता ही नहीं चला कोई इन्हें आवाज दे रहा था जब इनका ध्यान गया तो उसे देखकर दोनों सकपका गाए और डारने भी लगें रतन अपने डर को काबू करते हुए बोला……
रतन…... छोटी मालकिन आप कुछ चाहिए था तो आवाज दे देती यह आने की जरूरत ही क्या थीं?
सुकन्या……. आवाज दे तो रहीं थीं लेकीन तुम्हें सुनाई दे तब न इस धीरा को कितनी आवाज दिया धीरा एक गिलास पानी लेकर आ लेकीन इसको तो कोई सुद ही नहीं था रहता भी तो कैसे दोनों कामचोर बातों में जो मज़े हुए थे और ये किस नागिन की फन कुचलने की बात कर रहे थे कौन ओझा किस नागिन की ज़हर के दांत तोड़ने वाली हैं।
सुकन्या के बोलते ही दोनों एक दूसरे के मुंह देखने लगे और सोचने लगे की अब किया जवाब दे एक दूसरे को ताकते हुए देखकर सुकन्या बोली…..
सुकन्या…… तुम दोनों क्या एक दूसरे को ऐसे ही ताकते रोहोगे कुछ बोलते क्यों नहीं मुंह में जुबान नहीं हैं। (सुरभि की और देखकर) दीदी ने तुम सब को सर चढ़ा रखा हैं काम के न काज के दुश्मन अनाज के अब जल्दी बोलों किस बारे में बात कर रहें थे।
रतन समझ जाता हैं सुकन्या पूरी बात नहीं सुन पाया इसलिए जानना चाहती हैं। रतन एक मन घड़ंत कहानी बना कर सुनने लगाता हैं…..
रतन….. वो छोटी मालकिन धीरा बता रहा था उसने किसी से सुना हैं यह से दुर किसी के घर में एक नागिन निकला हैं जिसकी जहर वाली दांत निकलने के लिए कोई ओझा पकड़ कर ले गया तो हम उस नागिन की बात कर रहें थे की पाता नहीं अब कैसे ओझा उस नागिन की ज़हर वाली दांत निकलेगा।
रतन कि बात सुनाकर धीरा समझ जाता हैं रतन सुकन्या को झूठी कहानी सुनाकर झांसा दे रहा हैं। इसलिए धीरा भी रतन के हां में हां मिलाते हुए बोला…..
धीरा…... हां हां छोटी मालकिन मैं काका को उस नागिन और उसकी ज़हर की बात बता रहा था। आप को किया लगाता हैं हम महल की बात कर रहे थे । जब महल में कोई नागिन निकली ही नहीं तो हम महल में मौजुद नागिन की ज़हर निकलने की बात क्यो करेंगे।
सुकन्या…... अच्छा अच्छा ठीक हैं अब ज्यादा बाते न बनाओ और जल्दी से दो गिलास पानी लेकर आओ काम चोर कहीं के।
सुकन्या कहकर चाली जाती हैं। धीरा और रतन छीने पर हाथ रखा धकधक हों रहीं धड़कन को काबू करने की कोशिश करता हैं फिर रतन धीरा से बोलता हैं……
रतन….. धीरा जल्दी जा इस नागिन को पानी पिला कर आ नहीं तो नागिन फिर से ज़हर उगले आ जायेगी।
धीरा दो गिलास लेकर एक प्लेट पर रखा और पानी भरते हुए बोला……
धीरा…... काका आज बाल बाल बच गए। छोटी मालकिन हमारी पूरी बाते सुन लेती तो अपने जहर वाली दांत हमे चुबो चूबो कर तड़पा तड़पा कर मार डालती।
रतन……. बच तो गए हैं लेकीन आगे हमे ध्यान रखना हैं तू जल्दी जा और पानी पिलाकर आ लगाता हैं छोटी मालकिन बहुत प्यासा हैं।
धीरा जाकर दोनों को पानी देता हैं और आकर अपने काम में लग जाता हैं। ऐसे ही दिन बीत जाता हैं। रात का खाना सुरभि, सुकन्या रघु और अपस्यु साथ में ही खाते हैं। राजेन्द्र और रावण दोनों भाई अभी तक घर नहीं लौटे थे। सब खाना खाकर अपने अपने कमरे में चले गए थे। लेकीन सुकन्या कमरे में दो पल स्थिर से नहीं रूक रहीं थी उसके मन में हाल चल मची हुए थी और इस हल चल का करण दिन में सुनी सुरभि और राजेन्द्र की बाते थी। कहते है स्त्री के पेट में कोई बात नहीं पचती जब तक वो बातो को उगल न दे तब तक उनका खाया खान भी नहीं पचता और सुकन्या ने तो दो वक्त का खाना बड़े चाव से खाया था। जिसे पचाने के लिए दिन में सुनी बातों को उगलना जरूरी हो गया था। सुकन्या रावण के लेट आने के करण गुस्से में बडबडाए जा रहीं थी…..
सुकन्या….. जिस दिन इनसे जरूरी बात करनी होती हैं उस दिन ही ये लेट आते हैं। पाता नहीं कब आयेंगे। ये बाते और कितनी देर तक मेरे पेट में हल चल मचाती रहेंगी कब तक इन बातों के बोझ को मैं ढोती रहूंगी।
सुकन्या ऐसे ही टहलते रहते, खाने और बातो को पचने की कोशिश करते रहते। रावण और राजेंद्र दोनों एक के बाद एक महल लौटते और अपने अपने कमरे में चले जाते रावण को देखकर सुकन्या बोलती हैं…..
सुकन्या….. आप आज इतने लेट क्यों आए आप से कितनी जरूरी बात करनी थी कब से ये बाते मेरी पेट में हलचल मचाई हुई हैं।
रावण….. अजीव बीबी हो पति से खाने को पुछा नहीं और बाते बताने को उतावली होई जा रही हों। अच्छा चलो खान बाना बाद में पहले तुम अपनी दुखड़ा ही सुना दो।
सुकन्या….. आप जाइए पहले खान खाकर आइए फिर बात करते हैं।
रावण हाथ मुंह धोने गुसलखाने जाता हैं । ईधर राजेंद्र कमरे में पहुंचता हैं। सुरभि बेड पर पिट टिकाए एक किताब पढ़ रहीं थीं। राजेन्द्र को देखकर किताब बंद कर राजेन्द्र से कहती हैं……
सुरभि….. आप आ गए इतनी देर कैसे हो गईं।
राजेन्द्र….. कुछ जरूरी काम था इसलिए देर हो गया। तुम ये कौन सी किताब पढ़ रहीं थीं।
सुरभि राजेंद्र की और देखकर कुछ सोचकर मुस्कुराते हुए बोली…..
सुरभि…. कामशास्त्र पढ़ रहीं थीं।
राजेन्द्र …. ओ ये बात हैं तो चलो फिर पहले अधूरा छोड़ा काम पूरा कर लेता हूं फिर खान पीना कर लूंगा।
सुरभि….. अधूरा काम बाद में पूरा कर लेना अभी आप जाकर अपना ताकत बड़ा कर आइए आज अपको बहुत ताकत की जरूरत पड़ने वाली हैं।
राजेन्द्र….. लगाता हैं आज रानी साहिबा मूढ़ में हैं।
सुरभि…. अपकी रानी साहिबा तो सुबह से ही मुड़ में हैं और आप का तो कोई खोज खबर ही नहीं हैं।
राजेंद्र…. अब आ गया हू अच्छे से खोज खबर लूंगा लेकिन पहले भोजन करके ताकत बड़ा लू।
राजेन्द्र हाथ मुंह धोकर कपडे बदलकर निचे जाता हैं जहां रावण पहले से ही मौजूद था दोनों भाई दिन भर की कामों के बारे में बात करते हुए भोजन करने लगते हैं। भोजन करने के बाद दोनों भाई अपने अपने कमरे में जाते। सुकन्या रावण की प्रतिक्षा में सुख रही थी। रावण के आते ही शुरू हों जाती हैं……
सुकन्या….. भौजन करने में इतना समय लगाता हैं।
रावण…. दादाभाई के साथ दिन भर के कामों के बारे में बात करते हुए भोजन करने में थोडा अधिक समय लग गया। अब तुम बाताओ कौन सी बातों ने तुम्हारे पेट में हलचल मचा रखी हैं।
सुकन्या…… मुझे लगाता हैं सुरभि और भाई साहाब को हमारे साजिश के बारे में पता चाल गया हैं।
ये सुनकर रावण के पैरों तले जमीन खिसक गईं। उसे अपनी साजिश का पर्दा फाश होने का डर सताने लगा जिसे छुपाने के लिए रावण ने पाता नहीं कितने कांड किए फिर भी वह ही हूआ जिसका उसे डर था लेकीन इतनी जल्दी होगा उसे भी समझा नहीं आ रहा था। रावण का मन कर रहा था अभी जाकर अपने भाई भाभी और रघु को मौत के घाट उतर दे लेकिन फिर खुद को नियंत्रण कर बोला…….
रावण…... तुम्हें कैसे पता चला हमारे बनाए साजिश का पर्दा फाश हों चुका हैं। ऐसा हुए होता तो दादा भाई अब तक मुझे मार देते या फ़िर जेल में डाल देते।
सुकन्या…. इतनी सी बात के लिए वो तुम्हें क्यो मार देंगे।
रावण….. इतनी सी बात नहीं बहुत बडी बात हैं अब तुम ये बताओ तुम्हें कैसे पाता चल।
सुकन्या …. आप के जानें के बाद मैं निचे गई कुछ काम से जब ऊपर आ रही थीं तभी मुझे सुरभि के कमरे से उसके तेज तेज बोलने की आवाज़ सुनाई दिया तब मैं उनके कमरे के पास गई तो मुझे दरवजा बंद दिखा तो मैं वापस मुड़ ही रहीं थीं की मुझे उनकी बाते फिर सुनाई दिया जिसे सुनकर मेरे कदम रुख गए और मैं उनकी बाते सुने लगा … सुरभि कह रही थीं आप उनके बातों पर ध्यान मत देना मुझे लगाता हैं कोई मेरे बेटे के खिलाफ साजिश कर रही हैं। फिर भाई साहब ने जो बोला उसे सुनकर मेरे कान खडे हों गए फिर सारी बातें सुकन्या ने बता दिया जो उसने सुना था जिसे सुनकर रावण ने कहा……..
रावण….. यह तो बहुत ही विकट परिस्थिति बन गया हैं और मुझे लगाता हैं दादा भाई को पूरी बाते पता नहीं चला हैं नहीं तो मैं आज महल में नहीं जेल में बंद होता या फिर दादा भाई मेरा खून कर देते।
सुकन्या…….. आप क्या कह रहे हो? वो अपका खून क्यों करते? हम दोनों तो सिर्फ़ महल और सारी संपत्ति अपने नाम करवाना चाहते हैं। इसमें खून करने की बात कहा से आ गई वो अपको जेल भी तो भिजवा सकते हैं।
रावण…... सुकन्या तुम नहीं जानती मैंने जो भी कर्म कांड किया हैं उसे जानने के बाद दादा भाई मुझे जेल में नही डालते बल्कि मेरा कत्ल कर देते।
सुकन्या…... मुझ कुछ समझ नहीं आ रहा है आप कहना किया चाहतें हो लेकिन मैं इतना तो समझ गया हूं आपने मुझसे बहुत कुछ छुपा रखा हैं।
रावण……. हां बहुत कुछ हैं जो मैं तुम्हे नहीं बताया लेकिन आज बताता हूं। तुम्हें किया लगता हैं आधी सम्पत्ति पाने के लिए दादाभाई के साथ विश्वास घात करूंगा, नहीं सुकन्या मैं कुछ और पाने के लिए दादा भाई के साथ विश्वास घात कर रहा हूं…….
सुकन्या….. मुझे जहां तक पाता हैं हमारे पास इस संपत्ति के अलावा ओर कुछ नहीं हैं जो आधा आधा आप दोनों भाइयों में बांटा हुआ हैं तो फ़िर और किया हैं जिसे आप पाना चाहते हों।
रावण…... सुकन्या हमारे पास गुप्त संपत्ति हैं उसे अपने नाम कर लिया तो मैं बैठे बैठे ही दुनियां का सबसे अमीर आदमी बन जाऊंगा।
गुप्त संपत्ति और दुनियां की सबसे अमीर होने की बात सुनकर सुकन्या जैसी लालची औरत के लालच की सीमाएं टूट चुका था। सुकन्या के हावभाव बदलने लगा था। सुकन्या के बदलते हावभाव को देखकर रावण बोला……..
रावण…… सुकन्या खुद पर काबू रखो तुम जानकार अनियंत्रित हों जाओगी इसलिए मैं तुम्हें नहीं बता रहा था।
सुकन्या…. कैसे खुद पर नियंत्रण रखूं पाता नहीं कैसे आप खुद पर नियंत्रण रखें हुए हैं। मैं कहती हूं क्यो न अभी जाकर सुरभि, राजेंद्र और रघु को मारकर गुप्त संपत्ति आपने नाम करवा लेते हैं।
राजेंद्र…… हमने ऐसा किया तो गुप्त संपत्ति हमेशा हमेशा के लिए हमारे पहुंच से बहार हों जाएंगा। जिसको पाने के लिए न जानें मैंने क्या क्या किया हैं?
सुकन्या……. कैसे गुप्त संपत्ति हमारे हाथ से निकाल जायेगी ।
रावण…… गुप्त संपत्ति का पता दादा भाई के अलावा कोई नहीं जानता। मैंने उन्हें मार दिया तो यह राज उनके साथ ही दफन हों जाएगा।
सुकन्या……. गुप्त संपत्ति का राज सिर्फ आपके दादाभाई जानते हैं तो फिर आप को कैसे पता चला।
राजेंद्र……. गुप्त संपत्ति का राज दादाभाई ही जानते हैं लेकिन उस संपत्ति का एक वसियत बनाया गया था जिसके बारे में दादा भाई और हमारा वकील दलाल जानता हैं। जो मेरा बहुत अच्छा दोस्त हैं। एक दिन बातों बातों में दलाल ने मुझे गुप्त संपत्ति के वसियत के बारे में बता दिया। उसे गुप्त संपत्ति कहा रखा हैं बताने को कहा तो उसने मना कर दिया की उसे सिर्फ वसियत के बारे में पता हैं संपत्ति कहा रखा हैं वो नहीं जानता फिर हम दोनों ने मिलकर गुप्त संपत्ति का पता ठिकाना जाने के लिए साजिश रचना शुरू किया।
रावण….. हमारे साजिश का पहला निशाना बना रघु , वसियत के अनुसार रघु की पहली संतान गुप्त संपत्ति का मूल उत्तराधिकारी हैं। इसलिए मैं रघु की शादी रोकने के लिए जहां भी दादाभाई लड़की देखते उनको अपने आदमियों को भेज कर डरा धमका कर शादी के लिए माना करवा देता जो नहीं मानते उनको झूठी खबर देता की रघु में बहुत सारे बुरी आदतें हैं। यह जानकार लड़की वाले खुद ही रिश्ता करने से मना कर देते।
रावण……. इसलिए मैं दादाभाई पर नज़र रखवाया। जिससे मुझे पाता चलता की दादाभाई कब किस लड़की वालों से मिलने गया। ऐसे ही नज़र रखवाते रखवाते मुझे दादाभाई के रखे गुप्तचर के बारे में पाता चला फिर मैं दादाभाई के गुप्त चर को ढूंढूं ढूंढूं कर सब को मार दिया। उन्हीं गुप्त चारों में से किसी ने दादाभाई को साजिश के बारे में बताएं होगा और सबूत भी देने की बात कहीं हाेगी।
रावण की बाते सुनकर सुकन्या अचंभित रह गया उसे समझ ही नही आ रहा था क्या बोले सुकन्या सिर्फ रावण का मुंह ताक रहा था। रावण सुकन्या को तकते हुए देखकर बोला…..
रावण…… सुकन्या क्या हुआ सदमे में चल बसी हों या जिंदा हों।
सुकन्या…… जिन्दा हूॅं लेकिन आपसे नाराज़ हूं आपने इतना बड़ा राज मुझसे छुपाया और इतना कुछ अकेले अकेले किया मुझे बताया भी नहीं।
रावण… गुप्त संपत्ति प्राप्त कर मैं तुम्हें उपहार में देना चाहता था लेकिन समय का चल ऐसा चला की गुप्त संपत्ति प्राप्त करने से पहले ही तुम्हें राज बताना पड़ गया मैं अकेला नहीं हूं मेरे साथ मेरा दोस्त और वकील दलाल भी सहयोग कर रहा हैं।
सुकन्या…… अब मैं आपके साथ हूं आप जैसा कहेंगे मैं करूंगी लेकिन अब हमे आगे किया करना हैं जब साजिश की बात खुल गई हैं तो देर सवेर आपके भाई को पता चल ही जाएगा।
रावण……. दादाभाई को साजिश का भनक लग गया हैं तो दादाभाई चुप नहीं बैठने वाले इसलिए हमें अपने साजिश यह पर ही रोकना होगा और आगे चलकर नए सिरे से शुरू करना होगा।
सुकन्या…… ऐसे तो रघु की शादी हों जायेगी फिर गुप्त संपत्ति का मूल उत्तर अधिकारी भी आ जाएगा फिर तो सब हमारे हाथ से निकल जायेगी।
रावण….. अभी तो यह ही करना होगा नहीं तो हमारा भांडा जल्दी ही फुट जायेगा लेकिन मैं गुप्त संपत्ति को इतनी जल्दी अपने हाथ से जाने नहीं दुंगा।
सुकन्या……. मुझे तो साफ साफ दिख रहा हैं गुप्त सम्पत्ति पाने के सारे रास्ते बंद हों गए हैं।
रावण….. अभी कोई भी रास्ता नहीं दिख रहा हैं लेकिन कोई न कोई रास्ता जरूर होगा जिसे मैं ढूंढ़ लूंगा।
सुकन्या…... ठीक हैं। बहुत रात हों गया हैं अब चलकर सोते हैं।
दोनों सो जाते हैं। महल में इस वक्त सब सो रहें थे लेकिन सुरभि और राजेंद्र काम शास्त्र की कलाओं को साधने में लागे हुए थे। दोनों काम कलां में मगन थे और महल के दूसरे कमरे में बहुत से राज उजागर हुआ और दफन भी हों गया। जिसकी भानक भी किसी को नहीं हुआ। आगे क्या क्या होने वाला हैं इसके बरे में आगे आने वाले अपडेट में जानेंगे आज के लिए इतना ही।
बहुत ही बेहतरीन कहानी महोदय।
सुरभि सही कह रही जी। कोई भी काम करो और किए पर भी भरोशा करो तो वो बैंड आंखों से नहीं बल्कि अपनी नजर चौकन्नी रखना जरूरी है। वो भी तब जब इतनी गहरी साजिश रची जा रही है। रघु के लिए आया हर रिश्ता किसी न किसी वजह से टूट का रहा है तो शक सभी पर कर आ चाहिए और उसकी तह तक पहुचना चाहिए।।
राजेन्द्र का वकील दलाल भी रावण का दोस्त निकला तो वो उसी का साथ देगा। स्त्री की यही कमी होती है कि उसके पेट में कोई बात पचती ही नहीं है सुकन्या के पेट मे गुड़गुड़ मची हुई है कि कब वो सारी बातें रावण से करें। रावण के मुंह से इतना बड़ा राज खुलने के बाद सुकन्या का लालच और भी ज्यादा बढ़ गया है। वो उसे किस मुकाम पर ले जाता है।।
सुरभि सही कह रही जी। कोई भी काम करो और किए पर भी भरोशा करो तो वो बैंड आंखों से नहीं बल्कि अपनी नजर चौकन्नी रखना जरूरी है। वो भी तब जब इतनी गहरी साजिश रची जा रही है। रघु के लिए आया हर रिश्ता किसी न किसी वजह से टूट का रहा है तो शक सभी पर कर आ चाहिए और उसकी तह तक पहुचना चाहिए।।
राजेन्द्र का वकील दलाल भी रावण का दोस्त निकला तो वो उसी का साथ देगा। स्त्री की यही कमी होती है कि उसके पेट में कोई बात पचती ही नहीं है सुकन्या के पेट मे गुड़गुड़ मची हुई है कि कब वो सारी बातें रावण से करें। रावण के मुंह से इतना बड़ा राज खुलने के बाद सुकन्या का लालच और भी ज्यादा बढ़ गया है। वो उसे किस मुकाम पर ले जाता है।।