अजनबी हमसफ़र - रिश्तों का गठबंधन
Update - 8
रावण सुकन्या के कहने पर सो जाता हैं लेकिन रावण को नींद नही आ रहा था। रावण कभी इस करवट तो कभी उस करवट बदलता रहता। उसका मन विभिन्न संभावनाओं पर विचार कर रहा था। उसे आगे किया करना चाहिए। जिससे उसके रचे साजिश का पर्दा फाश होने से बचा रह सके। रावण यह भी सोच रहा था। उससे कहा चूक हों गया। जब उसे कोई रस्ता नज़र नहीं आता तो वकील दलाल को इस विषय में बताना सही समझा। इसी सोचा विचारी में रात्रि के अंतिम पहर तक जगा रहता फ़िर सो जाता। सुबह सुकन्या उठ कर बैठें बैठे अंगड़ाई लेती तभी उसकी नज़र घड़ी पर जाती, समय देखकर सुकन्या अंगड़ाई लेना भूल जाती हैं और बोलती हैं…..
सुकन्या...आज फिर लेट हों गयी पाता नहीं कब ये जल्दी उठने के नियम में बदलाव होगी।
सुकन्या रावण को जगाने के लिऐ हिलती हैं और बोलती…….
सुकन्या…… ए जी जल्दी उठो कब तक सोओगे।
रावण…... कुनमुनाते हुए अरे क्या हुआ सोने दो न बहुत नींद आ रही हैं।
सुकन्या…. ओर कितना सोओगे सुबह हों गई हैं जल्दी उठो नहीं तो दोपहर तक भूखा रहना पड़ेगा।
रावण…... उठकर बैठते हुए इतना जल्दी सुबह हों गया अभी तो सोया था।
सुकन्या….. नींद में ही भांग पी लिया या रात का नशा अभी तक उतरा नहीं जल्दी उठो हम लेट हों गए हैं।
सुकन्या कपड़े लेकर बाथरूम में जाती है। रावण आंख मलते हुए उठकर बैठ जाता हैं। सुकन्या के बाथरूम से निकलते ही रावण बाथरूम में जाता हैं। फ्रैश होकर आता हैं और दोनों नाश्ता करने चल देता हैं। रावण नीचे जाते हुए ऐसे चल रहा था जैसे किसी ने उस पर बहुत बड़ा बोझ रख दिया हों। रावण जाकर डायनिंग टेबल पर बैठ जाता हैं। जहां पहले से सब बैठे हुए थे। रावण को देखकर राजेंद्र पूछता हैं…...
राजेन्द्र……. रावण तू कुछ चिंतित प्रतीत हों रहा हैं। कोई विशेष बात हैं जो तुझे परेशान कर रहा हैं।
रावण की नींद पुरा नहीं हुआ था जिससे उसे अपने ऊपर एक बोझ सा लग रहा था और राजेंद्र के सवाल ने उसके चहरे के रंग उड़ा दिया था। रावण रंग उड़े चहर को देखकर सुरभि मुस्कुराते हुए बोली………
सुरभि…... देवर जी आप दोनों भाइयों ने पाला बदल बदल कर चिंतित होने का ठेका ले रखा हैं जो एक चिंता मुक्त होता हैं तो दूसरा चिंता ग्रस्त हों जाता हैं।
राजेंद्र सुरभि की ओर देखकर मुस्करा देता हैं। रावण दोनों को एक टक देखता रहता। रावण समझ नहीं पा रहा था की सुरभि कहना क्या चहती थी। लेकिन रावण इतना तो समझ गया था। उसके अंतरमन में चल रहा द्वंद उसके भाई और भाभी ने परख लिया था। इसलिए रावण हल्का हल्का मुस्कुराते हुए बोला…..
रावण….. दादाभाई ऐसी कोई विशेष बात नहीं हैं कल रात लेट सोया था। नींद पूरा नहीं होने के करण थोड़ थका थका लग रहा हूं। इसलिए आपको चिंतित दिख रहा हूं।
सुरभि और राजेंद्र मुस्करा देते और नाश्ता करने लगते हैं। रावण भी नाश्ता करने में मगन हों गया। नाश्ता करते हुए राजेंद्र बोलता हैं…..
राजेंद्र……. अपस्यू बेटा इस सत्र में पास हों जाओगे या इसी कॉलेज में ढेरा जमाए बैठे रहना हैं।
अपस्यू….. बड़े पापा पूरी कोशिश कर रहा हूं इस बार पास हों जाऊंगा।
राजेंद्र…. कोशिश कहां कर रहें हों कॉलेज के अदंर या बहार। तुम कॉलेज के अदंर तो कदम रखते नहीं दिन भर आवारा दोस्तों के साथ मटरगास्ती करते फिरते हों, तो पास किया ख़ाक हों पाओगे।
अपश्यु….. बड़े पापा मैं रोज कॉलेज जाता हूं। कॉलेज के बाद ही दोस्तों के साथ घूमने जाता हूं।
राजेंद्र…… सफेद झूठ तुम घर से कॉलेज के लिए जाते हों। तुम्हारा कॉलेज घर से इतना दूर हैं कि तुम दिन भर में कॉलेज पहुंच ही नहीं पाते।
रावण……. अपश्यु ये क्या सुन रहा हूं। तुम कॉलेज न जाकर कहा जाते हों। ऐसे पढ़ाई करोगे तो आगे जाकर हमारे व्यापार को कैसे सम्हालोगे।
अपश्यु….. पापा मैं पढ़ाई सही से कर रहा हूं और रोज ही कॉलेज जाता हूं लेकिन कभी कभी बंक करके दोस्तों के साथ घूमने जाता हूं।
राजेन्द्र….. प्रधानाध्यपक जी कह रहे थे तुम बहुत कम ही कॉलेज जाते हों। बेटा ऐसे पढ़ाई करने से काम नहीं चलेगा।
इन सब की बाते सुनकर सुकन्या का बहुत कुछ कहने का मान कर रहा था। सुकन्या की जीभ लाप लापाकर शब्द जहर उगलना चाहती थी। इसलिए सुकन्या किसी तरह अपनी जिह्वा को दांतो तले दबाए बैठी रहीं। अपश्यु सर निचे किए बैठा था और प्रधानाध्यपक को मन ही मन गाली दे रहा था। अपश्यु को चुप चाप बैठा देखकर रावण बोलता हैं……
रावण…… तुम्हारे चुप रहने से यह तो सिद्ध हों गया। जो दादाभाई कह रहें हैं सच कह रहें। अपश्यु कान खोल कर सुन लो आज के बाद एक भी दिन कॉलेज बंक किया तो। तुम्हारे लिए अच्छा नहीं होगा।
अपश्यु….. जी पापा।
राजेन्द्र…… आज के लिए इतना खुरख काफी हैं। अब जल्दी से नाश्ता करके कॉलेज जाओ। रघु आज तुम मेरे साथ ऑफिस चलोगे।
रघु….. जी पापा।
नाश्ता करने के बाद अपश्यु कॉलेज के लिए निकाल जाता। सुकन्या भुन्न्या हुआ कमरे में जाता हैं और रावण बोलता हैं….
रावण…... दादाभाई आप रघु को अपने साथ ले जाइए मुझे जानें में थोडा लेट होगा।
राजेंद्र…… ठीक हैं।
रावण कमरे में चला जाता हैं। सुकन्या रावण को देखकर बोलता हैं…..
सुकन्या….. क्या हुआ आज ऑफिस नहीं जाना।
रावण…… जाऊंगा थोड़ी देर बाद ।
रावण फिर से सोने की तैयारी करने लगता हैं। राजेंद्र को दुबारा सोता देखकर सुकन्या कहता हैं…….
सुकन्या……. मैं भी आ रहीं हूं मुझे भी सोना हैं।
रावण…… नहीं तम मत आना नहीं तो मैं सोना भूलकर कुछ ओर ही शुरू कर दुंगा।
सुकन्या ……. मैं नहीं आ रहीं हूं आप सो लिजिए।
राजेंद्र ऑफिस जाते हुए सुरभि से बोलता हैं।
राजेंद्र …… सुरभि मैं एक घंटे में ऑफिस से लौट आऊंगा तुम तैयार रहना हम कलकत्ता चल रहे हैं।
सुरभि….. कलकत्ता पुष्पा से मिलने।
राजेंद्र….. पुष्पा से भी मिलेंगे लेकिन उसे पहले हम एक कॉलेज के वार्षिक उत्सव में जायेंगे जहां मुझे मुख्य अथिति के रूप में बुलाया गया हैं।
सुरभि…… ठीक हैं मैं अभी से तैयार होने लगती हु जब तक आप आओगे तब तक मैं तैयार हों जाऊंगी।
राजेंद्र कुछ नहीं कहता सिर्फ़ मुस्कुराकर सुरभि की ओर देखता हैं फिर बहार आकर रघु के साथ ऑफिस चल देता हैं। रास्ते में चलते हुए राजेंद्र कहता हैं……
राजेंद्र…… रघु बेटा अब से तुम बच्चो को पढ़ना बंद कर ऑफिस का कार्य भार सम्हालो।
रघु….. जैसा आप कहो।
राजेंद्र…… रघु कोई सवाल नहीं सीधा हां कर दिया।
रघु…... इसमें सवाल जवाब कैसा अपने कहा था बच्चों को पढ़ाने के लिए तो मैं बच्चों को पढ़ा रहा था। अब आप ऑफिस का कार्य भार समालने को कह रहे हैं तो मैं ऑफिस जाना शुरू कर दुंगा।
राजेंद्र…… तुम्हें बच्चों को पढ़ाने इसलिए कहा क्योंकि एक ही सवाल बार बार पूछने पर तुम अपना आपा खो देते थे और तुम्हें गुस्सा आने लगता था। बच्चो को पढ़ाने से तुम अपने गुस्से पर काबू रखना सीख गए और एक सवाल का कई तरीके से ज़बाब देना भी सीख गए। जो आगे चलकर तुम्हारे लिए बहुत फायदेमंद होगा।
ऐसे ही बाते करते हुए दोनों ऑफिस पहुंच गए। राजेंद्र ने रघु के लिए अलग से एक ऑफिस रूम तैयार करवाया था। राजेंद्र रघु को लेकर उस रूम में गए और बोला…….
राजेंद्र…… रघु इसी रूम में बैठकर तुम काम करोगे। जाओ जाकर बैठो मैं भी तो देखू मेरा बेटा इस कुर्सी पर बैठकर कैसा दिखता हैं।
रघु कुर्सी पर बैठने से पहले राजेंद्र का पैर छूता हैं फिर कुर्सी की पास जाता हैं और कुर्सी पर बैठ जाता हैं। रघु के कुर्सी पर बैठते ही कुछ लोग ऑफिस रूम आते हैं। उन लोगों को देखकर रघु उठकर खड़ा होता हैं और जाकर राजेंद्र के उम्र के एक शक्श का पैर छूता हैं और बोलता हैं…….
रघु…… मुंशी काका आप कैसे हैं।
मुंशी रघु के हाथ में एक गुलदस्ता देता हैं और बधाई देता हैं। मुंशी के साथ आए ओर लोग भी रघु को बधाई देता हैं। फिर मुंशी को छोड़कर उसके साथ आए लोग चले जाते हैं तब मुंशी बोलता हैं……
मुंशी……. मालिक मैं यह कम करने वाला एक नौकर हूं इसलिए मेरा पैर छुना अपको शोभा नहीं देता।
रघु…… भले ही आप यह कम करते हों। लेकिन आप मेरे दोस्त के पिता हैं तो आप मेरे भी पिता हुए। तो फिर मैं आज के दिन अपका आशीर्वाद लेना कैसे भूल सकता हूं।
राजेंद्र….. बिलकुल सही कहा रघु। अब बता मेरे यार रघु के इस सवाल का क्या जवाब देगा।
मुंशी…… राना जी मेरे पास रघु बेटे के सवाल का कोई जबाब नहीं हैं। रघु बेटे ने मुझे निशब्द कर दिया हैं।
रघु मुस्कुराता हुआ जाकर कुर्सी पर बैठ जाता हैं और बोलता हैं…..
रघु….. मुंशी काका देखिए तो जरा मैं इस कुर्सी पर बैठा कैसा लग रहा हूं।
मुंशी... आप इस कुर्सी पर जच रहे हों। अपको इस कुर्सी पर बैठा देखकर ऐसा लग रहा हैं जैसे राजा राजशिंघासन पर बैठा हैं। बस एक रानी की कमी हैं।
रघु…… मुस्कुराते हुए मुंशी काका रानी की कमी लग रहा हैं तो आप मेरे लायक कोई लड़की ढूंढ़ लिजिए और मेरी रानी बाना दीजिए।
रघु की बाते सुनकर राजेंद्र और मुंशी मुस्करा देते हैं और राजेंद्र बोलता हैं……
राजेंद्र…... रघु बेटा कुछ दिन और प्रतीक्षा कर लो फिर तुम्हारे लायक लड़की ढूंढ़ कर तुम्हारा रानी बाना देंगे।
मुंशी….. हां रघु बेटा राना जी बिल्कुल सही कह रहे हैं।
राजेंद्र….. रघु मेरे साथ चलो तुम्हें कुछ लोगों से मिलवाता हूं।
रघु को लेकर राजेंद्र ऑफिस में काम करने वाले लोगों से मिलवाता हैं और उनका परिचय देता हैं। यह मेल मिलाप कुछ वक्त तक चलता रहता फिर राजेंद्र रघु को उसके ऑफिस रूम ले जाता हैं और बोलता हैं…..
राजेंद्र…. रघु तुम कम करों कहीं सहयोग की जरूरत हों तो मुंशी से पुछ लेना।
रघु….. जी पापा।
राजेंद्र…… रघु मैं तुम्हारे मां के साथ कलकत्ता जा रहा हूं कल तक लौट आऊंगा।
रघु….. आप कलकत्ता जा रहे हैं कुछ विशेष काम था।
राजेन्द्र…. हां रघु मुझे एक कॉलेज के वार्षिक उत्सव में मुख्य अथिति के रूप में बुलाया गया हैं।
रघु….. ठीक हैं पापा आप आते समय पुष्पा को भी साथ लेकर आना बहुत दिन हों गए उसे मिले हुए।
राजेंद्र…. ठीक हैं अब मैं चलता हूं।
राजेंद्र वह से निकल कर मुंशी के पास जाता हैं। मुंशी राजेंद्र को देखकर खडा हों जाता जिससे राजेंद्र उसे फिर से डांटता डटने के बाद बोलता……
राजेन्द्र…… मुंशी जैसे तू मेरा सहयोग करता आया हैं वैसे ही अब से रघु का सहयोग करना।
मुंशी…… वो तो मैं करूंगा ही लेकिन एक बात समाझ नहीं आया अचानक रघु बेटे के हाथ में ऑफिस का कार्यभार सोफ दिया।
राजेंद्र…. यह दुनियां हमारे सोच के अनुरूप नहीं चलता मैं भी एक शुभ मूहर्त पर रघु बेटे के हाथ में सारा कार्य भार सोफना चाहता था लेकिन कुछ ऐसी बातें पता चला हैं जिसके चलते मुझे यह फैसला अचानक ही लेना पडा।
मुंशी…… बात क्या हैं जो अचानक ऐसा करना पडा।
राजेंद्र… अभी बताने का समय नहीं हैं मैं कलकत्ता जा रहा हूं वह से आने के बाद बता दुंगा।
मुंशी….. ठीक हैं।
राजेंद्र ऑफिस से घर को चल देत हैं। ऊधर अपश्यू कॉलेज पहुंच गया। कॉलेज में एंट्री करते ही गेट पर उसके कुछ लफंगे दोस्त खडे थे उन्हें देखकर अपश्यु बोलता हैं…..
अपश्यु….. अरे ओ लफंगों यह खडे खडे किसको तड़ रहे हों।
दोस्त 1….. ओ हों सरदार आज आप किस खुशी में यह पधारे हों।
दोस्त 2…… सरदार आज क्यों आ गए सीधा पेपर के बाद रिजल्ट लेने आते
अपश्यु… चुप कर एक तो बड़े पापा ने सुबह सुबह बोल बच्चन सुना दिया अब तुम लोग भी शुरू हों गए।
दोस्त 3….. ओ हों तो राजा जी ने डंडा करके सरदार को कॉलेज भेजा। राजाजी ने अच्छा किया नहीं तो बिना सरदार के गैंग दिशा विहीन होकर किसी ओर दिशा में चल देता।
अपश्यु…….सरदार आ गया हैं अब सरदार का गैंग दिशा से नहीं भटकेगा। चलो पहले प्रधानाध्यापक से मुक्का लात किया जाएं।
दोस्त 1…… आब्बे मुक्का लात नहीं मुलाकात कहते हैं। कम से कम शब्द तो सही बोल लिया कर।
अपश्यु… अरे हों साहित्य के पुजारी मैंने शब्द सही बोला हैं मुझे प्रधानाध्यापक के साथ मुक्का लात ही करना हैं।
दोस्त 4….. ओ तो आज फिर से प्रधानाध्यापक महोदय जी की बिना साबुन पानी के धुलाई होने वाला हैं। निरमा डिटर्जेंट पाउडर कपडे धुले ऐसे जैसे दाग कभी था ही नहीं।
दोस्त1….. अरे हों विभीध भारती के सीधा प्रसारण कपडे नहीं धोने हैं प्रधानाध्यापक जी को धोना हैं। आज की धुलाई के बाद उनकी बॉडी में दाग ही दाग होंगे।
अपश्यु…अरे हों कॉमेडी रंग मंच के भूतिया विलन चल रहे हों या तुम सब की बिना साबुन पानी के झाग निकाल दू।
अपश्यु अपने दोस्तों के साथ चल देता। प्रधानाध्यापक के ऑफिस तक जाते हुए रस्ते में जितने भी लड़के लड़कियां मिलता था सब को परेशान करते हुए जा रहे थे। लड़के और लड़कियां कुछ कह नहीं पा रहे थे। सिर्फ दांत पीसते रह जाते थे। कुछ वक्त में अपश्यु प्रधानाध्यापक जी के ऑफिस के सामने पहुंच जाते। ऑफिस के बहार खड़ा चपरासी उन्हे रोकता लेकिन अपश्यु उन्हे धक्का देकर ऑफिस मे घूस जाता हैं। प्रधानाध्यापक उन्हें देखकर बोलता हैं……
प्रधानाध्यापक…… आ गए अपना तासरीफ लेकर लेकिन तुम्हें पाता नहीं प्रधानाध्यापक के ऑफिस के अदंर आने से पहले अनुमति मांग जाता हैं।
अपश्यु……. तासरीफ इसलिए लेकर आया क्योंकि तेरी तासरीफ की हुलिया बिगड़ने वाला हैं और रहीं बात अनुमति कि तो मुझे कहीं भी आने जाने के लिए किसी की अनुमति लेने की जरूरत नहीं पड़ता।
प्रधानाध्यापक….. लगाता हैं फिर से राजा जी से तुम्हारी शिकायत करना पड़ेगा।
अपश्यु जाकर प्रधानाध्यापक को एक थप्पड़ मरता हैं। थप्पड़ इतना जोरदार था कि प्रधानाध्यापक अपनी जगह से हिल जाता हैं। प्रधानाध्यापक को एक के बाद एक कई थप्पड़ पड़ता थप्पड़ ही नहीं लात घुसे मुक्के सब मारे जाते हैं। कुछ ही वक्त में प्रधानाध्यापक को मार मार कर हुलिया बिगड़ दिया जाता फिर अपश्यु प्रधानाध्यापक को चेतावनी देता…..
अपश्यु… अब की तूने बड़े पापा से कुछ कहा तो हम भी रहेगें, यह कॉलेज भी रहेगा लेकिन तू नहीं रहेगा। तू इस दुनियां में रहना चाहता हैं तो मेरी बातों को घोल कर पी जा और अपने खून में मिला ले जिससे तुझे हमेशा हमेशा के लिए मेरी बाते याद रह जाएं।
प्रधानाध्यापक को जमकर धोने के बाद अपश्यु चला जाता हैं। अपश्यु के जानें के बाद प्रधानाध्यापक चपरासी को बुलाता हैं और उसके साथ अपना इलाज कराने डॉक्टर के पास चल देता हैं। आज के लिए इतना ही आगे की कहानी अगले अपडेट से जानेंगे।