• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Romance ajanabi hamasafar -rishton ka gathabandhan

HPR 2020

Member
182
762
108
nice update
hmm to baat gupt sampatiyon ki hai ?
aur guptchar gayab ho rahe hain !
ab mujhe lgta hai raavan ye kaam akela nhi kar sakta hai ho na ho is saajish mein koi aur bhi hoga raavan ka sath dene wala .
agle update ka intezaar rahega.
 
  • Like
Reactions: Destiny and Luffy

Destiny

Will Change With Time
Prime
3,965
10,701
144
nice update
hmm to baat gupt sampatiyon ki hai ?
aur guptchar gayab ho rahe hain !
ab mujhe lgta hai raavan ye kaam akela nhi kar sakta hai ho na ho is saajish mein koi aur bhi hoga raavan ka sath dene wala .
agle update ka intezaar rahega.
शुक्रिया HRP 2020 जी

मामला गुप्त संपत्ति के ही हैं और यह संपत्ति आगे क्या क्या गुल खिलाएगा और रावण के साथ और कौन हैं यह आगे आने वाले अपडेट में पाता चल जायगा।

अगले तीन चार दिनों तक शायद ही कोई अपडेट दे पाऊं।
 

Sauravb

Victory 💯
8,104
14,327
174
अजनबी हमसफ़र-रिश्तों का गठबंधन

Update - 6


राजेंद्र….. अरे हां मैं तो भूल ही गया था कि मेरे जीवन में एक नारी शक्ति ऐसी हैं जो मेरे सभी परेशानियों से निकलने में हमेशा सहायक सिद्ध हुआ हैं।

सुरभि…… आप अपनी हाथ को विराम दिजिए और बताना शुरू कीजिए।

राजेंद्र…. सुरभि मेरे परेशानी का करण कई हैं जो पिछले कुछ दिनों से मेरे चिन्ता का विषय बना हुआ हैं। जो मैं सब के नजरों से छुपा लिया लेकिन तुम्हारे नजरों से नहीं छुपा पाया। सुरभि तुम मेरे अर्ध अंग होने का कार्य भार बखूबी निभा रहीं हों। जैसे एक अंग को पीढ़ा हों तो बाकी अंग स्वतः ही पीढ़ा को भाप लेता हैं वैसे ही तुम मेरे परेशानी ओर चिंता को स्वतः ही भाव लिया। सुरभि तुम एक अजनबी की तरह मेरे जीवन में आई और मेरा हमसफर बनकर मेरे कदम से कदम मिलाकर साथ चलती रहीं हों।

सुरभि मुस्कुराकर राजेंद्र की आंखो में देखकर बोलो……

सुरभि….. भले ही मैं अपके जीवन में एक अजनबी की तरह आई लेकिन मैं अब अजनबी नहीं रहीं मैं आपको भली भांति पहचान गई हूं। मैं अपकी अर्धांगिनी हूं तो फिर अपने आधे अंग में हों रहीं पीढ़ा को मैं कैसे न समझ पाती।……... आप मेरी कुछ ज्यादा ही तारीफ करते हों लेकिन यह अच्छा हैं पत्नी की तारीफ नहीं करोगे तो ओर किसकी करोगी। अब आप मुद्दे की बात बताइए जो मैं जानना चहती हूं।

राजेंद्र …….. मैं परेशान कई कारणों से हूं। उनमे से एक हैं हमारा बेटा रघु।

सुरभि…… रघु ने ऐसा किए कर दिया जो आपके परेशानी का करण बाना हुए हैं। किसी ने अपको रघु के बारे में गलत बताकर भड़का दिया होगा। सुनो जी अपको जिसने भी भड़काया हैं आप उनका कहना न मानना मेरा लाडला ऐसा नहीं हैं जो कोई भी गलत काम करे।

राजेंद्र…… सुरभि तुम इतना परेशान क्यों हों रहीं हों? सुरभि हमारे बेटे ने कुछ गलत नहीं किया हैं। रघु हमारे परवरिश पर बदनुमा धब्बा कभी नहीं लगाएगा।

सुरभि….. सुनो जी आप ऐसे घुमा फिरा कर न बोलों एक तो आप खुद कहते हों रघु आपके परेशानी का करण बना हुआ हैं और फिर कहते हों रघु ने कुछ गलत नहीं क्या हैं। तो रघु आपके परेशानी का करण कैसे हुआ?

राजेंद्र……. सुरभि रघु की शादी मेरे परेशानी का करण बना हुआ हैं।


सुरभि….. हम ढूंढ़ तो रहे हैं रघु के लिए लड़की फिर रघु की शादी आपके परेशानी का कारण कैसे बन सकता हैं। देर सवेर हों जायेगी रघु की शादी आप इसके लिए परेशान न हों।

राजेंद्र……. मैंने रघु के लिए कई लड़कियां देखा हैं और यह सभी लड़कियां वैसी हैं जैसी हमे रघु के लिए चाहिए। लेकिन एक बात मेरे अब तक समझ में नहीं आया। ऐसा क्या उन्हें पाता चल जाता हैं जो वो हां कहने के बाद न कह देते हैं।

सुरभि …… न कहा रहें है तो ठीक हैं हम रघु के लिए कोई ओर लड़की ढूंढ लेंगे।

राजेंद्र……. बात लड़की ढूंढने की नहीं हैं मैं रघु के लिए ओर भी लड़की ढूंढ़ लूंगा लेकिन बात यह हैं की बिना लड़के को देखे बिना परखे कोई कैसे मना कर सकता हैं।

सुरभि…. आप थोडा ठीक से बताएंगे आप कहना किया चहते हों।

राजेन्द्र….. सुरभि आज तक जितनी भी लड़कियां देखा हैं। सब लड़कियों को और उनके घर वालों को रघु की तस्वीर देखकर पसंद आ गया और वो रघु को देखने आने के लिए भी तैयार हों जाते हैं लेकिन अचानक उन्हें किया हों जाता हैं वो आने से मना कर देते हैं।

सुरभि……. ये आप किया कह रहे हों ऐसा कैसे हों सकती हैं। हमारा रघु तो सबसे अच्छा व्यवहार करता हैं उसमे कोई बुरी आदत नहीं हैं। फिर कोई कैसे रघु को अपनी लड़की देने से मना कर सकता हैं।

राजेंद्र….. यह ही तो मेरे समझ में नहीं आ रहा हैं। सुरभि ऐसा एक या दो बार होता तो कोई बात नहीं था। अब तक जितनी भी लड़की देखा हैं सभी ने पहले हां कहा फिर मना कर दिया।

सुरभि…… उन लोगों ने मना करने के पिछे कुछ तो कारण बताया होगा।

राजेंद्र…. उन्होंने कारण बताकर मना किया हैं उसे सुनाकर मेरा खून खोल उठा तुम सुनोगी तो तुम भी अपना आप खो देगी।

सुरभि…... उन्होंने ऐसा क्या बताया जिसे सुनाकर अपको इतना गुस्सा आय।

राजेंद्र…… उन्होंने कहा हमारे बेटे में बहुत सारे बुरी आदत है उसका बहुत सारे लड़कियों के साथ संबंध हैं। हम अपने लडकी की शादी आपके बेटे से करेंगे तो हमारी बेटी की जीवन बर्बाद हों जायेगा।

राजेंद्र की बाते सुनाकर सुरभि गुस्से में आज बबूला हों गई और तेज आवाज में बोली……..

सुरभि……उनकी इतनी जुर्रत जो मेरे बेटे पर ऐसा बदनुमा धब्बा लगाए। मेरा बेटा सोने जैसा खरा हैं। जैसे सोने में कोई अवगुण नहीं हैं वैसे ही मेरे लाडले में कोई अवगुण नहीं हैं।

जब सुरभि तेज आवाज में बोल रही थीं इसी वक्त सूकन्या सीढ़ी से ऊपर आ रहीं था। सुरभि के तेज आवाज को सुनाकर सुकन्या कमरे के पास आई और उनकी बाते सुनने लागी। सुरभि के आवेश के वशीभूत होकर बोलने से राजेंद्र सुरभि को समझाते हुए बोला……

राजेंद्र….. इतने उत्तेजित होने की जरूरत नहीं हैं। मैं भली भाती जनता हूं हमारे बेटे में कोई अवगुण नहीं हैं। लेकिन मैं ये नहीं जान पा रहा हूं ऐसा कर कौन रहा हैं हमारे बेटे को झूठा बदनाम करके किसी को क्या मिल जायेगा।

सुरभि…… सुनो जी मुझे साजिश की बूं आ रही हैं कोई हमारे बेटे के खिलाफ साजिश कर रहा हैं। आप उस साजिश कर्ता को जल्दी ढूंढो मैं आपने हाथों से उसे सूली चढ़ाऊंगी।

राजेंद्र …. उसे तो मैं ढूंढुगा ही और अपने हाथों से सजा दूंगा। सुरभि तुमने साजिश का याद दिलाकर अच्छा किए मेरे एक और परेशानी का विषय यह साजिश शब्द भी हैं।

सुकन्या जो छुपकर इनकी बाते सुन रहा था। साजिश की बात सुनाकर सुकन्या के कान खडे हों गए और मन में बोलो.."कहीं भाई साहाब को हमारे साजिश के बारे में पाता तो नहीं चल गया ऐसा हुआ तो हम न घर के रहेगें न घाट के उनको सब बताना होगा। लेकिन पहले इनकी पूरी बाते तो सुन लू ये किस साजिश की बात कर रहें हैं।"

सुरभि……. आप कहना क्या चाहते हैं खुल कर बोलो……

राजेंद्र…… पिछले कुछ दिनों से मेरे विश्वास पात्र लोग एक एक करके गायब हों रहे हैं। जो मेरे लिए खबरी का काम कर रहे थे।

सुरभि…. अपने गुप्तचर रख रखे हैं और अपके गुप्तचर गायब हों रहे। लेकिन अपको गुप्तचर रखने की जरूरत क्यो आन पड़ी।

राजेंद्र…… सुरभि तुम भी न कैसी कैसी बाते करते हों, राज परिवार से हैं, इतनी जमीन जायदाद हैं, इतनी सारी कम्पनियां हैं और विष्टि गुप्त संपत्ति भी हैं जिसे पाने के लिए लोग तरह तरह के छल चतुरी करेंगे। इसका पाता लगाने के लिए मैंने गुप्तचर रखा था लेकिन एक एक करके सब पाता नहीं कहा गायब हों गए उनमें से एक कुछ दिन पहले मेरे कार्यालय में फोन कर कुछ बाते बताया था और बाकी बाते मिल कर करने वाला था लेकिन आया ही नहीं मुझे लगता हैं वह भी बाकी गुप्त चर की तरह गायब हों गया।

सुकन्या जो छुप कर सुन रहीं थीं उसे कुछ कुछ सुनाई दे रही थीं लेकिन गुप्तचर की बात सुनाकर सुकन्या मन में ही बोला " ओ हों तो भाई साहब ने गुप्तचर रख रखे हैं लेकिन इनको गायब कौन कर रहा हैं। मुझे इनकी पूरी बाते सुननी चाहिए।" अचानक सुरभि की नज़र दरवाजे की ओर गईं। उसे दरवाजे की ओर से कुछ आवाज सुनाई दिया तब सुरभि ने अपने पति को मुंह पर उंगली रख कर चुप रहने को कहा और आ रही आवाज़ को ध्यान से सुने लगीं। सुरभि को हल्के हल्के चुड़िओ के खनकने की आवाज सुनाई दिया जिससे सुरभि को शक होने लगा कोई दरवाजे पर खडा हैं। इसलिए सुरभि शक को पुख्ता करने के लिए बोली……

सुरभि……. दरवाजे पर कौन हैं कोई काम हैं तो बाद में आना हम अभी जरूरी कम कर रहे हैं।

अचानक सुरभि की आवाज़ सुनाकर सुकन्या सकपका गई और हिलने डुलने लगी जिससे चूड़ियों की आवाज़ ओर ज्यादा आने लगा। इसलिए सुरभि का शक यकीन में बदल गई और सुरभि आवाज देते हुए दरवाजे की और आने लगी। सुरभि की आवाज़ सुनाकर सुकन्या मन में बोली"इस सुरभि को कैसे पाता चला कोई छुपकर इनकी बाते सुन रहीं हैं। अब क्या करू भाग भी नहीं सकती और सुरभि ने पुछा तो उसे क्या जबाव दूंगी। सुरभि जो भी पूछे मुझे समहाल कर जवाब देना होगा नहीं तो सुरभि के सामने मेरा भांडा फूट जाएगी" सुरभि आकर दरवाज़ा खोलती हैं। सुकन्या को देखकर बोलती हैं…….

सुरभि…. छोटी तू कब आई कुछ काम था?

सुकन्या…. दीदी मैं तो अभी अभी आपसे मिलने आई हूं लेकिन आप को कैसे पता चला की दरवाजे पर कोई आया हैं?

सुरभि….. मुझे कैसे पाता चला यह जानने का विषय नहीं हैं। जानने का विषय तो यह हैं तू कभी भी मेरे कमरे में नहीं आई फिर आज कैसे आ गईं।

सुरभि की बाते सुनाकर सुकन्या सकपका गई उसे समझ ही नहीं आ रहीं थी सुरभि को क्या ज़बाब दे सुकन्या को सकपते देखकर सुरभि मुस्कुराते हुए बोली……

सुरभि….. आज आई हैं लेकिन गलत वक्त पर आई हैं अभी तू जा मैं तेरे जेठ जी के साथ व्यस्त हूं। तुझे कुछ बात करनी हैं तो बाद में कर लेना।

सुकन्या फीकी मुस्कान देकर न चाहते हुए भी अपने कमरे की ओर चल दिया। जब तक सुकन्या अपनी कमरे तक नहीं गई तब तक सुरभि खड़ी खड़ी सुकन्या को देखती रहीं। सुकन्या अपने कमरे के पास पहुंचकर सुरभि की और देखी और कमरे में घूस गई फिर सुरभि ने दरवजा बंद किया और मुस्कुराते हुए जाकर राजेंद्र के पास बैठ गई और बोली……

सरभि….. छोटी छुप कर हमारी बाते सुन रहीं थीं इसलिए जो भी बोलना थोडा धीमे आवाज में बोलना ताकि बाहर खडे किसी को सुनाए न दे।

राजेंद्र….. क्क्क्यायाया सुकन्या लेकिन सुकन्या तो कभी हमारे कमरे अंदर तो छोड़ो कमरे के पास भी नहीं आती फिर आज कैसे आ गई।

सुरभि…… आप छोड़िए छोटी की बातों को उसके मन में क्या चलता हैं यह आप भी जानते हो। आप ये बताइए अपके गुप्त चर ने आपको फोन पर किया बताए और धीमे आवाज में बोलना हम दोनों के अलावा तीसरा न सुन पाए।

राजेंद्र….. उसने बोला महल में से ही कोई मेरे और रघु के खिलाफ साजिश कर रहा हैं। मैं और रघु सतर्क रहूं।

सुरभि….. महल से ही कोई हैं आपने उस धूर्त का नाम नहीं पुछा।

राजेंद्र….. पुछा था लेकिन वह कह रहा था नाम के अलावा ओर भी बहुत कुछ बताना हैं और सबूत भी दिखाना हैं इसलिए फोन पर न बताकर मिलकर बताएगा।

सुरभि…… अब तो वह लापता हों गया हैं अब नाम कैसे पता चलेगा।

राजेंद्र….. वह ही तो मैं सोच रहा हूं और मेरे सबसे बडी चिंता का विषय यह हैं महल से कौन हों सकता हैं महल में तो हम दोनों भाई, तूम, सुकन्या और हमारे बच्चे और कुछ नौंकर हैं। इनमें से कौन हों सकता हैं।

राजेंद्र से महल की बात सुनाकर सुरभि गहन सोच विचार करने लग गई। उसके हावभाव सोचते हुए पाल प्रति पाल बदल रहीं थी। राजेंद्र सुरभि को देखकर समझने की कोशिश कर रहा था कि सुरभि इतना गहन विचार किस मुद्दे को लेकर कर रहीं हैं। सुरभि को इतनी गहराई से विचाराधीन देखकर राजेंद्र ने सुरभि को हिलाते हुए पुछा……

राजेंद्र…… सुरभि कहा खोई हुई हों।

सुरभि……. मैं अपके कहीं बातों पर विचार कर रहीं हूं और ढूंढ रहीं हु आप के कहीं बातों का संबंध महल के किस शख्स से हैं।

राजेंद्र…. मैं भी इसी बात को लेकर परेशान हूं लेकिन किसी नतीजे पर पहुंच नहीं पाया।

सुरभि……. जब आप लड़की देखने जाते थे आप अकेले जाते थे या आप के साथ कोई होता था।

राजेंद्र…… जाता तो मैं अकेले था कभी कभी मुंशी जी को भी ले जाता था। लेकिन बाद में तुम्हे और रावण को बता देता था।

सुरभि….. ऐसा कोई करण हैं जिसका संबंध रघु के शादी से हो।

राजेंद्र….. बाबूजी का बनाया हुआ वसीयत का संबंध रघु के शादी से हैं।

सुरभि….. वसीयत का संबंध रघु के शादी से कैसे हों सकता हैं। सारी संपत्ति तो बाबूजी ने आप दोनों भाइयों में बराबर बांट दिया था। फिर रघु के शादी का वसीयत से क्या लेना देना?

राजेंद्र….. वसीयत का रघु के शादी से लेना देना हैं। जो हमारे पूर्वजों का गुप्त संपत्ति हैं। उसका उत्तराधिकारी रघु की प्रथम संतान हैं और जो प्रत्यक्ष संपति हैं उसका उत्तराधिकारी हम दोनों भाई हैं।

सुरभि…… ओ तो यह बात हैं मुझे तो ऐसा लग रहा है अब तक जो कुछ भी हुआ हैं इसका करण कहीं न कहीं यह गुप्त संपत्ति ही हैं।

राजेंद्र…… मतलब ये की कोई हमारे गुप्त संपत्ति को पाने के लिए साजिश कर रहा हैं। लेकिन गुप्त संपत्ति के वसीयत के बारे में मैं और हमारा वकील दलाल और अब तुम जानती हों इसके अलावा किसी को पता नहीं हैं।


आज के लिए बस उतना ही आज के कहानी अगले अपडेट से जानेंगे। यह तक साथ बाने रहने के लिए सभी पाठकों को बहुत बहुत धन्यवाद।
Bahut badhiya update bhai.pareshan hone ka wajha pata chal gaya lekin uske piche ka admi kon hai ye nahni pata chala.
 

Destiny

Will Change With Time
Prime
3,965
10,701
144
Bahut badhiya update bhai.pareshan hone ka wajha pata chal gaya lekin uske piche ka admi kon hai ye nahni pata chala.
शुक्रिया sauravb जी

राजेंद्र की परेशानी के करण के पीछे कौन हैं इसका पता लगने में अभी वक्त लगेगा तब तक कहानी के हर अपडेट को अपने समर्थन से सुसज्जित करते रहीए।
 

Destiny

Will Change With Time
Prime
3,965
10,701
144
Update - 7


सुरभि…मेरी शक की सुई घूम फिर कर इन दोनों पर आकर रूक रहीं हैं। मुझे लग रहा हैं अब तक जो कुछ भी हुआ हैं उसमें कहीं न कहीं रावण और दलाल में से किसी का हाथ हैं या फिर दोनों भी हों सकते हैं।

राजेंद्र…सुरभि तुम बबली हों गई हों तुम रावण पर शक कर रहीं हों, रावण मेरा सगा भाई हैं वो ऐसा कुछ नहीं करेगा, कुछ करना भी चाहेगा तो भी नहीं कर सकता क्योंकि वो वसीयत के बारे में कुछ भी नहीं जानता रहीं बात दलाल की वो हमारे परिवार का विश्वास पात्र बांदा हैं । उसके पूर्वज भी हमारे परिवार के लिए काम करता आया हैं।

सुरभि…आप भी न आंख होते हुऐ भी अंधा बन रहे हों। आंख मूंद कर आप सभी पर जो भरोसा करते हों, इसी आदत के कारण आज हम मुसीबत में फंसे हैं।

राजेंद्र…तो क्या अब मैं किसी पर भरोसा भी न करूं।

सुरभि…भरोसा करों लेकिन आंख मूंद कर नहीं, इस वक्त तो बिलकुल भी नहीं इस वक्त आप सभी को शक की दृष्टि से देखो नहीं तो बहुत बड़ा अनर्थ हों जाएगा।

राजेंद्र…अनर्थ तो हों गया हैं फिर भी मैं चाहकर भी ऐसा नहीं कर सकता तुम तो मेरी आदत जानते हों अब तुम ही बताओं मैं किया करूं।

सुरभि…आप समझ नहीं रहें हों इस वक्त जो परिस्थिती बना हुआ हैं। ये बहुत ही विकट परिस्थिती हैं। इस वक्त हम नहीं संभले तो बाद में हमे संभालने का मौका नहीं मिलेगा।

राजेंद्र…देर सवेर संभाल तो जाएंगे लेकिन मैं चाहकर भी अपनो पर शक नहीं कर सकता तुम समझ क्यों नहीं रहें हों। तुम कोई ओर रस्ता हों तो बताओं।

सुरभि…आप हमेशा से ही ऐसा करते आ रहे हों। आप'को कितनी बार कहा, ऐसे किसी पर अंधा विश्वास न करो लेकिन आप सुनते ही नहीं हों। आप'का अंधा विश्वास करना ही आप'के सामने विकट परिस्थिती उत्पन्न कर देता हैं।

राजेंद्र...सुरभि कहना आसान हैं लेकिन करना बहुत मुस्किल किसी पर उंगली उठाने से पहले उसके खिलाफ पुख्ता प्रमाण होना चाहिए। बिना प्रमाण के किसी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता।

सुरभि…मैं कौन सा आप'से कह रहा हूं, जा'कर उनके गिरेबान पकड़ो ओर कहो तुम'ने हमारे खिलाफ साजिश क्यों किया? मैं बस इतना कह रहीं हूं आप उन्हे शक के केंद्र में ले'कर उनके खिलाफ सबूत इकट्ठा करों।

राजेंद्र…ठीक हैं! तुम जैसा कह रही हों मैं वैसा ही करुंगा अब खुश ।

सुरभि…हां मैं खुश हूं ओर कुछ रह गया हों तो बोलों वो भी पूरा कर देती हूं।

राजेंद्र…अभी प्यार का खेल खेलना बाकी रह गया हैं उसे शुरू करे।

सुरभि…मैं नहीं जानती आप कौन से प्यार की खेल, खेलने की बात कर रहें हों। मुझे आप'के साथ कोई प्यार का खेल नहीं खेलना।

राजेंद्र…सुरभि तुम तो बड़ा जालिम हों ख़ुद मेनका बन मुझे रिझा रही थीं। मैं रीझ गया तो साफ साफ मुकर रहीं हों। मुझ पर इतना जुल्म न करों मैं सह नहीं पाऊंगा।

सुरभि उठ गई फिर पल्लू को सही करते हुए दूर हट गईं ओर बोली…आप'को जिस काम के लिए रिझाया था वो हों गया। प्यार का खेल खेलने का ये सही वक्त नहीं है। यह खेल रात में खेलना सही रहता हैं इसलिए आप रात्रि तक प्रतिक्षा कर लिजिए।

राजेंद्र उठा फिर सुरभि के पास जानें लग गया सुरभि पति को पास आते देख ठेंगा दिखाते हुए पीछे को हटने लग गई। सुरभि को पीछे जाते देख राजेंद्र सुरभि के पास जल्दी पहुंचने के लिए लंबे लंबे डग भरने लग गया राजेंद्र को लंबा डग भरते देख सुरभि मुस्कुराते हुए जल्दी जल्दी पूछे होने लग गई। पीछे होते होते जा'कर दीवाल से टिक गईं। राजेंद्र सुरभि को दीवाल से टिकते देख मुस्कुरा दिया फिर सुरभि के पास जा कमर से पकड़कर खुद से चिपका लिया ओर बोला…सुरभि अब कहा भाग कर जाओगी अब तो तुम्हारा चिर हरण हो'कर रहेगा। रोक सको तो रोक लो।

सुरभि राजेंद्र के पकड़ से छुटने की प्रयत्न करते हुए बोली…बड़े आए मेरा चिर हरण करने वाले छोड़ो मुझे, आप'को इसके अलावा ओर कुछ नहीं सूझता।

राजेंद्र...गजब करती हों तुम्हें क्यों छोडूं मैं नहीं छोड़ने वाला मैंने तो ठान लिया आज तो पत्नी जी को ढेर सारा प्यार करके ही रहूंगा।

राजेंद्र सुरभि को चूमने के लिए मुंह आगे बड़ा दिया सुरभि राजेंद्र के होटों पर ऊंगली रख दिया फिर बोली…हटो जी आप'का ये ढेर सारा प्यार मुझ पर बहुत भारी पड़ता हैं। मुझे नहीं चाहिएं आप'का ढेर सारा प्यार।

राजेंद्र…तुम्हें ढेर सारा प्यार न करू तो ओर किसे करू राजा महाराजा के खानदान से हूं। पिछले राजा महाराजा कईं सारे रानियां रखते थे। मेरी तो एक ही रानी हैं। जितना प्यार करना चाहूं करने देना होगा। नहीं तो दूसरी रानी ले आऊंगा ही ही ही

सुरभि...लगता हैं आप'का मन मुझ'से भर गया जो आप दूसरी लाने की बात कर रहे हों। जाओ जी मुझे आप'से बात नहीं करना हैं ले आओ दूसरी बीवी।

इतना बोल सुरभि मुंह फूला लिया ओर राजेंद्र का हाथ जो सुरभि के कमर पर कसा हुआ था उससे खुद को छुड़ाने लग गई। तभी कोई "राजा जी, राजा जी"आवाज देते हुए कमरे के बाहर खडा हों गया आवाज सुन राजेंद्र सुरभि को खुद से ओर कस के चिपका लिया फिर बोला…कौन हों मैं अभी विशेष काम करने में व्यस्त हूं।

शक्श…राजा जी माफ करना मैं धीरा हूं। मुंशी जी आए हैं कह रहें हैं आप'को उनके साथ कहीं जाना था।

धीरा के कहते ही राजेंद्र को याद आया। उसने मुंशी को किस काम के लिए बुलाया था ओर कहा जाना था। इसलिए सुरभि को छोड़ दिया फ़िर बोला…धीरा तुम जाओ ओर मुंशी को जलपान करवाओ मैं अभी आया।

धीरा…जी राजा जी।

इतना कह धीरा चल दिया। राजेंद्र निराश हो कपडे लिया फिर बाथरूम की ओर चल दिया। राजेंद्र को निराश देख सुरभि मुस्कुराते हुए बोली….क्या हुआ आप'ने मुझे छोड़ क्यों दिया। आप'को तो ढेर सारा प्यार करना था। प्यार करिए न देखिए मैं तैयार हूं।

राजेंद्र…जख्मों पर नमक छिड़काना तुम से बेहतर कोई नहीं जानता छिड़क लो जितना नमक छिड़कना हैं। अभी तो मैं जा रहा हूं लेकिन रात को तुम्हें बताउंगा।

राजेंद्र को ठेंगा दिखा सुरभि रूम से बाहर चल दिया। कुछ वक्त बाद राजेंद्र तैयार हों'कर रूम से बहार आ बैठक की ओर चल दिया। जहां मुंशी बैठे चाय की चुस्कियां ले रहा था। राजेंद्र को देख मुंशी खडा हों गया फिर नमस्कार किया। मुंशी को नमस्कार करते देख राजेंद्र मुस्करा दिया फिर बोला…मुंशी तुझे कितनी बार कहा तू मुझे देख नमस्कार न किया कर, सीधे आ'कर गले मिला कर पर तू सुनता ही नहीं तुझे ओर कितनी बार कहना पड़ेगा।

राजेंद्र जा'कर मुंशी के गले मिला फिर अलग होकर मुंशी बोला…राना जी ये तो आप'का बड़प्पन हैं। मैं आप'के ऑफिस का एक छोटा सा नौकर हूं ओर आप मालिक हों। इसलिए आप'का सम्मान करना मेरा धर्म हैं। मैं तो अपना धर्म निभा रहा हूं।

राजेंद्र…मुंशी तू अपना धर्मग्रन्थ अपने पास रख। तूने दुबारा नौकर और मालिक शब्द अपने मुंह से बोला तो तुझे तेरे पद से हमेशा हमेशा के लिए मुक्त कर दुंगा।

मुंशी…राना जी आप ऐसा बिल्कुल न करना नहीं तो मेरे बीबी बच्चे भूख से बिलख बिलख कर मर जायेंगे।

राजेंद्र…भाभी और रमन को भूखा नहीं मरने दूंगा लेकिन तुझे भूखा मर दुंगा अगर तूने दुबारा मेरे कहें बातो का उलघन किया। अब चल बहुत देर हों गया हैं। तू भी एक नंबर का अलसी हैं अपना काम ढंग से नहीं कर रहा हैं।

दोनों हंसते मुस्कुराते घर से चल दिया लेकिन कोई हैं जिसे इनका याराना पसंद नहीं आया और वो हैं सुकन्या जो धीरा के राजेंद्र को बुलाते सुनकर रूम से बाहर आ गई फिर राजेंद्र और मुंशी के दोस्ताने व्यवहार को देख तिलमिला गई ओर बोली…इन दोनों ने महल को गरीब खान बना रखा हैं एक नौकर से दोस्ती रखता हैं तो दूसरा महल के नौकरों को सर चढ़ा रखी हैं। एक बार महल का कब्जा मेरे हाथ आने दो सब को उनकी औकाद अच्छे से याद करवा दूंगी।

सुकन्या को अकेले में बदबड़ते देख सुरभि बोली…छोटी क्या हों गया, अकेले में क्यों बडबडा रहीं हैं?

सुकन्या…कुछ नहीं दीदी बस ऐसे ही।

सुरभि…तो क्या भूत से बाते कर रहीं थीं?

सुकन्या आ'कर सुरभि को सोफे पर बिठा दिया फिर खुद भी बैठ गईं। सुकन्या के इस व्यवहार से सुरभि सुकन्या को एक टक देखने लग गई सुरभि ही नहीं रतन और धीरा भी ऐसे देख रहे थे जैसे आज कोई अजूबा हों गया हों। हालाकि यह अजूबा इससे पहले सुकन्या कर चुका था ओर सभी को सोचने पर मजबूर कर चुकी थीं। इसलिए सुकन्या का आदर्श व्यवहार करना किसी के गले नहीं उतर रहा था। सभी को ताकते देख सुकन्या रतन और धीरा से बोली…क्या देख रहें हों तुम्हें कोई काम नहीं हैं जब देखो काम चोरी करते रहते हों जाओ अपना अपना काम करों।

सुकन्या कह मुस्कुरा दिया फिर इशारे से ही दोनों को जानें के लिए दुबारा कहा। तब दोनों सिर झटककर चल दिया। दोनों के जाते ही सुरभि बोली…छोटी तेरा न कुछ पाता ही नहीं चलता तू कभी किसी रूप में होती हैं तो कभी किसी ओर रूप में समझ नहीं आता तेरे मन में किया चल रही हैं।

सुकन्या…दीदी आप सीधा सीधा बोलिए न मैं गिरगिट हूं ओर गिरगिट की तरह पल पल रंग बदलती हूं।

सुरभि...मैं भला तुझे गिरगिट क्यों कहने लगीं तू तो एक खुबसूरत इंसान हैं जो अपनें व्यवहार से सभी को सोचने पर मजबूर कर देती हैं।

सुकन्या…दीदी आप मुझे ताने मार रहीं हों मार लो ताने, मैं काम ही ऐसा करती हूं।

सुरभि…मैं भला क्यो तने मरने लगीं? तू छोड़ इन बातों को, ये बता तू आज मेरे रूम मे कैसे आ गई? इससे पहले तो कभी नहीं आई।

सुकन्या…अब तक नहीं आई ये मेरी भूल थीं। अब मैं रोज आप'के रूम में आऊंगी ओर आप'से ढेर सारी बातें करूंगी।

सुरभि…तुझे रोका किसने हैं तू कभी भी मेरे रूम में आ सकती हैं जितनी मन करे उतनी बाते कर सकती हैं।

ऐसे ही दोनों बाते करने लग गए। जब दो महिलाएं एक जगह बैठी हों तो उनके बातों का सिलसिला कभी खत्म ही नहीं होता। दोनों देवरानी जेठानी को बातों में मशगूल देख धीरा बोला…काका आज इस नागिन को हों क्या गया? रानी मां से अच्छा व्यवहार कर रहीं हैं। अच्छे से बाते कर रहीं हैं।

रतन…धीरे बोल नागिन ने सुन लिया तो जमा किया हुआ सभी ज़हर हम पर ही उगल देगी। उनके ज़हर का काट किसी के पास नहीं हैं। हमारे पास तो बिल्कुल नहीं!

धीरा…काका सही कह रहे हों, न जानें कब महल में ऐसी ओझा ( सपेरा) आयेगा जो इस नागिन के फन को कुचलकर इसके ज़हर वाली दांत को तोड़ सकें।

दोनों बाते करने मैं इतने मग्न थे की इन्हें पाता ही नहीं चला कोई इन्हें आवाज दे रहा था जब ध्यान गया तो उसे देख दोनों सकपका गए फ़िर डरने भी लगें। रतन किसी तरह डर को काबू किया ओर बोला…छोटी मालकिन आप'को कुछ चाहिए था तो आवाज दे दिया होता। यह आने का कष्ट क्यों किया?

सुकन्या…आवाज़ दिया तो था। धीरा एक गिलास पानी लेकर आ लेकीन सुनाई देता तब न, सुनाई देता भी कैसे, दोनों कामचोर बातों में जो माझे हुए थे। अच्छा ये बताओ तुम दोनों किस नागिन की बात कर रहें थें? कौन ओझा किस नागिन की फन कुचल, ज़हर वाली दांत तोड़ने वाला हैं।

सुकन्या की बाते सुन दोनों एक दूसरे का मुंह ताकने लग गए ओर सोचने लगे अब क्या जवाब दे? एक दूसरे को ताकते देख सुकन्या बोली…तुम दोनों एक दूसरे को तकना छोड़ कुछ बोल क्यों नहीं रहें? मुंह में जुबान नहीं हैं। (सुरभि की ओर देखकर) दीदी ने तुम सभी को सिर चढ़ा रखा हैं काम के न काज के दुश्मन अनाज के अब जल्दी बोलों किस बारे में बात कर रहें थे।

रतन समझ गया सुकन्या पूरी बात नहीं सुन पाया इसलिए जानना चाहती हैं। तो रतन खुद का बचाव करने के लिए एक मन घड़ंत कहानी बना बताने लग गया।

"छोटी मालकिन धीरा बता रहा था उसने किसी से सुना हैं यह से दुर किसी के घर में एक नागिन निकला हैं जिसकी जहर वाली दांत निकलने के लिए कोई ओझा पकड़ कर ले गया। हम दोनों उस नागिन की बात कर रहें थे न जाने अब कैसे ओझा उस नागिन की ज़हर वाली दांत तोड़ेगा।

रतन कि बात सुन धीरा समझ गया। एक झूठी कहानी बना सुकन्या को सुनाकर झांसा दे रहा हैं। इसलिए धीरा भी रतन के हां में हां मिलाते हुए बोला...हां हां छोटी मालकिन मैं काका को उस नागिन और उसकी ज़हर की बात कर रहा था। आप को किया लगा, हम महल की बात कर रहे थे जब महल में कोई नागिन निकली ही नहीं, तो हम महल में मौजुद नागिन की ज़हर निकलने की बात क्यो करेंगे?

सुकन्या…अच्छा अच्छा ठीक हैं अब ज्यादा बाते न बनाओ, जल्दी से दो गिलास पानी ले'कर आओ काम चोर कहीं के।

सुकन्या कहकर चली गईं। धीरा और रतन छीने पर हाथ रख धकधक हों रहीं धड़कन को काबू करने लग गए। बे तरतीब चल रही धड़कने कुछ काम हुआ तब रतन बोला...धीरा जल्दी जा नागिन को पानी पिला आ नहीं तो नागिन फिर से ज़हर उगलने आ जायेगी।

धीरा दो गिलास ले'कर एक प्लेट पर रखा फिर पानी भरते हुए बोला…काका आज बाल बाल बच गए। छोटी मालकिन हमारी पूरी बाते सुन लिया होता। तो अपने जहर वाली दांत हमे चुबो चूबो कर तड़पा तड़पा कर मार डालती।

रतन…बच तो गए हैं लेकीन आगे हमे ध्यान रखना हैं तू जल्दी जा ओर पानी पिलाकर आ लगता हैं छोटी मालकिन बहुत प्यासा हैं।

धीरा जा'कर दोनों को पानी दिया फ़िर किचन मे चला गया ओर अपने काम में लग गया। ऐसे ही दिन बीत गया। राजेन्द्र और रावण दोनों भाई अभी तक घर नहीं लौटे थे। न जानें दोनों को घर लौटने में ओर कितना देर लगने वाला था। इसलिए बिना वेट किए सुरभि, सुकन्या रघु और अपश्यु खाना खा'कर अपने अपने रूम में चले गए। सुकन्या रूम में आ'कर दो पल स्थिर से नहीं रुक पा रहीं थीं। उसके मन में हल चल मची हुई थी। साथ ही पेट पर वजन भी पड़ रहा था क्योंकि दिन में सुनी सुरभि और राजेंद्र की बाते ओर अभी खाया खाना, दोनों मिलकर बदहजमी का कारण बनता जा रहा था। बदहजमी से छुटकारा पाने का उसे एक ही रस्ता दिखा, दिन में सुनी बाते पति को बता दिया जाएं। लेकिन रावण अभी तक घर नहीं लौटा था इसलिए सुकन्या परेशान हों'कर बोली…जिस दिन इनसे जरूरी बात करनी होती हैं। उसी दिन ये लेट आते हैं। ना जानें कब आयेंगे। ये बाते ओर कितनी देर तक मेरे पेट में हल चल मचाती रहेंगी कब तक इन बातों का बोझ ढोती रहूंगी।

सुकन्या अकेले अकेले बडबडा रही थीं ओर ये सोच टहल रहीं थीं शायद टहलने से बेचैनी थोड़ा कम हों जाएं लेकिन फायदा कुछ हों नहीं रहा था। रावण और राजेंद्र दोनों एक के बाद एक महल लौट आए। नौकरों को खाना लगाने को बोल हाथ मुंह धोने रूम में चले गए। रावण को देख सुकन्या एक चैन की स्वास लिया फिर बोली…आप आज इतने लेट क्यों आए? आप से कितनी जरूरी बात करना था ओर आप आज ही लेट आए। जिस दिन आपसे जरूरी बात करना होता हैं आप उसी दिन लेट आते हों। बोलों ऐसा क्यों करते हों?

रावण…अजीव बीबी हो खाना खाया कि नहीं खाया ये पुछने से पहले शिकायत करने लग गईं। तुम अपना दुखड़ा ही सुना दो आज तुम्हारे बातों से ही पेट भरा लुंगा।

रावण की बाते सुन सुकन्या मुंह बना लिया फ़िर बोली…आप तो ऐसे कह रहें हों जैसे मुझे आप'की भूख की परवा नहीं जाइए पहले खाना खा'कर आइए फिर बात करेगें।

रावण...अरे तुम तो रूठने लग गईं। अच्छा बताओ किया कहना चाहते हों। मैं भुख बर्दास्त कर सकता हूं लेकिन तुम मुझसे रूठ जाओ ये मुझे बर्दास्त नहीं।

इतना कह रावण कान पकड़ लिया। जिससे हुआ ये सुकन्या के चहरे पर खिला सा मुस्कान आ गया। मुस्कुराते हुए सुकन्या बोली...आप पहले खाना खाकर आइए फिर बात करते हैं।

रावण मुस्कुरा दिया फिर हाथ मुंह धोने बाथरूम चला गया। ईधर राजेंद्र रूम में पहुंचा, सुरभि बेड पर पिट टिकाए एक किताब पढ़ रहीं थीं। राजेन्द्र को देख किताब बंद कर साइड में रख दिया फिर बोली....आप आ गए इतनी देर कैसे हो गईं?

राजेन्द्र…कुछ जरूरी काम था इसलिए देर हो गया। तुम ये कौन सी किताब पढ़ रहीं थीं?

किताब के बरे मे जानें की ललक देख सुरभि को खुराफात सूजा इसलिए मंद मंद मुस्कुराते हुए बोली…कामशास्त्र पढ़ रहीं थी। किताब के बरे मे ओर कुछ जानना हैं।

राजेन्द्र…ओ ये बात हैं तो चलो फिर पहले अधूरा छोड़ा कम पूरा कर लेता हूं फिर खान पीना कर लूंगा।

सुरभि…अधूरा कम बाद में पूरा कर लेना अभी जा'कर अपना ताकत बड़ा कर आइए आज अपको बहुत ताकत की जरूरत पड़ने वाला हैं।

राजेन्द्र…लगाता हैं आज रानी साहिबा मूढ़ में हैं।

सुरभि…आप'की रानी साहिबा तो सुबह से ही मुड़ में हैं ओर आप'का तो कोई खोज खबर ही नहीं था।

राजेंद्र…अब आ गया हू अच्छे से खोज खबर लूंगा लेकिन पहले भोजन करके ताकत बड़ा लू।

दोनों एक दुसरे को देख मुस्कुरा दिया फिर राजेन्द्र हाथ मुंह धो'कर कपडे बादल खाना खाने चल दिया। जहां रावण पहले से ही मौजूद था दोनों भाई दिन भर की कामों के बारे में बात करते करते भोजन करने लग गए। भोजन करने के बाद एक दूसरे को गुड नाईट बोल अपने अपने कमरे में चले गए। सुकन्या रावण की प्रतिक्षा में सुख रही थी। रावण के आते ही शुरू हों गई

सुकन्या…भोजन करने में कितना समय लगा दिया। इतनी देर तक क्या कर रहें थें?

राजेन्द्र…दादाभाई के साथ दिन भर के कामों के बारे में बात कर रहा था इसलिए खाना खाने में थोड़ा ज्यादा वक्त लग गया। तुम बताओ क्या कहना चाहते हों?

सुकन्या…मुझे लगता हैं सुरभि और जेठ जी को हमारे साजिश के बारे में पता चल गया हैं।

ये सुन रावण के पैरों तले जमीन खिसक गया। उसे अपने बनाए साजिश का पर्दा फाश होने का डर सताने लग गया। जिसे छुपाने के लिए न जानें कितने कांड रावण ने किया फिर भी हूआ वोही जिसका उसे डर था लेकिन इतनी जल्दी होगा उसे भी समझ नहीं आ रहा था। रावण का मन कर रहा था अभी जा'कर अपने भाई भाभी और रघु को मौत के घाट उतर दे लेकिन फिर खुद को नियंत्रण कर बोला... हमारे बनाए साजिश का पर्दा फाश हों चुका हैं। तुम्हें कैसे पता चला? ऐसा हुए होता तो दादा भाई अब तक मुझे मार देते या फ़िर जेल में डाल देते।

सुकन्या…इतनी सी बात के लिए जेठ जी भला आपको क्यो मरने लगे?

रावण…इतनी सी बात नहीं बहुत बडी बात हैं। तुम ये बताओ तुम्हें कैसे पाता चला?

सुकन्या…आप'के जानें के बाद मैं कुछ काम से निचे गई जब ऊपर आ रही थीं तभी मुझे सुरभि के कमरे से तेज तेज बोलने की आवाज़ सुनाई दिया मैं उनके कमरे के पास गई तो मुझे दरवजा बंद दिखा। मैं वापस मुड़ ही रहीं थीं की मुझे उनकी बाते फिर सुनाई दिया जिसे सुनकर मेरे कदम रुख गए और मैं उनकी बाते सुने लग गई। सुरभि कह रही थीं आप उनके बातों पर ध्यान मत देना मुझे लगता हैं कोई मेरे बेटे के खिलाफ साजिश कर रहा हैं फिर भाई साहब ने जो बोला उसे सुनकर मेरे कान खडे हों गए ओर आगे जो जो सुकन्या छुप कर सूना था एक एक बात बता दिया जिसे सुनकर रावण बोला...ये तो बहुत ही विकट परिस्थिति बन गया हैं। मुझे लगता हैं दादा भाई को पूरी बाते पता नहीं चला नहीं तो मैं आज महल में नहीं जेल में बंद होता या फिर दाद भाई मेरा खून कर देते।

सुकन्या…आप क्या कह रहे हो? जेठ जी आप'का खून क्यों कर देते? हम दोनों तो सिर्फ़ महल और सभी संपत्ति अपने नाम करवाना चाहते हैं। इसमें खून करने की बात कहा से आ गई जेठ जी आप'को जेल भी तो भिजवा सकते हैं।

रावण…सुकन्या तुम नहीं जानती मैंने जो कर्म कांड किया हैं उसे जानने के बाद दादा भाई मुझे जेल में नही डालते बल्कि मेरा कत्ल कर देते।

सुकन्या…आप कहना क्या चाहतें हो? मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है। लेकिन मैं इतना तो समझ गई हूं आप'ने मुझ'से बहुत कुछ छुपा रखा हैं। बताइए न आप क्या छुपा रहे हों?

रावण…हां बहुत कुछ हैं जो मैंने तुम्हे नहीं बताया। तुम्हें किया लगता हैं आधी सम्पत्ति पाने के लिए दादाभाई के साथ विश्वास घात करूंगा, नहीं सुकन्या मैं कुछ ओर पाने के लिए दादा भाई के साथ विश्वास घात कर रहा हूं।

सुकन्या…मुझे जहां तक जानकारी हैं हमारे पास इस संपत्ति के अलावा ओर कुछ नहीं हैं जो आधा आधा आप दोनों भाइयों में बांटा हुआ हैं। तो फ़िर ओर रह ही क्या गया? जिसे आप पाना चाहते हों।

रावण…सुकन्या हमारे पास गुप्त संपत्ति हैं जिसे पा लिया तो मैं बैठे बैठे ही दुनियां का सबसे अमीर आदमी बन जाऊंगा।

गुप्त संपत्ति और दुनियां की सबसे अमीर होने की बात सुन सुकन्या अचंभित हों गई। एक पल के लिए सुकन्या की आंखें मोटी हों गई। जैसे लालच उस पर हावी हों रहा हों एकाएक सुकन्या सिर को तेज तेज झटका देने लग गई। ये देख रावण बोला...सुकन्या खुद पर काबू रखो तुम जानकार अनियंत्रित हों जाओगी इसलिए मैं तुम्हें नहीं बता रहा था।

सुकन्या…कैसे खुद पर नियंत्रण रख पाऊं न जानें आप कैसे खुद पर नियंत्रण रखें हुए हैं।

रावण...खुद पर नियंत्रण रखना होगा नहीं तो हमारे किए कराए पर पानी फिर जायेगा फ़िर गुप्त सम्पत्ति हमारे हाथ से निकल जायेगा। जिसकी जानकारी सिर्फ दादाभाई को हैं। जब तक मैं जानकारी न निकल लेता तब तक खुद पर नियंत्रण रखना होगा।

सुकन्या…गुप्त संपत्ति का राज सिर्फ जेठ जी जानते हैं। तो फिर आप को कैसे पता चला?

रावण…गुप्त संपत्ति का राज सिर्फ दादाभाई ही जानते हैं लेकिन उस संपत्ति का एक वसियत बनाया गया था। जिसके बारे में दादा भाई और हमारा वकील दलाल जानता हैं। दलाल मेरा बहुत अच्छा दोस्त हैं। एक दिन बातों बातों में दलाल ने मुझे गुप्त संपत्ति के वसियत के बारे में बता दिया। उससे गुप्त सम्पत्ति कहा रखा हैं पूछा तो उसने कहा उसे सिर्फ वसीयत की जानकारी है गुप्त संपत्ति कहा रखा है वो नहीं जनता तब हम दोनों ने मिलकर गुप्त संपत्ति का पता ठिकाना जानने के लिए साजिश रचना शुरू कर दिया।

रावण ने आगे कहा…हमारे साजिश का पहला निशाना बना रघु , वसियत के अनुसार रघु की पहली संतान गुप्त संपत्ति का मूल उत्तराधिकारी होगा। इसलिए मैं रघु की शादी रोकने के लिए जहां भी दादाभाई लड़की देखते उनको अपने आदमियों को भेजकर डरा धमका कर शादी के लिए माना करवा दिया करता था। जो नहीं मानते उनको रघु में बहुत सारे बुरी आदतें हैं, ऐसी झूठी खबर दिया करता था। ये जानकर लड़की वाले खुद ही रिश्ता करने से मना कर देते थे।

रावण...मैंने दादाभाई पर भी नज़र रखवाया। जिससे मुझे पाता चल जाता, दादाभाई कब किस लड़की वालों से मिलने गए ऐसे ही नज़र रखवाते रखवाते मुझे दादाभाई के रखे गुप्तचर के बरे में पाता चल गया फिर मैं उन गुप्तचरों को ढूंढूं ढूंढूं कर सभी को मार दिया। उन्हीं गुप्त चारों में से किसी ने दादाभाई को साजिश के बारे में बताएं होगा और सबूत भी देने की बात कहा होगा।

रावण की बाते सुन सुकन्या अचंभित रह गईं उसे समझ ही नही आ रहा था क्या बोले सुकन्या सिर्फ रावण का मुंह ताक रहीं थीं। सुकन्या को तकते देख रावण बोला…सुकन्या क्या हुआ सदमे में चल बसी हों या जिंदा हों।

सुकन्या…जिन्दा हूॅं लेकिन आप'से नाराज़ हूं आप'ने इतना बड़ा राज मुझ'से छुपाया और इतना कुछ अकेले अकेले किया मुझे बताया भी नहीं।

रावण…गुप्त संपत्ति प्राप्त कर मैं तुम्हें उपहार में देना चाहता था लेकिन समय का चल ऐसा चला की गुप्त संपत्ति प्राप्त करने से पहले ही तुम्हें राज बताना पड़ रहा हैं मैं अकेला नहीं हूं मेरे साथ मेरा दोस्त दलाल भी सहयोग कर रहा हैं।

सुकन्या…अब मैं आप'के साथ हूं आप जैसा कहेंगे मैं करूंगी। हमे आगे क्या करना चाहिए? जब साजिश की बात खुल गई हैं। तो देर सवेर जेठ जी साजिश करने वाले को ढूंढ लेंगे। तब हमारा क्या होगा?

रावण…दादाभाई को साजिश का भनक लग गया हैं तो दादाभाई चुप नहीं बैठने वाले इसलिए हमें यही रुक जाना पड़ेगा फिर आगे चलकर नए सिरे से शुरू करना होगा।

सुकन्या…ऐसे तो रघु की शादी हों जायेगा फिर गुप्त संपत्ति का मूल उत्तर अधिकारी भी आ जाएगा। ऐसा हुआ तो गुप्त सम्पत्ति हमारे हाथ से निकल जायेगा।

रावण…अभी के लिए हमें रुकना ही पड़ेगा नहीं तो हमारा भांडा फुट जायेगा। आगे चल कर मैं कोई न कोई रस्ता ढूंढ लुंगा।

सुकन्या…ठीक हैं। बहुत रात हों गया हैं अब चलकर सोते हैं।

दोनों साथ में लेट गए रावण थका हुआ था। इसलिए लेटने के कुछ वक्त बाद नींद की वादी में खो गया लेकिन सुकन्या को नींद नहीं आ रहीं थीं। एक हाथ सिर पे रख सुकन्या मन ही मन बोली...मैंने थोड़ा लालची होने का ढोंग क्या किया अपने मुझे सभी राज बता दिया। मुझे उम्मीद नहीं था आप इतने लालची निकलोगे मुझे तो लगता हैं मैं एक गलत इंसान से शादी कर लिया। पहले जान गया होता तो आप से शादी ही न किया होता। आप इसी लिए मुझे बार बार दिखावे की जिंदगी जीने को कह रहे थें। लेकिन आप नहीं जानते मैं दिखावे की जिंदगी ही जी रहीं हूं। न जानें कब तक ओर मुझे बुरे होने का ढोंग करना पड़ेगा। अब मुझसे ओर नहीं होता हे भगवान कुछ ऐसा कर जिससे मुझे दिखावे की जिंदगी न जीना पड़े।

कुछ वक्त तक ओर खुद के बरे मे सोच सोच कर सुकन्या करवटें बदलती रहीं फिर सो गई। उधर सुरभि और राजेंद्र काम शास्त्र की कलाओं को साधने में लगे हुए थे। दोनों काम कलां में मग्न थे और महल के दूसरे कमरे में बहुत से राज उजागर हुआ और दफन भी हों गया। जिसकी भानक किसी को नहीं हुआ।



आगे क्या क्या होने वाला हैं इसके बरे में आगे आने वाले अपडेट में जानेंगे आज के लिए इतना ही। यह तक साथ बने रहने के लिए सभी पाठकों को बहुत बहुत धन्यवाद
 
Last edited:

Destiny

Will Change With Time
Prime
3,965
10,701
144
दोनों अपडेट्स बहुत ही बेहतरीन था । लिखने का तरीका और डायलॉग सब कुछ बढ़िया था । जैसा कि मैंने आपको सजेशन दिया था कि कहानी हमेशा पास्ट टेंस में लिखनी चाहिए और आप ने वैसा ही किया ।
आपके जेहन में शब्दों का डिक्शनरी है । नाॅलेज भी अच्छी खासी है । बस उसे सही तरीके से प्रस्तुत करना था जो कि आपने किया ।
आउटस्टैंडिंग अपडेट थे दोनों ।

स्टोरी की बात करें तो राजेंद्र राणा और रावण राणा दोनों भाई एक सिक्के के दो पहलू हैं । जहां राजेंद्र जी एक भले इंसान हैं वहीं रावण बिल्कुल अपने नाम के अनुरूप ।
चूंकि राजेंद्र बड़े हैं इसलिए जमीन जायदाद पर मालिकाना हक उनका है । और यह न तो गवारा है रावण को और न ही उनकी पत्नी सुकन्या देवी को । छल कपट के द्वारा वो पूरी प्रोपर्टी हथियाना चाहते हैं ।

दोनों के पुत्र अपने अपने माता-पिता के कदमों नक्श पर ही चल रहे हैं । एक सुशील और कोमल हृदय का तो दूसरा निष्ठुर और दुष्कर्म प्रवृत्ति का ।

लेकिन यह समझ में नहीं आ रहा है कि रघुवीर इतना साधन सम्पन्न होते हुए भी बच्चों को ट्यूशन क्यों पढ़ा रहा है ?

इस अपडेट में हमने देखा कि राजेंद्र बाबू अपने पत्नी सुरभि से कुछ बातें छुपा रहे थे और सुरभि अपने हुस्न का जादू उनके उपर चलाकर वह बातें जानना चाहती थी । शायद राजेंद्र बाबू को अपने छोटे भाई के कुछ करतूतों का आभास हुआ होगा । या शायद उनके कम्पनी में कुछ प्रोब्लम क्रिएट हो गई होगी । शायद रघुवीर की भूमिका यहां से बढ़ने वाली हो !

आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग अपडेट दीप भाई ।

आप अनामिका को नही जानते।
ये एमी है। जिसने न जाने कितने लड़कों की बैंड बजाई थी क्या यही प्यार है कहानी में।।

Waiting for new update

Abhi busy Navratri ke chalte

Revos start Navratri ke baad...

Jabardast Updateee

Ab shayad unn kamino ka pardafaash hoga.

Nice and excellent update...

Awesome update

nice update
hmm to baat gupt sampatiyon ki hai ?
aur guptchar gayab ho rahe hain !
ab mujhe lgta hai raavan ye kaam akela nhi kar sakta hai ho na ho is saajish mein koi aur bhi hoga raavan ka sath dene wala .​
agle update ka intezaar rahega.

अगला अपडेट पोस्ट कर दिया है
 

Jaguaar

Well-Known Member
17,679
61,520
244
अजनबी हमसफ़र-रिश्तों का गठबंधन

Update - 7


सुरभि…… ओ तो यह बात हैं मुझे तो ऐसा लग रहा है अब तक जो कुछ भी हुआ हैं इसका करण कहीं न कहीं यह गुप्त संपत्ति ही हैं।


राजेंद्र…… मतलब ये की कोई हमारे गुप्त संपत्ति को पाने के लिए साजिश कर रहा हैं। लेकिन गुप्त संपत्ति के वसीयत के बारे में मैं और हमारा वकील दलाल और अब तुम जानती हों इसके अलावा किसी को पता नहीं हैं।


सुरभि….. मेरी शक की सुई घूम फिर कर इन दोनों पर आकर रूक रहीं हैं। मुझे लग रहीं हैं अब तक जो कुछ भी हुआ हैं इसमें कहीं न कहीं रावण और दलाल में से किसी का हाथ हैं या फिर दोनों भी हों सकते हैं।


राजेंद्र….. सुरभि तुम बबली हों गई हों तुम रावण पर शक कर रहीं हों , रावण मेरा सगा भाई हैं वो ऐसा कुछ नहीं करेगा, कुछ करना भी चाहेगा तो भी नहीं कर पायेगा क्योंकि उसे वसीयत के बारे में कुछ पाता नहीं हैं और दलाल वो हमारे परिवार का विश्वास पात्र बांदा हैं । उसके पूर्वज भी हमारे परिवार के लिए काम करता रहा हैं।


सुरभि….. आप भी न आंख होते हुऐ भी अंधा बन रहे हों……..


राजेंद्र….. तुम कहना किया चाहती हों ।


सुरभि….. आप जो आंख मूंद कर सब पर भरोसा करते हों, आपके इसी आदत के कारण आज ये मुसीबत आन पड़ी है।


राजेंद्र…. तो क्या अब मैं किसी पर भरोसा भी न करूं।


सुरभि….. भरोसा करों लेकिन आंख मूंद कर नहीं और इस वक्त तो बिलकुल नहीं इस वक्त आप सब को शक की दृष्टि से देखो नहीं तो बहुत बड़ा अनर्थ हों जाएगा।


राजेंद्र…. तो क्या मैं अपने परिवार पर ही शक करूं। ये मैं नहीं कर सकता।


सुरभि…… आप समझ नहीं रहें हों इस वक्त जो परिस्थिती बना हुआ हैं यह बहुत विकट परिस्थिती हैं। इस वक्त हम नहीं समले तो बाद में हमे सम्हालने का मौका नहीं मिलेगी।


राजेंद्र……. तो किया मैं अब घर परिवार के लोगों पर ही शक करूं।


सुरभि……. आप हमेशा से ही ऐसा करते आ रहे हों। आप को कितनी बार कहा हैं आप ऐसे किसी पर अंधा विश्वास न करें लेकिन आप सुनते ही नहीं हों। अपके यह अंधा विश्वास करना ही अपके सामने विकट परिस्थिती उत्पन्न कर देता हैं।


राजेंद्र…… सुरभि कहना आसान लेकिन करना बहुत मुस्किल किसी पर उंगली उठाने से पहले उसके खिलाफ पुख्ता प्रमाण होना चाहिए। बिना प्रमाण के किसी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता।


सुरभि…… मैं कौन सा आपसे कह रहा हूं आप जाकर उनकी गिरेबान पकड़े और कहे तुमने हमारे खिलाफ साजिश क्यों किया। मैं बस इतना का रहा हूं आप उन्हे शक के केंद्र में लेकर अपने काम को आगे बढ़ाए।


राजेंद्र….. ठीक हैं! तुम जैसा कह रही हों मैं वैसा ही करुंगा अब खुश ।


सुरभि……. हां मैं खुश हूं और कुछ रह गया हों तो बोलों वह भी पूरा कर देती हूं।


राजेंद्र……. अभी प्यार का खेल खेलना बाकी रह गया हैं उसको शुरू करे।


सुरभि…… मुझे नहीं पता आप कौन से प्यार की खेल की बात कर रहें हों और न ही मुझे कोई प्यार का खेल आप के साथ खेलना हैं।


राजेंद्र….. सुरभि तुम तो बड़ा जालिम हों ख़ुद मेनका बनकर मुझे रिझाती हों और जब मैं रीझ गया तो साफ साफ मुकर रहीं हों। इतना जुल्म न करों मुझ पर मैं सह नहीं पाऊंगा।


सुरभि उठकर राजेंद्र से दूर जाते हुए पल्लू को सही करते हुए बोली…….


सुरभि….. आपको जिस काम के लिए रिझाया था वह तो हों गया। अभी हम दोनों के खेल खेलने का सही वक्त नहीं है। यह खेल रात में खेलना सही रहता हैं इसलिए आप रात्रि तक का प्रतिक्षा कर लिजिए।


राजेंद्र उठ कर सुरभि के पास जानें लगा सुरभि राजेंद्र को पास आते देखकर ठेंगा दिखाते हुए पीछे को हटने लगी। सुरभि को पीछे जाते हुए देख कर राजेंद्र सुरभि के पास जल्दी पहुंचने के लिए लंबे लंबे डग भरने लगे। राजेंद्र को लंबा डग भरते हुए देखकर सुरभि मुस्कुराते हुए पीछे होने लगी। सुरभि पीछे होते होते जाकर दीवाल से चिपक गईं। राजेंद्र सुरभि को दीवाल से चिपकते देखकर मुस्कुराते हुए सुरभि के पास पहुंचा और सुरभि को कमर से पकड़ कर खुद से चिपकते हुए बोला…..


राजेंद्र….. सुरभि अब कहा भागोगी अब तो तुम्हारा चिर हरण होकर रहेगा। रोक सको तो रोक लो।


सुरभि राजेंद्र के पकड़ से छुटने की प्रयत्न करते हुए बोली…..


सुरभि….. बड़े आए मेरा चिर हरण करने वाले छोड़ो मुझे अपको इसके अलावा ओर कुछ नहीं सूझता।


राजेंद्र…… गजब करती हों मैं क्यों छोडूं तुम्हें मैं नहीं छोड़ने वाला मैं तो अपने पत्नी को ढेर सारा प्यार करुंगा।


राजेंद्र सुरभि को चूमने के लिए मुंह आगे बड़ा रहा था सुरभि राजेंद्र को रोकते हुए बोली……


सुरभि…... हटो जी अपका ये ढेर सारा प्यार मुझ पर बहुत भारी पड़ता हैं। मुझे नहीं चाहिएं अपका ढेर सारा प्यार।


राजेंद्र…. अच्छा जी तुम्हें ढेर सारा प्यार न करू तो और किसे करू राजा महाराजा के खानदान से हूं। पिछले राजा महाराजा कईं सारे रानियां रखते थे। तुम मेरी एकलौती रानी हों तो तुम्हें ही तो ढेर सारा प्यार करुंगा।


सुरभि…… ओ तो अब अंपका मन मुझसे भरने लगा हैं अपको ओर पत्नियां चाहिएं हटो जी मुझे आपसे कोई बात नहीं करना हैं।


राजेंद्र कुछ बोलता तभी कोई राजा जी, राजा जी करके आवाज देते हुए कमरे के बाहर खडा हों गया और फिर से आवाज देने लगा। राजेंद्र सुरभि को खुद से चिपकाए रखा और बोला……


राजेंद्र…..कौन हों बाहर मैं अभी विशेष काम करने में व्यस्त हूं।


शक्श….. राजा जी माफ करना मैं धीरा हूं। मुंशी जी आए हैं कह रहें हैं अपको उनके साथ कहीं जाना हैं।


धीरा के कहते ही राजेंद्र को याद आया। उसने मुंशी जी को किस काम के लिए बुलाया था और उनके साथ कहा जाना था। इसलिए सुरभि को छोड़ते हुए बोला….


राजेंद्र……. धीरा तुम जाओ और मुंशी जी की जलपान की व्यवस्था करों मैं अभी आता हूं।


धीरा…... जी राजा जी।


धीरा कह कर चला गया और राजेंद्र कपडे बदलने जानें लगा। राजेंद्र को जाते हुए देखकर सुरभि मुस्कुराते हुए बोली…..


सुरभि….. क्या हुआ आप ने मुझे छोड़ क्यों दिया। अपको तो ढेर सारा प्यार करना था। करिए न ढेर सारा प्यार देखिए मैं तैयार हूं।


राजेंद्र…… जख्मों पर नमक छिड़काना तुम से बेहतर कोई नहीं जानता छिड़क लो जितना नमक छिड़कना हैं। अभी तो मैं जा रहा हूं लेकिन रात को तुम्हें बताउंगा।


सुरभि राजेंद्र को ठेंगा दिखाते हुए कमरे से बाहर चाली जाती हैं। कुछ वक्त बाद राजेंद्र तैयार हों कर नीचे जाता हैं जहां मुंशी जी बैठे थे। मुंशी जी राजेंद्र को देखकर खडा हों जाते हैं और नमस्कार करते हैं। राजेंद्र मुंशी जी की और देखकर मुस्करा देते हैं और बोलते हैं…….


राजेंद्र…. मुंशी तुझे कितनी बार कहा हैं तू मेरे लिए खड़ा न होया कर न ही मुझे नमस्कार किया कर तू आकर सीधे मुझसे गले मिला कर लेकिन तेरे कान में जूंह नहीं रेगता हैं।


राजेंद्र जाकर मुंशी के गाले मिलता हैं फिर अलग होकर मुंशी बोलता हैं।


मुंशी…… राना जी यह तो अपका बड़प्पन हैं। मैं इस महल का एक नौकार हूं और आप मालिक और अपका सम्मान करना मेरा धर्म हैं। मैं तो अपना धर्म निभा रहा हूं।


राजेंद्र……. मुंशी तू अपना धर्म ग्रन्थ अपने पास रख। तूने दुबारा नौकर और मालिक शब्द अपने मुंह से बोला तो तुझे तेरे पद से हमेशा हमेशा के लिए मुक्त कर दुंगा।


मुंशी…… राना जी आप ऐसा बिल्कुल न करना नहीं तो मेरे बीबी बच्चे भूख से बिलख बिलख कर मर जायेंगे।


राजेंद्र…. भाभी और रमन को भूखा नहीं मरने दूंगा लेकिन तुझे भूखा मर दुंगा अगर तूने दुबारा मेरे कहें बातो का उलघन किया। अब चल बहुत देर हों गया हैं। तू भी एक नंबर का अलसी हैं अपना काम ढंग से नहीं कर रहा हैं।


दोनों हंसते मुस्कुराते हुए घर से निकल जाते हैं। लेकिन कोई हैं जिसको इनका याराना पसंद नहीं आया और वह हैं सुकन्या जो धीरा के राजेंद्र को बुलाते सुनाकर खुद भी कमरे से बाहर आ गई और राजेंद्र और मुंशी जी के दोस्ताने व्यवहार को देखकर तिलमिलाते हुए खुद से बोली…….


सुकन्या…….. इन दोनों ने महल को गरीब खान बना रखा हैं एक नौकर से दोस्ती रखता हैं तो दूसरा महल के नौकरों को सर चढ़ा रखा हैं। एक बार महल का कब्जा मेरे हाथ आने दो सब को उनकी औकाद अच्छे से याद करवा दूंगी।


सुकन्या को अकेले में बदबड़ते हुए सुरभि देख लेती और पूछती……


सुरभी….. छोटी क्या हों गया अकेले में क्यों बडबडा रहीं।


सुकन्या…….. कुछ नहीं दीदी बस ऐसे ही।


सुरभि….. तो क्या भूत से बाते कर रहीं हैं।


सुकन्या आकर सुरभि को सोफे पर बिठा दिया और खुद भी बैठ गईं। सुकन्या के इस व्यवहार से सुरभि सुकन्या को एक टक देखने लगीं सुरभि ही नहीं रतन और धीरा भी ऐसे देख रहे थे जैसे आज कोई अजूबा हों गया हों। हालाकि यह अजूबा इससे पहले सुकन्या कर चुका था और सभी को सोचने पर मजबूर कर दिया था। सुकन्या जैसी नागिन जिसके मुंह में ज़हर की पोटली हमेशा खुला हुआ रहती हो और अपना ज़हर उगलने को तैयार रहती हो। ऐसे में आदर्श व्यवहार करने पर सब का अचंभित होकर देखना लाज़मी था। सुकन्या रतन और धीरा को अपनी और एक टक देखते हुए देखकर बोली…….


सुकन्या…... क्या देख रहें हों तुम्हें कोई काम नहीं हैं जब देखो काम चोरी करते रहते हों जाओ अपना कम करों।


सुकन्या कहकर मुस्कुरा देती हैं। रतन और धीरा सुकन्या के कहने पर अपने काम करने चल देता हैं और सुरभि सुकन्या से बोलती हैं……


सुरभि….. छोटी तेरा न कुछ पाता ही नहीं चलती तू कभी किसी रूप में होती तो कभी किसी ओर रूप में समझ नहीं आती तेरे मन में किया चल रही हैं।


सुकन्या….. दीदी आप सीधा सीधा बोलिए न मैं गिरगिट हूं और गिरगिट की तरह पल पल रंग बदलती हूं।


सुरभि…… मैं भला तुझे गिरगिट क्यों कहूंगी तू तो एक खुबसूरत इंसान हैं जो अपनी व्यवहार से सब को सोचने पर मजबूर कर देती हैं।


सुकन्या…. दीदी आप मुझे ताने मार रहीं हों मार लो ताने मैं काम ही ऐसा करती हूं।


सुरभि … मैं तूझे क्यो तने मारूंगी तू छोड़ इन बातों को यह बता तू आज मेरे कमरे मे कैसे आ गई इससे पहले तो कभी नहीं आई।


सुकन्या….. अब ताक नहीं आई यह मेरी भूल थीं अब तो मैं अपके कमरे में आकर आपसे ढेर सारी बातें करूंगी।


सुरभि…. तुझे रोका किसने हैं तू तो कभी भी मेरे कमरे में आ सकती हैं और जितनी बाते करनी हैं कर सकती हैं।


ऐसे ही दोनों बाते करते रहते हैं। जब दो महिलाएं एक जगा बैठी हों तो उनकी बातों का सिलसिला कभी खत्म ही नहीं होता। इनको बाते करते हुए देखकर रसोई घर में धीरा बोलता हैं…..


धीरा….. काका आज इस नागिन को किया हों गया जो रानी मां के साथ अच्छा व्यवहार कर रहीं हैं।


रतन…... धीरे बोल नागिन ने सुन लिया तो अपना सारार ज़हर हम पर ही उगल देगी और उसके ज़हर का कोई काट नहीं हैं।


धीरा……. सही कहा काका पता नही कब महल में एक ऐसी ओझा ( सपेरा) आयेगा जो इस नागिन के फन को कुचलकर इसके ज़हर वाली दांत को तोड़ देगा।


दोनों बाते करने मैं इतने मगन थे की इन्हें पाता ही नहीं चला कोई इन्हें आवाज दे रहा था जब इनका ध्यान गया तो उसे देखकर दोनों सकपका गाए और डारने भी लगें रतन अपने डर को काबू करते हुए बोला……


रतन…... छोटी मालकिन आप कुछ चाहिए था तो आवाज दे देती यह आने की जरूरत ही क्या थीं?


सुकन्या……. आवाज दे तो रहीं थीं लेकीन तुम्हें सुनाई दे तब न इस धीरा को कितनी आवाज दिया धीरा एक गिलास पानी लेकर आ लेकीन इसको तो कोई सुद ही नहीं था रहता भी तो कैसे दोनों कामचोर बातों में जो मज़े हुए थे और ये किस नागिन की फन कुचलने की बात कर रहे थे कौन ओझा किस नागिन की ज़हर के दांत तोड़ने वाली हैं।


सुकन्या के बोलते ही दोनों एक दूसरे के मुंह देखने लगे और सोचने लगे की अब किया जवाब दे एक दूसरे को ताकते हुए देखकर सुकन्या बोली…..


सुकन्या…… तुम दोनों क्या एक दूसरे को ऐसे ही ताकते रोहोगे कुछ बोलते क्यों नहीं मुंह में जुबान नहीं हैं। (सुरभि की और देखकर) दीदी ने तुम सब को सर चढ़ा रखा हैं काम के न काज के दुश्मन अनाज के अब जल्दी बोलों किस बारे में बात कर रहें थे।


रतन समझ जाता हैं सुकन्या पूरी बात नहीं सुन पाया इसलिए जानना चाहती हैं। रतन एक मन घड़ंत कहानी बना कर सुनने लगाता हैं…..


रतन….. वो छोटी मालकिन धीरा बता रहा था उसने किसी से सुना हैं यह से दुर किसी के घर में एक नागिन निकला हैं जिसकी जहर वाली दांत निकलने के लिए कोई ओझा पकड़ कर ले गया तो हम उस नागिन की बात कर रहें थे की पाता नहीं अब कैसे ओझा उस नागिन की ज़हर वाली दांत निकलेगा।


रतन कि बात सुनाकर धीरा समझ जाता हैं रतन सुकन्या को झूठी कहानी सुनाकर झांसा दे रहा हैं। इसलिए धीरा भी रतन के हां में हां मिलाते हुए बोला…..


धीरा…... हां हां छोटी मालकिन मैं काका को उस नागिन और उसकी ज़हर की बात बता रहा था। आप को किया लगाता हैं हम महल की बात कार रहे थे । जब महल में कोई नागिन निकली ही नहीं तो हम महल में मौजुद नागिन की ज़हर निकलने की बात क्यो करेंगे।


सुकन्या…... अच्छा अच्छा ठिक हैं अब ज्यादा बाते न बनाओ और जल्दी से दो गिलास पानी लेकर आओ काम चोर कहीं के।


सुकन्या कहकर चाली जाती हैं। धीरा और रतन छीने पर हाथ रखा धकधक हों रहीं धड़कन को काबू करने की कोषिश करता हैं फिर रतन धीरा से बोलता हैं……


रतन….. धीरा जल्दी जा इस नागिन को पानी पिला कर आ नहीं तो नागिन फिर से ज़हर उगले आ जायेगी।


धीरा दो गिलास लेकर एक प्लेट पर रखा और पानी भरते हुए बोला……


धीरा…... काका आज बाल बाल बच गए। छोटी मालकिन हमारी पूरी बाते सुन लेती तो अपने जहर वाली दांत हमे चुबो चूबो कर तड़पा तड़पा कर मार डालती।


रतन……. बच तो गए हैं लेकीन आगे हमे ध्यान रखना हैं तू जल्दी जा और पानी पिलाकर आ लगाता हैं छोटी मालकिन बहुत प्यासा हैं।


धीरा जाकर दोनों को पानी देता हैं और आकर अपने काम में लग जाता हैं। ऐसे ही दिन बीत जाता हैं। रात का खाना सुरभि, सुकन्या रघु और अपस्यु साथ में ही खाते हैं। राजेन्द्र और रावण दोनों भाई अभी तक घर नहीं लौटे थे। सब खाना खाकर अपने अपने कमरे में चले जाते गए थे। लेकीन सुकन्या कमरे में दो पल स्थिर से नहीं रूक रहीं थी उसके मन में हाल चल मची हुए थी और इस हल चल का करण दिन में सुनी सुरभि और राजेन्द्र की बाते थी। कहते है स्त्री के पेट में कोई बात नहीं पचती जब तक वो बातो को उगल न दे तब तक उनका खाया खान भी नहीं पचता और सुकन्या ने तो दो वक्त का खाना बड़े चाव से खाया था। जिसे पचाने के लिए दिन में सुनी बातों को उगलना जरूरी हो गया था। सुकन्या रावण के लेट आने के करण गुस्से में बडबडाए जा रहीं थी…..


सुकन्या….. जिस दिन इनसे जरूरी बात करनी होती हैं उस दिन ही ये लेट आते हैं। पाता नहीं कब आयेंगे। ये बाते और कितनी देर ताक मेरे पेट में हल चल मचाती रहेंगी कब तक इन बातों के बोझ को मैं ढोती रहूंगी।


सुकन्या ऐसे ही टहलते रहते खाने और बातो को पचने की कोशिश करते रहते। रावण और राजेंद्र दोनों एक के बाद एक महल लौटते और अपने अपने कमरे में चले जाते रावण को देखकर सुकन्या बोलती हैं…..


सुकन्या….. आप आज इतने लेट क्यों आए आप से कितनी जरूरी बात करनी थी कब से ये बाते मेरी पेट में हलचल मचाई हुई हैं।


रावण….. अजीव बीबी हो पति से खाने को पुछा नहीं और बाते बताने को उतावली होई जा रही हों। अच्छा चलो खान बाना बाद में पहले तुम अपनी दुखड़ा ही सुना दो।


सुकन्या….. आप जाइए पहले खान खाकर आइए फिर बात करते हैं।


रावण हाथ मुंह धोने गुसलखाने जाता हैं । ईधर राजेंद्र कमरे में पहुंचता हैं। सुरभि बेड पर पिट टिकाए एक किताब पढ़ रहीं थीं। राजेन्द्र को देखकर किताब बंद कर राजेन्द्र से कहती हैं……


सुरभि….. आप आ गए इतनी देर कैसे हो गईं।


राजेन्द्र….. कुछ जरूरी काम था इसलिए देर हो गया। तुम ये कौन सी किताब पढ़ रहीं थीं।


सुरभि राजेंद्र की और देखकर कुछ सोचकर मुस्कुराते हुए बोली…..


सुरभि…. कामशास्त्र पढ़ रहीं थीं।


राजेन्द्र …. ओ ये बात हैं तो चलो फिर पहले अधूरा छोड़ा कम पूरा कर लेता हूं फिर खान पीना कर लूंगा।


सुरभि….. अधूरा कम बाद में पूरा कर लेना अभी आप जाकर अपना ताकत बड़ा कर आइए आज अपको बहुत ताकत की जरूरत पड़ने वाली हैं।


राजेन्द्र….. लगाता हैं आज रानी साहिबा मूढ़ में हैं।


सुरभि…. अपकी रानी साहिबा तो सुबह से ही मुड़ में हैं और आप का तो कोई खोज खबर ही नहीं हैं।


राजेंद्र…. अब आ गया हू अच्छे से खोज खबर लूंगा लेकिन पहले भोजन करके ताकत बड़ा लू।


राजेन्द्र हाथ मुंह धोकर कपडे बदलकर निचे जाता हैं जहां रावण पहले से ही मौजूद था दोनों भाई दिन भर की कामों के बारे में बात करते हुए भोजन करने लगते हैं। भोजन करने के बाद दोनों भाई अपने अपने कमरे में जाते। सुकन्या रावण की प्रतिक्षा में सुख रही थी। रावण के आते ही शुरू हों जाती हैं……


सुकन्या….. भौजन करने में इतना समय लगाता हैं।


राजेन्द्र…. दादाभाई के साथ दिन भर के कामों के बारे में बात करते हुए भोजन करने में थोडा अधिक समय लग गया। अब तुम बाताओ कौन सी बातों ने तुम्हारे पेट में हलचल मचा रखी हैं।


सुकन्या…… मुझे लगाता हैं सुरभि और भाई साहाब को हमारे साजिश के बारे में पता चाल गया हैं।


ये सुनकर रावण के पैरों तले जमीन खिसक गईं। उसे अपनी साजिश का पर्दा फाश होने का डर सताने लगा जिसे छुपाने के लिए रावण ने पाता नहीं कितने कांड किए फिर भी वह ही हूआ जिसका उसे डर था लेकीन इतनी जल्दी होगा उसे भी समझा नहीं आ रहा था। रावण का मन कर रहा था अभी जाकर अपने भाई भाभी और रघु को मौत के घाट उतर दे लेकिन फिर खुद को नियंत्रण कर बोला…….


रावण…... तुम्हें कैसे पता चला हमारे बनाए साजिश का पर्दा फाश हों चुका हैं। ऐसा हुए होता तो दादा भाई अब तक मुझे मार देते या फ़िर जेल में डाल देते।


सुकन्या…. इतनी सी बात के लिए वो तुम्हें क्यो मार देंगे।


रावण….. इतनी सी बात नहीं बहुत बडी बात हैं अब तुम ये बताओ तुम्हें कैसे पाता चल।


सुकन्या …. आप के जानें के बाद मैं निचे गई कुछ काम से जब ऊपर आ रही थीं तभी मुझे सुरभि के कमरे से उसके तेज तेज बोलने की आवाज़ सुनाई दिया तब मैं उनके कमरे के पास गई तो मुझे दरवजा बंद दिखा तो मैं वापस मुड़ ही रहीं थीं की मुझे उनकी बाते फिर सुनाई दिया जिसे सुनकर मेरे कदम रुख गए और मैं उनकी बाते सुने लगा … सुरभि कह रही थीं आप उनके बातों पर ध्यान मत देना मुझे लगाता हैं कोइ मेरे बेटे के खिलाफ साजिश कर रहा हैं। फिर भाई साहब ने जो बोला उसे सुनकर मेरे कान खडे हों गए फिर सारी बातें सुकन्या ने बता दिया जो उसने सुना था जिसे सुनकर रावण ने कहा……..


रावण….. यह तो बहुत ही विकट परिस्थिति बन गया हैं और मुझे लगाता हैं दादा भाई को पूरी बाते पता नहीं चला हैं नहीं तो मैं आज महल में नहीं जल में बंद होता या फिर दाद भाई मेरा खून कर देते।


सुकन्या…….. आप क्या कह रहे हो? वो अपका खून क्यों करते? हम दोनों तो सिर्फ़ महल और सारी संपत्ति अपने नाम करवाना चाहते हैं। इसमें खून करने की बात कहा से आ गई वो अपको जेल भी तो भिजवा सकते हैं।


रावण…... सुकन्या तुम नहीं जानती मैंने जो भी कर्म कांड किया हैं उसे जानने के बाद दादा भाई मुझे जेल में नही डालते बल्कि मेरा कत्ल कर देते।


सुकन्या…... मुझ कुछ समझ नहीं आ रहा है आप कहना किया चाहतें हो लेकिन मैं इतना तो समझ गया हूं आपने मुझसे बहुत कुछ छुपा रखा हैं।


रावण……. हां बहुत कुछ हैं जो मैंने तुम्हे नहीं बताए लेकिन आज बताता हूं। तुम्हें किया लगता हैं आधी सम्पत्ति पाने के लिए दादाभाई के साथ विश्वास घात करूंगा, नहीं सुकन्या मैं कुछ और पाने के लिए दादा भाई के साथ विश्वास घात कर रहा हूं…….


सुकन्या….. मुझे जहां तक पाता हैं हमारे पास इस संपत्ति के अलावा ओर कुछ नहीं हैं जो आधा आधा आप दोनों भाइयों में बांटा हुआ हैं तो फ़िर और किया हैं जिसे आप पाना चाहते हों।


रावण…... सुकन्या हमारे पास गुप्त संपत्ति हैं जिसे मैं अपने नाम कर लिया तो मैं बैठे बैठे ही दुनियां का सबसे अमीर आदमी बन जाऊंगा।


गुप्त संपत्ति और दुनियां की सबसे अमीर होने की बात सुनकर सुकन्या जैसी लालची औरत के लालच की सीमाएं टूट चुका था। सुकन्या के हावभाव बदलने लगा था। सुकन्या के बदलते हावभाव को देखकर रावण बोला……..


रावण…… सुकन्या खुद पर काबू रखो तुम जानकार अनियंत्रित हों जाओगी इसलिए मैं तुम्हें नहीं बता रहा था।


सुकन्या…. कैसे खुद पर नियंत्रण रखूं पाता नहीं कैसे आप खुद पर नियंत्रण रखें हुए हैं। मैं कहती हूं क्यो न अभी जाकर सुरभि, राजेंद्र और रघु को मारकर गुप्त संपत्ति आपने नाम करवा लेते हैं।


राजेंद्र…… हमने ऐसा किया तो गुप्त संपत्ति हमेशा हमेशा के लिए हमारे पहुंच से बहार हों जाएंगा। जिसको पाने के लिए न जानें मैंने क्या क्या किया हैं?


सुकन्या……. कैसे गुप्त संपत्ति हमारे हाथ से निकाल जायेगी ।


रावण…… गुप्त संपत्ति का पता दादा भाई के अलावा कोई नहीं जानता। मैंने उन्हें मार दिया तो यह राज उनके साथ ही दफन हों जाएगा।


सुकन्या……. गुप्त संपत्ति का राज सिर्फ आपके दादाभाई जानते हैं तो फिर आप को कैसे पता चला।


राजेंद्र……. गुप्त संपत्ति का राज दादाभाई ही जानते हैं लेकिन उस संपत्ति का एक वसियत बनाया गया था जिसके बारे में दादा भाई और हमारा वकील दलाल जानता हैं। जो मेरा बहुत अच्छा दोस्त हैं। एक दिन बातों बातों में दलाल ने मुझे गुप्त संपत्ति के वसियत के बारे में बता दिया। उसे गुप्त संपत्ति कहा रखा हैं बताने को कहा तो उसने मना कर दिया की उसे सिर्फ वसियत के बारे में पता हैं संपत्ति कहा रखा हैं वो नहीं जानता फिर हम दोनों ने मिलकर गुप्त संपत्ति का पता ठिकाना जाने के लिए साजिश रचना शुरू किया।


रावण….. हमारे साजिश का पहला निशाना बना रघु , वसियत के अनुसार रघु की पहली संतान गुप्त संपत्ति का मूल उत्तराधिकारी हैं। इसलिए मैं रघु की शादी रोकने के लिए जहां भी दादाभाई लड़की देखते उनको अपने आदमियों को भेज कर डरा धमका कर शादी के लिए माना करवा देता जो नहीं मानते उनको झूठी खबर देता की रघु में बहुत सारे बुरी आदतें हैं। यह जानकार लड़की वाले खुद ही रिश्ता करने के लिए मना कर देते।


रावण……. इसलिए मैं दादाभाई पर नज़र रखवाया। जिससे मुझे पाता चलता की दादाभाई कब किस लड़की वालों से मिलने गया। ऐसे ही नज़र रखवाते रखवाते मुझे दादाभाई के रखे गुप्तचर के बरे में पाता चला फिर मैं दादाभाई के गुप्त चर को ढूंढूं ढूंढूं कर सब को मार दिया। उन्हीं गुप्त चारों में से किसी ने दादाभाई को साजिश के बारे में बताएं होगा और सबूत भी देने की बात कहीं हाेगी।


रावण की बाते सुनकर सुकन्या अचंभित रह गया उसे समझ ही नही आ रहा था क्या बोले सुकन्या सिर्फ रावण का मुंह ताक रहा था। रावण सुकन्या को तकते हुए देखकर बोला…..


रावण…… सुकन्या क्या हुआ सदमे में चल बसी हों या जिंदा हों।


सुकन्या…… जिन्दा हूॅं लेकिन आपसे नाराज़ हूं आपने इतना बड़ा राज मुझसे छुपाया और उतना कुछ अकेले अकेले किया मुझे बताया भी नहीं।


रावण… गुप्त संपत्ति प्राप्त कर मैं तुम्हें उपहार में देना चाहता था लेकिन समय का चल ऐसा चला की गुप्त संपत्ति प्राप्त करने से पहले ही तुम्हें राज बताना पड़ गया मैं अकेला नहीं हूं मेरे साथ मेरा दोस्त और वकील दलाल भी सहयोग कर रहा हैं।


सुकन्या…… अब मैं आपके साथ हूं आप जैसा कहेंगे मैं करूंगी लेकिन अब हमे आगे किया करना हैं जब साजिश की बात खुल गई हैं तो देर सवेर आपके भाई को पता चल ही जाएगा।


रावण……. दादाभाई को साजिश का भनक लग गया हैं तो दादाभाई चुप नहीं बैठने वाले इसलिए हमें अपने साजिश यह पर ही रोकना होगा और आगे चलकर नए सिरे से शुरू करना होगा।


सुकन्या…… ऐसे तो रघु की शादी हों जायेगी फिर गुप्त संपत्ति का मूल उत्तर अधिकारी भी आ जाएगा फिर तो सब हमारे हाथ से निकल जायेगी।


रावण….. अभी तो यह ही करना होगा नहीं तो हमारा भांडा जल्दी ही फुट जायेगा लेकिन मैं गुप्त संपत्ति को इतनी जल्दी अपने हाथ से जाने नहीं दुंगा।


सुकन्या……. मुझे तो साफ साफ दिख रहा हैं गुप्त सम्पत्ति पाने के सारे रास्ते बंद हों गए हैं।


रावण….. अभी कोई भी रास्ता नहीं दिख रहा हैं लेकिन कोई न कोई रास्ता जरूर होगा जिसे मैं ढूंढ़ लूंगा।


सुकन्या…... ठीक हैं। बहुत रात हों गया हैं अब चलकर सोते हैं।



दोनों सो जाते हैं। महल में इस वक्त सब सो रहें थे लेकिन सुरभि और राजेंद्र काम शास्त्र की कलाओं को साधने में लागे हुए थे। दोनों काम कलां में मगन थे और महल के दूसरे कमरे में बहुत से राज उजागर हुआ और दफन भी हों गया। जिसकी भानक भी किसी को नहीं हुआ। आगे क्या क्या होने वाला हैं इसके बरे में आगे आने वाले अपडेट में जानेंगे आज के लिए इतना ही।
Superb Updateee
 
Top