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बहुत ही बेहतरीन और शानदार कहानी महोदय।।
शुक्रिया माही जी
बहुत ही बेहतरीन और शानदार कहानी महोदय।।
बहुत ही बेहतरीन कहानी।
रावण अपनी बिसात बिछाये पंक्षी के फंसने की प्रतीक्षा कर रहा है। उसे पूरा विश्वास है कि उसने राजेन्द्र के लिए जो जाल बिछाया है राजेन्द्र उसमें जरूर फंसेगा।।
लेकिन ये होगा कैसे ये उसे भी नहीं पता है।
दोनो बाप बेटे अपना आतंक बरकरार रखे हुए हैं सुकन्या भी अपने स्वभाव के अनुसार व्यवहार कर रही है।
राजेन्द्र कुछ परेशान है लगता है उन्हें कुछ कुछ भनक लग चुकी है रावण के षड्यंत्र की, जिसके बारे में वो कुछ निष्कर्ष निकलना चाहते है सुरभि ने ये अंदाज लगा लिया कि राजेन्द्र परेशान है तो उसने बात की इस बारे में लेकिन राजेन्द्र ने बात बदल दी और माहौल सेक्सी बना दिया।।
Abhi busy Navratri ke chalte
Revos start Navratri ke baad...
Bahot behtareen
Shaandaar update bhai
nice update
rajendra ko kya pta chal gaya hai jo wo itna chintit hai
ho na ho ye baat ravan se related hogi
surbhi ne triya chritra ka upyog krke pta lgane ki koshish ki jisme wo safal bhi huyi
dekhte hain rajendra kya btata hai surbhi ko
waiting for next
Nice and superb update...
Awesome update
Great update Destiny bro.Ravan apni chaal chal raha hai sayad rajendra ye sab jan kar preshan hai.survi bahut intelligent hai wo kse bhi karke pata laga legi.
दोनों अपडेट्स बहुत ही बेहतरीन था । लिखने का तरीका और डायलॉग सब कुछ बढ़िया था । जैसा कि मैंने आपको सजेशन दिया था कि कहानी हमेशा पास्ट टेंस में लिखनी चाहिए और आप ने वैसा ही किया ।
आपके जेहन में शब्दों का डिक्शनरी है । नाॅलेज भी अच्छी खासी है । बस उसे सही तरीके से प्रस्तुत करना था जो कि आपने किया ।
आउटस्टैंडिंग अपडेट थे दोनों ।
स्टोरी की बात करें तो राजेंद्र राणा और रावण राणा दोनों भाई एक सिक्के के दो पहलू हैं । जहां राजेंद्र जी एक भले इंसान हैं वहीं रावण बिल्कुल अपने नाम के अनुरूप ।
चूंकि राजेंद्र बड़े हैं इसलिए जमीन जायदाद पर मालिकाना हक उनका है । और यह न तो गवारा है रावण को और न ही उनकी पत्नी सुकन्या देवी को । छल कपट के द्वारा वो पूरी प्रोपर्टी हथियाना चाहते हैं ।
दोनों के पुत्र अपने अपने माता-पिता के कदमों नक्श पर ही चल रहे हैं । एक सुशील और कोमल हृदय का तो दूसरा निष्ठुर और दुष्कर्म प्रवृत्ति का ।
लेकिन यह समझ में नहीं आ रहा है कि रघुवीर इतना साधन सम्पन्न होते हुए भी बच्चों को ट्यूशन क्यों पढ़ा रहा है ?
इस अपडेट में हमने देखा कि राजेंद्र बाबू अपने पत्नी सुरभि से कुछ बातें छुपा रहे थे और सुरभि अपने हुस्न का जादू उनके उपर चलाकर वह बातें जानना चाहती थी । शायद राजेंद्र बाबू को अपने छोटे भाई के कुछ करतूतों का आभास हुआ होगा । या शायद उनके कम्पनी में कुछ प्रोब्लम क्रिएट हो गई होगी । शायद रघुवीर की भूमिका यहां से बढ़ने वाली हो !
आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग अपडेट दीप भाई ।
आप अनामिका को नही जानते।
ये एमी है। जिसने न जाने कितने लड़कों की बैंड बजाई थी क्या यही प्यार है कहानी में।।
Ooo
Mujhe nhi pata maine woh story nhi padhi hai
Waiting for new update
Abhi busy Navratri ke chalte
Revos start Navratri ke baad...
Jabardast Updateeeअजनबी हमसफ़र-रिश्तों का गठबंधन
Update - 6
राजेंद्र….. अरे हां मैं तो भूल ही गया था कि मेरे जीवन में एक नारी शक्ति ऐसी हैं जो मेरे सभी परेशानियों से निकलने में हमेशा सहायक सिद्ध हुआ हैं।
सुरभि…… आप अपनी हाथ को विराम दिजिए और बताना शुरू कीजिए।
राजेंद्र…. सुरभि मेरे परेशानी का करण कई हैं जो पिछले कुछ दिनों से मेरे चिन्ता का विषय बना हुआ हैं। जो मैं सब के नजरों से छुपा लिया लेकिन तुम्हारे नजरों से नहीं छुपा पाया। सुरभि तुम मेरे अर्ध अंग होने का कार्य भार बखूबी निभा रहीं हों। जैसे एक अंग को पीढ़ा हों तो बाकी अंग स्वतः ही पीढ़ा को भाप लेता हैं वैसे ही तुम मेरे परेशानी ओर चिंता को स्वतः ही भाव लिया। सुरभि तुम एक अजनबी की तरह मेरे जीवन में आई और मेरा हमसफर बनकर मेरे कदम से कदम मिलाकर साथ चलती रहीं हों।
सुरभि मुस्कुराकर राजेंद्र की आंखो में देखकर बोलो……
सुरभि….. भले ही मैं अपके जीवन में एक अजनबी की तरह आई लेकिन मैं अब अजनबी नहीं रहीं मैं आपको भली भांति पहचान गई हूं। मैं अपकी अर्धांगिनी हूं तो फिर अपने आधे अंग में हों रहीं पीढ़ा को मैं कैसे न समझ पाती।……... आप मेरी कुछ ज्यादा ही तारीफ करते हों लेकिन यह अच्छा हैं पत्नी की तारीफ नहीं करोगे तो ओर किसकी करोगी। अब आप मुद्दे की बात बताइए जो मैं जानना चहती हूं।
राजेंद्र …….. मैं परेशान कई कारणों से हूं। उनमे से एक हैं हमारा बेटा रघु।
सुरभि…… रघु ने ऐसा किए कर दिया जो आपके परेशानी का करण बाना हुए हैं। किसी ने अपको रघु के बारे में गलत बताकर भड़का दिया होगा। सुनो जी अपको जिसने भी भड़काया हैं आप उनका कहना न मानना मेरा लाडला ऐसा नहीं हैं जो कोई भी गलत काम करे।
राजेंद्र…… सुरभि तुम इतना परेशान क्यों हों रहीं हों? सुरभि हमारे बेटे ने कुछ गलत नहीं किया हैं। रघु हमारे परवरिश पर बदनुमा धब्बा कभी नहीं लगाएगा।
सुरभि….. सुनो जी आप ऐसे घुमा फिरा कर न बोलों एक तो आप खुद कहते हों रघु आपके परेशानी का करण बना हुआ हैं और फिर कहते हों रघु ने कुछ गलत नहीं क्या हैं। तो रघु आपके परेशानी का करण कैसे हुआ?
राजेंद्र……. सुरभि रघु की शादी मेरे परेशानी का करण बना हुआ हैं।
सुरभि….. हम ढूंढ़ तो रहे हैं रघु के लिए लड़की फिर रघु की शादी आपके परेशानी का कारण कैसे बन सकता हैं। देर सवेर हों जायेगी रघु की शादी आप इसके लिए परेशान न हों।
राजेंद्र……. मैंने रघु के लिए कई लड़कियां देखा हैं और यह सभी लड़कियां वैसी हैं जैसी हमे रघु के लिए चाहिए। लेकिन एक बात मेरे अब तक समझ में नहीं आया। ऐसा क्या उन्हें पाता चल जाता हैं जो वो हां कहने के बाद न कह देते हैं।
सुरभि …… न कहा रहें है तो ठीक हैं हम रघु के लिए कोई ओर लड़की ढूंढ लेंगे।
राजेंद्र……. बात लड़की ढूंढने की नहीं हैं मैं रघु के लिए ओर भी लड़की ढूंढ़ लूंगा लेकिन बात यह हैं की बिना लड़के को देखे बिना परखे कोई कैसे मना कर सकता हैं।
सुरभि…. आप थोडा ठीक से बताएंगे आप कहना किया चहते हों।
राजेन्द्र….. सुरभि आज तक जितनी भी लड़कियां देखा हैं। सब लड़कियों को और उनके घर वालों को रघु की तस्वीर देखकर पसंद आ गया और वो रघु को देखने आने के लिए भी तैयार हों जाते हैं लेकिन अचानक उन्हें किया हों जाता हैं वो आने से मना कर देते हैं।
सुरभि……. ये आप किया कह रहे हों ऐसा कैसे हों सकती हैं। हमारा रघु तो सबसे अच्छा व्यवहार करता हैं उसमे कोई बुरी आदत नहीं हैं। फिर कोई कैसे रघु को अपनी लड़की देने से मना कर सकता हैं।
राजेंद्र….. यह ही तो मेरे समझ में नहीं आ रहा हैं। सुरभि ऐसा एक या दो बार होता तो कोई बात नहीं था। अब तक जितनी भी लड़की देखा हैं सभी ने पहले हां कहा फिर मना कर दिया।
सुरभि…… उन लोगों ने मना करने के पिछे कुछ तो कारण बताया होगा।
राजेंद्र…. उन्होंने कारण बताकर मना किया हैं उसे सुनाकर मेरा खून खोल उठा तुम सुनोगी तो तुम भी अपना आप खो देगी।
सुरभि…... उन्होंने ऐसा क्या बताया जिसे सुनाकर अपको इतना गुस्सा आय।
राजेंद्र…… उन्होंने कहा हमारे बेटे में बहुत सारे बुरी आदत है उसका बहुत सारे लड़कियों के साथ संबंध हैं। हम अपने लडकी की शादी आपके बेटे से करेंगे तो हमारी बेटी की जीवन बर्बाद हों जायेगा।
राजेंद्र की बाते सुनाकर सुरभि गुस्से में आज बबूला हों गई और तेज आवाज में बोली……..
सुरभि……उनकी इतनी जुर्रत जो मेरे बेटे पर ऐसा बदनुमा धब्बा लगाए। मेरा बेटा सोने जैसा खरा हैं। जैसे सोने में कोई अवगुण नहीं हैं वैसे ही मेरे लाडले में कोई अवगुण नहीं हैं।
जब सुरभि तेज आवाज में बोल रही थीं इसी वक्त सूकन्या सीढ़ी से ऊपर आ रहीं था। सुरभि के तेज आवाज को सुनाकर सुकन्या कमरे के पास आई और उनकी बाते सुनने लागी। सुरभि के आवेश के वशीभूत होकर बोलने से राजेंद्र सुरभि को समझाते हुए बोला……
राजेंद्र….. इतने उत्तेजित होने की जरूरत नहीं हैं। मैं भली भाती जनता हूं हमारे बेटे में कोई अवगुण नहीं हैं। लेकिन मैं ये नहीं जान पा रहा हूं ऐसा कर कौन रहा हैं हमारे बेटे को झूठा बदनाम करके किसी को क्या मिल जायेगा।
सुरभि…… सुनो जी मुझे साजिश की बूं आ रही हैं कोई हमारे बेटे के खिलाफ साजिश कर रहा हैं। आप उस साजिश कर्ता को जल्दी ढूंढो मैं आपने हाथों से उसे सूली चढ़ाऊंगी।
राजेंद्र …. उसे तो मैं ढूंढुगा ही और अपने हाथों से सजा दूंगा। सुरभि तुमने साजिश का याद दिलाकर अच्छा किए मेरे एक और परेशानी का विषय यह साजिश शब्द भी हैं।
सुकन्या जो छुपकर इनकी बाते सुन रहा था। साजिश की बात सुनाकर सुकन्या के कान खडे हों गए और मन में बोलो.."कहीं भाई साहाब को हमारे साजिश के बारे में पाता तो नहीं चल गया ऐसा हुआ तो हम न घर के रहेगें न घाट के उनको सब बताना होगा। लेकिन पहले इनकी पूरी बाते तो सुन लू ये किस साजिश की बात कर रहें हैं।"
सुरभि……. आप कहना क्या चाहते हैं खुल कर बोलो……
राजेंद्र…… पिछले कुछ दिनों से मेरे विश्वास पात्र लोग एक एक करके गायब हों रहे हैं। जो मेरे लिए खबरी का काम कर रहे थे।
सुरभि…. अपने गुप्तचर रख रखे हैं और अपके गुप्तचर गायब हों रहे। लेकिन अपको गुप्तचर रखने की जरूरत क्यो आन पड़ी।
राजेंद्र…… सुरभि तुम भी न कैसी कैसी बाते करते हों, राज परिवार से हैं, इतनी जमीन जायदाद हैं, इतनी सारी कम्पनियां हैं और विष्टि गुप्त संपत्ति भी हैं जिसे पाने के लिए लोग तरह तरह के छल चतुरी करेंगे। इसका पाता लगाने के लिए मैंने गुप्तचर रखा था लेकिन एक एक करके सब पाता नहीं कहा गायब हों गए उनमें से एक कुछ दिन पहले मेरे कार्यालय में फोन कर कुछ बाते बताया था और बाकी बाते मिल कर करने वाला था लेकिन आया ही नहीं मुझे लगता हैं वह भी बाकी गुप्त चर की तरह गायब हों गया।
सुकन्या जो छुप कर सुन रहीं थीं उसे कुछ कुछ सुनाई दे रही थीं लेकिन गुप्तचर की बात सुनाकर सुकन्या मन में ही बोला " ओ हों तो भाई साहब ने गुप्तचर रख रखे हैं लेकिन इनको गायब कौन कर रहा हैं। मुझे इनकी पूरी बाते सुननी चाहिए।" अचानक सुरभि की नज़र दरवाजे की ओर गईं। उसे दरवाजे की ओर से कुछ आवाज सुनाई दिया तब सुरभि ने अपने पति को मुंह पर उंगली रख कर चुप रहने को कहा और आ रही आवाज़ को ध्यान से सुने लगीं। सुरभि को हल्के हल्के चुड़िओ के खनकने की आवाज सुनाई दिया जिससे सुरभि को शक होने लगा कोई दरवाजे पर खडा हैं। इसलिए सुरभि शक को पुख्ता करने के लिए बोली……
सुरभि……. दरवाजे पर कौन हैं कोई काम हैं तो बाद में आना हम अभी जरूरी कम कर रहे हैं।
अचानक सुरभि की आवाज़ सुनाकर सुकन्या सकपका गई और हिलने डुलने लगी जिससे चूड़ियों की आवाज़ ओर ज्यादा आने लगा। इसलिए सुरभि का शक यकीन में बदल गई और सुरभि आवाज देते हुए दरवाजे की और आने लगी। सुरभि की आवाज़ सुनाकर सुकन्या मन में बोली"इस सुरभि को कैसे पाता चला कोई छुपकर इनकी बाते सुन रहीं हैं। अब क्या करू भाग भी नहीं सकती और सुरभि ने पुछा तो उसे क्या जबाव दूंगी। सुरभि जो भी पूछे मुझे समहाल कर जवाब देना होगा नहीं तो सुरभि के सामने मेरा भांडा फूट जाएगी" सुरभि आकर दरवाज़ा खोलती हैं। सुकन्या को देखकर बोलती हैं…….
सुरभि…. छोटी तू कब आई कुछ काम था?
सुकन्या…. दीदी मैं तो अभी अभी आपसे मिलने आई हूं लेकिन आप को कैसे पता चला की दरवाजे पर कोई आया हैं?
सुरभि….. मुझे कैसे पाता चला यह जानने का विषय नहीं हैं। जानने का विषय तो यह हैं तू कभी भी मेरे कमरे में नहीं आई फिर आज कैसे आ गईं।
सुरभि की बाते सुनाकर सुकन्या सकपका गई उसे समझ ही नहीं आ रहीं थी सुरभि को क्या ज़बाब दे सुकन्या को सकपते देखकर सुरभि मुस्कुराते हुए बोली……
सुरभि….. आज आई हैं लेकिन गलत वक्त पर आई हैं अभी तू जा मैं तेरे जेठ जी के साथ व्यस्त हूं। तुझे कुछ बात करनी हैं तो बाद में कर लेना।
सुकन्या फीकी मुस्कान देकर न चाहते हुए भी अपने कमरे की ओर चल दिया। जब तक सुकन्या अपनी कमरे तक नहीं गई तब तक सुरभि खड़ी खड़ी सुकन्या को देखती रहीं। सुकन्या अपने कमरे के पास पहुंचकर सुरभि की और देखी और कमरे में घूस गई फिर सुरभि ने दरवजा बंद किया और मुस्कुराते हुए जाकर राजेंद्र के पास बैठ गई और बोली……
सरभि….. छोटी छुप कर हमारी बाते सुन रहीं थीं इसलिए जो भी बोलना थोडा धीमे आवाज में बोलना ताकि बाहर खडे किसी को सुनाए न दे।
राजेंद्र….. क्क्क्यायाया सुकन्या लेकिन सुकन्या तो कभी हमारे कमरे अंदर तो छोड़ो कमरे के पास भी नहीं आती फिर आज कैसे आ गई।
सुरभि…… आप छोड़िए छोटी की बातों को उसके मन में क्या चलता हैं यह आप भी जानते हो। आप ये बताइए अपके गुप्त चर ने आपको फोन पर किया बताए और धीमे आवाज में बोलना हम दोनों के अलावा तीसरा न सुन पाए।
राजेंद्र….. उसने बोला महल में से ही कोई मेरे और रघु के खिलाफ साजिश कर रहा हैं। मैं और रघु सतर्क रहूं।
सुरभि….. महल से ही कोई हैं आपने उस धूर्त का नाम नहीं पुछा।
राजेंद्र….. पुछा था लेकिन वह कह रहा था नाम के अलावा ओर भी बहुत कुछ बताना हैं और सबूत भी दिखाना हैं इसलिए फोन पर न बताकर मिलकर बताएगा।
सुरभि…… अब तो वह लापता हों गया हैं अब नाम कैसे पता चलेगा।
राजेंद्र….. वह ही तो मैं सोच रहा हूं और मेरे सबसे बडी चिंता का विषय यह हैं महल से कौन हों सकता हैं महल में तो हम दोनों भाई, तूम, सुकन्या और हमारे बच्चे और कुछ नौंकर हैं। इनमें से कौन हों सकता हैं।
राजेंद्र से महल की बात सुनाकर सुरभि गहन सोच विचार करने लग गई। उसके हावभाव सोचते हुए पाल प्रति पाल बदल रहीं थी। राजेंद्र सुरभि को देखकर समझने की कोशिश कर रहा था कि सुरभि इतना गहन विचार किस मुद्दे को लेकर कर रहीं हैं। सुरभि को इतनी गहराई से विचाराधीन देखकर राजेंद्र ने सुरभि को हिलाते हुए पुछा……
राजेंद्र…… सुरभि कहा खोई हुई हों।
सुरभि……. मैं अपके कहीं बातों पर विचार कर रहीं हूं और ढूंढ रहीं हु आप के कहीं बातों का संबंध महल के किस शख्स से हैं।
राजेंद्र…. मैं भी इसी बात को लेकर परेशान हूं लेकिन किसी नतीजे पर पहुंच नहीं पाया।
सुरभि……. जब आप लड़की देखने जाते थे आप अकेले जाते थे या आप के साथ कोई होता था।
राजेंद्र…… जाता तो मैं अकेले था कभी कभी मुंशी जी को भी ले जाता था। लेकिन बाद में तुम्हे और रावण को बता देता था।
सुरभि….. ऐसा कोई करण हैं जिसका संबंध रघु के शादी से हो।
राजेंद्र….. बाबूजी का बनाया हुआ वसीयत का संबंध रघु के शादी से हैं।
सुरभि….. वसीयत का संबंध रघु के शादी से कैसे हों सकता हैं। सारी संपत्ति तो बाबूजी ने आप दोनों भाइयों में बराबर बांट दिया था। फिर रघु के शादी का वसीयत से क्या लेना देना?
राजेंद्र….. वसीयत का रघु के शादी से लेना देना हैं। जो हमारे पूर्वजों का गुप्त संपत्ति हैं। उसका उत्तराधिकारी रघु की प्रथम संतान हैं और जो प्रत्यक्ष संपति हैं उसका उत्तराधिकारी हम दोनों भाई हैं।
सुरभि…… ओ तो यह बात हैं मुझे तो ऐसा लग रहा है अब तक जो कुछ भी हुआ हैं इसका करण कहीं न कहीं यह गुप्त संपत्ति ही हैं।
राजेंद्र…… मतलब ये की कोई हमारे गुप्त संपत्ति को पाने के लिए साजिश कर रहा हैं। लेकिन गुप्त संपत्ति के वसीयत के बारे में मैं और हमारा वकील दलाल और अब तुम जानती हों इसके अलावा किसी को पता नहीं हैं।
आज के लिए बस उतना ही आज के कहानी अगले अपडेट से जानेंगे। यह तक साथ बाने रहने के लिए सभी पाठकों को बहुत बहुत धन्यवाद।
Nice and excellent update...अजनबी हमसफ़र-रिश्तों का गठबंधन
Update - 6
राजेंद्र….. अरे हां मैं तो भूल ही गया था कि मेरे जीवन में एक नारी शक्ति ऐसी हैं जो मेरे सभी परेशानियों से निकलने में हमेशा सहायक सिद्ध हुआ हैं।
सुरभि…… आप अपनी हाथ को विराम दिजिए और बताना शुरू कीजिए।
राजेंद्र…. सुरभि मेरे परेशानी का करण कई हैं जो पिछले कुछ दिनों से मेरे चिन्ता का विषय बना हुआ हैं। जो मैं सब के नजरों से छुपा लिया लेकिन तुम्हारे नजरों से नहीं छुपा पाया। सुरभि तुम मेरे अर्ध अंग होने का कार्य भार बखूबी निभा रहीं हों। जैसे एक अंग को पीढ़ा हों तो बाकी अंग स्वतः ही पीढ़ा को भाप लेता हैं वैसे ही तुम मेरे परेशानी ओर चिंता को स्वतः ही भाव लिया। सुरभि तुम एक अजनबी की तरह मेरे जीवन में आई और मेरा हमसफर बनकर मेरे कदम से कदम मिलाकर साथ चलती रहीं हों।
सुरभि मुस्कुराकर राजेंद्र की आंखो में देखकर बोलो……
सुरभि….. भले ही मैं अपके जीवन में एक अजनबी की तरह आई लेकिन मैं अब अजनबी नहीं रहीं मैं आपको भली भांति पहचान गई हूं। मैं अपकी अर्धांगिनी हूं तो फिर अपने आधे अंग में हों रहीं पीढ़ा को मैं कैसे न समझ पाती।……... आप मेरी कुछ ज्यादा ही तारीफ करते हों लेकिन यह अच्छा हैं पत्नी की तारीफ नहीं करोगे तो ओर किसकी करोगी। अब आप मुद्दे की बात बताइए जो मैं जानना चहती हूं।
राजेंद्र …….. मैं परेशान कई कारणों से हूं। उनमे से एक हैं हमारा बेटा रघु।
सुरभि…… रघु ने ऐसा किए कर दिया जो आपके परेशानी का करण बाना हुए हैं। किसी ने अपको रघु के बारे में गलत बताकर भड़का दिया होगा। सुनो जी अपको जिसने भी भड़काया हैं आप उनका कहना न मानना मेरा लाडला ऐसा नहीं हैं जो कोई भी गलत काम करे।
राजेंद्र…… सुरभि तुम इतना परेशान क्यों हों रहीं हों? सुरभि हमारे बेटे ने कुछ गलत नहीं किया हैं। रघु हमारे परवरिश पर बदनुमा धब्बा कभी नहीं लगाएगा।
सुरभि….. सुनो जी आप ऐसे घुमा फिरा कर न बोलों एक तो आप खुद कहते हों रघु आपके परेशानी का करण बना हुआ हैं और फिर कहते हों रघु ने कुछ गलत नहीं क्या हैं। तो रघु आपके परेशानी का करण कैसे हुआ?
राजेंद्र……. सुरभि रघु की शादी मेरे परेशानी का करण बना हुआ हैं।
सुरभि….. हम ढूंढ़ तो रहे हैं रघु के लिए लड़की फिर रघु की शादी आपके परेशानी का कारण कैसे बन सकता हैं। देर सवेर हों जायेगी रघु की शादी आप इसके लिए परेशान न हों।
राजेंद्र……. मैंने रघु के लिए कई लड़कियां देखा हैं और यह सभी लड़कियां वैसी हैं जैसी हमे रघु के लिए चाहिए। लेकिन एक बात मेरे अब तक समझ में नहीं आया। ऐसा क्या उन्हें पाता चल जाता हैं जो वो हां कहने के बाद न कह देते हैं।
सुरभि …… न कहा रहें है तो ठीक हैं हम रघु के लिए कोई ओर लड़की ढूंढ लेंगे।
राजेंद्र……. बात लड़की ढूंढने की नहीं हैं मैं रघु के लिए ओर भी लड़की ढूंढ़ लूंगा लेकिन बात यह हैं की बिना लड़के को देखे बिना परखे कोई कैसे मना कर सकता हैं।
सुरभि…. आप थोडा ठीक से बताएंगे आप कहना किया चहते हों।
राजेन्द्र….. सुरभि आज तक जितनी भी लड़कियां देखा हैं। सब लड़कियों को और उनके घर वालों को रघु की तस्वीर देखकर पसंद आ गया और वो रघु को देखने आने के लिए भी तैयार हों जाते हैं लेकिन अचानक उन्हें किया हों जाता हैं वो आने से मना कर देते हैं।
सुरभि……. ये आप किया कह रहे हों ऐसा कैसे हों सकती हैं। हमारा रघु तो सबसे अच्छा व्यवहार करता हैं उसमे कोई बुरी आदत नहीं हैं। फिर कोई कैसे रघु को अपनी लड़की देने से मना कर सकता हैं।
राजेंद्र….. यह ही तो मेरे समझ में नहीं आ रहा हैं। सुरभि ऐसा एक या दो बार होता तो कोई बात नहीं था। अब तक जितनी भी लड़की देखा हैं सभी ने पहले हां कहा फिर मना कर दिया।
सुरभि…… उन लोगों ने मना करने के पिछे कुछ तो कारण बताया होगा।
राजेंद्र…. उन्होंने कारण बताकर मना किया हैं उसे सुनाकर मेरा खून खोल उठा तुम सुनोगी तो तुम भी अपना आप खो देगी।
सुरभि…... उन्होंने ऐसा क्या बताया जिसे सुनाकर अपको इतना गुस्सा आय।
राजेंद्र…… उन्होंने कहा हमारे बेटे में बहुत सारे बुरी आदत है उसका बहुत सारे लड़कियों के साथ संबंध हैं। हम अपने लडकी की शादी आपके बेटे से करेंगे तो हमारी बेटी की जीवन बर्बाद हों जायेगा।
राजेंद्र की बाते सुनाकर सुरभि गुस्से में आज बबूला हों गई और तेज आवाज में बोली……..
सुरभि……उनकी इतनी जुर्रत जो मेरे बेटे पर ऐसा बदनुमा धब्बा लगाए। मेरा बेटा सोने जैसा खरा हैं। जैसे सोने में कोई अवगुण नहीं हैं वैसे ही मेरे लाडले में कोई अवगुण नहीं हैं।
जब सुरभि तेज आवाज में बोल रही थीं इसी वक्त सूकन्या सीढ़ी से ऊपर आ रहीं था। सुरभि के तेज आवाज को सुनाकर सुकन्या कमरे के पास आई और उनकी बाते सुनने लागी। सुरभि के आवेश के वशीभूत होकर बोलने से राजेंद्र सुरभि को समझाते हुए बोला……
राजेंद्र….. इतने उत्तेजित होने की जरूरत नहीं हैं। मैं भली भाती जनता हूं हमारे बेटे में कोई अवगुण नहीं हैं। लेकिन मैं ये नहीं जान पा रहा हूं ऐसा कर कौन रहा हैं हमारे बेटे को झूठा बदनाम करके किसी को क्या मिल जायेगा।
सुरभि…… सुनो जी मुझे साजिश की बूं आ रही हैं कोई हमारे बेटे के खिलाफ साजिश कर रहा हैं। आप उस साजिश कर्ता को जल्दी ढूंढो मैं आपने हाथों से उसे सूली चढ़ाऊंगी।
राजेंद्र …. उसे तो मैं ढूंढुगा ही और अपने हाथों से सजा दूंगा। सुरभि तुमने साजिश का याद दिलाकर अच्छा किए मेरे एक और परेशानी का विषय यह साजिश शब्द भी हैं।
सुकन्या जो छुपकर इनकी बाते सुन रहा था। साजिश की बात सुनाकर सुकन्या के कान खडे हों गए और मन में बोलो.."कहीं भाई साहाब को हमारे साजिश के बारे में पाता तो नहीं चल गया ऐसा हुआ तो हम न घर के रहेगें न घाट के उनको सब बताना होगा। लेकिन पहले इनकी पूरी बाते तो सुन लू ये किस साजिश की बात कर रहें हैं।"
सुरभि……. आप कहना क्या चाहते हैं खुल कर बोलो……
राजेंद्र…… पिछले कुछ दिनों से मेरे विश्वास पात्र लोग एक एक करके गायब हों रहे हैं। जो मेरे लिए खबरी का काम कर रहे थे।
सुरभि…. अपने गुप्तचर रख रखे हैं और अपके गुप्तचर गायब हों रहे। लेकिन अपको गुप्तचर रखने की जरूरत क्यो आन पड़ी।
राजेंद्र…… सुरभि तुम भी न कैसी कैसी बाते करते हों, राज परिवार से हैं, इतनी जमीन जायदाद हैं, इतनी सारी कम्पनियां हैं और विष्टि गुप्त संपत्ति भी हैं जिसे पाने के लिए लोग तरह तरह के छल चतुरी करेंगे। इसका पाता लगाने के लिए मैंने गुप्तचर रखा था लेकिन एक एक करके सब पाता नहीं कहा गायब हों गए उनमें से एक कुछ दिन पहले मेरे कार्यालय में फोन कर कुछ बाते बताया था और बाकी बाते मिल कर करने वाला था लेकिन आया ही नहीं मुझे लगता हैं वह भी बाकी गुप्त चर की तरह गायब हों गया।
सुकन्या जो छुप कर सुन रहीं थीं उसे कुछ कुछ सुनाई दे रही थीं लेकिन गुप्तचर की बात सुनाकर सुकन्या मन में ही बोला " ओ हों तो भाई साहब ने गुप्तचर रख रखे हैं लेकिन इनको गायब कौन कर रहा हैं। मुझे इनकी पूरी बाते सुननी चाहिए।" अचानक सुरभि की नज़र दरवाजे की ओर गईं। उसे दरवाजे की ओर से कुछ आवाज सुनाई दिया तब सुरभि ने अपने पति को मुंह पर उंगली रख कर चुप रहने को कहा और आ रही आवाज़ को ध्यान से सुने लगीं। सुरभि को हल्के हल्के चुड़िओ के खनकने की आवाज सुनाई दिया जिससे सुरभि को शक होने लगा कोई दरवाजे पर खडा हैं। इसलिए सुरभि शक को पुख्ता करने के लिए बोली……
सुरभि……. दरवाजे पर कौन हैं कोई काम हैं तो बाद में आना हम अभी जरूरी कम कर रहे हैं।
अचानक सुरभि की आवाज़ सुनाकर सुकन्या सकपका गई और हिलने डुलने लगी जिससे चूड़ियों की आवाज़ ओर ज्यादा आने लगा। इसलिए सुरभि का शक यकीन में बदल गई और सुरभि आवाज देते हुए दरवाजे की और आने लगी। सुरभि की आवाज़ सुनाकर सुकन्या मन में बोली"इस सुरभि को कैसे पाता चला कोई छुपकर इनकी बाते सुन रहीं हैं। अब क्या करू भाग भी नहीं सकती और सुरभि ने पुछा तो उसे क्या जबाव दूंगी। सुरभि जो भी पूछे मुझे समहाल कर जवाब देना होगा नहीं तो सुरभि के सामने मेरा भांडा फूट जाएगी" सुरभि आकर दरवाज़ा खोलती हैं। सुकन्या को देखकर बोलती हैं…….
सुरभि…. छोटी तू कब आई कुछ काम था?
सुकन्या…. दीदी मैं तो अभी अभी आपसे मिलने आई हूं लेकिन आप को कैसे पता चला की दरवाजे पर कोई आया हैं?
सुरभि….. मुझे कैसे पाता चला यह जानने का विषय नहीं हैं। जानने का विषय तो यह हैं तू कभी भी मेरे कमरे में नहीं आई फिर आज कैसे आ गईं।
सुरभि की बाते सुनाकर सुकन्या सकपका गई उसे समझ ही नहीं आ रहीं थी सुरभि को क्या ज़बाब दे सुकन्या को सकपते देखकर सुरभि मुस्कुराते हुए बोली……
सुरभि….. आज आई हैं लेकिन गलत वक्त पर आई हैं अभी तू जा मैं तेरे जेठ जी के साथ व्यस्त हूं। तुझे कुछ बात करनी हैं तो बाद में कर लेना।
सुकन्या फीकी मुस्कान देकर न चाहते हुए भी अपने कमरे की ओर चल दिया। जब तक सुकन्या अपनी कमरे तक नहीं गई तब तक सुरभि खड़ी खड़ी सुकन्या को देखती रहीं। सुकन्या अपने कमरे के पास पहुंचकर सुरभि की और देखी और कमरे में घूस गई फिर सुरभि ने दरवजा बंद किया और मुस्कुराते हुए जाकर राजेंद्र के पास बैठ गई और बोली……
सरभि….. छोटी छुप कर हमारी बाते सुन रहीं थीं इसलिए जो भी बोलना थोडा धीमे आवाज में बोलना ताकि बाहर खडे किसी को सुनाए न दे।
राजेंद्र….. क्क्क्यायाया सुकन्या लेकिन सुकन्या तो कभी हमारे कमरे अंदर तो छोड़ो कमरे के पास भी नहीं आती फिर आज कैसे आ गई।
सुरभि…… आप छोड़िए छोटी की बातों को उसके मन में क्या चलता हैं यह आप भी जानते हो। आप ये बताइए अपके गुप्त चर ने आपको फोन पर किया बताए और धीमे आवाज में बोलना हम दोनों के अलावा तीसरा न सुन पाए।
राजेंद्र….. उसने बोला महल में से ही कोई मेरे और रघु के खिलाफ साजिश कर रहा हैं। मैं और रघु सतर्क रहूं।
सुरभि….. महल से ही कोई हैं आपने उस धूर्त का नाम नहीं पुछा।
राजेंद्र….. पुछा था लेकिन वह कह रहा था नाम के अलावा ओर भी बहुत कुछ बताना हैं और सबूत भी दिखाना हैं इसलिए फोन पर न बताकर मिलकर बताएगा।
सुरभि…… अब तो वह लापता हों गया हैं अब नाम कैसे पता चलेगा।
राजेंद्र….. वह ही तो मैं सोच रहा हूं और मेरे सबसे बडी चिंता का विषय यह हैं महल से कौन हों सकता हैं महल में तो हम दोनों भाई, तूम, सुकन्या और हमारे बच्चे और कुछ नौंकर हैं। इनमें से कौन हों सकता हैं।
राजेंद्र से महल की बात सुनाकर सुरभि गहन सोच विचार करने लग गई। उसके हावभाव सोचते हुए पाल प्रति पाल बदल रहीं थी। राजेंद्र सुरभि को देखकर समझने की कोशिश कर रहा था कि सुरभि इतना गहन विचार किस मुद्दे को लेकर कर रहीं हैं। सुरभि को इतनी गहराई से विचाराधीन देखकर राजेंद्र ने सुरभि को हिलाते हुए पुछा……
राजेंद्र…… सुरभि कहा खोई हुई हों।
सुरभि……. मैं अपके कहीं बातों पर विचार कर रहीं हूं और ढूंढ रहीं हु आप के कहीं बातों का संबंध महल के किस शख्स से हैं।
राजेंद्र…. मैं भी इसी बात को लेकर परेशान हूं लेकिन किसी नतीजे पर पहुंच नहीं पाया।
सुरभि……. जब आप लड़की देखने जाते थे आप अकेले जाते थे या आप के साथ कोई होता था।
राजेंद्र…… जाता तो मैं अकेले था कभी कभी मुंशी जी को भी ले जाता था। लेकिन बाद में तुम्हे और रावण को बता देता था।
सुरभि….. ऐसा कोई करण हैं जिसका संबंध रघु के शादी से हो।
राजेंद्र….. बाबूजी का बनाया हुआ वसीयत का संबंध रघु के शादी से हैं।
सुरभि….. वसीयत का संबंध रघु के शादी से कैसे हों सकता हैं। सारी संपत्ति तो बाबूजी ने आप दोनों भाइयों में बराबर बांट दिया था। फिर रघु के शादी का वसीयत से क्या लेना देना?
राजेंद्र….. वसीयत का रघु के शादी से लेना देना हैं। जो हमारे पूर्वजों का गुप्त संपत्ति हैं। उसका उत्तराधिकारी रघु की प्रथम संतान हैं और जो प्रत्यक्ष संपति हैं उसका उत्तराधिकारी हम दोनों भाई हैं।
सुरभि…… ओ तो यह बात हैं मुझे तो ऐसा लग रहा है अब तक जो कुछ भी हुआ हैं इसका करण कहीं न कहीं यह गुप्त संपत्ति ही हैं।
राजेंद्र…… मतलब ये की कोई हमारे गुप्त संपत्ति को पाने के लिए साजिश कर रहा हैं। लेकिन गुप्त संपत्ति के वसीयत के बारे में मैं और हमारा वकील दलाल और अब तुम जानती हों इसके अलावा किसी को पता नहीं हैं।
आज के लिए बस उतना ही आज के कहानी अगले अपडेट से जानेंगे। यह तक साथ बाने रहने के लिए सभी पाठकों को बहुत बहुत धन्यवाद।
Awesome updateअजनबी हमसफ़र-रिश्तों का गठबंधन
Update - 6
राजेंद्र….. अरे हां मैं तो भूल ही गया था कि मेरे जीवन में एक नारी शक्ति ऐसी हैं जो मेरे सभी परेशानियों से निकलने में हमेशा सहायक सिद्ध हुआ हैं।
सुरभि…… आप अपनी हाथ को विराम दिजिए और बताना शुरू कीजिए।
राजेंद्र…. सुरभि मेरे परेशानी का करण कई हैं जो पिछले कुछ दिनों से मेरे चिन्ता का विषय बना हुआ हैं। जो मैं सब के नजरों से छुपा लिया लेकिन तुम्हारे नजरों से नहीं छुपा पाया। सुरभि तुम मेरे अर्ध अंग होने का कार्य भार बखूबी निभा रहीं हों। जैसे एक अंग को पीढ़ा हों तो बाकी अंग स्वतः ही पीढ़ा को भाप लेता हैं वैसे ही तुम मेरे परेशानी ओर चिंता को स्वतः ही भाव लिया। सुरभि तुम एक अजनबी की तरह मेरे जीवन में आई और मेरा हमसफर बनकर मेरे कदम से कदम मिलाकर साथ चलती रहीं हों।
सुरभि मुस्कुराकर राजेंद्र की आंखो में देखकर बोलो……
सुरभि….. भले ही मैं अपके जीवन में एक अजनबी की तरह आई लेकिन मैं अब अजनबी नहीं रहीं मैं आपको भली भांति पहचान गई हूं। मैं अपकी अर्धांगिनी हूं तो फिर अपने आधे अंग में हों रहीं पीढ़ा को मैं कैसे न समझ पाती।……... आप मेरी कुछ ज्यादा ही तारीफ करते हों लेकिन यह अच्छा हैं पत्नी की तारीफ नहीं करोगे तो ओर किसकी करोगी। अब आप मुद्दे की बात बताइए जो मैं जानना चहती हूं।
राजेंद्र …….. मैं परेशान कई कारणों से हूं। उनमे से एक हैं हमारा बेटा रघु।
सुरभि…… रघु ने ऐसा किए कर दिया जो आपके परेशानी का करण बाना हुए हैं। किसी ने अपको रघु के बारे में गलत बताकर भड़का दिया होगा। सुनो जी अपको जिसने भी भड़काया हैं आप उनका कहना न मानना मेरा लाडला ऐसा नहीं हैं जो कोई भी गलत काम करे।
राजेंद्र…… सुरभि तुम इतना परेशान क्यों हों रहीं हों? सुरभि हमारे बेटे ने कुछ गलत नहीं किया हैं। रघु हमारे परवरिश पर बदनुमा धब्बा कभी नहीं लगाएगा।
सुरभि….. सुनो जी आप ऐसे घुमा फिरा कर न बोलों एक तो आप खुद कहते हों रघु आपके परेशानी का करण बना हुआ हैं और फिर कहते हों रघु ने कुछ गलत नहीं क्या हैं। तो रघु आपके परेशानी का करण कैसे हुआ?
राजेंद्र……. सुरभि रघु की शादी मेरे परेशानी का करण बना हुआ हैं।
सुरभि….. हम ढूंढ़ तो रहे हैं रघु के लिए लड़की फिर रघु की शादी आपके परेशानी का कारण कैसे बन सकता हैं। देर सवेर हों जायेगी रघु की शादी आप इसके लिए परेशान न हों।
राजेंद्र……. मैंने रघु के लिए कई लड़कियां देखा हैं और यह सभी लड़कियां वैसी हैं जैसी हमे रघु के लिए चाहिए। लेकिन एक बात मेरे अब तक समझ में नहीं आया। ऐसा क्या उन्हें पाता चल जाता हैं जो वो हां कहने के बाद न कह देते हैं।
सुरभि …… न कहा रहें है तो ठीक हैं हम रघु के लिए कोई ओर लड़की ढूंढ लेंगे।
राजेंद्र……. बात लड़की ढूंढने की नहीं हैं मैं रघु के लिए ओर भी लड़की ढूंढ़ लूंगा लेकिन बात यह हैं की बिना लड़के को देखे बिना परखे कोई कैसे मना कर सकता हैं।
सुरभि…. आप थोडा ठीक से बताएंगे आप कहना किया चहते हों।
राजेन्द्र….. सुरभि आज तक जितनी भी लड़कियां देखा हैं। सब लड़कियों को और उनके घर वालों को रघु की तस्वीर देखकर पसंद आ गया और वो रघु को देखने आने के लिए भी तैयार हों जाते हैं लेकिन अचानक उन्हें किया हों जाता हैं वो आने से मना कर देते हैं।
सुरभि……. ये आप किया कह रहे हों ऐसा कैसे हों सकती हैं। हमारा रघु तो सबसे अच्छा व्यवहार करता हैं उसमे कोई बुरी आदत नहीं हैं। फिर कोई कैसे रघु को अपनी लड़की देने से मना कर सकता हैं।
राजेंद्र….. यह ही तो मेरे समझ में नहीं आ रहा हैं। सुरभि ऐसा एक या दो बार होता तो कोई बात नहीं था। अब तक जितनी भी लड़की देखा हैं सभी ने पहले हां कहा फिर मना कर दिया।
सुरभि…… उन लोगों ने मना करने के पिछे कुछ तो कारण बताया होगा।
राजेंद्र…. उन्होंने कारण बताकर मना किया हैं उसे सुनाकर मेरा खून खोल उठा तुम सुनोगी तो तुम भी अपना आप खो देगी।
सुरभि…... उन्होंने ऐसा क्या बताया जिसे सुनाकर अपको इतना गुस्सा आय।
राजेंद्र…… उन्होंने कहा हमारे बेटे में बहुत सारे बुरी आदत है उसका बहुत सारे लड़कियों के साथ संबंध हैं। हम अपने लडकी की शादी आपके बेटे से करेंगे तो हमारी बेटी की जीवन बर्बाद हों जायेगा।
राजेंद्र की बाते सुनाकर सुरभि गुस्से में आज बबूला हों गई और तेज आवाज में बोली……..
सुरभि……उनकी इतनी जुर्रत जो मेरे बेटे पर ऐसा बदनुमा धब्बा लगाए। मेरा बेटा सोने जैसा खरा हैं। जैसे सोने में कोई अवगुण नहीं हैं वैसे ही मेरे लाडले में कोई अवगुण नहीं हैं।
जब सुरभि तेज आवाज में बोल रही थीं इसी वक्त सूकन्या सीढ़ी से ऊपर आ रहीं था। सुरभि के तेज आवाज को सुनाकर सुकन्या कमरे के पास आई और उनकी बाते सुनने लागी। सुरभि के आवेश के वशीभूत होकर बोलने से राजेंद्र सुरभि को समझाते हुए बोला……
राजेंद्र….. इतने उत्तेजित होने की जरूरत नहीं हैं। मैं भली भाती जनता हूं हमारे बेटे में कोई अवगुण नहीं हैं। लेकिन मैं ये नहीं जान पा रहा हूं ऐसा कर कौन रहा हैं हमारे बेटे को झूठा बदनाम करके किसी को क्या मिल जायेगा।
सुरभि…… सुनो जी मुझे साजिश की बूं आ रही हैं कोई हमारे बेटे के खिलाफ साजिश कर रहा हैं। आप उस साजिश कर्ता को जल्दी ढूंढो मैं आपने हाथों से उसे सूली चढ़ाऊंगी।
राजेंद्र …. उसे तो मैं ढूंढुगा ही और अपने हाथों से सजा दूंगा। सुरभि तुमने साजिश का याद दिलाकर अच्छा किए मेरे एक और परेशानी का विषय यह साजिश शब्द भी हैं।
सुकन्या जो छुपकर इनकी बाते सुन रहा था। साजिश की बात सुनाकर सुकन्या के कान खडे हों गए और मन में बोलो.."कहीं भाई साहाब को हमारे साजिश के बारे में पाता तो नहीं चल गया ऐसा हुआ तो हम न घर के रहेगें न घाट के उनको सब बताना होगा। लेकिन पहले इनकी पूरी बाते तो सुन लू ये किस साजिश की बात कर रहें हैं।"
सुरभि……. आप कहना क्या चाहते हैं खुल कर बोलो……
राजेंद्र…… पिछले कुछ दिनों से मेरे विश्वास पात्र लोग एक एक करके गायब हों रहे हैं। जो मेरे लिए खबरी का काम कर रहे थे।
सुरभि…. अपने गुप्तचर रख रखे हैं और अपके गुप्तचर गायब हों रहे। लेकिन अपको गुप्तचर रखने की जरूरत क्यो आन पड़ी।
राजेंद्र…… सुरभि तुम भी न कैसी कैसी बाते करते हों, राज परिवार से हैं, इतनी जमीन जायदाद हैं, इतनी सारी कम्पनियां हैं और विष्टि गुप्त संपत्ति भी हैं जिसे पाने के लिए लोग तरह तरह के छल चतुरी करेंगे। इसका पाता लगाने के लिए मैंने गुप्तचर रखा था लेकिन एक एक करके सब पाता नहीं कहा गायब हों गए उनमें से एक कुछ दिन पहले मेरे कार्यालय में फोन कर कुछ बाते बताया था और बाकी बाते मिल कर करने वाला था लेकिन आया ही नहीं मुझे लगता हैं वह भी बाकी गुप्त चर की तरह गायब हों गया।
सुकन्या जो छुप कर सुन रहीं थीं उसे कुछ कुछ सुनाई दे रही थीं लेकिन गुप्तचर की बात सुनाकर सुकन्या मन में ही बोला " ओ हों तो भाई साहब ने गुप्तचर रख रखे हैं लेकिन इनको गायब कौन कर रहा हैं। मुझे इनकी पूरी बाते सुननी चाहिए।" अचानक सुरभि की नज़र दरवाजे की ओर गईं। उसे दरवाजे की ओर से कुछ आवाज सुनाई दिया तब सुरभि ने अपने पति को मुंह पर उंगली रख कर चुप रहने को कहा और आ रही आवाज़ को ध्यान से सुने लगीं। सुरभि को हल्के हल्के चुड़िओ के खनकने की आवाज सुनाई दिया जिससे सुरभि को शक होने लगा कोई दरवाजे पर खडा हैं। इसलिए सुरभि शक को पुख्ता करने के लिए बोली……
सुरभि……. दरवाजे पर कौन हैं कोई काम हैं तो बाद में आना हम अभी जरूरी कम कर रहे हैं।
अचानक सुरभि की आवाज़ सुनाकर सुकन्या सकपका गई और हिलने डुलने लगी जिससे चूड़ियों की आवाज़ ओर ज्यादा आने लगा। इसलिए सुरभि का शक यकीन में बदल गई और सुरभि आवाज देते हुए दरवाजे की और आने लगी। सुरभि की आवाज़ सुनाकर सुकन्या मन में बोली"इस सुरभि को कैसे पाता चला कोई छुपकर इनकी बाते सुन रहीं हैं। अब क्या करू भाग भी नहीं सकती और सुरभि ने पुछा तो उसे क्या जबाव दूंगी। सुरभि जो भी पूछे मुझे समहाल कर जवाब देना होगा नहीं तो सुरभि के सामने मेरा भांडा फूट जाएगी" सुरभि आकर दरवाज़ा खोलती हैं। सुकन्या को देखकर बोलती हैं…….
सुरभि…. छोटी तू कब आई कुछ काम था?
सुकन्या…. दीदी मैं तो अभी अभी आपसे मिलने आई हूं लेकिन आप को कैसे पता चला की दरवाजे पर कोई आया हैं?
सुरभि….. मुझे कैसे पाता चला यह जानने का विषय नहीं हैं। जानने का विषय तो यह हैं तू कभी भी मेरे कमरे में नहीं आई फिर आज कैसे आ गईं।
सुरभि की बाते सुनाकर सुकन्या सकपका गई उसे समझ ही नहीं आ रहीं थी सुरभि को क्या ज़बाब दे सुकन्या को सकपते देखकर सुरभि मुस्कुराते हुए बोली……
सुरभि….. आज आई हैं लेकिन गलत वक्त पर आई हैं अभी तू जा मैं तेरे जेठ जी के साथ व्यस्त हूं। तुझे कुछ बात करनी हैं तो बाद में कर लेना।
सुकन्या फीकी मुस्कान देकर न चाहते हुए भी अपने कमरे की ओर चल दिया। जब तक सुकन्या अपनी कमरे तक नहीं गई तब तक सुरभि खड़ी खड़ी सुकन्या को देखती रहीं। सुकन्या अपने कमरे के पास पहुंचकर सुरभि की और देखी और कमरे में घूस गई फिर सुरभि ने दरवजा बंद किया और मुस्कुराते हुए जाकर राजेंद्र के पास बैठ गई और बोली……
सरभि….. छोटी छुप कर हमारी बाते सुन रहीं थीं इसलिए जो भी बोलना थोडा धीमे आवाज में बोलना ताकि बाहर खडे किसी को सुनाए न दे।
राजेंद्र….. क्क्क्यायाया सुकन्या लेकिन सुकन्या तो कभी हमारे कमरे अंदर तो छोड़ो कमरे के पास भी नहीं आती फिर आज कैसे आ गई।
सुरभि…… आप छोड़िए छोटी की बातों को उसके मन में क्या चलता हैं यह आप भी जानते हो। आप ये बताइए अपके गुप्त चर ने आपको फोन पर किया बताए और धीमे आवाज में बोलना हम दोनों के अलावा तीसरा न सुन पाए।
राजेंद्र….. उसने बोला महल में से ही कोई मेरे और रघु के खिलाफ साजिश कर रहा हैं। मैं और रघु सतर्क रहूं।
सुरभि….. महल से ही कोई हैं आपने उस धूर्त का नाम नहीं पुछा।
राजेंद्र….. पुछा था लेकिन वह कह रहा था नाम के अलावा ओर भी बहुत कुछ बताना हैं और सबूत भी दिखाना हैं इसलिए फोन पर न बताकर मिलकर बताएगा।
सुरभि…… अब तो वह लापता हों गया हैं अब नाम कैसे पता चलेगा।
राजेंद्र….. वह ही तो मैं सोच रहा हूं और मेरे सबसे बडी चिंता का विषय यह हैं महल से कौन हों सकता हैं महल में तो हम दोनों भाई, तूम, सुकन्या और हमारे बच्चे और कुछ नौंकर हैं। इनमें से कौन हों सकता हैं।
राजेंद्र से महल की बात सुनाकर सुरभि गहन सोच विचार करने लग गई। उसके हावभाव सोचते हुए पाल प्रति पाल बदल रहीं थी। राजेंद्र सुरभि को देखकर समझने की कोशिश कर रहा था कि सुरभि इतना गहन विचार किस मुद्दे को लेकर कर रहीं हैं। सुरभि को इतनी गहराई से विचाराधीन देखकर राजेंद्र ने सुरभि को हिलाते हुए पुछा……
राजेंद्र…… सुरभि कहा खोई हुई हों।
सुरभि……. मैं अपके कहीं बातों पर विचार कर रहीं हूं और ढूंढ रहीं हु आप के कहीं बातों का संबंध महल के किस शख्स से हैं।
राजेंद्र…. मैं भी इसी बात को लेकर परेशान हूं लेकिन किसी नतीजे पर पहुंच नहीं पाया।
सुरभि……. जब आप लड़की देखने जाते थे आप अकेले जाते थे या आप के साथ कोई होता था।
राजेंद्र…… जाता तो मैं अकेले था कभी कभी मुंशी जी को भी ले जाता था। लेकिन बाद में तुम्हे और रावण को बता देता था।
सुरभि….. ऐसा कोई करण हैं जिसका संबंध रघु के शादी से हो।
राजेंद्र….. बाबूजी का बनाया हुआ वसीयत का संबंध रघु के शादी से हैं।
सुरभि….. वसीयत का संबंध रघु के शादी से कैसे हों सकता हैं। सारी संपत्ति तो बाबूजी ने आप दोनों भाइयों में बराबर बांट दिया था। फिर रघु के शादी का वसीयत से क्या लेना देना?
राजेंद्र….. वसीयत का रघु के शादी से लेना देना हैं। जो हमारे पूर्वजों का गुप्त संपत्ति हैं। उसका उत्तराधिकारी रघु की प्रथम संतान हैं और जो प्रत्यक्ष संपति हैं उसका उत्तराधिकारी हम दोनों भाई हैं।
सुरभि…… ओ तो यह बात हैं मुझे तो ऐसा लग रहा है अब तक जो कुछ भी हुआ हैं इसका करण कहीं न कहीं यह गुप्त संपत्ति ही हैं।
राजेंद्र…… मतलब ये की कोई हमारे गुप्त संपत्ति को पाने के लिए साजिश कर रहा हैं। लेकिन गुप्त संपत्ति के वसीयत के बारे में मैं और हमारा वकील दलाल और अब तुम जानती हों इसके अलावा किसी को पता नहीं हैं।
आज के लिए बस उतना ही आज के कहानी अगले अपडेट से जानेंगे। यह तक साथ बाने रहने के लिए सभी पाठकों को बहुत बहुत धन्यवाद।