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किचन में बावर्ची दिन के खाने में परोसे जानें वाले विभिन्न प्रकार के व्यंजनों को बनाने में मग्न थे। सुरभि किचन के दरवाजे पर खडा हों सभी बावर्चियो को काम में मग्न देख मुस्कुराते हुए अंदर गईं। सभी बावर्चिओ में एक बुजुर्ग था। उनके पास जा'कर बोली...दादा भाई दिन के खाने में किन किन व्यंजनों को बनाया जा रहा हैं।
सुरभि को कीचन में देख बुजुर्ग वबर्ची बोला…रानी मां आप को रसोई घर में आने की क्या जरूरत आन पड़ी हम तैयारी कर तो रहे हैं।
सुरभि…दादा भाई मैं रसोई घर में क्यों नहीं आ सकती यहां रसोई घर मेरा हैं। आप से कितनी बार कहा हैं आप सब मुझे रानी मां नहीं बोलेंगे फिर भी सुनते नहीं हों।
"क्यों न बोले रानी मां आप इस जागीर के रानी हों और एक मां की तरह सभी का ख्याल रखते हों। इसलिए हम आप'को रानी मां बोलते हैं।"
सुरभि…दादाभाई आप मुझसे उम्र में बड़े हों। आप'का मां बोलना मुझे अच्छा नहीं लगता। जब राजपाठ थी तब की बात अलग थीं। अब तो राजपाठ नहीं रही और न ही राजा रानी रहे। इसलिए आप मुझे रानी मां न बोले।
बुजुर्ग…राज पाट नहीं हैं फिर भी आप और राजा जी अपने प्रजा का राजा और रानी की तरह ख्याल रखते हों हमारे दुःख सुख में हमारे कंधे से कंधा मिलाए खडे रहते हों। ऐसे में हम आपको रानी मां और राजा जी को राजाजी क्यो न बोले, रानी मां राजा रानी कहलाने के लिए राजपाठ नहीं गुण मायने रखता हैं जो आप में और राजाजी में भरपूर मात्रा में हैं।
बुजुर्ग से खुद की और पति की तारीफ सुन सुरभि मन मोहिनी मुस्कान बिखेरते हुए बोली…जब भी मैं आप'को रानी मां बोलने से मना करती हूं आप प्रत्येक बार मुझे अपने तर्कों से उलझा देते हों फिर भी मैं आप से कहूंगी आप मुझे रानी मां न बोले।
सुरभि को मुस्कुराते हुए देख और तर्को को सुन बुजुर्ग बोला....रानी मां इसे तर्को में उलझना नहीं कहते, जो सच हैं वह बताना कहते हैं। आप ही बता दिजिए हम आप'को क्या कह कर बुलाए।
सुरभि…. मैं नहीं जानती आप मुझे क्या कहकर संबोधित करेंगे। आप'का जो मन करे बोले लेकिन रानी मां नहीं!
बुजुर्ग...हमारा मन आप'को रानी मां बोलने को करता हैं। हम आप'को रानी मां ही बोलेंगे इसके लिए आप हमें दण्ड देना चाहें तो दे सकते हैं लेकिन हम आप'को रानी मां बोलना बंद नहीं करने वाले।
सुकन्या किसी काम से किचन में आ रही थीं। वाबर्चियो से सुरभि को बात करते देख किचन के बाहर खड़ी हो'कर सुनाने लगीं थीं। सुरभि की तारीफ करते हुए सुन कर सुकन्या अदंर ही अदंर जल भुन गई जब तक सहन कर सकती थीं किया जब सहन सीमा टूट गई तब रसोई घर के अंदर जाते हुए बोली.....क्यों रे बुढाऊ अब तुझे किया चाहिए जो दीदी को इतना मस्का लगा रहा हैं।
सुरभि …छोटी ये कैसा तरीका हैं एक बुजुर्ग से बात करने का दादाभाई तुमसे उम्र में बड़े हैं। कम से कम इनके साथ तो सलीके से पेश आओ।
एक नौकर के लिए सुरभि का बोलना सुकन्या से बर्दास्त नहीं हुआ इसलिए सुकन्या तेवर को ओर कड़ा करते हुए बोली….दीदी आप इस बुड्ढे का पक्ष क्यों ले रहीं हों। ये हमारे घर का एक नौकर हैं और नौकरों से ऐसे ही बात किया जाता हैं।
सुकन्या की बाते सुनकर सुरभि को गुस्सा आ गया था। सुरभि अपने गुस्से को नियंत्रित करते हुए बोली...छोटी भले ही ये हमारे घर में काम करने वाले नौकर हैं लेकिन हैं तो एक इंसान ही और दादाभाई तुमसे उम्र में बड़े हैं। तुम्हारे पिताजी के उम्र के हैं तुम अपने पिताजी के लिए भी ऐसेअभद्र भाषा बोलती हों।
एक नौकर का पिता से तुलना करना सुकन्या को हजम नहीं हुआ इसलिए सुकन्या अपने वाणी को ओर तल्ख करते हुए बोली….दीदी आप इस बुड्ढे की तुलना मेरे पिता से कर रहीं हों इसकी तुलना मेरे पिता से नहीं हों सकती।… ओ हों अब समझ आया आप इसका पक्ष क्यों ले रहीं हों आप इस बुड्ढे का पक्ष में नहीं रहेंगे तो ये बुड्ढा अपनी चिकनी चुपड़ी बातों से आप'की तारीफ नहीं करेगा आप'को तारीफे सुनने में मजा जो आता हैं।
सुकन्या की बातो को सुनकर वह मौजुद सभी को गुस्सा आ गया था। लेकिन नौकर होने के नाते कोई कुछ बोल नहीं रहा था। गुस्सा तो सुरभि को भी आ रही थीं लेकिन सुरभि बात को बढ़ाना नहीं चहती थी इसलिए चुप रहीं। पर नौकरों में से एक काम उम्र का नौकर एक गिलास पानी ले सुकन्या के पास गया। पानी का गिलास सुकन्या के देते हुए जान बुझ कर पानी साड़ी पर गिरा दिया। पानी गिरते ही सुकन्या आगबबूला हों गई फिर नौकर को कस'के एक तमाचा जड़ दिया फिर बोली…..ये क्या किया कमबख्त मेरी इतना महंगी साड़ी खराब कर दिया तेरे बाप की भी औकात नहीं इतनी महंगी साड़ी खरीद सकें।
एक ओर तमाचा लड़के के गाल पर जड़कर सुकन्या पैर पटकते हुए रूम में चाली गई। तमाचा इतने जोरदार मारा गया था। जिससे गाल पर उंगली के निशान पड़ गया साथ ही लाल टमाटर जैसा हों गया। लड़का गाल सहला रहा था। सुरभि पास आई लडके का हाथ हटा खुद गाल सहलाते हुए बोली….धीरा तुने जान बुझ कर छोटी के साड़ी पर पानी क्यों गिराया। तू समझता क्यों नहीं छोटी हमेशा से ऐसी ही हैं। कर दिया न छोटी ने तेरे प्यारे से गाल को लाल।
सुरभि का अपने प्रति स्नेह देख धीरा की आंखे नम हों गया। नम आंखो को पोंछते हुआ धीरा बोला….रानी मां मैं आप को अपमानित होते हुए कैसे देख सकता हूं। छोटी मालकिन ने हमें खरी खोटी सुनाया हमने बर्दास्त कर लिया। उन्होंने अपका अपमान किया मैं सहन नहीं कर पाया इसलिए उनके महंगी साड़ी पर जान बूझ कर पानी गिरा दिया। इसके एवज में मेरा गाल लाल हुआ तो क्या हुआ बदले में अपका स्नेह भी तो मिल रहा हैं।
सुरभि…. अच्छा अच्छा मुझे ज्यादा मस्का मत लगा नहीं तो मैं फिसल जाऊंगी तू जा थोड़ी देर आराम कर ले तेरे हिस्से का काम मैं कर देती हूं।
धीरा सुरभि के कहते ही एक कुर्सी लाकर सुरभि को बिठाते हुए बोला……रानी मां हमारे रहते आप काम करों ये कैसे हों सकता हैं। आप को बैठना हैं तो बैठो नहीं तो जाकर आराम करों खाना बनते ही अपको सुचना पहुंचा देंगे।
सुरभि…. मुझे कोई काम करने ही नहीं दे रहे हों तो यह बैठकर क्या करूंगी मैं छोटी के पास जा रही हूं।
सुरभि के जाते ही बुजुर्ग जिसका नाम रतन हैं वह बोला….छोटी मालकिन भी अजब प्राणी हैं इंसान हैं कि नागिन समझ नहीं आता। जब देखो फन फैलाए डसने को तैयार रहती हैं।
धीरा: नागीन ही हैं ऐसा वैसा नहीं विष धारी नागिन जिसके विष का काट किसी के पास नहीं हैं।
सुकन्या की बुराई करते हुऐ खाने की तैयारी करने लग जाते हैं। सुरभि सुकन्या के रूम में पहुंचकर देखती हैं सुकन्या मुंह फुलाए बैठी हैं। पास जाकर सुरभि बोली….छोटी तू मुंह फुलाए क्यो बैठी हैं। बता किया हुआ
सुरभि को देख मुंह भिचकते हुए सुकन्या बोली…..आप तो ऐसे कह रही हो जैसे आप कुछ जानती ही नही, नौकरों के सामने मेरी अपमान करने में कुछ कमी रहीं गईं थी जो मेरे पीछे पीछे आ गईं।
सुकन्या की तीखी बाते सुन सुरभि का मन बहुत आहत होती हैं फिर भी खुद को नियंत्रण में रख सुरभि बोली…….. छोटी मेरी बातों का तुझे इतना बुरा लग गया। मैं तेरे बहन जैसी हूं तू कुछ गलत करे तो मैं तुझे टोक भी नहीं सकती।
सुकन्या…. मैं सही करू या गलत आप मुझे टोकने वाली होती कौन हों? आप मेरी बहन जैसी हों बहन नहीं इसलिए आप मुझसे कोई रिश्ता जोड़ने की कोशिश न करें।
सुरभि... छोटी ऐसा न कह भला मैं तुझ'से रिश्ता क्यों न जोडू, रिश्ते में तू मेरी देवरानी हैं और देवरानी बहन समान होती हैं इसलिए मैं तूझे अपनी छोटी बहन मानती हूं।
सुकन्या…मैं अपके साथ कोई रिश्ता जोड़ना ही नहीं चाहती तो फिर आप क्यों बार बार मेरे साथ रिश्ता जोड़ना चाहती हों। आप कितनी ढिट हों बार बार अपमानित होते हों फिर भी आ जाते हों अपमानित होने। आप जाओ यह से मुझे विश्राम करने दो।
सुरभि से ओर सहन नहीं होती। आंखे सुकन्या की जली कटी बातों से नम हों गई थीं। अंचल से आंखों को पूछते हुए चाली गईं सुरभि के जाते ही सुकन्या बोली…. कुछ भी कहो सुरभि को कुछ असर ही नहीं होती। चमड़ी ताने सुन सुन कर गेंडे जैसी मोटी हों गईं कैसे इतना अपमान सह लेती हैं। कर्मजले नौकरों को भी न जानें सुरभि में क्या दिखता हैं जो रानी मां रानी मां बोलते रहते हैं।
कुछ वक्त ओर सुकन्या अकेले अकेले बड़बड़ाती रहती हैं फिर बेड पर लेट जाती हैं। सुरभि रूम में आ बेड पर लेट जाती हैं और सुबक सुबक रोने लगती हैं। सुरभि को आते हुए एक बुजुर्ग महिला देख लेती हैं जो सुरभि के पीछे पीछे उसके कमरे तक आ जाती हैं। सुरभि को रोता हुए देख पास आ बैठते हुए बोली…. रानी मां आप ऐसे क्यो लेटी हों? आप रो क्यों रहीं हों?
सुरभि बूढ़ी औरत की बात सुनकर उठकर बैठ जाती हैं फिर बहते आशु को पोंछते हुए बोली…... दाई मां आप कब आएं?
दाई मां… रानी मां अपको छोटी मालकिन के कमरे से निकलते हुए देखा आप रो रहीं थी इसलिए मैं अपके पीछे पीछे आ गई। आज फ़िर छोटी मालकिन ने कुछ कह ।
सुरभि…. दाई मां मैं इतनी बूरी हूं जो छोटी मुझे बार बार अपमानित करती हैं।
दाई मां… बुरे आप नहीं बुरे तो वो हैं जो आप'की जैसी नहीं बन पाती तो अपनी भड़ास आप'को अपमानित कर निकलते हैं।
सुरभि… दाई मां मुझे तो लगता मैं छोटी को टोककर गलत करती हूं। मैं छोटी को मेरी छोटी बहन मानती हूं इस नाते उसे टोकटी हूं लेकिन छोटी तो इसका गलत मतलब निकल लेती हैं।
दाई मां... रानी मां छोटी मालकिन ऐसा जान बूझ कर करती हैं। जिससे आप परेशान हो जाओ और महल का भार उन्हे सोफ दो फिर छोटी मालकिन महल पर राज कर सकें।
सुरभि... ऐसा हैं तो छोटी को महल का भार सोफ देती हूं। कम से कम छोटी मुझे अपमान करना तो छोड़ देगी।
दाई मैं…. आप ऐसा भुलकर भी न करना नहीं तो छोटी मालकिन अपको ओर ज्यादा अपमानित करने लगेगी फिर महल की शांति जो अपने सूझ बूझ से बना रखा हैं भंग हो जाएगी। आप उठिए मेरे साथ कीचन में चलिए नहीं तो आप ऐसे ही बहकी बहकी बाते करते रहेंगे और रो रो कर सुखी तकिया भिगोते रहेंगे।
सुरभि जाना तो नहीं चहती थी लेकिन दाई मां जबरदस्ती सुरभि को अपने साथ कीचन ले गई। जहां सुरभि वाबर्चियो के साथ खाना बनने में मदद करने लगी। खाना तैयार होने के बाद सुरभि सभी को बुलाकर खाना खिला देती हैं और ख़ुद भी खा लेती हैं। खाना खाकर सभी अपने अपने रूम में विश्राम करने चले गए।
कलकत्ता के एक आलीशान बंगलों में एक खुबसूरत लडकी चांडी का रूप धारण किए थोड़ फोड़ करने में लगी हुई थीं आंखें सुर्ख लाल चहरे पे गुस्से की लाली आंखों में काजल इस रूप में बस दो ही कमी थीं। एक हाथ में खड्ग और एक हाथ में मुंड माला थमा दिया जाय तो शख्सत भद्रा काली का रूप लगेंगी। लड़की कांच के सामानों को तोड़ने में लगी हुई थीं। एक औरतों रुकने को कह रहीं थीं लेकिन रूक ही नहीं रहीं थीं। लड़की ने हाथ में कुछ उठाया फिर उसे फेकने ही जा रहीं थीं कि औरत रोकते हुए बोली…… नहीं कमला इसे नहीं ये बहुत महंगी हैं। तूने सब तो तोड़ दिया इसे छोड़ दे मेरी प्यारी बच्ची।
कमला….. मां आप मेरे सामन से हटो मैं आज सब तोड़ दूंगी।
औरत जिनका नाम मनोरमा हैं।
मनोरमा:- अरे इतना गुस्सा किस बात की अभी तो कॉलेज से आई है। आते ही तोड़ फोड़ करने लग गई। देख तूने सभी समानों को तोड दिया। अब तो रूक जा मेरी लाडली मां का कहा नहीं मानेगी।
कमला….. कॉलेज से आई हूं तभी तो तोड़ फोड़ कर रहीं हूं। आप मुझे कितना भी बहलाने की कोशिश कर लो मैं नहीं रुकने वाली।
मनोरमा:- ये किया बात हुईं कॉलेज से आकर विश्राम करते हैं। तू तोड़ फोड़ करने लग गई। ये कोई बात हुई भला।
कमला…. मां अपको कितनी बार कहा था अपने सहेलियों को समझा दो उनके बेटे मुझे रह चलते छेड़ा न करें आज भी उन कमीनों ने मुझे छेड़ा उन्हे आप'के कारण ज्यादा कुछ कह नहीं पाई उन पर आई गुस्सा कही न कहीं निकलना ही था।
मनोरमा… मैं समझा दूंगी अब तू तोड़ फोड़ करना छोड़ दे।
घर का दरवजा जो खुला हुआ था। महेश कमला के पापा घर में प्रवेश करते हैं । घर की दशा और कमला को थोड़ फोड़ करते देख बोला…मनोरमा कमला आज चांदी क्यों बनी हुई हैं? क्या हुआ?
मनोरमा:- सब आपके लाड प्यार का नतीजा हैं दुसरे का गुस्सा घर के समानों पर निकाल रहीं हैं सब तोड़ दिया फिर भी गुस्सा कम नहीं हों रही।
महेश….. ओ तो गुस्सा निकाल रहीं हैं निकल जितना गुस्सा निकलना है निकाल जितना तोड फोड़ करना हैं। काम पड़े तो मैं और ला देता हूं।
मनोरमा…. आप तो चुप ही करों।
कमला का हाथ पकड़ खिचते हुए सोफे पर बिठाया फिर बोली .. तू यहां बैठ हिला तो मुझसे बूरा कोई नहीं होगा।
कमला का मन ओर तोड़ फोड़ करने का कर रहा था। मां के डांटने पर चुप चाप बैठ गई महेश आकर कमला के पास बैठा फ़िर पुछा…… कमला बेटी तुम्हें इतना गुस्सा क्यों आया? कुछ तो कारण रहा होगा?
कमला….. रस्ते में कालू और बबलू मुझे छेड़ रहे थे। चप्पल से उनका थोबडा बिगड़ दिया फिर भी मेरा गुस्सा कम नहीं हुआ इसलिए घर आ'कर थोड़ फोड़ करने लगी।
मनोरमा…. हे भगवन मैं इस लड़की का क्या करूं ? कमला तू गुस्से को काबू कर नहीं तो शादी के बाद किए करेंगी।
महेश….. क्या करेगी से क्या मतलब वहीं करेगी जो तुमने किया।
मनोरमा…. अब मैंने क्या किया जो कोमल करेगी।
महेश…. गुस्से में पति का सिर फोड़ेगी जैसे तुमने कई बार मेरा फोड़ा हैं।
कमला…. ही ही ही… मां ने अपका सिर फोड़ा दिया था। मैं नहीं जानती थी आज जान गई।
मनोरमा आगे कुछ नहीं बोली बस दोनों बाप बेटी को आंखे दिखा रहीं थी और दोनों चुप ही नहीं हो रहे थे मनोरमा को छेड़े ही जा रहे थे।
आज के लिया इतना ही आगे की कहानी अगले अपडेट से जानेंगे। यहां तक साथ बने रहने के लिए सभी पाठकों को बहुत बहुत धन्यवाद।
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