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Romance ajanabi hamasafar -rishton ka gathabandhan

Destiny

Will Change With Time
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Update - 2

किचन में बावर्ची दिन के खाने में परोसे जानें वाले विभिन्न प्रकार के व्यंजनों को बनाने में मग्न थे। सुरभि किचन के दरवाजे पर खडा हों सभी बावर्चियो को काम में मग्न देख मुस्कुराते हुए अंदर गईं। सभी बावर्चिओ में एक बुजुर्ग था। उनके पास जा'कर बोली...दादा भाई दिन के खाने में किन किन व्यंजनों को बनाया जा रहा हैं।

सुरभि को कीचन में देख बुजुर्ग वबर्ची बोला…रानी मां आप को रसोई घर में आने की क्या जरूरत आन पड़ी हम तैयारी कर तो रहे हैं।

सुरभि…दादा भाई मैं रसोई घर में क्यों नहीं आ सकती यहां रसोई घर मेरा हैं। आप से कितनी बार कहा हैं आप सब मुझे रानी मां नहीं बोलेंगे फिर भी सुनते नहीं हों।

"क्यों न बोले रानी मां आप इस जागीर के रानी हों और एक मां की तरह सभी का ख्याल रखते हों। इसलिए हम आप'को रानी मां बोलते हैं।"

सुरभि…दादाभाई आप मुझसे उम्र में बड़े हों। आप'का मां बोलना मुझे अच्छा नहीं लगता। जब राजपाठ थी तब की बात अलग थीं। अब तो राजपाठ नहीं रही और न ही राजा रानी रहे। इसलिए आप मुझे रानी मां न बोले।

बुजुर्ग…राज पाट नहीं हैं फिर भी आप और राजा जी अपने प्रजा का राजा और रानी की तरह ख्याल रखते हों हमारे दुःख सुख में हमारे कंधे से कंधा मिलाए खडे रहते हों। ऐसे में हम आपको रानी मां और राजा जी को राजाजी क्यो न बोले, रानी मां राजा रानी कहलाने के लिए राजपाठ नहीं गुण मायने रखता हैं जो आप में और राजाजी में भरपूर मात्रा में हैं।

बुजुर्ग से खुद की और पति की तारीफ सुन सुरभि मन मोहिनी मुस्कान बिखेरते हुए बोली…जब भी मैं आप'को रानी मां बोलने से मना करती हूं आप प्रत्येक बार मुझे अपने तर्कों से उलझा देते हों फिर भी मैं आप से कहूंगी आप मुझे रानी मां न बोले।

सुरभि को मुस्कुराते हुए देख और तर्को को सुन बुजुर्ग बोला....रानी मां इसे तर्को में उलझना नहीं कहते, जो सच हैं वह बताना कहते हैं। आप ही बता दिजिए हम आप'को क्या कह कर बुलाए।
सुरभि…. मैं नहीं जानती आप मुझे क्या कहकर संबोधित करेंगे। आप'का जो मन करे बोले लेकिन रानी मां नहीं!

बुजुर्ग...हमारा मन आप'को रानी मां बोलने को करता हैं। हम आप'को रानी मां ही बोलेंगे इसके लिए आप हमें दण्ड देना चाहें तो दे सकते हैं लेकिन हम आप'को रानी मां बोलना बंद नहीं करने वाले।

सुकन्या किसी काम से किचन में आ रही थीं। वाबर्चियो से सुरभि को बात करते देख किचन के बाहर खड़ी हो'कर सुनाने लगीं थीं। सुरभि की तारीफ करते हुए सुन कर सुकन्या अदंर ही अदंर जल भुन गई जब तक सहन कर सकती थीं किया जब सहन सीमा टूट गई तब रसोई घर के अंदर जाते हुए बोली.....क्यों रे बुढाऊ अब तुझे किया चाहिए जो दीदी को इतना मस्का लगा रहा हैं।

सुरभि …छोटी ये कैसा तरीका हैं एक बुजुर्ग से बात करने का दादाभाई तुमसे उम्र में बड़े हैं। कम से कम इनके साथ तो सलीके से पेश आओ।

एक नौकर के लिए सुरभि का बोलना सुकन्या से बर्दास्त नहीं हुआ इसलिए सुकन्या तेवर को ओर कड़ा करते हुए बोली….दीदी आप इस बुड्ढे का पक्ष क्यों ले रहीं हों। ये हमारे घर का एक नौकर हैं और नौकरों से ऐसे ही बात किया जाता हैं।

सुकन्या की बाते सुनकर सुरभि को गुस्सा आ गया था। सुरभि अपने गुस्से को नियंत्रित करते हुए बोली...छोटी भले ही ये हमारे घर में काम करने वाले नौकर हैं लेकिन हैं तो एक इंसान ही और दादाभाई तुमसे उम्र में बड़े हैं। तुम्हारे पिताजी के उम्र के हैं तुम अपने पिताजी के लिए भी ऐसेअभद्र भाषा बोलती हों।

एक नौकर का पिता से तुलना करना सुकन्या को हजम नहीं हुआ इसलिए सुकन्या अपने वाणी को ओर तल्ख करते हुए बोली….दीदी आप इस बुड्ढे की तुलना मेरे पिता से कर रहीं हों इसकी तुलना मेरे पिता से नहीं हों सकती।… ओ हों अब समझ आया आप इसका पक्ष क्यों ले रहीं हों आप इस बुड्ढे का पक्ष में नहीं रहेंगे तो ये बुड्ढा अपनी चिकनी चुपड़ी बातों से आप'की तारीफ नहीं करेगा आप'को तारीफे सुनने में मजा जो आता हैं।

सुकन्या की बातो को सुनकर वह मौजुद सभी को गुस्सा आ गया था। लेकिन नौकर होने के नाते कोई कुछ बोल नहीं रहा था। गुस्सा तो सुरभि को भी आ रही थीं लेकिन सुरभि बात को बढ़ाना नहीं चहती थी इसलिए चुप रहीं। पर नौकरों में से एक काम उम्र का नौकर एक गिलास पानी ले सुकन्या के पास गया। पानी का गिलास सुकन्या के देते हुए जान बुझ कर पानी साड़ी पर गिरा दिया। पानी गिरते ही सुकन्या आगबबूला हों गई फिर नौकर को कस'के एक तमाचा जड़ दिया फिर बोली…..ये क्या किया कमबख्त मेरी इतना महंगी साड़ी खराब कर दिया तेरे बाप की भी औकात नहीं इतनी महंगी साड़ी खरीद सकें।

एक ओर तमाचा लड़के के गाल पर जड़कर सुकन्या पैर पटकते हुए रूम में चाली गई। तमाचा इतने जोरदार मारा गया था। जिससे गाल पर उंगली के निशान पड़ गया साथ ही लाल टमाटर जैसा हों गया। लड़का गाल सहला रहा था। सुरभि पास आई लडके का हाथ हटा खुद गाल सहलाते हुए बोली….धीरा तुने जान बुझ कर छोटी के साड़ी पर पानी क्यों गिराया। तू समझता क्यों नहीं छोटी हमेशा से ऐसी ही हैं। कर दिया न छोटी ने तेरे प्यारे से गाल को लाल।

सुरभि का अपने प्रति स्नेह देख धीरा की आंखे नम हों गया। नम आंखो को पोंछते हुआ धीरा बोला….रानी मां मैं आप को अपमानित होते हुए कैसे देख सकता हूं। छोटी मालकिन ने हमें खरी खोटी सुनाया हमने बर्दास्त कर लिया। उन्होंने अपका अपमान किया मैं सहन नहीं कर पाया इसलिए उनके महंगी साड़ी पर जान बूझ कर पानी गिरा दिया। इसके एवज में मेरा गाल लाल हुआ तो क्या हुआ बदले में अपका स्नेह भी तो मिल रहा हैं।

सुरभि…. अच्छा अच्छा मुझे ज्यादा मस्का मत लगा नहीं तो मैं फिसल जाऊंगी तू जा थोड़ी देर आराम कर ले तेरे हिस्से का काम मैं कर देती हूं।

धीरा सुरभि के कहते ही एक कुर्सी लाकर सुरभि को बिठाते हुए बोला……रानी मां हमारे रहते आप काम करों ये कैसे हों सकता हैं। आप को बैठना हैं तो बैठो नहीं तो जाकर आराम करों खाना बनते ही अपको सुचना पहुंचा देंगे।

सुरभि…. मुझे कोई काम करने ही नहीं दे रहे हों तो यह बैठकर क्या करूंगी मैं छोटी के पास जा रही हूं।

सुरभि के जाते ही बुजुर्ग जिसका नाम रतन हैं वह बोला….छोटी मालकिन भी अजब प्राणी हैं इंसान हैं कि नागिन समझ नहीं आता। जब देखो फन फैलाए डसने को तैयार रहती हैं।

धीरा: नागीन ही हैं ऐसा वैसा नहीं विष धारी नागिन जिसके विष का काट किसी के पास नहीं हैं।

सुकन्या की बुराई करते हुऐ खाने की तैयारी करने लग जाते हैं। सुरभि सुकन्या के रूम में पहुंचकर देखती हैं सुकन्या मुंह फुलाए बैठी हैं। पास जाकर सुरभि बोली….छोटी तू मुंह फुलाए क्यो बैठी हैं। बता किया हुआ

सुरभि को देख मुंह भिचकते हुए सुकन्या बोली…..आप तो ऐसे कह रही हो जैसे आप कुछ जानती ही नही, नौकरों के सामने मेरी अपमान करने में कुछ कमी रहीं गईं थी जो मेरे पीछे पीछे आ गईं।

सुकन्या की तीखी बाते सुन सुरभि का मन बहुत आहत होती हैं फिर भी खुद को नियंत्रण में रख सुरभि बोली…….. छोटी मेरी बातों का तुझे इतना बुरा लग गया। मैं तेरे बहन जैसी हूं तू कुछ गलत करे तो मैं तुझे टोक भी नहीं सकती।

सुकन्या…. मैं सही करू या गलत आप मुझे टोकने वाली होती कौन हों? आप मेरी बहन जैसी हों बहन नहीं इसलिए आप मुझसे कोई रिश्ता जोड़ने की कोशिश न करें।

सुरभि... छोटी ऐसा न कह भला मैं तुझ'से रिश्ता क्यों न जोडू, रिश्ते में तू मेरी देवरानी हैं और देवरानी बहन समान होती हैं इसलिए मैं तूझे अपनी छोटी बहन मानती हूं।

सुकन्या…मैं अपके साथ कोई रिश्ता जोड़ना ही नहीं चाहती तो फिर आप क्यों बार बार मेरे साथ रिश्ता जोड़ना चाहती हों। आप कितनी ढिट हों बार बार अपमानित होते हों फिर भी आ जाते हों अपमानित होने। आप जाओ यह से मुझे विश्राम करने दो।

सुरभि से ओर सहन नहीं होती। आंखे सुकन्या की जली कटी बातों से नम हों गई थीं। अंचल से आंखों को पूछते हुए चाली गईं सुरभि के जाते ही सुकन्या बोली…. कुछ भी कहो सुरभि को कुछ असर ही नहीं होती। चमड़ी ताने सुन सुन कर गेंडे जैसी मोटी हों गईं कैसे इतना अपमान सह लेती हैं। कर्मजले नौकरों को भी न जानें सुरभि में क्या दिखता हैं जो रानी मां रानी मां बोलते रहते हैं।

कुछ वक्त ओर सुकन्या अकेले अकेले बड़बड़ाती रहती हैं फिर बेड पर लेट जाती हैं। सुरभि रूम में आ बेड पर लेट जाती हैं और सुबक सुबक रोने लगती हैं। सुरभि को आते हुए एक बुजुर्ग महिला देख लेती हैं जो सुरभि के पीछे पीछे उसके कमरे तक आ जाती हैं। सुरभि को रोता हुए देख पास आ बैठते हुए बोली…. रानी मां आप ऐसे क्यो लेटी हों? आप रो क्यों रहीं हों?

सुरभि बूढ़ी औरत की बात सुनकर उठकर बैठ जाती हैं फिर बहते आशु को पोंछते हुए बोली…... दाई मां आप कब आएं?

दाई मां… रानी मां अपको छोटी मालकिन के कमरे से निकलते हुए देखा आप रो रहीं थी इसलिए मैं अपके पीछे पीछे आ गई। आज फ़िर छोटी मालकिन ने कुछ कह ।

सुरभि…. दाई मां मैं इतनी बूरी हूं जो छोटी मुझे बार बार अपमानित करती हैं।

दाई मां… बुरे आप नहीं बुरे तो वो हैं जो आप'की जैसी नहीं बन पाती तो अपनी भड़ास आप'को अपमानित कर निकलते हैं।

सुरभि… दाई मां मुझे तो लगता मैं छोटी को टोककर गलत करती हूं। मैं छोटी को मेरी छोटी बहन मानती हूं इस नाते उसे टोकटी हूं लेकिन छोटी तो इसका गलत मतलब निकल लेती हैं।

दाई मां... रानी मां छोटी मालकिन ऐसा जान बूझ कर करती हैं। जिससे आप परेशान हो जाओ और महल का भार उन्हे सोफ दो फिर छोटी मालकिन महल पर राज कर सकें।

सुरभि... ऐसा हैं तो छोटी को महल का भार सोफ देती हूं। कम से कम छोटी मुझे अपमान करना तो छोड़ देगी।

दाई मैं…. आप ऐसा भुलकर भी न करना नहीं तो छोटी मालकिन अपको ओर ज्यादा अपमानित करने लगेगी फिर महल की शांति जो अपने सूझ बूझ से बना रखा हैं भंग हो जाएगी। आप उठिए मेरे साथ कीचन में चलिए नहीं तो आप ऐसे ही बहकी बहकी बाते करते रहेंगे और रो रो कर सुखी तकिया भिगोते रहेंगे।

सुरभि जाना तो नहीं चहती थी लेकिन दाई मां जबरदस्ती सुरभि को अपने साथ कीचन ले गई। जहां सुरभि वाबर्चियो के साथ खाना बनने में मदद करने लगी। खाना तैयार होने के बाद सुरभि सभी को बुलाकर खाना खिला देती हैं और ख़ुद भी खा लेती हैं। खाना खाकर सभी अपने अपने रूम में विश्राम करने चले गए।

कलकत्ता के एक आलीशान बंगलों में एक खुबसूरत लडकी चांडी का रूप धारण किए थोड़ फोड़ करने में लगी हुई थीं आंखें सुर्ख लाल चहरे पे गुस्से की लाली आंखों में काजल इस रूप में बस दो ही कमी थीं। एक हाथ में खड्ग और एक हाथ में मुंड माला थमा दिया जाय तो शख्सत भद्रा काली का रूप लगेंगी। लड़की कांच के सामानों को तोड़ने में लगी हुई थीं। एक औरतों रुकने को कह रहीं थीं लेकिन रूक ही नहीं रहीं थीं। लड़की ने हाथ में कुछ उठाया फिर उसे फेकने ही जा रहीं थीं कि औरत रोकते हुए बोली…… नहीं कमला इसे नहीं ये बहुत महंगी हैं। तूने सब तो तोड़ दिया इसे छोड़ दे मेरी प्यारी बच्ची।

कमला….. मां आप मेरे सामन से हटो मैं आज सब तोड़ दूंगी।

औरत जिनका नाम मनोरमा हैं।

मनोरमा:- अरे इतना गुस्सा किस बात की अभी तो कॉलेज से आई है। आते ही तोड़ फोड़ करने लग गई। देख तूने सभी समानों को तोड दिया। अब तो रूक जा मेरी लाडली मां का कहा नहीं मानेगी।

कमला….. कॉलेज से आई हूं तभी तो तोड़ फोड़ कर रहीं हूं। आप मुझे कितना भी बहलाने की कोशिश कर लो मैं नहीं रुकने वाली।

मनोरमा:- ये किया बात हुईं कॉलेज से आकर विश्राम करते हैं। तू तोड़ फोड़ करने लग गई। ये कोई बात हुई भला।

कमला…. मां अपको कितनी बार कहा था अपने सहेलियों को समझा दो उनके बेटे मुझे रह चलते छेड़ा न करें आज भी उन कमीनों ने मुझे छेड़ा उन्हे आप'के कारण ज्यादा कुछ कह नहीं पाई उन पर आई गुस्सा कही न कहीं निकलना ही था।

मनोरमा… मैं समझा दूंगी अब तू तोड़ फोड़ करना छोड़ दे।

घर का दरवजा जो खुला हुआ था। महेश कमला के पापा घर में प्रवेश करते हैं । घर की दशा और कमला को थोड़ फोड़ करते देख बोला…मनोरमा कमला आज चांदी क्यों बनी हुई हैं? क्या हुआ?

मनोरमा:- सब आपके लाड प्यार का नतीजा हैं दुसरे का गुस्सा घर के समानों पर निकाल रहीं हैं सब तोड़ दिया फिर भी गुस्सा कम नहीं हों रही।

महेश….. ओ तो गुस्सा निकाल रहीं हैं निकल जितना गुस्सा निकलना है निकाल जितना तोड फोड़ करना हैं। काम पड़े तो मैं और ला देता हूं।

मनोरमा…. आप तो चुप ही करों।
कमला का हाथ पकड़ खिचते हुए सोफे पर बिठाया फिर बोली .. तू यहां बैठ हिला तो मुझसे बूरा कोई नहीं होगा।

कमला का मन ओर तोड़ फोड़ करने का कर रहा था। मां के डांटने पर चुप चाप बैठ गई महेश आकर कमला के पास बैठा फ़िर पुछा…… कमला बेटी तुम्हें इतना गुस्सा क्यों आया? कुछ तो कारण रहा होगा?

कमला….. रस्ते में कालू और बबलू मुझे छेड़ रहे थे। चप्पल से उनका थोबडा बिगड़ दिया फिर भी मेरा गुस्सा कम नहीं हुआ इसलिए घर आ'कर थोड़ फोड़ करने लगी।

मनोरमा…. हे भगवन मैं इस लड़की का क्या करूं ? कमला तू गुस्से को काबू कर नहीं तो शादी के बाद किए करेंगी।

महेश….. क्या करेगी से क्या मतलब वहीं करेगी जो तुमने किया।

मनोरमा…. अब मैंने क्या किया जो कोमल करेगी।

महेश…. गुस्से में पति का सिर फोड़ेगी जैसे तुमने कई बार मेरा फोड़ा हैं।

कमला…. ही ही ही… मां ने अपका सिर फोड़ा दिया था। मैं नहीं जानती थी आज जान गई।

मनोरमा आगे कुछ नहीं बोली बस दोनों बाप बेटी को आंखे दिखा रहीं थी और दोनों चुप ही नहीं हो रहे थे मनोरमा को छेड़े ही जा रहे थे।


आज के लिया इतना ही आगे की कहानी अगले अपडेट से जानेंगे। यहां तक साथ बने रहने के लिए सभी पाठकों को बहुत बहुत धन्यवाद
🙏🙏🙏🙏🙏🙏
 
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Destiny

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Congratulations brother for new story. Aapki last story padhi thi maine par tab account nahi tha so comment nahi kar paya. Par definitely bahut hi umda likhte hain aap. Asha hai ki yeh kahani bhi behatreen hogi.

Waiting for Update...
शुक्रिया लियोन32 जी

पवरिवार के सारे सदस्य एक जैसे नहीं होते और जहां अपर धन संपत्ति हों वहा लालच में कोई न गलता रास्ता चुन लेता हैं।

राना जी की गलती के जानने के लिए थोडवेट करना पड़ेगा।

Areee galti se maine Raavan ko raghuveer ka bhai samjha tha
Nice and beautiful start of the story...
Nice intro
Congratulations for new thread🎊
Bahot behtareen
Shaandaar update bhai
:congrats: For completed 1k views on your story thread....
nice update
to yahan par kahani ko shuru se shuru kiya gaya hai
ummid hai ajnabi hamsafar mein jo rahasmayi patr the unka ullekh is kahani mein milega
naye kirdaar bhavisya mein kya rang late hain iska bhi intezaar rahega
waiting for next update
:congrats: For starting new story thread.
:congrats: for new story...
हम पिछले 3-4 दिन से उस कहानी पर जा रहे हैं लेकिन उसमें टिप्पणी नहीं कर पा रहे हैं। मुझे समझ मे नहीं आ रहा था कि इतनी अच्छी कहानी को pouse क्यों किया गया।।
अतीत लंबा होता भी तो भी कोई दिक्कत नहीं होने वाली थी, क्योंकि कहानी बहुत ही अच्छी थी।

बहरहाल आपने जो निर्णय लिया है सही होगा।।
अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखिये और जल्दी से कहानी पहले की तरह शुरू कीजिए।।
waiting for next

अगला अपडेट पोस्ट कर दिया हैं।
 

Naina

Nain11ster creation... a monter in me
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शुक्रिया naina Ji

तीनों मां बेटा और बाप कितना हरामी इसका एक नतीजा तो अभी दे दिया हैं बाकी ओर भी सामने आयेंगे

आपके दिए सुझाव विचाराधीन हैं लेकिन मैं खाऊंगा आप ही राम स्वरूप के जगह कोई दूसरा नम सूजा दीजिए।

Apasyu rakh dijiye naam plz plz plz plz :pray:
 

Jaguaar

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अजनबी हमसफ़र - रिश्तों का गठबंधन

Update - 2

सुरभि किचन में जाती हैं। जहां वाबर्ची दिन के खाने के लिए विभिन्न प्रकार की व्यंजन बाने की तैयारी कर रहे थे। उन्हें तैयारी करते हुए देखकर सुरभि, उन वाबर्चिओ में एक बुजुर्ग वबर्ची से बोले…."दादा भाई ( बड़े भाई को बंगाली भाषा में दादा बोला जाता हैं मैं यहां दादा के साथ भाई जोड़कर लिखूंगा) दिन के खाने में किन किन व्यंजनों को बनाया जा रहा हैं।" सुरभि को रसोई घर में देखकर बुजुर्ग वबर्ची बोले…" रानी मां आप को रसोई घर में आने की क्या जरूरत आन पड़ी हम कर तो रहे हैं तैयारी।" बुजुर्ग की बातों को सुनाकर सुरभि बोली…"दादा भाई मैं रसोई घर में क्यों नहीं आ सकती यहां रसोई घर मेरी हैं। आप से कितनी बार कहा हैं आप सब मुझे रानी मां नहीं बोलेंगे।" बुजुर्ग सुरभि की बातो को सुनाकर मुस्कुराते हुए बोले…."क्यों न बोले रानी मां आप इस जागीर के रानी हों और एक मां की तरह सब का ख्याल रखते हों। इसलिए हम आपको रानी मां बोलते हैं"बुजुर्ग के तर्क को सुनाकर सुरभि बोले…"दादाभाई आप मुझसे उम्र में बहुत बड़े हों। आप मुझे मां बोलते हों जो मुझे अच्छा नहीं लगती। जब राज पाट थी तब की बात अलग थीं अब तो राज पाट नहीं रही और न ही राजा रानी रहे।" बुजुर्ग सुरभि की बातों को सुनाकर अपना तर्क देते हुए बोले…"राज पाट नहीं हैं फिर भी आप और राजा जी अपने प्रजा का राजा और रानी की तरह ख्याल रखते हों हमारे दुःख सुख में हमारे कंधे से कंधा मिलाए खडे रहते हों। ऐसे में हम आपको रानी मां और राजा जी को राजाजी क्यो न बोले, एक बात ओर बता दु राजा रानी कहलाने के लिए राज पाट नहीं गुण मायने रखता हैं जो आप में ओर राजाजी में भरपूर मात्रा में हैं।" बुजुर्ग के तर्क, अपनी और अपने पति की तारीफ सुनाकर सुरभि मन मोहिनी मुस्कान बिखेरते हुए बोली…"जब भी मैं अपको रानी मां बोलने से मना करती हूं आप हर बार मुझे अपने तर्कों से उलझा देते हों फिर भी मैं आप से कहूंगी आप मुझे रानी मां न बोले" बुजुर्ग सुरभि को मुस्कुराते हुए देखकर और उनके तर्को को सुनाकर बोले…." रानी मां इसे तर्को में उलझना नहीं कहते, जो सच हैं वह बताना कहते हैं। आप ही बता दिजिए हम आपको क्या कह कर बुलाए।" बुजुर्ग के तर्क सुनाकर सुरभि बोली…."मुझे नहीं पता आपका जो मन करे वो बोले लेकिन रानी मां नहीं" बुजुर्ग बोले…"हमारा मन अपको रानी मां बोलने को करता हैं और हम आपको रानी मां ही बोलेंगे इसके लिए आप हमें दण्ड देंगे तो आप हमें दण्ड दे सकते हैं लेकिन हम आपको रानी मां बोलना बंद नहीं करेंगे" सुरभि कुछ बोलती उससे पहले रसोई घर के बाहर से किसी ने बोला…."क्यों रे बुढाऊ अब तुझे किया चाहिए जो दीदी को इतना मस्का लगा रहीं हैं" रसोई घर के बाहर सुकन्या खड़ी होकर इनकी सारी बाते सुन रहीं थीं। सुरभि की तारीफ करते हुए सुनाकर सुकन्या अदंर ही अदंर जल भुन गई जब तक सुकन्या सहन कर सकती थीं किया जब उसकी सहन सीमा टूट गई तब रसोई घर के अंदर आते हुए बोली, सुकन्या का बुजुर्ग से बदसलूकी से बोलना सुरभि से सुना नहीं गया तब वह बोलीं…." छोटी ये कैसा तरीका हैं एक बुजुर्ग से बात करने का दादाभाई तुमसे उम्र में बड़े हैं। काम से काम इनके साथ तो सलीके से पेश आओ।" एक नौकर के लिए सुरभि का बोलना सुकन्या से बर्दास्त नहीं हुआ इसलिए सुकन्या अपने तेवर को ओर कड़ा करते हुए बोली…." दीदी आप इस बुड्ढे का पक्ष क्यों ले रहीं हों। ये हमारे घर का एक नौकर हैं और नौकरों से ऐसे ही बात किया जाता हैं।" सुकन्या की बाते सुनाकर सुरभि को गुस्सा आ जाता हैं। सुरभि अपने गुस्से को नियंत्रित करते हुए बोलती हैं…" छोटी भले ही ये हमारे घर में काम करते हैं लेकिन हैं तो एक इंसान ही और दादाभाई तुमसे उम्र में बड़े हैं और तुम्हारे पिताजी के उम्र की हैं तुम अपने पिताजी के लिए भी ऐसे अभद्र भाषा बोलते हों।" एक नौकर का अपने पिता से तुलना करना सुकन्या को हजम नहीं हुआ इसलिए सुकन्या अपने वाणी को ओर तल्ख करते हुए बोली…." दीदी आप इस बुड्ढे की तुलना मेरे पिता से कर रहे हों इसकी तुलना मेरे पिता से नहीं हों सकती।… ओ हों अब समझ आया आप इसका पक्ष क्यों ले रहीं हों आप इस बुड्ढे की पक्ष नहीं लोगी तो ये बुड्ढा अपनी चिकनी चुपड़ी बातों से आपकी तारीफ नहीं करेगा अपको अपनी तारीफे सुनने में मजा जो आती हैं।" सुकन्या की बातो को सुनाकर वह मौजुद सब को गुस्सा आ जाता हैं। लेकिन नौकर होने के नाते कोई कुछ नहीं बोल पता हैं। गुस्सा तो सुरभि को भी आ रही थीं लेकिन सुरभि बात को बड़ाना नहीं चहती थी इसलिए चुप रहीं। लेकिन नौकरों में से एक काम उम्र का नौकर एक गिलास पानी लेकर सुकन्या के पास गया। पानी का गिलास सुकन्या के देते हुए जान बुझ कर पानी सुकन्या के साड़ी पर गिरा दिया। पानी गिरते ही सुकन्या आगबबूला हों गई ओर नौकर को कसके एक तमाचा जड़ दिया और बोली….." ये क्या किया कमबख्त मेरी इतना महंगी साड़ी खराब कर दिया तेरे बाप की भी औकात नहीं हैं इतनी महंगी साड़ी खरीदने कि।" सुकन्या एक ओर तमाचा लड़के के गाल पर जड़कर पैर पटकते हुए अपने रूम में चाली गई। लड़के को तमाचा इतने जोरदार लगाया गया जिससे लड़के का गाल लाल हों गया। लड़का गाल सहला रहा था की सुरभि उसके पास आई उसके दुसरे गाल को सहलाते हुए बोली…." धीरा तुने जान बुझ कर छोटी के साड़ी पर पानी क्यों गिराया। तू समझता क्यों नहीं छोटी हमेशा से ऐसी ही हैं। कर दिया न छोटी ने तेरे प्यारे से गाल को लाल।"


सुरभि का अपने प्रति स्नेह देखकर धीरा की आंखे नम हों गया। धीरा नम आंखो को पोंछते हुआ बोला….


धीरा….. रानी मां मैं आप को अपमानित होते हुए कैसे देख सकता हूं। छोटी मालकिन ने हमें खरी खोटी सुनाया हमने बर्दास्त कर लिया लेकिन जब उन्होंने अपका अपमान किया मैं यह सहन नहीं कर पाया इसलिए उनके महंगी साड़ी पर जान बूझ कर पानी गिरा दिया। इसके एवज में मेरा गाल लाल हुआ तो क्या हुआ बदले में अपका स्नेह भी तो मिला।


सुरभि…. अच्छा अच्छा मुझे ज्यादा मस्का मत लगा नहीं तो मैं फिसल जाऊंगी तू जा थोड़ी देर आराम कर ले तेरे हिस्से का काम मैं कर देती हूं।


धीरा सुरभि के कहते ही एक कुर्सी लाकर सुरभि को बिठाते हुए बोला……


धीरा….. रानी मां हमारे रहते आप काम करों ये कैसे हों सकता हैं। आप को बैठना हैं तो यह बैठो नहीं तो जाकर आराम करों खाना बनते ही अपको ख़बर पहुंचा देंगे।


सुरभि…. मुझे कोई काम करने ही नहीं दे रहे हों तो यह बैठकर क्या करूंगी मैं छोटी के पास जा रही हूं।


सुरभि के जाते ही बुजुर्ग जिसका नाम रतन हैं वह बोलता हैं….


रतन…. ये छोटी मालकिन पुरा का पुरा नागिन हैं जब देखो फन फैलाए खड़ी रहती हर वक्त डसने को तैयार रहती हैं।


धीरा:- अरे चाचा धीरे बोलो नहीं तो फिर से डसने आ जायेंगे।


ऐसे चुहल करते हुए खाने की तैयारी करने लगते हैं। सुरभि सुकन्या के रूम में पहुंचकर देखती हैं सुकन्या मुंह फुलाए बैठी हैं। उसको देखकर सुरभि बोलती हैं…..


सुरभि:- छोटी तू मुंह फुलाए क्यो बैठी हैं।


सुकन्या सुरभि के देखकर अपना मुंह भिचकते हुए बोली…..


सुकन्या…. आप तो ऐसे कह रही हो जैसे आप कुछ जानती ही नही, नौकरों के सामने मेरी अपमान करने में कुछ कमी रहीं गईं थी जो मेरे पीछे पीछे यह तक आ गईं।


सुकन्या की तीखी बाते सुनाकर सुरभि का मन बहुत आहत होती हैं फिर भी खुद को समाहल कर सुकन्या को समझाते हुए बोलती हैं…….


सुरभि…. छोटी मेरी बातों का तुझे इतना बुरा लग गई। मैं तेरे बहन जैसी हूं तू कुछ गलत करे तो मैं तुझे टोक भी नहीं सकती।


सुकन्या…. मैं सही करू या गलत आप मुझे टोकने वाली कौन होती हों। आप मेरी बहन जैसी हों बहन नहीं इसलिए आप मुझसे कोई रिश्ता जोड़ने की कोशिश न करें।


सुरभि:- छोटी ये क्या बहकी बहकी बाते कर रहीं हैं। मैं तुझे अपना छोटी बहन मानती हूं।


सुकन्या:- आप कितनी ढिट हों बार बार अपमानित होते हों फिर भी आ जाते हों दुबारा अपमानित हों। आप जाओ यह से मुझे विश्राम करने दो।


सुरभि से ओर सहन नहीं होती। सुरभि की आंखे सुकन्या की जली कटी बातों से नम हों जाती हैं। सुरभि अंचल से आंखों को पूछते हुए चाली जाती हैं। सुरभि के जाते ही सुकन्या बोलती हैं……


सुकन्या…. कुछ भी कहो इस सुरभि को कुछ असर ही नहीं होती। इसकी चमड़ी तो गेंडे के चमड़ी जैसी मोटी हैं कैसे इतना अपमान सह लेती हैं। इन कर्मजले नौकरों को इस सुरभि में क्या दिखता हैं जो रानी मां रानी मैं बोलकर अपना गला सुख लेटी हैं।


सुकन्या कुछ वक्त ओर अकेले अकेले बड़बड़ाती रहती हैं। फिर बेड पर लेट जाती हैं। सुरभि आकर अपने कमरे में बेड पर उल्टी होकर लेट जाती हैं और रोने लगती हैं। सुरभि को आते हुए एक बुजुर्ग महिला देख लेती हैं जो सुरभि के पीछे पीछे उसके कमरे तक आ जाती हैं। सुरभि को रोता हुए देखकर उसके पास बैठते हुए बोलती हैं……


बूढ़ी औरत…. रानी मां आप ऐसे क्यो लेटी हों? आप रो क्यों रहीं हों?


सुरभि बूढ़ी औरत की बात सुनाकर उठकर बैठ जाती हैं और बहते आशु को पोंछते हुए बोलती हैं…..


सुरभि…... दाई मां आप कब आएं?


दाई मां… रानी मां अपको छोटी मालकिन के कमरे से निकलते हुए देखा आप रो रहीं थी इसलिए मैं अपके पीछे पीछे आ गई। आज फ़िर छोटी मालकिन ने कुछ कह हैं।


सुरभि…. दाई मां मैं इतनी बूरी हूं जो छोटी मुझे बार बार अपमानित करती रहती हैं।


दाई मां… बुरे आप नहीं बुरे तो वो हैं जो आपकी जैसी नहीं बन पाती तो अपनी भड़ास अपको अपमानित करके निकलते हैं।


सुरभि… दाई मां मुझे तो लगता मैं छोटी को टोककर गलत करती हूं। मैं छोटी को मेरी छोटी बहन मानती हूं इस नाते उसे टोकटी हूं लेकिन छोटी तो इसका गलत मतलब निकल लेती हैं।


दाई मां:- राना मां छोटी मालकीन ऐसा जान बूझ कर करती हैं। जिससे आप परेशान होकर महल का सारा बार उन्हे सोफ दो और छोटी मालकिन इस महल पार राज कर पाए।


सुरभि... ऐसा हैं तो छोटी को महल का सारा भार सोफ देती हूं। काम से काम छोटी मुझे अपमान करना तो छोड़ देगी।


दाई मैं…. आप ऐसा भुलकर भी मत करना नहीं तो छोटी मालकिन अपको ओर ज्यादा अपमानित करेंगी और महल की शांति को भंग कर देगी। अब आप मेरे साथ रसोइ घर में चलिए नहीं तो आप ऐसे ही बहकी बहकी बाते करते रहेंगे।


सुरभि जाना तो नहीं चहती थी लेकीन दाई मां जबरदस्ती सुरभि को रसोई घर ले गई। जहां सुरभि वाबर्चियो के साथ खाना बनने में मदद करने लगी। खाना तैयार होने के बाद सुरभि सब को बुलाकर खाना खिलाती हैं और ख़ुद भी खाती हैं। राजेन्द्र और उसका भाई रावण दोनों वह मौजुद नहीं थे। तो उनको छोड़कर बाकी सब खाना खाकर अपने अपने रूम में विश्राम करने चले जाते हैं।


कलकत्ता के एक आलीशान बंगलों में एक खुबसूरत लडकी चांडी का रूप धारण किए थोड़ फोड़ करने में लागी हुई हैं। उसकी आंखें सुर्ख लाल चहरा गुस्से से लाला आंखों में काजल उसके इस रूप में बस दो ही कमी हैं। उसके एक हाथ में खड्ग और एक हाथ में मुंड माला पकड़ा दिया जाय तो शख्सत भद्रा काली लगेंगी। लड़की कांच के सामानों को तोड़ने में लागी हुई हैं। एक औरतों रुकने को कह रहे हैं लेकिन रूक ही नहीं रहीं। तभी लड़की ने अपनी हाथ में कुछ उठाया और उसे फेकने ही जा रहीं थीं कि औरत रोकते हुए बोली….


औरत…… नहीं कमला इसे नहीं ये बहुत महंगी हैं। तूने सब तो तोड़ दिया इसे छोड़ दे मेरी प्यारी बच्ची।


कमला….. मां आप मेरे सामन से हटो मैं आज सब तोड़ दूंगी।


औरत जिनका नाम मनोरमा हैं।


मनोरमा:- अरे उतना गुस्सा किस बात की अभी तो कॉलेज से आई है। आते ही तोड़ फोड़ करने लग गई। देख तूने घर का सारा समान तोड दिया।


कमला….. कॉलेज से आई हूं तभी तो तोड़ फोड़ कर रहीं हूं।


मनोरमा:- ये किया बात हुईं कॉलेज से आकर विश्राम करते हैं और तू तोड़ फोड़ करने लग गई।


कमला…. मां अपको कितनी बार कहा हैं आप अपने सहेलियों को समझा दो उनके बेटे मुझे रह चलते छेड़ा न करें आज भी उन कमीनों ने मुझे छेड़ा उन्हे आपके कारण कुछ कह नहीं पाई उनका गुस्सा कही न कहीं निकलना ही था।


मनोरमा… मैं समझा दूंगी अब तू तोड़ फोड़ करना छोड़ दे।


घर का दरवजा जो खुला हुआ था। महेश कमला के पापा घर में प्रवेश किया । घर की दासा और कमला को थोड़ फोड़ करते हुए देखकर बोले……


महेश….. मोना (मनोरमा) कमला आज चांदी क्यों बनी हुई हैं।


मनोरमा:- सब आपके लाड प्यार का नतीजा हैं दुसरे का गुस्सा घर के सामने को तोड़ कर निकल रहीं हैं।


महेश….. ओ तो गुस्सा निकाल रहीं हैं तो निकल अपना गुस्सा जितना तोड़ना हैं तोड़ काम पड़े तो मैं और ला देता हूं।


मनोरमा…. आप तो चुप ही करों। कमला का हाथ पकड़कर खिचते हुए सोफे पर बिठाया हुए बोला .. तू या बैठ यह से हिला तो मुझसे बूरा कोई नहीं होगा।


कमला चुप चाप सोफे पर बैठ गई। मनोरमा भी दूसरे सोफे पर बैठ गई। महेश आकर कमला के पास बैठा और पुछा……


महेश…. कमला बेटी तुम्हें इतना गुस्सा क्यों आया? कुछ तो कारण होगा?


कमला….. रस्ते में कालू और बबलू मुझे छेड़ रहे थे। चप्पल से उनका थोबडा बिगड़ दिया फिर भी मेरा गुस्सा कम नहीं हुआ इसलिए घर आकर थोड़ फोड़ करने लागी।


मनोरमा…. हे भगवन मैं इस लड़की का क्या करूं ? कमला तू अपनी गुस्से को काबू कर नहीं तो शादी के बाद किए करेंगी


महेश….. क्या करेगी से क्या मतलब बही करेगी जो तुमने किया।


मनोरमा…. अब मैंने किया किए जो कोमल करेगी।


महेश…. गुस्से में आपने पति का सार फोड़ेगी जैसे तुमने कई बार मेरा फोड़ा हैं।


कमला…. ही ही ही… मां ने अपका सर फोड़ा है मुझे पता नहीं थी आज पाता चल गईं।


मनोरमा कुछ नहीं बोल रहीं थी बस दोनों बाप बेटी को आंखे दिखा रहीं थी और ये दोनों चुप ही नहीं हो रहे थे मनोरमा को छेड़े ही जा रहे थे। आज के लिया इतना ही आगे की कहानी अगले अपडेट में बताउंगा।

Awesome Updatee

Sukanya ne ek baat toh sahi ki aakhir Surbhi kisliye itna apmaan sehan kar rahi hai. Sidha 2 thappad lagaye aur nikal de ghar ke bahar. Jab saamne wala aapke pyaar aur rishte ko hi bhul jaaye toh aap kyo uss pyaar aur rishte ko pakad ke baithe ho.

Yeh Sukanya Raavan aur Ram Swaroop teeno laato ke bhoot hai inse baat sirf aur sirf laat aur ghuso se hi karni chahiye.

Idher Kamla ki bhi entry hogyi hai. Aur woh bahot gusse wali hai jise baap ke laad pyaar ne aur jyaada bhadhawa de diya hai.
 

Death Kiñg

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अजनबी हमसफ़र- रिश्तों का गठबंधन


Update - 1



पहाड़ी घटी में बसा एक गांव जो चारों ओर खुबसुरत पहाड़ियों से घिरा हुआ हैं। गांव के चौपाल पर एक जवान लड़का पुलिसिया जीप के बोनट पर बैठा हैं। लड़के के पीछे दो मुस्टंडे, हाथ में दो नाली बंदूक लिए खड़ा हैं। दोनों इतने मुस्तैदी से खड़े हैं कि थोडा सा भी हिल डोल होते ही तुरंत एक्शन में आ कर सामने वाले को ढेर कर दे। उनके सामने एक बुजुर्ग शख्स हाथ जोड़े खड़ा हैं। शख्स के पीछे कईं लोग हाथ जोड़े अपने घुटनों पर बैठ हैं। सब डर से थर थर कांप रहे हैं। सबको कांपते हुए देखकर लड़का अटाहास करते हुए बोला… "क्यों रे मुखिया सुना है तू कर भरने से मना कर रहा हैं।" मुखिया जो पहले से ही डर से कंपकंपा रहे हैं। अब तो उससे बोला भी नहीं जा रहा हैं। मुखिया परिस्थिती को भाप कर समझ गया कुछ नहीं बोला तो सामने खडे मुस्टंडे पल भर में उसके धड़ से प्राण पखेरू को आजाद करे देंगे और कुछ गलत बोला तो भी पल भार में उसके शरीर को जीवन विहीन कर देंगे। इसलिए मुखिया अपने वाणी में शालीनता का समावेश करते हुए बोला…." माई बाप हम ने अपना सारा कर भर दिया हैं। आप ओर कर मांगेंगे तो हमे अपने बाल बच्चों को भूखा रखना पड़ेगा। हममें ओर कर भरने की समर्थ नहीं हैं।" मुखिया की बातों को सुनाकर लड़का रूखे तेवर से बोला…."जो कर तुम लोगों ने भरा वह तो सरकारी कर था। मेरा कर कौन भरेगा? लड़के की बातों को सुनाकर मुखिया सोच में पड गया अब बोले तो क्या बोले फिर भी उसे बोलना ही था नहीं बोला तो उसके साथ कुछ भी हों सकता हैं। इसलिए मुखिया डरते डरते बोला…." माई बाप इस बार बागानों से उत्पादन कम हुआ हैं। सरकारी कर भरने के बाद जो कुछ भी हमारे पास बचा हैं उससे हमारे घर का खर्चा चला पाना भी सम्भव नहीं हैं ऐसे में आप ओर कर भरने को कहेंगे तो हमारे घरों में रोटी के लाले पड़ जायेंगे।" मुखिया की बातों को सुनाकर लड़का गुस्से से गरजते हुए बोला…"सुन वे जमीन पर रेगने वाले कीड़े मेरा नाम राम स्वरूप है। मेरा नाम ही सिर्फ राम हैं, राम का कोई गुण मुझमें मौजुद नहीं हैं। इसलिए मैं तुम सब को कल तक का समय देता हूं। इस समय के अदंर मेरा कर मुझ तक नहीं पहुंचा तो तुम्हारे घर की बहू बेटियो के इज्जत को नीलाम होने से नहीं बचा पाओगे।" अपने बहु बेटियो के इज्जत नीलाम होने की बात सुनाकर मुखिया असहाय महसूस कर रहा हैं। उसे अपने घर की इज्जत बचाने का एक ही रास्ता दिखता हैं और वह हैं रामस्वरूप की बातों को मान लेना। इसलिए मुखिया दीन हीन भाव से बोलता हैं…" माई बाप हमे कुछ दिन का महोलत दीजिए हम कर भर देंगे।"


मुखिया की बाते सुनाकर राम स्वरूप हटाहास करते हुए बोला…." तुम्हें मोहलत चाहिए दिया जितनी मोहलत चाहिए ले लो लेकिन जब तक तुम कर नहीं भर देते तब तक अपने घरों से रोज एक लड़की मेरे डाक बंगले में भेजते रहना एक रात की दुल्हन बनकर।"और अपने साथियों से बोला…" चलो रे सब घड़ी में बैठो नहीं तो ये कीड़े मकोड़े मेरे दिमाग़ का गोबर बाना कर अपने आंगन को लीप देंगे। सुन वे मुखिया कल तक कर पहुंच जाना चाहिए नहीं तो जितना लेट करेगा उतना ही अपने बहु बेटियो की इज्जत लुटवाता रहेगा और यह की बाते राना जी के कान तक नहीं पहुंचना चाहिए नहीं तो तुम सब अपने जान से जाओगे और तुम्हारे बहु बेटियां अपनी अवरू मेरे मुस्टांडो से नुचबाते नुचबाते मर जाएगी।" राम स्वरूप अपने मुस्टांडो के साथ चला गया। उसके जाते ही बैठें हुए भीड़ में से एक बोला…." मुखिया जी ऐसा कब तक चलेगा। हमे कब तक एक ही कर दो बार भरना पड़ेगा।" मुखिया बोलता हैं…" शायद जीवन भर इस पापी से अपने घरों की मन सम्मान बचाने के लिए एक कर दो बार भरना पड़ेगा।" तभी भीड़ में से एक ओर व्यक्ति बोला…" हम कब तक इसका ओर इसके बाप का जुल्म सहते रहेंगे। हम राजा जी को बोल क्यों नहीं देते।"


मुखिया बोला…."अरे ओ भैरवा तू बावला हों गया हैं सुना नहीं ये पापी क्या कह कर गया हैं। यहां की भनक राजाजी की कानों तक पहुंचा तो दोनों बाप बेटे हमें मारकर हमारे बहु बेटियों के आबरू से तब तक खेलते रहेंगे जब तक हमारी बहु बेटियां जीवित रहेंगी।" मुखिया की बातों को सुनाकर भैरवा बोला…" मुखिया जी हमने अगर इस पापी की मांग को पुरा किया तो हम तो भूखे पेट ही मर जायेंगे।" मुखिया भैरवा ओर बाकी सब को समझते हुए बोला…."ऐसा कुछ भी नहीं होगा। हर महीने महल से राजाजी हमारे भरण पोषण के लिए अनाज, कपडे और बाकी जरूरी सामान भिजवाते हैं। उससे हमारा गुजर बसर चल जाएगा। अब तुम सब जाओ और कल इस पापी तक उसका कर पहूचाने की तैयारी करों।"


सब दुखी मन से अपने अपने घरों को चल देत हैं। मुखिया भी उनके पीछे पीछे चला जाता हैं। दूसरी ओर पहाड़ की चोटी पर बाना आलीशान महल जिसकी भव्यता को देखकर ही अंदाजा लग जाता हैं। यह रहने वाले लोगों का जीवन तमाम सुख सुविधाओं से परिपूर्ण हैं। महल के अदंर राजेंद्र प्रताप राना अपने बेटे रघु को बुला रहें हैं। उनकी आवाज में इतनी गरजना हैं मानो कोई बब्बर शेर वादी को दहाड़ कर बता रहे हों । मैं यह का राजा हूं। राजेंद्र जी के बुलाने से रघु अपने रूम से दौड़ कर आते हैं और राजेंद्र के सामने सर झुकाए खड़ा होंकर बोलता है…." अपने बुलाया पापाजी" राजेंद्र जी अपने बेटे को कांपते हुए देखकर बोलते हैं…." हां मैंने बुलाया लेकिन तुम ऐसे कांप क्यों रहे हों।" रघु कुछ नहीं बोलता चुपचाप खड़ा रहता हैं। रघु को बोलता न देखकर वहां बैठे रघु की मां सुरभि बोलती हैं…." रघु बेटा तू मेरे पास आ, आप भी न मेरे बेटे को हर बार डरा देते हों। राज पाट चाली गईं लेकिन राजशाही अकड़ अब तक नहीं गई।" रघु चुपचाप अपने मां के पास जाकर बैठ जाता हैं। राजेंद्र जी अपने पत्नी की बात सुनाकर मुस्कुराते हुए बोलते हैं…" अरे सुरू (सुरभि) राज पाट भले ही चाली गई हों लेकिन राजशाही हमारे खून में हैं। खून को कैसे बदले वो तो अपना रंग दिखायेगा ही।" सुरभि अपने बेटे का सार सहलाते हुए बोले.." अपको अपने खून का जो भी रंग दिखाना हैं घर से बाहर दिखाओ। आप के करण मेरा लाडला बिना कोई गलती किए ऐसे डर गया हैं जैसे दुनियां भर का सारा गलत काम इसने किया हैं।"


सुरभि की बाते सुनाकर राजेंद्र की चहरे पर आया हुआ मुस्कान ओर गहरा हों गया हैं। राजेंद्र जी अपने जगह से उठकर अपने बेटे के पास जाकर बैठते हुए बोला…" रघु मैं तेरा दुश्मन नहीं हूं मैं ऐसा इसलिए करता हूं ताकि तू रह भटक कर गलत रस्ते पर न चल पड़े। तुझे ही तो आगे चलकर यह की जनताओं का सुख दुःख का ख्याल रखना हैं।" राजेंद्र जी की बाते सुनाकर सुरभि बोलते हैं…." सुनिए जी आप अभी से मेरे बेटे पर अपने काम का बोझ न डाले और अपको कितनी बार कहा हैं आप मेरे लाडले को दहाड़ कर न बुलाया करे। अगली बार अपने मेरे लाडले को दहाड़ कर बुलाया तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा।" सुरभि की बाते सुनाकर राजेंद्र बोले…."ध्यान रखूंगा सुरु जी ! मुझे अपना दाना पानी बंद नहीं करवाना हैं।" राजेंद्र जी की बाते सुनाकर सुरभि बनावटी गुस्सा दिखाते हुए बोली…."अच्छा तो मैं अपका दाना पानी बंद कर देती हूं। अब आना दाना चुगने दाने के जगह कंकड़ परोस दूंगी।" राजेंद्र सुरभि से चुहल करते हुए बोले…." जो भी परोसोगी मैं उससे ही अपना पेट भरा लूंगा मुझे अपना पेट भरने से मतलब हैं।"दोनों की चुहलवाजी चलता रहता हैं। अपने मां बाप के झूठी तकरार को देखकर रघु अपने डर से मुक्त हों जाता हैं। फिर रघु बोलता हैं…." मां पापा मैं जान गया हूं यह सब आप मेरे लिए ही कर रहे हैं। अब आप दोनों अपनी झूठी तकरार बंद कीजिए और मुझे बताइए अपने मुझे क्यों बुलाया कुछ विशेष काम था?" राजेंद्र बोलता हैं.." कुछ विशेष काम नहीं था मैं तो अपने बेटे से मस्करी करने के लिए बुलाया था।" सुरभि बोलती हैं…" अपका मसखरी करने से मेरा लाडला कितना सहम जाता हैं। अपको कुछ पाता भी हैं।" तभी रघु बोलता हैं… " मां आप फिर से शुरू मत हों जाना मैं बच्चों को पढ़ाने जा रहा हूं। मेरे जानें के बाद अपको पापा से जितना लड़ना हैं लड़ लेना।" ये कह कर रघु उठकर भाग जाता हैं। सुरभि अपने बेटे को आवाज देती रह जाती हैं। फिर राजेन्द्र बोलते हैं…."सुरु रघु को जानें दो और रघु हमे जो करने को कह गया हैं वो शुरू करें।" सुरभि उठकर जाते हुए बोली…" अभी मैं दोपहर की खाने की तैयारी करवाने जा रहीं हूं आपसे बाद में निपटूंगी।" सुरभि के किचन में जाते ही। राजेन्द्र भी अपने कुछ काम निपटाने चले जाते हैं।


आज के लिए बस इतना ही। तबियत खराब होने की वजह से ज्यादा बड़ा अपडेट नहीं लिख पाया। अभी तो आप सब इतने से ही काम चलाए।

Superb Update bhai. Ek behatreen shuruaat iss lahani ki.
 

Naina

Nain11ster creation... a monter in me
31,619
92,259
189
Mujhe laga tha aap Nischal bolengi. :lol1::lol1::lol1:

Deep bhai aap meri maane toh naam Nischal rakh dijiye. Naina ji ki barsho ki ichha puri hojayegi. :roflol::roflol::roflol:
Shut up ju unsunshkari people :slap:
jaao jaake samar aur ragini ki hot hottest lob story padho :D
Nischal superhero hai na ki koi villain
 

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अजनबी हमसफ़र - रिश्तों का गठबंधन

Update - 2

सुरभि किचन में जाती हैं। जहां वाबर्ची दिन के खाने के लिए विभिन्न प्रकार की व्यंजन बाने की तैयारी कर रहे थे। उन्हें तैयारी करते हुए देखकर सुरभि, उन वाबर्चिओ में एक बुजुर्ग वबर्ची से बोले…."दादा भाई ( बड़े भाई को बंगाली भाषा में दादा बोला जाता हैं मैं यहां दादा के साथ भाई जोड़कर लिखूंगा) दिन के खाने में किन किन व्यंजनों को बनाया जा रहा हैं।" सुरभि को रसोई घर में देखकर बुजुर्ग वबर्ची बोले…" रानी मां आप को रसोई घर में आने की क्या जरूरत आन पड़ी हम कर तो रहे हैं तैयारी।" बुजुर्ग की बातों को सुनाकर सुरभि बोली…"दादा भाई मैं रसोई घर में क्यों नहीं आ सकती यहां रसोई घर मेरी हैं। आप से कितनी बार कहा हैं आप सब मुझे रानी मां नहीं बोलेंगे।" बुजुर्ग सुरभि की बातो को सुनाकर मुस्कुराते हुए बोले…."क्यों न बोले रानी मां आप इस जागीर के रानी हों और एक मां की तरह सब का ख्याल रखते हों। इसलिए हम आपको रानी मां बोलते हैं"बुजुर्ग के तर्क को सुनाकर सुरभि बोले…"दादाभाई आप मुझसे उम्र में बहुत बड़े हों। आप मुझे मां बोलते हों जो मुझे अच्छा नहीं लगती। जब राज पाट थी तब की बात अलग थीं अब तो राज पाट नहीं रही और न ही राजा रानी रहे।" बुजुर्ग सुरभि की बातों को सुनाकर अपना तर्क देते हुए बोले…"राज पाट नहीं हैं फिर भी आप और राजा जी अपने प्रजा का राजा और रानी की तरह ख्याल रखते हों हमारे दुःख सुख में हमारे कंधे से कंधा मिलाए खडे रहते हों। ऐसे में हम आपको रानी मां और राजा जी को राजाजी क्यो न बोले, एक बात ओर बता दु राजा रानी कहलाने के लिए राज पाट नहीं गुण मायने रखता हैं जो आप में ओर राजाजी में भरपूर मात्रा में हैं।" बुजुर्ग के तर्क, अपनी और अपने पति की तारीफ सुनाकर सुरभि मन मोहिनी मुस्कान बिखेरते हुए बोली…"जब भी मैं अपको रानी मां बोलने से मना करती हूं आप हर बार मुझे अपने तर्कों से उलझा देते हों फिर भी मैं आप से कहूंगी आप मुझे रानी मां न बोले" बुजुर्ग सुरभि को मुस्कुराते हुए देखकर और उनके तर्को को सुनाकर बोले…." रानी मां इसे तर्को में उलझना नहीं कहते, जो सच हैं वह बताना कहते हैं। आप ही बता दिजिए हम आपको क्या कह कर बुलाए।" बुजुर्ग के तर्क सुनाकर सुरभि बोली…."मुझे नहीं पता आपका जो मन करे वो बोले लेकिन रानी मां नहीं" बुजुर्ग बोले…"हमारा मन अपको रानी मां बोलने को करता हैं और हम आपको रानी मां ही बोलेंगे इसके लिए आप हमें दण्ड देंगे तो आप हमें दण्ड दे सकते हैं लेकिन हम आपको रानी मां बोलना बंद नहीं करेंगे" सुरभि कुछ बोलती उससे पहले रसोई घर के बाहर से किसी ने बोला…."क्यों रे बुढाऊ अब तुझे किया चाहिए जो दीदी को इतना मस्का लगा रहीं हैं" रसोई घर के बाहर सुकन्या खड़ी होकर इनकी सारी बाते सुन रहीं थीं। सुरभि की तारीफ करते हुए सुनाकर सुकन्या अदंर ही अदंर जल भुन गई जब तक सुकन्या सहन कर सकती थीं किया जब उसकी सहन सीमा टूट गई तब रसोई घर के अंदर आते हुए बोली, सुकन्या का बुजुर्ग से बदसलूकी से बोलना सुरभि से सुना नहीं गया तब वह बोलीं…." छोटी ये कैसा तरीका हैं एक बुजुर्ग से बात करने का दादाभाई तुमसे उम्र में बड़े हैं। काम से काम इनके साथ तो सलीके से पेश आओ।" एक नौकर के लिए सुरभि का बोलना सुकन्या से बर्दास्त नहीं हुआ इसलिए सुकन्या अपने तेवर को ओर कड़ा करते हुए बोली…." दीदी आप इस बुड्ढे का पक्ष क्यों ले रहीं हों। ये हमारे घर का एक नौकर हैं और नौकरों से ऐसे ही बात किया जाता हैं।" सुकन्या की बाते सुनाकर सुरभि को गुस्सा आ जाता हैं। सुरभि अपने गुस्से को नियंत्रित करते हुए बोलती हैं…" छोटी भले ही ये हमारे घर में काम करते हैं लेकिन हैं तो एक इंसान ही और दादाभाई तुमसे उम्र में बड़े हैं और तुम्हारे पिताजी के उम्र की हैं तुम अपने पिताजी के लिए भी ऐसे अभद्र भाषा बोलते हों।" एक नौकर का अपने पिता से तुलना करना सुकन्या को हजम नहीं हुआ इसलिए सुकन्या अपने वाणी को ओर तल्ख करते हुए बोली…." दीदी आप इस बुड्ढे की तुलना मेरे पिता से कर रहे हों इसकी तुलना मेरे पिता से नहीं हों सकती।… ओ हों अब समझ आया आप इसका पक्ष क्यों ले रहीं हों आप इस बुड्ढे की पक्ष नहीं लोगी तो ये बुड्ढा अपनी चिकनी चुपड़ी बातों से आपकी तारीफ नहीं करेगा अपको अपनी तारीफे सुनने में मजा जो आती हैं।" सुकन्या की बातो को सुनाकर वह मौजुद सब को गुस्सा आ जाता हैं। लेकिन नौकर होने के नाते कोई कुछ नहीं बोल पता हैं। गुस्सा तो सुरभि को भी आ रही थीं लेकिन सुरभि बात को बड़ाना नहीं चहती थी इसलिए चुप रहीं। लेकिन नौकरों में से एक काम उम्र का नौकर एक गिलास पानी लेकर सुकन्या के पास गया। पानी का गिलास सुकन्या के देते हुए जान बुझ कर पानी सुकन्या के साड़ी पर गिरा दिया। पानी गिरते ही सुकन्या आगबबूला हों गई ओर नौकर को कसके एक तमाचा जड़ दिया और बोली….." ये क्या किया कमबख्त मेरी इतना महंगी साड़ी खराब कर दिया तेरे बाप की भी औकात नहीं हैं इतनी महंगी साड़ी खरीदने कि।" सुकन्या एक ओर तमाचा लड़के के गाल पर जड़कर पैर पटकते हुए अपने रूम में चाली गई। लड़के को तमाचा इतने जोरदार लगाया गया जिससे लड़के का गाल लाल हों गया। लड़का गाल सहला रहा था की सुरभि उसके पास आई उसके दुसरे गाल को सहलाते हुए बोली…." धीरा तुने जान बुझ कर छोटी के साड़ी पर पानी क्यों गिराया। तू समझता क्यों नहीं छोटी हमेशा से ऐसी ही हैं। कर दिया न छोटी ने तेरे प्यारे से गाल को लाल।"


सुरभि का अपने प्रति स्नेह देखकर धीरा की आंखे नम हों गया। धीरा नम आंखो को पोंछते हुआ बोला….


धीरा….. रानी मां मैं आप को अपमानित होते हुए कैसे देख सकता हूं। छोटी मालकिन ने हमें खरी खोटी सुनाया हमने बर्दास्त कर लिया लेकिन जब उन्होंने अपका अपमान किया मैं यह सहन नहीं कर पाया इसलिए उनके महंगी साड़ी पर जान बूझ कर पानी गिरा दिया। इसके एवज में मेरा गाल लाल हुआ तो क्या हुआ बदले में अपका स्नेह भी तो मिला।


सुरभि…. अच्छा अच्छा मुझे ज्यादा मस्का मत लगा नहीं तो मैं फिसल जाऊंगी तू जा थोड़ी देर आराम कर ले तेरे हिस्से का काम मैं कर देती हूं।


धीरा सुरभि के कहते ही एक कुर्सी लाकर सुरभि को बिठाते हुए बोला……


धीरा….. रानी मां हमारे रहते आप काम करों ये कैसे हों सकता हैं। आप को बैठना हैं तो यह बैठो नहीं तो जाकर आराम करों खाना बनते ही अपको ख़बर पहुंचा देंगे।


सुरभि…. मुझे कोई काम करने ही नहीं दे रहे हों तो यह बैठकर क्या करूंगी मैं छोटी के पास जा रही हूं।


सुरभि के जाते ही बुजुर्ग जिसका नाम रतन हैं वह बोलता हैं….


रतन…. ये छोटी मालकिन पुरा का पुरा नागिन हैं जब देखो फन फैलाए खड़ी रहती हर वक्त डसने को तैयार रहती हैं।


धीरा:- अरे चाचा धीरे बोलो नहीं तो फिर से डसने आ जायेंगे।


ऐसे चुहल करते हुए खाने की तैयारी करने लगते हैं। सुरभि सुकन्या के रूम में पहुंचकर देखती हैं सुकन्या मुंह फुलाए बैठी हैं। उसको देखकर सुरभि बोलती हैं…..


सुरभि:- छोटी तू मुंह फुलाए क्यो बैठी हैं।


सुकन्या सुरभि के देखकर अपना मुंह भिचकते हुए बोली…..


सुकन्या…. आप तो ऐसे कह रही हो जैसे आप कुछ जानती ही नही, नौकरों के सामने मेरी अपमान करने में कुछ कमी रहीं गईं थी जो मेरे पीछे पीछे यह तक आ गईं।


सुकन्या की तीखी बाते सुनाकर सुरभि का मन बहुत आहत होती हैं फिर भी खुद को समाहल कर सुकन्या को समझाते हुए बोलती हैं…….


सुरभि…. छोटी मेरी बातों का तुझे इतना बुरा लग गई। मैं तेरे बहन जैसी हूं तू कुछ गलत करे तो मैं तुझे टोक भी नहीं सकती।


सुकन्या…. मैं सही करू या गलत आप मुझे टोकने वाली कौन होती हों। आप मेरी बहन जैसी हों बहन नहीं इसलिए आप मुझसे कोई रिश्ता जोड़ने की कोशिश न करें।


सुरभि:- छोटी ये क्या बहकी बहकी बाते कर रहीं हैं। मैं तुझे अपना छोटी बहन मानती हूं।


सुकन्या:- आप कितनी ढिट हों बार बार अपमानित होते हों फिर भी आ जाते हों दुबारा अपमानित हों। आप जाओ यह से मुझे विश्राम करने दो।


सुरभि से ओर सहन नहीं होती। सुरभि की आंखे सुकन्या की जली कटी बातों से नम हों जाती हैं। सुरभि अंचल से आंखों को पूछते हुए चाली जाती हैं। सुरभि के जाते ही सुकन्या बोलती हैं……


सुकन्या…. कुछ भी कहो इस सुरभि को कुछ असर ही नहीं होती। इसकी चमड़ी तो गेंडे के चमड़ी जैसी मोटी हैं कैसे इतना अपमान सह लेती हैं। इन कर्मजले नौकरों को इस सुरभि में क्या दिखता हैं जो रानी मां रानी मैं बोलकर अपना गला सुख लेटी हैं।


सुकन्या कुछ वक्त ओर अकेले अकेले बड़बड़ाती रहती हैं। फिर बेड पर लेट जाती हैं। सुरभि आकर अपने कमरे में बेड पर उल्टी होकर लेट जाती हैं और रोने लगती हैं। सुरभि को आते हुए एक बुजुर्ग महिला देख लेती हैं जो सुरभि के पीछे पीछे उसके कमरे तक आ जाती हैं। सुरभि को रोता हुए देखकर उसके पास बैठते हुए बोलती हैं……


बूढ़ी औरत…. रानी मां आप ऐसे क्यो लेटी हों? आप रो क्यों रहीं हों?


सुरभि बूढ़ी औरत की बात सुनाकर उठकर बैठ जाती हैं और बहते आशु को पोंछते हुए बोलती हैं…..


सुरभि…... दाई मां आप कब आएं?


दाई मां… रानी मां अपको छोटी मालकिन के कमरे से निकलते हुए देखा आप रो रहीं थी इसलिए मैं अपके पीछे पीछे आ गई। आज फ़िर छोटी मालकिन ने कुछ कह हैं।


सुरभि…. दाई मां मैं इतनी बूरी हूं जो छोटी मुझे बार बार अपमानित करती रहती हैं।


दाई मां… बुरे आप नहीं बुरे तो वो हैं जो आपकी जैसी नहीं बन पाती तो अपनी भड़ास अपको अपमानित करके निकलते हैं।


सुरभि… दाई मां मुझे तो लगता मैं छोटी को टोककर गलत करती हूं। मैं छोटी को मेरी छोटी बहन मानती हूं इस नाते उसे टोकटी हूं लेकिन छोटी तो इसका गलत मतलब निकल लेती हैं।


दाई मां:- राना मां छोटी मालकीन ऐसा जान बूझ कर करती हैं। जिससे आप परेशान होकर महल का सारा बार उन्हे सोफ दो और छोटी मालकिन इस महल पार राज कर पाए।


सुरभि... ऐसा हैं तो छोटी को महल का सारा भार सोफ देती हूं। काम से काम छोटी मुझे अपमान करना तो छोड़ देगी।


दाई मैं…. आप ऐसा भुलकर भी मत करना नहीं तो छोटी मालकिन अपको ओर ज्यादा अपमानित करेंगी और महल की शांति को भंग कर देगी। अब आप मेरे साथ रसोइ घर में चलिए नहीं तो आप ऐसे ही बहकी बहकी बाते करते रहेंगे।


सुरभि जाना तो नहीं चहती थी लेकीन दाई मां जबरदस्ती सुरभि को रसोई घर ले गई। जहां सुरभि वाबर्चियो के साथ खाना बनने में मदद करने लगी। खाना तैयार होने के बाद सुरभि सब को बुलाकर खाना खिलाती हैं और ख़ुद भी खाती हैं। राजेन्द्र और उसका भाई रावण दोनों वह मौजुद नहीं थे। तो उनको छोड़कर बाकी सब खाना खाकर अपने अपने रूम में विश्राम करने चले जाते हैं।


कलकत्ता के एक आलीशान बंगलों में एक खुबसूरत लडकी चांडी का रूप धारण किए थोड़ फोड़ करने में लागी हुई हैं। उसकी आंखें सुर्ख लाल चहरा गुस्से से लाला आंखों में काजल उसके इस रूप में बस दो ही कमी हैं। उसके एक हाथ में खड्ग और एक हाथ में मुंड माला पकड़ा दिया जाय तो शख्सत भद्रा काली लगेंगी। लड़की कांच के सामानों को तोड़ने में लागी हुई हैं। एक औरतों रुकने को कह रहे हैं लेकिन रूक ही नहीं रहीं। तभी लड़की ने अपनी हाथ में कुछ उठाया और उसे फेकने ही जा रहीं थीं कि औरत रोकते हुए बोली….


औरत…… नहीं कमला इसे नहीं ये बहुत महंगी हैं। तूने सब तो तोड़ दिया इसे छोड़ दे मेरी प्यारी बच्ची।


कमला….. मां आप मेरे सामन से हटो मैं आज सब तोड़ दूंगी।


औरत जिनका नाम मनोरमा हैं।


मनोरमा:- अरे उतना गुस्सा किस बात की अभी तो कॉलेज से आई है। आते ही तोड़ फोड़ करने लग गई। देख तूने घर का सारा समान तोड दिया।


कमला….. कॉलेज से आई हूं तभी तो तोड़ फोड़ कर रहीं हूं।


मनोरमा:- ये किया बात हुईं कॉलेज से आकर विश्राम करते हैं और तू तोड़ फोड़ करने लग गई।


कमला…. मां अपको कितनी बार कहा हैं आप अपने सहेलियों को समझा दो उनके बेटे मुझे रह चलते छेड़ा न करें आज भी उन कमीनों ने मुझे छेड़ा उन्हे आपके कारण कुछ कह नहीं पाई उनका गुस्सा कही न कहीं निकलना ही था।


मनोरमा… मैं समझा दूंगी अब तू तोड़ फोड़ करना छोड़ दे।


घर का दरवजा जो खुला हुआ था। महेश कमला के पापा घर में प्रवेश किया । घर की दासा और कमला को थोड़ फोड़ करते हुए देखकर बोले……


महेश….. मोना (मनोरमा) कमला आज चांदी क्यों बनी हुई हैं।


मनोरमा:- सब आपके लाड प्यार का नतीजा हैं दुसरे का गुस्सा घर के सामने को तोड़ कर निकल रहीं हैं।


महेश….. ओ तो गुस्सा निकाल रहीं हैं तो निकल अपना गुस्सा जितना तोड़ना हैं तोड़ काम पड़े तो मैं और ला देता हूं।


मनोरमा…. आप तो चुप ही करों। कमला का हाथ पकड़कर खिचते हुए सोफे पर बिठाया हुए बोला .. तू या बैठ यह से हिला तो मुझसे बूरा कोई नहीं होगा।


कमला चुप चाप सोफे पर बैठ गई। मनोरमा भी दूसरे सोफे पर बैठ गई। महेश आकर कमला के पास बैठा और पुछा……


महेश…. कमला बेटी तुम्हें इतना गुस्सा क्यों आया? कुछ तो कारण होगा?


कमला….. रस्ते में कालू और बबलू मुझे छेड़ रहे थे। चप्पल से उनका थोबडा बिगड़ दिया फिर भी मेरा गुस्सा कम नहीं हुआ इसलिए घर आकर थोड़ फोड़ करने लागी।


मनोरमा…. हे भगवन मैं इस लड़की का क्या करूं ? कमला तू अपनी गुस्से को काबू कर नहीं तो शादी के बाद किए करेंगी


महेश….. क्या करेगी से क्या मतलब बही करेगी जो तुमने किया।


मनोरमा…. अब मैंने किया किए जो कोमल करेगी।


महेश…. गुस्से में आपने पति का सार फोड़ेगी जैसे तुमने कई बार मेरा फोड़ा हैं।


कमला…. ही ही ही… मां ने अपका सर फोड़ा है मुझे पता नहीं थी आज पाता चल गईं।


मनोरमा कुछ नहीं बोल रहीं थी बस दोनों बाप बेटी को आंखे दिखा रहीं थी और ये दोनों चुप ही नहीं हो रहे थे मनोरमा को छेड़े ही जा रहे थे। आज के लिया इतना ही आगे की कहानी अगले अपडेट में बताउंगा।
Waise agar dekha jaaye to koyi bhi rishta ho woh do tarfa hi ho to hi khilta hai. Warna usmein grahan lagte der nahi lagti. Surbhi ek aesi aurat hai jo ghar ko jode rakhna chahti hai. Wo chahti hai ki ghar ke har sadasya ko ek hi dhage mein pirokar rakh sake.

Par sahyad usse ye samajhna chahiye ki har kisi ko saath lekar nahi chala jaa sakta. Kuchh log iss layak nahi hote ki unhe pyaar diya jaa sake...

Excellent Update bhai. Waiting for Next....
 

Jaguaar

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Shut up ju unsunshkari people :slap:
jaao jaake samar aur ragini ki hot hottest lob story padho :D
Nischal superhero hai na ki koi villain
Ab aisi koi story hai hi nhi toh kaha se padhu.

Bechara Nischal ek story mein cast hone ka mauka mila par woh bhi chinn liyaa jaa raha hai. :lol1:
 

Destiny

Will Change With Time
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Mujhe laga tha aap Nischal bolengi. :lol1::lol1::lol1:

Deep bhai aap meri maane toh naam Nischal rakh dijiye. Naina ji ki barsho ki ichha puri hojayegi. :roflol::roflol::roflol:

Devil जी अपका भी सुझाव मैन लिया जाएगा अपके रिक्वेस्ट को एक्सेप्ट कर लिया जाय हैं। पर अपके ये Nischal निश्छल नम के कैरेक्टर की एंट्री बहुत देर बाद होगा टैब तक आप वेट कर लो
 
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