आ पिया इन नैनन मैं पलक ढाप तोहे लूँ,
ना मैं देखूँ गैर को ना तोहे देखन दूँ ।।एक सफ़र था की चलता गया,
भोर का सुरज भी ढलता गया।।
वो कहानी थी की चलती रही,
मैं पाठक था की बस पढता गया।।
कच्ची उम्र से बलखाती जवानी,
गिलासी शराब से शरबती पानी,
खिलती कली से, हसीन ग़ुलाब,
चढ़ता सबाब उतरता रुबाब...