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अध्याय बावनजहाँ एक तरफ युद्ध हाथ से निकलता जा रहा था सारे अच्छाई के सिपाही बहुत बुरी तरह जख्मी हो गए थे और सारे गुरुओं को उन खास असुरों ने वरुण पाश मे कैद कर लिया थाजो देख कर मायासुर और शुक्राचार्य दोनों भी अपने जीत पर खुशियाँ मना रहे थे की तभी अटल लोक की जमीन हिलने लगी वहा अचानक से एक तेज...
अध्याय इक्यावनइस वक़्त उस युद्ध मैदान मे एक तरफ पूरी असुरी सेना थी तो दूसरी तरफ अच्छाई के योद्धा थे जिनमे कुछ चोटिल हो गए थे और जब दोनों पक्ष आमने सामने आ गए तो सही मायने में युद्ध आरंभ हो गया थाजिसमे आज कोई एक ही पक्ष जीतता और दूसरे पक्ष को मृत्यु प्राप्त होती अभी सब एक दूसरे के सामने थे...
अध्याय पचासअब तक आपने देखा की कैसे दोनों ही पक्षों में युद्ध की तैयारियां जोरों से चल रही थी जहाँ अभी तक तो अच्छाई का पक्ष कमजोर था लेकिन उनके हौसले बुलंद थेजहाँ सारे गुरु निष्क्रिय अस्त्रों को फिर से जाग्रुत करने के लिए जमीन आसमान एक कर रहे थे अस्त्रों के इतिहास से जुड़ी हुई सारी किताबे...
अध्याय उनचासहर तरफ हर कोई आने वाले महासंग्राम की तैयारियों में लगा हुआ था जहाँ कालविजय आश्रम में इस वक़्त 10,000 से भी ज्यादा सेना इकट्ठा हो गयी थीजिसमे 18 -19 साल के नौजवान से लेकर 80-90 साल वृद्ध साधु सभी मौजूद थेये सभी वो सिपाही थे जिनके पास मायावी विद्याएँ मौजूद थी और हर कोई किसी न...
अध्याय अड़तालिसइस वक़्त सारे अस्त्र धारक महागुरु के कुटिया मे जमा हो कर आगे के बारे में विचार विमर्श कर रहे थेदिग्विजय:- महागुरु अब आगे क्या करना हैमहागुरु:- आज पूरे जीवन मे पहली बार खुद को इतना कमजोर महसूस कर रहा हूँ न जाने क्यों अस्त्र हमे अपनी शक्तियां नही देना चाहते या उनकी ही...
अध्याय सैंतालिसइस वक्त काल विजय आश्रम में हर तरफ अफरा तफरी का माहौल बन गया था बहुत सालों बाद आज तीनो आश्रम एक हो कर कार्य कर रहे थे तीनो आश्रमों ने अपने अपने कार्य निर्धारित कर लिए थेसबसे पहले काल दृष्टि आश्रम उसने अपने सभी शिष्यों और गुरुओं को पूरे धरती में अलग अलग जगह फैला कर जितने भी...
अध्याय छियालीसकुमार की बाते सुनकर मेरा भी मन घबराने लगा था और ये भी सच था कि जब मेरा खुद पर भरोषा नहीं था तब भी कुमार ने मुझे विश्वास दिलाया था इसीलिए आज मुझे भी उसपर भरोशा करना होगा और यही सोचकर मैने अपना शरीर कुमार के हवाले कर दियातो वही दूसरी तरफ कालविजय आश्रम में जैसे ही महागुरु द्वारा...