भाग 24
दो तीन दिन तो ये चला फिर परवीन ने ध्यान दिया की उसका बेटा पिछले दिनों से पिछवाड़े में कुछ ज़्यादा ही टाइम लगाता है और उसी समय नज़मा भी पिछवाड़े में ही होती है| उसने सोचा की क्यों ना कल सुबह देखा जाए की माज़रा क्या है?
अगले दिन परवीन चुपके से पिछवाड़े में पहुँच गयी| नज़मा नहा रही थी और उससे पांच कदम दूर खड़ा इरफ़ान ब्रश कर रहा था| दोनों बहन भाई हंस हंस के आपस में बात कर रहे थे| परवीन अपनी बेटी की पोशाक देखकर बुरी तरह से चौंक गई। नज़मा ने वही सफ़ेद पेटीकोट पहना था जो परवीन ने उसे दिया था| वो पेटीकोट नज़मा के शरीर से चिपक गया था| पेटीकोट के होने या ना होने से कोई फरक नहीं पड रहा था| पेटीकोट बिलकुल वैसे ही नज़मा के बदन से चिपका था जैसे सांप की केंचुली|
परवीन नज़मा को वो पेटीकोट देने के लिए खुद को कोस रही थी। उसे खुद पर गुस्सा आ रहा था। उसे अपने बेटे पर भी गुस्सा आ रहा था जिसने अपनी बहन को बताया भी नहीं की वो लगभग नंगी उसके सामने नहा रही है| जाने क्या-२ विचार परवीन के दिमाग में चल रहे थे| जैसे ही इरफ़ान ब्रश करके अंदर आया, परवीन पिछवाड़े में जाके नज़मा पर चिल्लाने लगी।
परवीन: क्या पहन कर नहा रही हो?
नज़मा अचानक से अपनी माँ को देख के घबरा गयी| वो जल्दी से अपने नंगे बदन को अपनी माँ से छुपाना चाहती थी| लेकिन शायद उसका ये कदम उल्टा पड़ सकता था| नज़मा को अब अपना हर कदम सावधानी से उठाना था|
नज़मा वैसे ही नहाती रही और बिलकुल साधारण लहजे में पुछा: क्यों क्या हुआ माँ? पेटीकोट पहन के नहा रही हूँ, आपने ही तो दिया था कुछ दिन पहले|
परवीन चिल्ला उठी: पहले क्यों नहीं कहा की नहाने के लिए चाहिए|
नज़मा (डरी हुई आवाज़ में): क्या हो गया माँ? आप मुझे डांट क्यों रहे हो?
परवीन (गुस्से से): नहाने को नहीं है ये पेटीकोट| घोड़ी जितनी बड़ी हो गयी है, अक्कल दो पैसे ही नहीं आयी|
नज़मा: लेकिन हुआ क्या माँ? बताओ तो सही|
परवीन गुस्से से थरथरा रही थी और अपनी हीरोइन नज़मा मासूम बनने का नाटक बिलकुल शातिर अभिनेत्री की तरह कर रही थी|
परवीन: या अल्लाह| कान खोल के सुन ले, आज के बाद तू ये ... ये पेटीकोट पहन के नहीं नहाएगी| समझ आया, पेटीकोट पहन के नहीं नहाएगी|
नज़मा: लेकिन मैं ..
परवीन: लेकिन वेकिन कुछ नहीं| तूने अगर मेरी बात नहीं मानी तो टांग तोड़ दूंगी तेरी ... समझ आयी|
नज़मा का मुंह रुआंसा हो गया और वो टकटकी लगा के अपनी माँ को देखने लगी|
परवीन: अब जल्दी ख़तम कर नहाना और जाके तैयार हो|
नज़मा सुबकते हुए अपने कमरे की तरफ चली गयी| दिखाने के लिए चाहे नज़मा बहुत दुखी थी लेकिन मन ही मन वो बहुत खुश थी| ना जाने क्या नया प्लान पका रही थी|
परवीन अपनी दुकान पर चली गई। अब भी परवीन के दिमाग में सुबह वाली घटना घूम रही थी| अब उसे बुरा रहा था, शायद उसे नज़मा को इतनी बुरी तरह नहीं डांटना चाहिए था| नज़मा बेचारी की तो गलती ही नहीं थी। नज़मा को पता ही नहीं लगा होगा की पेटीकोट अब इतना पतला होके बिलकुल पारदर्शी हो गया है| मैंने ही तो उसे ये पेटीकोट दिया था। गलती मेरी थी, इरफ़ान की थी लेकिन डांट मेरी प्यारी बेटी नज़मा को पड़ गयी| वो तो अच्छा हुआ की मैंने उसे इरफ़ान के सामने नहीं डांटा नहीं तो नज़मा को और बुरा लगता| लेकिन करती क्या, उसे डांटना भी तो ज़रूरी था| कैसे नंगी अपने भाई के सामने नहा रही थी| अल्लाह अक्कल दे मेरी बेटी को, अब वो बड़ी हो रही है| उसे अब मर्दों की नज़र की समझ आ जानी चाहिए| चलो जो हो गया, सो हो गया| कम से कम अब नज़मा उस पेटीकोट में तो तो अपने भाई के सामने नहीं नहाएगी|
दूसरी तरफ घर में नज़मा भी सुबह की घटनाओ के बारे में सोच रही थी| उसके दिमाग में अपनी माँ के कहे हुए सारे शब्द गूँज रहे थे| उसको साफ़ पता चल चूका था की उसकी माँ ने क्या कहा और कहे गए एक-२ शब्द का क्या मतलब है| नज़मा बेचारी एक बहुत ही मासूम बच्ची थी, वो अपनी माँ के कहे शब्दों का मतलब भी तो अपने बच्चों वाले दिमाग से ही निकालेगी| नज़मा के दिमाग में एक प्लान जनम ले चूका था| रात को भी नज़मा अपने प्लान के बारे में सोचती रही और ठीक से सो भी नहीं पायी| वो बार अपने प्लान को अपने दिमाग में सोच रही थी, उसकी छोटी-२ चीज़ों के बारे में वो पूरी तरह से आश्वस्त हो जाना चाहती थी| पता नहीं कब सोचते-२ नज़मा की आंख लग गयी|
अगली सुबह, नज़मा ने उठ कर अपनी योजना के अनुसार काम शुरू कर दिया| जैसे ही उसके पापा पिछवाड़े से नहा से आये, नज़मा रोज़ की तरह शौच करने के बाद, नहाने बैठ गयी| आज नज़मा ने अपना पेटीकोट भी उतार के एक साइड में रख दिया और केवल पेंटी में अपने भाई का इंतज़ार करने लगी| नज़मा के निप्पल उत्तेजना के मारे सख्त हो गए थे| उसका बदन उत्तेजना के मारे हल्का-२ कांप रहा था| उसके सारे रोयें खड़े हो रखे थे|
अब किसी भी समय उसका भाई पिछवाड़े में आ सकता था| थोड़ी देर में ही एक आवाज़ सुनाई दी| नज़मा के हाथ अपने आप ही नारी लज्जा के कारण बोबे छिपाने के लिए उठे लेकिन नज़मा ने हिम्मत करके बिलकुल नार्मल रही|
इरफ़ान पिछवाड़े में आ चूका था| एक पल को तो इरफ़ान की ऐसा लगा की उसकी बहन बिलकुल नंगी बैठी है लेकिन फिर उसने देखा की उसकी बहन ने सिर्फ एक छोटी सी कच्छी पहनी हुई है| उसे अपनी आँखों पे विश्वास नहीं हो रहा था| उसे उम्मीद थी की रोज की तरह आज भी उसकी बहन पारदर्शी पेटीकोट में होगी लेकिन ये नज़ारा तो पूरी तरह से चौंका देने वाला था।
नज़मा को इरफ़ान की घूरती नज़रें अपने बदन पे महसूस हो रही थी| नज़मा बैठी हुई थी और उसकी छाती उसके पैरों से दबी हुई थी| उसके बोबे दबकर थोड़ा साइड में फ़ैल गए थे| इरफ़ान को नज़मा के साइड से बोबे नंगे दिखाई दे रहे थे|
इरफ़ान (हकलाते हुए): दीदी ... तुम .... तुम .... नंगी क्यों नहा रही हो? पेटीकोट क्यों नहीं पहना?
नज़मा ( मासूमियत से अपनी आँखों को नीचे करते हुए): पता नहीं भाई, माँ ने मुझे नहाते हुए पेटीकोट पहनने से मना किया है|