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Incest नज़मा की ज़िन्दगी का कामुक सफर

ruby mittal

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भाग 23

अगले दिन सुबह फिर से नज़मा लेट उठी और अपनी माँ के तैयार होने के बाद ही पिछवाड़े में पहुंची| आज जब वो पिछवाड़े में गयी तो उसके पापा नहा के अंदर जा चुके थे और भाई अभी पिछवाड़े में आया नहीं था| नज़मा फटाफट शोच से निवृत हुई और नहाने बैठ गयी| वो नहाते हुए अपने भाई का इंतज़ार कर रही थी| कुछ देर बाद इरफ़ान पिछवाड़े में आया और उसने नज़मा को नहाते देखा| इरफ़ान नज़मा से थोड़ा दूर खड़ा होके ब्रश करने लगा| नज़मा को उम्मीद थी की आज उसका भाई अपने आप पहल करेगा और उसका बदन ताड़ने के लिए कोई बात शुरू करेगा| लेकिन इरफ़ान उसकी तरफ नहीं आया|

शायद गाँव में रहने के कारण बचपन से ही इरफ़ान को लड़कियों को पेटीकोट पहन के नहाते देखने की आदत थी| उसके लिए नज़मा को ऐसे नहाते देखना कोई बहुत उतेज़ना का कारण नहीं था| नज़मा इरफ़ान के इस रवैये को देख के थोड़ा मायूस हो गयी| नज़मा ने सोचा क्यों ना अपनी एक चूची निकल के भाई को दिखा दूँ| लेकिन ये संभव नहीं था| ऐसा करने से इरफ़ान अपनी बहन के इरादों को भांप जाता| कुछ देर बाद इरफ़ान अंदर चला गया| आज दोनों बहन-भाई में कोई बात ही नहीं हुई|

नज़मा को बहुत बुरा लग रहा था| उसने किसी भी कीमत पे अपने भाई को रिझाने का मन बना लिया था| नज़मा का पेटीकोट बहुत मोटा और लाल रंग का था| शायद ये भी वजह हो सकती है की इरफ़ान को बहुत ज़्यादा न दिखाई दिया हो| अचानक से नज़मा को आईडिया आया| उसने अपने पेटीकोट को दीवार में लगी एक कील में अटकाया और झटका देके फाड़ दिया|

दोपहर में नज़मा अपनी माँ की दूकान में गयी|

नज़मा: माँ, मैं आपके लिए आज लंच लायी हूँ|

परवीन: क्या बात है ... थैंक यू .. अब बता काम क्या है?

नज़मा: क्या माँ? मैं आपके लिए बिना काम के लंच नहीं ला सकती|

परवीन: सब पता है मुझे, तू मेरी बेटी है, माँ बनने की कोशिश ना कर| बोल अब क्या काम है?

नज़मा (फटा पेटीकोट दिखाते हुए): माँ, मेरा पेटीकोट आज गलती से कील में अटक के फट गया| नया पेटीकोट चाहिए|

परवीन: कब अक्कल आएगी तेरे को| जब देखो तब कोई ना कोई नुकसान| कैसी लड़की पैदा कर दी मेरे या अल्लाह|

परवीन ने नज़मा को कोसते हुए नज़मा को सबसे सस्ता पीले रंग का पेटीकोट निकाल के दे दिया|

नज़मा: मम्मी, ये क्या टट्टी जैसा रंग दे रहे हो| मेरी प्यारी मम्मी, प्लीज सफ़ेद वाला दे दो ना|

परवीन: या अल्लाह, टट्टी ... ये क्या तरीका है बात करने का| ले ले ... सफ़ेद ले ... अच्छी बात है .. ये तो और पांच रुपए सस्ता है|

ये सफ़ेद पेटीकोट थोड़ा कड़क कपडे का था| पेटीकोट पे बहुत मोती मांड (स्टार्च) चड़ी हुई थी| घर जाके नज़मा ने पेटीकोट को गरम पानी में तीन चार बार धो डाला ताकि उसकी सारी मांड निकल जाये| धोने से पेटीकोट का कपडा मुलायम हो गया था| अब से नज़मा नया पेटीकोट पहन के नहाने लगी| दो तीन दिनों में ही पता चल गया की ये पेटीकोट इतना सस्ता क्यों था| पेटीकोट का कपडा मांड पूरी तरह से उतरने के बाद बिलकुल झीना और पारदर्शी हो गया|

आज नहाते हुए नज़मा बिलकुल नंगी दिखाई दे रही थी| उसने "राम तेरी गंगा मैली" की मंदाकनी को भी पीछे छोड़ दिया था| उसके बोबे, निप्पल और गांड बिलकुल साफ़ दिखाई दे रहे थे| चूत उतनी साफ़ तरीके से नहीं दिखाई दे रही थी, फिर भी ध्यान से देखने पर चूत का आभास मिल रहा था|

जैसे ही इरफ़ान पिछवाड़े में आया, उसकी नज़रें अपनी बहन के बदन से चिपक गयी| उसका मुंह खुला का खुला रह गया| नज़मा मन की मन मुस्कुरा रही थी| अब आया ऊँट पहाड़ के नीचे|

इरफ़ान: कैसी हो दीदी? आज बड़ी लेट नहा रही हो|

नज़मा: नहाती तो पिछले कुछ दिनों से मैं लेट ही हूँ| तेरे को ही खबर नहीं है अपनी बहन की|

इरफ़ान: हाँ दीदी, अपने बताया तो था की आपके कॉलेज का टाइम बदल गया है| बढ़िया है, अब आपसे बात करने का मौका तो मिलेगा|

नज़मा: भाई, तू ही बिज़ी रहता है| मैं तो सदा तेरे साथ टाइम बिताने के लिए सोचती हूँ|

दोनों भाई बहन कुछ देर ऐसे ही इधर उधर की बिना मतलब बात करते रहे| शायद मन ही मन इस बिना सर-पैर की बात का मकसद दोनों को पता था| नज़मा तसल्ली से अपना बदन अपने भाई को दिखाती रही| जब इरफ़ान को लगा की उसे पिछवाड़े में ब्रश करते बहुत ज़्यादा समय हो गया है तो वो अंदर चला गया| नज़मा ने भी जल्दी-२ नहाना पूरा किया और एक नया पेटीकोट पहन के कपडे बदलने अपने कमरे में चली गयी| आज अपना बदन अपने भाई को दिखा के नज़मा बहुत गरम हो गयी थी| कमरे में जाते ही नज़मा ने पूरी नंगी हो के ऊँगली की|

अब ये दोनों का रूटीन बन गया| रोज़ सुबह नज़मा अपने भाई को अपने सेक्सी बदन के दीदार करवाती फिर अपने कमरे में जा के ऊँगली करती| दोनों बहन-भाई के दिन मस्त कट रहे थे| लेकिन खुशियों के दिन कहाँ ज़्यादा टिकते हैं|
Cool.ideas bahut h nazmaa k paas
 
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Luckyloda

Well-Known Member
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Bhut shandaar update..... Kaha se late hai najma itne itne hot vichar.....


Ya chut ki chulbuli garmi hi usse ye karwa rahi ?????




Wait for another hot update
 

Hayaan

●Naam to Suna Hi Hoga●
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पेटीकोट का कपडा मांड पूरी तरह से उतरने के बाद बिलकुल झीना और पारदर्शी हो गया.....

नज़मा ने पहनी पारदर्शी पेटीकोट ताकि झलके उसका यौवन...
आंखें धँसाकर जिस्म पे इरफान ने जीत लिया नज़मा का तन-मन और स्तन...!!
Waiting for next...


भाग 23

अगले दिन सुबह फिर से नज़मा लेट उठी और अपनी माँ के तैयार होने के बाद ही पिछवाड़े में पहुंची| आज जब वो पिछवाड़े में गयी तो उसके पापा नहा के अंदर जा चुके थे और भाई अभी पिछवाड़े में आया नहीं था| नज़मा फटाफट शोच से निवृत हुई और नहाने बैठ गयी| वो नहाते हुए अपने भाई का इंतज़ार कर रही थी| कुछ देर बाद इरफ़ान पिछवाड़े में आया और उसने नज़मा को नहाते देखा| इरफ़ान नज़मा से थोड़ा दूर खड़ा होके ब्रश करने लगा| नज़मा को उम्मीद थी की आज उसका भाई अपने आप पहल करेगा और उसका बदन ताड़ने के लिए कोई बात शुरू करेगा| लेकिन इरफ़ान उसकी तरफ नहीं आया|

शायद गाँव में रहने के कारण बचपन से ही इरफ़ान को लड़कियों को पेटीकोट पहन के नहाते देखने की आदत थी| उसके लिए नज़मा को ऐसे नहाते देखना कोई बहुत उतेज़ना का कारण नहीं था| नज़मा इरफ़ान के इस रवैये को देख के थोड़ा मायूस हो गयी| नज़मा ने सोचा क्यों ना अपनी एक चूची निकल के भाई को दिखा दूँ| लेकिन ये संभव नहीं था| ऐसा करने से इरफ़ान अपनी बहन के इरादों को भांप जाता| कुछ देर बाद इरफ़ान अंदर चला गया| आज दोनों बहन-भाई में कोई बात ही नहीं हुई|

नज़मा को बहुत बुरा लग रहा था| उसने किसी भी कीमत पे अपने भाई को रिझाने का मन बना लिया था| नज़मा का पेटीकोट बहुत मोटा और लाल रंग का था| शायद ये भी वजह हो सकती है की इरफ़ान को बहुत ज़्यादा न दिखाई दिया हो| अचानक से नज़मा को आईडिया आया| उसने अपने पेटीकोट को दीवार में लगी एक कील में अटकाया और झटका देके फाड़ दिया|

दोपहर में नज़मा अपनी माँ की दूकान में गयी|

नज़मा: माँ, मैं आपके लिए आज लंच लायी हूँ|

परवीन: क्या बात है ... थैंक यू .. अब बता काम क्या है?

नज़मा: क्या माँ? मैं आपके लिए बिना काम के लंच नहीं ला सकती|

परवीन: सब पता है मुझे, तू मेरी बेटी है, माँ बनने की कोशिश ना कर| बोल अब क्या काम है?

नज़मा (फटा पेटीकोट दिखाते हुए): माँ, मेरा पेटीकोट आज गलती से कील में अटक के फट गया| नया पेटीकोट चाहिए|

परवीन: कब अक्कल आएगी तेरे को| जब देखो तब कोई ना कोई नुकसान| कैसी लड़की पैदा कर दी मेरे या अल्लाह|

परवीन ने नज़मा को कोसते हुए नज़मा को सबसे सस्ता पीले रंग का पेटीकोट निकाल के दे दिया|

नज़मा: मम्मी, ये क्या टट्टी जैसा रंग दे रहे हो| मेरी प्यारी मम्मी, प्लीज सफ़ेद वाला दे दो ना|

परवीन: या अल्लाह, टट्टी ... ये क्या तरीका है बात करने का| ले ले ... सफ़ेद ले ... अच्छी बात है .. ये तो और पांच रुपए सस्ता है|

ये सफ़ेद पेटीकोट थोड़ा कड़क कपडे का था| पेटीकोट पे बहुत मोती मांड (स्टार्च) चड़ी हुई थी| घर जाके नज़मा ने पेटीकोट को गरम पानी में तीन चार बार धो डाला ताकि उसकी सारी मांड निकल जाये| धोने से पेटीकोट का कपडा मुलायम हो गया था| अब से नज़मा नया पेटीकोट पहन के नहाने लगी| दो तीन दिनों में ही पता चल गया की ये पेटीकोट इतना सस्ता क्यों था| पेटीकोट का कपडा मांड पूरी तरह से उतरने के बाद बिलकुल झीना और पारदर्शी हो गया|

आज नहाते हुए नज़मा बिलकुल नंगी दिखाई दे रही थी| उसने "राम तेरी गंगा मैली" की मंदाकनी को भी पीछे छोड़ दिया था| उसके बोबे, निप्पल और गांड बिलकुल साफ़ दिखाई दे रहे थे| चूत उतनी साफ़ तरीके से नहीं दिखाई दे रही थी, फिर भी ध्यान से देखने पर चूत का आभास मिल रहा था|

जैसे ही इरफ़ान पिछवाड़े में आया, उसकी नज़रें अपनी बहन के बदन से चिपक गयी| उसका मुंह खुला का खुला रह गया| नज़मा मन की मन मुस्कुरा रही थी| अब आया ऊँट पहाड़ के नीचे|

इरफ़ान: कैसी हो दीदी? आज बड़ी लेट नहा रही हो|

नज़मा: नहाती तो पिछले कुछ दिनों से मैं लेट ही हूँ| तेरे को ही खबर नहीं है अपनी बहन की|

इरफ़ान: हाँ दीदी, अपने बताया तो था की आपके कॉलेज का टाइम बदल गया है| बढ़िया है, अब आपसे बात करने का मौका तो मिलेगा|

नज़मा: भाई, तू ही बिज़ी रहता है| मैं तो सदा तेरे साथ टाइम बिताने के लिए सोचती हूँ|

दोनों भाई बहन कुछ देर ऐसे ही इधर उधर की बिना मतलब बात करते रहे| शायद मन ही मन इस बिना सर-पैर की बात का मकसद दोनों को पता था| नज़मा तसल्ली से अपना बदन अपने भाई को दिखाती रही| जब इरफ़ान को लगा की उसे पिछवाड़े में ब्रश करते बहुत ज़्यादा समय हो गया है तो वो अंदर चला गया| नज़मा ने भी जल्दी-२ नहाना पूरा किया और एक नया पेटीकोट पहन के कपडे बदलने अपने कमरे में चली गयी| आज अपना बदन अपने भाई को दिखा के नज़मा बहुत गरम हो गयी थी| कमरे में जाते ही नज़मा ने पूरी नंगी हो के ऊँगली की|

अब ये दोनों का रूटीन बन गया| रोज़ सुबह नज़मा अपने भाई को अपने सेक्सी बदन के दीदार करवाती फिर अपने कमरे में जा के ऊँगली करती| दोनों बहन-भाई के दिन मस्त कट रहे थे| लेकिन खुशियों के दिन कहाँ ज़्यादा टिकते हैं|
 
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भाग 24

दो तीन दिन तो ये चला फिर परवीन ने ध्यान दिया की उसका बेटा पिछले दिनों से पिछवाड़े में कुछ ज़्यादा ही टाइम लगाता है और उसी समय नज़मा भी पिछवाड़े में ही होती है| उसने सोचा की क्यों ना कल सुबह देखा जाए की माज़रा क्या है?

अगले दिन परवीन चुपके से पिछवाड़े में पहुँच गयी| नज़मा नहा रही थी और उससे पांच कदम दूर खड़ा इरफ़ान ब्रश कर रहा था| दोनों बहन भाई हंस हंस के आपस में बात कर रहे थे| परवीन अपनी बेटी की पोशाक देखकर बुरी तरह से चौंक गई। नज़मा ने वही सफ़ेद पेटीकोट पहना था जो परवीन ने उसे दिया था| वो पेटीकोट नज़मा के शरीर से चिपक गया था| पेटीकोट के होने या ना होने से कोई फरक नहीं पड रहा था| पेटीकोट बिलकुल वैसे ही नज़मा के बदन से चिपका था जैसे सांप की केंचुली|

परवीन नज़मा को वो पेटीकोट देने के लिए खुद को कोस रही थी। उसे खुद पर गुस्सा आ रहा था। उसे अपने बेटे पर भी गुस्सा आ रहा था जिसने अपनी बहन को बताया भी नहीं की वो लगभग नंगी उसके सामने नहा रही है| जाने क्या-२ विचार परवीन के दिमाग में चल रहे थे| जैसे ही इरफ़ान ब्रश करके अंदर आया, परवीन पिछवाड़े में जाके नज़मा पर चिल्लाने लगी।

परवीन: क्या पहन कर नहा रही हो?

नज़मा अचानक से अपनी माँ को देख के घबरा गयी| वो जल्दी से अपने नंगे बदन को अपनी माँ से छुपाना चाहती थी| लेकिन शायद उसका ये कदम उल्टा पड़ सकता था| नज़मा को अब अपना हर कदम सावधानी से उठाना था|

नज़मा वैसे ही नहाती रही और बिलकुल साधारण लहजे में पुछा: क्यों क्या हुआ माँ? पेटीकोट पहन के नहा रही हूँ, आपने ही तो दिया था कुछ दिन पहले|

परवीन चिल्ला उठी: पहले क्यों नहीं कहा की नहाने के लिए चाहिए|

नज़मा (डरी हुई आवाज़ में): क्या हो गया माँ? आप मुझे डांट क्यों रहे हो?

परवीन (गुस्से से): नहाने को नहीं है ये पेटीकोट| घोड़ी जितनी बड़ी हो गयी है, अक्कल दो पैसे ही नहीं आयी|

नज़मा: लेकिन हुआ क्या माँ? बताओ तो सही|

परवीन गुस्से से थरथरा रही थी और अपनी हीरोइन नज़मा मासूम बनने का नाटक बिलकुल शातिर अभिनेत्री की तरह कर रही थी|

परवीन: या अल्लाह| कान खोल के सुन ले, आज के बाद तू ये ... ये पेटीकोट पहन के नहीं नहाएगी| समझ आया, पेटीकोट पहन के नहीं नहाएगी|

नज़मा: लेकिन मैं ..

परवीन: लेकिन वेकिन कुछ नहीं| तूने अगर मेरी बात नहीं मानी तो टांग तोड़ दूंगी तेरी ... समझ आयी|

नज़मा का मुंह रुआंसा हो गया और वो टकटकी लगा के अपनी माँ को देखने लगी|

परवीन: अब जल्दी ख़तम कर नहाना और जाके तैयार हो|

नज़मा सुबकते हुए अपने कमरे की तरफ चली गयी| दिखाने के लिए चाहे नज़मा बहुत दुखी थी लेकिन मन ही मन वो बहुत खुश थी| ना जाने क्या नया प्लान पका रही थी|

परवीन अपनी दुकान पर चली गई। अब भी परवीन के दिमाग में सुबह वाली घटना घूम रही थी| अब उसे बुरा रहा था, शायद उसे नज़मा को इतनी बुरी तरह नहीं डांटना चाहिए था| नज़मा बेचारी की तो गलती ही नहीं थी। नज़मा को पता ही नहीं लगा होगा की पेटीकोट अब इतना पतला होके बिलकुल पारदर्शी हो गया है| मैंने ही तो उसे ये पेटीकोट दिया था। गलती मेरी थी, इरफ़ान की थी लेकिन डांट मेरी प्यारी बेटी नज़मा को पड़ गयी| वो तो अच्छा हुआ की मैंने उसे इरफ़ान के सामने नहीं डांटा नहीं तो नज़मा को और बुरा लगता| लेकिन करती क्या, उसे डांटना भी तो ज़रूरी था| कैसे नंगी अपने भाई के सामने नहा रही थी| अल्लाह अक्कल दे मेरी बेटी को, अब वो बड़ी हो रही है| उसे अब मर्दों की नज़र की समझ आ जानी चाहिए| चलो जो हो गया, सो हो गया| कम से कम अब नज़मा उस पेटीकोट में तो तो अपने भाई के सामने नहीं नहाएगी|

दूसरी तरफ घर में नज़मा भी सुबह की घटनाओ के बारे में सोच रही थी| उसके दिमाग में अपनी माँ के कहे हुए सारे शब्द गूँज रहे थे| उसको साफ़ पता चल चूका था की उसकी माँ ने क्या कहा और कहे गए एक-२ शब्द का क्या मतलब है| नज़मा बेचारी एक बहुत ही मासूम बच्ची थी, वो अपनी माँ के कहे शब्दों का मतलब भी तो अपने बच्चों वाले दिमाग से ही निकालेगी| नज़मा के दिमाग में एक प्लान जनम ले चूका था| रात को भी नज़मा अपने प्लान के बारे में सोचती रही और ठीक से सो भी नहीं पायी| वो बार अपने प्लान को अपने दिमाग में सोच रही थी, उसकी छोटी-२ चीज़ों के बारे में वो पूरी तरह से आश्वस्त हो जाना चाहती थी| पता नहीं कब सोचते-२ नज़मा की आंख लग गयी|

अगली सुबह, नज़मा ने उठ कर अपनी योजना के अनुसार काम शुरू कर दिया| जैसे ही उसके पापा पिछवाड़े से नहा से आये, नज़मा रोज़ की तरह शौच करने के बाद, नहाने बैठ गयी| आज नज़मा ने अपना पेटीकोट भी उतार के एक साइड में रख दिया और केवल पेंटी में अपने भाई का इंतज़ार करने लगी| नज़मा के निप्पल उत्तेजना के मारे सख्त हो गए थे| उसका बदन उत्तेजना के मारे हल्का-२ कांप रहा था| उसके सारे रोयें खड़े हो रखे थे|

अब किसी भी समय उसका भाई पिछवाड़े में आ सकता था| थोड़ी देर में ही एक आवाज़ सुनाई दी| नज़मा के हाथ अपने आप ही नारी लज्जा के कारण बोबे छिपाने के लिए उठे लेकिन नज़मा ने हिम्मत करके बिलकुल नार्मल रही|

इरफ़ान पिछवाड़े में आ चूका था| एक पल को तो इरफ़ान की ऐसा लगा की उसकी बहन बिलकुल नंगी बैठी है लेकिन फिर उसने देखा की उसकी बहन ने सिर्फ एक छोटी सी कच्छी पहनी हुई है| उसे अपनी आँखों पे विश्वास नहीं हो रहा था| उसे उम्मीद थी की रोज की तरह आज भी उसकी बहन पारदर्शी पेटीकोट में होगी लेकिन ये नज़ारा तो पूरी तरह से चौंका देने वाला था।

नज़मा को इरफ़ान की घूरती नज़रें अपने बदन पे महसूस हो रही थी| नज़मा बैठी हुई थी और उसकी छाती उसके पैरों से दबी हुई थी| उसके बोबे दबकर थोड़ा साइड में फ़ैल गए थे| इरफ़ान को नज़मा के साइड से बोबे नंगे दिखाई दे रहे थे|

इरफ़ान (हकलाते हुए): दीदी ... तुम .... तुम .... नंगी क्यों नहा रही हो? पेटीकोट क्यों नहीं पहना?

नज़मा ( मासूमियत से अपनी आँखों को नीचे करते हुए): पता नहीं भाई, माँ ने मुझे नहाते हुए पेटीकोट पहनने से मना किया है|
 
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