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कुछ देर बाद मेरे सास ससुर उठ गए और मैं उनको नाश्ता सर्व करने लगी की तभी गुड्डू भी हमारे रूम से बाहर आ गया। वो भी नहा कर रेडी हो चुका था लेकिन पता नहीं क्यों उसको देखते ही मेरा चेहरा शर्म से लाल हो गया और मैंने शर्म से अपनी आंखे नीचे कर लि। पता नही मेरे साथ ये क्या हो रहा था।

गुड्डू ने मुझे देखा और उसके चेहरे पर मुस्कान आ गई लेकिन मेरी हिम्मत ही नहीं हो रही थी की मैं उसे सर उठा कर देख सकू। मैं चुप चाप बिना उसकी और देखे फिर से रसोई में चली गई और मन में सोचने लगी की ये मुझे क्या हो रहा है।
तभी थोड़ी देर बाद गुड्डू वही रसोई में आ गया। मेरे सांसे तेज होने लगी मैं गुड्डू की तरफ नही देख पा रही थी।
गुड्डू - "मम्मी..."
मेरी सांसे और तेज हो गई
"क्या हुआ मम्मी... सब ठीक तो है"
मैं कुछ नही बोली बस वैसे ही उसकी तरफ पीठ करके खड़ी रही। सांसे अभी भी तेज थी।
"मम्मी... आप मुझे नाराज़ हो क्या"
मेरा कोई जवाब न आने पर गुड्डू ने पीछे से ही मेरा हाथ पकड़ लिया।
"मम्मी आपको मेरी कसम... क्या आप कल की वजह से मुझसे नाराज़ हो।"
मैं - "न.न.. नही तो"
गुड्डू - "फिर आप मेरी तरफ क्यों नही देख रही हो आपको मेरी कसम है, बताओ मम्मी वरना आप मेरा मरा...."
मैने जल्दी से मुड़ कर अपनी हथेली से उसका मुंह बंद कर दिया।
"खबरदार अगर फिर से एक कुछ कहा तो, मुझसे बुरा कोई नही होगा"
गुड्डू ने मेरी उसी हथेली को चूम लिया और फिर मेरी बाजू को पकड़ कर कहा
"फिर बताओ मुझसे दूर क्यों भाग रही हो"
मैं शर्मा कर और मुस्कुरा कर अपनी नज़रे नीचे कर लि
"ऐसा कुछ नही है"
गुड्डू ने मेरी मुस्कुराहट देख ली और वो समझ गया की मैं कल रात के कारण बिल्कुल भी नाराज नहीं हूं उसने मेरी कमर में हाथ डाल कर मुझे खुदकी और खीच लिया।
"अच्छा तो बताओ कल की रात कैसी रही"
उसके अचानक मुझे अपनी ओर खींच लेने से मैं थोड़ा घबरा गई, लेकिन उसके सवाल ने मुझे फिर से शर्म से भर दिया। मैंने बिना कुछ कहे उसकी बाहों में ही अपनी नजरें नीचे कर लीं। गुड्डू ने धीरे से मेरी ठोड़ी को अपनी उंगली से ऊपर किया, और मैं किसी नाजुक कली की तरह उसकी उंगली के एक इशारे से उसकी ओर देखने लगी। इतना करीब किसी मां बेटे को नहीं होना चाहिए।
हम दोनों इस वक्त बहुत करीब थे। उसकी आंखों में एक अनकही बात थी, और मेरी धड़कनें तेज हो गईं। उस नजदीकी में, जिसे सिर्फ हमारी निगाहें समझ सकती थीं। उसकी मासूमियत और उस पल की गहराई ने मुझे असमंजस में डाल दिया।
मेरे दिल में एक तूफान सा उठ रहा था, लेकिन गुड्डू की निगाहों में एक अजीब सी शांति थी। उस पल, ऐसा लग रहा था जैसे समय ठहर गया हो। तभी अचानक वो अपने होंठो को मेरी और बढ़ने लगा मैंने भी बिना कुछ कहे सिर्फ अपनी आंखे बंद कर ली और अपने कांपते हुए होंठो को उसकी और कर दिया।

हम दोनो के होंठ एक दूसरे जुड़ चुके थे उसके होंठों की गर्मी मुझे महसूस हो रही थी और ऐसा लग रहा था जैसे दुनिया में इसे ज्यादा आराम और कही नही है। मैं अपना एक हाथ उसके सर के पीछे ले जाने लगी की तभी मुझे याद आया की घर में मेरे सास ससुर भी है मैं तुरत गुड्डू से अलग हो गई।

गुड्डू ने मुझे देखा और उसके चेहरे पर मुस्कान आ गई लेकिन मेरी हिम्मत ही नहीं हो रही थी की मैं उसे सर उठा कर देख सकू। मैं चुप चाप बिना उसकी और देखे फिर से रसोई में चली गई और मन में सोचने लगी की ये मुझे क्या हो रहा है।
तभी थोड़ी देर बाद गुड्डू वही रसोई में आ गया। मेरे सांसे तेज होने लगी मैं गुड्डू की तरफ नही देख पा रही थी।
गुड्डू - "मम्मी..."
मेरी सांसे और तेज हो गई
"क्या हुआ मम्मी... सब ठीक तो है"
मैं कुछ नही बोली बस वैसे ही उसकी तरफ पीठ करके खड़ी रही। सांसे अभी भी तेज थी।
"मम्मी... आप मुझे नाराज़ हो क्या"
मेरा कोई जवाब न आने पर गुड्डू ने पीछे से ही मेरा हाथ पकड़ लिया।
"मम्मी आपको मेरी कसम... क्या आप कल की वजह से मुझसे नाराज़ हो।"
मैं - "न.न.. नही तो"
गुड्डू - "फिर आप मेरी तरफ क्यों नही देख रही हो आपको मेरी कसम है, बताओ मम्मी वरना आप मेरा मरा...."
मैने जल्दी से मुड़ कर अपनी हथेली से उसका मुंह बंद कर दिया।
"खबरदार अगर फिर से एक कुछ कहा तो, मुझसे बुरा कोई नही होगा"
गुड्डू ने मेरी उसी हथेली को चूम लिया और फिर मेरी बाजू को पकड़ कर कहा
"फिर बताओ मुझसे दूर क्यों भाग रही हो"
मैं शर्मा कर और मुस्कुरा कर अपनी नज़रे नीचे कर लि
"ऐसा कुछ नही है"
गुड्डू ने मेरी मुस्कुराहट देख ली और वो समझ गया की मैं कल रात के कारण बिल्कुल भी नाराज नहीं हूं उसने मेरी कमर में हाथ डाल कर मुझे खुदकी और खीच लिया।
"अच्छा तो बताओ कल की रात कैसी रही"
उसके अचानक मुझे अपनी ओर खींच लेने से मैं थोड़ा घबरा गई, लेकिन उसके सवाल ने मुझे फिर से शर्म से भर दिया। मैंने बिना कुछ कहे उसकी बाहों में ही अपनी नजरें नीचे कर लीं। गुड्डू ने धीरे से मेरी ठोड़ी को अपनी उंगली से ऊपर किया, और मैं किसी नाजुक कली की तरह उसकी उंगली के एक इशारे से उसकी ओर देखने लगी। इतना करीब किसी मां बेटे को नहीं होना चाहिए।
हम दोनों इस वक्त बहुत करीब थे। उसकी आंखों में एक अनकही बात थी, और मेरी धड़कनें तेज हो गईं। उस नजदीकी में, जिसे सिर्फ हमारी निगाहें समझ सकती थीं। उसकी मासूमियत और उस पल की गहराई ने मुझे असमंजस में डाल दिया।
मेरे दिल में एक तूफान सा उठ रहा था, लेकिन गुड्डू की निगाहों में एक अजीब सी शांति थी। उस पल, ऐसा लग रहा था जैसे समय ठहर गया हो। तभी अचानक वो अपने होंठो को मेरी और बढ़ने लगा मैंने भी बिना कुछ कहे सिर्फ अपनी आंखे बंद कर ली और अपने कांपते हुए होंठो को उसकी और कर दिया।

हम दोनो के होंठ एक दूसरे जुड़ चुके थे उसके होंठों की गर्मी मुझे महसूस हो रही थी और ऐसा लग रहा था जैसे दुनिया में इसे ज्यादा आराम और कही नही है। मैं अपना एक हाथ उसके सर के पीछे ले जाने लगी की तभी मुझे याद आया की घर में मेरे सास ससुर भी है मैं तुरत गुड्डू से अलग हो गई।
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