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Incest जवानी के अंगारे ( Completed)

kamdev99008

FoX - Federation of Xossipians
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लेकिन आपका आभार,.... कम से कम आपको यह नाम किसी भी तरह याद तो आगया, वरना ज्यादातर लोग तो वह गैल डगर भूल चुके हैं, बिसर गए हैं जो मेरी कहानियो की ओर जाता है,
आपको कौन भुला सकता है..........
कोमल जी , XS के समय आपने " फागुन के दिन चार " लिखा था और वो लगभग एक इरोटिक उपन्यास ही था। मैने इससे बेहतर कोई भी इरोटिक , थ्रिलर , ग्रामीण एवं शहरी पृष्ठ भूमि पर आधारित उपन्यास नही पढ़ा ।
..........मैंने भी .......... फागुन के दिन चार ......... ही पढ़ी थी............ वो भी PDF में.... शायद वो PDF आज भी मेरे लैपटाप में कहीं छुपा होगा :D
बहुत इच्छा होती है कि आप के थ्रीड पर आऊं पर आपके स्टोरी पर इतने अधिक अपडेट आ चुके है कि हिम्मत नही होता। काम धाम की वजह से ज्यादा यहां एक्टिव भी नही हो पाता और जब होता हूं तो कुछ मित्र या कुछ नए राइटर के थ्रीड पर ट्रैवल कर लेता हूं।
यही मेरा भी हाल है.............. लेकिन कोमल भाभी जी की कहानियाँ पढ़ूँगा तो जरूर .......... कभी ना कभी


बस यही मलाल है कि आजतक इनकी कहानी पर रिवियू नहीं लिख पाया............ क्योंकि कभी चलती हुयी कहानी को साथ-साथ नहीं पढ़ पाया
 

Ashokafun30

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अशोक जी की पोस्ट और उपमा की बात से ये मेरी कभी पहले की पोस्ट याद आ गयी, ज्यूँ का त्युं पोस्ट कर दे रही हूँ

इसमें दिखाए गए सभी गुण अशोक जी के लेखन में नजर आते हैं,... वह लेखकों के लेखक हैं


काव्यशोभा करान धर्मान अलंकारान प्रचक्षते। अर्थात वह कारक जो काव्य की शोभा बढ़ाते हैं उसे अलंकार कहते हैं।

अलंकार काव्य और गद्य दोनों ही प्रकार के साहित्य का अभिन्न अंग है , उपमा भी एक अलंकार है , जिसे अगर बहुत सरल शब्दों में कहूं तो जिस जगह दो वस्तुओं में अन्तर रहते हुए भी आकृति एवं गुण की समानता दिखाई जाए उसे उपमा अलंकार कहा जाता है।
उदाहरण

सागर-सा गंभीर हृदय हो,
गिरी- सा ऊँचा हो जिसका मन।


इसमें सागर तथा गिरी उपमान, मन और हृदय उपमेय सा वाचक, गंभीर एवं ऊँचा साधारण धर्म है।

उपमा अलंकार अर्थालंकार है ,

जब किन्ही दो वस्तुओं के गुण, आकृति, स्वभाव आदि में समानता दिखाई जाए या दो भिन्न वस्तुओं कि तुलना कि जाए, तब वहां उपमा अलंकर होता है।

उपमा अलंकार में एक वस्तु या प्राणी कि तुलना दूसरी प्रसिद्ध वस्तु के साथ कि जाती है। जैसे :


हरि पद कोमल कमल।



ऊपर दिए गए उदाहरण में हरि के पैरों कि तुलना कमल के फूल से की गयी है। यहाँ पर हरि के चरणों को कमल के फूल के सामान कोमल बताया गया है। यहाँ उपमान एवं उपमेय में कोई साधारण धर्म होने की वजह से तुलना की जा रही है अतः यह उदाहरण उपमा अलंकार के अंतर्गत आएगा।
उपमा की बात करें तो कालिदास का स्मरण होता ही है

उपमा कालिदासस्य भारवेरर्थगौरवम्।
दण्डिनः पदलालित्यं माघे सन्ति त्रयो गुणाः॥

Simile is Kalidas’ forte, Bharavi – density of meaning;

Dandi – simplicity and Magha possesses all three qualitites!”


कालिदास की एक उपमा इतनी पसंद की गयी कि उनका नाम ही "दीपशिखा कालिदास" पड़ गया। वह उपमा थी -


संचारिणी दीपशिखेव रात्रौ यं यं व्यतीयाय पतिंवरा सा।

नरेंद्र मार्गाट्ट इव प्रपदे विवर्णभावं स स भूमिपालः।।


रघुवंश का प्रसंग है। इंदुमती का स्वयंवर हो रहा था। बहुत से राजा-राजकुमार जमा हुए थे। हाथ में वरमाला लिए वह जिस राजा को छोड़कर आगे बढ़ जाती उसका चेहरा ऐसा धुँधला पड़ जाता जैसे मशाल के आगे बढ़ जाने से अँधेरे में खोये सड़क किनारे के मकान हों।

शकुन्तला के अछूते सौंदर्य को देखकर दुष्यंत ऐसे ही उपमानों की झड़ी लगा देते हैं -



अनाघ्रातं पुष्पं किसलयमलूनं कररुहै

रनाविद्धं रत्नं मधु नवमनास्वादितरसम्।

अखण्डं पुण्यानां फलमिव च तद्रूपमनघं

न जाने भोक्तारं कमिह समुपस्थास्यति विधिः।।



यह तो अनसूँघा फूल है, अनछुआ पत्ता है, अनबिंधा रत्न है, अनचखा शहद है।

न जाने कितने संचित पुण्यों के फल जैसी इस शकुन्तला को पता नहीं विधाता ने किसके भाग्य में लिखा है।



अनेक प्रसंग है ऐसे ,
और इस पूरे फोरम में अनेक अच्छे लेखक हैं, लेकिन जो टटकी ताज़ी और अनछुई उपमाएं इनकी कहानियों में मिलती हैं अन्यत्र दुर्लभ हैं
komaalrani bhabhi,
aapke comments padkar mai to niruttar sa ho gaya hu, mai kya sabhi jaante hai ki aap jaisa prem prasang ka jaankar, upma alankar ka gyata aur hindi sahitya ki pakad rakhne wala koi lekhak poore forum par nahi hai, isliye mujhe apna jagha malum hai.
aapko aur mere sabhi readers ko mere updates acche lagte hai, iska mai dil se abhaari hu, shayad yahi comments mujhe encourage karti hain agli baar kuch aur alag aur accha likhne ke liye, meri wo koshish jaari rahegi.
ek baar fir se aapka dil se abhaar
 

Hunk1988

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Isme ek bat ki thodi sujav है मेरा
जो आपने संजू का शहद लिखा है वो दर असल नमकीन और तीखी चटनी है।।
जो सिर्फ वही है उत्पाद होती है स्वाद (नमकीन तीखी
सी चटनी) और सुगंध (मछली जैसी) जब सिर्फ गालों पे भी लग जाए तो पूरा दिन उसकी गंध नही जाती
हल्की हल्की महेक उफ्फ
बिल्कुल सही बात है, काफी अनुभव है , अक्सर रसास्वादन करतीं हैं क्या
 
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Ashokafun30

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अशोक जी की पोस्ट और उपमा की बात से ये मेरी कभी पहले की पोस्ट याद आ गयी, ज्यूँ का त्युं पोस्ट कर दे रही हूँ

इसमें दिखाए गए सभी गुण अशोक जी के लेखन में नजर आते हैं,... वह लेखकों के लेखक हैं


काव्यशोभा करान धर्मान अलंकारान प्रचक्षते। अर्थात वह कारक जो काव्य की शोभा बढ़ाते हैं उसे अलंकार कहते हैं।

अलंकार काव्य और गद्य दोनों ही प्रकार के साहित्य का अभिन्न अंग है , उपमा भी एक अलंकार है , जिसे अगर बहुत सरल शब्दों में कहूं तो जिस जगह दो वस्तुओं में अन्तर रहते हुए भी आकृति एवं गुण की समानता दिखाई जाए उसे उपमा अलंकार कहा जाता है।
उदाहरण

सागर-सा गंभीर हृदय हो,
गिरी- सा ऊँचा हो जिसका मन।


इसमें सागर तथा गिरी उपमान, मन और हृदय उपमेय सा वाचक, गंभीर एवं ऊँचा साधारण धर्म है।

उपमा अलंकार अर्थालंकार है ,

जब किन्ही दो वस्तुओं के गुण, आकृति, स्वभाव आदि में समानता दिखाई जाए या दो भिन्न वस्तुओं कि तुलना कि जाए, तब वहां उपमा अलंकर होता है।

उपमा अलंकार में एक वस्तु या प्राणी कि तुलना दूसरी प्रसिद्ध वस्तु के साथ कि जाती है। जैसे :


हरि पद कोमल कमल।



ऊपर दिए गए उदाहरण में हरि के पैरों कि तुलना कमल के फूल से की गयी है। यहाँ पर हरि के चरणों को कमल के फूल के सामान कोमल बताया गया है। यहाँ उपमान एवं उपमेय में कोई साधारण धर्म होने की वजह से तुलना की जा रही है अतः यह उदाहरण उपमा अलंकार के अंतर्गत आएगा।
उपमा की बात करें तो कालिदास का स्मरण होता ही है

उपमा कालिदासस्य भारवेरर्थगौरवम्।
दण्डिनः पदलालित्यं माघे सन्ति त्रयो गुणाः॥

Simile is Kalidas’ forte, Bharavi – density of meaning;

Dandi – simplicity and Magha possesses all three qualitites!”


कालिदास की एक उपमा इतनी पसंद की गयी कि उनका नाम ही "दीपशिखा कालिदास" पड़ गया। वह उपमा थी -


संचारिणी दीपशिखेव रात्रौ यं यं व्यतीयाय पतिंवरा सा।

नरेंद्र मार्गाट्ट इव प्रपदे विवर्णभावं स स भूमिपालः।।


रघुवंश का प्रसंग है। इंदुमती का स्वयंवर हो रहा था। बहुत से राजा-राजकुमार जमा हुए थे। हाथ में वरमाला लिए वह जिस राजा को छोड़कर आगे बढ़ जाती उसका चेहरा ऐसा धुँधला पड़ जाता जैसे मशाल के आगे बढ़ जाने से अँधेरे में खोये सड़क किनारे के मकान हों।

शकुन्तला के अछूते सौंदर्य को देखकर दुष्यंत ऐसे ही उपमानों की झड़ी लगा देते हैं -



अनाघ्रातं पुष्पं किसलयमलूनं कररुहै

रनाविद्धं रत्नं मधु नवमनास्वादितरसम्।

अखण्डं पुण्यानां फलमिव च तद्रूपमनघं

न जाने भोक्तारं कमिह समुपस्थास्यति विधिः।।



यह तो अनसूँघा फूल है, अनछुआ पत्ता है, अनबिंधा रत्न है, अनचखा शहद है।

न जाने कितने संचित पुण्यों के फल जैसी इस शकुन्तला को पता नहीं विधाता ने किसके भाग्य में लिखा है।



अनेक प्रसंग है ऐसे ,
और इस पूरे फोरम में अनेक अच्छे लेखक हैं, लेकिन जो टटकी ताज़ी और अनछुई उपमाएं इनकी कहानियों में मिलती हैं अन्यत्र दुर्लभ हैं
hindi sahitya ki itni jaankari hona kisi vardaan se kam nahi hai
look at this
I am amazed with your knowledge
hats off to you komaalrani
 

Ashokafun30

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जिसे बाहर फर्श पर लेटी अनु सॉफ देख पा रही थी
उसमें इतनी हिम्मत नही थी की उठकर खड़ी हो और उस नज़ारे का भरपूर आनंद ले
पर उसे मालूम था की वो वक़्त भी आने वाला है जब वो उस झरने के नीचे पड़ी हुई नहा रही होगी

अंदर और बाहर दोनो तरफ आने वाले कल की रंगीन पिक्चर चल रही थी.
कुल मिलाकर सबको बहुत मज़ा आने वाला था.

अगले दिन शेफाली ऑफिस नहीं गयी, सुधीर सर ने उसकी चूत के धागे ढीले कर डाले थे
आज वो पूरा दिन बेसुध सी नंगी लेटकर गुजारना चाहती थी




अनु स्कूल के लिए तैयार हुई और आलस से भरी नंगी सो रही मॉम को गुड मॉर्निंग किस करके बहार का लॉक लगाकर स्कूल के लिए निकल गयी
आज स्कूल में अनु कुछ ज़्यादा ही खुश थी
एक अलग ही अकड़ के साथ चल रही थी वो सीना तान के
चलती भी क्यों नही
आख़िर उसके पापा (होने वाले ही सही) स्कूल के सबसे अच्छे और सैक्सी टीचर जो थे
एक रुतबा है उनका
जैसे किसी मंत्री की औलाद में होता है, वैसा ही असर अनु की चाल में भी दिख रहा था

उपर से ये खुशी भी की वो अब हमेशा के लिए उनके साथ एक ही घर में रहेगी
आने वाले टाइम में उनसे चुद भी सकेगी
और वो भी उम्र भर
बस मॉम को अपने प्लान में शामिल करना रह गया थामें
क्योंकि वो नही चाहती थी की उन्हे ये सब ऐसी अवस्था में पता चले जब उन्हे ज़्यादा दुख हो

उसकी मटक रही गांड की थिरकन उसके पीछे चल रहा स्कूल का पियून बिनोद भी देख रहा था
पिछले कुछ दिनों से उसने जो भी नोट किया था अनु के बारे में , उससे ये तो पता चल ही चुका था की पूरे स्कूल की सबसे हरामी लड़कियों में से एक है वो
उसका चलने का अंदाज, नशीली आँखे, शरबती होंठ और लड़का हो या मर्द, उन्हें देखने का अंदाज
ये सब उसके वो हथियार थे जिन्हे वो हर समय इस्तेमाल करती थी

और उसके पीछे चलते हुए वो उसके कुल्हो को इधर उधर होते हुए सॉफ देख पा रहा था
और अचानक वो चलते -2 रुक गयी
कहते है लड़कियो के पीछे भी दो आँखे होती है (गांड में ही होती होंगी शायद)
और उन्ही से उसे अंदाज़ा हो गया था की कोई उसके पिछवाड़े को घूर रहा है
वो अचानक पलटी तो बिनोद हड़बड़ा सा गया और उसके हाथ की फाइल्स नीचे गिर गयी
अनु भी उसके साथ नीचे बैठी और फाइल्स को उठा कर उसके हाथ में दे दिया

और जाते-2 एक नशीली मुस्कान बिखेरती हुई वापिस उठ कर अपनी क्लास की तरफ चल दी
वो एक ठंडी आ भरकर उसे जाते हुए देखता रहा
वो बेचारा नही जनता था की उस शातिर अनु के दिमाग़ में क्या चल रहा है

अनु जब क्लास में पहुँची तो निशा को अपना इंतजार करते हुए पाया
पिछले कुछ दिनों से वो उसके साथ टाइम नही बिता पा रही थी, इसलिए करने के लिए कई बातें थी

पहला पीरियड इंग्लीश का था उसके बाद वाली मेडम आज छुट्टी पर थी, इसलिए दोनो स्कूल परिसर के पीछे बने छोटे पार्क में जाकर बैठ गये

जहाँ अक्सर ज़्यादा बच्चे आते नही थे
वहां पेड़ के नीचे लगा एक बड़ा सा बेंच उनके एकसाथ बैठने की फ़ेवरेट जगह थी
और वहां बैठते ही निशा शुरू हो गयी

“अब जल्दी से बोल चुड़ैल , क्या चल रहा है आजकल, सर के साथ, उनके साथ ओलम्पियाड वाले काम में क्या लगी तू, मुझे तो भूल ही गयी है, मुझे एक-2 बात बता कमीनी , क्या हुआ तुम दोनो के बीच अभी तक…”

और अनु तो शुरू से ही हरामी थी, उसने सारी बातें नमक मिर्च के साथ सुना डाली
सर के साथ स्कूल में लॅंड चुसाई, बूब सकिंग
घर में सर का आना
मॉम के रहते हुए अपने रूम में सर के साथ मज़ा करना

फिर मॉम के साथ सुधीर सर की सेट्टिंग वाली बात
और अंत में सुधीर सर का शादी के लिए हां कर देना भी उसने बता दिया
वो उससे कुछ भी नही छुपाती थी
और वो भी ये सब अपने तक ही रखेगी, इसका उसे विश्वास था

वो सब सुनकर निशा का तो दिमाग़ ही चकरा गया
और अंत में वो बोली : “यार अनु…..कसम से यार.... तू एक नंबर की हरामी है, कैसे तूने अपने टारगेट पर नज़र रखी और अपने साथ पूरी लाइफ के लिए उन्हे सेट कर लिया…कसम से लड़की, तू कमाल की चीज़ है, हेट्स ऑफ टू यू ”

अपने हरामीपन की तारीफ सुनकर अनु को हमेशा खुशी मिलती थी, आज भी मिली

और अनु जानती थी की ये सुनकर निशा की चूत में पानी आ गया होगा

निशा : “यार अनु….प्लीज़ ना…एक बार मुझे भी सर के साथ मज़ा करवा दे ….देख, तू तो लेती रहती है और आगे भी लेती रहेगी, और हम बस कुछ महीनो के लिए ही इस स्कूल में साथ है, उसके बाद पता नही किस्मत कहाँ ले जाएगी…प्लीज़ ना, मेरा भी कुछ करवा ना…एक बार…”

अनु जानती थी की निशा भी सर को लेकर कितने सपने देख चुकी है

वो बोली : “पर तुझे क्या पड़ी है सर से मरवाने की, तेरे पास तो वो है ना, तेरा बाय्फ्रेंड संजू, फिर क्यों तू सर के लॅंड के लिए मचल रही है”

निशा : “यार, तुझे तो पता ही है, ऐसे छिछोरे लड़के तो मिलते रहते है, सर जैसा डैशिंग मर्द कभी कभार मिलता है, तू संजू को छोड़ ना, सर के बारे में बात कर…”

ये बोलते हुए उसका चेहरा देखने लायक था




अनु ने कुछ देर तक सोचा और बोली : “सर के साथ करवाने के लिए पूरी सेट्टिंग बैठानी पड़ेगी पर आज के लिए मैं तेरा कुछ जुगाड़ कर सकती हूँ …और वो भी एक मैच्योर मर्द के साथ…”

अनु की बात सुनकर निशा की बाँछे खिल गयी
वो बोली : “प्लीज़ प्लीज़ प्लीज़ यार…..करवा दे….देख ना ये सुनते ही मेरी पुस्सी कैसे पिचकारियां मारने लगी है…”
निशा ने उसका हाथ पकड़ कर अपनी चूत पर रख लिया जो उसके रस में पूरी भीगी पड़ी थी.

अनु तब तक अपना प्लान बना चुकी थी
वो बोली : “मैं करवा तो दूँगी पर मेरी एक शर्त है, तुझे अपनी आँखो पर पट्टी बाँधनी होगी…”
ये बात सुनकर वो थोड़ा अचकचा गयी
और बोली : “आँखो पर पट्टी, ये…ये क्यों भला, किसके साथ करवाना चाहती है, ऐसे मुझसे छुपाकर ”

अब उसके दिमाग़ में शंकाए आ रही थी
अनु : “तू बस आम खा, पेड़ मत गिन, आँखो पर पट्टी बाँधने को किसलिए बोल रही हूँ , इसलिए ना की उसकी पहचान छुपानी है, तुझे नही करवाना तो वो तेरी मर्ज़ी…”

निशा : “अर्रे नही नहीं …मैं तो बस ऐसे ही पूछ रही थी…वो मैं सोच रही थी की ऐसा भला कौन सा मर्द होगा जो चुदाई में इस तरह से शरमाये…मुझे कोई फ़र्क नही पड़ता, चाहे कोई भी हो, मैं बिना पट्टी के भी , किसी से भी, कुछ भी करवाने के लिए तैयार हूँ ”

अनु ने कुछ देर तक सोचा , पर फिर बोली : “नही…जैसा मैने कहा है, वैसा ही करना होगा, वरना रहने दे…”
इतना कहकर वो उठकर जाने लगी
निशा ने लगभग गिड़गिड़ाते हुए उसे रोका और बोली : “यार…प्लीज़ ना, तूने तो मेरी आग को और भी ज़्यादा भड़का दिया है…अब जो तुझे करना है, कर, मैं कुछ नही बोलूँगी, पर मुझे आज किसी भी हालत में लॅंड चाहिए ही चाहिए…”
 
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Ashokafun30

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उसकी हालत देखकर अनु मन ही मन मुस्कुरा उठी

वो चाहती तो ये आँखो पर पट्टी वाली बात उसे बोलती भी नही, पर पता नही क्यों एक अजीब सा रोमांच मिल रहा था उसके साथ ऐसा खेल खेलने में उसे

शायद कोई उसके साथ भी ऐसे करता तो वो भी इतनी ही उत्तेजित होती जितना वो हो रही है इस वक़्त
अब ये तो सॉफ था की वो सुधीर सर से तो उसे चुदवाने से रही

तो आख़िर कौन था जिसके साथ वो ये कांड करवाना चाहती थी
वो था स्कूल का पियून बिनोद

आज सुबह से ही अनु के दिमाग़ में वो शख्स घूम रहा था

ग़रीब सा , काला रंग, दुबला शरीर, 45-50 के बीच उम्र, आधे बाल उड़े हुए, जिन्हे वो टोपी से ढक कर रखता था, हल्की दाढ़ी मूंछ , चेहरे पर हमेशा हवस के बादल तैरते रहते थे उसके

तैरते भी क्यों नही, आख़िर पूरा स्कूल जवान और अनछुई कलियों से भरा जो पड़ा था




और जब से अनु ने सर के साथ स्कूल टाइम के बाद उनके रूम में बैठना शुरू किया था, तब से उसने नोट किया था की वो उसे कैसे खा जाने वाली नज़रों से देखता है

भले ही उसका हुलिया, पहनावा, उम्र, शक्ल ,ओहदा कुछ भी उसके स्टॅंडर्ड से या सर के मुक़ाबले मेल नही ख़ाता था
पर पता नही क्यो, जब भी वो अपनी हवसी नज़रों से उसे देखता था तो उसके दिल की धड़कन तेज हो जाती थी
निप्पल टाइट हो जाते और चूत में एक नमीं आ जाती

भले ही उसने आज तक उसके साथ ऐसा कुछ भी करने के बारे में नही सोचा था

पर पता नही क्यों वो अंदर से चाहती थी की वो उसके साथ खुद ही पहल करे, उसके ना चाहते हुए भी उसके शरीर को मसले, कभी अचानक वो पीछे से आये और उसके स्तनों को निचोड़ डाले , वो उसके खड़े लॅंड को अपनी स्कर्ट के उपर, अपनी गांड पर महसूस करना चाहती थी




पर सर के बार में सोचकर वो ये सब करने से अभी तक रुकी हुई थी, वो अपना कौमार्य , पहली चुदाई सर के नाम करना चाहती थी
अपनी चूत की सील पर वो सुधीर सर के नाम की नेम प्लेट लगा चुकी थी
अब तो वो बेरियर उनके लंड के ट्रक ने ही पार करना था
बाकी सब चुंगी पर लाइन लगाकर खड़े रहने वाले थे तब तक

और निशा जिस कद्र तड़प रही थी उस आग में
उसे पता नही क्यों बिनोद का ही ख़याल आया एकदम से
शायद निशा को चुदते हुए देखकर वो अपनी मचल रही भावनाओ को कुछ आराम देना चाहती थी
अब बस बिनोद को पटाना बाकी था

उसने बोल तो दिया निशा को ये सब, पर अभी तक बिनोद के बारे में सोचा भी नही था
उसने तो बस ये सोचकर निशा को बोल दिया था की आख़िर बिनोद है तो एक मर्द ही
और ये सब मर्द एक जैसे ही होते है
जिस्म के भूखे
अब उसे अनु मिले या निशा
कोई फ़र्क नही पड़ने वाला था उसे
बस उसे एक प्लान की ज़रूरत थी , ताकि बिनोद उसके पीछे खुद आए
उसने निशा को स्कूल के बाद उसी जगह पर मिलने को कहा

एक तो वहां कोई आता नही था, दूसरा स्कूल टाइम के बाद तो वो जगह एकदम वीरान हो जाती थी.
फिर वो अपनी बाकी की बची हुई क्लास अटेंड करने के लिए चल दी

सुधीर सर की क्लास आई तो अनु उनसे नज़रें मिलाकर मंद-2 मुस्कुरा रही थी
और दूसरी तरफ उसके साथ बैठी निशा का भी वही हाल था
वो भी सर को देखकर आज अलग ही तरीके से ब्लश कर रही थी
शायद उसके मन में यही चल रहा था की अनु सर से ही चुदवायेगी उसे

शायद सर को अपने स्कूल की दूसरी लड़की के साथ चुदाई करने में थोड़ी शर्म आ रही होगी
इसलिए वो सर की पहचान छुपाने के लिए उसकी आँखो पर पट्टी बँधवा रही थी
पर लॅंड तो आख़िर में उनका ही जाने वाला था उसके अंदर
इसलिए उन्ही पलों के बारे में सोचकर वो मुस्कुरा रही थी
सर भी कन्फ्यूज़ थे
वैसे तो उनकी नज़र अनु पर थी पर उसके बगल में बैठी निशा को भी अपनी तरफ घूरकर देखते पाकर वो थोड़ा सहम से गए
और तभी अनु ने सेक्सी स्टाइल में अपनी आई ब्रो नचायी , जैसे पूछ रही हो की मेरी फ्रेंड पर भी नजर है क्या
और फिर उसी सैक्सी अंदाज में उसने सर को भरी क्लास में आँख मार दी और खुद ही ब्लश करते हुए नजरें घुमा ली




सर की तो हालत खराब हो रही थी उसके बदले हुए अंदाज देखकर
क्लास को पढ़ाना भी जरुरी था, इसलिए उन्होंने अपनी नज़रें वहां से हटा दी और उन्हे पढ़ाने में व्यस्त हो गये

स्कूल के बाद अनु ने निशा को वहीं स्कूल के पीछे वाले पार्क में जाने को कहा
और खुद सर के रूम की तरफ चल दी
जाने से पहले वो बाथरूम में गयी और अपनी पेंटी निकाल कर अपने बेड में रख ली
सब प्लान बन चुका था उसके दिमाग़ में
बाहर निकलकर वो बिनोद को ढूँढने लगी

जो उसे दिख भी गया, वो क्लास रूम्स को चैक कर रहा था और उनके पंखे लाइट और रूम के दरवाजे बंद कर रहा था
वो घूम कर दूसरी तरफ से आई और उसके सामने से निकली
सुबह की तरह एक बार फिर बिनोद अनु के नशीले जिस्म को देखकर अपना काम करना छोड़कर उसे देखने लगा

अनु उसके करीब से निकली तो उसने एक गहरी साँस लेकर उसकी खुश्बू को अपने नथुनों में क़ैद कर लिया
और फिर जाती हुई अनु के भरे हुए चूतड़ देखने लगा, जो दाँये बाँये मटक कर एक लय पैदा कर रही थी
अचानक अनु पलटी और बिनोद को रंगे हाथो अपनी गांड देखते पकड़ लिया
वो एकदम से सकपका सा गया, और घूमकर फिर से अपना काम करने लगा

वो अपनी तरफ से कोई बखेड़ा करना नही चाहता था, वो जानता था की किसी भी एक लड़की ने एक छोटी सी भी शिकायत कर दी तो उसे अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ेगा
और ये बात अनु भी अच्छे से जानती थी
और उसी का फायदा उठाकर वो बिनोद को इस काम के लिए राज़ी करने वाली थी
 
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Ashokafun30

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अनु : “क्या देख रहे हो बिनोद…”
बिनोद : “कुsss ….कुछ नही मेडम जी, मैं तो बस …बस…अपना काम कर..”
अनु : “अच्छा सुनो, सुधीर सर के रूम में पानी भेजना, मैं वहीं हूँ ..”
इतना कहकर वो फिर से अपनी गांड मटकाती हुई चल दी
पहले एकदम से गर्म और अब नरम रवैय्ये को देखकर वो भी हैरान था

अनु सर के रूम में पहुँची तो उन्हे अपना ही इंतजार करते हुए पाया
स्कूल लगभग खाली हो चुका था
सर आज बड़े उत्तेजित से लग रहे थे
शायद कल के बाद , और अनु के साथ जिंदगी भर रहने की खुशी के कारण उनकी ये हालत थी

वो उठे और खिड़की से देखा की कोई आ तो नही रहा और फिर लपककर अनु के करीब आए और उसकी कमर में हाथ डालकर उसे अपने सीने से लगाया और उसके होंठो को बेतहाशा चूमने लगे




वो भी एक पल के लिए बेसूध सी होकर उस किस्स में डूब गयी
मज़ा भी बहुत आ रहा था उसे
सर के हाथ उसके बूब्स पर थे और वो उन्हे होले -2 दबा रहे थे
उसके शरीर से चिरपरिचित सी तरंगे उठने लगी

पर फिर अचानक उसे अपने प्लान का ध्यान आया
और उसने अपनी आँखे खोल दी
और तभी उसे खिड़की में दूर से बिनोद अपनी तरफ आता हुआ दिखाई दिया
उसके हाथ में ट्रे थी और दो ग्लास पानी

वो चाहती तो उसी वक़्त सर को बताकर वहां से हट सकती थी, पर अपने प्लान के अनुसार वो बिना उन्हे कुछ बोले अपनी किस्स में लगी रही
और तब तक लगी रही जब तक बिनोद खिड़की के करीब नही आ गया
और जैसे ही बिनोद की नज़रें खिड़की पर पड़ी, अनु छिटककर सर से अलग हो गयी

सर भी समझ गये की शायद कोई आता हुआ दिखा है अनु को, वो भी अपनी सीट पर जाकर लैपटॉप पर काम करने लगे
और वो अपने कपड़े ठीक करती हुई चेयर तक चल पड़ी
और तभी बिनोद कमरे में दाखिल हुआ
उसके हाथ में पानी था और चेहरे पर हैरानी के भाव

उसे आज तक शक ही था की सुधीर सर और अनु के बीच कुछ चल रहा है पर आज तो उसने उन्हे एकसाथ चिपके हुए भी देख लिया
पर एक दूसरे से चिपक कर वो कर क्या रहे थे , ये वो नही देख पाया
पर अपनी आँखो में वो उन पलों का एक वीडियो बना चुका था , जिसे वो बार-2 रीवाइंड करके देखने वाला था
पानी रखकर वो चला गया और सर ने चैन की साँस ली

वो बोले : “आज तो बाल-2 बच गये, अच्छा हुआ तुमने टाइम से देख लिया…वरना..”
जवाब में अनु बस मुस्कुरा दी
वो बोली : “वैसे भी अब ये चोरी छुपे वाले काम से जल्द ही छुटकारा मिल जाएगा….पापा”

सैक्सी अंदाज में पापा बोलकर वो उन्हे आँख मारती हुई खिलखिलाकर हंस दी
और सुधीर भी उसके साथ हँसने लगा
एक घर में रहते हुए वो शेफाली और अनु के साथ क्या-2 मज़े ले पाएगा, यही सोचकर उसका लॅंड कड़क होने लगा
वो कुछ बोल पाता उस से पहले ही अनु ने अपने बेग से अपनी पेंटी निकाल कर सर के सामने रख दी




एकदम से उस कच्छी को देखकर वो सकपका से गये और उसे उठाकर अपनी जेब में रख लिया
अनु उनकी इस हरकत से हंस दी और बोली : “ये मेरी नही है, मॉम की है, कल रात आपने जाने के बाद उन्होने पहनी थी और रात में मैने उतार दी…फिर जो क्रीम आपने मॉम के अंदर छोड़ी थी, वो मैने खा ली, सुबह उनका ऑफीस जाने का मन नही था तो उन्हे नंगा छोड़कर मैं स्कूल आ गयी और आते-2 ये पेंटी ले आई उनकी….आपके लिए”

उसने जब एक साँस में वो सब कहा तो सर का चेहरा देखने लायक था

वो तो समझ रहे थे की वो चड्डी अनु की है, पर वो तो शेफाली की निकली
अनु ने बड़ी चालाकी से अपनी पेंटी को मॉम की पेंटी बोलकर सुधीर की जेब में पहुँचा दिया था
दोनो के कुल्हो का आकार लगभग एक जैसा ही था, इसलिए सुधीर भी नही पहचान पाया
अब ऐसा करने से ये हुआ की सुधीर का ध्यान अनु से हटकर शेफाली की तरफ हो गया
उसकी नज़रों के सामने शेफाली अपने बेड पर नंगी पड़ी दिखाई दे रही थी
आलस से भरी हुई
उपर से उसकी पेंटी भी उसकी जेब में थी
जो अनु उसके लिए लाई थी

शायद वो चाहती थी की वो घर जाए और नंगी शेफाली के साथ एक बार फिर से वही करे जो कल किया था उसने
एक धमाकेदार चुदाई
अनु ने उनका चेहरा पढ़ लिया और वो बोली : “आप जाइए घर…मैं अपनी फ्रेंड निशा के साथ कुछ टाइम स्पेन्ड करुँगी अभी…ओक…बाइ”
इतना कहकर उसने अपने बेग से घर की चाबी निकालकर उनके सामने रख दी

ये इशारा था की उन दोनो के पास अकेले में काफ़ी समय होगा आज..
सुधीर को बाइ बोलकर वो स्टाफ रूम से निकलकर बाहर चल दी
पीछे मुड़कर देखा तो हड़बड़ी में सर को अपना लेपटॉप बेग में डालकर भागते हुए देखा,
वो जानती थी की उनके घर के आधे घंटे का रास्ता वो 10 मिनट में तय करने वाले थे आज अपनी कार से

अब बिनोद की बारी थी
उसे अपनी बॉटल में उतारना था
वो थोड़ा आगे गयी तो बिनोद उसे दिख भी गया, एक बेंच पर बैठा वो बीड़ी फूँक रहा था
वो उसी तरफ चल दी
 
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