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Incest जवानी के अंगारे ( Completed)

Luckyloda

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पर अब ज़्यादा सोचने का वक़्त नही था
अनु सही कह रही थी
इतने में तो सुधीर के जाने का टाइम हो जाएगा
इसलिए उसने ना चाहते हुए भी अनु को हाँ कर दी
उन दोनों माँ बेटी के बीच आज तक इतना कुछ हो चूका था की ये बात भी अब मामूली लग रही थी

पर शेफाली ने उसे पूरी हिदायत दी की सर को पता नही चलना चाहिए की वो ये सब देख रही है
इतना कहकर वो अपने बेडरूम की तरफ चल दी
और सुधीर सर को वहां भेजने के लिए कहा

अनु किसी हिरनी की तरह उछलती हुई सर के पास गयी, जो अपना बेग पैक करके जाने की तैय्यारी कर चुके थे
अनु : “अर्रे सर….इतनी भी क्या जल्दी है…अभी तो आपको थोड़ी और मेहनत करनी है..”

इतना बोलकर उसने मॉम और अपने बीच की सारी बातचीत उन्हे सुना डाली
सुधीर भी अनु की हिम्मत की दाद दिए बिना नही रह सका
अभी से ये हाल है तो शादी के बाद तो वो पता नही क्या-2 करेगी
ये सोचकर ही उनका लॅंड खड़ा होने लगा, जिसे उन्होने अपने हाथ से दबा कर शांत किया.

अनु : “इस शेर को दबाओ मत सर जी, जाओ, मॉम इंतजार कर रही है…मैं भी वही खड़ी रहूंगी दरवाजे के बाहर, आपकी परफॉरमेंस देखने…”

जिस बात के लिए शेफाली ने अनु को मना किया था, वो उसने खुलकर सुधीर सर को बोल डाली थी
आख़िर वो भी तो उस उत्तेजना को महसूस करे जो वो कर रही थी जब सर उसे और मॉम को छुपकर देख रहे थे
अब टेबल के दूसरी तरफ आ चुकी थी अनु
और इसमे पहले से ज़्यादा मज़ा आने वाला था

सर अपना बेग रखकर शेफाली के बेडरूम की तरफ चल दिए
पहुँचे तो देखा की शेफाली बेड पर बैठी फोन में कुछ चेक कर रही है
सुधीर को समझ नही आया की क्या करे

वो बोला : “अच्छा …शेफाली..अब मैं चलता हूँ ….”

शेफाली ने अपनी नशीली आँखो से उन्हे देखा और धीरे से फुसफुसाई : “इतनी भी क्या जल्दी है सुधीर…कुछ देर रुक नही सकते क्या ?”




ये वो पल था सुधीर के लिए जब वक़्त ठहर सा गया
उसका पूरा शरीर सुन्न सा पड़ गया
वो उसे नशीली आँखो से देखती हुई अपनी संगमरमरी कमर मटकाती हुई उसकी तरफ आई और उसका हाथ पकड़ कर बेड पर बिठा लिया
सुधीर इस वक़्त उसके सम्मोहन में खोकर रह गया था

कुछ देर पहले जिस औरत को अपनी बेटी के साथ सैक्स करते हुए देखा था उसने
वो इस वक़्त उसे अपने सपनो की अप्सरा के रूप में दिख रही थी
सुर्ख आँखे
अधीर होंठ
सुराहीदार गर्दन और नीचे
सांसो के साथ उठता गिरता वक्षस्थल
जिसकी लकीर अंदर बसी एक रहस्यमयी दुनिया की तरफ इशारा कर रही थी
कुरती के उपर से उसके दाने सॉफ चमक रहे थे
जिन्हे उसने चूसा भी था और उनका रसपान भी किया था
वो उसे एक बार फिर से अपनी तरफ बुला रहे थे
वो कुछ नही बोल पाया
बस उसकी तरफ देखता रहा
पहल शेफाली ने ही की

उसके चेहरे को अपनी कोमल उंगलियो से पकड़कर अपनी तरफ खींचा और उसके होंठो पर अपने बर्फ़ीले होंठ रख दिए
सस्स्स्स्स्स्सस्स की आवाज़ के साथ वो उसे चूसने लगी जैसे सिज़्लर बन रहा हो
अब उसे होश आया
उसकी मोहमाया से निकल कर वो यथार्थ पर उतार आया
और उसका साथ देने लगा
पर अपने हाथो को उसने चाहते हुए भी उसके मोटे स्तनों पर नही रखा
आज वो इस्तेमाल होना चाहता था
जैसा वो उसके साथ करती
वो करवाना चाहता था

इसलिए किस्स करते-2 उसने अपने शरीर को पीछे की तरफ बेड पर गिरा दिया
शेफाली भी उसकी जाँघ पर जाँघ रखकर साइड पोज़ में उसके हाथ पर अपने स्तनों को रगड़ती हुई उसे चूमती रही…
फिर चूमते-2 वो उसकी सुधीर की गर्दन पर उतर आई
अब भी सुधीर अपने हाथो से उसकी पीठ को पकड़ कर अपने उपर नही घसीट रहा था
बस निश्चल सा पड़ा हुआ था बेड पर
शेफाली भी उसके इस बर्ताव से हैरान थी




पर आग ही इतनी लगी थी उसके अंदर की उसे इस बात से कोई फ़र्क नही पड़ रहा था की वो कैसा बर्ताव कर रहा है
उसे तो बस उसका लॅंड चाहिए था
जिसे उसने पेंट के उपर से इस वक़्त पकड़ लिया था
सुधीर का पूरा शरीर झनझना उठा

आधे घंटे पहले ही उसने अपने लॅंड का पानी उन माँ बेटी को देखकर उसी कमरे के बाहर झाड़ा था
अब एक बार फिर से वो उसे पकड़ कर अगली परफॉरमेंस की डिमांड कर रही थी
थोड़ा मुश्किल तो था
पर उसे अपने छोटे सिपाही पर पूरा विश्वास था की अगर शेफाली का साथ मिले तो वो इस लड़ाई पर विजय पा ही लेगा

शेफाली ने अपनी कुरती निकाल फेंकी, कसी हुई ब्रा में उसके मोटे स्तन कहर ढा रहे थे, उसने सुधीर की शर्ट के बटन भी खोल दिए
अब शर्ट को निकालने का काम तो वो कर ही सकता था, वो उसने किया भी
और शर्ट निकाल कर फिर से उसी मुद्रा में लेट गया
शेफाली की लंबी सिसकारियाँ उसके कानो के पास गूँज रही थी..
शेफाली ने उसकी जीप खोल दी
पर आगे बढ़ने से पहले उसने दरवाजे की झिर्री की तरफ देखा
जहाँ से उसे पता था की अनु वो सब देख पा रही होगी

ये वो पल था जब अगर शेफाली चाहती तो अपने होने वेल पापा का लॅंड उसे ना दिखाती
पर सैक्स होती ही ऐसी कुत्ती चीज़ है की अपना उल्लू सीधा करने के लिए रिश्तों को भी ताक पर रख देता है
और इस वक़्त शेफाली के उपर सैक्स का भूत सर चड़कर बोल रहा था

आज शायद अनु कहती की उसे भी अपने होने वाले पापा से चुदना है तो शायद वो मना ना कर पाती
चूत की आग ही इतनी जोरों से लगी हुई थी की उसका पूरा बदन एक अंगार बनकर रह गया था

सुधीर भी शेफाली को बाहर देखता देखकर मुस्कुरा दिया
वो जानता था की शेफाली अनु को देख रही है और उसके दिल में इस वक़्त एक जंग चल रही होगी
पर उसे तो इस वक़्त मज़ा आ रहा था
अपने आप को शेफाली के हवाले करके और अनु को छुपकर उनका खेल देखते हुए

वो जानता था की आज अगर उसके सिपाही ने उसका ढंग से साथ दे दिया तो अनु के दिल में उसके लॅंड के लिए इज़्ज़त बढ़ जाएगी
क्योंकि उसकी परफॉरमेंस यानी चुदाई वो पहली बार देख रही थी
जो आज नहीं तो कल उसकी भी करनी थी सुधीर को

शेफाली ने कुछ देर तक उसे देखा और फिर से अपने काम में लग गयी
उसने सुधीर की बेल्ट खोली, पेंट के हुक खोलकर उसे नीचे उतार दिया
अंडरवीयर में एक छोटा सा पहाड़ बनकर खड़ा था सुधीर का लॅंड
शेफाली के लिए तो वो बुर्ज खलीफा था, क्योंकि वो बिल्कुल पास से देख रही थी
पर अनु के लिए भी किसी कुतुब मीनार से कम नही था

ऐसा लग रहा था जैसे एकसाथ 4 समोसे भर दिए हो अंडरवीयर में
जिसे शेफाली अपनी चूत की चटनी लगाकर खाने वाली थी

लॅंड तो मोटा था ही सुधीर का
उसके टटटे भी काफ़ी मोटे ताजे थे
अंडरवीयर का ऐसा भरंवापन औरतों को काफ़ी पसंद आता है


शेफाली ने लपलपाति जीभ निकालते हुए उसका अंडरवीयर भी खींच कर निकाल फेंका
अब वो पूरा नंगा था बेड पर
अपना खड़ा लॅंड लिए, बेड पर लेटा था



अनु की तो साँसे ही उखड़ने लगी उस सीन को देखकर
वो जानती थी की उस लॅंड पर कितना बड़ा हक है उसका
पर इस वक़्त उसे अपनी माँ के हाथ में सौंप चुकी थी वो
काश वो खुद होती उस बेड पर
ये सोचते ही उसका खुद का हाथ अपनी चूत पर जा पहुँचा और वहां से एक पिचकारी निकल कर उसकी उंगलियों को भिगो गयी

अंदर शेफाली से अब और ज़्यादा सब्र नही हो रहा था
उसने आनन फानन में अपने बचे हुए कपड़े भी निकाल फेंके और खुद भी पूरी नंगी हो गयी



और फिर अपना मुँह खोकर उसने सीधा सुधीर के लॅंड पर प्रहार कर दिया
सुधीर सीसीया उठा

“आआआआआआआआअहह………. शेफाली………ध्ईईईईईरेsssssssss …… मेरी ज़ाआाआआआअन्न्न धीरे……”

लंड पर दाँत लगने की चुभन क्या होती है , आज सुधीर को पता चली
शेफाली ने उसके लॅंड को अपने हाथ मे पकड़ा और धीरे-2 उसे चाटने लगी
जीभ से उसके छेद को कुतरने लगी
उसकी बॉल्स को सहलाकर जीभ से नहलाने लगी और फिर उन्हे भी एक-2 करके चूसने लगी




ऐसा लग रहा था जैसे वो दरवाजे के पीछे खड़ी अपनी बेटी को सैक्स का पाठ पड़ा रही हो
और अनु वो सब देखकर कुछ नया सीख भी रही थी
आख़िर इतने सालों का तुजुर्बा जो था उसकी माँ को

लॅंड को पूरा उपर तक खींचकर शेफाली जब उसकी बॉल्स को चाट रही थी तो उसकी जीभ नीचे तक चली गयी
बेचारा सुधीर काँप कर र्गया जब उसने शेफाली की जीभ को गांड के छेद पर महसूस किया
बेचारा किसी छोटे बच्चे की तरह अपनी दोनो टांगे हवा में उठा कर चीख पड़ा

“आआआआआआहह शेफाली……….उम्म्म्ममममममममममममममममममम……आज क्या करके मनोगी…..उफफफफफफफफफफफफ्फ़……”

शेफाली कुछ नही बोली और अपने काम में लगी रही
आज वो सुधीर को हर मज़ा देना चाहती थी

और बाहर , अनु का पयज़ामा भी उतर चूका था
उंगलिया फ़च्छ करके अंदर दाखिल हो चुकी थी
और उसकी उंगलियाँ किसी पिस्टन की तरह अपनी चूत के अंदर बाहर होने लगी




अंदर का माहौल भी गर्म हो चूका था…
अब देर करना सही नही लग रहा था शेफाली को भी
वो बेड पर चढ़ गयी और सुधीर के दोनो तरफ टांगे फेला कर उसके लॅंड के ठीक उपर अपनी चूत को अड्जस्ट किया..
एक पल के लिए दोनो ने एक दूसरे की आँखो मे देखा और फिर देखते-2 सुधीर के लॅंड ने अंदर दाखिल होना शुरू कर दिया
शेफाली के चेहरे के भाव बदलने लगे

ऐसा लग रहा था जैसे नीचे से लॅंड की ठोकर पाकर सारा खून उपर की तरफ आ गया है
मुम्मे पहले से ज़्यादा सख़्त हो गये
गुदाज पेट अंदर की तरफ चिपक गया
गर्दन की नसें तन कर बाहर निकल आई
आँखे सुर्ख हो उठी , उनमें लाल डोरे तेर गये




कुल मिलाकर ये एहसास ही था जिसके लिए शेफाली इतनी देर से तड़प रही थी
Chudayi k liye tadah ko kya bakhubi btaya hai aapne ....




Aksar khade land k sath to dimag kaam kart ahi nahi.....magar garam chut k sath to pagal ho jata hai ......




Bhut shandaar update
 

Luckyloda

Well-Known Member
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सुधीर से अब सहन नही हुआ और उसके हाथ उठकर शेफाली के मुम्मो पर आ चिपके
वो जोरों से उन्हे दबाने लगा
अपनी तरफ खींचकर उनका दूध पीने लगा
और जब चूसते -2 वो उसके होंठो तक पहुँचा तो एक पल के लिए रुक गया वो
और धीरे से फुसफुसाया : “शेफाली….क्या तुम मुझसे शादी करोगी…?”

ऐसे मौके पर पूछे गए सवाल ने शेफाली के शरीर में तरंगे फैला दी

वो जानती तो थी की आज नही तो कल इस बारे में बात होगी, पर आज होगी और ऐसे मौके पर जब सुधीर का लॅंड उसकी चूत में था, वो नही जानती थी
चुदाई के मौके पर मिला शादी का प्रपोज़ल शायद दुनिया में पहला होगा

वो उसके लॅंड पर उछल सी पड़ी , उसके होंठो को चूसती हुई, उन्हे काटती हुई, सिसकारियाँ मारती हुई उसने हाँ कर दी

“हाँ …..मेरे राजा….मेरी जान……करूँगी…..मैं तो कब से तड़प रही थी….ये सुनने को..आआआआआआअहह…आई लव यू मेरी जान……आई लव यू …..करूँगी मैं शादी…तुमसे शादी………आआआआआहह……चोदो मेरे राजा…..चोदो मुझे….ज़ोर से चोदो ……आज से मैं तुम्हारी हुई…..हमेशा-2 के लिए…..”




वैसे देखा जाए तो ये चुदाई उनके लिए सगाई समारोह जैसी ही थी, जिसमें शेफाली अपनी चूत के छल्ले को अंगूठी बनाकर सुधीर के लॅंड पहना रही थी.



पिछले कुछ सालों में जो तड़प उसने महसूस की थी , अब उसे लग रहा था की उसे पूरी तरह से मिटाने का समय आ चुका है
वो तड़प अब हमेशा के लिए मिटने वाली थी, सुधीर से शादी करके
अंदर उनका प्रपोज़ल गेम चल रहा था और बाहर अनु का भी खुशी के मारे बुरा हाल था…

उसकी चूत से भी खुशी के आँसू पिचकारियों के रूप में निकल कर बाहर गिर रहे थे
उसकी माँ की शादी जो तय हो गयी थी

वो आख़िर में झड़ते हुए सीसिया उठी

“ओह सुधीर सर……..आआआआआआहह…….. आज तो आपने मुझे खुश कर दिया….ओह मॉम .अब मज़ा आएगा……पापा के साथ……..मेरे पापा के साथ….आआह्ह्हह्ह्ह्ह ”




झड़ते हुए उसकी कल्पना में सुधीर सर उसे चोद रहे थे , और अपना सारा रास उसकी चूत में निकाल भी रहे थे

आखिर में झड़ने के बाद वो निढाल सी होकर ज़मीन पर ही लुढ़क गयी
शायद जो वो सोच रही थी उसकी उत्तेजना उसकी चूत सहन नही कर पाई

अंदर शेफाली भी उत्तेजित होकर अपनी तरफ से पहले से ज़्यादा जोरदार धक्के मारकर सुधीर सर के लंड को अपनी चूत से पीट रही थी

और जब ऐसी पिटाई होती है तो बड़े से बड़ा लॅंड भी हार मान लेता है

सुधीर सर के साथ भी यही हुआ

उनसे भी शेफाली के झटके बर्दाश्त नही हुए और उनके लॅंड ने उसकी दहक रही चूत में पानी उगलना शुरू कर दिया

सुधीर : “आआआआआआआआआआआअहह शेफाली……………..मेरी ज़ाआाआआआआआअन्न्नन् आई एम् कमिंग………”


जिस चुदाई की रूपरेखा 1 घंटे से बन रही थी शेफाली के दिमाग़ में , वो 10 मिनट भी नही चल पाई

पर जितनी भी चली , कमाल की चली


आज शेफाली ने उसका सारा रस अपने अंदर ही ले लिया

और कहते है की असली मर्द के वीर्य की गर्मी ऐसी चीज़ होती है की अपने स्पर्श मात्र से ही औरत को झड़ने पर मजबूर कर देती है

शेफाली की चूत मे जब वो गर्म लावा गया तो उसकी चूत की दीवारें भी झमा झम बारिश करने लगी

दोनो के मिलन से उत्पन हुआ एक छोटा सा झरना , शेफाली की चूत की दरारों से होता हुआ बाहर गिरने लगा






जिसे बाहर फर्श पर लेटी अनु सॉफ देख पा रही थी

उसमें इतनी हिम्मत नही थी की उठकर खड़ी हो और उस नज़ारे का भरपूर आनंद ले

पर उसे मालूम था की वो वक़्त भी आने वाला है जब वो उस झरने के नीचे पड़ी हुई नहा रही होगी


अंदर और बाहर दोनो तरफ आने वाले कल की रंगीन पिक्चर चल रही थी.

कुल मिलाकर सबको बहुत मज़ा आने वाला था.
Aajtak ka sabse anokha shadi ka proposal👌👌👌👌👌



Wow kya timing h. Sali koi na bhi karni chahe to kaise mana kare .🤣🤣🤣🤣🤣🤣




Sahi me ham sabko bhi bharpur maja aa rha hai ..
 

Ashokafun30

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Jalti huyi chut ka kya fayda uthyaa hai ANu ne.....




Apni maa ka Sex dekhne ki hi shart rakh di.. Chudayi k liye ..... Gajab....





Shandaar update Ashoka bhai
mauke par chauka mara hai anu ne
aapko bhi jab mauka mile to aise mauke ka fayda uthana
enjoy
 
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सेक्सुअल एक्टिविटी दर्शाने मे भी आपका कोई जवाब नही अशोक भाई ! स्टोरी को स्लोली - स्लोली बिल्ड अप तो बेहतरीन करते है ही आप।
इस अपडेट मे भी उपमा अलंकार का गजब का इस्तेमाल किया आपने। सेक्सुअल एक्टिविटी के अंदर अलंकारों का प्रयोग करना हर किसी के वश का नही ।
इस अपडेट मे आपने voyeurism sex को दर्शा कर एक अलग तरह का सेक्सुअल रोमांच ला खड़ा किया।
शेफाली और सुधीर सर का यह सेक्सुअल एनकाउंटर और अनु का छिपकर देखना voyeurism ही तो था।

आउटस्टैंडिंग एंड टू टू हाॅट अपडेट अशोक भाई।
 

komaalrani

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गजब का अपडेट............... अशोक भाई

आज तो आपने अलंकार में कोमल भाभी को भी पीछे छोड़ दिया.............

आपकी दी हुयी उपमाएँ पढ़ने में शेफाली की चुदाई से भी ज्यादा मजा आया


:applause:
गजब का अपडेट............... अशोक भाई

आज तो आपने अलंकार में कोमल भाभी को भी पीछे छोड़ दिया.............

आपकी दी हुयी उपमाएँ पढ़ने में शेफाली की चुदाई से भी ज्यादा मजा आया


:applause:
आपने भी क्या आफ़ताब और जर्रे की तुलना कर दी,...

तुलना उसकी होती है जो १९ -२० हो,... जिस लेखक का आपने जिक्र किया वह इस साहित्य के मार्तण्ड हैं, और हम सब अँधेरे में लालटेन लेकर चलने वाले जुगनुओं की तरह है, उनमे सूर्य का प्रकाश और चन्द्रमा की शीतलता दोनों है,...

कुछ गुण अशोक जी की उपमाओं में ऐसे है जो अनूठे हैं और मैं क्या मैंने किसी लब्ध प्रतिष्ठित साहित्यकार में भी नहीं देखी।

सबसे पहले इनकी उपमा, अनछुई, ताज़ी टटकी होती है पढ़ने वाले को कभी दुहराव का अहसास नहीं होता, जो एक अद्भुत सृजन क्षमता, उर्वरता दिखाता है,...

दूसरी बात यह की वह उपमा चल रहे कार्य प्रसंग से जुडी होती है जैसे इस पोस्ट का ही उदहारण अगर लूँ,...

१, अधीर होंठ- अब होंठों की अक्सर ललाई की, रससिक्त होने के उपमा दी जाती है लेकिन सुधीर सर की आँखों से क्यूंकि देखा जो रहा है और वो जानते हैं उन होंठों का अधैर्य इस लिए उस एक विशेषण ने कितनी बाते कह दी,

२. सांसो के साथ उठता गिरता वक्षस्थल
जिसकी लकीर अंदर बसी एक रहस्यमयी दुनिया की तरफ इशारा कर रही थी

अब रहस्यमई दुनिया की बात कर के वह सिर्फ तन की ही नहीं मन की बात भी कर रहे हैं, सुधीर सर को अभी भी समझ में नहीं आ रहा था यह लड़की क्यों जानबूझ के उनकी शादी शेफाली से से करवाना चाहती है, ... कोई दूसरी लड़की होती और उसे पता चलता की जो आदमी उसपर लाइन मार रहा है वही उसकी माँ को भी पटा रहा है उसके साथ सेक्स कर रहा है, यह जानकर आग बबूला हो जाती, उससे संबंध तोड़ लेती , माँ पर भी नाराज होती लेकिन अनु के मन की रहस्यमई दुनिया,...

दूसरे अनु अभी भी एक किशोरी थी, उसके उभार सुधीर सर के अलावा किसी ओर के आगे,.. तो देखने वालों के लिए वह रहस्य ही था,..


अशोक जी की पोस्ट मैं कम से कम तीन बार पढ़ती हूँ तब कुछ कमेंट कर पाती हूँ

पहली बार सिर्फ मज़े के लिए, दूसरी बार उस पोस्ट का लालित्य समझने के लिए और कुछ सीखने के लिए और तीसरी बार अपने कुछ शब्द प्रशंसा के कहने के लिए ,...


लेकिन आपका आभार,.... कम से कम आपको यह नाम किसी भी तरह याद तो आगया, वरना ज्यादातर लोग तो वह गैल डगर भूल चुके हैं, बिसर गए हैं जो मेरी कहानियो की ओर जाता है,

और सही भी है पारखी हीरे के आगे कांच के टुकड़े को क्यों पूछेंगे,...

अशोक जी अपनी उपमा आप ही हैं।
 

komaalrani

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अशोक जी की पोस्ट और उपमा की बात से ये मेरी कभी पहले की पोस्ट याद आ गयी, ज्यूँ का त्युं पोस्ट कर दे रही हूँ

इसमें दिखाए गए सभी गुण अशोक जी के लेखन में नजर आते हैं,... वह लेखकों के लेखक हैं

काव्यशोभा करान धर्मान अलंकारान प्रचक्षते। अर्थात वह कारक जो काव्य की शोभा बढ़ाते हैं उसे अलंकार कहते हैं।

अलंकार काव्य और गद्य दोनों ही प्रकार के साहित्य का अभिन्न अंग है , उपमा भी एक अलंकार है , जिसे अगर बहुत सरल शब्दों में कहूं तो जिस जगह दो वस्तुओं में अन्तर रहते हुए भी आकृति एवं गुण की समानता दिखाई जाए उसे उपमा अलंकार कहा जाता है।
उदाहरण

सागर-सा गंभीर हृदय हो,
गिरी- सा ऊँचा हो जिसका मन।


इसमें सागर तथा गिरी उपमान, मन और हृदय उपमेय सा वाचक, गंभीर एवं ऊँचा साधारण धर्म है।

उपमा अलंकार अर्थालंकार है ,

जब किन्ही दो वस्तुओं के गुण, आकृति, स्वभाव आदि में समानता दिखाई जाए या दो भिन्न वस्तुओं कि तुलना कि जाए, तब वहां उपमा अलंकर होता है।

उपमा अलंकार में एक वस्तु या प्राणी कि तुलना दूसरी प्रसिद्ध वस्तु के साथ कि जाती है। जैसे :


हरि पद कोमल कमल।



ऊपर दिए गए उदाहरण में हरि के पैरों कि तुलना कमल के फूल से की गयी है। यहाँ पर हरि के चरणों को कमल के फूल के सामान कोमल बताया गया है। यहाँ उपमान एवं उपमेय में कोई साधारण धर्म होने की वजह से तुलना की जा रही है अतः यह उदाहरण उपमा अलंकार के अंतर्गत आएगा।
उपमा की बात करें तो कालिदास का स्मरण होता ही है

उपमा कालिदासस्य भारवेरर्थगौरवम्।
दण्डिनः पदलालित्यं माघे सन्ति त्रयो गुणाः॥

Simile is Kalidas’ forte, Bharavi – density of meaning;

Dandi – simplicity and Magha possesses all three qualitites!”


कालिदास की एक उपमा इतनी पसंद की गयी कि उनका नाम ही "दीपशिखा कालिदास" पड़ गया। वह उपमा थी -

संचारिणी दीपशिखेव रात्रौ यं यं व्यतीयाय पतिंवरा सा।

नरेंद्र मार्गाट्ट इव प्रपदे विवर्णभावं स स भूमिपालः।।

रघुवंश का प्रसंग है। इंदुमती का स्वयंवर हो रहा था। बहुत से राजा-राजकुमार जमा हुए थे। हाथ में वरमाला लिए वह जिस राजा को छोड़कर आगे बढ़ जाती उसका चेहरा ऐसा धुँधला पड़ जाता जैसे मशाल के आगे बढ़ जाने से अँधेरे में खोये सड़क किनारे के मकान हों।

शकुन्तला के अछूते सौंदर्य को देखकर दुष्यंत ऐसे ही उपमानों की झड़ी लगा देते हैं -


अनाघ्रातं पुष्पं किसलयमलूनं कररुहै

रनाविद्धं रत्नं मधु नवमनास्वादितरसम्।

अखण्डं पुण्यानां फलमिव च तद्रूपमनघं

न जाने भोक्तारं कमिह समुपस्थास्यति विधिः।।




यह तो अनसूँघा फूल है, अनछुआ पत्ता है, अनबिंधा रत्न है, अनचखा शहद है।

न जाने कितने संचित पुण्यों के फल जैसी इस शकुन्तला को पता नहीं विधाता ने किसके भाग्य में लिखा है।



अनेक प्रसंग है ऐसे ,
और इस पूरे फोरम में अनेक अच्छे लेखक हैं, लेकिन जो टटकी ताज़ी और अनछुई उपमाएं इनकी कहानियों में मिलती हैं अन्यत्र दुर्लभ हैं
 

komaalrani

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सेक्सुअल एक्टिविटी दर्शाने मे भी आपका कोई जवाब नही अशोक भाई ! स्टोरी को स्लोली - स्लोली बिल्ड अप तो बेहतरीन करते है ही आप।
इस अपडेट मे भी उपमा अलंकार का गजब का इस्तेमाल किया आपने। सेक्सुअल एक्टिविटी के अंदर अलंकारों का प्रयोग करना हर किसी के वश का नही ।
इस अपडेट मे आपने voyeurism sex को दर्शा कर एक अलग तरह का सेक्सुअल रोमांच ला खड़ा किया।
शेफाली और सुधीर सर का यह सेक्सुअल एनकाउंटर और अनु का छिपकर देखना voyeurism ही तो था।

आउटस्टैंडिंग एंड टू टू हाॅट अपडेट अशोक भाई।
थोड़ा सा मतांतर है मेरा,

इन प्रसंगों को किसी कैटगरी में, पूर्व निर्णीत मनोवज्ञानिक स्वभाव में बांधना दुरूह है असम्भव अगर नहीं तो,... यह समुद्र को बाँधने जैसा है.

कम से कम मैं, ... जैस कभी रविशंकर जी या विलायत खां साहेब ( अब तो दोनों जन्नत नशीन हैं ) के सितार को सुनते समय लगता है , एक संगीत का झरना बह रहा है, अविरल, अजस्त्र,... तो उस समय सिर्फ उस संगीत सरिता में अवगाहन करने का मन करता है, उसके व्याकरण को समझने की कोशिश करने का नहीं,

या अभी जैसे खिड़की से बार सावन की बूंदे गिरती हैं तो बस वह संगीत सुनने का, कैसे वह पत्तों पर आकर थोड़ी देर टिकती है कुछ देर में फिसल कर गिर पड़ती है , बूंदो से भीगती मिटटी से जो महक उठती है, भीगते बच्चे बारिश के पानी से भरी नाली में कागज की नाव चलाने की कोशिश कर रहे हैं

और बरामदे में खड़ी उनकी मा डांट रही है,...

और उस समय यह सोचने का समय नहीं होता की यह मानसून अरब सागर वाला है या बंगाल की खाड़ी वाला,.. या बादल किस प्रकार के हैं,...

उसी तरह यह कहानी पढ़ते समय मैं सिर्फ आनंद विभोर होती उन शब्दों के भाव के लालित्य से,...

सौंदर्य मेरे लिए संगीत का हो , प्रकृति का हो , साहित्य का हो सिर्फ महसूस करने के चीज़ है पर अफ़सोस की जीवन की इस आपधापी में यह महसूस करने की ताकत भी ( मैं सिर्फ अपने लिए कह रही हूँ ) कम होती जा रही है

और लेखक और उनकी लेखनी की मैं जबरदस्त फैन हूँ , आपकी इस बात से मैं एकदम इत्तफाक रखती हूँ,.. कामक्रीड़ा के पलो में भी अलंकारों का उपयोग सबके बस की बात नहीं,
 

komaalrani

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सुधीर से अब सहन नही हुआ और उसके हाथ उठकर शेफाली के मुम्मो पर आ चिपके
वो जोरों से उन्हे दबाने लगा
अपनी तरफ खींचकर उनका दूध पीने लगा
और जब चूसते -2 वो उसके होंठो तक पहुँचा तो एक पल के लिए रुक गया वो
और धीरे से फुसफुसाया : “शेफाली….क्या तुम मुझसे शादी करोगी…?”

ऐसे मौके पर पूछे गए सवाल ने शेफाली के शरीर में तरंगे फैला दी

वो जानती तो थी की आज नही तो कल इस बारे में बात होगी, पर आज होगी और ऐसे मौके पर जब सुधीर का लॅंड उसकी चूत में था, वो नही जानती थी
चुदाई के मौके पर मिला शादी का प्रपोज़ल शायद दुनिया में पहला होगा

वो उसके लॅंड पर उछल सी पड़ी , उसके होंठो को चूसती हुई, उन्हे काटती हुई, सिसकारियाँ मारती हुई उसने हाँ कर दी

“हाँ …..मेरे राजा….मेरी जान……करूँगी…..मैं तो कब से तड़प रही थी….ये सुनने को..आआआआआआअहह…आई लव यू मेरी जान……आई लव यू …..करूँगी मैं शादी…तुमसे शादी………आआआआआहह……चोदो मेरे राजा…..चोदो मुझे….ज़ोर से चोदो ……आज से मैं तुम्हारी हुई…..हमेशा-2 के लिए…..”




वैसे देखा जाए तो ये चुदाई उनके लिए सगाई समारोह जैसी ही थी, जिसमें शेफाली अपनी चूत के छल्ले को अंगूठी बनाकर सुधीर के लॅंड पहना रही थी.



पिछले कुछ सालों में जो तड़प उसने महसूस की थी , अब उसे लग रहा था की उसे पूरी तरह से मिटाने का समय आ चुका है
वो तड़प अब हमेशा के लिए मिटने वाली थी, सुधीर से शादी करके
अंदर उनका प्रपोज़ल गेम चल रहा था और बाहर अनु का भी खुशी के मारे बुरा हाल था…

उसकी चूत से भी खुशी के आँसू पिचकारियों के रूप में निकल कर बाहर गिर रहे थे
उसकी माँ की शादी जो तय हो गयी थी

वो आख़िर में झड़ते हुए सीसिया उठी

“ओह सुधीर सर……..आआआआआआहह…….. आज तो आपने मुझे खुश कर दिया….ओह मॉम .अब मज़ा आएगा……पापा के साथ……..मेरे पापा के साथ….आआह्ह्हह्ह्ह्ह ”




झड़ते हुए उसकी कल्पना में सुधीर सर उसे चोद रहे थे , और अपना सारा रास उसकी चूत में निकाल भी रहे थे

आखिर में झड़ने के बाद वो निढाल सी होकर ज़मीन पर ही लुढ़क गयी
शायद जो वो सोच रही थी उसकी उत्तेजना उसकी चूत सहन नही कर पाई

अंदर शेफाली भी उत्तेजित होकर अपनी तरफ से पहले से ज़्यादा जोरदार धक्के मारकर सुधीर सर के लंड को अपनी चूत से पीट रही थी

और जब ऐसी पिटाई होती है तो बड़े से बड़ा लॅंड भी हार मान लेता है

सुधीर सर के साथ भी यही हुआ

उनसे भी शेफाली के झटके बर्दाश्त नही हुए और उनके लॅंड ने उसकी दहक रही चूत में पानी उगलना शुरू कर दिया

सुधीर : “आआआआआआआआआआआअहह शेफाली……………..मेरी ज़ाआाआआआआआअन्न्नन् आई एम् कमिंग………”


जिस चुदाई की रूपरेखा 1 घंटे से बन रही थी शेफाली के दिमाग़ में , वो 10 मिनट भी नही चल पाई

पर जितनी भी चली , कमाल की चली


आज शेफाली ने उसका सारा रस अपने अंदर ही ले लिया

और कहते है की असली मर्द के वीर्य की गर्मी ऐसी चीज़ होती है की अपने स्पर्श मात्र से ही औरत को झड़ने पर मजबूर कर देती है

शेफाली की चूत मे जब वो गर्म लावा गया तो उसकी चूत की दीवारें भी झमा झम बारिश करने लगी

दोनो के मिलन से उत्पन हुआ एक छोटा सा झरना , शेफाली की चूत की दरारों से होता हुआ बाहर गिरने लगा






जिसे बाहर फर्श पर लेटी अनु सॉफ देख पा रही थी

उसमें इतनी हिम्मत नही थी की उठकर खड़ी हो और उस नज़ारे का भरपूर आनंद ले

पर उसे मालूम था की वो वक़्त भी आने वाला है जब वो उस झरने के नीचे पड़ी हुई नहा रही होगी


अंदर और बाहर दोनो तरफ आने वाले कल की रंगीन पिक्चर चल रही थी.

कुल मिलाकर सबको बहुत मज़ा आने वाला था.
क्या कहूं

मंत्रमुग्ध, शब्दविहीन हूँ मैं. कितने कम शब्दों में तन और मन दोनों की स्थितियां दर्शाते हुए,... और एक शब्द एक लाइन भी ऐसी नहीं जिसे कोई काट सके,

एक्शन भी इरोटिका भी और तन मन दोनों में चल रहा तूफ़ान भी सब

इस कहानी का एक महत्वपूर्ण पल था यह,... जो शेफाली और अनु दोनों चाहते थे, और सब कुछ इतने सहज ढंग से

शेफाली की अनुभिति

आज शेफाली ने उसका सारा रस अपने अंदर ही ले लिया
और कहते है की असली मर्द के वीर्य की गर्मी ऐसी चीज़ होती है की अपने स्पर्श मात्र से ही औरत को झड़ने पर मजबूर कर देती है


और अन्नू का पक्ष भी


जिसे बाहर फर्श पर लेटी अनु सॉफ देख पा रही थी

उसमें इतनी हिम्मत नही थी की उठकर खड़ी हो और उस नज़ारे का भरपूर आनंद ले

पर उसे मालूम था की वो वक़्त भी आने वाला है जब वो उस झरने के नीचे पड़ी हुई नहा रही होगी



मैं सिर्फ कह सकती हूँ

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थोड़ा सा मतांतर है मेरा,

इन प्रसंगों को किसी कैटगरी में, पूर्व निर्णीत मनोवज्ञानिक स्वभाव में बांधना दुरूह है असम्भव अगर नहीं तो,... यह समुद्र को बाँधने जैसा है.

कम से कम मैं, ... जैस कभी रविशंकर जी या विलायत खां साहेब ( अब तो दोनों जन्नत नशीन हैं ) के सितार को सुनते समय लगता है , एक संगीत का झरना बह रहा है, अविरल, अजस्त्र,... तो उस समय सिर्फ उस संगीत सरिता में अवगाहन करने का मन करता है, उसके व्याकरण को समझने की कोशिश करने का नहीं,

या अभी जैसे खिड़की से बार सावन की बूंदे गिरती हैं तो बस वह संगीत सुनने का, कैसे वह पत्तों पर आकर थोड़ी देर टिकती है कुछ देर में फिसल कर गिर पड़ती है , बूंदो से भीगती मिटटी से जो महक उठती है, भीगते बच्चे बारिश के पानी से भरी नाली में कागज की नाव चलाने की कोशिश कर रहे हैं

और बरामदे में खड़ी उनकी मा डांट रही है,...

और उस समय यह सोचने का समय नहीं होता की यह मानसून अरब सागर वाला है या बंगाल की खाड़ी वाला,.. या बादल किस प्रकार के हैं,...

उसी तरह यह कहानी पढ़ते समय मैं सिर्फ आनंद विभोर होती उन शब्दों के भाव के लालित्य से,...

सौंदर्य मेरे लिए संगीत का हो , प्रकृति का हो , साहित्य का हो सिर्फ महसूस करने के चीज़ है पर अफ़सोस की जीवन की इस आपधापी में यह महसूस करने की ताकत भी ( मैं सिर्फ अपने लिए कह रही हूँ ) कम होती जा रही है

और लेखक और उनकी लेखनी की मैं जबरदस्त फैन हूँ , आपकी इस बात से मैं एकदम इत्तफाक रखती हूँ,.. कामक्रीड़ा के पलो में भी अलंकारों का उपयोग सबके बस की बात नहीं,
कोमल जी , XS के समय आपने " फागुन के दिन चार " लिखा था और वो लगभग एक इरोटिक उपन्यास ही था। मैने इससे बेहतर कोई भी इरोटिक , थ्रिलर , ग्रामीण एवं शहरी पृष्ठ भूमि पर आधारित उपन्यास नही पढ़ा ।
इसके बाद आपने " जोरू का गुलाम ' लिखना शुरू किया। जहां तक मुझे याद है इस कहानी के दौरान ही गॉसिप बन्द हो गया।
मुझे इस चीज का आज भी अफसोस है कि उन दिनो मेरा कोई एकाउंट नही था । अगर रहा होता तो अवश्य ही आपके थ्रीड पर कमेन्ट किया होता।
XF के शुरू होने के कुछ दिनो तक मै यही यहां ढूंढता रहा कि आप और अंकिता रानी जी इस फोरम पर मौजूद है या नही । फिर आप दोनो यहां आई और रीडर्स को भरपूर इंटरटेन किया।
आप की लेखनी का मै कायल हूं । उत्तर प्रदेश और बिहार पृष्ठ भूमि से संबंधित इरोटिक कहानी आप से बेहतर कोई भी नही लिख सकता। ऐसा महसूस होता है जैसे अपने गांव के मिट्टी की खुशबू सूंघ रहे है। आप वास्तव मे अद्भुत है।

बहुत इच्छा होती है कि आप के थ्रीड पर आऊं पर आपके स्टोरी पर इतने अधिक अपडेट आ चुके है कि हिम्मत नही होता। काम धाम की वजह से ज्यादा यहां एक्टिव भी नही हो पाता और जब होता हूं तो कुछ मित्र या कुछ नए राइटर के थ्रीड पर ट्रैवल कर लेता हूं।
आप जब नई स्टोरी स्टार्ट करेंगी तो मै अवश्य आपके थ्रीड पर अपनी मौजूदगी दर्ज कराऊंगा। यह वादा करता हूं।
 
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