• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Adultery ☆ प्यार का सबूत ☆ (Completed)

What should be Vaibhav's role in this story..???

  • His role should be the same as before...

    Votes: 18 9.8%
  • Must be of a responsible and humble nature...

    Votes: 21 11.5%
  • One should be as strong as Dada Thakur...

    Votes: 73 39.9%
  • One who gives importance to love over lust...

    Votes: 41 22.4%
  • A person who has fear in everyone's heart...

    Votes: 30 16.4%

  • Total voters
    183

TheBlackBlood

αlѵíժα
Supreme
78,222
113,718
354
अध्याय - 66
━━━━━━༻♥༺━━━━━━



अब तक....

कुछ ही पलों में हमारा काफ़िला फिर से चल पड़ा लेकिन इस बार ये काफ़िला हवेली की तरफ चल पड़ा था। संपत, दयाल और मंगू जगन को घसीटते हुए फिर से ले चले थे। जगन की हालत बेहद ख़राब थी। उसके पैरों में अब मानों जान ही नहीं थी। वो लड़खड़ाते हुए चल रहा था। कभी कभी वो गिर भी जाता था जिससे तीनों उसे घसीटने लगते थे। कच्ची मिट्टी पर जब शरीर रगड़ खाता तो वो दर्द से चिल्लाने लगता था और फिर जल्दी ही उठने की कोशिश करता। मैंने मंगू से कह दिया था कि अब उसे ज़्यादा मत घसीटे क्योंकि ऐसे में उसकी जान भी जा सकती थी। फिलहाल उसका ज़िंदा रहना ज़रूरी था। उससे बहुत कुछ जानना शेष था।

अब आगे....

हवेली में उस वक्त सन्नाटा सा गया जब पता चला कि वैभव अपने कमरे में नहीं है। सब के सब बदहवास से हो कर पूरी हवेली में वैभव को खोजने लगे। जब वो कहीं न मिला तो सबके सब सन्नाटे में आ गए। एक तो वैसे ही घर के दो दो अज़ीज़ व्यक्तियों की दुश्मनों ने हत्या कर दी थी जिसका दुख और ज़ख्म अभी पूरी तरह ताज़ा ही था दूसरे अब वैभव का इस तरह से ग़ायब हो जाना मानों सबकी जान हलक में अटका देने के लिए काफी था।

बात दादा ठाकुर के संज्ञान में आई तो वो भी सदमे जैसी हालत में आ गए। उनका मित्र अर्जुन सिंह और समधी बलभद्र सिंह उनके साथ ही बैठक में बैठे हुए थे। वो तीनों भी वैभव के इस तरह हवेली से ग़ायब होने की बात सुन कर सकते में आ गए थे। हवेली की औरतों का एक बार फिर से रोना धोना शुरू हो गया था। हवेली की ठकुराईन सुगंधा देवी रोते बिलखते हुए बैठक में आईं और दादा ठाकुर के सामने आ कर उन्हें इस तरह से देखने लगीं जैसे पल भर वो उन्हें भस्म कर देंगी।

"आप यहां अपने ऊंचे सिंहासन पर बैठे हुए हैं और मेरा बेटा हवेली से ग़ायब है।" सुगंधा देवी गुस्से में चीख ही पड़ीं____"एक बात कान खोल कर सुन लीजिए ठाकुर साहब अगर मेरे बेटे को कुछ हुआ तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा। आपकी इस हवेली को आग लगा दूंगी मैं और उसी आग में खुद भी जल कर ख़ाक हो जाऊंगी। उसके बाद आप शान से जीते रहना।"

"शांत हो जाएं ठकुराईन।" अर्जुन सिंह ने बड़ी नम्रता से कहा____"आपके बेटे को कुछ नहीं होगा। दुनिया का कोई भी माई का लाल आपके बेटे को हानि नहीं पहुंचा सकता। अरे! आपका बेटा शेर है शेर। वो ज़रूर यहीं कहीं आस पास ही होगा। थोड़ी देर में आ जाएगा। बस आप धीरज से काम लीजिए और ठाकुर साहब को कुछ मत कहिए। ये वैसे ही बहुत दुखी हैं।"

"अगर ये सच में दुखी होते।" सुगंधा देवी ने उसी तरह चीखते हुए कहा____"तो इस वक्त ये अपने बेटे की ग़ायब होने वाली बात सुन कर यूं चुप चाप बैठे न होते। दुश्मनों ने इनके भाई और इनके बेटे को मार डाला और ये ख़ामोशी से अपने सिंहासन पर बैठे हुए हैं। मैं हमेशा ये सोच कर खुश हुआ करती थी कि ये अपने पिता की तरह गुस्सैल और खूंखार स्वभाव के नहीं हैं लेकिन आज प्रतीत होता है कि इन्हें अपने पिता की तरह ही होना चाहिए था। आज मुझे महसूस हो रहा है कि ठाकुर खानदान का खून इनकी तरह ठंडा नहीं होना चाहिए जो अपने घर के दो दो सदस्यों की हत्या होने के बाद भी न खौले और अपने दुश्मनों का नामो निशान मिटा देने की क्षमता भी न रखे।"

"ये आप क्या कह रही हैं ठकुराईन?" अर्जुन सिंह सुगंधा देवी के तेवर देख पहले ही हैरान परेशान था और अब ऐसी बातें सुन कर आश्चर्य में भी पड़ गया था, बोला____"कृपया शांत हो जाइए और भगवान के लिए ऐसी बातें मत कीजिए।"

"कैसे मित्र हैं आप?" सुगंधा देवी अर्जुन सिंह से मुखातिब हुईं_____"कि इतना कुछ होने के बाद भी आप शांति की बातें कर रहे हैं। शायद आपका खून भी इनकी तरह ही ठंडा पड़ चुका है। अपने आपको दादा ठाकुर और ठाकुर साहब कहलवाने वाले दो ऐसे कायरों को देख रही हूं जो दुश्मनों के ख़ौफ से औरतों की तरह घर में दुबके हुए बैठे हैं। धिक्कार है ठाकुरों के ऐसे ठंडे खून पर।"

"समधन जी।" बलभद्र सिंह ने हिचकिचाते हुए कहा____"हम आपकी मनोदशा को अच्छी तरह समझते हैं किंतु ठाकुर साहब के लिए आपका ये सब कहना बिल्कुल भी उचित नहीं है। आवेश और गुस्से में आप क्या क्या बोले जा रही हैं इसका आपको ख़ुद ही अंदाज़ा नहीं है। देखिए, हम आपकी बेहद इज्ज़त करते हैं और यही चाहते हैं कि ऐसे अवसर पर आप संयम से काम लें। एक बात आप अच्छी तरह जान लीजिए कि ये जो कुछ भी हुआ है उसका बदला ज़रूर लिया जाएगा। हत्यारे ज़्यादा दिनों तक इस दुनिया में जी नहीं पाएंगे।"

"क्या कर लेंगे ये?" सुगंधा देवी का गुस्सा मानों अभी भी शांत नहीं हुआ था, बोलीं____"सच तो ये है कि ये हत्यारों का कुछ बिगाड़ ही नहीं पाएंगे समधी जी। अरे! इन्हें तो ये तक पता नहीं है कि इनके अपनों की हत्या करने वाले आख़िर हैं कौन? आपको अभी यहां के हालातों के बारे में पता नहीं है। ये जो आस पास के गावों का फ़ैसला करते हैं न इन्हें खुद नहीं पता कि हवेली और हवेली में रहने वालों पर इस तरह का संकट पैदा करने वाला कौन है? आप खुद सोचिए कि जब इन्हें कुछ पता ही नहीं है तो ये आख़िर क्या कर लेंगे किसी का? अभी दो लोगों की हत्या की है हत्यारों ने आगे बाकियों की भी ऐसे ही हत्या कर देंगे और ये कुछ नहीं कर सकेंगे। क्या इनके पास इस बात का कोई जवाब है कि इनके यहां बैठे रहने के बाद भी मेरा बेटा हवेली से कैसे ग़ायब हो गया? और इनके पास ही क्यों बल्कि आप दोनों के पास भी इस बात का कोई जवाब नहीं है।"

सुगंधा देवी की इन बातों को सुन कर बलभद्र सिंह को समझ ही न आया कि अब वो क्या कहें? ये सच था कि उन्हें यहां के हालातों के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं थी किंतु जितनी भी अभी हुई थी और जो कुछ ठकुराईन द्वारा अभी उन्होंने सुना था उससे वो अवाक से रह गए थे।

"अर्जुन सिंह।" एकदम से छा गए सन्नाटे को चीरते हुए दादा ठाकुर ने अजीब भाव से कहा____"अब हम और सहन नहीं कर सकते। हम इसी वक्त अपने दुश्मनों को मिट्टी में मिलाने के लिए यहां से जाना चाहते हैं।"

"य...ये आप क्या कह रहे हैं ठाकुर साहब?" दादा ठाकुर को सिघासन से उठ गया देख अर्जुन सिंह चौंके, फिर बोले____"देखिए आवेश में आ कर आप ऐसा कोई भी क़दम उठाने के बारे में मत सोचिए। ठकुराईन की बातों से आहत हो कर आप बिना सोचे समझे कुछ भी ऐसा नहीं करेंगे जिससे कि बाद में आपको खुद ही पछताना पड़े।"

"हमें पछताना मंज़ूर है अर्जुन सिंह।" दादा ठाकुर ने सख़्त भाव से कहा____"लेकिन अब दुश्मनों को ज़िंदा रखना मंज़ूर नहीं है। आपकी ठकुराईन ने सच ही तो कहा है कि इतना कुछ होने के बाद भी हमारा खून नहीं खौला बल्कि बर्फ़ की मानिंद ठंडा ही पड़ा हुआ है। ऊपर से हमारे छोटे भाई और बेटे की आत्मा भी ये देख कर दुखी ही होंगी कि हम उनकी हत्या का बदला नहीं ले रहे। वो दोनों हमें माफ़ नहीं करेंगे। हमें अब मर जाना मंज़ूर है लेकिन कायरों की तरह यहां बैठे रहना हर्गिज़ मंज़ूर नहीं है।"

दादा ठाकुर की बातें सुन कर अर्जुन सिंह अभी कुछ बोलने ही वाले थे कि तभी बाहर से किसी के आने की आहट हुई और फिर चंद ही पलों में मैं बैठक के सामने आ कर खड़ा हो गया। मुझ पर नज़र पड़ते ही मां भागते हुए मेरे पास आईं और मुझे अपने सीने से छुपका कर रो पड़ीं।

"कहां चला गया था तू?" मुझे अपने कलेजे से लगाए वो रोते हुए कह रहीं थी____"तुझे हवेली में न पर कर मेरी तो जान ही निकल गई थी। तू इस तरह अपनी मां को छोड़ कर क्यों चला गया था? तुझे कुछ हुआ तो नहीं न?"

कहने के साथ ही मां ने मुझे खुद से अलग किया और फिर पागलों की तरह मेरे जिस्म के हर हिस्से को छू छू कर देखने लगीं। मां की इस हालत को देख कर मेरे दिल में बेहद पीड़ा हुई लेकिन फिर मैंने किसी तरह खुद को सम्हाला और मां से कहा____"मुझे कुछ नहीं हुआ है मां। मैं एकदम ठीक हूं, और मुझे माफ़ कर दीजिए जो मैं बिना किसी को कुछ बताए हवेली से यूं चला गया था।"

"अपने दो बेटों को खो चुकी हूं मैं।" मां की आंखें छलक पड़ीं, मेरे चेहरे को अपनी दोनों हथेलियों के बीच ले कर करुण स्वर में बोलीं____"अब तुझे नहीं खोना चाहती। मुझे वचन दे कि आज के बाद तू कभी भी इस तरह कहीं नहीं जाएगा।"

"ठीक है मां।" मैंने कहा____"मैं आपको वचन देता हूं। अब शांत हो जाइए और अंदर जाइए।"
"पर तू इस तरह कहां चला गया था?" मां ने मेरी तरफ देखते हुए पूछा____"और किसी को बताया क्यों नहीं?"

मैंने मां को किसी तरह बहलाया और उन्हें अंदर भेज दिया। असल में मैं उन्हें सच नहीं बताना चाहता था वरना वो परेशान भी हो जातीं और मुझ पर गुस्सा भी करतीं।

"वैभव बेटा आख़िर ये सब क्या है?" मां के जाने के बाद अर्जुन सिंह ने मुझसे कहा____"तुम बिना किसी को कुछ बताए इस तरह कहां चले गए थे? क्या तुम्हें मौजूदा हालातों की गंभीरता का ज़रा भी एहसास नहीं है? अगर तुम्हें कुछ हो जाता तो जानते हो कितना गज़ब हो जाता?"

"माफ़ कीजिए चाचा जी।" मैंने शांत भाव से कहा और फिर पिता जी से मुखातिब हुआ____"आप भी मुझे माफ़ कर दीजिए पिता जी। मैं जानता हूं कि मुझे इस तरह हवेली से बाहर नहीं जाना चाहिए था लेकिन मैं ऐसी मानसिक अवस्था में था कि खुद को रोक ही नहीं पाया। हालाकि एक तरह से ये अच्छा ही हुआ क्योंकि मेरा इस तरह से बाहर जाना बेकार नहीं गया।"

"क्या मतलब है तुम्हारा?" पिता जी ने नाराज़गी से मेरी तरफ देखा।
"असल में बात ये है कि मेरे आदमियों ने मुरारी के भाई जगन को पकड़ लिया है।" मैंने कहा____"और इस वक्त वो बाहर ही है। मेरे आदमियों के कब्जे में।"

मेरी बात सुन कर सबके चेहरों पर हैरत के भाव उभर आए। उधर पिता जी ने कहा____"उसे फ़ौरन हमारे सामने ले कर आओ।"

पिता जी के कहने पर मैंने एक दरबान को भेज कर जगन को बुला लिया। जगन बुरी तरह डरा हुआ था और साथ ही उसकी हालत भी बेहद खस्ता थी। जैसे ही वो दादा ठाकुर के सामने आया तो वो और भी ज़्यादा खौफ़जदा हो गया। पिता जी ने क़हर भरी नज़रों से उसकी तरफ देखा।

"मुझे माफ़ कर दीजिए दादा ठाकुर।" जगन आगे बढ़ कर पिता जी के पैरों में ही लोट गया, फिर बोला____"मुझसे बहुत बड़ा अपराध हो गया है, मुझे माफ़ कर दीजिए। मैं हर तरह से मजबूर हो गया था ये सब करने के लिए।"

"तुमने जो किया है उसके लिए तुम्हें कोई माफ़ी नहीं मिल सकती।" पिता जी ने कठोर भाव से कहा____"तुम्हें सज़ा तो यकीनन मिलेगी लेकिन उससे पहले हम तुमसे ये जानना चाहते हैं कि तुमने ये सब क्यों किया? किसके कहने पर किया और कैसे किया? हम सब कुछ विस्तार से जानना चाहते हैं।"

"सब मेरी बदकिस्मती का ही नतीजा है दादा ठाकुर।" जगन ने दुखी हो कर कहा____"कर्ज़ में ऐसा डूबा कि फिर कभी उबर ही नहीं सका उससे। खेत पात सब गिरवी हो गए इसके बावजूद क़र्ज़ न चुका। हालात इतने ख़राब हो गए कि परिवार का भरण पोषण करना भी मुश्किल पड़ गया। अपनी ख़राब हालत के बारे में मुरारी भैया को बता भी नहीं सकता था क्योंकि वो नाराज़ हो जाते। उनसे न जाने कितनी ही बार मदद ले चुका था मैं, इस लिए अब उनसे सहायता लेने में बेहद शर्म आ रही थी। मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि मैं किस तरह से अपने सिर पर से कर्ज़ का बोझ हटाऊं और किस तरह से अपने परिवार का भरण पोषण करूं? दूसरी तरफ मेरा बड़ा भाई था जिसके सिर पर कर्ज़ का बोझ तो था लेकिन मेरी तरह उसकी हालत ख़राब नहीं थी। उसके पास खेत पात थे जिनसे वो अपना परिवार अच्छे से चला रहा था। सच कहूं तो ये देख कर अब मैं अपने ही भाई से ईर्ष्या के साथ साथ घृणा भी करने लगा था।"

"तो क्या इसी ईर्ष्या और घृणा की वजह से तुमने अपने भाई की हत्या कर दी थी?" पिता जी बीच में ही उसकी तरफ गुस्से से देखते हुए बोल पड़े थे।

"नहीं दादा ठाकुर।" जगन ने इंकार में सिर हिलाते हुए कहा____"ये सच है कि मैं अपने भाई से ईर्ष्या और घृणा करने लगा था लेकिन उसे जान से मार डालने के बारे में कभी नहीं सोचा था, बल्कि यही दुआ करता रहता था कि किसी वजह से उसे कुछ हो जाए ताकि उसका सब कुछ मेरा हो जाए। पर भला चमार के मनाए पड़वा थोड़ी ना मरता है, बस वही हाल था।"

"अगर ऐसी बात है।" अर्जुन सिंह ने कहा____"तो फिर अचानक से तुम्हारे मन में अपने भाई की हत्या करने का ख़याल कैसे आ गया था?"

"ये तब की बात है जब छोटे ठाकुर दादा ठाकुर के द्वारा गांव से निष्कासित किए जाने पर हमारे गांव के पास अपनी बंज़र पड़ी ज़मीन में रहते थे।" जगन ने गंभीर भाव से कहा____"इन्हें वहां पर रहते हुए काफी समय हो गया था। मैं ये भी जानता था कि मेरा भाई इनकी मदद करता था और मेरे भाई से इनके बेहतर संबंध थे जिसके चलते ये मेरे भाई के घर भी जाते रहते थे। मुझे ये देख कर भी अपने भाई से जलन होती थी कि उसके संबंध दादा ठाकुर के लड़के से थे। मैं जानता था कि उस समय भले ही छोटे ठाकुर निष्कासित किए जाने पर अपने घर से बेघर थे लेकिन एक न एक दिन तो वापस हवेली लौटेंगे ही और तब वो मेरे भाई के एहसानों का क़र्ज़ भी बेहतर तरीके से चुकाएंगे। ज़ाहिर है ऐसे में मेरे भाई की स्थिति पहले से और भी बेहतर हो जाती और मैं और भी बदतर हालत में पहुंच जाता। ये सब ऐसी बातें थी जिसके चलते मेरे मन में अपने भाई के प्रति और भी ज़्यादा जलन और नफ़रत पैदा होने लगी थी लेकिन इसके लिए मैं कुछ कर नहीं सकता था। बस अंदर ही अंदर घुट रहा था। फिर एक दिन वो हुआ जिसकी मैंने सपने में भी उम्मीद नहीं की थी।"

"ऐसा क्या हुआ था?" जगन एकदम से चुप हो गया तो अर्जुन सिंह ने पूछ ही लिया____"जिसकी तुमने सपने में भी उम्मीद नहीं की थी?"

"मैं बहुत ज़्यादा परेशान था।" जगन ने फिर से कहना शुरू किया____"अपने बच्चों को भूखा देख मैं उनके लिए बहुत चिंतित हो गया था। एक शाम मैं इसी परेशानी और चिंता में अपने उन खेतों में बैठा था जो गिरवी रखे हुए थे। शाम पूरी तरह से घिर चुकी थी और चारो तरफ अंधेरा फैल गया था। मैं सोचो में इतना खोया हुआ था कि मुझे इस बात का आभास ही नहीं हुआ कि एक रहस्यमय साया मेरे क़रीब जाने कहां से आ कर खड़ा हो गया था? जब उसने अपनी अजीब सी आवाज़ में मुझे पुकारा तो मैं एकदम से हड़बड़ा गया और जब उस पर मेरी नज़र पड़ी तो मैं बुरी तरह डर गया। मुझे समझ न आया कि आख़िर उसके जैसा व्यक्ति कौन हो सकता है और मेरे पास किस लिए आया है? मुझे लगा वो ज़रूर कोई ऐसा व्यक्ति है जिससे मैंने कर्ज़ ले रखा है और कर्ज़ न चुकाने की वजह से अब वो मेरी जान लेने आया है। ये सोच कर मैं बेहद खौफ़जदा हो गया और फ़ौरन ही उसके पैरों में पड़ कर उससे रहम की भीख मांगने लगा। तब उसने जो कहा उसे सुन कर मैं एकदम से हैरान रह गया। उसने कहा कि मुझे उससे न तो डरने की ज़रूरत है और ना ही इस तरह रहम की भीख मांगने की। बल्कि वो तो मेरे पास इस लिए आया है ताकि मेरी परेशानियों के साथ साथ मेरे हर दुख का निवारण भी कर सके। मैं सच कहता हूं दादा ठाकुर, सफ़ेद कपड़ों में ढंके उस रहस्यमय व्यक्ति की बातें सुन कर मैं बुत सा बन गया था। फिर मैंने खुद को सम्हाला और उससे पूछा कि क्या सच में वो मेरी समस्याओं का निवारण कर देगा तो जवाब में उसने कहा कि वो एक पल में मेरी हर समस्या को दूर कर देगा लेकिन बदले में मुझे भी कुछ करना पड़ेगा। इतना तो मैं भी समझ गया था कि अगर कोई व्यक्ति इस रूप में आ कर मेरी समस्याओं को दूर करने को बोल रहा है तो वो ये सब मुफ्त में तो करेगा नहीं। यानि बदले में उसे भी मुझसे कुछ न कुछ चाहिए ही था। मैं अब यही जानना चाहता था उससे कि बदले में आख़िर मुझे क्या करना होगा? तब उसने मुझसे कहा कि बदले में मुझे अपने भाई मुरारी की हत्या करनी होगी और उस हत्या का इल्ज़ाम छोटे ठाकुर पर लगाना होगा।"

जगन सांस लेने के लिए रुका तो बैठक में सन्नाटा सा छा गया। पिता जी, अर्जुन सिंह और भैया के चाचा ससुर यानि बलभद्र सिंह उसी की तरफ अपलक देखे जा रहे थे। पिता जी और अर्जुन सिंह के चेहरे पर तो सामान्य भाव ही थे किंतु बलभद्र सिंह के चेहरे कर आश्चर्य के भाव गर्दिश करते नज़र आ रहे थे। ज़ाहिर है ये सब उनके लिए नई और हैरतअंगेज बात थी।

"उस सफ़ेदपोश आदमी के मुख से ये सुन कर तो मैं सकते में ही आ गया था।" इधर जगन ने फिर से बोलना शुरू किया____"मेरी धड़कनें धाड़ धाड़ कर के मेरी कनपटियों में बजती महसूस हो रहीं थी। मेरे मुंह से कोई लफ्ज़ नहीं निकल रहे थे। फिर जैसे मुझे होश आया तो मैंने उससे कहा कि ये क्या कह रहे हैं आप? आप होश में तो हैं? तो उसने कहा कि होश में तो मुझे रहना चाहिए। सच तो ये था कि उसकी बातों से मेरे मन में तरह तरह के ख़याल उभरने लगे थे। उसने मुझे समझाया कि ऐसा करने से मुझ पर कभी कोई बात नहीं आएगी। जब मैंने कहा कि ऐसा कैसे हो सकता है तो उसने मुझे कुछ ऐसा बताया जिसकी मैं कल्पना भी नहीं कर सकता था। उसने कहा कि छोटे ठाकुर के नाजायज संबंध मेरे भाई की बीवी से हैं।"

जगन, मादरचोद ने सबके सामने मेरी इज्ज़त का जनाजा निकाल दिया था। चाचा ससुर ने जब उसके मुख से ये सुन कर मेरी तरफ हैरानी से देखा तो मेरा सिर शर्म से झुकता चला गया। ख़ैर, अब क्या ही हो सकता था।

"उस रहस्यमय व्यक्ति ने कहा कि छोटे ठाकुर के ऐसे नाजायज़ संबंध के आधार पर मुरारी की हत्या का इल्ज़ाम इन पर आसानी से लगाया जा सकता है।" उधर जगन मानों अभी भी मेरी इज्ज़त उतारने पर अमादा था, बोला____"यानि सबको ये कहानी बताई जाएगी कि छोटे ठाकुर ने मेरे भाई की हत्या इस लिए की है क्योंकि मेरे भाई को इनकी काली करतूत का पता चल गया था और वो दादा ठाकुर के पास जा कर इनकी करतूत बता कर उनसे इंसाफ़ मांगने की बात कहने लगा था। छोटे ठाकुर इस बात से डर गए और फिर इन्होंने ये सोच कर मेरे भाई की हत्या कर दी कि जब मुरारी ही नहीं रहेगा तो किसी को कुछ पता ही नहीं चलेगा। अपने मरद की हत्या होने के बाद सरोज भौजी को अगर ये पता भी हो जाता कि छोटे ठाकुर ने ही उसके मरद की हत्या की है तो वो इनसे कुछ कह ही नहीं सकती थी। ऐसा इस लिए क्योंकि उसके मरद की हत्या हो जाने के लिए वो खुद भी ज़िम्मेदारी ही होती और बदनामी के डर से किसी से कुछ कहती ही नहीं। सफ़ेदपोश आदमी ने जब मुझे ये सब समझाया तो मेरे कुंद पड़े ज़हन के मानों सारे कपाट एकदम से खुल गए और मुझे अच्छी तरह ये एहसास हो गया कि अगर सच में मैं अपने भाई की हत्या कर के हत्या का इल्ज़ाम छोटे ठाकुर पर लगा दूं तो यकीनन मुझ पर कभी कोई बात ही नहीं आएगी। सबसे बड़ी बात ये कि ऐसा करने से मेरी हर समस्या भी दूर हो जाएगी। ख़ैर, समझ तो मुझे उसी वक्त आ गया था लेकिन तभी मुझे ये भी आभास हुआ कि ऐसा करना कहीं मुझ पर ही न भारी पड़ जाए क्योंकि जिसके कहने पर मैं अपने भाई की हत्या करूंगा वो बाद में मुझे ही फंसा सकता था। मुझे तो पता भी नहीं है कि सफ़ेद कपड़ों में लिपटा वो व्यक्ति आख़िर है कौन और ये सब करवा कर वो छोटे ठाकुर को क्यों फंसाना चाहता है? मैंने उससे सोचने के लिए कुछ दिन का समय मांगा तो उसने कहा ठीक है। फिर वो ये कह कर चला गया कि मेरे पास सोचने के लिए दो दिन का वक्त है। दो दिन बाद मैं दादा ठाकुर के आमों वाले बाग में आ जाऊं क्योंकि वो मुझे वहीं मिलेगा। उसके जाने के बाद मैं घर आया और खा पी कर बिस्तर में लेट गया। बिस्तर में लेटे हुए मैं उसी के बारे में सोचे जा रहा था। रात भर मुझे नींद नहीं आई। मैंने बहुत सोचा कि वो रहस्यमय आदमी मुझसे ऐसा क्यों करवाना चाहता है लेकिन कुछ समझ में नहीं आया। ऐसे ही दो दिन गुज़र गए।"

"मेरे भाई की हत्या में छोटे ठाकुर को फंसाने का मुझे एक ही मतलब समझ आया था।" कुछ पल रुकने के बाद जगन ने फिर से कहा____"मतलब कि वो रहस्यमय आदमी छोटे ठाकुर से या तो नफ़रत करता था या फिर वो इन्हें अपना दुश्मन समझता था। मुझे उस पर यकीन नहीं था इस लिए दो दिन बाद जब मैं आपके आमों वाले बाग़ में उस व्यक्ति से मिला तो मैंने उससे साफ कह दिया कि पहले वो मेरी समस्याएं दूर करे, उसके बाद ही मैं उसका काम करूंगा। हालाकि मेरे पास उसका काम करने के अलावा कोई चारा भी नहीं था, क्योंकि मैं ये भी समझ रहा था कि उसका काम अगर मैं नहीं करूंगा तो वो किसी और से करवा लेगा। यानि मेरे भाई का मरना तो अब निश्चित ही हो चुका था और यदि कोई दूसरा मेरे भाई की हत्या करेगा तो इससे मेरा ही सबसे बड़ा नुकसान होना था। मैंने यही सब सोच कर फ़ैसला कर लिया था कि जब मेरे भाई की मौत निश्चित ही हो चुकी है तो मैं ये काम करने से क्यों मना करूं? अगर मेरे ऐसा करने से मेरी सारी समस्याओं का अंत हो जाना है तो शायद यही बेहतर है मेरे और मेरे परिवार की भलाई के लिए। मेरी उम्मीद के विपरीत दूसरे ही दिन उस रहस्यमय व्यक्ति ने मेरे हाथ में नोटों की एक गड्डी थमा दी। मैं समझ गया कि नोटों की उस गड्डी से मेरा सारा कर्ज़ चुकता हो जाना था और साथ ही गिरवी पड़े मेरे खेत भी मुक्त हो जाने थे। इस बात से मैं बड़ा खुश हुआ और फिर मैंने एक बार भी ये नहीं सोचना चाहा कि अपने ही भाई की हत्या करना कितना बड़ा गुनाह होगा, पाप होगा।"

"मुरारी काका की हत्या कैसे की थी तुमने?" जगन के चुप होते ही मैंने उससे पूछा____"वो तो उस रात आंगन में सो रहे थे न फिर तुमने कैसे उनकी हत्या की और उनकी लाश को बाहर पेड़ के पास छोड़ दिया?"

"सब कुछ बड़ा आसान सा हो गया था छोटे ठाकुर।" जगन ने फीकी मुस्कान के साथ कहा____"मैं जानता था कि मेरा भाई लगभग रोज़ ही देशी पीता था और इतनी पी लेता था कि फिर उसे किसी चीज़ का होश ही नहीं रहता था। उस रात मैं आप दोनों पर नज़र रखे हुए था। मेरा भाई देशी पी कर आंगन में चारपाई पर लेटा हुआ था। इधर मैं सोचने लगा कि उसे बाहर कैसे लाऊं? हालाकि मैं घर के अंदर दीवार फांद कर आसानी से जा सकता था और फिर आंगन में ही उसकी हत्या कर सकता था लेकिन मुझे इस बात का भी एहसास था कि अगर थोड़ी सी भी आहट या आवाज़ हुई तो भौजी या फिर अनुराधा की नींद खुल सकती थी और तब मैं पकड़ा जा सकता था। इस लिए मैंने यही सोचा था कि मुरारी को बाहर बुला कर ही उसकी हत्या की जाए। उसे बाहर बुलाने का मेरे पास फिलहाल कोई उपाय नहीं था। इधर धीरे धीरे रात भी गुज़रती जा रही थी। वक्त के गुज़रने से मेरी परेशानी भी बढ़ती जा रही थी। समझ में नहीं आ रहा था कि ऐसा क्या करूं जिससे मेरा भाई बाहर आ जाए? उस वक्त शायद भोर का समय था जब मैंने अचानक ही किवाड़ खुलने की आवाज़ सुनी। मैं फ़ौरन ही छुप गया और देखने लगा कि बाहर कौन आता है? कुछ ही देर में मैं ये देख कर खुश हो गया कि किवाड़ खोल कर मेरा भाई बाहर आ गया है और पेड़ की तरफ जा रहा है। मैं समझ गया कि उसे पेशाब लगा था इसी लिए उसकी नींद खुली थी उस वक्त। सच कहूं तो ये मेरे लिए जैसे ऊपर वाले ने ही सुनहरा मौका प्रदान कर दिया था और मैं इस मौके को किसी भी कीमत पर गंवाना नहीं चाहता था। मैंने देखा मेरा भाई पेड़ के पास खड़ा पेशाब कर रहा है तो मैं बहुत ही सावधानी से उसकी तरफ बढ़ा। मेरे हाथ में कुल्हाड़ी थी और मैंने उसी कुल्हाड़ी से अपने भाई की जीवन लीला को समाप्त कर देने का सोच लिया था। मेरा समूचा जिस्म ये सोच कर बुरी तरह कांपने लगा था कि मैं अपने भाई को जान से मार देने वाला हूं। इससे पहले कि मैं उसके पास पहुंच कर कुछ करता मेरा भाई पेशाब कर के फारिग़ हो गया और मेरी तरफ पलटा। अंधेरे में मुझ पर नज़र पड़ते ही वो बुरी तरह चौंका और साथ ही डर भी गया। होश तो मेरे भी उड़ गए थे लेकिन फिर मैंने खुद को सम्हाला और फिर तेज़ी से उसकी तरफ झपटा। मैंने तेज़ी से कुल्हाड़ी का वार उस पर किया तो वो ऐन मौके पर झुक गया जिससे मेरा वार खाली चला गया। उधर मैं सम्हल भी न पाया था कि मुरारी ने मुझे दबोच लिया। उसके मुख से अभी भी देशी की दुर्गंध आ रही थी। जब उसने मुझे दबोच लिया तो मैं ये सोच कर बुरी तरह घबरा गया कि शायद उसने मुझे और मेरी नीयत को पहचान लिया है और अब वो मुझे छोड़ने वाला नहीं है। मरता क्या न करता वाली हालत हो गई थी मेरी। मेरा भाई शरीर से और ताक़त से मुझसे ज़्यादा ही था इस लिए मुझे लगा कि कहीं मैं खुद ही न मारा जाऊं। ज़हन में इस ख़याल के आते ही मैंने पूरा जोर लगा कर उसे धक्का दे दिया जिससे वो धड़ाम से ज़मीन पर गिर गया। मैं अवसर देख कर फ़ौरन ही उसके ऊपर सवार हो गया और कुल्हाड़ी को उसके गले में लगा कर उसके गले को चीर दिया। खून का फव्वारा सा निकला जो उछल कर मेरे ऊपर ही आ गिरा। उधर मेरा भाई जल बिन मछली की तरह तड़पने लगा था और इससे पहले की वो दर्द से तड़पते हुए चीखता मैंने जल्दी से उसे दबोच कर उसके मुख को बंद कर दिया। कुछ ही देर में उसका तड़पना बंद हो गया और मेरा भाई मर गया। कुछ देर तक मैं अपनी तेज़ चलती सांसों को नियंत्रित करता रहा और फिर उठ कर खड़ा हो गया। नज़र भाई के मृत शरीर पर पड़ी तो मैं ये सोच कर एकदम से घबरा गया कि ये क्या कर डाला मैंने किंतु फिर जल्दी ही मुझे समझ में आया कि अब इस बारे में कुछ भी सोचने का कोई मतलब नहीं है। बस, ये सोच कर मैं कुल्हाड़ी लेकर वहां से भाग गया।"

"और फिर जब सुबह हुई।" जगन के चुप होते ही मैंने कहा____"तो तुम अपने गांव के लोगों को ले कर मेरे झोपड़े में आ गए। मकसद था सबके सामने मुझे अपने भाई का हत्यारा साबित करना। मेरे चरित्र के बारे में सभी जानते थे इस लिए हर कोई इस बात को मान ही लेता कि अपने आपको बचाने के लिए मैंने ही मुरारी काका की हत्या की है।"

जगन ने मेरी बात सुन कर सिर झुका लिया। बैठक में एक बार फिर से ख़ामोशी छा गई थी। सभी के चेहरों पर कई तरह के भावों का आवा गमन चालू था।

━━━━✮━━━━━━━━━━━✮━━━━
 

Pagal king

Member
149
269
63
अध्याय - 66
━━━━━━༻♥༺━━━━━━



अब तक....

कुछ ही पलों में हमारा काफ़िला फिर से चल पड़ा लेकिन इस बार ये काफ़िला हवेली की तरफ चल पड़ा था। संपत, दयाल और मंगू जगन को घसीटते हुए फिर से ले चले थे। जगन की हालत बेहद ख़राब थी। उसके पैरों में अब मानों जान ही नहीं थी। वो लड़खड़ाते हुए चल रहा था। कभी कभी वो गिर भी जाता था जिससे तीनों उसे घसीटने लगते थे। कच्ची मिट्टी पर जब शरीर रगड़ खाता तो वो दर्द से चिल्लाने लगता था और फिर जल्दी ही उठने की कोशिश करता। मैंने मंगू से कह दिया था कि अब उसे ज़्यादा मत घसीटे क्योंकि ऐसे में उसकी जान भी जा सकती थी। फिलहाल उसका ज़िंदा रहना ज़रूरी था। उससे बहुत कुछ जानना शेष था।

अब आगे....

हवेली में उस वक्त सन्नाटा सा गया जब पता चला कि वैभव अपने कमरे में नहीं है। सब के सब बदहवास से हो कर पूरी हवेली में वैभव को खोजने लगे। जब वो कहीं न मिला तो सबके सब सन्नाटे में आ गए। एक तो वैसे ही घर के दो दो अज़ीज़ व्यक्तियों की दुश्मनों ने हत्या कर दी थी जिसका दुख और ज़ख्म अभी पूरी तरह ताज़ा ही था दूसरे अब वैभव का इस तरह से ग़ायब हो जाना मानों सबकी जान हलक में अटका देने के लिए काफी था।

बात दादा ठाकुर के संज्ञान में आई तो वो भी सदमे जैसी हालत में आ गए। उनका मित्र अर्जुन सिंह और समधी बलभद्र सिंह उनके साथ ही बैठक में बैठे हुए थे। वो तीनों भी वैभव के इस तरह हवेली से ग़ायब होने की बात सुन कर सकते में आ गए थे। हवेली की औरतों का एक बार फिर से रोना धोना शुरू हो गया था। हवेली की ठकुराईन सुगंधा देवी रोते बिलखते हुए बैठक में आईं और दादा ठाकुर के सामने आ कर उन्हें इस तरह से देखने लगीं जैसे पल भर वो उन्हें भस्म कर देंगी।

"आप यहां अपने ऊंचे सिंहासन पर बैठे हुए हैं और मेरा बेटा हवेली से ग़ायब है।" सुगंधा देवी गुस्से में चीख ही पड़ीं____"एक बात कान खोल कर सुन लीजिए ठाकुर साहब अगर मेरे बेटे को कुछ हुआ तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा। आपकी इस हवेली को आग लगा दूंगी मैं और उसी आग में खुद भी जल कर ख़ाक हो जाऊंगी। उसके बाद आप शान से जीते रहना।"

"शांत हो जाएं ठकुराईन।" अर्जुन सिंह ने बड़ी नम्रता से कहा____"आपके बेटे को कुछ नहीं होगा। दुनिया का कोई भी माई का लाल आपके बेटे को हानि नहीं पहुंचा सकता। अरे! आपका बेटा शेर है शेर। वो ज़रूर यहीं कहीं आस पास ही होगा। थोड़ी देर में आ जाएगा। बस आप धीरज से काम लीजिए और ठाकुर साहब को कुछ मत कहिए। ये वैसे ही बहुत दुखी हैं।"

"अगर ये सच में दुखी होते।" सुगंधा देवी ने उसी तरह चीखते हुए कहा____"तो इस वक्त ये अपने बेटे की ग़ायब होने वाली बात सुन कर यूं चुप चाप बैठे न होते। दुश्मनों ने इनके भाई और इनके बेटे को मार डाला और ये ख़ामोशी से अपने सिंहासन पर बैठे हुए हैं। मैं हमेशा ये सोच कर खुश हुआ करती थी कि ये अपने पिता की तरह गुस्सैल और खूंखार स्वभाव के नहीं हैं लेकिन आज प्रतीत होता है कि इन्हें अपने पिता की तरह ही होना चाहिए था। आज मुझे महसूस हो रहा है कि ठाकुर खानदान का खून इनकी तरह ठंडा नहीं होना चाहिए जो अपने घर के दो दो सदस्यों की हत्या होने के बाद भी न खौले और अपने दुश्मनों का नामो निशान मिटा देने की क्षमता भी न रखे।"

"ये आप क्या कह रही हैं ठकुराईन?" अर्जुन सिंह सुगंधा देवी के तेवर देख पहले ही हैरान परेशान था और अब ऐसी बातें सुन कर आश्चर्य में भी पड़ गया था, बोला____"कृपया शांत हो जाइए और भगवान के लिए ऐसी बातें मत कीजिए।"

"कैसे मित्र हैं आप?" सुगंधा देवी अर्जुन सिंह से मुखातिब हुईं_____"कि इतना कुछ होने के बाद भी आप शांति की बातें कर रहे हैं। शायद आपका खून भी इनकी तरह ही ठंडा पड़ चुका है। अपने आपको दादा ठाकुर और ठाकुर साहब कहलवाने वाले दो ऐसे कायरों को देख रही हूं जो दुश्मनों के ख़ौफ से औरतों की तरह घर में दुबके हुए बैठे हैं। धिक्कार है ठाकुरों के ऐसे ठंडे खून पर।"

"समधन जी।" बलभद्र सिंह ने हिचकिचाते हुए कहा____"हम आपकी मनोदशा को अच्छी तरह समझते हैं किंतु ठाकुर साहब के लिए आपका ये सब कहना बिल्कुल भी उचित नहीं है। आवेश और गुस्से में आप क्या क्या बोले जा रही हैं इसका आपको ख़ुद ही अंदाज़ा नहीं है। देखिए, हम आपकी बेहद इज्ज़त करते हैं और यही चाहते हैं कि ऐसे अवसर पर आप संयम से काम लें। एक बात आप अच्छी तरह जान लीजिए कि ये जो कुछ भी हुआ है उसका बदला ज़रूर लिया जाएगा। हत्यारे ज़्यादा दिनों तक इस दुनिया में जी नहीं पाएंगे।"

"क्या कर लेंगे ये?" सुगंधा देवी का गुस्सा मानों अभी भी शांत नहीं हुआ था, बोलीं____"सच तो ये है कि ये हत्यारों का कुछ बिगाड़ ही नहीं पाएंगे समधी जी। अरे! इन्हें तो ये तक पता नहीं है कि इनके अपनों की हत्या करने वाले आख़िर हैं कौन? आपको अभी यहां के हालातों के बारे में पता नहीं है। ये जो आस पास के गावों का फ़ैसला करते हैं न इन्हें खुद नहीं पता कि हवेली और हवेली में रहने वालों पर इस तरह का संकट पैदा करने वाला कौन है? आप खुद सोचिए कि जब इन्हें कुछ पता ही नहीं है तो ये आख़िर क्या कर लेंगे किसी का? अभी दो लोगों की हत्या की है हत्यारों ने आगे बाकियों की भी ऐसे ही हत्या कर देंगे और ये कुछ नहीं कर सकेंगे। क्या इनके पास इस बात का कोई जवाब है कि इनके यहां बैठे रहने के बाद भी मेरा बेटा हवेली से कैसे ग़ायब हो गया? और इनके पास ही क्यों बल्कि आप दोनों के पास भी इस बात का कोई जवाब नहीं है।"

सुगंधा देवी की इन बातों को सुन कर बलभद्र सिंह को समझ ही न आया कि अब वो क्या कहें? ये सच था कि उन्हें यहां के हालातों के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं थी किंतु जितनी भी अभी हुई थी और जो कुछ ठकुराईन द्वारा अभी उन्होंने सुना था उससे वो अवाक से रह गए थे।

"अर्जुन सिंह।" एकदम से छा गए सन्नाटे को चीरते हुए दादा ठाकुर ने अजीब भाव से कहा____"अब हम और सहन नहीं कर सकते। हम इसी वक्त अपने दुश्मनों को मिट्टी में मिलाने के लिए यहां से जाना चाहते हैं।"

"य...ये आप क्या कह रहे हैं ठाकुर साहब?" दादा ठाकुर को सिघासन से उठ गया देख अर्जुन सिंह चौंके, फिर बोले____"देखिए आवेश में आ कर आप ऐसा कोई भी क़दम उठाने के बारे में मत सोचिए। ठकुराईन की बातों से आहत हो कर आप बिना सोचे समझे कुछ भी ऐसा नहीं करेंगे जिससे कि बाद में आपको खुद ही पछताना पड़े।"

"हमें पछताना मंज़ूर है अर्जुन सिंह।" दादा ठाकुर ने सख़्त भाव से कहा____"लेकिन अब दुश्मनों को ज़िंदा रखना मंज़ूर नहीं है। आपकी ठकुराईन ने सच ही तो कहा है कि इतना कुछ होने के बाद भी हमारा खून नहीं खौला बल्कि बर्फ़ की मानिंद ठंडा ही पड़ा हुआ है। ऊपर से हमारे छोटे भाई और बेटे की आत्मा भी ये देख कर दुखी ही होंगी कि हम उनकी हत्या का बदला नहीं ले रहे। वो दोनों हमें माफ़ नहीं करेंगे। हमें अब मर जाना मंज़ूर है लेकिन कायरों की तरह यहां बैठे रहना हर्गिज़ मंज़ूर नहीं है।"

दादा ठाकुर की बातें सुन कर अर्जुन सिंह अभी कुछ बोलने ही वाले थे कि तभी बाहर से किसी के आने की आहट हुई और फिर चंद ही पलों में मैं बैठक के सामने आ कर खड़ा हो गया। मुझ पर नज़र पड़ते ही मां भागते हुए मेरे पास आईं और मुझे अपने सीने से छुपका कर रो पड़ीं।

"कहां चला गया था तू?" मुझे अपने कलेजे से लगाए वो रोते हुए कह रहीं थी____"तुझे हवेली में न पर कर मेरी तो जान ही निकल गई थी। तू इस तरह अपनी मां को छोड़ कर क्यों चला गया था? तुझे कुछ हुआ तो नहीं न?"

कहने के साथ ही मां ने मुझे खुद से अलग किया और फिर पागलों की तरह मेरे जिस्म के हर हिस्से को छू छू कर देखने लगीं। मां की इस हालत को देख कर मेरे दिल में बेहद पीड़ा हुई लेकिन फिर मैंने किसी तरह खुद को सम्हाला और मां से कहा____"मुझे कुछ नहीं हुआ है मां। मैं एकदम ठीक हूं, और मुझे माफ़ कर दीजिए जो मैं बिना किसी को कुछ बताए हवेली से यूं चला गया था।"

"अपने दो बेटों को खो चुकी हूं मैं।" मां की आंखें छलक पड़ीं, मेरे चेहरे को अपनी दोनों हथेलियों के बीच ले कर करुण स्वर में बोलीं____"अब तुझे नहीं खोना चाहती। मुझे वचन दे कि आज के बाद तू कभी भी इस तरह कहीं नहीं जाएगा।"

"ठीक है मां।" मैंने कहा____"मैं आपको वचन देता हूं। अब शांत हो जाइए और अंदर जाइए।"
"पर तू इस तरह कहां चला गया था?" मां ने मेरी तरफ देखते हुए पूछा____"और किसी को बताया क्यों नहीं?"

मैंने मां को किसी तरह बहलाया और उन्हें अंदर भेज दिया। असल में मैं उन्हें सच नहीं बताना चाहता था वरना वो परेशान भी हो जातीं और मुझ पर गुस्सा भी करतीं।

"वैभव बेटा आख़िर ये सब क्या है?" मां के जाने के बाद अर्जुन सिंह ने मुझसे कहा____"तुम बिना किसी को कुछ बताए इस तरह कहां चले गए थे? क्या तुम्हें मौजूदा हालातों की गंभीरता का ज़रा भी एहसास नहीं है? अगर तुम्हें कुछ हो जाता तो जानते हो कितना गज़ब हो जाता?"

"माफ़ कीजिए चाचा जी।" मैंने शांत भाव से कहा और फिर पिता जी से मुखातिब हुआ____"आप भी मुझे माफ़ कर दीजिए पिता जी। मैं जानता हूं कि मुझे इस तरह हवेली से बाहर नहीं जाना चाहिए था लेकिन मैं ऐसी मानसिक अवस्था में था कि खुद को रोक ही नहीं पाया। हालाकि एक तरह से ये अच्छा ही हुआ क्योंकि मेरा इस तरह से बाहर जाना बेकार नहीं गया।"

"क्या मतलब है तुम्हारा?" पिता जी ने नाराज़गी से मेरी तरफ देखा।
"असल में बात ये है कि मेरे आदमियों ने मुरारी के भाई जगन को पकड़ लिया है।" मैंने कहा____"और इस वक्त वो बाहर ही है। मेरे आदमियों के कब्जे में।"

मेरी बात सुन कर सबके चेहरों पर हैरत के भाव उभर आए। उधर पिता जी ने कहा____"उसे फ़ौरन हमारे सामने ले कर आओ।"

पिता जी के कहने पर मैंने एक दरबान को भेज कर जगन को बुला लिया। जगन बुरी तरह डरा हुआ था और साथ ही उसकी हालत भी बेहद खस्ता थी। जैसे ही वो दादा ठाकुर के सामने आया तो वो और भी ज़्यादा खौफ़जदा हो गया। पिता जी ने क़हर भरी नज़रों से उसकी तरफ देखा।

"मुझे माफ़ कर दीजिए दादा ठाकुर।" जगन आगे बढ़ कर पिता जी के पैरों में ही लोट गया, फिर बोला____"मुझसे बहुत बड़ा अपराध हो गया है, मुझे माफ़ कर दीजिए। मैं हर तरह से मजबूर हो गया था ये सब करने के लिए।"

"तुमने जो किया है उसके लिए तुम्हें कोई माफ़ी नहीं मिल सकती।" पिता जी ने कठोर भाव से कहा____"तुम्हें सज़ा तो यकीनन मिलेगी लेकिन उससे पहले हम तुमसे ये जानना चाहते हैं कि तुमने ये सब क्यों किया? किसके कहने पर किया और कैसे किया? हम सब कुछ विस्तार से जानना चाहते हैं।"

"सब मेरी बदकिस्मती का ही नतीजा है दादा ठाकुर।" जगन ने दुखी हो कर कहा____"कर्ज़ में ऐसा डूबा कि फिर कभी उबर ही नहीं सका उससे। खेत पात सब गिरवी हो गए इसके बावजूद क़र्ज़ न चुका। हालात इतने ख़राब हो गए कि परिवार का भरण पोषण करना भी मुश्किल पड़ गया। अपनी ख़राब हालत के बारे में मुरारी भैया को बता भी नहीं सकता था क्योंकि वो नाराज़ हो जाते। उनसे न जाने कितनी ही बार मदद ले चुका था मैं, इस लिए अब उनसे सहायता लेने में बेहद शर्म आ रही थी। मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि मैं किस तरह से अपने सिर पर से कर्ज़ का बोझ हटाऊं और किस तरह से अपने परिवार का भरण पोषण करूं? दूसरी तरफ मेरा बड़ा भाई था जिसके सिर पर कर्ज़ का बोझ तो था लेकिन मेरी तरह उसकी हालत ख़राब नहीं थी। उसके पास खेत पात थे जिनसे वो अपना परिवार अच्छे से चला रहा था। सच कहूं तो ये देख कर अब मैं अपने ही भाई से ईर्ष्या के साथ साथ घृणा भी करने लगा था।"

"तो क्या इसी ईर्ष्या और घृणा की वजह से तुमने अपने भाई की हत्या कर दी थी?" पिता जी बीच में ही उसकी तरफ गुस्से से देखते हुए बोल पड़े थे।

"नहीं दादा ठाकुर।" जगन ने इंकार में सिर हिलाते हुए कहा____"ये सच है कि मैं अपने भाई से ईर्ष्या और घृणा करने लगा था लेकिन उसे जान से मार डालने के बारे में कभी नहीं सोचा था, बल्कि यही दुआ करता रहता था कि किसी वजह से उसे कुछ हो जाए ताकि उसका सब कुछ मेरा हो जाए। पर भला चमार के मनाए पड़वा थोड़ी ना मरता है, बस वही हाल था।"

"अगर ऐसी बात है।" अर्जुन सिंह ने कहा____"तो फिर अचानक से तुम्हारे मन में अपने भाई की हत्या करने का ख़याल कैसे आ गया था?"

"ये तब की बात है जब छोटे ठाकुर दादा ठाकुर के द्वारा गांव से निष्कासित किए जाने पर हमारे गांव के पास अपनी बंज़र पड़ी ज़मीन में रहते थे।" जगन ने गंभीर भाव से कहा____"इन्हें वहां पर रहते हुए काफी समय हो गया था। मैं ये भी जानता था कि मेरा भाई इनकी मदद करता था और मेरे भाई से इनके बेहतर संबंध थे जिसके चलते ये मेरे भाई के घर भी जाते रहते थे। मुझे ये देख कर भी अपने भाई से जलन होती थी कि उसके संबंध दादा ठाकुर के लड़के से थे। मैं जानता था कि उस समय भले ही छोटे ठाकुर निष्कासित किए जाने पर अपने घर से बेघर थे लेकिन एक न एक दिन तो वापस हवेली लौटेंगे ही और तब वो मेरे भाई के एहसानों का क़र्ज़ भी बेहतर तरीके से चुकाएंगे। ज़ाहिर है ऐसे में मेरे भाई की स्थिति पहले से और भी बेहतर हो जाती और मैं और भी बदतर हालत में पहुंच जाता। ये सब ऐसी बातें थी जिसके चलते मेरे मन में अपने भाई के प्रति और भी ज़्यादा जलन और नफ़रत पैदा होने लगी थी लेकिन इसके लिए मैं कुछ कर नहीं सकता था। बस अंदर ही अंदर घुट रहा था। फिर एक दिन वो हुआ जिसकी मैंने सपने में भी उम्मीद नहीं की थी।"

"ऐसा क्या हुआ था?" जगन एकदम से चुप हो गया तो अर्जुन सिंह ने पूछ ही लिया____"जिसकी तुमने सपने में भी उम्मीद नहीं की थी?"

"मैं बहुत ज़्यादा परेशान था।" जगन ने फिर से कहना शुरू किया____"अपने बच्चों को भूखा देख मैं उनके लिए बहुत चिंतित हो गया था। एक शाम मैं इसी परेशानी और चिंता में अपने उन खेतों में बैठा था जो गिरवी रखे हुए थे। शाम पूरी तरह से घिर चुकी थी और चारो तरफ अंधेरा फैल गया था। मैं सोचो में इतना खोया हुआ था कि मुझे इस बात का आभास ही नहीं हुआ कि एक रहस्यमय साया मेरे क़रीब जाने कहां से आ कर खड़ा हो गया था? जब उसने अपनी अजीब सी आवाज़ में मुझे पुकारा तो मैं एकदम से हड़बड़ा गया और जब उस पर मेरी नज़र पड़ी तो मैं बुरी तरह डर गया। मुझे समझ न आया कि आख़िर उसके जैसा व्यक्ति कौन हो सकता है और मेरे पास किस लिए आया है? मुझे लगा वो ज़रूर कोई ऐसा व्यक्ति है जिससे मैंने कर्ज़ ले रखा है और कर्ज़ न चुकाने की वजह से अब वो मेरी जान लेने आया है। ये सोच कर मैं बेहद खौफ़जदा हो गया और फ़ौरन ही उसके पैरों में पड़ कर उससे रहम की भीख मांगने लगा। तब उसने जो कहा उसे सुन कर मैं एकदम से हैरान रह गया। उसने कहा कि मुझे उससे न तो डरने की ज़रूरत है और ना ही इस तरह रहम की भीख मांगने की। बल्कि वो तो मेरे पास इस लिए आया है ताकि मेरी परेशानियों के साथ साथ मेरे हर दुख का निवारण भी कर सके। मैं सच कहता हूं दादा ठाकुर, सफ़ेद कपड़ों में ढंके उस रहस्यमय व्यक्ति की बातें सुन कर मैं बुत सा बन गया था। फिर मैंने खुद को सम्हाला और उससे पूछा कि क्या सच में वो मेरी समस्याओं का निवारण कर देगा तो जवाब में उसने कहा कि वो एक पल में मेरी हर समस्या को दूर कर देगा लेकिन बदले में मुझे भी कुछ करना पड़ेगा। इतना तो मैं भी समझ गया था कि अगर कोई व्यक्ति इस रूप में आ कर मेरी समस्याओं को दूर करने को बोल रहा है तो वो ये सब मुफ्त में तो करेगा नहीं। यानि बदले में उसे भी मुझसे कुछ न कुछ चाहिए ही था। मैं अब यही जानना चाहता था उससे कि बदले में आख़िर मुझे क्या करना होगा? तब उसने मुझसे कहा कि बदले में मुझे अपने भाई मुरारी की हत्या करनी होगी और उस हत्या का इल्ज़ाम छोटे ठाकुर पर लगाना होगा।"

जगन सांस लेने के लिए रुका तो बैठक में सन्नाटा सा छा गया। पिता जी, अर्जुन सिंह और भैया के चाचा ससुर यानि बलभद्र सिंह उसी की तरफ अपलक देखे जा रहे थे। पिता जी और अर्जुन सिंह के चेहरे पर तो सामान्य भाव ही थे किंतु बलभद्र सिंह के चेहरे कर आश्चर्य के भाव गर्दिश करते नज़र आ रहे थे। ज़ाहिर है ये सब उनके लिए नई और हैरतअंगेज बात थी।

"उस सफ़ेदपोश आदमी के मुख से ये सुन कर तो मैं सकते में ही आ गया था।" इधर जगन ने फिर से बोलना शुरू किया____"मेरी धड़कनें धाड़ धाड़ कर के मेरी कनपटियों में बजती महसूस हो रहीं थी। मेरे मुंह से कोई लफ्ज़ नहीं निकल रहे थे। फिर जैसे मुझे होश आया तो मैंने उससे कहा कि ये क्या कह रहे हैं आप? आप होश में तो हैं? तो उसने कहा कि होश में तो मुझे रहना चाहिए। सच तो ये था कि उसकी बातों से मेरे मन में तरह तरह के ख़याल उभरने लगे थे। उसने मुझे समझाया कि ऐसा करने से मुझ पर कभी कोई बात नहीं आएगी। जब मैंने कहा कि ऐसा कैसे हो सकता है तो उसने मुझे कुछ ऐसा बताया जिसकी मैं कल्पना भी नहीं कर सकता था। उसने कहा कि छोटे ठाकुर के नाजायज संबंध मेरे भाई की बीवी से हैं।"


जगन, मादरचोद ने सबके सामने मेरी इज्ज़त का जनाजा निकाल दिया था। चाचा ससुर ने जब उसके मुख से ये सुन कर मेरी तरफ हैरानी से देखा तो मेरा सिर शर्म से झुकता चला गया। ख़ैर, अब क्या ही हो सकता था।

"उस रहस्यमय व्यक्ति ने कहा कि छोटे ठाकुर के ऐसे नाजायज़ संबंध के आधार पर मुरारी की हत्या का इल्ज़ाम इन पर आसानी से लगाया जा सकता है।" उधर जगन मानों अभी भी मेरी इज्ज़त उतारने पर अमादा था, बोला____"यानि सबको ये कहानी बताई जाएगी कि छोटे ठाकुर ने मेरे भाई की हत्या इस लिए की है क्योंकि मेरे भाई को इनकी काली करतूत का पता चल गया था और वो दादा ठाकुर के पास जा कर इनकी करतूत बता कर उनसे इंसाफ़ मांगने की बात कहने लगा था। छोटे ठाकुर इस बात से डर गए और फिर इन्होंने ये सोच कर मेरे भाई की हत्या कर दी कि जब मुरारी ही नहीं रहेगा तो किसी को कुछ पता ही नहीं चलेगा। अपने मरद की हत्या होने के बाद सरोज भौजी को अगर ये पता भी हो जाता कि छोटे ठाकुर ने ही उसके मरद की हत्या की है तो वो इनसे कुछ कह ही नहीं सकती थी। ऐसा इस लिए क्योंकि उसके मरद की हत्या हो जाने के लिए वो खुद भी ज़िम्मेदारी ही होती और बदनामी के डर से किसी से कुछ कहती ही नहीं। सफ़ेदपोश आदमी ने जब मुझे ये सब समझाया तो मेरे कुंद पड़े ज़हन के मानों सारे कपाट एकदम से खुल गए और मुझे अच्छी तरह ये एहसास हो गया कि अगर सच में मैं अपने भाई की हत्या कर के हत्या का इल्ज़ाम छोटे ठाकुर पर लगा दूं तो यकीनन मुझ पर कभी कोई बात ही नहीं आएगी। सबसे बड़ी बात ये कि ऐसा करने से मेरी हर समस्या भी दूर हो जाएगी। ख़ैर, समझ तो मुझे उसी वक्त आ गया था लेकिन तभी मुझे ये भी आभास हुआ कि ऐसा करना कहीं मुझ पर ही न भारी पड़ जाए क्योंकि जिसके कहने पर मैं अपने भाई की हत्या करूंगा वो बाद में मुझे ही फंसा सकता था। मुझे तो पता भी नहीं है कि सफ़ेद कपड़ों में लिपटा वो व्यक्ति आख़िर है कौन और ये सब करवा कर वो छोटे ठाकुर को क्यों फंसाना चाहता है? मैंने उससे सोचने के लिए कुछ दिन का समय मांगा तो उसने कहा ठीक है। फिर वो ये कह कर चला गया कि मेरे पास सोचने के लिए दो दिन का वक्त है। दो दिन बाद मैं दादा ठाकुर के आमों वाले बाग में आ जाऊं क्योंकि वो मुझे वहीं मिलेगा। उसके जाने के बाद मैं घर आया और खा पी कर बिस्तर में लेट गया। बिस्तर में लेटे हुए मैं उसी के बारे में सोचे जा रहा था। रात भर मुझे नींद नहीं आई। मैंने बहुत सोचा कि वो रहस्यमय आदमी मुझसे ऐसा क्यों करवाना चाहता है लेकिन कुछ समझ में नहीं आया। ऐसे ही दो दिन गुज़र गए।"

"मेरे भाई की हत्या में छोटे ठाकुर को फंसाने का मुझे एक ही मतलब समझ आया था।" कुछ पल रुकने के बाद जगन ने फिर से कहा____"मतलब कि वो रहस्यमय आदमी छोटे ठाकुर से या तो नफ़रत करता था या फिर वो इन्हें अपना दुश्मन समझता था। मुझे उस पर यकीन नहीं था इस लिए दो दिन बाद जब मैं आपके आमों वाले बाग़ में उस व्यक्ति से मिला तो मैंने उससे साफ कह दिया कि पहले वो मेरी समस्याएं दूर करे, उसके बाद ही मैं उसका काम करूंगा। हालाकि मेरे पास उसका काम करने के अलावा कोई चारा भी नहीं था, क्योंकि मैं ये भी समझ रहा था कि उसका काम अगर मैं नहीं करूंगा तो वो किसी और से करवा लेगा। यानि मेरे भाई का मरना तो अब निश्चित ही हो चुका था और यदि कोई दूसरा मेरे भाई की हत्या करेगा तो इससे मेरा ही सबसे बड़ा नुकसान होना था। मैंने यही सब सोच कर फ़ैसला कर लिया था कि जब मेरे भाई की मौत निश्चित ही हो चुकी है तो मैं ये काम करने से क्यों मना करूं? अगर मेरे ऐसा करने से मेरी सारी समस्याओं का अंत हो जाना है तो शायद यही बेहतर है मेरे और मेरे परिवार की भलाई के लिए। मेरी उम्मीद के विपरीत दूसरे ही दिन उस रहस्यमय व्यक्ति ने मेरे हाथ में नोटों की एक गड्डी थमा दी। मैं समझ गया कि नोटों की उस गड्डी से मेरा सारा कर्ज़ चुकता हो जाना था और साथ ही गिरवी पड़े मेरे खेत भी मुक्त हो जाने थे। इस बात से मैं बड़ा खुश हुआ और फिर मैंने एक बार भी ये नहीं सोचना चाहा कि अपने ही भाई की हत्या करना कितना बड़ा गुनाह होगा, पाप होगा।"

"मुरारी काका की हत्या कैसे की थी तुमने?" जगन के चुप होते ही मैंने उससे पूछा____"वो तो उस रात आंगन में सो रहे थे न फिर तुमने कैसे उनकी हत्या की और उनकी लाश को बाहर पेड़ के पास छोड़ दिया?"

"सब कुछ बड़ा आसान सा हो गया था छोटे ठाकुर।" जगन ने फीकी मुस्कान के साथ कहा____"मैं जानता था कि मेरा भाई लगभग रोज़ ही देशी पीता था और इतनी पी लेता था कि फिर उसे किसी चीज़ का होश ही नहीं रहता था। उस रात मैं आप दोनों पर नज़र रखे हुए था। मेरा भाई देशी पी कर आंगन में चारपाई पर लेटा हुआ था। इधर मैं सोचने लगा कि उसे बाहर कैसे लाऊं? हालाकि मैं घर के अंदर दीवार फांद कर आसानी से जा सकता था और फिर आंगन में ही उसकी हत्या कर सकता था लेकिन मुझे इस बात का भी एहसास था कि अगर थोड़ी सी भी आहट या आवाज़ हुई तो भौजी या फिर अनुराधा की नींद खुल सकती थी और तब मैं पकड़ा जा सकता था। इस लिए मैंने यही सोचा था कि मुरारी को बाहर बुला कर ही उसकी हत्या की जाए। उसे बाहर बुलाने का मेरे पास फिलहाल कोई उपाय नहीं था। इधर धीरे धीरे रात भी गुज़रती जा रही थी। वक्त के गुज़रने से मेरी परेशानी भी बढ़ती जा रही थी। समझ में नहीं आ रहा था कि ऐसा क्या करूं जिससे मेरा भाई बाहर आ जाए? उस वक्त शायद भोर का समय था जब मैंने अचानक ही किवाड़ खुलने की आवाज़ सुनी। मैं फ़ौरन ही छुप गया और देखने लगा कि बाहर कौन आता है? कुछ ही देर में मैं ये देख कर खुश हो गया कि किवाड़ खोल कर मेरा भाई बाहर आ गया है और पेड़ की तरफ जा रहा है। मैं समझ गया कि उसे पेशाब लगा था इसी लिए उसकी नींद खुली थी उस वक्त। सच कहूं तो ये मेरे लिए जैसे ऊपर वाले ने ही सुनहरा मौका प्रदान कर दिया था और मैं इस मौके को किसी भी कीमत पर गंवाना नहीं चाहता था। मैंने देखा मेरा भाई पेड़ के पास खड़ा पेशाब कर रहा है तो मैं बहुत ही सावधानी से उसकी तरफ बढ़ा। मेरे हाथ में कुल्हाड़ी थी और मैंने उसी कुल्हाड़ी से अपने भाई की जीवन लीला को समाप्त कर देने का सोच लिया था। मेरा समूचा जिस्म ये सोच कर बुरी तरह कांपने लगा था कि मैं अपने भाई को जान से मार देने वाला हूं। इससे पहले कि मैं उसके पास पहुंच कर कुछ करता मेरा भाई पेशाब कर के फारिग़ हो गया और मेरी तरफ पलटा। अंधेरे में मुझ पर नज़र पड़ते ही वो बुरी तरह चौंका और साथ ही डर भी गया। होश तो मेरे भी उड़ गए थे लेकिन फिर मैंने खुद को सम्हाला और फिर तेज़ी से उसकी तरफ झपटा। मैंने तेज़ी से कुल्हाड़ी का वार उस पर किया तो वो ऐन मौके पर झुक गया जिससे मेरा वार खाली चला गया। उधर मैं सम्हल भी न पाया था कि मुरारी ने मुझे दबोच लिया। उसके मुख से अभी भी देशी की दुर्गंध आ रही थी। जब उसने मुझे दबोच लिया तो मैं ये सोच कर बुरी तरह घबरा गया कि शायद उसने मुझे और मेरी नीयत को पहचान लिया है और अब वो मुझे छोड़ने वाला नहीं है। मरता क्या न करता वाली हालत हो गई थी मेरी। मेरा भाई शरीर से और ताक़त से मुझसे ज़्यादा ही था इस लिए मुझे लगा कि कहीं मैं खुद ही न मारा जाऊं। ज़हन में इस ख़याल के आते ही मैंने पूरा जोर लगा कर उसे धक्का दे दिया जिससे वो धड़ाम से ज़मीन पर गिर गया। मैं अवसर देख कर फ़ौरन ही उसके ऊपर सवार हो गया और कुल्हाड़ी को उसके गले में लगा कर उसके गले को चीर दिया। खून का फव्वारा सा निकला जो उछल कर मेरे ऊपर ही आ गिरा। उधर मेरा भाई जल बिन मछली की तरह तड़पने लगा था और इससे पहले की वो दर्द से तड़पते हुए चीखता मैंने जल्दी से उसे दबोच कर उसके मुख को बंद कर दिया। कुछ ही देर में उसका तड़पना बंद हो गया और मेरा भाई मर गया। कुछ देर तक मैं अपनी तेज़ चलती सांसों को नियंत्रित करता रहा और फिर उठ कर खड़ा हो गया। नज़र भाई के मृत शरीर पर पड़ी तो मैं ये सोच कर एकदम से घबरा गया कि ये क्या कर डाला मैंने किंतु फिर जल्दी ही मुझे समझ में आया कि अब इस बारे में कुछ भी सोचने का कोई मतलब नहीं है। बस, ये सोच कर मैं कुल्हाड़ी लेकर वहां से भाग गया।"

"और फिर जब सुबह हुई।" जगन के चुप होते ही मैंने कहा____"तो तुम अपने गांव के लोगों को ले कर मेरे झोपड़े में आ गए। मकसद था सबके सामने मुझे अपने भाई का हत्यारा साबित करना। मेरे चरित्र के बारे में सभी जानते थे इस लिए हर कोई इस बात को मान ही लेता कि अपने आपको बचाने के लिए मैंने ही मुरारी काका की हत्या की है।"

जगन ने मेरी बात सुन कर सिर झुका लिया। बैठक में एक बार फिर से ख़ामोशी छा गई थी। सभी के चेहरों पर कई तरह के भावों का आवा गमन चालू था।


━━━━✮━━━━━━━━━━━✮━━━━
Bhai gajab....... Waiting for next
 

Napster

Well-Known Member
3,905
10,704
143
बहुत ही गजब का अद्भुत और रोमांचकारी अपडेट है भाई मजा आ गया
अब जगन का क्या होगा और दादा ठाकूर उसे क्या सजा देगा देखते हैं आगे
अगले रोमांचकारी धमाकेदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
 
Top