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Adultery ☆ प्यार का सबूत ☆ (Completed)

What should be Vaibhav's role in this story..???

  • His role should be the same as before...

    Votes: 18 9.7%
  • Must be of a responsible and humble nature...

    Votes: 21 11.4%
  • One should be as strong as Dada Thakur...

    Votes: 73 39.5%
  • One who gives importance to love over lust...

    Votes: 42 22.7%
  • A person who has fear in everyone's heart...

    Votes: 31 16.8%

  • Total voters
    185

TheBlackBlood

αlѵíժα
Supreme
78,222
113,743
354
अध्याय - 65
━━━━━━༻♥༺━━━━━━



अब तक....

मैंने भाभी को किसी तरह शांत किया और उन्हें उनके कमरे में ले आया। पलंग पर मैंने उन्हें बैठाया और फिर दरवाज़े के पास आ कर कुसुम को आवाज़ लगाई। मेरे आवाज़ देने पर कुसुम अपने कमरे से निकल कर भागती हुई मेरे पास आई। मैंने उसे भाभी के पास रहने को कहा और साथ ही ये भी कहा कि वो भाभी को किसी भी हाल में अकेला न छोड़े। कुसुम ने हां में सिर हिलाया और भाभी के कमरे में दाखिल हो गई। मैंने भाभी को ज़बरदस्ती आराम करने को कहा और बाहर निकल कर नीचे की तरफ चल पड़ा।

अब आगे....


शाम हो रही थी।
जगन बहुत परेशान था और साथ ही अंदर से बेहद घबराया हुआ भी था। उसे भी पता चल चुका था कि हवेली में बहुत बड़ी घटना हो गई है जिसमें मझले ठाकुर जगताप और दादा ठाकुर के बड़े बेटे अभिनव ठाकुर की हत्या कर दी गई है। दोनों चाचा भतीजे की इस तरह हत्या हो जाएगी इसकी उसने कल्पना भी नहीं की थी। वो अच्छी तरह जानता था कि अब जो होगा वो बहुत ही भयानक होगा जिसके चलते उसकी अपनी ज़िंदगी भी ख़तरे में ही पड़ गई है। वो पिछले कई दिनों से सबसे छुपता फिर रहा था। उसे इस बात का अंदेशा ही नहीं बल्कि पूरा यकीन था कि उसकी असलियत का पता दादा ठाकुर अथवा ठाकुर वैभव सिंह को चल चुका है इस लिए अब वो उनके ख़ौफ से छुपता फिर रहा था। घर में उसकी बीवी और बच्चे बिना किसी सहारे के ही थे जिनकी अब उसे बेहद चिंता होने लगी थी।

सूरज पश्चिम दिशा में अस्त हो चुका था और हर तरफ शाम का धुंधलका छाने लगा था। जगन सबकी नज़रों से खुद को बचाते हुए उस तरफ तेज़ी से बढ़ता चला जा रहा था जिस तरफ दादा ठाकुर के आमों के बाग थे। यूं तो वहां पर जाने के लिए साफ सुथरा रास्ता था लेकिन क्योंकि उसे सबकी नज़रों से खुद को छुपाए रखना था इस लिए वो लंबा चक्कर लगाते हुए बाग़ की तरफ बढ़ रहा था। वो उस सफ़ेदपोश आदमी से मिलना चाहता था जिसके इशारों पर आज कल वो काम कर रहा था।

जगन ने उस वक्त थोड़ी राहत की सांस ली जब वो आमों के बाग़ में आ गया। यहां पर घने पेड़ पौधे थे और शाम घिर जाने की वजह से अंधेरा भी नज़र आ रहा था। ऐसे में किसी के द्वारा उसको देख लिया जाना इतना आसान नहीं था और यही उसके लिए राहत वाली बात थी। ख़ैर बाग़ में दाखिल होते ही वो सावधानी से उस तरफ बढ़ चला जिस तरफ अक्सर उसे सफ़ेदपोश मिला करता था। जल्दी ही वो उस जगह पर आ गया और हल्के अंधेरे में वो इस उम्मीद में चारो तरफ नज़रें घुमाने लगा कि शायद उसे कहीं पर वो सफ़ेदपोश व्यक्ति नज़र आ जाए लेकिन ऐसा न हुआ। जैसे जैसे समय गुज़र रहा था उसके चेहरे पर बेचैनी के साथ साथ चिंता और परेशानी भी बढ़ती जा रही थी।

काफी देर हो जाने पर भी जब जगन को वो सफ़ेदपोश कहीं नज़र ना आया तो वो हताश सा हो कर वापस चल पड़ा। इतना तो उसे भी पता था कि सफ़ेदपोश बाग़ में हर वक्त बैठा नहीं रहता था और जब भी उसे मिलना होता था तो वो अपने काले नकाबपोश व्यक्ति द्वारा उस तक ख़बर भेजवा देता था। ख़ैर निराश और परेशान हालत में जगन बाग़ से निकल कर वापस उसी रास्ते की तरफ बढ़ चला था जिस तरफ से वो आया था। अभी वो कुछ ही दूर चला था कि तभी उसे अजीब तरह की हलचल महसूस हुई जिसके चलते वो बुरी तरह डर गया। उसके दिल की धड़कनें मानों रुक ही गईं। अभी वो अपनी धड़कनों को नियंत्रित करने का प्रयास ही कर रहा था कि तभी दो तरफ से तीन आदमी लट्ठ लिए एकदम से उसके क़रीब आ गए।

तीन आदमियों को यूं किसी जिन्न की तरह अपने क़रीब प्रगट हो गया देख जगन की गांड़ फट के हाथ में आ गई। एक तो वैसे ही वो डरा हुआ था दूसरे तीन तीन लट्ठधारियों को देखते ही उसे ऐसा लगा जैसे न चाहते हुए भी उसका मूत निकल जाएगा।

"क..कौन हो तुम लोग???" फिर उसने अपनी हालत को काबू करने का प्रयास करते हुए उन तीनों को बारी बारी से देखते हुए घबरा कर पूछा।

"तुम्हारे सिर पर मंडराती हुई तुम्हारी मौत।" एक लट्ठधारी ने अजीब भाव से कहा____"आख़िर पकड़ में आ ही गया आज।"

"क..क्या मतलब??" जगन की सिट्टी पिट्टी गुम, सूखे गले को उसने अपने थूक से तर करने का प्रयास किया फिर बड़ी मुश्किल से उसके गले से आवाज़ निकली____"अ...आख़िर क..कौन हो तुम लोग, अ...और ऐसा क्यों कह रहे हो??"

जगन की बात का उनमें से किसी ने कोई जवाब नहीं दिया बल्कि तीनों ने पहले एक दूसरे की तरफ देखा और फिर बिजली की तरह झपट पड़े उस पर। जगन को ऐसा लगा जैसे एकदम से उसके सिर पर गाज गिर गई है। वो मारे डर के हलक फाड़ कर चिल्ला उठा था मगर तभी उनमें से एक ने उसके मुख को अपने हाथों से भींच लिया। जगन को तीनों ने पकड़ लिया था और वो उनसे छूटने के लिए जी तोड़ कोशिश करने लगा था मगर छूट नहीं पाया। उसका बुरी तरह से छटपटाना उस वक्त एकदम से शांत पड़ गया जब उनमें से एक ने उसकी आंखों के सामने तेज़ धार वाला खंज़र दिखाते हुए ये कहा था कि अब अगर चीखा चिल्लाया तो ये खंज़र हलक में घुसेड़ दूंगा।

✮✮✮✮

मैं जानता था कि ऐसे माहौल में मेरा हवेली से अकेले निकालना कहीं से भी उचित नहीं था मगर अब मैं इसका क्या करता कि मुझसे सब्र ही नहीं हो रहा था। मेरे अंदर आक्रोश, गुस्सा और बदले की आग इस क़दर तांडव सा कर रही थी जिसे काबू में रख पाना अब मेरे बस में नहीं था। पिता जी ने जो पिस्तौल मुझे दिया था उसे ले कर मैं हवेली से निकल आया था और इस बात का ख़ास ध्यान रखा था कि किसी की नज़र मुझ पर न पड़े। शाम का अंधेरा मेरे लिए बेहद उपयोगी साबित हुआ था जिसके चलते हवेली से बाहर निकल आने में मुझे कोई समस्या नहीं हुई थी।

मैं एक गमछा ले रखा था जिससे मैंने अपना चेहरा ढंक लिया था और पैदल ही चलते हुए उस तरफ आ गया था जहां से एक रास्ता नदी की तरफ जाता था। यहां पर रुक कर अभी मैं इधर उधर देखने ही लगा था कि तभी मेरी नज़र एक साए पर पड़ी। साए को देख कर मेरे जबड़े भिंच गए और साथ ही मेरे अंदर गुस्से में इज़ाफा होने लगा। मैं अपनी जगह पर बेख़ौफ खड़ा उस साए को देख ही रहा था कि तभी मैं हल्के से चौंका। ऐसा इस लिए क्योंकि साया मुझे देखने के बाद भी नहीं रुका था और मेरी ही तरफ बढ़ा चला आ रहा था। अंधेरा इतना भी नहीं था कि कुछ दूरी का दिखे ही नहीं। जल्दी ही वो साया मेरे क़रीब आ गया।

"नमस्ते छोटे कुंवर।" वो साया मेरे पास आते ही अदब से बोला तो मैं उसे पहचान गया। वो मेरा ही ख़बरी था। उसके नमस्ते कहने पर मैंने हल्के से सिर हिलाया और फिर कहा____"इस तरह कहां घूमते फिर रहे हो तुम?"

"आपके ही काम में लगा हुआ था कुंवर।" उस व्यक्ति ने कहा जिसका नाम मंगू था____"और एक अच्छी ख़बर देने के लिए आपके ही पास हवेली आ रहा था कि आप यहीं मिल गए मुझे।"

"कैसी ख़बर की बात कर रहे हो तुम?" मैंने सपाट लहजे में उससे पूछा तो उसने कहा____"आपके कहने पर हम लोग मुरारी के छोटे भाई जगन की खोजबीन में लगे हुए थे।"

"तो क्या मिल गया वो?" मैं उत्सुकता और उत्तेजना के चलते पूछ बैठा।
"हां कुंवर।" मंगू ने गर्मजोशी से कहा____"अभी कुछ देर पहले ही हमने उसे पकड़ा है। हालाकि ये बड़े ही इत्तेफ़ाक से हुआ है लेकिन आख़िर वो मिल ही गया हमें।"

"तो कहां हैं वो?" जगन मिल ही नहीं गया है बल्कि पकड़ में भी आ गया है इस बात ने मेरे अंदर एक अलग ही जोश भर दिया था और गुस्सा भी। मैं अपनी मुट्ठी में उसकी गर्दन दबोचने के लिए जैसे मचल ही उठा।

"आपके आमों वाले बाग़ में जो मकान है न।" मंगू ने जवाब दिया____"हमने उसे वहीं पर पकड़ कर रखा है। संपत और दयाल उसके पास वहीं पर हैं जबकि मैं इस बात की सूचना देने के लिए हवेली जा रहा था कि आप यहीं मिल गए मुझे।"

मंगू की बात सुन कर मेरे होठों पर ज़हरीली मुस्कान उभर आई। मैंने उसे चलने का इशारा किया तो वो मुझे रास्ता दे कर मेरे पीछे पीछे चलने लगा। जल्दी ही मैं मंगू के साथ अपने बाग़ वाले मकान में पहुंच गया। मैंने मंगू को रोक कर उसे एक काम सौंपा और जल्द से जल्द आने को कहा तो वो फ़ौरन ही पलट कर चला गया। उसके जाने के बाद मैं मकान के अंदर दाखिल हो गया। अंदर मुझे हल्का उजाला नज़र आया। मैं समझ गया कि संपत और दयाल ने शायद चिमनी जला रखी है।

कुछ ही पलों में मैं उस कमरे में दाखिल हुआ जिसमें संपत और दयाल जगन को कैद किए मौजूद थे। जगन की नज़र जैसे ही मुझ पर पड़ी तो भय से उसका चेहरा पीला पड़ गया। मारे ख़ौफ के वो जूड़ी के मरीज़ की तरह कांपने लगा। संपत और दयाल ने उसे रस्सियों में बांध दिया था जिसके चलते वो कहीं भाग नहीं सकता था। उसे देखते ही मेरे अंदर गुस्से का ज्वालामुखी सा धधक उठा जिसे मैंने बड़ी मुश्किल से शांत करने की कोशिश की।

"म..मुझे म..माफ़ कर दो वैभव।" मैं जैसे ही उसके क़रीब पहुंचा तो जगन ने भयभीत हो कर ये कहा। उसके मुख से जैसे ही मैंने ये सुना तो मुझे एकदम से गुस्सा आ गया और मैंने खींच के एक थप्पड़ उसके गाल पर जड़ दिया जिससे वो वहीं उलट गया।

"वैभव नहीं।" मैंने उसको गिरेबान से पकड़ कर उठाते हुए गुस्से में कहा____"छोटे ठाकुर बोल, छोटे ठाकुर। वैभव कहने का अधिकार खो दिया है तूने।"

मेरे ख़तरनाक तेवर देख जगन की हालत और भी ख़राब हो गई। उसके मुख से कोई आवाज़ न निकली। तभी मैंने देखा कि मारे दहशत के उसका पेशाब छूट गया। कमरे के फर्श पर उसका पेशाब फैलता जा रहा था। ये देख मुझे उसके ऊपर और भी गुस्सा आ गया।

"अभी तो पेशाब ही निकला है तेरा।" मैं उसे छोड़ कर उससे दूर हटते हुए बोला____"जल्दी ही तेरी गांड़ से टट्टी भी इसी तरह निकलेगी। मन तो करता है कि इसी वक्त तेरी जान ले लूं मगर नहीं उससे पहले तू किसी रट्टू तोते की तरह वो सब बताएगा जो जो तूने कुकर्म किए हैं।"

इससे पहले कि वो कुछ बोलता मैं पलटा और संपत तथा दयाल की तरफ देखते हुए कहा___"मंगू के आने के बाद इसे घसीटते हुए इसके गांव ले चलना और हां इस बात की ज़रा भी परवाह मत करना कि घसीटने की वजह से इसकी क्या दुर्गति हो जाएगी।"

ये कह कर मैं बाहर आ गया। असल में मुझे इतना गुस्सा आया हुआ था कि मैं जगन के साथ कुछ भी बुरा कर सकता था जबकि फिलहाल उसका ज़िंदा रहना ज़रूरी था। बाहर आ कर मैं लकड़ी के एक छोटे से तख्त पर बैठ गया और मंगू के आने का इंतजार करने लगा। क़रीब बीस मिनट बाद मंगू आया जोकि भुवन के साथ उसकी मोटर साईकिल पर ही था। भुवन ने मुझे अदब से सलाम किया तो मैंने उसे चलने का इशारा किया और मंगू को पीछे आने को कहा।

✮✮✮✮

सरोज काकी गुमसुम सी बैठी हुई थी। उसके मन मस्तिष्क में हवेली में हुई घटना से संबंधित ही बातें चल रहीं थी। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि हवेली में इतनी बड़ी घटना घट गई है। जब से उसने इस घटना के बारे में सुना था तब से उसके मन में सोच विचार चालू था। यही हाल उसकी बेटी अनुराधा का भी था, बल्कि अगर ये कहा जाए तो ज़्यादा बेहतर होगा कि उसका तो बुरा ही हाल था। ये अलग बात है कि वो अपने हाल को दिल के हाल की ही तरह अपनी मां को ज़ाहिर नहीं होने दे रही थी।

"ऐसे कब तक बैठी रहेगी मां?" अनुराधा ने उदास भाव से अपनी मां की तरफ देखते हुए पूछा____"खाना नहीं बनाएगी क्या? अनूप कई बार कह चुका है कि उसे भूख लगी है।"

"उसके लिए तू ही कुछ बना दे अनु।" सरोज ने बुझे बन से कहा____"और अपने लिए भी। मुझे तो बिल्कुल ही भूख नहीं है।"

अपनी मां की बात सुन कर अनुराधा ने मन ही मन कहा____'भूख तो मुझे भी नहीं है मां।' और फिर वो अनमने भाव से रसोई की तरफ बढ़ गई। एक चिमनी आंगन में उजाला करने के लिए जल रही थी जबकि दूसरी चिमनी ले कर अनुराधा रसोई में चली गई। उसका छोटा भाई अनूप अपनी मां के पास ही एक खिलौना लिए बैठा था।

सरोज के ज़हन से हवेली की घटना जा ही नहीं रही थी। बार बार उसके ख़्यालों में वैभव भी आ जाता था जिसके बारे में सोच कर उसे बड़ा दुख हो रह था। अभी वो ये सब सोच ही रही थी कि तभी घर के बाहर किसी वाहन की आवाज़ उसे सुनाई दी। उसे ऐसा प्रतीत हुआ जैसे कोई वाहन उसके घर के बाहर ही आ कर रुक गया है। शाम के वक्त किसी वाहन के बारे में सोच सरोज को थोड़ा अजीब सा लगा क्योंकि उसके मन में हवेली की घटना भी चल रही थी। सरोज के अंदर एक भय सा पैदा हो गया। एक तो वैसे भी उसका घर गांव से बाहर एकांत में बना हुआ था इस लिए अगर कोई ऐसी वैसी बात हो जाती तो उसकी मदद के लिए कोई आ भी नहीं सकता था।

सरोज फ़ौरन ही उठ कर खड़ी हो गई और बाहर वाले किवाड़ को देखने लगी। उसके मन में तरह तरह के ख़याल आने लगे थे। तभी किसी ने बाहर वाला किवाड़ बजाया तो सरोज एकदम से घबरा गई। उसे समझ न आया कि शाम के इस वक्त कौन आया होगा? किवाड़ बजाने की आवाज़ रसोई तक भी गई थी जिसे अनुराधा ने भी सुन लिया था।

"बाहर कोई आया है क्या मां?" अनुराधा ने रसोई के अंदर से ही पूछा।
"लगता तो ऐसा ही है अनु।" सरोज ने अपनी घबराहट को छुपाते हुए कहा____"रुक देखती हूं कौन है बाहर। तू रसोई में ही रह।"

कहने के साथ ही सरोज दरवाज़े की तरफ बढ़ चली। धड़कते दिल के साथ अभी वो कुछ ही क़दम चली थी कि किवाड़ फिर से बजाया गया और साथ ही एक मर्दाना आवाज़ भी आई। सरोज ने महसूस किया कि आवाज़ जानी पहचानी है लेकिन किसकी है ये उसे ध्यान में नहीं आ रहा था। ख़ैर कुछ ही देर में उसने जा कर दरवाज़ा खोला तो देखा बाहर भुवन खड़ा था और साथ ही उसके पीछे कुछ और भी लोग थे।

"तुम भुवन हो ना?" सरोज ने भुवन को देखते हुए पूछा तो भुवन ने हां में सिर हिलाते हुए कहा____"हां काकी मैं भुवन ही हूं। वो बात ये है कि छोटे ठाकुर आए हैं।"

"क..क्या तुम वैभव की बात कर रहे हो बेटा?" सरोज को जैसे यकीन ही न हुआ था। उसके पूछने पर भुवन ने एक बार फिर से हां में सिर हिलाया और एक तरफ हट गया। वो जैसे ही हटा तो सरोज की नज़र कुछ ही दूरी पर खड़ी मोटर साईकिल पर पड़ी जिसमें मैं बैठा हुआ था।

"तुम वहां क्यों बैठे हो वैभव बेटा?" सरोज ने व्याकुल भाव से कहा____"अंदर आओ न।"
"नहीं काकी।" मैंने कहा____"मैं यहीं पर ठीक हूं। असल में इस वक्त मेरे यहां आने की एक ख़ास वजह है।"

"कोई भी वजह हो।" सरोज ने कहा____"मुझे इससे मतलब नहीं है। तुम बस अंदर आओ।"
"ज़िद मत करो काकी।" मैंने सपाट लहजे में कहा____"मैंने कहा न कि मैं यहीं पर ठीक हूं। ख़ैर मैं तुम्हें ये बताने आया हूं कि जिसने मुरारी काका की हत्या की थी उसे पकड़ लिया है मैंने और उसको ले कर आया हूं।"

मेरी बात सुनते ही सरोज काकी एकदम बुत सी बनी खड़ी रह गई। मैं समझ सकता था कि ये बात सुनते ही उसके अंदर भीषण हलचल सी मच गई होगी। अभी मैं उसके मुख से कुछ सुनने का इंतज़ार ही कर रहा था कि तभी मेरी नज़र उसके पीछे अभी अभी आई अनुराधा पर पड़ी। अपनी मां के पीछे खड़ी वो एकटक मुझे ही देखने लगी थी। इधर उसको देखते ही मेरे दिल की धड़कनें एकाएक ही तेज़ हो गईं। मैंने महसूस किया कि वो मुझसे अपनी नज़रें नहीं हटा रही है। आम तौर पर पहले ऐसा नहीं होता था। यानि इसके पहले जब भी हमारी नज़रें आपस में मिलती थीं तो वो अपनी नज़रें झुका लेती थी जबकि इस वक्त वो बिना पलकें झपकाए मुझे ही देखे जा रही थी। उसके चेहरे पर ज़माने भर की उदासी और दुख संताप नज़र आया मुझे।

"य..ये तुम क्या कह रहे हो बेटा?" तभी सरोज ने लड़खड़ाती आवाज़ में कहा____"क्या सच में तुम मेरे मरद के हत्यारे को पकड़ कर साथ ले आए हो?"

"मैंने तुमसे वादा किया था न काकी कि मुरारी काका के हत्यारे को एक दिन ज़रूर तुम्हारे सामने ले कर आऊंगा।" मैंने अनुराधा से नज़र हटा कर कहा____"इस लिए आज मैं उसे ले कर आया हूं। मुझे यकीन है कि हत्यारे की शकल देखने के बाद तुम्हें उसके द्वारा की गई जघन्य हत्या पर भरोसा नहीं होगा लेकिन सच तो सच ही होता है न। एक और बात, ये वो हत्यारा है जिसने मुरारी काका की हत्या तो की ही साथ में इसने हवेली के साथ भी गद्दारी की है। ऐसे व्यक्ति को ज़िंदा रहने का अब कोई हक़ नहीं है।"

मेरी बातें सुन कर सरोज काकी हैरत से देखती रह गई मेरी तरफ। मेरी नज़र एक बार फिर से उसके पीछे खड़ी अनुराधा पर पड़ी। वो अब भी मुझे ही देखे जा रही थी। ऐसा लग रहा था मानों उसने मुझे कभी देखा ही न रहा हो।

तभी वातावरण में कुछ आवाज़ें सुनाई दी तो हम सबका ध्यान उस तरफ गया। संपत, दयाल और मंगू घसीटते हुए जगन को लाते नज़र आए। जब वो क़रीब आ गए तो मैने देखा जगन के कपड़े जगह जगह से फट गए थे। मैं समझ गया कि उसकी हालत ख़राब है।

"रहम छोटे ठाकुर रहम।" जगन की नज़र जैसे ही मुझ पर पड़ी तो वो हांफते हुए और दर्द से कराहते हुए बोल पड़ा।

"क्या तुम्हें लगता है कि तुम रहम के क़ाबिल हो?" मैंने कहने के साथ ही सरोज की तरफ देखा और फिर कहा____"काकी, मिलो अपने पति के हत्यारे से। इसी ने अपने बड़े भाई की हत्या की थी, और जानती हो क्यों? क्योंकि इसे अपने भाई की ज़मीन जायदाद को हड़पना था।"

मेरी बात सुनते ही सरोज काकी को मानो होश आया। अनुराधा भी बुरी तरह सन्नाटे में आ गई थी। दोनों मां बेटी जगन को ऐसे देखने लगीं थी मानो वो कोई भूत हो। तभी अचानक सरोज काकी को जाने क्या हुआ कि वो तेज़ी से बाहर निकली और जगन के क़रीब आ कर उसे मारते हुए चीख पड़ी_____"तुमने मेरे मरद की जान ली कमीने? अपने भाई की हत्या करते हुए क्या तेरे हाथ नही कांपे? हत्यारे पापी, मेरी मांग का सिंदूर मिटाने वाले मैं तुझे जिंदा नहीं छोडूंगी।"

सरोज काकी जाने क्या क्या कहते हुए जगन को मारे जा रही थी। उधर जगन जो पहले से ही बुरी हालत में था वो और भी दर्द से कराहने लगा था। अनुराधा अपनी जगह पर खड़ी आंसू बहा रही थी। मैंने भुवन को इशारा किया तो भुवन ने आगे बढ़ कर सरोज काकी को जगन से दूर कर दिया। भुवन के दूर कर देने पर भी सरोज काकी मचलती रही।

"मुझे छोड़ दो भुवन।" काकी रोते हुए चीखी____"मैं इस हत्यारे की जान लेना चाहती हूं। इसने मेरे मासूम से बच्चों को अनाथ कर दिया है। मैं भी इसकी हत्या कर के इसके बच्चों को अनाथ कर देना चाहती हूं। फिर देखूंगी कि इसकी बीवी पर क्या गुज़रती है?"

"शांत हो जाओ काकी।" मैंने कहा____"इसने जो किया है उसकी सज़ा तो इसे ज़रूर मिलेगी लेकिन यहां नहीं बल्कि हवेली में। इसने हमारे दुश्मनों के साथ मिल कर हमारे साथ भी खेल खेला है। इस लिए इसके कुकर्मों का हिसाब हवेली में ही होगा।"

"मुझे माफ़ कर दीजिए भौजी।" जगन ने रोते हुए कहा____"मैं वो सब करने के लिए मजबूर हो गया था। कर्ज़ के चलते मेरी सारी ज़मीनें गिरवी हो गईं थी। एक एक पाई के लिए मोहताज हो गया था मैं। चार चार बच्चों के साथ अपना पेट भरना बहुत मुश्किल हो गया था। भैया को बता भी नहीं सकता था कि कर्ज़ के चलते सारी ज़मीनें मैंने गिरवी रख दी हैं। अगर भैया को पता चलता तो वो बहुत गुस्सा होते। मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करूं? फिर एक दिन एक अजीब सा आदमी मिला जिसने मुझे इन सारी परेशानियों से मुक्त होने का उपाय बताया। मैं अपनी परेशानियों से मुक्त तो होना चाहता था लेकिन अपने भाई की जान की कीमत पर नहीं। मैंने बहुत सोचा लेकिन इसके अलावा दूसरा कोई चारा नज़र नहीं आया। कहीं और से कोई कर्ज़ भी नहीं मिल रहा था। गांव के बड़े लोग कर्ज़ देने से मना कर चुके थे, देते भी कैसे? मेरे पास तो अब ज़मीनें भी नहीं बची थीं जिससे वो अपनी वसूली कर लेते। मजबूर हो कर मुझे उस अजीब आदमी की बात माननी ही पड़ी। उसने बताया कि ऐसा करने से मेरे सारे दुख दूर हो जाएंगे और साथ ही अपने भाई की हत्या करने से भी मुझे कुछ नहीं होगा। क्योंकि भैया की हत्या का इल्ज़ाम छोटे ठाकुर पर लगा दिया जाता।"

"नीच इंसान।" सरोज काकी जगन को मारने के लिए झपटी ही थी कि भुवन ने उसे पकड़ लिया, जबकि वो मचलते हुए बोली____"मुझे छोड़ो भुवन, मैं इस हत्यारे की जान ले लेना चाहती हूं। इसने अपने भले के लिए मेरा सब कुछ बर्बाद कर दिया है।"

"इसके गंदे खून से अपने हाथ मैले मत करो काकी।" मैंने कठोरता से कहा____"इसने जो किया है उसकी सज़ा इसे हवेली में मिलेगी। ख़ैर, मैंने अपना वादा पूरा कर दिया है काकी। तुमसे बस इतना ही कहूंगा कि आज कल हालात बहुत ख़राब हैं इस लिए बेवक्त घर से बाहर मत निकलना। बाकी तुम्हारी ज़रूरतें पूरी करने के लिए भुवन है। ये तुम सबका ध्यान रखेगा। अच्छा अब चलता हूं, अपना ख़याल रखना।"

कहने के साथ ही मैंने अनुराधा की तरफ देखा तो पाया कि वो मुझे ही देख रही थी। उसकी आंखों में आसूं थे और चेहरे पर ज़माने भर का दर्द। ऐसा लगा जैसे वो मुझसे बहुत कुछ कहना चाहती है मगर अपनी बेबसी के चलते वो चुप थी। मैंने उससे नज़रें हटा ली और भुवन को चलने का इशारा किया।

कुछ ही पलों में हमारा काफ़िला फिर से चल पड़ा लेकिन इस बार ये काफ़िला हवेली की तरफ चल पड़ा था। संपत, दयाल और मंगू जगन को घसीटते हुए फिर से ले चले थे। जगन की हालत बेहद ख़राब थी। उसके पैरों में अब मानों जान ही नहीं थी। वो लड़खड़ाते हुए चल रहा था। कभी कभी वो गिर भी जाता था जिससे तीनों उसे घसीटने लगते थे। कच्ची मिट्टी पर जब शरीर रगड़ खाता तो वो दर्द से चिल्लाने लगता था और फिर जल्दी ही उठने की कोशिश करता। मैंने मंगू से कह दिया था कि अब उसे ज़्यादा मत घसीटे क्योंकि ऐसे में उसकी जान भी जा सकती थी। फिलहाल उसका ज़िंदा रहना ज़रूरी था। उससे बहुत कुछ जानना शेष था।

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Napster

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बहुत ही सुंदर लाजवाब और अद्भुत रमणिय अपडेट है भाई मजा आ गया
हवेली का गद्दार और मुरारी का हत्यारा जगन पकडा गया और वादें के मुताबिक वैभन उसे सरोज के सामने खडा करके अपना वादा पुरा किया बेचारी अनुराधा कुछ न कह सकी बस टकटकी लगा कर वैभव को देखती रही खैर
अब जगन हवेली में दादा ठाकूर के सामने क्या बोलता हैं और उसमें से जगताप और अभिनव ठाकुर की हत्या का कोई सुराग मिलता हैं देखते हैं आगे
अगले रोमांचकारी धमाकेदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
 

kamdev99008

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अध्याय - 65
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अब तक....

मैंने भाभी को किसी तरह शांत किया और उन्हें उनके कमरे में ले आया। पलंग पर मैंने उन्हें बैठाया और फिर दरवाज़े के पास आ कर कुसुम को आवाज़ लगाई। मेरे आवाज़ देने पर कुसुम अपने कमरे से निकल कर भागती हुई मेरे पास आई। मैंने उसे भाभी के पास रहने को कहा और साथ ही ये भी कहा कि वो भाभी को किसी भी हाल में अकेला न छोड़े। कुसुम ने हां में सिर हिलाया और भाभी के कमरे में दाखिल हो गई। मैंने भाभी को ज़बरदस्ती आराम करने को कहा और बाहर निकल कर नीचे की तरफ चल पड़ा।

अब आगे....


शाम हो रही थी।
जगन बहुत परेशान था और साथ ही अंदर से बेहद घबराया हुआ भी था। उसे भी पता चल चुका था कि हवेली में बहुत बड़ी घटना हो गई है जिसमें मझले ठाकुर जगताप और दादा ठाकुर के बड़े बेटे अभिनव ठाकुर की हत्या कर दी गई है। दोनों चाचा भतीजे की इस तरह हत्या हो जाएगी इसकी उसने कल्पना भी नहीं की थी। वो अच्छी तरह जानता था कि अब जो होगा वो बहुत ही भयानक होगा जिसके चलते उसकी अपनी ज़िंदगी भी ख़तरे में ही पड़ गई है। वो पिछले कई दिनों से सबसे छुपता फिर रहा था। उसे इस बात का अंदेशा ही नहीं बल्कि पूरा यकीन था कि उसकी असलियत का पता दादा ठाकुर अथवा ठाकुर वैभव सिंह को चल चुका है इस लिए अब वो उनके ख़ौफ से छुपता फिर रहा था। घर में उसकी बीवी और बच्चे बिना किसी सहारे के ही थे जिनकी अब उसे बेहद चिंता होने लगी थी।

सूरज पश्चिम दिशा में अस्त हो चुका था और हर तरफ शाम का धुंधलका छाने लगा था। जगन सबकी नज़रों से खुद को बचाते हुए उस तरफ तेज़ी से बढ़ता चला जा रहा था जिस तरफ दादा ठाकुर के आमों के बाग थे। यूं तो वहां पर जाने के लिए साफ सुथरा रास्ता था लेकिन क्योंकि उसे सबकी नज़रों से खुद को छुपाए रखना था इस लिए वो लंबा चक्कर लगाते हुए बाग़ की तरफ बढ़ रहा था। वो उस सफ़ेदपोश आदमी से मिलना चाहता था जिसके इशारों पर आज कल वो काम कर रहा था।

जगन ने उस वक्त थोड़ी राहत की सांस ली जब वो आमों के बाग़ में आ गया। यहां पर घने पेड़ पौधे थे और शाम घिर जाने की वजह से अंधेरा भी नज़र आ रहा था। ऐसे में किसी के द्वारा उसको देख लिया जाना इतना आसान नहीं था और यही उसके लिए राहत वाली बात थी। ख़ैर बाग़ में दाखिल होते ही वो सावधानी से उस तरफ बढ़ चला जिस तरफ अक्सर उसे सफ़ेदपोश मिला करता था। जल्दी ही वो उस जगह पर आ गया और हल्के अंधेरे में वो इस उम्मीद में चारो तरफ नज़रें घुमाने लगा कि शायद उसे कहीं पर वो सफ़ेदपोश व्यक्ति नज़र आ जाए लेकिन ऐसा न हुआ। जैसे जैसे समय गुज़र रहा था उसके चेहरे पर बेचैनी के साथ साथ चिंता और परेशानी भी बढ़ती जा रही थी।

काफी देर हो जाने पर भी जब जगन को वो सफ़ेदपोश कहीं नज़र ना आया तो वो हताश सा हो कर वापस चल पड़ा। इतना तो उसे भी पता था कि सफ़ेदपोश बाग़ में हर वक्त बैठा नहीं रहता था और जब भी उसे मिलना होता था तो वो अपने काले नकाबपोश व्यक्ति द्वारा उस तक ख़बर भेजवा देता था। ख़ैर निराश और परेशान हालत में जगन बाग़ से निकल कर वापस उसी रास्ते की तरफ बढ़ चला था जिस तरफ से वो आया था। अभी वो कुछ ही दूर चला था कि तभी उसे अजीब तरह की हलचल महसूस हुई जिसके चलते वो बुरी तरह डर गया। उसके दिल की धड़कनें मानों रुक ही गईं। अभी वो अपनी धड़कनों को नियंत्रित करने का प्रयास ही कर रहा था कि तभी दो तरफ से तीन आदमी लट्ठ लिए एकदम से उसके क़रीब आ गए।

तीन आदमियों को यूं किसी जिन्न की तरह अपने क़रीब प्रगट हो गया देख जगन की गांड़ फट के हाथ में आ गई। एक तो वैसे ही वो डरा हुआ था दूसरे तीन तीन लट्ठधारियों को देखते ही उसे ऐसा लगा जैसे न चाहते हुए भी उसका मूत निकल जाएगा।

"क..कौन हो तुम लोग???" फिर उसने अपनी हालत को काबू करने का प्रयास करते हुए उन तीनों को बारी बारी से देखते हुए घबरा कर पूछा।

"तुम्हारे सिर पर मंडराती हुई तुम्हारी मौत।" एक लट्ठधारी ने अजीब भाव से कहा____"आख़िर पकड़ में आ ही गया आज।"

"क..क्या मतलब??" जगन की सिट्टी पिट्टी गुम, सूखे गले को उसने अपने थूक से तर करने का प्रयास किया फिर बड़ी मुश्किल से उसके गले से आवाज़ निकली____"अ...आख़िर क..कौन हो तुम लोग, अ...और ऐसा क्यों कह रहे हो??"

जगन की बात का उनमें से किसी ने कोई जवाब नहीं दिया बल्कि तीनों ने पहले एक दूसरे की तरफ देखा और फिर बिजली की तरह झपट पड़े उस पर। जगन को ऐसा लगा जैसे एकदम से उसके सिर पर गाज गिर गई है। वो मारे डर के हलक फाड़ कर चिल्ला उठा था मगर तभी उनमें से एक ने उसके मुख को अपने हाथों से भींच लिया। जगन को तीनों ने पकड़ लिया था और वो उनसे छूटने के लिए जी तोड़ कोशिश करने लगा था मगर छूट नहीं पाया। उसका बुरी तरह से छटपटाना उस वक्त एकदम से शांत पड़ गया जब उनमें से एक ने उसकी आंखों के सामने तेज़ धार वाला खंज़र दिखाते हुए ये कहा था कि अब अगर चीखा चिल्लाया तो ये खंज़र हलक में घुसेड़ दूंगा।

✮✮✮✮

मैं जानता था कि ऐसे माहौल में मेरा हवेली से अकेले निकालना कहीं से भी उचित नहीं था मगर अब मैं इसका क्या करता कि मुझसे सब्र ही नहीं हो रहा था। मेरे अंदर आक्रोश, गुस्सा और बदले की आग इस क़दर तांडव सा कर रही थी जिसे काबू में रख पाना अब मेरे बस में नहीं था। पिता जी ने जो पिस्तौल मुझे दिया था उसे ले कर मैं हवेली से निकल आया था और इस बात का ख़ास ध्यान रखा था कि किसी की नज़र मुझ पर न पड़े। शाम का अंधेरा मेरे लिए बेहद उपयोगी साबित हुआ था जिसके चलते हवेली से बाहर निकल आने में मुझे कोई समस्या नहीं हुई थी।

मैं एक गमछा ले रखा था जिससे मैंने अपना चेहरा ढंक लिया था और पैदल ही चलते हुए उस तरफ आ गया था जहां से एक रास्ता नदी की तरफ जाता था। यहां पर रुक कर अभी मैं इधर उधर देखने ही लगा था कि तभी मेरी नज़र एक साए पर पड़ी। साए को देख कर मेरे जबड़े भिंच गए और साथ ही मेरे अंदर गुस्से में इज़ाफा होने लगा। मैं अपनी जगह पर बेख़ौफ खड़ा उस साए को देख ही रहा था कि तभी मैं हल्के से चौंका। ऐसा इस लिए क्योंकि साया मुझे देखने के बाद भी नहीं रुका था और मेरी ही तरफ बढ़ा चला आ रहा था। अंधेरा इतना भी नहीं था कि कुछ दूरी का दिखे ही नहीं। जल्दी ही वो साया मेरे क़रीब आ गया।

"नमस्ते छोटे कुंवर।" वो साया मेरे पास आते ही अदब से बोला तो मैं उसे पहचान गया। वो मेरा ही ख़बरी था। उसके नमस्ते कहने पर मैंने हल्के से सिर हिलाया और फिर कहा____"इस तरह कहां घूमते फिर रहे हो तुम?"

"आपके ही काम में लगा हुआ था कुंवर।" उस व्यक्ति ने कहा जिसका नाम मंगू था____"और एक अच्छी ख़बर देने के लिए आपके ही पास हवेली आ रहा था कि आप यहीं मिल गए मुझे।"

"कैसी ख़बर की बात कर रहे हो तुम?" मैंने सपाट लहजे में उससे पूछा तो उसने कहा____"आपके कहने पर हम लोग मुरारी के छोटे भाई जगन की खोजबीन में लगे हुए थे।"

"तो क्या मिल गया वो?" मैं उत्सुकता और उत्तेजना के चलते पूछ बैठा।
"हां कुंवर।" मंगू ने गर्मजोशी से कहा____"अभी कुछ देर पहले ही हमने उसे पकड़ा है। हालाकि ये बड़े ही इत्तेफ़ाक से हुआ है लेकिन आख़िर वो मिल ही गया हमें।"

"तो कहां हैं वो?" जगन मिल ही नहीं गया है बल्कि पकड़ में भी आ गया है इस बात ने मेरे अंदर एक अलग ही जोश भर दिया था और गुस्सा भी। मैं अपनी मुट्ठी में उसकी गर्दन दबोचने के लिए जैसे मचल ही उठा।

"आपके आमों वाले बाग़ में जो मकान है न।" मंगू ने जवाब दिया____"हमने उसे वहीं पर पकड़ कर रखा है। संपत और दयाल उसके पास वहीं पर हैं जबकि मैं इस बात की सूचना देने के लिए हवेली जा रहा था कि आप यहीं मिल गए मुझे।"

मंगू की बात सुन कर मेरे होठों पर ज़हरीली मुस्कान उभर आई। मैंने उसे चलने का इशारा किया तो वो मुझे रास्ता दे कर मेरे पीछे पीछे चलने लगा। जल्दी ही मैं मंगू के साथ अपने बाग़ वाले मकान में पहुंच गया। मैंने मंगू को रोक कर उसे एक काम सौंपा और जल्द से जल्द आने को कहा तो वो फ़ौरन ही पलट कर चला गया। उसके जाने के बाद मैं मकान के अंदर दाखिल हो गया। अंदर मुझे हल्का उजाला नज़र आया। मैं समझ गया कि संपत और दयाल ने शायद चिमनी जला रखी है।

कुछ ही पलों में मैं उस कमरे में दाखिल हुआ जिसमें संपत और दयाल जगन को कैद किए मौजूद थे। जगन की नज़र जैसे ही मुझ पर पड़ी तो भय से उसका चेहरा पीला पड़ गया। मारे ख़ौफ के वो जूड़ी के मरीज़ की तरह कांपने लगा। संपत और दयाल ने उसे रस्सियों में बांध दिया था जिसके चलते वो कहीं भाग नहीं सकता था। उसे देखते ही मेरे अंदर गुस्से का ज्वालामुखी सा धधक उठा जिसे मैंने बड़ी मुश्किल से शांत करने की कोशिश की।

"म..मुझे म..माफ़ कर दो वैभव।" मैं जैसे ही उसके क़रीब पहुंचा तो जगन ने भयभीत हो कर ये कहा। उसके मुख से जैसे ही मैंने ये सुना तो मुझे एकदम से गुस्सा आ गया और मैंने खींच के एक थप्पड़ उसके गाल पर जड़ दिया जिससे वो वहीं उलट गया।

"वैभव नहीं।" मैंने उसको गिरेबान से पकड़ कर उठाते हुए गुस्से में कहा____"छोटे ठाकुर बोल, छोटे ठाकुर। वैभव कहने का अधिकार खो दिया है तूने।"

मेरे ख़तरनाक तेवर देख जगन की हालत और भी ख़राब हो गई। उसके मुख से कोई आवाज़ न निकली। तभी मैंने देखा कि मारे दहशत के उसका पेशाब छूट गया। कमरे के फर्श पर उसका पेशाब फैलता जा रहा था। ये देख मुझे उसके ऊपर और भी गुस्सा आ गया।

"अभी तो पेशाब ही निकला है तेरा।" मैं उसे छोड़ कर उससे दूर हटते हुए बोला____"जल्दी ही तेरी गांड़ से टट्टी भी इसी तरह निकलेगी। मन तो करता है कि इसी वक्त तेरी जान ले लूं मगर नहीं उससे पहले तू किसी रट्टू तोते की तरह वो सब बताएगा जो जो तूने कुकर्म किए हैं।"

इससे पहले कि वो कुछ बोलता मैं पलटा और संपत तथा दयाल की तरफ देखते हुए कहा___"मंगू के आने के बाद इसे घसीटते हुए इसके गांव ले चलना और हां इस बात की ज़रा भी परवाह मत करना कि घसीटने की वजह से इसकी क्या दुर्गति हो जाएगी।"

ये कह कर मैं बाहर आ गया। असल में मुझे इतना गुस्सा आया हुआ था कि मैं जगन के साथ कुछ भी बुरा कर सकता था जबकि फिलहाल उसका ज़िंदा रहना ज़रूरी था। बाहर आ कर मैं लकड़ी के एक छोटे से तख्त पर बैठ गया और मंगू के आने का इंतजार करने लगा। क़रीब बीस मिनट बाद मंगू आया जोकि भुवन के साथ उसकी मोटर साईकिल पर ही था। भुवन ने मुझे अदब से सलाम किया तो मैंने उसे चलने का इशारा किया और मंगू को पीछे आने को कहा।

✮✮✮✮

सरोज काकी गुमसुम सी बैठी हुई थी। उसके मन मस्तिष्क में हवेली में हुई घटना से संबंधित ही बातें चल रहीं थी। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि हवेली में इतनी बड़ी घटना घट गई है। जब से उसने इस घटना के बारे में सुना था तब से उसके मन में सोच विचार चालू था। यही हाल उसकी बेटी अनुराधा का भी था, बल्कि अगर ये कहा जाए तो ज़्यादा बेहतर होगा कि उसका तो बुरा ही हाल था। ये अलग बात है कि वो अपने हाल को दिल के हाल की ही तरह अपनी मां को ज़ाहिर नहीं होने दे रही थी।

"ऐसे कब तक बैठी रहेगी मां?" अनुराधा ने उदास भाव से अपनी मां की तरफ देखते हुए पूछा____"खाना नहीं बनाएगी क्या? अनूप कई बार कह चुका है कि उसे भूख लगी है।"

"उसके लिए तू ही कुछ बना दे अनु।" सरोज ने बुझे बन से कहा____"और अपने लिए भी। मुझे तो बिल्कुल ही भूख नहीं है।"

अपनी मां की बात सुन कर अनुराधा ने मन ही मन कहा____'भूख तो मुझे भी नहीं है मां।' और फिर वो अनमने भाव से रसोई की तरफ बढ़ गई। एक चिमनी आंगन में उजाला करने के लिए जल रही थी जबकि दूसरी चिमनी ले कर अनुराधा रसोई में चली गई। उसका छोटा भाई अनूप अपनी मां के पास ही एक खिलौना लिए बैठा था।

सरोज के ज़हन से हवेली की घटना जा ही नहीं रही थी। बार बार उसके ख़्यालों में वैभव भी आ जाता था जिसके बारे में सोच कर उसे बड़ा दुख हो रह था। अभी वो ये सब सोच ही रही थी कि तभी घर के बाहर किसी वाहन की आवाज़ उसे सुनाई दी। उसे ऐसा प्रतीत हुआ जैसे कोई वाहन उसके घर के बाहर ही आ कर रुक गया है। शाम के वक्त किसी वाहन के बारे में सोच सरोज को थोड़ा अजीब सा लगा क्योंकि उसके मन में हवेली की घटना भी चल रही थी। सरोज के अंदर एक भय सा पैदा हो गया। एक तो वैसे भी उसका घर गांव से बाहर एकांत में बना हुआ था इस लिए अगर कोई ऐसी वैसी बात हो जाती तो उसकी मदद के लिए कोई आ भी नहीं सकता था।

सरोज फ़ौरन ही उठ कर खड़ी हो गई और बाहर वाले किवाड़ को देखने लगी। उसके मन में तरह तरह के ख़याल आने लगे थे। तभी किसी ने बाहर वाला किवाड़ बजाया तो सरोज एकदम से घबरा गई। उसे समझ न आया कि शाम के इस वक्त कौन आया होगा? किवाड़ बजाने की आवाज़ रसोई तक भी गई थी जिसे अनुराधा ने भी सुन लिया था।

"बाहर कोई आया है क्या मां?" अनुराधा ने रसोई के अंदर से ही पूछा।
"लगता तो ऐसा ही है अनु।" सरोज ने अपनी घबराहट को छुपाते हुए कहा____"रुक देखती हूं कौन है बाहर। तू रसोई में ही रह।"

कहने के साथ ही सरोज दरवाज़े की तरफ बढ़ चली। धड़कते दिल के साथ अभी वो कुछ ही क़दम चली थी कि किवाड़ फिर से बजाया गया और साथ ही एक मर्दाना आवाज़ भी आई। सरोज ने महसूस किया कि आवाज़ जानी पहचानी है लेकिन किसकी है ये उसे ध्यान में नहीं आ रहा था। ख़ैर कुछ ही देर में उसने जा कर दरवाज़ा खोला तो देखा बाहर भुवन खड़ा था और साथ ही उसके पीछे कुछ और भी लोग थे।

"तुम भुवन हो ना?" सरोज ने भुवन को देखते हुए पूछा तो भुवन ने हां में सिर हिलाते हुए कहा____"हां काकी मैं भुवन ही हूं। वो बात ये है कि छोटे ठाकुर आए हैं।"

"क..क्या तुम वैभव की बात कर रहे हो बेटा?" सरोज को जैसे यकीन ही न हुआ था। उसके पूछने पर भुवन ने एक बार फिर से हां में सिर हिलाया और एक तरफ हट गया। वो जैसे ही हटा तो सरोज की नज़र कुछ ही दूरी पर खड़ी मोटर साईकिल पर पड़ी जिसमें मैं बैठा हुआ था।

"तुम वहां क्यों बैठे हो वैभव बेटा?" सरोज ने व्याकुल भाव से कहा____"अंदर आओ न।"
"नहीं काकी।" मैंने कहा____"मैं यहीं पर ठीक हूं। असल में इस वक्त मेरे यहां आने की एक ख़ास वजह है।"

"कोई भी वजह हो।" सरोज ने कहा____"मुझे इससे मतलब नहीं है। तुम बस अंदर आओ।"
"ज़िद मत करो काकी।" मैंने सपाट लहजे में कहा____"मैंने कहा न कि मैं यहीं पर ठीक हूं। ख़ैर मैं तुम्हें ये बताने आया हूं कि जिसने मुरारी काका की हत्या की थी उसे पकड़ लिया है मैंने और उसको ले कर आया हूं।"

मेरी बात सुनते ही सरोज काकी एकदम बुत सी बनी खड़ी रह गई। मैं समझ सकता था कि ये बात सुनते ही उसके अंदर भीषण हलचल सी मच गई होगी। अभी मैं उसके मुख से कुछ सुनने का इंतज़ार ही कर रहा था कि तभी मेरी नज़र उसके पीछे अभी अभी आई अनुराधा पर पड़ी। अपनी मां के पीछे खड़ी वो एकटक मुझे ही देखने लगी थी। इधर उसको देखते ही मेरे दिल की धड़कनें एकाएक ही तेज़ हो गईं। मैंने महसूस किया कि वो मुझसे अपनी नज़रें नहीं हटा रही है। आम तौर पर पहले ऐसा नहीं होता था। यानि इसके पहले जब भी हमारी नज़रें आपस में मिलती थीं तो वो अपनी नज़रें झुका लेती थी जबकि इस वक्त वो बिना पलकें झपकाए मुझे ही देखे जा रही थी। उसके चेहरे पर ज़माने भर की उदासी और दुख संताप नज़र आया मुझे।

"य..ये तुम क्या कह रहे हो बेटा?" तभी सरोज ने लड़खड़ाती आवाज़ में कहा____"क्या सच में तुम मेरे मरद के हत्यारे को पकड़ कर साथ ले आए हो?"

"मैंने तुमसे वादा किया था न काकी कि मुरारी काका के हत्यारे को एक दिन ज़रूर तुम्हारे सामने ले कर आऊंगा।" मैंने अनुराधा से नज़र हटा कर कहा____"इस लिए आज मैं उसे ले कर आया हूं। मुझे यकीन है कि हत्यारे की शकल देखने के बाद तुम्हें उसके द्वारा की गई जघन्य हत्या पर भरोसा नहीं होगा लेकिन सच तो सच ही होता है न। एक और बात, ये वो हत्यारा है जिसने मुरारी काका की हत्या तो की ही साथ में इसने हवेली के साथ भी गद्दारी की है। ऐसे व्यक्ति को ज़िंदा रहने का अब कोई हक़ नहीं है।"

मेरी बातें सुन कर सरोज काकी हैरत से देखती रह गई मेरी तरफ। मेरी नज़र एक बार फिर से उसके पीछे खड़ी अनुराधा पर पड़ी। वो अब भी मुझे ही देखे जा रही थी। ऐसा लग रहा था मानों उसने मुझे कभी देखा ही न रहा हो।

तभी वातावरण में कुछ आवाज़ें सुनाई दी तो हम सबका ध्यान उस तरफ गया। संपत, दयाल और मंगू घसीटते हुए जगन को लाते नज़र आए। जब वो क़रीब आ गए तो मैने देखा जगन के कपड़े जगह जगह से फट गए थे। मैं समझ गया कि उसकी हालत ख़राब है।

"रहम छोटे ठाकुर रहम।" जगन की नज़र जैसे ही मुझ पर पड़ी तो वो हांफते हुए और दर्द से कराहते हुए बोल पड़ा।

"क्या तुम्हें लगता है कि तुम रहम के क़ाबिल हो?" मैंने कहने के साथ ही सरोज की तरफ देखा और फिर कहा____"काकी, मिलो अपने पति के हत्यारे से। इसी ने अपने बड़े भाई की हत्या की थी, और जानती हो क्यों? क्योंकि इसे अपने भाई की ज़मीन जायदाद को हड़पना था।"

मेरी बात सुनते ही सरोज काकी को मानो होश आया। अनुराधा भी बुरी तरह सन्नाटे में आ गई थी। दोनों मां बेटी जगन को ऐसे देखने लगीं थी मानो वो कोई भूत हो। तभी अचानक सरोज काकी को जाने क्या हुआ कि वो तेज़ी से बाहर निकली और जगन के क़रीब आ कर उसे मारते हुए चीख पड़ी_____"तुमने मेरे मरद की जान ली कमीने? अपने भाई की हत्या करते हुए क्या तेरे हाथ नही कांपे? हत्यारे पापी, मेरी मांग का सिंदूर मिटाने वाले मैं तुझे जिंदा नहीं छोडूंगी।"

सरोज काकी जाने क्या क्या कहते हुए जगन को मारे जा रही थी। उधर जगन जो पहले से ही बुरी हालत में था वो और भी दर्द से कराहने लगा था। अनुराधा अपनी जगह पर खड़ी आंसू बहा रही थी। मैंने भुवन को इशारा किया तो भुवन ने आगे बढ़ कर सरोज काकी को जगन से दूर कर दिया। भुवन के दूर कर देने पर भी सरोज काकी मचलती रही।

"मुझे छोड़ दो भुवन।" काकी रोते हुए चीखी____"मैं इस हत्यारे की जान लेना चाहती हूं। इसने मेरे मासूम से बच्चों को अनाथ कर दिया है। मैं भी इसकी हत्या कर के इसके बच्चों को अनाथ कर देना चाहती हूं। फिर देखूंगी कि इसकी बीवी पर क्या गुज़रती है?"

"शांत हो जाओ काकी।" मैंने कहा____"इसने जो किया है उसकी सज़ा तो इसे ज़रूर मिलेगी लेकिन यहां नहीं बल्कि हवेली में। इसने हमारे दुश्मनों के साथ मिल कर हमारे साथ भी खेल खेला है। इस लिए इसके कुकर्मों का हिसाब हवेली में ही होगा।"

"मुझे माफ़ कर दीजिए भौजी।" जगन ने रोते हुए कहा____"मैं वो सब करने के लिए मजबूर हो गया था। कर्ज़ के चलते मेरी सारी ज़मीनें गिरवी हो गईं थी। एक एक पाई के लिए मोहताज हो गया था मैं। चार चार बच्चों के साथ अपना पेट भरना बहुत मुश्किल हो गया था। भैया को बता भी नहीं सकता था कि कर्ज़ के चलते सारी ज़मीनें मैंने गिरवी रख दी हैं। अगर भैया को पता चलता तो वो बहुत गुस्सा होते। मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करूं? फिर एक दिन एक अजीब सा आदमी मिला जिसने मुझे इन सारी परेशानियों से मुक्त होने का उपाय बताया। मैं अपनी परेशानियों से मुक्त तो होना चाहता था लेकिन अपने भाई की जान की कीमत पर नहीं। मैंने बहुत सोचा लेकिन इसके अलावा दूसरा कोई चारा नज़र नहीं आया। कहीं और से कोई कर्ज़ भी नहीं मिल रहा था। गांव के बड़े लोग कर्ज़ देने से मना कर चुके थे, देते भी कैसे? मेरे पास तो अब ज़मीनें भी नहीं बची थीं जिससे वो अपनी वसूली कर लेते। मजबूर हो कर मुझे उस अजीब आदमी की बात माननी ही पड़ी। उसने बताया कि ऐसा करने से मेरे सारे दुख दूर हो जाएंगे और साथ ही अपने भाई की हत्या करने से भी मुझे कुछ नहीं होगा। क्योंकि भैया की हत्या का इल्ज़ाम छोटे ठाकुर पर लगा दिया जाता।"

"नीच इंसान।" सरोज काकी जगन को मारने के लिए झपटी ही थी कि भुवन ने उसे पकड़ लिया, जबकि वो मचलते हुए बोली____"मुझे छोड़ो भुवन, मैं इस हत्यारे की जान ले लेना चाहती हूं। इसने अपने भले के लिए मेरा सब कुछ बर्बाद कर दिया है।"

"इसके गंदे खून से अपने हाथ मैले मत करो काकी।" मैंने कठोरता से कहा____"इसने जो किया है उसकी सज़ा इसे हवेली में मिलेगी। ख़ैर, मैंने अपना वादा पूरा कर दिया है काकी। तुमसे बस इतना ही कहूंगा कि आज कल हालात बहुत ख़राब हैं इस लिए बेवक्त घर से बाहर मत निकलना। बाकी तुम्हारी ज़रूरतें पूरी करने के लिए भुवन है। ये तुम सबका ध्यान रखेगा। अच्छा अब चलता हूं, अपना ख़याल रखना।"

कहने के साथ ही मैंने अनुराधा की तरफ देखा तो पाया कि वो मुझे ही देख रही थी। उसकी आंखों में आसूं थे और चेहरे पर ज़माने भर का दर्द। ऐसा लगा जैसे वो मुझसे बहुत कुछ कहना चाहती है मगर अपनी बेबसी के चलते वो चुप थी। मैंने उससे नज़रें हटा ली और भुवन को चलने का इशारा किया।

कुछ ही पलों में हमारा काफ़िला फिर से चल पड़ा लेकिन इस बार ये काफ़िला हवेली की तरफ चल पड़ा था। संपत, दयाल और मंगू जगन को घसीटते हुए फिर से ले चले थे। जगन की हालत बेहद ख़राब थी। उसके पैरों में अब मानों जान ही नहीं थी। वो लड़खड़ाते हुए चल रहा था। कभी कभी वो गिर भी जाता था जिससे तीनों उसे घसीटने लगते थे। कच्ची मिट्टी पर जब शरीर रगड़ खाता तो वो दर्द से चिल्लाने लगता था और फिर जल्दी ही उठने की कोशिश करता। मैंने मंगू से कह दिया था कि अब उसे ज़्यादा मत घसीटे क्योंकि ऐसे में उसकी जान भी जा सकती थी। फिलहाल उसका ज़िंदा रहना ज़रूरी था। उससे बहुत कुछ जानना शेष था।


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इतनी बारीकी से बुने जाल का एक सिरा (धागे का छोर) तो हाथ लगा.................
माना जगन सिर्फ एक मोहरा है लेकिन वो उस नकाबपोश की गतिविधियों और कारनामों के बारे में बहुत कुछ जानता होगा...........
कोई ना कोई सुराग जरूर मिलेगा इससे

अनुराधा और वैभव फिर अनकहे ही रह गए ........... ना जाने मन में कितने सवाल-जवाब दबे होंगे..........
 
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मुरारी की हत्या उसके छोटे भाई जगन ने की थी , इस खुलासे से मुझे जरा भी अचरज नही हुआ। इस कलयुग मे अक्सर राम अपने छोटे भाई का सारा जमीन जायदाद हड़प लेता है तो कभी कोई लक्ष्मण अपने बड़े भाई को दर दर की ठोकर खाने को मजबूर कर देता है।
सबकुछ सम्भव है क्योंकि यह कलयुग है जहां पाप हमेशा ही पुण्य पर भारी पड़ा है।

चूंकि यह एक स्टोरी है , इसलिए हम जरूर एक आस बनाए रखते है कि स्टोरी के अंत मे कम से कम ऐसा कुछ नही होगा। बुराई पर अच्छाई की जीत अवश्य ही होगी।

सरोज की भूमिका पर भी सवाल तो उठता बनता है। उसने अपने हसबैंड के साथ चिटिंग किया । वैभव के साथ नाजायज रिश्ता कायम की। किसी के गलत कर्मों का फल किसी न किसी परिवार के सदस्य को भुगतना ही पड़ता है।
यह उसी का कर्म था जो अनुराधा चाहकर भी अपना प्यार हासिल न कर पाई।

लेकिन वैभव भी कोई दूध का धुला नही था। उसने कई गलतियां की । कई लड़कियों को अपने हवस का पात्र बनाया। परिवार की जिम्मेदारी का निर्वहन नही किया।
जोश मे होश खोया।
देखते है , अब वो अपनी जिम्मेदारी का भार किस तरह उठाता है !

बहुत खुबसूरत अपडेट शुभम भाई।
आउटस्टैंडिंग अपडेट।
 

Ajju Landwalia

Well-Known Member
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अध्याय - 65
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अब तक....

मैंने भाभी को किसी तरह शांत किया और उन्हें उनके कमरे में ले आया। पलंग पर मैंने उन्हें बैठाया और फिर दरवाज़े के पास आ कर कुसुम को आवाज़ लगाई। मेरे आवाज़ देने पर कुसुम अपने कमरे से निकल कर भागती हुई मेरे पास आई। मैंने उसे भाभी के पास रहने को कहा और साथ ही ये भी कहा कि वो भाभी को किसी भी हाल में अकेला न छोड़े। कुसुम ने हां में सिर हिलाया और भाभी के कमरे में दाखिल हो गई। मैंने भाभी को ज़बरदस्ती आराम करने को कहा और बाहर निकल कर नीचे की तरफ चल पड़ा।

अब आगे....


शाम हो रही थी।
जगन बहुत परेशान था और साथ ही अंदर से बेहद घबराया हुआ भी था। उसे भी पता चल चुका था कि हवेली में बहुत बड़ी घटना हो गई है जिसमें मझले ठाकुर जगताप और दादा ठाकुर के बड़े बेटे अभिनव ठाकुर की हत्या कर दी गई है। दोनों चाचा भतीजे की इस तरह हत्या हो जाएगी इसकी उसने कल्पना भी नहीं की थी। वो अच्छी तरह जानता था कि अब जो होगा वो बहुत ही भयानक होगा जिसके चलते उसकी अपनी ज़िंदगी भी ख़तरे में ही पड़ गई है। वो पिछले कई दिनों से सबसे छुपता फिर रहा था। उसे इस बात का अंदेशा ही नहीं बल्कि पूरा यकीन था कि उसकी असलियत का पता दादा ठाकुर अथवा ठाकुर वैभव सिंह को चल चुका है इस लिए अब वो उनके ख़ौफ से छुपता फिर रहा था। घर में उसकी बीवी और बच्चे बिना किसी सहारे के ही थे जिनकी अब उसे बेहद चिंता होने लगी थी।

सूरज पश्चिम दिशा में अस्त हो चुका था और हर तरफ शाम का धुंधलका छाने लगा था। जगन सबकी नज़रों से खुद को बचाते हुए उस तरफ तेज़ी से बढ़ता चला जा रहा था जिस तरफ दादा ठाकुर के आमों के बाग थे। यूं तो वहां पर जाने के लिए साफ सुथरा रास्ता था लेकिन क्योंकि उसे सबकी नज़रों से खुद को छुपाए रखना था इस लिए वो लंबा चक्कर लगाते हुए बाग़ की तरफ बढ़ रहा था। वो उस सफ़ेदपोश आदमी से मिलना चाहता था जिसके इशारों पर आज कल वो काम कर रहा था।

जगन ने उस वक्त थोड़ी राहत की सांस ली जब वो आमों के बाग़ में आ गया। यहां पर घने पेड़ पौधे थे और शाम घिर जाने की वजह से अंधेरा भी नज़र आ रहा था। ऐसे में किसी के द्वारा उसको देख लिया जाना इतना आसान नहीं था और यही उसके लिए राहत वाली बात थी। ख़ैर बाग़ में दाखिल होते ही वो सावधानी से उस तरफ बढ़ चला जिस तरफ अक्सर उसे सफ़ेदपोश मिला करता था। जल्दी ही वो उस जगह पर आ गया और हल्के अंधेरे में वो इस उम्मीद में चारो तरफ नज़रें घुमाने लगा कि शायद उसे कहीं पर वो सफ़ेदपोश व्यक्ति नज़र आ जाए लेकिन ऐसा न हुआ। जैसे जैसे समय गुज़र रहा था उसके चेहरे पर बेचैनी के साथ साथ चिंता और परेशानी भी बढ़ती जा रही थी।

काफी देर हो जाने पर भी जब जगन को वो सफ़ेदपोश कहीं नज़र ना आया तो वो हताश सा हो कर वापस चल पड़ा। इतना तो उसे भी पता था कि सफ़ेदपोश बाग़ में हर वक्त बैठा नहीं रहता था और जब भी उसे मिलना होता था तो वो अपने काले नकाबपोश व्यक्ति द्वारा उस तक ख़बर भेजवा देता था। ख़ैर निराश और परेशान हालत में जगन बाग़ से निकल कर वापस उसी रास्ते की तरफ बढ़ चला था जिस तरफ से वो आया था। अभी वो कुछ ही दूर चला था कि तभी उसे अजीब तरह की हलचल महसूस हुई जिसके चलते वो बुरी तरह डर गया। उसके दिल की धड़कनें मानों रुक ही गईं। अभी वो अपनी धड़कनों को नियंत्रित करने का प्रयास ही कर रहा था कि तभी दो तरफ से तीन आदमी लट्ठ लिए एकदम से उसके क़रीब आ गए।

तीन आदमियों को यूं किसी जिन्न की तरह अपने क़रीब प्रगट हो गया देख जगन की गांड़ फट के हाथ में आ गई। एक तो वैसे ही वो डरा हुआ था दूसरे तीन तीन लट्ठधारियों को देखते ही उसे ऐसा लगा जैसे न चाहते हुए भी उसका मूत निकल जाएगा।

"क..कौन हो तुम लोग???" फिर उसने अपनी हालत को काबू करने का प्रयास करते हुए उन तीनों को बारी बारी से देखते हुए घबरा कर पूछा।

"तुम्हारे सिर पर मंडराती हुई तुम्हारी मौत।" एक लट्ठधारी ने अजीब भाव से कहा____"आख़िर पकड़ में आ ही गया आज।"

"क..क्या मतलब??" जगन की सिट्टी पिट्टी गुम, सूखे गले को उसने अपने थूक से तर करने का प्रयास किया फिर बड़ी मुश्किल से उसके गले से आवाज़ निकली____"अ...आख़िर क..कौन हो तुम लोग, अ...और ऐसा क्यों कह रहे हो??"

जगन की बात का उनमें से किसी ने कोई जवाब नहीं दिया बल्कि तीनों ने पहले एक दूसरे की तरफ देखा और फिर बिजली की तरह झपट पड़े उस पर। जगन को ऐसा लगा जैसे एकदम से उसके सिर पर गाज गिर गई है। वो मारे डर के हलक फाड़ कर चिल्ला उठा था मगर तभी उनमें से एक ने उसके मुख को अपने हाथों से भींच लिया। जगन को तीनों ने पकड़ लिया था और वो उनसे छूटने के लिए जी तोड़ कोशिश करने लगा था मगर छूट नहीं पाया। उसका बुरी तरह से छटपटाना उस वक्त एकदम से शांत पड़ गया जब उनमें से एक ने उसकी आंखों के सामने तेज़ धार वाला खंज़र दिखाते हुए ये कहा था कि अब अगर चीखा चिल्लाया तो ये खंज़र हलक में घुसेड़ दूंगा।

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मैं जानता था कि ऐसे माहौल में मेरा हवेली से अकेले निकालना कहीं से भी उचित नहीं था मगर अब मैं इसका क्या करता कि मुझसे सब्र ही नहीं हो रहा था। मेरे अंदर आक्रोश, गुस्सा और बदले की आग इस क़दर तांडव सा कर रही थी जिसे काबू में रख पाना अब मेरे बस में नहीं था। पिता जी ने जो पिस्तौल मुझे दिया था उसे ले कर मैं हवेली से निकल आया था और इस बात का ख़ास ध्यान रखा था कि किसी की नज़र मुझ पर न पड़े। शाम का अंधेरा मेरे लिए बेहद उपयोगी साबित हुआ था जिसके चलते हवेली से बाहर निकल आने में मुझे कोई समस्या नहीं हुई थी।

मैं एक गमछा ले रखा था जिससे मैंने अपना चेहरा ढंक लिया था और पैदल ही चलते हुए उस तरफ आ गया था जहां से एक रास्ता नदी की तरफ जाता था। यहां पर रुक कर अभी मैं इधर उधर देखने ही लगा था कि तभी मेरी नज़र एक साए पर पड़ी। साए को देख कर मेरे जबड़े भिंच गए और साथ ही मेरे अंदर गुस्से में इज़ाफा होने लगा। मैं अपनी जगह पर बेख़ौफ खड़ा उस साए को देख ही रहा था कि तभी मैं हल्के से चौंका। ऐसा इस लिए क्योंकि साया मुझे देखने के बाद भी नहीं रुका था और मेरी ही तरफ बढ़ा चला आ रहा था। अंधेरा इतना भी नहीं था कि कुछ दूरी का दिखे ही नहीं। जल्दी ही वो साया मेरे क़रीब आ गया।

"नमस्ते छोटे कुंवर।" वो साया मेरे पास आते ही अदब से बोला तो मैं उसे पहचान गया। वो मेरा ही ख़बरी था। उसके नमस्ते कहने पर मैंने हल्के से सिर हिलाया और फिर कहा____"इस तरह कहां घूमते फिर रहे हो तुम?"

"आपके ही काम में लगा हुआ था कुंवर।" उस व्यक्ति ने कहा जिसका नाम मंगू था____"और एक अच्छी ख़बर देने के लिए आपके ही पास हवेली आ रहा था कि आप यहीं मिल गए मुझे।"

"कैसी ख़बर की बात कर रहे हो तुम?" मैंने सपाट लहजे में उससे पूछा तो उसने कहा____"आपके कहने पर हम लोग मुरारी के छोटे भाई जगन की खोजबीन में लगे हुए थे।"

"तो क्या मिल गया वो?" मैं उत्सुकता और उत्तेजना के चलते पूछ बैठा।
"हां कुंवर।" मंगू ने गर्मजोशी से कहा____"अभी कुछ देर पहले ही हमने उसे पकड़ा है। हालाकि ये बड़े ही इत्तेफ़ाक से हुआ है लेकिन आख़िर वो मिल ही गया हमें।"

"तो कहां हैं वो?" जगन मिल ही नहीं गया है बल्कि पकड़ में भी आ गया है इस बात ने मेरे अंदर एक अलग ही जोश भर दिया था और गुस्सा भी। मैं अपनी मुट्ठी में उसकी गर्दन दबोचने के लिए जैसे मचल ही उठा।

"आपके आमों वाले बाग़ में जो मकान है न।" मंगू ने जवाब दिया____"हमने उसे वहीं पर पकड़ कर रखा है। संपत और दयाल उसके पास वहीं पर हैं जबकि मैं इस बात की सूचना देने के लिए हवेली जा रहा था कि आप यहीं मिल गए मुझे।"

मंगू की बात सुन कर मेरे होठों पर ज़हरीली मुस्कान उभर आई। मैंने उसे चलने का इशारा किया तो वो मुझे रास्ता दे कर मेरे पीछे पीछे चलने लगा। जल्दी ही मैं मंगू के साथ अपने बाग़ वाले मकान में पहुंच गया। मैंने मंगू को रोक कर उसे एक काम सौंपा और जल्द से जल्द आने को कहा तो वो फ़ौरन ही पलट कर चला गया। उसके जाने के बाद मैं मकान के अंदर दाखिल हो गया। अंदर मुझे हल्का उजाला नज़र आया। मैं समझ गया कि संपत और दयाल ने शायद चिमनी जला रखी है।

कुछ ही पलों में मैं उस कमरे में दाखिल हुआ जिसमें संपत और दयाल जगन को कैद किए मौजूद थे। जगन की नज़र जैसे ही मुझ पर पड़ी तो भय से उसका चेहरा पीला पड़ गया। मारे ख़ौफ के वो जूड़ी के मरीज़ की तरह कांपने लगा। संपत और दयाल ने उसे रस्सियों में बांध दिया था जिसके चलते वो कहीं भाग नहीं सकता था। उसे देखते ही मेरे अंदर गुस्से का ज्वालामुखी सा धधक उठा जिसे मैंने बड़ी मुश्किल से शांत करने की कोशिश की।

"म..मुझे म..माफ़ कर दो वैभव।" मैं जैसे ही उसके क़रीब पहुंचा तो जगन ने भयभीत हो कर ये कहा। उसके मुख से जैसे ही मैंने ये सुना तो मुझे एकदम से गुस्सा आ गया और मैंने खींच के एक थप्पड़ उसके गाल पर जड़ दिया जिससे वो वहीं उलट गया।

"वैभव नहीं।" मैंने उसको गिरेबान से पकड़ कर उठाते हुए गुस्से में कहा____"छोटे ठाकुर बोल, छोटे ठाकुर। वैभव कहने का अधिकार खो दिया है तूने।"

मेरे ख़तरनाक तेवर देख जगन की हालत और भी ख़राब हो गई। उसके मुख से कोई आवाज़ न निकली। तभी मैंने देखा कि मारे दहशत के उसका पेशाब छूट गया। कमरे के फर्श पर उसका पेशाब फैलता जा रहा था। ये देख मुझे उसके ऊपर और भी गुस्सा आ गया।

"अभी तो पेशाब ही निकला है तेरा।" मैं उसे छोड़ कर उससे दूर हटते हुए बोला____"जल्दी ही तेरी गांड़ से टट्टी भी इसी तरह निकलेगी। मन तो करता है कि इसी वक्त तेरी जान ले लूं मगर नहीं उससे पहले तू किसी रट्टू तोते की तरह वो सब बताएगा जो जो तूने कुकर्म किए हैं।"

इससे पहले कि वो कुछ बोलता मैं पलटा और संपत तथा दयाल की तरफ देखते हुए कहा___"मंगू के आने के बाद इसे घसीटते हुए इसके गांव ले चलना और हां इस बात की ज़रा भी परवाह मत करना कि घसीटने की वजह से इसकी क्या दुर्गति हो जाएगी।"

ये कह कर मैं बाहर आ गया। असल में मुझे इतना गुस्सा आया हुआ था कि मैं जगन के साथ कुछ भी बुरा कर सकता था जबकि फिलहाल उसका ज़िंदा रहना ज़रूरी था। बाहर आ कर मैं लकड़ी के एक छोटे से तख्त पर बैठ गया और मंगू के आने का इंतजार करने लगा। क़रीब बीस मिनट बाद मंगू आया जोकि भुवन के साथ उसकी मोटर साईकिल पर ही था। भुवन ने मुझे अदब से सलाम किया तो मैंने उसे चलने का इशारा किया और मंगू को पीछे आने को कहा।

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सरोज काकी गुमसुम सी बैठी हुई थी। उसके मन मस्तिष्क में हवेली में हुई घटना से संबंधित ही बातें चल रहीं थी। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि हवेली में इतनी बड़ी घटना घट गई है। जब से उसने इस घटना के बारे में सुना था तब से उसके मन में सोच विचार चालू था। यही हाल उसकी बेटी अनुराधा का भी था, बल्कि अगर ये कहा जाए तो ज़्यादा बेहतर होगा कि उसका तो बुरा ही हाल था। ये अलग बात है कि वो अपने हाल को दिल के हाल की ही तरह अपनी मां को ज़ाहिर नहीं होने दे रही थी।

"ऐसे कब तक बैठी रहेगी मां?" अनुराधा ने उदास भाव से अपनी मां की तरफ देखते हुए पूछा____"खाना नहीं बनाएगी क्या? अनूप कई बार कह चुका है कि उसे भूख लगी है।"

"उसके लिए तू ही कुछ बना दे अनु।" सरोज ने बुझे बन से कहा____"और अपने लिए भी। मुझे तो बिल्कुल ही भूख नहीं है।"

अपनी मां की बात सुन कर अनुराधा ने मन ही मन कहा____'भूख तो मुझे भी नहीं है मां।' और फिर वो अनमने भाव से रसोई की तरफ बढ़ गई। एक चिमनी आंगन में उजाला करने के लिए जल रही थी जबकि दूसरी चिमनी ले कर अनुराधा रसोई में चली गई। उसका छोटा भाई अनूप अपनी मां के पास ही एक खिलौना लिए बैठा था।

सरोज के ज़हन से हवेली की घटना जा ही नहीं रही थी। बार बार उसके ख़्यालों में वैभव भी आ जाता था जिसके बारे में सोच कर उसे बड़ा दुख हो रह था। अभी वो ये सब सोच ही रही थी कि तभी घर के बाहर किसी वाहन की आवाज़ उसे सुनाई दी। उसे ऐसा प्रतीत हुआ जैसे कोई वाहन उसके घर के बाहर ही आ कर रुक गया है। शाम के वक्त किसी वाहन के बारे में सोच सरोज को थोड़ा अजीब सा लगा क्योंकि उसके मन में हवेली की घटना भी चल रही थी। सरोज के अंदर एक भय सा पैदा हो गया। एक तो वैसे भी उसका घर गांव से बाहर एकांत में बना हुआ था इस लिए अगर कोई ऐसी वैसी बात हो जाती तो उसकी मदद के लिए कोई आ भी नहीं सकता था।

सरोज फ़ौरन ही उठ कर खड़ी हो गई और बाहर वाले किवाड़ को देखने लगी। उसके मन में तरह तरह के ख़याल आने लगे थे। तभी किसी ने बाहर वाला किवाड़ बजाया तो सरोज एकदम से घबरा गई। उसे समझ न आया कि शाम के इस वक्त कौन आया होगा? किवाड़ बजाने की आवाज़ रसोई तक भी गई थी जिसे अनुराधा ने भी सुन लिया था।

"बाहर कोई आया है क्या मां?" अनुराधा ने रसोई के अंदर से ही पूछा।
"लगता तो ऐसा ही है अनु।" सरोज ने अपनी घबराहट को छुपाते हुए कहा____"रुक देखती हूं कौन है बाहर। तू रसोई में ही रह।"

कहने के साथ ही सरोज दरवाज़े की तरफ बढ़ चली। धड़कते दिल के साथ अभी वो कुछ ही क़दम चली थी कि किवाड़ फिर से बजाया गया और साथ ही एक मर्दाना आवाज़ भी आई। सरोज ने महसूस किया कि आवाज़ जानी पहचानी है लेकिन किसकी है ये उसे ध्यान में नहीं आ रहा था। ख़ैर कुछ ही देर में उसने जा कर दरवाज़ा खोला तो देखा बाहर भुवन खड़ा था और साथ ही उसके पीछे कुछ और भी लोग थे।

"तुम भुवन हो ना?" सरोज ने भुवन को देखते हुए पूछा तो भुवन ने हां में सिर हिलाते हुए कहा____"हां काकी मैं भुवन ही हूं। वो बात ये है कि छोटे ठाकुर आए हैं।"

"क..क्या तुम वैभव की बात कर रहे हो बेटा?" सरोज को जैसे यकीन ही न हुआ था। उसके पूछने पर भुवन ने एक बार फिर से हां में सिर हिलाया और एक तरफ हट गया। वो जैसे ही हटा तो सरोज की नज़र कुछ ही दूरी पर खड़ी मोटर साईकिल पर पड़ी जिसमें मैं बैठा हुआ था।

"तुम वहां क्यों बैठे हो वैभव बेटा?" सरोज ने व्याकुल भाव से कहा____"अंदर आओ न।"
"नहीं काकी।" मैंने कहा____"मैं यहीं पर ठीक हूं। असल में इस वक्त मेरे यहां आने की एक ख़ास वजह है।"

"कोई भी वजह हो।" सरोज ने कहा____"मुझे इससे मतलब नहीं है। तुम बस अंदर आओ।"
"ज़िद मत करो काकी।" मैंने सपाट लहजे में कहा____"मैंने कहा न कि मैं यहीं पर ठीक हूं। ख़ैर मैं तुम्हें ये बताने आया हूं कि जिसने मुरारी काका की हत्या की थी उसे पकड़ लिया है मैंने और उसको ले कर आया हूं।"

मेरी बात सुनते ही सरोज काकी एकदम बुत सी बनी खड़ी रह गई। मैं समझ सकता था कि ये बात सुनते ही उसके अंदर भीषण हलचल सी मच गई होगी। अभी मैं उसके मुख से कुछ सुनने का इंतज़ार ही कर रहा था कि तभी मेरी नज़र उसके पीछे अभी अभी आई अनुराधा पर पड़ी। अपनी मां के पीछे खड़ी वो एकटक मुझे ही देखने लगी थी। इधर उसको देखते ही मेरे दिल की धड़कनें एकाएक ही तेज़ हो गईं। मैंने महसूस किया कि वो मुझसे अपनी नज़रें नहीं हटा रही है। आम तौर पर पहले ऐसा नहीं होता था। यानि इसके पहले जब भी हमारी नज़रें आपस में मिलती थीं तो वो अपनी नज़रें झुका लेती थी जबकि इस वक्त वो बिना पलकें झपकाए मुझे ही देखे जा रही थी। उसके चेहरे पर ज़माने भर की उदासी और दुख संताप नज़र आया मुझे।

"य..ये तुम क्या कह रहे हो बेटा?" तभी सरोज ने लड़खड़ाती आवाज़ में कहा____"क्या सच में तुम मेरे मरद के हत्यारे को पकड़ कर साथ ले आए हो?"

"मैंने तुमसे वादा किया था न काकी कि मुरारी काका के हत्यारे को एक दिन ज़रूर तुम्हारे सामने ले कर आऊंगा।" मैंने अनुराधा से नज़र हटा कर कहा____"इस लिए आज मैं उसे ले कर आया हूं। मुझे यकीन है कि हत्यारे की शकल देखने के बाद तुम्हें उसके द्वारा की गई जघन्य हत्या पर भरोसा नहीं होगा लेकिन सच तो सच ही होता है न। एक और बात, ये वो हत्यारा है जिसने मुरारी काका की हत्या तो की ही साथ में इसने हवेली के साथ भी गद्दारी की है। ऐसे व्यक्ति को ज़िंदा रहने का अब कोई हक़ नहीं है।"

मेरी बातें सुन कर सरोज काकी हैरत से देखती रह गई मेरी तरफ। मेरी नज़र एक बार फिर से उसके पीछे खड़ी अनुराधा पर पड़ी। वो अब भी मुझे ही देखे जा रही थी। ऐसा लग रहा था मानों उसने मुझे कभी देखा ही न रहा हो।

तभी वातावरण में कुछ आवाज़ें सुनाई दी तो हम सबका ध्यान उस तरफ गया। संपत, दयाल और मंगू घसीटते हुए जगन को लाते नज़र आए। जब वो क़रीब आ गए तो मैने देखा जगन के कपड़े जगह जगह से फट गए थे। मैं समझ गया कि उसकी हालत ख़राब है।

"रहम छोटे ठाकुर रहम।" जगन की नज़र जैसे ही मुझ पर पड़ी तो वो हांफते हुए और दर्द से कराहते हुए बोल पड़ा।

"क्या तुम्हें लगता है कि तुम रहम के क़ाबिल हो?" मैंने कहने के साथ ही सरोज की तरफ देखा और फिर कहा____"काकी, मिलो अपने पति के हत्यारे से। इसी ने अपने बड़े भाई की हत्या की थी, और जानती हो क्यों? क्योंकि इसे अपने भाई की ज़मीन जायदाद को हड़पना था।"

मेरी बात सुनते ही सरोज काकी को मानो होश आया। अनुराधा भी बुरी तरह सन्नाटे में आ गई थी। दोनों मां बेटी जगन को ऐसे देखने लगीं थी मानो वो कोई भूत हो। तभी अचानक सरोज काकी को जाने क्या हुआ कि वो तेज़ी से बाहर निकली और जगन के क़रीब आ कर उसे मारते हुए चीख पड़ी_____"तुमने मेरे मरद की जान ली कमीने? अपने भाई की हत्या करते हुए क्या तेरे हाथ नही कांपे? हत्यारे पापी, मेरी मांग का सिंदूर मिटाने वाले मैं तुझे जिंदा नहीं छोडूंगी।"

सरोज काकी जाने क्या क्या कहते हुए जगन को मारे जा रही थी। उधर जगन जो पहले से ही बुरी हालत में था वो और भी दर्द से कराहने लगा था। अनुराधा अपनी जगह पर खड़ी आंसू बहा रही थी। मैंने भुवन को इशारा किया तो भुवन ने आगे बढ़ कर सरोज काकी को जगन से दूर कर दिया। भुवन के दूर कर देने पर भी सरोज काकी मचलती रही।

"मुझे छोड़ दो भुवन।" काकी रोते हुए चीखी____"मैं इस हत्यारे की जान लेना चाहती हूं। इसने मेरे मासूम से बच्चों को अनाथ कर दिया है। मैं भी इसकी हत्या कर के इसके बच्चों को अनाथ कर देना चाहती हूं। फिर देखूंगी कि इसकी बीवी पर क्या गुज़रती है?"

"शांत हो जाओ काकी।" मैंने कहा____"इसने जो किया है उसकी सज़ा तो इसे ज़रूर मिलेगी लेकिन यहां नहीं बल्कि हवेली में। इसने हमारे दुश्मनों के साथ मिल कर हमारे साथ भी खेल खेला है। इस लिए इसके कुकर्मों का हिसाब हवेली में ही होगा।"

"मुझे माफ़ कर दीजिए भौजी।" जगन ने रोते हुए कहा____"मैं वो सब करने के लिए मजबूर हो गया था। कर्ज़ के चलते मेरी सारी ज़मीनें गिरवी हो गईं थी। एक एक पाई के लिए मोहताज हो गया था मैं। चार चार बच्चों के साथ अपना पेट भरना बहुत मुश्किल हो गया था। भैया को बता भी नहीं सकता था कि कर्ज़ के चलते सारी ज़मीनें मैंने गिरवी रख दी हैं। अगर भैया को पता चलता तो वो बहुत गुस्सा होते। मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करूं? फिर एक दिन एक अजीब सा आदमी मिला जिसने मुझे इन सारी परेशानियों से मुक्त होने का उपाय बताया। मैं अपनी परेशानियों से मुक्त तो होना चाहता था लेकिन अपने भाई की जान की कीमत पर नहीं। मैंने बहुत सोचा लेकिन इसके अलावा दूसरा कोई चारा नज़र नहीं आया। कहीं और से कोई कर्ज़ भी नहीं मिल रहा था। गांव के बड़े लोग कर्ज़ देने से मना कर चुके थे, देते भी कैसे? मेरे पास तो अब ज़मीनें भी नहीं बची थीं जिससे वो अपनी वसूली कर लेते। मजबूर हो कर मुझे उस अजीब आदमी की बात माननी ही पड़ी। उसने बताया कि ऐसा करने से मेरे सारे दुख दूर हो जाएंगे और साथ ही अपने भाई की हत्या करने से भी मुझे कुछ नहीं होगा। क्योंकि भैया की हत्या का इल्ज़ाम छोटे ठाकुर पर लगा दिया जाता।"

"नीच इंसान।" सरोज काकी जगन को मारने के लिए झपटी ही थी कि भुवन ने उसे पकड़ लिया, जबकि वो मचलते हुए बोली____"मुझे छोड़ो भुवन, मैं इस हत्यारे की जान ले लेना चाहती हूं। इसने अपने भले के लिए मेरा सब कुछ बर्बाद कर दिया है।"

"इसके गंदे खून से अपने हाथ मैले मत करो काकी।" मैंने कठोरता से कहा____"इसने जो किया है उसकी सज़ा इसे हवेली में मिलेगी। ख़ैर, मैंने अपना वादा पूरा कर दिया है काकी। तुमसे बस इतना ही कहूंगा कि आज कल हालात बहुत ख़राब हैं इस लिए बेवक्त घर से बाहर मत निकलना। बाकी तुम्हारी ज़रूरतें पूरी करने के लिए भुवन है। ये तुम सबका ध्यान रखेगा। अच्छा अब चलता हूं, अपना ख़याल रखना।"

कहने के साथ ही मैंने अनुराधा की तरफ देखा तो पाया कि वो मुझे ही देख रही थी। उसकी आंखों में आसूं थे और चेहरे पर ज़माने भर का दर्द। ऐसा लगा जैसे वो मुझसे बहुत कुछ कहना चाहती है मगर अपनी बेबसी के चलते वो चुप थी। मैंने उससे नज़रें हटा ली और भुवन को चलने का इशारा किया।

कुछ ही पलों में हमारा काफ़िला फिर से चल पड़ा लेकिन इस बार ये काफ़िला हवेली की तरफ चल पड़ा था। संपत, दयाल और मंगू जगन को घसीटते हुए फिर से ले चले थे। जगन की हालत बेहद ख़राब थी। उसके पैरों में अब मानों जान ही नहीं थी। वो लड़खड़ाते हुए चल रहा था। कभी कभी वो गिर भी जाता था जिससे तीनों उसे घसीटने लगते थे। कच्ची मिट्टी पर जब शरीर रगड़ खाता तो वो दर्द से चिल्लाने लगता था और फिर जल्दी ही उठने की कोशिश करता। मैंने मंगू से कह दिया था कि अब उसे ज़्यादा मत घसीटे क्योंकि ऐसे में उसकी जान भी जा सकती थी। फिलहाल उसका ज़िंदा रहना ज़रूरी था। उससे बहुत कुछ जानना शेष था।


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Behad shandar update he TheBlackBlood Shubham Bhai,

Jagan ke rup me sirk ek sira mila he Vaibhav ko...........lekin mujhe lagta he, jagan se koi khaas jankari nahi milne wali..... kewal use nakabposh ka pata he....wo kaun he.........kaha se aaya he...........use kuch nahi pata..........

Keep posting Bhai
 
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