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Fantasy Aryamani:- A Pure Alfa Between Two World's

nain11ster

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भाग:–141


आर्यमणि अपने बड़े से ग्रुप के साथ बैठा। हर कोई बस इधर–उधर की बातें ही कर रहा था। तभी हिम–मानव का एक छोटा सा समूह आर्यमणि के नजदीक पहुंचा। उसका मुखिया आगे आते.... “मेरेको पहचाने की नही।”

आर्यमणि:– भोसला तुम, वहां छत पर तो हमे बोलने से मना किये था।

भोसला वही अपराधी था जो हिम–मानव के देश रोलफेल पर सबसे पहले मिला था। भोसला, आर्यमणि के ओर हाथ बढ़ाते.... “अपन तो बस ऐसे ही बोल दिया, दिल पर नही लेने का।”

रूही:– यहां आने का कारण बताओ भोसला....

भोसला:– दबंग लोगों के पास आने का क्या कारण होता है। उनकी गैंग में सामिल होना।

आर्यमणि:– तुम्हे सामिल करने से मेरा क्या फायदा होगा?

भोसला:– हम मिलकर यहां की सत्ता को हिला देंगे। तुम्हे अपने देश लौटना है और मुझे अपने लोगों के लिये सतह तक जाने की आजादी चाहिए। दोनो की मांगे एक ही तरह की है, तो क्यों न साथ मिलकर काम किया जाये।

आर्यमणि:– देखो दोस्त ऊपर सतह पर नही जाने देने का निर्णय यहां के सत्ता और प्रशासन का निजी मामला है और मैं कानून का उलंघन नही कर सकता। और न ही मैं यहां अपने ताकत के दम पर किसी को झुकाने आया हूं। हमे बस इस जगह से बाहर जाना है।

भोसला:– बाहर जाने के लिये सतह पर जाना होगा न। इसमें मैं तुम्हारी मदद कर सकता हूं।

आर्यमणि:– तुम्हारा धन्यवाद। मैं यहां के अदालत में अपील करूंगा और मुझे विश्वास है कि वहां मुझे गंभीरता से सुना जायेगा। अब तो यहां से कानूनी तरीके से ही बाहर जायेंगे।

भोसला यथा संभव आर्यमणि को मानने की कोशिश करता रहा लेकिन आर्यमणि अपने विचारों का पक्का था, वह नही माना। भोसला अंत में खाली हाथ ही वहां से लौटा। भोसला के जाने के बाद एक बार फिर आर्यमणि अपने ग्रुप के साथ बात–चित में लग गया। कुछ समय और बीता होगा की सबने जैसे मेहसूस किया की वह जगह पूरी तरह से शांत हो गयी हो। ऐसा हो भी क्यों न उस जेल का वार्डन कोको अपने कुछ लोगों के साथ वॉकिंग एरिया में पहुंच चुका था। कोको के वहां पहुंचते ही बिलकुल सन्नाटा पसर गया हो जैसे। हिम–मानव की आवाज बिलकुल बंद और मिलो तक फैले उस वॉकिंग एरिया में जितने भी अपराधी थे, सब सीधा अपने सेल में चले गये।

आर्यमणि:– अचानक यहां इतनी शांति क्यों पसर गयी?

रूही, कोको के ओर उंगली करती.... “जेल के वार्डन को देखकर सब अपना मुंह बंद करके भाग गये।

कर्नल नयोबि:– पहला जेल है जहां चांद मुट्ठी भर सिपाही को देखकर लाखों अपराधी अपना मुंह बंद करके भाग गये। इतना दबदबा...

“अभी तुमने हमारा दबदबा देखा ही कहां है खून पीने वाले कीड़े। तुम मेरी जेल में बोल रहे हो, उसमे भी केवल मेरी मर्जी है।”... रूबाब और गुरूर के साथ कोको अपनी बात कहता उन तक पहुंचा। पहुंचने के साथ ही आर्यमणि को घूरते.... “सुनो रूप बदल इंसान, कल तुमने यहां जो कुछ भी किया वह हमारे समझ से पड़े था। मुझे बताओ कैसे तुम लोग जड़ों के बीच छिप गये और हमारे समुदाय के लोगों को भी जड़ों में कैद करके ना जाने उनके साथ क्या किये?”

आर्यमणि:– क्यों तुम्हारे कैदियों ने कुछ बताया नही की उनके साथ पहले क्या हुआ और जड़ों की कैद से जब रिहा हुये तब क्या सोच रहे थे।

जेल का वार्डन कोको..... “यदि किसी एक कैदी को उधारहण माने जैसे कि कुरुधा। कुरूधा को सबसे पहले मार पड़ी थी। उसके पाऊं पर मानो किसी हथौड़े को पटका गया था। मल्टीपल फ्रैक्चर ठीक होने में कम से कम 6 महीने का वक्त लगता। उसके पाऊं तोड़ने तक भी तुम्हारे साथी नही रुके। तकरीबन 4 क्विंटल के हिम–मानव को तुम्हारी वो बौनी लड़की ने दोनो हाथ से उठाया और किसी बॉल की तरह एक किलोमीटर दूर फेंक दी। नतीजा स्पाइनल कॉलम की हड्डियां इधर–उधर हो गयी। 8 पसलियां गयी। पसलियों को ठीक होने में कम से कम 3 महीने का वक्त लगता और स्पाइन की हड्डियां बनती भी या नहीं, वो तो डॉक्टर ही बता सकता था। जब कुरुधा जड़ों की कैद से निकला तब वह पूर्ण रूप से स्वस्थ होकर निकला था। बस मुझे यही तो जानना है, ये हुआ कैसे?”

आर्यमणि:– मेरे लोगों को इस अजीब से देश रोलफेल से बाहर निकालो, फिर मैं तुम्हे बता दूंगा।

कोको:– रोलफेल से बाहर निकालना मेरे हाथ में नही। लेकिन इस जेल से बाहर निकालकर तुम्हारी मुलाकात उनसे करवा सकता हूं, जो तुम्हे इस देश से बाहर निकाल सकते हैं।

आर्यमणि:– बदले में तुम्हे क्या चाहिए कोको।

कोको:– बस मुझे इन जड़ों की कहानी समझा दो।

आर्यमणि:– हम पेड़, पौधे, जमीन, हवा इत्यादि अपने पंजों से हील कर सकते हैं। इस से प्रभावित होकर प्रकृति ने हमें एक खास शक्ति प्रदान की है। हम किसी भी जगह से जड़ों को बाहर ला सकते हैं और उनसे अपने मनचाहा काम निकलवा सकते हैं। जैसे की किसी को जड़ों में बांध देना। जड़ों के द्वारा एक साथ कई लोगों को हील कर देना वगैरह वगैरह।

कोको:– अदभुत शक्ति... ठीक है तुम और तुम्हारे लोग मेरे पीछे आओ। मैं तुम सबको यहां से बाहर निकालता हूं।

आर्यमणि उस वार्डन कोको के पीछे चल दिया। कुछ दूर चलने के बाद वार्डन ने एक दरवाजा का सिक्योरिटी लॉक खोला। अंदर से कई सारे सिंगल सीटर गाडियां निकली जैसा की गोल्फ फील्ड में अक्सर देखने मिलता है। आर्यमणि का पूरा ग्रुप उस गाड़ी पर सवार होकर कोको के पीछे चल दिया। कोको की गाड़ी लगभग 5 किलोमीटर दूर तक चली। उसके आगे एक बड़ा सा दरवाजा था। कोको के लोग तुरंत ही उस दरवाजे को खोले। दरवाजा खुलते ही जेल का दूसरा हिस्सा दिखने लगा।

जेल का दूसरा हिस्सा भी अंडरग्राउंड ही था किंतु यहां से कैदियों का मैनेजमेंट होता था। तकरीबन 6000 गार्ड और लाखों गैजेट चारो ओर फैले थे। कोको की गाड़ी इन सब इलाकों से गुजरते हुये फिर किसी दरवाजे पर रुकी। कोको के लोगों ने उस दरवाजे को खोला और वो लोग कोको से अलग होकर अपने काम पर लग गये। कोको दरवाजे के अंदर हाथ दिखाते... “ये मेरा घर, ऑफिस जो कह लो। यहीं मैं तुम्हे उनसे मिलवाऊंगा जो तुम्हे इस देश से बाहर निकाल सकते है।”

रूही, आर्यमणि को देखकर मन के अंदर संवाद करती... “इसके इमोशंस भी इंसान की तरह ही है, जिसका झूठ हम सब मेहसूस कर रहे। फिर इतनी दूर आने का मतलब?”...

आर्यमणि:– वार्डन ही जेल से निकलने का एकमात्र जरिया है। मैं आराम से इस फरेबी की योजना समझता हूं, तुम लोग चौकन्ने रहना और हर बारीकियों पर गौर करना। भूलना मत हम हीरों और नायब पत्थरों के देश में है। हो सकता है इस वार्डन के बल के पीछे खास किस्म के पत्थर का योगदान हो, तभी तो लाखों अपराधी चुप चाप अपने सेल में चले गये।

रूही:– हम्मम ठीक है जान तुम भी चौकन्ने रहना। साला ये पूरी पृथ्वी ही झूठों और फरेबियों से भरी पड़ी है।

कोको:– किस सोच में पड़ गये अंदर नही आओगे क्या?

कोको ने हाथों का इशारा किया और सभी लोग अंदर दाखिल हुये। जैसे ही सभी अंदर दाखिल हुये मात्र 4 लोग बचे। पीछे से वेमपायर और उसकी टीम अंदर घुसते के साथ कहां गयी किसी को पता ही नही चला। बिलकुल नजरों के आगे से जिस प्रकार संन्यासी शिवम गायब हो जाते थे, ठीक उसी प्रकार वेमपायर की टीम के साथ हुआ।

आर्यमणि, आश्चर्य से जेल के वार्डन कोको को देखने लगा। हैरानी की बात तब हो गयी जब अल्फा पैक से ज्यादा हैरान तो वार्डन कोको था। अल्फा पैक को समझते देर न लगी की गायब तो सबको किया गया था, परंतु किसी कारणवश अल्फा पैक गायब नही हुये।

“यहां अभी हुआ क्या? कैसे उन 19 लोगों को आपने जादू से गायब कर दिया?”..... आर्यमणि बिना अपने हाव–भाव बदले पूछा...

अल्फा पैक भी घोर आश्चर्य के बीच.... “कमाल, वाह–वाह क्या कलाबाजी है, वूहु, वाउ” जैसे शब्दों का प्रयोग करके कोको का हौसला अफजाई करने लगे। कोको भी अपनी हैरानी को अपने बेवकूफाना मुश्कुराहटों के पीछे छिपाकर.... “अरे कभी–कभी हम ऐसे ट्रिक कर लेते हैं।”...

आर्यमणि:– बहुत प्यारा जादू। चलो अब मेरे साथियों को जादू से वापस लेकर आओ।

कोको:– मैं, वो ... अभी एक मिनट दो... अम्म्म्म... एक काम करो.... तुम लोग अब वापस जाओ, बाद में वो लोग भी पहुंच जायेंगे।”

कोको अपनी हिचकिचाहटों के बीच लगातार अल्फा पैक को भी पोर्ट करने की कोशिश कर रहा था लेकिन वो लोग पोर्ट हो नही रहे थे। हां जब भी कोको पोर्ट का कमांड देता, अल्फा पैक का एम्यूलेट चमकने लगता। सभी अपने कपड़ों के पीछे छिपे एम्यूलेट के बदलाव को मेहसूस कर सकते थे।

आर्यमणि:– क्या हुआ कोको, इतनी हिचकिचाहट के साथ पसीने क्यों आ रहे है?

इस से पहले की कोको कुछ जवाब देता। 19 नीले रंग की रौशनी की लकीरें कोको के सीने से कनेक्ट होकर उसके सामने लगी। कोको अपने दोनो बांह फैलाकर उस रौशनी को अपने भीतर स्वागत करने लगा। अलबेली यह पागलपन देखकर.... “दादा (आर्यमणि) यहां चल क्या रहा है?”...

आर्यमणि:– मुझे भी उतना ही पता है जितना तुम्हे अलबेली। अब रौशनी का खेल खत्म हो तब न इस गधे से कुछ पूछूं।

इवान:– जीजू 19 वेमपायर को गायब किया था और 19 रौशनी की लकीरें भी है।

आर्यमणि:– हां यार... कहीं ये पागल, नयोबि और उसकी टीम को निगल तो नही रहा।

इवान:– हो सकता है। जीजू नयोबि मरा फिर तो कैरोलिन के साथ–साथ बेमपायर नयोबि का बदला लेने भी पहुंच जायेंगे। इस बार तो सबको पता होगा की नयोबि किसके साथ था।

रूही:– सब शांत हो जाओ। रौशनी की लकीरें समाप्त हो रही है।

लगभग एक मिनट तक रौशनी कोको के अंदर समाती रही। जैसे ही कोको पूरी रौशनी समेटा, उसकी आंखें नीली हो चुकी थी। हाथों के पंजे से क्ला निकल आये और मुंह फाड़ा तो अंदर नुकीले दांत। कोको का शरीर भी मेटलिक दिख रहा था जो जलते हुये मेटल समान बिलकुल लाल था। तेज गरज के साथ कोको अल्फा पैक को घूरते.... “कास तुम चारो की शक्तियां भी मैं अपने अंदर समा सकता। लेकिन कोई न, तुम्हारी शक्तियां मेरी न हुई तो न सही, तुम्हारे पास भी नही रहने दूंगा। तुम सबको मरना होगा।”...

आर्यमणि:– बैठकर बात कर लेते है यार। ये मरने और मारने की बातें क्यों। साथ मिलकर काम करेंगे...

कोको:– मैं अकेला ही काम करता हूं। मुझे किसी निर्बल की जरूरत नहीं...

कहते हुये कोको ने अपना बड़ा सा पंजा आर्यमणि पर चला दिया। एक तो कोको का साइज डबल ऊपर से उसके चौड़े पंजे। आर्यमणि, कोको के हमले से बचने के लिये काफी तेज झुका और गुलाटी मारकर दूर गया। कोको अपना लंबा वजनी शरीर के साथ अब काफी ज्यादा तेज भी हो चुका था। इतना तेज की वह अपने एक हाथ के तेज पंजे से एक बार में रूही और अलबेली को घायल कर चुका था। बचने की तो दोनो ने पूरी कोशिश की किंतु बच ना पायी।

बड़े–बड़े नाखून शरीर के जिस हिस्से में लगे वहां 4 इंच गहरा गड्ढा हो गया और उसके बीच का मांस क्ला के अंदर घुसा था। रूही और अलबेली की दर्द भरी चीख निकल गयी। दोनो को घायल देख इवान पागलों की तरह दहाड़ते हुये छलांग लगा चुका था। इवान अपना पंजा खोल कोको के चेहरे को निशाना बनाया वहीं कोको का पंजा इवान का गर्दन देख रहा था। इस से पहले की दोनो एक दूसरे पर हमला करते बीच से आर्यमणि छलांग लगाया और इवान को अपने बाजुओं में समेटकर कोको से काफी दूर किया।

इवान खड़ा होकर तेज दहाड़ा। उसकी दहाड़ के जवाब में आर्यमणि भी दहाड़ा। इवान अपनी जगह बिलकुल शांत था लेकिन तभी कोको का पूरा पंजा आर्यमणि के पीठ को 5 लाइन में फाड़ चुका था। आर्यमणि के मुंह से बस चीख नही निकली लेकिन दर्द के कारण आंखों के दोनो किनारे पानी भर गया था।

दूसरा हमला हो, उस से पहले ही आर्यमणि ने इवान को दूर धकेला और तेजी से सामने मुड़कर खड़ा हो गया। कोको भी एक हमला के बाद दूसरा हमला कर दिया। कोको ना जाने कितने हिम–मानव की शक्तियों को बटोर चुका था। अब तो उसमे वेमपायर की शक्तियां भी थी। लिहाजा उसका हमला काफी ताकतवर था।

किंतु पैक के घायल होने की वजह से आर्यमणि के खून का हर कतरा उबाल मार रहा था। आर्यमणि पर गुस्सा पूरा हावी हो चुका था। अपने ओर बढ़े डेढ़ फिट लंबा और आधा फिट चौड़ा पंजे पर अपना पंजा चला दिया। दोनो के पंजे ठीक वैसे ही टकराये जैसे दो लोग आपस में तली देते हो। लेकिन ये ताली पूरी ताकत से बजाया गया था।

जैसे ही दोनो के पंजे टकराए थप की इतनी गहरी ध्वनि निकली की उस बिल्डिंग की दीवारों में क्रैक आ गया। दोनो की हथेली झूल गयी और कलाई की हड्डी चूड़–चूड़ हो चुकी थी। आर्यमणि दर्द बर्दास्त करते अपने दूसरे हाथ के पंजे से कलाई को थमा और बिना वक्त गवाए खुद को हील किया। वहीं कोको दर्द से बेहाल अपना कलाई पकड़ा था, पर वह खुद को हील नही कर सकता था।

कोको अपने ही दर्द में था और आर्यमणि हील होने के साथ ही बिना कोई रहम दिखाये तेज दौड़कर उछला और पूर्ण एनर्जी पंच चला चुका था। कोको भी अपने ऊपर हमला होते देख चुका था। वह भी दूसरे हाथ से तेज मुक्का चलाया। सीन कुछ ऐसा था कि 15 फिट के आदमी के सामने 6 फिट का आर्यमणि हवा में ठीक सामने था। ऐसा लगा जैसे कोई बच्चा उछलकर अपने छोटे से हाथ से कोको के ऊपर हमला कर रहा हो।

कोको भी अपना पंच को ठीक आर्यमणि के मुक्के के ऊपर चलाया था। दोनो के मुक्के आपस में टकराये। आर्यमणि का मुक्का इतना छोटा था कि वह कोको के मुक्के के थी बीच में पड़ा। दोनो के टकराने से एक बार फिर विस्फोट जैसी आवाज हुई। और क्या परिणाम निकल कर आया था।

जैसे रेत के बने मुक्के पर किसी ने पूरी ताकत के साथ हथौड़ा चला दिया हो। आर्यमणि का मुक्का कोको के हाथ को पूरा फाड़ते हुये आगे बढ़ा। हाथ का मांस, लोथरे के समान लटक गये। बीच की पूरी हड्डी पाउडर समान कण में बदलकर हवा में बिखर गयी। पंजा इतना तेज था की हाथ को फाड़ते हुये सीधा बायें कंधे पर लगा और ऐसा नतीजा हुआ जैसे किचर के मोटे ढेर पर किसी ने 10 मंजिल ऊपर से एक ईंट गिरा दिया हो।

जैसे ही आर्यमणि का मुक्का कोको के कंधे से टकराया वहां का पूरा हिस्सा ही फुहार बनकर हवा में मिल गया। कोको के ऊपरी शरीर के बाएं हिस्से का पूरा परखच्चा उड़ा डाला। एनर्जी पंच इतना खरनाक था कि कोको के मौत की चीख निकलने से पहले ही उसकी मौत आ चुकी थी। सर तो धर पर ही था, लेकिन कमर तक के बाएं हिस्सा गायब होने की वजह से गर्दन बाएं ओर के हिस्से में ऐसे घुसी थी कि धर पर सर नजर ही नहीं आ रहा था।
बहुत ही शानदार लाजवाब अपडेट भाई
 
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सर्वप्रथम रूही और आर्य को उनके पहले संतान के लिए हार्दिक बधाई।
अपडेट न सिर्फ खुबसूरत था बल्कि नॉलेज और इमोशनल से भरपूर भी था। रूही की मां बनने वाला प्रसंग और उसका अलबेली के साथ हुई बातें बहुत ही खूबसूरत थी।
प्रसव पीड़ा अत्यंत ही पीड़ादायक और असहनीय होता है। जब महिला बच्चे पैदा करती है तो उस वक्त का दर्द एक साथ करीब बीस हड्डियों के टूटने के दर्द के समान होता है। और यह भी सत्य है कि अगर ऐसा दर्द मर्द को भोगना पड़ जाए तो उसकी मृत्यु हो सकती है। बल्कि यूं कहा जाए मर्द की मृत्यु ही हो जायेगी।

अलबेली की बातें कि अमेया जन्म के समय इसलिए नही रोई क्योंकि उसके हिस्से का रोना भी हम बहनो ने कर लिया है , दिल भर आने वाला था।

जलीय जीव - जन्तु और उनके इस अनोखी दुनिया पर आधारित यह अध्याय सच मे काबिलेतारीफ था।
जल - थल - नभ सभी जगहों पर रहने वाले जीव - जन्तु और वानस्पतिक चीजें प्रकृति के संतुलन को बनाए रखने मे अपना योगदान प्रदान करती है। कोई भी चीज कुदरत ने अकारण पैदा नही किया है।

काल जीव शोधक प्रजाति का वो जीव था जो समन्दर के कूड़े कचरे को अपना भोजन बनाकर समन्दर को स्वच्छ रखने मे मदद करती थी। लेकिन जिस तरह से वातावरण दूषित हो रहा है उससे इनके अस्तित्व पर भी खतरा आ बना है।
आर्य , विजयदर्थ की बात मानकर और परोपकार की भावना से प्रेरित होकर इन प्रजाति का इलाज करने के लिए राजी हुआ और साथ ही स्वामी विश्वेश की यादों को अपने मेमोरी मे जगह देने के लिए भी हामी भरा।
लेकिन उसे विजयदर्थ की नीयत पर संदेह क्योंकर हुआ ?

यह अपडेट भी बहुत बढ़िया लिखा आपने नैन भाई।
आउटस्टैंडिंग एंड जगमग जगमग।
 

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भाग:–142


जैसे ही आर्यमणि का मुक्का कोको के कंधे से टकराया वहां का पूरा हिस्सा ही फुहार बनकर हवा में मिल गया। कोको के ऊपरी शरीर के बाएं हिस्से का पूरा परखच्चा उड़ा डाला। एनर्जी पंच इतना खरनाक था कि कोको के मौत की चीख निकलने से पहले ही उसकी मौत आ चुकी थी। सर तो धर पर ही था, लेकिन कमर तक के बाएं हिस्सा गायब होने की वजह से गर्दन बाएं ओर के हिस्से में ऐसे घुसी थी कि धर पर सर नजर ही नहीं आ रहा था।

आर्यमणि अपने हाथों पर लगे खून को साफ करते..... “तुम सब ठीक तो हो ना?”

रूही:– हां हम सब हील हो चुके है। तुम्हारी पीठ का क्या हाल है?

आर्यमणि:– शायद हील हो चुका हूं। दर्द नही अब। चलो चलकर नयोबि और उसकी टीम को ढूंढे। मर भी गये हो तो उनकी लाश को ऊपर सतह तक लेकर जाना जरूरी है।

अभी इनकी इतनी ही बातें हुई थी कि कोको के उस ऑफिस का दरवाजा खुल चुका था। किसी ऑफिसर की ड्रेस में भोसला सबसे आगे खड़ा था और उसके पीछे 100 हिम–मानव सेना की टुकड़ी। आर्यमणि और रूही दोनो भोसला को देखने लगे..... “ऐसे हैरानी से नही देखने का। मैं हूं कमांडर इन चीफ भोसला और जाने–अनजाने में तुमने मेरी मदद कर दी है।”...

आर्यमणि:– हां सो तो मैं इस जेलर और तुम्हारे पोस्ट को देखकर समझ चुका हूं कि तुम किसके पीछे थे। वैसे ये जेलर इतना खतरनाक था कि सेना के इतने बड़े अधिकारी को आना पड़ा?

भोसला:– “अरे मत पूछिए आर्यमणि सर, इसने अब तक मेरे 1200 जवानों को ऐसा निर्बल करके अपने इस फैक्टरी से बाहर भेजा की वो फिर कभी बाप बनने लायक नही रहे। पहुंच तो सीधा सेंट्रल मिनिस्ट्री तक की थी। इसका चाचा काउंसिल मिनिस्टर, हमारे हर मूवमेंट की खबर इसे पहले से होती। यहां सबूत के नाम पर ढेला तक नही मिलता। इसने इतने इन्वेस्टिगेशन ऑफिसर को नपुंसक बनाकर भेजा की गुस्से में इसे मरवाने के लिये साजिश तक रच डाले।”

“लेकिन पता नही इस कोको ने कितनी शक्ति अर्जित कर रखी थी, कोई इसे छू भी नहीं पाया। ऊपर से अंडर कवर ऑपरेशन में आज तक इसके गुनाहों का कोई भी सबूत नही मिला क्योंकि जब भी कोई टीम इसके ऑफिस में घुसने के बाद सबूत जुटने की कोशिश किये वो फिर अपने अंदर के खोये शक्ति को वापस जुटा नही पाये। खैर अब तुम लोग बाहर आ जाओ, हम जरा इसके खिलाफ सबूत जुटा ले, वरना तुम पर एक सरकारी अधिकारी को मारने का मुकदमा चलेगा।

आर्यमणि:– और मेरे लोग (नयोबि और उसकी टीम) जिसे इसने कहीं गायब कर दिया है?

भोसला:– चिंता मत करो वह सुरक्षित है। उन्हे भी ढूंढकर बाहर लता हूं। मोनेसर, आर्यमणि और उसके साथियों का भव्य स्वागत करो।

एक मुलाजिम को खातिरदारी में लगाकर भोसला कोको के किले में घुस गया। तकरीबन 4 घंटे बाद वह नयोबि और उसके टीम के साथ बाहर आया। नयोबि अपने पैड़ो पर ही आ रहा था लेकिन उसकी हालत लूटी–पीटी हुई थी। आते ही आर्यमणि के ऊपर लद गया.... “दोस्त जैसे गन्ने से उसका सारा रस चूस लेते हैं वैसे ही शरीर से सब कुछ चूस लिया।”...

आर्यमणि हंसते हुये.... “कोई नही दोस्त अल्केमिस्ट जिंदाबाद। अपने शरीर को फिर से मोडिफाई करवा लेना।”...

नयोबि:– जेल प्रशासन ने हमारे लिये खून का इंतजाम किया था। किसी से बोलकर 20–30 लीटर खून का इंतजाम करवा दो, वरना भूख से कहीं जान न निकल जाये।

आर्यमणि:– भोसला सर कोई उपाय है?

भोसला:– हमारी जेल में हर किसी के खाने का इंतजाम रहता है। मानेसर इन्हे लेकर जाओ और इनके प्रिय भोजन का इंतजाम करो। आर्यमणि तुम मेरे साथ आओ।

आर्यमणि, भोसला के साथ वापस से कोको के किले में घुसा। भोसला उसे तहखाने में ले जाकर वहां का नजारा दिखाया। पूरे तहखाने में सिशे के मोटे ट्यूब लगे थे, जिसमे किसी प्रकार का द्रव्य भरा था। हर ट्यूब के नीचे धातु का मोटा गोलाकार चेंबर लगा हुआ था। सभी ट्यूब के नीचे का चेंबर वायर द्वारा एक दूसरे से कनेक्ट था और उसका सबसे आखरी सिरा किसी सर्किट बोर्ड से जुड़ा हुआ था। उस सर्किट बोर्ड के चारो ओर कई सारे पत्थर कनेक्ट थे।

आर्यमणि, वहां का नजारा देखते.... “ये कौन सी जगह है।”...

भोसला:– ये है कोको के खिलाफ सबूत। जितने भी मोटे ट्यूब देख रहे हो। लोग पोर्ट होकर इन्ही ट्यूब में घुसते और उनकी शक्ति बाहर निकलकर कोको के पास। कमाल की इंजीनियरिंग और कमाल का सर्किट बोर्ड है। मुझे एक बात बताओ, तुम्हे भी तो कोको ने पोर्ट किया होगा, फिर तुम क्यों नही पोर्ट हुये?

आर्यमणि:– मेरे आचार्य जी ने कहा था मेरा जन्म बहुत ही खास नक्षत्र में हुआ था। मैं किस्मत लेकर पैदा हुआ हूं। पहले नही मानता था, लेकिन धीरे–धीरे उनकी बात पर यकीन हो गया।

इतना कहने के बाद आर्यमणि अपने एम्यूलेट से एक मोती समान पत्थर निकालकर दिखाते.... “ये पत्थर तुम्हारे यहां के क्रिस्टल से मिला था। इसी की वजह से पोर्ट करने वाली किरणों का असर हम पर नही हुआ था।”

भोसला:– ये तो निष्प्रभावित पत्थर है। इसका प्रयोग हम अपने खेतों में करते है। सूर्य ऊर्जा को फैलाने के क्रम में हीरों के अंदर से कुछ खतरनाक किरणे निकलती है। उन किरणों का असर इंसानी शरीर पर नही होता किंतु पेड़–पौधे और फसल खराब हो जाते है। निष्प्रभावित पत्थर ऐसे सभी जहरीली किरणों का असर समाप्त कर देता है। बहुत ही गुणकारी पत्थर है। इस पत्थर को दोस्त और दुश्मनों की पहचान है। दोस्त को प्रभावित रहने देता है लेकिन दुश्मनों को एक हद तक निष्क्रिय कर देता है।

आर्यमणि:– एक हद तक, मतलब कितनी हद?

भोसला:– 10000⁰ तापमान को निष्क्रिय कर देगा लेकिन उसके ऊपर एक भी डिग्री तापमान बढ़ा तो निष्प्रभावित पत्थर काम नही करेगा। 50000 बुलेट एक साथ हमला करे तो उसका असर नही होने देगा, लेकिन संख्या एक भी ज्यादा हुई तो पत्थर काम नही करेगा। 2 चीजों में हमने हद टेस्ट किया था सो बता दिया। अब चलो वो पत्थर हमे दे दो। पत्थर के मामले में हमारी एक ही पॉलिसी है, कोई समझौता नही। चलो जितने भी पत्थर अपने पास रखे हो सब दे दो।

आर्यमणि:– जितने भी पत्थर से क्या मतलब है तुम्हारा....

भोसला अपने हाथ में एक छोटा सा डिवाइस के 3–4 बटन को दबाने के बाद स्क्रीन आर्यमणि के ओर घुमा दिया... स्क्रीन के ऊपर 80 लिखा आ रहा था। भोसले वो नंबर दिखाते.... “तुम्हारे पास कुल 80 पत्थर है। सब निकालो।”...

आर्यमणि:– ओ भाई 40 तुम्हारे यहां के पत्थर है, 40 मैं पहले से लेकर आया था।

भोसला:– हां ये मुझे अच्छे से पता है। तुम्हारे साथ 3 और लोग है जो अपने गोल से उस एम्यूलेट में पत्थर रखे है। लेकिन यहां जो भी पत्थर आया वो हमारा है। अपने देश की पॉलिसी साफ है।

आर्यमणि:– ठीक है तुम हम सबका एम्यूलेट ले लेना। अब जरा काम की बातें हो जाये।

भोसला:– हां मुझे वो काम की बात पता है। तुम्हे यहां नही रहना। देखो दोस्त हम मजबूर है और किसी को भी अपने देश से बाहर नही जाने दे सकते। इस जगह को देखने के बाद कहीं और जाने देना हमारी पॉलिसी ही नही।

आर्यमणि:– इसका मतलब यहां के लोगों से हमे लंबी लड़ाई लड़नी होगी।

भोसला:– ऐसा करने की सोचना भी मत। मैं अपने रिस्क और गैरेंटी पर तुम्हे जाने दूंगा लेकिन एक छोटी सी शर्त है।

आर्यमणि:– क्या?

भोसला:– आज से 30 वर्ष पूर्व किसी वैज्ञानिक ने गोमेत नदी किनारे कुछ ऐसा एक्सपेरिमेंट किया था जिस वजह से उस इलाके की पूरी आबादी ऐसे बीमारी के चपेट में आ गयी कि वो आज तक बिस्तर से उठे ही नही। मशीनों की मदद से हम 6 करोड़ लोगों को लाइफ सपोर्ट तो दिये है, लेकिन इसका बोझ हमारे आम जनता को उठाना पड़ रहा है। उसी घटना के बाद से हमने अपनी पॉलिसी बदल ली। पहले सतह पर साइंस एक्सपेरिमेंट के लिये बने निर्माण से हमे कोई लेना देना नही था, लेकिन उस घटना के बाद समझ ही सकते हो पॉलिसी में क्या बदलाव हुआ होगा।

आर्यमणि:– 6 करोड़ लोगों को पिछले 30 साल से लाइफ सपोर्ट दिये हो। यहां के प्रतिनिधियों के जज्बे को सलाम। अल्फा पैक सबको हील करने का वादा करती है। उसके बाद तो हमें जाने दोगे न।

भोसला:– न सिर्फ तुम्हे बल्कि यदि हमारी दुनिया के बारे में जो–जो इंसान चर्चा नही करेगा, तुम्हारे भरोसे मैं उन्हे भी जाने दूंगा। यही नहीं, तुम जिस जगह चाहो उस जगह को चुन लो, वहां तुम्हारे साइंस लैब के निर्माण में किसी भी प्रकार की बाधा नहीं आने देंगे। यहां तक की ढांचा यदि गड़बड़ हुआ तो बिना तुम्हारे इंजीनियर की नजरों में आये उस ढांचे तक को सुधार देंगे। बस तुम उन सभी लोगों को पहले की तरह सामान्य कर दो। जिस प्रकार से सबको मारने के एक साथ

आर्यमणि:– ठीक है मैं पूरी कोशिश करूंगा। लेकिन तुम भी अपने बात को याद रखना।

भोसला:– याद रखने की जरूरत नहीं है दोस्त। हमारी बातें ऑन रिकॉर्ड है, एक कॉपी जबतक तुम्हे न मिले अपना काम शुरू मत करना।

आर्यमणि, भोसला से मीटिंग समाप्त करके बाहर आया। उसने पूरी कहानी अल्फा पैक से साझा किया। वेमपायर को छोड़कर अल्फा पैक भोसला के साथ उड़ान भर चुकी थी। गोमेत नदी किनारे के बसा शहर जब आर्यमणि पहुंचा, तब आर्यमणि वहां का नजारा देख एक बार फिर रोलफेल के शासन को सलाम करने लगा। पूरे शहर को ही हॉस्पिटल में तब्दील कर दिया था। 6 करोड़ बीमार लोगों के लिये वहां 10 लाख डॉक्टर नियुक्त किये गये थे। पूरे देश में कहीं भी क्रिटिकल केस होता था तब नागरिकों को मजबूरी में इन्ही इलाकों के ओर रुख करना पड़ता था। सारे स्पेशलिस्ट और अच्छे डॉक्टरों को तो यहीं रखा गया था।

अल्फा पैक वहां पहुंचते ही सबसे पहले चार लोगों को हील किया। अपने शरीर के अंदर पहुंचे टॉक्सिक और वायरस को पचाने की क्षमता को कैलकुलेट किये। जिन चारो को अल्फा पैक ने पहले हील किया उन्हे उठकर खड़े होते देख, भोसला और डॉक्टर की टीम तो खुशी से नाचने लगे।

अल्फा पैक को भी बहुत ज्यादा मुश्किल काम नहीं लगा। वहां मौजूद हर किसी के शरीर में किसी प्रकार का एक्सपेरिमेंटल वायरस था, जिसे हील करने में अल्फा पैक को कोई परेशानी नही थी। फिर तो पूरा का पूरा हॉस्पिटल जड़ों में ढाका होता और अल्फा पैक आबादी के आबादी हील करते रहते। देखते ही देखते हर दिन 8 से 10 लाख लोग हील होकर खड़े होते और उन्हे देश के विभिन्न हिस्सों में भेज दिया जाता।

लगभग 5 महीनो तक सभी 6 करोड़ लोग हील होकर अपने–अपने परिवार अथवा रिश्तेदार के पास पहुंच चुके थे। भोसला तो फूले न समा रहा था। धन्यवाद कह–कह कर वह थका नही। अंत में जैसा की उसने वादा किया था, आर्यमणि जिसे चाहे अपने भरोसे पर ले जा सकता था। आर्यमणि ने उन 1600 लोगों को चुन लिया जो 6 बार निर्माण के लिये पहुंचे और गायब हो चुके थे। साथ में वेमपायर की टीम भी।

सुरक्षा के लिहाज से भोसला ने पूछा की क्या ये इंसान कभी किसी से हमारे दुनिया के बारे में चर्चा नही करेंगे। उसके इस सवाल पर आर्यमणि मुस्कुराया और सभी 1600 लोगों को जड़ में कैद करने के बाद उनकी कुछ वक्त की यादों को मिटाकर सबको सुलाते.... “इनमे से किसी को याद ही नहीं रहेगा की वो यहां आये भी थे। लो हो गया न पूर्ण भरोसा।”...

भोसला वेमपायर के ओर इशारा करते..... “और इनका क्या?”...

आर्यमणि:– इंसानी दुनिया में हमारी तरह ये लोग भी अपने समुदाय के अस्तित्व को छिपाकर रखते हैं, इसलिए ये किसी से कुछ नही बता सकते।

भोसला आर्यमणि के गले लगते.... “मुझे पता नही की तुम सबके पास पत्थर कहां से मिला होगा, लेकिन मिला सही लोगों को। निष्प्रभावित पत्थर मेरे ओर से छोटा सा भेंट है। इसे संभालकर इस्तमाल करना और गलत हाथों में नही आने देना। चलो तुम सबको सतह तक छोड़ आऊं।”

एक बार फिर आर्यमणि उसी छत पर था जहां वह पहली बार फसा था। भोसला ने ऑर्डर दिया और देखते ही देखते वह छत कई किलोमीटर ऊपर तक जाने लगा। सर के ऊपर दिख रहा आसमान धीरे–धीरे हटने लगा था। दरअसल वह आसमान न होकर एक प्रकार का सुरक्षा घेरा था। उसके हटते ही ऊपर धातु की मजबूत चादर दिखने लगी। जैसे ही लिफ्ट ऊपर तक पहुंची वह चादर खुल गया और लिफ्ट उन सबको लेकर सतह तक पहुंच चुकी थी।

3 बार मे वह लिफ्ट सबको ऊपर पहुंचा चुकी थी। 6 बार में जितने भी समान खोये थे वो सब सतह पर आ चुका था। नयोबि, भोसला के लोगों की मदद से तुरंत ही चारो ओर टेंट लगवाया और सभी 1600 इंसानों को गरम टेंट में डाला। भोसला एक आखरी बार अल्फा पैक से मिलकर भूमिगत हो गया और आर्यमणि निर्माण कार्य के जगह के देखने लगा।

नयोबि:– तुम्हारे साथ काम करके अच्छा अनुभव रहा। अब मैं ज्वाइंट डायरेक्टर जूलिया को खबर कर दूं ताकि काम आगे बढ़ सके।

आर्यमणि:– ओ भाई मार्च में निकला था अभी अक्टूबर समाप्त होने को आ गया है। हमे कैलिफोर्निया भिजवाने का भी बंदोबस्त करो।

नयोबि:– हां जूलिया से ही संपर्क कर रहा हूं। वो यहां आ जाये फिर उसके बाद जूलिया और तुम जानो।

नयोबि के पंटर काम पर लग गये। जूलिया 4 दिन बाद वहां पहुंची। सभी लापता लोगों को सुरक्षित देख वह बयान नही कर पायी की वो कितनी खुश है। जूलिया को इतनी बड़ी सफलता की उम्मीद नहीं थी जो आर्यमणि उसकी झोली में डाल चुका था। जूलिया ने पूरी रिपोर्ट वाशिंगटन डीसी तक पहुंचा दी। वॉशिंगटन डीसी से ऑफिशियल प्रेस रिलीज हुआ जहां जूलिया और उसके टीम की जमकर तारीफ हुई। हां लेकिन इस तारीफ में कहीं भी अल्फा पैक नही था।

जूलिया खुद आर्यमणि को कैलिफोर्निया तक छोड़ने पहुंची। जूलिया विदा लेने से पहले अल्फा पैक को एफबीआई एसोसिएट्स का दर्जा दिया। यही नहीं उन लोगों को एफबीआई की आईडी भी दी। जूलिया जाते वक्त इतना ही कही..... “जब भी किसी गैर–कानूनी लोग को मारना हो तो उसे कानूनी तरीके से मरना और पूरा सबूत की फाइल मुझे मेल कर देना, बाकी मैं संभाल लूंगी।” जूलिया अपनी बात कहकर रवाना हो गयी और अल्फा पैक एक बार फिर अपने कॉटेज की साफ सफाई में लग गये।
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भाग:–144


हालांकि 21 दिसंबर के शादी की खबर तो चित्रा को भी नही थी, किंतु जब अलबेली ने उसे यह खबर दी फिर तो वह फोन पर ही खुशी से झूमने लगी... उसके बाद तो फिर चित्रा ने भी आर्यमणि को उसका प्यारा वेडिंग गिफ्ट देने की ठान ली। यानी की किसी भी तरह से आर्यमणि के माता जया, पिता केशव कुलकर्णी, भूमि दीदी और कुछ अन्य लोगों के साथ 7 दिसंबर की सुबह कैलिफोर्निया पहुंचना। इस पूरे योजना में चित्रा ने निशांत की पूरी मदद ली, इस बात से अनभिज्ञ की निशांत को सब पहले से पता था।

भारत से सभी लोग न्यूयॉर्क पहुंचे चुके थे और न्यूयार्क से कैलिफोर्निया उनकी फ्लाइट सुबह 10 बजे पहुंचती। रूही और इवान तो नेरमिन के पैक के साथ 2 दिन पहले ही टर्की पहुंच चुके थे। अब केवल अलबेली बची थी जो आर्यमणि के उत्साह को झेल रही थी।

आर्यमणि सुबह के 4 बजे ही उठ गया और जाकर सीधा अलबेली को जगा दिया। यूं तो रोज सुबह 4 बजे ही वो जागती थी, लेकिन आज की सुबह अलबेली के लिए सरदर्द से कम नहीं थी। अलबेली रोज की तरह ही अपने ट्रेनिग एरिया में पहुंचकर अभ्यास शुरू कर चुकी थी। इसी बीच आर्यमणि अपने कमरे से बाहर आते.… "अरे तुम तैयार नहीं हुई, हमे एयरपोर्ट जाना है।"..

अलबेली अपना सर खुजाती… "एयरपोर्ट क्यों दादा"..

आर्यमणि:– भूल गई, आज 7 दिसंबर है, सब लोग पहुंच रहे होंगे.…

अलबेली अपने मोबाइल दिखाती.… “बॉस अनलोगों ने कुछ देर पहले न्यूयॉर्क से उड़ान भरी है। सुबह 10 बजे तक बर्कले पहुंचेंगे…

आर्यमणि:– हां अभी तो वक्त है.. एक काम करता हूं सो जाता हूं, वक्त जल्दी कट जायेगा... तुम भी ट्रेनिंग खत्म करके सो जाना...

आर्यमणि चला गया, अलबेली वहीं अपना रोज का अभ्यास करने लगी। सुबह 7 बजे के करीब वो अपना अभ्यास खत्म करके हाई स्कूल के लिए तैयार होने लगी। अलबेली स्कूल निकल ही रही थी कि पीछे से आर्यमणि उसे टोकते.… "स्कूल क्यों जा रही हो... सबको पिकअप करने नही चलोगी"…

अलबेली:– अब कुछ दिन बाद तो वैसे भी यहां के सभी लोग पीछे छूट जाएंगे... जबतक यहां हूं, कुछ यादें और समेट लूं... आप आ जाना मुझे लेने.. मैं वहीं से साथ चल दूंगी...

अलबेली निकल गयी लेकिन आर्यमणि का वक्त ही न कटे... किसी तरह 8.30 बजे और आर्यमणि भागा सीधा अलबेली के स्कूल.… उसके बाद तो बस अलबेली थी और आर्यमणि… कब पहुंचेंगे... कहां पहुंचे... पूछ पूछ कर अलबेली को पका डाला। आखिरकार सुबह के 10 बज ही गये और उनकी फ्लाइट भी लैंड कर चुकी थी।

एक ओर जहां आर्यमणि उत्साह में था, वहीं दूसरी ओर सभी मिलकर निशांत की बजा रहे थे। हुआ यूं की सुबह के 2.10 बजे ये लोग न्यूयॉर्क लैंड किए और सुबह के 3.20 की इनकी कनेक्टिंग फ्लाइट थी। पूरा परिवार कह रहा था की फ्लाइट छोड़ दो लगेज लेंगे पहले... लेकिन जनाब ने सबको दौड़ाते हुए कनेक्टिंग फ्लाइट पकड़वा दिया और समान न्यूयॉर्क एयरपोर्ट अथॉरिटी के भरोसे छोड़कर चले आये...

जब से कैलिफोर्निया लैंड हुये थे पूरा परिवार निशांत को गालियां दे रहा था और एयरपोर्ट अथॉरिटी को बुलाकर अपना सामान अगले फ्लाइट से कैलिफोर्निया भेजने कह रहे थे। इन लोगों ने उन्हे भी इतना परेशान किया की अंत में एयरपोर्ट प्रबंधन के मुख्य अधिकारी को आकार कहना पड़ा की उनका सामान पहले ही न्यूयॉर्क से रवाना हो चुका है, सुबह के 11.30 बजे वाली फ्लाइट से उनका सारा सामान पहुंच जायेगा...

अब हुआ ये की फ्लाइट तो इनकी 10 बजे लैंड कर गयी लेकिन ये लोग एयरपोर्ट के अंदर ही समान लेने के लिये रुक गये... अंदर ये लोग अपने समान के इंतजार में और बाहर आर्यमणि अनलोगो के इंतजार में... और ये इंतजार की घड़ी बढ़ते जा रही थी। एक–एक करके उस फ्लाइट के यात्री जा रहे थे और आर्यमणि बाहर उत्सुकता के साथ इंतजार में था..

आखिरकार सुबह के 11.35 बजे आर्यमणि के चेहरे पर चमक और आंखों में आंसू आ गये जब वो अपने परिवार के लोगों को बाहर आते देखा... वो बस सबको देखता ही रह गया... आर्यमणि को तो फिर भी सब पता था। लेकिन उधर...

जया बस इतनी लंबी जर्नी से परेशान थी। केशव, निशांत और चित्रा की बातों में आकर जया को यहां ले आया, इस वजह से जया, केशव को ही खड़ी खोटी सुना रही थी। वहीं भूमि अपने बच्चे के साथ थी और छोटा होने की वजह से वह काफी परेशान कर रहा था, जिसका गुस्सा wa चित्रा पर उतार रही थी, क्योंकि यहां आने के लिए उसे चित्रा ने ही राजी किया था। बाकी पीछे से चित्रा का लवर माधव और निशांत सबके समान ढो भी रहा था और इन सबकी कीड़कीड़ी का मजा भी ले रहे थे। हर कोई तेज कदमों के साथ बाहर आ रहा था। एयरपोर्ट के बाहर आने पर भी किसी की नजर आर्यमणि पर नही पड़ी।

बाकी सबलोग टैक्सी को बुलाने की सोच रहे थे, इतने में निशांत और चित्रा ने दौड़ लगा दी। पहले तो सब दोनो को पागल कहने लगे लेकिन जैसे ही नजर आर्यमणि पर गई, वो लोग भी भागे... आर्यमणि दोनो बांह फैलाए खड़ा था। चित्रा और निशांत इस कदर तेजी से आर्यमणि पर लपके की तीनो ही अनियंत्रित होकर गिर गये। गिर गये उसका कोई गम नही था, लेकिन मिलने की गर्मजोशी में कोई कमी नहीं आयी।

सड़क की धूल झाड़ते जैसे ही तीनो खड़े हुये, तीनो के ही कान निचोड़े जा रहे थे.… "जल्दी बताओ ये सब प्लान किसका था"…. जया ने सबसे पहले पूछा...

तभी एक जोरदार सिटी ने सबका ध्यान उस ओर आकर्षित किया.… "आप सभी आराम से घर चलकर दादा से मिल लेना... यहां तबियत से शायद खबर न ले पाओ…. क्योंकि घर पर किसी की बहु और पोता इंतजार कर रहा है, तो किसी की भाभी और भतीजा"…. अलबेली ने चल रहे माहोल से न सिर्फ सबका ध्यान खींचा बल्कि अपनी बातों से सबका दिमाग भी घुमा दी...

सभी लोग हल्ला–गुल्ला करते गाड़ी में सवार हो गये। आर्यमणि सफाई देने की कोशिश तो कर रहा था, लेकिन कोई उसकी सुने तब न.… सब को यही लग रहा था की आर्यमणि अपने बीवी और बच्चे से मिलवाने बुलाया है... सभी घर पहुंचते ही ऐसे घुसे मानो आर्यमणि की पत्नी और बच्चे से मिलने के लिए कितने व्याकुल हो... इधर आर्यमणि आराम से हॉल में बैठा... "अलबेली ये बीबी और बच्चा का क्या चक्कर है।"…

अलबेली:– इतने दिन बाद मिलने का ये रोना धोना मुझे पसंद नही, इसलिए इमोशनल सीन को मैंने सस्पेंस और ट्रेजेडी में बदल दिया...

इतने में सभी हल्ला गुल्ला करते हॉल में पहुंचे। घर का कोना–कोना छान मारा लेकिन कोई भी नही था। अब सभी आर्यमणि को घेरकर बैठ गये.…. "कहां छिपा रखा है अपनी बीवी और बच्चे को नालायक".. जया चिल्लाती हुई पूछने लगी…

भूमि:– मासी इतने दिन बाद मिल रहे हैं, आराम से..

जया:– तू चुपकर.... तेरा ही चमचा है न... पूछ इससे शादी और बच्चे से पहले एक बार भी हमे बताना जरूरी नही समझा..

माधव:– शादी का तो समझे लेकिन बच्चे के लिए भी गार्डियन से पूछना पड़ता है क्या?…

चित्रा उसे घूरकर देखी और चुप रहने का इशारा करने लगी।

भूमि:– आर्य, कुछ बोलता क्यों नही...

आर्यमणि:– मैं तो कव्वा के पकड़ में आने का इंतजार कर रहा हूं।..

सभी एक साथ... "महंझे"..

आर्यमणि:– मतलब किसी ने कह दिया कव्वा कान ले गया तो तुम सब कौवे के पीछे पड़े हो। बस मैं भी उसी कौवे के पकड़ में आने का इंतजार कर रहा हूं...

सभी लगभग एक साथ... "ओह मतलब तेरी शादी नही हुई है"…

आर्यमणि:– जी सही सुना शादी नही हुई है। इसलिए अब आप सब भी अपने मन के आशंका को विराम लगा दीजिए और जाकर पहले सफर के थकान को दूर कीजिए।

सभी लोग नहा धोकर फ्रेश होने चल दिये। आर्यमणि और अलबेली जब तक सभी लोगों के लिए खाने का इंतजाम कर दिया। सभी लोग फ्लाइट का खाना खाकर ऊब

चुके थे इसलिए घर के खाने को देखते ही उसपर टूट पड़े। शानदार भोजन और सफर की थकान ने सबको ऐसा मदहोश किया फिर तो बिस्तर की याद ही आयी।

सभी लोग सोने चल दिए सिवाय भूमि के। जो कमरे में तो गई लेकिन अपने बच्चे को सुलाकर वापस आर्यमणि के पास पहुंच गयी... "काफी अलग दिख रहे आर्या..."

आर्यमणि:– बहुत दिन के बाद देख रही हो ना दीदी इसलिए ऐसा लग रहा है.… वैसे बेबी कितना क्यूट है न... क्या नाम रखी हो?...

भूमि:– घर में सब अभी किट्टू पुकारते हैं। नामकरण होना बाकी है...

आर्यमणि:– क्या हुआ दीदी, तुम कुछ परेशान सी दिख रही हो…

भूमि:– कुछ नही सफर से आयी हूं इसलिए चेहरा थोड़ा खींचा हुआ लग रहा है...…

आर्यमणि:– सिर्फ चेहरा ही नही आप भी पूरी खींची हुई लग रही हो.…

भूमि, यूं तो बात को टालती रही लेकिन जिस कौतूहल ने भूमि को बेचैन कर रखा था उसे जाहिर होने से छिपा नहीं पायी। बहुत जिद करने के बाद अंत में भूमि कह दी.… "जबसे तू नागपुर से निकला है तबसे ऐसा लगा जैसे परिवार ही खत्म हो गया है। आई–बाबा का तो पता था, वो करप्ट लोग थे लेकिन जयदेव.. वो भी तेरे नागपुर छोड़ने के बाद से केवल 2 बार ही मुझसे मिला और दोनो ही बार हमारे बीच कोई बात नही हुई। परिवार के नाम पर केवल मैं, मेरा बच्चा, मौसा–मौसी और चंद गिनती के लोग है।"

"प्रहरी के अन्य साखा में क्या हो रहा है मुझे नही पता। उनलोगो ने नागपुर को जैसे किनारे कर दिया हो। यदि किसी बात का पता लगाने हम महाराष्ट्र के दूसरे प्रहरी इकाई जाते हैं, तो वहां हमे एक कमरे में बिठा दिया जाता है जहां हमसे एक अनजान चेहरा मिलता है। जितनी बार जाओ नया चेहरा ही दिखता है। किसी के बारे में पूछो तो बताते नही। किसी से मिलना चाहो तो मिलता नही। सोची थी नागपुर अलग करने के बाद प्रहरी समुदाय में क्या चल रहा है, वो आराम से पता लगाऊंगी लेकिन यहां तो खुद के परिवार का पता नही लगा पा रही। प्रहरी की छानबीन क्या खाक करूंगी। मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा"..

आर्यमणि:– जब कुछ समझ में नहीं आये तो सब वक्त पर छोड़ देना चाहिए। ऐसे मौन रहोगी तो कहां से काम चलेगा...

भूमि:– तू मेरी हालत नही समझ सकता आर्य। जिसका पति पास न हो और न ही पास आने की कोई उम्मीद उसके दिल का हाल तू नही समझ सकता...

आर्यमणि:– हां आपके दिल का हाल वाकई मैं नही समझ सकता लेकिन आपकी पीड़ा कम करने में मदद जरूर कर सकता हूं...

भूमि:– मतलब...

आर्यमणि:– मतलब जीजू को ढूंढ निकलूंगा और तुम तक पहुंचा दूंगा...

भूमि:– झूठी दिलासा मत दे। और शैतान तुझे हम सब को यहां बुलाने की क्यों जरूरत आन पड़ी? जनता भी है कितना बड़ा झोखिम उठाया है...

आर्यमणि:– कहीं कोई जोखिम नहीं है दीदी... रुको मैं तुम्हे कुछ दिखता हूं...

आर्यमणि अपनी बात कहकर वहां से उठा और अपने साथ अनंत कीर्ति की पुस्तक लेकर लौटा। अनंत कीर्ति की पुस्तक भूमि के गोद में रखते.… "खोलो इसे"..

भूमि आश्चर्य से आर्यमणि को देखती.… "क्या तुमने वाकई"…

आर्यमणि:– मेरी ओर सवालिया नजरों से देखना बंद करो और एक बार खोलो तो...

भूमि ने जैसे ही कवर को हाथ लगाकर पलटा वह पलट गई। भूमि के आश्चर्य की कोई सीमा नही थी। बड़े ही आश्चर्य से वो वापस से आर्यमणि को देखती... "ये कैसे कर दिया"…

आर्यमणि:– बस कर दिया... यहां प्रकृति की सेवा करते हुये मैने कई पेड़–पौधे को सूखने से बचाया। कई जानवरों का दर्द अपने अंदर समेट लिया। बस उन्ही कर्मो का नतीजा था कि एक दिन इस पुस्तक को पलटा और ये खुल गयी। इसके अंदर क्या लिख है वो तो अब तक पढ़ नही पाया, लेकिन जल्द ही उसका भी रास्ता निकाल लूंगा...

भूमि:– क्या कमाल की खबर दिया है तुमने... मैं सच में बेहद खुश हूं...

आर्यमणि:– अरे अभी तो केवल खुश हुई हो... जब जयदेव जीजू तुम्हारे साथ होंगे तब तुम और खुश हो जाओगी…

भूमि:– जो व्यक्ति किताब खोल सकता है वो मेरे पति के बारे में भी पता लगा ही लेगा।

आर्यमणि:– निश्चित तौर पर... अब तुम जाओ आराम कर लो... जबतक मैं कुछ सोचता हूं...

भूमि, आर्यमणि के गले लगकर उसके गालों को चूमती वहां से चली गयी। अलबेली वहीं बैठी सब सुन रही थी वो सवालिया नजरों से आर्यमणि को देखती... "भूमि दीदी से झूठ बोले और झूठा दिलासा तक दिये"..

आर्यमणि:– कभी कभी कुछ बातें सबको नही बताई जाती...

अलबेली:– लेकिन बॉस जयदेव जैसे लोगों के बारे में झूठ बोलना..

आर्यमणि:– तो क्या करता मैं। बता देता की जैसा तुम शुकेश और मीनाक्षी के बारे में सोच रही वैसा करप्शन की कोई कहानी नही बल्कि उस से भी बढ़कर है। जयदेव भी उन्ही लोगों से मिला है। मिला ही नही बल्कि वो तो तुम्हारे मम्मी पापा के जैसे ही एक समान है।

अलबेली:– हे भगवान... फिर तो भूमि दीदी का दर्द...

आर्यमणि:– कुछ बातों को हम चाहकर भी ठीक नहीं कर सकते। उन्हे वक्त पर छोड़ना ही बेहतर होता है। कई जिंदगियां तो पहले से उलझी थी बस जब ये उलझन सुलझेगी, तब वो लोग कितना दर्द बर्दास्त कर सकते हैं वो देखना है... चलो फिलहाल एक घमासान की तैयारी हम भी कर ले...

अलबेली:– कौन सा घमासान बॉस...

आर्यमणि:– रूही और मेरी शादी का घमासान...

अलबेली:– इसमें घमासान जैसा क्या है?

आर्यमणि:– अभी चील मारो... जब होगा तो खुद ही देख लेना.…

आर्यमणि क्या समझना चाह रहा था ये बात अलबेली को तो समझ में तब नही आयी, लेकिन शाम को जैसे ही सब जमा हुये और सबने जब सुना की आर्यमणि, रूही से शादी कर रहा है, ऐसा लगा बॉम्ब फूटा हो। सब चौंक कर एक ही बात कहने लगे.... "एक वुल्फ और इंसान की शादी"…

"ये पागलपन है।"… "हम इस शादी को तैयार नहीं"… "आर्य, तुझे हमेशा वुल्फ ही मिलती है।"…. "तु नही करेगा ये शादी"…. कौतूहल सा माहोल था और हर कोई इस शादी के खिलाफ... भूमि आवेश में आकर यहां तक कह गयी की वो लड़की तो सरदार खान के किले में लगभग नंगी ही घूमती थी। जिसने जब चाहा उसके साथ संबंध बना लिये, ऐसी लड़की से शादी?…

भूमि की तीखी बातें सुनकर आर्यमणि को ऐसा लगा जैसे दिल में किसी ने तपता हुआ सरिया घुसेड़ दिया हो। कटाक्ष भरे शब्द सुनकर आर्यमणि पूरे गुस्से में आ चुका था और अंत में खुद में फैसला करते वह उस स्वरूप में सबके सामने खड़ा हो गया, जिसे देख सबकी आंखें फैल गयी। वुल्फ साउंड की एक तेज दहाड़ के साथ ही आर्यमणि गरजा…. "लो देख लो, ये है आर्यमणि का असली रूप। और ये रूप आज का नही बल्कि जन्म के वक्त से है। मेरा नाम आर्यमणि है, और मैं एक प्योर अल्फा हूं।"….
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भाग:–145


भूमि की तीखी बातें सुनकर आर्यमणि को ऐसा लगा जैसे दिल में किसी ने तपता हुआ सरिया घुसेड़ दिया हो। कटाक्ष भरे शब्द सुनकर आर्यमणि पूरे गुस्से में आ चुका था और अंत में खुद में फैसला करते वह उस स्वरूप में सबके सामने खड़ा हो गया, जिसे देख सबकी आंखें फैल गयी। वुल्फ साउंड की एक तेज दहाड़ के साथ ही आर्यमणि गरजा…. "लो देख लो, ये है आर्यमणि का असली रूप। और ये रूप आज का नही बल्कि जन्म के वक्त से है। मेरा नाम आर्यमणि है, और मैं एक प्योर अल्फा हूं।"….

प्योर अल्फा... आर्यमणि एक प्योर अल्फा। सभी लोगों के पाऊं के नीचे से जैसे जमीन खिसक गयी हो। आंखे फाड़े, पूरे भौचक्के और हैरान। वो लोग तो बस आंखें फाड़ आर्यमणि को ही देख रहे थे। उनका बच्चा एक वेयरवोल्फ वो भी प्योर अल्फा।

अलबेली:– बॉस सब घर के लोग है। वापस अपने रूप में आओ...

आर्यमणि:– नही अलबेली इन्हे भी इत्मीनान से देख लेने दो। मानता हूं एक वुल्फ और इंसान की शादी से इंकार हो सकता था, लेकिन रूही के लिये कहे गये शब्द...

आर्यमणि अपनी बात कह ही रहा था तभी उसके गाल पर एक झन्नाटेदार थप्पड़ पड़ी। भूमि, आर्यमणि को कसकर तमाचा मारती.… "चल वापस अपने रूप में आ। यहां आकर तो मुझे झटके पर झटका लग रहा है। मुझे लगा तू कुछ तो होगा, लेकिन एक प्योर अल्फा। भगवान.. क्या खतरनाक वुल्फ दिख रहा। इतना भव्य रूप तो मैं कल्पना में भी नही सोच सकती। मैं अपनी कही बात के लिये दोनो हाथ जोड़ती हूं। मानती हूं गुस्से में मैं बहुत गलत बोल गयी। लेकिन जहां बात तेरी होती है, मेरे अक्ल पर पर्दा पड़ जाता है।"…

इधर आर्यमणि को थप्पड़ पड़ा उधर आर्यमणि के पिता केशव को जैसे होश आया हो। वह जया को घूरती नजरों से देखते.... “तुम्हे शुरू से पता था न हमारा बेटा क्या है?”

जया:– पता तो तुम्हारे पापा को भी था कि आर्य किसी अलौकिक शक्ति के साथ पैदा हुआ था, लेकिन मेरा बेटा शेप शिफ्ट करने वाला एक प्योर अल्फा होगा, ये तो कल्पना में भी नही था। क्या भव्य स्वरूप है, देखो तो।

भूमि, आर्यमणि को सवालिया नजरों से देखती.... “तुम टेस्ट के दौरान माउंटेन ऐश की रेखा कैसे पार कर गये?.. इतने सारे टेस्ट के बावजूद क्यों तुम्हे पकड़ नही पाये की तुम एक वेयरवोल्फ हो?...

आर्यमणि:– मैं एक प्योर अल्फा हूं। यानी जिनके माता पिता कभी वेयरवुल्फ नही रहे हो लेकिन उसके बच्चे में ये अनुवांशिक गुण आ जाये... मैं एक वेयरवुल्फ हूं ये बात तब तक कोई नही जान सकता जब तक मैं जाहिर न होने दूं... बाकी न तो मेरे और न ही मेरे ब्लड पैक के किसी भी वुल्फ के क्ला या फैंग लगने से कोई वुल्फ बनेगा...

चित्रा:– ओह वेयरवुल्फ का मोडिफाइड वर्जन है अपना आर्य...

जया:– अब मैं इस बात से खुश हो जाऊं या अपनी किस्मत पर आंसू बहा लूं... ये सब तेरे दादा जी के अजीब से चीजों का ही दुष्परिणाम है...

आर्यमणि, किनारे से अपने मां से लिपटते…. "मां कुछ भी दुष्परिणाम नही है। और केवल मैं ही नही बल्कि हम सब इंसान है। हमसे कोई खतरा नहीं" …

जया, आर्यमणि के गाल को चूमती.… "तुझसे कोई खतरा नहीं लेकिन जो तेरा ससुराल पक्ष है उसका क्या? बेटा शादी में थोड़ी बहुत भी बहस हुई, तो तू तो उनसे उलझा होगा यहां वो हमारा मांस नोच रहे होंगे"…

आर्यमणि:– वाह मां अच्छी समीक्षा है। लेकिन आप वेयरवुल्फ तो क्या भयंकर काल जीवों के बीच क्यों न फंसी हो, आपकी सुरक्षा जिनके जिम्मे है वो आप सबको कुछ नही होने देगा ..

चित्रा:– हां मां बाप को बचा लेगा लेकिन अपने दोस्तों को शाहिद करवा देना..

भूमि:– अपनी बहन और छोटे भांजे को भी... स्वार्थी निकला रे..

आर्यमणि:– बस भी करो खिंचाई करना... आप सब सुरक्षित हो। वैसे भी जहां मैं रहूं वहां कोई मेरे परिवार को हाथ लगा ले... ऐसा संभव है क्या?...

केशव:– तुम लोग बस बातें ही करते रहो... 20 दिसंबर की शादी है और तुम सब उसकी कोई तैयारी ही मत करना...

माधव:– हां वही तो... चलो चित्रा हम शॉपिंग करने चलते हैं...

चित्रा:– हां बिलकुल... चलो चलते है। ओय फाइनेंसर... चल हमे डॉलर दे... ताकि खूब लूटा सकूं...

आर्यमणि:– एक पूरी कंपनी दे दी तुम लोगों को... 500 करोड़ की डील साइन किए फिर भी मुझसे पैसे मांग रहे..

निशांत:– कंपनी अभि अपने पहले स्टेज में है... वहां से पैसे नही निकाल सकते। वैसे भी बड़ा नजर बनाये है हम पर?...

भूमि:– लड़के तुझे विदेश की हवा लग गयी क्या... अरबों रुपए जो दिए थे, उसका तो हिसाब ही नही लिया अब तक...

आर्यमणि:– हां समझ गया.. अलबेली सबको क्रेडिट कार्ड दे दो...

यूं तो सब मजाक कर रहे थे लेकिन आर्यमणि ने सबको जबरदस्ती कार्ड थमा दिया। फिर तो शॉपिंग के लिए इन लोगों ने पूरे यूएसए का भ्रमण कर डाला... न्यूयॉर्क से लेकर वॉशिंगटन डीसी तक शॉपिंग करने पहुंच गए। कपड़े, गहने, जूते और भी ना जाने क्या क्या... शॉपिंग से ज्यादा तो ये लोग साथ घूमने का लुफ्त उठा रहे थे...

16 दिसंबर की शाम सभी इस्तांबुल पहुंचे। लड़की पक्ष वालों के ओर से उतना ही गर्मजोशी से सबका स्वागत किया गया। वहां के लोगों को देखकर भूमि हंसती हुई आखिर कह ही दी.… "क्या खाकर इनकी मां ने ऐसे सुंदर लड़के लड़कियों को जन्म दिए है, सब एक से बढ़कर एक दिख रहे"…

एक बड़ा सा रिजॉर्ट ही बुक किया गया था जहां हर गेस्ट का अपना एक स्वीट था। वहां के एकोमोडेशन को देखकर तो सबका दिल खुश हो गया। सब अपने–अपने स्वीट में दिन भर आराम करने के बाद, शाम को एक जगह जमा हुए, जहां लड़का और लड़की दोनो पक्ष के लोग थे। वहां नेरमिन सबको शादी के कार्यक्रम के बारे में समझा रही थी।

इसी बीच रूही और आर्यमणि की नजरें एक दूसरे से टकराई और दोनो की नजरों में एक छोटा सा इशारा भी हो गया। सब लोग यहां अपनी वार्तालाप में लगे हुए थे और ये दोनो वहां से गायब.…

आर्यमणि जैसे ही रूही के पास पहुंचा, उसे कस के गले से लगाते, चूमना शुरू कर दिया.… "आर्य कुछ तो सब्र करो... मुझे बहुत शर्म आ रही है"…

आर्यमणि रूही की आंखों में झांकते.… "सब्र करो, शर्म आ रही... ये सब तो समझा लेकिन तुम्हे देखकर जो दिल का हाल हो रहा उसे तुम मत समझो"…

रूही शरारताना मुस्कान चेहरे पर लाई और अपने हाथ को नीचे आर्यमणि के लिंग तक ले जाते... "ये अंदर में फुदक कर, तुम और तुम्हारे दिल से ज्यादा अपनी भावना बता रहा है आर्या"…

"अच्छा... और इसे पकड़ने के बाद तो तुम्हारे दिल के अरमान सत्संग करने को कर रहा होगा न… ये तो खाली मेरी ही इक्छा है... तुम्हारी तो सारी इक्छा मर गई"…

"इक्छा तो ऐसी है की अभी दिल कर रहा चलो कमरे में और इत्मीनान से प्यार करे लेकिन 4 दिन रुक जाओ। अभी जो भी अरमान दिखाने है, जैसे भी अरमान दिखाने है, सब शादी बाद"…

"आह्हहहहहहहहह... रूही... एक तो शादी तक रुकने भी कह रही, ऊपर से अपने हाथ का अत्याचार भी कर रही... चलो न थोड़ा कंसोलेशन मोहब्बत कर आते हैं।"..

"4 दिन के लिए मैं हूं ना... मुझे सिखा दो कंसलेशन मोहब्बत क्या होती है। सीस को अभी छोड़ दो"… दोनो के खूबसूरत मिलन के बीच ओशुन आते ही अपनी बात कहने लगी... रूही आर्यमणि से अलग होकर उसे घूरती... "तु मेरे हसबैंड से दूर रह... वरना हमारे बहन के रिश्ते अभी इतने गहरे नही हुए जितनी गहराई मेरे प्यार में है। जान निकाल लूंगी"…

ओशुन:– उफ्फ.. पजेसिव गर्ल... मैं तो दिलफेक हूं आर्य पर डोरे भी डालूंगी... अपने होने वाले हसबैंड को कंट्रोल में रख"…

रूही:– आर्य पर पूरा विश्वास है लेकिन तुझ जैसी नागिन जब जाल फैलाएगी तो बेचारा मेरा पति क्या करेगा... इसलिए दूर रहो…

ओशुन:– रूही तुम कल तक तो मुझसे अच्छे से बात कर रही थी। 2 मिनट आर्य के साथ क्या रुक गई, तुम तो पागलों की तरह बिहेव करने लगी...

रूही:– बस तुम आर्य से दूर रहो... बाकी सब अपने आप सही हो जायेगा...

आर्यमणि:– रूही ये क्या तरीका है... हमारे बीच कुछ नही ये तुम्हे भी पता है ना... 2 मिनट साथ हो ही गई तो कौन सा तूफान आ गया...

रूही:– कोइ तूफान नही आया... 2 मिनट क्या पूरे 4 रात तक दोनो रंगरलियां मनाओ… मैं ही यहां पर गलत हूं... जाओ जो करना है करो...

"अरे रूही सुनो तो... रूही... रूही..." आर्यमणि पीछे से आवाज देता रहा लेकिन रूही बिना कुछ सुने तेजी से निकल गई और उसके पीछे–पीछे आर्यमणि भी गया... रूही आर्यमणि की बात को अनसुनी करती सबके बीच जा बैठी। आर्यमणि भी ठीक रूही के पास बैठकर जैसे ही उसके कंधे को पकड़ा.… ठीक उसी वक्त सूप का एक प्याला आर्यमणि के सर पर.… "अरे आप सब हैरान न हो... मेरा आर्य सूप ऐसे ही पीता है। जीभ बाहर निकालो आर्य और जरा स्वाद तो ले लो... मेरी जान को सीधे और उल्टे हर रास्ते से खाने की आदत है।"…

लड़के पक्ष वाले हैरान तो लड़की पक्ष वालों का हंस–हंस कर बुरा हाल। जया आंखों के इशारे से अलबेली और इवान को साथ चलने कही। उसके पीछे पूरा परिवार भी गया। जया थोड़े कड़े लहजे में अलबेली और इवान से रूही की इस हरकत के बारे में पूछने लगी...

अलबेली:– “आंटी ये सभी लड़के कुत्ते की दुम होते हैं। आप लोग को शायद पता नही लेकिन रूही की कजिन सिस्टर ओशुन और बॉस का टांका तब भिड़ा था जब वो पहली बार बिना बताए गायब हुए थे। बॉस तो दिल जिगर और जान से ऐसे प्यार करते थे उसे…. की उसके लिए वुल्फ हाउस की सबसे ताकतवर अल्फा ईडेन को मार गिराए। लेकिन ये ओशुन केवल उस वुल्फ पैक से आजाद होने और दूसरे वोल्फ को मारकर उसकी ताकत हासिल करने के लिए बॉस का इस्तमाल कर रही थी।”…

“खैर ये चेप्टर को क्लोज हुए वर्षों हो गए थे। बॉस ओशुन को भूल भी गए लेकिन फिर अचानक एक दिन ये ओशुन किसी ऐसे कैद में फसी थी, जहां से उसका निकलना नामुमकिन था। अरे उसे बचाने के लिए बॉस ने अपनी जान दाव पर लगा दी और बॉस को बचाने के लिए हम लोग लगभग मर गए थे। ऐसा जहर हमने अपने नब्ज़ में उतारा की बॉस होश में जब आए और हमे हील किया, तब वो खुद एक महीने बाद जागे थे। और ये सब केवल उस ओशुन के जान बचाने के चक्कर में हुआ था।”

“लेकिन कहानी का सबसे मजेदार हिस्सा तो तब शुरू हुआ जब बॉस एक महीना बाद जागे। उस वक्त हम सब और वो ओशुन भी हमारे कॉटेज में मौजूद थी। हमे लगा बॉस ओशुन को झपट्टा मारकर गले लगाएंगे और उसे लव यू कहेंगे। लेकिन ऐसा नहीं हुआ... बॉस जागे तो उन्हे रूही दीदी के प्यार का एहसास हुआ और उसे ही झपट्टा मारकर गले लगा लिए। एक लड़की जो मन ही मन आर्य को अपने जान से ज्यादा चाहती थी, जिसे कभी उम्मीद नहीं थी की बॉस कभी उस से प्यार भी करेंगे। उस लड़की के दिल के तार छेड़ गए। अब इतनी जान से चाहने वाली कोई लड़की जब अपने प्यार को उस लड़की के करीब देखेगी जिसके लिए बॉस जान को दाव पर लगा आए थे, फिर सोच लीजिए मन में कैसे ख्याल आयेंगे”...

केशव:– लेकिन अब तो दोनो के बीच कुछ नही है न..

जया:– आप चुप करो... दोनो के बीच कुछ नही है... जब दोनो के बीच कुछ नही है और रूही को केवल उस एक लड़की से समस्या है, तो उस से दूरी क्यों नही बना लेता...

इवान:– अरे जाहिलों... बॉस तो कबका दूरी बना लिए.. अभी भी बॉस और दीदी ही साथ में थे, वो तो ओशुन ही पीछे से पहुंची थी और दीदी थोड़ा ओवर रिएक्ट कर गई..

अलबेली:– तुम तो कुछ बोलो ही मत नालायक... ओशुन पीछे से पहुंच गई, तो बॉस नॉर्मल होकर बात करते... जरूर कुछ दिललगी की होगी तभी भाभी भड़की है...

जया:– नही आर्य कुछ नही भी किया हो तो भी रूही भड़क ही जाती... किसी एक स्त्री व

विशेष को लेकर कभी–कभी दिल में डर सा बन जाता है कि कहीं ये मेरे प्यार को मुझसे छीन तो नही रही... मैं दोनो को बिठाकर समझाऊंगी... लेकिन अभी तुम दोनो ये बताओ की दोनो ऐसा क्या कर दिए जो तुम दोनो की शादी भी करवानी पड़ रही है...

अलबेली:– आंटी हम दोनों एक दूसरे को चाहते हैं और रहना सदा साथ में ही है... इसलिए हमने भी शादी करने का फैसला कर लिया...

भूमि:– वाह वाह.. क्या उच्च विचार है... या शायद इतने कम उम्र होने के बावजूद दोनों काबू ही नही रख पाते थे। ओय लड़के तेरी जुड़वा कहां है...

इवान शायद सात्त्विक आश्रम की चर्चा कर देता इसलिए अलबेली टपाक से बोल पड़ी... "बस वही जो आपने कहा दीदी... अब अपनी जुड़वा के सामने ही सर शुरू हो जाते थे, इसलिए उसने हमे छोड़ दिया और इस वक्त वो आर्यमणि के किसी करीबी दोस्त के साथ भारत में ही है।"…

चित्रा:– ये कौन सा करीबी दोस्त है जिसे हम नही जानते..

अलबेली:– कोई टेक्निकल एक्सपर्ट है, उसी के साथ रहकर वो टेक्नोलॉजी का ज्ञान लेगी। फिर वहीं से वो सीधा नागपुर पहुंचेगी... हम सब से पहले...

चित्रा:– और तुम लोग कब नागपुर लौटोगे...

अलबेली:– बॉस की शादी के बाद हम वर्ल्ड टूर पर निकलेंगे... एक लंबा वेकेशन और उसके बाद सब नागपुर...

जया:– चलो ये तो बड़ी अच्छी खबर सुनाई... अब तुम सब जाओ और मेरी होने वाली बहु को केवल भेजना...

सभी लोग चले गए। कुछ देर बाद रूही उस कमरे में पहुंची। थोड़ी डरी थी और भीड़ के बीच जो उसने किया, उस हरकत पर थोड़ी शर्मिंदा भी थी, इसलिए जैसे ही वो जया के सामने पहुंची.… "मां जी मुझे माफ कर दीजिए, उस वक्त थोड़ा गुस्से में थी, इसलिए आपकी सबको मौजूदगी को नजरंदाज करती ऐसा कर गई"..

जया, मुस्कुराती हुई रूही के सर पर हाथ फेरती... "बेटा इतना डरेगी तो सच में कोई आर्य को ले जायेगा"…

रूही:– मैं आर्य के लिए पागल हूं मां। लेकिन ऐसा नही है की इस पागलपन ने मेरा दिमाग खराब किया है। मां पता नही क्यों लेकिन जब भी ओशुन को आर्या के साथ देखती हूं, पता नही क्या हो जाता है। ऐसा लगता है की दिमाग ही ब्लॉक हो गया हो। जबकि पलक के साथ वो पूरा महीने का टूर प्लान कर ले जिसमें मैं नही भी रहूं तो भी किसी प्रकार का ख्याल नही आयेगा।

जया:– हां मैं समझ सकती हूं। लेकिन तुम ऐसे बार–बार पागलों की तरह करोगी तो तुम्हारे बच्चे पर क्या असर पड़ेगा। तुम्हे उस लड़की पर विश्वास नहीं, लेकिन आर्य पर तो है न...

रूही, भौचक्की नजरों से जया को देखती.… "मां आपको कैसे पता"..

जया:– मैं भी कभी मां बनी थी। मैं भी कभी तुम्हारे दौड़ से गुजरी थी। और जिस गुस्से का परिचय तुमने दिया था, वो प्रेगनेंसी के दौरान मूड स्विंग का नतीजा है। जिनसे खुन्नस खाए होते हैं, उनकी अच्छी बात भी काटने को दौड़ती है..

रूही, जया से लिपट कर... "मां शादी से पहले ही मैं गर्भवती हो गई इस बात से आप नाराज तो नही?"..

जया:– इस बात से नाराज नही बेहद खुश हूं। लेकिन यदि प्रेगनेंसी के दौरान तुम लापरवाह हुई तब नाराज हो जाऊंगी... खुश रहो और अच्छा खाओ... ताकि बच्चा भी स्वास्थ्य और खुशमिजाज हो"…

रूही:– बस 2–4 दिन और मां… ये ओशुन जब रहती है उतने देर मैं पागल रहती हूं, वरना तो मैं एक नाजुक कली हूं...

जया:– कली से फूल बन गई है रे... अच्छा है जल्दी से वर्ल्ड टूर कर आओ फिर तूझसे खूब सेवा करवाऊंगी...

दोनो में काफी देर तक हंसी मजाक चलता रहा। शाम को नाच गाने के कार्यक्रम का भी आयोजन था जहां रूही सबसे पहले ओशुन से माफी मांगी और आर्यमणि को खींचकर ओशुन के साथ डांस करने भेज दी। कई तरह के कार्यक्रम और झूम कर मजे करने वाली शाम थी। आज तो यह पहला दिन था और अभी तो शादी का रंग जमना शुरू ही हुआ था।
बहुत ही शानदार लाजवाब अपडेट भाई
 
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भाग:–146


दोनो में काफी देर तक हंसी मजाक चलता रहा। शाम को नाच गाने के कार्यक्रम का भी आयोजन था जहां रूही सबसे पहले ओशुन से माफी मांगी और आर्यमणि को खींचकर ओशुन के साथ डांस करने भेज दी। कई तरह के कार्यक्रम और झूम कर मजे करने वाली शाम थी। आज तो यह पहला दिन था और अभी तो शादी का रंग जमना शुरू ही हुआ था।

17 दिसंबर की सुबह आर्यमणि अपने पूरे पैक के साथ टहल रहा था तभी उनकी खुशियों को बढ़ाने एक और साथी चली आयी। ओजल उनके बीच चहकती हुई पहुंची और झपट्टा मार कर सीधा अपने भाई के गले लग गयी। उसके बालों को सहलाती, उसके गालों को चूमती... "कामीने तूने मुझे जरा भी मिस नही किया न"…

इवान:– अच्छा... छोड़कर गयी तुम और मुझसे मेरे दिल का हाल जानने के बदले सीधा अपनी बात थोप दी...

"मैं तो मजाक कर रही थी। तू अब भावुक न हुआ"… इतना कह कर वो इवान से अलग हुई और चहकती हुई सबके गले लग गई.…

आर्यमणि:– ये संन्यासी शिवम सर पीछे क्यों खड़े है?

ओजल:– .. मेरी खास सुरक्षा के लिए आये है?

संन्यासी शिवम:– फिर से मस्ती। गुरुदेव मैं ओजल की सुरक्षा के लिये नही बल्कि ओजल से सुरक्षा के लिये आया हूं।

आर्यमणि:– मैं समझा नही।

संन्यासी शिवम:– अभी ओजल यहां आ गयी है तो मेरी बात भी समझ में आ जायेगी। फिलहाल छोटे गुरुदेव (अपस्यु) पलक के साथ सीखने में कुछ ज्यादा व्यस्त थे इसलिए विवाह में नही पहुंच पाने का उन्हे खेद है। बाकी आपकी शादी के मंत्र पढ़ने के लिये आचार्य जी ने मुझे भेजा है। उन्होंने खास तौर से यह कहा था कि विवाह के दौरान पढ़े गये वैदिक मंत्र के संपर्क में एक भी पत्थर नही आना चाहिए, इसलिए एमुलेट को वो लोग मेरे पास अभी जमा कर दे। वो सबके पास अपने आप पहुंच जायेगा। आपकी शादी में कोई विघ्न न आये इसके लिये 11 संन्यासी हमेशा तत्पर रहेंगे। खुल कर इस शादी का लुफ्त उठाए।

आर्यमणि:– टीम आचार्य जी की बात का खास ख्याल रहे... और यहां के मस्ती में कोई कमी न रहे...

अल्फा पैक पूरा हो चुका था। सब हंसी खुशी साथ घूमने निकले। चलते हुए आर्यमणि एक मैदान में पहुंचा जहां ओशुन अपने कुछ साथियों के साथ खेल रही थी। ये नेरमिन के पैक का हिस्सा तो नही थे लेकिन आर्यमणि सबको पहचानता था। ये वुल्फ हाउस के वही बीटा थे जो वहां के अल्फा को मारकर उसकी ताकत को हासिल करके भागे थे। कुल 5 लोग थे... अजरा, रोज, लिलियन लोरीश, जाइनेप यलविक और ओशुन।

उन लोगों की नजर जैसे ही आर्यमणि पर गयी.…. "क्यों मेरे तन बदन की आग एक बार फिर वही पुराना गेम शुरू करे क्या?"…. दिलफेक रोज जो अक्सर आर्यमणि को छेड़ा करती थी, एक बार फिर छेड़ती हुई कहने लगी...

रूही, गुस्से में उस रोज को घूरती.… "ये लड़की कौन है आर्य"

आर्यमणि:– तुम्हे याद है मैने वुल्फ हाउस की एक कहानी बताई थी जिसने 5 लोग अल्फा बनकर निकले थे..

रूही:– हां...

आर्यमणि:– ये वही पांचों है...

अल्फा पैक ने जैसे ही यह सुना, सबकी आंखों में जैसे खून उतर आया हो... चारो ही तेजी से उनके ओर भागे... वो लोग भी अपना खेल छोड़कर अल्फा पैक ओर भागे... तभी बीच में नेरमिन किसी रेफरी की तरह पहुंची और दोनो पक्ष को पीछे हटाती.… "ये सब क्या है यालविक... यदि हमारा यहां आना तुम्हे पसंद नही था तो पहले बता देते... लेकिन शादी का यूं माहोल तो खराब मत करो"…

जाइनेप यलविक:– हमारे क्षेत्र में आकर यही लोग हम पर हमला करने की सोच रहे थे नेरमिन। अपने मेहमानों को पहले वेयरवुल्फ और उसके लिy उसका इलाका क्या होता है वो समझाओ। और उसके बाद ये समझाओ की याल्विक के पैक से पंगा लेने पर क्या होगा? जाओ चूजों, मेहमान हो इसलिए बच गये लेकिन हर बार नही बचोगे फिर चाहे बीच में नेरमिन ही क्यों न आ जाये...

आर्यमणि:– तुम सब आ जाओ... सुना नही ये किसका इलाका है... हम शादी का मजा लेते है, उन्हे अपने इलाके का मजा लेने दो...

रोज:– इलाके का प्रतिबंध तुम पर नही है आर्यमणि… क्योंकि हम सब यहां तुम्हारी वजह से ही तो है...

आर्यमणि:– जरा धीरे बोलो रोज कहीं यालविक को बुरा न लग जाए।

यालविक:– नही चुतिए मुझे बिलकुल भी बुरा नही लगेगा। रोज सही बोली, तेरे ऊपर सीमा प्रतिबंध नही है। जरा यहां तो आ और अपने पैक को दिखा की कैसे हम तेरी लेते थे।

अजरा:– तू तो इसे देखकर समलैंगिक हो गया था बे…

ये लोग आपस में चिल्लाकर कह रहे थे और इधर अल्फा पैक के सभी वुल्फ अपना आपा खो रहे थे... "बॉस शादी गई भाड़ में, आज तो उन्हे सबक सिखाकर जायेंगे"… अलबेली पूरे आवेश में आ कर बोली... जिसके बात का समर्थन सबने किया...

आर्यमणि:– ओजल इस वक्त तुम ही संतुलित दिख रही। सबको यही रोककर रखो...

आर्यमणि अपनी बात कहकर तेजी से निकला। इस बार भी नेरमिन बीच में आयी... "आपने सुना नही यालविक ने क्या कहा, सीमा विवाद मुझ पर लागू नहीं होता... अब जरा रास्ते से तो हटो"…

यालविक:– रास्ते से हट जाओ नेरमिन, चुतिये से जरा हम मिल ले...

जैसे ही नेरमिन उनके बीच से हटी वैसे ही आर्यमणि उनके बीच पहुंचा... यालविक ने सीधा आर्यमणि का गला दबोच लिया अपने क्ला को उसके कमर में घूसाकर पैंट फाड़ने वाला था। लेकिन तभी आर्यमणि ने कमर पर गई हाथ को पकड़ा और उल्टा घुमा दिया... कड़क की आवाज के साथ उसकी हड्डी चूर हो गई। अगले ही पल आर्यमणि ने पहले यालविक के टी–शर्ट को पकड़ा और उसे खींच कर निकाल दिया।

जैसे ही ये कारनामा हुआ यालविक का पूरा पैक दौड़ गया लेकिन अगले ही पल आर्यमणि हवा में हाथ ऊपर किया और 360⁰ पूरा घूमकर माउंटेन ऐश फैला दिया। जमीन पर गिरते ही माउंटेन ऐश की गोल दीवार बन गई। जितनी तेजी से वो लोग करीब आ रहे थे, माउंटेन ऐश की सीमा से टकराकर वो हाल हुआ की सबकी हालत खराब हो गई।

टी–शर्ट निकाला, हवा में माउटेन ऐश बिखेरा और फिर एक ज़ोरदार लात उसके सीने पर। यालविक जाकर माउंटेन ऐश की दीवार से टकराया और उसके मुंह से पूरा झाग, थूक निकलने लगा। आर्यमणि बिना कोई वक्त गवाए यालविक के बचे कपड़े उतारकर उसे पूरा नंगा कर दिया। उसकी इतनी हालत नही थी की वो उठकर बैठ सके आर्यमणि पर हाथ उठाना तो दूर की बात है। वैसे एक बात और थी, जितने भी वेयरवुल्फ थे उन्होंने हमला करने के लिए अपना शेप शिफ्ट किया था सिवाय आर्यमणि के, जो बिना शेप शिफ्ट किये यालविक को उसके बड़बोलेपन की सजा दे रहा था।

यालविक के हाथ की हड्डी नही बची। सीने की हड्डी गई और माउंटेन ऐश की दीवार से टकराने की वजह से उसे 2 सेकंड के लिए उससे 1200 वोल्ट का झटका भी लगा था। आर्यमणि आराम से नीचे बैठा... प्यार से उसके सर पर हाथ फेरते... "अकेले में कहता न तो मैं चुप चाप चला जाता। किसी शांत इंसान को उसके परिवार के सामने बेज्जती नही करना चाहिए यही आज का तुम्हारा सबक है।"…

"अ.. आ.. आर्य.. ब.. ब... बहुत दर्द हो रहा है"… किसी तरह कर्राहते हुए यालविक गुहार लगाने लगा... आर्यमणि अपना हाथ डालकर उसकी पीड़ा को हरने लगा। जैसे–जैसे दर्द कम होता जा रहा था वैसे–वैसे वो असीम सुख अपने अंदर महसूस कर रहा था। और जैसे ही वो पूरा हील हुआ अगले ही पल फिर एक बार सीधा अपने फेंग आर्यमणि के गर्दन में घुसा दिया।

इस बार आर्यमणि कुछ टॉक्सिक को अपने हथेली में प्रवाह करते हुए उसके सर पर ऐसा पंजा मारा की हथेली जितना जगह मे उसका पूरा सर गंजा हो गया और उसके सर से धुवां उठने लगा.. ऐसा लगा जैसे पिघला लावा किसी ने सर पर डाल दिया हो। बाप–बाप चिल्लाने लगा...

आर्यमणि उसे वही चिंखता छोड़ अपने कदम जैसे ही आगे बढ़ाया, सभी वोल्फ की आंखें फैल गई। और जैसे ही आर्यमणि ने माउंटेन ऐश की दीवार पार किया, सभी गहरे सदमे में चले गए... "आखिर से संभव कैसे हुआ"..

किसी तरह रोज, आजरा, लिलियन और ओशुन खड़े हुए लेकिन अगले ही पल आर्यमणि मात्र अपने नजरों के इशारे से उन्हे घुटने पर ला दिया। ऐसा एनिमल कंट्रोल इंस्टिंक्ट देखकर खुद नेरमिन भी हैरान थी.… तभी पहली बार उस जगह पर आर्यमणि की आवाज गूंजी.…

"पूर्व में क्या हुआ था और क्या नही, वो तुम सब जितनी जल्दी भूल जाओ उतना बेहतर है। एक बात याद रहे, किसी भी वजह से यदि दोबारा मेरी फैमिली को जिल्लत झेलनी पड़ी फिर तुम लोग सोच भी नही सकते की मैं कितना दर्द दे सकता हूं। कुत्तों के सीमा नियम कुत्तों पर लागू होते है, शेर जंगल का राजा होता है और पूरी जंगल ही उसकी सीमा है... ये बात अपने दिमाग में डाल लो। खासकर तुम ओशुन, क्योंकि तुम्हारा जो वहम था न की कोई तुम्हे कंट्रोल नही कर सकता वो शायद अब टूट गया होगा। अब जरा मैं अपने पैक के साथ समय बिता लूं। शादी के मजेदार पल को मैं तुम जैसे बदबूदार मल पर बर्बाद नही कर सकता"…

अलबेली दो उंगली अपने मुंह में डालकर कान फाड़ सिटी बजाती.… "बॉस इनका पिछे से पिछवाड़ा फटकर फ्लावर हो गया है। चलो यहां से वरना कहीं दिल का दौड़ा पड़ गया तो शादी में शोक की शहनाई गूंजने लगेगी"…

अलबेली की बात पर सभी हंसते हुए निकले। इधर आर्यमणि ने अपने आंखों से ऐसा कंट्रोल किया की उसके जाने के 2–4 घंटे बाद तक वो लोग वैसे ही घुटनो पर रहे। पूरी तरह से खौफजदा हो चुके थे। यालविक के 250 वुल्फ का पैक उस रिजॉर्ट में पहुंचा। उनका मुखिया सदक यालविक जब सुना की एक ऐसा वुल्फ भी है जो माउंटेन ऐश हो पार कर गया, सुनकर ही वो सकते में आ गया।

यूं तो वो हमला करने के इरादे से आया था लेकिन जाइनेप यलविक उन सबको रोकते.… "सादिक तुम अपने अल्फा और बीटा को वुल्फ साउंड से कंट्रोल करते हो, वो मात्र नजरों से कंट्रोल करता है। उसे चिल्लाने की भी जरूरत नही। ईडन जैसी केवल फर्स्ट अल्फा को उसने नही मारा, बल्कि जिस सरदार खान के डर से अपना पूरा पैक छिप जाता था उस सरदार खान को मारकर, वहां से फेहरीन की बेटी रूही को निकाल लाया। वो केवल शादी के लिये यहां आया है, मुझसे ही गलती हुई जो उसे कमजोर समझकर उकसा दिया"…

सादिक गहरी श्वांस लेते.… "मतलब वो लड़ाई की चुनौती देकर हमारा पैक तोड़ने नही आया"..

नेरमिन:– बिलकुल नहीं... शादी की इजाजत तो मैं खुद मांगने आयी थी ना...

सादिक:– ठीक है फिर, उसे शादी करके जाने दो... हम बेकार में उनसे क्यों उलझे... देखा जाए तो माउंटेन ऐश की सीमा में वो तुम्हे मार सकता था लेकिन उसने तुम्हे हील किया। अच्छा वुल्फ है... ऐसे वुल्फ से दोस्ती बनाकर रखने में ही फायदा है... नेरमिन आज रात जश्न का दावत दो...

नेरमिन:– वो वुल्फ की दावत में नही आ सकता क्योंकि वो अपने कुछ इंसानी दोस्त और रिश्तेदार के साथ आया है। तुम ही रिजॉर्ट चले आओ।

सादिक:– हम्मम ठीक है, कुछ लोगों के साथ मैं ही मिलने आता हूं।

17 दिसंबर की शाम सादिक अपने कुछ वुल्फ के साथ आर्यमणि के शादी की जश्न में सामिल हुआ। एक बड़े से लॉन में इनकी पार्टी चल रही थी जब सादिक वहां पहुंचा। यूं तो पहुंचा था आर्यमणि से मिलने लेकिन सामने भूमि को देखकर.… "एक वेयरवुल्फ और एक शिकारी की दोस्ती"…

भूमि:– सादिक... यालविक पैक के मुखिया... मैं भूल क्यों गयी की तुमसे यहां मुलाकात हो सकती है...

सादिक:– मैं तो अपने पैक केड ओर से माफी मांगने और आर्यमणि के ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाने आया था लेकिन, अब लगता है कि जान बचाकर भागने की नौबत आ गयी हैं..

भूमि:– मजाक अच्छा था... वैसे कहां है तुम्हारा 400 का बड़ा सा पैक... हमला करने के लिए इतना इंतजार क्यों कर रहे...

सादिक:– इंसानों के बीच हम अपनी पहचान जाहिर नही करते... और न ही किसी भी प्रकार के हमले के इरादे से आए हैं...

आर्यमणि:– सादिक यालविक, आप मेरी शादी में शरीक हो रहे ये हमारी खुशकिस्मती है। आज सुबह जो कुछ भी हुआ वो मात्र एक छोटी सी गलतफहमी का नतीजा था, वरना लड़ाई–झगड़े को मैं कभी पसंद नही करता...

सादिक:– तभी तो शांति और दोस्ती की बात करने आया हूं।

आर्यमणि:– बेफिक्र रहिए यहां शांति ही रहेगी। और रही बात दोस्ती की तो हम दोस्त तो नही हो सकते। लेकिन विश्वास कीजिए आप मेरे अपने है। अच्छे काम के लिए जब भी मुझसे सपर्क कीजिएगा मैं आपके साथ खड़ा रहूंगा...एक सच्चे सहायक के रूप में... अब जरा माफ कीजिए.. मैं बाकी लोगों से भी मिल लूं...

आर्यमणि, अपनी बात कहकर वहां से निकला और निशांत के पास आकर बैठ गया। दोनो बीयर की एक घूंट पीकर एक दूसरे को देख मुस्कुराने लगे। कुछ नए पुराने, खट्टे मीठे बातों से कारवां शुरू हुआ जो देर रात तक चलता रहा। एक–एक करके लोग आते रहे और उनके साथ जुड़ते रहे...

निशांत जब भी आर्यमणि के मजे लेता एक बार रूही से जरूर कहता, "माफ कीजिएगा भाभी, अभी अपने पति के बारे में सुनकर मूझपर गुस्सा न होना"… इतने छोटे से सफाई के बाद निशांत जो ही आर्यमणि की खिंचाई करता... फिर काहे का अल्फा, बीटा और गामा का लिहाज... सभी टीन वुल्फ अपने बॉस की खिंचाई का पूरा आनंद उठा रहे थे।

18 दिसंबर, शाम के लगभग 6 बजे, मुंबई की किसी खुफिया जगह पर बहुत से लोग मिल रहे थे। लगभग 100 लोगों की ये सभा थी, जिसमे कुछ जाने पहचाने चेहरे भी थे। सुकेश भारद्वाज उनमें से एक प्रमुख नाम, जो सबको शांत रहने का इशारा करते.… “यहां जितनी भी बातें होंगी वो आपके दूसरे नायजो साथियों को भी पता न चले। यहां जितने लोग है, वो किसी से भी इस मीटिंग की चर्चा नही करेंगे। आगे की मीटिंग के लिये मैं विवियन को बुलाना चाहूंगा जो हुर्रीयेंट प्लेनेट पर अपने तेज दिमाग और 12000 खूंखार टुकड़ी की कमांडिंग के लिये मशहूर है।”...

विवियन:– एक नाग फन फैलाए हमे डशने की कोशिश कर रहा। हमारा बहुत नुकसान कर चुका है। उसने वाकई दिखा दिया की वह खतरनाक है और किस हद तक कुरुर हो सकता है। हमे डराकर, हमारे अस्तित्व को चुनौती देकर, हमसे पृथ्वी छोड़ने की धमकी देकर, वह बेखौफ घूम रहा। क्या हम इतने कमजोर हो गये की अदना से वोल्फ पैक और दुर्बल से सात्त्विक आश्रम से डर जाये?”...

पूरी भीर आक्रोश में आते.... “उसका सर धर से अलग कर, चौराहे पर टांग देंगे।”...

“तो फिर चलते है.... हमारी ये 100 की टुकड़ी उस आर्यमणि को उसके शादी पर मौत का तोहफा देकर आये।”.... विवियन ने जोश भरा और चारो ओर से मारो–मारो, मार डालो की गूंज उठने लगी।
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भाग:–147


इधर टर्की में, खुशियों के बीच शादी के रश्मों का कारवां आगे बढ़ने लगा। हर दिन नए उमंग और नया जोश भरा होता। वो परिवार के बीच की खिंचाई और उसके बाद मुंह छिपाकर कटे–कटे घूमना। जया तो ज्यादा मजा लेने के चक्कर में रूही के प्रेगनेंसी के बारे में भी सबको बता चुकी थी।

आखिरकार 20 दिसंबर की शाम भी आ ही गई जब 2 जोड़े अपने परिणय सूत्र में बंध गये। आर्यमणि और रूही का चेहरा बता रहा था कि वो कितने खुश थे। वही हाल इवान और अलबेली का भी था। शादी संपन्न होने के बाद चारो को एक जगह बिठाया गया और उसके चारो ओर नेरमिन की फौज नाचने लगी। कई लड़कियां डफली पीटती हुई उनके चक्कर काटती रही। फिर आर्यमणि और इवान को उठा दिया गया और दोनो के गले में ढोल टांगकर उन्हे बजाने के लिए कहने लगे। वहीं रूही और अलबेली उस ढोल के धुन पर नाचना था...

सभी हंस रहे थे। आर्यमणि और इवान ढोल पिट रहे थे, वहीं रूही और अलबेली मस्त नाच रही थी। इसी बीच अलबेली और रूही का साथ देने, भूमि, निशांत, चित्रा और माधव पहुंच गये। उनको डांस फ्लोर पर जाते देख जया भी ठुमके लगाने पहुंच गयी। वहीं पापा केशव तो एक स्टेप आगे निकले। वो भी आर्यमणि की तरह ढोल टांगकर बजाने लगे।

चारो ओर जैसे खुशी झूम रही थी। शाम के 9 बजे सभी खाने के लिए गये। ठीक उसी वक्त 2 चॉपर रिजॉर्ट में लैंड हुई। जहां सभी गेस्ट खा रहे थे, वहां बड़े से बैनर में लिखा आने लगा.… "परिवार की ओर से छोटी सी भेंट"…

रूही और आर्यमणि को एक चॉपर में चढ़ा दिया गया। अलबेली और इवान को अलग चॉपर में। हां लेकिन इवान को जब चॉपर में चढ़ाया जा रहा था तब ओजल दोनो के पास पहुंची और गले लगाकर दोनो को बधाई देती... "तुम दोनो (इवान और अलबेली) अपने साथ शिवम सर को लिये जाओ। शिवम सर, आप भी इनके साथ जाइए"…

आर्यमणि, भी उन तीनो के पास पहुंचते..... “अरे कपल के बीच संन्यासी का क्या काम.. क्यों शिवम सर?”

ओजल:– इतना डिस्कशन क्यों। बस जो कह रही हूं उसे होने दीजिए जीजू"…

अलबेली, अपने और इवान के बीच संन्यासी शिवम् को सोचकर अंदर से थोड़ी चिढ़ी पर ओजल की जिद पर हां करती..... “ओजल, यहां बॉस भी है वरना ऐसी बात कहती न की तुम दोनो भाई बहन के अंतरियों में छेद हो जाता... दादा (आर्यमणि) रहने दो, आपकी इकलौती साली और अपनी इकलौती नंद की जिद पूरी हो जाने दो। आप भी रूही के साथ जाओ। चलिए शिवम् सर”

इस एक छोटे से विराम के बाद दोनो चॉपर 2 दिशा में उड़ गयी। तकरीबन 10 बजे रात चॉपर लैंड की और ठीक सामने जगमगाता हुआ एक छोटा सा कास्टल था। कास्टल के बाहर ड्रेस कोड में कुछ लोग खड़े थे जो आर्यमणि और रूही का स्वागत कर रहे थे। चॉपर उन्हे ड्रॉप करके चला गया और दोनो (आर्यमणि और रूही) रेड कार्पेट पर चलते हुये अंदर दाखिल हुये। अंदर की सजावट और स्वागत से दोनो का मन प्रश्न्न हो गया। हाउस के ओर से दोनो के लिए तरह–तरह के पकवान परोसे जा रहे थे। सबसे अंत में केक आया... जिसे दोनो ने एक दूसरे को कुछ खिलाया तो कुछ लगाया...

खा–पी कर हो गये दोनो मस्त। उसके बाद फिर रुके कहां। पहुंचे सीधा अपने सुहागरात वाले हॉल में जहां पूरा धमासान होना था। एक बड़ा सा हॉल था, जिसके बेड को पूरी तरह से सुहाग के सेज की तरह सजाया गया था। लहंगे में रूही कमाल लग रही थी, और अब रुकने का तो कोई प्रशन ही नही था। हां बस पूरे घपाघप के दौरान रूही ने बेलगाम घोड़े की लगाम खींच रखी थी और सब कुछ स्लो मोशन में हो रहा था। बोले तो आर्यमणि को तेज धक्के लगाने ही नही दी।

सुबह के 10 बजे तक दोनो घोड़े बेचकर सो रहे थे। पहले आर्यमणि की ही नींद खुली। आंखें जब खुली तो पास में रूही चैन से सो रही थी। उसे सुकून में सोते देख आर्यमणि की नजर उसपर ठहर गई और वो बड़े ध्यान से रूही को देखने लगा। एक मीठी सी अंगड़ाई के बाद रूही की आंखें भी खुल चुकी थी। अपने ओर आर्यमणि को यूं प्यार से देखते, रूही मुस्कुराने लगी और मुस्कुराती हुई अपनी दोनो बांह आर्यमणि के गले में डालती.… "शादी के बाद मैं खुद में पूर्ण महसूस कर रही। थैंक यू मेरे पतिदेव"…

आर्यमणि प्यार से रूही के होंठ को चूमते... "बहुत प्यारी हो तुम रूही।"…

अपनी बात कहकर आर्यमणि बिस्तर से ज्यों ही नीचे उतरा.… "अरे इतनी प्यारी लगती हूं तो मुझे छोड़कर कहां जा रहे"…

आर्यमणि:– बाथरूम जा रहा हूं, सुबह का हिसाब किताब देने... चलो साथ में..

रूही:– छी, छी.. तुम ही जाओ...

कुछ देर बाद आर्यमणि नहा धो कर ही निकला। उसके निकलते ही रूही अंदर घुस गई... "अच्छा सुनो रूही.. मैं जरा बाहर से घूमकर आता हूं।"…

"ठीक है जान, लेकिन ज्यादा वक्त मत लगाना"..

"ठीक है"… कहता हुआ आर्यमणि नीचे आया। जैसे ही नीचे आया एक स्टाफ वाइन की ग्लास आगे बढाते… "गुड मॉर्निंग सर"…

आर्यमणि:– तुम तो भारतीय मूल के लगते हो..

स्टाफ:– क्या खूब पहचाना है सर… विजय नाम है। आपके लिए कुछ अरेंज करवाऊं...

आर्यमणि:– नही शुक्रिया... अभी मैं बस बाहर टहलने निकला हूं...

विजय जोर–जोर से हंसने हुए... "सर बाहर कुछ नही केवल खतरा है। अंदर ही रहिए क्योंकि मैं तो ये भी नही कह सकता की बाहर आपको ठीक विपरित माहोल मिलेगा"…

आर्यमणि:– मतलब...

विजय:– चलिए आपको बाहर लिए चलता हूं यहां से मतलब बताने से अच्छा है दिखा ही दूं…

आर्यमणि जैसे ही बाहर आया... आंखों के आगे का नजारा देखकर.… "ये क्या है विजय सर"..

विजय:– ये रेगिस्तान का दरिया है। चलिए आपको सैर करवा दूं...

आर्यमणि:– हां हां जरूर... आज से पहले मैं कभी रेगिस्तान नही घुमा...

सर पर साफा बंधा। 2 ऊंट पहुंच गए। आर्यमणि, विजय के साथ सवार होकर घूमने निकल पड़ा। बातों के दौरान पता चला की उनका कैसल रेगिस्तान के बिलकुल मध्य में बना है। सौकिन लोगों के आराम करने की एक मंहगी जगह।

ऊंट पर सवार होकर आर्यमणि तकरीबन 6 किलोमीटर दूर निकला होगा तभी वो अपने चारो ओर के शांत वातावरण की हवाओं में गंध को मेहसूस करते... "विजय"…

विजय:– जी सर कहिए न...

आर्यमणि:– विजय तुम भारत से यहां तक आये, इसका मतलब यहां एलियन ने मेरे लिए जाल बिछाया है? एक बात जो मेरे समझ में नही आयी, तुम एलियन में तो न कोई गंध और न ही किसी प्रकार के इमोशंस को मेहसूस किया जा सकता था? फिर मेरे सेंस को चीट कैसे कर दिये? क्यों मैं तुम्हारी गंध और तुम्हारे इमोशन को मेहसूस कर सकता हूं?”

“हम ऐसे ही अपेक्स सुपरनैचुरल नही कहलाते है। हमारे पास पैसा, ताकत और टेक्नोलॉजी तीनो है। क्या समझे?”.... विजय अपनी बात कहकर आर्यमणि के ऊंट को एक लात मारा, आर्यमणि नीचे गिड़ा और ऊंट भाग गया... विजय अपने ऊंट से कूदकर नीचे उतरते... "जानवर हो न, हवा में ही अपने जैसे वुल्फ की मौजूदगी सूंघ लिये"..

आर्यमणि रेत झाड़ते हुए खड़ा हुआ... "कमाल ही कर दिये विजय... एलियन ने तुम जैसे नगीने के कहां छिपाकर रखा था, आज तक कभी दिखे नही?"…

विजय:– साथियों हमारा दोस्त हमसे कुछ सवाल पूछ रहा है...

जैसे ही विजय ने आवाज लगाई उसके चारो ओर लोग ही लोग थे... एक ओर एलियन तो दूसरे ओर सादिक यालविक का पूरा पैक। लगभग 400 लोगों के बीच घिरा अकेला आर्यमणि…

"हेल्लो आर्यमणि सर, मेरा नाम विवियन है... आप मुझे नही जानते लेकिन आपके दादा जी मुझे अच्छे से जानते थे"… विवियन अपनी बात कहते हुये अपना हाथ झटका और आर्यमणि के चारो ओर किरणों की गोल रेखा खींच गयी। आर्यमणि समझने की कोशिश में जुटा था कि आखिर हो क्या रहा है?... "क्यों मिस्टर विवियन, रिचर्डस साथ आता तो विवियन रिचर्ड्स बन जाते"…

विवियन:– अरे, आर्यमणि सर कॉमेडी कर रहे... सब हंसो रे…

आर्यमणि:– लगता है काफी खराब जोक था इसलिए सादिक और उसका पैक शांत खड़ा रह गया...

सादिक:– क्या करे आर्यमणि तुम जैसे वुल्फ को देखकर उसकी शक्ति पाने की चाह तो अपने आप बढ़ जाती है। लेकिन अकेले तुझ से जितने की औकाद नही थी, इसलिए जब शिकारियों का प्रस्ताव आया तब मैं ना नही कह सका। ऊपर जाकर मेरी बहन फेहरीन (रूही की मां) से मिल लेना।

आर्यमणि:– फिर तुम सब रुके क्यों हो?

तभी एक जोरदार लात आर्यमणि के चेहरे पर... किसी एलियन ने उसे मारा… "क्योंकि अब तक वो अनंत कीर्ति की किताब नही मिली न"…

विवियन:– आर्यमणि सर एक दूसरे का वक्त बचाते है। अभी प्यार से बता देंगे अनंत कीर्ति की किताब कहां है?

आर्यमणि:– एक खुफिया जगह जहां सिर्फ मैं पहुंच सकता हूं...

इसी बीच भीड़ में रास्ता बनने लगा और आखरी से कोई चिल्लाते हुए कहने लगा... "अनंत कीर्ति की किताब मिल गई है, और साथ में इसकी खूबसूरत बीवी भी, जो केवल एक कुर्ते में कमाल की लग रही"…

विवियन:– अरे उस वुल्फ को बीच में लाओ… हमने सुना था सरदार खान के रंडीखाने की सबसे मस्त माल थी...

आर्यमणि गुस्से में जैसे ही कदम आगे बढ़ाने की कोशिश किया, उसके पाऊं जम गये। कुछ बोलना चाह रहा था, लेकिन कुछ बोल नहीं पा रहा था। आंखों के सामने से रूही चली आ रही थी। वो मात्र एक कुर्ते में थी जिसमे उसका पूरा बदन पारदर्शी हो कर दिख रहा था। हर कोई उसे छू रहा था, चूम रहा था, उसके नाजुक अंगों में बड़ी बेरहमी से हाथ लगा रहा था।

रूही के आंखों से खून जैसे बह रहे हो। कान को फाड़ देने वाले लोगों के ठहाके। और दिल में छेद कर देने वाले लोगों के कमेंट... "सरदार खान के गली की सबसे खूबसूरत रण्डी"… अपनी बीवी की इस दशा पर आर्यमणि के आंखों से भी आंसू छलक आए...

विवियन:– एक रण्डी से काफी गहरा याराना लगता है। बेचारा आर्यमणि… कुछ तो करना चाह रहा है लेकिन देखो कैसे असहाय की तरह खड़ा है... अरे सादिक जरा हमे भी तो दिखाओ, तुम्हारे गली की रण्डी के साथ तुम लोग कैसे पेश आते हो...

विवियन ने जैसे ही यह बात कही, सादिक ने रूही की छाती पर हाथ डाला और कुर्ते को खींच दिया। उसका एक वक्ष सबके सामने था, जिसे देखकर सभी हंसने लगे। एक पुरानी बीती जिंदगी भुलाकर जो खुद को एक भारतीय नारी के रूप में देख रही थी, उसे, उसी के पति के सामने एक बार फिर बाजारू बना दिया गया।

रूही अपने बहते आंसू पोंछकर एक बार अपने पति को देखी। अगले ही पल जैसे आंखों में खून उतर आया हो। तेज वेयरवोल्फ साउंड फिजाओं में गूंज रही थी। रूही अपना शेप शिफ्ट कर चुकी थी। सामने यालविक पैक का मुखिया, और फर्स्ट अल्फा सादिक... देखते ही देखते उसके पूरे पैक ने शेप शिफ्ट कर लिया...

रूही के बदन को नोचने सादिक का बड़ा बेटा आदिल तेजी से आगे आया। उसका पंजा रूही के बदन पर बचे कपड़े के ओर और रूही दहारती हुई अपना सारा टॉक्सिक अपने नाखूनों में बहाने लगी... सादिक का लड़का आदिल थोड़ा झुक कर रूही के कपड़े को नोचने वाला था, रूही उतनी ही तेजी से अपने दोनो पंजे के नाखून उसके गर्दन में घुसाई और पूरा गला ही उतारकर हवा में उछाल दी।

रूही जब शेप शिफ्ट की उसकी लाल आंखें जैसे अंगार बरसा रही थी। सामने से 2 वुल्फ अपना बड़ा सा जबड़ा फाड़े, अपने दोनो पंजे फैलाये हवा में थे। जब हवा से वो लोग नीचे आये, उनका पार्थिव शरीर नीचे आ रहा था और सर हवा में उछल कर कहीं भीड़ में गिड़ गया। कड़ी प्रशिक्षण और प्योर अल्फा के असर ने रूही को इस कदर तेज बनाया था कि वह ऊंची छलांग लगाकर हवा में ही दुश्मनों का सर धर से अलग कर चुकी थी।

इसके बाद मोर्चा संभालने आया 3 एलियन जिसने सीधा सिल्वर बुलेट चला दिया। सिल्वर बुलेट तो चली लेकिन रुही के ब्लड में इतना टॉक्सिक दौड़ रहा था कि वो सिल्वर बुलेट शरीर अंदर जाते ही टॉक्सिक मे ऐसा गली की उसका कोई वजूद ही नही रहा... "तेरे ये फालतू बुलेट मेरा कुछ नही बिगाड़ सकते नामुराद"… रूही गला फाड़ती उनके सामने तांडव कर रही थी और जो खुद को थर्ड लाइन सुपीरियर शिकारी समझते थे, वो महज चंद सेकेंड में ढेर हो चुके थे।

रूही के सर पर खून सवार था। लेकिन उसी बीच विवियन अपने 5 साथियों के साथ खड़ा था। रूही तेज थी लेकिन जैसे ही थोड़ा आगे बढ़ी होगी, उन एलियन की नजरों से लेजर तरंगे निकली। एनिमल इंस्टिंक्ट... खतरे को तुरंत भांप गई। किंतु 5 तरंगे एक साथ निकली थी और निशाना पेट ही था। शायद रूही को तड़पाते हुए मारना चाहते थे।

शिकारी अक्सर ये करते है। अपने शिकार का पेट चीड़ कर उसे तड़पते हुये धीमा मरने के लिये छोड़ देते है। उन एलियन को यह इल्म न था कि रूही के पेट में एक और जिंदगी पल रही थी। रूही तुरंत ही अपने जगह बैठ गई। 10 तरंगे उसके शरीर के आर पार कर चुकी थी। रूही के एक कंधे से दूसरे कंधे के बीच पूरा आर पार छेद हो चुका था और रूही दर्द से कर्राहती हुई अपना शेप शिफ्ट करके वहीं रेत पर तड़पने लगी...

ये सारा मंजर आर्यमणि के आंखों के सामने घटित हो रहा था। रूही की तड़प आर्यमणि के दिल में विछोभ पैदा करने लगी। आर्यमणि अपनी आंखें मूंद ईश्वर को याद करने लगा। एक पल में ही जीवन के सारे घटनाक्रम दिमाग में उभरने लगे... और फिर धीरे–धीरे वह अनंत गहराइयों में जाने लगा.…

आंखे जब खुली तब आचार्य जी सामने खड़े थे। आर्यमणि दौड़कर पास पहुंचा और पाऊं में गिरते... "बाबा वो रूही... बाबा रूही"…

आचार्य जी:– खुद को संभालो आर्य.... ऐसी कोई बाधा नहीं जो तुम पार ना कर सको। तुम जल्दी से रूही की जान बचाओ... मदद भी तुरंत पहुंच रही है...

आर्यमणि:– बाबा लेकिन कैसे... मैं अपनी गर्दन तक हिला नही पा रहा हूं।

आचार्य जी:– वो इसलिए क्योंकि अभी तुम्हारा मन विचलित है। थोड़ा ध्यान लगाओ.. पुराने नही नए घटनाक्रम पर... फिर जो अनियमितता दिखेगी, उसे देखकर बस खुद से पूछना, क्या कभी ऐसा हुआ था, और इस बाधा से कैसे पार पा सकते हैं? अब मैं चलता हूं...

अचानक ही वहां से आचार्य जी गायब हो गये। आर्यमणि खुद को किसी तरह शांत करते शादी की घटना पर ध्यान देने लगा। तभी कल रात उसे विजय दिखा। डिनर के वक्त, वो एक थाल में केक सजाकर ला रहा था। वो उसकी कुटिल मुस्कान... प्रतिबिंब में आर्यमणि और रूही एक दूसरे को देखकर खुश थे... जैसे ही केक हाथ में उठा, कुछ छोटे दाना नीचे गिड़ा...

उस वक्त अनदेखा की हुई एक बात... विजय अपने पाऊं के नीचे उस छोटे दाने को तेजी से दबाकर ऊपर देखन लगा, जैसे ही केक अंदर गया, विजय विजयी मुस्कान के साथ मुड़ा। पाऊं के नीचे के दाने को मसलते हुए वहां से चला गया...

"वो दाना.. वो दाना ही छलावा है.... क्या है वो... बाबा वो दाना क्या है, उसी का असर है... क्या कभी आपने ऐसा देखा है... इस दाने के जाल से निकलने का उपाय क्या है... क्या है उपाय बाबा"…

तभी जैसे चारो ओर धुवां होने लगा। एक प्रतिबिंब बनने लगी। आर्यमणि आज से पहले कभी यह चेहरा नही देखा था। आर्यमणि कुछ पूछ रहा था, लेकिन वो इंसान इधर–उधर घूम रहा था। अचानक ही उनका शरीर धू–धू करके जलने लगा। जब आर्यमणि ने उनकी नजरों का पीछा किया तब वहां तो और भी ज्यादा मार्मिक दृश्य था। कई सारे लोग बच्चों को पकड़–पकड़ कर एक बड़े से आग के कुएं में फेंक रहे थे।

आर्यमणि उसके आस पास मंडराते, बाबा बाबा कर रहा था। तभी उनके प्राण जैसे निकले हो। उस शरीर से सफेद लॉ निकली। धुएं की शक्ल वाली वो लॉ थी और शरीर जहां जला था वहां छोटे–छोटे हजारों कीड़े रेंग रहे थे। जैसे ही प्राण की वो लॉ निकली... तभी वहां गुरु निशि की आवाज गूंजने लगा.…

"मैं ये स्वप्न छोड़े जा रहा हूं। महादिपी ने तो केवल आग लगाई थी, लेकिन जिसने भी ये परिजीवी मेरे अंदर डाला वही साजिशकर्ता है। मैं समझ नहीं पाया ये पुराना जाल। प्रिय अपस्यु मेरा ज्ञान और मेरा स्वप्न तुम्हारा है। अब से आश्रम के गुरु और रक्षक की जिम्मेदारी तुम्हारी। बस जीवन काल में कभी तुम ऐसे फसो तो अपने अंदर पहले झांकना... अहम ब्रह्मास्मी… अहम ब्रह्मास्मी… का जाप करना।" इतना कहकर वह प्रतिबिंब गायब हो गया। वह प्रतिबिंब किसी और का नही बल्कि गुरु निशि का था, जो अपने आखरी वक्त की चंद तस्वीरें आने वाले गुरु के लिये छोड़ गये थे।

आर्यमणि वही मंत्र लगातार जाप करने लगा। धीरे–धीरे उसका रक्त संचार बढ़ता रहा। पहले अपने अंतर्मन में जोड़ जोड़ से कहने लगा, फिर जैसे आर्यमणि के होंठ खुलने लगे हो.. पहले धीमे बुदबुदाने जैसी आवाज। फिर तेज, और तेज और एक वक्त तो ऐसा आया की "अहम ब्रह्मास्मी" वहां के फिजाओं में चारो ओर गूंजने लगा।
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