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Fantasy Aryamani:- A Pure Alfa Between Two World's

nain11ster

Prime
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Froog

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Thanks Froog bhai..m bade din baad dikhe
दिखे नहीं लिखे हम तो प्रतिदिन ही अपडेट के इंतजार में रहते हैं , इसलिए कहीं जा ही नहीं सकते
156-157 बहुत ही शानदार
कल गोली मत मार जाना
 

Zoro x

🌹🌹
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भाग:–127


लगभग 1 घंटे लग गये। संन्यासी शिवम किसी को लेकर आ रहे थे। इधर जबतक 2 मिनट का हील और एक मिनट का आराम चल रहा था। आयुर्वेदाचार्य जी आर्यमणि और अलबेली के नब्ज को देखे। फिर कुछ औषधि को दोनो के नाक में पूरा ठूंसकर छोड़ दिये। 10 सेकंड बीते होंगे जब आर्यमणि और अलबेली का चेहरा लाल होने लगा। 10 सेकंड और बीते तब माथे पर सिकन आने लगी। और पूरे 30 सेकंड बाद अलबेली और आर्यमणि खांसते हुये उठकर बैठ गये। दोनो को उठकर बैठे देख रूही, ओजल और इवान ऐसे झपटकर गले लगे की पांचों जमीन पर ही बिछ गये।

कुछ देर के मिलाप के बाद सभी उठकर बैठे। आर्यमणि तो शास्त्री जी के पाऊं छूने वाला था किन्तु शास्त्री जी आर्यमणि को अपने से दूर करते.... “गुरुदेव, ये क्या कर रहे थे।”...

आर्यमणि:– बस आपके ज्ञान को नमन कर रहा था।

शास्त्री जी:– मैं ज्ञानी होता तो गुरु निशि जीवित होते। आपका यहां आने का निर्णय बिलकुल उचित था। और शिवम् का एक बीती घटना याद दिलाना...

आर्यमणि:– कौन सी घटना शास्त्री जी...

शास्त्री जी:– गुरु निशि की जिस दिन मृत्यु हुई थी, उस से कुछ दिन पूर्व उन्हे एक सांप ने काटा था। सांप का जहर तो मैने निकाल दिया लेकिन 3 दिनो तक वह अकड़े रहे थे। हर जड़ी बूटी और हर तरह की औषधि का प्रयोग कर लिया किंतु गुरु निशि उठे नही। उसी के कुछ दिनों बाद गुरु निशि को किसी इंसान ने जलते भट्टी में फेंक दिया। शव परीक्षण तक करने का मौका नही मिला, वरना कई सारे सवाल के जवाब मिल जाते। जिसमें सबसे महत्वपूर्ण तो एक ही सवाल है, कैसे कोई आम सा इंसान गुरु निशि को छू भी सकता था। दोनो ही अवसर पर एक समान सी बात हुई थी...

आर्यमणि:– इस समान बात का नाम पलक है, जो गुरु निशि के कुछ वर्ष की शिष्या रही थी और उनके मृत्यु के कुछ दिन पूर्व पलक अपनी एक साथी से मिलने पहुंची थी।

शास्त्री जी:– हां शिवम ने मुझे उस लड़की के बारे में बताया।

आर्यमणि:– शास्त्री जी तब जो नही कर पाये वो आज कैसे हो गया? हम दोनो को खड़ा कैसे कर दिये?

शास्त्री जी:– तब मेरे पास संजीवनी बूटी नही थी, जो समस्त ब्रह्माण्ड के किसी भी जहर को पल भर में काट दे। किंतु गुरुदेव अपस्यु की खोज के कारण आज हमारे पास संजीवनी बूटी है। मैने संजीवनी बूटी की औषधि तैयार कर दी है, जो लोग वापस जा रहे है उसका सेवन कर ले। ये अगले कुछ दिनों तक किसी भी प्रकार के जहर से आप सबकी रक्षा करेगा।

आर्यमणि:– इतने दुर्लभ जड़ी बूटी का इतना प्रयोग कर लिये। कभी अचानक जरूरत पड़ गयी तो?

शास्त्री जी:– अभी थोड़े और भंडार है। बाकी गुरु अपस्यु से आप स्थान की जानकारी लेकर हमारे भंडार को पुनः भर सकते है।

आर्यमणि:– आपका आभार शास्त्री जी। मैं छोटे से पूछकर संजीवनी बूटी का पूरा भंडार भर दूंगा... अब आज्ञा चाहूंगा... संन्यासी शिवम् सर चलने के लिये तैयार है..

संन्यासी शिवम्:– बिलकुल गुरुदेव..

पूरा अल्फा पैक के साथ 12 और संन्यासी जुड़ चुके थे। आर्यमणि ने वुल्फ हाउस के अंदर टेलीपोर्ट होकर पहुंचने का स्थान सोचा और संन्यासी शिवम् सबको लेकर वहां पहुंच गये थे।

शाम होने को आयी थी। वोल्फ हाउस के बड़े से हॉल के बड़े से डायनिंग टेबल पर पलक बैठी हुई थी। हॉल के बाएं किनारे से बड़ा सा खाली स्थान था, उसी जगह सभी नायजो का भोजन पकाया जा रहा था। लगभग 1000 नायजो वुल्फ हाउस के चप्पे, चप्पे पर फैले हुये थे। लगभग 200 नायजो रूही, ओजल और इवान के गुस्से का शिकर हो चुके थे। ये सभी डंपिंग ग्राउंड में कांटों की चिता पर लेटे थे और उनके शरीर में कैस्टर ऑयल फ्लावर का जहर उतार दिया गया था। भारती को छोड़कर लगभग एलियन का शरीर प्रयोगसाला वाला था, किंतु दर्द किसी का कम न था। इसका मुख्य कारण यह भी था कि स्थाई रूप से घुसे कांटे बदन के उस हिस्से को हील नही होने दे रहे थे और सारा जहर उन्ही काटों के मध्यम से जा रहा था। अब शरीर में एक मोटा कांटा थोड़े ना घुसा था, एक के शरीर में लगभग 200 से 300 मोटे–मोटे कांटे घुसे थे।

महा वुल्फ हाउस की सीमा पर खतरे के निशान के बाहर अपने 400 लोगों के साथ टेंट में था। वो भी तब तक नही जाना चाह रहा था, जबतक पलक इस जगह को छोड़ नही देती। महा भी यहां चल रहे न समझ मे आने वाली चीजों को समझने की कोशिश में लगा हुआ था।

पलक डायनिग टेबल के चारो ओर बैठे अपने 20 लोगों को घूर रही थी.... “किस बात के कंप्यूटर एक्सपर्ट हो तुम लोग, 2 घंटे में अब तक सर्वर का पता न चला। सारे कैमरा यहां से देख सकते है। पर किसी को हैक नही कर सकते..दूसरे हैकर होता और उसे ऐसे खुला लैपटॉप मिल जाता तो वो आधे घंटे में रिजल्ट दे देता।”

सोलस:– अपना जो मुख्य कंप्यूटर एक्सपर्ट था वो तो सामान ढूंढने गयी टीम के साथ था। जिसे उस आर्यमणि ने जलाकर मार डाला..

पलक:– ओह हो.. तभी मैं कहूं की वो आवाज नहीं सुनी, “और कोई काम मेरी सुपर क्रश”... क्या उसे मार डाला?

सोलस:– हां मार डाला होगा। 220 में से आर्यमणि ने एक को छोड़ा, अब वो मोनक तो न हो सकता।

पलक:– हां सही कहे। लेकिन जब वो गया तभी कोई नया रिक्रूटमेंट क्यों नही किये?

सोलस:– किया था, नाम था जुल। अपने नियम को ताख पर रखकर किया था। एक एक्सपेरिमेंट वाले को बहाल किया था। जिस दिन मोनक निकला उसके अगले दिन ही बहांल किया और उसके अगले दिन ही वो भी समान ढूंढने के मिशन पर चला गया।

पलक:– ये जर्मनी है, कोई हैकर को जल्दी ढूंढकर लाओ। पहले ही बता देते तो 2 घंटे बर्बाद नही होते...

सोलस:– महा की टीम में एक लड़का है, वो बहुत बड़ा हैकर है, 10 मिनट में सारा काम कर देगा...

पलक:– बुलाओ उसे जल्दी... रुके क्यों हो?

थोड़ी देर बाद महा अपने कुछ साथियों के साथ वुल्फ हाउस के हॉल में पहुंचा। उन सबको एक साथ आते देख पलक.... “महा मुझे यहां भिड़ नही चाहिए। बस कंप्यूटर एक्सपर्ट को कुछ देर के लिये छोड़ दो”..

महा:– तुम्हे तो पता ही है, मेरे टीममेट मेरी जिम्मेदारी है। उसमे भी टेक्निकल टीम जो लड़ाई के लिये कभी प्रशिक्षित नही किये गये हो, उनके जान की तो और भी जिम्मेदारी आ जाती है।

एकलाफ, सबके बीच महा को एक कराड़ा झांपड़ मारते.... “मदरचोद, रण्डी का बच्चा, कबसे तेरा चुदुर, चुदूर सुन रहा हूं। सुन बे चुतिये, हमसे यदि जान का खतरा है तो जितनी जल्दी हो सके ये दुनिया छोड़ दे। क्योंकि हम मारने का सोच ले तो जान बच नहीं सकती...

पलक चिल्लाती हुई... “एकलाफ ये क्या तरीका है। जाओ बैठो... तुम दिल पर न लेना महा। वो क्या है ना संस्कार, समझदारी और न जाने किन–किन बंदिशों ने मुझे बांध रखा है। पता नही कैसे लेकिन एकलाफ मेरे दिल की उफनती भावना को समझ जाता है और मेरे दिल को जो सुकून दे, वैसी बात कर देता है। उम्मीद है तुम दिल पर न लोगे। अपने साथी से कहो उस भगोड़े आर्यमणि के कंप्यूटर को हैक करके मुझे सर्वर तक पहुंचाए। मैं नही चाहती की कोई दूर से बैठ कर मेरे हाथ में आया ट्रैपर वापस से आर्यमणि के हाथ में देदे।”

महा अपने हैकर को मुंडी हिलाकर इशारा किया और वो कम्प्यूटर के पास बैठकर कुछ खिटिर–पिटीर करने लगा। उसके हाथ तो जैसे राजधानी ट्रेन बनते जा रहे हो। क्या टाइपिंग स्पीड पकड़ा था। 2 मिनट तक लैपटॉप के बटन को पूरी तरह से उधेरने के बाद.... “सर्वर लोकेशन जर्मनी का ही है। बस 2 मिनिट में सर्वर तक पहुंच जायेंगे”...

पलक:– जितना मैं कंप्यूटर के बारे में जानती हूं, यदि इस सिस्टम से कोई सॉफ्टवेयर ऑपरेट होता है तो लीगली इस सिस्टम से सर्वर का पता तो लगा ही सकते है ना...

हैकर:– नही... हम सर्वर का ऊपरी हिस्सा जैसे की सॉफ्टवेयर डेवलपर नेम, सर्वर डिटेल मिलता है। हां इतनी सुविधा भी काफी है वक्त बचाने के लिये। वरना दूसरे सिस्टम पर होते तो पहले इस सिस्टम को हैक करके ये सब जानकारी निकालनी होती। खैर ये हम पहुंच गये सर्वर सिस्टम तक...

“गधे ये नही करना था न। अपना लैपटॉप इस्तमाल करते तो हैक भी कर लेते। मेरा ही सिस्टम से मेरे ही सॉफ्टवेयर के मास्टर कंप्यूटर तक पहुंचने को कोशिश कर रहे। मेरी सुभकमना...”

कंप्यूटर की स्क्रीन देखकर वो लड़का बोलते बोलते चुप हो गया। पलक जिग्यासावश पूछने लगी, "हो गया क्या?" तब वह लड़का सिस्टम को पलक के ओर घुमा दिया जहां संदेश के बीच में उल्टी गिनती चल रही थी... “6, 5, 4, 3, 2, 1, 0... और बूम”... छोटे धमाके से पहले कंप्यूटर ब्लास्ट हुआ और उसी के साथ वुल्फ हाउस की बत्ती गुल। पूरा वुल्फ हाउस अंधेरा... और उसी अंधेरे से निकली खौफनाक दहाड़।

दहाड़ जो दिल बिठा दे। दहाड़ जो हृदय की गति बढ़ा दे। दहाड़ जो दुश्मन के हौसले को पस्त कर दे। आर्यमणि के गले से मौत की दहाड़ निकल रही थी। उसी दहाड़ के बीच में छोटे से भोंपू पर पलक की आवाज़ गूंजी... “कोर टीम तैयार... सब अपनी टुकड़ी में इस भेड़िए को दिखा दो की बॉस कौन है।”..

अभी दरवाजे से आवाज आ रही थी। जैसे ही पलक ने बोलना बंद किया, अल्फा पैक की दहाड़ सेकंड फ्लोर से आने लगी... चारो ओर आ रही वुल्फ की आवाज से पूरा वुल्फ हाउस थर्रा गया। और उन्ही आवाजों के बीच से एक एलियन की चीख निकली और वो शांत... “ये जो मरा उसके शरीर पर कोई एक्सोरिमेंट नही हुआ था, पलक के कोर टीम का एक बंदा गया।”...

आर्यमणि जैसे ही चुप हुआ मानो एलियन के बीच से चार आंधी दौड़ी, और चार चीख एक साथ निकलकर चुप... “ये चारो भी एक्सपेरिमेंट किये नही थे, लगता है कोर टीम गया”...

आर्यमणि चुप तो रूही बोली। रूही चुप हुई तो फिर से एक बार शायं–शायं करते वुल्फ कई एलियन के पास से गुजर रहे थे, कभी वो इधर पलटते तो कभी वो उधर...

पलक:– ओह हो शुरवाती जीत पर इतना इतराना... लाइट...

जैसे ही पलक लाइट बोली, चारो ओर जगमग–जगमग रौशनी। बड़े से हॉल के बीच के हिस्से में पूरा अल्फा पैक खड़ा था। जैसे ही सभी दिखे पूरे एलियन ने सबको घेर लिया.... “क्या हुआ भेड़ियों, जड़ नही निकल रहा क्या... ओह बेचारे जानते ही नहीं की हमने जड़ों के न निकलने का इंतजाम कर दिया है। हाथ में मोबाइल या कंप्यूटर भी नही जो ट्रैप कर सको... अब क्या करोगे वेयरवोल्फ के राजा। सभी एक साथ हमला करेंगे, केवल आर्यमणि को घायल करना बाकियों को सुला दो।”

जैसे ही हमले का आदेश हुआ, पहले तो पूरे हॉल में ही पाउडर का जैसे होली खेल रहे हो।कई प्रकार के जहरीली पाउडर को हवा में छोड़ा गया। पूरा हॉल धुवां जैसा हो गया और संपूर्ण शांति। तभी उस शांति को चीरती आर्यमणि की तेज दहाड़... दहाड़ इतनी आंधियों वाली थी की बचाव में सब नायजो अपने हाथ से हवा की आंधी उठाकर बचने की कोशिश कर रहे थे। लेकिन आर्यमणि के आंधी में एक ही अंजाम होना था, सभी धम्म–धम्म की आवाज के साथ दीवार से टकरा रहे थे। आंखों के लेजर भी बीच में चले लेकिन 12 संन्यासी के साथ संन्यासी शिवम् और निशांत का वायु विघ्न मंत्र जाप ऐसा था कि हवा का बवंडर, उस से निकला बिजली, आग, तीर, भला या फिर आंखों से निकल रही किरणे किसी को छू भी नहीं पा रही थी।

“क्या हुआ पलक मैडम, बादल, बिजली, बरसात सब फेल हो गये। तुम्हारा पैरालाइज पाउडर कोई काम न आया। नायजो का जड़ी–बूटी विज्ञान भी फेल। आंखों की जिस शक्ति के गुमान पर खुद को सर्व–शक्तिमान समझ रहे थे, वो भी गया। चलो फिर मुकाबला बाहुबल से करते है। चलो आजमा ले भुजाओं की ताकत। अल्फा पैक दिखा दो इन्हे की दरिंदगी क्या होती है। आज मौत भी खौफ खा जाये वो हाल करो। टूट पड़ो।”

सबसे पहले ओजल ही तैयार हुई। कदमों को पूरा जमाई, हाथ में कल्पवृक्ष दंश और आंधी समान दौड़ती हुई जब दंश की मणि से रास्ते में आने वाले एलियन को काटना शुरू की फिर तो वो 2 टुकड़े में बंट कर अपने–अपने टुकड़ों को बस हील ही कर रहे थे। पीछे से पूरा वुल्फ पैक ओजल को जोश दिलाते मौत की दहाड़ निकाल रहा था।

फिर तो अल्फा पैक के बचे सदस्य भी कूद गये... हर कोई अपना शेप शिफ्ट किये, अपने पंजों में मौत भरे... आंखों से लेजर चला रहे एलियन के पास पहुंचते। एक अल्फा पर सैकड़ों लोग लेजर चला रहे होते। 2 वोल्फ एक एलियन को पकड़ते। एक वुल्फ उस एलियन के गले में अपने दोनो पंजे के क्ला को घुसाता, तो दूसरा ठीक उस क्ला के ऊपर अपने दोनो पंजे के क्ला को घुसकर पूरा गर्दन विपरीत दिशा में खींच लेते। नतीजा एक के हाथ में धर होता और दूसरे के हाथ में सर। सर को ऊपर हवा में उछालकर जोर से चिल्लाते... “अब हील होकर दिखा”...

बर्बरता का खेल जारी था। हर 10 सेकंड में 2 सर हवा में होते। सब एलियन प्रहरी से सर्टिफाइड वोल्फ हंटर भी थे। नही कुछ समझ में आया तो वोक्फबेन का धुआं छोड़े। स्टन रॉड का प्रयोग भी किया। लेकिन आज तो सब बेकार था जैसे। अल्फा पैक लगातार एलियन को काटते जा रहे थे। उनकी बर्बरता देख सभी एलियन पूर्णतः खौफजदा थे। उसपर से जब एक बार फिर आर्यमणि की तेज और लंबी मौत की दहाड़ निकली, फिर तो पलक भी गीला कर चुकी थी, बाकियों के तो पीले भी हो चुके थे।

सब के सब एलियन दरवाजे के ओर भागे। लेकिन दरवाजा मंत्र की चपेट में था और पूर्णतः सील.... "अल्फा पैक... काम जल्दी खत्म करो, हमे घूमने भी जाना है।”... अपनी बात समाप्त कर आर्यमणि ने फिर से एक बार दहाड़ लगाई। सामने जो एलियन दिखा उसे गर्दन से पकड़कर उठाया और सीने में हाथ डालकर उसके धड़कते दिल को खींचकर बाहर निकालते.... “अब तक वो टॉक्सिक नही बना जो अल्फा पैक के हाथ को गला दे। अल्फा पैक... इन सबके सीने में हाथ डालकर इनके दिल निकाल लो”

“जब तुम लोग मर ही रहे तो हौसले क्यों पस्त है। एक के मुकाबले सैकड़ों हो। एक–एक को पकड़ कर हावी हो जाओ। उन्हे आंख से नही मार सकते तो अपने साथ लाये खंजर, चाकू ही घोप डालो। मारो और तब तक मारते रहो जबतक मर न जाये। क्ला से जबतक एक को फाड़ते है तब तक 100 चाकू घुसा दो।”... पलक भी चिल्लाई..

उसका चिल्लाना सुनकर भागते नायजो के कदम ठहर गये। सभी में थोड़ा जोश आया और खंजर, चाकू बाहर। हुआ वही जैसा पलक ने सुझाव दिया। जबतक एक का सीना चिड़कर दिल निकालते, तब–तक 20 चाकू घुस चुके होते। यह तिलिस्मी हमला नही था, बल्कि खंजर चाकू का हमला था। वोल्फ पैक की न सिर्फ दर्द भरी चीख निकली, बल्कि उनकी चीख से मौत की बू भी आने लगी। फिर 20 चाकू कब मल्टीपल होकर 50, 100, 200 हुये, किसी को पता भी नही चला। महज एक मिनट में तो चाकू से बदन गोद चुके होते। नतीजे जल्दी सामने आये और पलक के पक्ष में थे। खून इतना बह गया था कि रूही, अलबेली और इवान जमीन पर बिछ चुके थे और उनके ऊपर एलियन का झुंड, दे चाकू पर चाकू गोद रहे थे।

आंधी सी फिर वो एक दौड़ थी। अब तक जो चमत्कारिक रूप किसी भिड़ ने नही देखा, वो रूप था। चमकता बदन, श्वेत खाल और जब दौड़े तो आंधी के समान लगे। भगवान नारायण ने नर–सिंह अवतार की आराधना में जन्म लिया बालक जैसे उन्ही की अनुकंपा से अलौकिक नर–भेड़िया के अवतार में जन्म लिया हो। इस बार दहाड़ नही निकली। आंधी समान आर्यमणि दौड़ रहा था। जिस भिड़ को दौड़ते हुये धक्का देता, ऐसा लगता ट्रेन ने किसी भिड़ को धक्का दिया हो। विस्फोट के साथ वो तीतर–बितर होते और आर्यमणि नीचे पड़े अपने साथी को उठाकर तेजी से बेसमेंट में छोड़ आता, जो हॉल के ठीक नीचे बना था और जहां से सारे संन्यासी मंत्र पढ़ रहे थे।
बहुत ही शानदार लाजवाब अपडेट भाई
 

Zoro x

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भाग:–128


आंधी सी फिर वो एक दौड़ थी। अब तक जो चमत्कारिक रूप किसी भिड़ ने नही देखा, वो रूप था। चमकता बदन, श्वेत खाल और जब दौड़े तो आंधी के समान लगे। भगवान नारायण ने नर–सिंह अवतार की आराधना में जन्म लिया बालक जैसे उन्ही की अनुकंपा से अलौकिक नर–भेड़िया के अवतार में जन्म लिया हो। इस बार दहाड़ नही निकली। आंधी समान आर्यमणि दौड़ रहा था। जिस भिड़ को दौड़ते हुये धक्का देता, ऐसा लगता ट्रेन ने किसी भिड़ को धक्का दिया हो। विस्फोट के साथ वो तीतर–बितर होते और आर्यमणि नीचे पड़े अपने साथी को उठाकर तेजी से बेसमेंट में छोड़ आता, जो हॉल के ठीक नीचे बना था और जहां से सारे संन्यासी मंत्र पढ़ रहे थे।

एकमात्र अल्फा पैक की सदस्य ओजल खड़ी थी। बिना कोई शेप शिफ्ट किये और बिना किसी एलियन पावर को इस्तमाल किये। साल भर के कठिन अभ्यास और निशांत द्वारा सिखाए गये नए पैंतरे के दम पर ओजल लाठी, तलवार, और छोटी कुल्हाड़ी बड़े ही सफाई से और उतना ही तेज चला लेती थी। आज हाथ में वो सब हथियार तो नही थे लेकिन ओजल अपने कल्पवृक्ष दंश को ही छोटी कुल्हाड़ी समझकर नायजो पर चला रही थी।

क्या गतिमान और संतुलित होकर चला रही थी।घेर चुकी भिड़ और भिड़ में चाकू लिये बढ़ते हाथ जबतक हमला करते, तब तक तो ओजल कितनो के हाथ काटकर हवा में उड़ा चुकी होती। हां पीछे वाले परेशान जरूर कर रहे थे। पीछे से 2–3 चाकू ओजल को जरूर लगते लेकिन उतने ही वक्त में वह तेजी से गोल घूमकर पीछे के 4–5 लोगों के हाथ, पाऊं और गला, जो मणि के संपर्क में आ जाये काटकर आगे बढ़ जाती।

वहीं आर्यमणि रूही, इवान और अलबेली को सुरक्षित करने के बाद, अपनी जगह खड़ा होकर एक बार पूरे हॉल को देखा। नजर भर पूरी तस्वीर अपने जहन में उतारा। इस दौरान उसपर हमले होते रहे। भिड़ की ताकत रंग ला चुकी थी। अल्फा पैक के 3 सदस्य गंभीर अवस्था में पहुंच चुके थे। ओजल भी टिकी थी लेकिन चाकू के लगातार घाव से वह भी अब काफी धीमे पर चुकी थी। आर्यमणि गहरी श्वास लेते एक बार इस भीर की ताकत को समझा। हमले उसपर भी हो रहे थे चाकू उसे भी लग रहे थे। रक्त उसका भी गिर रहा था लेकिन भुजाओं में मौत और पाऊं में तूफान छिपा रखा था जैसे।

इस बार मौत की दहाड़ नही गूंजी बल्कि मौत की आंधी सी उठी। पास में खड़े होकर जितने भी भी नायजो चाकू से हमला कर रहे थे, उसे आर्यमणि ने एक बार देखा। देखने के बाद अपना मुक्का बनाया और जो ही मुक्का पड़ना शुरू हुआ। मुक्का सीने पर लगता तो ठीक उसके पीछे का हिस्सा एक फिट पीछे तक खिसक कर चला जाता। धाएं.... धाएं... ढिशुम... ढिशुम... बात जब बाहुबल की थी, फिर वहां आर्यमणि से बड़ा गुंडा कोई न था, जो अपने मुक्के की ताकत से उस शरीर को भी घायल करके दिखा रहा था, जिसके अंदर चाकू घुसा दो तो वह चाकू गल जाये।

आर्यमणि समझ चुका था कि उसके पास वक्त कम और भिड़ ज्यादा। सीने के अंदर हाथ डालकर जितने वक्त में दिल निकलेगा, उतने वक्त में वह 10 को लिटा चुका होगा। और हो भी कुछ ऐसा ही रहा था। टॉक्सिक में डूबा उसका मुक्का इतना तेज पड़ता की जहां पड़ता वहां का अंग भंग होना निश्चित था। किसी के कंधे पर मुक्का पड़ता तो उसका कंधा शरीर छोड़ अलग हो जाता। वहीं किसी के सीने पर मुक्का पड़ता तो उसके सीने की हड्डी पाउडर बन जाती और अंदर की धड़कन जैसे थम सी जाती।

पाऊं इतने तेज थे कि जब वह अपना कंधा भिड़ाते दौड़ रहा था, जितने एलियन आर्यमणि के कंधे से टकराए वह गोली के भांति जाकर दीवार से ठीक वैसे ही चिपक गये, जैसे केक को दीवार पर मारकर चिपकाया जा सकता था। फचाक की आवाज के साथ एलियन के शारीर के चिथरे उड़ जाते।

जिस जगह रुक जाता वहां खड़े अपने दुश्मनों पर ऐसा मुक्का बरसता की अंग भंग होकर या तो शरीर से झूल जाते या फिर उसके अवशेष हवा में उड़ रहे होते। चीख और पुकार से वह हॉल पूरा गूंज रहा था। किंतु आर्यमणि की नजर केवल हॉल पर ही नही थी, बल्कि वह ऊपर के मंजिल पर भी देख रहा था जहां बहुत से नायजो अब भी थे।

आर्यमणि कंधा भिड़ाते हुये जब एक बार दौड़ लगाया तो हवा में उड़ते लोग नजर आ रहे थे और उन उड़ते लोगों के भीड़ में सबसे ऊपर आर्यमणि था, जो तेज दौड़ते हुये जमीन से कई फिट ऊपर हवा में छलांग लगाकर तीसरी मंजिल पर लैंड किया। फिर खेल शुरू हुआ वुल्फ हाउस पेस्ट कंट्रोल। कीड़ों मकोड़ों की तरह फैले नायजो को समेटकर हटाना था। तीसरी मंजिल के गलियारे से लेकर कई कमरों में फैले थे ये नायजो। आर्यमणि पेस्ट कंट्रोल शुरू करता उस से पहले ही हॉल से रूही की तेज दहाड़ के बाद उसकी आवाज भी गूंजी.... “जान नीचे का हॉल अब हम खाली करते है, ऊपर का तुम देख लो”...

आर्यमणि अपने सामने आये एक नायजो का बाल पकड़ कर उसके सीने में अपना क्ला घुसा दिया और उसके सीने से दिल बाहर निकालकर नीचे हॉल में रूही के ओर फेंकते... “ये लो दिल”...

वह दिल ठीक रूही के कदमों में आकर गिरा। रूही उसे देखकर भद्दा सा मुंह बनाई और सामने से चले आ रहे भीर पर एक हाथ से तलवार तो दूसरे हाथ से कुल्हाड़ी चलाने लगी। वार इतना खरनाक तो नही थे, लेकिन भीर को दूर रखने के लिये काफी थे। इस से ओजल को पूरी मदद मिल रही थी। वह थोड़ा रुक कर अपने सीने में श्वास को समेटी... थोड़ा खुद से हील हुई, थोड़ा इवान ने कर दिया और ओजल एक बार फिर पूरी जोश के साथ हमला बोल चुकी थी।

तीसरे माले से जो नायजो किसी तरह वुल्फ हाउस से निकलने का रास्ता ढूंढ रहे थे, उनको निकलने का रास्ता मिल चुका था, आर्यमणि। ना रहम किया और न रुका। कुरूरता का ऐसा खौफनाक मंजर वह अपने हाथों से दिखाता चला गया की खुद को एपेक्स सुपरनेचुरल कहने वाले लोग, खून और मांस के चीथरे देखकर आम इंसानों की तरह उल्टियां करने लगे। मौत के भय से कांपते हुये पेसाब करने लगे थे। आर्यमणि में उन्हे स्वयं यमराज दिख रहा था, जिसमे इस वक्त रत्ती भर भी दया नही थी।

नायजो झुंड में थे और आर्यमणि जहां भी पहुंचता वहां से झुंड में गिड़गिड़ाने की ही आवाज आती.... “कोई तो बचाओ... नहीईईईई... आआआआअ... भगवान के लिये छोड़ दो”..... लेकिन मौत तो निश्चित थी और आर्यमणि इस सत्य से सबको अवगत करवा रहा था।

फिर न काम आया वो एक्सपेरिमेंट की हीलिंग, और न ही आंखों और हाथ की शक्तियों का गुमान। टॉक्सिक के आग में जलता हुआ आर्यमणि का लाल मुक्का सबको पड़ता रहा और शरीर के जिस हिस्से में उसका मुक्का पड़ता शरीर को फाड़कर रख देता। वहीं हॉल में स्वयं मौत की देवी घूम रही हो जैसे। हाथों में कल्पवृक्ष दंश लिये अपने तीन साथियों के साथ। ये तीन साथी ओजल को भिड़ से दूर रखे हुये थे और ओजल एक छलांग लगाकर जब नीचे आती तो नायजो का शरीर 2 हिस्सों में बंटकर अपने आधे टुकड़े को हील कर रहा होता।

मौत और चीख से चारो ओर का माहोल गूंज उठा था। संख्या बड़ी तेजी से घट रही थी। नायजो की 1000 की संख्या देखते–देखते लगभग 500 की हो चुकी थी। रक्त से पूरी जमीन लाल हो चुकी थी। शरीर के हिस्से चारो ओर बिखरे पड़े थे। वुल्फ हाउस ही जैसे कुरुर हो चला था।

फिर अचानक ही वहां चारो ओर शांती पसर गया। जैसे युद्ध विराम की घोषणा की गयी हो। बचे हुये नायजो, कटे हुये नायजो, घायल पड़े नायजो, नायजो जिस स्वरूप में थे, वह निशांत के सिंगल कमांड से पैक हो चुके थे। आर्यमणि जो तीसरी मंजिल से दूसरी मंजिल पर पहुंचा था। वह अब पैक हुये नाजयो को हॉल में फेंक रहा था। 10 मिनट में पूरा वुल्फ पैक हॉल में इकट्ठा था। आर्यमणि जैसे ही पहुंचा, रूही को भींचकर अपने सीने से लगाते....

“तुम्हे घायल देख मेरे तो प्राण ही सुख गये थे”

“ये लोग हमें मारने ही आये थे जान, तो जान जाने का खतरा तो बना ही रहेगा न”...

“हां जितना सोचा था, उस से कहीं ज्यादा खतरनाक हो गया था।”

“छोड़ो, वो बीती बातें हो गयी, शाम को कुछ सरप्राइज़ देने वाले थे।”

“हां पर अभी काम पूरा कहां हुआ है?”

“हां तो चलो पहले काम खत्म करते है।”

दोनो एक दूसरे की आलिंगन से अलग हुये। आस पास के माहोल को देखकर थोड़ा मुस्कुराए.... “जल्दी, जल्दी, जल्दी... काम ख़त्म करो जल्दी। आर्य तुम क्या शादी में आये हो, जड़े निकल नही रही इसलिए पूरा कचरा उठाकर डंपिंग ग्राउंड में रखो।”

रूही इस बार डायनिंग टेबल पर बैठकर सबको हुक्म दे रही थी। बेसमेंट से संन्यासी की टोली ऊपर तो नही आये, लेकिन वुल्फ हाउस से उस जड़ी–बूटी के तिलिस्म का असर खत्म कर दिया, जो जड़ों को बाहर नही आने दे रही थे। जैसे ही तिलिस्म समाप्त हुआ, निशांत बेसमेट से बाहर आया। हॉल में जैसे ही कदम रखा, खुद में ही सोचने लगा, “मैं यहां आया ही क्यों?” कटे फटे लाश, बिखरी अंतरियां, शरीर के कटे–फटे अंग और खून ही खून चारो ओर था, जिसे अल्फा पैक समेट रहे थे। निशांत अपने मुंह पर हाथ रखा। किसी तरह अपने उबकियों को दबाते, आर्यमणि के पास पहुंचा।... “तू यहां क्यों आया, कुछ देर नीचे ही इंतजार कर”..

“सतह से जड़ को अब निकाल सकते हो”... निशांत मुंह पर हाथ रखे ही बोला।

आर्यमणि:– मुंह से हाथ हटाकर बोल ना, समझ नही आया...

निशांत जैसे ही मुंह से हाथ हटाया, उसके पास से इवान गुजरा जो अपने कंधे पर कटे–फटे लाश का बोझ उठाये था। जैसे ही उसके पास से गुजरा, किसी लाश की अंतरियां नीचे जमीन पर फैल गयी और यह देख निशांत की उलटी बाहर। निशांत वापस बेसमेंट के ओर भागते..... “सतह से जड़ अब निकाल सकते हो। जल्दी काम खत्म करो।”...

जैसे ही निशांत ने यह सूचना दिया। पूरे वुल्फ पैक जो जहां थे वहीं खड़े हो गये। ओजल तेजी दिखाती हुई कहने लगी..... “मैं पलक मैडम को अलग करके, चारो ओर खुशबू फैला दूंगी। किसी और नायजो को अलग करना है क्या?”..

आर्यमणि:– हां उसके चार चमचे हैं, उनमें से एक को। एक काम करो तुम रहने दो। अलबेली, बेटा अपने हिसाब से सबको छांटकर डायनिंग टेबल पर बिछा दो। और उसके बाद खुशबू फैला देना। बाकी सभी जल्दी से इस जगह को साफ करो।

अलबेली लैपटॉप पर सर्च मारी। उसे तो पलक के चार दोस्तों का पता ही था। उसके अलावा वह कुछ और फुटेज देखी। सोलस के साथ पलक के साथियों को भी सर्च में डाला। 30 और 50 के 2 टुकड़ियों के साथ पलक का गहरा नाता दिखा। उन दोनो टीम में से अलबेली को 50 लोग जिंदा और सुरक्षित मिल गये, जो हॉल में ही पड़े थे। उनमें से एक सोलस भी था। जबकि पलक के चार चमचे... एकलाफ, ट्रिसकस, पारस और सुरैया, ये चारो शायद मौत के खौफ से पहले मंजिल के किसी कमरे में खुद को बंद कर रखा था।

सबके लोकेशन मिलते ही अलबेली ने डायनिंग टेबल पर नायजो का भरमार लगा दिया। हां लेकिन उन्हें डायनिंग टेबल पर बिछाने से पहले उसने डायनिंग टेबल पर पहले जड़ों के सूखे झाड़ को चलाकर पूरे डायनिंग टेबल को साफ किया। उसके बाद उसपर खुसबूदार पुष्प के जड़ों से वहां खुशबू बिखेर दी।

एक काम पूरा करने के बाद अलबेली ने पूरे वुल्फ हाउस को ही जड़ों में ढक दिया। कुछ देर जड़ों में ढके रहे और जब जड़ें वोल्फ हाउस से गायब हुई, तब चारो बिलकुल चमचमाती सफाई और खुशबू फैली हुई थी। इधर आर्यमणि, रूही, ओजल और इवान ने मिलकर सभी मरे नायजो और जिंदा पैक नायजो को डंपिंग ग्राउंड तक पहुंचा दिया, जहां अब भी लगभग 200 नायजो कांटों की अर्थी पर कैस्टर ऑयल फ्लावर के जहर का दर्द झेल रहे थे।

सारा काम खत्म होते ही वुल्फ पैक जैसे ही रिलैक्स हुये... “ये डायनिंग टेबल पर क्या बिछा रखा है। इतने सारे नायजो”...

अलबेली:– हां ये सब पलक मैडम के क्लोज साथी है। चलो तुम सब भी जल्दी से साफ सुथरा होकर लौटो, जबतक मैं इन लोगों का जुगाड करती हूं।

अल्फा पैक अलबेली के सामने सर झुकाकर जैसे उसके हुक्म की तमिल किये हो और हंसते हुये कमरे में जा घुसे। आर्यमणि इधर उधर देखा और रूही के पीछे वो भी अंदर घुस गया। दरवाजे के एक बार बंद होने के आवाज पर जैसे ही दोबारा बंद हुआ, रूही झटके से मुड़ी...

आर्यमणि, उसे घूरती नजरों से देखते... “ऐसे रिएक्शन क्यों दे रही, जैसे पता ही न हो कि पीछे कौन आ रहा?”..

रूही:– आर्य, तूम कुछ ज्यादा ही मनचले न हो रहे...

आर्यमणि, रूही को भींचकर अपने गले लगाया और उसके नितम्बों को दोनो हाथ से निचोड़ते.... “अपनी बीवी के साथ मनचला हो रहा, किसी पड़ोसी के साथ नही।”...

रूही, आर्यमणि को धक्का देकर खुद से दूर की, और तेजी से बाथरूम में भागकर, अंदर से छिटकिनी लगाती... “तुम पड़ोसी के पास ही जाओ आर्य। मैं बाहर आकर बताती हूं। तुम्हे बड़े पड़ोसियों की याद आ रही है ना”

आर्यमणि, खुद से ही.... “अब बीवी के नखरे न सुनूं तो किसके”... खुद में सोचकर मुस्कुराया और बाथरूम के दरवाजे तक पहुंच गया। 2 बार दरवाजा खटखटाने के बाद भी जब रूही ने कोई जवाब न दिया.... “देखो जानेमन, दरवाजा नही खोली तो मैं तोड़ दूंगा। फिर बच्चों को जवाब देते रहना दरवाजा कैसे टूटा। खोलो भी... रूही... रूही.. रूही”..

रूही झटाक से दरवाजा खोलकर फटाक से आर्यमणि को अंदर खींची और उसके होंठ को चूमती.... “जानू, अब जाओ भी प्लीज। अभी का काम खत्म कर लो, फिर जितना चाहे रोमांस करते रहना, मैं न तो रोकूंगी, और न ही कोई नखरे होंगे।”

आर्यमणि, अपनी आंखें बड़ी करते.... “मुझे बाहर ही भेजना था तो अपने इस शानदार जहरीले बदन से कपड़े हटाकर क्यों अंदर खींची”... अपनी बात कहकर आर्यमणि अपने हाथों से रूही के नंगे बदन को स्पर्श करने लगा...

रूही हल्की गुदगुदी से मचलती.... “ईशशशशशशशश, आर्य मत करो बदन में आग लग रही और न जाने कब से मैं भी तड़प रही हूं। प्लीज अभी जाओ। जल्दी–जल्दी में मिलने का मजा खराब हो जायेगा। कही तो मेरे साथ जैसी फैंटेसी पूरी करनी चाहो कर लेना, पर अभी जाओ”...

आर्यमणि, पूरे जोश से रूही को चूमकर अलग होते.... “अपनी फैंटेसी... ये याद रखना”...

रूही, आर्यमणि को वापस से प्यार भरा चुम्बन लेकर, खुद में थोड़ा शर्माती हुई.... “हां बिलकुल, लेकिन अभी जाओ, प्लीज।”

आर्यमणि वहां से निकला और सीधे किसी दूसरे कमरे में घुसा। कमरे की हालत देखकर समझ गया की यहां तबियत से तलाशी हुई थी। आर्यमणि अपने मन में संवाद भेजते...

“अलबेली, पलक के अंदर बाहर पूरी तबियत से तलाशी लेने के बाद ही वहां से हटना।”..

इकलौती अलबेली थी जो हॉल में खड़ी थी। अपना काम पूरा करने के बाद एक नजर वो चारो ओर देखकर खुद को ही परफेक्ट कह रही थी। वह भी खुद की साफ सफाई के लिये निकलती ही, लेकिन उस से पहले ही आर्यमणि का संवाद अलबेली के दिमाग में गूंजने लगा। डायनिंग टेबल पर इकलौती बची पलक को एक बार घुरी और अगले ही पल पलक के बदन पर जड़ें रेंग रही थी। अलबेली ने कमांड दिया और पतले सुई समान कई सारे निडिल पलक के शरीर के अंदर घुस चुके थे। शरीर के बाहर हर हिस्से पर पूरा जड़ रेंग रहा था।

जड़ें जब पलक के ऊपर से हटी, वह प्लास्टिक के कैद से आजादी थी, लेकिन पूर्णतः नंगी.... पलक गुस्से से अलबेली को घुरी ही थी कि उसके अगले पल वह पुनः प्लास्टिक के सिकुड़े कैद में थी। अलबेली सामने खड़े जड़ों को खंगालने लगी, जिन्हे आदेश थे कि शारीरिक अंग के अलावा जितनी भी भौतिक वस्तु है, उन्हे खींच निकाले।

कपड़ों के ऊपर बेल्ट से बंधे जो हथियार निकले वो थे ही। लेकिन जब कपड़ों के नीचे का समान निकला तब जड़ों पर तराशे हुये पत्थरों की कमी नही थी। 5 वैसे ही स्टोन पलक के बदन की तलाशी से निकले, जैसे चोरी के समान में थे। आर्यमणि का एनर्जी फायर (स्टोन की वही माला जिसमे जादूगर कैद था) भी तलाशी में निकला। उसके अलावा पाउडर भरे कई सारे पतले–पतले पाउच थे।
बहुत ही शानदार लाजवाब अपडेट भाई
 

abhipand3y

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भाग:–157


जैसे ही आर्यमणि ने इजाजत दिया, हजारों की तादात में लोग काम करने लगे। इनकी अपनी ही टेक्नोलॉजी थी और ये लोग काम करने में उतने ही कुशल। महज 4 दिन में पूरी साइंस लैब और 5 हॉस्पिटल की बिल्डिंग खड़ी कर चुके थे। वो लोग तो आर्यमणि के घर को भी पक्का करना चाहते थे, लेकिन अल्फा पैक के सभी सदस्यों ने मना कर दिया। सबने जब घर पक्का करने से मना कर दिया तब कॉटेज को ही उन लोगों ने ऐसा रेनोवेट कर दिया की अल्फा पैक देखते ही रह गये।

पांचवे दिन सारा काम हो जाने के बाद राजकुमार निमेषदर्थ ने इजाजत लीया और वहां से चला गया। उसी शाम विजयदर्थ कुछ लोगों के साथ पहुंचा, जिनमे वो बुजुर्ग स्वामी भी थे। विजयदर्थ, स्वामी और आर्यमणि की औपचारिक मुलाकात करवाने के बाद आर्यमणि को काम शुरू करने का आग्रह किया।

आर्यमणि उस बुजुर्ग को अपने साथ कॉटेज के अंदर ले गया। विजयदर्थ भी साथ आना चाहता था, लेकिन आर्यमणि ने उसे दरवाजे पर ही रोक दिया। बुजुर्ग स्वामी और आर्यमणि के बीच कुछ बातचीत हुई और आर्यमणि बाहर निकलकर राजा विजयदर्थ को सवालिया नजरों से देखते.… "राजा विजयदर्थ ये बुजुर्ग तो मरने वाले हैं।"

विजयदर्थ:– मैने तो पहले ही बताया था। स्वामी जी मृत्यु के कगार पर है।

आर्यमणि:– हां बताया था। लेकिन तब यह नही बताया था कि बिलकुल मृत्यु की दहलीज पर ही है। कहीं वो मेरे क्ला को झेल नही पाये तब"…

विजयदर्थ:– ये बुजुर्ग तो वैसे भी कबसे मरने की राह देख रहे, बस इनके विरासत को कोई संभाल ले। एक सुकून भरी नींद के तलाश में न जाने कबसे है।

आर्यमणि:– हां लेकिन फिर भी जलीय मानव प्रजाति के इतने बड़े धरोहर के मृत्यु का कारण मैं बन जाऊं, मेरा दिल गवारा नहीं करता। फिर आपके लोग क्या सोचेंगे... आप कुछ भी कहे लेकिन वो लोग तो मुझे ही इनके मृत्यु का जिम्मेदार समझेंगे।...

विजयदर्थ:– कोई ऐसा नही समझेगा...

आर्यमणि:– ठीक है फिर आपके लोग ये बात अपने मुंह से कह दे फिर मुझे संतुष्टि होगी...

विजयदर्थ:– मैं अपने लोगो का प्रतिनिधि हूं। मैं कह रहा हूं ना...

आर्यमणि:– फिर आप स्वामी को ले जा सकते है। इस आइलैंड पर मैं जबतक हूं, तबतक अपने हिसाब से घायलों का उपचार करता रहूंगा...

विजयदर्थ:– बहुत हटी हो। ठीक है मैं अपने लोगों को बुलाता हूं।

आर्यमणि:– अपने लोगों को बुलाना क्यों है इतना बड़ा महासागर है। इतनी विकसित टेक्नोलॉजी है, हमे कनेक्ट कर दो...

विजयदर्थ ने तुरंत ही अपनी संचार प्रणाली से सबको कनेक्ट किया। आर्यमणि पूर्ण सुनिश्चित होने के बाद बुजुर्ग स्वामी विश्वेश के पास पहुंचे और अपना क्ला उसकी गर्दन से लगाकर अपनी आंखें मूंद लिया... अनंत गहराइयों के बाद जब आखें खुली, आचार्य जी भी साथ थे...

आचार्य जी:– लगता है अब तक दुविधा गयी नही। जब इतने संकोच हो तो साफ मना कर दो और वो जगह छोड़ दो...

आर्यमणि:– आचार्य जी आपने उस शोधक बच्ची की खुशी देखी होती... वो अदभुत नजारा था। मुझे उनकी तकलीफ दूर करने की इक्छा है... बस मुझे वो राजा ठीक नही लगा... धूर्त दिख रहा है। आप एक बार उसके मस्तिस्क में प्रवेश क्यों नही करते...

आर्यमणि की बात पर आचार्य जी मुस्कुराते.… "अपनी बुद्धि और विवेक का सहारा लो"…

आर्यमणि:– आचार्य जी इसका क्या मतलब है। ये गलत है। बस एक छोटा सा काम कर दो। विजयदर्थ के दिमाग में घुस जाओ...

आचार्य जी:– एक ही बात को 4 बार कहने से जवाब नहीं बदलेगा। यादि तुम ऐसा चाहते हो तो पहले वहां कुछ लोगो को भेजता हूं। तुम अलग दुनिया के लोगों के बीच हो और उसके मस्तिष्क में घुसने पर यदि उन्हे पता चल गया तो तुम सब के लिये खतरा बढ़ जायेगा। उस राजा को जांचते हुए और सावधानी से काम करो। और मैं तो कहता हूं कुछ वक्त ऐसा दिखाते रहो की तुम उनके साथ हो। कुछ शागिर्द को शोधक प्रजाति का इलाज करना सिखा कर लौट आओ, यही बेहतर होगा।…

आर्यमणि:– हां शायद आप सही कह रहे है। ठीक है, आप इस वृद्ध व्यक्ति के ज्ञान वाले सनायु तंतु तक मुझे पहुंचा दीजिए.… मैं सिर्फ इसकी यादों से इसका ज्ञान ही लूंगा।

आचार्य जी:– ठीक है मैं करता हूं, तुम तैयार रहो...

कुछ देर बाद आर्यमणि उस बुजुर्ग का ज्ञान लेकर अपनी आखें खोल दिया। आंख खोलने के साथ ही उसने उस बुजुर्ग की यादें मिटाते... "पता नही अब वो विजयदर्थ तुमसे या मुझसे चाहता क्या है? क्ला से आज तक कोई नही मरा। देखते है तुम्हारा क्या होता है?"

खुद में ही समीक्षा करते आर्यमणि बाहर निकला और अपने दोनो हाथ ऊपर उठा लिया। विजयदर्थ खुश होते आर्यमणि के पास पहुंचा... "अब लगता है उन शोधक प्रजाति का इलाज हो जायेगा"…

आर्यमणि:– हां शायद... मैं कुछ दिनो तक प्रयोगसाला में शोध करूंगा… आपके डॉक्टर आ गये जो रूही का इलाज करने वाले है..

विजयदर्थ ने हां में जवाब दिया। आर्यमणि विजयदर्थ से इजाजत लेकर रूही से मिलने हॉस्पिटल पहुंचा। इवान और अलबेली दोनो ही उसके पास बैठे थे और काफी खुश लग रहे थे। तीनो चहकते हुए कहने लगे, उन्होंने स्क्रीन पर बेबी को देखा... कितनी प्यारी है... कहते हुए उनकी आंखें भी नम हो गयी...

आर्यमणि ने भी देखने की जिद की, लेकिन उसे यह कहकर टाल दिया की गर्भ में पल रहे बच्चों को बार–बार मशीनों और किरणों के संपर्क में नही आना चाहिए। बेचारा आर्यमणि मन मारकर रह गया। थोड़ी देर वक्त बिताने के बाद आर्यमणि वहां से साइंस लैब आ गया। रसायन शास्त्र की विद्या जो कुछ महीने पहले आर्यमणि ने समेटी थी, उसे अपने दिमाग में सुव्यवस्थित करते, आज उपयोग में लाना था।

अपने साथ उसने महासागर के साइंटिस्ट, जीव–जंतु विज्ञान के साइंटिस्ट और मानव विज्ञान के साइंटिस्ट भी थे। जो आर्यमणि के साथ रहकर शोधक प्रजाति पर काम करते। पहला प्रयोग उन घास से ही शुरू हुआ। उसके अंदर कौन से रसायन थे और वो मानव अथवा जानवर शरीर पर क्या असर करता था।

इसके अलावा महासागर के तल में पाया जाने वाला हर्व भी लाया गया। सुबह ध्यान, फिर प्रयोग, फिर परिवार और आइलैंड के जंगल। ये सफर तो काफी दिलचस्प और उतना ही रोमांचक होते जा रहा था। करीब 2 महीने बाद सबने मिलकर कारगर उपचार ढूंढ ही लिया। उपचार ढूंढने के बाद प्रयोग भी शुरू हो गये। सभी प्रयोग में नतीजा पक्ष में ही निकला...

जितना वक्त इन प्रयोग को करने में लगा उतने वक्त में लैब में काम कर रहे सभी शोधकर्ता ने आपस की जानकारी और अनुभवों को भी एक दूसरे से साझा कर लिया। आर्यमणि को हैरानी तब हो गई जब जीव–जंतु विज्ञान के स्टूडेंट्स और साइंटिस्ट से मिला। उनके पढ़ने, सीखने और जीव–जंतु की सेवा भावना अतुलनीय थी। बस सही जानकारी का अभाव था और महासागरीय जीव इतने थे की सबको बारीकी से जानने के लिये वक्त चाहिए था।

जीव–जंतु विज्ञान वालों ने यूं तो कुछ नही बताया की उनके पास समर्थ रहते भी वो इतने पीछे क्यों रह गये। लेकिन आर्यमणि कुछ–कुछ समझ रहा था। उनके समर्थ का केवल इस बात से पता लगाया जा सकता था कि एक विदार्थी शोधक के अंदरूनी संरचना जानने के बाद सीधा उसके पेट में जाकर अंदर की पूरी बारीकी जानकारी निकाल आया।

ऐसा नही था की वो विदर्थी पहले ये काम नहीं कर सकता था। ऐसा नही था कि अंदुरूनी संरचना का उन्हे अंदाजा न हो, लेकिन उनका केवल यह कह देना की उनके पास जानकारी नही थी, इसलिए नही अंदर घुस रहे थे... आर्यमणि के मन में बड़ा सवाल पैदा कर गया। आर्यमणि ने महज अपने क्ला से वही जानकारी साझा किया जो उसने बुजुर्ग के दिमाग से लिया था। आश्चर्य क्यों न हो और मन में सवाल क्यों न जन्म ले। आर्यमणि जबतक जीव–जंतु विज्ञान में अपना एक कदम आगे उठाने की कोशिश करता, वहीं जीव–जंतु विज्ञान के सोधकर्ता 100 कदम आगे खड़े रहते। पूरा इलाज महज 3 महीने में खोज निकाला।..

एक ओर जहां इनका काम समाप्त हो रहा था वहीं दूसरी ओर अल्फा परिवार की जिम्मेदारी बढ़ने वाली थी, क्योंकि किसी भी वक्त रूही की डिलीवरी होने वाली थी। अलबेली डिलीवरी रूम में लगातार रूही के साथ रहती थी। अलबेली, रूही के लेबर पेन को अपने हाथ से खींचना चाहती थी...

रूही, अलबेली के सिर पर एक हाथ मारती... "उतनी बड़ी वो शोधक जीव थी। उसका दर्द मुझसे बर्दास्त हो गया, और मैं अपने बच्चे के आने की खुशी तुझे दे दूं। मुझे लेबर पेन को हील नही करवाना"…

अलबेली:– हां ठीक है समझ गयी, लेकिन इतने डॉक्टर की क्या जरूरत थी? क्या दादा (आर्यमणि) को पता नही की एक वुल्फ के बच्चे कैसे पैदा होते हैं।….

रूही:– मैं शेप शिफ्ट करके अपने बच्ची को जन्म नही दूंगी... और इस बारे में सोचना भी मत...

अलबेली:– लेबर पेन से शेप शिफ्ट हो गया तो...

रूही:– मां हूं ना.. अपने बच्चे के लिए हर दर्द झेल लूंगी... और वैसे भी हील करते समय का जो दर्द होता है, उसके मुकाबले लेबर पेन कुछ भी नहीं...

अलबेली:– हे भगवान... कहीं ऐसा तो नहीं की हमने इतने दर्द लिये है कि तुम्हे लेबर पेन का पता ही न चल रहा हो.. क्योंकि लेबर पेन मतलब एक औरत के लिए 17 हड्डी टूटने जितना दर्द...

रूही:– और हमने तो इतने बड़े जीव का दर्द लिया, जिसका दर्द इंसानी हड्डी टूटने से आकलन करे तो...

अलबेली:– 10 हजार हड्डियां... या उस से ज्यादा भी..

रूही:– नीचे देख सिर बाहर आया क्या...

अलबेली नीचे क्या देखेगी, पहले नजर पेट पर ही गया और हड़बड़ा कर वो कपड़ा उठाकर देखी... अब तक रूही की भी नजर अपने पेट पर चली गई... "झल्ली, अंदर मेरी बच्ची के सामने हंस मत, जाकर डॉक्टर को बुला और किसी को ये बात पता नही चलनी चाहिए"…

अलबेली, अपना मुंह अंदर डाले ही... "इसकी आंखें अभी से अल्फा की है, और चेहरा चमक रहा। मुझ से रहा नही जा रहा, मैं गोद में लेती हूं।"

रूही:– अरे अपने ही घर की बच्ची है जायेगी कहां... लेकिन क्यों डांट खाने का माहैल बना रही। आर्यमणि को पता चला की हम बात में लगे थे और अमेया का जन्म हो गया... फिर सोच ले क्या होगा। मैं फसने लगी तो कह दूंगी, मेरा हाथ थामकर अलबेली मेरा दर्द ले रही थी, मुझे कैसे पता चलता...

अलबेली अपना सिर बाहर निकालकर रूही को टेढ़ी नजरों से घूरती... "ठीक है डॉक्टर को बुलाती हूं। तुम पेट के नीचे तकिया लगाओ और चादर बिछाओ... "

रूही अपना काम करके अलबेली को इशारा की और अलबेली जोड़ से चिंखती.… "डॉक्टर...डॉक्टर"..

जैसा की उम्मीद था, पहले आर्यमणि ही भागता आया। यूं तो आया था परेशान लेकिन अंदर घुसते ही शांत हो गया... अलबेली को लगा गया की आर्यमणि को कुछ मेहसूस हो गया था, कुछ देर वह रुका तो आमेया के जन्म का पता भी चल जायेगा..

अलबेली:– बॉस आप नही डॉक्टर को भेजो..

आर्यमणि:– लेकिन वो..

अलबेली धक्का देते.… "तुम बाहर रहो बॉस, लो डॉक्टर भी आ गयी"…

जितनी बकवास रूही और अलबेली की स्क्रिप्ट थी, उतनी ही बकवास परफॉर्मेंस... डॉक्टर अंदर आते ही... "आराम से तो है रूही .. चिल्ला क्यों रही हो"…

जैसे ही डॉक्टर की बात आर्यमणि ने सुना.. वो रूही के करीब जाने लगा। तभी रूही भी तेज–तेज चीखती... "ओ मां.. आआआआ… मर जाऊंगी... कोई बचा लो.. बचा लो".. आर्यमणि भागकर रूही के पास पहुंचा.. उसका हाथ थामते... "क्या हुआ... रूही... आंखें खोलो.. डॉक्टर.. डॉक्टर"…

डॉक्टर:– उसे कुछ नही हुआ, तुम बाहर जाओ.. डिलीवरी का समय हो गया है.…

जैसे ही आर्यमणि बाहर गया। रूही तुरंत अपने पेट पर से चादर और तकिया हटाई। अलबेली लपक कर तौलिया ली और आगे आराम से उसपर अमेया को लिटाती बाहर निकाली… "ये सब क्या है"… डॉक्टर हैरानी से पूछी...

अलबेली उसके मुंह पर उंगली रखकर... "डिलीवरी हो गयी है। अब तुम आगे का काम देखो".... इतना कहकर अलबेली ने कॉर्ड को काट दिया और बच्ची को दोनो हथेली में उठाकर झूमने लगी। इधर डॉक्टर अपना काम करने लगी और रूही अलबेली की खुशी देखकर हंसने लगी।

अलबेली झूमते हुए अचानक शांत हो गई और रूही के पास आकर बैठ गई... रूही अपने हाथ आगे बढ़ाकर, उसके आंसू पोंछती… "अरे, अमेया की बुआ ऐसे रोएगी तो भतीजी पर क्या असर होगा"…

अलबेली, पूरी तरह से सिसकती... "उस गली में हम क्या थे भाभी, और यहां क्या... मेरा तो जीवन तृप्त हो गया।"..

रूही:– पागल मुझे भी रुला दी न... क्यों बीती बातें याद कर रही...

अलबेली:– भाभी, जो हमे नही मिला वो सब हम अपनी बच्ची को देंगे। इसे वैसे ही बड़ा होते देखेंगे, जैसे कभी अपनी ख्वाइश थी...

रूही:– हां बिलकुल अलबेली... अब तू चुप हो जा..

डॉक्टर:– अरे ये बच्ची रो क्यों नही रही..

अलबेली:– क्योंकि इस बच्ची के किस्मत में कभी रोना नहीं लिखा है डॉक्टर... उसके हिस्से का दुख हम जी चुके हैं। उसके हिस्से का दर्द हम ले लेंगे... हमारी बच्ची कभी नही रोएगी...

अलबेली इतना बोलकर अमेया को फिर से अपने हाथो में लेकर झूमने लगी। रूही और अलबेली के चेहरे से खुशी और आंखों से लगातार आंसू आ रहे थे। इधर आर्यमणि जब बाहर निकला, इवान चिंतित होते... "क्या हुआ जीजू, अलबेली ऐसे चिल्लाई क्यों"…

आर्यमणि:– क्योंकि अमेया आ गयी इवान, अमेया आ गयी...

इवान:– क्या सच में.. मै अंदर जा रहा...

आर्यमणि:– नही अभी नही... अभी आधे घंटे का इनका ड्रामा चलेगा। जबतक मैं ये खुशखबरी अपस्यु और आचार्य जी को बता दूं...

आर्यमणि भागकर अपने कॉटेज में गया और ध्यान लगा लिया.… "बहुत खुश दिख रहे हो गुरुदेव"…

आर्यमणि:– छोटे.. ऐसा गुरुदेव क्यों कह रहे...

अपस्यु:– तुम अब पिता बन गये, कहां मार–धार करोगे। तुम आश्रम के गुरुजी और मैं रक्षक।

आर्यमणि:– न.. मेरी बच्ची आ गयी है और अब मैं गुरुजी की ड्यूटी नही निभा सकता। रक्षक ही ठीक हूं।

आचार्य जी:– तुम दोनो की फिर से बहस होने वाली है क्या...

दोनो एक साथ... बिलकुल नहीं... आज तो अमेया का दिन है...

आचार्य जी:– जिस प्रकार का तेज है... उसका दिन तो अभी शुरू हुआ है, जो निरंतर जारी रहेगा। लेकिन आर्यमणि तुम इस बात पर अब कभी बहस नही करोगे की तुम आश्रम के गुरु नही बनना चाहते। दुनिया का हर पिता काम करके ही घर लौटता है। यह तुम्हारे पिता ने भी किया था और मेरे पिता ने भी... तो क्या वो तुमसे प्यार नहीं करते..

आर्यमणि:– हां समझ गया... गलती हो गयी माफ कर दीजिए...

अपस्यु:– पार्टी लौटने के बाद ले लूंगा.. बाकी 7 दिन के नियम करना होगा...

आचार्य जी:– सातवे दिन, पूरी विधि से वो पत्थर जरित एमुलेट पहनाने के बाद ही अमेया को अपने घर से बाहर निकालना और सबसे पहले पूरा क्षेत्र घुमाकर हर किसी का आशीर्वाद दिलवाना... पिता बनने की बधाई हो..

अपस्यु:– पूरे आश्रम परिवार के ओर से बधाई... अब हम चलते है।

आर्यमणि के चेहरे की खुशी... दौड़ता हुआ वो वापस हॉस्पिटल पहुंचा। सभी रूही को घेरे खड़े थे। आर्यमणि गोद में अमेया को उठाकर नजर भर देखने लगा। जैसे ही अमेया, आर्यमणि के गोद में आयी अपनी आंखें खोलकर आर्यमणि को देखने लगी। आर्यमणि तो जैसे बुत्त बन गया था। चेहरे की खुशी कुछ अलग ही थी। वह प्यार से अपनी बच्ची को देखता रहा। कुछ देर बाद सभी रूही को साथ लेकर कॉटेज चल दिये।

कॉटेज के अंदर तो जैसे जश्न का माहोल था। उसी रात शेर माटुका और उसके झुंड को अमेया के जन्म का अनुभव हुआ हो जैसे... शोधक बच्ची जिसका इलाज आर्यमणि ने किया, उसको भी एहसास हुआ था... जंगल के और भी जानवर, जिन–जिन ने अमेया को गर्भ में स्पर्श किया था, सब को अमेया के जन्म का अनुभव हुआ था और सब के सब रात में ही अमेया से मिलने पहुंच गये।

शानदार मजा आगया नैन भाई जबरदस्त....
 

Zoro x

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भाग:–129


कपड़ों के ऊपर बेल्ट से बंधे जो हथियार निकले वो थे ही। लेकिन जब कपड़ों के नीचे का समान निकला तब जड़ों पर तराशे हुये पत्थरों की कमी नही थी। 5 वैसे ही स्टोन पलक के बदन की तलाशी से निकले, जैसे चोरी के समान में थे। आर्यमणि का एनर्जी फायर (स्टोन की वही माला जिसमे जादूगर कैद था) भी तलाशी में निकला। उसके अलावा पाउडर भरे कई सारे पतले–पतले पाउच थे।

अलबेली समान का ढेर देखती.... “कपड़ों के नीचे चीजें छिपाने में ये माहिर चोरनी है।”...

सारे जप्त समान के साथ अलबेली भी खुद को साफ सुथरा करने निकल गयी। लगभग आधे घंटे बाद सभी हॉल में इकट्ठा हुये। संन्यासियों की टोली के साथ निशांत भी हॉल में पहुंचा। हर कोई हॉल की दीवारों को ही देख रहा था, जिसके चारो ओर 50 नायजो को अलबेली चिपकाकर गयी थी। 50 में से 20 को उसने ऐसे चिपकाया था जो अलग पद्धति से व्यवस्थित थे, दूर से ही देखने पर समझ में आ जाये की लैब लिखा हुआ है। कुर्सी पर पलक के चार चमचे मूर्त रूप में बैठे थे और डायनिंग टेबल के मध्य में पलक...

संन्यासी शिवम्:– यहां तो जिंदा लोगों से ही हॉल को सजा दिये। गुरुदेव ये है क्या?

आर्यमणि:– शिवम् सर ये मेरा किया नही है। अलबेली का किया है।

संन्यासी शिवम्:– माहोल देखकर लगता नही की युद्ध विराम हुआ है? चलिए अब इसे खत्म करते है।

“दोस्तों का स्वागत नही करोगे आर्यमणि”.... उस बड़े से हॉल में ब्लैक फॉरेस्ट का रेंजर मैक्स, अपनी पत्नी थिया और 20 साथियों के साथ शिरकत करते हुये अपनी बात कहा। अपनी बात तो कहा लेकिन जैसे ही चारो ओर दीवार पर नजर गयी, बंदूके तन चुकी थी.... “यहां क्या अराजकता फैला रखे हो आर्यमणि। ये जिंदा लोगों को तुमने झाड़ में फसाकर दीवार में क्यों चुनवा दिया?”

आर्यमणि:– मैक्स बहुत ही ज्यादा गलत वक्त पर आये हो। फिलहाल तुम आराम करो, तुमसे बाद में बात करते है।

आर्यमणि अपनी बात समाप्त किया और सभी लोग जहां खड़े थे, वहीं जड़ों के लपेटे में आ गये।... “सबको आज ही आना है। जल्दी काम खत्म करो आर्य।”... रूही चिढ़ती हुई कहने लगी।

आर्यमणि:– लो अलबेली भी आ गयी। अब बात शुरू कर सकते है। लेकिन उस से पहले क्या तुम में से कोई महा को यहां ले आयेगा... वो और उसके कुछ साथी अब भी बेसमेंट में है।

इवान:– मैं जाता हूं...

दरअसल हुआ ये था कि जब हॉल की रौशनी गयी और अंधेरा हुआ था, ठीक उसी वक्त अल्फा पैक ने दौड़ लगाया और भिड़ से सभी इंसानों को निकालकर बेसमेंट में ले गये थे। इवान महा को लेने चल दिया। वहीं आर्यमणि जैसे ही पलक को जड़ों और प्लास्टिक के कैद से आजाद करने की सोचा अलबेली उसे रोकते.... “दादा, प्लास्टिक के नीचे उसने कुछ नहीं पहना।”

रूही:– ये क्या कर दिया झल्ली...

अलबेली:– क्या कर दिया का क्या मतलब। ये तो अपने कपड़ों के अंदर खजाना छिपाए घूम रही थी। नही तलाशी लेती तो दादा का एनर्जी फायर भी गायब हो जाता।

आर्यमणि:– क्या, मेरा एनर्जी फायर इसके पास था?

अलबेली:– केवल वही नही था। अभी बोली तो कपड़ों के नीचे खजाना छिपाकर रखी थी..

रूही:– अब भी जड़ के नीचे खजाना ही छिपाकर घूम रही होगी। जा भागकर एक कपड़ा ले आ, वरना जड़ के हटते ही प्लास्टिक में लिपटे इसके कर्व को देखकर मेरे पति का नैन–सुख हो जायेगा...

आर्यमणि:– कैसी अपमानजनक बातें कर रही हो।

निशांत:– ये साइड टॉपिक छोड़ो और मुख्य मुद्दे पर आओ... जल्दी काम खत्म करो..

आर्यमणि:– ठीक है निशांत सर वही करते हैं। बाकी सब आराम से बैठ जाइए, यहां बस मैं और अलबेली ही बात करेंगे... पलक के चार चमचे को खोलो...

ओजल पलक के चमचों को प्लास्टिक के कैद से रिहा करने लगी। इसी बीच इवान के साथ महा भी हॉल में पहुंच गया और अलबेली भी कपड़े लेकर पहुंच गयी। पलक को जड़ों से निकलने के बाद पहले उसे कपड़ा पहनाया गया, बाद में उसके चेहरे और हाथ से प्लास्टिक को खुरच कर हटाया गया।

डायनिंग टेबल पर वापस से वही नजारा था। उतने ही लोग बात करने बैठे थे। बस अतरिक्त रूप से अल्फा पैक के बचे सदस्य और संन्यासियों की टोली थी। महा की नजर तो शुरू से संन्यासियों के ऊपर ही थी। जैसे ही उसे मौका मिला सबसे पहले वही अपनी जिज्ञासा रखते.... “आर्यमणि ये लोग”...

आर्यमणि:– कहा था न सात्विक आश्रम... ये उसी आश्रम के संन्यासी है। यहां प्रशिक्षित लोगों की भिड़ कुछ ज्यादा ही थी, इसलिए मदद करने बड़ी दूर से आ गये...

महा:– बड़ी दूर से कैसे इतनी जल्दी आ गये..

आर्यमणि:– ये बाद में जान जाओगे... तुम और तुम्हारे लोग सुरक्षित तो है न..

महा:– पता नही। मेरी टीम तो तुम्हारे खतरे के निशान के ठीक बाहर डेरा लगाये है। मैं पता नही कितनी देर से नीचे केवल चीख और पुकार ही सुन रहा था। और ये बड़बोले लोग अब क्यों नही बोल रहे....

आर्यमणि:– वो समझ गये है कि यहां मेरी इजाजत के बिना बोलने पर क्या अंजाम होगा...

पलक:– क्या अंजाम होगा हां...

पलक की बात सुनकर आर्यमणि मात्र अपनी नजर घुमाया। ओजल खड़ी हुई और दीवार से चिपके एक लैब एक्सपेरिमेंट नायजो का आधा धर जड़ से मुक्त करके, उसे बीच से काट दी।...

आर्यमणि:– ओजल अभी–अभी सफाई हुई थी, गंदगी मत करना...

ओजल:– ठीक है जीजाजी...

जीजा और साली के आंखों के इशारे में बेचारे मासूम से नायजो को तब उबकियां आ गयी जब अपने ही जैसे किसी एक के शरीर के अंदर का माल–पूंजी फ्लोर पर बहते देखा। पलक गुस्से में आर्यमणि को घूर रही थी...

आर्यमणि:– बिना इजाजत बोलने का यही नतीजा होगा। और किसी को बिना इजाजत कुछ बोलना है। मेरे दीवार पर 49 और नायजो टंगे है।

महा:– ये नायजो क्या है?

रूही:– क्या नही, कौन है... मेरे साथ आओ, तुम्हे अनंत कीर्ति के किताब से सारे जवाब मिल जायेंगे...

महा:– क्या??? अनंत कीर्ति की किताब खोल लिये। पर मैने सुना था उसकी परीक्षा तो पलक पास की थी???

रूही:– मेरे साथ आओ तुम्हारी सारी जिज्ञासा का जवाब मिल जायेगा...

रूही, महा को लेकर दूसरी मंजिल के एक खुफिया कमरे में ले गयी, जहां बहुत सारे सामान रखे थे। इधर मीटिंग हॉल में...

अलबेली:– दादा ये एकलाफ आपको गाली नही दे रहा। क्यों बे घूर–घूर–चिस्तिका के लू–चिस्तिका कुछ बोल क्यों नही रहा?

जैसे ही एकलाफ को बोलने का मौका मिला वो सीधा आर्यमणि के कदमों में बिछ्ते.... “भाव मुझे माफ कर दो। मेरी क्या मेरे समुदाय के राजा में हिम्मत नही जो आपको कुछ कह दे। भाव प्लीज मुझे जाने दो। आज तक ट्रेनिंग रूम के अलावा कुछ देखा ही नहीं। इसलिए बात करने का सलीका नही सीखा”..

अलबेली उसे बालों से पकड़कर खींचकर उठाती.... “जा पलक को एक थप्पड़ मारकर आ।”

एकलाफ:– ये कैसे हो सकता है?

अलबेली:– ओजल इसे भी ट्रीटमेंट दे...

एकलाफ पाऊं में गिड़कर... “रुक जाओ मैं जाता हूं।”.... वह उठा, वह गया, वह जैसे ही खींचकर मारने को हुआ, पलक डायनिंग टेबल पर रखा खंजर उठाकर उसके सीने में उतार दी। खून की धार बहने लगी और दर्द भरी आवाज चारो ओर गूंजने लगी।

अलबेली:– एक्सपेरिमेंट बॉडी पर ये खंजर, असर भी करेगा...

पलक:– मेरे समान की सबसे बेशकीमती चीज तो तुम यहीं छोड़ दी। देखती जाओ ये जीवित भी बचता है क्या?

आर्यमणि, कुछ सोचते... “अलबेली, खंजर निकालकर इधर लाओ और देखो कहीं गंभीर रूप से घायल है तो हील कर दो।

अलबेली जैसे ही उसके सीने से खंजर निकाली, एकलाफ के सीने से और तेज खून की धार बहने लगी और वह छटपटाकर जमीन पर फरफराने लगा। अलबेली उसे हील करती.... “दादा इसका तो आखरी वक्त चल रहा था।”

एकलाफ हील होकर जैसे ही उठा गुस्से में चिल्लाते... “हरामजादी मुझे मार रही थी।”.. थप्पड़ के लिये उसके हाथ उठे ही थे की....

आर्यमणि:– रुको... हां तो मिस पलक किसकी औकाद है, मेरे मुंह पर गाली देने की...

कुछ पल खामोशी... उसके बाद फिर एक बार आर्यमणि इतना तेज चिल्लाकर पूछा की पलक की घिग्घी बंध गयी। वह बिलकुल खामोश थी, और आर्यमणि को ये खामोशी खल गयी। उसने दोबारा ओजल की ओर देखा और वापस से नायजो की उबकियां शुरू। दीवार पर टंगा एक और लैब शरीर बेजान हो गया।

पलक:– प्लीज ये सब बंद करो... मेरा सर घूम रहा है।

आर्यमणि:– मेरा सवाल का जवाब तो ये नही था। ओजल मैडम अपने लोगों के कटे–फटे चिथरे देख विचलित हो रही है, इन्हे यूजर फ्रेंडली बनाओ...

ओजल:– कितने...

आर्यमणि:– 10..

ओजल ने एक बार में ही 10 लैब बॉडी को आजाद किया और एक–एक करके सबको बीच से काटते चली गयी। यह नजारा देख संन्यासियों की टोली भी विचलित हो गयी। पलक और उसके साथियों की तो उल्टियां निकल आयी।

शिवम्:– गुरुदेव कुछ ज्यादा ही हिंसात्मक हो गये है?

आर्यमणि:– शिवम् सर मुझे इस लड़की (पलक) ने अलबेली के मरने का दृश्य दिखाया था। मेरी आत्मा तक उस पल रो दी थी। वो पल कैस्टर ऑयल के फूल के जहर से भी ज्यादा दर्दनाक और खौफनाक था। मैं वर्णन नही कर सकता। मेरे दिमाग का एक हिस्सा काला पड़ गया है जो बिना हिंसा के जायेगा नही। आप पूरी टोली के साथ बेसमेंट में ही प्रतीक्षा करे।

शिवम्:– हां ये उत्तम विचार है।

संयासियों की पूरी टोली के साथ निशांत भी बेसमेंट में चला गया। हॉल का माहोल वापस से अपने यथावत परिस्थिति में आते... “अब शायद खुद के लोगों के कटे–फटे चिथरे देखने की आदत हो गयी हो। तो बताओ किसकी औकाद है, जो मेरे मुंह पर गाली दे सके।”

पलक:– किसी की नही...

आर्यमणि:– बस इतना ही कहना है।

पलक, आर्यमणि को गुस्से से देखती.... “और क्या सुनना पसंद है। तुम बहुत महान हो। मैं गलत थी। धोखेबाज हो तुम धोखेबाज”..

आर्यमणि:– कैसा धोखा.. क्या तुम मुझे धोखा नहीं दे रही थी? क्या तुम अंत तक मेरे विषय में जानने की कोशिश नही करती रही? क्या तुम मेरे साथ सिर्फ इसलिए नहीं हम बिस्तर हुई, ताकि वुल्फ शेप शिफ्ट का आखरी परीक्षण कर सको...

पलक:– हां शुरवात का सभी किया सत्य था, लेकिन बाद में मैं सिर्फ तुम्हारी होकर रह गयी और तुमने क्या किया? अनंत कीर्ति की किताब के साथ, प्रहरी के धरोहर को भी ले भागे...

तभी वहां महा पहुंचा और पलक के सामने अनंत कीर्ति की किताब रखते... “झूठ और भ्रम फैलाने वाले लोग, खुद को प्रहरी कहना बंद करो। आर्य इसे सामने क्यों बिठाकर रखे हो। इन हरामियों की असलियत सबके सामने आनी चाहिए।”

आर्यमणि:– महा आराम से बैठ जाओ... इतना आवेश अच्छा नही। अभी तो हमने इन्हे आजमाना शुरू किया है। पृथ्वी छोड़ने का एक मौका देंगे, नही माने फिर काल बरसेगा...

महा:– क्या कह रहे हो भाई। ये लोग तो परिवार को हो दूषित कर रहे। कौन किसका बाप है और कौन किसका बेटा तय कर पाना मुश्किल है। साला मैं किसी एलियन की औलाद हूं या इंसान का, समझ में नही आ रहा। खून खौल रहा है मेरा।

आर्यमणि:– उबलते खून को ठंडा करो। अभी तुम्हे प्रहरी के लिये बहुत कुछ करना है।

महा:– सिर्फ तुम बोल रहे इसलिए चुप हूं। पर इसे कह दो प्रहरी और उसकी संपत्ति को अपना कहना छोड़ दे...

पलक:– वो किताब हमारे पास थी, इसलिए हमारी है। उस लड़की (ओजल) के हाथ का दंश, एनर्जी स्टोन सब हमारी संपत्ति है।

आर्यमणि:– पृथ्वी पर जो भी समान है, वो यकीनन तुम्हारा नही। आगे बात कर ले... मतलब तुम मेरे प्यार में थी.. लेकिन मेरे प्यार में होने के बाद भी तो हाहाकार मचा रही थी..

रूही:– तुम दोनो क्या अपने पैच अप के लिये बैठे हो? आर्य तुम इसी बातचीत के लिये 2 महीने से उतावले थे। अब क्या 2 ब्याह एक साथ रचाओगे?

आर्यमणि:– एक मिनट जरा शांत भी रहो। मुझे जानने दो...

रूही:– हूंह... बड़े आये जानने वाले। ये भी लिपस्टिक, मेक अप पोत कर तुम्हे ही जनाने आयी है।

आर्यमणि मुड़कर रूही को घूरती नजर से देखा, रूही भी गुस्से में उसे घूरती.... “आगे देख लो, वही मेकअप करके आयी है। तू बताती क्यों नही जल्दी, आर्य के प्यार में हाहाकार कैसे मचाई... बेचारा सच सुनने के लिये मरा जा रहा है।”

पलक:– खुलकर पूछो आर्य, क्या पूछना चाह रहे...

रूही:– हां हां क्यों नही... सब खुल्लम खुल्ला ही करो बेशर्मों...

आर्यमणि फिर से घूरते.... “ये क्या बचपना है रूही।”

रूही:– मुझे मत घूरो.. उसी से खुल्लम खुल्ला पूछो...

आर्यमणि:– इसका दिमाग सटक गया है। हां तो मिस पलक इंसानी बच्चों के मांस नोचकर खाने वाली तुम, बच्चो के भोजन वाली पार्टी की मुख्य ऑर्गेनाइजर तो तुम ही हो?...

पलक:– छी, इतनी गिरी हुई नही की मैं किसी नवजात मासूम के साथ ऐसा करूं या इस प्रकार से होने दूं। मैं ऑर्गनाइजर सिर्फ इसलिए बनी ताकि उन मासूमों को कुछ न हो।मैने बच्चों के जगह बकरों का इस्तमाल किया।जड़ी बूटी के प्रयोग से उसका टेस्ट बस बदला था।

आर्यमणि:– सबूत दो..

पलक:– सबसे पहला सबूत तो तुम्हारा भांजा ही था। भूमि दीदी का बच्चा, जिसे जयदेव मरा हुआ घोषित करके पार्टी देना चाहता था। मैने बचाया उसे। यकीन न हो तो पूछ लो भूमि दीदी से, उनकी आंख जब खुली तो उनका बच्चा किसकी गोद में था।

अलबेली:– कहीं दादा को फसाने के लिये दूर का सोचकर तो उसे जिंदा नही छोड़ी...

पलक:– यदि परिवार को बीच में लाना होता न तो विश्वास मानो, आर्य यहां नही नाशिक में मेरे पाऊं पर गिड़गिड़ा रहा होता। बाकी नागपुर में मेरा भी एक बड़ा परिवार है, जिसकी जिम्मेदारी मैं उठा सकती हूं, किसी भगोड़े के रिमोट सपोर्ट की जरूरत नहीं...

आर्यमणि:– काम शैतान के और बातें साधुओं वाली...

पलक:– तुम कौन से दूध के धुले हो। तुम्हे क्या लगता है, मुझे पता नही था कि तुम एक प्योर अल्फा हो। तुम्हारे दादा की पूरी रिसर्च और दुर्लभ जीवों की पूरी सूची मेरे पास है। तुम्हे क्या लगा मेरे गर्दन पर क्ला घुसाओगे तो मुझे पता नही चलेगा। मैं न तो नायजो और न ही प्रहरी के लिये पता कर रही थी। मुझे एक प्योर अल्फा की जानकारी जुटानी थी सो मैं तुम्हारे साथ रहकर जुटा ली।

आर्यमणि:– और गुरु निशि.. उनके जिंदा जलाने के पीछे की क्या साजिश थी...

पलक:– “तुम्हे क्या लगता है... हां क्या लगता है तुम्हे... जो नायजो पैदा लिया वो हैवान है... वो शैतान है... तो फिर इंसानों के लिये क्या कहोगे, क्या सारे इंसान अच्छे होते है? या फिर सारे भेड़िए? संपूर्ण कुछ भी नही होता, जो एक ही राय बनाकर चल रहे हो। गुरु निशि को मैने ही पैरालाइज किया था। ताकि उपचार के दौरान उनके विश्वशनीय लोगों के बीच उन्हे खतरे से आगाह किया जा सके। तांत्रिक आध्यात और मेरा शैतान बाप जिसे तुम उज्जवल के नाम से जानते हो, वो कुछ मक्कार इंसानों के हाथों छोटे–छोटे बच्चो को जिंदा जलाने की योजना बना चुके थे।”

“मैं जब बहुत छोटी थी तब मुझे आश्रम भेजा गया था। मुझे कुछ पता नही की पीछे क्या चल रहा था। मैने आश्रम के तौर तरीके सीखे। मैने वहां दोस्त बनाए, सार्थक और प्रिया। मुझे आश्रम में रहना अच्छा लगता था, किंतु 2 साल बाद ही मुझे आश्रम से वापस ले आये।वक्त बिता पर बचपन के दोस्त के लिये भावनाएं नही बदलती। तुम्हे क्या पता नायजो के कुछ घिनौने रिवाज से कितनी नफरत है। सब मॉन्स्टर नही है, बस जो मेरी तरह सोचते है, वो दबे हुये है...

आर्यमणि:– और तुम क्या सोचती हो...
बहुत ही शानदार लाजवाब अपडेट भाई
 

Zoro x

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भाग:–130




आर्यमणि:– और तुम क्या सोचती हो...


पलक:– भारतीय पारिवारिक वयवस्था के साथ प्रकृति की सेवा करना, जिसके लिये हम जन्म लिये है। जिन इंसानों ने हमारे अस्तित्व को बचाया, हमे खुद से फलने फूलने लायक बनाया, उनको उनकी दुनिया में छोड़कर हम जहां से हैं, वहां लौट जाये...


रूही:– चुप झूठी... तू तो अपने जड़ी बूटी के साथ हमे मारने आयी थी। हमारे पास जो समान है, उसे अपना धरोहर बता रही...


पलक:– “मारने आयी होती तो विश्वास मानो और न विश्वास हो तो अपने लवर से पूछ लेना। जितने वक्त में पैरालाइज होकर ये गायब हुआ, उतने वक्त में 2 बार मार चुकी होती। हां लेकिन अगली बार मकसद सिर्फ मारना होगा और लड़ाई आड़ पार की होगी। तुम्हारी नजर में मैं गलत और खुद को हीरो मानते हो। ठीक वैसा ही मेरे साथ भी है। सबका अपना–अपना पक्ष है।”

“आर्य को मारने का मौका मिला तो पीछे नहीं हटूंगी। क्योंकि इसने मुझे धोखा दिया। अपना मकसद साधने के लिये मेरा इस्तमाल किया। क्या–क्या सपने नही देखे थे मैने... आर्य के मामले में दिमाग को बिलकुल एक किनारे कर दिया। इसके भागने की वजह से 200 बच्चे खुन्नस में निगल लिये गये। समान के चोरी के शक में अब तक 700 इंसान बेवजह मारे जा चुके है। ये सब क्यों हुआ, सिर्फ इसके एकतरफा प्लान की वजह से। इसने अपना सोचा लेकिन अपने किये का परिणाम नही... वो पागल जयदेव कल भी 2 इंसानों की लाश इसलिए गिरा दिया, क्योंकि उसे शक था कि आर्यमणि की खोज, गलत दिशा है। समान इन्ही दोनो में से किसी के पास होगा।”


अलबेली:– दादा इसने तो कंफ्यूज कर दिया... दे दो एक मौका...


पलक:– तुम्हारे भीख के मोहताज नहीं जो मौका चाहिए होगा। यहां तक अपने मेहनत के दम पर हूं। इतने बड़े खेल में आज से नही कई सालो से अपने धैर्य के वजह से टिकी हूं। जब आर्य का उदय भी नही हुआ था, उस से पहले से सबको बचाती आ रही हूं। मैं अच्छी हूं या बुरी इस फिक्र में न रहो। मौका मिलने पर मैं आर्यमणि को छोड़ने वाली नही...


आर्यमणि:– महा तुम्हारा दिल क्या कहता है...


महा:– भाव पलक की बात और उसकी मजबूरी को देखते हुये मेरा दिल कहता है कि ये बस अपने सिस्टम के नीचे दबी है। बाकी तुम्हे भी एक बार यकीन कर लेना चाहिए...


आर्यमणि:– यकीन... क्या बताऊं मैं यकीन की कहानी.... ये वुल्फ हाउस गवाह है, मैने जिसपर यकीन किया, उसी ने मेरी मार ली थी। खैर फिर भी एक बार और यकीन कर लेता हूं। पलक तो तुम्हारा कहना है कि गुरु निशि को तुम बचा रही थी, फिर किसी और से मदद क्यों नही मांगी।


पलक:– मैने अपने दोनो दोस्त सार्थक और प्रिया को पूरी बात बताकर आश्रम को गुप्त रूप से आगाह करने कही थी। यही वजह भी था कि गुरु निशि के हर करीबी को इकट्ठा करने के लिये मैंने उन्हे पैरालाइज भी किया था। लेकिन 3 दिन बाद ही सबको आग की भट्टी में झोंक दिया गया। उस जगह कुछ शिष्य बच गये थे, जिन्होंने पहाड़ी के महादेव मंदिर पर शरण लिया था। उनमें से एक गुरु निशि का बहुत चहेता शिष्य था, नाम याद नही। उस से पूछना, वह अपनी मां की मौत देखकर बेहोश हो गया था। उसे मैने ही छिपाया था।


आर्यमणि:– इवान, संन्यासी शिवम के पास जाकर पलक की बात की पुष्टि करो... और पलक तुम, अभी जो यहां हुआ, उसे देखकर क्या कहोगी?


पलक:– मैं और मेरे जैसे चंद लोग इंसान और नायजो के बीच शांति स्थापित किये है। उन नायजो में किसी के पिता इंसान है, तो किसी माता... समान चोरी के शक में मरे हुये 700 लोग वही इंसान होंगे न, जो नायजो के संपर्क में है। परिवार में है... शक की सुई वहीं पर घूमेगी न... तुम भागे तो क्या शक भूमि दीदी पर नही होता, और भूमि दीदी की लाश गिर जाती तब तुम्हारा मन कैसा होता? ठीक उसी प्रकार से नायजो परिवार से जुड़े कई इंसानों को गायब कर दिया गया।”

“तुम्हे क्या लगता है, तुमने अपने परिवार और दोस्तों को सुरक्षित कर लिया तो उनके दोस्त सुरक्षित हो गये। तुम्हे बाहर लाने के लिये करना ही कितना पड़ता, चित्रा को फांस लेते। ठीक है चित्रा की सुरक्षा तुम कर लोगे, लेकिन माधव उसका क्या? चलो एक बार माधव का भी मान लिया की उसके सुरक्षा इंतजाम हो गये, लेकिन क्या माधव के मां–पिताजी सुरक्षित है? एक बार माधव के मां पिताजी की जान पर बन आयी मतलब तुम बाहर। वहां तुम्हारे भेजे संन्यासियों के अलावा बीच में मैं खड़ी थी मैं। मुझे यदि परिवार को बीच में लाकर खेल रचना होता न आर्य, तो तुम मेरे पाऊं में गिड़गिड़ाते। मानती हूं कि बहुत दिमाग वाले हो, लेकिन अभी भी तुम्हारे अंदर धैर्य की कमी है। और हां इंसान परखने का तजुर्बा भी उतना ही न्यूनतम है।”

“माफ करना कुछ ज्यादा आवेश में सवाल भूल गयी। तुमने अभी के बारे में पूछा न तो जवाब यही है, तुम्हारे कारण बहुतों ने अपनो को खोया है। उसी का पहला सबक सिखाने आयी थी। तुम जैसे बेवकूफ की मुझे जरूरत नहीं। कुछ सालों में मैं खुद ही इतनी सक्षम हो जाऊंगी की पृथ्वी से अपने जैसे नाजयो को समेटकर मूल ग्रह चली जाऊं और जो यहां रहना चाहते हैं उन्हें यहीं की मिट्टी में दफन करते जाऊं।”


आर्यमणि:– हां तो दुश्मनी मुझसे थी, मैं दोषी था, तो मुझे मारती न... अलबेली को जान से मारने की कोशिश...


पलक चिढ़कर आर्यमणि के ऊपर ही चढ़ती... “कब मारा था कम अक्ल। तुम दोनो को पैरालाइज ही की थी ना। तुम्हे तो मार भी देती, उसे कैसे मार सकती थी, जो सरदार खान के घिनौनी दुनिया से अभी–अभी निकली हो, और जीने का आनंद ले रही हो...


आर्यमणि:– तुम थोड़ा दूर हटो... अपनी बात पर पर्दा मत डालो... वो जो चुतिया एकलाफ का तलवार वाला एक्शन था....


पलक:– उस चुतिया को देखो। उसे क्या बाकी बेवकूफों के बारे में सोचो... जब उनके हाथ के हवा और आंख की शक्ति गयी, फिर क्या हाल था? कमर में खंजर खोसे थे, फिर भी बेवकूफों की तरह ऐसे असहाय दौर रहे थे जैसे कोई अबला नारी... तुम्हे लगता है वो चुतिया एकलाफ कमर में स्टील के छर्रा डालकर पहनने वाला बेल्ट की बनी तलवार से चमरी के 2 इंच भी घुसा सकता था। ये चुतिया लड़ेंगे... सामने से लड़ने जाये तो महा की 400 की टुकड़ी इनके 10000 को पानी पिला दे। बस अंतर सिर्फ वो बॉडी एक्सपेरिमेंट कर जाता है, जिनकी वजह से ये हरमजादे अकेला भारी पड़ जाते है। लेकिन कोई नही, हमारी रिसर्च जारी है, कुछ न कुछ तो ऐसा मुझे मिल ही जायेगा जो इनके खून को पानी कर दे। एक्सपेरिमेंट को हवा कर दे।


आर्यमणि:– अच्छा और तुम्हारी कोर टीम भी तो वही कर रही थी ना। क्या अलग सिखाया तुमने उसे...


पलक, कुछ देर तक आर्यमणि की आंखों में झांकती रही, फिर अपनी चुप्पी तोड़ते.... “मेरे कुल 30 लोगों की टीम है, जो इस वक्त तुम्हारे दीवार पर टंगी है। तुम्हे यदि जानना ही है कि मैं और मेरी टीम कितना सक्षम है तो सीधा पूछो ना, ऐसे सवाल क्यों घुमा रहे?”


रूही:– हां, हां पूछ लो, पूछ लो.. राजा रानी सब खेल इधर ही खेल लो...


पलक:– रूही बेकार में ही तुम दिल जला रही। मैं तब प्यार में थी, अब नही हूं। दिमाग ठंडा रखो और तुम मिस्टर आर्य नही समझ में आया कुछ भी क्या?


आर्यमणि:– हां कह सकती हो। तुम्हारे 30 लोग जिंदा है क्योंकि लड़ाई के वक्त वो लोग अपनी सुरक्षा कर रहे थे, न की हमला। तुम या तुम्हारे किसी भी साथी ने अब तक नायजो का पावर इस्तमाल नही किया। उस एक्सपेरिमेंट बॉडी एकलाफ को मारने के लिये तुम्हारे पास हथियार थे? मैं तुम्हारे यहां आने का मकसद नहीं समझ पा रहा?


पलक:– “सबसे पहला मकसद तो तुमसे बदला लेना था। तुम्हे सबक सिखाना था। चोरी के इल्जाम में बेवजह मरे लोग और खुन्नस में निगल लिये गये मासूमों का। और जो वेडिंग गिफ्ट राजदीप के लिये छोड़ गये थे उसका भी। (भाई के सुहागरात की पलंग पर हुई घटना) यहां आने का दूसरा अहम मकसद था, कुछ रॉयल ब्लड मेरे काम के आड़े आ रहे थे। उन सबको अपने रास्ते से साफ करना।”

“तुम्हे और अलबेली को पैरालाइज करने के बाद जब तुम्हारे आंखों में तड़प देखी, उसी ने मेरे दिल को असीम सुख दे दिया। मैं तुम्हे सबक सीखा चुकी थी। आज तक तुमने कभी ये मेहसूस नही किया था न की आंखों के सामने परिवार को कुछ हो तो कैसा लगता है, आज वो फील करवा दिया? उसके बाद तो बस कुछ घिनौने लोगों को मरते देखना था, तो मैं या मेरे लोग पागल है, जो लड़ाई का हिस्सा बने। तुम्हारी जगह और तुम तैयारी करके आये थे। तुम और तुम्हारा पैक ही बाहुबली रहो, लहराओ विजय का परचम। मैं और मेरी टीम 2 पाटन के बीच पिसने क्यों जाये?


आर्यमणि:– बहुत खूब। तुम तो सरप्राइज़ पर सरप्राइस दिये जा रही हो। एक बात बताओ तुम तो इन्ही के समुदाय की हो, फिर इतनी दुश्मनी क्यों?


पलक:– “वाकई ये सवाल पूछ रहे? इतना बचकाना सवाल की उम्मीद तुमसे नही थी आर्य। दो इंसानों में नफरत नहीं होती क्या, या दो इंसान में कोई गलत तो कोई सही नहीं होता क्या? इस सवाल का जवाब तुम २ रॉयल ब्लड ओजल और इवान से क्यों नही पूछते, जो तुम्हारे मौसा शुकेश के मौज मस्ती का नतीजा है। एक मन तो किया की जब इन दोनो को पकड़ ही लिया है, तुम्हे घुटने पर ला ही दूं। फिर दिल ने कहा नही यार, परिवार को बीच में लाकर सबक सिखाया तो क्या सिखाया? उसकी जगह, उसके लोग और सब कुछ उसका, वहां चलकर सबक सिखाओ तो वीरता है। और मैं वीर हूं क्योंकि जिन 2 नतीजों के लिये मैं यहां आयी थी उसका एक भाग पूरा हो गया.. दूसरा भाग डंपिंग ग्राउंड में है और वो भी जल्द ही पूरा हो जायेगा।”

“जानते हो आर्य मुझे आज भी वो वक्त याद है, मैं तब 8 साल की रही होंगी। पहली बार मैं विचलित एहसास से गुजर रही थी। मां का चेहरा तो वही था पर गोद वो न थी। छूती तो वो मुझे भी थी, लेकिन वो स्पर्श न रहा। जो दुलार, प्यार मेरी मां मुझे किया करती थी, 8 साल की उम्र के बाद मां का वो दुलार प्यार ना था, हां मां थी। मां का चेहरा रहा पर मां नही रही। इस बहरूपिया कुतिया अक्षरा और मेरा कमिना बाप, साला वो बाप भी कहां है, दोनो ने मिलकर पता नही मेरे मां के साथ क्या किया? क्यों न हो दुश्मनी? तुम्हे क्या पता कैसा लगता है अपने ही मां के कातिलों का चेहरा रोज देखना। उनसे हंसकर बात करना और आंखों के सामने ही किसी दूसरे बच्चे के साथ वही सब होते देखना, जो मेरे साथ हुआ था।”

“क्या इंसानी कोख से जन्मे तुम आर्यमणि एक प्योर अल्फा, क्या तुम्हे अपने मां से इमोशन नही? क्या जो मेरे साथ काम कर रहे है, उनको अपने मां या पिताजी से इमोशन न रहा होगा? नायजो से संबंध रखने वाले इंसान ही कितने बचते है, उसमे भी तुम्हारी (आर्य) वजह से जब 700 लोग आंखों के सामने महज कट ना गये, बल्कि भारती जैसे कितने ही नीच नरभक्छियो का भोजन बन जाए तब तुम्हारे लिये हमारे इमोशंस क्या होने चाहिए?”

वो रो रही थी। वो चीख रही थी। पहली बार दिल का बोझ बता रही थी। बात सच्ची थी। चोरी के शक में पलक के साथ काम करने वाले नायजो के कई परिवार के इंसान उनके आंखों के सामने कट गये, थालियों में पड़ोस दिये गये। पलक और उसके साथी बिलबिला गये। सारे पुराने काम छोड़कर बस आर्यमणि के पीछे लग गये।


पलक रोती–रोती बोली और बोलकर रोती रही। हिचकियों में कहने लगी... “मेरे आंखों के सामने मेरे लोगों को काट डाले, क्या तुम्हारे पापों का हिसाब नही होना चाहिए आर्य? आज तो बस तुम्हे एहसास करवाया है कि आंखों के सामने अपना कोई मरता है, तब कैसा लगता है? इसके बाद जब मैं तुमसे मिलूंगी तो तुम्हे जान से मारने के मकसद से मिलूंगी। बेशक तुम मुझे अभी मार दो, वरना तुम कितने भी अच्छे क्यों न हुये आर्य, मैं तुम्हे मार ही डालूंगी। दोनो में से कोई भी जीवित रहे इन नायजो को उसकी धरती पर भगा ही देगा लेकिन जीवित तो कोई एक ही रहेगा। आग लगी है मेरे सीने में आग।”


रोते हुये सर पर जैसे सुकून भरा हाथ पड़ा हो। पलक अपना सर ऊपर करती देखने लगी। संन्यासी शिवम उनके सामने खड़े थे। पलक उनको देख कुछ न बोली बस अपनी आंख साफ करने लगी.... “तुम बहुत समझदार हो। भावना से परिपूर्ण हो और पूरा आश्रम गुरु अपस्यु के जान बचाने के लिये तुम्हारा आभार व्यक्त करता है। लेकिन कुछ भी पूर्ण रूप से कभी भी आपके अनुकूल नही होता।”

“गुरुदेव जब नागपुर से भागे थे, तब उन्होंने किसी भी इंसान को नही फसाया था। चोरी का समान भी जो स्वामी से लिया गया था वह मात्र स्वामी जैसे कपटी इंसान को फसाने के लिये किया गया था। लेकिन उसके बाद उस समान को जितने भी कानूनी पतों हो कर गुजरा, वहां किसी न किसी संन्यासी का ही नाम अंकित किया गया था। हमने किसी भी नायजो परिवार के इंसान का नाम इस्तमाल नही किया। कुछ तो बीच मे गलतफहमी हुई है।”..
बहुत ही शानदार लाजवाब अपडेट भाई
 

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भाग:–131


“गुरुदेव जब नागपुर से भागे थे, तब उन्होंने किसी भी इंसान को नही फसाया था। चोरी का समान भी जो स्वामी से लिया गया था, वह मात्र स्वामी जैसे कपटी इंसान को फसाने के लिये किया गया था। लेकिन उसके बाद उस समान को जितने भी कानूनी पतों हो कर गुजरा, वहां किसी न किसी संन्यासी का ही नाम अंकित किया गया था। हमने किसी भी नायजो परिवार के इंसान का नाम इस्तमाल नही किया। कुछ तो बीच मे गलतफहमी हुई है।”..

पलक:– ऐसा कैसे कह सकते है? मेरा दोस्त श्रवण, उसके पिता मोहन जी, दोनो को अगले ही दिन मेरे आंखों के सामने तड़पा, तड़पा के मार डाला। उनसे पूछते रहे, बताओ चोरी का समान कहां है? श्रवण तो बस अमरावती से मुझसे मिलने आया था, और मिलकर चला गया। मेरा नालायक चाचा सुकेश कहता है, ताला तोड़ने में ये एक्सपर्ट है, सीसी टीवी से छिपकर इसने ही खुफिया रास्ते का ताला तोड़ा होगा। श्रवण और उसके पिता की क्या गलती थी?

आर्यमणि:– शिवम् सर ये गणना नही किये थे कि कमीने नायजो को जिनपर शक होगा, उन्हे मारेंगे... ये भूल तो हुई है।

संन्यासी शिवम्:– तुम्हारे दादा वर्धराज और लोपचे की दोस्ती नायजो को खटकती थी। तुम्हारे दादा जी और गुरु निशि दोनो को मारने का मन बना चुके थे। लोपचे के साथ मामला फसाकर उन्होंने ही न दोस्ती को दुश्मनी में बदली। तुम्हारे दादाजी और गुरु निशि को को मरवाया न। पलक ने सभी बातों का सही आकलन किया, सिवाय एक...

पलक:– क्या?

संन्यासी शिवम्:– तुमने नायजो इतिहास नही पलटा। इन लोगों के निशाने पर जो भी होता है, उन्हे किसी न किसी विधि फसाकर मार ही देते है। तुम्हे नही लगता की चोरी के मामले में जिन लोगों की जान गयी, वो कहीं दूर–दूर तक चोरी से संबंध नहीं रखते थे। फिर भी उन्हें उठाया गया। चोरी का तो एक बहाना मिल गया था, वरना चोरी नही भी हुई होती तो भी विकृत नायजो उन 700 इंसानों को मारकर उसकी जगह खुद ले लेते। उन्हे तो बस अपनी आबादी बढ़ानी है और परिवार के अंदर के कुछ इंसानों की जगह नायजो को बिठा देना था। सोचकर देखो, 700 अलग–अलग परिवार के लोगों को उठाया होगा, जिस परिवार में एक या 2 नायजो होंगे, बाकी सब इंसान...

पलक:– और वो 200 बच्चे जिन्हे खुन्नस में निगल लिये?

संन्यासी शिवम:– क्या वाकई वो खुन्नस रही होगी? क्या कोई भी अपराध इतना बड़ा हो सकता है कि उसके प्रतिशोध में नवजात को निगल लिया जाये। तुम्हे नही लगता की इस पर पुनर्विचार करना चाहिए।

पलक:– हम्मम पूरी बात अब साफ हो गयी है। वो लोग उतने लोगों को मारते ही, क्योंकि उन्हे उन परिवारों में घुसना था। नवजात शिशु तो जैसे उन कमीनो के प्रिय भोजन हो, जो किसी भी अवसर पर उन्हे बच्चों को खाने का बहाना मिल जाता है। कोई नही 700 लोगो को मारने और 200 बच्चों के निगलने वाले लगभग सभी दोषी यहीं मौजूद थे। कुछ जो बचे है, वो तो बहुत मामलों में दोषी है, जायेंगे कहां, उनका हिसाब किताब तो ले ही लेंगे। लेकिन यहां अभी जो हुआ, ये आर्यमणि, ओजल को इशारा कर रहा और वो दीवार से मेरे साथियों को काट रहा... ये बर्बरता क्या है? बात करने बैठा है फिर सबको काट क्यों रहा है?

आर्यमणि:– पहली बात तो ये की तुम्हारे एक भी दोस्त नही मरे। फिर ये झूठ क्यों बोल रही। ऊपर से तुमने भी तो बात नही किया और सीधा हमे पैरालाइज कर दिया था। उसके बाद लोगों को चाकू से मारने के विचार तक दिये। रूही, इवान और अलबेली को तो चाकू मार–मार कर अधमरा कर चुके थे।

पलक:– भिड़ की ताकत का तुम लोग भी तो मजा लो। इतना डरवाना दहाड़े थे कि मेरी सूसू निकल गयी। इतना हैवान की तरह डरवानी दहाड़ कौन निकालता है? गॉडजिला की आत्मा समा गयी थी क्या?

आर्यमणि:– दहाड़ डरावनी थी और तुम्हारी गलती नही थी। बात करने जब आयी तब बात ही करना था न...

पलक:– फिर से वही सवाल... उन्हे (संन्यासी शिवम्) सुनने के बाद भी क्या मैं तुम्हे दोषी नही मानती। सोचना भी मत। इंसानों की मौत तुम्हारे प्लान के कारण नही हुई ये मान लिया। लेकिन शादी की रात जो तुमने किया उसका हिसाब अभी बाकी है। वैसे भी शुरवात में तो उन इंसानों के मौत के जिम्मेदार भी तो तुम्हे ही मान रही थी। तो मुझसे क्या उम्मीद करते हो की मैं बैठकर तुमसे बात करूंगी?

रूही:– पलक तुम सेवियर हो। तुम तोप हो। तुम तूफान हो। तुम अपने समुदाय की अच्छी नायजो हो। चलो–चलो अब सभा खत्म करो। जर्मनी की बातचीत यहीं खत्म होती है।

पलक:– “वाकई रूही, सभा खत्म। बातचीत तो एकतरफा हुआ। तुम्हे नही जानना की आर्य ने आज की मीटिंग क्यों रखी थी? चलो मेरा क्या है, नागपुर में मैं आर्य को फांस रही थी और आर्य मुझे। इसलिए हम दोनो ने एक दूसरे को कुछ भी नही बताया। चलो ये भी मान सकती हूं कि नागपुर में तुम नई जुड़ी थी, इसलिए अहम जानकारियां नही दी जा सकती थी, लेकिन आज यहां की मीटिंग”...

“सोचो रूही सोचो... नायजो की हजार की भिड़ को मारने के लिये यदि 8 मार्च की मीटिंग होती तो क्या 2 महीने पहले आर्य को सपना आया था कि मीटिंग की बात सुनकर इतने लोग आर्या को मारने आयेंगे। और यदि नायजो को मारना ही मकसद था तो बातचीत का प्रस्ताव क्यों? क्यों सबके सामने खुलकर आना? जैसे अमेरिका और अर्जेंटीना से नायजो को साफ किया वैसे ही चुपके से भारत में साफ करते रहते। कुछ तो वजह रही होगी जो ये मीटिंग के लिये आर्य मरा जा रहा था? या मैं ये मान लूं की बिस्तर पर इसे मेरी याद आ गयी, इसलिए इस मीटिंग का आयोजन किया गया? सोचकर देखो मेरी बात”...

"बात नही अब तो लात चलेगी, लात”... कहते हुये रूही ने अपना लात कुर्सी पर ऐसे जमाई की कुर्सी चकनाचूर और आर्य सीधा जाकर दीवार से टकराया। रूही तेजी भागकर आर्यमणि के पास पहुंची और उसका गला पकड़कर दीवार से चिपकाते हुये.... “जैसा की पलक ने अपने यहां होने का मकसद बताया, तुम्हारा क्या मकसद था जान।”

आर्यमणि:– बेबी, सोना, मेरी प्यारी, पहले नीचे तो उतारो दम घुट रहा है।

रूही:– आज के मीटिंग का मकसद क्या था?

महा:– पुराना प्यार जाग उठा...

रूही, एक लात आर्यमणि के दोनो पाऊं बीच की जगह से ठीक इंच भर नीचे की दीवार पर मारी। ऐसा मारी की दीवार घुस गया.... “पुराना प्यार या पुराना हवस जाग उठा था”...

आर्यमणि:– नही रूही, तुम कितना गन्दा सोचती हो। एक इंच भी ऊपर लात लगती तो मैं किसी काम का न रहता...

रूही:– क्या वाकई तुम्हारे अंडकोष हील न होंगे... चलो एक टेस्ट कर ही लेती हूं...

आर्यमणि, चिल्लाते हुये.... “रूही नही... पागल हो क्या जो ऐसे टेस्ट का नाम भी ले रही। नीचे उतारो सब बताता हूं।”

रूही:– क्यों 2 महीने से बताने का ख्याल नही आया? (आर्यमणि को नीचे उतारती)... या फिर हर योजना की तरह इस योजना में भी हम अल्फा पैक के जानने लायक कोई बात ही नही थी। हम तो पागल है, जिसे लक्ष्य का पता हो या ना हो, वो कोई जरूरी बात नही, बस मार–काट करते रहो...

रूही मायूस थी। आर्यमणि उसके कंधे पर हाथ रखते..... “नही ऐसी कोई बात नही थी। पहले कोई बहुत बड़ा योजना नही था, लेकिन जैसे–जैसे समय नजदीक आता चला गया, योजना में बदलाव होते चले गये”...

रूही:– कमाल है ना, और मुझे एक भी बदलाव का पता नही...

आर्यमणि:– रूही मैं तुम्हे सब विस्तार से बताता हूं...

रूही:– नही जानना मुझे कुछ भी। कुछ देर में तो वैसे भी जान जाऊंगी...

आर्यमणि:– मुझे माफ कर दो। अब से जो भी बात होगी वो सबसे पहले मैं तुम्हे बताऊंगा..

रूही:– जाओ अपना बचा काम खत्म करो। नही माफ कीजिए बॉस... जाइए आप अपना काम खत्म कीजिए... हम भूल गये की पैक के मुखिया आप हो...

आर्यमणि:– क्यों दिल छोटा कर रही। कहा तो माफ कर दो... और पैक का सिर्फ एक ही बॉस है... और वो कौन है...

आर्यमणि अपनी बात कहकर अल्फा पैक के ओर देखने लगा। सबने एक जैसा ही रिएक्शन दिया.... “हुंह..” और अपना मुंह फेर लिये। आर्यमणि को गलती समझ मे आ तो रहा था लेकिन बात कुछ ज्यादा ही हाथ से निकल गयी थी। आर्यमणि और निशांत के बीच कुछ इशारे हुये। थोड़ी टेलीपैथी हुई....

“दोस्त बता ना क्या करूं?”..

“पाऊं में गिड़कर, पाऊं पकड़ ले आर्य, शायद पिघल जाये।”

“ठीक है ये भी करके देख लेता हूं।”

कुछ दिमाग के बीच संवाद हुये। थोड़े नजरों के इशारे हुये और आर्यमणि दंडवत बिछ गया। रूही झटके से अपने पाऊं पीछे करती.... “जान ये क्या कर रहे?”

आर्यमणि:– माफी मांग रहा हूं। प्लीज माफ कर दो...

रूही:– क्या मेरे मुंह से बोल देने से मेरे दिल का दर्द हल्का हो जायेगा आर्य। हम एक पैक है। एक परिवार है। कुछ दिनों में हमारी शादी होने वाली है। क्या मैं उस लायक भी नहीं थी कि तुम कुछ हिस्सा ही बताकर कह देते, बाकी अभी मत जानो...

आर्यमणि:– बहुत बड़ी गलती हो गयी...

रूही:– पहले खड़े हो जाओ आर्य, इतने लोगों के बीच ऐसे पाऊं पड़ने से तुम्हारा गलत सही नही हो जायेगा। मेरे दिल में चुभा है, और मुझे नही लगता की तुम्हे इस बात का एहसास भी है। तुमसे तो मात्र एक गलती हुई है, जिसकी किसी भी विधि माफी चाहिए....

आर्यमणि:– मैं अब कुछ नही कहूंगा। तुम मुझे इतना बताओ की मैं क्या करूं जो तुम्हे अच्छा महसूस होगा...

रूही:– तुमसे वो भी न हो पायेगा...

आर्यमणि:– बोलकर देखो, नही होने वाला होगा तो भी करके दिखा दूंगा...

रूही:– पलक को जान से मार दो...

आर्यमणि:– रूही, किसी को जान से मारना... तुम समझ भी रही हो क्या मांग रही हो?

रूही:– ठीक है तो मुझे छोड़ दो... ये तो कर सकते हो ना...

आर्यमणि, अपने दोनो हाथ जोड़ते.... “मुझे माफ कर दो। मुझे बोलना नहीं आता। क्या कुछ है जो मैं तुम्हारे दिल के सुकून के लिये कर सकता हूं?

रूही:– तुम नही कर पाओगे...

आर्यमणि:– तुम्हारे दिल को थोड़ा कम ही सुकून दे, लेकिन मैं जो कर सकता हूं, उस लायक बता दो...

रूही:– हम सब बिना लक्ष्य के लड़े, तुम भी पलक के साथ उतने ही सीरियस होकर बिना किसी लक्ष्य के लड़ो...

पलक:– मुझसे क्यों भिड़वा रही है... मैने तुम्हारा क्या बिगाड़ा...

रूही:– मेरे दिल की भावना आहत की है... कुछ भी कहती लेकिन मेरा आर्य तुम्हे बिस्तर पर याद कर रहा था, ये नही कहना चाहिए था...

आर्यमणि, मुट्ठी बंद करके झट से अपना पंजा खोला। ऊसके पंजे से झट से क्ला खुल गये... “इसी ने अभी आग लगाया था। इसके मुंह तोड़ने में बड़ा मजा आयेगा।”

पलक:– सोच ही रही थी कि सभी मकसद पूरे हो गये, पर निजी तौर पर जो सीने में आग लगी थी वो बुझानी रह गयी। पूरी तैयारी के साथ आना आर्य, वरना मैं तो तुम्हारे अंग भंग करने को तैयार हूं।

आर्यमणि रूही को बैठने का इशारा करते... “कांटेदार जबूक चलेगी या खंजर”...

पलक, अपनी कुर्सी से उठकर बीच हॉल मे पहुंची और दोनो हाथ के इशारे से बुलाते... “कुछ भी चलाऊंगी पर तुम्हारी तरह मैदान के बाहर खड़े होकर जुबान तो नही चलाऊंगी”...

“ऐसा क्या”.... कहते हुये आर्यमणि अपनी जगह से खड़े–खड़े छलांग लगा दिया। अल्फा पैक एक साथ सिटी बजाते, बिलकुल जोश में आ गये। अपनी जगह से खड़े–खड़े जब आर्यमणि ने छलांग लगाया तब वह दूसरी मंजिल के ऊपर तक छलांग लगा चुका था जिसे देख अल्फा पैक जोश में आ गया। लेकिन ठीक उसी वक्त हॉल के दूसरे हिस्से पर जब नजर गयी तब आश्चर्य से सबके मुंह खुले और मुंह से “वोओओओओ” निकल रहा था।

पलक के हाथों के बस इशारे थे और वह हवा में जैसे उड़ रही थी। हवा के बवंडर उठाने की तकनीक के दम पर पलक अलग ही कारनामा कर चुकी थी। पलक तो जैसे हवा के रथ पर सवार थी। आर्यमणि दूसरी मंजिल तक की उछाल भरा और पलक ठीक उसके माथे के ऊपर। पहला हमला पलक ने ही किया। अपने दोनो हाथ के इशारे से पलक ने हवा का तेज बवंडर आर्यमणि पर छोड़ा। आर्यमणि उस बवंडर से बचने के लिये बस अपने फूंक से उस बवंडर को दिशा दे दिया।

तेज हवा का झोंका पलक के ओर बढ़ा और आर्यमणि एक फोर्स के विपरीत फोर्स लगाने के चक्कर में हवा की ऊंचाई से नीचे धराम से गिड़ा। वहीं पलक आर्यमणि के बचाव और जवाबी हमला देखकर मुंह से शानदार कहे बिना रह नही पायी। हालांकि वह गिड़ी नही बल्कि आर्यमणि के उठाये तूफान से बचने के बड़ी तेजी से उसके रास्ते से हटी।

“क्या हुआ आर्य, अपने पहले ही दाव में कही हड्डियां तो न तुड़वा लिये”..... पलक सामने खड़ी होकर हंसते हुये कहने लगी। आर्यमणि को यह हंसी खल गयी और उसी क्षण उसने तेज दौड़ लगा दिया। आर्यमणि ने बचने तक का मौका न दिया। अपने ओर बढ़े तूफान को पलक देख तो सकती थी, लेकिन वह जिस तेजी से आर्यमणि के रास्ते से हटी, उस से भी कहीं ज्यादा तेज आर्यमणि ने अपना रास्ता बदला था। ऐसा लग रहा था जैसे उसे पहले से पता हो की पलक अपनी जगह से कितना हट सकती है।

आर्यमणि, तेज दौड़ते हुये कंधे से टक्कर लगा चुका था। एक भीषण टक्कर जिसे कुछ देर पहले आर्यमणि ने नायजो के एक्सपेरिमेंट वाले बॉडी पर मारा था। जिस टक्कर का अनुभव करने के बाद उन नायजो के खून के धब्बे दीवारों पर थे और चिथरे शरीर यहां वहां बिखरे थे। पलक खतरे को भांप चुकी थी इसलिए बचने के लिये उसने आर्यमणि के ठीक सामने अपने दोनो हाथ से हवा का मजबूत बावंडर उठा दी।

पलक का हांथ आगे और हाथ में हवा का तेज तूफान। आर्यमणि का कंधा उसी हवा की मजबूत दीवार से भिड़ा और जैसे विस्फोट सा हुआ हो। पलक हवा का शील्ड लगाने के बावजूद भी इतना तेज धक्का खाकर दीवार से टकराई की उसकी हड्डियां चटक गयी.... “क्या हुआ छुई मुई, कहीं कोई हड्डी तो न छिटक गयी”
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भाग:–132


पलक का हांथ आगे और हाथ में हवा का तेज तूफान। आर्यमणि का कंधा उसी हवा की मजबूत दीवार से भिड़ा और जैसे विस्फोट सा हुआ हो। पलक हवा का शील्ड लगाने के बावजूद भी इतना तेज धक्का खाकर दीवार से टकराई की उसकी हड्डियां चटक गयी.... “क्या हुआ छुई मुई, कहीं कोई हड्डी तो न छिटक गयी”

पलक गुस्से में खड़ी होती झटके से अपने दोनो हाथ खोली। जैसे ही अपने दोनो हाथ खोले उसके दोनो हाथ में 2 फिट लंबी और 4 इंच चौड़ी मजबूत चमचमाती धारदार तलवार थी। अदभुत और अकल्पनीय। हर कोई बस उसके हाथ ही देख रहे थे, कैसे उसने ये तलवार निकाल लिया...

आर्यमणि, अलबेली को घूरते.... “ये हमारा पहनाया कपड़ा था न, फिर इसके नीचे हथियार कहां से आ गया”...

पलक चुटकी बजाकर आर्यमणि का ध्यान अपनी ओर खींचती.... “ओ हेल्लो भेड़ियों के राजा, ज्यादा दिमाग मत लगाओ। ये तलवार मेरे शरीर में इन बिल्ट है। जब बात मेरे तलवार की हो ही रही है तो बता दूं कि ये तलवार यूनिवर्स में भट्टी कहे जाने वाले ग्रह हुर्रीएंट प्लेनेट के सूरज की विकराल तप्ती आग में बनी है। इकलौती हाइबर धातु जो उस जगह के तापमान को झेल सकती है। और उसके एक खंजर का कमाल तो पहले ही देख चुके हो।”

अलबेली:– तो क्या तुम दूसरे ग्रह पर गयी हो?

रूही:– ये क्या लगा रखा है। ऐसे रुक–रुक कर फाइट क्यों कर रहे....

पलक:– मैं तो कबसे तैयार हूं। पूछ लो अपने जान से, वो डर तो न गया...

आर्यमणि अपने पंजे का क्ला दिखाते.... “शायद ये क्ला उस से भी कहीं ज्यादा तपते भट्टी में बना है”...

“ये तो वक्त ही बतायेगा”.... कहते हुये पलक ने दौड़ लगा दिया... आर्यमणि भी तैयार। जैसे ही पलक नजदीक पहुंची, आर्यमणि के बस हाथों के इशारे थे, और अगले ही पल तेज गति से दौड़ती पलक जड़ों के जाल में फंसकर ऐसे लड़खड़ाई की वो जबतक संभलती, आर्यमणि का मुक्का था और पलक की नाक। आर्यमणि ने कोई रहम नहीं किया। शायद कुछ ज्यादा ही जोड़ से उसने मार दिया था।

कुछ मिनट के लिये पलक उठी ही नही। सर झुकाकर बैठी रही और नीचे फर्श पर खून बह रहा था। तकरीबन 5 मिनट तक उसी अवस्था में रहने के बाद पलक अपनी नाक पकड़कर खड़ी हुई.... “दिमाग हिला दिया पंच ने”... और इतना कहकर एक बार फिर वह दौड़ लगा चुकी थी।

पलक को पता था कि यदि उसके पाऊं जमीन पर रहे तब इस बार भी वही होगा इसलिए कुछ कदम दौड़ने के बाद वह हवा के रथ पर पुनः सवार होकर, आर्यमणि के ऊपर ही छलांग लगा चुकी थी। बेचारी को पता न था की पलक झपकने से पहले जड़े कितनी दूर हवा में ऊपर उठती है। पलक आर्यमणि से कुछ फिट फासले पर रही होगी। उसके दोनो हाथ की तलवार आर्यमणि से इंच भर की दूरी पर थी। पलक लगभग हमला कर चुकी थी, लेकिन तभी क्षण भर में जड़ें जमीन से निकली। आर्यमणि जड़ों में कहीं गायब और पलक भी जड़ों के बीच ऐसी लपेटी गयी की उसमे उलझकर बस आर्यमणि के ऊपर लैंड हो रही थी।

झाड़ में फंसकर पलक, आर्यमणि के ठीक सामने आ रही थी और आर्यमणि झाड़ के बीच कहीं नजर नहीं आ रहा था। तभी झाड़ के बीच से एक लात जमकर पड़ी और हवा से आर्यमणि के ऊपर लैंड होती हुई पलक, सीधा दीवारों से जा टकराई। लात का प्रहार इतना तेज था कि रूही गुस्से से चिल्लाई “आर्य”.... वहीं आर्यमणि झाड़ के बीच से निकलकर एक बार रूही को देखा और तेज दौड़ लगा चुका था।

पलक अब तक संभली भी नही थी, लेकिन काफी तेज और जानलेवा आंधी को मेहसूस कर वह भी जान बचाने वाली तेजी दिखाती हुई अपने जगह से हटी। आर्यमणि सीधा दीवार पर टक्कर दे मारा। और दीवार के जिस हिस्से में टक्कर पड़ी, वह हिस्सा ढह गया।

पलक ने भी यह नजारा देखा। खुद की घायल अवस्था देखी। और देखते ही देखते वहां का माहोल ही बदल गया। पलक अपने दोनो हाथ हवा में की हुई थी। कड़कती बिजीली आसमान से जैसे छत फाड़कर उस घर में आ रही थी और पलक के दोनो हाथों से कनेक्ट होकर वह पलक के पूरे शरीर में घुस रही थी।

देखते ही देखते पलक के बदन के अंदर से बिजली चमकने लगी। पूरी की पूरी पलक चमकने लगी और बिजली की तेज रफ्तार से ही पलक दौड़ी। आर्यमणि खड़ा होकर यह अचंभित करने वाला नजारा देख रहा था। देखने में ऐसा गुम हुआ की उसे ध्यान न रहा की अभी–अभी उसने पलक को बहुत ही गंदे तरीके से घायल किया था। और आखरी वाले लात ने तो शायद पलक के पेट की अंतरियों को ही फाड़ दिया था।

पलक दौड़ी और जबतक आर्यमणि को ख्याल आया की उसपर हमला हो रहा है, बहुत देर हो चुकी थी। पलक दौड़ती हुई पहुंची और अपना जोरदार मुक्के से आर्यमणि के सीने पर प्रहार की। बचाव में आर्यमणि ने अपना पंजा आगे किया और उसका पंजा लटक कर झूलने लगा।

आर्यमणि हाथ के दर्द से बिलबिला गया। उसका थोड़ा सा ध्यान भटका और इसी बीच पलक मौके का फायदा उठाते हुये, आर्यमणि को अपने दोनो हाथों से हवा में उठा ली और खींचकर ऐसा फेंकी की उस बड़े से हॉल के एक दीवार से सीधा दूसरे दीवार पर धराम से टकराया। पलक उसे फेंकने के साथ ही अपने दोनो हाथ आगे कर ली। उसके दोनो हाथ से चंघारती हुई बिजली की दो चौड़ी पट्टियां निकल रही थी। उन दोनो पट्टियों ने आर्यमणि को पूरा जकड़ लिया। बिजली का इतने तेज झटका लगा था कि आर्यमणि उसे झेल न पाया और बेसुध होकर बिजली के उस जकड़न में झूलने लगा।

बिजली की चौड़ी पट्टियों में जकड़ने के बाद पलक कभी आर्यमणि को दाएं तो कभी बाएं पटक रही थी। ऐसा लग रहा था जैसे पलक अपने हाथ से बिजली की रस्सी को पकड़ी हो। रस्सी जो तकरीबन 300 फिट दूर खड़े आर्यमणि को जकड़े हुई थी और उसे किसी बोरे के समान उठा–उठा कर पटक रही थी। ये ठीक वैसे ही था जैसे फर्ज कीजिए की छोटे ने रस्सी के निचले सिरे पर कुछ ठोस बांधकर तेजी से उसे उठा–उठा कर जमीन पर पटक रहा हो।

10–12 पटखनी खाने के बाद, आर्यमणि ने बस इवान से नजरे मिलाई और उसने पलक को प्लास्टिक में कैद कर दिया। पलक झपकते ही पलक कैद हो गयी और अगले ही पल वह प्लास्टिक बस धुवां बनकर हवा में उड़ गया और पलक के नजर डालने मात्र से इवान का लैपटॉप भी धुवां बनकर हवा में था और उसके बिखड़े पार्ट्स वहीं डायनिंग टेबल पर पड़े थे। पलक की आंखों से कुछ निकला हो ऐसा दिखा नही, तुलना यदि करे अन्य नायजो से जिनकी आंखों से लेजर नुमा रौशनी निकलते साफ देखी जा सकती थी।

पलक सहायकों को छोड़ एक बार फिर आर्यमणि पर ध्यान लगाई। गुस्से से बिलबिलाती.... “हारने पर चीटिंग हां। रुक भेड़िया तुझे मैं अभी बताती हूं।”.... पलक अपने गुस्से का इजहार करती आर्यमणि को झटके से खींची। बिजली की पट्टियों में बंधा आर्यमणि बिजली की तेजी खींचा आया और पलक का लात खाकर वापस दीवार से टकराया।

पलक के बिजली का संपर्क टूटा था। इसलिए पुनः वह अपने दोनो हाथ सामने की। बिजली की चौड़ी पट्टियां पुनः से आर्यमणि के ओर बढ़ी। किंतु इस बार आर्यमणि पकड़ में नहीं आया क्योंकि आर्यमणि के हाथ से भी जड़ों की विशाल पट्टियां निकल रही थी, जो सीधा बिजली से टकरा रही थी।

दोनो लगभग 300 फिट लंबी हॉल के दोनो किनारे से अपने–अपने हाथ से बिजली और जड़ निकाल रहे थे। ठीक मध्य में बिजली से जड़े टकराई। टक्कर जहां हुई वहां पर जड़ बिजली के ऊपर हावी होते हुये धीरे–धीरे बिजली को समेटकर पलक के हाथ तक वापसी का रास्ता दिखाने लगा।

पलक ने अपने दोनो हाथ का पूरा जोर लगाया। बिजली के कड़कड़ाने की आवाज तेज हो गयी। जिस पॉइंट पर जड़, बिजली से टकराया था, वहां जड़ों में आग लग गयी और वह जलकर धुवां होने लगा। पलक की बिजली आर्यमणि की जड़ों को जलाते हुये मध्य हॉल से आगे बढ़ गया। आर्यमणि ने भी अपने दोनो हाथ का जोड़ लगाया। जड़े अब जल तो रही थी लेकिन मजबूती से वह आगे बढ़ने लगी और बिजली को वापस धकेलने लगी।

पलक थोड़ा सा झुकी। अपने एक पाऊं आगे इस प्रकार की जैसे वो थोड़ा झुककर दौड़ने वाली हो। इसी मुद्रा में आने के बाद, अपने दोनो हाथ के कनेक्ट बिजली को अपने सीने तक लेकर आयी और ऐसा लगा जैसे उस बिजली को सीने से चिपका दी हो। जैसे ही बिजली सीने से चिपकी पलक खिसक कर एक कदम पीछे हुई। शायद इसलिए वह दौड़ने की मुद्रा में आयी थी ताकि संतुलन न बिगड़े।

जैसे बिजली सीने से चिपका पलक के पूरे शरीर पर ही बिजली रेंगने लगी। उसकी आंखे पूरी बिजली समान दिखने लगी। उसके बाद तो जैसे पलक के सीने से बिजली का बवंडर निकलने लगा हो। जड़ें जो जलने के बावजूद भी आगे बढ़ रही थी, इतने तेज बिजली के प्रभाव से तेजी से जली और देखते ही देखते बिजली ने जड़ों को ऐसा समेटा था की महज 10 फिट जड़ की लाइन दिख रही थी, और 290 फिट बिजली की लंबी लाइन, जो आर्यमणि से बचे फासले को भी मिटाने को तैयार थी।

बाहर खड़े दर्शक अपनी नजरें गड़ाए थे। हर किसी का दिल यह सोचकर धड़क रहा था कि इतनी तेज बिजली के एक सेकंड का झटका भी क्या आर्यमणि बर्दास्त कर पायेगा। आर्यमणि पहले से वायु विघ्न मंत्र पढ़ रहा था, लेकिन बिजली पलक के शरीर से कनेक्ट होने के कारण वायु विघ्न मंत्र काम करना बंद कर चुकी थी।

दूरी अब मात्र एक फिट रह गयी थी। सभी दर्शक दांतो तले उंगलियां चबाने लगे। तभी आर्यमणि ने अपने स्थिर पंजों की उंगलियां चलाना शुरू कर दिया। जड़े और बिजली जहां भिड़ी थी उसके ऊपर और नीचे से जड़ों ने फैलना शुरू कर दिया। बीच से जड़े धू–धू करके जल रही थी लेकिन ऊपर और नीचे से बढ़ी जड़ें तेजी से पलक के करीब पहुंच गये। पलक अपने दोनो हाथ इस्तमाल करती ऊपर और नीचे से फैल रही जड़ों पर हाथ से निकल रही बिजली का हमला की। आर्यमणि के उंगली के इशारे से निकलने वाली जड़े पलक तक पहुंचने से पहले ही रुक गयी किंतु पलक के हाथ में वो शक्ति नही थी कि जोड़ लगाकर इन जड़ों को पीछे धकेल सके क्योंकि उसकी ज्यादातर ऊर्जा तो सीने से निकल रही थी। कुछ भी न सूझ पाने की परिस्थिति में पलक भी अपने उंगली के इशारे करने लगी। उसके उंगली के इशारे पर छोटे छोटे ब्लेड निकल रहे थे, जो जड़ों को काफी तेजी से काटते हुये पीछे की ओर ले गये।

दोनो ही अपने शक्ति का प्रदर्शन कर रहे थे। पलक एक बार फिर पुनः हावी हो चुकी थी। 10 फिट की दूरी वापस से बन गयी। पलक कुछ और ज्यादा हावी होकर इस बार तो जैसे बिजली के साथ–साथ छोटे–छोटे ब्लेड की बारिश भी करवा रही थी। और उस बारिश में जड़ें ऐसी कटी जैसे मुलायम घास। पल भर में बिजली आर्यमणि के ऊपर हावी। अल्फा पैक ने अपने आंखे मूंद ली। बिजली लगभग टकरा ही गयी थी, लेकिन आर्यमणि ने तेजी से अपने हाथ के पोजिशन को बदला। पहले जहां ट्रैफिक हवलदार की तरह दोनो हथेली को आगे किया था, वहीं तुरंत बदलाव करते दोनो हथेली को ऐसे जोड़ा जैसे किसी गेंद को कैच करने वाला हो।




दोनो हथेली के बीच की खाली जगह से तुरंत ही मोटी जड़े निकली जो आर्यमणि के हाथ से निकलकर पहले तो फर्श पर गिरी, उसके बाद क्षण भर में ही वह जमीनी सतह से ऊपर हवा में उठकर बिजली के लाइन को पीछे धकेलने लगी। जड़ें नीचे फ्लोर पर भी तेजी से फैलते हुये पलक के पाऊं तक पहुंच गयी।

कैच लेने की पोजिशन वाली हथेली के ऊपर की उंगलियां काफी तेजी से मुड़ रही थी। उन्ही मुड़ती हुई उंगलियों से जड़ों के लहराते रेशे भी निकल रहे थे। उंगलियों के मुड़ने के इशारे से जड़ों के रेशे भीमकाय बिजली की सीधी लाइन को चारो ओर से घेर रहे थे। ये आड़ा तिरछा जड़ों के रेशे जब मजबूत हो जाती, फिर वह बिजली की लाइन के कुछ हिस्से को ऐसे ढकते की वह गायब हो जाता। इसका नतीजा यह हुआ की जो बिजली आर्यमणि से इंच भर की दूर पर थी, एक पल में फिट की दूरी में बदली और देखते ही देखते जड़ों ने बिजली को एक बार फिर पीछे धकेलना शुरू कर दिया।

नीचे फर्श से बढ़ने वाली जड़ें पलक के पाऊं को कवर कर चुकी थी। लेकिन पलक के शरीर से उत्पन्न होने वाली बिजली के कारण वह विस्फोट के साथ छूट जाती। तभी पलक ने अपने पाऊं के जूते खोल लिये... घन घन जैसे आवाज हुई। ऐसा लगा जैसे बिजली के प्रवाह से पूरा फ्लोर ही भिनभिना गया हो। पलक जहां खड़ी थी उसके आसपास का कुछ इलाका बिजली के कोहरे से ढक गया।

देखते ही देखते इस बार पलक बिजली के कोहरे में कही छिपी थी और ऊसके आस–पास जमीन से लेकर तीसरे माले की छत तक फैले धुंधले बिलजी के कोहरे को देखा जा सकता था।.... “लो मजा तुम भी बिजली का आर्य”.... और जैसे ही पलक अपनी बात पूरी की, पूरा वुल्फ हाउस ही बिजली के कोहरे में जैसे डूब गया हो... चिंह्हग, चिंह्हग, चिंह्हग, चिंह्हग, चिंह्हग की आवाज चारो ओर से आ रही थी। बाढ़ के पानी में जैसे सैकड़ों फिट ऊंचा मकान डूब जाता है ठीक उसी प्रकार 80 फिट ऊंची इमारत पूरे बिजली में डूबी हुई थी।

उसी डूबे बिजली के बीच से रूही की आवाज आयी.... “ओ कम अक्ल बिजली की रानी, सबको बिजली में डुबाकर ही मारने वाली है क्या? बंद कर ये बिजली, कुछ दिख ना रहा है।”....

पलक:– तुम लोगों के वायु सुरक्षा मंत्र कबके काट चुकी हूं, इसका मजा ले पहले...

जैसे ही पलक चुप हुई, केवल रूही के चिल्लाने की आवाज निकली। बिजली के छोटे झटके लगने के कारण रूही के मुंह से चीख निकली चुकी थी। बिजली के झटके का मजा लेने के बाद रूही गुस्से में चिल्लाती.... “कामिनी शौत, मुझे मारकर मेरे पति को हथियाना चाहती है क्या? कोई दूसरा न मिला अब तक, जो बिस्तर में मेरे पति जैसा हाहाकारी हो।”

“हिहिहिहि... हहाकारी... मेरे पास एक है चल उसका ट्राय कर ले। उसके बाद अपने होने वाले पति के लिये कहेगी, अब तो ये लाचारी है।”...

“क्यों री अपनी लाचारी में हाहाकारी ढूंढने कहीं गधे के पास तो नही चली गयी?”

“तुम दोनो बीमारी हो। अपना अश्लील शीत युद्ध बंद करके चुपचाप ये जगह को दिखने लायक बनाओ।” अलबेली चिल्लाते हुये कहने लगी।

पलक:– संन्यासी सर माफ कीजिएगा आपका मंत्र इस वायुमंडल को नही बदल सकते। ये नायजो तिलिस्म है और किसी नायजो को ही मंत्र फूंकने होंगे। बहरहाल पूरी सभा हम दोनो (पलक और रूही) को माफ करे और बस एक सवाल के साथ युद्ध विराम कर दूंगी.... “क्या मेरी शक्तियों को परखने के लिये तुम दोनो (आर्य और रूही) ने महज नाटक किया था?”

रूही:– बड़ी जल्दी समझ गयी? पता कब चला तुम्हे...

पलक:– जब आर्य ने लात मारकर मेरी पेट की अंतरियां फाड़ दी और तुम उसपर चिल्ला दी। ऐसा लगा जैसे कह रही हो, आर्य इतनी जोड़ से क्यों मारे? और उसके बाद आर्य के वो इशारे, जैसे कह रहा हो थोड़ा गुस्सा दिलाने दो...

रूही:– हां तो जब इतनी समझदारी आ ही गयी थी, फिर रोक देना था लड़ाई...

पलक:– नाक से खून अब भी निकल रहा है।अंदर की अंतरियां अब भी फटी है और इंटरनल ब्लीडिंग से मैं पागल हुई जा रही। गुस्सा तो निकालना ही था न...

रूही:– पागल कहीं की, तो अब खड़े–खड़े बात क्या कर रही है। ये कोहरा हटाओ..

पलक:– मुझे वो आर्य कहीं मिल न रहा है। कोहरे के बीच खुद को गायब किये है। उसको जबतक जोरदार झटका न दे दूं, तब तक चैन न आयेगा।

“मैं जमीनी सतह पर आ गया पलक। लो अपना गुस्सा निकाल लो... पलक.. पलक”... आर्यमणि जड़ों के बीच खुद को छिपाकर फर्श के 10 फिट नीचे था। पलक को सुनने के बाद वो भी ऊपर आया।

सब लोग उस कोहरे में पलक–पलक चिल्लाने लगे। लेकिन पलक तो बेहोश कहीं पड़ी थी। आर्यमणि तेजी से दौड़ा। उस संभावित जगह पहुंचा जहां पलक थी। लेकिन फर्श पर कितना भी हाथ टटोला पलक नही मिली। पूरा वुल्फ पैक हॉल को छान मारने लगा। कोहरे के बीच 300 फिट लंबा और 60 फिट चौड़ा हॉल में पलक को ढूंढा जा रहा था।

देखते ही देखते धीरे–धीरे पूरा बिजली का कोहरा छंटने लगा। पलक डायनिंग टेबल के नीचे बेहोश थी, जिस वजह से किसी को नहीं मिली। तुरंत ही उसे बाहर निकाला गया। रूही उसके पेट पर हाथ रखकर तुरंत हील करना शुरू कर चुकी थी।

खून लगातार पलक के मुंह से बाहर आ रहे थे।वह हील तो हो रही थी लेकिन इंटरनल ब्लीडिंग रुक नही रही थी.... “जान ऐसे तो ये मर जायेगी”...
बहुत ही शानदार लाजवाब अपडेट भाई
 

Zoro x

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भाग:–133


खून लगातार पलक के मुंह से बाहर आ रहा था। वह हील तो हो रही थी लेकिन इंटरनल ब्लीडिंग रुक नही रही थी.... “जान ऐसे तो ये मर जायेगी”...

आर्यमणि:– भूल गयी मैं एक डॉक्टर भी हूं।शिवम सर कोई हॉस्पिटल जो आपके ध्यान में में हो। वहां हमे अंतर्ध्यान कीजिए...

संन्यासी शिवम दोनो को लेकर तुरंत ही अंतर्ध्यान हो गये। अंतर्ध्यान होकर सीधा किसी ऑपरेशन थिएटर में पहुंचे, जहां पहले से कुछ लोग मौजूद थे। हालांकि वहां कोई ऑपरेशन तो नही चल रहा था, लेकिन ऑपरेशन से पहले की तैयारी चल रही थी।

एक नर्स... “तुमलोग सीधा अंदर कैसे घुस गये।”

“सॉरी नर्स” कहते हुये आर्यमणि ने ओटी के सारे स्टाफ को जड़ों में पैक किया। तेजी से सारे प्रोसीजर को फॉलो करते यानी की दवाइया वगैरह देकर पेट को खोल दिया। पेट खोलने के बाद पेट के पूरे हिस्से को जांच किया। अंतरियाें के 3–4 हिस्सों से इंटरनल ब्लीडिंग हो रहा था। आर्यमणि उन सभी हिस्सों को ठीक भी कर रहा था और संन्यासी शिवम को वह हिस्सा दिखा भी रहा था।

संन्यासी शिवम:– गुरुदेव उस लड़के एकलाफ के सीने में घुसे चाकू के जख्म को अंदरूनी रूप से जब हील कर सकते हैं। तब पलक का तो ये पेट का मामला था।

आर्यमणि अपना काम जारी रखते.... “शिवम् सर पेट की अंतरियां और दिमाग के अंदरूनी हिस्से दो ऐसी जगह है जहां के इंटरनल ब्लीडिंग कभी–कभी हमारे हाथों से भी हील नही हो सकते। इसलिए तो बिना वक्त गवाए मेडिकल प्रोसीजर करना पड़ा। चलिए अपना काम भी खत्म हो गया।

जहा–जहां से इंटरनल ब्लीडिंग हो रही थी, उन जगहों को ठीक करने के बाद स्टीचेस करके दोनो वापस लौट आये। पलक को डायनिंग टेबल पर ही लिटाया गया। रूही उसे तुरंत ही हील करना शुरू की। कुछ ही समय में पलक पहले की तरह हील हो चुकी थी। थोड़ी कमजोर थी, लेकिन उठकर बैठ चुकी थी।

जितनी देर में ये सब हुआ उतनी ही देर में नेपाल से एक न्यूज वायरल हो रही थी। ओटी में फैले जड़ें और जड़ों में लिपटे लोगों को दिखाया जा रहा था। किसी के हाथ दिख रहे थे तो किसी के पाऊं... जड़ों को काटने की कोशिश की जा रही थी परंतु जितना काटते उतना ही उग आता.... इवान ने जैसे ही यह वायरल न्यूज देखा, डायनिंग टेबल के ऊपर बंधे बड़े से परदे को खोला और उसपर यह वायरल न्यूज चला दिया...

हर कोई उस न्यूज को देख और सुन रहा था.... “जान जल्दी–जल्दी में ये क्या कर आये?”

आर्यमणि:– पलक की हालत के कारण यह भूल हो गयी...

रूही:– ओह हो, पलक को घायल देख सब कुछ भूल गये। कहीं पुराना प्यार तो न जाग गया। इतनी हड़बड़ी...

आर्यमणि:– ताना देना बंद करो। अभी सब ठीक किये देता हूं।

रूही:– उनकी यादस्त मिटाना मत भूलना...

संन्यासी शिवम:– क्या हमें अंतर्ध्यान होकर वापस जाना होगा। मुझे नही लगता की इस वक्त ऐसा करना सही होगा।

आर्यमणि:– नही ये मेरी जड़ें है। यहीं से सब कर लूंगा...

आर्यमणि अपने काम में लग गया। इधर रूही, पलक को घूरती... “क्या मरकर सबक सिखाती”...

पलक रूही के गले लगती.... “तुम लोगों के बीच मैं मर सकती थी क्या, मेरी शौत”..

रूही:– पागल ही है सब... इतनी घायल थी फिर भी लड़े जा रही थी। कामिनी तू मर जाती तो मेरे एंटरटेनमेंट का क्या होता?

दूसरी ओर आर्यमणि अपनी जगह से बैठे–बैठे वो कारनामा भी कर चुका था, जिसे करने से पहले आर्यमणि भी दुविधा में था.... “क्या जड़ें नीचे जायेंगी? क्या उनकी यादस्त मिटा पाऊंगा?”... लेकिन कमाल के प्रशिक्षण और अपने संपूर्ण मनोबल से आर्यमणि यह कारनामा कर चुका था।

डायनिंग टेबल से खुसुर–फुसुर की आवाज आने लगी। माहोल पूरा सामान्य था और एक दूसरे से खींचा–तानी भी शुरू हो चुकी थी। इसी बीच इवान सबका ध्यान अपनी ओर खींचते... “बातें तो होती ही रहेगी, लेकिन काम पर ध्यान दे दे। डंपिंग ग्राउंड में अभी भी हजारों नायजो पड़े है।”

आर्यमणि:– हां उसी पर आ रहे हैं इवान। बस पलक से उसकी अनोखी और इतनी ताकतवर शक्ति का राज तो जान लूं...

पलक:– नही, बहुत बकवास कर लिये। पहले मेरे लोगों को दीवार से उतारो और मुझे कम से कम अनंत कीर्ति की किताब तो दे दो ताकि मैं अपना सर ऊंचा रख सकूं...

आर्यमणि घूरकर देखते.... “वो तुम्हे नही मिल सकती”...

पलक:– ओरिजनल कौन मांग रहा है, उसका डुप्लीकेट दे दो। और जरा वो किताब भी दिखाओ, जिसके खुलने के बाद महा ने ऐसा क्या पढ़ लिया जो मुझे गालियां देते आया। मतलब नायजो को...

महा:– क्यों तुम्हे गाली नही देनी चाहिए क्या?

पलक:– मैं क्या कहूं, ये 4 बेवकूफ जैसे कर्म में लिखा गये हो। मोबाइल नेटवर्क की तरह पीछे पड़ गये हैं। मेरी सुरक्षा के नाम पर मेरे पल्ले इन चार नमूनों को बांध दिया गया है। मैं मजबूर थी महा, लेकिन मुझे बहुत बुरा लगा था। प्लीज मुझे माफ कर दो महा। अब से हम दोनो दोस्त है ना..

महा:– एक शर्त पर माफ करूंगा, मुझे उस चुतिये एकलाफ को तमाचा मारना है।

पलक:– क्यों पहले तू आर्य से नही पूछेगा, उसने एकलाफ को क्यों मेरे साथ बुलाया...

महा:– हां भाव... ये मदरचोद है कौन जिसे पलक के साथ आने कहे, और मुझे न बुलाया..

आर्यमणि:– इसने मुझे भी फोन पर बहुत गंदी और भद्दी गालियां दी थी। खून खौल गया था इसलिए बुला लिया।

महा:– तो क्या अब मैं उसे मार लूं...

पलक:– रुक महा, रूही प्लास्टिक की कैद से रिहाई के साथ–साथ क्या तुम इस चुतिये एकलाफ का शरीर को नॉर्मल कर दोगी, ताकि मार का असर पड़े...

महा:– क्या मतलब नॉर्मल करना..

रूही:– वुल्फ शरीर से कहीं ज्यादा खतरनाक नायजो का एक्सपेरिमेंट शरीर है। इसके अंदर चाकू घुसा के छोड़ दो तो वो चाकू शरीर के अंदर ही गल जायेगा..

महा:– ओ तेरी कतई खतरनाक... साला तभी जोर से कह रहा था, हम मारने पर उतरे तो मर जाना चाहिए... अब बोल ना भोसडी के...

रूही:– जुबान काहे गंदा कर रहे महा... लो ये मार खाने को तैयार है....

महा, उस एकलाफ के ओर बढ़ते.... “और कुछ है जो हमे इनके शरीर के बारे में जानना चाहिए।”...

पलक:– यहां से हम साथ निकलेंगे। सब बता दूंगी। पहले मारकर भड़ास निकाल लो...

“कामिनी गद्दार”.... एकलाफ अपनी बात कहकर अपने हाथ से आग, बिजली का बवंडर उठा दिया जो हवा में आते ही फुस्स हो गया। महा के अंदर खून में आया उबाल। दे लाफा पर लाफा मार–मार कर गाल और मुंह सुजा दिया। आर्यमणि उसका चिल्लाना सुनकर मुंह को पूरा ही जड़ से पैक कर दिया। इधर ओजल, पलक के 30 लोगों को दीवार से उतार चुकी थी, जो वहीं डायनिंग टेबल से लगे कुर्सियों पर बैठे चुके थे।

आर्यमणि:– तुम्हारे लोगों को छोड़ दिया है। और किसी को छोड़ना है...

पलक:– हां वो कांटों की चिता पर 22 लोग और है, उन्हे भी छोड़ दो। वो हमारे ट्रेनी है।

आर्यमणि:– रूही क्या उनके पास समय बचा है।

रूही:– 5 घंटे हुये होंगे.... सब बच जायेंगे...

आर्यमणि, पलक के ओर लैपटॉप करते.... अपने 22 लोगों के चेहरे पहचानो... इवान और अलबेली तुम दोनो उन 22 को ले आओ। ये बताओ तुम्हारे इन चारो नमूनों का क्या करना है?”...

पलक:– चारो इंसानी मांस के बहुत प्रेमी है। विकृत नायजो के हर पाप में इन लोगों ने हिस्सा लिया है। सबको भट्टी में झोंक देना...

आर्यमणि और रूही दोनो पलक को हैरानी से देखते.... “तुम्हे कैसे पता?”...

पलक, अपना सर उठाकर एक बार दोनो को देखी और वापस से लैपटॉप में घुसती.... “तुमने तो गुरु निशि और उनके शिष्यों के मौत की भट्टी के बारे में सुना होगा, मैने तो देखा था। वो चिंखते लोग... रोते, बिलखते, जलन के दर्द से छटपटाते बच्चे... मैं उस भट्टी को कैसे भुल सकती हूं। मैं डंपिंग ग्राउंड गयी थी, देखकर ही समझ गयी की ये भी जिंदा जलेंगे”...

“वैसे तुमने गुरु निशि के दोषियों को जब उनके अंजाम तक पहुंचा ही रहे हो, तो एक नाम के बारे में तुम्हे बता दूं। हालांकि इस नाम की चर्चा तो मैं करती ही। किंतु बात जब चल ही रही है, तो यही उपयुक्त समय है कि तुम अपने एक अंजान दुश्मन के बारे में अच्छी तरह से जान लो।”

“गुरु निशि के आश्रम के कांड की मुखिया का नाम अजुर्मी है। योजना बनाने से लेकर उसे अंजाम तक पहुंचाने का बीड़ा इसी अजुर्मी ने उठाया था। इस वक्त वह किसी अन्य ग्रह पर है, लेकिन तुम ध्यान से रहना। क्योंकि आज के कांड के बाद अब तुम्हारे पीछे कोई नही आयेगा... बस उसी के लोग आयेंगे। पृथ्वी पर जितने नायजो है, उसकी गॉडमदर। पृथ्वी के कई नरसंहार की दोषी। अब वो तुम्हारे पीछे होगी। विश्वास मानो यदि यमराज मौत के देवता है, तो अजुर्मी ऊसे भी मौत देने का कलेजा रखती है। शातिर उतनी ही। जरूरी नही की तुम्हे मारने वो नायजो को ही भेजे। वो किसी को भी भेज सकती है। तुम जरा होशियार रहना। ये लो मेरा काम भी हो गया, उन 22 लोगों को अब जल्दी से अच्छा करके मेरे सामने ले आओ”..

पलक के सभी 22 ट्रेनी भारती के तरह ही मृत्यु के कांटों पर लेटे थे। शरीर में भयानक पीड़ा को मेहसूस करते कई घंटों से पड़े थे। उन सभी 22 ट्रेनी को कांटों के अर्थी समेत ही हॉल में लाया गया। हॉल में जैसे ही वो पहुंचे, आर्यमणि ने अपनी आंखे मूंद ली। सभी 22 एक साथ जड़ की एक चेन में कनेक्ट हो गये। अल्फा पैक के सभी वुल्फ ने आर्यमणि का हाथ थाम लिया। वहां मौजूद हर कोई देख सकता था, जड़ों की ऊपरी सतह पर काला द्रव्य बह रहा था और वो बहते हुये धीरे–धीरे अल्फा पैक के नब्ज में उतरने लगा। अल्फा पैक के सभी वुल्फ ने पहले कैस्टर के जहर को झेला था, इसलिए अब ये टॉक्सिक उनके लिये आम टॉक्सिक जैसा ही था। उन्हे हील करने में लगभग एक घंटा का वक्त लग गया।

ये सभी 22 लोग केवल कैस्टर के जहर को नही झेल रहे थे। इन 22 नायजो में एक भी एक्सपेरिमेंट बॉडी नही था। ऊपर से उनके सामान्य शरीर में 100 मोटे काटो का घुसा होना। इन्हे लाया भी गया था तो कांटा के अर्थी सहित लाया गया था, क्योंकि अल्फा पैक को पता था कांटा हटा, और सबकी मौत हुई। काटो की चपेट मे जो भी अंग थे वो धीरे–धीरे हील होते और उस जगह से कांटा हील होने दौरान ही धीरे–धीरे बाहर आ जाता। और इन्ही सब प्रोसेस से उन्हे हील करने में काफी वक्त लगा, किंतु जान बच गयी।

अद्भुत नजारा था जिसे आज तक किसी संन्यासी तक ने नही देखा था। सभी एक साथ नतमस्तक हो गये। उन 22 लोगों को हील करने के बाद सबको फिर जड़ों में लपेटकर दूसरे मंजिल के कमरों में भेज दिया गया, जहां उनके शरीर तक जरूरी औषधि पहुंचाने के बाद जड़ें अपने आप गायब हो जाती।

महा:– अरे बाबा रेरे बाबा... भाव वोल्फ ये भी कर सकते है क्या?

आर्यमणि:– तुम्हे तो वुल्फ हंटर बनाया गया था न... फिर वुल्फ के कारनामों पर अचरज..

महा:– भाव जो दिखाया वही देखे, जो सिखाया वही सीखे लेकिन जब मैदान में आये तो जो सही था और न्यायपूर्ण वही किया। सोलापुर से लेकर कोल्हापुर तक एक भी वुल्फ का शिकर नही होने दिया मैं। अपनी दोनो ओर बराबर जिम्मेदारी है, वुल्फ हो या इंसान। इंसान में भी कपटी होते है, इसका ये मतलब तो नही की सभी इंसान को मार दो। वैसे ही वुल्फ है...

आर्यमणि:– भूमि का चेला...

पलक:– भूमि दीदी है ही ऐसी..

आर्यमणि अपने हाथ जोड़ते... “तुमने मेरे भांजे को बचाया, छोटे (अपस्यु) को बचाया, तुम खामोशी से कितने काम करती रही। तुम्हारा आभार रहेगा।”

पलक:– ओ गुरु भेड़िया, भूलो मत दुश्मनी अभी खत्म नहीं हुई। और मिस अलबेली, क्या अब आप मुझे मेरा सामान दे देंगी, जो आप लोगों से वास्ता नहीं रखता...

अलबेली:– तुम एक नंबर की चोरनी हो ना। कपड़ों के नीचे इतना सारा खजाना। ये बताओ एनर्जी फायर को कहां छिपा कर रखी थी।

पलक:– एनर्जी फायर क्या?

अलबेली:– वही जिसमे जादूगर महान की आत्मा कैद थी...

पलक:– ऐसा सीधा कहो ना। नया नाम रख दी तो मैं दुविधा में आ गयी की शूकेश अपने घर में और कितने राज छिपाए है। चोरी के समान में क्या सब था मुझे उसकी पूरी जानकारी नही। और न ही कोर प्रहरी के बहुत से राज पता है। मैने अपने शरीर पर एक्सपेरिमेंट नही करवाया ना, इसलिए ये लोग मुझे अलग तरह से ट्रीट करते है।

अलबेली:– अलग तरह से ट्रीट मतलब...

पलक:– मतलब उन्हे मुझ पर पूरा विश्वास नही..

अलबेली:– एक्सपेरिमेंट के पहले और बाद क्या अंतर होगा, उल्टा तुम्हे कोई नुकसान भी नही पहुंचा सकता। फिर क्यों न करवाई एक्सपेरिमेंट..

पलक:– कैसे समझाऊं क्यों न करवाई... ऐसे समझो की वो एक्सपेरिमेंट दरिंदा बनाने के लिये किया जाता है। शरीर के अंदर की आत्मा को मारकर बस एक उद्देश्य के लिये प्रेरित करता है।

अलबेली:– कौन सा उद्देश्य?

पलक:– जो है सो हम ही है, और हमारे जैसे लोग... बाकी सब आंडू–गांडू.. पैरों की जूती... जब चाहो रौंद डालो... अब बहुत सवाल कर ली, जा मेरा समान ला, मुझे पूरा खाली कर दी है...

अलबेली:– हां लेकिन पहले ये तो बताओ आधे फिट की वो पत्थर की माला छिपाई कहां थी...

पलक:– तू जब उसे हाथ में ली होगी तो पता चल गया होगा कहां था। अब मुंह मत खुलवाओ और समान लेकर आओ... और आर्य वो अनंत कीर्ति की खुली किताब तो दिखाओ, जिसके पीछे पूरे कोर प्रहरी व्याकुल है...

आर्यमणि, अनंत कीर्ति की पुस्तक को खोलकर दिखाते... “लो देख लो”...

पलक:– क्या मजाक है, यहां तो कुछ न लिखा।

आर्यमणि:– ये किताब है, इसे पढ़ा जाता है। ये किताब उतना ही उत्तर देगा, जितना इसने देखा है।

पलक:– इसने राजदीप (पलक का वही भाई जो आईपीएस है) को देखा ही होगा ना। उसी के बारे में बताओ किताब?

महा:– आंख मूंदकर राजदीप के बारे में सोचो, फिर आंख खोलो...

पलक, स्मरण करके आंखे खोली। जो किताब पर आ रहा था, उसे पढ़कर तो वह हैरान हो गयी। उसने उज्जवल, यानी अपने पिता का स्मरण किया। आंखें खोली तो इंसानी उज्जवल और बहरूपिया उज्जवल, सबकी जानकारी थी। पलक इस बार फिर आंखे मूंदी। उसके आंखों में आंसू थे। नम आखें खोली और बड़े ध्यान से पढ़ने लगी। पढ़ने के दौरान ही उसने थोड़ा और फिल्टर किया। इस बार आंखे खोलकर जब पढ़ी तो आंखें नम थी और चेहरे पर सुकून। वह किताब पर हाथ फेरने लगी.... “आर्य क्या यहां जो भी लिखा है उसे अलग से दे सकते हो”

आर्यमणि:– अपनी मां के बारे में सोची क्या?

पलक हां में सर हिलाने लगी। आर्यमणि, भी मुस्कुराते हुये हां कहा। अनंत कीर्ति पुस्तक के सामने उसने एक पूरा बंडल कोड़ा पन्ना रख दिया। कुछ मंत्र पढ़े और कोड़े पन्नो पर एक बार हाथ फेरते हुये वह पूरा बंडल पलक के हाथ में थमा दिया। पलक के साथ कई और ऐसे नायजो थे, जिन्हे अपने माता या पिता के बचपन का स्पर्श तो याद था, पर उसके बाद उन्हें निपटा दिया गया। एक–एक करके सभी आते गये और अपने प्रियजन की जानकारी लेकर जाते रहे। हर कोई भावुक होकर बस इतना ही कहता.... “दुनिया की सबसे अनमोल और कीमती उपहार दिये हो भाई।”

पलक के सभी साथी अपने हाथों में अपने माता–पिता की जीवनी समेटे थे। काम खत्म होते ही रूही जैसे ही किताब बंद करने आगे बढ़ी, पलक जिद करती.... “प्लीज मुझे मेरे बचपन के दोस्तों को ढूंढने दो। सार्थक और प्रिया।”

रूही मुस्कुराते हुये हामी भर दी पलक ने स्मरण किया और आंखें खोली। लेकिन आखें खोलने के बाद जैसे ही नजर पन्नो पर गयी..... “आर्य ये क्या है। किताब की जानकारी सही तो है न।”...

आर्यमणि ने किताब देखा... “पलक इसकी जानकारी सही है। सार्थक और प्रिया, गुरु निशि के मृत्यु के वक्त कहां थे और किन लोगों से मिले, पहले इसे जान लेते है?”...

किताब की पूरी जानकारी को देखने के बाद आर्यमणि.... “इन दोनो को तुम जिंदा जलाओगी, या मुझे जाना होगा।”...

पलक:– अब तो दिल पर बोझ सा हो गया है आर्य। सही जगह सूचना देती तो शायद सबकी जान बच जाती। यही दोनो थे जिन्होंने मुझसे कहा था कि मैं गुरु निशि या किसी को कुछ न बताऊं। यही दोनो थे, जिन्होंने मुझसे पैरालिसिस वाली बूटी ली थी और कही थी.... “इलाज के दौरान गुरु निशि अपने विश्वसनीय लोगों के साथ होंगे तब उनसे मिलने के बहाने उन्हे खतरे से आगाह किया जाएगा। वरना अभी गये आगाह करने तो हो सकता है उनके आस पास कुछ ऐसे दुश्मन हो जो मेरी बात को मनगढ़ंत साबित कर दे।”.... उनकी एक–एक चालबाजी याद आ रही। साले कपटी लोग। आर्यमणि इन्हे तो मैं अपने हाथों से जलाऊंगी... लेकिन उस से पहले कैस्टर ऑयल के फूल का जहर का मजा दूंगी। मौत से पहले इन्हे अपने किये पर ऐसा पछतावा होगा की इनकी रूहे दोबारा फिर कभी जन्म ही न लेगी। बस मेरे कुछ लोगों के लिये फर्जी पासपोर्ट का बदोबस्त कर दो।

आर्यमणि:– हो जायेगा... बस तुम चूकना मत। तो सभा समाप्त किया जाये...

पलक, आर्यमणि के गले लगती.... “अपना ख्याल रखना। आने वाला वक्त तुम पर बहुत भारी होने वाला है।”...

आर्यमणि:– सभा समाप्त मतलब अभी अपनी बातचीत की सभा समाप्त करते है। इसके आगे तो बहुत से काम है। वैसे भी अभी तक तो तुमने बड़ी सफाई से अपने शक्तियों के राज से पर्दा उठाने के बदले डिस्कशन को कहीं और मोड़ चुकी हो। बैठकर पहले मेरे आज के मीटिंग के मकसद को देखो, उसके बाद विस्तृत चर्चा होगी।

पलक, आर्यमणि से अलग होती.... “करने क्या वाले हो?”...

इस बार अकेला आर्यमणि नही बल्कि पूरा अल्फा पैक एक साथ... पूरा अल्फा पैक मतलब निशांत और संन्यासी शिवम भी... सभी एक साथ एक सुर में बोले..... “आज सात्त्विक आश्रम का भय वहां तक स्थापित होगा, जहां तक ये विकृत नायजो फैले है। आज पूरे ब्रह्मांड में हम अपनी उपस्थिति का प्रमाण देंगे”
बहुत ही शानदार लाजवाब अपडेट भाई
 
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