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Fantasy Aryamani:- A Pure Alfa Between Two World's

nain11ster

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भाग:–154


तीनो आर्यमणि को उठाकर गुफा में ले आये और उसके हाथ को थाम आर्यमणि का दर्द खींचने लगे। लेकिन ऐसा लग रहा था जैस दर्द में कोई गिरावट ही नही हो रही है, बल्कि वक्त के साथ वो और भी बढ़ता जा रहा था। रूही के आंखों मे आंशु आ चले... "क्या हुआ आर्य को.. अचानक ऐसा क्या हुआ जो इनके शरीर का दर्द बढ़ता ही जा रहा है?"…

इवान:– ये जरूर उन पानी में रहने वाले रहशमयी इंसानों का काम होगा.. मैं अभी जाकर उनको लेकर आता हूं..

अलबेली:– पहले बॉस का दर्द लेते रहो... उन्हे बाद ने देखेंगे...

हील करते रहने के बावजूद भी आर्यमणि के बढ़ते दर्द के कारण तीनो का ही दिमाग काम करना बंद कर चुका था। तभी वहां वो शेर आया। अपने मुंह में वो कुछ अलग प्रकार की जंगली घास दबाकर लाया था। आते ही घास उनके पास रखकर दहाड़ने लगा.… इवान उसकी हरकतों पर गौर किया और तुरंत ही वो घास उठाकर... "अलबेली बॉस का मुंह खोलो"..

अलबेली ने आर्य का मुंह खोला। इवान घास को समेटा और मसल कर उसका रस आर्यमणि के मुंह में गिराने की कोशिश करने लगा। लेकिन घास से उतना रस नही निकल रहा था जो बूंद बनकर मुंह में टपक सके। रूही तुरंत घर पर पानी गिरती... "अब इसका रस निकालो"..

इवान भी तेजी से घास को निचोड़ने लगा। पानी उस घास के ऊपर से होते हुए आर्यमणि के में पहुंचने लगा। घास पूरी तरह से निचोड़ा जा चुका था। पानी के साथ घर के रस की कुछ मात्रा आर्यमणि के शरीर में गया.. कुछ देर बाद ही आर्यमणि का दर्द धीरे–धीरे कम होने लगा।

अलबेली:– ये काम कर रहा है... इवान जाओ इस किस्म के और घास ले आओ... जहां हमने बाइक खड़ी की थी उस क्षेत्र की ये घास है शायद, मैने देखा था"…

रूही:– इवान तुम घास ले आओ हम आर्यमणि को लेकर कॉटेज पहुंचते है।

इवान:– मैं बॉस को उठाकर ले जाता हूं... तुम दोनो घास लेकर पहुंचो…

थोड़ी ही देर में सब अपने घर में थे। आर्यमणि को लगातार उस घास का रस पानी में मिलाकर पिलाया जा रहा था। दर्द समाप्त हो चुका था और उसकी श्वांस भी सामान्य हो गयी थी। देर रात रूही ने इवान और अलबेली को आराम करने भेज दिया। खुद आर्यमणि के बाजू में टेक लगाकर बैठ गयी और उसके हाथ को थामकर मायूसी से आर्यमणि के चेहरे को एक टक देख रही थी।

आर्यमणि सुकून से अब नींद की गहराइयों में था। काफी देर तक चैन की नींद लेने के बाद आर्यमणि विचलित होकर आंखे खोला और जोर–जोर से रूही–रूही कहते हुये रोने लगा... रूही पास में ही टेक लगाए सो रही थी, आर्यमणि के चिल्लाने से उसकी भी नींद खुल गयी। वह आर्यमणि को हिलाती हुई कहने लगी... "यहीं हूं मैं जान, कहीं नही गयी, यहीं हूं"..

जैसे ही आर्यमणि के कान में रूही की आवाज सुनाई पड़ी, व्याकुलता से वो रूही के बदन को छू कर तसल्ली कर रहा था, उसे चूम रहा था... "अरे, ये क्या कर रहे हो... कहीं मन में कोई नटखट तमन्ना तो नही जाग गयी"..

"ओह भगवान... शुक्र है.. रूही.. रूही... तुम साथ हो न रूही"..

"में यहीं तुम्हारे पास हूं आर्य"… रूही धीरे, धीरे प्यार से आर्यमणि के सर पर हाथ फेरती कहने लगी। आर्य रूही के गोद में सर रखकर उसके हथेली को अपने हथेली में थामकर, आंखे मूंद लिया। दोनो के बीच गहरी खामोशी थी, लेकिन एक दूसरे को महसूस कर सकते थे...

"रूही... रूही"…

"हां जान मैं तुम्हारे पास ही हूं।"…

"तुम मेरे साथ ही रहना रूही, मुझे छोड़कर कहीं मत जाना"…

"मैं तुम्हारे पास ही हूं जान, कोई बुरा सपना देखा क्या"..

"मौत से भी बुरा सपना था रूही.. मुझे लगा मैंने तुम्हे खो दिया"…

"अरे रो क्यों रहे हो मेरे वीर राजा... तुम बहुत तकलीफ में थे, इसलिए कोई बुरा सपना आया होगा। सब ठीक है"..

"हां काफी बुरा सपना था।… मैं यहां आया कैसे?"

रूही सड़ककर नीचे आयी। आर्यमणि का सर अपने सीने से लगाकर उसके पीठ पर अपनी हाथ फेरती... "सो जाओ जान। तुम्हारी तबियत ठीक नहीं थी। सो जाओ ताकि खुद को हील कर सको"..

आर्यमणि भी खुद में सुकून महसूस करते, रूही में सिमट गया और उसका हाथ थामकर गहरी नींद में सो गया। सुबह जब उसकी नींद खुली, खुद को रूही के करीब पाया। थोड़ा ऊपर होकर वह तकिए पर अपना सर दिया और करवट लेटकर सुकून से सोती हुई रूही को देखने लगा।

रूही का चेहरा काफी मनमोहक लग रहा था। देखते ही दिल में प्यार जैसे उमर सा गया हो। हाथ स्वतः ही उसके चेहरे पर चलने लगे। प्यार से उसके चेहरे पर हाथ फेरते, आर्यमणि सुकून से रूही को देख रहा था। इसी बीच रूही ने भी अपनी आखें खोल दी। अपनी ओर यूं प्यार से आर्यमणि को देखते देख, मुस्कुराती हुई अपनी बांह आर्यमणि के गले में डालकर प्यार से होंठ, उसके होंठ से लगा दी।

होंठ का ये स्पर्श इतना प्यारा था कि दोनो एक दूसरे के होंठ को स्पर्श करते, प्यार से चूमने लगे। धीरे–धीरे श्वान्स तेज और चुम्बन गहरा होता चला गया। शरीर में जैसे नई ऊर्जा का संचार हो रहा हो। दोनो काफी मदहोश होकर एक दूसरे को चूम रहे थे। दोनो ही करवट लेते थे। रूही आर्यमणि के गले में हाथ डाली थी और आर्यमणि रूही के गले में, और दोनो एक दूसरे में जैसे खोए से थे।

रूही होंठ को चूमती हुई अपने हाथ नीचे ले जाकर आर्यमणि के पैंट के अंदर डाल दी। आर्यमणि अपना सर पीछे करके चुम्बन तोड़ने की कोशिश करने लगा। लेकिन रूही उसके सिर के बाल को मुट्ठी में दबोचती, उसके होंठ को और भी ज्यादा जोर से अपने होटों से जकड़ ली और दूसरे हाथ से वो लिंग को प्यार से सहला रही थी।

आर्यमणि भी पूरा खोकर रूही को चूमने लगा। चूमते हुए आर्यमणि अपने हाथ नीचे ले गया और अपने पैंट को नीचे सरकाकर उतार दिया। अपना पैंट निकलने के बाद रूही के गाउन को कमर तक लाया और उसके पेंटी को खिसकाकर नीचे घुटनों तक कर दिया। पेंटी घुटनो तक आते ही रूही ने उसे अपने पाऊं से निकाल दिया।

एक दूसरे को पूरा लस्टी किस्स करते हुए, रूही आर्यमणि के लिंग के साथ खेल रही थी और आर्यमणि उसके योनि के साथ। कुछ देर बाद रूही ने खुद ही चुम्बन तोड़ दिया और आर्यमणि की आंखों में झांकती… "थोड़ा प्यार से अपने प्यार को महसूस करवाओ जान"..

आर्यमणि एक छोटा सा चुम्बन लेकर रूही को चित लिटाया। रूही चित होते ही अपने घुटने को हल्का मोड़कर दोनो पाऊं खोल दी। आर्यमणि, रूही के बीच आकर, बैठ गया और उसके कमर को अपने दोनो हाथ से थोड़ा ऊपर उठाकर लिंग को बड़े प्यार से योनि के अंदर डालकर, धीरे धीरे अपना कमर हिलाने लगा। आर्यमणि, रूही के दोनो पाऊं के बीच बिठाकर उसे बड़े प्यार से संभोग का आनंद दे रहा था। दोनो की नजरे एक दूसरे से मिल रही थी और दोनो ही प्यार से मुस्कुराते हुए संभोग कर रहे थे।

रूही अपने पीठ को थोड़ा ऊपर करती, अपने गाउन को नीचे सरका कर लेट गई और अपने सुडोल स्तन पर आर्यमणि की दोनो हथेली रखकर हवा में उसे एक चुम्मा भेजी। आर्यमणि हंसते हुए उसके स्तनों पर प्यार से अपनी पकड़ बनाया और प्यार से स्तन को दबाते हुए लिंग को अंदर बाहर करने लगा... दोनो ही अपने स्लो सेक्स का पूरा मजा उठा रहे थे। अचानक ही रूही ने बिस्तर को अपने मुट्ठी में भींच लिया और अपने चरम सुख का आनंद लेने लगी... चरम सुख का आनंद लेने के बाद...

"जान कितनी देर और"…..

"उफ्फ अभी तो खेल शुरू हुआ है".. ..

"यहां मेरे पास आ जाओ, आगे का खेल हाथ का है। अब मैं ऐसे चित नही लेटी रह सकती"….

आर्यमणि रूही की भावना को समझते हुए लिंग को योनि से निकालकर हटा और ऊपर उसके चेहरे के करीब आकर घुटने पर बैठ गया। रूही अपने दोनो हाथ से लिंग को दबोचकर जोर–जोर से हिलाने लगी। आर्यमणि अपनी आंखें मूंद इस हस्त मैथुन का मजा लेने लगा। कुछ देर के बाद उसे अपने गरम लिंग पर गिला–गिला महसूस होने लगा। रूही लिंग का ऊपरी हिस्सा अपने मुंह में लेकर चूसती हुई पीछे से दोनो हाथ की पकड़ बनाए थी और मुख और हस्त मैथुन एक साथ दे रही थी। थोड़ी ही देर में आर्य का बदन भी अकड़ने लगा। रूही तुरंत लिंग को मुंह से बाहर निकालती पिचकारी का निशाना कहीं और की.. और आर्यमणि झटके खाता हुआ अपना जोरदार पिचकारी मार दिया।…

खाली होने के बाद वह भी रूही के पास लेट गया और प्यार से रूही के बदन पर हाथ फेरते... "कल विचलित करने वाली शाम थी रूही।"..

"उस शेर ने बड़ी मदद की जान। उसे पता था की तुम्हे क्या हुआ है। उसी ने जंगली घास में से कुछ खास प्रकार के घास को लेकर आया था, वरना हम तुम्हारा दर्द जितना कम करने की कोशिश करते, वह उतना ही बढ़ रहा था"..

"मेरी नजर एक जलपड़ी से टकराई थी। उसकी नजर इतनी तीखी थी कि उसके एक नजर देखने मात्र से मेरे सर में ढोल बजने लगे थे। उसके बाद तो ऐसा हुआ मानो मेरे सर की सभी नशे गलना शुरू कर दी थी"…

"कामिनी बहुत ताकतवर लग रही.. केवल नजर उठाकर देखने से जान चली जाए... तुम्हे भी क्या जरूरत थी नैन मटक्का करने की। मतलब बीवी अब कभी–कभी देती है तो बाहर मुंह मरोगे"…

"अच्छा इसलिए आज सुबह–सुबह ये कार्यक्रम रखी थी"..

रूही, आर्यमणि को खींचकर एक तमाचा देती... "जब आंख खुली तब जलपड़ी के साथ अपने नैन–मट्टका की रास लीला बताते, फिर देखते कौन सा कार्यक्रम हो रहा होता। वो तो इतना प्यार आ रहा था कि उसमे बह गयी। साले बेवफा वुल्फ, तुम्हारे नीचे तो आग लगी होगी ना, इसलिए हर किसी को लाइन देते फिर रहे"..

"पागल कहीं की कुछ भी बोलती है"… कहते हुए आर्यमणि ने रूही के सर को अपने सीने से लगा लिया"..

"जाओ जी.. मुझे बहलाओ मत। प्यार मुझसे ही करते हो ये पता है, लेकिन अपनी आग ठंडी करने के लिए हमेशा व्याकुल रहते हो"

"अरे कैसे ये पागलों जैसी बातें कर रही हो। ऐसा तो मेरे ख्यालों में भी नही था"…

"अच्छा ठीक है मान लिया.. अब उठो और जाकर काम देखो। साथ में मेरे लिए कुछ खाने को लाओ.. तुम्हारी बीवी और बच्ची दोनो को भूख लग रही है।"..

"बस 10 मिनट दो, अभी सब व्यवस्था करता हूं।"…

दोनो बिस्तर से उठे। आर्यमणि कपड़े ठीक करके बाहर आया और रूही बाथरूम में। आर्यमणि जैसे ही बाहर आया दूसरी ओर से अलबेली और इवान उनके पास पहुंचे। अलबेली खाना लेकर अंदर गयी और इवान आर्यमणि से उसका हाल पूछने लगा...

कल की हैरतंगेज घटना सबके जहन में थी। सबसे ज्यादा तकलीफ तो आर्यमणि ने ही झेला था। अगले 2 दिनों तक कोई कहीं नही गया। रूही सबको पकड़कर एक जगह बांधे रखी। हंसी मजाक और काम काज में ही दिन गुजर गये। हालांकि रूही तो तीसरे दिन भी पकड़कर ही रखती, लेकिन सुबह–सुबह वो शेर आर्यमणि के फेंस के आगे गस्त लगाने लगा...

चारो निकलकर जैसे ही उस शेर को देखने आये, वह शेर तेज गुर्राता हुए उन्हें देखा और फिर जंगल के ओर जाने लगा... "लगता है फिर कहीं ले जाना चाहता है"… रूही अपनी बात कहती शेर के पीछे चल दी। आर्यमणि, इवान और अलबेली भी उसके पीछे चले।

सभी लोग चोटी पर पहुंच चुके थे। आज न सिर्फ वो शेर बल्कि उसका पूरा समूह ही पर्वत की चोटी पर था। उस शेर के वहां पहुंचते ही पूरा समूह पर्वत के उस पार जाने लगा। किसी को कुछ समझ में नही आ रहा था कि यहां हो क्या रहा है? कुछ दिन पहले जो शेर उस पार जाने से रोक रहा था, वो आज खुद लेकर जा रहा था।

रूही के लिये यह पहली बार था इसलिए वह कुछ भी सोच नही रही थी। लेकिन उसकी नजर जब उस कल्पना से पड़े, बड़े और विशाल जीव पर पड़ी, रूही बिलकुल हैरानी के साथ कदम बढ़ा रही थी। शेर का पूरा समूह उस जीव के मुंह के पास आकर रुका। चारो अपनी गर्दन ऊपर आसमान में करके भी उसके मुंह के ऊपर के अंतिम हिस्सा को नही देख पा रहे थे।

अलबेली तो हंसती हुई कह भी दी... "आज ये शेर हम सबको निगलवाने वाला है"..

चारो वहीं फैलकर उस विशालकाय जीव को देखने लगे। शेर का पूरा झुंड उसके चेहरे के सामने जाकर, अपना पंजा उसके मुंह पर मारने लगे... ऐसा करते देख इवान के मुंह से भी निकल गया... "कहीं ये साले शेर अपने बलिदान के साथ हमारी भी बली तो नही लेने वाले"… आंखों के आगे न समझ में आने वाला काम हो रहा था।

इतने में ही उस जानवर में जैसे हलचल हुई हो। शेर के पंजे की प्रतिक्रिया में वो विशालकाय जीव बस नाक से तेज हवा निकाला और अपने सिर को एक करवट से दूसरे करवट ले गया। हां उस जीव के लिये तो अपना सिर मात्र इधर से उधर घूमाना था, लेकिन चारो को ऐसा लगा जैसे एक पूरी इमारत ने करवट ली हो। माजरा अब भी समझ से पड़े था।

तभी शेर का पूरा झुंड अल्फा पैक के पीछे आया और अपने सिर से धक्का देते मानो उस जीव के करीब ले जाने की कोशिश कर रहा था। एक बार चारो की नजरे मिली। आपसी सहमति हुई और चारो उस जीव के करीब जाकर उन्हें देखने लगे। जितना हिस्सा नजर के सामने था, उसे बड़े ध्यान से देखने लगे।

तभी जैसे उन्हे शेर ने धक्का मारा हो... "अरे यार ये शेर हमसे कुछ ज्यादा उम्मीद तो नही लगाए बैठे"… आर्यमणि ने कहते हुये उस जीव को छू लिया। काफी कोमल और मुलायम त्वचा थी। आर्यमणि उसके त्वचा पर हाथ फेरते उसके दर्द का आकलन करने के लिये उसका थोड़ा सा दर्द अपनी नब्ज में उतारा..

आर्यमणि को ऐसा लगा जैसे 100 पेड़ को वो एक साथ हील कर रहा हो। एक पल में ही उसका पूरा बदन नीला पड़ गया और झटके से उसने अपने हाथ हटा लिये। इधर उस जीव को जैसे छानिक राहत मिली हो, उसकी श्वांस तेज चलने लगी...

आर्यमणि:– लगता है इसके बचने की कोई उम्मीद नहीं थी, इसलिए मजबूरी में इसे छोड़कर चले गये...

रूही:– और लगता है ये जीव अक्सर किनारे पर आता है, शेर का झुंड से काफी गहरा नाता है। चलो आर्य इस कमाल के जीव को बचाने की एक कोशिश कर ही लिया जाए।

“मुझे कुछ वक्त दो। सोचने दो इसके लिये क्या किया जा सकता है।” अपनी बात कहते आर्यमणि वहीं बैठकर ध्यान लगाने लगा।

 

king cobra

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तीनो आर्यमणि को उठाकर गुफा में ले आये और उसके हाथ को थाम आर्यमणि का दर्द खींचने लगे। लेकिन ऐसा लग रहा था जैस दर्द में कोई गिरावट ही नही हो रही है, बल्कि वक्त के साथ वो और भी बढ़ता जा रहा था। रूही के आंखों मे आंशु आ चले... "क्या हुआ आर्य को.. अचानक ऐसा क्या हुआ जो इनके शरीर का दर्द बढ़ता ही जा रहा है?"…

इवान:– ये जरूर उन पानी में रहने वाले रहशमयी इंसानों का काम होगा.. मैं अभी जाकर उनको लेकर आता हूं..

अलबेली:– पहले बॉस का दर्द लेते रहो... उन्हे बाद ने देखेंगे...

हील करते रहने के बावजूद भी आर्यमणि के बढ़ते दर्द के कारण तीनो का ही दिमाग काम करना बंद कर चुका था। तभी वहां वो शेर आया। अपने मुंह में वो कुछ अलग प्रकार की जंगली घास दबाकर लाया था। आते ही घास उनके पास रखकर दहाड़ने लगा.… इवान उसकी हरकतों पर गौर किया और तुरंत ही वो घास उठाकर... "अलबेली बॉस का मुंह खोलो"..

अलबेली ने आर्य का मुंह खोला। इवान घास को समेटा और मसल कर उसका रस आर्यमणि के मुंह में गिराने की कोशिश करने लगा। लेकिन घास से उतना रस नही निकल रहा था जो बूंद बनकर मुंह में टपक सके। रूही तुरंत घर पर पानी गिरती... "अब इसका रस निकालो"..

इवान भी तेजी से घास को निचोड़ने लगा। पानी उस घास के ऊपर से होते हुए आर्यमणि के में पहुंचने लगा। घास पूरी तरह से निचोड़ा जा चुका था। पानी के साथ घर के रस की कुछ मात्रा आर्यमणि के शरीर में गया.. कुछ देर बाद ही आर्यमणि का दर्द धीरे–धीरे कम होने लगा।

अलबेली:– ये काम कर रहा है... इवान जाओ इस किस्म के और घास ले आओ... जहां हमने बाइक खड़ी की थी उस क्षेत्र की ये घास है शायद, मैने देखा था"…

रूही:– इवान तुम घास ले आओ हम आर्यमणि को लेकर कॉटेज पहुंचते है।

इवान:– मैं बॉस को उठाकर ले जाता हूं... तुम दोनो घास लेकर पहुंचो…

थोड़ी ही देर में सब अपने घर में थे। आर्यमणि को लगातार उस घास का रस पानी में मिलाकर पिलाया जा रहा था। दर्द समाप्त हो चुका था और उसकी श्वांस भी सामान्य हो गयी थी। देर रात रूही ने इवान और अलबेली को आराम करने भेज दिया। खुद आर्यमणि के बाजू में टेक लगाकर बैठ गयी और उसके हाथ को थामकर मायूसी से आर्यमणि के चेहरे को एक टक देख रही थी।

आर्यमणि सुकून से अब नींद की गहराइयों में था। काफी देर तक चैन की नींद लेने के बाद आर्यमणि विचलित होकर आंखे खोला और जोर–जोर से रूही–रूही कहते हुये रोने लगा... रूही पास में ही टेक लगाए सो रही थी, आर्यमणि के चिल्लाने से उसकी भी नींद खुल गयी। वह आर्यमणि को हिलाती हुई कहने लगी... "यहीं हूं मैं जान, कहीं नही गयी, यहीं हूं"..

जैसे ही आर्यमणि के कान में रूही की आवाज सुनाई पड़ी, व्याकुलता से वो रूही के बदन को छू कर तसल्ली कर रहा था, उसे चूम रहा था... "अरे, ये क्या कर रहे हो... कहीं मन में कोई नटखट तमन्ना तो नही जाग गयी"..

"ओह भगवान... शुक्र है.. रूही.. रूही... तुम साथ हो न रूही"..

"में यहीं तुम्हारे पास हूं आर्य"… रूही धीरे, धीरे प्यार से आर्यमणि के सर पर हाथ फेरती कहने लगी। आर्य रूही के गोद में सर रखकर उसके हथेली को अपने हथेली में थामकर, आंखे मूंद लिया। दोनो के बीच गहरी खामोशी थी, लेकिन एक दूसरे को महसूस कर सकते थे...

"रूही... रूही"…

"हां जान मैं तुम्हारे पास ही हूं।"…

"तुम मेरे साथ ही रहना रूही, मुझे छोड़कर कहीं मत जाना"…

"मैं तुम्हारे पास ही हूं जान, कोई बुरा सपना देखा क्या"..

"मौत से भी बुरा सपना था रूही.. मुझे लगा मैंने तुम्हे खो दिया"…

"अरे रो क्यों रहे हो मेरे वीर राजा... तुम बहुत तकलीफ में थे, इसलिए कोई बुरा सपना आया होगा। सब ठीक है"..

"हां काफी बुरा सपना था।… मैं यहां आया कैसे?"

रूही सड़ककर नीचे आयी। आर्यमणि का सर अपने सीने से लगाकर उसके पीठ पर अपनी हाथ फेरती... "सो जाओ जान। तुम्हारी तबियत ठीक नहीं थी। सो जाओ ताकि खुद को हील कर सको"..

आर्यमणि भी खुद में सुकून महसूस करते, रूही में सिमट गया और उसका हाथ थामकर गहरी नींद में सो गया। सुबह जब उसकी नींद खुली, खुद को रूही के करीब पाया। थोड़ा ऊपर होकर वह तकिए पर अपना सर दिया और करवट लेटकर सुकून से सोती हुई रूही को देखने लगा।

रूही का चेहरा काफी मनमोहक लग रहा था। देखते ही दिल में प्यार जैसे उमर सा गया हो। हाथ स्वतः ही उसके चेहरे पर चलने लगे। प्यार से उसके चेहरे पर हाथ फेरते, आर्यमणि सुकून से रूही को देख रहा था। इसी बीच रूही ने भी अपनी आखें खोल दी। अपनी ओर यूं प्यार से आर्यमणि को देखते देख, मुस्कुराती हुई अपनी बांह आर्यमणि के गले में डालकर प्यार से होंठ, उसके होंठ से लगा दी।

होंठ का ये स्पर्श इतना प्यारा था कि दोनो एक दूसरे के होंठ को स्पर्श करते, प्यार से चूमने लगे। धीरे–धीरे श्वान्स तेज और चुम्बन गहरा होता चला गया। शरीर में जैसे नई ऊर्जा का संचार हो रहा हो। दोनो काफी मदहोश होकर एक दूसरे को चूम रहे थे। दोनो ही करवट लेते थे। रूही आर्यमणि के गले में हाथ डाली थी और आर्यमणि रूही के गले में, और दोनो एक दूसरे में जैसे खोए से थे।

रूही होंठ को चूमती हुई अपने हाथ नीचे ले जाकर आर्यमणि के पैंट के अंदर डाल दी। आर्यमणि अपना सर पीछे करके चुम्बन तोड़ने की कोशिश करने लगा। लेकिन रूही उसके सिर के बाल को मुट्ठी में दबोचती, उसके होंठ को और भी ज्यादा जोर से अपने होटों से जकड़ ली और दूसरे हाथ से वो लिंग को प्यार से सहला रही थी।

आर्यमणि भी पूरा खोकर रूही को चूमने लगा। चूमते हुए आर्यमणि अपने हाथ नीचे ले गया और अपने पैंट को नीचे सरकाकर उतार दिया। अपना पैंट निकलने के बाद रूही के गाउन को कमर तक लाया और उसके पेंटी को खिसकाकर नीचे घुटनों तक कर दिया। पेंटी घुटनो तक आते ही रूही ने उसे अपने पाऊं से निकाल दिया।

एक दूसरे को पूरा लस्टी किस्स करते हुए, रूही आर्यमणि के लिंग के साथ खेल रही थी और आर्यमणि उसके योनि के साथ। कुछ देर बाद रूही ने खुद ही चुम्बन तोड़ दिया और आर्यमणि की आंखों में झांकती… "थोड़ा प्यार से अपने प्यार को महसूस करवाओ जान"..

आर्यमणि एक छोटा सा चुम्बन लेकर रूही को चित लिटाया। रूही चित होते ही अपने घुटने को हल्का मोड़कर दोनो पाऊं खोल दी। आर्यमणि, रूही के बीच आकर, बैठ गया और उसके कमर को अपने दोनो हाथ से थोड़ा ऊपर उठाकर लिंग को बड़े प्यार से योनि के अंदर डालकर, धीरे धीरे अपना कमर हिलाने लगा। आर्यमणि, रूही के दोनो पाऊं के बीच बिठाकर उसे बड़े प्यार से संभोग का आनंद दे रहा था। दोनो की नजरे एक दूसरे से मिल रही थी और दोनो ही प्यार से मुस्कुराते हुए संभोग कर रहे थे।

रूही अपने पीठ को थोड़ा ऊपर करती, अपने गाउन को नीचे सरका कर लेट गई और अपने सुडोल स्तन पर आर्यमणि की दोनो हथेली रखकर हवा में उसे एक चुम्मा भेजी। आर्यमणि हंसते हुए उसके स्तनों पर प्यार से अपनी पकड़ बनाया और प्यार से स्तन को दबाते हुए लिंग को अंदर बाहर करने लगा... दोनो ही अपने स्लो सेक्स का पूरा मजा उठा रहे थे। अचानक ही रूही ने बिस्तर को अपने मुट्ठी में भींच लिया और अपने चरम सुख का आनंद लेने लगी... चरम सुख का आनंद लेने के बाद...

"जान कितनी देर और"…..

"उफ्फ अभी तो खेल शुरू हुआ है".. ..

"यहां मेरे पास आ जाओ, आगे का खेल हाथ का है। अब मैं ऐसे चित नही लेटी रह सकती"….

आर्यमणि रूही की भावना को समझते हुए लिंग को योनि से निकालकर हटा और ऊपर उसके चेहरे के करीब आकर घुटने पर बैठ गया। रूही अपने दोनो हाथ से लिंग को दबोचकर जोर–जोर से हिलाने लगी। आर्यमणि अपनी आंखें मूंद इस हस्त मैथुन का मजा लेने लगा। कुछ देर के बाद उसे अपने गरम लिंग पर गिला–गिला महसूस होने लगा। रूही लिंग का ऊपरी हिस्सा अपने मुंह में लेकर चूसती हुई पीछे से दोनो हाथ की पकड़ बनाए थी और मुख और हस्त मैथुन एक साथ दे रही थी। थोड़ी ही देर में आर्य का बदन भी अकड़ने लगा। रूही तुरंत लिंग को मुंह से बाहर निकालती पिचकारी का निशाना कहीं और की.. और आर्यमणि झटके खाता हुआ अपना जोरदार पिचकारी मार दिया।…

खाली होने के बाद वह भी रूही के पास लेट गया और प्यार से रूही के बदन पर हाथ फेरते... "कल विचलित करने वाली शाम थी रूही।"..

"उस शेर ने बड़ी मदद की जान। उसे पता था की तुम्हे क्या हुआ है। उसी ने जंगली घास में से कुछ खास प्रकार के घास को लेकर आया था, वरना हम तुम्हारा दर्द जितना कम करने की कोशिश करते, वह उतना ही बढ़ रहा था"..

"मेरी नजर एक जलपड़ी से टकराई थी। उसकी नजर इतनी तीखी थी कि उसके एक नजर देखने मात्र से मेरे सर में ढोल बजने लगे थे। उसके बाद तो ऐसा हुआ मानो मेरे सर की सभी नशे गलना शुरू कर दी थी"…

"कामिनी बहुत ताकतवर लग रही.. केवल नजर उठाकर देखने से जान चली जाए... तुम्हे भी क्या जरूरत थी नैन मटक्का करने की। मतलब बीवी अब कभी–कभी देती है तो बाहर मुंह मरोगे"…

"अच्छा इसलिए आज सुबह–सुबह ये कार्यक्रम रखी थी"..

रूही, आर्यमणि को खींचकर एक तमाचा देती... "जब आंख खुली तब जलपड़ी के साथ अपने नैन–मट्टका की रास लीला बताते, फिर देखते कौन सा कार्यक्रम हो रहा होता। वो तो इतना प्यार आ रहा था कि उसमे बह गयी। साले बेवफा वुल्फ, तुम्हारे नीचे तो आग लगी होगी ना, इसलिए हर किसी को लाइन देते फिर रहे"..

"पागल कहीं की कुछ भी बोलती है"… कहते हुए आर्यमणि ने रूही के सर को अपने सीने से लगा लिया"..

"जाओ जी.. मुझे बहलाओ मत। प्यार मुझसे ही करते हो ये पता है, लेकिन अपनी आग ठंडी करने के लिए हमेशा व्याकुल रहते हो"

"अरे कैसे ये पागलों जैसी बातें कर रही हो। ऐसा तो मेरे ख्यालों में भी नही था"…

"अच्छा ठीक है मान लिया.. अब उठो और जाकर काम देखो। साथ में मेरे लिए कुछ खाने को लाओ.. तुम्हारी बीवी और बच्ची दोनो को भूख लग रही है।"..

"बस 10 मिनट दो, अभी सब व्यवस्था करता हूं।"…

दोनो बिस्तर से उठे। आर्यमणि कपड़े ठीक करके बाहर आया और रूही बाथरूम में। आर्यमणि जैसे ही बाहर आया दूसरी ओर से अलबेली और इवान उनके पास पहुंचे। अलबेली खाना लेकर अंदर गयी और इवान आर्यमणि से उसका हाल पूछने लगा...

कल की हैरतंगेज घटना सबके जहन में थी। सबसे ज्यादा तकलीफ तो आर्यमणि ने ही झेला था। अगले 2 दिनों तक कोई कहीं नही गया। रूही सबको पकड़कर एक जगह बांधे रखी। हंसी मजाक और काम काज में ही दिन गुजर गये। हालांकि रूही तो तीसरे दिन भी पकड़कर ही रखती, लेकिन सुबह–सुबह वो शेर आर्यमणि के फेंस के आगे गस्त लगाने लगा...

चारो निकलकर जैसे ही उस शेर को देखने आये, वह शेर तेज गुर्राता हुए उन्हें देखा और फिर जंगल के ओर जाने लगा... "लगता है फिर कहीं ले जाना चाहता है"… रूही अपनी बात कहती शेर के पीछे चल दी। आर्यमणि, इवान और अलबेली भी उसके पीछे चले।

सभी लोग चोटी पर पहुंच चुके थे। आज न सिर्फ वो शेर बल्कि उसका पूरा समूह ही पर्वत की चोटी पर था। उस शेर के वहां पहुंचते ही पूरा समूह पर्वत के उस पार जाने लगा। किसी को कुछ समझ में नही आ रहा था कि यहां हो क्या रहा है? कुछ दिन पहले जो शेर उस पार जाने से रोक रहा था, वो आज खुद लेकर जा रहा था।

रूही के लिये यह पहली बार था इसलिए वह कुछ भी सोच नही रही थी। लेकिन उसकी नजर जब उस कल्पना से पड़े, बड़े और विशाल जीव पर पड़ी, रूही बिलकुल हैरानी के साथ कदम बढ़ा रही थी। शेर का पूरा समूह उस जीव के मुंह के पास आकर रुका। चारो अपनी गर्दन ऊपर आसमान में करके भी उसके मुंह के ऊपर के अंतिम हिस्सा को नही देख पा रहे थे।

अलबेली तो हंसती हुई कह भी दी... "आज ये शेर हम सबको निगलवाने वाला है"..

चारो वहीं फैलकर उस विशालकाय जीव को देखने लगे। शेर का पूरा झुंड उसके चेहरे के सामने जाकर, अपना पंजा उसके मुंह पर मारने लगे... ऐसा करते देख इवान के मुंह से भी निकल गया... "कहीं ये साले शेर अपने बलिदान के साथ हमारी भी बली तो नही लेने वाले"… आंखों के आगे न समझ में आने वाला काम हो रहा था।

इतने में ही उस जानवर में जैसे हलचल हुई हो। शेर के पंजे की प्रतिक्रिया में वो विशालकाय जीव बस नाक से तेज हवा निकाला और अपने सिर को एक करवट से दूसरे करवट ले गया। हां उस जीव के लिये तो अपना सिर मात्र इधर से उधर घूमाना था, लेकिन चारो को ऐसा लगा जैसे एक पूरी इमारत ने करवट ली हो। माजरा अब भी समझ से पड़े था।

तभी शेर का पूरा झुंड अल्फा पैक के पीछे आया और अपने सिर से धक्का देते मानो उस जीव के करीब ले जाने की कोशिश कर रहा था। एक बार चारो की नजरे मिली। आपसी सहमति हुई और चारो उस जीव के करीब जाकर उन्हें देखने लगे। जितना हिस्सा नजर के सामने था, उसे बड़े ध्यान से देखने लगे।

तभी जैसे उन्हे शेर ने धक्का मारा हो... "अरे यार ये शेर हमसे कुछ ज्यादा उम्मीद तो नही लगाए बैठे"… आर्यमणि ने कहते हुये उस जीव को छू लिया। काफी कोमल और मुलायम त्वचा थी। आर्यमणि उसके त्वचा पर हाथ फेरते उसके दर्द का आकलन करने के लिये उसका थोड़ा सा दर्द अपनी नब्ज में उतारा..

आर्यमणि को ऐसा लगा जैसे 100 पेड़ को वो एक साथ हील कर रहा हो। एक पल में ही उसका पूरा बदन नीला पड़ गया और झटके से उसने अपने हाथ हटा लिये। इधर उस जीव को जैसे छानिक राहत मिली हो, उसकी श्वांस तेज चलने लगी...

आर्यमणि:– लगता है इसके बचने की कोई उम्मीद नहीं थी, इसलिए मजबूरी में इसे छोड़कर चले गये...

रूही:– और लगता है ये जीव अक्सर किनारे पर आता है, शेर का झुंड से काफी गहरा नाता है। चलो आर्य इस कमाल के जीव को बचाने की एक कोशिश कर ही लिया जाए।

“मुझे कुछ वक्त दो। सोचने दो इसके लिये क्या किया जा सकता है।” अपनी बात कहते आर्यमणि वहीं बैठकर ध्यान लगाने लगा।

Dharti par ek se badhkar ek chamatkaar bhare pade hain ab ye bhayanak jeev mil gawa udhar jalpariya wo bhi khatarnaak han ab insab me king cobra bhi na jaye vishaal paramshaktishali jispar koi tantra mantra kaam noi karta (ijjat bacha lena nainu bhai cobra ki :cry2:)
 

CFL7897

Be lazy
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Shandar bhai.....
To abhi bhi us kal jiv ke bare me pata nahi chala ..
Jalpariwo ne use wahi chod diya ya unki koi vivasata rahi hogi..dekhate hai agle update me..

Aarya par kon sa jadu kar diya tha usne...jis se uski itani halat khrab ho gayi..??
 

Monty cool

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आज कल आर्य जहाँ जाता वहां कुछ ना कुछ पन्गा होता जरूर है और फिर बाद मे आर्य को ही सबको ठीक करना पड़ता है देखा जाए तो आज कल आर्य चलता फिरता ICU है

छोटा लेकिन शानदार अपडेट 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
 
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