Deep ak
Member
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Bhai abhay bachcha tha aur Sandhya vidhwa to jo kuchh Raman kata tha to vishwas karti thi aurNaraj Q hota hai
.
Are yr kuch cheeje suspens me achi lgti hai or abi to suspens khulna suru hua hai
.
Manta ho SANDHYA ka carector thoda dhila hai abi
Lekin bhai duniya me log paray se jada apno pe pehle bhorasa krte hai
Whe SANDHYA ne kia hai
Ab kuch time to lgega use jb tk poori ASLIYT samne na aajay
Or abi sirf AMAN ki bat samne aay hai
Abi to RAMAN bi baki hai
.
Sbse main bat is time story ABHAY ke njrye se chl rhe hai aage SANDHYA ka najriya samne jroor aayga
Fir bi glt to hua hai ABHAY ke sath or badla to uska hak bnta hai bhle kisi or ki sajish ho
Lekin ek MAA apne bacche ke sath esa kbi ni krti jo SANDHYA ne kia
To bs dekhte jao ABHAY ko jo apne hisaab se SANDHYA or RAMAN se hisaab barabar krta hai
Superb updateअपडेट 24
संध्या की हालत और स्थिति कुछ ऐसी थी की मानो काटो तो खून नहीं। दिल में रह रह कर दर्द उठते मगर वो रोने और पछताने के अलावा कुछ भी नही कर सकती थी। आज जब उसे संभालने के लिए ललिता और मालती के हाथ उसकी तरफ बढ़े तो उसने उन दोनो का हाथ दिखाते हुए रोक दिया।
संध्या का दिल पहली बार इस तरह धड़क रहा था मानो बची हुई जिंदगी की धड़कन इस पल ही पूरी हो जायेगी। नम हो चुकी आंखो में दर्द का वो अश्क लिए एक नजर वो अमन की तरफ देखी....
अमन की नज़रे भी जैसे ही संध्या से मिली, वो अपनी आंखे चुराते हुए बोला.....
अमन --"सॉरी ताई मां, उस समय सही और गलत की समझ नही थी मुझमें।"
अमन का ये वाक्य पूरा होते ही.....संध्या तड़प कर बोली।
संध्या --"निधी.....तू भी। तुझे तो पता था ना सब, फिर तू मुझे क्यूं नही बताती थी? इसलिए की अमन तेरा सगा भाई था?"
संध्या की बात पर निधि भी कुछ नही बोलती, और अपना सिर नीचे झुका लेती है......।
ये देख कर संध्या झल्ला पड़ी। और एक गहरी सांस लेते हुए बोली...
संध्या --"मेरा बच्चा, चुपचाप हर चीज सहता रहा। मुझे सफाई भी देता रहा। मगर मेरी मत मारी गई थी ना, जो उसकी एक न सुनी और तुझे सच्चा और अच्छा समझ कर उसको पिटती रही। तू काहेता है ना की तू छोटे लोगो के मुंह नही लगता। तो अब से तू पायल के आस पास भी नजर आया, तो अभि तक तूने मेरा प्यार ही देखा है, नफरत भी बहुत जल्द ही देखेगा।"
संध्या की ये बात सुनकर अमन के होश उड़ गए, वो चेयर पर से उठते हुए बोला...
अमन --"ये आप क्या बोल रही है ताई मां। मैं पायल को नही छोड़ सकता। मैं उससे बचपन से बहुत प्यार करता हूं, और मेरे प्यार के बीच में कोई आया ना तो मै...."
अभि अमन ने अपना वाक्य पूरा बोला भी नही था की, उसके चेहरे पर एक जोरदार तमाचा पड़ा।
"नालायक, शर्म नही आती तुझे? जिस इंसान ने तुझे इतना प्यार दिया उसी के बारे में ऐसा बोल रहा है।"
अमन का गाल लाल हो चुका था। अपने एक गाल पर हाथ रखे जब अमन ने अपनी नज़रे उठाई तो पाया की उसे थप्पड़ मरने वाला कोई और नहीं बल्कि खुद उसका बाप रमन था। ये देख कर अमन बिना कुछ बोले, अपना बैग उठता है और वह से चल पड़ता है...
अमन के जाते ही, निधी भी वहा से चुप चाप निकल लेती है। अब वहा पे सिर्फ मालती, ललिता, रमन और संध्या ही बचे थे।
रमन --"अब तो खुश हो न भाभी तुम?"
रमन की बात सुनकर, संध्या रुवासी ही सही मगर थोड़ा मुस्कुरा कर बोली...
संध्या --"खुश, किस बात पे? अपने बच्चे को बेवजह पिटती रही मैं, इस बात पे? जिसे सीने से लगाकर रखना चाहिए था वो दुनिया की भीड़ में भूखा प्यासा भटकता रहा, उस बात पे? ना जाने कैसे उसने अपने दिल को समझाया होगा, उस बात पे?या उस बात पे ? की जब भी कभी उसे तकलीफ हुई होगी उसके होठों से मां शब्द भी निकलेंगे होगे या नहीं? और तू एक थप्पड़ मार कर पूछता है की खुश हु की नही?पर आज खुश हूं मैं, की मेरा बेटा उस काबिल है की दुनिया की भीड़ में चलने के लिए उसे किसी के सहारे की जरूरत नहीं। क्या कहता था तू? ना जाने कौन है वो, जो इस हवेली को बर्बाद करने आया है। बात ठीक है तेरी, वो सिर्फ हवेली ही नही बल्कि ना जाने क्याबक्या बर्बाद करेगा? और पहेली शुरुआत हुई है मुझसे.....l"
ये कहते हुए संध्या वहां से चली जाती है......
_____________________________
कॉलेज के गेट पर बैठा अभय, पायल का रास्ता तक रहा था...
"अरे मेरा भाई, इतना बेचैन क्यूं हो रहा है? आ जायेगी भाभी?"
अजय अपने हाथ में सिगरेट लिए उसकानेक कश लेते हुए बोला...
अभय --"ये बेचैनी यूं ही नहीं खत्म होगी अजय, जब तक मेरे यार का दीदार ना हो जाए।"
कहते हुए अभय सच में बेचैनी से कभी इधर तो कभी उधर चहल कदमी कर रहा था, ये देख कर अजय मुस्कुराते हुए बोला...
अजय --"यार भाई, सच बताऊं तो, क्या लग रही थी आज भाभी? कसम से !"
अजय की ये बात सुनकर, अभय का दिल धड़क कर रह गया, एक गहरी सांस लेते हुए वो बस पायल का इंतजार ही कर रहा था की, वो खूबसूरत सा चांद दिन के उजाले में अभय के सामने नजर आया,, जिसे देख कर अभय अपने दिल पर हाथ रख कर एक ठंडी सांस लेता है...
पायल अपनी सहेलियों के साथ कॉलेज की तरफ चली आ रही थी। उसकी खुली जुल्फें इस तरह से हवा में लहरा रही थी की एक पल के लिए मानो वो समय ही ठहर सा गया हो। जो लड़के जहा थे वही खड़े रह गए। सब की नजरे बस उस नाज़नीन पर अटक कर रह गई थी। उसके कान में बलिया इस तरह से झूल रहे थे मानो सावन के महीने में झूला। गोरे मासूम मुखड़े पर तो कोई ही ऐसा हो जिसका दिल ना घायल हो जाए और उस पर माथे पर चमकती एक छोटी सी बिंदी उसके पूरे रूप और यौवन रानी बना रही थी।
अभय का भी हाल कुछ वैसा ही था, जैसे और कॉलेज के लडको का। अभय की नजरे थी या फेविकोल का जोड़ , जो पायल के उपर ऐसी थमी की हटने का नाम ही नही ले रही थी।
पायल के पैरो में पायल की छनकार एक अजब सी खुमारी भर से रही थी, जो उसके चलने से छनक रहे थे...अभय पूरा दीवाना हो चुका था। और जब तक वो होश में आता, पायल उसके नजदीक आ पहुंची थी।
अभय के नजदीक आकर पायल रुक गई, अभय को इस तरह अपनी तरफ देखता देख, पायल अजय से बोली...
पायल --"जरा संभल के, पागलों के साथ रह कर तू भी पागल मत हो जाना।"
पायल की आवाज अभय को उसकी खूबसूरती की दुनिया से जमीन पर लाकर पटक देती है, और ये कह कर पायल जैसे ही आगे जाने के लिए बढ़ी थी...
अभय --"अब इस कदर कयामत हम पर बरसेगी, तो पागलपन क्या कही जान ही ना निकल जाए।"
अभय की बात सुनकर, पायल अभय की तरफ पलटी तो नही, मगर हल्का सा अपना चेहरा घुमाते हुए बोली...
पायल --"इस कयामत का हकदार कोई और है, उम्र बीत जायेगी तुम्हारी, यूं राह तकते तकते...।"
ये कह कर पायल हल्के से मुस्कुराई और फिर आगे बढ़ी ही थी की,...
अभय --"अगर मैं कहूं, की वो हकदार मैं ही हूं तो?"
पायल इस बार फिर मुस्कुराई.....
पायल --"उसे पता है, मैं उसे कहा मिल सकती हूं।"
ये कह कर पायल आगे बढ़ जाती है...। अभय मुस्कुराते हुए अपने दिल पर हाथ रखा ही था की...एक जोरदार झटके के साथ वो नीचे जमीन पर गिर गया...
अभय के जमीन पर गिरते ही, पायल, अजय और बाकी सभी लोग हैरत से अपनी नज़रे घुमा कर देखते है तो। सामने अमन अपने हाथो में एक मोटा डंडा लेकर खड़ा था।
जल्द ही अभय खड़े होते हुए, अपने कपड़े पर लगे मिट्टी को अपने चेहरे पर एक एटीट्यूड के भाव के साथ पूछते हुए अपने शर्ट की बाहें मोड़ते हुए बोला...
अभय --"अच्छा था, मगर बुजदिलों वाला था। पीछे से नही आगे से मार।"
अभय की बेबाकी और निडरता देखकर, वहा खड़े सब लड़के आपस में काना फूसी करने लगे। मगर एक अकेली पायल ही थी जो वहा पर अभय जैसी ही चेहरे पर एटीट्यूड लिए खड़ी मुस्कुरा रही थी.....
"भाई ये वही छोकरा है, जिसने डिग्री कॉलेज का काम रुकवा दिया।"
अमन के साथ में खड़ा वो लड़का बोला...
उस लड़के की बात सुनकर, अमन भी अपनी हरामीगिरी दिखाते हुए बोला...
अमन --"तू नया है, शायद इसी लिए तुझे मेरे बारे में पता नही। वो जो लड़की तेरे पीछे खड़ी है, दुबारा उसके आस पास भी मत भटकना, ये तेरे लिए अखरी चेतावनी है।"
अमन की बात सुनकर, अभय मुस्कुराते हुए एक नजर पीछे मुड़ कर पायल की तरफ देखता है। और वापस अमन की तरफ देख कर बोला।
अभय --"डिलोग्रटो ऐसे मार रहा है, जैसे तंबाकू का एडवर्टाइज कर रहा है, चेतावनी...वार्निंग। इस लड़की के आस - पास की बात करता है तू।"
ये कह कर अभि, अमन की तरफ ही देखते हुए अपने पैर पीछे की तरफ उल्टे पांव पायल की तरफ चलते हुए...पायल के बराबर में आकर खड़ा हो जाता है...
सब लोग अभय को ही देख रहे थे, अजय ने भी अभय के बारे में जैसा सोचा था वैसा ही अभय के अंदर निडरता दिख रहा था। पायल की नजरे तो अभय पर ही टिकी थी। मगर बाकी कॉलेज के स्टूडेंट ये समझ गए थे की जरूर अब कुछ बुरा होने वाला है की तभी वो हुआ....जिस चीज का किसी को अंदाजा भी ना था.....!!!
अपडेट 24
संध्या की हालत और स्थिति कुछ ऐसी थी की मानो काटो तो खून नहीं। दिल में रह रह कर दर्द उठते मगर वो रोने और पछताने के अलावा कुछ भी नही कर सकती थी। आज जब उसे संभालने के लिए ललिता और मालती के हाथ उसकी तरफ बढ़े तो उसने उन दोनो का हाथ दिखाते हुए रोक दिया।
संध्या का दिल पहली बार इस तरह धड़क रहा था मानो बची हुई जिंदगी की धड़कन इस पल ही पूरी हो जायेगी। नम हो चुकी आंखो में दर्द का वो अश्क लिए एक नजर वो अमन की तरफ देखी....
अमन की नज़रे भी जैसे ही संध्या से मिली, वो अपनी आंखे चुराते हुए बोला.....
अमन --"सॉरी ताई मां, उस समय सही और गलत की समझ नही थी मुझमें।"
अमन का ये वाक्य पूरा होते ही.....संध्या तड़प कर बोली।
संध्या --"निधी.....तू भी। तुझे तो पता था ना सब, फिर तू मुझे क्यूं नही बताती थी? इसलिए की अमन तेरा सगा भाई था?"
संध्या की बात पर निधि भी कुछ नही बोलती, और अपना सिर नीचे झुका लेती है......।
ये देख कर संध्या झल्ला पड़ी। और एक गहरी सांस लेते हुए बोली...
संध्या --"मेरा बच्चा, चुपचाप हर चीज सहता रहा। मुझे सफाई भी देता रहा। मगर मेरी मत मारी गई थी ना, जो उसकी एक न सुनी और तुझे सच्चा और अच्छा समझ कर उसको पिटती रही। तू काहेता है ना की तू छोटे लोगो के मुंह नही लगता। तो अब से तू पायल के आस पास भी नजर आया, तो अभि तक तूने मेरा प्यार ही देखा है, नफरत भी बहुत जल्द ही देखेगा।"
संध्या की ये बात सुनकर अमन के होश उड़ गए, वो चेयर पर से उठते हुए बोला...
अमन --"ये आप क्या बोल रही है ताई मां। मैं पायल को नही छोड़ सकता। मैं उससे बचपन से बहुत प्यार करता हूं, और मेरे प्यार के बीच में कोई आया ना तो मै...."
अभि अमन ने अपना वाक्य पूरा बोला भी नही था की, उसके चेहरे पर एक जोरदार तमाचा पड़ा।
"नालायक, शर्म नही आती तुझे? जिस इंसान ने तुझे इतना प्यार दिया उसी के बारे में ऐसा बोल रहा है।"
अमन का गाल लाल हो चुका था। अपने एक गाल पर हाथ रखे जब अमन ने अपनी नज़रे उठाई तो पाया की उसे थप्पड़ मरने वाला कोई और नहीं बल्कि खुद उसका बाप रमन था। ये देख कर अमन बिना कुछ बोले, अपना बैग उठता है और वह से चल पड़ता है...
अमन के जाते ही, निधी भी वहा से चुप चाप निकल लेती है। अब वहा पे सिर्फ मालती, ललिता, रमन और संध्या ही बचे थे।
रमन --"अब तो खुश हो न भाभी तुम?"
रमन की बात सुनकर, संध्या रुवासी ही सही मगर थोड़ा मुस्कुरा कर बोली...
संध्या --"खुश, किस बात पे? अपने बच्चे को बेवजह पिटती रही मैं, इस बात पे? जिसे सीने से लगाकर रखना चाहिए था वो दुनिया की भीड़ में भूखा प्यासा भटकता रहा, उस बात पे? ना जाने कैसे उसने अपने दिल को समझाया होगा, उस बात पे?या उस बात पे ? की जब भी कभी उसे तकलीफ हुई होगी उसके होठों से मां शब्द भी निकलेंगे होगे या नहीं? और तू एक थप्पड़ मार कर पूछता है की खुश हु की नही?पर आज खुश हूं मैं, की मेरा बेटा उस काबिल है की दुनिया की भीड़ में चलने के लिए उसे किसी के सहारे की जरूरत नहीं। क्या कहता था तू? ना जाने कौन है वो, जो इस हवेली को बर्बाद करने आया है। बात ठीक है तेरी, वो सिर्फ हवेली ही नही बल्कि ना जाने क्याबक्या बर्बाद करेगा? और पहेली शुरुआत हुई है मुझसे.....l"
ये कहते हुए संध्या वहां से चली जाती है......
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कॉलेज के गेट पर बैठा अभय, पायल का रास्ता तक रहा था...
"अरे मेरा भाई, इतना बेचैन क्यूं हो रहा है? आ जायेगी भाभी?"
अजय अपने हाथ में सिगरेट लिए उसकानेक कश लेते हुए बोला...
अभय --"ये बेचैनी यूं ही नहीं खत्म होगी अजय, जब तक मेरे यार का दीदार ना हो जाए।"
कहते हुए अभय सच में बेचैनी से कभी इधर तो कभी उधर चहल कदमी कर रहा था, ये देख कर अजय मुस्कुराते हुए बोला...
अजय --"यार भाई, सच बताऊं तो, क्या लग रही थी आज भाभी? कसम से !"
अजय की ये बात सुनकर, अभय का दिल धड़क कर रह गया, एक गहरी सांस लेते हुए वो बस पायल का इंतजार ही कर रहा था की, वो खूबसूरत सा चांद दिन के उजाले में अभय के सामने नजर आया,, जिसे देख कर अभय अपने दिल पर हाथ रख कर एक ठंडी सांस लेता है...
पायल अपनी सहेलियों के साथ कॉलेज की तरफ चली आ रही थी। उसकी खुली जुल्फें इस तरह से हवा में लहरा रही थी की एक पल के लिए मानो वो समय ही ठहर सा गया हो। जो लड़के जहा थे वही खड़े रह गए। सब की नजरे बस उस नाज़नीन पर अटक कर रह गई थी। उसके कान में बलिया इस तरह से झूल रहे थे मानो सावन के महीने में झूला। गोरे मासूम मुखड़े पर तो कोई ही ऐसा हो जिसका दिल ना घायल हो जाए और उस पर माथे पर चमकती एक छोटी सी बिंदी उसके पूरे रूप और यौवन रानी बना रही थी।
अभय का भी हाल कुछ वैसा ही था, जैसे और कॉलेज के लडको का। अभय की नजरे थी या फेविकोल का जोड़ , जो पायल के उपर ऐसी थमी की हटने का नाम ही नही ले रही थी।
पायल के पैरो में पायल की छनकार एक अजब सी खुमारी भर से रही थी, जो उसके चलने से छनक रहे थे...अभय पूरा दीवाना हो चुका था। और जब तक वो होश में आता, पायल उसके नजदीक आ पहुंची थी।
अभय के नजदीक आकर पायल रुक गई, अभय को इस तरह अपनी तरफ देखता देख, पायल अजय से बोली...
पायल --"जरा संभल के, पागलों के साथ रह कर तू भी पागल मत हो जाना।"
पायल की आवाज अभय को उसकी खूबसूरती की दुनिया से जमीन पर लाकर पटक देती है, और ये कह कर पायल जैसे ही आगे जाने के लिए बढ़ी थी...
अभय --"अब इस कदर कयामत हम पर बरसेगी, तो पागलपन क्या कही जान ही ना निकल जाए।"
अभय की बात सुनकर, पायल अभय की तरफ पलटी तो नही, मगर हल्का सा अपना चेहरा घुमाते हुए बोली...
पायल --"इस कयामत का हकदार कोई और है, उम्र बीत जायेगी तुम्हारी, यूं राह तकते तकते...।"
ये कह कर पायल हल्के से मुस्कुराई और फिर आगे बढ़ी ही थी की,...
अभय --"अगर मैं कहूं, की वो हकदार मैं ही हूं तो?"
पायल इस बार फिर मुस्कुराई.....
पायल --"उसे पता है, मैं उसे कहा मिल सकती हूं।"
ये कह कर पायल आगे बढ़ जाती है...। अभय मुस्कुराते हुए अपने दिल पर हाथ रखा ही था की...एक जोरदार झटके के साथ वो नीचे जमीन पर गिर गया...
अभय के जमीन पर गिरते ही, पायल, अजय और बाकी सभी लोग हैरत से अपनी नज़रे घुमा कर देखते है तो। सामने अमन अपने हाथो में एक मोटा डंडा लेकर खड़ा था।
जल्द ही अभय खड़े होते हुए, अपने कपड़े पर लगे मिट्टी को अपने चेहरे पर एक एटीट्यूड के भाव के साथ पूछते हुए अपने शर्ट की बाहें मोड़ते हुए बोला...
अभय --"अच्छा था, मगर बुजदिलों वाला था। पीछे से नही आगे से मार।"
अभय की बेबाकी और निडरता देखकर, वहा खड़े सब लड़के आपस में काना फूसी करने लगे। मगर एक अकेली पायल ही थी जो वहा पर अभय जैसी ही चेहरे पर एटीट्यूड लिए खड़ी मुस्कुरा रही थी.....
"भाई ये वही छोकरा है, जिसने डिग्री कॉलेज का काम रुकवा दिया।"
अमन के साथ में खड़ा वो लड़का बोला...
उस लड़के की बात सुनकर, अमन भी अपनी हरामीगिरी दिखाते हुए बोला...
अमन --"तू नया है, शायद इसी लिए तुझे मेरे बारे में पता नही। वो जो लड़की तेरे पीछे खड़ी है, दुबारा उसके आस पास भी मत भटकना, ये तेरे लिए अखरी चेतावनी है।"
अमन की बात सुनकर, अभय मुस्कुराते हुए एक नजर पीछे मुड़ कर पायल की तरफ देखता है। और वापस अमन की तरफ देख कर बोला।
अभय --"डिलोग्रटो ऐसे मार रहा है, जैसे तंबाकू का एडवर्टाइज कर रहा है, चेतावनी...वार्निंग। इस लड़की के आस - पास की बात करता है तू।"
ये कह कर अभि, अमन की तरफ ही देखते हुए अपने पैर पीछे की तरफ उल्टे पांव पायल की तरफ चलते हुए...पायल के बराबर में आकर खड़ा हो जाता है...
सब लोग अभय को ही देख रहे थे, अजय ने भी अभय के बारे में जैसा सोचा था वैसा ही अभय के अंदर निडरता दिख रहा था। पायल की नजरे तो अभय पर ही टिकी थी। मगर बाकी कॉलेज के स्टूडेंट ये समझ गए थे की जरूर अब कुछ बुरा होने वाला है की तभी वो हुआ....जिस चीज का किसी को अंदाजा भी ना था.....!!!
बहुत ही सुन्दर और मस्त अपडेट हैं भाई मजा आ गयाअपडेट 23
सुबह सुबह उठा कर अभय अपने बेड पर बैठा था। तभी एक आवाज उसके कानो में गूंजी...
"उठ गए बाबू साहेब ,गरमा गर्म चाय पी लो।"
अभय ने अपनी नज़रे उठाई तो पाया, रमिया अपने हाथों में चाय लिए खड़ी थी...
अभय हाथ बढ़ा कर चाय लेते हुए बोला...
अभय --"अरे तुम!! तुम कब आई??"
रमिया --"मैं तो कब से आई हूं, बाबू साहेब। आप सो रहे थे तो, जगाना मुनासिब नहीं समझा। ठीक है आप चाय पियो मैं खाना बनाने जा रही हूं।"
ये कहकर रमिया जैसे ही जाने के लिए मुड़ी...अभय की नजरें उसकी गोरी पतली कमर पर अटक गई...
खैर रमिया तो नही रुकी, पर जाते हुए उसके कूल्हे इस कदर थिरक रहे थे की, अभय की नजरें कुछ पल के लिए उस पर थम सी गई। जैसे ही रमिया अभय की आंखो से ओझल होती है। अभय अपना चाय पीने में व्यस्त हो जाता है....
अभय चाय पी ही रहा होता है की, उसके फोन की घंटी बजी...
फोन की स्क्रीन पर नजर डालते हुए पाया की उसे रेखा आंटी कॉल कर रही थी। रेखा का कॉल देखते ही, अभि अपने सिर पे एक चपेत मारते हुऐ....फोन को रिसीव करते हुए...
अभि --"गुड ...मॉर्निंग आंटी!!"
"आंटी के बच्चे, जाते ही भूल गया। कल रात से इतना फोन कर रही हूं तुझे, कहा था तू ? मुझे पता था, की तू मुझसे प्यार नही करता, इसलिए तू फो...."
अभि --"आ...आराम से, सांस तो ले लो आंटी।"
अभि, रेखा की बातों को बीच में ही काटते हुए बोला...
रेखा --"तुझे सांस की पड़ी है, जो तू लाके दिया है। इतना टाइट है की उसकी वजह से सांस भी नही लिया जा रहा है।"
रेखा की बात सुनते ही अभि के चेहरे पर एक मुस्कान सी फैल जाती है।
अभि --"अंदाजे से लाया था, मुझे क्या पता छोटी पड़ जायेगी।"
रेखा --"तो पूछ लेता, की कौन सी साइज लगती है मुझे?"
अभय --"तो फिर सरप्राइज़ कैसे होता...आंटी? वैसे जब छोटी है तो क्यों पहेना आपने?"
रेखा --"क्यूंकि...तूने जो लाया था। मैं भला कैसे नही पहनती?"
अभय --"ओहो...क्या बात है, कसम से दिल खुश हो गया। अभि सुबह उठते ही मेरा मूड खराब था। मगर अब मस्त हो गया। एक काम करो ना आंटी, पिक सेंड करो ना। मैं भी तो देखूं कितना टाइट है??"
रेखा --"क्या...कितना टाइट है??"
अभय --"मेरा मतलब की, कितनी छोटी है?"
कहते अभय मन ही मन मस्त हुए जा रहा था।
रेखा --"o... हो, देखो तो जरा। थोड़ी भी शर्म नही है इन जनाब को। मुझे तो पता ही नही था की तू इतना भी मस्तीखोर हो सकता है??"
अभि --"तो अब पता चल गया ना आंटी, सेंड करो ना प्लीज़।"
रेखा --"तू बेशर्म होगा, मैं नही। मैं नही करने वाली।"
अभि --"अरे करो ना...आंटी। आज तक किसी औरत को ब्रा...पैंटी में नही देखा।"
रेखा --"है भगवान, कहा से सीखा तू ये सब? ऐसा तो नहीं था मेरा अभि, गांव जाते ही हवा लग गई क्या...तुझे भी?"
अभय --"वो कहते है ना...जैसा देश वैसा भेष। पर आप छोड़ो वो सब , सच में मेरा बहुत मन कर रहा है, इसके लिए तो लाया था। अब पाहेनी हो तो फोटो क्लिक करो और सेंड कर दो ना।"
रेखा --"धत्, मुझे शर्म आती है, और वो भी तुझे कैसे सेंड कर सकती हूं? तुझे मैने कभी उस नजर से देखा नही, हमेशा तुझे अपने बेटे की नजर से ही देखा मैने।"
ये सुनकर अभि कुछ सोचते हुए बोला.....
अभि --"हां...तो मैने भी आपको एक मां की तरह ही माना है हमेशा, अब बच्चे को कुछ चाहिए होता है तो अपनी मां के पास ही जाता है ना। तो वैसे मुझे भी जो चाहिए था वो मैने अपनी मां से मांगा। पर शायद आप नाम की ही मां हो, क्योंकि अगर आप सच में मुझे अपना बेटा समझती, तो अब तक जो मैने बोला है वो आप कर देती।"
रेखा --"हो गया तेरा, मुझे मत पढ़ा। मुझे पता है, की तुझे बातों में कोई नही जीत सकता। और वो तो तू दूर है, नही तो आज तेरा कान ऐठ देती, अपनी मां को ब्रा पैंटी में देखते हुए तुझे शर्म नही आयेगी...
अभि --"नही आयेगी, कसम से उल्टा बहुत मजा आएगा। सेंड कर ना मां..."
आज अचानक ही अभय के मुंह से रेखा के लिए मां शब्द निकल गए। और जब तक अभय को ये एहसास हुआ...एक बार अपने सिर पे हल्के से चपेट लगाते हुए दांतो तले जीभ दबा लेता है, और शांत हो कर बस मुस्कुराए जा रहा था। दूसरी तरफ से रेखा भी शांत हो गई थी, अभय समझ गया था की, रेखा इस समय अत्यधिक भाऊक हो चुकी है। ये जान कर वो एक बार फिर बोला...
अभय --"अब अगर इमोशनल ड्रामा करना है तुझे तो, मैं फोन कट कर देता हूं..."
कहकर अभि फिर से मुस्कुराने लगा...
रेखा --"नही.... रुक। फोन कट करने की हिम्मत भी की ना?"
अभय --"तो क्या...?"
रेखा --"तो..तो..?"
अभय --"अरे क्या तो...तो?"
रेखा --"तो क्या? फिर से कर लूंगी और क्या कर सकती हूं।"
इस बात पर दोनो हंस पड़ते है...हंसते हुए रेखा अचानक से रोने लग जाति है। अभय समझ गया की की आखिर क्यूं...?
अभि --"अब तू इस तरह से रोएगी ना, तो मैं सब पढ़ाई लिखाई छोड़ कर तेरे पास आ जाऊंगा।"
अभय की बात सुनकर रेखा कुछ देर तक रोटी रही, फिर आवाज पर काबू पाते हुए बोली...
रेखा --"कान तरस गए थे, तेरे मुंह से मां सुनने के लिए। और उस मां शब्द में अपना पन तूने , मुझे तू बोल कर लगा दिया।"
अभि --"हो गया तेरा भी ड्रामा, आज मेरा कॉलेज का पहला दिन है, मुझे लगा अपनी का को ब्रा पैंटी में देख कर जाऊ, पर तू तो अपने आसू बहाब्रही हैं..."
ये सुनकर रेखा खिलखिला कर हस पड़ी....
रेखा --"शायद मैं तुझे भेज भी देती..., मगर अब जब तूने मुझे मां कह ही दिया है तो... सॉरी बेटा। मां से ऐसी गन्दी बात नही करते।
अभय --"ये तो वही बात हो गई की, खुद के पैर पर कुल्हाड़ी मारना। ठीक है मेरी मां, मैं भी देखता हूं की, मेरी मां कब तक अपना खज़ाना छुपाती है अपने बेटे से।"
रेखा --"मैं भी देखती हूं....।"
अभय --"अच्छा ठीक है अब, मैं नहाने जा रहा ही, आज पहला दिन है तो एक दम फ्रेश माइंड होना चाहिए।"
रेखा --"अच्छा ... सुन।"
अभय --"अब क्या हुआ...?"
रेखा --"I love you..."
ये सुन कर अभि एक बार फिर मुस्कुराया, और बोला...
अभि --"जरा धीरे मेरी प्यारी मां, कही गोबर ने सुन लिया तो। सब गुर गोबर हो जायेगा।"
रेखा --"ये मेरे सवाल का जवाब नही, चल अब जल्दी बोल,, मुझे भी काम करना है...।
अभि --"पहले फोटो फिर जवाब.... बाय मम्मी।"
इससे पहले की रेखा कुछ बोलती, अभि ने फोन कट कर दिया।
अभि मुस्कुराते हुए बेड पर से उठा, और बाथरूम की तरफ बढ़ चला.......
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अमन डाइनिंग टेबल पर बैठा नाश्ता कर रहा था। उसके सामने निधि, उसकी मां ललिता, चाची मालती और ताई मां संध्या भी बैठे नाश्ता कर रहे थे।
अमन नाश्ता करते हुए, मलती की तरफ देखते हुए बोला...
अमन --"क्या बात है चाची, आज कल चाचा नही दिखाई देते। कहा रहते है वो?"
अमन की बात सुनकर, मलती भी अमन को घूरते हुए बोली...
मलती --"खुद ही ढूंढ ले, मुझसे क्यूं पूछ रहा है??"
मलती का जवाब सुनकर, अमन चुप हो गया । और अपना नाश्ता करने लगता है...
इस बीच संध्या अमन की तरफ ही देख रही थी, थोड़ी देर बाद ही संध्या ने अपनी चुप्पी तोडी...
संध्या --"अमन बेटा...आज कल मुझे तेरी शिकायत बहुत आ रही है। तू बेवजह ही किसी ना किसी से झगड़ा कर लेता है। ये गलत बात है बेटा। मैं नही चाहती की तू आगे से किसी से भी झगड़ा करे।"
संध्या की बात सुनकर, अमन मुस्कुराते हुए बोला...
अमन --"क्या ताई मां, आप भी ना। मैं भला क्यूं झगड़ा करने लगा किसी से, मैं वैसे भी छोटे लोगो के मुंह नही लगता।"
अमन का इतना कहें था की, मलती झट से बोल पड़ी...
मलती --"दीदी के कहने का मतलब है की, तेरा ये झगड़ा कही तुझ पर मुसीबत ना बन जाए इस लिए वो तुझे झगड़े से दूर रहने के लिए बोल रही है। जो तुझे होगा नही। तू किसी भी लड़के को इस पायल से बात करते हुए देखेगा तो उससे झगड़ पड़ेगा।"
पायल का नाम सुनते ही संध्या खाते खाते रुक जाती है, एक तरह से चौंक ही पड़ी थी...
संध्या --"पायल, पायल से क्या है इसका......
संध्या की बात सुन कर वहा बैठी निधि बोली...
निधी --"अरे ताई मां, आपको नही पता क्या? ये पायल का बहुत बड़ा आशिक है।"
ये सुन कर संध्या को एक अलग ही झटका लगा, उसके चेहरा फक्क् पड़ गया था। हकलाते हुए अपनी आवाज में कुछ तो बोली...
संध्या --"क्या...कब से??"
निधि --"बचपन से, आपको नही पता क्या? अरे ये तो अभय भैया को उसके साथ देख कर पगला जाता था। और जान बूझ कर अभय भैया से झगड़ा कर लेता था। अभय भैया इससे झगड़ा नही करना चाहते थे वो इसे नजर अंदाज भी करते थे, मगर ये तो पायल का दीवाना था। जबरदस्ती अभय भैया से लड़ पड़ता था।"
अब धरती फटने की बारी थी, मगर शायद आसमान फटा जिससे संध्या के कानो के परदे एक पल के लिए सुन हो गए थे। संध्या के हाथ से चम्मच छूटने ही वाला था की मलती ने उस चम्मच को पकड़ लिया और संध्या को झिंझोड़ते हुए बोली...
मालती --"क्या हुआ दीदी? कहा खो गई...?"
संध्या होश में आते ही...
संध्या --"ये अमन झगड़ा करता....?"
"अरे दीदी जो बीत गया सो बीत छोड़ो...l"
मालती ने संध्या की बात पूरी नही होने दी, मगर इस बार संध्या बौखलाई एक बार फिर से कुछ बोलना चाही...
संध्या --"नही...एक मिनट, झगड़ा तो अभय करता था ना अमन के...?"
"क्यूं गड़े मुर्दे उखाड़ रही हो दीदी, छोड़ो ना।"
मलती ने फिर संध्या की बात पूरी नही होने दी, इस बार संध्या को मलती के उपर बहुत गुस्सा आया, कह सकते हो की संध्या अपने दांत पीस कर रह गई...!
संध्या की हालत और गुस्से को देख कर ललिता माहौल को भांप लेती है, उसने अपनी बेटी निधि की तरफ देखते हुए गुस्से में कुछ बुदबुदाई। अपनी मां का गुस्सा देखकर निधि भी दर गई...
संध्या --"तू बीच में क्यूं टोक रही है मालती? तुझे दिखाता नही क्या? की मैं कुछ पूछ रही हूं?"
संध्या की बात सुनकर मालती इस बार खामोश हो गई...मलती को खामोश देख संध्या ने अपनी नज़रे एक बार फिर निधि पर घुमाई।
संध्या --"सच सच बता निधि। झगड़ा कौन करता था? अभय या अमन?"
संध्या की बात सुनकर निधि घबरा गई, वो कुछ बोलना तो चाहती थी मगर अपनी मां के दर से अपनी आवाज तक ना निकाल पाई।
"हां मैं ही करता था झगड़ा, तो क्या बचपन की बचकानी हरकत की सजा अब दोगी मुझे ताई मां?"
अमन वहा बैठा बेबाकी से बोल पड़ा..., इस बार धरती हिली थी शायद। इस लिए तो संध्या एक झटके में चेयर पर से उठते हुए...आश्चर्य के भाव अपने चेहरे पर ही नहीं बल्कि अपने शब्दो में भी उसी भाव को अर्जित करते हुए चिन्ह पड़ी...
संध्या--"क्या...? पर तू...तू तो काहेता था की, झगड़ा अभय करता था।"
अमन --"अब बचपन में हर बच्चा शरारत करने के बाद डांट ना पड़े पिटाई ना हो इसलिए क्या करता है, झूठ बोलता है, अपना किया दूसरे पे थोपता है। मैं भी बच्चा था तो मैं भी बचाने के लिए यही करता था। मना जो किया गलत किया, मगर अब इस समय अच्छा गलत का समझ कहा था मुझे ताई मां?"
संध्या को झटके पे झटके लग रहे थे, सवाल था की अगर इसी तरह से झटका उसे लगता रहा तो उसे हार्ट अटैक ना आ जाए। जिस तरह से वो सांसे लेते हुए अपने दिल पर हाथ रख कर चेयर पर बैठी थी, ऐसा लग रहा था मानो ये पहला हार्ट अटैक तो नही आ गया.....
संध्या के आंखो के सामने आज उजाले की किरणे पद रही थी मगर उसे इस उजाले की रौशनी में उसकी खुद की आंखे खुली तो चुंधिया सी गई...
शायद उसकी आंखो को इतने उजाले में देखने की आदत नही थी, पर कहते है ना, जब सच की रौशनी चमकती है तो अक्सर अंधेरे में रहने वाले की आंखे इसी तरह चौंधिया जाति है....