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Fantasy Aryamani:- A Pure Alfa Between Two World's

nain11ster

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The king

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भाग:–43






संन्यासी शिवम:– मेरे ख्याल से जब पारीयान की मृत्यु हुई होगी तब तक वो लोग हिमालय का पूरा क्षेत्र छान चुके होंगे। रीछ स्त्री लगभग 5000 वर्ष पूर्व कैद हुई थी और पारीयान तो बस 600 वर्ष पुराना होगा। हमारे पास पारीयान का तो पूरा इतिहास ही है। तांत्रिक सबसे पहले वहीं से खोज शुरू करेगा जो हमारा केंद्र था। और जिस जगह तुम्हे पारीयान का तिलिस्म मिला था, हिमालय का क्षेत्र, वह तो सभी सिद्ध पुरुषों के शक्ति का केंद्र रहा है। वहां के पूरे क्षेत्र को तो वो लोग इंच दर इंच कम से कम 100 बार और हर तरह के जाल को तोड़ने वाले 100 तरह के मंत्रों से ढूंढकर पहले सुनिश्चित हुये होंगे। इसलिए पारीयान का खजाना वहां सुरक्षित रहा। वरना यदि पुर्नस्थापित अंगूठी तांत्रिक मिल गयि होती तो तुम सोच भी नही सकते की महाजनिका क्या उत्पात मचा सकती थी।


निशांत:– क्या होता संन्यासी सर?


संन्यासी शिवम:– "वह आगे तुम खुद आकलन कर लेना। हां तो मैं रीछ स्त्री के ढूंढने की बात कर रहा था। हम कैलाश मठ से जुड़े है और यह भी मात्र एक इकाई है। ऐसे न जाने सैकड़ों इकाई पूरे भारतवर्ष में थी और सबका केंद्र पूर्वी हिमालय का एक गांव था। तांत्रिक की पीढ़ी दर पीढ़ी कि खोज पहले तो हमारे केंद्र से लेकर सभी इकाई के बीच हुई होगी। फिर जब उन्हें रीछ स्त्री इन सब जगहों में नही मिली होगी, तब ये लोग समस्त विश्व में ढूंढने निकले होंगे। आखिरकार उनके भी हजारों वर्षों की खोज समाप्त हुयि, और अध्यात को रीछ स्त्री महाजनिका मिल गयि। अब जो इतने जतन के बाद मिली थी, उसे वापस नींद से जगाने के लिए तांत्रिक और उसके सहयोगियों ने बिलकुल भी जल्दबाजी नही दिखायि। योजनाबद्ध तरीके से आगे बढ़े।"

"वह पुस्तक रोचक तथ्य मैने भी पढ़ी थी। जिस हिसाब से उन लोगों ने रीछ स्त्री को किताब में मात्र छोटी सी जगह देकर विदर्भ में बताया था और प्रहरी इतिहास का गुणगान किया था, हम समझ चुके थे कि यह तांत्रिक कितने दूर से निशाना साध रहा था। प्रहरी ने फिर पहले संपादक से संपर्क किया और उस संपादक के जरिये तांत्रिक और प्रहरी मिले। विष मोक्ष श्राप से किसी को जगाना आसान नहीं होता। जहां से रीछ स्त्री महाजनिका को निकाला गया था, उस जगह पर पिछले कई वर्षों से अनुष्ठान हो रहा था। कई बलि ली गयि। कइयों की आहुति दी गयि और तब जाकर वह रीछ स्त्री अपने नींद से जागी। वर्तमान समय को देखा जाय तो प्रहरी के पास पैसे ताकत और शासन का पूरा समर्थन है। तांत्रिक के अनुष्ठान में कोई विघ्न न हो इसलिए प्रहरी ने पूरे क्षेत्र को ही प्रतिबंधित कर दिया। मात्र कुछ प्रहरियों को पता था कि वहां असल में क्या खेल चल रहा और तांत्रिक अध्यात की हर जरूरत वही पूरी करते थे। बाकी सभी प्रहरी को यही पता था कि वहां कुछ शापित है जो सबके लिए खतरा है।"

"ऐडियाना का मकबरा ढूंढना तांत्रिक के लिए कौन सी बड़ी बात थी। और वहीं मकबरे में ऐसी १ ऐसी वस्तु थी जो महाजनिका को जागने के तुरंत बाद चाहिए थी, पुर्नस्थापित अंगूठी। वैसे एक सत्य यह भी है कि पुर्नस्थापित अंगूठी का पत्थर और बिजली की खंजर दोनो ही महाजनिका की ही खोज है। प्रहरी और तांत्रिक के बीच संधि हुई थी। ऐडियाना का मकबरा खुलते ही वह खंजर प्रहरी का होगा और बाकी सारा सामान तांत्रिक का। इन सबके बीच तुम चले आये और इनके सारी योजना में सेंध मार गये...


आर्य मणि:– सब कुछ तो आपने किया है, फिर मैं कहां से बीच में आया...


संन्यासी शिवम:– हमे तो किसी भी चीज की भनक ही नहीं होती। जिस दिन तुमने पारीयान के भ्रम जाल से उसके पोटली को निकाला, (आर्यमणि जब जर्मनी की घटना के बाद लौटा था, तब सबसे पहले अपने मां पिताजी से मिलने गंगटोक ही गया था), उसी दिन कैलाश मठ में पता चला था कि भ्रमित अंगूठी किसी को मिल गई है। मैं तो भ्रमित अंगूठी लेने तुम्हारे पीछे आया। और जब तुम्हारे पीछे आया तभी सारी बातों का खुलासा हुआ। तुम गंगटोक में अपनी उन पुस्तकों को जला रहे थे जो 4 साल की यात्रा के दौरान तुमने एकत्र किए थे। कुल 6 किताब जलाई थी और उन सभी पुस्तकों को हमने एक बार पलटा था। उन्ही मे से एक पुस्तक थी रोचक तथ्य। उसके बाद फिर हम सारे काम को छोड़कर विदर्भ आ गये।


आर्य मणि:– जब आपको पहले ही सब पता चल चुका था, फिर रीछ स्त्री को जागने ही क्यों दिया।


संन्यासी शिवम:– अच्छा सवाल है। लेकिन क्या पता भी है कि महाजनिका कौन थी और विष–मोक्ष श्राप से उसे किसने बंधा था? और क्या जितना वक्त पहले हमे पता चला, वह वक्त महा जनिका को नींद से न जगाने के लिये पर्याप्त थी?


आर्य मणि ने ना में अपना सर हिला दिया। संन्यासी शिवम अपनी बात आगे बढ़ाते.… "यूं तो रीछ की सदैव अपनी एक दुनिया रही है, जिसमे उन्होंने मानव समाज के लिए सकारात्मक कार्य किये और कभी भी अपने ऊपर अहम को हावी नही होने दिया। कई तरह के योद्धा, वीर और कुशल सेना नायक सिद्ध पुरुष के बताये सच की राह पर अपना सर्वोच्च योगदान दिया है। जहां भी उल्लेख है हमेसा सच के साथ खड़े रहे और धर्म के लिये युद्ध किया।"

"महाजनिका भी उन्ही अच्छे रीछ में से एक थी। वह सिद्धि प्राप्त स्त्री थी। उसकी ख्याति समस्त जगत में फैली थी। शक्ति और दया का अनोखा मिश्रण जिसने अपने गुरु के लिये कंचनजंगा में दो पर्वतों के बीच एक अलौकिक गांव बसाया। वहां का वातावरण और कठिन जलवायु आम रहने वालों के हिसाब से बिलकुल भी नहीं था। इसलिए उसने अपनी सिद्धि से वहां की जलवायु को रहने योग्य बना दी। यश और प्रसिद्धि का दूसरा नाम थी वह।"

"उसके अनंत अनुयायियों में से सबसे प्रिय अनुयायि तांत्रिक नैत्रायण था। तांत्रिक का पूरा समुदाय महाजनिका में किसी देवी जैसी श्रद्धा रखते थे। हर आयोजन का पहला अनुष्ठान महाजनिका के नाम से शुरू होता और साक्षात अपने समक्ष रखकर उसकी आराधना के बाद ही अनुष्ठान को शुरू किया करते थे। महाजनिका जब भी उनके पास जाती वह खुद को ईश्वर के समतुल्य ही समझती थी। किंतु वास्तविकता तो यह भी थी कि तांत्रिक नैत्रायण और उसका पूरा समुदाय अहंकारी और कुरुर मानसिकता के थे। सामान्य लोगों का उपहास करना तांत्रिक और उनके गुटों का मनोरंजन हुआ करता था।"

"उसी दौड़ में एक महान गुरु अमोघ देव हुआ करते थे, जो महाजनिका के भी गुरु थे, किंतु निम्न जीवन जीते थे और लोक कल्याण के लिये अपने शिष्यों को दूर दराज के क्षेत्रों में भेजा करते थे। उन्ही दिनों की बात थी जब गुरु अमोघ देव के एक शिष्य आरंभ्य को एक सामान्य मानव समझ कर तांत्रिक नैत्रायण ने उसका उपहास कर दिया। उसके प्रतिउत्तर में आरंभ्य ने उसकी सारी सिद्धियां मात्र एक मंत्र से छीन लिया और सामान्य लोगों के जीवन को समझने के लिए उसे भटकते संसार में बिना किसी भौतिक वस्तु के छोड़ दिया।"

"तांत्रिक नैत्रायण ने जिन–जिन लोगों का उपहास अपने मनोरंजन के लिए किया किया था, हर कोई बदले में उपहास ही करता। कोई उसकी धोती खींच देता तो कोई उसके आगे कचरा फेंक देता। तांत्रिक यह अपमान सहन नही कर पाया और महाजनिका के समक्ष अपना सिर काट लिया। महाजनिका इस घटना से इतनी आहत हुयि कि बिना सोचे उसने पूरे एक क्षेत्र से सभी मनुष्यों का सर काटकर उस क्षेत्र को वीरान कर दिया। उन सभी लोगों में गुरु अमोघ देव के शिष्य आरंभ्य भी था।"

"गुरु अमोघ देव इतनी अराजकता देखकर स्वयं उस गांव से बाहर आये और महाजनिका को सजा देने की ठान ली। गुरु अमोघ देव और महाजनिका दोनो आमने से थे। भयंकर युद्ध हुआ। हारने की परिस्थिति में महाजनिका वहां से भाग गयि। महाजनिका वहां से जब भागी तब एक चेतावनी के देकर भागी, "कि जब वह लौटेगी तब खुद को इतना ऊंचा बना लेगी कि कोई भी उसकी शक्ति के सामने टिक न पाय। लोग उसके नाम की मंदिर बनाकर पूजे और लोक कल्याण की एकमात्र देवी वही हो और दूसरा कोई नहीं।"

"इस घटना को बीते सैकड़ों वर्ष हो गये। महाजनिका किसी के ख्यालों में भी नही थी। फिर एक दौड़ आया जब महाजनिका का नाम एक बार फिर अस्तित्व में था। जिस क्षेत्र से गुजरती वहां केवल नर्क जैसा माहौल होता। पूरा आकाश हल्के काले रंग के बादल से ढक जाता। चारो ओर केवल लाश बिछी होती जिसका अंतिम संस्कार तक करने वाला कोई नहीं था। उसके पीछे तांत्रिक नैत्रायण के वंशज की विशाल तांत्रिक सेना थी जिसका नेतृत्व तांत्रिक विशेसना करता था। महाजनिका के पास एक ऐसा चमत्कारिक कृपाण (बिजली का खंजर) थी, जिसके जरिये वह मुख से निकले मंत्र तक को काट रही थी। सकल जगत ही मानो काली चादर से ढक गया हो, जो न रात होने का संकेत देती और ना ही दिन। बस मेहसूस होती तो केवल मंहूसियत और मौत।"

"गुरु अमोघ देव के नौवें शिष्य गुरु निरावण्म मुख्य गुरु हुआ करते थे। 8 दिन के घोर तप के बाद उन्होंने ही पता लगाया था कि महाजनिका अपनी शक्तियों को बढ़ाने के लिये, प्रकृति के सबसे बड़े रहस्य के द्वार को खोल चुकी थी... समनंतर दुनिया (parellel world) के द्वार। अपनी ही दुनिया की प्रतिबिंब दुनिया, जहां नकारात्मक शक्तियों का ऐसा भंडार था, जिसकी शक्तियां पाकर कोई भी सिद्ध प्राप्त इंसान स्वयं शक्ति का श्रोत बन जाए। इतना शक्तिशाली की मूल दुनिया के संतुलन को पूर्ण रूप से बिगाड़ अथवा नष्ट कर सकता था।"

"उस दौड़ में मानवता दम तोड़ रही और महाजनिका सिद्धि और बाहुबल के दम पर हर राज्य, हर सीमा और हर प्रकार की सेना को मारती हुई अपना आधिपत्य कायम कर रही थी। लोक कल्याण के बहुत से गुरुओं ने मिलकर भूमि, समुद्र तथा आकाश, तीनों मध्यम से वीरों को बुलवाया। इन तीनों मध्यम में बसने वाले मुख्य गुरु सब भी साथ आये। कुल २२ गुरु एक साथ खड़े मंत्रो से मंत्र काट रहे थे, वहीं तीनों लोकों से आये वीर सामने से द्वंद कर रहे थे। लेकिन महाजनिका तो अपने आप में ही शक्ति श्रोत थी। उसका बाहुबल मानो किसी पर्वत के समान था। ऐसा बाहुबल जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। अंधकार की दुनिया (parellel world) से उसने ऐसे–ऐसे अस्त्र लाये जो एक बार में विशाल से विशाल सेना को मौत की आगोश में सुला दिया करती थी।"

महाजनिका विकृत थी। अंधकार की दुनिया से लौटने के बाद उसका हृदय ही नही बल्कि रक्त भी काली हो चुकी थी। वह अपने शक्ति के अहंकार में चूर। उसे यकीन सा हो चला था कि वही एकमात्र आराध्या देवी है। किंतु वह कुछ भूल गयि। वह भूल गयि कि गुरु निरावण्म को समस्त ब्रह्माण्ड का ज्ञान था। ब्रह्मांड की उत्पत्ति जिन शक्ति पत्थरों से हुयि, फिर वह सकारात्मक प्रभाव दे या फिर नकारात्मक, उनको पूरा ज्ञान था। अंत में गुरु निरावण्म स्वयं सामने आये और उनके साथ था समस्त ब्रह्माण्ड का सबसे शक्तिशाली समुदाय का सबसे शक्तिशाली योद्धा, जिसे विग्गो सिग्मा कहते थे।

ब्रह्मांड के कई ग्रहों में से किसी एक ग्रह का वो निवासी था जिसे गुरु निरावण्म टेलीपोर्टेशन की जरिये लेकर आये थे। वह वीर अकेला चला बस शक्ति श्रोत के कयि सारे पत्थर संग जो युद्ध के लिये नही वरन महाजनिका को मात्र बांधने के उपयोग में आती। हर बुरे मंत्रो का काट गुरु निरावण्म पीछे खड़े रहकर कर रहे थे। उस विगो सिग्मा के बाहुबल की सिर्फ इतनी परिभाषा थी कि स्वयं महाजनिका उसके बाहुबल से भयभीत हो गयि। जैसा गुरु निरावण्म ने समझाया उसने ठीक वैसा ही किया। कई तरह के पत्थरों के जाल में महाजनिका को फसा दिया। शक्ति पत्थरों का ऐसा जाल जिसमे फंसकर कोई भी सिद्धि दम तोड़ दे। जो भी उस जाल में फसा वह अपनी सिद्धि को अपनी आखों से धुएं के माफिक हवा में उड़ते तो देखते, किंतु कुछ कर नही सकते थे। उसके कैद होते ही तांत्रिक विशेसना की सेना परास्त होने लगी।"

"महाजनिका और तांत्रिक विशेसना दोनो को ही समझ में आ चुका था की अब मृत्यु निश्चित है। तभी लिया गया एक बड़ा फैसला और तांत्रिक विशेसना के शिष्य विष मोक्ष श्राप से महाजनिका को कैद करने लगे। गुरु निरावण्म पहले मंत्र से ही भांप गये थे कि महाजनिका को कैद करके उसकी जान बचाई जा रही थी। लेकिन विष मोक्ष श्राप मात्र २ मंत्रों का होता है और कुछ क्षण में ही समाप्त किया जा सकता है। गुरु निरावण्म के हाथ में कुछ नही था, इसलिए उन्होंने टेलीपोर्टेशन के जरिये कैद महाजनिका को ही विस्थापित कर दिया।"

"कमजोर तो महाजनिका भी नही थी। उसे पता था यदि उसके शरीर को नष्ट कर दिया गया तब वह कभी वापस नहीं आ सकती। इसलिए जब गुरु निरावण्म उसे टेलीपोर्टेशन के जरिए विस्थापित कर रहे थे, ठीक उसी वक्त महाजनिका ने भी उसी टेलीपोर्टेशन द्वार के ऊपर अपना विपरीत द्वार खोल दिया। इसका नतीजा यह हुआ कि महाजनिका की आत्मा समानांतर दुनिया (parellel world) के इस हिस्से में रह गयि और शरीर अंधकार की दुनिया में। यूं समझा जा सकता है कि आईने के एक ओर आत्मा और दूसरे ओर उसका शरीर। और दोनो ही टेलीपोर्टेशन के दौरान विष मोक्ष श्राप से कैद हो गये।"

"तांत्रिक विशेसना के सामने २ चुनौतियां थी, पहला अंधकार की दुनिया का दरवाजा खोलकर महाजनिका के शरीर और आत्मा को एक जगह लाकर उसे विष मोक्ष श्राप से मुक्त करना। और दूसरा ये सब काम करने के लिये सबसे पहले महाजनिका को टेलीपोर्ट करके कहां भेजा गया था, उसका पता लगाना... हां लेकिन इन २ समस्या के आगे एक तीसरी समस्या सामने खड़ी थी। अपने और अपने बच्चों की जान बचाना। टेलीपोर्टेशन विद्या आदिकाल से कई सिद्ध पुरुषों के पास रही थी किंतु तंत्रिक के पास वो सिद्धि नही थी जो उसे टेलीपोर्ट कर दे, इसलिए खुद ही उसने आत्म समर्पण कर दिया। इस आत्म समर्पण के कारण उसके बच्चों की जान बच गयि।"


"महाजनिका को विष मोक्ष श्राप उसे किसी गुरु द्वारा नही दी गई थी बल्कि तांत्रिक विशेसना के नेतृत्व में उसी के चेलों ने दी थी। हालाकि रक्त–मोक्ष श्राप से भी बांध सकते थे किंतु रक्त मोक्ष श्राप की विधि लंबी थी और समय बिलकुल भी नहीं था। महाजनिका को जगाने की प्रक्रिया कुछ वर्षों से चल रही थी। हम तो उसके आखरी चरण में पहुंचे थे। मैं आखरी चरण को विस्तार से समझाता हूं। विष–मोक्ष श्राप से जब किसी को वापस लाया जाता है तो वह उसके पुनर्जनम के समान होता है। गर्भ में जैसे बच्चा पलता है, ठीक वैसा ही एक गर्भ होता है, जहां शापित स्त्री या पुरुष 9 महीने के लिये रहते हैं। एक बार जब गर्भ की स्थापना हो जाती है, फिर स्वयं ब्रह्मा भी उसे नष्ट नही कर सकते। उसके जब वह अस्तित्व में आ जाये तभी कुछ किया जा सकता था। और हम तो गर्भ लगभग पूर्ण होने के वक्त पहुंचे।"

"आज जिस महाजनिका से हम लड़े है उसकी शक्ति एक नवजात शिशु के समान थी। यूं समझ लो की अपनी सिद्धि के वह कुछ अंश, जिन्हे हम अनुवांसिक अंश भी कहते हैं, उसके साथ लड़ी थी। यह तो उसकी पूर्ण शक्ति का मात्र १००वा हिस्सा रहा होगा। इसके अलावा वह २ बार मात खाई हुई घायल है, इस बार क्या साथ लेकर वापस लैटेगी, ये मुख्य चिंता का विषय है?"


आर्यमणि:– महाजनिका कहां से क्या साथ लेकर आयेगी? आप लोग इतने ज्ञानी है और महाजनिका इस वक्त बहुत ही दुर्बल। इस वक्त यदि छोड़ दिया तब तो वह अपनी पूरी शक्ति के साथ वापस आयेगी। आप लोगों को इसी वक्त उसे ढूंढना चाहिए...


संन्यासी शिवम:– "कहां ढूंढेंगे... वह इस लोक में होगी तो न ढूंढेंगे। महाजनिका अंधकार की दुनिया (parellel world) में है। अंधकार की दुनिया (parellel world) अपनी ही दुनिया की प्रतिबिंब दुनिया है, जिसका निर्माण प्रकृति ने संतुलन बनाए रखने के लिए किया है। जैसे की ऑक्सीजन जीवन दायक गैस लेकिन उसे बैलेंस करने के लिए कार्बन डाइऑक्साइड बनाया। प्रकृति संतुलन बनाए रखने के लिए दोनो ही तरह के निर्माण करती है।"

"समांनानतर ब्रह्मांड भी इसी चीज का हिस्सा है, बस वहां जीवन नही बसता, बसता है तो कई तरह के विचित्र जीव जो उस दुनिया के वातावरण में पैदा हुए होते हैं। यहां के जीवन से उलट और सामान्य लोगों के लिए एक प्रतिकूल वातावरण जहां जीने के लिए संघर्ष करने के बारे में सोचना ही अपने आप से धोका करने जैसा है। ऐसा नहीं था कि महाजनिका वह पहली थी जो अंधकार की दुनिया (Parellel world) में घुसी। उसके पहले भी कई विकृत सिद्ध पुरुष और काली शक्ति के उपासक, और ज्यादा शक्ति की तलाश में जा चुके हैं। उसके बाद भी कई लोग गये हैं। किंतु वहां जो एक बार गया वह वहीं का होकर रह गया। किसी की सिद्धि में बहुत शक्ति होता तो वह किसी तरह मूल दुनिया में वापस आ जाता। कहने का सीधा अर्थ है उसके दरवाजा को कोई भी अपने मन मुताबिक नही खोल सकता, सिवाय महाजनिका के। वह इकलौती ऐसी है जो चाह ले तो २ दुनिया के बीच का दरवाजा ऐसे खोल दे जैसे किसी घर का दरवाजा हो।"

"टेलीपोर्टेशन (teleportation) और टेलीपैथी (telepathy) एक ऐसी विधा है जो सभी कुंडलिनी चक्र जागृत होने के बाद भी उनपर सिद्धि प्राप्त करना असंभव सा होता है। आज के वक्त में टेलीपोर्टेशन विद्या तो विलुप्त हो गयि है, हां टेलीपैथी को हम संभाल कर रखने में कामयाब हुये। महाजनिका पूरे ब्रह्मांड में इकलौती ऐसी है जो टेलीपोर्टेशन कर सकती है। जिस युग में सिद्ध पुरुष टेलीपोर्टेशन भी किया करते थे तो भी कोई अंधकार की दुनिया में रास्ता नहीं खोल सकता था। महाजनिका ने वह सिद्धि हासिल की थी जिससे वो दोनो दुनिया में टेलीपोर्टेशन कर सकती थी।
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भाग:–44






"टेलीपोर्टेशन (teleportation) और टेलीपैथी (telepathy) एक ऐसी विधा है जो सभी कुंडलिनी चक्र जागृत होने के बाद भी उनपर सिद्धि प्राप्त करना असंभव सा होता है। आज के वक्त में टेलीपोर्टेशन विद्या तो विलुप्त हो गयि है, हां टेलीपैथी को हम संभाल कर रखने में कामयाब हुये। महाजनिका पूरे ब्रह्मांड में इकलौती ऐसी है, जो टेलीपोर्टेशन कर सकती है। जिस युग में सिद्ध पुरुष टेलीपोर्टेशन भी किया करते थे, तो भी कोई अंधकार की दुनिया में रास्ता नहीं खोल सकता था। महाजनिका ने वह सिद्धि हासिल की थी जिससे वो दोनो दुनिया में टेलीपोर्टेशन कर सकती थी।


निशांत:– माफ कीजिएगा, मेरा एक सवाल है। ये जो अभी पोर्टल खुला था, क्या वह टेलीपोर्टेशन नही हुआ...


संन्यासी शिवम:– हां ये भी आज के युग का टेलीपोर्टेशन है। इसे कुपोषित टेलीपोर्टेशन भी कह सकते हो। टेलीपोर्टेशन में कभी कोई द्वार नही खुलता, वहां किसी भी प्रकार के मार्ग को देखा नही जा सकता। हालांकि एक जगह से दूसरे जगह पहुंचने के लिए जो पोर्टल अर्थात द्वार खोलते है, वह होता तो काल्पनिक ही है, किंतु द्वार दिखता है। इसलिए सही मायने में यह टेलीपोर्टेशन नही। हालांकि पोर्टल बनाने की सिद्धि भी आसान नहीं होती। इसकी भी सिद्धि अब तक गिने चुने सिद्ध पुरुष के पास ही है। और हां तांत्रिक अध्यात के पास भी है। तांत्रिक के विषय में इतना ही कहूंगा की हो सकता है उनके पास टेलीपोर्टेशन की पूर्ण सिद्धि भी हो। क्योंकि उनके पीछे पूरा एक वंश वृक्ष था, जो पीढ़ी दर पीढ़ी अपनी सिद्धि गुप्त रूप से आगे बढाते रहे हैं। लेकिन इसपर भी संदेह मात्र है, क्योंकि आज से पहले इन तांत्रिकों के बारे में केवल सुना ही था। हम लोग भी पहली बार आमने–सामने होंगे...


आर्यमणि:– आपकी बात और रीछ स्त्री को जानने के बाद मन विचलित सा हो गया है। क्यों है ये ताकत की होड़? इतनी ताकत किस काम कि जिससे पूरे मानव संसार को ही खत्म कर दो? फिर तुम्हारी ये ताकत देखेगा कौन?... क्यों करते है लोग ऐसा? आराम से हंसी खुशी नही रह सकते क्या? जिसे देखो अपना प्रभुत्व स्थापित करने में लगा है। कैसे हो गये है हम?...


संन्यासी शिवम:– तुम ज्यादा विचलित न हो। जैसा मैंने कहा, खुद को थोड़ा वक्त दो। बस एक ही सत्य है, मृत्यु। जब तक मृत्यु नही आती, तब तक मुस्कुराते हुए अपने कर्म किये जाओ।


आर्यमणि:– आप यहां से जाने के बाद क्या करेंगे संन्यासी जी...


संन्यासी शिवम:– पुर्नस्थापित अंगूठी मिल चुकी है इसलिए यहां से सीधा पूर्वी हिमालय जाऊंगा, कमचनजंघा की गोद में। हमारे तात्कालिक गुरुजी अभी जोड़ने के काम में लगे हैं। इसी संदर्व में हम कंचनजंघा स्थित अपने शक्ति के केंद्र वाले गांव को लगभग पुनर्स्थापित कर चुके थे। तभी तो खोजी पारीयान के तिलिस्म के टूटते ही हम तुम्हारे पीछे आये। क्योंकि गांव बसाने की लिए हमे बस वो आखरी चीज, पुर्नस्थापित अंगूठी चाहिए थी।


निशांत:– यदि ये अंगूठी इतनी जरूरी थी, फिर आप लोग ने क्यों नही ढूंढा...


संन्यासी शिवम:– कुछ वर्ष पहले कोशिश हुयि थी, तब कोई और गुरुजी थे। किंतु किसी ने छिपकर ऐसा आघात किया कि हम वर्षो पीछे हो गये। हमारे तात्कालिक गुरुजी पहले सभी आश्रम और मठ को जोड़ते। तत्पश्चात अंगूठी ढूढने निकलते। उस से पहले ही तुम दोनो ने ढूंढ लिया। हमारी मेहनत और समय दोनो बचाने के लिये आभार व्यक्त करते है।


निशांत:– वैसे एक सवाल बार–बार दिमाग में आ रहा है?


संन्यासी शिवम:– क्या?


निशांत:– इतना तो समझ गया की ये झोलर प्रहरी को रीछ स्त्री के यहां होने की खबर कैसे लगी। लेकिन एक बात समझ में नही आयि की वो प्रहरी यहां तांत्रिक के साथ लड़ाई में क्यों नही सामिल थे? सतपुरा आने से पहले जब मीटिंग हुई थी, तब हमे बताया गया था कि 5 किलोमीटर का क्षेत्र बांध दिया गया है, इसका क्या मतलब निकलता है?


आर्यमणि:– "यहां का पूरा माहोल और संन्यासी शिवम जी को सुनने के बाद तो पूरी कहानी ही कनेक्ट हो चुकी है। इसका जवाब मैं दे देता हूं। हर अनुष्ठान की अपनी एक विधि और खास समय होता है। रीछ स्त्री महाजनिका कैद से छूट तो गयि, लेकिन ऐडियाना के मकबरे को खोलने के लिए उसे इंतजार करना पड़ा। कुछ प्रहरी को पूरी बात पहले से पता थी, लेकिन ना तो तांत्रिक और न ही प्रहरी को, साधुओं और संन्यासियों का जरा भी भनक था।"

"प्रहरी तो सही समय पर यहां पहुंचे थे। आज से 4 दिन पहले जब ऐडियाना का मकबरा खोला जाता और अंदर का समान बांटकर, रीछ स्त्री के हाथों मेरी और कुछ लोगों की बलि चढ़ाई जाती। हां तब ये क्षेत्र भी 5 किलोमीटर तक बांधा गया था, वो भी तांत्रिकों द्वारा। लेकिन प्रहरी और तांत्रिक तब मात खा गये, जब उन्हें यह क्षेत्र किसी और के द्वारा भी बंधा हुआ मिला। एडियाना का मकबरा खुलने की विधि में बाधा होने लगी और तब तांत्रिक और उसके चेलों ने पोर्टल की मदद ली।"

"यहां पर तांत्रिक और प्रहरी का सीधा शक मुझपर गया। इसलिए 4 रात पहले मुझे मारने की योजना बनाई गयि।उन्हे लगा सरदार खान मुझे मार देगा। खैर आज जबतक सिद्ध पुरुष और संन्यासी का सामना तांत्रिक से नही हुआ था, तबतक ये लोग भी यही समझते रहे कि मैं ही कोई सिद्ध पुरुष हूं, जिसने ये पूरा खेल रचा है। अब मैं सिद्ध पुरुष हूं इसलिए प्रहरी सामने से मुझे मारने नही आये क्योंकि उनका भेद खुल जाता। उन प्रहरी को यही लग रहा की आर्यमणि तो रीछ स्त्री के पीछे नागपुर आया है। प्रहरी को यह भी विश्वास था कि मैं सरदार खान से बच गया तो क्या हुआ, तांत्रिक और रीछ स्त्री से नही बच पाऊंगा"...

"प्रहरी की एक खतरनाक प्लानिंग का खुलासा तो तुमने ही कर दिया था निशांत। जब कहे थे कि बहुत से शिकारी की जान जाने वाली है। और वो सही भी था क्योंकि भूमि दीदी को भी प्रहरी समुदाय में अलग ही लेवल का शक है। गुटबाजी तो हर संस्था में होती है। किंतु प्रहरी में उस से भी ज्यादा कुछ हो रहा है, इसका अंदेशा था शायद उन्हें। इसलिए भूमि दीदी को कमजोर करने के लिये उनके सभी खास लोगों को यहां ले आया।"


निशांत:– ओह अब मैं समझा की तू उस वक्त क्या समझाना चाह रहा था...


आर्यमणि:– क्या?


निशांत:– तेजस और सुकेश २ टॉप क्लास के प्रहरी, और पलक जो सबको यहां लेकर आयि। बिजली का खंजर इन्ही ३ लोगों में से कोई एक ले जाता और जिस तरह का संग्रहालय तेरे मौसा (सुकेश) ने अपने घर में बना रखा है। जिस विश्वास से सुकेश के सहायक ने रीछ स्त्री का पता बताया और वह सबको यहां ले आया। सुकेश ही शायद तांत्रिक के साथ मिला हुआ प्रहरी होगा। अगर सुकेश नही तो फिर तेजस या पलक। या फिर तीनों ही, या तीनों में से कोई २… क्योंकि यहां आये प्रहरी में से ही कोई प्रहरी खंजर लेकर जाता।


आर्यमणि:– बस कर ज्यादा गहराई में मत जा, वरना मेरी तरह ही तेरा हाल होगा।


निशांत:– मूर्ख समझा है क्या? तू मुझसे ज्यादा जानता है, इसलिए ज्यादा कन्फ्यूज है। मुझे यहां ३ प्रहरी करप्ट दिखे। यदि मुझसे पूछो तो ये लोग ताकत के भूखे है। जो की एक बच्चा भी समझ सकता है। पर जैसे कुछ सवाल तेरे ऊपर है न, तू ताकतवर तो है, लेकिन है क्या? यहां आने के पीछे मकसद क्या है? ठीक वैसे ही उनके लिए तेरे मन में है... ये लोग है क्या? और ताकत पाने के पीछे का मकसद क्या है? क्या मात्र ताकतवर बनना है, या पीछे कोई बहुत बड़ी योजना है?


सन्यासी शिवम:– हाहाहा, दोनो ही प्रतिभा के धनी हो। तुम दोनो साथ हो तो हर उस बिन्दु को देख सकते हो, जो दूसरे को १००० बार देखने से ना मिले।


आर्यमणि:– वैसे एक झोल तो आप लोगों ने भी किया है।


संन्यासी शिवम:– क्या?


आर्यमणि:– ठीक उसी रात क्षेत्र को बांधे जब मैं यहां पहुंचा। न तो कोई अंदर आ सकता था न ही कोई बाहर। फिर सिर्फ मुझे और निशांत को ही बंधे हुए क्षेत्र के अंदर घुसने दिया होगा। बाकी मुझे विश्वास है कि बहुत से लोग बांधे हुए क्षेत्र की सीमा के पास होंगे, लेकिन अंदर नही आ पा रहे। रीछ स्त्री कुछ बताने आयेगी नही और तांत्रिक के पूरे समूह को ही गायब कर दिया। देखा जाय तो आप लोगों ने भी ये पूरा खेल परदे के पीछे रहकर ही खेल गये। उल्टा मुझे हाईलाइट कर दिया...


संन्यासी शिवम:– मुझे लगा इस ओर तुम्हारा ध्यान नहीं जायेगा। सबसे पहले तो माफी चाहूंगा जो तुम्हे फसाते हुये हम आगे बढ़े। विश्वास मानो हम अभी अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे, जिसमे हमारे तात्कालिक गुरु जी और आचार्य जी, आश्रम के सभी इकाई को जोड़ने में लगे है। इस वक्त हम किसी के सामने अपने होने का भेद नहीं खोल सकते। वैसे अब चिंता मत करो, हमने दोनो ही शंका को दूर कर दिया।


आर्यमणि:– कौन सी..


संन्यासी शिवम:– पहली की तुम हमारे बंधे क्षेत्र में घुसे ही नही। लोगों ने यही देखा की तुम भी उन्ही की तरह जूझ रहे। क्योंकि हमने तुम्हारी होलोग्राफिक इमेज को अब भी सीमा के बाहर रखा है। अब चूंकि तुम भी उन लोगों की तरह बाहर घूम रहे, इसलिए तुम एक सिद्ध पुरुष कैसे हो सकते? प्रहरी को यकीन हो गया है कि रीछ स्त्री के बंधे क्षेत्र में कोई नही घुसा इसलिए दिमाग में एक ही बात होगी, "शायद तांत्रिक के मन में ही बईमानि आ गयि हो।"


निशांत:– होलोग्राफिक इमेज.. क्या ऐसा भी कोई सिद्ध किया हुआ मंत्र है?...


संन्यासी शिवम:– हां है न, विज्ञान। हमारे पास कमाल के प्रोग्राम डिजाइनर और सॉफ्टवेयर इंजीनियर है।


निशांत:– क्या सच में?....


संन्यासी शिवम:– हां बिलकुल। वैसे भी अब तो हमारे साथ हो, जल्द ही सबको जान जाओगे...


आर्यमणि:– चलो मेरा बोझ तो घटा। वैसे यहां से मैं एक बात सीखकर जा रहा...


निशांत:– क्या?


आर्यमणि:– हम जैसे लोगों के लिए भटकना ज्यादा प्रेरणादायक है। हम गंगटोक में भटके, क्या कुछ नही सीखा... मैं 3–4 साल घुमा क्या कुछ नही सीखा। जबकि उस दौड़ में तू नागपुर में ही रहा और क्या सीखा..


निशांत:– प्रहरी के लौड़ा–लहसुन सीखा। इस से ज्यादा कुछ नहीं...


आर्यमणि:– अब देख, सतपुरा के जंगल हम घूमने आये, फिर क्या हुआ...


निशांत:– पूरी सृष्टि ही हैरतंगेज चीजों से भरी है जिसका हमने बूंद ही देखा हो शायद...


फिर दोनो दोस्त एक साथ एक सुर में... "माफ करना संन्यासी जी जो हम कहने वाले है... इतना कहकर दोनो ने हाथ जोड़ लिये और चिल्लाकर कहने लगे... "मां चुदाये दुनिया, हम तो उम्र भर भटकते रहेंगे।"..


संन्यासी हंसते हुए... "तुम दोनो ऐसी भाषा का भी प्रयोग करते हो?"


आर्यमणि:– हां जब अकेले होते हैं... वैसे हमने 8 साल की उम्र से 16–17 साल तक ज्यादातर वक्त एक दूसरे के साथ अकेले ही बिताया है।


निशांत:– हां लेकिन ये भी है, ऐसी बातें किसी और के सामने निकलती भी नही... संन्यासी सर मुझे भी अब आपके साथ कुछ दिन भटकना है...


आर्यमणि:– क्यों तू मेरे साथ नही भटकेगा...


निशांत:– अभी बिलकुल नहीं... तू भटक कर अपना ज्ञान अर्जित कर और मैं भटक कर अपना ज्ञान अर्जित करूंगा... और जब दोनो भाई मिलेंगे तब पायेंगे की हमने दुगनी दुनिया देखी है...


आर्यमणि, निशांत के गले लगते... "ये हुई न असली खोजी वाली बात"…


संन्यासी शिवम:– अभी तुम्हे अपने साथ बहुत ज्यादा भटका तो नही सकता, लेकिन हां कुछ अच्छा सोचा है तुम्हारे बारे में...


निशांत:– क्या..


संन्यासी दोनो के हाथ में एक–एक पुस्तक देते... "जल्द ही पता चल जायेगा। अब मैं चलता हूं।"… सन्यासी अपनी बात कहकर वहां से निकल गये। आर्यमणि और निशांत भी बातें करते हुये कैंप की ओर चल दिये। पीछले कुछ घंटों की बातो को दिमाग से दूर करने के लिये इधर–उधर की बातें करते हुये पहुंचे।


दोनो कैंप के पास तो पहुंचे लेकिन वहां का नजारा देखते ही समझ चुके थे कि वहां क्या हो चुका था? वहां का माहोल देखकर आर्यमणि और निशांत को ज्यादा आश्चर्य नही हुआ, बस अफसोस हो रहा था। चारो ओर कई शिकारियों की लाश बिछी थी। जिसमे २ मुख्य नाम थे, पैट्रिक और रिचा। पैट्रिक और रिचा के साथ लगभग 30 शिकारी मारे गये थे। बचे हुये शिकारी फुफकार मारते अपने गुस्से का परिचय दे रहे थे। उन्ही के बीच से पलक भागती हुई पहुंची और आर्यमणि के गले लगती... "ऊपर वाले का शुक्र है कि तुम सुरक्षित हो"…


आर्यमणि:– पलक यहां हुआ क्या था?


पलक:– वह रीछ स्त्री महाजनिका अचानक ही यहां पहुंची और उसने हम पर हमला कर दिया।


निशांत, लाश के ऊपर लगे तीर और भला को देखते... "तीर और भला से हमला किया?"


रिचा के ही टीम का एक साथी तेनु.… "घटिया वेयरवोल्फ और उसका मालिक दोनो ही लड़ाई के वक्त नदारत थे। साले फट्टू तू आया ही क्यों था। चल भाग यहां से।


पलक:– तेनु जुबान संभाल कर..


तेनु पलक को आंखें दिखाते... "तेजस यहां मुझे सब संभालने के लिये कह कर गया है। अपनी जुबान मीटिंग में ही खोलना। और तू निष्कासित वर्धराज का पोते, अपने वुल्फ की तरह तू भी निकल फट्टू"…


निशांत तो २–२ हाथ करने में मूड में आ गया लेकिन आर्यमणि ने उसे शांत करवाया और अपने साथ लेकर निकल गया। कुछ घंटों के सफर के बाद रास्ते में अलबेली और रूही भी मिली, जिन्हे उठाते दोनो आगे बढ़ गये।..


आर्यमणि:– क्या खबर...


रूही:– शायद उसका नाम नित्या था।


आर्यमणि:– किसका..


रूही:– वो औरत...उसके पूरे बदन पर मैले कपड़े थे जो जगह–जगह से फटे थे। मानो बरसों से उसने अपने बदन पर कोई दूसरा कपड़ा न पहना हो। बदन का जो हिस्सा दिख रहा था सब धूल में डूबा। ऐसा लग रहा था धूल की चमरी जमी है। उसके होंटों पर भी धूल चढ़ा था, और जब वो बोलने के लिए होंठ खोली, उसके धूल जमी खुस्क होंठ पूरा फटकर लाल–लाल दिखने लगे। चेहरा ऐसा झुलसा था मानो भट्टी के पास उसके चेहरे को रखा गया था। हवा की भांति वो लहराती थी। किसी धूवें की प्रतिबिंब हो जैसे। तेजस उसे नित्या कहकर पुकार रहा था, इस से ज्यादा उसकी नई भाषा मुझे समझ में नही आयि। वह क्या थी पता नही, लेकिन इंसान तो बिलकुल भी नहीं थी। तेजस ने उससे कुछ कहा और वो सबसे पहले तुम दोनो पर ही हमला करने पहुंची।"

"बॉस वो तुम्हे मारने की कोशिश करती रही लेकिन तुम और निशांत तो धुवें के कोहरे में घुसकर बचते रहे। जब वह तुम दोनो को नही मार पायि, फिर सीधा कैंप पहुंची और वहां हमला कर दिया। वह अकेली थी और शिकारियों से घिरी। उसकी अट्टहास भरी हंसी और खुद का परिचय रीछ स्त्री महाजनिका के रूप में बताकर हमला शुरू कर दी। उसके बाद जो हुआ वह हैरतंगेज और दिल दहला देने वाला था। मानो वो औरत बंदूक की गोली से भी तेज लहराती हो। एक साथ 30–40 बुलेट चले होंगे और ऐसा भी नही था की वह एक जगह से भागकर दूसरे जगह पर गयि हो। अपनी जगह पर ही थी और १ फिट के दायरे में रहकर वह हर बुलेट को चकमा दे रही थी।"

हर एक शिकारी ने वेयरवोल्फ पकड़ने वाले सारे पैंतरे को अपना लिया। सुपर साउंड वेव वाली रॉड हो या फिर करेंट गन फायर। ऐसा लग रहा था १० मिनट तक खुद को मारने का एक मौका दे रही हो। फिर उसके बाद तो क्या ही वो कहर बनकर बरसी। वहां न तो धनुष–बाण थी, और ना ही भाला। लेकिन जब वह अपने दोनो हाथ फैलायी तब चारो ओर बवंडर सा उठा था। वह नित्या दिखना बंद हो गयि। बस चारो ओर गोल घूमता बवंडर। और फिर उसी बवंडर से बाण निकले। भाले निकले। सभी जाकर सीधा सीने में घुस गये और जब हवा शांत हुई तब वहां नित्या नही थी। बस चारो ओर लाश ही लाश।


निशांत:– वाउ!!! प्रहरियों का एक और मजबूत किरदार जो प्रहरी को मार रहा। और इसी के साथ ये भी पता चल गया की ३ में से एक कौन था जो खंजर लेने पहुंचा था।


रूही:– कौन सा खंजर...


आर्यमणि:– ऐडियाना के मकबरे का खंजर। पूरी घटना में सुकेश भारद्वाज और पलक कहां थे?


रूही:– माहोल शांत होने तक पलक वहीं थी लेकिन उसके बाद कुछ देर के लिये वह कहीं गयि थी। सुकेश और तेजस तो पहले से गायब थे, जिन्हे ढूंढने मैंने अलबेली को भेजा था।


आर्यमणि:– बकर–बकर करने वाली इतनी शांत क्यों है?..


अलबेली:– क्योंकि आज जान बच गयि वही बहुत है। सुकेश और तेजस कैंप से २ किलोमीटर दूर थे। दोनो में कोई बातचीत नहीं हो रही थी, केवल एक ही दिशा में देख रहे थे। थोड़ी देर बाद वह नित्या पहुंची। सुकेश के सीधे पाऊं में ही गिर गयि। तीनों की कुछ बातें हो रही थी तभी पलक भी वहां पहुंची... तीनों अजीब सी भाषा में बात कर रहे थे, समझ से परे। शायद मैं कच्ची हूं, इसलिए मैं उन तीनो में से किसी की भावना पढ़ नही पायि। बहुत कोशिश की, कि मैं उनकी भावना समझ सकूं, लेकिन कुछ पता न चला।"

"लेकिन तभी नित्या ने मेरी ओर देखा। मैं 500–600 मीटर दूर बैठी, उनकी बातें सुन रही थी। पेड़ों के पीछे जहां से न वो मुझे देख सकती थी और ना मैं उन्हे। लेकिन मुझे एहसास हुआ की मेरी ओर कुछ तो खतरा बढ़ रहा है। मै बिना वक्त गवाए एक जंगली सूअर के पीछे आ गयि और एक भला सीधा जंगली सूअर के सीने में। जैसे किसी ने उस भाले पर जादू किया हो। रास्ते में पड़ने वाले सभी पेड़ों के दाएं–बाएं से होते हुये सीधा एक जीव के सीने में घुस गया। मैं तो जान बचाकर भागी वहां से। बॉस अभी मेरी उम्र ही क्या है। जिंदगी तो कुछ वक्त पहले से ही शुरू हुई है लेकिन उसे भी वो डायन नित्या छीन लेना चाहती थी। बॉस बहुत खतरनाक थी वो।


अलबेली की बात सुनकर आर्यमणि निशांत को देखने लगा। निशांत अपने हाथ जोड़ते... "मुझे नहीं पता की खंजर लेने कौन प्रहरी पहुंचा था। तीनो ही साथ है, या केवल तेजस या फिर जो भी नए समीकरण हो। मुझे माफ करो।"


आर्यमणि हंसते हुये... "अब सब थोड़ा शांत हो जाओ और चलो सीधा वापस नागपुर।"..


अलबेली:– मुझे तो लगा अपने पैक की सबसे छोटी सदस्य के लिये अभी आप उस नित्या से लड़ने चल देंगे...


आर्यमणि:– लड़ाई छोड़ो और पहले ट्रेनिंग में ध्यान दो। पड़ी लकड़ी उठाने का शौक न रखो।


निशांत:– अनुभव बोलता है। एक पड़ी लकड़ी उठाने वाला ही समझ सकता है आगे का दर्द..


आर्यमणि:– और कौन सी पड़ी लकड़ी उठाई है मैंने..


निशांत:– कहां–कहां की नही उठाया, फिर वो मैत्री के चक्कर में... (तभी आर्य ने उसके मुंह पर हाथ रख दिया। निशांत किसी तरह अपना मुंह निकलते).. अबे बोलने तो दे...


आर्यमणि:– नही तू नही बोलेगा.."….


निशांत:– क्यों न बोलूं, इन्हे भी अपने बॉस के बारे में जानने का हक है। क्यों टीम, क्या कहती हो...


रूही और अलबेली चहकी ही थी कि बॉस की घूरती नजरों का सामना हो गया और दोनो शांत...


"साले डराता क्यों है। पैक का मुखिया हो गया तो क्या इन्हे डरायेगा।"…… "अच्छा !!! तो फिर खोल पड़ी लकड़ी के किस्से। मैं तो नफीसा से शुरू करूंगा।"… "आर्य तू नफीसा से शुरू करेगा तो मैं भी नफीसा से शुरू करूंगा।"…. "वो तो तेरे साथ थी न"….. "मैं कहता हूं तेरे साथ थी। बुला पंचायत देखते है उसकी शक्ल देखकर किसपर यकीन करते है।"…


रूही:– थी कौन ये नफीसा ..


दोनो के मुख से अनायास ही निकल गया... "शीमेल (shemale) कमिनी"…


अलबेली तो समझ ही नही पायि। लेकिन जब रूही ने उसे पूरा बताया तब वह भी खुलकर हंसने लगी। और रह–रह कर एक ही सवाल जो हर २ मिनट पर आ रहा था... "पता कब चला की वो एक..."


अगले २ दिनो तक चुहुलबाजी चलती रही। चारों सफर का पूरा आनंद उठाते नागपुर पहुंच गये। नागपुर में भूमि का पारा देखने लायक था। जबसे उसने सुना था कि रिचा और पैट्रिक नही रहे, तबसे वह सो नहीं पायि थी। दिल और दिमाग पर बस एक ही नाम छाया था, रीछ स्त्री। और भूमि को किसी भी कीमत पर अपने साथियों का बदला चाहिये था। आर्यमणि कोई भी बात बता नही सकता था और भूमि कोई भी दिल लुभावन बात से शांत नहीं हो रही थी। उसे तो बस बदला ही चाहिये था। जब बात नही बनी तब आर्यमणि ने भूमि को कुछ दिनों के लिये अकेले छोड़ना ही उचित समझा। इधर आर्यमणि ने भूमि को अकेले छोड़ना उचित समझा, उधर रूही और अलबेली को भी सबने छोड़ दिया। या यूं कहे कि सबने घर से धक्के देकर निकाल दिया।
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भाग:–12




मैनेजर ने लाख मिन्नतें किए। जब बात न बनी तो पुलिस बुलाने अथवा सारा सामान छोड़कर जाने तक की बात भी कह डाली, लेकिन आर्यमणि शायद बड़े से फाइट के बाद थोड़े मस्ती के मूड में था और लगातार मैनेजर को चिढ़ाते हुए एक ही रट लगाए था.… "वह मैनेजर की एक कही बात न मानेगा। जो भी बात होगी अब तो मॉल के मालिक से ही बात होगी"…


मैनेजर:- सर मै हूं ना मुझसे कहिए। एमडी सर बहुत व्यस्त रहते है, उनसे बात नहीं हो पाएगी।


काफी देर बहस हुई, अंत में जब बात नहीं बनी तब मैनेजर मजबूरन मालिक के चेंबर के ओर चल दिया। लेकिन बाहर खड़े एक पुराने मुलाजिम ने मैनेजर को साफ मना करते हुए कहने लगा… "भूमि बहन आयी है रे, जाओ बाद में आना"..


"ना अक्ल है ना सकल, बस पूरे बदन में एक ही चीज है, तेरा पेट शामलाल"… आर्यमणि ने जैसे ही ये बात कही, शामलाल सर ऊपर करके सोचने लग गया… "ये मैंने कहीं तो सुना है रे बाबा, पन किधर को सुना, याद नहीं आ रहा।"..


शामलाल अपने सोच में ही था तभी मैनेजर हड़बड़ी में दरवाजे तक आया, शामलाल उसे रोकते… "कहां जा रहा है।"..


मैनेजर:- बेवकूफ हो क्या, वो लड़का अंदर चला गया और तुम उपर सीलिंग देख रहे हो।


शामलाल:- तू सूट बुट और टाई लगाकर खुद को बड़ा समझदार मानस समझे आहे। जा अंदर जा…


मैनेजर तेजी से अंदर घुसते… "सॉरी सर मै इन्हे बहुत देर से समझा रहा था कि पेमेंट का जो भी इश्यू है मुझसे कह दे, लेकीन ये लड़का आपसे मिलने की जिद पकड़े हुआ था।"


तेजस:- हम्मम ! ठीक है प्रोडक्ट डिटेल दो, क्या क्या पर्चेज किया है..


मैनेजर ने अपने हाथ का बिल तेजस को दे दिया… 2 मीटर वाले बिल की लंबाई देखकर… "बस इतना छोटा बिल है। ये एलइडी 56 इंच वाला.. ये क्या है। स्टन गन, इसका क्या होगा।"


मैनेजर:- जाने दीजिए ना सर वो करंट छोड़ने वाली गन है। ज्यादा नुकसान नहीं करती है और मै तो कहता हूं सर को 56 क्या उससे भी बड़ा साइज का टीवी लेले।


तेजस:- आईफोन और आईपैड दोनो…


भूमि:- दादा बिल की डिटेल देखकर बच्चे को परेशान ना करो। पेमेंट करना है तो करो, वरना बहुत दुकान है शहर में।


तेजस भूमि के ओर मुड़ते… "मतलब मुफ्त का लेना हो तो दादा के मॉल याद आता है और पैसे से कहीं और जाकर खरीदोगे।"


आर्यमणि, भूमि के कान में कुछ कहा, तभी तेजस… "क्या कहा इसने तुझसे"..


भूमि:- कह रहा है लैपटॉप भुल गया लेना।


तेजस:- गुरुदेव और कुछ तो नहीं रह गया..


आर्यमणि, तेजस के पास पहुंचकर उसे गले लगाते…. "थैंक्स दादा। आप बहुत स्वीट हो।"..


तेजस:- हां मस्का पॉलिश। अच्छा सुन आर्य कल सुबह ही घर चले आना। सुनो कदम, ये अपने छोटे दादा है इनका सारा बिल मेरे अकाउंट पर डाल देना। और सुनो ये अब यहीं रहने वाला है तो अपने या अपनी गर्लफ्रेंड के लिए 20000 तक का शॉपिंग करे तो बिल मेरे अकाउंट पर डाल देना, 20000 से ज्यादा का हो तो इसे कहना एक बार मुझसे बात कर लेने। इसके अलावा रेस्त्रां में दोस्तों के साथ छोटी बड़ी जो भी पार्टी हो उसका भी बिल मेरे अकाउंट पर। खुश है ना तू आर्य।


आर्यमणि:- थैंक्स दादा।


तेजस:- बेटा अब तू जाकर और भी कुछ देख ले, भूमि आयी है तो कुछ बातें डिस्कस कर लूं। अगर तू इजाजत दे तो।


आर्यमणि जाते हुए… "दीदी बस 5 मिनट लेना। मै नीचे बिल काउंटर पर ही हूं।"..


जैसे ही आर्यमणि निकला… "ये मुझसे बात क्यों नहीं करता, तुझसे तो हर बात बताता है।"


भूमि:- आर्य आपसे बात तो करता है दादा। वैसे आपको मुझसे कुछ बात करनी थी ना।


तेजस:- मीटिंग की बात तो घर पर करता हूं, लेकिन राजदीप के बारे में कुछ खबर लगी कि नहीं।


भूमि:- जब से पोस्टिंग हुई है अच्छा काम कर रहा है। मै तो बहुत खुश हूं।


तेजस:- ज्वाइन करने के कुछ दिन बाद ही एमएलए कृपाशंकर से मिला था। राजदीप ने तब एमएलए के पास वैधायान भारद्वाज का नाम इस्तमाल किया था, अपने काले कमाई के परिचय में।


भूमि:- दादा आप बहुत जल्दी परेशान हो जाते हो। वैधायन भारद्वाज का नाम लेकर राजदीप ने उस कृपाशंकर की अकड़ बस निकाली होगी। वरना वो अपना काम अच्छे से जनता है। वो कभी भी ऐसा नहीं करेगा।


तेजस:- हम्मम !!! मै मिलूंगा राजदीप से तो खुलकर बताएगा नहीं, तू मिलकर बात कर लेना और कह देना कि कोई अकड़ दिखाए तो पहले 2 चप्पल मारे बाद में बात करे, बाकी मै सब देख लूंगा।


भूमि:- ठीक है दादा, अब मै जा रही हूं। आई–बाबा को बोलना कल आर्य के साथ आऊंगी। आज हम दोनों शॉपिंग पर निकले है।


तेजस:- चल मै भी चलता हूं।


भूमि:- सोचना भी मत, साफ कह दिया है सिर्फ वो मेरे साथ शॉपिंग करेगा।


तेजस:- हां जनता हूं.. तेरा चमचा है वो।


भूमि:- मेरा बच्चा है वो, चमचा नहीं। जा रही हूं अब मै।


भूमि कैश काउंटर पर पहुंची। सारा सामान कार में और दोनो वहां से चल दिए बाइक खरीदने। भूमि ने कार को आर्यमणि के बोले पते पर लगाई और जब नजर उठा कर देखी तो बीएमडब्लू बाइक शो रूम।


भूमि:- मेरे भाई मैंने आज तक एक भी बीएमडब्लू कार नहीं ली, और तू बाइक बोलकर कार के शोरूम ले आया।


आर्यमणि:- दीदी कार से उतरकर देखो ना, ये बाइक का ही शोरूम है।


भूमि:- हां दिख गया। बेटा तू बीएमडब्लू ही लेगा क्या?


आर्यमणि अपनी आंखें दिखाते… "चलो भी टाइम पास कर रही हो।"..


भूमि, चली अंदर… "आर्य मुझे आज पता चला कि बीएमडब्लू की बाइक भी आती है। वो लाल वाली मस्त है.. वही ले। (भूमि बीएमडब्ल्यू S1000XR मॉडल पसंद करती हुई कहने लगी)


आर्यमणि, हंसते हुए भूमि को गले लगा लिया… "चलो यहां से, मै तो बस छेड़ रहा था।"


भूमि:- मुझे यही बाइक राइड करनी है, ड्राइवर गाड़ी लेकर तुम घर जाओ। हां तू कुछ बोल रहा था आर्य।


आर्यमणि:- दीदी मुझे ये बाइक नहीं चाहिए। कहा तो आपको छेड़ रहा था मै।


भूमि:- मतलब यहां सीन क्रिएट करोगे तुम।


अर्यामानी:- सॉरी, ठीक है वही बाइक लेते है, अब खुश।


भूमि:- तू पागल है क्या? मै क्या इतने पैसे लाद कर ले जाऊंगी। वैसे भी तू तो मेरा लाडला है। तेरे लिए 20 लाख क्या 20 करोड़ की बाइक खरीद सकती हूं। बाकी बातें बाद में होगी चल अब मुझे बाइक पर घुमा।


2 मिनट में बाइक पसंद 10 मिनट में बाइक सड़क पर और दोनो हवा से बातें करते हुए पहले एमएलए कृपा शंकर के पास पहुंचे, जहां आर्यमणि ने एडमिशन के कुछ पेपर पर साइन किया, उसके बाद दोनो घर पहुंच गए। आर्यमणि अपनी बाइक खड़ी करके जैसे ही जाने लगा, भूमि उसे रोकती हुई अंदर का गराज खोल दी।


अंदर का नजारा देखकर आर्यमणि का मुंह खुला का खुला ही रह गया… "दीदी ये तो कार का शानदार कलेक्शन है। और झूठी यहां तो बीएमडब्ल्यू की कार भी है।".. कुल 21 कार थी उस गराज में। एक से बढ़कर एक लग्जरियस कार, स्पोर्ट्स कार, 5 तो एसयूवी जितने बड़े शानदार लुक की मिनी ट्रक खड़ी थी।"


भूमि:- ये ले गराज की चाभी। तेरे लेफ्ट में बोर्ड पर सभी कार की चाभी है, उसके नीचे मॉडल लिखा है, आगे समझाने कि जरूरत ना है। और हां, बस एक गलती कभी ना करना, किसी और मॉडल पर कोई दूसरी चाभी मत चिपका देना। वैसे तेरी बाइक देखकर अब लगता है मुझे बाइक कलेक्शन भी कर ही लेना चाहिए।


आर्यमणि:- थैंक्स दीदी।


दोनो गराज से निकलकर घर के अंदर पहुंचे। दिन में जिन 2 सदस्य से मुलाकात नहीं हो पाई थी, भूमि के पति जयदेव और उसकी बहन रिचा से, दोनो हॉल में ही बैठे थे। सभी खाने के टेबल पर जमा हुए और बातो का सिलसिला शुरू हो गया।


शनिवार की शुबह थी, भूमि आर्यमणि के साथ अपने पैतृक मकान पहुंची, जहां उसकी माता मीनाक्षी भारद्वाज और पिता उज्जवल भारद्वाज रहते थे। उनके साथ भूमि का बड़ा भाई तेजस अपनी बीवी वैदेही और 2 बच्चों मयंक और शैली भारद्वाज के साथ रहते थे।


भूमि के साथ जैसे ही आर्यमणि घर में घुसा, स्वागत के लिए उसकी मासी दरवाजे पर ही खड़ी थी। आर्यमणि के अंदर आते ही, वो उसको साथ लेकर जाकर सोफे पर बिठाई… "शांताराम जल्दी से ले आओ मेरे बच्चे का गिफ्ट। क्यों रे पहले मासी या पहले दीदी जो सीधा भूमि के ससुराल पहुंच गया। ऊपर से तूने वहीं रहने का फैसला भी कर लिया, वो भी बिना मुझसे पूछे। जया ने तुझे परिवार के बारे में नहीं बताया था क्या? बहन के ससुरल रहने से इज्जत कम हो जाती है।"


भूमि:- आई सुन लो इस बात पर झगड़ा हो जाएगा। आर्य के कान भरना बंद करो।


मीनाक्षी:- मेरी बात बुरी लग रही है तो चली जा। मेरा बच्चा मेरे पास रहेगा न की तेरे पास।


भूमि:- ठीक है रख लो, सुबह-सुबह मेरा दिमाग मत खाओ। बाबा काम काज से रिटायरमेंट लिए हो या परिवार से भी। आकर आई को चुप करवाओ वरना झगड़ा हो जायेगा।


मीनाक्षी:- वो क्या बोलेंगे, घर की मुखिया मै हूं। यहां वही होगा जो मै चाहूंगी।


तेजस:- क्या है आई, ऐसे कौन बात करता है। भूमि तू बैठ ना। तू भी तो जबरदस्ती आई के बात पर ध्यान देती है।


भूमि:- कब से कह रही हूं जाकर किसी अच्छे डॉक्टर से इनका इलाज करवाओ, लेकिन कोई मेरी सुने तब ना।


भूमि के पिता उज्जवल, अपने कमरे से बाहर निकलते…. "मीनाक्षी बस भी करो। भूमि से गुस्सा हो तुम, हम सब जान रहे है। वो भी जानती है। एक ही बात के लिए कब तक नाराज़ रहोगी।


मीनाक्षी:- जबतक वो पाऊं पकड़कर ये नहीं कह देती की मुझसे गलती हो गई। मै गलत थी। मेरा ना आना गलत था। मेरा मुंह लगाना गलत था। अब से जो बोलोगी वो होगा।


भूमि:- जब मै गलत हूं ही नहीं तो माफी किस बात की। आर्य का मन था इसलिए चली भी आयी, वरना इतने ड्रामे मुझे पसंद नहीं।


आर्यमणि:- मासी मै वापस गंगटोक जा रहा हूं कल। अगले साल एडमिशन लूंगा।


मीनाक्षी:- क्यों ?


आर्यमणि:- क्योंकि अब मै अपने पापा की तरह आईएएस बनूंगा।


मीनाक्षी:- चमचा कहीं का। भूमि के यहां रहता तो इंजिनियरिंग तेरी अच्छे से होती, मेरे पास आते ही तुझे आईएएस बनने का ख्याल आ गया। सही है बेटा। आजा, तू क्यों मुंह फुलाए है, मुझे तो पता ही था ये यहां नहीं रुकेगा।


भूमि:- हां और आपको बिना मेरे से झगड़ा किए खाना नहीं पचेगा।


मीनाक्षी:- तू ही तो मेरा मनोरंजन है, वरना घर में पड़े-पड़े बोर हो जाती हूं।


भूमि:- तो अपनी बहू से झगड़ा किया करो ना। मेरा खून जला कर कौन सा सुख पा लोगी।


मीनाक्षी:- बहुत कोशिश की झगड़ा करने कि। अभी मै अपनी बहू को बोलूं पाऊं पकड़ कर माफी मांग तो पूछेगी भी नहीं क्यों कह रही हूं ऐसा। वो तो 100 लोगों के भिड़ में भी ऐसा कर लेगी। वो मेरी बहू नहीं मेरी दोस्त है।


भूमि:- लो शुरू हो गया इनका बहू पुराण। कहां है दिख तो नहीं रही।


मीनाक्षी:- उसके पापा की तबीयत कल रात अचानक ही खराब हो गई। इसलिए कल रात ही बच्चो के साथ वो निकल गई।


भूमि:- हरिवंश काका को क्या हुआ, किसी ने मुझे बताया क्यों नहीं?


मीनाक्षी:- मैंने ही मना किया तेजस को। उसने बताया कि कल तुम दोनो शॉपिंग पर निकले हो। वैसे भी तू खुद को काम में इतना मसरूफ कर चुकी है, हमे लगा इसी बहाने कुछ तो काम से ध्यान हटे।


भूमि:- आई काम से ध्यान हटना अलग बात है, अपने लोगो की जरूरत को देखना दूसरी बात है। आप लोगो को भी वहां जाना चाहिए था, वो भी नहीं गए।


तेजस:- वैदेही ने कहा है कुछ जरूरत होगी तो सूचना दे देगी, अब तू इतना मत सोच।


"तुम लोग की पंचायत में आर्य को तो सब भुल ही गए। शांताराम दे मुझे"… मीनाक्षी शांताराम के हाथ से एक डिब्बा ली उसे खोलकर एक शानदार घड़ी आर्य के हांथ पर बांध दी। "हां अब अच्छा लग रहा है।"…


फिर हाथ में एक बॉक्स देती हुई कहने लगी… "इसमें एटीएम और क्रेडिट कार्ड है। किसी से पैसे मांगने नहीं, और इस कंजूस भूमि से बिल्कुल नहीं। और हां मै अपने बेटे को दे रही इसलिए खर्च करने में कोई भी झिझक मत रखना। समझ गया।".. आर्य हां में अपना सर हिला दिया।


शनिवार से लेकर रविवार तक आर्यमणि अपनी मासी के यहां ही रुका। पूरे नागपुर की सैर इन्हीं 2 दिनों में हो गया। सोमवार की सुबह कॉलेज का पहला दिन। बड़े ही खुशी के साथ आर्यमणि कॉलेज जाने के लिए तैयार हो रहा था।
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भाग:–13




शनिवार से लेकर रविवार तक आर्यमणि अपनी मासी के यहां ही रुका। पूरे नागपुर की सैर इन्हीं 2 दिनों में हो गया। सोमवार की सुबह कॉलेज का पहला दिन। बड़े ही खुशी के साथ आर्यमणि कॉलेज जाने के लिए तैयार हो रहा था। उसकी खुशी देखकर भूमि कहने लगी… "क्यों अपनी गर्लफ्रेंड चित्रा से मिलने की तुझे इतनी ज्यादा खुशी है।"


आर्यमणि:- थैंक्स दीदी और निशांत से भी..


भूमि:- आह हीरो लग रहा है बिल्कुल। ऊपर सन ग्लासेस लगा। हां अब ठीक है। ये बता तू मुझे थैंक्स क्यों कहा चित्रा के मामले में।


आर्यमणि:- अभी मै अपने दोस्तो से मिलने की खुशी में जा रहा हूं। आप मुझे उस बात के लिए छेड़ रही है, जो बात आपको भी पूरे अच्छे से पता है। कौन बहस मे पड़े।


भूमि:- इस बात के लिए कोई वीरता का पुरस्कार दे दूं क्या? चल आज मै तुझे कॉलेज छोड़ आती हूं।


आर्यमणि:- दीदी, आप परेशान ना हो मै चला जाऊंगा।


आर्यमणि कॉलेज पहुंचा और आराम से अपने क्लास ढूंढने लगा। इधर चित्रा, पलक, माधव, निशांत और निशांत की गर्लफ्रेंड हरप्रीत सभी कैंटीन में बैठकर कॉफी की चुस्की ले रहे थे, इसी बीच एक सेकंड ईयर का स्टूडेंट भागता हुआ कैंटीन में आया… "सुपर सीनियर (4th ईयर स्टूडेंट) आए है और एक स्टूडेंट को पकड़ रखा है। लगता है उसकी आज बैंड बजाने वाले है।"..


वो लड़का हल्ला करता हुआ सबको बता गया और कैंटीन से 5 कॉफी और सिगरेट लेकर चलता बना।… "इन सुपर सीनियर की रैगिंग क्या अलग होती है।"… पलक, निशांत और चित्रा से पूछने लगी।


निशांत:- पता नहीं। वैसे हमे तो सेकंड ईयर वालो का दर्द झेला नहीं गया था, ये तो फाइनल ईयर वाले है।


माधव:- चलकर देख लेते है फिर, ये सुपर सीनियर कैसे रैगिंग लेते है।


चित्रा:- चलो चलकर देखते है, इसी बहाने कुछ टाइमपास भी हो जाएगा।


पलक:- कैसे हो तुमलोग। कोई किसी को परेशान करेगा और तुम लोग उसे देखोगे।


निशांत:- शायद उन सुपर सीनियर्स के जाने के बाद उसे किसी कंधे कि जरूरत पड़े। ये भी तो हो सकता है ना पलक। मानवीय भावना से तुम भी क्यों नहीं चलती।


पलक:- हम्मम ! ये भी सही है। चलो चलते है।


चित्रा:- वैसे पलक ने उसे अपना कांधा दे दिया तब तो बेचारे के सारे गम दूर हो जाएंगे।


सभी बात करते हुए पहुंचे गए फर्स्ट ईयर के एरिया में, और जैसे ही नजर गई उस लडके पर… हाइट 6 फिट के करीब। आकर्षक गठीला बदन बिल्कुल किसी प्रोफेशनल एथलीट की तरह। रंग गोरा, चेहरा नजरें टिका देनेने वाली। और जब फॉर्मल के ऊपर आखों पर सन ग्लासेस लगाए था, किलर से कम नहीं लग रहा था। पलक उसे नजर भर देखने लगी।


चित्रा:- मारो, इसे खूब मारो.. इतना मारो कि होश ठिकाने आ जाए


निशांत:- बस अच्छे से इसकी ठुकाई हो जाए तो दिल खुश हो जाए।


पलक हैरानी से उन दोनों का चेहरा देखने लगी। ये सभी सुपर सीनियर्स के ठीक पीछे खड़े थे और नज़रों के सामने आर्यमणि।…. "इसने अपनी बॉडी पर काम किया है ना। पहले से कुछ पतला नजर आ रहा है ना निशांत।"..


निशांत:- ऐसा लग रहा है बदन के एक्स्ट्रा चर्बी को छीलकर आया हो जैसे।


इधर सुपर सीनियर्स छोटे से लॉन में लगे पत्थर की बनी बेंच पर बैठे थे और आर्यमणि ठीक उसके सामने। छोटा सा इंट्रो तो हो गया था। उसे खड़े रहने बोलकर सभी कॉफी पीने लगे थे। इसी बीच आर्यमणि ने अपने दोस्तो को देखा और अपना चस्मा निकालकर सीने में खोंस लिया।… "इसकी आखें नीली कबसे हो गई, कॉन्टैक्ट लेंस तो नहीं लिया।"..


निशांत:- इसपर पक्का यूएस की गलत हवा लगी है चित्रा। ये तो यहां की लड़कियों को दीवाना बनाने आया है। कमिने ने मेरे बारे में भी नहीं सोचा। अब मेरा क्या होगा।


हरप्रीत निशांत को एक लात मारती… "तुम्हारी छिछोड़ी हरकतें कभी बंद नहीं होगी ना।"


पलक इतनी डिटेल सुनने के बाद थोड़ी हैरान होती… "क्या यही आर्य है।"..


दोनो भाई बहन एक साथ… "हां यही आर्य है।"..


तभी सीनियर जो कॉफी पी रहे थे, अपनी आधी बची कॉफी आर्य के मुंह पर फेंकते… "अबे हम यहां बैठे है और तू मुस्कुराए जा रहा है।"


आर्यमणि:- सॉरी सर...


तभी एक सीनियर खड़ा हुआ और खींचकर एक तमाचा मरा। तमाचा इतना जोड़ का था कि आर्यमणि का उजला गाल लाल पर गया।… "कुत्ते के पिल्ले, झुककर, अदब से सर बोला कर। अच्छा तू सिगरेट पीता है।"


आर्यमणि:- टेक्निकल सवाल है सर जिसके जवाब पर थप्पड़ ही पड़ने है। वक़्त क्यों बर्बाद करना मारो।


उसे देखकर सभी हंसते हुए… "समझदार लड़का है।" सभी खड़े हो गए और एक के बाद एक उसके गाल पर निशान बनाते चले गए। उनकी इस हरकत को ना तो चित्रा बर्दास्त कर पाई और ना ही निशांत। उनके चेहरा देखकर ही आर्यमणि समझ गया कि अब ये दोनो यहां ना आ जाए इसलिए उसने इशारे से मानकर दिया।


निशांत:- साले कमीनो, वो मारने पर आ गया तो तुम पांचों अपनी जान बचा कर भागने लगोगे।


पलक:- तो फिर ये इतना बर्दास्त क्यों कर रहा है?


चित्रा:- क्योंकि वो सीनियर है और हमे रोज कॉलेज आना। अब हर दिन कॉलेज आकर लड़ाई तो नही कर सकते न... बस इसलिए मार खा रहा है...


इधर इन सीनियर्स का जब मारना हो गया।… "चल अब अपनी शर्ट निकाल।"..


आर्यमणि:- बस रैगिंग खत्म हो गई। अब जाओ यहां से सब। मेरा मूड नहीं रैगिंग देने का।


एक सीनियर… "साले तू हमे सिखाएगा।"..


आर्यमणि:- मै जानता हूं तुझे किसी ने सीखा कर भेजा है। तेरा काम हो गया अब मुझे जाने दे। वरना मामला फसा तो जिसने तुझे भेजा है वो शायद बच जाए पर तुम पांचों का मै वो हाल करूंगा कि पछताओगे, काश बात मान ली होती।


सीनियर्स को समझ में आ गया कि पोल खुल गई है इसलिए वहां से कटने में ही अपनी भलाई समझे। आर्यमणि भी अपनी बात कहकर, अपने दोस्तों के ओर तेजी से कदम बढ़ा दिया। वो दोनो भी आर्यमणि के ओर दौड़ लगा दिया। निशांत आकर सीधा गले से लगा, वहीं चित्रा पास में आकर खड़ी हो गई।


आर्यमणि अपना एक हाथ खोलकर उसे भी अपने बीच लिया और तीनों ही गले लगकर अपने गम भुलाने लगे। हल्की आखें नम और दिल में ढेरों उमंगे। कुछ देर गले लगने के बाद तीनों वापस कैंटीन आ गए। अपने बीच 2 नए लोग को देखकर आर्यमणि पूछने लगा…. "ये हमारे नए साथी कौन है, मिलवाया नहीं तुमने।"..


चित्रा:- आर्य, ये है मेरी प्यारी कजिन पलक, और पलक..


पलक:- हां जानती हूं, ये है आर्य। हेल्लो आर्य..


आर्यमणि, भी अपना हाथ आगे बढ़ते हुए… "हेल्लो पलक, तुम बहुत खूबसूरत है।"..


चित्रा:- खूबसूरत है, ये मेरे कान सही काम कर रहे है ना।


निशांत, आर्यमणि के सर पर हाथ रखते हुए…. "मेरे भाई दिमाग के अंदर सारे पुर्जे सही से काम तो कर रहे है ना।"


आर्यमणि:- और ये साथी कौन हैं?


आर्यमणि, माधव के ओर देखते हुए कहने लगा।…. "ये माधव है।"


माधव अपना हाथ आगे बढ़ते हुए… "जी हम माधव है।"..


आर्यमणि:- तुमसे मिलकर अच्छा लगा माधव।


चित्रा:- गए तो ना कोई संदेश, ना कोई खबर। अपने घर तक कॉन्टैक्ट नहीं किए।


निशांत:- हमे बहुत बुरा लगा।


आर्यमणि:- आराम से सब शाम को बताऊंगा ना। फिलहाल मुझे अपने शर्ट से एलर्जी हो रही है। निशांत पुरानी आदत बरकरार है या बदलाव है।


निशांत:- सब वैसा ही है। पैंट के ऊपर टी-शर्ट अच्छा नहीं लगेगा। जाओ पूरा चेंज कर आओ।


आर्यमणि वहीं कैंटीन के किचेन में जाकर चेंज कर आया। जबतक लौटा तबतक क्लास का टाइम भी हो चुका था। चित्रा और निशांत उससे जानकारी लेने लगे पता चला ये लोग 1 साल अब सीनियर हो चुके हैं।


लगभग 2 बजे तक सभी क्लास समाप्त हो गए। पलक को बाय बोलकर चित्रा और निशांत दोनो आर्यमणि के साथ चलने लगे… तीनों कॉलेज में ही पीछे के गार्डन में बैठ गए।


निशांत:- बहुत सारे सवाल है यार, लेकिन सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या तुम्हे हम सब के संपर्क करने की एक जारा इक्छा नहीं हुई।


चित्रा:- और हां, हूं वाला जवाब कतई नहीं देना।


आर्यमणि:- "कॉन्टैक्ट तो मै भी करना चाहता था लेकिन यूएस में मेरा किडनैप हो गया। फसा भी कहां तो फॉरेस्ट में। वो फॉरेस्ट नहीं, बल्कि मेरे ज़िन्दगी का ब्लैक हिस्सा बन गया। हर पल खुद के सर्वाइवल के लिए मुझे जूझना पड़ता था। मेरे पास कोई तैयारी नहीं थी और बिना तैयारी के मुझे रोज जानवरो के झुंड से सामना करना पड़ता था।"

"हां वो अलग बात है कि वहां के सर्वाइवल इंस्टिंक्ट ने मेरे शरीर को काफी स्ट्रॉन्ग बाना दिया, ये एक अच्छी चीज मै लेकर आ रहा हूं। लेकिन जब वहां था तो बस एक ही बात दिमाग में थी, क्या मै तुम सब से कभी मिल पाऊंगा? उस रात चित्रा का दिल दुखाया, तुम दोनो जा रहे थे और ठीक से मिला भी नहीं, ऐसा लगा जैसे मैंने कितनी बड़ी गलती कर दी हो।"

"जान बचाने के क्रम में एक ही बात अक्सर सताया करती थी जो कभी मैं कह नहीं सका अपने पापा से, कि मै उनसे कितना प्यार करता हूं। मां के गोद की अकसर याद आया करती थी। तुम लोग के चेहरे हमेशा आखों के आगे घूमते रहता और खुद से ही सवाल करता, क्या मै तुम दोनों से मिलकर कभी ये कह पाऊंगा की तुमसे जब दूर हआ तो ऐसा लगा जिंदगी ही अधूरी है।"


निशांत:- हमारा भी यही हाल था आर्य। जितनी दूरियां नहीं अखरती, उस से कहीं ज्यादा बात ना करना अखरता है। मुद्दा ये नहीं था कि तुमसे बात नहीं हुई, बस दिल में डर बाना रहता था, क्या हुआ जो बात नहीं करता। या तो अपनी नई दुनिया में मस्त हो गया या किसी बड़ी मुसीबत में है।


चित्रा:- और तुम वाकई में मुसीबत में थे। हमे माफ कर दो, तुम्हारे बहुत ही बुरे वक़्त में हम तुम्हारे साथ नहीं थे। अंकल आंटी से मिले या नहीं।


आर्यमणि:- 10 दिन पहले आया। सबसे पहले सीधा गंगटोक ही गया था। इस बार उनसे भी कुछ नहीं छिपाया। पापा से बोल दिया मैंने, भले ही मै उनसे बहुत बहस करता हूं लेकिन वो हमेशा मेरे रोल मॉडल ही रहेंगे। मै उनसे बहुत प्यार करता हूं। यही बात मैंने अपनी मम्मी से भी कहा। यही बात मै तुम दोनो से भी कहता हूं।


निशांत:- ज्यादा इमोशनल होने की जरूरत नहीं है, अभी जरूरत है एक पार्टी की। आज रात डिस्को?


आर्यमणि:- नहीं आज कोई प्रोग्राम नहीं। चित्रा के साथ हम दोनों ने क्या किया था याद है ना, इसलिए आज तो चित्रा बोलेगी।


चित्रा:- नहीं कोई गिला-शिकवा नहीं। हम तो यहां सुरक्षित थे, पता नहीं तुमने उस फॉरेस्ट में कैसे दिन झेले होंगे, जाओ तुम दोनो।


निशांत:- हां तो आज ये फाइनल रहा, डिस्को।


आर्यमणि:- 1 हफ्ते बाद की प्लांनिंग रखो ना। अभी यहां थोड़ा सैटल हो जाऊं। गंगटोक से लौटा हूं तो सीधा कॉलेज आ गया, जबकि मासी और मौसा का फोन पर फोन आए जा रहा है।


चित्रा:- हां ये भी सही है। चलो चला जाए, तुम आराम से यहां सैटल हो लो, उसके बाद तो फन और मस्ती चलती रहेगी।


तीनों वहां से एक दूसरे को अलविदा कहकर घर लौट गए। 3 बजे के करीब आर्य घर पर पहुंचा। वो अपने कमरे में जा ही रहा था कि तभी रिचा के कमरे से उसके चिल्लाने की आवाज़ आयी। आर्यमणि उसके कमरे में दौर कर पहुंचा, और सामने का नजारा देखकर उतनी ही तेजी से दरवाजा बंद करके निकल गया।… तभी अंदर से आवाज़ आयी… "ओय शर्माए से लड़के आ जाओ, ऐसे मै 100 लोगो के बीच प्रैक्टिस करती हूं।"..


दरसअल रिचा स्पोर्ट्स ब्रा और माइक्रो मिनी शॉर्ट्स में थी। जिसे देखकर आर्यमणि दरवाजा बंद कर चुका था। वापस से अंदर आते… "वो बस चिल्लाने कि आवाज़ सुनकर मै आ गया था, जा रहा हूं।"


रिचा:- अब आ गए हो तो बैठो और देखकर बताओ मै कैसा कर रही हूं।


आर्यमणि अपना सर हां में हिलाया और रिचा को देखने लगा। रिचा अपने हाथ की "साय वैपन" को बड़ी तेजी में घुमाई और हवा में हमला करना शुरू कर दी। हमले कि प्रैक्टिस करती हुई कहने लगी… "हम हमलवार श्रेणी में आते है। मर्टियल अर्ट के दौरान हमे ये तरह-तरह के हथियार चलना सिखाया जाता है।"..


रिचा अपने गति का प्रदर्शन करती 360⁰ पर घूम-घूम कर दोनो हाथ को इस एंगल से घुमा रही थी जिसमे एक हाथ सीने से लेकर गर्दन तक हमला करता तो दूसरा हाथ कमर से लेकर पेट तक। हाथ का ऐसा संतुलन बना था कि जब बायां हाथ ऊपर होता तो दायां नीचे, और इसी प्रकार जब दायां ऊपर होता तो बाएं नीचे। 360⁰ रोल के वक़्त भी ऐसा ही होता, एक हाथ कमर के ऊंचाई पर रहता तो दूसरा हाथ गर्दन की ऊंचाई पर।


रिचा लगातार अपनी प्रेक्टिस दिखाती हुई, उसे हथियारों के बारे में जानकारी देती रही। वो जो चला रही थी एक इजिप्टियन हथियार साय थी। जो बेहद ही हल्का, उतना ही मजबूत और चलाने में आसान। उसके बाद कटाना और अन्य हथियारों के बारे में बताने लगी।


आर्य:- अच्छा नाच लेती हो। इस हथियार के साथ, तुम्हारा नाचना देखकर ही दुश्मन हथियार डाल देते होंगे।


रिचा:- हूं, अच्छा कॉम्प्लीमेंट था। चलो कहीं घूमकर आते है।


आर्य:- ठीक है मैम.. वैसे कहां चल रहे है..


रिचा:- महाराष्ट्र और एमपी के बॉर्डर की पहाड़ियों पर। जाओ कुछ हल्का और स्पोर्ट्स वाले कपड़े पहन आओ, जबतक मै भी फ्रेश होकर चेंज कर लेती हूं।


आर्य:- क्यों ये 100 लोगों के सामने नहीं करती क्या?


रिचा:- 100 लोगो के सामने तो कभी नहीं की लेकिन आज जहां चल रहे है, वहां यदि तुम डरे नहीं तो तुम्हारे सामने ये कारनामे कर सकती हूं। पर शर्त ये है कि केवल आखों से नजारा लोगे।


आर्य:- हा हा हा हा.. तुम शर्त हार जाओगी।


रिचा:- कोई नहीं देख ही लोगे तो कौन सा मै घट जाऊंगी.. लेकिन शर्त हार गए तो।


आर्य:- शर्त हार गया तो मै, तुम्हे अपना न्यूड शो दिखा दूंगा।


रिचा:- मै किड्स शो नहीं देखती। यदि तुम वहां डर गए तो मेरे शागिर्द बनोगे, बोलो मंजूर।


आर्य:- शागिर्द बनने की प्रोमिस कर सकता हूं लेकिन प्रहरी नहीं बनूंगा, ये पहले बता देता हूं। मै अभी तैयार होकर आया।


आर्य झटाक से गया और फटाक से तैयार होकर चला आया। थोड़ी देर बाद रिचा भी तैयार होकर आ गई। बिल्कुल किसी शिकारी की तरह उसका ड्रेसअप था। नीचे काले रंग की चुस्त पैंट, ऊपर काले रंग की चुस्त स्लीवलेस छोटी टी-शर्ट जिसमें कमर और पेट के बीच का 3 इंच का हिस्सा दिख रहा था और उसके ऊपर एक छोटी सी लैदर जैकेट। इन सबके अलावा पूरे कपड़ों में तरह–तरह के हथियार लगे हुए थे। जबकि रिचा, आर्यमणि को शॉर्ट्स और स्लीवलेस टीशर्ट में देखकर हंस रही थी।
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भाग:–14



दोनो गराज के ओर चल दिए। रिचा गराज खोलकर फोर्ड के किसी भी मिनी पिकअप ट्रक को निकालने के लिए बोली, तबतक वो गराज के बाएं हिस्से का शटर खोलकर रसियन मेड शॉर्ट गन और खास पाउडर में डूबी हुई उसकी गोलियां रख ली। साथ में एक जर्मन मेड पिस्तौल भी रखी, और इसकी भी गोलियां खास पाउडर में डूबी थी।


आर्य पिकअप बाहर निकालकर वहीं दरवाजे के पास खड़ा था। रिचा उसे देखकर हंसती हुई कहने लगी… " तुम्हारे यहां आने पर हमने प्रतिबंध नहीं लगाया है।"


आर्य:- ये बुलेट किस पाउडर में डूबी है।


रिचा:- बुलेट किसी पाउडर में नहीं डूबी, बल्कि बुलेट के अंदर यही पाउडर डाला गया है। इसे वुल्फबेन कहते है। एक बार किसी भी वुल्फ को गोली मार दिए, फिर जैसे ही ये पाउडर ब्लड फ्लो से होते हुए उसके हृदय में पहुंचेगा, वो मारा जाएगा।


आर्य:- प्रहरी और उसके जॉब। मै आज तक इतने जंगलों में रहा, लेकिन मुझे तो कोई वेयरवुल्फ नहीं मिला।


रिचा:- आज मिल जाए तो घहबराना मत।


रिचा ने हथियार से भरा बैग पिकअप में रखा और दोनो चल दिए एमपी और नागपुर के बॉर्डर पर पड़ने वाले जंगलों में। एक मीटिंग प्वाइंट पर गाड़ी रुकी और एक एक करके 6 कीमती विदेशी मिनी ट्रक वहां आकर लग गई।


रिचा जैसे ही एक लड़के से मिली, झटककर उसकी बाहों में जाकर उसके होंठ को चूमती हुई कहने लगी… "फिर कभी ये पल हो ना हो।".. दोनो ये लाइन कहते हुए अलग हो गए और रिचा उस लड़के का परिचय करवाती हुई… "आर्य इनसे मिलो ये है मानस, मेरे होने वाले पति। मानस ये है आर्य, भाभी का भाई।"


मानस:- आर्य, ये कैसे गेटअप में आए हो।


रिचा:- मानस ये वही कुलकर्णी के परिवार से है।


रिचा ने बड़े ही धीमे कहा था लेकिन आर्यमणि के कान तो कई मिल दूर की आवाज़ को सुन सकते थे, फिर ये तो पड़ोस में ही खड़े थे। रिचा की बात सुनकर मानस ने मुंह बनाकर आर्यमणि को नीचे से ऊपर देखा और वो लोग अपने काम में लग गए।


सभी के एक हाथ में एक रॉड था, जिसका ऊपर का सिरा गोल और नीचे पतली नुकली धातु लगी थी, जिसके सहारे ये लोग उस रॉड को जमीन में गाड़ रहे थे। इस रोड से एक सुपर साउंड वेभ निकलती, जो किसी भी सुपरनैचुरल को सर पकड़कर वहीं बैठने पर मजबूर कर दे।


जंगल को प्वाइंट किया गया और ये सभी 6 लोग आर्य को गाड़ी के पास रहने का बोलकर अपने काम में लगे रह गए। आर्यमणि वहीं खड़ा था कि तभी उत्तर कि दिशा से उसे तीन लोगों की बू आनी शुरू हुई, जानी पहचानी और जिसमें से एक के डरने की बू थी।


आर्यमणि इधर–उधर देखा, और गायब होने वाली रफ्तार से दौड़ लगा दिया। जंगल में लगभग अंधेरा हो चुका था। आर्य अपनी सुपरनैचुरल आखों से चारो ओर देखने लगा। बिल्कुल फोकस। तभी कुछ दूरी पर उसे 2 सैतान नजर आने लगे। 2 शेप शिफ्टर वेयरवुल्फ जो अपने ही जैसे किसी शेप शिफ्टर को जकड़ रखा था और दोनो कंधे के ऊपर से, गर्दन में दांत घुसाकर उसका गला फाड़ने ही वाले थे।


आर्यमणि रफ्तार से वहां पहुंचा और धाराम से जाकर एक से टकराया। आर्यमणि जिस वेयरवुल्फ से टकराया वह जाकर कहीं दूर गिरा। दूसरा वेयरवुल्फ अपने शिकार को छोड़कर आर्यमणि पर अपना पंजा चलाया। एक ओर से, बड़े से क्ला वाला पंजा आर्यमणि के चेहरे के ओर बढ़ रहा था, ठीक उसी वक्त आर्यमणि ने अपना मुक्का ठीक उसके बड़े से पंजे के बीच चला दिया। हथेली के बीच आर्यमणि का पड़ा मुक्का बड़ा ही रोचक परिणाम लेकर आया और उस वेयरवॉल्फ का कलाई पूरा टूट गया।


आर्यमणि उसके टूटे कलाई को पकड़ कर उल्टा मोड़ दिया। कड़ाक की आवाज में साथ, हाथ की हड्डियां आंटा बन गई। आर्य ने अपने पाऊं उठाकर उसके जांघ पर पूरे जोर से मारा। उसके जांघ की हड्डी टूट गई और पाऊं मांस के सहारे लटक गया। आर्यमणि ने वुल्फ को ऐसा तड़पाया था कि वह वेयरवोल्फ दर्द से बिलबिलाता अपनी मुक्ति की दुआ ही कर रहा था।

आर्यमणि उसे और ज्यादा न तड़पाते हुए, उसके हाथ को खींचकर उसे अपने करीब लाया और उसके गर्दन को जोर से गोल (360⁰) घूमाकर नचा दिया। आर्यमणि जैसे ही हाथ छोड़ा, उसका पार्थिव शरीर भूमि पर गिर रहा था। वहीं पहला वेयरवुल्फ जो आर्यमणि से टकराकर गिरा था, उसकी पसलियां टूटी थी और कर्राहती आवाज़ में "वूंउउउ" के वुल्फ साउंड के सहारे, अपने साथियों को बुला रहा था। आर्यमणि कर्राहते हुए वुल्फ के पास पहुंचा, उसके गर्दन को भी झटके में 360⁰ घुमाते हुए उसका भी राम नाम सत्य कर दिया।


वह लाचार सी वुल्फ जिसपर जानलेवा हमला हुआ था, अब सिकंजे से आज़ाद थी। वह आश्चर्य से आर्यमणि को देख रही थी, मानो जानने को कोशिश कर रही हो कि कैसे आर्यमणि ने 2 अल्फा वेयरवुल्फ को इतनी आसानी से मार दिया। आर्यमणि उसके चेहरे के भाव को भली भांति समझते.… "इतना मत सोचो की मैंने इन्हें कैसे मारा... तुम तो बस अपने जिंदा रहने की खुशी मनाओ"…


"ओह हां जिंदा रहने की खुशी माननी है।"… इतना कह कर वह वुल्फ झपटकर आर्यमणि के ऊपर आयी और उसके होंठ से होंठ लगाकर चूमने लगी। आर्य उसे खुद से थोड़ा दूर करते… "तुम लड़की हो ना"… उसने "हां" .. में अपना सर हिलाकर जवाब दिया।.. "किस्स करो लेकिन पीछे गले पर नाखून मत चूभो देना वरना आत्महत्या करना होगा।"


"डरो मत मै एक बीटा हूं।".. कहती हुई उस लड़की ने आर्य को चूमना शुरू किया और अपने हाथ आर्यमणि के नितम्बो पर ले जाती, उसे अपने मुट्ठी में जकड़ ली।.. आर्य उससे अलग होते हुए…. "तुम तो पूरे मूड में आ गई। अभी-अभी तो जान बची है, फिर क्यों मरने कि इक्छा है।"..


लड़की:- मरने की नहीं तुम्हे थैंक्स कहने कि इक्छा है।


आर्यमणि:- शिकारी यहां पहुंच गए है, तुम निकलो यहां से। वरना, मै तुम्हे बचा नहीं पाऊंगा। ज़िन्दगी रही और फिर कभी मिले तो फुरसत से तुम मुझे थैंक्स कहना। और हां वहां अंधेरा नहीं होगा।


लड़की दोबारा आर्य के होंठ को चुमती…… "दोबारा मिलने के लिए अपना नंबर तो दो। कॉन्टैक्ट कैसे करूंगी।"


आर्य:- नंबर दूंगा लेकिन एक शर्त पर। पहले तुम संदेश दोगी, और मै फ्री हुआ तो तुम्हे कॉल करूंगा।


लड़की:- कितने संदेश भेजने के बाद कॉल करोगे..


आर्य:- रोज 1 संदेश भेज देना, जिंदगी ढलने से पहले कभी ना कभी संपर्क कर ही लूंगा।


लड़की हंसती हुई आर्य का नंबर ले ली और एक बार फिर उसके होंठ को चूसती… "पहली बार किसी के होंठ चूमने में इतना मज़ा आ रहा है। मुझे ज्यादा तड़पाना मत।"… कहती हुई वो वहां से चली गई। आर्य को भी लग गया वुल्फ कॉलिंग साउंड सुनकर सभी शिकारी पहुंचते ही होंगे, इसलिए वो भी वहां से भगा और जाकर गाड़ी के पास खड़ा हो गया।


9 बजे के करीब सभी शिकारी गाड़ी के पास जमा हुए। उसके जाल में एक लड़की थी जो काफी एग्रेसिव थी। चारो ओर हाथ पाऊं मार रही थी। उसके चारो ओर सुपर साउंड वेभ वाला रॉड गारकर उसके तरंग छोड़ दिए। जैसे ही वो तरंग शुरू हुई, आर्य के सर में भी हल्का–हल्का दर्द होने लगा।


उसके धड़कन की रफ्तार बढ़ने लगी और ये रफ्तार इसी तरह से बढ़ती रहती तब यहां कुछ ऐसा होता जिसकी उम्मीद किसी ने भी नहीं की होती। आर्य पहाड़ की ऊंचाई पर था, उसने खुद को पहाड़ की ऊंचाई से लुढ़का लिया और वेभ के रेंज से बाहर निकल आया।


रिचा:- मानस, ये आर्य तो इस कुतिया का अग्रेशन देखकर ही पहाड़ से लुढ़क गया। मेरी भाभी को बड़ा विश्वास था अपने भाई पर। सुनेगी तो बेचारी का दिल टूट जाएगा।


मानस:- भूमि सुनेगी तो तुम्हे दौड़ा-दौड़ा कर मारेगी।


रिचा:- उसका दौड़ और राज करने का समय चला गया मानस, भूमि 10 साल के लिए एक्टिव नहीं रहेगी। अब उसे बच्चा चाहिए। इसलिए विश्वा का होने वाला जमाई ही अध्यक्ष होगा और ये पूरी सभा हमारे इशारे पर नाचेगी।


तेनु, रिचा का एक साथी… "और उस राजदीप, नम्रता और पलक का क्या, जिसे भूमि अपने पीछे छोड़े जाएगी और तेजस को क्यों भुल जाते हो।"..


रिचा:- एक बार सभा हमारे हाथ में आने दो। मुझे जयदेव का उतराधिकारी घोषित तो होने दो। फिर देखना हम एक-एक करके कैसे सबको गायब करते है। कहने को तो ये सभा सबका है। यहां कोई भी बड़े औहदे पर हो सकता है लेकिन शुरू से राज तो भारद्वाज का ही चलता आ रहा है।


तेनु:- हां सही कही। विश्वा काका अध्यक्ष है तब भी एक भारद्वाज ही बोलती है। इस से पहले जयदेव कॉर्डिनेटर था और पर्ण जोशी अध्यक्ष, तब तेजस बोला करता था। उस से पहले तो खैर उज्जवल भारद्वाज अध्यक्ष था और वो भी किसी को नहीं बोलने देता था।


पंकज:- कोई किसी भी पद पर रहे पुरा प्रहरी समूह में केवल भारद्वाज ही बोलते है। लेकिन अब वक़्त बदलना चाहिए, हालात बदलने चाहिए और भारद्वाज के ऊपर से विश्वास बदलना चाहिए।


रिचा:- केवल मानस को अध्यक्ष हो जाने दो फिर ऐसा मती भ्रमित करूंगी की भारद्वाज खुद किनारे हो जाएंगे, बस नम्रता और उस राजदीप की शादी किसी तरह मुक्ता और माणिक से तय करवानी है।


आर्य जो इनके रेंज के बाहर गिरा था, इनकी बातें सुनकर हंसने लगा और अपनी जगह आराम से लेटा रहा। थोड़ी देर बाद ये लोग आए और आर्य को ढूंढने लगे। आर्य के बेहोश देखकर उन्होंने पानी का छींटा मारा और आर्य चौंक कर जाग गया।…. "क्यों सर कहीं से गीला और पिला तो नहीं कर दिए।"..


आर्यमणि अपनी हालात देखकर अपने ऊपर लगे धूल मिट्टी को झारने लगा, किन्तु पानी पड़ जाने के कारण वो और चिपचिपी हो चुकी थी। आर्यमणि, रिचा की बात का जवाब ना देकर चुपचाप अपनी गाड़ी के ओर जाने लगा। तभी उनमें से एक ने कहा… "ये वही वर्धराज कुरकर्णी का पोता है ना जिसका दादा ने डर के मारे एक वेयरवुल्फ को भगा दिया और बाद में कहानी बाना दिया कि उसे प्यार हो गया था"..


रिचा उसपर चिल्लाती हुई… "प्रहरी के नियम यहां कोई ना भूले तो ही अच्छा होगा। हम किसी का तिरस्कार नहीं करते। चलो आर्य।"


आर्य:- हम्मम !


दोनो मिनी ट्रक में सवार होकर वहां से निकल गए। रात में 11.30 बज रहे थे, जब रिचा उसे लेकर घर पहुंची। आर्यमणि की हालत देखकर भूमि उसके पास पहुंची…. "ये सब क्या है, सुनी तू डर के मारे पहाड़ से गिर गया।"..


आर्यमणि:- नहीं दीदी मेरा पाऊं फिसल गया था। पता नहीं वो किस तरह का साउंड था, बड़ा ही अजीब। मैने सोचा जाकर गाड़ी में बैठ जाऊं और इन्हीं चक्कर में मै गिर गया।


इतने में रिचा भी गाड़ी पार्क करके आ चुकी थी… "क्यों रिचा गलत अफवाह हां"..


रिचा:- कांच की गुड़िया है ये तो भाभी, मुझे शॉर्ट और सपोर्ट ब्रा में देखकर इसके पसीने छुटने लगे। दरवाजा से अंदर घुसा और बाहर भगा। मर्द बनाने ले गई थी इसे। और अब शर्त के मुताबिक ये मेरा शागिर्द बनेगा।


भूमि:- कैसी शर्त..


रिचा:- मै हारती तो इसे सैर पर लेकर जाना था इसकी नैन प्रिया नजारे दिखाने, और ये हारता तो मेरा शागिर्द बनता। ये शर्त हार चुका है और डील के मुताबिक़ ये मेरा शागिर्द बनेगा।


भूमि:- शर्त अगर हार गया है तो आर्य तुम्हे ये करना होगा।


आर्य:- दीदी मै नहीं डारा था, मेरे पाऊं फिसल गए थे।


रिचा:- मेरे पास 5 गवाह है।


आर्य:- 5 लोग एक ही झूट को बोले तो तो क्या वो सच हो जाएगा। मै अभी प्रूफ कर दूंगा कि रिचा गलत बोल रही है।


रिचा:- करो प्रूफ।


आर्य:- तुम जब उस विकृत लड़की को लेकर आ रही थी तब तुमने मेरे चेहरे की भावना पढ़ी थी?


रिचा:- नहीं।


आर्य:- क्या मै उस लड़की के डर से चिल्लाया था या कुछ पूछा था?


रिचा:- नहीं।


आर्य:- वो रॉड जो तुमने जमीन में गाड़ा उसे पहली बार सुनो तो हम पर क्या असर होगा।


रिचा:- इंसानी दिमाग पर भी उसका गहरा असर होता है यदि कोई पहली बार सुन रहा हो तो धड़कन बढ़ना, बेचैनी और घबराहट।


भूमि:- रिचा तो 30 दिन लगातार सुनी, तब कहीं जाकर सामान्य रहने लगी।


आर्य:- और उससे पहले।


भूमि:- उल्टियां। पहले पुरा दिन होता था। फिर धीरे-धीरे कम होता गया।


आर्य:- शर्त मै जीता हूं, आप दोनो ही अब फैसला करो… मै चला, सुबह मुझे कॉलेज जाना है।


आर्यमणि अगली सुबह जब कॉलेज पहुंचा तब फिर से कोई अन्य सीनियर आर्यमणि के पास पहुंच गया और बीच ग्राउंड में रुकवाकर उसके शर्ट पर अपने मुंह का गुटखा थूक दिया। आर्यमणि वहां से चुपचाप निकल गया और वाशरूम जाकर बैग से दूसरा कपड़ा निकालने के लिए बैग का चैन खोला ही था, कि किसी ने बाहर से उसके ऊपर एक पत्थर दे मारा। कौन मारा, कहां से मारा किसी को पता नहीं, नाक टूट गई और वो अपने रुमाल से खून को साफ करने लगा।


वो कपड़े बदल कर चुपचाप आया, और अपने क्लास में चला गया। क्लास में सभी लड़के-लड़कियां उसके ऊपर हंस रहे थे। गुटके के पिचकारी वाली वीडियो पूरे कॉलेज में वायरल हो गई थी। आर्यमणि मुसकुराते हुए अपनी क्लास अटेंड किया, तभी उसके मोबाइल पर मैसेज आया।


नंबर किसी घोस्ट के नाम से रजिस्टर था और अंदर संदेश… "सुबह-सवेरे अपनी इंसानी आखों से तुम्हे देखी। जी किया तुम्हे निचोड़ डालूं और महीने दिन पुरा मज़ा करने के बाद तब कहूं, अभी के लिए दिल भर गया, कभी-कभी मेरी प्यास मिटा देना। लेकिन शायद अभी तुम मिलना ना चाहो।"..


आर्य टाइप करते… "और तुम्हे ऐसा क्यों लगा।"..


घोस्ट:- जिस तरह तुम्हारे ऊपर किसी ने पिचकारी उड़ाई है, तुम्हारे हाव-भाव से लगता है तुम खेलने के मूड से हो। उन्हें पुरा हावी होने का मौका दोगे। जैसे कोई बड़ा शिकारी करता है। खेल के रचयता का जबतक पता नहीं लगता तबतक तो तुम एक्शन नहीं लेने वाले।


आर्य:- तुम्हे कैसे पता की मै ऐसा करने वाला हूं।


घोस्ट:- क्योंकि कल पहाड़ी से तुम्हारा जान बुझ कर गिरना और वो लोग जो तुम्हारे बराबर कहीं टिकते ही नहीं है उनकी सुनना। इससे ये साफ जाहिर है कि तुम खेल का पूरा मज़ा लेते हो। वरना अपने दादा के नाम का मज़ाक उड़ते हुए कौन सहता है।


आर्य:- फिर तो तुम्हे भी पता चल गया होगा कि ये पुरा कांड कौन रच रहा है।


घोस्ट:- तुम मेरे साथ खेल ना ही खेलो। तुम रिचा को कभी रचयिता मान ही नहीं सकते, यदि ऐसा होता तो अब तक यहां भूचाल आ गया होता।


आर्य:- मेरे पैक का हिस्सा बनना पसंद करोगी।


घोस्ट:- लेकिन तुम मेरे जैसे नहीं हो।


आर्य:- लेकिन ग्रुप तो चाहिए ना।


घोस्ट:- तुम्हारी जान बचाई हुई है अंत तक तुम्हारे साथ रहूंगी। जब मिलूंगी तब रक्त प्रतिज्ञा लूंगी। आई एम इन..


आर्य:- बचकर रहना अब मेरी नजर कॉलेज में तुम्हे ढूंढेगी। और हां आगे क्या होने वाला है उसका अलर्ट नहीं भेजना मुझे। जारा सस्पेंस का मज़ा लेने दो।


घोस्ट:- जल्दी से ये खेल खत्म करो फिर हम अपना खेल शुरू करेंगे। बाय..


आर्य लगभग पूरी क्लास संदेश-संदेश ही खेलता रहा। क्लास ओवर होने के बाद वो सीधा कैंटीन पहुंचा, जहां उसके सभी दोस्त सुबह की बात को लेकर आक्रोशित थे। आर्यमणि से पूछते रहे की कौन था, और आर्य कहता रहा जिसने किया वो गलती से कर गया वीडियो बनाने वाले ने वायरल किया है। और इधर आर्यमणि को नीचा दिखाने के लिए कैंटीन में जो भी आता पुच वाला डमी एक्शन करके जा रहा था।




वेयरवोल्फ और उसके शिकार की अहम जानकारी और कहानी के प्रमुख पात्र के लिंक मैने स्टीकी पोस्ट पर डाल दिए हैं.. आप सब से अनुरोध है.. वहां एक झलक जरूर देख लें
Araya apne dushmano se khel raha hai.or unko bi lag raha hoga ki yeh to kamzoor hai.
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भाग:–15



अब तो लगभग रोज की ही कहानी होती। कभी किसी लड़की के थप्पड़ मारने का वीडियो वायरल होता तो कभी उसके पैंट को नीचे भिंगा दिया जाता और उसके गीले होने का वीडियो वायरल होता।


कभी किसी कोने मे 8-10 नकाब पोश आर्यमणि को पिट देते उसका वीडियो वाइरल हो जाता, तो कभी उसके कॉफी के कप में मरा हुआ कॉकरोच मिलता। हर रोज आर्य के बेइज्जती के किस्से वाइरल हो रहे थे। इसी वजह से आर्य और निशांत में बहस भी खूब हो जाती थी। आलम ये था कि आर्य अब तो उन लोगो से भी कटा-कटा सा रहता था।


5 दिन बीत चुके थे। शनिवार की सुबह भूमि पल्थी डालकर हॉल में बैठी हुई थी। उसी वक़्त आर्य बाहर आया और भूमि के गोद में सर रखकर सो गया। भूमि उसके सर में हाथ फेरती हुई पूछने लगी… "और कितने दिन तक चुप रहेगा।"


आर्यमणि:- आपको कॉलेज के बारे में पता चल गया।


भूमि:- मुझे तो पहले दिन से पता था। बस इंतजार में हूं या तो तू मामला सुलझा ले, या मुझसे कहेगा। हालांकि कहता तो तू नहीं ही, क्योंकि मेरा भाई कमजोर नहीं।


आर्यमणि:- आप भी तो कुछ सोचकर रुक गई है। वरना अब तक तो आपने भी तूफान उठा दिया होता।


भूमि:- बहुत शाना कव्वा है। तुझे क्या लगता है अक्षरा काकी है इसके पीछे, या किसी आईपीएस (राजदीप) का दिमाग लगा है।


आर्यमणि:- आईपीएस का दिमाग तो सिक्किम में भी था जिसकी नफरत अक्षरा के बराबर थी, लेकिन कभी उसकी नीयत में नहीं था मुझे परेशान करना। इसमें नागपुर आईपीएस भी नहीं है। हां आप चाहो तो अब अपनी मनसा इस तीर से दाग सकती हो।


भूमि:- कौन सी मनसा।


आर्यमणि:- पलक मुझे भी पसंद है, पहले दिन से।


भूमि अटपटा सा चेहरा बनाती... "पलक तुझे पसंद है... पलक तुझे पसंद है, इस बात पर मैं नाचू या तेरी इस बेतुकी बात पर सिर पीट लूं, समझ में नही आ रहा। हम तो अभी तेरे साथ चल रहे परेशानियों पर बात कर रहे थे, इसमें अचानक पलक को कैसे घुसेड़ दिया, वह भी अपनी पसंद को मेरी मनसा बताकर... इस बात का कोई लॉजिक है...


आर्यमणि:– मैं क्या वकील हूं जो हर बात लॉजिक वाली करूं। मेरी परेशानियों के बीच आपके दिल की इच्छा याद आ गई और मैने कह दिया...


भूमि:– कुछ भी हां... तूने जान बूझकर ऐसे वक्त में पलक की बात शुरू की है, जिसपर मैं कोई रिएक्शन न दे पाऊं ..


आर्यमणि:- आपने ही तो पलक के लिए दिल में अरमान जगाये थे। मैत्री से मेरा ब्रेकअप करवाने के लिए क्या-क्या कहती थी, वो भुल गई क्या?


भूमि:- तू झूठा है, मैत्री और तेरे बीच सच्चा प्रेम था, फिर पलक की कहानी कहां से बीच में आ गई?


आर्यमणि:- पहली बार जब मैंने कॉलेज में उसे देखा था तब मेरा दिल धड़का था, ठीक वैसे ही जैसे पहले कभी धड़कता था। तब मुझे पता नहीं था कि वो वही पलक है, बाद में पता चला।


भूमि:- और पलक अपने आई के वजह से, या उसकी भी पहले से कोई चाहत हो, उसकी वजह से तुम्हे रिजेक्ट कर दी तो?


आर्यमणि:- मैत्री तो पसंद करके गायब हुई, बिना कोई खबर किए। जिंदगी चलती रहती है दीदी। वैसे भी मै एक राजा हूं, और इस राजा ने अपनी रानी तो पसंद कर ली है।


भूमि:- फिर मै कौन हुई..


आर्यमणि:- आप राजमाता शिवगामनी देवी।


भूमि इतनी तेज हंसी की उस हॉल में उसकी हंसी गूंज गई। अपने कमरे से जयदेव निकल कर आया और भूमि को देखते हुए… "ये चमत्कार कैसा, क्या मै सच में अपनी बीवी की खिली सी हंसी सुन रहा हूं।"


भूमि:- बोल तो ऐसे रहे हो जैसे मै हंसती ही नहीं हूं। तुम्हे देखकर मुंह बनाए रहती हूं जय।


जयदेव:- भूमि देसाई की बात को काटने की हिम्मत भला किसमे है? जो आप बोलो वही सत्य है।


भूमि:- मुझे ताने मार रहे हो जय...


जयदेव:- छोड़ो भी !! तुमने अबतक आर्य को बताया या नहीं?


आर्यमणि, उठकर बैठते हुए…. "क्या नहीं बताई।"


भूमि:- हम 10 दिनों के लिए बाहर जा रहे है। लेकिन किसी को बताना मत, लोगो को पता है कि हम 20 दिनों के लिए बाहर जा रहे है।


आर्यमणि:- हम्मम ! ठीक है। मै मासी के पास चला जाऊंगा।


भूमि:- पागल है क्या आई के पास जाएगा तो वो तुझे वहीं रोक लेगी। उन्हें तो बहाना चाहिए बस।


आर्यमणि:- मासी को बुरा लगेगा ना। उन्हें आपके जाने का तो पता ही होगा, उसके बाद भी मै उनके पास नहीं गया तो मेरी खाल खींच लेगी।


भूमि:- हम्मम ! ठीक है, लेकिन वापस आने से एक दिन पहले कॉल कर दूंगी, मै जब आऊं तो तुम मुझे घर में दिखने चाहिए। समझा ना..


आर्यमणि:- हां दीदी मै समझ गया। वैसे निकल कब रही हो।


भूमि:- आज शाम को। बाकी अपना ख्याल रखना। पढ़ाई और घर के अलावा भी जिंदगी है उसपर भी ध्यान देना। समझा..


आर्यमणि:- जी दीदी समझ गया।


शाम को आर्यमणि, भूमि और जयदेव को एयरपोर्ट पर ड्रॉप करके वापस अपनी मासी के घर चला गया। मासी, मौसा और भाभी के साथ आर्यमणि की एक लंबी महफिल लगी। शाम को तकरीबन 8 बजे निशांत का कॉल आ गया… "लाइव लोकेशन सेंड कर दिया है, अच्छे से चकाचक तैयार होकर आना।"


आर्यमणि समझ गया था ये गधा आज डिस्को का प्लान बनाया है। आर्यमणि थोड़े ही देर में वहां पहुंच गया। आर्यमणि डिस्को के पास खड़ा ही हुआ था कि एक तेज चल रही फॊर व्हीलर का दरवाजा अचानक खुल गया और एक बच्चा उसके बाहर। वहां मौजूद हर किसी ने अपनी आखें मूंद ली, और जब आखें खुली तो आर्यमणि जमीन में लेटा हुआ था और वो बच्चा उसके हाथ में।


सभी लोग भागते हुए सड़क पर पहुंचे और दोनो ओर के ट्रैफिक को रोका। जिस कार से बच्चा गिरा था वो कार भी रुक गई। कार के आगे की सीट से दोनो दंपति भागते हुए आए और अपनी बच्ची को सीने से लगाकर चूमने लगे… भावुक आखों से वह पिता, आर्यमणि को देखते हुए अपने दोनो हाथ जोड़ लिया।


आर्यमणि:- आपकी बच्ची सेफ है, आप दोनो जाए यहां से। और हां कार सेंट्रल लॉक ना हो तो बच्चे को अपने बीच ने बिठाया कीजिए।


दोनो दंपत्ति थैंक्स और सॉरी बोलते चलते बने। निशांत जब डिस्को आया तब हुआ ये कि वो अपनी गर्लफ्रेंड हरप्रीत के साथ अंदर चला गया। कुछ देर इंतजार करने के बाद जब आर्यमणि नहीं आया तब चित्रा ने उसे कॉल लगा दिया। लेकिन 4-5 बार कॉल लगाने के बाद भी जब आर्यमणि ने कॉल नहीं पिक किया… "लगता है बाइक पर है, पलक तू माधव के साथ अंदर चली जा मै आर्य को लेकर आती हूं।"


लेकिन पलक उन दोनों को अंदर भेज दी और खुद बाहर उसका इंतजार करने लगी। कुछ देर इंतजार की ही थी उसके बाद ये कांड हो गया। आर्यमणि ने सामने देखा, एक स्टोर थी। वहां घुसा फटाफट अपने फटे कपड़ों को बदला और झटके से वापस आ गया।


पलक, आर्यमणि की इस हरकत पर हंसे बिना रह नहीं पाई। आर्यमणि चुपके से घूमकर आया और अपना फोन निकला ही था कि उसके पास पलक खड़ी होती हुई कहने लगी… "चले क्या?"


आर्यमणि:- मुझे डिस्को बोर लगता है।


पलक:- मुझे इस वक़्त अपनी गर्लफ्रेंड समझो, फिर तुम्हे डिस्को बोर नहीं लगेगा।


आर्यमणि:- सोच लो, पहले 4 पेग का नशा, फिर हाथ कमर पर या कमर के नीचे, स्मूचिंग, हग..।


पलक, मुस्कुराती हुई… "तुम मेरे लिए हार्मफुल नहीं हो सकते ये मुझे विश्वास है।"


आर्यमणि:- कितने देर डिस्को का प्रोग्राम है।


पलक:- पता नहीं, लेकिन 11 या 11:30 तक।


आर्यमणि:- जब मै तुम्हारे लिए हार्मफुल नहीं हूं, तब तो तुम्हे मेरे साथ बाइक पर आने में कोई परेशानी भी नहीं होगी?


पलक:- लेकिन कहीं चित्रा, निशांत या माधव का कॉल आया तो...


आर्यमणि:- कभी झूठ नहीं बोली हो तो आज बोल देना। आर्य आया ही नहीं इसलिए मै चली आयी।


पलक, हंसती हुई उसके बाइक के पीछे बैठ गई। जैसे ही पलक उस बाइक पर बैठी, आर्यमणि ने फुल एक्सीलेटर लिया। पलक झटके के साथ पीछे हुई और खुद को बलैंस करने के लिए जैसे ही आर्यमणि को पकड़ी, तेज झटके के साथ आगे के ओर आर्यमणि से चिपक गई।


तूफानी बाइक का मज़ा लेते हुए आर्यमणि अपने साथ उसे सेमिनरी हिल्स लेकर आया और गाड़ी सीधा कैफेटेरिया में रुकी। गाड़ी जैसे ही रुकी पलक अपनी बढ़ी धड़कने सामान्य करती…. "तुमने तो मेरी जान ही निकाल दी।"


आर्यमणि:- क्या लोगी, ठंडा या गरम।

पलक:- 2 कोन..


आर्यमणि 2 कोने लिया, एक उसके और एक पलक के हाथ में। दोनो कदम से कदम मिलाते हुए चलने लगे… "एक शिकारी को भी डर लगता है क्या?"


पलक आश्चर्य से आर्यमणि का चेहरा देखती.… "तुम्हे कैसे पता की मैं ट्रेनिंग कर रही हूं?


आर्यमणि:– भूल क्यों जाति हो की मैं भूमि देसाई के घर में रहता हूं। वैसे सवाल अब भी वही है, एक शिकारी को भी डर लगता है क्या?


पलक:- क्यों हम इंसान नहीं है क्या?


आर्यमणि:- नाह, तुम्हारे पास मंत्र और हथियार की विद्या है। आम इंसानों से शक्तिशाली होते हो। दृढ़ निश्चय और हां कई तरह के जादू–टोना भी तुम लोगों को आते हैं। इसलिए एक शिकारी कभी भी आम इंसान नहीं हो सकता, वो भी सुपरनैचुरल है।


पलक:- नयी परिभाषा सुनकर अच्छा लगा। लेकिन फिर भी हुए तो इंसान ही ना, और जब इंसान है तो डर लगा ही रहता है।


आर्यमणि:- बस यही कहानी मेरे साथ कॉलेज में हो रही है। अचानक से किसी चीज को देखता हूं तो डर जाता हूं। 8-10 लोग जब एक साथ आते है तो मै डर जाता हूं। जिस दिन ये डर निकल गया, समझो मेरा भी कॉलेज का इश्यू नहीं रहेगा।


पलक:- डर और तुम्हे। तुम भय को भी भयभीत कर सकते हो। मै तुम्हारी कैपेसिटी आज ही सुबह समझी हूं, जब एक बहस के दौरान तुम्हारी वो वीडियो देखी, जिसमे तुमने अजगर को स्टन गन से बिजली का झटका दिया और फिर उस लेडी को पकड़कर नीच खाई में जा रहे थे।


आर्यमणि कुछ सोचते हुए.… "फिर कॉलेज में चल रही घटनाओं के बारे में तुम्हारे क्या विचार है?


पलक:– क्या कहूं, मैं खुद भ्रम में हूं। मेरा दिल कहता है कि तुम चाहो तो क्या न कर दो, फिर अंदर से उतनी ही मायूस हो जाती हूं जब तुम कुछ करते नही। ऐसा लगता है जैसे तुम अपने आस–पास के लोगों से ही मजे ले रहे। दूसरे लोग तुम्हारे साथ जब गलत करते हैं तब तुम तो एंजॉय कर लेते हो लेकिन कलेजा हम सबका जल जाता है। जी करता है उन कमीनो का बाल पकड़कर खींच दूं और गाल पर तबतक थप्पड़ मारती रहूं जबतक कलेजे की आग ठंडी न हो जाए।


आर्यमणि, पलक के आंखों का गुस्सा और उसके जुबान की ज्वाला को सुनकर मुस्कुरा रहा था। दिल की पूरी भड़ास निकालने के बाद पलक भी कुछ देर गुस्से में कॉलेज के उन्ही घटनाओं के बारे में सोचती रही। लेकिन अचानक ही उसे याद आया की वो तो गुस्से में आर्यमणि के प्रति लगाव की ही कहानी बता गई। और जब यह ख्याल आया, पलक अपनी नजर चुराती चुपचाप कदम बढ़ाने लगी। आर्यमणि चलते-चलते रुक गया। रुककर वो पलक के ठीक सामने आया। उसकी आंखों में देखते हुए…


"इस राजा को एक रानी की जरूरत है, जो उसपर आंख मूंदकर विश्वास करे। इस राजा को अपनी रानी तुम में पहले दिन, पहली झलक से दिख गई थी। इंतजार करना, हाल–ए–दिल जानना, और फिर सही मौके की तलाश करके बोलना, इतना मुझसे नहीं होगा।"

"मेरा दिल बचपन में किसी के लिए धड़का था, लेकिन किसी ने उसका कत्ल कर दिया। हालांकि दिल उसके लिए बहुत तरपा था। पहले वो कई सालो तक गायब हो गई। फिर किसी तरह बातें शुरू हुई तो महीने में कभी एक बार मौका मिलता। और जब वो आखिरी बार मुझे मिली तो ये दुनिया छोड़ चुकी थी। उसके बाद बहुत सी लड़की मिली। तुम्हे देखने के बाद भी मिल रही है। लेकिन ये दिल तुम्हे देखकर हर बार धड़कता है। तो क्या कहती हो, तुम्हे ये राजा पसंद है।"


पलक:- मेरे और अपने घर का माहौल नहीं जानते क्या?


आर्यमणि:- माहौल तो हर वक़्त खराब रहता है। हम यहां बात कर रहे है और कोई हमारे पीछे माहौल खराब करने की साजिश कर रहा होगा। हमारे घर के बीच के खराब माहौल को जाने दो, वो सब मै देख लूंगा, बिना तुम्हे बीच में लाए। तुम मुझे बस ये बता दो, क्या तुम्हे मै पसंद हूं?


पलक:- यदि हां कहूंगी तो क्या तुम मुझे अभी चूम लोगे?


आर्यमणि:- इसपर सोचा नहीं था, लेकिन अब तुमने जब ध्यान दिला ही दिया है तो हां चूम लूंगा।


पलक:- किस्स उधार रही। वो तुम्हारे कॉलेज के मैटर में मेरे कलेजे को शांति मिल जाए, उसके बाद लेना। अभी हां कह देती हूं।


हां बोलते वक़्त की वो कसिस, मुसकुराते चेहरे पर आयी वो हल्की शर्म... उफ्फफफ, पलक तो झलक दिखाकर ही आर्यमणि का दिल लूटकर ले गई। आर्यमणि, पलक के कमर में हाथ डालकर उसे खुद से चिपकाया। उसके बदन कि खुशबू जैसे आर्यमणि के रूह में उतर रही थी। गहरी श्वांस लेते वो इस खुशबू को अपने अंदर कैद कर लेना चाहता था। अद्भुत क्षण थे जिसे आर्यमणि मेहसूस कर रहा था।


लचरती सी आवाज़ में पलक ने दिल की बात भी कह डाली। अपना वो धड़कते अरमान भी बयान कर गई जब उसने आर्यमणि को पहली बार देखकर मेहसूस किया था। आर्यमणि मुस्कुराते हुए उसे और जोर से गले लगाया और थोड़ी देर बाद खुद से अलग करते दोनो हाथो में हाथ डाले चल रहे थे।… "आर्य मुझे बहुत बुरा लगता है जब लोग तुम्हारा मज़ाक उड़ाते है। दिल जल जाता है।"


आर्यमणि:- कुछ दिन और दिल जला लो। मुझ पर हमले करवाकर कोई तुम्हारे भाई राजदीप को मेरे दीदी भूमि और तेजस भैया से भिड़ाने के इरादे से है। जो रिलेशन मीनाक्षी भारद्वाज का अक्षरा भारद्वाज के साथ है, वही रिलेशन इन सबके बीच चाहते है।


पलक चलते–चलते रुक गई….. "तुम्हे इतनी बातें कैसे पता है। जो भी है इनके पीछे क्या उन्हें तेजस दादा और भूमि दीदी का जरा भी डर नहीं।'


आर्यमणि:- वही तो पता लगा रहा हूं।


पलक:- तुम्हारी रानी उन सबकी मृत्यु चाहती है। उनमें से कोई भी जीवित नहीं बचना चाहिए जो हमे अलग करना चाहते है।


आर्यमणि:- हा, हा, हा... सीधा मृत्यु की सजा... खैर जब गुनहगार सामने आएगा तब सजा तय करेंगे, लेकिन फिलहाल हमारे बीच सब कुछ पहले जैसा ही रहेगा।


पलक:- तुम नहीं भी कहते तो भी मै यही करती। क्या अब हम अपनी बातें करे। मुझे अभी तक यकीन नहीं हो रहा तुमने मुझे परपोज किया, मेरे पाऊं अब भी कांप रहे है।


आर्यमणि:- कल से तुम सज संवर कर आना। मेरी रानी को रानी की तरह दिखना चाहिए। हर कोई पलटकर देखने पर विवश हो जाए। लड़के अपने धड़कते अरमानों के साथ तुम्हरे इर्द-गिर्द घूमते रहे।


पलक:- और कोई लड़का मुझे पसंद आ गया तो।


आर्यमणि:- हां तो उसे अपना सेवक बना लेना। रानी के कई सेवक हो सकते है, किन्तु राजा एक ही होगा।


पलक, उसपर हाथ चलाती… "छी, कितनी आसानी से कह गए तुम ये बात। मै तो चित्रा के साथ"…


आर्यमणि:- पलक ये देह एक काया है, जो एक मिथ्या है, और आत्मा अमर। क्या वो औरत चरित्रहीन है जो विवाह के बाद किसी अन्य से गुप्त संबंध बनाती है।


पलक:- ये कौन सी बात लेकर बैठ गए। तुम्हे किसी के साथ ऐसे संबंध बनाने हो तो बना लेना, लेकिन मुझ तक बात नहीं पहुंचने देना। बाकी मुझे इन बातो के लिए कन्विंस मत करो।


आर्यमणि:- माफ करना, मैंने अपनी रानी को परेशान किया। चलो चला जाए, अपनी रानी के लिए कुछ शॉपिंग किया जाए।


पलक:- लेकिन अभी तो कहे थे कि हमे पहले की तरह रहना है। किसी को पता नहीं चले।


आर्यमणि:- हां तो मुंह कवर कर लो ना। लेकिन कल से तुम रानी की तरह सज संवर कर निकलोगी।


पलक ने अपना मुंह पुरा कवर कर लिया और दोनो चल दिए। दोनो बिग सिटी मॉल गए। वहां से पलक के लिए तरह-तरह के परिधान, मेकअप किट, आभूषण, सैंडल यहां तक कि आर्य की जिद की वजह से पलक ने अपने लिए तरह तरह के अंडरगारमेट्स भी खरीदे। कुल 2 लाख 20 हजार का बिल बाना जिसे आर्य ने पेमेंट कर दिया।


दोनो वहां से बाहर निकले.. पलक आर्य के कांधे पर हाथ देती बैठ गई। अपने होंठ को आगे ले जाकर उसके कान के पास गालों को चूमती हुई… "आर्य, मै डिस्को के लिए निकली थी, रास्ते में ये इतना सामान कैसे खरीदी।"


आर्यमणि:- मै जानता हूं मेरी रानी के लिए ये बैग सामने से ले जाना कोई मुश्किल काम नहीं। फिर भी तुम्हारी शरारतें मेरे समझ में आ रही है। बताओ तुम क्या चाहती हो?


पलक:- मै चाहती हूं, तुम मुझे पूरे कॉलेज के सामने परपोज करो, जैसे कोई शूरवीर राजा वीरों के बीच अपनी रानी को स्वयंवर से जीत लेते है। और तब ये रानी अपने राजा को रिझाने के लिए हर वो चीज करेगी जो उसकी ख्वाहिश हो। अभी से यदि सब करने लगे तो विलेन गैंग को शक हो जाएगा ना, और वो पता लगाने की कोशिश में जुट जाएंगे कि ये रानी किस राजा के लिए आज संवर रही है।


आर्यमणि:- अगली बार कार लाऊंगा। एक तो बाइक पर बात करने में परेशानी होती है ऊपर से ऐसे सोच सुनकर जब चूमने को दिल करे तो चूम भी नहीं सकते। दिल जीत लिया मेरा, तभी तुम मेरी रानी हो। ये बैग मेरे पास रहेगा, मै तुम्हे सबके सामने दूंगा।


पलक तभी आर्यमणि को बाइक रोकने बोली, और चौराहे पर उतरकर उससे कहने लगी…. "अब तुम जाओ, दादा को कॉल कर लेती हूं, वो पिकअप करने आ जाएंगे।"


आर्यमणि जाते-जाते उसे गले लगाते चला। गीत गुनगुनाते और मुसकुराते चला। पलक भी मुसकुराते चली और हंसकर जीवन के नए रंग को अपने जहन में समाते चली।
Fantastic update
 
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यह जो घटनाक्रमों का प्रत्यक्ष रूप दिखाई दिया उससे भारद्वाज फेमिली ही कटघरे में आ खड़े हुए । जिस फेमिली के लिए हम सहानुभूति दिखाते रहे वो ही विलेन नजर आता दिखा ।
आर्य के सगे मौसा सुकेश जी‌ , मौसेरे भाई तेजस एवं माशुका पलक ही ताश के जोकर निकले ।
आर्य ने सब कुछ पहले ही अंदाजा कर लिया होगा इसीलिए उसके चेहरे पर कोई हैरानी भरा भाव नहीं दिखाई दिया ।

प्रहरी के ये लोग न सिर्फ खूंखार भेड़ियों को ही संरक्षण देने का काम किया अपितु कुछ ऐसे मायावी ताकतों को भी पाल रखा था जो उनके हित साधने में मददगार होते ।
नित्या कौन थी ! क्या थी यह ! यह उन लोगों के लिए महाजनिका नामक रीछ स्त्री की छद्म परछाईं ही थी जिसे वो महाजनिका के रूप में इस्तेमाल करते ।
पता नही और कितने सुपर नेचुरल शक्तियों को इन्होंने संरक्षण दिया होगा जो काफी विनाशकारी हैं ।

इस अपडेट से मुझे ऐसा भी लगता है जैसे अपस्यू हमें फिर से नजर आयेगा । शिवम मुनि की बातें ऐसा ही इशारा कर रही है ।

रिचा और पैट्रिक की मौत ने मुझे काफी आहत किया.. खासकर रिचा की मौत ने । आर्य ने कुछ अच्छे पल बिताए थे उनके साथ ।
लेकिन यह भी खराब लगा कि आर्य ने उसकी मौत पर कोई इमोशनल भाव नहीं दिखाया । रिचा के साथ बिताए हुए पल और वो भी इतना नजदीकी से , कैसे कोई इग्नोर कर सकता है ।

भारद्वाज फेमिली के ये होनहार सदस्य अपनी ही पुत्री और उसके ससुराल के खिलाफ हैं ।
विश्वा जी , उनके पुत्र एवं बहू , और पुत्री रिचा..... कभी भी इन्होंने सपनों में भी कल्पना किया होगा कि भूमि के गार्डियन ही विषधर कालसर्प है ।

अद्भुत अपडेट नैन भाई ।
आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग एंड
जगमग जगमग ।
बहुत ही चौंकाने वाला अपडेट था यह ।
 
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